सवाल मैं 22 वर्षीय युवती हूं. अपने सांवले रंग की वजह से बहुत परेशान हूं. सांवला रंग मुझे अपने व्यक्तित्व की सब से बड़ी कमी लगता है. कोई ऐसा घरेलू उपाय बताएं, जिस से त्वचा की रंगत में सुधार हो सके?
जवाब किसी भी व्यक्ति का सांवला या गोरा होना प्राकृतिक होने के साथसाथ जैनेटिक भी होता है, जिसे पूरी तरह बदलना मुश्किल होता है. सांवलापन कोई कमी नहीं है. वैसे भी आजकल डस्की ब्यूटी का जमाना है. फिर भी आप चाहें तो कुछ घरेलू उपाय अपना कर अपनी रंगत में सुधार ला सकती हैं.
आप कच्चे दूध का प्रयोग टोनर की तरह करें. कौटन की सहायता से दूध को चेहरे पर लगाएं व हलके हाथ से मसाज करें. जब दूध त्वचा में पूरी तरह समा कर सूख जाए तब चेहरे को धो लें.
इस से त्वचा की रंगत में सुधार आएगा. इस के अलावा पपीते का पल्प चेहरे पर लगाने से भी त्वचा में निखार आता है. इस के अतिरिक्त त्वचा को धूप से बचाएं. घर से बाहर निकलते समय एसपीएफ युक्त सनस्क्रीन लगाएं.
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रंगत सांवली पड़ जाए तो करें ये उपाय
त्वचा पर झांइयां और काले दागधब्बे बहुत सारी महिलाओं की चिंता का कारण होते हैं. चेहरे या गरदन के आसपास छोटेछोटे और गहरे भूरे धब्बे गोरी त्वचा से अलग नजर आते हैं. त्वचा में झांइयों या सांवलेपन की समस्या कई कारणों से और किसी भी उम्र में हो सकती है. हालांकि ज्यादातर महिलाओं में यह समस्या गर्भधारण या रजोनिवृत्ति या फिर जब शरीर में हारमोनल असंतुलन पैदा होता है तब उभरती है.
कुछ खास त्वचा रोग के अलावा धूप में ज्यादा देर रहने से भी त्वचा सांवली हो जाती है, क्योंकि इस दौरान मेलानिन का अधिक उत्पादन या वितरण होने लगता है. इन सब के अलावा कुछ ब्यूटी प्रोडक्ट्स में ऐसे तत्त्व होते हैं, जो त्वचा का सांवलापन बढ़ा सकते हैं.
ये तत्त्व सूर्य की रोशनी में त्वचा की संवेदनशीलता बढ़ा सकते हैं. मसलन, सिट्रिक ऐसिड आधारित नीबू या संतरे का सत्त्व या रैटिनोइक ऐसिड जैसे विटामिन ए के यौगिक धूप में रहने के दौरान आप की त्वचा का सांवलापन बढ़ा सकते हैं. लिहाजा, इन में से कुछ उत्पादों का इस्तेमाल रात के दौरान करने की ही सलाह दी जाती है.
सांवलापन या काले धब्बे दरअसल त्वचा की अतिसक्रिय सुरक्षा प्रणाली के परिणामस्वरूप उभरते हैं. त्वचा पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो यह मैलानिन नामक पिगमैंट बनाने लगती है और यही त्वचा को सांवला बनाता है.
दरअसल, मेलानिन सूर्य की यूवी किरणों के दुष्प्रभाव से हमारी त्वचा को सुरक्षा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और त्वचा में टौक्सिक दवाओं तथा कैमिकल्स से उत्पन्न फ्रीरैडिकल्स को रगड़ कर साफ कर देता है. लेकिन जब मेलानिन का उत्पादन जरूरत से ज्यादा या फिर इस का असमान वितरण होने लगता है तो अधिक मेलानिन उत्सर्जित होने वाले स्थान पर काले धब्बे बन जाते हैं.
सांवलापन बढ़ाने वाले कारक
सूर्य की किरणें: सूर्य की रोशनी से बतौर सुरक्षा कवच त्वचा से मेलानिन का उत्पादन होने लगता है. कुछ महिलाओं की त्वचा सूर्य की किरणों में ज्यादा संवेदनशील होती है जबकि कुछ में यह संवेदनशीलता कम होती है. लिहाजा त्वचा को ऐजिंग, सनबर्न तथा सांवलेपन जैसे दुष्प्रभावों से बचाने के लिए सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना जरूरी है.
हारमोन परिवर्तन: हारमोन में परिवर्तन के कारण भी कुछ महिलाओं में मेलानिन का अधिक उत्पादन होने लगता है. यही वजह है कि गर्भनिरोधक गोलियां, जिन से सामान्य हारमोनल उत्पादन में बाधा आती है, खाने वाली महिलाएं सांवली हो जाती हैं. मेलास्मा एक प्रकार का सामान्य पिगमैंटेशन डिसऔर्डर है, जो ज्यादातर गर्भवती महिलाओं में देखा जाता है.
स्किनकेयर के अवयव
कई बार हमारे स्किनकेयर उत्पादों में कुछ ऐसे अवयव होते हैं, जिन का त्वचा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए स्किनकेयर उत्पाद खरीदते वक्त ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत होती है. यदि आप की त्वचा संवेदनशील है तो कोई भी उत्पाद खरीदने और इस्तेमाल करने से पहले तय कर लें कि उस में किनकिन तत्त्वों का मिश्रण किया है.
कुछ महिलाओं की त्वचा की संवेदनशीलता सिट्रिक ऐसिड और रैटिनोइक ऐसिड आधारित अवयवों से भी बढ़ जाती है, जिस कारण उन की त्वचा ज्यादा सांवली हो जाती है. यदि आप की त्वचा संवेदनशील है तो आप को उन उत्पादों के इस्तेमाल के प्रति एहतियात बरतनी होगी, जिन में सिंथैटिक खुशबू मिलाई गई हो. ऐसे कुछ कैमिकल्स त्वचा में खुजलाहट, लाल दाने या सांवलापन जैसे दुष्प्रभाव पैदा कर सकते हैं.
त्वचा पर जलन का एहसास देने वाली क्रीम या किसी अन्य उत्पाद का इस्तेमाल करने से बचें. त्वचा के जिस हिस्से में जलन होने की आशंका अधिक हो, वहां बहुत ज्यादा मेकअप करने से बचें. यदि कोई उत्पाद खुजली या जलन पैदा करे तो उस में मिले अवयवों का रिकौर्ड रखें और दोबारा उस का इस्तेमाल न करें.
– डा. संजीव कंधारी. कंसल्टैंट डर्मैटोलौजिस्ट, डा. कंधारी स्किन क्लीनिक, दिल्ली
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हिंदी फिल्म जगत में अपनी एक अलग पहचान बना चुकी अभिनेत्री सोनम कपूर ने फिल्म ‘ब्लैक’ में सहायक निर्देशक के रूप में काम किया. इस के बाद उन्हें फिल्म ‘सांवरिया’ में बतौर अभिनेत्री काम करने का मौका मिला. फिल्म सफल नहीं रही, पर उन्हें ‘सुपरस्टार औफ टुमारो’ का खिताब मिला.
आलोचकों ने उन की जम कर आलोचना की, पर सोनम चुप रह कर अपने को सिद्ध करने में लगी रहीं. उन्होंने कई फिल्में कीं, जिन में ‘दिल्ली 6’, ‘रांझना’, ‘भाग मिल्खा भाग’, ‘खूबसूरत’, ‘डौली की डोली’, ‘नीरजा’ आदि प्रमुख हैं. फिल्म ‘नीरजा’ उन के कैरियर की सब से बेहतरीन फिल्म है.
सोनम कहती हैं, ‘‘फिल्म ‘नीरजा’ ने मेरे जीवन के माने बदल दिए. इसे करते हुए हर पल मुझे नारीशक्ति और आत्मविश्वास का एहसास हुआ, जो मुझे किसी भी फिल्म के दौरान नहीं हुआ था. ऐसी फिल्में मुझे बहुत प्रेरित करती हैं. मैं अवार्ड के लिए फिल्में नहीं करती, लेकिन अगर मिल जाए, तो अच्छा फील करती हूं. दर्शकों ने मेरी हर फिल्म को प्यार दे कर मेरा साथ दिया.’’
हंसमुख स्वभाव की सोनम को इंडस्ट्री में आए 10 साल हो गए हैं. वे इसे बड़ी उपलब्धि मानती हैं. वे बताती हैं, ‘‘इंडस्ट्री में मेरी हमेशा ग्रोथ ही हुई है. हर फिल्म से मैं ने कुछ न कुछ सीखा. हर सुबह काम पर जाने की इच्छा मेरी शुरू से रही है.’’ सोनम का परिवार खुले विचारों वाला है. शुरू से उन्होंने उन्हें हर तरह की आजादी दी.
