भविष्य की तकनीक पर युवा रखें नजर

भारतीय जनता पार्टी ने देश पर एकछत्र राज तो स्थापित कर लिया है पर वह अभी भी युवाओं के मन में वह उत्साह पैदा नहीं कर पाई है जो आमतौर पर चुनाव पर चुनाव जीतने वाले नरेंद्र मोदी जैसे सफल नेता पैदा कर देते हैं. देश की युवा पीढ़ी हर रोज नए खतरों की आहट सुन रही है. जब दुनिया तकनीक व नए कुशल प्रबंधन के आयाम देख रही है, हमारी सुर्खियों में पेरियार व अंबेडकर की मूर्तियों को तोड़ने, लवजिहाद के नाम पर हमले, पद्मावत जैसी फिल्मों पर विवाद, नीरव मोदी जैसे बेईमानों, गौरक्षा के नाम पर हत्याओं, मंदिर की जिद आदि की कानफोडू आवाजें सुनाई देती हैं.

कल आज से बेहतर होगा ऐसा लगता ही नहीं है क्योंकि दुनिया की नई तकनीक पर हमारा भरोसा केवल इतना है कि हम उसे खरीद सकते हैं, बना नहीं सकते. विदेशी बाहर से आ कर कारखाने लगा लें, अपने मैनेजर ले आएं और मुगलों व अंगरेजों की तरह हमारे युवाओं को नौकर रख कर काम करा लें. इतना भर दिख रहा है.

भारतीय जनता पार्टी की लगातार चुनावी जीतों से साफ है कि देश के एक बड़े वर्ग की रुचि पिछले कल में है, अगले कल में नहीं. लोग पाखंड और झूठ के इतने आदी हो चुके हैं कि उन्हें सच साबित करने के लिए न केवल झूठ का सहारा लेना पड़ रहा है, बल्कि वे झूठ पर आधारित सरकारों का अंधा समर्थन भी कर रहे हैं. अगर आज का युवा परीक्षाओं में नकल पर ज्यादा जोर दे रहा है तो इसलिए कि उसे मालूम है कि इस झूठ के बल पर मिली नौकरी में वह मजे में पूरी जिंदगी निकाल देगा. इस तरह वह झूठ पर झूठ बोल सकता है और निकम्मा रह कर भी कमाऊ बन सकता है. देश के खून में तो सदियों से झूठ के विषाणु रहे हैं पर आज जब उस का इलाज संभव है तब भी कोई, कहीं दवा की चिंता नहीं कर रहा है.

अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देशों की तरह भारत अनाचार और अत्याचार का मुख्य केंद्र बनता जा रहा है. 10-15 वर्षों पहले जिस भारत ने बेंगलुरु के माध्यम से विदेशी गोरों को भयभीत कर दिया था, लेकिन अब वे ही किसी दिन इन्फोसिस और टाटा कंसल्टैंसी जैसी भारतीय कंपनियों को खरीद ही न लें, यह डर लगने लगा है.

देश के युवाओं को आज पुरातन का जो जबरन पाठ पढ़ाया जा रहा है, वह जो थोड़ीबहुत प्रगति हम ने देखी थी उसे लील जाएगा. देश का युवा आगे की न सोच कर, भगवा दुपट्टे के सहारे चौराहे पर खड़ा हो कर, पुराने को फिर से स्थापित करना चाह रहा है. क्या नई डिगरियां चोटी, तिलक के सहारे ही मिलेंगी? नए चुनावी परिणाम तो कुछ यही संकेत दे रहे हैं. उत्तर प्रदेश और बिहार के उपचुनावों में भगवाई हार से कुछ ज्यादा फर्क न पड़ेगा क्योंकि यह पुरातनवादी सोच अंदर गहरे तक दब चुकी है.

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बेरोजगारी का फंदा और नौकरियों का अकाल

बेरोजगारी का फंदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गले में कसता जा रहा है. इसलिए अब अच्छे दिनों, 15 लाख रुपए हर खाते में, पाकिस्तानी सैनिकों के सिर काट कर लाने जैसे झूठे वादों की तरह रेलवे में 90 हजार नौकरियों का विज्ञापन छपवाया गया है. यही नहीं, विदेशी कंपनियों द्वारा भारत में भारतीयों को नौकरी देने के समाचार भी छपवाए जा रहे हैं. ये सब बातें लोकलुभावन हैं क्योंकि असली नौकरियों का अभी अकाल ही है.

