बच्चों के कमर्शियल यौन शौषण के बदसूरत व्यवसाय के बारे में चौंकाने वाले तथ्यों का खुलासा करने वाली फिल्म “अमोली : प्राइसलेस” रिलीज हो चुकी है. फेसबुक और यूट्यूब पर रिलीज हुई इस फिल्म को रिलीज होने के दो दिनों के अंदर ही तीन लाख से भी ज्यादा लोग देख चुके हैं. इस फिल्म में राजकुमार राव ने भी अपनी आवाज दी है. कल्चर मशीन द्वारा बनाई गई इस डौक्यूमेंट्री में बच्चों के यौन शोषण के उस तरीके को सामने लाया गया है, जो बच्चों के खिलाफ हिंसा के सबसे खराब रूपों में से एक है.
इस फिल्म को 4 अध्यायों में बांटा गया है. मोल, माया, मंथन और मुक्ति. हर भाग दर्शकों को एक यात्रा पर ले जाता है, जो बाल यौन शोषण की अंधेरी दुनिया में गहराई से गुजरता है.
अगर हम आंकड़ों की बात करें तो भारत में चाइल्ड ट्रैफिकिंग यानि बाल तस्करी के 9,034 केस दर्ज हैं. मानव तस्करी के 60 फीसदी मामलों में पीड़ित नाबालिग होते हैं. महाराष्ट्र में बाल तस्करी के 172 केस, पश्चिम बंगाल में 3,113 केस, कर्नाटक में 332, आंध्र प्रदेश में 239 और तमिलनाडु में 434 केस दर्ज हैं. नेशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो (2016 की रिपोर्ट) से स्पष्ट है कि बाल तस्करी के सभी मामलों के लिए सजा की दर केवल 27.8% थी.
“अमोली” इन मासूम बच्चों की सच्ची कहानियों को जानने और समझने का एक प्रयास है, जो हमें ऐसे लोगों से सतर्क रहने के लिए भी प्रेरित करती है, जिन्होंने भारत को दुनिया के सबसे बड़े बाल तस्करी बाजारों में से एक बना दिया है. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में बाल तस्करी का व्यापार 32 बिलियन डौलर का है. “अमोली” के माध्यम से ऐसे पुरुषों के लिए कठोर सजा की मांग की गई है, जो सेक्स के लिए बच्चों की मांग करते हैं. जब ऐसे लोगों को सजा का डर होगा तभी बाल तस्करी यह आपराधिक गठबंधन टूट सकता है. नेशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में वाणिज्यिक यौन शोषण के 3 मिलियन पीड़ितों में से 40 फीसदी बच्चे हैं.
“अमोली” के बारे में कल्चर मशीन मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ और सह-संस्थापक समीर पिटलवाला का कहना है कि हमारी इस फिल्म का मुख्य उद्देशय मूल रूप से पुरुषों को सेक्स के लिए बच्चों को खरीदने से रोकना है. हम मानते हैं कि हमारा यह उद्देशय केवल स्पष्ट राजनीतिक प्रतिबद्धता, सक्रिय कानून प्रवर्तन और सख्त एवं त्वरित न्याय के माध्यम से ही पूरा हो सकता है. हम “अमोली” के माध्यम से इस मुद्दे पर जागरुकता बढ़ाना चाहते हैं. और इसके साथ ही हम चाहते हैं कि आम जनता इस मुद्दे को हल करने के लिए पुलिस, न्यायपालिका और सरकार से मांग करे.
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता डौक्यूमेंट्री फिल्ममेकर जैस्मीन कौर रौय और अविनाश कौर द्वारा निर्देशित और ताजदार जुनैद द्वारा संगीतबद्ध इस 30 मिनट की फिल्म का उद्देशय लोगों के बीच इस विषय पर जागरुकता बनाए रखना है.
“अमोली” को हिंदी में शूट किया गया है, लेकिन यह फिल्म छह अन्य भाषाओं – तमिल, तेलुगु, बंगाली, मराठी, कन्नड़ और अंग्रेजी, में भी रिलीज हुई है.
समीर पिटलवाला और वेंकट प्रसाद द्वारा 2013 में स्थापित, कल्चर मशीन प्राइवेट लिमिटेड ने इस फिल्म को निर्माण किया है. यह एक डिजिटल मीडिया कंपनी है जिसका उद्देशय स्टोरीटेलिंग और मीडिया ब्रांड का निर्माण करने में तकनीक का उपयोग करना तथा अच्छे कंटेट के साथ अत्याधुनिक तकनीक का संयोजन करना है. सिंगापुर स्थित पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी The Aleph Group, की सहायक कंपनी कल्चर मशीन, के कार्यालय भारत के प्रमुख शहरों (मुंबई, पुणे, दिल्ली, चेन्नई और हैदराबाद) में स्थापित हैं तथा इसका एक कार्यालय संयुक्त राज्य अमेरिका (डेलावेयर) में भी है.
सवाल मैं 32 वर्षीया विवाहिता हूं. मेरी 2 बेटियां हैं, जबकि मेरे जेठ और देवर के 2-2 बेटे हैं. मेरी सास हमेशा मुझे ताना देती रहती हैं इसलिए मैं चाहती हूं कि एक चांस और ले लूं. शायद बेटा हो जाए. जबकि मेरे पति इस के लिए रजामंद नहीं हैं. उन का कहना है कि बेटियों को ही अच्छी तरह से पढ़ालिखा कर योग्य बनाएंगे. मैं क्या करूं?
जवाब
इतने प्रगतिशील युग में जब लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से कम नहीं हैं, आप ऐसी छोटी और दकियानूसी बातें कर रही हैं. स्वयं औरत हो कर ऐसी सोच रखती हैं, जबकि आप के पति की सोच प्रशंसनीय है. इसलिए आप को उन की सोच का समर्थन करना चाहिए और अपनी बच्चियों की अच्छी तरह परवरिश करनी चाहिए.
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गर्भ के दौरान इन सेहतमंद आदतों को अपनाएं
गर्भावस्था के दौरान मां की सेहत का तुरंत और लंबे समय में बच्चे की सेहत पर गहरा प्रभाव पड़ता है. गर्भकाल की डायबिटीज और एनीमिया, यानी कि मां में एनीमिया और डायबिटीज बच्चे की सेहत पर बुरा असर डाल सकते हैं. मां में एनीमिया हो तो बच्चे का जन्म के समय 6.5 प्रतिशत मामलों में वजन कम होने और 11.5 प्रतिशत मामलों में समय से पहले प्रसव की समस्या हो सकती है. गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज की वजह से बच्चे को 4.9 प्रतिशत मामलों में एनआईसीयू (नवजात गहन चिकित्सा इकाई) में भरती होने और 32.3 प्रतिशत मामलों में सांस प्रणाली की समस्याएं होने का खतरा रहता है.
गर्भावस्था में इन समस्याओं की वजह से पैदा हुए बच्चों में मोटापे, दिल के विकार और टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा उम्रभर रहता है.
गर्भावस्था के दौरान हाइपरटैंशन, जो कि 20वें सप्ताह में होता है, पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है. इस से गर्भनाल (एअंबीलिकल कौर्ड) की रक्तधमनियां सख्त हो जाती हैं जिस से भू्रूण तक औक्सीजन और पोषण उचित मात्रा में नहीं पहुंच पाता. इस वजह से गर्भाशय में बच्चे की वृद्धि में रोक, जन्म के समय बच्चे का कम वजन, ब्लडशुगर में कमी और लो मसल टोन जैसी समस्याएं हो सकती हैं. कुछ मामलों में आगे चल कर किशोरावस्था में बच्चे में हाइपरटैंशन की समस्या भी हो सकती है.
