क्या आप खाने पीने की शौकीन हैं, अगर जवाब हां है तो आज हम आपके लिये लाए हैं कुछ खास. जैसा की हर ग्रुप में कुछ लोग खाने पीने के शौकीन होते हैं. बात जब घूमने फिरने की हो तो उस दौरान अलग अलग जगहों के व्यंजनों का लुत्फ उठाने का भी मन करता है. अगर आप इन्हीं लोगों में से एक हैं तो आपके लिए ट्रिप का रोमांच और भी ज्यादा बढ़ जाता है. आप किसी फूड फेस्टिवल में शामिल होकर अपनी ट्रिप का मजा दुगुना कर सकती हैं. आइए, आज हम आपको बताते हैं दुनिया के मशहूर फूड फेस्टिवल के बारे में.
वाइल्ड फूड फेस्टिवल (न्यूजीलैंड)
यह फेस्टिवल न्यूजीलैंड के साउथ आइसलैंड के वेस्ट कोस्ट में मार्च के महीने में मनाया जाता है. इस फेस्टिवल में आपको खाने में ऐसी-ऐसी चीजें मिलेंगी, जिनके बारे में आप सपने में भी नहीं सोच सकती कि इन्हें पकाया जा सकता है.
द अनियन मार्केट (स्विट्जरलैंड)
स्विट्जरलैंड के कैपिटल कैलेंडर में द अनियन मार्केट को सबसे बड़े फोक फेस्टिबल के तौर पर जगह दी जाती है. औफिशली यह फेस्टिवल सुबह 6 बजे शुरू होता है. हालांकि, लोग इसे काफी पहले से इंजौय करना शुरू कर देते हैं.
सलान डे चौकलेट (क्विटो, इक्वाडोर)
इक्वाडोर में मनाया जाने वाला यह दुनिया का इकलौता चौकलेट फेस्टिवल नहीं है. हां, वन औफ द बेस्ट चौकलेट फेस्टिवल जरूर है. यह फेस्टिवल जून महीने में मनाया जाता है. चौकलेट स्कल्पचर कौम्पिटिशन इस फेस्टिवल का ऐसा पार्ट है, जिसे सबसे अधिक पसंद किया जाता है.
ब्लू फूड फेस्टिवल (टोबागो)
करीब 18 साल पहले टोबागो के कैरेबियन आइलैंड के ब्लडी बे के कोएस्टल गांव में इस फेस्टिवल को मनाने की शुरुआत हुई. इस फेस्टिवल में दशीन से बनाई गई डिशेज को खास तवज्जो दी जाती है. दशीन एक तरह का रूट प्लांट होता है. इस फेस्टिवल में लाइव म्यूजिक, डांसिंग और वाइन शौप्स होती हैं.
पिज्जा फेस्ट (नेपल्स, इटली)
यह फेस्ट हर पिज्जा लवर के लिए सपना सच होने जैसा होता है. इस फेस्टिवल में शिरकत करने आने वाले करीब 5 लाख विजिटर्स आते हैं. इटली के नेपल्स का लंगमार कैराचोलो एरिया इस फेस्ट के दौरान पिज्जा विलेज में तब्दील हो जाता है. फेस्ट में करीब 1 लाख पिज्जा कंज्यूम हो जाते हैं.
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सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान (सिप) के जरिए म्युचूअल फंड में निवेश करना एक लोकप्रिय विकल्प है. सिप के अंतर्गत हर महीने एक निश्चित राशि आपके खाते से कटती है और इस राशि की यूनिट आपको एलौट कर दी जाती हैं. लेकिन कई बार हर महीने चलने वाली प्रक्रिया खाते में पर्याप्त बैलेंस न हो पाने पर टूट जाती है.
ऐसा अक्सर सैलरी का लेट आना, कोई लगाया गया चेक क्लियर न होना, खाते में पर्याप्त बैलेंस न बचने की स्थिति में होता है. अगर आम निवेशकों के सामने सवाल यह होता है कि ऐसी स्थिति में क्या करें या किन बातों का ख्याल रखें. अपनी इस खबर में आपको इन्हीं के बारे में बता रहे हैं.
बैंक के शुल्क
कई बार नए निवेशक इस बात से परिचित नहीं होते कि अग बैंक खाते में पर्याप्त बैलेंस नहीं है तो बैंक आप पर जुर्माना लगाता है. यह शुल्क हर बैंक के अलग अलग होते हैं. इसलिए कोशिश करें कि सिप, चेक या कोई भी किश्त जो आपके खाते से कटती हो उसका भुगतान नियमित रूप से ध्यानपूर्वक करें.
एसएमएस और ई-मेल एलर्ट
फंड हाउसेज या ब्रोकर्स आपको सूचना देने के लिए एसएमएस या ई-मेल या दोनों भेजते हैं. यह मैसेज एसआईपी के बैंक खाते में से कटने के दो दिन पहले भेजा जाता है. इससें एसआईपी निवेशक सतर्क होकर अपने बैंक खाते में पर्याप्त राशि रखें. अगर आपने अपने फंड हाउसेज के पास अपनी जानकारी अपडेट नहीं की हुई को जल्द करा लें.