सोनम का कहना है, ‘‘मेरे परिवारवालों ने कभी यह नहीं कहा कि तुम कुछ नहीं कर सकती, बल्कि यही कहा कि तुम कुछ भी कर सकती हो. मेरी शादी के बारे में भी उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा. ‘‘फिल्मों का चयन हो या पर्सनल लाइफ सब में मेरी इच्छा होती है. मुझ पर कभी किसी तरह का प्रैशर नहीं रहा. इस से मुझे हमेशा आत्मविश्वास मिला और मैं आगे बढ़ती गई. मगर इंडस्ट्री ने मुझे यह एहसास अवश्य करवाया कि मैं हीरो से कम हूं. वे मुझे छोटा और हीरो को बड़ा रूम देने की बात कहते थे. मुझे बहुत अजीब लगा था, क्योंकि मेरे घर में कभी लड़के और लड़की में कोई अंतर मैं ने नहीं देखा है. मैं ने हमेशा ऐसी बातों का विरोध भी किया है. मुझे जो सही नहीं लगता है मैं उस का विरोध करती हूं. इसलिए लोग मुझे भलाबुरा भी कहते हैं, पर मैं उसे नजरअंदाज करती हूं.’’
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जयपुर के सुनहरे इतिहास को खुद में संजोए सिटी पैलेस की राजसी सैर उस दौर को जीवंत कर देती है. जयपुर में खरीदारी का भी अलग आनंद है. यहां के बाजार में हस्तकला से निर्मित वस्त्र, संगमरमर के एंटीक्स व मीनाकारी आभूषण खरीदना न भूलें.
तारागढ़ की चोटी पर बना किला अपने अनूठे सामरिक स्थापत्य व पहाड़ी दुर्लभता के चलते कुतूहल का विषय बना रहता है.
झील के किनारे बना उदयपुर का सिटी पैलेस राजस्थानी शिल्पकला का अनोखा उदाहरण है. रात में इस की सजावट का झील पर सुनहरा बिंब देखते ही बनता है.
भारत में ऐतिहासिक पर्यटन के लिए कुछ शहर बहुत खास हैं. अच्छी बात यह है कि आगरा, फतेहपुर सीकरी, भरतपुर, जयपुर, अजमेर और उदयपुर एकसाथ घूमा जा सकता है. इसे भारत का हैरिटेज कौरिडोर भी कह सकते हैं. ये सभी शहर अपनी स्थापत्यकला का नमूना तो हैं ही, प्राकृतिक रूप से भी ये शहर बहुत संपन्न हैं. ये सभी शहर आवागमन के आधुनिक साधनों व सुखसुविधाओं से युक्त हैं. यहां खरीदारी के लिए अनेक बाजार हैं तो रहने के लिए होटलों की कमी नहीं है.
देश का यह हैरिटेज कौरिडोर ‘बजट टूरिज्म’ की तरह है. यहां हर किसी को अपने बजट में रह कर पर्यटन करने का अवसर मिल सकता है. हैरिटेज कौरिडोर के इन
6 शहरों आगरा, फतेहपुर सीकरी, भरतपु़र, जयपुर, अजमेर और उदयपुर का मौसम एकसा रहता है जिस से पर्यटकों को आबोहवा के साथ तालमेल बिठाना आसान रहता है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से करीब होने के कारण यहां तक पहुंचना भी आसान है.
दुनिया में मशहूर ताजनगरी आगरा
ताजनगरी आगरा उत्तर प्रदेश का एक बहुत ही खास पर्यटन स्थल है. यहां जो भी आता है विश्वविख्यात ताजमहल को देखने जरूर जाता है. अगर आप हैरिटेज टूरिज्म के शौकीन हैं तो ताज के साथ फतेहपुर सीकरी और आगरा का किला भी जरूर देखें. ताजमहल आगरा ही नहीं, पूरे विश्व की सब से प्रसिद्ध जगह है. ताजमहल का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में कराया था. यह सफेद संगमरमर से बना हुआ है, इस को बनाने में 22 साल लगे.
ताजमहल को मुगलशैली के 4 बागों के साथ बनाया गया है. ताज का निर्माण फारसी वास्तुकार उस्ताद ईसा खां के निर्देशन में हुआ था. ताजमहल को आगरा किला से भी देखा जा सकता है. शाहजहां को जब औरंगजेब ने आगरा किला में कैद कर दिया था तो उस समय वह वहां से ही ताजमहल को निहारा करता था.
ताजमहल का मुख्यद्वार भी बहुत ही आकर्षक है. इस के ऊपर 22 छोटे गुंबद हैं. इन से ताजमहल के बनने में लगे समय का पता चलता है. ताजमहल को बनाने से पहले लाल बलुआ पत्थर का बड़ा चबूतरा बनाया गया था. इस के बाद सफेद संगमरमर से ताजमहल का निर्माण कराया गया. ताज की सुंदरता इस के ऊंचे गुंबद हैं. यह 60 फुट व्यास और 80 फुट ऊंचाई के बने हैं. इस के नीचे मुमताज महल की कब्र बनी हुई है, ताजमहल के बनाने में बहुमूल्य रत्नों और पत्थरों का प्रयोग किया गया था.
सफेद संगमरमर से बने ताजमहल के पास मखमली घास का मैदान है. जहां गरमी की शाम का मजा लिया जा सकता है. इस के पीछे यमुना नदी बहती है. ताजमहल अपने अंदर बहुत सारी खूबियां समेटे हुए है. इस का एक हिस्सा गरमी में भी सर्दी की ठंडक का एहसास कराता है. यहां पर खरीदारी करते समय सावधानी बरतनी चाहिए. ताजमहल के सामने बैठ कर पर्यटक फोटो खिंचवाना नहीं भूलते हैं.
आगरा का किला, ताजमहल की ही तरह अपने इतिहास के लिए पहचाना जाता है.
यह किला विश्व धरोहर माना जाता है. इस को आगरा का लालकिला भी कहा जाता है. इस का निर्माण 1565 में मुगल बादशाह अकबर द्वारा कराया गया था. इस के बाद मुगल बादशाह शाहजहां ने इस का पुनर्निर्माण कराया.
आगरा किला में संगमरमर और नक्काशी का महीन काम दिखाई देता है. इस किले में जहांगीर महल, दीवाने खास, दीवाने आम और शीशमहल देखने वाली जगहें हैं. यह किला अर्द्धचंद्राकार आकृति में बना है. इस की दीवार सीधे यमुना नदी तक जाती है. आगरा का किला 2.4 किलोमीटर परिधि तक फैला हुआ है. सुरक्षा के लिहाज से किले की दीवारों को मजबूत बनाया गया है. इस के किनारे गहरी खाई और गड्ढे बनाए गए थे.
फतेहपुर सीकरी आगरा से 35 किलोमीटर दूर बसा है. इस का निर्माण अकबर ने कराया था. यहां पर सलीम चिश्ती की दरगाह है. इस कारण अकबर ने अपनी राजधानी आगरा से हटा कर फतेहपुर सीकरी कर ली थी. यहां पर कई इमारतें बनी हैं जो मुगलकाल की वास्तुकला का बेजोड़ नमूना हैं.
फतेहपुर सीकरी में पानी की कमी के कारण अकबर को अपनी राजधानी वापस आगरा लानी पड़ी थी. फतेहपुर सीकरी के गेट को बुलंद दरवाजा कहते हैं. कहा जाता है कि बुलंद दरवाजा बिना नींव के बनाया गया है.
प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर भरतपुर
भरतपुर राजस्थान का एक प्रमुख शहर होने के साथसाथ देश का सब से प्रसिद्ध पक्षी उद्यान भी है. 29 वर्ग किलोमीटर में फैला यह उद्यान पक्षीप्रेमियों के लिए बेजोड़ है. विश्व धरोहर सूची में शामिल इस स्थान पर प्रवासी पक्षियों का भी बसेरा है. भरतपुर शहर की स्थापना जाट शासक राजा सूरजमल ने की थी. अपने समय में यह जाटों का गढ़ हुआ करता था. यहां के मंदिर, महल व किले जाटों के कलाकौशल की गवाही देते हैं. भारत में यह एक हैरिटेज शहर के साथ ही प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है. यहां बर्ड सैंचुरी देखने दुनियाभर से लोग आते हैं. राष्ट्रीय उद्यान के अलावा भी देखने के लिए यहां अनेक स्थान हैं.