मां में मोटापा हो तो गर्भावस्था में डायबिटीज होने की संभावना होती है जिस वजह से समय से पहले प्रसव और बच्चे में डायबिटीज व मोटापा होने के खतरे रहते हैं. गर्भावस्था के दौरान मां के पोषण में मामूली कमी का भी प्रतिकूल असर बच्चे की सेहत पर पड़ सकता है, जैसे कि गर्भावस्था में विटामिन डी की कमी से आगे चल कर जच्चा और बच्चा दोनों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हो सकती हैं.
डा. संजय कालरा, कंसल्टैंट एंडोक्राइनोलौजिस्ट, भारती हौस्पिटल, करनाल एवं वाइस पै्रसिडैंट, साउथ एशियन फैडरेशन औफ एंडोक्राइन सोसायटीज, कहते हैं कि अगर मां को गर्भावस्था में डायबिटीज या हाइपरटैंशन हो जाए तो बच्चे की सेहत का, खासतौर पर शुरुआती दिनों में, पूरा ध्यान रखना चाहिए. बच्चे के ग्रोथ चार्ट पर नियमित ध्यान देते रहना चाहिए और रोगों की रोकथाम वाली जीवनशैली अपनानी चाहिए. आहार में आयरन, फोलेट और विटामिन बी12 की कमी की वजह से गर्भवती महिलाओं में एनीमिया होने की संभावना काफी ज्यादा होती है.
गर्भावस्था में आयरन की अत्यधिक जरूरत होने की वजह से यह समस्या और भी बढ़ जाती है. एनीमिया की वजह से गर्भनाल से भ्रूण तक औक्सीजन जाने में कमी से शिशु के विकास में कमी हो सकती है और एंडोक्राइन ग्रंथि की कार्यप्रणाली पर असर पड़ सकता है.
भारतीय महिलाओं को आयरन और हेमाटोपौयटिक (रक्तोत्पादक) विटामिन देने चाहिए ताकि गर्भावस्था से पहले और गर्भावस्था के दौरान हीमोग्लोबीन का उचित स्तर बना रहे. गर्भावस्था में डायबिटीज और हाइपरटैंशन के आने वाले जीवन में पड़ने वाले प्रभावों से बचने के लिए मां और बच्चे दोनों को ही रोगों की रोकथाम वाली जीवनशैली अपनानी चाहिए.
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सवाल मेरा एक चचेरा भाई है. हम दोनो हमउम्र हैं. जब भी हम लोग चाचा के घर रहने जाते हैं तो रात के समय मेरा भाई मेरे करीब आ जाता है और उस समय वह मेरे साथ जिस तरह की अश्लील हरकतें करता है वे मुझे अच्छी नहीं लगतीं पर मैं न उसे मना कर पाती हूं और न ही घर में किसी और से इस विषय में बात कर पाती हूं. कृपया बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?
जवाब
आप का चचेरा भाई रात को आप के साथ अश्लील हरकतें करता है तो आप को उस के कमरे में नहीं सोना चाहिए. अपनी मां या बहन के साथ सो सकती हैं. पर आप ऐसा नहीं कर रहीं.
यदि आप को उस की हरकतें वाकई नागवार गुजरतीं तो आप पहली बार ही उसे धमका देतीं. वह दोबारा ऐसा करने की जुरअत न करता. पर लगता है कि आप को इस सब में मजा आता है, अच्छा लगता है इसीलिए आप उसे मना नहीं कर रहीं अर्थात इस सब में आप की मूक सहमति है. पर आप को समझना चाहिए कि इस से आप आगे चल कर मुश्किल में पड़ सकती हैं.
अत: उसे मना कर दें. यदि वह नहीं मानता तो सख्त शब्दों में उसे धमकी दें कि आप अपने घर वालों से उस की शिकायत करेंगी. वह संभल जाएगा.
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अपनों से बचाएं बच्चियों को वरना…
10 साल की सोनी रोज की तरह तैयार हो कर स्कूल पहुंची. उस की क्लास के मौनीटर ने उस से कहा कि उस के हाथ का नाखून काफी बढ़ा हुआ है, इसलिए डायरैक्टर साहब ने उसे अपने चैंबर में बुलाया है.
सोनी के साथ उस की एक सहेली भी डायरैक्टर के चैंबर में पहुंची. डायरैक्टर ने सोनी की सहेली को क्लास में भेज दिया और उस के साथ जबरन अपना मुंह काला किया.
स्कूल की छुट्टी होने पर सोनी को स्कूल की गाड़ी से उस के घर पहुंचा दिया गया. सोनी की मां को बताया गया कि वह स्कूल में बेहोश हो गई थी.
जब सोनी को होश आया, तो उस ने अपनी मां को सारी बातें बताईं. इस के बाद सोनी के परिवार वाले और आसपास के लोग स्कूल पहुंच गए और जम कर तोड़फोड़ की. डायरैक्टर को गिरफ्तार करने की मांग को ले कर सड़क जाम कर दी गई.
पटना के पुराने इलाके पटना सिटी के पटना सिटी सैंट्रल स्कूल, दर्शन विहार के डायरैक्टर पवन कुमार दर्शन की इस घिनौनी करतूत ने जहां एक ओर टीचर और स्टूडैंट के रिश्तों पर कालिख पोत दी है, वहीं दूसरी ओर मासूम बच्चियों की सुरक्षा पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं.
सच तो यह है कि मासूम बच्चियां स्कूल टीचर, प्रिंसिपल, ड्राइवर, खलासी, नौकर, चपरासी, पड़ोसी समेत करीबी रिश्तेदारों की घटिया सोच की शिकार हो रही हैं.
फिरौती के लिए मामा ने किया भांजी को अगवा, घरेलू विवाद में चाचा ने किया मासूम भतीजी का कत्ल, स्कूल टीचर ने किया 9 साल की लड़की के साथ बलात्कार, किराएदारों ने की 11 साल की लड़की के साथ छेड़छाड़, रुपयों के लालच में पड़ोसी ने किया 6 साल की बच्ची का अपहरण जैसी वारदातों की खबरें अकसर सुनने को मिलती रहती हैं. पिछले कुछ समय से इस तरह के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं.
सच तो यह है कि मासूम बच्चियां स्कूल टीचर, प्रिंसिपल, ड्राइवर, खलासी, नौकर, चपरासी, पड़ोसी समेत करीबी रिश्तेदारों की घटिया सोच की शिकार हो रही हैं.
पटना हाईकोर्ट के सीनियर वकील उपेंद्र प्रसाद कहते हैं कि पहले लोग करीबी रिश्तेदारों और पड़ोसियों के पास अपने बच्चों को छोड़ कर किसी काम से बाहर चले जाते थे, पर आज ऐसा नहीं के बराबर हो रहा है. अपनों द्वारा भरोसा तोड़ने के बढ़ते मामलों की वजह से लोग पासपड़ोस में बच्चियों को छोड़ने से कतराने लगे हैं.
पुलिस अफसर राकेश दुबे कहते हैं कि अपने आसपास खेलतीकूदती, स्कूल आतीजाती और छोटीमोटी चीज खरीदने महल्ले की दुकानों पर जाने वाली बच्चियों के साथ छेड़छाड़ करना काफी आसान होता है. परिवार और पड़ोस के लोगों की आपराधिक सोच और साजिश का पता लगा पाना किसी के लिए भी आसान नहीं है. पता नहीं, कब किस के अंदर का शैतान जाग उठे और वह किसी मासूम को अपनी खतरनाक साजिश का निशाना बना डाले.
ऐसे में हर मांबाप को अपने बच्चों पर खास ध्यान देने की जरूरत है. मासूम बच्चियों की हिफाजत को ले कर तो मांबाप को किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतनी चाहिए.
समाजशास्त्री अजय मिश्र बताते हैं कि समाज की टूटती मर्यादाओं और घटिया सोच की वजह से ही बच्चियों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है. अब इनसान अपने भाई, चाचा, मामा, दोस्तों समेत अपनों से लगने वाले पड़ोसियों पर भरोसा न करें, तो फिर किस पर करें?