स्टैंडिंग इंस्ट्रक्शन्स
अधिकांश निवेशक अपनी सैलरी बैंक एकाउंट और निवेश के लिए अलग अलग बैंक एकाउंट रखते हैं. बार बार नौकरी बदलते रहने से उनके कई सैलरी खाते बन जाते हैं. निवेश के लिए अलग बैंक खाता रखना मददगार होता है. हालांकि, इसका यह भी मतलब होता है कि निवेश के लिए रखे बैंक खाते में नियमित रुप से राशि डालते रहें. इसे सुनिश्चित करने के लिए स्टैंडिंग इंस्ट्रक्शन्स का इस्तेमाल करना चाहिए. अगर आप सैलरी खाते से निवेश खाते में पैसे ट्रांस्फर करना भूल भी जाते हैं तो स्टैंडिंग इंस्ट्रक्शन्स आपको एसआईपी की ड्यू डेट से पहले निवेश खाते में पर्याप्त राशि रखने में मदद करता है.
औनलाइन माध्यम का करें इस्तेमाल
अगर सारी सावधानियों के बाद भी किसी वजह से सिप बाउंस हुई है तो इसकी जानकारी अपने बैंक और फंड हाउस को जरूर दें. साथ ही सिप की राशि को जमा करके इसको नियमित रूप से फिर से शुरू करें. एक बार पेमेंट टूट जाने पर इसको बंद करने की गलती न करें.
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दो साल पहले डायरेक्टर आशुतोष गोवारिकर इतिहास पर आधारित फिल्म ‘मोहनजोदारो’ लेकर आए, जो बौक्स औफिस पर काफी ठंडी साबित हुई. लेकिन अपनी पिछली पीरियड फिल्म के ठंडे बिजनेस के बाद गोवारिकर एक बार फिर पीरियड फिल्म पर ही अपना दाव लगा रहे हैं. जी हां, आशुतोष इस बार इतिहास के पन्नो में प्रसिद्ध रही पानीपत की लड़ाई पर फिल्म का रहे हैं. ‘पानीपत’ नाम से बन रही इस फिल्म का पहला लुक कुछ देर पहले ही रिलीज गया किया गया है.
‘लगान’, ‘जोधा अकबर’ और ‘स्वदेश’ जैसी फिल्में बना चुके आशुतोष पानीपत के तीसरे युद्ध पर आधारित फिल्म ‘पानीपत’ बनाने जा रहे हैं. इसमें संजय दत्त, अर्जुन कपूर और कृति सेनन नजर आने वाले हैं. स्क्रीन पर यह तीनों ही किरदार पहली बार साथ नजर आएंगे. आशुतोष ने यह पोस्टर रिलीज करते हुए लिखा, ‘इतिहास की कहानियां मुझे हमेशा से आकर्षित करती हैं. इस बार यह कहानी पानीपत के तीसरे युद्ध के बारे में है. अर्जुन और कृति ने भी इस पीरियड फिल्म से जुड़ने पर अपनी खुशी जाहिर की है.
‘बाहुबली 2’ और ‘पद्मावत’ जैसी पीरियड फिल्मों के सुपरहिट होने पर यह साफ है कि दर्शकों का पीरियड ड्रामा में खासा रुझान है. इस युद्ध फिल्म में जबरदस्त ऐक्शन की उम्मीद की जा सकती है. यह फिल्म 6 दिसंबर 2019 को सिनेमाघरों में रिलीज होगी. बता दें कि यह अर्जुन कपूर की पहली पीरियड फिल्म होगी. अर्जुन इस फिल्म में एक मराठा योद्धा की भूमिका निभाएंगे और उन्होंने अपने किरदार पर अपनी खुशी जाहिर की है.
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टीवी इंडस्ट्री तेजी से आगे बढ़ रही है. सेटेलाइट चैनलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. टीवी सीरियलों के निर्माण में काफी धन खर्च हो रहा है. तो दूसरी तरफ उतनी ही तेजी से सीरियल में अभिनय करने के बाद कलाकारों को उनकी पारिश्रमिक राशि न मिलने की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही हैं.
कुछ दिन पहले अपने पति नीरज खेमका के साथ किसिंग वाली तस्वीर के लिए चर्चा में आयी टीवी अभिनेत्री दृष्टि धामी ने अब पारिश्रमिक राशि न मिलने की शिकायत ‘सिंटा’ में की है.
