लेखक मनोरंजन के व्यवसाय का स्टार होना चाहिए : तनुजा चंद्रा

टीवी धारावाहिक ‘जमीन आसमान’ से कैरियर की शुरुआत करने वाली निर्देशक और लेखिका तनुजा चंद्रा मुंबई की हैं. क्रिएटिव परिवार में जन्मी तनुजा को बचपन से ही इस क्षेत्र में जाने की इच्छा थी. स्वभाव से नम्र और हंसमुख तनुजा की मां कामना चंद्रा फिल्म राइटर हैं. लेखक के रूप में फिल्म ‘दिल तो पागल है’ तनुजा के कैरियर की सबसे सफलतम फिल्म है. उन्होंने हमेशा महिला प्रधान फिल्में बनायीं और सफल रहीं, मसलन जख्म, संघर्ष, दुश्मन आदि. रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘करीब-करीब सिंगल’ उनकी एक अलग प्रयास थी, जिसमें भी उन्हें सफलता मिली. उनके हिसाब से फिल्म इंडस्ट्री में महिला लेखकों की कमी है, जिसे बढ़ावा देना चाहिए और इसी प्रयास में वे फर्स्ट स्टेप एंटरटेनमेंट कैपिटल द्वारा ‘राइटर्स लाउन्ज’ के उद्घाटन पर मिली. बात हुई, पेश है अंश.

इस लाउंज से जुड़ने की वजह क्या है?

मैं घर पर लिखती हूं, लेकिन कई बार ऐसा महसूस होता है कि कहीं बाहर जाकर, जगह बदलूं, इससे दिमाग और शरीर में एक फुर्ती सी आ जाती है. इसके अलावा लेखक को कभी भी इंडस्ट्री में उतना महत्व नहीं दिया जाता, जितना देना चाहिए. जबकि कहानी और स्क्रिप्ट किसी फिल्म को सफल बनाने में अहम् होते है. ऐसे में इस तरह के लाउंज के होने से राइटर्स बैठकर एक दूसरे की भावनाओं को शेयर कर सकते हैं, अपनी क्रिएटिविटी को निखार सकते हैं. साथ ही नए लेखकों को भी मेन स्ट्रीम में जुड़ने का अवसर यहां मिलेगा और एक अच्छी कहानी फिल्म को मिल सकेगी.

लेखन के क्षेत्र में आने की प्रेरणा कहां से मिली?

पहले मैं पत्रकार बनना चाहती थी और ये भी लेखन से कुछ हद तक सम्बंधित है. उस दौरान मैंने कुछ सामाजिक कहानियां लिखी थी, क्योंकि मेरे परिवार ने मुझे शुरू से कुछ लिखने, पढ़ने और क्रिएटिव काम करने के लिए प्रोत्साहन दिया. मेरी मां भी फिल्मों से जुडी थी, उनसे मुझे प्रेरणा मिली. पहले एक किताब लिखी और इसके बाद टीवी धारावाहिकों में मैंने लेखन का काम किया, लेकिन फिल्म बनाने की इच्छा थी. उस समय लेखन के क्षेत्र में महिलाओं के लिए कुछ नहीं था. मैं लकी थी कि पहले लेखक फिर निर्देशक बनी. निर्माता निर्देशक महेश भट्ट के साथ जब मैंने पहले फिल्म ‘जख्म’ ‘तमन्ना’, में काम किया तो असल में मैंने फिल्म लेखन को सीखा,  बाद में वह काम आया. मैं आज फिल्म इसलिए निर्देशन करती हूं, क्योंकि उसकी कहानी मुझे पसंद होती है. हर फिल्म में मैं निर्देशक के साथ को राईटर भी रहती हूं.

किसी फिल्म को सफल बनाने के लिए एक अच्छी कहानी कितना महत्व रखती है?

असल में हौलीवुड में यह प्रोसेस चलता है कि पहले एक कहानी लिखी जाती है. इसके बाद निर्देशक की कास्टिंग की जाती है और इसे में सही भी मानती हूं. यहां वैसे नहीं होता है पर, अब होने लगेगा. कई लोग ऐसे भी हैं, जो कहानी लिखकर फिर उसके अनुसार निर्देशक का चुनाव करते हैं और एक सही निर्देशक उससे एक अच्छी फिल्म बना लेता है, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती, क्योंकि मैं जिस फिल्म का निर्देशन करती हूं उसकी को राईटर रहकर उसे समझती हूं. फिर फिल्म बनाती हूं.

आजकल रीमेक और सिक्वल का जमाना चल पड़ा है, इसे कितना सही मानती है? क्या लेखकों की कमी हो रही है?

कहानियों की कमी नहीं है. नयी कहानियां भी मिल सकती है. सिक्वल मैं बनाना नहीं, देखना पसंद करती हूं. मुन्ना भाई एम बी बी एस जैसी कुछ फिल्मों में अगर आप चाहे तो अलग-अलग घटनाओं को लेकर कुछ कर सकते हैं. ये अधिकतर वेब सीरीज में सूट करती है, जो अब काफी आगे आ रही है.

लेखकों की ही नहीं, महिला फिल्म निर्देशकों की भी कमी दिखाई पड़ रही है. इतने सालों में थोड़ी ही महिला निर्देशक बढ़ी हैं. 50 प्रतिशत महिला निर्देशक और बहुत सारे फिल्म लेखक होने की जरुरत है.

क्या वेब सीरीज के आने से फिल्में ‘सफर’ करेंगी?

ऐसा नहीं है, हर बदलाव का फायदा होता है. उसकी स्वागत की जानी चाहिए, लेकिन जो वेब पर दिखाया जा रहा है उसके कंटेंट रियल लाइफ से ‘रिलेटेबल’ हो, उस पर थोड़ी ध्यान देने की जरुरत है. मैं खुश इस बात से हूं कि जिन कहानियों की फिल्में नहीं बन सकती, उसे वेब पर दिखाया जा सकेगा, क्योंकि इसमें सेंसरशिप का झंझट नहीं होती.

आज कला की आज़ादी कितनी खत्म हो रही है?

किसी भी भाव को अगर आप दबायेंगे, तो उससे नुकसान ही होगा. किसी को अगर कोई फिल्म अच्छी न लगे, तो उसे न देखे. मैं खुद किसी भी तरह के सेंसरशिप के खिलाफ हूं. कोई भी फिल्म निर्माता उस तरह से फिल्में नहीं बना सकता, जैसी रियल लाइफ में होती है. उसे मनोरंजन के हिसाब से बनाना पड़ता है, ताकि उसे देखकर दर्शक को घबराहट या किसी प्रकार का डर न लगे.

पुरुष प्रधान इंडस्ट्री में आपने कामयाबी कैसे हासिल की?

शुरू में मुझे कोई मुश्किल नहीं हुई, क्योंकि उन्हें लगता था कि ये लिख तो सकती है, पर निर्देशन नहीं कर सकती. जब मैंने पहली फिल्म ‘दुश्मन’ का निर्देशन किया तो सभी चौंक गए थे, लेकिन निर्माता महेश भट्ट को विश्वास था कि मैं कर सकती हूं. मुश्किलें विषय को लेकर आती है, जेंडर को लेकर कम आती है, क्योंकि इसमें बहुत सारा पैसा लगा होता है, ऐसे में फिल्म कितनी सफल होगी, पैसा कितना वापस आ सकेगा इसे लेकर निर्माता चिंतित रहते हैं. विषय सही होने पर अधिक समस्या नहीं होती. पहली फिल्म के दौरान मुझे काफी चर्चा करनी पड़ी थी, क्योंकि वह महिला प्रधान फिल्म थी, उसमें एक हीरो को कास्ट करना और उसके लिए लिखना पड़ा था.

लेखक की कहानी पर निर्माता निर्देशक की कितनी दखलंदाजी होती है?

दखलंदाजी हर क्षेत्र में होती है, लेखक हो या निर्देशक, क्योंकि जो पैसा लगाता है उसे लगता है कि फिल्म हिट हो. जबकि किसी भी फिल्म की सफलता की कोई फार्मूला नहीं होता. अगर कुछ है, तो वह यह है कि जो लोग दिखा रहे हैं, उससे कुछ अलग आप दिखाए और रिस्क भी लें, जो कठिन है. मुझे भी काफी चर्चा और रिजेक्शन झेलना पड़ता है. फिल्म मेकिंग बड़ी प्रोसेस है, जिसमें एक टीम होती है, मेरी कोशिश ये रहती है कि मैं कहानी से न भटकूं.

कहानी मुख्य होते हुए भी लेखक को बहुत कम पैसा फिल्मों में मिलता है, इस बात से आप कितनी सहमत हैं?

मैं इससे पूरी सहमत हूं, लेखक को महत्व कम देने के अलावा पैसे भी कम दिए जाते हैं. उसका नाम कोई जान भी नहीं पाता. जबकि उसे सबसे अधिक सम्मान मिलना चाहिए. वही मनोरंजन के व्यवसाय का स्टार होना चाहिए.

यहां तक पहुंचने का श्रेय किसे देती हैं?

मेरी मां और पिता को इसका श्रेय देती हूं, क्योंकि उनसे मैंने किसी भी काम की अहमियत और वचनबद्धता को अपनाया है.

कौन सी फिल्म आपके दिल के करीब है?

पहली फिल्म ‘दुश्मन’ जिसका निर्देशन मैंने किया था. मेरे दिल के बहुत करीब है. इसकी कहानी मेरी नहीं थी. इसके अलावा फिल्म ‘सुर- मेलोडी औफ लाइफ’ और ‘करीब करीब सिंगल’ भी मेरी मनपसंद फिल्में हैं, जिसे मैंने लिखा और निर्देशन भी किया.

खाली समय में क्या करती हैं?