आज के हालात तो ये हैं कि लोगों की नीयत बदलते देर नहीं लगती है. अपने ही अपनों के भरोसे का खून कर रहे हैं. यह सब रिश्तों और समाज के लिए बहुत ही खतरनाक बन चुका है.
प्रोफैसर अरुण कुमार प्रसाद कहते हैं कि बच्चियों के कोचिंग जाने, खेलनेकूदने पर या बाजारस्कूल जाने पर हर समय हर जगह उन पर नजर रखना मांबाप के लिए मुमकिन नहीं है.
मासूम बच्चियों की हिफाजत को ले कर तो मांबाप को किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतनी चाहिए.
अकसर ऐसा होता है कि पति दफ्तर में और पत्नी बाजार में है. इस बीच बच्चा स्कूल से आ जाता है, तो वह पड़ोस के ही अंकल या आंटी के पास मजे में रहता है. लेकिन अब कुछ शैतानी सोच वाले लोगों की वजह से यह भरोसा ही कठघरे में खड़ा हो चुका है.
करीबी रिश्तेदारों, पड़ोसियों, नौकरों और ड्राइवरों द्वारा बच्चियों से छेड़छाड़ करने और उन के साथ जबरन सैक्स संबंध बनाने की वारदातें तेजी से बढ़ रही हैं. ऐसी वारदातों के बढ़ने की सब से बड़ी वजह पारिवारिक और सामाजिक संस्कारों और मर्यादाओं का तेजी से टूटना है.
समाजसेवी किरण कुमारी कहती हैं कि पहले परिवार के करीबी रिश्तेदारों के बीच कुछ सीमाएं और लिहाज होता था, जो आज की भागदौड़ की जिंदगी में खत्म होता जा रहा है. यही वजह है कि करीबी रिश्तेदारों और पड़ोसियों की गंदी नजरों की शिकार मासूम बच्चियां बन रही हैं.
ऐसे मांबाप को अपनी बच्चियों को ऐसे अनजान खतरों से आगाह करते रहना चाहिए. साथ ही, वे खुद भी सतर्क रहें.
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बीच नेचर लवर, ऐडवैंचर प्रेमी और फैमिली फन के लिए वे सारे विकल्प मिल जाते हैं जो एक परिवार को हौलीडेज में मिलने चाहिए. सफेद मुलायम रेत पर लेट कर किनारों पर आती लहरों का दृश्य पर्यटकों का दिल जीत लेता है.
पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में बीच खास महत्त्व रखते हैं. बीच लवर्स और ऐडवैंचर लवर्स यहां घूमने का प्रोग्राम बना सकते हैं. इस में समुद्री किनारों की खूबसूरती से अभिभूत होने के साथ साथ हर मौसम में हुए बदलाव, बैक वाटर्स, मैनग्रोव फौरेस्ट आदि का भी आनंद लिया जा सकता है.
पहले इस ओर लोगों का ध्यान अधिक नहीं जाता था, लेकिन फिल्मों में इस खूबसूरती को संगीत के माध्यम से दिखाए जाने के चलते पर्यटकों की रुचि इस ओर बढ़ी है. समुद्र के किनारे रहने खाने व घूमने के लिए सहूलियतें मुहैया हैं, जिन का पर्यटक भरपूर फायदा उठाते हैं. इस कड़ी में सब से पहले मडगांव का रुख करते हैं, जो सब से अधिक आकर्षक समुद्रतट है.
मडगांव
गोवा की राजधानी पणजी के दक्षिण में स्थित मडगांव राज्य का दूसरा बड़ा शहर है. इस के निकट कई आकर्षक बीच यानी समुद्रतट हैं. यहां हर साल लाखों पर्यटक आते हैं. पुर्तगाली समय में बने मकान, बंगलों और उन की खूबसूरती यहां आज भी उसी रूप में विद्दमान है. मडगांव, बेनौलिम, वर्का, बैतूल, मजोरदा जैसे बीच एक लाइन में मौजूद हैं. इन सारे स्थानों पर आवागमन के पर्याप्त साधन होने के फलस्वरूप पर्यटक यहां आसानी से आजा सकते हैं.
मडगांव बीच जाने के लिए शहर से 10 से 15 मिनट का समय लगता है. यहां के समुद्रतटों की सुंदरता की खास बात यह है कि कूल ब्लू, एमरल्ड ग्रीन जैसा पानी, सफेद मुलायम रेत और लगातार समुद्री किनारों पर आ रही लहरें पर्यटकों को खास आकर्षित करती हैं.
मडगांव बीच के बाद सैलानी आसपास के सारे समुद्रतटों को आसानी से देख सकते हैं. मडगांव से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बेनौलिम बीच साफसुथरा, चाइल्डफ्रैंडली और नो स्मोकिंग समुद्रतट है. वहां से कुछ ही दूरी पर वर्का बीच भीड़भाड़ से दूर एक शांतप्रिय स्थल है, जहां समुद्री किनारे पर घूमनाटहलना पर्यटकों को अच्छा लगता है.
बैतूल बीच एक रोमांटिक बीच है. अधिकतर नवविवाहित जोड़े यहां आना पसंद करते हैं. सुबह की ताजगीभरी हवा और शाम के समय इस समुद्र के किनारे पर घूमना पर्यटक अधिक पसंद करते हैं. एक छोटी सी लैगून, पास में नदी और 17वीं शताब्दी में बने बरदी क्रौस चर्च बहुत ही सुंदर हैं.
यहां की खास बात यह भी है कि यहां एक नदी शहर को समुद्रतट से अलग करती है. नेचर लवर्स के लिए यह स्थान बेहद उपयुक्त है. शाम को नीले आकाश के नीचे, ढलते सूरज को देखना पर्यटकों के लिए खास आकर्षण है. फोटोग्राफी की दृष्टि से यह स्थल सब से उपयुक्त है. अगर छोटी सी राइड का मजा लेना हो तो फिशरमेन व्हार्फ जाना अच्छा होता है. यह बैतूल बीच के पास है. दिलचस्प यह है कि मानसून में भी पर्यटक यहां खूब आते हैं.
मडगांव पहुंचने के लिए डाबोलिम हवाई अड्डा सब से बेहतर विकल्प है. यहां से प्राइवेट कैब द्वारा किफायती दाम में बीच तक आसानी से पहुंचा जा सकता है. इस के अलावा वास्को डी गामा और डाबोलिम से ट्रेन भी मिलती है. पणजी और वास्को डी गामा से कार ड्राइव कर के भी आया जा सकता है.
ठहरने के लिए ताज, लीला, होलीडे इन, बैंबू हाउस, गोवा होटल, बैतूल बीच रिसोर्ट आदि जगहें हैं. ये सभी समुद्रतट से लगभग 1-2 किलोमीटर के दायरे में हैं. यहां के पारंपरिक भोजन और सी फूड के लिए भी ये स्थान सब से बेहतर हैं. खरीदारी के लिए यहां का ओशिया मौल लोकप्रिय मार्केटिंग प्लेस है.
कोलवा
कोलवा बीच दक्षिणी गोवा में स्थित एक शांत व खूबसूरत समुद्री किनारा है. इसे क्वीन औफ बीचेज भी कहा जाता है. 24 किलोमीटर लंबा यह बीच दुनिया के सब से लंबे समुद्रतटों में से एक है. इस समुद्री किनारे पर बिछी सफेद रेत की परत पर्यटकों के खास आकर्षण का केंद्र है. यह स्थान फन लवर्स, नेचर लवर्स और ऐंडवैंचर सीकर्स के लिए खास है. किनारों पर लाइन में लगे नारियल के पेड़ इस की शोभा को और भी बढ़ाते हैं. यहां लोग खूब फोटोग्राफी करते हैं.
यहां बजट होटल्स, गेस्ट हाउसेस, बीच शैक्स, फूड स्टौल्स, रेस्तरां, पब्स आदि खूब मिलते हैं. ऐसा माना जाता है कि हाई सोसाइटी के पुर्तगालियों ने हवा परिवर्तन के लिए इस समुद्री किनारे को विकसित किया था. यहां उन के विला और घरों के अवशेषों को देखा जा सकता है.