वैसे जो अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती है, जैसा वित्तमंत्री अरुण जेटली देश की अर्थव्यवस्था के बारे में सोतेजागते कहते रहते हैं, वहां नौकरियों की कमी नहीं होती. नौकरियों की कमी वहीं होती है जहां अर्थव्यवस्था संकुचित हो रही हो और व्यापार व उत्पादन कम हो रहा हो. सरकार घटते व्यापार व उत्पादन की वजह से ज्यादा टैक्स जमा कर के निठल्लों को नौकरियां नहीं दे पा रही. निजी सैक्टर पर कानूनों, नोटबंदी, जीएसटी और ऊपर से कंप्यूटरी युग थोपने की वजह से नौकरियां और भी कम हो रही हैं.

पहले के समय में अखबार नए उद्योगों, नई कंपनियों, नए उत्पादनों की खबरों से भरे रहते थे. लेकिन आजकल भगोड़ी कंपनियां ही सुर्खियों में हैं. हर रोज पता चलता है कि किसी गुमनाम सी कंपनी ने 250 से 3,000 करोड़ रुपए तक कर्ज लिया और उस के प्रमोटर्स भाग गए. ऐसी कंपनियों के चलते रोजगार कम होंगे, बढ़ेंगे नहीं.

कुछ सैक्टरों को छोड़ दें तो हर क्षेत्र में सन्नाटा सा है. कृषि मंडियों से ले कर आईटी कंपनियों तक एक तलवार लटकी है कि कल न जाने क्या होगा. सरकारी वादे असल में पंडों जैसे वादे साबित हो रहे हैं कि यजमान, बस, तुम दानपुण्य करते रहो, भगवान झोली भरेंगे. बेरोजगारों से कहा जा रहा है कि तुम एप्लीकेशनें और उन की फीस भरते रहो और ऊपर से नौकरियों के टपकने का इंतजार करते रहो.

सरकारी क्षेत्र में लगीबंधी, ऊपरी कमाई वाली नई नौकरियां बहुत कम होती जा रही हैं. सरकार के पास न पैसा है और न ही ऐसे क्षेत्र बचे हैं जिन में वह बेरोजगारों को नौकरी दे कर खपा सके. लाखों नौकरियां तो सरकार ने खुद कौंटै्रक्टरों को दे दी हैं जो युवाओं को रखते हैं, उन से काम लेते हैं पर उन्हें सरकारी नौकरी सा मजा नहीं देते. मेहनत से काम करने की आदत होती तो नौकरियों का अकाल ही क्यों होता?

कठिनाई यह है कि अब शिक्षा महंगी हो गई. पहले सस्ती सरकारी शिक्षा के बाद कम वेतन वाली नौकरी करने में दिक्कत नहीं होती थी. अब लगता है कि यदि लाखों रुपए खर्च कर ऊंची पढ़ाई करने के बाद भी कुछ विशेष नहीं मिला तो क्या लाभ? विदेशों में तो कुछ अवसर हैं पर वहां भारतीयों की महंगी शिक्षा भी काम नहीं आती. वे उस न्यूनतम ज्ञान से भी अनभिज्ञ होते हैं जिस को विदेशी सामान्य मानते हैं.

नौकरियों के अवसर देना किसी भी देश की सरकार के लिए टेढ़ी खीर होता है. भारत सरकार के लिए तो यह और ही कठिन है. हां, अगर पूजापाठ की नौकरियां चाहिए तो शायद बहुत अवसर हैं क्योंकि देश में कारखाने बने नहीं, मंदिर जरूर बनतेबढ़ते जा रहे हैं.

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तूफान या भूकंप से घर टूट जाने पर कितना पैसा देती हैं बीमा कंपनिया

देश के 13 राज्यों में आंधी, तूफान और तेज बारिश की चेतावनी ने लोगों की टेंशन बढ़ा दी थी. अचानक बदले मौसम के मिजाज से हर कोई इस बात को लेकर फिक्रमंद था कि कहीं उन्हें और उनके घर को नुकसान न हो. आपको बता दें कि मौसम विभाग ने अलर्ट जारी करते हुए कहा था कि अगले 48 घंटों में कुदरत कहर बरपा सकती है, लेकिन अभी तक कुछ ऐसा नहीं हुआ है.

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि किसी प्राकृतिक आपदा मसलन भूकंप या फिर तूफान में अगर आपके घर को नुकसान होता है तो आपको बीमा कंपनियां कितना और किस लिए पैसा दे सकती हैं. हम अपनी इस खबर में आपको इसी बारे में जानकारी दे रहे हैं.

