बड़े काम के ये खिलौने

खिलौने बच्चों के विकास में अहम भूमिका अदा करते हैं. बस जरूरत होती है कि सही उम्र में बच्चों को सही खिलौने दिए जाएं. खिलौने ऐसे हो जिन के साथ खेलते समय बच्चे खेल में पूरी तरह लिप्त हो सकें और खेलखेल में अपने व्यक्तित्व विकास के बारे में सीख सकें.

रिमोट और बैट्री वाले खिलौनों की जगह वे खिलौने सीखने में मदद करते है जिन से बच्चे खुद खेलते हैं. बहुत सारे ऐसे खिलौने भी होते हैं जो सस्ते होने के बावजूद बच्चों के लिए बहुत उपयोगी होते हैं. पेरैंट्स को चाहिए कि खिलौनों की कीमत को ले कर स्टेटस सिंबल न बनाएं. केवल यह देखें कि वे बच्चों के लिए कितने उपयोगी हैं और बच्चे उन्हें कितना पसंद करते हैं.

हम जब भी बच्चों को सम?ाने का प्रयास करते हैं तो कोशिश यही रहती है कि हम उन के अनकहे शब्दों को भी समझ जाएं. हमारा प्रयास यही रहता है कि किसी तरह उन की दुनिया में पहुच जाएं. वह दुनिया जहां एक माचिस का डब्बा उड़ता हुआ जहाज लगे, जहां छोटेछोटे खिलौनों से कई बड़े सपने सजे हों और घंटों खुद से ही बात करते रहना. कभी गाडि़यों के पहियों से तो कभी जोड़जोड़ के माचिस से महल खड़ा करना. किसी खिलौने के टूटने से घंटों आंसू बहाना या नए खिलौने मिलने पर जैसे कोई खजाना मिल जाना जैसी खुशी का इजहार करना.

भविष्य के विकास की नींव

वह बचपन ही क्या जिस में खिलौनों की यादें न हों. मगर क्या आप यह जानते हैं कि खिलौनों से खेलना सिर्फ एक क्रिया ही नहीं बल्कि इस से एक सुनहरे भविष्य के विकास की नींव भी तैयार होती हैं. खेलखिलौनों से आत्म जागरूकता, स्वयं के संबंध दूसरों से, आत्मविकास और आत्म अभिव्यक्ति जैसी बहुत सी बातें सीखते हैं जो सही व्यक्तित्व विकास के लिए बेहद जरूरी है.

चाइल्ड, अडोलसैंट ऐंड पेरैंटल हैंडलिंग ऐक्सपर्ट साइकोलौजिस्ट डाक्टर सोनल गुप्ता कहती हैं कि कई बार जो बातें बच्चे अपने अभिभावकों से नहीं कह पाते उन्हें वे खिलौनों के जरीए कह पाते हैं. अत: पेरेंट्स के लिए यह जरूरी है कि वह कुछ समय बच्चों के साथ खेल में बिताएं और उन की दुनिया का हिस्सा बनें. मनोवैज्ञानिक इसी प्रक्रिया से ‘प्ले थेरैपी’ के जरीए बच्चों की दुनिया में प्रवेश करते हैं और उन की कई उलझनों को सुलझने का प्रयास करते हैं.

महंगे खिलौने जरूरी नहीं

आमतौर पर पेरैंट्स यह सोचते हैं कि महंगे खिलौने बच्चों को अधिक पसंद आएंगे. यह पूरा सच नहीं है. कई बार देखा जाता है कि बच्चे सस्ते किस्म के खिलौने देख कर ज्यादा आकर्षित होते हैं. उन के खिलौने खरीदते समय उन की पसंद पर ध्यान दें. उम्र के हिसाब से बच्चों को क्या सिखाना चाहिए इस बात को ध्यान में रखते हुए खिलौने खरीदें.

खिलौने बच्चों के जीवन से जुड़े सब से मीठे अनुभव होते हैं पर यह जरूरी नहीं कि वह खिलौना महंगा ही हो. ध्यान दें कि कहीं खिलौने से विकास की जगह बच्चे की जिद्द और अहम का द्वार न खुल जाए. खिलौने तो बच्चे की कल्पना का प्रतीक हैं, फिर भले ही वह एक कागज की नाव हो या सूखी लकडि़यों से बना आधुनिक विज्ञान से परिपक्व एक आसमान में उड़ता जहाज. आवश्यकता यह है कि क्या इस कल्पनाओं के शहर में आप की जगह है?

खिलौने बताते हैं बच्चों की रुचि

साइकोथेरैपिस्ट डाक्टर नेहा आनंद कहती हैं कि खिलौनों के साथ जब बच्चा खेलता है तो उस के स्वभाव के विषय में पता चलता है. कई बार इस समय ही यह पता चलता है कि बच्चे का कस दिशा में रु?ान है. एक क्रिकेट खेलने का शौक रखने वाला बच्चा किस तरह से क्रिकेटर बन जाता है देखने वाली बात है. खिलौने खेलने के तरीके से बच्चे के व्यवहारका पता चलता है. कई बच्चे खेलने के समय ही ऐसे गुस्से वाले काम करते हैं जिन से उन के गुस्से वाले स्वभाव को सम?ा कर उस का निदान किया जा सकता है.

बच्चे जब बौल को कैच करने वाला खेल खेलते हैं तो वह खेल सीधा सरल दिखता है. असल में बौल को कैच करने वाले इस खेल में शारीरिक ऐक्सरसाइज के साथ ही साथ मैंटल ऐक्सरसाइज भी होती है. बच्चों में एकाग्रता बढ़ती है. इस के साथ ही साथ उन्हें बौल की स्पीड का अंदाजा लगाना आ जाता है. पेपर को फाड़ना, दीवार पर बच्चे का पैंसिंल से लिखना कई बार पेरैंट्स को बच्चों का खराब व्यवहार लगता है. असल में यह भी बच्चों के लिए एक खेल है जिस के माध्यम से वे तमाम चीजें सीखते हैं.

छोटे बच्चों के साथ खेलने में अगर पेरैंट्स भी अपना समय दें तो यह उन के विकास में बहुत उपयोगी होगा.

खिलौने बच्चों को बहकाने का जरीया नहीं

ज्यादातर पेरैंट्स यह सोचते हैं कि खिलौने बच्चों को बहकाने का जरीया हैं. ऐसे में वे बच्चे को महंगे से महंगे और अच्छे से अच्छे खिलौने खरीद कर देते हैं पर वे उस के विकास में सहायक नहीं होते. पेरैंट्स के इस व्यवहार से बच्चे में जिद करने की आदत पड़ जाती है. वह जिद कर के अपने लिए खिलौने खरीदवाने लगता है.

अगर कोई बच्चा रिमोट से उड़ने वाले हैलीकौप्टर से खेल रहा है तो उसे केवल रिमोट का बटन दबाना ही आएगा. उसे यह लगेगा कि बटन दबाने से प्लेन उड़ता है. अगर कोई साधारण प्लेन उड़ाता है तो उसे उस के पहिए, पंख सब की जरूरतों की जानकारी होगी. उसे पता होगा कि प्लेन को उड़ाने के लिए समतल सड़क भी चाहिए. यही वजह है कि रिमोट वाले खिलौनों के बजाय नौर्मल खिलौनों से बच्चों को ज्यादा सिखाया जा सकता है.