यहां पर अधिकतर पर्यटक सप्ताह के अंत में या फिर अक्टूबर महीने में आते हैं. यहां पर्यटक सूर्यास्त को देखने के अलावा एक्टिविटीज जैसे जेट स्कीइंग, बनाना राइड, मोटरबोट राइड, पैराग्लाइडिंग आदि का लुत्फ उठाते हैं. विदेशी सैलानियों की यहां खूब भीड़ रहती है. यहां पर्यटक समुद्र में नहाने, किनारों पर घूमने, रेत से तरहतरह की आकृति बनाने का आनंद भी उठाते हैं.
कोलवा बीच की अच्छी बात यह भी है कि तट की निगरानी लाइफगार्ड करते हैं और स्विमिंग एरिया को फ्लैग की सहायता से निर्देशित किया गया है ताकि कोई अनहोनी न हो. इस के अलावा कोलवा से पर्यटक आसानी से काबो डी रामा किले तक जा सकते हैं, जो पुर्तगाली समय का किला होने के साथसाथ गोवा का सब से पुराना किला है.
यहां से डाबोलिम एयरपोर्ट मात्र 21 किलोमीटर की दूरी पर है. वहां से टैक्सी ले कर कोलवा बीच जाया जा सकता है. कोलवा बीच जाने के लिए किराए की बाइक या कार भी आसानी से मिल जाती हैं. इस का निकटतम रेलवे स्टेशन मारगाओ है, जहां से टैक्सी ले कर आसानी से कोलवा बीच पहुंचा जा सकता है. इस के अलावा यहां बस और औटोरिकशा की भी अच्छी सुविधा है.
कोलवा में सी फिश करी और राइस काफी प्रचलित है. यहां आने वाले पर्यटक तरहतरह के लजीज सीफिश करी के साथ राइस का आनंद उठा सकते हैं. यहां पाई जाने वाली प्रमुख सीफिश पौम्फ्रेट, टूना, किंगफिश शार्क आदि हैं, जबकि शेल फिश में लोबस्टार, क्रेबस, प्रौन्स आदि अधिक प्रसिद्ध हैं. कैंडल लाइट डिनर का मजा भी इस समुद्रतट पर लिया जा सकता है.
पणजी
पणजी शहर गोवा के उत्तरी प्रांत में मंडोवी नदी के किनारे बसा है. यह गोवा की राजधानी है. पुर्तगाली समय में इस का नाम पंजिम था. समुद्रतट से 7 मीटर की ऊंचाई पर बसा यह शहर अपनी खूबसूरती के लिए खास प्रसिद्ध है. पणजी, वास्को डी गामा और मडगांव के बाद यह सब से बड़ा तीसरा शहर है. सीढ़ीदार पहाडि़यों पर बसा यह स्थान मकानों की लाल रंग की छतों, बालकनी, नदी और गुलमोहर के पेड़ों की अधिकता के चलते काफी आकर्षक है.
प्राचीनकाल में इस स्थान पर बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह का अस्तबल था, जो समय के साथसाथ शहर के रूप में परिवर्तित हुआ. यहां पुर्तगाली सभ्यता और ईसाई धर्म का प्रभाव खासतौर पर देखा जा सकता है. यहां आदिलशाही पैलेस, मीरामार समुद्रतट, महालक्ष्मी मंदिर, नगर स्क्वायर गार्डन में पुर्तगाली बरोक औवर लेडी चर्च, अस्वेम बीच, वैन्गुइनिम बीच, सेंट फ्रांसिस जेवियर का मकबरा, दोना पावला आदि सभी दर्शनीय स्थल हैं. ऐडवैंचर पसंद पर्यटकों के लिए यह खास जगह है. यहां आ कर पर्यटक राफ्टिंग, बैलून राइडिंग, बोट टूर आदि का आनंद ले सकते हैं. पणजी का मौसम पूरे साल एकजैसा रहता है, इसलिए सैलानी पूरे साल यहां आते हैं.
मीरामार समुद्रतट अधिक भीड़ भाड़ वाला समुद्रतट है. यह स्थान पणजी से नजदीक है. इस के अलावा यहां की स्थानीय वस्तुएं यहां की छोटी छोटी दुकानों में मिलती हैं, साथ ही, खाने पीने की वस्तुएं उचित दाम में मिलती हैं. अस्वेम बीच एक शांतप्रिय समुद्रतट है. यहां शैक्स और हौकर्स नहीं हैं.
यहां सैलानी शांत वातावरण का आनंद उठाते हैं. वैन्गुइनिम बीच अपने सिल्वर सैंड और साफ ग्रीनिश वाटर के लिए जाना जाता है. यह समुद्रतट पलाश के पेड़ों से घिरा होने से भिन्नभिन्न प्रजातियों के पक्षियों का निवास स्थान भी है, जिन्हें सूरज ढलते ही देखा जा सकता है.
पणजी से 6 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में दोना पावला बीच स्थित है. इस बीच पर ऐडवैंचर के लिए बहुत कुछ मौजूद होने की वजह से यहां पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता है. वाटर स्पोर्ट, हारबर, पथरीले तटों के अलावा यहां बहुत कुछ देखने लायक है.
इस बीच के बारे में कहावत है कि पुर्तगाल के वायसराय की बेटी दोना पावला को एक मछुआरे से प्यार हो गया था, लेकिन उस के पिता द्वारा उसे न स्वीकारे जाने की वजह से दुखी हो कर उस ने ऊंची चट्टान से अरब सागर में छलांग लगा कर आत्महत्या कर ली थी. इसलिए उस की याद में वायसराय ने उस स्थान का नाम दोना पावला रखा. फिल्म ‘एकदूजे के लिए’ का एक भाग यहां पर शूट किया गया था.
समुद्रतट के अलावा पणजी में गोवा का संग्रहालय देखने योग्य है. इस में गोवा की रबड़ की खेती से ले कर नमक की कंपनियों को विस्तार से दिखाया गया है. इतना ही नहीं, पणजी में कुटीर उद्योग अधिक मात्रा में विकसित होने की वजह से कछुए की खाल और हाथीदांत से बनी वस्तुएं, काजू, बादाम, दालचीनी आदि भी पर्यटकों की खरीदारी के लिए खास हैं.
यहां पहुंचना बहुत आसान है. गोवा जाने वाली सभी बसें पणजी से गुजरती हैं, बाइक या कार किराए पर लेकर भी यहां जाया जा सकता है. डाबोलिम हवाई अड्डे से पणजी केवल 30 मिनट की दूरी पर है. नजदीकी रेलवे स्टेशन मडगांव है.
पुणे या मुंबई से गोवा आने पर पहला शहर पणजी ही पड़ता है. यहां काफी होटल, लौज, गैस्ट हाउस मौजूद हैं. इस के अलावा यहां पेइंग गैस्ट के तौर पर भी स्थानीय लोगों के घरों में रह सकते हैं. पणजी के लोग घरों में पेइंगगैस्ट के तौर पर देशी विदेशी पर्यटकों को कम चार्ज ले कर ठहराते हैं. पर्यटक के कहने पर वे चाय व खाने का इंतजाम भी कर देते हैं.
कुल मिला कर गोवा के बीच पर्यटकों को हर लिहाज से मंत्रमुग्ध कर देते हैं. सो, आप भी इस के नजारे देखने के लिए तैयार हो जाएं.