आमतौर पर लोग घर को खरीदने में तो लाखों रुपए खर्च कर देते हैं लेकिन वो इसका इंश्योरेंस नहीं कराते हैं. ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि लोगों को इसकी पर्याप्त जानकारी नहीं होती है. होम इंश्योरेंस आम तौर पर भूकंप, आसमानी बिजली, तूफान, बाढ़ इत्यादि प्राकृतिक आपदाओं के कारण प्रौपर्टी और उसमें रखे सामान को होने वाले नुकसान का कवरेज देता है.

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बहुमूल्य वस्तुएं की चोरी होने पर भी इंश्योरेंस में उसे कवर किया जाता है. प्राकृतिक आपदा में अगर आपका घर ढह या गिर जाता है तो बीमा कंपनिया रीकंस्ट्रक्शन के लिए उसका पैसा देती हैं.

एक्सपर्ट की राय : फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स के अनुसार आज के समय में होम इंश्योरेंस पौलिसी लेना घर के मालिकों के लिए काफी जरूरी होता है. आमतौर पर इस तरह की बीमा पौलिसियों में दो श्रेणियों को कवर किया जाता है. पहला बिल्डिंग स्ट्रक्चर और दूसरा घर का कीमती सामान.

यानी अगर किसी प्राकृतिक आपदा में आपके घर के स्ट्रक्चर को कोई नुकसान होता है तो उसमें आने वाले खर्चे (कंस्ट्रक्शन कौस्ट) की अधिकांश भरपाई इंश्योरेंस कंपनी की ओर से की जाती है. वहीं अगर आपने अपने घर के कीमती सामान मसलन होम अप्लाइंस, पोर्टेबल इक्विपमेंट (सेलफोन, लेपटौप और टीवी) को भी कवर करवा रखा है तो आगजनी, चोरी और सेंधमारी के बाद आपको ज्यादा वित्तीय नुकसान नहीं उठाना पड़ता है.

होम इंश्योरेंस पौलिसी में प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान, चोरी और सेंधमारी से सुरक्षा मिलती है. एक्सपर्ट्स के अनुसार कुछ बीमा कंपनिया किराए के घर में भी आपके बहुमूल्य सामान को कवर करती है. वहीं उन्होंने यह भी बताया कि पैकेज पौलिसी लेना ज्यादा फायदेमंद रहता है क्योंकि इसमें बिल्डिंग के साथ-साथ घर के सामान और अन्य अहम चीजों को कवर करने की सुविधा दी जाती है.

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हम जैसे कलाकारों को हमेशा स्ट्रगल करना पड़ता है : रिचा चड्ढा

दिल्ली में पली बढ़ी ऋचा ने जहां एक तरफ ‘तमंचे’, ‘कैबरेट’ जैसी कमर्शियल फिल्में की हैं तो वहीं दूसरी तरफ ‘मसान’, ‘सरबजीत’ जैसी जीवंत अभिनय वाली फिल्म कर अपने अभिनय की छाप छोड़ी है. ऋचा को एक किरदार में बंधना पसंद नहीं है.

वे कहती हैं, ‘मसान’, ‘सरबजीत’ जैसी फिल्मों में मेरे काम की बहुत तारीफ हुई, लेकिन ऐसे ही रोल मैं दोबारा नहीं करना चाहती, क्योंकि मुझे वैराइटी पसंद है, फिर चाहे वह लाइफ में हो या एक्टिंग में. मेरे बारे में कोई यह धारणा बना ले कि मैं अब ऐसे ही रोल करूंगी तो मैं उसे आउटडेटेड मानसिकता वाला कहूंगी.

मैं यंग हूं और हर तरह के प्रयोग में विश्वास रखती हूं. मैं किरदार को वैल्यू देती हूं बैनर और बजट को नहीं.’’ ऋचा का यह भी कहना है, ‘‘अगर मैं भी किसी स्टार फैमिली से होती तो यहां तक पहुंचने के लिए इतने पापड़ नहीं बेलने पड़ते. हमारे यहां तो स्टार किड्स के डेब्यू करने से पहले ही मीडिया उसे स्टार बना देता है. इन लोगों को हमेशा काम मिलता है, लेकिन सफल नहीं होते. हम जैसे कलाकारों को सक्सैस तो मिलती है, लेकिन हमेशा स्ट्रगल करना पड़ता है.’’ कोई कलाकार कम नहीं.

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आइटम नंबर और सैक्सी आइटम जैसे शब्दों पर आपत्ति जताते हुए ऋचा कहती हैं, ‘‘ये शब्द मीडिया द्वारा गढ़े गए हैं. कंगना, ऐश्वर्या के बारे में भी पहले यही कहा जाता था कि ये सब ग्लैमर के बल पर इंडस्ट्री में टिकी हुई हैं. लेकिन जब उन्हें अच्छी कहानियों और अच्छे निर्देशकों की फिल्मों में खुल कर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला तो उन्होंने बता दिया कि वे भी किसी से कम नहीं हैं.