दृष्टि धामी ने ‘‘कलर्स’’ चैनल पर 28 मई 2012 से 9 अगस्त 2014 तक प्रसारित हो चुके निर्माता अभिनव शुक्ला के सीरियल ‘‘मधुबालाः एक इश्क एक जुनून’’ में अभिनय किया था. इस सीरियल में अभिनय करने के एवज में दृष्टि धामी को निर्माता ने अब तक 36 लाख रूपए की पारिश्रमिक राशि नहीं चुकायी. दृष्टि धामी पिछले तीन वर्षों से लगातार निर्माता के संपर्क में थी और उनसे अपनी पारिश्रमिक राशि चुकाने का निवेदन करती रहीं, मगर निर्माता ने एक भी पैसा नहीं दिया. अब हार कर दृष्टि धामी ने ‘टीवी एंड फिल्म आर्टिस्ट एसोसिएशन’ यानी कि ‘सिंटा’ में निर्माता के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी है. ‘सिंटा’ से जुडे़ सूत्र दावा कर रहे हैं कि ‘सिंटा’ने दृष्टि धामी की बकाया पारिश्रमिक राशि दिलाने के लिए आवश्यक कारवाही शुरू कर दी है.
उधर निर्माता अभिनव शुक्ला का दावा है कि उन्हें सीरियल ‘‘मधुबालाः एक इश्क एक जुनून’’ में काफी आर्थिक नुकसान हुआ. वह चैनलों के संपर्क में हैम, जिससे वह दूसरा सीरियल बनाएं और कमाकर दृष्टि धामी की बकाया राशि चुका सके. जबकि सूत्र दावा कर रहे है कि अभिनव शुक्ला की टीवी इंडस्ट्री में बहुत गलत ईमेज बन चुकी है. सिर्फ दृष्टि धामी ही नहीं वह कईयों के पैसे डकार चुके हैं. इसलिए अब सारे चैनल उनसे दूरी बनाकर रखना चाहते हैं. ऐसे में देखना होगा कि ‘सिंटा’ का प्रयास कितना सफल होता है.
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ग्लोबलाइजेशन के इस युग में किताबें हम से दूर होती जा रही हैं. पहले ऐसा नहीं था. पुस्तकें हमारी संगीसाथी हुआ करती थीं और यह कहावत सिद्ध करती थी कि बेहतर जिंदगी का रास्ता किताबों से हो कर गुजरता है. यदि आप नियमित रूप से नहीं पढ़ते हैं तो हर दिन एक किताब के कुछ पन्नों को पढ़ना शुरू करें या फिर समाचार देखने के बजाय अखबार, पत्रिकाएं पढ़ें. जल्दी ही आप को एहसास हो जाएगा कि फिल्में देखने के बजाय किताबें पढ़ना क्यों अच्छा है.
मस्तिष्क की कसरत
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का पुस्तकों के बारे में कहना था कि जो पुस्तकें सब से अधिक सोचने को मजबूर करें वही उत्तम पुस्तकें हैं. पढ़ने की आदत से इंसान का दिमाग सतत विचारशील रहता है. इस से उस के सोचनेसमझने का दायरा व्यापक होता है. पुस्तक पढ़ने वाला व्यक्ति अकसर कोई गलत निर्णय नहीं लेता क्योंकि हर महत्त्वपूर्ण बात के अच्छे व बुरे पक्ष पर गहराई से विचार करना उस की आदत बन जाती है. उस का विवेक सदा क्रियाशील रहता है और विवेकवान व्यक्ति ही जीवन में सफल होते हैं. रूस में एक कहावत है कि जहां सौ प्रतिशत बुद्धि लगती हो वहां एक प्रतिशत कौमन सैंस से भी काम चल जाता है. यह कौमन सैंस सिर्फ पुस्तकें ही विकसित कर सकती हैं. टीवी देखने में काफी समय खर्च हो जाता है और बदले में ज्ञान के नाम पर कुछ खास प्राप्ति नहीं होती.
बढ़ती है एकाग्रता
पुस्तकें पढ़ते वक्त पाठक अकेला होता है और पढ़ने में पूरी तरह खोया रहता है. यही क्रिया एकाग्रता को बढ़ाती है. किसी भी काम में सफलता प्राप्त करने के लिए सब से ज्यादा जरूरी उस काम के प्रति एकाग्रता का अधिकतम होना अनिवार्य है. यदि मन इधरउधर भटका तो जैसी चाहते हैं वैसी सफलता नहीं मिल पाती.
मन की चंचलता पर कोई रोक नहीं लगा सकता लेकिन यह भी तथ्य है कि पुस्तकें पढ़ने से मन के इस चंचलपन पर कुछ हद तक रोक लगाई जा सकती है.
तेज होती है याददाश्त
याददाश्त का हमारे जीवन में निर्णायक महत्त्व है. हम इसी के बूते परीक्षा में पास होने से ले कर पूरे जीवन में पास होते हैं. सालों से याददाश्त बढ़ाने के विभिन्न नुस्खे बताए जाते रहे हैं. याददाश्त बढ़ाने के लिए कई दवाएं भी बाजार में उपलब्ध हैं, लेकिन इन सब से कारगर तरीका सिर्फ पुस्तकें पढ़ना है, जो नियमित हो. हम जब नियमित रूप से पढ़ते हैं तो हमारा दिलोदिमाग भी पूरा सक्रिय रहता है जिस से कोई बात भूलने की प्रवृत्ति कम होती जाती है. दिमाग जब हरदम सोचता रहता है तो उसे हर बात आसानी से याद आती जाती है. यदि पुस्तकें न पढ़ें, दिमाग सतत क्रियाशील न रहे, तो याददाश्त भी कुंद होने लगती है. परिणामस्वरूप हम छोटीछोटी बात भूलने लगते हैं, जिस से जीवन की कई उपलब्धियों से वंचित रह जाते हैं.