भरतपुर राष्ट्रीय उद्यान केवलादेव घना के नाम से भी जाना जाता है. घना नाम घने वनों की ओर संकेत करता है जो एक समय इस उद्यान को घेरे हुए था. यहां करीब 375 प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं जिन में यहां रहने वाले और प्रवासी पक्षी शामिल हैं. यहां भारत के अन्य भागों से तो पक्षी आते ही हैं, साथ ही यूरोप, साइबेरिया, चीन, तिब्बत आदि जगहों से भी प्रवासी पक्षी आते हैं. पक्षियों के अलावा सांभर, चीतल, नीलगाय आदि पशु भी यहां पाए जाते हैं. भरतपुर का लोहागढ़ किला एक हैरिटेज दर्शनीय स्थल है. महाराजा सूरजमल ने यहां एक अभेद्य किले की परिकल्पना की थी जिस की शर्त यह थी कि पैसा कम लगे और मजबूती में वह बेमिसाल हो.
फलस्वरूप किले के दोनों तरफ मजबूत दरवाजे हैं जिन पर लोहे की नुकीली सलाखें लगाई गई हैं. उस समय तोपों और बारूद का काफी ज्यादा प्रचलन था, जिस से किलों की मजबूत से मजबूत दीवारों को आसानी से ढहाया जा सकता था, इसलिए पहले किले की चौड़ीचौड़ी मजबूत पत्थर की ऊंचीऊंची प्राचीरें बनाई गईं. अब इन पर तोप के गोलों का असर न हो, इस के लिए इन दीवारों के चारों ओर सैकड़ों फुट चौड़ी कच्ची मिट्टी की दीवार बनाई गई. नीचे सैकड़ों फुट गहरी और चौड़ी खाई बना कर उस में पानी भरा गया, जिस से दुश्मन द्वारा तोपों के गोले दीवारों पर दागने के बाद मिट्टी में धंस कर दम तोड़ दें. अगर वे नीचे की ओर प्रहार करें तो पानी में शांत हो जाएं. और पानी को पार कर सपाट दीवार पर चढ़ना तो मुश्किल ही नहीं, असंभव था.
मुश्किल वक्त में किले के दरवाजों को बंद कर के सैनिक सिर्फ पक्की दीवारों के पीछे और दरवाजों पर मोरचा ले कर किले को आसानी से अभेद्य बना लेते थे. इस किले में लेशमात्र भी लोहा नहीं लगा और अपनी अभेद्यता के बल पर यह लोहागढ़ कहलाया. इस ने समयसमय पर दुश्मनों के दांत खट्टे किए और अपना लोहा मनवाने में शत्रु को मजबूर किया.
लोहागढ़ किले का निर्माण 18वीं शताब्दी के आरंभ में जाट शासक महाराजा सूरजमल ने करवाया था. किले के चारों ओर गहरी खाई है जो इसे सुरक्षा प्रदान करती है. लोहागढ़ किला इस क्षेत्र के अन्य किलों के समान वैभवशाली नहीं है लेकिन इस की ताकत और भव्यता अद्भुत है.
किले के अंदर महत्त्वपूर्ण स्थान हैं किशोरी महल, महल खास, मोती महल और कोठी खास. सूरजमल ने मुगलों और अंगरेजों पर अपनी जीत की याद में किले के अंदर जवाहर बुर्ज और फतेह बुर्ज बनवाए. वहां अष्टधातु से निर्मित एक द्वार भी है जिस पर हाथियों के विशाल चित्र बने हुए हैं.
आसपास के दर्शनीय स्थल
भरतपुर से 34 किलोमीटर उत्तर में डीग नामक बागों का खूबसूरत नगर है, इसे डीग कहते हैं. शहर के मुख्य आकर्षणों में मनमोहक उद्यान, सुंदर फौआरा और भव्य जलमहल शामिल हैं. यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं. डीग के राजमहलों में निर्मित गोपाल भवन का निर्माण वर्ष 1780 में किया गया था. खूबसूरत बगीचों से सजे इस भवन से गोपाल सागर का अद्भुत नजारा देखा जा सकता है. भवन के दोनों ओर 2 छोटी इमारतें हैं, जिन्हें सावन भवन और भादो भवन के नाम से जाना जाता है.
भरतपुर के आसपास घूमना तब तक अधूरा है जब तक डीग किला नहीं देख लिया जाता. राजा सूरजमल ने इस किले का निर्माण कुछ ऊंचाई पर करवाया था. किले का मुख्य आकर्षण यहां की घड़ी मीनार है, जहां से न केवल पूरे महल को देखा जा सकता है बल्कि नीचे शहर का नजारा भी लिया जा सकता है. इस के ऊपर एक बंदूक रखी है जो आगरा किले से यहां लाई गई थी. ऊंची दीवारों और द्वारों से घिरे इस किले के अब अवशेष मात्र ही देखे जा सकते हैं.
भरतपुर राष्ट्रीय उद्यान एशिया में पक्षियों के समूह प्रजातियों वाले सर्वश्रेष्ठ उद्यान के तौर पर प्रसिद्ध है. भरतपुर की गरम जलवायु में सर्दी बिताने के लिए हर वर्ष साइबेरिया के दुर्लभ सारस आते हैं. एक समय में भरतपुर के राजकुंवरों का शाही शिकारगाह रहा यह उद्यान विश्व के उत्तम पक्षी विहारों में से एक है जिस में पानी वाले पक्षियों की 400 से अधिक प्रजातियों की भरमार है.
गरम तापमान में सर्दी बिताने अफगानिस्तान, मध्य एशिया, तिब्बत से प्रवासी चिडि़यों की मोहक किस्में और साइबेरिया से भूरे पैरों वाले हंस और चीन से धारीदार सिर वाले हंस जुलाई अगस्त
में यहां आते हैं और अक्तूबरनवंबर तक उन का यहां प्रवास काल रहता है. उद्यान के चारों ओर जलकौओं, स्पूनबिल, लकलक बगलों, जलसिंह इबिस और भूरे बगलों के समूह देखे जा सकते हैं.
देश का सब से बड़ा हैरिटेज शहर जयपुर जयपुर, जिसे गुलाबी नगर के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान की राजधानी है. इस शहर की स्थापना 1728 में आमेर के महाराजा जयसिंह द्वितीय ने की थी. जयपुर अपनी समृद्धि, भवन निर्माण परंपरा, सरस संस्कृति और ऐतिहासिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है. यह शहर तीनों ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है. जयपुर शहर की पहचान यहां के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहां के स्थापत्य की खूबी है.
1876 में तत्कालीन महाराज सवाई रामसिंह ने इंगलैंड की महारानी एलिजाबेथ, प्रिंस औफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से आच्छादित करवा दिया था. तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी यानी पिंक सिटी पड़ा है. राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर ही इस शहर का नाम जयपुर पड़ा. जयपुर भारत के टूरिस्ट सर्किट गोल्डन ट्रायंगल का हिस्सा भी है. इस गोल्डन ट्रायंगल में दिल्ली, आगरा और जयपुर आते हैं. भारत की राजधानी दिल्ली से जयपुर की दूरी 280 किलोमीटर है.
शहर चारों ओर से दीवारों और परकोटों से घिरा हुआ है. इस में प्रवेश के लिए 7 दरवाजे हैं. शहर में हवा महल परिसर, व्यवस्थित उद्यान है. पुराने शहर के उत्तरपश्चिमी ओर पहाड़ी पर नाहरगढ़ दुर्ग शहर के मुकुट के समान दिखता है. इस के अलावा यहां मध्य भाग में सवाई जयसिंह द्वारा बनवाई गई वैधशाला और जंतरमंतर भी हैं. 17वीं शताब्दी में जब मुगल अपनी ताकत खोने लगे, तो समूचे भारत में अराजकता सिर उठाने लगी. ऐसे दौर में राजपूताना की आमेर रियासत, एक बड़ी ताकत के रूप में उभरी.
जाहिर है कि महाराजा सवाई जयसिंह को तब मीलों के दायरे में फैली अपनी रियासत संभालने और सुचारु राजकाज संचालन के लिए आमेर छोटा लगने लगा और इस तरह से इस नई राजधानी के रूप में जयपुर की कल्पना की गई.
जयपुर में खरीदारी
जयपुर प्रेमी कहते हैं कि जयपुर के सौंदर्य को देखने के लिए कुछ खास नजर चाहिए, बाजारों से गुजरते हुए, जयपुर की बनावट की कल्पना को आत्मसात कर इसे निहारें तो पलभर में इस का सौंदर्य आंखों के सामने प्रकट होने लगता है.