मेरा मानना है कि अगर स्पेस मिले तो कोई भी कलाकार कम नहीं है. किसी को खूबसूरत या बदसूरत घोषित करने का अधिकार किसी को नहीं है.’’ जब आलोचकों ने की तारीफ ऋचा बताती हैं, ‘‘जब अनुराग कश्यप की ‘गैंग्स औफ वासेपुर 2’ में मुझे 34 की उम्र के नवाजुद्दीन की मां बनना था तब मैं बहुत प्रैशर में थी, क्योंकि मैं उस समय 23 साल की थी और मुझे 45 साल की महिला का किरदार निभाना था. उस समय मैं ने अपने आप को गांव की अनपढ़ महिला जैसा दिखाना शुरू कर दिया. मेरी मां बिहार की हैं, इसलिए भाषा की कोई समस्या नहीं हुई. जब नगमा खातून का रोल किया तो सब को बहुत पसंद आया. जो अब तक मेरी आलोचना करते थे उन्होंने भी मेरी तारीफ की.

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जब जाना हो हनीमून ट्रिप पर, तो इन बातों का रखें ध्यान

आजकल शादियां चट मंगनी पट ब्याह की तर्ज पर होने लगी हैं, इसलिए न्यू कपल्स को हनीमून की योजना भी शादी तय होते ही बना लेनी चाहिए. लेकिन हड़बड़ाहट और जल्दबाजी दिखाने के बजाय हनीमून ट्रिप का फैसला सोचसमझ कर करना चाहिए, बेहतर होगा कि नवदंपती इन अहम बातों का ध्यान रखें,

  • कहां जाएं यह फैसला करना वाकई मुश्किल है. पतिपत्नी दोनों मिल कर तय करें तो बेहतर होता है. ऐसी जगह हो जहां दोनों ही पहले न गए हों.
  • लंबी दूरी पर जाएं तो हवाई जहाज का सफर ठीक रहता है. इस से समय की बचत होती है. ट्रेन से 20-22 घंटे की यात्रा एसी फर्स्ट या सैकंड क्लास में करनी चाहिए. एसी कोच सुरक्षित तो रहते ही हैं, साथ ही, कपल्स को आपस में बातचीत करने का और आराम करने का मौका मिल जाता है.
  • कीमती गहने और ज्यादा नकदी साथ में नहीं रखना चाहिए. यह आ बैल मुझे मार वाली कहावत की तर्ज पर खतरे वाली बात है.
  • सारे आरक्षण पहले ही करा लेने चाहिए, टिकट बुक करा लेने चाहिए और बुकिंग की फोटोकौपी साथ रख लेनी चाहिए.
  • ट्रेन में एकदूसरे से बिलकुल चिपक कर बैठना शोभा नहीं देता, इस से सहयात्रियों को परेशानी होती है.
  • जहां जा रहे हैं वहां की यथासंभव जानकारियां इकट्ठी कर लेनी चाहिए.

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  • शौपिंग व अनापशनाप खर्च से बचना चाहिए. पार्टनर पर रोब डालना, उस पर पैसा उड़ाना महंगा पड़ जाता है.
  • पर्यटन स्थलों पर ज्यादा घूमने के चक्कर में खुद को थकाना नहीं चाहिए. दिन में 2-3 घंटे का आराम, रात में तरोताजा रखता है.
  • हनीमून के दौरान सेहत और खानपान का खास खयाल रखना चाहिए. मसालेदार खाना नुकसान कर सकता है, जिस से हनीमून का मजा बिगड़ता है.
  • अपने डाक्टर या कैमिस्ट से पूछ कर जरूरी दवाइयां साथ रखनी चाहिए.
  • होटल के कमरे को जांचने में हर्ज नहीं कि कहीं छिपे हुए कैमरे तो नहीं लगे हैं.
  • सामान का खास खयाल रखना चाहिए, जल्दबाजी से कई दफा छोटेमोटे आइटम्स होटल, टैक्सी या ट्रेन में ही छूट जाते हैं.