लोगों से मिलती हूं, सबकी बातें सुनती हूं और उसे एन्जाय करती हूं. इसके अलावा किताबें पढ़ती हूं.

बौलीवुड सिंगर पापोन पर गलत तरीके से कंटेस्टेंन्ट को किस करने का आरोप

सिंगिंग रियलिटी शो ‘द वौइस इंडिया किड्स’ में बतौर जज की भूमिका में नजर आ रहे बौलीवुड सिंगर पापोन के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई है. शो में पापोन के साथ साथी जज की भूमिका में शान और हिमेश रेशमिया नजर आ रहे हैं. पापोन पर शो में एक बच्ची को गलत तरीके से किस करने का आरोप लगा है.

सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने पापोन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है. पापोन ने अपने वेरिफाइड फेसबुक पेज पर होली स्पेशल का एक लाइव वीडियो शेयर किया था, जिसमें वह एक नाबालिग लड़की को किस करने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं. सोशल मीडिया पर वीडियो शेयर होने के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया.

सुप्रीम कोर्ट के वकील रुना भूयान ने नेशनल कमीशन फौर प्रोटेक्शन औफ चाइल्ड राइट के तहत पापोन के खिलाफ मामला दर्ज करवाया है. शिकायत में वकील ने कहा, “पापोन का एक नाबालिग लड़की के साथ ऐसा व्यवहार हैरत में डालने वाला है, वह बच्ची को रंग लगाते हुए नजर आ रहे हैं, इसके बाद वह बच्ची को किस करने की कोशिश करते दिख रहे हैं.

वीडियो को देखने के बाद मैं भारत के रियलिटी शो में बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हूं.” सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में पापोन होली के खास एपिसोड में बच्चों के साथ और क्रू मेंबर्स के साथ मस्ती करते हुए नजर आ रहे हैं. पापोन वीडियो में गाना गाते हुए भी नजर आ रहे हैं. वहीं, पापोन बगल में खड़ी एक बच्ची के चेहरे पर रंग लगाने के बाद उसे किस करते हुए भी दिख रहे हैं. वीडियो में देखा जा सकता है कि पापोन क्रू मेंबर्स को लाइव वीडियो कट करने की बात कहते हुए भी नजर आ रहे हैं.

पापोन का यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. खबर लिखे जाने तक वीडियो को 78 हजार से ज्यादा लोग देख चुके हैं. पापोन के मैनेजर ने मामले पर सफाई देते हुए कहा कि पापोन का मकसद गलत नहीं था.

मांसाहारी बनाम शाकाहारी भोजन

मांसाहारी खाने से होने वाली गंभीर बीमारियों की दिनप्रतिदिन लंबी होती लिस्ट में दिल की बीमारी, डायबिटीज, ब्रैस्ट कैंसर, हार्टअटैक और ओवेरियन कैंसर जैसी बीमारियां पहले से शामिल हैं और अब इस में कैल्सियम की कमी हो जाने के कारण होने वाली बीमारी का नाम भी जुड़ गया है. 65 साल से अधिक की मांसाहारी महिलाओं में हड्डियों से संबंधित बीमारी होने का खतरा 25% तक अधिक होता है, जबकि समान आयु वाली शाकाहारी महिलाओं में यह खतरा सिर्फ 18% ही होता है.इसलिए मांसाहारी लोगों में फ्रैक्चर इत्यादि होने का खतरा शाकाहारी लोगों की अपेक्षा दोगुना होता है. अब सवाल यह उठता है कि मांसाहारी खाना हड्डियों में कैल्सियम की मात्रा को कैसे प्रभावित करता है. इस के लिए खून में मौजूद पीएच लेवल व इस के संतुलित रहने की प्रक्रिया को समझना जरूरी है.

पीएच लेवल और इस का संतुलन 

पीएच एक मानक है, जिस के द्वारा खून में ऐसिडिक और ऐल्कालाइन गुणों में भेद किया जाता है. साथ ही, यह खून के हाइड्रोजन कणों की एकाग्रता को भी बताता है. पीएच बैलेंस को 0 से 14 के स्केल पर मापा जाता है. यदि खून में पीएच लेवल 1 है तो शरीर ऐसिडिक और यदि 14 है तो शरीर ऐल्कालाइन होता है. खून में पीएच की मात्रा 7 होने पर इसे न्यूट्रल माना जाता है. मानव शरीर का खून ऐल्कालाइन स्वभाव का होता है, इसलिए यह पीएच लेवल को 7.35 और 7.45 के बीच बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करता है. सांस लेने व यूरिन पास होने की प्रक्रिया के द्वारा पीएच लेवल संतुलित रहता है. यूरिन पास होते रहने से आवश्यकता के अनुसार खून में ऐल्काली और ऐसिड की मात्रा घटतीबढ़ती रहती है, जिस से पीएच लेवल संतुलित रहता है. ठीक इसी प्रकार श्वसन क्रिया में जब कार्बन डाईऔक्साइड बाहर निकलती है, तो रक्त ऐल्कालाइन बना रहता है. यदि शरीर से कार्बन डाईऔक्साइड निकलने का स्तर गिरने लगे तो खून में ऐसिड की मात्रा बढ़ने लगती है. खून में कार्बन डाईऔक्साइड और सोडियम बाई कार्बोनेट का संतुलन ही पीएच लेवल का निर्धारण करता है.

डाइट और पीएच लेवल

मेटाबौलिज्म की क्रिया शरीर में खाना पचने के बाद शुरू होती है, जिस से हमें ऊर्जा मिलती है. यदि शरीर में मेटाबौलिज्म की क्रिया ठीक प्रकार से हो रही है, तो पीएच लेवल का संतुलन काफी हद तक डाइट पर निर्भर करता है यानी खाना ऐसिडिक था या ऐल्कालाइन. हमें ज्यादा से ज्यादा ऐसा खाना लेना चाहिए, जो खून को ऐल्कालाइन बनाए रखने में सहायता कर सके. खाने के पदार्थों में 80% ऐल्कालाइन तत्त्व और सिर्फ 20% ऐसिडिक तत्त्व? होने चाहिए.

ऐसिडिक और ऐल्कालाइन खाना

ज्यादातर खाद्यपदार्थ हमारे शरीर के लिए आवश्यक खनिज तत्त्वों की जरूरत को पूरा करते हैं और ये खनिज तत्त्व ऐसिड और ऐल्कालाइन दोनों रूपों में होते हैं. ऐसिड ग्रुप को ‘ऐनौयन’ के नाम से जाना जाता है, जिस में क्लोराइड और फास्फेट होते हैं और ऐल्कालाइन गु्रप को ‘कैटायन’ के नाम से जाना जाता है, जिस में सोडियम व कैल्सियम होते हैं. हरी सागसब्जियों व फलों में मजबूत ऐल्कालाइन तत्त्वों के साथ कुछ मात्रा में ऐसिडिक तत्त्व भी होते हैं, लेकिन शरीर में पहुंचने के बाद ये और्गेनिक ऐसिड, औक्सीकरण की प्रक्रिया के बाद ऐल्कालाइन का ही निर्माण करते हैं. इसलिए अधिक से अधिक मात्रा में साग, हरी सब्जियां और फल खाने से खून ऐल्कालाइन बना रहता है. वहीं दूसरी तरफ पशुओं के मांस में पाए जाने वाले ऊतकों में अत्यधिक मात्रा में फास्फोरिक ऐसिड होता है, जो ऐसिड बनाने का मुख्य स्रोत है. जब यह फास्फोरिक ऐसिड शरीर के भीतर औक्सीजन से रासायनिक क्रिया करता है, तो ऐसिड का निर्माण करता है. ऐसिड के निर्माण में सहायक खाने की लिस्ट में मुख्य रूप से मीट, मछली, अंडा, मक्खन, दूध, अनाज, मूंगफली और आलू शामिल हैं. खाने के अन्य पदार्थों में जो हमेशा म्यूकस और ऐसिड बनाने में सहायक होते हैं, रिफाइंड स्टार्च और गेहूं से बने उत्पाद शामिल हैं.

ओवरऐसिडिटी का शरीर पर प्रभाव

ओवरऐसिडिटी या ऐसिडोसिस का शरीर पर बहुत बुरा असर होता है. इस के कारण उन खनिज तत्त्वों में निरंतर कमी होने लगती है, जो ऐसिड को न्यूट्रल करते हैं. यहां तक कि खनिजों में मौजूद शर्करा, जो रासायनिक तौर पर पहले से न्यूट्रल होती है और फल, जो ऐल्कालाइन होते हैं, ये सभी ऐसिड बनाने लगते हैं. इस के बढ़ते प्रभाव के कारण शरीर दर्द के प्रति संवेदनशील हो जाता है और मेटाबौलिज्म की क्रिया धीरेधीरे निष्क्रिय होने लगती है. लगातार बढ़ती ऐसिडिटी से हिस्टामाइन का स्राव शुरू हो जाता है, जिस के कारण जलन, सूजन और संक्रमण होने लगता है और इस का सीधा असर त्वचा पर होता है. जोड़ व गठिया की बीमारी से ग्रस्त लोगों को असहनीय पीड़ा का एहसास होता है और शरीर संक्रमण के प्रति संवेदनशील हो जाता है. इस स्थिति में म्यूकस के निर्माण में भी अचानक तेजी आ जाती है, जिस से कीटाणुओं को पनपने के लिए अनुकूल माहौल मिल जाता है. ओवरऐसिडिक शरीर में ट्यूमर बनने का खतरा भी सामान्य से अधिक होता है.