आज के समय में जब भी बच्चा रोता है मां उस को अपना मोबाइल या घर में रखा कोई मोबाइल पकड़ा देती है. बच्चा उस से खेलने लगता है. धीरेधीरे यह उस की आदत बन जाती है. साइकोथेरैपिस्ट डाक्टर नेहा आनंद कहती हैं कि ब्लू स्क्रीन का नशा बच्चों के मन पर बुरी तरह प्रभाव डालता है. यह उन की लत में बदल जाता है. पेरैंट्स दिखावे के लिए महंगे फोन बच्चों को दे देते हैं. जैसेजैसे स्क्रीन बड़ी होती जाती है उस का प्रभाव बढ़ता जाता है. पेरैंट्स को चाहिए कि खिलौनों की जगह मोबाइल बच्चों को न दें. इस का प्रभाव बहुत आगे तक बच्चों के मन पर रहता है

जब बुजुर्गों की सेवा में बाधक बन जाए कैरियर

‘पीकू’ फिल्म में पीकू का किरदार देख कर दर्शकों के मुंह से यही निकला कि घरघर पीकू बसती है यानी पीकू जैसी लड़कियां हमारे समाज में पाई जाती हैं, जो आप को मांबाप की सेवा करती उन्हीं के घर पर मिलेंगी. हम यह नहीं कह रहे कि पीकू जैसी सेवा अपने बुजुर्ग मांबाप के लिए करना गलत है. पर यह भी जरूरी है कि पीकू बन कर अपनी जिंदगी को खराब न करें क्योंकि उस चक्कर में मांबाप भी परेशान होंगे.

कई साल पहले आई इस फिल्म की बात करें तो इस के 2 किरदार हमारे मन में कई सवाल छोड़ जाते हैं. कई बार हमें पीकू सही लगती है, तो कई बार भास्कर बनर्जी. चूंकि फिल्म को कौमेडी टच दिया गया है, इसलिए यह अंत में उन जरूरी सवालों से बच जाती है, जिन का हमें असल जिंदगी में सामना करना पड़ता है.

क्या सेवा करने के कारण अपना कैरियर, अपनी मरजी से कुछ करने की आजादी और शादी न करने का फैसला लेना सही है? क्या गैरतमंद लड़की पूरी जिंदगी अपने भैयाभाभी, बहन के तानों को सहते हुए काटना पसंद करेगी? मान लीजिए कि आप का भाई, भाभी, बहन या अन्य परिवार के सगेसंबंधी आप के बूढ़े या लाचार मां या बाप को नहीं देख सकते, तो क्या आप अपनी पूरी लाइफ उन की देखभाल में गुजार देंगी? क्या पूरी जिंदगी उन्हीं की अजीब इच्छाओं या दवादारू के पीछे ही उल?ा रहे?

बड़ा सवाल है कि उन के चले जाने के बाद आप की स्थिति क्या होगी? क्या आप को भी उन की तरह एक पीकू चाहिए होगी या फिर आप के पास इतना पैसा है कि आप बिना किसी के सहारे अपनी पूरी जिंदगी गुजार देंगी? क्या सभी पीकुओं के पास पैसा या अन्य सुखसुविधाएं होंगी? ये सवाल पीकू कई लोगों के मन में छोड़ गई थी पर समाज ने कुछ सीखा है लगता नहीं.

सेवा जरूरी या कैरियर

एक बेटी के ऐसे मातापिता की सेवा करने के पीछे अपना कैरियर और सुख गंवाया जो हर समय चूंचूं करते फिरते रहे गलत है और यह अनावश्यक भी. कई मांबाप ऐसे होते हैं कि अपने सिवा उन्हें कोई नहीं दिखता. दूसरी ओर बुजुर्ग मातापिता की आदतों से खिन्न बेटी का व्यवहार समाज में अभद्र होता जाता है. वह अपने कुलीग्स, दोस्तों, नौकरों या अजनबी लोगों से भी अशिष्ट व्यवहार करने लगती है.

35 वर्षीय शेखर ने अपना पूरा जीवन मां की सेवा करने के लिए समर्पित कर दिया, वह मां जिस ने शेखर के और 2 बड़े भाइयों को भी जन्म दिया था, लेकिन बड़े भाइयों और उन की पत्नियों ने मां का वह हाल किया कि वह अब बिस्तर पर है. घर के सारे कामकाज से ले कर बाहर का राशन व सब्जी लाने का सारा काम, कामवाली की तरह लगे रहने वाली शेखर की मां ही किया करती थी.

शेखर को यह नागवार गुजरा और उस ने अपनी कंपनी से रिजाइन दे कर फ्रीलांसिंग पर घर बैठे काम करना शुरू कर दिया और मां की सेवा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया.

शादी न करने का फैसला

शेखर ने अपना कैरियर तो चौपट किया ही साथ ही नौजवान होने के बावजूद उस ने शादी न करने का बड़ा फैसला भी लिया. अब अगर उस से कोई पूछ बैठता कि शादी की या नहीं तो इस पर शेखर की प्रतिक्रिया होती कि फिर मां की सेवा कौन करेगा? उम्र ज्यादा होने पर अब वह चाहे भी तो उस की शादी नहीं हो पाएगी और अगर हो भी गई तो क्या उस की पत्नी भी भाभियों की तरह ही मां के साथ दुर्व्यवहार करने लगेगी?

क्या शेखर की यह सोच जायज है? क्या शेखर ने सोचा है कि मां के जाने के बाद जब वह खुद बिस्तर पर पड़ जाएगा, तो उस की सेवा कौन करेगा या फिर उस ने जीवन में इतना कमा लिया है कि नौकर रख कर भी वह आजीवन अपनी सेवा कराएगा?

क्या शेखर को शादी कर अपनी हमसफर को पहले ही स्थिति साफ कर देनी नहीं चाहिए थी? शादी कर अपनी पत्नी को बताना चाहिए था कि मां की सेवा भी करनी पड़ेगी. क्या दुनिया की सारी लड़कियां शेखर की भाभियों की तरह ही होती हैं?

शेखर की तरह ही ऐसे कई घरों में पीकू भी हैं, जो अपना पूरा जीवन अपने बुजुर्ग मातापिता की सेवा में लगा देती हैं. क्या ऐसा करना सही है? कुछ मांएं तो बिलकुल स्वार्थी हो जाती हैं कि बेटी की शादी न करतीं और फिर उन की देखभाल न करें. वे हर लड़के को भगा देती हैं. कुछ शादी के बाद तलाक तक दिला देती हैं.

नर्क से बदतर जिंदगी

जून, 2012 में 2 सगी बहनों को 8 साल खुद की कैद से बाहर निकाला गया. पासपड़ोस के लोग उस समय हक्केबक्के रह गए, जब उन दोनों को हंसतेखेलते 8 सालों से नहीं देखा था. इन दोनों बहनों के पास से बदबू आ रही थी और दोनों ही चलने में असमर्थ हो गई थीं. दोनों इतनी कमजोर थीं क्योंकि कई महीनों से उन्होंने खाने का स्वाद चखना तो दूर बल्कि देखा व सूंघा तक नहीं था. मानसिक हालत तो ऐसे में खराब होनी ही थी.

अब इस कहानी को 8 साल पहले रिवर्स करें तो पाएंगे कि ममता की शादी हो जाने के बाद उस के कुछ सालों बाद पिता भी चले गए. थोड़े दिनों बाद ही गृहक्लेशों के कारण ममता की जिंदगी नर्क से भी बदतर हो गई और बेटे के जन्म के बाद पतिपत्नी का तलाक हो गया. ममता अपने मायके बूढ़ी मां के पास आ गई साथ में छोटी बहन का भी उसे सहारा मिल गया.

बिखर जाती है जिंदगी

अब कहानी यहां से नया टर्न लेती है. धीरेधीरे मानसिक तनाव झेलते इस पूरे परिवार के बुरे दिन शुरू हो गए थे. ममता की हालत व बिखरी लाइफ को देख कर नीरजा भी अवसादग्रस्त हो गई. यहां अब तक कमाने का कोई जरीया नहीं बचा था. हां, सालों में कोई रिश्तेदार मेहरबान होता तो कुछ मदद कर जाता पर कब तक.