जयपुर के दर्शनीय स्थलों में जंतरमंतर, हवा महल, सिटी पैलेस, बीएम बिड़ला तारामंडल, आमेर का किला, जयगढ़ दुर्ग आदि शामिल हैं. जयपुर के रौनकभरे बाजारों में दुकानें रंगबिरंगे सामानों से सजी रहती हैं, जिन में हथकरघा उत्पाद, बहुमूल्य पत्थर, हस्तकला से युक्त व वनस्पति रंगों से बने वस्त्र, मीनाकारी आभूषण, पीतल का सजावटी सामान, राजस्थानी चित्रकला के नमूने, नागरामोजरी जूतियां, ब्लू पौटरी, हाथीदांत के हस्तशिल्प और सफेद संगमरमर की मूर्तियां आदि सामान दिख जाते हैं. प्रसिद्ध बाजारों में जौहरी बाजार, बापू बाजार, नेहरू बाजार, चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया बाजार और एमआई रोड के साथ लगे बाजार हैं.
स्थापत्यकला में अनूठा है अजमेर
अजमेर अरावली पर्वत श्रेणी की तारागढ़ पहाड़ी की ढाल पर स्थित है. यह नगर 7वीं शताब्दी में अजयराज सिंह नामक एक चौहान राजा द्वारा बसाया गया था. इस नगर का मूल नाम ‘अजयमेरू’ था. अजमेर में मेघवंशी, जाट, गुर्जर, रावत, ब्राह्मण, गर्ग, भील व जैन समुदाय का बहुमत है.
नगर के उत्तर में अनासागर तथा कुछ आगे वायसागर नामक कृत्रिम झीलें हैं. यहां फकीर मुईनुद्दीन चिश्ती का मकबरा प्रसिद्ध है. अढ़ाई दिन का झोंपड़ा एक ऐतिहासिक इमारत है, जिस में कुल 40 स्तंभ हैं और सब में नएनए प्रकार की नक्काशी है. कोई भी 2 स्तंभ नक्काशी में समान नहीं हैं. तारागढ़ पहाड़ी की चोटी पर एक दुर्ग भी है. यहां पर नमक का व्यापार होता है जो सांभर झील से लाया जाता है. यहां खाद्य, वस्त्र तथा रेलवे के कारखाने हैं. तेल तैयार करना भी यहां का एक प्रमुख व्यापार है.
तारागढ़ और हैप्पी वैली अजमेर की सब से ज्यादा घूमने वाली जगहें हैं. यह भारत का पहला पहाड़ी दुर्ग माना जाता है. इस के अनूठे सामरिक स्थापत्य और पहाड़ी की दुर्गमता को देख कर विशप हैबर ने लिखा कि थोड़ी सी यूरोपियन तकनीक के सहारे इसे विश्व का दूसरा जिब्राल्टर बनाया जा सकता था.
80 एकड़ क्षेत्र में फैले इस किले का आरंभिक नाम अजयमेरू दुर्ग था जिस का निर्माण 7वीं सदी में अजयपाल चौहान ने आरंभ किया था. यह समुद्रतल से 2,885 फुट और मैदानी सतह से 1,300 फुट ऊंचाई पर है. यह दुर्ग अपनी नींव से 900 फुट ऊंचा है. केवल दक्षिण भाग को छोड़ कर यह किला दुर्गम रहा है. चूंकि यह बीटली पहाड़ी पर बना है इसलिए इसे गढ़ बीटली भी कहते हैं. वर्ष 1506 में चित्तौड़ के राणा रायमल के पुत्र पृथ्वीराज ने इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया और अपनी पत्नी तारा के नाम पर इस का नामकरण तारागढ़ कर दिया.
दुर्ग तक जाने के लिए पहले एक ही चट्टानी रास्ता था जो दुर्गम और जोखिमभरा था. बाद में अंगरेजों ने 2 अन्य मार्ग बनवाए. एक दक्षिण में नसीराबाद से जाने वाले सैनिकों के लिए और दूसरा अंदरकोट वाला रास्ता.
किले के भीतर बड़ा झालरा और कचहरी वाला भवन, ये मूल अवशेष चौहान काल के बताए जाते हैं. पानी के स्रोत के रूप में वहां नाना साहब का झालरा, इब्राहिम का झालरा, गोल झालरा आदि अभी भी देखे जा सकते हैं.
अजमेर स्थित अनासागर भारत की सुंदरतम 10 झीलों में शामिल है. 1135-1140 में अजमेर के चौहान राजा अर्णाराज ने इस का निर्माण कराया. पहले यहां मैदान था और उस मैदान में मुसलिम सेना के साथ चौहानों का जोरदार युद्घ हुआ. अर्णाराज की सेना विजेता रही. फिर यहां झील बनवाई गई. पूरब दिशा में 20 फुट चौड़ा और 1,012 फुट लंबा बांध बनवाया गया. यह बांध 2 छोटी पहाडि़यों के बीच बनवाया गया और चंद्रभागा नदी के पानी को रोक कर उसे झील का रूप दे दिया गया.
झीलों का शहर उदयपुर
बनास नदी पर नागदा के दक्षिणपश्चिम में उपजाऊ परिपत्र गिर्वा घाटी में महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने 1559 में उदयपुर को स्थापित किया था. इसे मेवाड़ राज्य की नई राजधानी के रूप में स्थापित किया गया था. इस क्षेत्र ने पहले से ही मेवाड़ की राजधानी के रूप में कार्य किया था, जो तब एक संपन्न व्यापारिक शहर था. महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने इस शहर की खोज के बाद इस झील का विस्तार कराया था. झील में 2 द्वीप हैं और दोनों पर महल बने हुए हैं. एक है जग निवास जो अब लेक पैलेस होटल बन चुका है और दूसरा है जग मंदिर. दोनों ही महल राजस्थानी शिल्पकला के बेहतरीन उदाहरण हैं. बोट द्वारा जा कर इन्हें देखा जा सकता है.
जग निवास द्वीप पिछोला झील पर बने द्वीप पैलेस में से एक महल है जो अब एक सुविधाजनक होटल का रूप ले चुका है. कोर्टयार्ड, कमल के तालाब और आम के पेड़ों की छांव में बना स्विमिंगपूल मौजमस्ती करने वालों के लिए आदर्श स्थान है. यहां आएं और रहने तथा खाने का आनंद लें, किंतु आप इस के भीतरी हिस्सों में नहीं जा सकते.
जग मंदिर पिछोला झील पर बना एक अन्य द्वीप पैलेस है. यह महल महाराजा करण सिंह द्वारा बनवाया गया था, किंतु महाराजा जगत सिंह ने इस का विस्तार कराया. महल से बहुत शानदार दृश्य दिखाई देते हैं. इस गोल्डन महल की सुंदरता दुर्लभ और भव्य है. सिटी पैलेस उदयपुर के जीवन का अभिन्न अंग है. यह राजस्थान का सब से बड़ा महल है. इस महल का निर्माण शहर के संस्थापक महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने करवाया था. उन के बाद आने वाले राजाओं ने इस में विस्तार कार्य किए. महल में जाने के लिए उत्तरी ओर से बड़ीपोल और त्रिपोलिया द्वार से प्रवेश किया जा सकता है.
शिल्पग्राम में गोवा, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के पारंपरिक घरों को दिखाया गया है. यहां इन राज्यों के शास्त्रीय संगीत और नृत्य भी प्रदर्शित किए जाते हैं.
उदयपुर शहर के दक्षिण में अरावली पर्वतमाला के एक पहाड़ की चोटी पर इस महल का निर्माण महाराजा सज्जन सिंह ने करवाया था. यहां गरमी में भी अच्छी ठंडी हवा चलती है. सज्जनगढ़ से उदयपुर शहर और इस की झीलों का सुंदर नजारा दिखता है. पहाड़ की तलहटी में अभयारण्य है. सायंकाल में यह महल रोशनी से जगमगा उठता है, जो देखने में बहुत सुंदर दिखाई पड़ता है.
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नए वित्त वर्ष को एक महीना बीत चुका है, ऐसे में आयकर रिटर्न दाखिल करने की तारीख (31 जुलाई 2018) भी नजदीक आ रही है. लोग इस समय अपने वो तमाम निवेश दस्तावेज खंगाल रहे हैं जहां उन्होंने टैक्स बचाने के लिए अपनी पूंजी लगाई है. आपको जानकारी के लिए बता दें कि आयकर अधिनियम के अंतर्गत कुछ ऐसे नियम भी होते हैं जो विशेष क्षेत्रों से होने वाली आय को नौन टैक्सेबल इनकम यानी कि करमुक्त आय का दर्जा देते हैं.