कैल्सियम की मात्रा पर ऐसिडिटी का प्रभाव

ओवरऐसिडिक खून वाले शरीर में सब से ज्यादा खतरनाक स्थिति तब पैदा होती है, जब कैल्सियम की मात्रा में कमी होना शुरू हो जाती है. कैल्सियम की कमी वाले शरीर में ऐल्कालाइन बनाने वाले फल व सब्जियां भी ऐसिड बनाने लगते हैं. यदि खून में पीएच लेवल अत्यधिक ऐसिडिक होने लगे, तो हड्डियों में मौजूद कैल्सियम और फास्फोरस बाहर आ कर ऐसिड की मात्रा को न्यूट्रल करते हैं ताकि पीएच लेवल नियंत्रित रह सके. इस को ‘सरवाइवल’ की स्थिति कहा जाता है. पूरे शरीर को औक्सीजन और ऊर्जा पहुंचाने के लिए खून को संतुलित पीएच की आवश्यकता होती है. इसलिए किसी भी कारण से यदि पीएच लेवल में कमी आती है, तो हड्डियों में कैल्सियम भी स्वयं ही कम होने लगता है. जितनी अधिक मात्रा में कैल्सियम बाहर आने लगता है, हड्डियां और जोड़ उतने ही कमजोर होने लगते हैं और एक हलका सा झटका भी फ्रैक्चर का कारण बन सकता है.जैसेजैसे आयु बढ़ने लगती है, वैसेवैसे ही खून में ऐसिड को न्यूट्रल करने के लिए बाहर निकला कैल्सियम शरीर के नर्म ऊतकों में जमा होने लगता है. डाक्टर इसे ‘ऐक्स्ट्रा स्केलेटल कैल्सीफिकेशन’ कहते हैं. इस का मतलब यह होता है कि जो कैल्सियम शरीर की हड्डियों में होना चाहिए वह एक नर्म ऊतक में जमा हो रहा है, जिस को कैल्सियम की कोई आवश्यकता नहीं है.

इस प्रकार उत्पन्न हुई समस्या कई रूपों में सामने आती है, जैसे दिल की बीमारी, कैंसर, असमय झुर्रियां, आर्थ्राइटिस, किडनी में स्टोन, मसूढ़ों से संबंधित बीमारी, जैसे दांतों की जड़ें कमजोर होना, जिंजीवाइटिस व पायरिया, औस्टियोपोरोसिस, कैटरेक्ट, सिरदर्द, जी मिचलाना और आंखों की पुतलियों का लाल होना इत्यादि. मेटाबौलिज्म निष्क्रिय होने के अलावा ओवरऐसिडिटी या ऐसिडोसिस की समस्या उत्पन्न होने का मुख्य कारण मांसाहारी भोजन करना और मसल्स पर जोर देने वाला काम करना है. मांसाहारी भोजन को त्याग कर शाकाहारी भोजन को अपनाना आप को इस स्थिति से बचा सकता है.

मांसाहार से शरीर पर प्रभाव

अत्यधिक मांसाहारी भोजन करने से ओवरऐल्कालाइन होने की समस्या भी पैदा हो सकती है, क्योंकि पोटैशियम की लगातार कमी होने लगती है और कैल्सियम जोड़ों की समस्या को और खतरनाक बनाने के साथसाथ किडनी में स्टोन भी बनाने लगता है. इस के अलावा गैस्ट्रिक ऐसिड में कमी भी इस समस्या का कारण बन जाती है जिस से प्रोटीन का पाचनक्रिया व खनिज तत्त्वों पर प्रभाव पड़ता है. लिवर में बैक्टीरिया अचानक बढ़ जाते हैं, जिस के कारण डकार आना, बदबूदार सांस और गैस से संबंधित अन्य विकार उत्पन्न होने लगते हैं. अत्यधिक मात्रा में मांसाहार करने से कमजोर हुआ लिवर सारी समस्याएं पैदा करने का मुख्य कारण है. प्रोटीन को शरीर से बाहर जाने से रोकने के लिए अमीनो ऐसिड ईंधन का काम करता है और फिर अमीनो ग्रुप टूट कर यूरिया के रूप में लिवर के अंदर ही बिखर जाता है. लेकिन इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए अत्यधिक ऊर्जा और कुछ विशेष एंजाइम की आवश्यकता पड़ती है, जोकि कमजोर लिवर में संभव नहीं.

इस प्रकार धीरेधीरे लिवर में अमोनियम साल्ट बनने लगता है, जो शरीर में उस जगह जमा होने लगता है, जहां फास्फेट और क्लोराइड जैसे ऐसिड ऐनौयन ग्रुप जमा होते हैं. हमेशा ऐक्टिव रहने वाले लोगों में अच्छी मसल ऐक्टिविटी होती है, जिस से उन के शरीर में मेटाबोलिक ऐसिड जैसे लैक्टिक ऐसिड अधिक मात्रा में बनता है. यदि ये लोग अचानक आलसी हो जाएं, तो शरीर में अधिक अमोनिया को न्यूट्रल करने वाला मेटाबोलिक ऐसिड कम हो जाता है, जिस से खून में ऐल्कालाइन की मात्रा बढ़ जाती है. कार्डियोवैस्कुलर या अन्य गंभीर बीमारियों से पीडि़त लोग इसी प्रकार प्रभावित होते हैं. समस्या पैदा करने वाला दूसरा कारण है किडनी में ग्लूटामाइन व अन्य अमीनो ऐसिड की क्रिया से अमोनियम साल्ट का बनना. साधारण तौर पर यह तभी होता है, जब यूरिन में बढ़े हुए ऐसिड को न्यूट्रल करना हो. लेकिन अत्यधिक मांसाहार करने वाले लोगों में यह क्रिया अत्यधिक अमीनो ऐसिड को बाहर निकालने के लिए भी हो सकती है, क्योंकि इस में न्यूट्रिलाइजेशन के लिए अतिरिक्त ऐसिड आयन की आवश्यकता होती है. जब शरीर में आवश्यकता से अधिक ऐल्कालाइन हो जाए, तो ज्यादा से ज्यादा ऐसिड बनाने वाले फल, सेब के जूस से बना हुआ सिरका और शाकाहारी खाने के साथसाथ अन्य ऐसिड को भी लेना चाहिए. इस से कुछ समय में जलन व सूजन में कमी आने लगती है और हिस्टामाइन प्रोटीन के साथ क्रिया कर के शरीर और त्वचा दोनों को दर्द व संक्रमण के प्रति असंवेदनशील बना देता है.  

ऐसिड व ऐल्कालाइन टैस्ट

आप का शरीर ऐसिडिक है या ऐल्कालाइन, यह जानने के लिए आप घर पर ही एक साधारण टैस्ट कर सकते हैं. इस के लिए 1 छोटा चम्मच हलदी पाउडर को 1/2 लिटर मेथाइलेटेड स्प्रिट या रबिंग अल्कोहल (सर्जरी के दौरान डाक्टर के द्वारा प्रयोग किया जाने वाला अल्कोहल) में मिला कर तब तक हिलाएं, जब तक हलदी पूरी तरह घुल न जाए. अब इस को रख दें और मिश्रण के पीला हो जाने तक इंतजार करें. मिश्रण पीला हो जाने के बाद थोड़ा सा किसी कांच के गिलास में निकाल लें. अब इस में लार या यूरिन की कुछ बूंदें मिलाएं. यदि मिश्रण का रंग लाल हो जाए, तो शरीर में पीएच की मात्रा 6.8 है और यह ऐल्कालाइन है, लेकिन यदि मिश्रण पीला ही रहे तो पीएच की मात्रा 6.8 से भी कम है और शरीर ऐसिडिक है.

कहीं भ्रष्ट न हो जाए बचपन : गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में बच्चों पर दबाव

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के एक नामी विद्यालय में विज्ञान की परीक्षा चल रही थी. विद्यार्थियों के निरीक्षण करने के कार्य पर तैनात वरिष्ठ अध्यापिका ने देखा कि एक छात्रा पांव की तरफ पड़े अपने कुरते का सिरा बारबार उठाती है और फिर ठीक कर देती है. पीछे से उस के करीब जा कर अनुभवी अध्यापिका ने तिरछी नजर से देखा, तो पाया कि सफेद कुरते के उस सिरे के पीछे कुछ फार्मूले लिखे थे.

अध्यापिका ने चपरासी से कैंची मंगवाई और कुरते के उस सिरे को काट कर अपने पास रख लिया और छात्रा से कहा कि कल अपने अभिभावक को ले कर स्कूल आना, तभी परीक्षा में बैठने दिया जाएगा.

हालांकि अध्यापिका चाहती तो परीक्षा में नकल करते हुए उस लड़की को रंगेहाथों पकड़ कर रस्टीकेट करने यानी परीक्षा कक्ष से निकालने की प्रक्रिया अपना सकती थी, लेकिन छात्रा के भविष्य और उस की कोमल भावनाओं को देखते हुए उन्होंने ऐसा नहीं किया.

परीक्षा क्यों

परीक्षा प्रणाली का अर्थ है कि छात्र अपने अध्ययन के प्रति संजीदा हों. वर्षभर जो पाठ्यक्रम उन्हें पढ़ाया गया है, उस से उन्होंने कितना सीखा है, परीक्षा से इस का आकलन हो जाता है. छात्र कठिन परिश्रम व अपनी कुक्षाग्रता के आधार पर परीक्षा में अंक प्राप्त कर अपनी श्रेष्ठता सिद्घ करें, न कि नकल कर के.

‘योर स्कूल एज चाइल्ड’ के लेखक लारेंस कुटनर अमेरिका में एक सर्वेक्षण का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि तकरीबन 70 प्रतिशत छात्रों ने माना है कि उन्होंने अपने हाईस्कूल तक के स्कूली सफर में कभी न कभी नकल की है.