बूढ़ी मां का सहारा बनती दोनों बेटियां खुद ही बिस्तर पर पड़ गईं. बेटे के भविष्य की भी चिंता को ममता ने घर कर लिया था पर दूसरी बहन मानसिक रूप से विक्षिप्त होने के चलते उस ने कोई कदम नहीं उठाया और न ही अपनी बहन को उबारा. ममता ने खुद बरबाद होना ज्यादा सही सम?ा. अगर वह थोड़ी हिम्मत दिखाती तो शायद हंसतेखेलते परिवार की ऐसी दुर्दशा नहीं होती.

आज अगर देखें तो 10 परिवारों में करीब

2 परिवार आप को ऐसे मिल जाएंगे जहां बेटा या बेटी की उम्र 35 से 40 वर्ष होगी और उस ने अपना सारा जीवन मां या बाप की देखरेख में समर्पित कर दिया है. ये उम्र ज्यादा हो जाने पर खुद से शादी न करने का फैसला कर लेते हैं या इन्हें शादी के औफर आने बंद हो जाते हैं. अगर औफर आए भी तो बेमेल लोगों के आते हैं, जो लोगों को नागवार गुजरते हैं.

अगर ममता ने ठोस कदम उठाया होता तो वह अपनी मां, बेटे और बहन सभी के लिए मिसाल कायम कर सकती थी. क्या ममता का यह फैसला सही साबित हुआ, अंत तो आप सब के सामने ही है. दोनों बहनों ने कैसे हार कर अपनेआप को कैद कर लिया था.

ब्लैकमेलिंग से नहीं चलते रिश्ते

अकसर वृद्ध होते मांबाप इकलौती बेटी को सैलफिश कह कर अपनी नाजायज मांगें मनवा लेते हैं. इंसानी रिश्तों में ब्लैकमेलिंग अपनाना उचित नहीं है.

अपनी बात मनवाने के लिए जिद्द इख्तियार करना भी ठीक नहीं कहा जा सकता है. किसी बात पर एकराय होने के लिए उस पर स्वस्थ बहस होनी चाहिए. साथ में यह भी देखा जाना चाहिए कि उस से किसी पक्ष का नुकसान न हो.

जहां मां या बाप में से एक की मृत्यु हो चुकी हो कई बार बड़ों के मन में यह बात बैठा दी जाती है कि उन की देखभाल के लिए उन के मातापिता ने दूसरी शादी नहीं की. वे बच्चों को ऐसे तर्क दे कर चुप करा देते हैं और अपनी बात मनवाते हैं. यह ब्लैकमेलिंग बेटियों को मानसिक शिकार बना देती है. वे अपना खुद का रखरखाव करना छोड़ देती हैं.

मेरे बाद क्या, गलत सोच

कई युवा यह सोचते हैं कि उन के अलावा परिजनों की देखभाल कोई और नहीं कर सकता या वे शादी कर लेंगे तो अकेले मां या बाप का क्या होगा. जरूरी नहीं कि आप के पार्टनर को आप के परिजनों की चिंता न हो. आप अपने पेरैंट्स को शादी के बाद भी अपने साथ रख सकते हैं.

इस के लिए आप को अपने पार्टनर को कनविंस करना होगा. ‘गोलमाल 3’ फिल्म एक बढि़या उदाहरण है, जिस में 2 अकेले बुजुर्ग अपने परिवारों को एकसाथ लाने का फैसला करते हैं, इस फैसले से परिवार में कुछ समय के लिए मतभेद हो सकते हैं लेकिन यह भविष्य को ले कर रास्ता दिखाता है.

थोड़ा एडजस्ट करें, प्लीज

जब बेटी अकेली हो तो बात दूसरी, पर कई बार बहन या भाई, मांबाप की जिम्मेदारी अविवाहित बेटी पर डाल कर कन्नी काट लेते हैं. उन की अनचाही बातें पूरी करते फिरते. खैर, यह फिल्म थी. अगर युवतियां अपना कैरियर, लाइफस्टाइल, शादी जैसे अहम फैसले अपने बुजुर्गों के लिए बदल रही हैं, तो थोड़ा ऐडजस्ट उन्हें भी करना पड़ेगा.

जीवन 2 तरीके से जीया जा सकता है. सूखी लकड़ी की तरह कठोर हो कर या हरी लकड़ी की तरह लचीला हो कर. पहले तरीके से दूसरों और खुद को तकलीफ और तनाव ही मिलेगा पर दूसरे तरीके से बेहतर परिणाम निकलने की गुजाइंस बढ़ जाती है. कई मांबाप अपने कमाए पैसे की धौंस पर बेटियों को सही निर्णय नहीं लेने देते. हर बेटी को अपने पूरे जीवन को देख कर फैसले लेने चाहिए.

बोझ न बनें

बारबार दिखाई जाने वाली अभिताभ बच्चन व हेमामालिनी की फिल्म ‘बागबान’ में 4 बच्चों के बावजूद भी उन के मांबाप को अलगथलग रहना पड़ता है. उन 2 बुजुर्गों की जिम्मेदारी इकट्ठे कोई नहीं उठाना चाहता तो वहीं तब वह बुजुर्ग रिटायर होने के बाद भी हिम्मत नहीं हारता और अपनी लिखी खुद की कहानी पर ही किताब लिखने का फैसला करता है.

यानी हम यहां सम?ा सकते हैं कि वह किसी पर भी बो?ा नहीं बनता. इस फिल्म से भी कई निराश लोगों को हिम्मत मिल सकती है क्योंकि एक उम्र के बाद खुद बुजुर्गों को लग सकता है कि वे परिवार पर बो?ा बन गए हैं. यह सोच युवा पीढ़ी के मन में भी आ सकती है. उस से बचने के लिए बुजुर्ग परिवार की मदद कर सकते हैं.

जीवन में अकेले होने पर कई बार तनाव भी घर कर जाता है. ऐसी परिस्थितियों से बचने के लिए बुजुर्ग अपना मन अपने नातीपोते के कामों व उन में लगा सकते हैं. इस से परिवार को भी मदद मिलेगी. अपनी समस्याओं को खुद निबटाएं न कि सब को अपनी समस्या के चलते फांस कर रखें. किसी पर कभी बो?ा न बनें.

बुढ़ापे में कोई क्लब जौइन करना, सोशल होना, दोस्त बनाना, सुबहशाम टहलने जाना बुजुर्गों का मन बहलाने के काम आ सकता है. हमारा शरीर एक मशीन की तरह है, इस का चलना बंद हो गया तो कई पार्ट्स में परेशानी हो सकती है. इन तरीकों से बुजुर्ग परिवार का छोटामोटा काम करने के साथ ही अपना मन भी लगा सकेंगे.

युवाओं को समझना जिम्मेदारी

इस से एक कदम आगे बढ़ कर बुजुर्ग युवतियों को जीवन का मूल्य सम?ाएं. बुजुर्ग पीढ़ी अपने जीवन का बड़ा हिस्सा जी चुकी होती है, इसलिए उन्हें युवाओं को अपने हिसाब से जीने की सलाह देनी चाहिए. बेटियां मांबाप के जोश में कई बार शादी न करते, कैरियर को सैक्रीफाइज करने जैसे कई बड़े फैसले ले लेती हैं, लेकिन बुजुर्गों को अपने अनुभव का हवाला देते हुए उन्हें सम?ाना चाहिए कि ऐसे फैसले बाद में पछतावे की वजह बनते हैं.

सरकार भी दे ध्यान

बुजुर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा बढ़ाए जाने की जरूरत है. उन के लिए बेहतर पैंशन, वृद्धाश्रम, सस्ता अनाज जैसी सुविधाएं बढ़ानी चाहिए. यूरोप के कई देशों में सरकारें सामाजिक सुरक्षा के नाम पर बड़ी रकम खर्च करती हैं. भारत में परिवारों के टूटने का दौर तेजी से बढ़ा है. इस से भी बुजुर्ग अलगथलग पड़ जाते हैं, इसलिए भी सरकार को बुजुर्गों के लिए सुविधाएं बढ़ानी चाहिए ताकि किसी बेटी को अपनी जवानी न खोनी पड़े.