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बच्चों में डिप्रेशन समस्या से निपटना है जरुरी

15 साल की रिया स्कूल में जब भी जाती, क्लास में पीछे बैठकर हमेशा सोती रहती, उसका मन पढ़ाई में नहीं लगता था. वह किसी से न तो अधिक बात करती और न ही किसी को अपना दोस्त बनाती. अगर वह कभी सोती भी नहीं थी, तो किताबों के पन्ने उलटकर एकटक देखती रहती. क्या पढ़ाया जा रहा है, उससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. उसकी कंप्लेन हर बार उसके माता-पिता को जाती, पर इसका कोई असर उसपर नहीं पड़ता था. वह हमेशा उदास रहा करती थी. इसे देखकर कुछ बच्चे तो उसे चिढ़ाने भी लगते थे, पर वह उसपर अधिक ध्यान भी नहीं देती थी. परेशान होकर उसकी मां ने मनोवैज्ञानिक से सलाह ली. कई प्रकार की दवाई और थिरेपी लेने के बाद वह ठीक हो पायी.

दरअसल बच्चों में डिप्रेशन एक सामान्य बात है, पर इसका पता लगाना मुश्किल होता है अधिकतर माता-पिता इसे बच्चे का आलसीपन समझते हैं और वे उन्हें डांटते पीटते रहते हैं जिससे वे और अधिक एग्रेसिव होकर कभी घर छोड़कर चले जाते हैं या फिर आत्महत्या कर लेते हैं. बच्चों की समस्या न समझ पाने की खास वजहें दो है पहली तो हमारे समाज में मानसिक समस्याओं को अधिक महत्व नहीं दिया जाता और दूसरा अभी बच्चा छोटा है, बड़े होने पर समझदार हो जायेगा, ऐसा कहकर वे इस समस्या को गहराई से नहीं लेते. माता-पिता को लगता है कि ये समस्या सिर्फ वयस्कों को ही हो सकती है, बच्चों को नहीं.

इस बारें में जी लर्न की मनोवैज्ञानिक दीपा नारायण चक्रवर्ती कहती हैं कि आजकल के माता-पिता बच्चों की मानसिक क्षमता को बिना समझे ही बहुत अधिक अपेक्षा रखने लगते हैं. इससे उन्हें ये भार लगने लगता है और वे पढ़ाई से दूर भागने लगता है. अपनी समस्या को वे अपने माता-पिता से बताने से भी डरते हैं और उनका बचपन ऐसे ही डर-डरकर बीतने लगता है. जो धीरे-धीरे तनाव का रूप ले लेता है. माता-पिता को बच्चे में आये अचानक बदलाव को नोटिस करने की जरुरत है. कुछ प्रारंभिक लक्षण निम्न है.

  • अगर बच्चा आम दिनों से अधिक चिड़चिड़ा हो रहा है या बार-बार उसका मूड बदल रहा हो.
  • बात-बात में गुस्सा होना या बात-बात पर रोना.
  • अपने किसी हौबी या शौक को फौलो न करना.
  • खाने-पीने में कम शौक रखना.
  • सामान्य से अधिक समय तक सोना.
  • अलग-थलग रहने की कोशिश करना.
  • स्कूल जाने की इच्छा का न होना या स्कूल के किसी काम को न करना आदि.

इस बारें में आगे दीपा बताती हैं कि किसी भी माता–पिता को बच्चे को डिप्रेशन में भुगतते हुआ देखना आसान नहीं होता और वे इसे आसानी से मानने को भी तैयार नहीं होते हैं कि उनके बच्चे को डिप्रेशन है.

कुछ बातें निम्न है जिससे बच्चे को तनाव से निकाला जा सकता है.

  • हमेशा धीरज बनाये रखे, गुस्सा करने पर बच्चा भी रिवोल्ट करेगा और आप उसे कुछ समझा नहीं सकते.
  • बच्चे को कभी ये एहसास न दिलाये कि वह बीमार है, क्योंकि ये कोई बीमारी नहीं और इसका इलाज हो सकता है.
  • हिम्मत से काम लें, बच्चे को डिप्रेशन से निकलने में माता-पिता से अच्छा कोई नहीं हो सकता.
  • बच्चे से खुलकर बातचीत करें, तनावग्रस्त बच्चा अधिकतर कम बात करना चाहता है ऐसे में बात करने से उसके मनोभाव को समझना आसान होता है, उसके मन में कौन सी बात चल रही है उसका समाधान भी आप दे सकते हैं.
  • बच्चे को लोगों से मिलने–जुलने के लिए हमेशा प्रेरित करें.
  • बातचीत से अगर समस्या नहीं सुलझती है, तो इलाज करवाना जरुरी है, इसके लिए आप खुद उसे मनाएं और ध्यान रखे कि डाक्टर जो भी दवा दें, उसे वह समय पर लें, इससे वह डिप्रेशन से जल्दी निकलने में समर्थ हो जायेगा.