कहां से शुरू करें
मडगांव गोवा की ऐसी जगह है जहां से कई समुद्रीतट निकट हैं. यहां से तटों पर घूमने जाना आसान है. मडगांव स्टेशन से बाहर निकलते ही मात्र 300 मीटर की दूरी से ही बस और टैक्सी मिलती हैं. जिन से आसपास के किसी भी समुद्रीतट पर जाया जा सकता है. वहां से बस, टैक्सी, औटो, प्राइवेट कार द्वारा 30 रुपए में 40 मिनट का सफर तय कर कोलवा बीच पहुंचा जा सकता है. और कोलवा से पणजी जाना आसान है. सभी बसें पणजी से गोवा में प्रवेश करती हैं. करीब एक घंटे का सफर करने के बाद पणजी पहुंचते हैं. गोवा का यह पूरा क्षेत्र सब से अधिक विकसित और आकर्षक है, फलस्वरूप पर्यटक भी यहां खूब आते हैं.
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स्पोर्ट्स को पहला प्यार मानने वाली सैयामी खेर महाराष्ट्र के लिए बैंडमिंटन व क्रिकेट खेल चुकी हैं. राष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट खेलने का मौका भी मिला था, पर पारिवारिक दबाव के चलते उन्होंने क्रिकेट को अलविदा कह कर अपनी दादी स्व. उषा किरण और बुआ तन्वी आजमी के पदचिन्हों पर चलते हुए अभिनय की तरफ रूख कर लिया. सैयामी खेर ने राकेश ओमप्रकाश मेहरा के निर्देशन में हर्षवर्धन कपूर के साथ फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ अभिनय करियर की शुरुआत की थी. मगर इस फिल्म को मिली असफलता के चलते उनके करियर पर विराम सा लग गया था. बहरहाल ‘मिर्जिया’ के प्रदर्शन के पूरे दो वर्ष बाद उन्हें हिंदी की बजाय मराठी फिल्म से जुड़ने का मौका मिला है.
जी हां! जिनेलिया डिसूजा निर्मित और आदित्य सरपोतदार निर्देशित मराठी भाषा की संगीतमय एक्शन प्रधान नाटकीय फिल्म ‘‘माउली’’ में रितेश देशमुख के साथ सैयामी खेर की रोमांटिक जोड़ी होगी. मजेदार बात यह है कि रितेश देशमुख की पिछली सफलतम मराठी भाषा की फिल्म ‘‘लय भारी’’ में सैयामी खेर की बुआ तनवी आजमी ने रितेश देशमुख की मां का किरदार निभाया था और अब ‘‘माउली’’ में सैयामी खेर, रितेश देशमुख की हीरोईन के रूप में नजर आएंगी.
मराठी फिल्म ‘‘माउली’’ के साथ जुड़ना सैयामी खेर के लिए गौरव की बात है. क्योंकि वह अपनी दादी स्व. उषा किरण की विरासत को आगे बढ़ाने जा रही हैं. उषा किरण मराठी फिल्मों का बहुत बड़ा नाम था. उषा किरण ने पूरे पांच दशक तक अभिनय में अपनी पताका फहरायी थी. उन्होंने मराठी फिल्मों के अलावा हिंदी में राजेस खन्ना व देव आनंद के साथ ‘पतिता’, ‘दाग’ व ‘चुपके चुपके’ जैसी फिल्में की थी.
खुद सैयामी खेर कहती हैं- ‘‘मेरी पहली मराठी फिल्म ‘माउली’ हमेशा मेरे दिल के करीब रहेगी. क्योंकि यह फिल्म मुझे मराठी सिनेमा व महाराष्ट्रीयन संस्कृति की विरासत से जोड़ती है. इसकी शूटिंग करते वक्त मुझे अपनी दादी बहुत याद आएंगी, काश वह मेरी पहली मराठी फिल्म देखने के लिए जिंदा होती. मुझे मराठी भाषा की फिल्म में देखकर उन्हें बेहद खुशी होती. दूसरी बात यह फिल्म मेरी मातृभाषा वाली फिल्म है. रितेश देशमुख के साथ काम करना भी सौभाग्य की बात है. रितेश देशमुख ने ‘लय भारी’ की सफलता के साथ मराठी सिनेमा में एक्शन व नाटकीय फिल्म के नए जौनर की शुरुआत की.’
उधर फिल्म ‘‘माउली’’ के साथ सैयामी खेर को जोड़ने की चर्चा करते हुए रितेश देशमुख कहते हैं-‘‘हमें अपनी फिल्म ‘माउली’ के लिए एक नई अदाकारा की तलाश थी. सैयामी युवा हैं, प्रतिभाशाली हैं. उनके अंदर एक महाराष्ट्रीयन लड़की की आग है, जो कि हमारी फिल्म के किरदार के लिए एकदम सटीक है. हम उनके साथ काम करने को लेकर काफी उत्साहित हैं.’’
फिल्म ‘‘माउली’’ की शूटिंग चार दिन पहले शुरू हो चुकी है. सैयामी खेर मई के तीसरे सप्ताह से शूटिंग शुरू करेंगी और 2019 की शुरुआत में यह फिल्म प्रदर्शित की जाएगी.
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हौलीवुड की हिट फिल्म ‘डेडपूल 2’ के हिंदी वर्जन में बौलीवुड के मशहूर एक्टर रणवीर सिंह ने आवाज दी है. डेडपूल भी एवेंजर्स की तरह सुपरहीरो फिल्म है लेकिन इसमें आपको सुपरहीरो फाइट के साथ-साथ कौमेडी डायलौग्स भी सुनने को मिलेंगे और आप डेडपूल के लिए दी गई रणवीर की आवाज को भी पसंद करेंगे. फौक्स स्टार स्टूडियो इस फिल्म को 18 मई को भारत में रिलीज करेंगे. कुछ देर पहले ही फिल्म के ट्रेलर को शेयर किया गया है और फिल्म का ट्रेलर सोशल मीडिया पर ट्रेंड भी कर रहा है.
एक बयान के मुताबिक, स्टूडियो एक ऐसा स्टार चाहता था, जो डेडपूल के व्यक्तित्व के साथ तालमेल बैठा पाए और रणवीर का व्यक्तित्व इससे मेल खाता है. फौक्स स्टार स्टूडियो के सीईओ विजय सिंह ने कहा, “डेडपूल की तरह, रणवीर अपने स्मार्ट, विनोदी हास्य के लिए पहचाने जाते हैं. वह बेहद साहसी और बहुप्रतिभाशाली अभिनेता हैं.” ‘डेडपूल 2’ का हिंदी ट्रेलर सोमवार को जारी हुआ. फिल्म में जौश ब्रोलिन, मोरेना बैक्करीन, करण सोनी, जैजी बीट्ज, ब्रायना हिल्डब्रांड, स्टीफन कपिची और लेस्ली उगम्स हैं.
वहीं इस फिल्म के ट्रेलर की बात करें तो ट्रेलर काफी जबरदस्त है. इसमें आपको डेडपूल अपने लिए टीम बनाते हुए दिखाई देगा और अपनी टीम के लिए वह जिस तरह से औडिशन लेता है आपको यह भी काफी पसंद आएगा. इसके अलावा ट्रेलर के कुछ डायलौग्स आपको बेहद पसंद आने वाले हैं. इसके अलावा रणवीर के वर्कफ्रंट की बात करें तो उन्होंने कुछ वक्त पहले ही जोया अख्तर की फिल्म ‘गली ब्वौय’ की शूटिंग खत्म की है. जिसके बाद वह जल्द ही रोहित शेट्टी के साथ फिल्म ‘सिम्बा’ की शूटिंग शुरू करने वाल हैं. इस फिल्म में रणवीर के साथ सारा अली खान लीड रोल में दिखाई देंगी.
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स्तन कैंसर अब सिर्फ महिलाओं तक ही सीमित नहीं रह गया है. स्तन कैंसर से जुड़ा सब से बड़ा भ्रम यह है कि यह सिर्फ महिलाओं को ही प्रभावित करता है और ज्यादातर सूचनाएं, जागरूकता अभियान, शोध एवं जानकारी महिलाओं पर ही केंद्रित होती है. इसीलिए पुरुष स्तन कैंसर के चिन्हों और लक्षणों को समझने और उन की पहचान करने में अकसर असफल होते हैं.