धर्म उठाता है फायदा

भारत में अकसर बच्चों को श्रवण कुमार, राम आदि की कहानियां सुना कर आज्ञाकारी और भक्त बनने को प्रेरित किया जाता है. यह विचार धर्र्म से प्रेरित है. धर्म ने ही सिखाया है कि मातापिता की सेवा श्रवण कुमार की तरह करनी चाहिए. कई बार तो मातापिता तीर्थ यात्राओं जैसे चारधाम आदि की भी मांग करते हैं.

तीर्थयात्रा के अलावा मातापिता के मरने पर उन का श्राद्ध, बरसी, पिंडदान करना जैसे धर्म संस्कार बेटियों से करवा कर उन्हें नकली बनावटी सम्मान दे दिया जाता है. आत्मा की शांति, अगले जन्म के नफेनुकसान दिखा कर अनेक कर्मकांड बेटियों से करवाए जाते हैं और यह दोहरा बोझ बन जाता है.

इन सब चक्करों में न पड़ कर और

किसी दबाव में न आ कर समझदारी से कदम उठाना चाहिए.

डायपर का है जमाना

आज के बदलते दौर ने बच्चे के पालनपोषण को आसान बना दिया है. आज मातापिता छोटे बच्चे को ले कर कहीं बाहर जाने से नहीं कतराते. परिस्थिति चाहे कैसी भी हो, डायपर्स के प्रयोग से बच्चे को भी आराम मिलने लगा है. लेकिन इस के इस्तेमाल में थोड़ी सावधानी बरती जाए तो और भी आसानी हो जाती है अन्यथा कई बार लेने के देने भी पड़ सकते हैं. इस बारे में मुंबई की श्री गुरु मैटरनिटी एंड चिल्ड्रंस नर्सिंगहोम की बाल रोग विशेषज्ञा डा. सविता एस नाइक कहती हैं कि डायपर्स फायदेमंद होता है, पर इसे उचित रूप से इस्तेमाल करना जरूरी है. डायपर्स में नमी सोखने की शक्ति होती है, जो कपड़ों में कम होती है. इसलिए अगर इसे बच्चे को एक बार पहना दिया जाए तो 2 या 3 बार पेशाब करने के बाद ही डायपर बदला जाता है. अगर उस ने मलत्याग किया हो तो इसे तुरंत बदलना जरूरी होता है, क्योंकि बच्चे की कोमल त्वचा को इस से नुकसान हो सकता है. गीले डायपर से बच्चे को कई प्रकार की त्वचा की बीमारियां हो जाती हैं. पेशाब में यूरिया, ऐसिड, अमोनिया आदि होते हैं, जो त्वचा में खुजली पैदा करते हैं. इस से बच्चों की त्वचा लाल हो जाती है.

जांच करती रहें

इसलिए जब भी बच्चा डायपर पहने हो तो मां को पीछे हाथ लगा कर जांच करते रहना चाहिए. कुछ बच्चे एक बार में अधिक पेशाब करते हैं. अगर उस ने 2-3 घंटों के बाद पेशाब किया हो तो डायपर जल्दी गीला हो जाता है. तब डायपर जल्दी बदलना जरूरी हो जाता है. अगर रात में उसे डायपर पहना कर सुलाया हो तो हर 2 घंटों बाद जांच करनी चाहिए कि डायपर कितना गीला है. डायपर की ऊपरी परत हमेशा सूखी रहनी चाहिए. गीला होने पर ही यह त्वचा के संपर्क में आती है और शिशु की वहां की त्वचा लाल हो जाती है. उस के बाद खुजली, सूजन या फिर त्वचा लाल हो जाती है. इसे डायपर डर्मेटिक्स कहते हैं. हलका लाल होने पर इमोजिएंट क्रीम लगाने से त्वचा मुलायम हो जाती है और लाली भी कम हो जाती है.

समयसमय पर बदलती रहें

गीले डायपर को अधिक देर तक पहनाए रखने से फंगल इन्फेक्शन भी हो सकता है. इस संक्रमण के अधिक दिनों तक रहने पर बाल रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए. रेगुलर टेल्कम पाउडर से ऐसे संक्रमण पर कोई फायदा नहीं होता. डायपर पाउडर, जो अलग होता है, उस में कौर्न स्टार्च होता है. उस की सोखने की क्षमता अधिक होती है. अगर डायपर पहनाने से पहले इस पाउडर को बुरक दिया जाए तो त्वचा सूखी और नरम रहती है. एंटीफंगल पाउडर भी आप लगा सकती हैं. इस से फंगल इन्फेक्शन कम हो सकता है.

कई औप्शन उपलब्ध

डायपर्स कई तरह के होते हैं. वही डायपर्स चुनें, जो पतले और नरम हों, जिन्हें पहनने में बच्चे को आराम मिले. अगर प्लास्टिक पैंट में कौटनपैड डालते हैं तो वह पतला होता है, जिसे बारबार बदलना पड़ता है. बाजार में मिलने वाले डायपर्स मोटे होते हैं और उन में नमी सोखने की क्षमता अधिक होती है. आप वही डायपर चुनें, जो आप के बजट की सीमा में हो. डा. सविता कहती हैं कि 2 साल के बाद बच्चे को पेशाब और पौटी की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए, जिसे टायलेट ट्रेनिंग कहा जाता है. कई बार 1 साल में ही बच्चा इसे सीख जाता है. लेकिन जिन बच्चों को रात में बिस्तर गीला करने की आदत होती है, वहां डायपर्स का इस्तेमाल करना जरूरी हो जाता है. अगर बच्चे को लूज मोशन हों तो डायपर्स न पहनाएं, क्योंकि लूज मोशन में उस के मल में अधिक मात्रा में ऐसिड होता है. ऐसे में फंगल इन्फेक्शन हो जाता है. उस समय बच्चे को खुला छोड़ना या कौटन पैंटीज पहनाना सही होता है. कई बार अधिक संक्रमण होने से त्वचा पक जाती है. तब एंटीबायोटिक्स का सहारा भी लेना पड़ता है. मातापिता की लापरवाही से बच्चे की बीमारी काफी सीरियस भी हो जाती है. इसलिए जब भी बच्चे को डायपर पहनाएं, पूरा ध्यान रखें कि उस से आराम हो, तकलीफ न हो. आप अपनी सुविधा देखें पर बच्चे के आराम का भी ध्यान रखें, क्योंकि अगर उसे परेशानी होगी तो वह कह नहीं पाएगा और रोएगा, जिस से आप की परेशानी और भी बढ़ सकती है.

स्मार्टफोन के कारण क्या आपकी सेक्स लाइफ हो रही है खराब, पढ़ें खबर

क्या आप अपने यौन जीवन सें असंतुष्ट हैं? इसके पीछे कहीं न कहीं आपका स्मार्टफोन जिम्मेदार हो सकता है. एक ताजा अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है. दुरहाम विश्वविद्यालय की ओर से किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि लोग अपने सेक्स साथी की बजाय फोन गैजेट के प्रति कहीं अधिक लगाव रखने लगे हैं.

यह अध्ययन कंडोम बनाने वाली अग्रणी कंपनी ‘ड्यूरेक्स’ की ओर से करवाया गया, जिसमें ब्रिटेन के 15 दंपति का विस्तृत साक्षात्कार लिया गया. समाचार पत्र ‘डेली मेल’ की रपट के अनुसार, 40 फीसदी प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि स्मार्टफोन या टैबलेट का इस्तेमाल करने के लिए वे यौन संबंध बनाने को टालते रहते हैं.

कुछ अन्य प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि वे यौन संबंध स्थापित करते वक्त जल्दबाजी दिखाते हैं ताकि जल्द से जल्द वे अपने स्मार्टफोन पर सोशल मीडिया के जरिए आए संदेशों को देख सकें या उनका जवाब दे सकें.