अभी बोर्ड के रिजल्ट का मौसम है ऐसे में माता-पिता बहुत अधिक बच्चे की रिजल्ट को लेकर परेशान रहते हैं. इस बारें में साइकोलोजिस्ट राशीदा कपाडिया कहती हैं कि इस समय बच्चों में तनाव और अधिक बढ़ जाता है, जब उनके बोर्ड की परीक्षा हो, ऐसे में हर माता-पिता अपने बच्चे से 90 प्रतिशत अंक की अपेक्षा लिए बैठे रहते हैं और कम नंबर आने पर वे मायूस होते हैं. ऐसे में बच्चा और भी घबरा जाता है. उसे एहसास होता है कि नंबर कम आने पर उसे कही एडमिशन नहीं मिलेगा. जबकि ऐसा नहीं है, हर बच्चे को अपनी क्षमता के अनुसार दाखिला मिल ही जाता है. कई ऐसे उदाहरण है जहां रिजल्ट देखे बिना ही बच्चे खराब परफोर्मेंस सोच आत्महत्या कर लेते है. इससे बचने के लिए माता-पिता को खास ध्यान रखने की जरुरत है,

  • अपने बच्चे की तुलना किसी से न करें.
  • उसने जो भी नंबर लाया है उसकी तारीफ करें और उसके चॉइस को आगे बढायें.
  • अपनी इच्छा बच्चे पर न थोपें.
  • उसकी खूबियां और खामियों को समझने की कोशिश करें, अगर किसी क्षेत्र में प्रतिभा नहीं है, तो उसे छोड़ उसके हुनर को निकालने की कोशिश करें.
  • ‘एप्टीट्युड टेस्ट’ करवा लें, इससे बच्चे की प्रतिभा का अंदाज लगाया जा सकता है,
  • उसके सेल्फ स्टीम को कभी कम न करें.
  • उसके मेहनत को बढ़ावा दें.
  • किसी भी समस्या के समाधान के लिए बच्चे से खुलकर बातचीत करें और उसके मनोभाव को समझे और उसके साथ चर्चा करें.
  • अपनी कम कहें, बच्चे की अधिक सुने, इससे बच्चा आपसे कुछ भी कहने से हिचकिचाएगा नहीं.
  • बच्चे को हैप्पी चाइल्ड बनायें, डिप्रेशन युक्त नहीं.

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संगीत मैंने स्वांतः सुखाय सीखा है : कंचन अवस्थी

कंचन अवस्थी ने लखनऊ में गायकी से करियर की शुरुआत की थी. उस वक्त तक कंचन अवस्थी ने कभी नहीं सोचा था कि वह एक दिन अभिनय को अपना करियर बनाएंगी. मगर संयोग व उन्हें संत गाड़गे आडीटोरियम, लखनऊ में एक दिन नाटक ‘‘यहूदी की बेटी’’ में राहिल की भूमिका निभाना पड़ा और फिर उनके अभिनय करियर की शुरुआत हो गयी. उन्होंने ‘पिया परदेशी’, ‘त्रिया चरित्र’, ‘उपर की मंजिल खाली’, जयशंकर प्रसाद के नाटक ‘बनारस का गुंडा’ के साथ साथ सलीम आरिफ के निर्देशन में पृथ्वी थिएटर पर ‘‘चंपा की चिट्ठी’’ सहित कई नाटकों में अभिनय किया.

लखनऊ से मुंबई पहुंचने की उनकी कहानी कम नाटकीय नहीं है. वह बताती हैं-‘‘धीरे धीरे अब अभिनय का चस्का लग गया. 2012 में लखनऊ महुआ टीवी के एक सीरियल में मुझे अभिनय करने का अवसर मिल गया. मैने एक सप्ताह तक शूटिंग की. फिर पता चला कि अब इसकी शूटिंग मुंबई में होगी. मेरे पापा ने तो मना कर दिया कि मुंबई नहीं जाना है. उस वक्त तक मैंने इंटर साइंस तक ही पढ़ाई पूरी की थी. लेकिन सीरियल की निर्माता ने कन्टीन्युटी की बात समझाकर पांच दिन के लिए मुझे मुंबई भेजने के लिए मेरे पापा को मना लिया. मैं मुंबई में अपनी चचेरी बहन के यहां रूकी थी. मुंबई 5 दिन शूटिंग करके वापस लखनऊ लौट गयी थी और वहां थिएटर करने लगी थी. 2013 में सलीम आरिफ नाटक ‘‘चंपा की चिट्ठी’’ लेकर लखनऊ गए, तो मैंने वहां इस नाटक में अभिनय किया. फिर इसी नाटक का मुंबई के पृथ्वी थिएटर में शो होना था, इसलिए मुंबई आयी. पृथ्वी थिएटर में ‘चंपा की चिट्ठी’ नाटक में अभिनय किया. काफी शोहरत मिली. इस नाटक के सिलसिले में मैं एक सप्ताह मुंबई में रूकी थी. उसी दौरान मुझे विक्रम भट्ट की फिल्म ‘‘अंकुर अरोड़ा मर्डर केस’ मिल गयी. इस फिल्म में मैंने के के मेनन के साथ डाक्टर हिया शाह का किरदार निभाया. मेरा किरदार पूरी फिल्म में है.’’