नकल क्यों करते हैं बच्चे

गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस युग में जो बच्चे आगे दौड़ते हैं वे ही जीवन के शिखर तक पहुंच सकते हैं, जबकि प्रतिस्पर्धा में फिसड्डी रहने वाले बच्चों का कैरियर अनिश्चित रहता है. इसलिए आज का छात्र आरंभ से ही यह समझता है कि यदि उसे जीवन में ऊंचाई प्राप्त करनी है तो प्रतिस्पर्धा में सब से, आगे रहना है. ये बातें घर में सोतेबैठते व खाते हर समय मातापिता द्वारा उस से दोहराई जाती हैं.

छात्र जीवन उम्र का ऐसा पड़ाव होता है जहां एकाग्रता केवल लक्ष्य प्राप्त करने की ही होती है. ऐसे में नैतिकता, आदर्श, ईमानदारी आदि पढ़ाए गए पाठ गौण हो जाते हैं. छात्र लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कोई भी मार्ग अपना सकता है फिर चाहे वह नकल करना हो या कोई और.

किसी भी तरह से ज्यादा अंक हासिल करने की होड़ से एक खामोश संदेश यह मिल रहा है कि नकल ऐसे की जाए कि पकड़े न जा सकें और जो न पकड़ा गया वह औरों से आगे निकल गया. अनेक छात्रों में यह धारणा बनी हुई है कि इस खामोश संदेश के विरुद्ध जाना यानी नकल न करने में नंबर कम हो जाएंगे और तब पछतावा होगा. वहीं जो मातापिता इस का विरोध करते हैं उन्हें दाकियानूसी करार दिया जाता है.

बच्चे देश के भविष्य हैं

देश में भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है. जिस को जहां मौका मिल रहा है अपना घर भरने की सोच रहा है. लालची लोगों ने देश के विकास में बाधाएं डाली हैं.

ऐसे माहौल में स्कूलों और अभिभावकों का यह नैतिक दायित्व है कि वे बच्चों को आरंभ से ही नैतिक और राष्ट्र को सर्वोपरि मान कर कार्य करने का पाठ पढ़ाएं. परीक्षा में जो बच्चे नकल करते हैं या शौर्टकट अपनाते है उन पर विशेष ध्यान दें और उन के प्रति सुधार के कार्य करें. क्योंकि जो आज स्कूल जा रहे हैं, कल वे ही देश को चलाएंगे.

बालमन पढ़ें अभिभावक

बच्चों की सब से बड़ी पाठशाला उस का घर होती है. मातापिता का दायित्व है कि वे कारण ढूंढ़ें कि बच्चे ने नकल करने का अपराध क्यों किया. ऐसा हो सकता है कि कुछ और समस्याएं रही हों जिन के कारण बच्चे पर मानसिक दबाव पड़ रहा है और वह स्वतंत्र मानस से अध्ययन नहीं कर पा रहा है. यदि ऐसा है तो मातापिता उस दबाव को दूर करने का प्रयास करें ताकि विद्यार्थी स्वतंत्र मानस से अध्ययन के प्रति निष्ठावान हो जाए और परीक्षा में नकल करने की नौबत न आए.

बच्चे पर कभी भी दबाव न डालें कि वह अमुक बच्चे की तरह अच्छे ग्रेड लाए या अपनी कक्षा या स्कूल में टौप करे. कई बार परीक्षा में नकल करने का कारण अच्छा ग्रेड लाना या अमुक बच्चे से अधिक अंक लाना या टौप करना भी होता है, जिस के लिए बच्चे के मातापिता उस पर जोर डालते रहते हैं. अभिभावकों को चाहिए कि विद्यार्थी को मानसिक दबाव से मुक्ति दिलाने के लिए उसे ऐसे खेल खेलने की सलाह दें जिन में प्रतिस्पर्धा का दबाव न हो.

अनैतिक आचरण न अपनाएं

अभिभावक बच्चों के समक्ष सदैव आदर्श प्रस्तुत करें, क्योंकि मातापिता द्वारा किए जा रहे कार्यों का बच्चों की कोमल मानसिकता पर सीधा प्र्रभाव पड़ता है और वे उस का अनुसरण करने लगते हैं. यदि माता या पिता टैक्स बचा कर परिवार में यह कहते हैं कि सरकार को फालतू पैसा देने का क्या फायदा है, तो उन के इस प्रकार के आचरण का छात्र पर बुरा असर पड़ता है, जबकि अभिभावक को परिवार में यही कहना चाहिए कि टैक्स बचाना एक चोरी है और इसे कभी नहीं करना चाहिए.

अभिभावकों की जिम्मेदारी

दिल्ली के एक प्रतिष्ठित सीनियर सैकंडरी स्कूल के प्रिंसिपल बताते हैं कि नकल करते पकड़े गए छात्रों के अभिभावकों को बुलाया जाता है और उन्हें सलाह दी जाती है कि वे अपने बच्चों को घर में अच्छी नैतिक व आदर्श शिक्षा दें ताकि बच्चा जीवन में कभी भी गलत हथकंडा न अपनाए. वे बताते हैं कि अभिभावक बहुत शर्मिंदा होते हैं. और दुखी हो कर बच्चे को भविष्य में इस तरह उन्हें बुलाने की नौबत न आने के लिए बच्चे को समझाते हैं.

कभीकभी अभिभावक इतने क्रोधित हो जाते हैं कि बच्चों पर वहीं हाथ छोड़ देते हैं या फिर घर जा कर उस की बुरी तरह पिटाई करते हैं.

बच्चा इतना तेज होता है कि वह पहले से ही अपनी मां को समझा कर आता है कि फलां अध्यापक मुझ से जलता है और मेरे बगल की सीट में बैठा बच्चा नकल कर रहा था उसे छोड़ दिया जबकि मैं नकल नहीं कर रहा था मुझे पकड़ लिया. ऐसे अभिभावक अपने बच्चे का खुल कर पक्ष लेते हैं और अध्यापक को आड़े हाथों लेते हैं.

भारत में ज्यादा गरीबी क्यों : क्या सरकार इस समस्या को दूर कर पाएगी

हमारा देश प्राचीन काल से गरीब है. गुलामी बाद में आई, गरीबी तो सनातन है. भारत एक ही सनातन धर्म को जानता है, वह है गरीबी. हम लोग जो कहानियां सुनते आ रहे हैं कि भारत सोने की चिडि़या था, उन कहानियों में विश्वास मत करो क्योंकि जिन के लिए भारत एक सोने की चिडि़या था, उन के लिए आज भी सोने की चिडि़या है. वे थोड़े से लोग हैं लेकिन अधिकतर लोगों के लिए कहां सोना, कैसी सोने की चिडि़या? ज्यादातर लोग गरीब और सदा से भूखे रहे. इसलिए कुछ लोग सोने के महल खड़े कर सके.

वास्तव में गरीबों का नाजायज फायदा उठा कर कुछ लोग अमीर बन गए. हम हमेशा से ही भयानक हीनता की भावना से पीडि़त रहे हैं, इसलिए गरीब हैं. हम क्या कर सकते हैं?

हम अवश हैं, विवश हैं. हम किसी न किसी के पीछे भेड़ की तरह चलेंगे, पंडितपुरोहितों का अंधानुकरण करेंगे क्योंकि हीन व्यक्ति कर ही क्या सकता है. उस की सामर्थ्य कितनी? वह हमेशा किसी का पल्लू पकड़ कर ही चलेगा. वह तो भेड़ है, आदमी नहीं. ऐसा आदमी कभी उन्नति नहीं करेगा, हमेशा गरीब ही रहेगा.

हर मानव के जीवन में जन्म और मृत्यु निश्चित है, बाकी कुछ भी निश्चित नहीं है. मानव के जन्म के बाद उसे जीने का अधिकार है चाहे वह गरीब के घर या अमीर के घर में पैदा हो. अगर परिवार के पास रहने के लिए अपना मकान, पेट भर खाना और पहनने के लिए कपड़े नहीं हैं तो हम उसे गरीब परिवार कहेंगे और उस परिवार के सदस्यों को हम गरीब कहेंगे.

इस दुनिया में साधारणतया 3 प्रकार के लोग हैं. एक, गरीब श्रेणी के लोग जिन के पास 3 मूलभूत चीजें रोटी, कपड़ा और मकान नहीं है. दूसरे, मध्य श्रेणी के लोग जिन के पास उपरोक्त 3 आवश्यकताओं में से 2 या 1 आवश्यकता की कमी है और तीसरे, संपन्न लोग जिन के पास तीनों चीजें हैं. कुछ लोग जन्म से ही गरीब परिवार में पैदा होते हैं और कुछ परिस्थितिवश गरीब हो जाते हैं.

गरीबी की यह भौतिकवादी परिभाषा है. कुछ लोग आर्थिक दृष्टि से संपन्न हैं लेकिन मानसिक या शारीरिक दृष्टि से गरीब हैं. लेकिन साधारणतया ऐसे लोगों को गरीब नहीं कहते, क्योंकि उन के पास इलाज करवाने के लिए पर्याप्त धन है.

हमारे देश में 65 प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा के नीचे अपना जीवनयापन कर रहे हैं. खासकर गांवों में 72 प्रतिशत अधिक गरीब लोग रहते हैं क्योंकि ये लोग थोड़ी सी जमीन पर खेती कर के अपना जीवनयापन करते हैं और बिना पानी के खेती मानसून पर निर्भर है. ये लोग खेती से केवल खाने के लिए सालभर का अनाज पैदा कर पाते हैं. गांवों में मजदूरी का काम भी कम मिलता है. इतना ही नहीं, गांव में अधिकतर लोग शादियों में खर्च, मृतक पर खर्च और अन्य धार्मिक कार्यों पर खर्च करते हैं जिस से वे कर्ज में डूबे रहते हैं और हमेशा गरीब ही बने रहते हैं.