एक तिहाई प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि वे यौनक्रिया के बीच में ही आ रही कॉल उठा लेते हैं, जिससे यौनक्रिया बाधित होती है. एक चौथाई से अधिक प्रतिभागियों ने कहा कि अपने स्मार्टफोन एप का इस्तेमाल उन्होंने अपनी यौनक्रिया के फिल्मांकन के लिए किया, जबकि 40 फीसदी प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि उन्होंने अपनी यौनक्रिया के दौरान स्मार्टफोन के जरिए तस्वीरें खीचीं.

प्रतिभागियों का साक्षात्कार लेने वाले मार्क मैककॉरमैक ने कहा कि बेडरूम में स्मार्टफोन का इस्तेमाल आपके संबंध को खतरे में डाल सकता है. जब प्रतिभागियों ने जानना चाहा कि स्मार्टफोन उनकी यौन संतुष्टि को कैसे बढ़ा सकता है तो जवाब सुनकर गए और जवाब था स्मार्टफोन को ऑफ रखकर.

शादीशुदा जिंदगी से जुड़ी बातों के बारे में बताएं?

सवाल-

मेरी सगाई हो चुकी है और कुछ ही महीनों में शादी होने वाली है. मेरी चिंता यह है कि मुझे सैक्स के बारे में बिलकुल जानकारी नहीं है. कहीं इस वजह से मेरा दांपत्य जीवन प्रभावित तो नहीं होगा? मेरी कोई बड़ी बहन या भाभी भी नहीं है, जिस से मैं कुछ पूछ सकूं. मुझे यह जानकारी कहां से प्राप्त हो सकती है?

जवाब-

सैक्स के बारे में प्राय: सभी युवाओं की स्थिति अमूमन आप जैसी ही होती है, जो थोड़ीबहुत जानकारी होती भी है वह इधरउधर से सुनीसुनाई और अधकचरी होती है, बावजूद इस के उन्हें कोई परेशानी नहीं आती. फिर भी आप सैक्स पर किसी अच्छे लेखक की किताब पढ़ कर जानकारी हासिल कर सकती हैं.

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पश्चिमी देशों में ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ का चलन कोई नया नहीं है. लेकिन भारत में जरूर इस टर्म को अलग-अलग तरीकों से इस्तेमाल और निभाया जाता है. जब साल 2011 में जस्टिन टिम्बरलेक और मिल्ला कुनिस की फिल्म ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ आई थी तो इस टर्म का मोटामोटी अर्थ यही निकला गया कि जब दो दोस्त अपने रिश्ते का इस्तेमाल सेक्सुअल रिलेशन के तौर पर करते हैं तो वो फ्रेंडशिप ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ के दायरे में आ जाती है. यानी जब दोस्ती से अन्य फायदे लिए जाने लगे तो यह फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स वाला रिश्ता बन जाता है.

अब आप सोचेंगी कि दोस्ती में क्या फायदा उठाना. लेकिन अगर आप मैरिड या एंगेज्ड होने के बावजूद अपनी बेस्टफ्रेंड के साथ सेक्स करना चाहती हैं तो यह दोस्ती से बेनिफिट लेने जैसा ही है. क्योंकि उक्त लड़की आपकी फ्रेंड हैं तो फिर बिस्तर पर जाने से पहले उसके साथ न तो किसी भी तरह की रोमांटिक इन्वोल्व्मेंट की जरूरत है और न भरोसा कायम रखने की. आप दोनों एकदूसरे को पहले से जानते हैं और आपसी सहमति है तो अपनी फ्रेंडशिप को बेनिफिट के साथ कायम रख सकती हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स : दोस्त से सेक्स या सेक्स से दोस्ती?

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टीन क्रश: जिम्मेदारी का एहसास

किशोरावस्था मनुष्य के जीवनकाल का वह समय है, जब न तो बचपन रहता है और न ही जवानी आई होती है. यह दौर किशोरों में शारीरिक व मानसिक परिवर्तन व विकास का होता है. बदलावों के इस दौर से गुजर रहे किशोरों में क्रश के भाव उपजना आम बात है. क्रश एक तरह का आकर्षण है, जो उस के साथ पढ़ने वाले किशोर या किशोरी किसी के प्रति भी उपज सकता है.

क्रश को ज्यादातर लोग प्यार की श्रेणी में ही रख कर देखते हैं, लेकिन यह प्यार से एकदम अलग होता है, क्योंकि प्यार एक बार हो गया तो यह जीवन भर बना रहता है. किशोरों में होने वाला क्रश जनून की हद तक जा सकता है. क्लास में एकदूसरे के हावभाव, बौडी लैंग्वेज, पढ़ाई में तेजतर्रार होने, अलग पहनावा व हेयरस्टाइल, बनसंवर कर रहने के चलते भी हो सकता है. कभीकभी किसी की मासूमियत देख कर भी क्रश हो सकता है.

किशोरावस्था में होने वाले क्रश के दौर में अगर सावधानी न बरती जाए तो यह कैरियर व पढ़ाई को तो बरबाद करता ही है साथ ही जिस के प्रति आकर्षण है उस की पढ़ाई व कैरियर भी चौपट हो सकता है. ऐसे में क्रश विपरीत लिंग के प्रति मात्र आकर्षण ही नहीं बढ़ाता बल्कि जिम्मेदारी का एहसास कराने की पहली सीढ़ी भी माना जाना चाहिए. अगर आप के किशोर मन में किसी के प्रति आकर्षण है तो उस के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभा कर उस की नजर में अच्छे बन सकते हैं.

क्रश को बनाएं जिम्मेदारी

आप को जब भी किसी के प्रति क्रश हो तो उस के पीछे न भागें और न ही उसे ले कर पढ़ाई व कैरियर से मुंह मोड़ें बल्कि उसे भी समझने की कोशिश करें और जरूरत पड़ने पर उस की पढ़ाईलिखाई में भी मदद करें. कई बार देखा गया है कि जिस के प्रति आप क्रश के भाव रखते हैं वह अपनी पढ़ाई व कैरियर को ले कर निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होता. ऐसे में उसे एहसास करा सकते हैं कि आप उस के करीबियों में से हैं और उस की समस्या का निदान आसानी से कर सकते हैं. अगर आप को उस के पढ़ाई व कोर्स से जुडे़ सवालों के जवाब न भी पता हों तो अपने किसी जानने वाले की मदद से उस की मदद कर सकते हैं.

कभीकभी पढ़ाई के बीच कैरियर का सवाल आप के क्रश के लिए असमंजस की स्थिति पैदा कर देता है. ऐसे में आप उसे उबारने में बेहतर मददगार साबित हो सकते हैं. आप उसे समझा सकते हैं कि उस का मन जिस कैरियर को चुनने के लिए गवाही दे रहा हो, वह उसे चुने.

आप की यह जिम्मेदारी आप के क्रश को एहसास करा सकती है कि आप उस का भला ही सोचते हैं. जैसा कि जाहनवी के साथ हुआ. 11वीं कक्षा में पढ़ने वाली जाहनवी का अपने सहपाठी नीरज के साथ क्रश था, जिस के चलते वह स्कूल जल्दी पहुंच जाती और स्कूल के गेट पर खड़ी हो कर नीरज का इंतजार करती. नीरज के स्कूल आने के बाद जाहनवी का मन गुलजार हो जाता, लेकिन  जिस दिन नीरज स्कूल न आता उस दिन जाहनवी का मन पढ़ाई में नहीं लगता.

जब नीरज को जाहनवी के इस लगाव के बारे में पता चला तो उस का भी जाहनवी के प्रति आकर्षण बढ़ गया. परंतु वह समझदार निकला. उसे लगा कि इस के चलते जाहनवी की पढा़ई व कैरियर पर प्रभाव पढ़ रहा है. अत: उस ने उसे सचेत किया और कहा कि हम एकदूसरे को पसंद करते हैं, लेकिन इस का हमारी पढ़ाई पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए.