2015 से 2018 के बीच कुछ नहीं किया? इस सवाल पर कचंन अवस्थी कहती हैं- ‘‘ऐसा नही है. 2016 में मैंने शबाना आजमी के साथ सीरियल ‘‘अम्मा’’ में मुख्य भूमिका निभायी थी, जो कि जी टीवी पर आया था. जब हम सीरियल कर रहे होते हैं, तो उस वक्त फिल्म नहीं कर पाते हैं. इसके अलावा 2013 में फिल्म ‘अंकुर अरोड़ा मर्डर केस’ करने के बाद मैं लखनऊ वापस चली गई थी. 2015 में मैं मुंबई वापस आयी और गंभीरता से काम करना शुरु किया. 2015 में फिल्म‘ जय जवान जय किसान’ में ललिता देवी की बहन, 2016 में ‘चापेकर ब्रदर्स’ में बाल कृष्ण चापेकर की पत्नी, 2017 में ‘खुदीराम बोस’ में नानिबाल का किरदार निभाया. 2016 में ही ‘फ्राड सैंया’ में नमिता का किरदार निभाया था. यह फिल्म अब जुलाई 2018 में रिलीज होगी.’’

संगीत सीखते सीखते अभिनय में व्यस्त हो जाने के बाद संगीत को अलविदा कहने के सवाल पर वह कहती हैं-‘‘मैंने संगीत को कभी भी प्रोफेशन बनाने की बात नही सोची थी. आज भी नही सोचती हूं. संगीत मेरा शौक है. संगीत मैंने स्वांतः सुखाय सीखा है. आज भी सप्ताह में एक दिन मेरे गुरूजी मुझे संगीत सिखाने आते हैं. संगीत से मैं पैसा नही कमाना चाहती.’’

मशहूर रंगकर्मी सलीम आरिफ की चर्चा करते हुए कंचन अवस्थी कहती हैं- ‘‘सलीम आरिफ भी लखनऊ के रहने वाले हैं. और उनसे मेरी मुलाकात लखनऊ में ही हुई. लखनऊ में ‘भातखंडे नाटक अकादमी’ के 50 साल पूरे होने पर एक माह तक नाटक के शो हुए थे. उसी में सलीम आरिफ अपना शो लेकर आए थे. इसी में ‘यहूदी की लड़की’ का भी शो हुआ था. जिसे सलीम आरिफ ने देखा और मुझसे मिले. फिर उन्होंने मुझे ‘चंपा की चिट्ठी’ नाटक में अभिनय करने के लिए कहा.’’

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ये फुटवियर्स देंगे आपको गर्मियों में स्टाइलिश और कूल लुक

जब बात पैरों की देखभाल की हो, तो गर्मियों में भारी जूते नहीं पहनने चाहिए. इस मौसम में मुलायम चमड़े से बने फुटवियर पैरों के लिए सबसे अनुकूल होते हैं. इस तरह के फुटवियर को पहनने के बाद आपके पैरों से दुर्गंध आने और संक्रमण होने की संभावना बेहद कम रहती है. बाजारों में मुलायम चमड़े से बने फुटवियर्स की काफी वैराइटीज मौजूद हैं.

ट्रेंडी सैंडल

गर्मियों के मौसम में कैंडी कलर के डिजाइन काफी फैशन में रहते हैं. किसी भी तरह की पार्टी के लिए इस तरह के फुटवेयर बाजार में मौजूद हैं. गुलाबी, पीच, नारंगी के अलावा कई रंगो में मौजूद हैं. स्ट्रेप, रिबन स्ट्रेप, बीड्स, लटकन और रेशमी धागे के गुच्छे से सजे हुए सैंडल्स समर आउटफिट के साथ आपको एक कूल लुक देंगे.

प्रिंटेड फ्लैट्स

यदि आप हाई हील से ज्यादा फ्लैट्स पहनने में सहज महसूस करती हैं. तो आपको स्टाइल के साथ समझौता करने की जरूरत नहीं है. बाजार में फ्लैट, लेकिन स्टाइलिश फुटवियर मौजूद हैं. ये प्रिंटेड फ्लैट्स आपको गर्मी में स्टाइल के साथ कम्फर्ट लुक भी देती है. आपको आपकी ड्रेस के हिसाब से कई प्रिंट्स में मिल जाएंगे.