चौंकाते हैं शोध के परिणाम
विभिन्न संस्थानों में और विभिन्न स्तरों पर किए गए कई अध्ययनों में मिले परिणाम चौंकाने वाले हैं. कई मामलों में 80 फीसदी पुरुषों को इस बारे में जानकारी नहीं होती है कि उन में स्तन कैंसर का खतरा हो सकता है.
ज्यादातर पुरुष स्तन कैंसर (एमबीसी) के लक्षण पहचान भी नहीं पाते हैं. गांठ एकमात्र ऐसा लक्षण है, जिस के बारे में उन्हें जानकारी है. इस के अलावा उन्हें कोई अन्य जानकारी नहीं होती है.
चूंकि पुरुष स्तन कैंसर के ज्यादातर मामले अंतिम स्तर पर पता चलते हैं, इसलिए महिलाओं के स्तन कैंसर के मामलों के मुकाबले पुरुषों के स्स्न कैंसर के मामलों में मृत्यु दर अधिक है. देरी से जानकारी मिलने के परिणामस्वरूप एमबीसी बड़ा हो सकता है और इस का अन्य अंगों तक पहुंचने का भी खतरा अधिक होता है.
पुरुषों में स्तन कैंसर के प्रमुख लक्षण
– सब से साधारण लक्षण स्तन में गांठ है.
– निपल से तरल पदार्थ बाहर निकलना.
– निपल में खिंचाव या घाव.
– स्तन में दर्द होना, जिसे आमतौर पर छाती में होने वाला दर्द मान लिया जाता है.
– कांख के आसपास और स्तन के करीब सूजन.
पुरुषों को समयसमय पर स्वपरीक्षण करते रहना चाहिए और बदलावों की जानकारी तत्काल डाक्टर को देनी चाहिए.
समय से बीमारी का पता चलना कैंसर से एकमात्र बचाव है. गांठों का नियमित परीक्षण और समय पर जानकारी जीवन बचाने में मददगार है. सेहत पर पड़ने वाले किसी भी गंभीर असर से बचने के लिए हमें सेहतमंद जीवनशैली की जरूरत होती है.
– मनदीप एस मल्होत्रा
– (फोर्टिस फ्लाइट लैफ्टिनैंट राजन ढल हौस्पिटल (एफएचवीके) के हैड, नैक एवं ब्रैस्ट औंकोप्लास्टी डिपार्टमैंट)
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आजकल स्लीव्स के डिजाइन भी काफी फैशन में है. क्रौप टौप, टीशर्ट, सूट और ब्लाउज आदि में स्लीव्स के नए पैटर्न इन दिनों दिखाई दे रहे हैं. आजकल स्लीवलैस लुक कम पसंद किये जा रहे हैं. कौटन फैब्रिक के साथ स्लीव्स में ज्यादा प्रयोग हो रहे हैं. रफल्ड, प्लीटेड कफ नए अंदाज में कपड़ों के साथ जोड़कर उन्हें स्टाइलिश लुक दिया जा रहा है.
रफल्ड स्लीव्स कफ
यदि आप बड़े चैक्स वाले कपड़े पसंद करती हैं तो कमर और स्लीव्स में रफल्ड प्लीट पैटर्न आजमा सकती हैं. स्लीव्स की लंबाई को एल्बो तक रखा जा सकता है. इसे आप डेनिम स्कर्ट और वाइट स्नीकर्स के साथ कैरी कर सकती हैं. यदि आप आफ शोल्डर लुक चाहती हैं तो ओपन स्लीव्स चुनें. इसमें एक कट होता है, जो शोल्डर्स को बाहर दिखाता है.
क्रोशे पैनल स्लीव्स
आजकल हेमलाइन और स्लीव्स पर क्रोशे कटआउट पैनल काफी ट्रैंड में है. इसमें स्लीव्स को नीचे से फ्लेयर्ड रखा जाता है. प्लेन टौप या ब्लाउज के साथ यह पैटर्न बेहद अच्छा और क्लासी दिखता है. इस आउटफिट को आप स्किनी जीन्स के साथ पेयर कर सकती हैं.
प्लीट फ्लूटेड स्लीव्स
कैजुअल परिधान में स्लीव्स को शानदार दिखाने का स्टाइल प्लीट फ्लूटेड स्लीव्स हो सकता है. यह आपके परिधान को काफ्तान का लुक भी देता है. आप चाहें तो स्लीव्स को शौर्ट रख सकती हैं या फिर थ्री-फोर्थ लंबाई तक भी ले जा सकती हैं. यह पैटर्न कौटन के साथ ही सिंथेटिक फैब्रिक के साथ भी अच्छा लगेगा.
VIDEO : ट्रांइगुलर स्ट्रिप्स नेल आर्ट
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अंगूरों के जूस और बादाम का पेस्ट तैयार करें. फिर वाइन में अंगूरों का रस और चीनी डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. अब इस मिक्स्चर को मलमल के कपड़े में छान कर नीबू का रस और कुटी कालीमिर्च डालें. फिर इस सूप को एक बाउल में डाल कर ठंडा कर लाल मिर्च की चटनी और नमक डाल कर सर्व करें.
– व्यंजन सहयोग : सेलिब्रिटी शैफ अजय चोपड़ा
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कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का प्रस्ताव कैबिनेट से पारित कर केंद्र को मंजूरी के लिए भेजा है. इस पर हिंदू समाज के भीतर तो कोई हलचल नहीं हुई पर राजनीतिक दलों, खासतौर से भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस, में घमासान शुरू हो गया. भाजपा और संघ का कहना है कि कांग्रेस हिंदू समाज का विभाजन कर रही है, जबकि कांग्रेस भाजपा व संघ पर लोगों को बांटने का आरोप लगा रही है. कर्नाटक में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं, इसलिए लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने का प्रस्ताव विशुद्ध राजनीतिक मुद्दा है. दोनों ही दलों के नेता कर्नाटक के दौरे में लिंगायत समुदाय के धर्मगुरुओं से जा कर मिल रहे हैं, उन के चरणों में लोट रहे हैं. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तुमकुर में लिंगायतों के सब से बड़े मठ सिद्धगंगा गए और धर्मगुरु श्रीश्री शिवकुमार स्वामी को दंडवत प्रणाम कर आशीर्वाद मांगा. इस के बाद वे शिवमोगा के बेक्कीनक्कल मठ भी गए.
उधर, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अब तक 5 बार कर्नाटक का दौरा कर चुके हैं. वे गुजरात विधानसभा चुनावों के मंदिर परिक्रमा अभियान की तरह यहां अब तक 15 मंदिरों में दर्शन कर चुके हैं. उन्होंने अपने दौरे की शुरुआत लिंगायत मंदिर हुलीगेमा से की थी. मंदिरमठों में जाते समय राहुल गांधी बाकायदा लिंगायत साधुओं जैसे वस्त्र पहने नजर आते हैं. कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया लिंगायतों को चुनावी मुद्दा बना रहे हैं. ऐन चुनाव के समय लिंगायतों को अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा देने का प्रस्ताव भाजपा के लिए परेशानी का सबब है. राज्य में 17 प्रतिशत लिंगायत मतदाता हैं. यह भाजपा का परंपरागत वोट माना जाता रहा है. राज्य के पूर्र्व मुख्यमंत्री और इस बार मुख्यमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार वी एस येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से हैं. राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से 100 सीटों पर लिंगायत मतदाताओं का प्रभाव है और वर्तमान में 55 विधायक इसी समुदाय से हैं.