कुछ मिस्त्री, कारीगर और मजदूर इतना कमाते हैं कि वे अपने छोटे परिवार का जीवनयापन कर सकते हैं, लेकिन वे हमेशा शाम को नशा करते हैं और व्यसनी हो जाते हैं. नशा चाहे शराब का हो या तंबाकू का या नशीली जड़ीबूटियों का हो, सभी नशे मानव के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं और इन में पैसा खर्च होता है व उन के परिवार गरीबी में दिन काटते हैं. कुछ व्यसनी शरीर से इतने कमजोर हो जाते हैं कि वे अपना काम करने में असमर्थ हो जाते हैं और उन की औरतें घरों में झाड़ूपोंछा व बरतन साफ कर के पैसा कमाती हैं. जब तक लोग नशीली वस्तुओं का सेवन नहीं छोड़ेंगे तब तक गरीबी उन का पीछा नहीं छोड़ेगी.

धर्म की घुट्टी

बचपन से ही सभी भारतवासियों के घरों में धर्म की घुट्टी पिलाई जाती है. जीवन में कुछ अजीब घटनाओं के डर और कुछ सवालों के जवाब न मिलने पर हम इन रहस्यों को अंधविश्वास का रूप दे देते हैं. देश में धर्मगुरुओं की समृद्ध परंपरा रही है. धर्मगुरुओं के भाषणों द्वारा लोगों को दान करने के लिए प्रेरित किया जाता है, क्योंकि दान करने को सब से बड़ा पुण्य माना जाता है. भोलेभाले गरीब लोग केवल मंदिरों में अपनी हैसियत से ज्यादा दान दे कर ही नहीं लुटते आए हैं, बल्कि वे ढोंगी बाबाओं के जगहजगह आश्रमों के जाल में फंसते रहे हैं.

छोटीबड़ी समस्याएं हरेक के जीवन में आती हैं लेकिन ये लोग इन्हीं समस्याओं का हल ढोंगी बाबाओं के आश्रमों में दान दे कर ढूंढ़ने लगते हैं. लाइलाज बीमारी से ग्रस्त लोग, निसंतान दंपती, परिवार में कलह से दुखी, गरीब और बेरोजगार लोग ढोंगी बाबाओं के चंगुल में फंस कर लुटते नजर आते हैं. यह सब से बड़ा कारण है कि हमारे देश में गरीबी बढ़ रही है.

हमारे देश में अधिकतर गरीब लोग धार्मिक हैं और सरकार द्वारा समझाए नारे- ‘हम दो हमारे दो’ को अस्वीकार कर के 2 से अधिक संतानों में विश्वास रखते हैं क्योंकि घर में जितने हाथ बढ़ेंगे उतने लोग मजदूरी कर के पैसा कमाएंगे और घर का खर्च चलाने में सहायक होंगे. लेकिन घर में अधिक सदस्यों के कारण जीवनयापन मुश्किल से हो पाता है. वास्तव में जनसंख्या में वृद्धि हमारे समाज और देश के लिए घातक है. इस से भी गरीबी बढ़ती जा रही है.

डा. मारथा फरहा (प्रोफैसर, विश्वविद्यालय, पैन्सिलवेनिया) के मुताबिक गरीबी में पलने वाले बच्चों की कार्य करने में स्मरणशक्ति की क्षमताएं मध्यम श्रेणी में पलने वाले बच्चों से कम होती है. काम करने में स्मरणशक्ति का अर्थ है रोजाना के कामों को करने की क्षमता, जैसे फोन नंबरों को याद रखना. यहां तक भाषाओं को समझने का काम, पढ़ना और प्रतिदिन की समस्याओं को हल करना भी उन के लिए दुसाध्य कार्य है. उन लोगों को प्रसिद्ध युद्ध की तारीख याद रखना और यहां तक कि साइकिल चलाना भी दुसाध्य लगता है.

डा. फरहा के बाद मेरी इवांस और माइकल स्केम्बर्ग (कोर्नेल विश्वविद्यालय) ने इस विषय पर विस्तृत रूप से अध्ययन किया. उन्होंने नैशनल साइंस एकेडमी के साप्ताहिक जर्नल को बताया कि गरीब बच्चों में तनाव के कारण स्मरणशक्ति की क्षमता कम हो जाती है, जो उन के विकसित हो रहे दिमाग पर असर करती है. बच्चे के पैदा होने पर उस का भार, बच्चे की माता की उम्र, माता की शिक्षा और शादी के बाद पति से संबंध का बच्चों पर कोई असर नहीं पड़ता, लेकिन बच्चों की तनावपूर्ण जिंदगी उन को शिक्षाग्रहण करने नहीं देती. गरीब आदमी भी तनावग्रस्त हो जाते हैं क्योंकि उन्हें अपना भविष्य निश्चित नजर नहीं आता.

माइकल मारमोट ने पता लगाया है कि गरीबी से तनावयुक्त लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. सरकार को इन गरीब बच्चों के तनाव को कम करने की कोशिश करनी चाहिए जिस से शिक्षा हासिल करने में वे दिलचस्पी लें अन्यथा गरीबों के तनावयुक्त बच्चे शिक्षा ग्रहण नहीं करते और गरीब ही रहते हैं.

हमारी सरकार पैट्रोल और डीजल पर टैक्स बढ़ाती है तो सभी वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं. महंगाई लोगों के जीवन स्तर को नीचे धकेल रही है. महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ दी है और मध्यम श्रेणी वाले भी गरीबी में दिन गुजारने लगे हैं.

आत्मकेंद्रित संपन्न वर्ग

देश के लोग बुद्धिमान तो हैं किंतु बुद्धि का उपयोग किस दिशा में होना चाहिए, यह नहीं जानते. धनी लोग निर्बल, कमजोर व गरीब लोगों के साथ आत्मीयता से जुड़ें क्योंकि उन से कट कर किसी का भला होने वाला नहीं है. अंबानी बंधुओं में अपनी बीवियों को तोहफे देने की होड़ मची है. मुकेश अंबानी ने अपनी पत्नी के लिए 242 करोड़ रुपए का जेट विमान खरीद कर दिया तो अनिल अंबानी ने अपनी पत्नी को 400 करोड़ रुपए का लग्जरी फ्लैट तोहफे में दे डाला. इन धनी लोगों के पास देश की गरीब जनता के कल्याण के बारे में सोचने तक का समय नहीं है.

बौलीवुड के चमकते सितारे अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान और अन्य सितारों ने इतना पैसा कमाया है कि वे करोड़ों रुपए अनावश्यक वस्तुएं खरीदने में खर्च करते हैं लेकिन वे देश के भूखे, गरीब व सड़कों पर सोने वाली जनता के कल्याण के बारे में नहीं सोचते. धनी आदमी आत्मकेंद्रित और स्वार्थी होते हैं जो अपने देश की गरीब जनता के कल्याण के बारे में नहीं सोचते. देश के लोगों में मन की एकाग्रता, संकल्पशीलता और प्रशिक्षण का अभाव है, इसलिए धनी आदमी धनी होता जा रहा है और गरीबी बढ़ती जा रही है.

देश को आजाद हुए 69 वर्ष हो गए. सभी राजनीतिक पार्टियां देश से गरीबी को हटाने का वादा करती रही हैं, लेकिन गरीबी तो नहीं हटी. हां, गरीब नेता रातोंरात अमीर जरूर बन रहे हैं. देश में भ्रष्टाचार और हर स्तर पर रिश्वत लेने का बोलबाला है. नेता मस्त है, जनता त्रस्त है. दुनिया की कुल गरीब जनसंख्या की 32.5 प्रतिशत गरीब जनता भारत में है.

सरकारी टैक्स वसूली

सरकार जनता की गाढ़ी कमाई से विभिन्न प्रकार के टैक्स वसूल कर सरकारी खर्चों में व्यर्थ बरबाद करती है जिस के कारण भी देश में गरीबी बढ़ रही है.

दुनिया के सभी देश अपनेअपने विकास में लगे हुए हैं. दुनिया में हर दिशा में विकास हो रहा है. मनुष्य भी निरंतर विकास करता जा रहा है. विकास के आधार पर हम विश्व के देशों को 3 भागों में बांट सकते हैं,  विकासशील राष्ट्र और विकसित राष्ट्र, अविकसित राष्ट्र. जहां अधिक कलकारखाने हैं वे उन्नतिशील यानी विकासशील राष्ट्र हो गए. विकसित राष्ट्रों में मानव जाति के लिए अनावश्यक बातें ज्यादा हैं. मनुष्य के लिए सब से आवश्यक है, रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा आदि. वे राष्ट्र जिन के करोड़ों नागरिक दो वक्त खाने को तरसते हैं, वे अविकसित राष्ट्र हैं. विकसित राष्ट्र अरबों रुपयों के हथियार खरीद रहे हैं और ऐसे भवनों का निर्माण कर रहे हैं जिन की मानव को आवश्यकता नहीं है.

विदेशों में अपेक्षाकृत गरीबी कम है. बैल्जियम में रहने वाले युवक से पता चला कि बैल्जियम की धरती पर कोई पहुंचे और वह रोटी, कपड़ा व मकान जैसी जरूरतों से वंचित रहे, यह वहां की सरकार को मंजूर नहीं. हमारी भारत सरकार भी ऐसी व्यवस्था कर दे तो कितनी अच्छी बात होगी. हमारी सरकार चांद पर पहुंचने की योजना बना रही है लेकिन मूलभूत समस्या गरीबी की है, उसे मिटाने की बात कम करती है.

सरकारी प्रशासन में उच्च पदों पर बैठे कुछ अफसरों और नेताओं में संकल्पशक्ति का अभाव है और वे अनैतिक कार्य कर के अरबों रुपयों का गबन कर के रातोंरात अमीर बन गए हैं. लेकिन वे गरीब जनता के बारे में बिलकुल नहीं सोचते.