जवां रहता है दिमाग
इंगलैंड के एक विश्वविद्यालय के एक शोध के अनुसार, जो लोग पढ़ने तथा रचनात्मक गतिविधियों से जुड़े रहते हैं वे हरदम कुछ नया सोचते रहते हैं या करते रहते हैं. उन का दिमाग ऐसा न करने वाले लोगों की तुलना में 32 प्रतिशत तक अधिक युवा बना रहता है. लगातार पढ़ने की आदत से वे हमेशा अपडेटेड रहते हैं, चाहे मामला फैशन का ही क्यों न हो. वे हमेशा अव्वल रहते हैं. नईनई टैक्नोलौजी के इस्तेमाल में भी वे खासे उत्साह से भरे रहते हैं.
दूर होता है तनाव
इंगलैंड में हुए एक शोध के अनुसार, किताबें पढ़ने से तनाव के हार्मोंस यानी कार्टिसोल कम हो जाते हैं. तनाव के दौरान तरहतरह की निरर्थक बातें दिमाग में आती हैं. ऐसे में मन का शांत रहना लगभग असंभव हो जाता है. दिमाग में आने वाली निरर्थक बातों पर लगाम कसने का काम किताबें करती हैं.
तनावग्रस्त व्यक्ति जीवन में अकसर गलत निर्णय लेता है, फिर पछताता है. ऐसे व्यक्ति को यदि सफल होना है तो उसे किताबें पढ़ने की आदत डालनी चाहिए जो उसे सही रास्ता दिखा सकती हैं. हम वर्तमान में प्रतियोगिता के युग में जी रहे हैं. हमारे बच्चों में कैरियर बनाने की प्रतियोगिता को ले कर काफी दिमागी उथलपुथल मची रहती है. यदि हम अपने बच्चों को उन की समस्याओं से संबंधित पुस्तकें पढ़ने के लिए कहें तो बेहतर नतीजों की पूरी संभावना रहती है.
नींद गहरी आती है
रात में सोने से पहले यदि थोड़ी देर पढ़ने की आदत डाली जाए तो नींद गहरी आती है. देररात तक टीवी देखते रहने या मोबाइल चलाने से तो नींद या तो देर से आती है या बीचबीच में उचटती है. यह सर्वज्ञान है कि उत्तम स्वास्थ्य के लिए गहरी नींद आना अति आवश्यक है. यदि आप स्वस्थ रहना चाहते हैं और जीवन का लुत्फ उठाना चाहते हैं तो गहरी नींद लेने की आदत डालें ताकि सुबह खुशनुमा हो. याद रखें यदि आप अच्छी किताबें पढ़ कर सोने की आदत डालेंगे तो आप भी कहेंगे कि वाह, क्या दिन निकला है.
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फैशन के इस दौर में कौन महिला नहीं चाहती कि वह सुन्दर व आकर्षक दिखे, लोग उसकी तारिफ करे, वो भी फैशनेबल ड्रेस पहने और हर कोई उसकी अदाओं का कायल हो जाए. आपकी भी तो चाहत होगी ना कि आप भी दीपिका और अनुष्का की तरह खूबसूरत ड्रेस पहनें. पर इन सब के बीच जो एक समस्या आ जाती हैं वो है अनचाहे बालों की समस्या. अनचाहे बालों के साथ कोई भी समझौता नहीं किया जा सकता. आजकल हर कोई इससे छुटकारा पाना चाहता है और अगर शादी या पार्टी में जाना है फिर तो इस समस्या से छुटकारा पाना और भी जरूरी हो जाता है. हम इसे हटवाने व इससे छुटकारा पाने के लिए ब्यूटी पार्लर का दरवाजा खटखटाते हैं और महंगे प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करते हैं.
अगर हम कहें कि अब आपको अनचाहे बालों से छुटकारा पाने के लिए पार्लर जानें और ज्यादा खर्चा उठाने की जरूरत नहीं है तो, जी हां, ये सही है आप घर पर ही कुछ ऐसा बना सकती हैं जिससे आप अपनी बौडी से किसी भी जगह के बाल आसानी से हटा सकती हैं और वो भी बेहद कम कीमत में तो… हैरानी रह गई ना. हां हम सही कह रहे हैं, मान लीजिए हमारी बात और यकीन न हो तो ये खबर पढ़िए जो खास हम आपके लिए ही लेकर आए हैं.
आप घर में मौजूद एक आसान उपाय से आप आसानी से बौडी के सारे अनचाहे बाल हटा सकती हैं. ऐसा करने के लिए आपको चाहिए बिना जेल वाला प्लेन टूथपेस्ट. जी हां, सिर्फ एक पेस्ट जिससे हम दांत साफ करते हैं. प्लेन टूथपेस्ट का प्रयोग बालों को हटाने के लिए भी किया जा सकता है. आइए जानते हैं कैसे.