भाजपा का दावा है कि वह देश में विकास के बल पर राज्यदरराज्य विजय हासिल करती जा रही है. ऐसे में अगर भाजपा को अपने विकास पर भरोसा है तो उसे डर किस बात का है. उसे धर्मगुरुओं की शरण में जाने की क्या जरूरत है. असल में कांग्रेस और भाजपा दोनों का धार्मिक एजेंडा एक ही है. दोनों के मुंह धर्म का खून लग चुका है. दोनों ही धर्म को भुना कर सत्ता का मजा चखती आई हैं. भाजपा को दिक्कत यह है कि वह समझती है (और असल में है भी) कि हिंंदुत्व की अधिकृत ठेकेदार तो वह ही है. धर्म के नाम पर घृणा, बैर, कलह, मारकाट और समाज को बांटने का जो काम उसे करना चाहिए वह कांग्रेस क्यों कर रही है, उन कामों में कांग्रेस क्यों टांग फंसा रही है. समाज को जाति, धर्म, वर्ग, गोत्र, उपगोत्र में विभाजित करने की मूल मिलकीयत भाजपा की है.
सेंध लगाती कांग्रेस कांग्रेस पिछले दिनों गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे में सेंधमारी कर उसे छका चुकी है. राहुल गांधी गुजरात के मंदिरों, मठों में चक्कर लगाते दिखते थे. खुद को जनेऊधारी हिंदू और शिवभक्त प्रचारित करते घूम रहे थे. अब वही फार्मूला कर्नाटक में आजमाना शुरू कर दिया गया है. भाजपा को यह बुरी तरह अखर रहा है.
हिंदू समाज पहले ही पिछले 3 हजार वर्षों से विभाजित है. यह विभिन्न जातियों, वर्गों, पंथों और संप्रदायों में बंटा हुआ है. हिंदू समाज जातियों का एक ढेर है. समयसमय पर हिंदू समाज में सुधार के लिए नेता आगे आए और फिर कुछ समय बाद उन का अपना एक अलग पंथ बन गया. ब्रह्म समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन, शैव, वैष्णव संप्रदाय, शाक्त, वल्लभ संप्रदाय, राम स्नेही, नाथ संप्रदाय, राधास्वामी, आनंदपुर, स्वामिनारायण, स्थानकवासी, कबीरपंथी, दादूपंथी, नामधारी, ब्रह्मकुमारी, निरंकारी, जयगुरुदेव, विश्नोई, अंबेडकरवादी जैसे सैकड़ों मत, पंथ और संप्रदाय समाज में अज्ञानता व द्वेष का बीज बो रहे हैं. इन के अलावा पहले से सुधारक पंथ बने, बाद में धर्म बन गए व अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त जैन, बौद्ध, सिख धर्मों मे भी अलगअलग पंथ बन गए. जैनियों में श्वेतांबर और दिगंबर, बौद्धों में हीनयान और महायान, सिख धर्म में जटसिख और रविदासीय. इन के बीच एका नहीं है. आपस में अनबन, कलह चलती आईर् है. एक गुरु या देवता को मानते हुए भी आपस में बैर ही नहीं रहा, कट्टर दुश्मनी भी पनपती रही है.
धर्म एक मत अनेक भारत के बाहर से आए दूसरे धर्मों में भी अलगअलग मत बने हुए हैं. इसलाम में शिया और सुन्नी, ईसाइयों में कैथोेलिक और प्रोटेस्टैंट. भारत के हिंदू धर्म में तो जो भी गुरु आया उस ने अपनी अलग दुकान खोल ली, अलग ग्राहक बना लिए, उन्हें अलग पहचान चिह्न दे दिए और अपनेअपने अनुयायियों को दूसरों से अलग रहने का आदेश दे दिया.
भारत का एक विशाल समूह स्वयं को किसी न किसी धर्म से संबंधित अवश्य बताता है. शैव समाज की स्थापना बासवन्ना ने 12वीं शताब्दी में की थी. इसी मत के उपासक लिंगायत कहलाते हैं. बासवन्ना के अनुयायियों में अधिकतर दलित थे. हिंदू धर्म की भेदभाव वाली व्यवस्था के बीच उन्होंने समाज सुधार शुरू किया. उन्होंने जाति व्यवस्था में दमन के खिलाफ आंदोलन छेड़ा. वेदों को खारिज किया और मूर्तिपूजा का विरोध किया.
लिंगायत को अलग धर्म घोषित करने की मांग हमेशा से की जाती रही है. इस समुदाय के 2 वर्ग हैं. लिंगायत और वीरशैव. लिंगायत दक्षिण भारत के कर्नाटक, आंध्र प्रदेश की हिंदू धर्म की चातुर्वर्ण्य व्यवस्था की सताई निचली जातियां हैं जिन के साथ सदियों से छुआछूत, भेदभाव होता आया है. वे अब वेदों में विश्वास नहीं करते और हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार अपना जीवन नहीं जीते. इस के उलट, वीरशैव लिंगभाव वेदों में विश्वास करते हैं. वे चातुर्वर्ण्य व्यवस्था को भी मानते हैं और सभी परंपराओं व मान्यताओं का दृढ़ता से पालन करते हैं जो ब्राह्मण कहते या करते हैं?. आम मान्यता है कि लिंगायत और वीरशैव एक ही हैं पर कहा गया है कि एक हैं नहीं. वीरशैव लोगों का अस्तित्व बासवन्ना के आने से पहले था और वे शिव की पूजा करते हैं. उधर, लिंगायत समुदाय का कहना है कि वे शिव की पूजा नहीं करते, लेकिन अपने शरीर पर ईष्टलिंग धारण करते हैं. ईष्टलिंग एक गेंदनुमा आकृति होती है जिसे वे धागे से अपने शरीर से बांधते हैं.
हिंदू धर्म से जितने भी अलग पंथ, संप्रदाय बने हैं वे इस के भीतर की जातिगत भेदभाव, छुआछूत, ऊंचनीच जैसी बुराइयों को खत्म करने के नाम ले कर बने पर बाद में इन पंथों ने भी उसी तरह की बुराइयां अपना लीं. हर पंथ अपने अनुयायियों के लिए आचारसंहिता बनाता है और जोर दिया जाता है कि वे अपनी जीवन पद्धति को उस के बताए अनुसार चलाएं. हर पंथ में किसी न किसी तरह की जाति व्यवस्था पिछले दरवाजे से कहीं न कहीं आ बैठी है. गैरबराबरी का पेंच समाज में विभाजन के भेदभाव के चलते एकता बाधित रही है. हिंदू वर्णव्यवस्था के प्रति बढ़ते आक्रोश के कारण हाल के दशकों में हजारों दलित, अछूत बौद्ध और ईसाई धर्म की शरण में चले गए. इस की प्रतिक्रियास्वरूप भाजपा द्वारा शासित कई राज्यों द्वारा कानून बना कर इसलाम या ईसाई धर्म में धर्मपरिवर्तन करना मुश्किल बना दिया गया पर हिंदू धर्म में बराबरी पर ध्यान नहीं दिया गया. भेदभाव वाली व्यवस्था को अब भी जायज ठहराने की कोशिश की जाती है. बासवन्ना जैसे समाजसुधारकों का उद्देश्य विभिन्न जातियों, वर्गों में बंटे समाज को भेदभाव से मुक्त कर समानता, एकता के सूत्र में बांधना था, पर राजनीतिक दल और धर्म के कारोबारी अपने स्वार्थों के लिए समाज को विभाजित कर फायदा उठा रहे हैं.
1980 के दशक में लिंगायतों ने कर्नाटक में ब्राह्मण रामकृष्ण हेगड़े पर भरोसा जताया था. जब लोगों को लगा कि जनता दल स्थायी सरकार देने में विफल है तो उन्होंने कांग्रेस के वीरेंद्र पाटिल का समर्थन किया. 1989 में कांग्रेस की सरकार बनी और पाटिल मुख्यमंत्री चुने गए पर विवाद के चलते राजीव गांधी ने पाटिल को एयरपोर्ट पर ही मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था. इस के बाद लिंगायत समुदाय ने कांग्रेस से मुंह मोड़ लिया और फिर से हेगड़े का समर्थन किया. हेगड़े की मृत्यु के बाद लिंगायतों ने भाजपा के बी एस येदियुरप्पा को अपना नेता माना और 2008 में येदियुरप्पा राज्य के मुख्यमंत्री बने पर कुछ समय बाद उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण पद से हटाया गया तो 2013 के चुनाव में लोगों ने भाजपा से मुंह मोड़ लिया.