साथ ही उस ने उस की पढ़ाई में भी मदद की. इस से जाहनवी अपनी क्लास के बच्चों के समकक्ष पहुंच गई. इस प्रकार जिम्मेदारी का एहसास हो तो क्रश मजबूत बनता है वरना बरबादी का कारण.

बुरी आदतों को छुड़ाने में करें मदद

अगर आप के साथ किसी का क्र्रश है तो आप सिर्फ उस की पढ़ाईलिखाई या कैरियर के मामले में ही मदद नहीं कर सकते बल्कि आप उस में आई बुराई को भी दूर करने में मदद कर सकते हैं. आप के क्रश को तंबाकू, सिगरेट, गुटका, शराब आदि व्यसनों की लत है तो उस की इस बुरी लत को छुड़ाने में अपनी जिम्मेदारी निभाएं. आप इन से होने वाली हानि से बचाने के लिए उस से जुड़ी जागरूकता सामग्री, पत्रपत्रिकाएं, साहित्य, गिफ्ट कर उन की मदद कर सकते हैं. अगर आप के प्रयास के चलते आप का क्रश इन बुरी आदतों को छोड़ता है तो निश्चित ही उस का लगाव आप के प्रति और बढ़ जाएगा.

सोशल मीडिया से डालें मदद करने की आदत

अगर आप खुद के क्रश के लिए सचमुच समर्पित हैं तो इस में सोशल मीडिया आप का बेहतर मददगार साबित हो सकता है. आप सोशल मीडिया के जरिए अपने साथी के सवालों का समाधान चैट बौक्स या वीडियो कौलिंग के जरिए कर सकते हैं.

सैक्स संबंध बनाने से बचें

चिकित्सक डा. श्यामनारायण चौधरी के अनुसार किशोरावस्था में अपने से विपरीत लिंग के प्रति क्रश होना और उस को ले कर सैक्स संबंध बनाने के सपने देखना आम बात है. इस का एक बड़ा कारण किशोरों में कई तरह के हारमोनल चेंज

होना है. ऐसी स्थिति में किशोर जिस से क्रश रखते हैं उस के साथ सैक्स अपराध करने में भी नहीं हिचकते. ऐसे में जब तक आप इस स्थिति में न पहुंच जाएं कि आप परिपक्व सैक्स के बारे में पूरी तरह से जानकारी प्राप्त कर लें, इन चीजों से दूरी बना कर रखना ही ज्यादा उचित होगा.

क्रश के चलते जिम्मेदार बनें व निम्न बातों का ध्यान रख कर आदर्श प्रस्तुत करें : 

– अपने क्रश को ले कर खुद की भावनाओं पर संतुलन बनाना सीखें.

– अपने क्रश की रुचि और पसंदनापसंद को जानें, इस से आप को उस की मदद करने में आसानी होगी.

– अगर आप का क्रश अत्यधिक शरमीला है तो आप आत्मविश्वास जगाने में उस की मदद करें.

– आप अपने क्रश की दिनचर्या की जानकारी रखें. इस से आप को उस की मदद करने में आसानी होगी.

– क्रश पर भरोसा करना सीखें.

– अच्छे कपडे़ पहनें, अच्छा हेयरस्टाइल रखें, खुद साफसफाई रखें और क्रश को भी इस के लिए प्रेरित करें.

– जब भी क्रश के साथ बैठें तो पढ़ाई से जुड़ी बातों से शुरुआत करें ताकि वह भी अपनी पढ़ाई व कैरियर से जुड़ी समस्याओं को आप से शेयर करे, जिस से आप उस की मदद कर पाएंगे, लेकिन जब लगे कि वह आप की बातों को गंभीरता से नहीं ले रहा, तो टौपिक चेंज करें और हलकीफुलकी बातें करें.

घरवाले मेरी पसंद के लड़के से शादी के लिए तैयार नहीं हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं एक लड़के से प्यार करती हूं और उस से विवाह करना चाहती हूं. मगर समस्या यह है कि लड़के के घर वालों को यह रिश्ता मंजूर नहीं है. मैं कोई गलत कदम नहीं उठाना चाहती. मुझे सलाह दें कि मैं क्या करूं?

जवाब-

आप ने यह नहीं बताया कि लड़के के घर वालों को इस रिश्ते पर आपत्ति क्यों है. यदि विरोध की कोई ठोस वजह नहीं है और लड़का इस रिश्ते को ले कर गंभीर है, तो उसे अपने घर वालों को अपनी दृढ़ इच्छा बता कर कि वह सिर्फ आप से ही विवाह करेगा, मनाने की कोशिश करें. यदि वे नहीं मानते और वह उन की इच्छा के विरुद्ध आप से विवाह करने की हिम्मत रखता है, तो आप कोर्ट मैरिज कर सकते हैं. देरसवेर लड़के के घर वाले भी राजी हो ही जाएंगे. हां, यदि लड़का घर वालों की मरजी के खिलाफ जाने का साहस नहीं रखता तो आप को इस संबंध पर यहीं विराम लगा देना चाहिए, क्योंकि जो रास्ता मंजिल तक नहीं पहुंचता उस राह पर चलते रहने का कोई फायदा नहीं है.

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वे कौन से हालात हैं जो लड़की को घर छोड़ने को मजबूर कर देते हैं. आमतौर पर सारा दोष लड़की पर मढ़ दिया जाता है, जबकि ऐसे अनेक कारण होते हैं, जो लड़की को खुद के साथ इतना बड़ा अन्याय करने पर मजबूर कर देते हैं. जिन लड़कियों में हालात का सामना करने का साहस नहीं होता वे आत्महत्या तक कर लेती हैं. मगर जो जीना चाहती हैं, स्वतंत्र हो कर कुछ करना चाहती हैं वे ही हालात से बचने का उपाय घर से भागने को समझती हैं. यह उन की मजबूरी है. इस का एक कारण आज का बदलता परिवेश है. आज होता यह है कि पहले मातापिता लड़कियों को आजादी तो दे देते हैं, लेकिन जब लड़की परिवेश के साथ खुद को बदलने लगती है, तो यह उन्हें यानी मातापिता को रास नहीं आता है.

कुछ ऊंचनीच होने पर मध्यवर्गीय लड़कियों को समझाने की जगह उन्हें मारापीटा जाता है. तरहतरह के ताने दिए जाते हैं, जिस से लड़की की कोमल भावनाएं आहत होती हैं और वह विद्रोही बन जाती है. घर के आए दिन के प्रताड़ना भरे माहौल से त्रस्त हो कर वह घर से भागने जैसा कदम उठाने को मजबूर हो जाती है. यह जरूरी नहीं है कि लड़की यह कदम किसी के साथ गलत संबंध स्थापित करने के लिए उठाती है. दरअसल, जब घरेलू माहौल से मानसिक रूप से उसे बहुत परेशानी होने लगती है तो उस समय उसे कोई और रास्ता नजर नहीं आता. तब बाहरी परिवेश उसे आकर्षित करता है. मातापिता का उस के साथ किया जाने वाला उपेक्षित व्यवहार बाहरी माहौल के आगोश में खुद को छिपाने के लिए उसे बाध्य कर देता है.

घर से भागना नहीं है समाधान

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क्या होने वाले पति को मेरे एक्स रिलेशनशिप के बारे में पता चल सकता है?

सवाल-

20 वर्षीय युवती हूं. एक लड़के से प्यार करती हूं. उस के कहने पर मैं ने 3 बार उस के साथ सहवास किया है. अब मेरी शादी किसी दूसरे युवक से होने जा रही है. मैं जानना चाहती हूं कि क्या सुहागरात में मेरे भावी पति को पता चल जाएगा कि मैं किसी से संबंध बना चुकी हूं? ज्योंज्यों शादी की तारीख नजदीक आ रही है, मेरी चिंता बढ़ती जा रही है कि पता नहीं क्या होगा. बताएं क्या करूं?