सबसे पहले टूथपेस्ट और बेकिंग सोडा को एक साथ एक बाउल में अच्छे से मिला लें. ऐसा करते समय इस पेस्ट में थोड़ा सा गुनगुना पानी भी डालें. एक बार फिर इस मिश्रण को अच्छे से मिला लें जब तक यह ढंग से मिक्स न हो जाए. अब इस पेस्ट को अपने उस जगह लगाएं जहां से आप अनचाहे बाल हटाना चाहती हैं.
करीब 15 मिनट बाद इस पेस्ट के सूखने पर अपने हाथ-पैरों को धो लें. ऐसा करने से आपके उस हिस्से पर बाल आना बंद हो जाएंगे. इतना ही नहीं वहां कि त्वचा कोमल और खूबसूरत भी दिखने लगेगी.
नोट- इस उपाय को करने से पहले अपने हाथों पर एक पेच टेस्ट जरूर करके देख लें.
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पढ़ाई के नाम पर कमाई की दुकान का दूसरा नाम बन चुके प्राइवेट स्कूलों को न तो बच्चों की पढ़ाई की चिंता है न उन की सुरक्षा की, उन्हें चिंता है तो बस अपने हित साधने की. क्लासरूम में बच्चों के लिए भले ही सहूलियतें न हों पर वे फीस समय पर वसूलते हैं. आनेजाने की नियमित सुविधा दें या न दें पर बस का किराया पूरा व समय पर लेते हैं.
शिक्षा के नाम पर किताबकौपियां, बस किराया, वरदी, जूते आदि से ले कर बिल्ंिडग फंड के नाम पर भी अभिभावकों से लाखों वसूले जाते हैं.
दिल्ली के एक निजी स्कूल को उदाहरणस्वरूप लेते हैं, जिस में 11वीं कक्षा की 3 महीने की फीस का लेखाजोखा कुछ इस तरह है :
ट्यूशन फीस के नाम पर पेरैंट्स पर दोहरी मार पड़ती है क्योंकि वे स्कूल में भी ट्यूशन फीस देते हैं और बाहर कोचिंग की भी. हर 3 महीने में डैवलपमैंट फीस लेने का क्या औचित्य है? फीस में ऐक्टिविटी चार्जेज तो जोड़ दिए जाते हैं लेकिन अधिकांश स्कूलों में अलग से भी इस की वसूली की जाती है.
स्कूल हर साल बिना किसी रोक के फीस बढ़ा देते हैं, भले ही अभिभावक लाखों धरनाप्रदर्शन करें. सरकार कैसे भी कड़े नियम बनाए, इन की दुकानदारी न तो रुकती है और न ही इन पर कोई बंदिश लगती है. फीस बढ़ाने का कोई न कोई बहाना स्कूल ढूंढ़ ही लेते हैं.
हाल में निजी स्कूलों ने 7वें वेतन आयोग को लागू करने के नाम पर फीस में भारी वृद्धि की है. उन का कहना है कि स्कूली खर्च व 7वें वेतन आयोग के एरियर को देने के लिए फीस वृद्धि जरूरी है. 7वें वेतन आयोग के अनुसार शिक्षकों का वेतन बढ़ाया गया है पर इस की असल मार तो अभिभावक ही सह रहे हैं. जो शिक्षक कम वेतन पर काम करने को तैयार थे और उसी लायक थे, उन्हें वेतन में भारी वृद्धि, बिना कुछ किए मिल गई.
लूट का खेल
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि निजी स्कूल सेवा देने के बजाय लूट रहे हैं. सच ही है कि कभी फीस के नाम पर तो कभी ऐडमिशन के लिए लाखों के डोनेशंस लिए जाते हैं. पिछले साल ईस्ट दिल्ली के एक निजी स्कूल में अपने बच्चे का दाखिला करवाने के लिए एक मां को काफी परेशान होना पड़ा.
असल में पूरा माजरा यह था कि उस का अपने पति से किसी बात को ले कर विवाद चल रहा था जिस कारण वह अपने मायके में रह रही थी. वहां रह कर जब वह अपने बच्चे का ऐडमिशन करवाने एक निजी स्कूल में गई तो उस से मातापिता दोनों की उपस्थिति को जरूरी बताया गया. जब उस ने स्कूल प्रशासन को वास्तविक स्थिति से अवगत कराया तो स्कूल ने उस के बच्चे को ऐडमिशन देने से मना कर दिया.
बच्चे की मां रिक्वैस्ट करने लगी तो प्रिंसिपल ने साफ शब्दों में कहा, ‘‘हम आप के बच्चे को ऐडमिशन सिर्फ एक ही शर्त पर देंगे जब आप हमें डोनेशन देंगी.’’ उस बेचारी मां, जिस की कोई गलती भी नहीं थी, को अपने बच्चे के ऐडमिशन की खातिर लाखों रुपए देने पड़े.