हम अपनी इस खबर के माध्यम से आपको उन 7 स्रोतों से होने वाली आय के बारे में बताएंगे जिसे नौन टैक्सेबल इनकम माना जाता है
कृषि आय
कृषि से होने वाली आय करमुक्त है. लेकिन, करयोग्य आय पर आयकर की दरें निर्धारित करने के लिए कृषि से होने वाली कुल आय, यदि वह 5000 रुपए से अधिक हो, को ध्यान में रखा जाता है.
हिन्दू अविभाजित परिवार (HUF) से प्राप्तियां
हिन्दू अविभाजित परिवार के सदस्य के रूप में किसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त की गई राशि जो परिवार की आय में से दी गई हो या अविभाजित संपत्ति की स्थिति में परिवार की संपत्ति मे होने वाली आय में से दी गई हो, चाहे HUF द्वारा उसकी कुल आय पर कर देय हो या नहीं. लेकिन, HUF से मिलने वाली कुछ प्राप्तियां धारा 64(2) के तहत सदस्य की आय में मिलाने जाने योग्य होती है.
साझेदारी फर्म की आय में साझेदार का हिस्सा
यदि साझेदारी फर्म का कर निर्धारण अलग से हो चुका है, तो फर्म की कुल आय में से प्रत्येक साझेदार का हिस्सा करमुक्त होता है. प्रत्येक साझेदार का हिस्सा फर्म की करयोग्य आय को partnership deed में लिखी profit sharing ratio में बांटकर निकाला जाएगा.
भारतीय सुरक्षा परियोजनाओं के संबंध में केन्द्र सरकार के साथ किए करार के तहत किसी विदेशी कंपनी को रौयल्टी या तकनीकी सेवा के लिए फीस के रूप में उदित होने वाली आय.
अगर आप किसी को भेंट स्वरूप नकद रुपए देते हैं तो भी यह करमुक्त होता है. लेकिन इसमें भी एक सीमा है. मान लीजिए कि अगर आप किसी गैर परिचित व्यक्ति को 50,000 रुपए तक का गिफ्ट देते हैं तो यह आयकर की धारा 56(2)(7) के अंतर्गत करमुक्त होता है, लेकिन इससे ऊपर की आय पर आपको कर देना होगा, लेकिन अगर गिफ्ट प्राप्त करने वाला व्यक्ति आपका परिचित है तो इसमे कोई भी सीमा नहीं है.
किसी भारतीय नागरिक को भारत के बाहर प्रदान की गई सेवाओं के लिए भारत सरकार से भारत के बाहर मिले या मिलने वाले भत्ते या अनुलाभ. यह लाभ आयकर की धारा 40 (B) के तहत मिलता है.
म्यूचुअल फंड की आय
एक म्यूचुअल फंड द्वारा उसके यूनिटधारकों को वितरित की गई आय पर धारा 115R तहत अतिरिक्त आयकर देय होगा लेकिन, यह यूनिटधारकों के हाथों में धारा 10(35) के तहत करमुक्त होगा.
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अगर आप किसी कारण जिम नहीं जा पा रही हैं. तो चिंता मत कीजिए. हम आपके लिए कुछ ऐसे टिप्स लेकर आए हैं, जिसे अपनाने के बाद आप खुद को अभिनेत्रियों की तरह फिट रख सकती हैं, वो भी बिना ज्यादा खर्च किए. आइए बताते हैं फिट रहने के लिए वर्कआउट रूटीन के साथ डाइट प्लान, जिसे आपको फौलो कर फिट रहना है.
स्विमिंग : रोजाना 30 मिनट स्विमिंग करने से पूरे शरीर का व्यायाम हो जाता है. आधे घंटे तैरकर शरीर से 440 कैलोरी तक कम की जा सकती हैं.
स्पोर्ट्स एक्टिविटीज: बौलीवुड की ज्यादातर अभिनेत्रियां नियमित रूप से स्पोर्ट्स एक्टिविटीज में व्यस्त रहती हैं. वह खुद को फिट रखने के लिए कई तरह के गेम्स खेलना पसंद करती हैं, जिसमें वालीबाल और फुटबाल शामिल है. अगर आप भी उनकी तरह रोजाना खुद को स्पोर्ट्स एक्टिविटीज में व्यस्त रखें तो इससे आप बिल्कुल फिट हो जाएंगी.
डाइट प्लान : एक्सपर्ट का मानना है कि फिगर मेंटेन करने के लिए पतला होना या खुद को भूखा रखना महिलाओं का लक्ष्य नहीं होना चाहिए, बल्कि अच्छी डाइट लेनी चाहिए. सुबह के समय ब्रेकफास्ट छोड़ने के बजाय हेल्दी फुड खाएं. आप ब्रेकफास्ट में दलिया और दही के साथ शहद ले सकती हैं. लंच और डिनर में बाहर के खाने की बजाय घर का खाना खाएं. तेज मसाले, घी, से परहेज करें. खाना छोड़ने के बजाय कम खाना खाए. जैसे अगर आपके 3 रोटी की भूख है तो 2 ही रोटी खाएं. ध्यान रखें खाना खाने के तुरंत बाद कभी भी पानी ना पिए हमेशा 15 से 20 मिनट बाद ही पानी पिए.
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हम स्टाइलिश सुपर मौडल्स रैंप पर तो रोज देखते हैं, पर उसी रैंप में चार चांद लग जाती है जब वहां पे नन्हें मेहमान अपनी अदाएं न्योछावर करते हैं. कुछ दिन पहले मुंबई के गोरेगांव स्थित एक पांच सितारा होटल ‘‘वेस्ट इन’’ में आयोजित ‘जूनियर्स फैशन वीक’ के मंच पर 140 बच्चों ने कैटवाक किया. और अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स गुएस पोलो, फ्लाईग मशीन माकर्स, अंड स्पेंसर तथा द चिल्ड्रेन प्लेस का समर संकलन प्रदर्शित किया गया.
ज्युनियर्स फैशन वीक के द्वारा शिक्षा तथा मनोरंजन के माध्यम से बच्चों में आत्मविश्वास जगाया जाता है. गोरेगांव के पांच सितारा होटल वेस्ट इन में इस समारोह में बच्चों के माता पिता के साथ ही ब्रांड्स के प्रतिनिधि तथा मीडिया के लोग भी मौजूद थे.
इस अवसर पर ‘लाइफ स्टाइल’सीईओ आलोक दुबे ने कहा- ‘‘हमें लगातार तीसरे वर्ष ‘‘जूनियर्स फैशन वीक’’के साथ जुड़ने की खुशी है.
2018 के ‘स्प्रिंग समर कलेक्शन’को प्रदर्शित करने का यह बेहतरीन प्लेटफार्म है. हम कई वर्षों से यह अहसास करते आए हैं कि पोषाक को लेकर बच्चों की खास पसंद होती है, तो हम उसी हिसाब से रंग व प्रिंट के कपड़े डिजाइन करते हैं.’’
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फिल्म ‘‘परमाणुः ए स्टोरी आफ पोखरण’’को लेकर काफी विवाद हुआ. इस फिल्म का निर्माण जौन अब्राहम की कंपनी ‘‘जे ए इंटरटेनमेंट’’ के साथ ही प्रेरणा अरोड़ा व अर्जुन एन कपूर की कंपनी ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’’ कर रही थी. पर ऐन्ड वक्त पर प्रेरणा अरोड़ा की तरफ से कुछ ऐसी हरकते हुई कि जौन अब्राहम ने फिल्म ‘‘परमाणुः ए स्टोरी आफ पोखरण’’ से ‘‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’’ को अलग करने का फैसला लिया. परिणामतः विवाद बढ़ा इस विवाद के चलते फिल्म के प्रदर्शन की तारीखें भी बदली. फिल्म को दर्शकों तक पहुंचाने के लिए जौन अब्राहम को मुंबई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा. अंततः अदालत ने प्रेरणा अरोड़ा व अर्जुन एन कपूर की कंपनी ‘‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’’के साथ ही प्रेरणा अरोड़ा की मां को भी दोषी करार देते हुए उन्हें फिल्म ‘‘परमाणु: ए स्टोरी आफ पोखरण’’से अलग कर दिया. अब जौन अब्राहम अपनी फिल्म को 25 मई को प्रदर्शित करने जा रहे हैं.
प्रेरणा अरोड़ा की कंपनी के साथ विवाद के बाद से जौन अब्राहम ने मीडिया से दूरी बना रखी थी. अब तक उन्होंने इस मसले पर यानी कि प्रेरणा अरोड़ा के साथ जो कुछ विवाद हुआ, उसको लेकर कोई बात किसी से नहीं की. मगर पहली बार जौन अब्राहम ने ‘‘गृहशोभा’’ के संग एक्सक्लूसिव बात करते हुए इस मुद्दे पर खुल कर बात की.