उदाहरण के लिए बिहार में नए कुओं की खुदाई की योजना बनी थी. इस योजना के अंतर्गत एक हजार कुएं खोदे गए लेकिन वास्तव में एक भी कुआं नहीं खोदा गया, लेकिन पता चला कि सरकारी फाइलों में कुओं की खुदाई और खुदाई में लगे खर्च की रकम दर्ज हो चुकी है. यह अनैतिकता की पराकाष्ठा है. हमारी सरकार के प्रशासन में अफसर और नेता मानसिक एकाग्रता (नैतिकता) का प्रशिक्षण ले कर कार्यक्षेत्र में काम करें तो 5 क्या, 3 वर्षों में ही देश की गरीबी समाप्त हो सकती है.

यह कैसा प्यार : लड़कियों की जान और इज्जत दोनों पर भारी पड़ता प्यार

एकसाथ 2 लोगों से प्यार होना बड़ी बात नहीं है. प्यार… दुनिया का सब से खूबसूरत शब्द है. जब यह होता है तो सबकुछ सुंदर और अच्छा लगने लगता है. और जब नहीं होता तो सबकुछ हो कर भी दुनिया उदास व बेरंग नजर आती है. यह स्थिति प्यार होने और न होने की है, लेकिन तब क्या होगा जब 2 लोगों से एकसाथ प्यार हो जाए और दोनों में से आप किसी से अलग नहीं होना चाहें? इस सवाल को सुन कर आप के मन में सवाल आया होगा कि क्या 2 लोगों से एकसाथ प्यार होना मुमकिन है? तो इस का जवाब हां है.

आज के दौर में लव ट्राएंगल के किस्से काफी बढ़ गए हैं. पिछले कुछ सालों में लव ट्राएंगल की लोकप्रियता बढ़ी है. यह तब होता है जब आप अपने वर्तमान पार्टनर से खुश नहीं होते और प्यार व इमोशनली सपोर्ट के लिए किसी और को खोजने लगते हैं. ऐसी स्थिति में आकर्षण होना लाजिमी है. जब यह होता है तो लव ट्राएंगल कहा जाता है, लेकिन इसी ट्राएंगल में लड़कियां बुरी तरह फंस जाती हैं.

कुछ दिनों पहले रोहतक में एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और उस के बाद उस की निर्ममता से जो हत्या हुई, उस की जैसेजैसे परतें खुल रही हैं वे बहुत ही भयानक हैं. बलात्कारी और हत्यारे कोई और नहीं बल्कि लड़की का पुराना प्रेमी और उस के दोस्त ही हैं, जिन्होंने सोनीपत से जबरदस्ती उस का अपहरण किया. उस के बाद उस के साथ सामूहिक बलात्कार, फिर उस की निर्ममता से हत्या कर दी.

उस के हर अंग को बुरी तरह से कुचल दिया. उस के बाद उस की बौडी को झाडि़यों में फेंक दिया. जहां उस को कुत्ते खाते रहे. लड़की को ईंट से बुरी तरह कुचला गया, उस को गाड़ी से भी कुचला गया. उस के गुप्तांग में लोहे की छड़ घुसेड़ दी गई. यह अमानवीयता की हद है. अब वह लड़का कहता है कि वह उस लड़की से बहुत प्यार करता था. उस से शादी करना चाहता था, लेकिन जब लड़की ने शादी से मना कर दिया तो उस ने ऐसा किया.

प्यार का जादू

ऐसा जरूरी नहीं कि जिसे हम प्यार करें वह भी बदले में हमें प्यार दे. हम जिसे प्यार करते हैं अगर  वह भी हमें प्यार करे तो वे दोनों लव कपल कहलाते हैं, पर ऐसा न हुआ तो इसे हम एकतरफा प्यार कहते हैं. दिल टूटना, सपने टूटना आदि एकतरफा प्यार की निशानियां हैं.

संसार में ऐसा कोई नहीं जो प्यार के जादू से वंचित हो. प्यार एक नशे की तरह है जिस के बिना जिंदगी संभव नहीं. प्यार का जादू सिर चढ़ कर बोलता है और हां, प्यार का नाम सुनते ही न जाने हमारे दिल को क्या हो जाता है कि वह बीते हुए कल की तरफ या फिर आने वाले कल को  हसीन पलों में संजोए रखता है.

आज आप उम्र के उस कगार पर खड़े हैं जब प्यार का नशा अपनेआप ही चढ़ जाता है. जी हां, 16 साल की उम्र ऐसी ही होती है. कोई भी अनजान अपना सा लगने लगता है, जिस को सिर्फ देख कर ही दिल को सुकून मिलता है.

लड़कों के साथ ऐसा कई बार होता है. वे जिस लड़की को पसंद करते हैं वह उन के बारे में वैसा नहीं सोचती है. जिस के कारण वह उन के प्यार को स्वीकार नहीं कर पाती है और लड़कों को उस की न का सामना करना पड़ता है. ऐसे में लड़कों के लिए इस स्थिति का सामना करना मुश्किल हो जाता है. कई बार वे कुछ गलत कदम भी उठा लेते हैं जो दोनों के लिए बहुत नुकसानदेह हो जाता है. ऐसे में लड़कों व लड़कियों दोनों को संयम से काम लेना चाहिए.

न सुनने के लिए भी रहें तैयार

आप जब किसी से अपने दिल की बात कहते हैं तो ‘हां’ की उम्मीद के साथसाथ उस की ‘न’ सुनने के लिए भी तैयार रहना चाहिए. जब आप ने उसे अपनी भावनाओं के बारे में बता दिया तो आप का इजहार करने का काम खत्म हो गया. अब इस के आगे आप कुछ नहीं कर सकते. आप को हमेशा मानसिक रूप से तैयार रहना होगा कि अगर सामने वाला आप के प्यार को अस्वीकार भी कर देगा तो आप टूटेंगे नहीं.

आप किसी से प्यार करते हैं तो इस में बुराई नहीं है, लेकिन अपने प्यार का नकारात्मक प्रभाव अपनी पढ़ाई या कैरियर पर न पड़ने दें. यह आप के जीवन को बरबाद कर देगा. किसी के इनकार के बाद भी आप के जीवन में बहुतकुछ है जिसे आप पा सकते हैं. उस में आप की कोई गलती नहीं थी, इसलिए जितनी जल्दी हो सके उसे भूल जाएं, क्योंकि वह आप के बिना ज्यादा खुश है. वह आप को नहीं चाहती.

अगर आप उस की ‘न’ सुनने के बावजूद उस पर अपना प्यार थोपेंगे तो यह उस की भी खुशियां छीन लेगा. इसलिए उस के रास्ते से हट जाएं इस में ही आप दोनों खुश रहेंगे.

सही कदम उठाएं

किसी के बहकावे में आ कर कोई भी गलत कदम न उठाएं. इस से आप को कुछ हासिल नहीं होने वाला. इस से लोग आप पर हंसेंगे. आप के जीवन पर भी इस का बुरा प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए इस घनचक्कर से निकलने की कोशिश करें. प्यार के अलावा भी आप के जीवन में बहुतकुछ है. इन सब को भुलाने के लिए खुद को काम में, पढ़ाई में या दोस्तों के साथ व्यस्त रखें.

समय हर जख्म को भर देता है. कुछ समय के बाद आप जिंदगी में नई शुरुआत कर पाएंगे. जिसे आप पसंद करते हैं उस के प्रति अपने मन में कोई मैल न रखें, न ही उस से बदला लेने की सोचें और न ही उस की जिंदगी को बरबाद करने की कोशिश करें.

अकसर लड़के प्यार में ‘न’ सुनने के तुरंत बाद किसी से भी प्यार करने के चक्कर में पड़ जाते हैं. यह पूरी तरह से भावुकता में लिया गया गलत फैसला है. ऐसे में खुद को थोड़ा समय दें और सोचसमझ कर किसी नए रिश्ते की शुरुआत करें.

सिर्फ इसलिए क्योंकि आप को अपना प्यार नहीं मिला, आप भी किसी और के साथ ऐसा करें, यह ठीक नहीं है. असल जिंदगी में फिल्मी तरीके न अपनाएं क्योंकि फिल्मों की कहानी काल्पनिक होती है जो जिंदगी की वास्तविकता से हमेशा मेल नहीं खाती है. गम दूर करने के नाम पर कभी नशे का सहारा न लें. यह आप की जिंदगी को बरबाद कर देगा.

त्रिकोणीय प्रेम से रहें दूर

दिल पर किसी का वश नहीं चलता. यह बहुत चंचल है, लेकिन कभीकभी यह चंचलता हमें ऐसी मुसीबत में डाल देती है जिसे हम जान कर भी अनदेखा कर देते हैं. त्रिकोणीय प्रेम का एक कारण यह भी होता है कि जब आप का अपने रिश्ते पर से भरोसा उठ जाता है और आप एक नए रिश्ते में बंधने की कोशिश करते हैं, जब ऐसे मुश्किल हालात सामने होते हैं तो यह समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि यह प्यार है या महज आकर्षण.

प्यार एक भावनात्मक रिश्ता

कोई कैसे अपने भावनात्मक रिश्तों के साथ खिलवाड़ कर सकता है. ऐसे ही रिश्तों की वजह से आज हमारे देश में लिवइन रिलेशन बढ़ता जा रहा है. सदियों से चली आ रही परंपराओं के अनुसार भी यह गलत है, क्योंकि एक रिश्ते के होते हुए दूसरा रिश्ता बनाना गुनाह है. भारत में इस तरह की परंपरा कभी नहीं रही, लेकिन अब यह हो रहा है. जिसे झुठलाया नहीं जा सकता.