यही नहीं, जो काम सस्ती किताबों से चल सकता है उस की आड़ में भी कमीशन कमाने के चक्कर में पेरैंट्स पर जबरदस्ती स्कूल से ही किताबकौपियां, यूनीफौर्म तक खरीदने का दबाव डाला जाता है. छोटे बच्चों की जो किताबें बाहर से 2,000-2,500 रुपए में आसानी से मिल जाती हैं उन्हें स्कूल वाले पब्लिशर्स से सांठगांठ कर महंगे दामों पर बेच कर अपनी जेबें भरते हैं.
आज शिक्षक कक्षा में जाते जरूर हैं लेकिन वे सीमित पाठ्यक्रम पढ़ाने में ही विश्वास रखते हैं वरना उन का निजी ट्यूशन पढ़ाने वाला बिजनैस पिट जाएगा. शिक्षक बच्चों को अच्छे मार्क्स दिलाने का भरोसा दिलवा कर उन्हें बाहर ट्यूशन पढ़ने पर मजबूर करते हैं. 7वें वेतन आयोग में बढ़ी पगार के साथ ट्यूशन की दरें भी बढ़ा दी गई हैं.
स्कूल में पढ़ाने में ज्यादा मेहनत न करने के बावजूद टीचरों को पूरी पगार मिल रही होती है, वहीं ट्यूशन का बिजनैस भी जोरों से चल रहा होता है.
असुरक्षा का बोलबाला
स्कूल को बच्चों का दूसरा घर कहा जाता है. पेरैंट्स अपने बच्चों के लिए ऐसे स्कूलों का चयन करते हैं जो उन के बच्चों को ऐडवांस स्टडीज देने के साथसाथ उन की सुरक्षा की भी पूरी गारंटी दें.
यह कहना गलत नहीं होगा कि ऐडमिशन देने के वक्त सुरक्षा के लाख दावे किए जाते हैं, लेकिन एक बार ऐडमिशन होने के बाद ऐसे सारे दावे खोखले साबित होते हैं. आएदिन स्कूल बस ड्राइवर की गलती से कोई न कोई बच्चा ऐक्सिडैंट और शिक्षकों की हवस का शिकार होता है.
इन सब के बावजूद उन के खिलाफ कोई खास कार्यवाही नहीं होती. हाल ही में दिल्ली के निकट गुरुग्राम के एक स्कूल में दूसरी शिक्षा में पढ़ने वाले छात्र की स्कूल के वाशरूम से बौडी मिली. इस हादसे के बाद पेरैंट्स के मन में एक डर बना रहता है जब तक कि उन का बच्चा स्कूल से सहीसलामत घर वापस नहीं लौट आता.
सरकारी बनाम निजी स्कूल
हर जगह निजी स्कूलों का ही शोर है. यहां तक कि पेरैंट्स भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ाना चाहते हैं. क्योंकि एक तो यह स्टेटस सिंबल बन चुका है और दूसरा उन्हें लगता है कि उन का बच्चा प्राइवेट स्कूल में ही अच्छी पढ़ाई कर पाएगा. माना तो यह भी जाता है कि निजी स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचर्स ज्यादा क्वालीफाइड होते हैं.
हालांकि, यह सोच गलत है. सरकारी स्कूलों के टीचर्स ज्यादा क्वालीफाइड होते हैं क्योंकि वे कई परीक्षाएं पास कर नौकरी हासिल करते हैं, जबकि निजी स्कूलों में कम सैलरी लेने वाले शिक्षक को प्रमुखता दे कर रखा जाता है.
हमारे देश में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता. पेरैंट्स भी अपने बच्चों को ऐसे बच्चों से बात करने से मना करते हैं. ‘हिंदी मीडियम’ फिल्म में भी यही दर्शाया गया.
विदेशों की तरह भारत में भी समान शिक्षा के अधिकार कानून पर सख्ती से पालन किया जाना चाहिए ताकि सब को सामान शिक्षा मिले और निजी स्कूलों का लूट का गोरखधंधा रुक सके.
सरकारी स्कूलों के प्रति बेरुखी का एक कारण यह भी है कि इन में हर जाति, धर्म, वर्ग व गरीब के घरों से बच्चे आ रहे हैं और ऊंची जातियों के मातापिता नहीं चाहते कि उन के बच्चे नीची जातियों के घरों के बच्चों के साथ पढ़ें चाहे उन का घरेलू आर्थिक स्तर कैसा भी क्यों न हो.
आप को बता दें कि इन सब के लिए कहीं न कहीं अभिभावक भी जिम्मेदार हैं क्योंकि वे फुली स्मार्ट क्लासेज, स्कूल की शानदार बिल्ंिडग को देख कर अपने बच्चों का ऐडमिशन ऐसे स्कूलों में करवा देते हैं. ऐसा वे अपने स्टेटस के लिए करते हैं. भले ही उस स्कूल की फैकल्टी अच्छी हो या न हो. अगर अभिभावक इस चकाचौंध से बाहर निकलें तो निजी स्कूलों की मनमानी बहुत जल्द रुक जाएगी और पेरैंट्स खुद को लुटने से बचा पाएंगे.