‘‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’’ के साथ विवाद की चर्चा करने पर जौन अब्राहम ने कहा– ‘‘हमें काफी तकलीफ हुई. पर जब हम गलत भागीदार चुनेंगे, तो यही होगा. वैसे प्रेरणा के साथ हाथ मिलाने से पहले मैंने अपनी तरफ से बहुत कुछ पता लगाने की कोशिश की थी. पर सब गलत हो गया. प्रेरणा अरोड़ा की कंपनी ने सही समय पर पैसा नही दिया. खैर, पैसा तो उन्होंने अभी भी नहीं दिया है. लेकिन हमने फिल्म बनाते समय कोई समझौता नहीं किया. मगर प्रेरणा अरोड़ा व उनकी कंपनी ‘क्रियाज इंटरटेनेमंट’ के संग लड़ाई में मेरा किसी ने साथ नहीं दिया. मैंने किसी से अपेक्षा भी नहीं की थी. पर मेरी लड़ाई से अब कईयों के लिए रास्ते साफ हो गए. क्योंकि मैं सच के लिए खड़ा हुआ. मैं हमेशा ईमानदारी में यकीन करता हूं.’’
इस विवाद का फिल्म उद्योग पर क्या असर पड़ेगा? इस सवाल पर जौन अब्राहम ने कहा- ‘‘जब झगड़ा चल रहा था, तो मैं अकेले लड़ रहा था, उस वक्त कोई सामने नहीं आया. जब हमें अदालत से जीत हासिल हो गयी, तो सबके फोन आ गए. सभी ने कहा- ‘आप उच्च न्यायालय के आदेश को पढ़िए, उसमें जज साहब ने साफ साफ लिखा है कि ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ ने इन इन लोगों के साथ धोखाधड़ी की है.’अदालत के आदेश के बाद लोगों ने फोन करके मुझे बधाई दी और कहा- ‘आप अदालत गए. इसलिए हमारे लिए दरवाजा खुल गया. आप में गट्स था कि आप इनके खिलाफ अदालत चले गए. ’क्रियाज के उपर कई मुकदमे हैं. ‘बत्तीगुल मीटर चालू’,‘फन्ने खां’ सभी के रास्ते खुल गए. 22 मई के बाद सभी अदालत में पहुंच जाएंगे. क्योंकि जौन अब्राहम ने इन सबके लिए रास्ते साफ कर दिए हैं.’’
क्रियाज इंटरटेनमेंट जैसी कंपनी की वजह से फिल्म इंडस्ट्री को कितना नुकसान हुआ? इस सवाल पर जौन अब्राहम ने कहा- ‘‘बहुत नुकसान हुआ. पर इसमें फिल्म इंडस्ट्री की अपनी गलती है. सामने वाला हमें पैसा दिखाता है और हम लोग आंख मूंदकर मान लेते हैं कि इनके पास ढेर सारा पैसा है, जो कि यह सही समय पर फिल्म में लगाते रहेंगे. जबकि हकीकत में उनके पास पैसा होता ही नही है. मैंने दो स्टूडियो के आफरों को ठुकरा कर इनके साथ हाथ मिला लिया था. यह मेरी गलती थी. वैसे क्रियाज के साथ हाथ मिलाने से पहले मैंने एक सीनियर कलाकार से फोन करके बात की थी, तो उन्होंने कहा कि यह सही लोग हैं. खैर, जो होना था, हो गया. मैं इस बात से खुश हूं कि मेरी फिल्म 25 मई को रिलीज होगी.’’
कौरपोरेट कंपनियों की वजह से रचनात्मकता को भी काफी नुकसान होता होगा? इस पर जौन ने कहा-‘‘रचनात्मकता को कोई नुकसान नही पहुंचा सकता. क्योंकि वह रचनात्मकता के बारे में कुछ जानते ही नही हैं. पर जब हमारे साथ वह जुड़ते हैं, तो उनका काम कुछ अलग होता है. पैसा लगाना और फिल्म को सही ढंग से प्रसारित करने में उनकी भूमिका होती है.’’
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घर आप के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है. ऐसे में अगर घर का इंटीरियर आप के मनमुताबिक हो तो क्या कहने! दिन भर थक-हारकर जब आप घर पहुंचती हैं, तो सब से पहले आप की नजर पूरे घर पर होती है. अगर सब कुछ ठीक और करीने से हो तो आप खुशी महसूस करती हैं. लेकिन वहीं अगर घर बिखरा पड़ा हो तो आप मायूस होती हैं. इसलिए आजकल हर कोई घर खरीदते ही उस के इंटीरियर पर खास ध्यान देने लगता है. घर चाहे किराए का हो या अपना 2 पल चैन के व्यक्ति वहीं बिता सकता है.
‘वर्ल्ड इंटीरियर डे’ पर एशियन पेंट्स की वर्कशौप में आईं प्रोडक्शन डिजाइनर श्रुति गुप्ते कहती हैं, ‘घर का इंटीरियर सही हो यह जरूरी है. घर की साज-सज्जा से ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का भी पता चलता है. मैं अपने घर में हमेशा ध्यान रखती हूं कि कहां पर बैठ कर मुझे अच्छा लगता है, कहां से मुझे क्या देखने की इच्छा हो रही है और फिर उसी के अनुसार इंटीरियर करती हूं. इंटीरियर में वाल का न्यूट्रल होना आवश्यक है. घर के कुशन, परदे, फ्रैश फ्लौवर्स आदि सभी आप के घर का लुक बदल सकते हैं.’
इंटीरियर में रोशनी का अधिक महत्त्व होता है, जो घर की सुंदरता बढ़ाती है. श्रुति कहती हैं कि सफेद लाइट घर के लिए सही नहीं. सफेद लाइट औफिस आदि के लिए ही अच्छी होती है, क्योंकि वहां काम करना होता है. सफेद लाइट कठोर होती है, इसलिए वे हमेशा वार्म लाइट से घर सजाने की सलाह देती हैं. कई कंपनियां आजकल आकर्षक रोशनी के लिए बल्ब बनाती हैं. इन बल्बों की रोशनी घर की काया पलट सकती है. बैडरूम में ब्लू कलर की दीवारें और बल्ब की लाइट बहुत ही शांत दिखती है.
घर सजाना एक कला है, जो व्यक्ति की खुद के अवलोकन पर आधारित होती है. इस के लिए किसी इंटीरियर डिजाइनर की आवश्यकता नहीं होती, जो करने के बाद आप कंफर्टेबल अनुभव करें वही आप के घर की सही सजावट होती है. अगर आप के पास कोई आइडिया न हो तो, जो जानती हैं उसी हिसाब से इंटीरियर करें. कुशन, कारपेट, कर्टन, फ्लावर में जो रंग पसंद हों उन्हीं से घर सजाएं.
श्रुति कहती हैं कि एशियन पेंट्स से जुड़ने की वजह इन की बहुत बड़ी कलर रेंज है. जिन का आप अपने मनमुताबिक प्रयोग कर सकती हैं. मधुबनी, वार्ली सभी के डिजाइन मिलते हैं, जिन का प्रयोग उन्होंने सैट डिजाइन करने के दौरान किया है.
घर के और सैट के इंटीरियर में कितना फर्क होता है? पूछने पर श्रुति का कहना है कि हर काम चुनौतीपूर्ण होता है, फिर बात सैट के इंटीरियर की हो या घर के इंटीरियर की. सैट थोडे़ दिनों के लिए होता है, जिस में रियल कुछ नहीं होता. हर चीज आर्टिफिशियल होती है. सैट अधिकतर कपड़े और लकड़ी के बनते हैं. कहीं पर वालपेपर का भी प्रयोग किया जाता है.
सैट का निर्माण लोकेशन, स्टोरी, स्क्रिप्ट, निर्देशक, परफौर्मैंस, ऐक्टर आदि के आधार पर किया जाता है, जबकि घर का इंटीरियर कम से कम 3 साल तक के लिए होता है. इसलिए उसे सोचसमझ कर करना पड़ता है. सैट की डिजाइनिंग में अगर सैट छोटा है, तो 3 दिन और बड़ा है तो एक से डेढ़ महीने तक का समय लगता है. दोनों के लिए पहले प्लेन स्कैच तैयार करना पड़ता है.
गरमी और मौनसून में घर के इंटीरियर के कुछ टिप्स
– मौसम के आधार पर परदों में बदलाव काफी लाभदायक होता है.
– औलिव, पेल ब्लू, न्यूट्रल कलर आदि रंग के परदों, बेडशीट्स, कुशन कवर से घर की सजावट की जा सकती है.
– अगर घर के कमरे छोटे हैं, तो दीवारों का रंग औफव्हाइट या हलका हो.
– फर्नीचर में गहराई लाने के लिए फ्लौर लैंप, टेबल लैंप आदि का प्रयोग करें.