यह मुमकिन है कि हम एक समय में 2 लोगों के प्रति एकजैसी भावनाएं महसूस करें, लेकिन जिंदगी भर दोनों रिश्तों का एकसाथ निभा पाना मुश्किल है. समय रहते अगर इसे सुलझाया नहीं गया तो आगे जा कर आप एक बड़ी मुसीबत में पड़ सकते हैं. दरअसल, त्रिकोणीय प्रेम केवल एक आकर्षण के अलावा और कुछ भी नहीं है. इसलिए इस के चक्कर में न ही फंसे तो ज्यादा अच्छा है.

सोच बदलने की जरूरत

सवाल यह है कि अगर मामूली सा भी लड़के को किसी लड़की से कभी प्यार हो जाता है तो वह बलात्कार तो दूर की बात है, उस की मरजी के बिना उस को छूता भी नहीं है. हत्या करना तो दूर, उस को खरोंच भी नहीं आने देना चाहता. क्या कोई सच्चा प्रेमी अपनी प्रेमिका के साथ ऐसा करेगा. चाहे वह एकतरफा ही प्यार क्यों न हो, वह ऐसा कभी भी नहीं करेगा. अगर कोई भी सिरफिरा प्रेमी ऐसा करता है तो वह मानसिक रूप से बीमार है. उस का इलाज तो मनोचिकित्सक ही कर सकता है.

लेकिन ऐसी घटनाएं दिनोदिन क्यों बढ़ रही हैं, इस के पीछे कारण क्या है. इस का सब से बड़ा बुनियादी कारण है पुरुषवादी सोच जो महिला को दोयम दर्जे का मानती है. जो मानती है कि महिला पुरुष से कमजोर है, महिला का रक्षक पुरुष होता है, महिला को पतिव्रता होना चाहिए, महिला को पुरुष की सत्ता के अधीन रहना चाहिए, महिला को घर में चूल्हेचौके तक सीमित रहना चाहिए, बाहर निकलेगी तो ये घटनाएं होंगी ही.

पिछले दिनों राष्ट्रीय पार्टी के एक नेता ने बयान भी दिया था कि गाड़ी बाजार में आएगी तो ऐक्सीडैंट तो होगा ही. इसलिए तो 70 साल आजादी के बाद भी लड़कियां अपने को गुलाम महसूस कर रही हैं. इसी सोच को आज बदलने की जरूरत है.

प्यार की आखिरी मंजिल

यही प्रश्न हर प्रेमी से है, क्या प्यार की आखिरी मंजिल शादी है? अगर किसी कारण से शादी न हो तो आप उसे मार देंगे? आप उस से सामूहिक बलात्कार करेंगे? आप उस के चेहरे पर तेजाब डाल देंगे? अगर प्यार की आखिरी मंजिल सिर्फ शादी है तो आप उस से प्यार नहीं करते बल्कि उस पर कब्जा जमाना चाहते हैं. उसे आप अपना गुलाम बनाना चाहते हैं. उस पर आप अपना एकाधिकार चाहते हैं. वह किस से बात करे, कहां बैठे, कहां जाए, क्या खाए, क्या पहने, ये सब आप तय करना चाहते हैं.

यह प्यार नहीं गुलामी है. अगर वह आप की गुलामी का विरोध करे, आप के एकाधिकार का विरोध करे तो आप उस को सजा दोगे.

यह आप की दबंगई नहीं तो और क्या है. क्या अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेना अपराध है? इस में रूढि़वादी मातापिता भी साथ नहीं देते. अब तो हालात ये हैं कि अगर किसी लड़की ने प्यार करने की गलती की तो उस का अपने शरीर पर भी अधिकार नहीं रह जाता. उस का अपने दिमाग पर भी कोई अधिकार नहीं रहता. अगर वह अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेगी तो उस को इस की सजा भुगतनी पड़ेगी. यह सजा कभी मांबाप की तरफ से तो कभी प्रेमी की तरफ से मिलेगी. इसलिए अब प्रेम करना भी जान को जोखिम में डालना है.

प्यार का मतलब जानें

आज के युवक की नजर में प्यार का मतलब है कि वह लड़की सिर्फ उस के लिए बनी है. उस पर सिर्फ उन का हक है. उस को वह अच्छी लगती है. उस का चेहरा देखे बिना नींद नहीं आती है. उस का चेहरा दुनिया में सब से सुंदर है, लेकिन उस बेहतरीन जिस्म को, चेहरे को जब वह हासिल नहीं कर पाता तो वह उसे चाकू से गोद देता है, चेहरे को तेजाब से जला देता और उस के गुप्तांग में लोहे की छड़ घुसेड़ देता है.

ऐसा कैसे करते हैं युवक, कोई भी अपने सब से प्यारे व करीबी इंसान को ऐसे कैसे नष्ट कर सकता है. इस का मतलब वे प्यार नहीं करते. यह प्यार नहीं हवस है. आप प्यार करते समय तो एकदूसरे के लिए चांदतारे तोड़ने की बात करते हो, लेकिन लड़की ने एक इनकार क्या किया आप ने चांदतारों की जगह लड़की के शरीर को ही ईंटों से तोड़ दिया, गाड़ी से कुचल दिया.

वाह, क्या यही प्यार है. जिस ने आप को उस चर्मसुख की अनुभूति करवाई तुम ने उसी को लोहे की छड़ से गोद दिया. क्या किसी भी लड़की के इनकार की इतनी भयंकर सजा हो सकती है. अगर यही सजा वह लड़की तुम्हें दे तो कैसा रहेगा.

इस तरह आप भी चुन सकती हैं घर के लिए सही फर्नीचर

क्या आपने अपने सपनों का घर खरीद लिया है? आप कब से ये सपना देख रहे थे! जब आप होस्टल में कड़े पलंग पर सोते थे तभी आपने सोचा था कि जब आप अपना घर खरीदेंगे तो एक नर्म पलंग भी खरीदेंगे, है न? तो अब अपना सपना पूरा करने का समय आ गया है. परन्तु घर के लिए फर्नीचर खरीदने के पहले आपको कुछ सलाह की आवश्यकता है ताकि आप घर के लिए उचित फर्नीचर खरीद सके. घर के लिए उत्तम फर्नीचर का चुनाव कैसे करें? इस विषय में आपको बहुत सावधानी बरतनी होगी. तो अब घर के लिए उचित फर्नीचर का चुनाव करने के लिए किसी प्रकार का टेंशन लेने की आवश्यकता नहीं है.

इन टिप्स से आप सही फर्नीचर सेलेक्ट कर सकते है:

1.बनावट देखें

एल्युमीनियम के हल्के फर्नीचर के बजाय लकड़ी के भारी फर्नीचर खरीदें. लकड़ी का फर्नीचर कई सालों तक उपयोग में लाया जा सकता है. साथ ही यह आपके घर को अलग लुक भी देगा. यदि आप भारी फर्नीचर नहीं खरीदना चाहते तो आप लकड़ी का पतला फर्नीचर भी खरीद सकते हैं.

2. अपना बजट बनायें

अपने घर के लिए उचित फर्नीचर का चुनाव कैसे करें? बस अपना बजट डिसाइड करके. एक ही चीज़ खरीदने पर अधिक पैसे खर्च न करें क्योंकि आप उतने ही पैसों में और अधिक चीज़ें भी खरीद सकते हैं. इसके अलावा यदि आप कुछ वस्तुओं पर बहुत अधिक खर्च कर देते हैं तो आप अन्य फर्नीचर नहीं ले पायेंगे जो वास्तव में आपके लिए बहुत आवश्यक है.

3. उचित डिज़ाइन चुनें

आपको फर्नीचर के डिज़ाइन का चुनाव करते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए. याद रखें, आप थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद इसे बदलने वाले नहीं हैं. तो ऐसे डिज़ाइन का चुनाव करें जो पूरी तरह आधुनिक हो तथा भविष्य में पुराना न दिखाई दे. इसके अलावा आप कुछ पारंपरिक प्रकार के फर्नीचर का चुनाव कर सकते हैं.

4. थीम चुनें

विशेषज्ञ कहते हैं कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके घर में कितनी जगह है. इस बात का प्रभाव पड़ता है कि आप अपने घर को किस तरह डेकोरेट करते हैं. आप कोई थीम सेलेक्ट करके उसके अनुसार घर को उसी प्रकार के फर्नीचर से सजा सकते हैं. आप बेडरूम के लिए विक्टोरियन थीम तथा लिविंग रूम के लिए मॉडर्न थीम का चुनाव कर सकते हैं.

5. साज सज्जा पर ध्यान दें

सही फर्नीचर के चुनाव के लिए इस बात पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है. यदि आप लकड़ी के फर्नीचर का चुनाव करते हैं तो फर्नीचर की फिनिशिंग की अच्छी तरह जांच कर लें. यदि फिनिशिंग अच्छी नहीं है तो रंग ख़राब होने की संभावना बढ़ जाती है. ब्रांडेड प्रोडक्ट प्रिफर करें.

6. कमरे के आकार का ध्यान रखें

आपका बेडरूम आरामदायक होना चाहिए. इसमें किंग साइज़ का बड़ा बेड न रखें. आपको बेडरूम में एक साइड टेबल और अलमारी की आवश्यकता भी होगी. तो कमरे के आकार के अनुसार फर्नीचर का चयन करें. इस प्रकार आप अपने घर के लिए उत्तम फर्नीचर का चुनाव कर सकते हैं.

7. अपरंपरागत सामान देखें

अपने घर को एक अलग रूप देने के लिए अजीब, अपरंपरागत और अनोखी चीज़ें खरीदें. विभिन्न प्रकार के रंगों और आकारों का उपयोग करें. यदि आप अंग्रेज़ी के बी आकार का वॉल हेंगिंग बुक शेल्फ लगाते हैं तो निश्चित ही आपके कमरे की संरचना कुछ अलग दिखेगी.