कलरफुल हील्स

यदि आपको हील पहनना काफी पसंद है, तो आपके लिए इस मौसम में कलरफुल हील्स मौजूद हैं, जिन्हें प्लेन टी-शर्ट और जींस के साथ कैरी कर सकते हैं. हरे, बैंगनी और पीले रंग के साथ मिक्स एंड मैच कलर में भी  हील्स मौजूद हैं.

हाई ग्लेडिएटर सैंडल

गर्मियों में शौर्ट, मिनी स्कर्ट को पहनना लड़कियां अधिक पसंद करती है. इन ड्रेस के साथ पैरों के ऊपरी हिस्से तक आने वाली हाई ग्लेडिएटर सैंडल भी इस मौसम के लिए काफी अच्छा और कूल लुक देगी. इस तरह के फुटवियर को कैजुअल मौकों पर पहना जा सकता है.

फ्लिप फ्लौप है बेस्ट

हल्के फ्लिप फ्लौप स्लीपर गर्मियों में पहनने के लिए सबसे बेहतर होते हैं. बाजार में काफी स्टाइलिश और वेलवेट कपड़े में भी फ्लिप फ्लौप मौजूद हैं, जो आराम के साथ स्टाइलिश भी होते हैं. पैरों में होने वाले दर्द से बचने के लिए अच्छे फ्लिप फ्लौप ही पहनें.

हाई ग्लेडिएटर सैंडल

गर्मियों में शौर्ट, मिनी स्कर्ट को पहनना लड़कियां अधिक पसंद करती है. इन ड्रेस के साथ पैरों के ऊपरी हिस्से तक आने वाली हाई ग्लेडिएटर सैंडल भी इस मौसम के लिए काफी अच्छा और कूल लुक देगी. इस तरह के फुटवियर को कैजुअल मौकों पर पहना जा सकता है.

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फ्रूटी एंड टेस्टी बाइट्स : नोंगु पाल

नोंगु पाल

सामग्री

• 500 एमएल दूध

• 8 टुकड़े नोंगु (आइस ऐप्पल)

• 5 ग्राम बादाम कटे

• 40 ग्राम चीनी

• 2 ग्राम इलायची

• थोड़ा सा केसर.

विधि

दूध को अच्छी तरह उबाल कर ठंडा होने के लिए फ्रिज में रखें. फिर उस में केसर डालें. अब आइस ऐप्पल के छिलके उतार कर पकी प्यूरी तैयार करें. जब दूध ठंडा हो जाए तो इस में आइस ऐप्पल की प्यूरी डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. अब बचे आइस ऐप्पल के टुकड़ों को खीर में डालें और फिर केसर व बादाम के टुकड़ों से सजा कर सर्व करें.

 – व्यंजन सहयोग : सेलिब्रिटी शैफ अजय चोपड़ा

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वैक्स पेपर को ऐसे करें यूज

घर को साफ-सुथरा और चमकदार बनाए रखने के लिए हमें कई चीजों की जरूरत होती है और वैक्स पेपर उन्हीं में से एक है. वैक्स पेपर का इस्तेमाल कई प्रकार से किया जा सकता है. पर क्या आपको इसे इस्तेमाल करने का सही तरीका पता है?

सबसे पहले तो ये जानना बहुत जरूरी है कि वैक्स पेपर का इस्तेमाल हम किन-किन चीजों को साफ करने के लिए कर सकते हैं. किचन में इसका इस्तेमाल खाने को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है. वहीं लोहे की चीजों को जंग से सुरक्षित रखने के लिए. इसके अलावा घर की तमाम चीजों को सुंदर और चमकदार बनाने के लिए भी आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.

1. धातु के बर्तनों को चमकदार बनाए रखने के लिए वैक्स पेपर का इस्तेमाल किया जाता है. तांबे के बर्तनों को वैक्स पेपर से रगड़ देने पर इनके खराब होने की आशंका कम हो जाती है.

2. किचन की कैबिनेट को साफ करने के लिए भी वैक्स पेपर का इस्तेमाल किया जाता है. इससे कैबिनेट जल्दी गंदे नहीं होते

3. अगर आपके पास तेल डालने के लिए फनल नहीं है तो आप वैक्स पेपर को फनल के शेप में मोड़कर प्रयोग में ला सकते हैं.

4. माइक्रोवेव में खाना गर्म करने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

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