– गरमी के मौसम में थिक परदे लगाएं. नीचे शियर कर्टन लगाना न भूलें. इस से बाहर की रोशनी कमरे में कम आएगी.
– मौनसून में बाहर अंधेरा होता है, ऐेसे में शियर कर्टन का प्रयोग अच्छा रहता है.
– रोशनी का प्रयोग कमरे के आकार के अनुसार करें.
– बच्चों का कमरा उन के अनुसार सजाएं, उन के कमरे की एक तरफ की दीवार खाली रखें ताकि वे अपनी कल्पना का खुल कर प्रयोग कर सकें.
– ऐसा जरूरी नहीं कि लड़कियों का कमरा पिंक और लड़कों का ब्लू हो. बचपन से ही उन्हें न्यूट्रल कलर से पहचान करवाएं.
– बच्चों की कल्पनाएं उम्र के साथ बदलती हैं, इसलिए बदलाव उन के कमरों में हमेशा रहना चाहिए.
इंटीरियर में ये मिस्टेक्स न हों
– छोटे घर में भारी फर्नीचर रखना.
– फ्रैश हाउस प्लांट्स का न रखना.
– हर खिड़की को एकसमान समझना.
– छोटी खिड़कियों में भारी परदे लगाना.
– छोटे घर की दीवारों में गहरे रंगों का प्रयोग करना. इस से कमरा और छोटा लगता है.
– दूसरे के इंटीरियर की कॉपी करना.
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अपनेपन से पनपने वाले रिश्ते यों तो अनमोल होते हैं लेकिन अगर यही रिश्ते कुछ कीमत में या किराए पर मिल जाएं तो? यह सवाल इसलिए है कि अब तकनीक के दौर में रिश्ते औनलाइन शौपिंग वैबसाइटों पर प्यार की गारंटी के साथ तय समय के लिए भी मिलने लगे हैं. पत्नी के प्यार के साथ, मातापिता ममता के दिखावे के साथ तो बच्चे फैमिली पैकेज के तौर पर डिस्काउंट के साथ उपलब्ध हैं, वह भी एक फोन कौल पर. अभी तक ये हालात जापान और चीन जैसे देशों में थे, लेकिन कोई आश्चर्य की बात नहीं कि जल्दी ही भारत में भी इन की शुरुआत हो जाए.
ऐसा अंदेशा उन घटनाओं से जन्म ले रहा है जो बीते कुछ समय में सामने आई हैं जिन में पत्नी की बोली पति ने औनलाइन लगा दी तो सास से त्रस्त बहू ने सास को ही बेचने का विज्ञापन औनलाइन चस्पां कर दिया. पत्नी ने पति को कम कीमत में बेचने का विज्ञापन दे डाला.
उन लोगों के लिए यह सुनना अजीब हो सकता है जिन्होंने रिश्तों की बुनियाद को प्रेम से सींचते देखा है, लेकिन रिश्तों की अहमियत से बेफिक्र और ब्रेकअप, बौयफ्रैंड जैसी पश्चिमी संस्कृति में रंगे एक खास तबके के लिए यह एक सहूलियत और अवसर है. यही वजह है कि अब रिश्ते औनलाइन दुकानों पर बिक रहे हैं. साथ ही, ब्रेकअप कराने वाली वैबसाइट्स भी वजूद में आ गई हैं जो ब्रेकअप को ज्यादा रोचक व आसान बना रही हैं.
भारत जैसे देश में इस तरह की घटनाएं इसलिए भी ज्यादा ध्यान खींचती हैं क्योंकि यहां रिश्तों की मर्यादा जिंदगी से भी बड़ी मानी जाती है. इस के बावजूद इसी देश में औनलाइन दुकानों पर किफायती कीमत पर रिश्तों का कारोबार जन्म ले रहा है.
हालांकि ऐसी घटनाएं भी सामने आती रही हैं जब जिगर के टुकड़े चंद रुपयों में बेच दिए गए तो बेटियों, पत्नियों के भी खरीदनेबेचने के मामले सुने गए, जो कभी पेट की खातिर तो कभी परंपरा के नाम पर अंजाम दिए गए. मगर ये चंद ही घटनाएं है जो अज्ञानता और भुखमरी की तसवीरें बयां करती हैं, लेकिन तकनीक से कदम मिला कर चलते उन लोगों की सोच पर कौन लगाम लगाए जो रिश्तों की बोली भी लगा रहे हैं और इन की खरीदफरोख्त भी कर रहे हैं.
औनलाइन संस्कृति
अपनी आदर्श संस्कृति के लिए मशहूर देश भारत में कोई भी धर्ममजहब हो, दासप्रथा जैसी बुराइयों से सभी त्रस्त रहे. नए हिंदुस्तान में इस बुराई को कानून बना कर दूर करने की कोशिश की गई. इस से काफी रोक भी लगी. इस के बावजूद महाराष्ट्र के नांदेड़ के वैधु समाज जैसे कुछ समुदायों में परंपराओं के नाम पर चोरीछिपे बेटियों को बेचने का चलन आज भी जारी है. लेकिन, यहां सवाल उस नई प्रथा की शुरुआत का है जिसे आज की औनलाइन संस्कृति जन्म दे रही है.
रिश्तों के कारोबार के चलन से यह आशंका भी जोर पकड़ रही है कि कहीं यह चलन समाज को खींच कर फिर उसी कबीलाई दौर की तरफ न ले जाए जहां इंसान बेचेखरीदे जाते थे. दासप्रथा में तो फिर भी दूसरे समुदाय के बंदी बनाए गए लोगों को बेचा जाता था लेकिन इस नए समाज में तकनीक घर बैठे सास, पत्नी और पति को बेचने की सहूलियतें भी मुहैया करा रही है, जो समाज के लिए कहीं ज्यादा खतरनाक है.
ऐसी ही एक घटना ने रिश्तों को शर्मसार कर दिया जब पति ने ही पत्नी की औनलाइन बोली लगा दी. हरियाणा के पटियाकार गांव में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को पौर्न फिल्ममेकर को बेच दिया क्योंकि पत्नी दहेज नहीं लाई थी और उसे दहेज की कीमत वसूल करनी थी.
मार्च 2016 में मिनी मुंबई के नाम से मशहूर मध्य प्रदेश के इंदौर में दिलीप माली ने अपनी पत्नी और बेटी की बोली सोशल साइट पर लगा दी. इस के लिए उस ने सोशल साइट पर पत्नी और बेटी की फोटो अपलोड की और लिखा, ‘‘मैं कर्ज के बोझ तले दबा हूं, मुझे किसी को पैसे लौटाने हैं, इसलिए मुझे रुपयों की जरूरत है. जो मेरी बीवी, बच्ची को खरीदना चाहे, मुझ से संपर्क करे.’’
उस ने पत्नी की कीमत भी तय कर दी 1 लाख रुपए. साथ ही, अपना मोबाइल नंबर भी दर्ज कर दिया ताकि लोग आसानी से उस से संपर्क कर सकें.
अपना प्राइस टैग
वहीं, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो रातोंरात अमीर बनने के ख्वाब देखते हैं और इस सपने को साकार करने की कोशिश में वे अपनी ही बोली लगा देते हैं. आईआईटी खड़गपुर के एक छात्र आकाश नीरज मित्तल ने खुद को फ्लिपकार्ट पर बेचने की कोशिश की. इस के लिए उस ने फ्लिपकार्ट की वैबसाइट पर खुद ही एक विज्ञापन भी चस्पां कर डाला. साथ ही, छात्र ने विज्ञापन में अपनी कीमत 27,60,200 रुपए भी लिखी और फ्री डिलीवरी का विकल्प भी दिया. उच्च शिक्षित युवा की ऐसी सोच किस तरह के समाज को गढ़ रही है, समझा जा सकता है.
वर्ष 2015 में औनलाइन खरीदफरोख्त का ऐसा एक मामला सामने आया जिस ने सोचने पर मजबूर कर दिया था. सासबहू सीरियल बुद्धूबक्से पर महिलाओं के मनोरंजन का खास जरिया बनते रहे हैं. इन में खासकर सासबहू के रिश्तों की जो कड़वाहट परोसी जाती है उस ने भी महिलाओं की सोच को काफी हद तक प्रभावित किया है, इस से इनकार नहीं किया जा सकता. यही वजह है कि नफरत की आग में जल रही एक बहू ने शौपिंग साइट पर अपनी सास की तसवीर को न सिर्फ अपलोड किया बल्कि उस ने शब्दों में भी अपनी नफरत उजागर की.