जवाब-

विवाहपूर्व बनाए गए अवैध संबंध भविष्य के लिए चिंता का सबब तो बनते ही हैं इन्हें अनैतिक और वर्जित भी माना जाता है. पर आप चूंकि यह गलती कर चुकी हैं जिसे सुधारा नहीं जा सकता, इसलिए अब आप अपना मुंह बंद रखें. इस बाबत पति को भूल कर भी कुछ न बताएं.

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नेहा की शादी बड़ी धूम-धाम से हुई थी. पति के नये घर-परिवार में नेहा को स्पेशल ट्रीटमेेंट मिल रहा था. अक्षय अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था, ऐसे में उसकी पत्नी नेहा की आव-भगत भला क्यों न होती? तीन महीने हो गये थे, सास ने उसे रसोई में घुसने भी नहीं दिया था. नेहा 15 दिन के हनीमून के बाद लौटी, तो जरूरत की हर चीज उसके कमरे में ही पहुंच जाती थी. घर के तीनों नौकर हर वक्त उसकी खिदमत में हाजिर रहते थे. किट्टी पार्टी, रिश्तेदारों और मोहल्ले भर में उसकी सास उसकी खूबसूरती और व्यवहार के कसीदे काढ़ते घूमती थी. शाम को नेहा अक्सर सजधज कर हसबैंड के साथ घूमने निकल जाती. दोनों फिल्म देखते, रेस्ट्रां में खाना खाते, शॉपिंग करते. जिन्दगी मस्त बीत रही थी. मगर अचानक एक दिन नेहा के सुखी वैवाहिक जीवन का महल भरभरा कर गिर पड़ा.

उस दिन उसकी सास पड़ोसी के वहां बैठी थी, जब पड़ोसी के बेटे ने अपने कम्प्यूटर पर नेहा के अश्लील चित्र उसकी सास को दिखाये. ये चित्र उसने नेहा के फेसबुक अकाउंट से डाउनलोड किये थे, जहां वह अपनी अर्द्धनग्न तस्वीरें पोस्ट करके सेक्स के लिए युवकों को आमंत्रित करती थी. शर्म, अपमान और दुख से भरी नेहा की सास ने बेटे को फोन करके तुरंत घर बुलाया. पड़ोसी के कम्प्यूटर पर बैठ कर नेहा का फेसबुक अकाउंट चेक किया गया तो अक्षय के भी पैरों तले धरती डोल गयी. तस्वीरें देखकर इस बात से इनकार ही नहीं किया जा सकता था कि यह नेहा नहीं थी और इस अकाउंट से यह साफ था कि वह एक प्रॉस्टीट्यूट थी. उसने वहां पर बकायदा घंटे के हिसाब से अपने रेट डाल रखे थे. अपनी अश्लील कहानियां तस्वीरों के साथ डाल रखी थीं. बड़ा हंगामा खड़ा हो गया. नेहा के परिवार वालों को बुलाया गया. खूब कहा-सुनी हुई. नेहा मानने को ही तैयार नहीं थी कि वह फेसबुक अकाउंट उसका था, मगर जो तस्वीरें सामने थीं वह उसी की थीं. नेहा के माता-पिता भी हैरान थे.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- एक्स बौयफ्रेंड न बन जाए मुसीबत

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सैक्सरिंग : प्यार के नाम पर फंस न जाना

युवाओं का पहला आकर्षण प्रेम ही होता है. शायद ही कोई ऐसा युवा होगा जो रोमांस के इस फेज में न फंसा हो. कोई अपना लव इंटरैस्ट अपनी क्लासमेट में ढूंढ़ता है तो कोई पासपड़ोस की ब्यूटीफुल युवती पर फिदा हो जाता है. युवावस्था के आकर्षण से जुड़े हारमोंस ही हमें किसी विपरीतलिंग की तरफ आकर्षित करते हैं.

हालांकि हर बार यह प्यार सच्चा हो, इस की कोई गारंटी नहीं. प्यार के नाम पर कैमिकल लोचा भी हो सकता है, प्यार एकतरफा भी हो सकता है और कई बार लव को लस्ट यानी वासना की शक्ल में भी देखा जाता है. इन सब प्यार की अलगअलग कैटेगरीज से गुजरता हर युवा मैच्योर होतेहोते सीखता है कि लव के असल माने क्या हैं?

इस रोमांटिक फेज में उपरोक्त कैटेगरीज के अलावा एक और खतरनाक फेज होता है सैक्सरिंग का यानी प्यार के नाम पर जब कोई युवती किसी युवती को फंसा ले तो वह सैक्सरिंग में उलझ कर रह जाती है.

प्यार में सौदा नहीं

करन अरोड़ा को कम उम्र में ही पेरैंट्स ने महंगी बाइक दिला दी. महंगी और ऐडवांस्ड बाइक के टशन में वह रोज स्कूल से कोचिंग आता. वह प्रिया को कई बार घर से कोचिंग तक लिफ्ट दे चुका था.

इस के पीछे कारण यह था कि अचानक कुछ दिनों से प्रिया करन की तारीफ उस के दोस्तों के बीच कुछ ज्यादा ही करने लगी थी. दोस्तों से अपनी तारीफ सुन कर करन को लगा कि वह प्रिया को प्रपोज कर देगा. एक दिन कोचिंग से बंक मार कर वह प्रिया को मौल ले गया और उसे प्रपोज कर दिया.

प्रिया ने जितनी जल्दी हामी भरी उस की करन को उम्मीद तो नहीं थी, लेकिन प्रिया की हां से वह इतना उत्साहित हो गया कि दिमाग के बजाय दिल से सोचने लगा. उस दिन उस ने प्रिया की पसंद की ड्रैस, आर्चीज के गिफ्ट व फेवरिट रेस्तरां के खाने में हजारों रुपए खुशीखुशी खर्च कर डाले.

प्रिया के प्यार का यह नाटक उस दिन खुला जब करन के ही दोस्त यश ने उसे बताया कि प्रिया तो सौमिक की कार में घूम रही है और आजकल उस की गर्लफ्रैंड के तौर पर फेमस है.

हैरानपरेशान करन ने जब प्रिया से फोन कर सफाई मांगी तो उस ने उलटे सौमिक से पिटवाने की धमकी दे डाली.

लुटापिटा करन उस को पेरैंट्स से झूठ बोल कर कोर्स फीस के पैसों से स्मार्टफोन, ज्वैलरी व लैपटौप दिलवा चुका था. जाहिर है वह लव के नाम पर लूटा गया था.

अचानक लड़की आप के करीब आ जाए तो उस पर लट्टू होने के बजाय जरा दिमाग लगा कर सोचिए कि इस नजदीकी की वजह प्यार है या आप की मोटी जेब, क्योंकि प्यार कोई सौदेबाजी नहीं होती. जो लड़की आप से प्यार करेगी वह बातबात पर महंगे गिफ्ट्स नहीं मांगेगी और न ही हर समय आप की जेब ढीली करेगी. अगर आप की गर्लफ्रैंड भी आप से ज्यादा आप के तोहफों पर ध्यान देती है तो समझ जाइए कि आप भी सैक्सरिंग में फंसने वाले हैं.

सिंगल होना शर्मिंदगी नहीं

सैक्सरिंग का सब से आसान शिकार युवतियां ज्यादातर उन युवकों को बनाती हैं जो सिंगल होते हैं. साइकोलौजिस्ट भी मानते हैं कि हमारे समाज व युवाओं का रवैया कुछ ऐसा है कि जो लड़के सिंगल होते हैं उन का मजाक बनाया जाता है, उन पर जल्द से जल्द गर्लफ्रैंड बनाने का दबाव डाला जाता है. मानो किसी युवक की गर्लफ्रैंड नहीं है तो उस में कोई न कोई कमी होगी.