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आजकल लगभग हर न्यूज चैनल ऐसी कितनी ही कहानियां और गुफा के आभासी वीडियो दिखा कर लोगों को भ्रमित कर रहा है.
सवाल उठता है कि खोजी मीडिया चैनल्स इतने सालों से कहां थे? न तो बाबा नए हैं, न ही गुफाएं रातोंरात बन गई हैं. फिर यह कैसी दबंग पत्रकारिता है जो अब तक सो रही थी. अब बाबाओं के जेल जाते ही यह मुखरित होने लगी है.
इन स्वार्थी और अवसरवादी चैनलों पर भी जानबूझ कर जुर्म छिपाने का आरोप लगना चाहिए, क्योंकि ये दावा करते हैं कि–देशदुनिया की खबर सब से पहले, आप को रखे सब से आगे… वगैरहवगैरह.
किसी भी बाबा का मामला उजागर होते ही सारा इलैक्ट्रौनिक मीडिया एक सुर में अलापना शुरू कर देता है कि लोग इतने अंधविश्वासी कैसे हो गए?
चैनल्स राशिफल, बाबाओं के प्रवचन, तथाकथित राधे मां या कृष्णबिहारी का रंगारंग शो, प्यासी चुडै़ल, नागिन का बदला, कंचना, स्वर्गनरक, शनिदेव जैसे तमाम अंधविश्वासों पर आधारित कार्यक्रम दिनरात चला कर लोगों के दिमाग में कूड़ा भरते हैं और बेशर्म बन कर टीवी पर चोटी कटवा जैसे मुद्दे पर डिबेट करवाते हैं. फिर पूछते हैं कि लोग अंधविश्वासी कैसे बन गए.
अगर सच में आप जनता को सचाई दिखाना चाहते हैं तो अपने जमीर को जिंदा कर दिखाएं. गरीबी से जूझ रहे लोगों, बढ़ती बेरोजगारी, रोजाना बढ़ रही महंगाई, अस्पतालों की अवस्था, डाकू बने डाक्टरों, जगहजगह पड़े कचरे के ढेरों, भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारी तंत्रों की जमीनी हकीकत और निष्पक्ष जांच न्याय प्रणालियों को दिखाओ. तब जा कर नए भारत का सपना कुछ हद तक सही हो सकता है.
पिछले दिनों एक दैनिक अखबार के मुखपृष्ठ पर एक विज्ञापन छपा था. अखबार के एक ही एडिशन में उस के छपने की कीमत कम से कम डेढ़दो लाख रुपए तो होगी ही. ऐसे न जाने कितने एडिशनों में यह विज्ञापन छपा था.
समझ में यह नहीं आता कि इतने महान बाबाओं के समागमों और प्रवचनों के बावजूद देश में असमानता, हिंसक वारदातें, अपराध लगातार बढ़ते जा रहे हैं. यही न कि धर्म के नाम पर लोगों को उल्लू बनाते रहो और अपनी दुकान चलाते रहो.
विज्ञापन में यह दावा भी किया गया कि इस कथित ब्रह्मांडरत्न को साक्षात श्रीहरि ने देवराज इंद्र को प्रदान किया था.
कहते हैं कि जिस देश की प्रजा जैसी होती है, उसे वैसा ही राजा मिल जाता है. इस में कमी हम भारतीयों की भी नहीं है. किसी गरीब को 10 रुपए मेहनत के देने हों तो उसे पाठ पढ़ा देंगे, लेकिन मंदिरमसजिदों में, बाबाजी के समागमों में हजारों खर्च कर देंगे.
मीडिया भी है जिम्मेदार
आध्यात्मिक या धार्मिक पोंगापंथ फैलाने वाले चैनल्स व समाचारपत्र बाबाओं की एक ऐसी फौज खड़ी कर रहे हैं जो देश में धर्म के नाम पर लूटखसोट मचा रही है. लगातार बढ़ रही इन की फेहरिस्त और इन पर हर रोज चलने वाले बाबाओं के प्रवचनों में आध्यात्म के नाम पर लोगों को उल्लू बनाया जा रहा है.
धर्मभीरू जनता का जितना शोषण धार्मिकता का लबादा ओढ़े इन बाबाओं ने किया है, उस में चैनलों और समाचारपत्रों का भी बराबर या उस से भी ज्यादा हाथ है. चैनल अपने फायदे को कैश करने के लिए बाबाओं को बराबर पब्लिसिटी और एंकर तक मुहैया करवा कर उन का तथाकथित धार्मिक सामान बेचने का औफर दे रहे हैं.
पाखंडी बाबा किसी भी तरह से अपनी जेबें भरने में जुटे हुए हैं. इन की प्रौपर्टी और बैंकबैलेंस का मुकाबला कुबेरपति भी नहीं कर सकते. भक्तों के बीच ये ऐसे महात्मा हैं जिन का माहात्म्य विवादों में उलझ कर रह गया है. ये मोहमाया छोड़ने का आह्वान करते हैं जबकि वे खुद गले तक मोह और माया में जकड़े हुए हैं.