कंपनी की साइट पर विज्ञापन में उस ने लिखा, ‘‘मदर इन-ला, गुड कंडीशन, सास की उम्र 60 के करीब है, लेकिन कंडीशन फंक्शनल है, आवाज इतनी मीठी कि आसपास वालों की भी जान ले ले. खाने की शानदार आलोचक. आप कितना ही अच्छा खाना बना लें, वे खामी निकाल ही देंगी. बेहतरीन सलाहकार भी हैं. कीमत कुछ भी नहीं, बदले में चाहिए दिमाग को शांति देने वाली किताबें.’’
कीमत के स्थान को खाली छोड़ दिया गया. इस तरह का विज्ञापन देख वैबसाइट ने कुछ ही देर में विज्ञापन हटा दिया. बहू की इस हरकत को आईटी कानून के तहत अपराध माना गया और उस के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही हुई.
एक महिला ने क्विकर के पैट्स सैगमैंट में अपने पति की फोटो डाल कर लिखा था, ‘हसबैंड फौर सेल’ और पति की कीमत मात्र 3,500 रुपए. उस ने पैट टाइप में लिखा था, ‘‘हसबैंड, कीमत 3,500 रुपए.’’ वहीं, इसी साइट पर एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को मात्र 100 रुपए में बेचने का विज्ञापन इन शब्दों के साथ दिया, ‘‘यह आदर्श पत्नी है, घर का काम बहुत अच्छे से करती है पर बोलती बहुत है, इसलिए इतने कम दाम में बेच रहा हूं.’’
कुछ भी बेचने की संस्कृति
रिश्तों की यह कौन सी परिभाषा है जो नएपन के इस दौर में लोेगों में अपनेआप ही पनपने लगी है. कुछ भी बेच दो की संस्कृति कम से कम भारतीय समाज के स्वभाव से तो मेल नहीं खाती. हालांकि इसी समाज में कुछ लोग अपने बच्चों का सौदा करते रहे हैं. बिहार राज्य के गरीबी से त्रस्त लोग बेटियों को बेचने के लिए बदनाम हैं ही. वहीं, हरियाणा में बेटियों को पेट में ही मारने के चलन के साथ महिलाओं को खरीद कर उन से विवाह करने के मामले सामने आना नई बात नहीं है.
गरीबी और प्राकृतिक आपदाओं से तबाह हुए लोगों के बारे में भी सामने आता रहा है कि वे कुछ वक्त की रोटी के लिए अपने बच्चों को बेचने पर मजबूर हो जाते हैं. बीते साल पटना के नंदनगर में पति की प्रताड़ना और आर्थिक तंगी से मजबूर एक महिला ने अपनी दुधमुंही बच्ची को महज 10 हजार रुपयों के लिए बेच दिया.
जुलाई 2015 में रांची के करमटोली की गायत्री ने भुखमरी से तंग आ कर अपनी 8 माह की बेटी को 14 हजार रुपए में बेचा. इसी साल मध्य प्रदेश के मोहनपुर गांव के एक किसान लाल सिंह ने 1 साल के लिए अपने 2 बेटों को 35,000 रुपयों में बेच दिया. वजह थी तबाह हुई फसल और कर्ज.
उत्तर प्रदेश के मेरठ में एक महिला का बयान रिश्तों के खोखलेपन को उजागर कर गया जब उस ने अपने पति पर अपने ही 5 बच्चों को बेचने का आरोप लगाया. वहीं बुंदेलखंड के सहरिया आदिवासी लोगों द्वारा कर्र्ज की वजह से अपने बच्चों को बेचने की घटनाएं देश की बदहाली की दास्तां पेश करती रही हैं.
भारत और इंडिया दोनों में ही इंसानों को बेचने का चलन जारी है, फिर वजह चाहे खुशी से किसी को खरीदने की हो या बदहाली में बेचने की. हर हाल में यहां इंसान बिक रहे हैं. ऐसे में भला भविष्य में संबंधों के प्रति सम्मान की संस्कृति बने रहने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
नया समाज, कुरीतियां पुरानी
यह कैसा नया समाज है जहां पुराने समाज की कुरीतियां आधुनिकता के नाम पर अपनाई जा रही हैं. जापान में तो ‘रैंट ए वाइफ औटटावा डौट कौम’ नाम की वैबसाइट बनी हुई है जिस पर मांबाप, पत्नी और पति किसी भी रिश्ते को किराए पर लेने की सुविधा दी जा रही है. वहीं, चीन जैसे तेजी से विकसित हो रहे देश में भी बेच दो संस्कृति पैर पसारे हुए है. वहां के फुजियान प्रांत में एक दंपती ने अपनी 18 माह की बच्ची को महज 3,530 डौलर यानी 2.37 लाख रुपए में सिर्फ इसलिए औनलाइन बेचने का विज्ञापन पोस्ट किया क्योंकि उन्हें आईफोन खरीदना था. एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में हर साल
2 लाख बच्चों का अपहरण कर उन्हें औनलाइन बेचा जाता है.
वहीं, अमेरिका में एक आदमी ने अपनी बाइक के साथ अपनी पत्नी की फोटो भी औनलाइन सेल के लिए डाल दी और लिखा, ‘‘मेरी बाइक 2006 की मौडल है और मेरी पत्नी 1959 मौडल है जो दिखने में बहुत ही खूबसूरत है.’’
ब्राजील में 2013 में एक व्यक्ति का अपने बच्चे को बेचने का औनलाइन विज्ञापन चर्चा का विषय बना था, क्योंकि वह बच्चे के रोने के शोर से बचने के लिए उसे बेचना चाहता था. देशदुनिया में इंसान नहीं बिक रहे, बल्कि औनलाइन पशुओं को बेचने की भी शुरुआत हो गई है और इंसानों की कीमत से कहीं ज्यादा में पशु बिक रहे हैं. साथ ही, उन के गोबर की भी बिक्री हो रही है. दिसंबर 2014 में अमेरिका में औनलाइन कंपनी ‘कार्ड्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी’ ने 30 हजार लोगों को महज 30 मिनट में गोबर तक बेच दिया. लोगों ने गोबर क्यों खरीदा, यह जिज्ञासा का विषय हो सकता है.
मनपसंद डेटिंग पार्टनर
आखिर औनलाइन खरीदारी की तरफ लोगों का अंधझुकाव क्यों है? इस की वजह शायद आकर्षक औफर और घरबैठे खरीदारी की सहूलियत है. एसोचैम और प्राइसवाटर हाउस कूपर्स (पीडब्ल्यूसी) ने अपने अनुमान में कहा है कि बाजार में सुस्ती के बावजूद 2017 में औनलाइन शौपिंग में 78 फीसदी बढ़ोतरी की संभावना है. 2015 में यह 66 फीसदी थी. लोगों के इसी रुझान को देख कर वे लोग भी लाभ उठाने को तैयार बैठे हैं जो औनलाइन इंसानी रिश्तों को बेचने के मौके तलाश रहे हैं. तकनीक ने ऐसे लोगों के हाथ में औनलाइन खरीदारी के तौर पर एक नया विकल्प दे दिया है.
इतना ही नहीं, रिश्तों के साथ ही किसी महिला या पुरुष के साथ वक्त गुजारने का जरिया भी कुछ वैबसाइट दे रही हैं. हाल में महिलाओं के लिए डेटिंग औनलाइन शौपिंग वैबसाइट्स लोगों की तवज्जुह अपनी तरफ खींच रही है. इस पर महिलाएं अपनी पसंद का पुरुष चुनने, उन के साथ डेटिंग करने की सहूलियत पा सकती हैं.
अमेरिकी समाचारपत्र ‘वाल स्ट्रीट जर्नल’ की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इंटरनैट डेटिंग का ट्रैंड तो बढ़ ही रहा है, साथ ही अपराध भी पनप रहा है. वहीं कुछ साइट्स समलैंगिकों के लिए भी जारी हैं. चूंकि भारत में इस तरह के रिश्ते अपराध माने जाते हैं, ऐसे में समलैंगिक औनलाइन डेटिंग के जरिए अपना पार्टनर तलाश कर रहे हैं.
इस के लिए कई साइट्स औनलाइन डेटिंग ऐप, ग्रिडर, एलएलसी, प्लैनेट रोमियो बीवी ऐप्स उपलब्ध करा रही हैं. भारत में ये ऐप्स काफी लोकप्रिय हो रहे हैं.
इंटरनैट, औनलाइन खरीदारी जैसी सहूलियतें जीवन को आसान बनाने के लिए हैं, मगर इन्हीं पर रिश्तों का मजाक बन रहा है. प्राइस टैग के साथ औनलाइन रिश्तों की बिक्री समाज में किस तरह का बदलाव लाएगी, समझने की जरूरत है.
VIDEO : जियोमेट्रिक स्ट्राइप्स नेल आर्ट
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