इस मनोवैज्ञानिक दबाव के तले दब कर युवक अपनी सोचसमझ खो कर एक अदद युवती की तलाश में जुट जाता है जो जल्दी से जल्दी उस की गर्लफ्रैंड बनने को तैयार हो. भले इस के लिए उसे कोई भी कीमत चुकानी पड़े. इसी जल्दबाजी व मनोवैज्ञानिक दबाव का फायदा चालाक व शातिर युवतियां उठाती हैं और सिंगल युवकों को झूठे प्यार के सैक्सरिंग में फांस कर उन की जेबें ढीली करती हैं. कई मामलों में तो उन की पढ़ाईलिखाई व कैरियर तक बरबाद कर डालती हैं.

युवाओं को यह समझने की जरूरत है कि सिंगल होना कोई  शर्मिंदगी की बात नहीं है. जब तक कोई ईमानदार या सच्चा प्यार करने वाली युवती न मिले, सिंगल रहना बेहतर है. पढ़ाई, कैरियर, शौक व दोस्तों को समय दे कर सैक्सरिंग से बचने में ही समझदारी दिखाने वाले युवा कुछ बन पाते हैं.

इमोशनल अत्याचार के साइड इफैक्ट्स

अकसर युवतियों से धोखा खाए या यों कहें कि सैक्सरिंग के शिकार युवक भावनात्मक तौर पर टूट जाते हैं और प्रतिक्रियास्वरूप कुछ ऐसा कर बैठते हैं जो उन के भविष्य को खतरे में डाल देता है.

जनवरी 2017, दिल्ली के कृष्णा नगर इलाके के रोहन को जब एक युवती ने झूठे प्यार के जाल में फंसा कर चूना लगाया तो उस ने उस से बदला लेने की ठान ली व एक दिन स्कूल से लौटते समय युवती के चेहरे पर ब्लैड मार दिया.

घायल युवती के परिजनों ने रोहन के खिलाफ पुलिस में शिकायत कर दी. इस तरह मामला उलटा पड़ गया. युवती का तो कुछ नहीं बिगड़ा, रोहन को जरूर हवालात की हवा खानी पड़ी.

अकसर सैक्सरिंग के शिकार युवा इमोशनली इतने डिस्टर्ब हो जाते हैं कि धोखा खाए प्रेमी की तरह उस युवती से बदला लेने की ठान लेते हैं. आएदिन हम प्रेम में ठुकराए प्रेमियों की आपराधिक कृत्यों की खबरें पढ़ते रहते हैं. कोई तेजाब से हमला करता है तो कोई युवती का अपहरण तक कर डालता है. कोई सैक्स संबंधों की  पुरानी तसवीरों, सैक्स क्लिप्स या प्रेमपत्रों के नाम पर लड़की को सबक सिखाना चाहता है.

प्यार से अपराध की ओर न जाएं

याद रखिए ये तमाम हिंसात्मक व अनैतिक रास्ते अपराध की उन गलियों की ओर ले जाते हैं, जहां से युवाओं के लिए वापस आना नामुमकिन सा हो सकता है. एक तो पहले ही युवती ने फंसा कर आप का धन व समय बरबाद कर दिया. उस पर उस से बदला लेने के लिए अतिरिक्त समय, धन व भविष्य दांव पर लगाना कहां की समझदारी है?

बेहतर यही है कि उस बात को भूल कर आप अपने कैरियर पर ध्यान दें. एक न एक दिन आप को सच्चा प्यार जरूर मिलेगा. इस धोखेभरी लवस्टोरी से इतना जरूर सीखिए कि अगली बार जब कोई युवती आप की भावनाओं से खिलवाड़ कर आप पर सैक्सरिंग का वार करे तो उस के झांसे में न आएं.

सैक्सरिंग के लक्षण

कोई युवती आप से सचमुच प्यार करती है या फंसा रही है, उसे समझने के लिए सैक्सरिंग के कुछ लक्षण समझना जरूरी है. निम्न पौइंट्स से समझिए कि कौन सी युवती स्वाभाविक तौर पर सैक्सरिंग के जाल में आप को फंसाना चाहती है :

–       जब बातबात पर शौपिंग, पार्टी या महंगे गिफ्ट्स की डिमांड करे.

–       जब खुद से जुड़ी जानकारियां छिपाए व आप की हर बात जानना चाहे.

–       आप के दोस्तों या परिवार से मिलने से कतराए.

–       अपने फैमिली या फ्रैंड सर्किल से मिलवाते वक्त आप की पौकेट खाली करवाए.

–       बातबात पर आप की तारीफ करे और आप की हर बात पर सहमति जताए.

–       हर जरूरत पर आर्थिक मदद की डिमांड करे.

–       झगड़े की वजहों में पैसों का ताना मारे.

–       आप के अमीर व संपन्न दोस्तों से करीबी बढ़ाए.

–       आप की आर्थिक मदद करने से कतराए या बहाने बनाए.

–       प्यार के नाम पर भावनात्मक सहारे के बजाय सिर्फ फिजिकल रिलेशन को तरजीह दे.

अगर इन तमाम पौइंट्स पर आप की गर्लफ्रैंड खरी उतर रही हो तो सावधान हो जाइए. आप पर सैक्सरिंग फेंका जा चुका है. सही मौका पाते ही सैक्सरिंग का छल्ला गले से निकाल फेंकिए और ब्रेकअप सौंग पर जम कर अपनी फेक लवर से आजादी का जश्न मनाइए.

शादी के बाद मैं पत्नी के साथ क्या खुश रह पाऊंगा?

सवाल-

मैं 25 वर्षीय युवक हूं. मेरी शादी होने वाली है. पर मैं अपनी एक व्यक्तिगत समस्या को ले कर बेहद परेशान हूं. मैं किसी दोस्त से भी इस बारे में बात नहीं कर सकता. इसीलिए आप को लिख रहा हूं. मेरा यौनांग काफी छोटा है. पता नहीं विवाह के बाद मैं पत्नी को यौनसुख देने और पिता बनने में समर्थ हो पाऊंगा या नहीं.कृपया कोई दवा या क्रीम बताएं, जिस के प्रयोग से मेरा यौनांग बड़ा हो जाए.

जवाब-

यौनांग के आकार का शारीरिक सुख पर कोई प्रभाव नहीं होता. आप बेवजह परेशान न हों. आप की सैक्स लाइफ में इस से कोई परेशानी नहीं होगी और न ही संतानोत्पत्ति में कोई रुकावट आएगी.

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मेरठ का 30 वर्षीय मनोहर अपने वैवाहिक जीवन से खुश नहीं था, कारण शारीरिक अस्वस्थता उस के यौन संबंध में आड़े आ रही थी. एक वर्ष पहले ही उस की शादी हुई थी. वह पीठ और पैर के जोड़ों के दर्द की वजह से संसर्ग के समय पत्नी के साथ सुखद संबंध बनाने में असहज हो जाता था. सैक्स को ले कर उस के मन में कई तरह की भ्रांतियां थीं.

दूसरी तरफ उस की 24 वर्षीय पत्नी उसे सैक्स के मामले में कमजोर समझ रही थी, क्योंकि वह उस सुखद एहसास को महसूस नहीं कर पाती थी जिस की उस ने कल्पना की थी. उन दोनों ने अलगअलग तरीके से अपनी समस्याएं सुलझाने की कोशिश की. वे दोस्तों की सलाह पर सैक्सोलौजिस्ट के पास गए. उस ने उन से तमाम तरह की पूछताछ के बाद समुचित सलाह दी.

क्या आप जानते हैं कि सैक्स का संबंध जितना दैहिक आकर्षण, दिली तमन्ना, परिवेश और भावनात्मक प्रवाह से है, उतना ही यह विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है. हर किसी के मन में उठने वाले कुछ सामान्य सवाल हैं कि किसी पुरुष को पहली नजर में अपने जीवनसाथी के सुंदर चेहरे के अलावा और क्या अच्छा लगता है? रिश्ते को तरोताजा और एकदूसरे के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए क्या तौरतरीके अपनाने चाहिए?

पूरी खबर पढ़ने के लिए- जानें हैप्पी मैरिड लाइफ से जुड़ी बातें

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