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अंडे का इस्तेमाल न केवल सेहत बनाने के लिए किया जाता है बल्कि ये रूप निखारने के भी काम आता है. अंडा का सफेद हिस्सा हो या फिर उसकी जर्दी, दोनों ही सेहत और सुंदरता के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है. पर क्या आपने कभी अंडे के छिलके से रूप निखारने की बात सुनी है? कम ही लोगों को पता होगा कि अंडे के छिलके का इस्तेमाल त्वचा से जुड़ी कई समस्याओं को दूर करने के लिए किया जा सकता है.
विशेषज्ञों की मानें तो अंडे के छिलके से त्वचा से जुड़ी कई तरह की परेशानियों से छुटकारा पाया जा सकता है. इसके साथ ही अंडे के छिलके के सही इस्तेमाल से त्वचा साफ होती है और नेचुरल ग्लो आता है.
अब सवाल ये उठता है कि अंडे के छिलकों का इस्तेमाल किया किस तरह जाए? अंडे के छिलके का इस्तेमाल करने से पहले उसे अच्छी तरह सुखा लेना बहुत जरूरी है. अंडे को फोड़ने के बाद छिलके को धूप में सुखा लें. उसके बाद इसे पीसकर पाउडर बना लें. आप चाहें तो इस पाउडर में कई दूसरे पोषक तत्व भी मिला सकती हैं और उसके बाद इस्तेमाल में ला सकती हैं.
अंडे के छिलके को इस्तेमाल में लाने के कई तरीके हो सकते हैं. जैसे, अगर आपको साफ-सुथरी और दाग-धब्बों से रहित त्वचा चाहिए तो अंडे के छिलके के पाउडर में सिरका मिलाकर पेस्ट बना लीजिए. इस पेस्ट से चेहरे पर हल्के हाथों से मसाज कीजिए. इस उपाय से कुछ ही दिनों में आपको गोरी-निखरी त्वचा नजर आने लगेगी.
किस तरह करें इस्तेमाल?
1. अंडे के छिलके से बने पाउडर में नींबू का रस या फिर सिरका मिलाकर लगाने से त्वचा पर मौजूद दाग-धब्बे तो साफ हो ही जाते हैं साथ ही संक्रमण का खतरा भी कम हो जाता है. अगर आपको किसी तरह का स्किन इंफेक्शन है तो भी ये उपाय बहुत फायदेमंद रहेगा.
2. अंडे के छिलके में दो चम्मच शहद मिलाकर लगाएं. इस उपाय से जहां चेहरे पर चमक आएगी वहीं उसकी नमी भी बनी रहेगी. पाउडर और शहद को मिलाकर एक गाढ़ा पेस्ट तैयार कर लें और उसे प्रभावित जगह पर लगाएं. एक सप्ताह के भीतर आपकी त्वचा में फर्क नजर आने लगेगा.
3. अंडे के छिलके से बने पाउडर में थोड़ी सी मात्रा में चीनी पाउडर मिला लें. इसमें अंडे के सफेद हिस्से को डालकर अच्छी तरह फेंट लें. इस मास्क को सप्ताह में एकबार लगाए. कुछ बार के इस्तेमाल से ही आपको फर्क नजर आने लगेगा.
4. आप ब्रश तो हर रोज करते होंगे लेकिन क्या उसके बावजूद आपके दांत पीले हैं? अगर आपके दांत पीले हैं तो इस पाउडर से दांतों पर नियमित मसाज करें. इससे दांत नेचुरल तरीके से सफेद हो जाएंगे.
5. आप चाहें तो इस पाउडर में एलोवेरा जेल मिलाकर भी चेहरे पर लगा सकते हैं. इसके इस्तेमाल से त्वचा की आवश्यक नमी बनी रहती है और चेहरे पर निखार आता है.
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बेसन, आटा व बेकिंग पाउडर को एकसाथ मिलाएं और फिर इस में मक्खन, नमक, कालीमिर्च, अजवाइन, लालमिर्च पाउडर और गरममसाला डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. अब थोड़ा तेल डाल कर गूंध लें. थोड़ा पानी छिड़कें और कड़ा गूंधें. अब इसे 10 मिनट के लिए ढ़क कर रख दें. ओवन को 190 डिग्री पर गरम करें. मफिन ट्रे पर हलका तेल लगाएं. अब छोटीछोटी रोटियां बनाएं और मफिन मोल्ड्स में रख कर
10 मिनट तक सुनहरा होने तक बेक करें.
विधि फिलिंग की
प्याज और शिमलामिर्च को काट लें. पैन में तेल गरम करें. अब इस में प्याज, शिमलामिर्च, मटर और कौर्न को तेज आंच में फ्राई करें. फिर आंच धीमी करें और मिश्रण में नमक, कालीमिर्च, ओरिगैनो डालें. अब ढक कर मटरों को पकने तक पकाएं. अब आंच से उतार कर मिश्रण में चीज और मेयोनीज डालें. अब मिश्रण को कपों में भरें और सर्व करें.
व्यंजन सहयोग:
रुचिता कपूर जुनेजा
VIDEO : हेयरस्टाइल स्पेशल
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