अब विधानसभा चुनावों में येदियुरप्पा को एक बार फिर से भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने की वजह है कि लिंगायत समाज में उन का मजबूत जनाधार है. कांग्रेस द्वारा लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दे कर येदियुरप्पा के जनाधार को कमजोर करने की ही बड़ी कोशिश मानी जा रही है.
हिंदू समाज ने अपने धर्म के विभाजन से निकले बुरे नतीजों से कोई सबक नहीं सीखा. वह टुकड़ोंटुकड़ों में बंटता जा रहा है. जितना विभाजन बढ़ रहा है उतनी ही नफरत, संघर्ष और हिंसा बढ़ रही है. हिंदू धर्म हजारों समाजों, पंथों, संप्रदायों और विचारधाराओं का कूड़ाघर है. इस के कमजोर बौद्धिक आधार वाले भारतीय समाज की प्रकृति मूर्खता से सराबोर यों ही नहीं है जिसे आसानी से किसी भी दिशा में हांका जा सकता है.
नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान, म्यांमार, पाकिस्तान, बंगलादेश, मलयेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया के राजा अलगअलग थे, पर फिर भी मिथक रहा है कि यह अखंड भारतवर्ष था, वह टुकड़ेटुकड़े क्यों हुआ? वहां अब केवल अवशेष बचे हैं. 1947 में राजनीतिक कारणों से एक बड़ा भाग भारत बना और एक ही केंद्र के अंतर्गत है पर क्या यह आज भी एक ही समाज के लोगों का देश है? विभाजन और हिंसा एक ही धर्म में होने के बावजूद बराबरी न होना, समाज का अलगअलग विभाजन और इस विभाजन के कारण जंबूद्वीपे भारत का इतिहास विभाजनों के खून से सना हुआ है. मध्यकाल में शैव, शाक्त और वैष्णव आपस में लड़ते रहते थे. आर्यअनार्य के युद्ध, ब्राह्मणबौद्धों का संघर्ष इतिहास में दर्ज है. लिखित इतिहास के उदाहरणों में से 1310 महाकुंभ में महानिर्वाणी अखाड़े और वैष्णवों के बीच हुए खूनी संघर्ष में सैकड़ों जानें गईं. 1760 में शैव संन्यासियों और वैष्णव बैरागियों के बीच लड़ाई में सैकड़ों लोग मारे गए. 1984 सिख विरोधी दंगे इसी विभाजन से उपजी घृणा का परिणाम था. उस से पहले पंजाब में हिंदुओं की हत्याएं हुईं. सिखों में स्वयं आपसी ऊंचनीच के भेद पर दंगे, हिंसा आम हैं. देशभर में आएदिन दलितों के खिलाफ हिंसा जारी है.
यूरोपीय समाज ने अपने धर्म में फैलते पाखंड से सीख ली. वहां मध्यकाल में पुनर्जागरण आंदोलन शुरू हुआ. 14वीं से ले कर 17वीं शताब्दी तक आंदोलन चला. इस आंदोलन में ज्ञानार्जन ने जोर पकड़ा. शिक्षा में सर्वव्यापी सुधार हुआ. तकनीक का विकास हुआ और लोगों में दुनिया को समझने में आमूल परिवर्तन आया. असल में जितने धर्म, पंथ, संप्रदाय होंगे उतनी ही संकीर्णता बढे़गी. कहने को हर धर्म कहता है कि वह प्रेम, सहिष्णुता, शांति और एकता का पाठ सिखाता है पर पंथों ने उसे बांट दिया. पंथ एक संकीर्ण विचारधारा है जिस ने सिर्फ बांटने का काम किया है. और धर्म तो एक गांव को भी एक शामियाने के नीचे नहीं ला पाता, देश तो बहुत दूर की बात है.
स्वार्थी व पाखंडी लोग अलग पंथ का निर्माण कर लेते हैं. किसी वाकपटु प्रचारक के उपदेशों के नाम पर ढेर सारी आचारसंहिताएं, नियम, आचरण संबंधी लंबी फेहरिस्त बना कर समाज पर थोप दी जाती है. उस के नाम पंथ बन जाता है और फिर पंथ के नाम पर अलग किताबें बनेंगी, नियम बनेंगे, मूर्तियां बनेंगी, ध्वजा बनेंगी. फिर अपनेअपने पंथ का प्रचार किया जाने लगेगा. अनुयायी बनाने की होड़ लगेगी, इस से पंथों के बीच स्पर्धा, ईर्ष्या उपजेगी. और आपस में झगड़े होने लगेंगे. हर पंथ कहता है मेरा पंथ बड़ा है, सच्चा है, असली है. मेरी ध्वजा ऊंची है. इस तरह पंथ और उस के अनुयायी दूसरे पंथों और उन के अनुयायियों से अलग हो जाते हैं. बंटवारे से अपनापन भूल कर नफरत का मिजाज बन जाता है. आपस में आस्था और विचारधाराओं का बंटवारा हो जाता है पर, दरअसल, यह मानवता का बंटवारा होता है. शांति, प्रेम, एकता खत्म हो जाती है. पंथ कई बार धर्म बन जाता है, दूसरों के खून का प्यासा.
अंधविश्वासी भीड़ चतुर, पाखंडी लोगों द्वारा गुरु बन कर अंधविश्वासी जनता को अपना अनुयायी बना कर नया मत पेश कर चलाना व्यवसाय हो गया है. हिंदू समाज खुद ही टुकड़ों में बंट कर अपनी अलग पहचान बनाए रखना चाहता है. वह बराबरी की बात तो करता है पर जब फायदे की बात आती है जो स्वयं को धर्म, जाति, वर्ग, गोत्र, उपगोत्र से मुक्त नहीं कर पाता. इसी का फायदा धर्मगुरु उठा रहे हैं और अपने स्वार्थ के लिए उसे बांट रहे हैं. पंथों ने जनता की उत्पादक सोच को कुंद कर दिया है. क्या यह वजह नहीं है कि पिछले दशकों में देश में कोई नया उद्योग नहीं आया, सिर्फ धंधे आए हैं.
जो भी व्यक्ति जिस भी देवता, अवतार, गुरु, संत, नेता को पूज रहा है वह देश के टुकड़े कर रहा है. ये जितने पंथ, संप्रदाय बने हुए हैं या बन रहे हैं वे समाज के भले के लिए नहीं बन रहे. कोई भी पंथ समाज के भले के लिए कुछ नहीं कर रहा है. अगर सुधार के लिए बने हैं तो समाज में सुधार दिखता क्यों नहीं. अनगिनत पंथों, संप्रदायों के चलते चोरी, बेईमानी, अकर्मण्यता, अंधविश्वास, आडंबर, पाखंड कम नहीं हुआ. समाज में प्रेम, शांति कायम नहीं हुई है. इस के उलट, समाज, परिवार में कलह, अशांति बढ़ती जा रही है. पंथों, संप्रदायों की सत्ता में भ्रष्टाचार, ऐयाशी की गंगा मुहाने तोड़ रही है. आएदिन पंथों के गुरु बलात्कार, छेड़खानी के मामलों में जेल जा रहे हैं.
यह सब खंडखंड बंटते समाज के कारण है. यह भारतीय समाज के लिए एक चुना हुआ आत्मघात है. राजनीतिक दलों और धर्म के धंधेबाजों को हिंदुओं को बांट कर रखने में ही भलाई नजर आती है. कठिनाई यह है कि शिक्षित समाज भी कर्मठता से ज्यादा धर्मस्थलों की चिंता कर रहा है. कारखानों और प्रयोगशालाओं की जगह सदियों पुराने रीतिरिवाजों का मूर्खतापूर्ण पालन कर नए भारत की कल्पना की जा रही है. यह कमजोर नींव पर न होगा.
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