फिल्म रिव्यू : वेलकम टू न्यूयार्क

EXCLUSIVE : पाकिस्तान की इस मौडल ने उतार फेंके अपने कपड़े, देखिए वीडियो

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बौलीवुड मे इवेंट कंपनी के रूप में अपनी कंपनी ‘विज क्राफ्ट’ की शुरुआत करने वाले सब्बास जोसेफ ने बौलीवुड को पूरे विश्व में पहुंचाने के मकसद से हर वर्ष अलग अलग देशों में ‘आइफा अवार्ड’ आयोजित करने का सिलसिला शुरू किया था. 2017 में 18वें आइफा अवार्ड के दौरानउन्होंने ‘आइफा अवार्ड’ को केंद्र में रखकर ‘आइफा अवार्ड’ में ही फिल्मकार चक्री तोलेटी के निर्देशन में जो कुछ फिल्माया, उसे फिल्म ‘‘वेलकम टू न्यूयार्क’’ के नाम से दर्शकों को परोस दिया है. फिल्म देखकर लगता है कि यह ‘आइफा अवार्ड’ पर बनायी गयी अति नीरस डाक्यूमेंट्री मात्र है.

फिल्म ‘‘वेलकम टू न्यूयार्क’’ की कहानी के केंद्र में मूलतः दो पात्र पंजाब के तेजी (दिलजीत दोसांज) और गुजरात की जीनल पटेल (सोनाक्षी सिन्हा) हैं. तेजी रिकवरी एजेंट हैं, पर उसकी चाहत सफल अभिनेता बनने की है. जबकि जीनल पटेल मशहूर फैशन डिजायनर बनना चाहती है. दोनों एक प्रतियोगिता का हिस्सा बनते हैं और उन्हे न्यूयार्क में आयोजित एक अवार्ड समारोह का हिस्सा बनने का अवसर मिलता है.

उधर न्यूयार्क में अवार्ड समारोह के आयोजक गेरी (बोमन ईरानी) के साथ लंबे समय से काम करती आ रही सोफी (लारा दत्ता) भागीदार बनना चाहती है. जब गेरी मना कर देते हैं, तो वह तेजी व जीनल को गेरी से बदला लेने के काम में लगा देती है. पर सब कुछ गड़बड़ा जाता है, क्योंकिशो के संचालक करण जोहर (करण जोहर) का अपहरण हो जाता है. अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या तेजी व जीनल के सपनों पर सोफी की जीत होगी?

बेसिर पैर की इस फिल्म के निर्देशक चक्री तोलेटी का दावा है कि वह मनोरंजन परोसने में माहिर हैं, इसीलिए वह बौलीवुड से जुड़े हैं. मगर फिल्म देखकर अहसास होता है कि वह कितना अपरिपक्व फिल्मकार हैं. फिल्म के सभी किरदार काफी उथले हैं, पर और मजाकिया भी नहीं है. उपर से करण जोहर की दोहरी भूमिका और अधिक तकलीफ देती है. इस फिल्म में वह ‘बांबे वेल्वेट’ से भी बदतर हैं.

करण जोहर एक कार्यक्रम संचालक और गैंगस्टर के दोहरे चरित्र को जिस तरह से निर्देशक ने निस्पादित किया है, वह मनोरंजन या खुशी की बजाय कष्ट व गम ही देता है. फिल्मकार तेजी व जीनल पटेल के बीच भी हास्य क्षणों को ठीक से नहीं पेश कर पाए. दोनों की परदे पर केमिस्ट्रीजबरन थोपी हुई लगती है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो दिलजीत दोसांज पंजाब के सुपर स्टार हैं. मगर बौलीवुड में वह कुछ खास प्रतिभा नहीं दिखा पा रहे हैं. इस फिल्म में उनका अभिनय काफी औसत दर्जे का है. फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी हैं सोनाक्षी सिन्हा. वह गुजराती लड़की के किरदार में महज कैरीकेचर बनकर रह गयी हैं. उनके पास अपनी प्रतिभा को दिखाने का समय व पूरा अवसर था, मगर वह बुरी तरह से असफल रही हैं. जीनल पटेल का सपने वाला गीत जिसमें वह सलमान खान की नाप लेती हैं, यह बड़ा ही हास्यास्पद है. ह्यूमर के लिए गढ़ा गया यह गीत ह्यूमर नहीं लाता.

बोमन ईरानी ठीक ठाक हैं. ग्रे किरदार में लारा दत्ता जरुर दर्शकों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करती हैं. रितेश देशमुख, सलमान खान,सुशांत सिंह राजपूत, राणा डगुबट्टी, आदित्य राय कपूर व कटरीना कैफ जैसे बड़े नाम महज खानापूर्ति करते हैं.

फिल्म खत्म होने पर दर्शक सोचने पर मजबूर होता है कि उसने अपनी गाढ़ी कमाई इस फिल्म को देखने के लिए क्यों बर्बाद की. फिल्म का पार्श्वसंगीत महज शोरगुल के कुछ नहीं है. गीत संगीत भी सतही है.

लगभग दो घंटे की अवधि वाली फिल्म ‘‘वेलकम टू न्यूयार्क’’ का निर्माण वासु भगनानी और सब्बास जोसेफ ने किया है. लेखक धीरज रतन,निर्देशक चक्री तोलेटी, संगीतकार साजिद वाजिद, मीत ब्रदर्स व समीर टंडन, कैमरामैन संतोष थुडिईल व नेहा परती तथा कलाकार हैं- दिलजीत दोसांज, सोनाक्षी सिन्हा, करण जोहर, बोमन ईरानी, लारा दत्ता, रितेश देशमुख, सलमान खान, सुशांत सिंह राजपूत, राणा डगुबट्टी,आदित्य राय कपूर व कटरीना कैफ व अन्य.

हैवी ऐंब्रोयडर्ड गाउन

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कई जगह ऐसी होती है, जहां घूमने से पहले आपको मौसम देखना पड़ता है. जैसे ज्यादातर लोग सर्दियों के मौसम में स्नोफौल का मजा लेने के लिए हिल स्टेशन जाते हैं. लेकिन ऐसी बहुत-सी जगह हैं, जहां जाने के लिए आपको किसी मौसम को देखने की जरूरत नहीं है यानी आप इन जगहों पर कभी भी घूम सकती हैं.

केरल

चारों तरफ फैली हरियाली और सुंदर नजारे केरल की खासियत हैं. यह जगह हनीमून कपल के बीच काफी पसंद की जाती है. केरल का मौसम गर्मियों में पर्यटकों को अपने समुद्रतटों के बीच खींच ही लाता है.

कैसे पहुंचे

आप दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता से आसानी से ट्रेन से केरल जा सकती हैं. वहीं प्लेन का टिकट भी ठीक-ठाक दाम में उपलब्ध हो जाता है.

जयपुर

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जयपुर मेवाड़ की शान और रौयल अंदाज के लिए जाना जाने वाला जयपुर भी साल भर पर्यटकों से घिरा रहता है. यहां का मुख्य आकर्षण यहां के महल और खानपान है. हवा महल, आमेर किला, पानी के बीचों-बीच बना जल जैसे वास्तुकला के भव्य नजारे आपको और कहीं देखने को नहीं मिलेंगे.

कैसे पहुंचे

आप बस, ट्रेन से आसानी से यहां सीधे जयपुर पहुंच सकती हैं. आप यहां फ्लाइट से भी आ सकती हैं.

कन्याकुमारी

कन्याकुमारी समुद्र से घिरा हुआ भारत का सबसे निचला हिस्सा है. यहां पर डूबता सूरज देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं. कन्याकुमारी को केप कोमोरिन के नाम से भी जाना जाता है.

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कैसे पहुंचे

कन्याकुमारी पहुंचने का नजदीकी हवाई अड्डा लगभग 100 किमी की दूरी पर स्थित ‘त्रिवेंद्रम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा’ है. रेलमार्ग के लिए आप कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन पर पहुंच सकती हैं.

गोवा

गोवा विदेशी पर्यटकों की ही तरह देशी सैलानियों के बीच भी गोवा काफी कूल डेस्टिनेशन के रूप में जाना जाता है. गर्मियों और न्यू ईयर ईव पर यहां पर्यटकों की संख्या देखने लायक होती है. गोवा का सीफूड, गोवा किला, चोपारा किला टूरिस्ट को काफी पसंद आता है. यहां सालभर टूरिस्ट आते रहते हैं.

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कैसे पहुंचे

मुंबई से बस या टैक्सी से गोवा पहुंच सकती हैं. अन्य शहरों से भी गोवा सड़क मार्ग से जुड़ा है. वहीं रेलमार्ग से जाने के लिए कोंकण रेलवे (मुंबई से बेंगलुरु) सर्वाधिक आकर्षक रेलमार्ग है. यह रेल लाइन गोवा से गुजरती है और इस पर यात्रा करने वाले इस क्षेत्र की मनोहारी सुंदरता आसानी से देख सकती हैं. इसके अलावा मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, कोचिन और तिरुअनंतपुरम से गोवा के लिए सीधी उड़ानें हैं.

कश्मीर

धरती की जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर में भी सैलानियों का हुजूम साल भर देखने को मिल जाएगा. यह जगह भी हनीमून कपल की लिस्टी में जरूर शामिल रहती है. दूर-दूर तक फैले सुंदर पहाड़ और कश्मीरी खाने का स्वाद आपको बेहद पसंद आएगा.

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कैसे पहुंचे

रेल के माध्यम से आप उधमपुर तक जा सकती हैं. इसके बाद आप यहां चलने वाली टैक्सी से सफर कर सकती हैं. इसके अलावा यहां बस से पहुंचने के दो रास्ते हैं. एक जम्मू होते हुए श्रीनगर या हिमाचल प्रदेश में मनाली होते हुए लेह पहुंच सकती हैं. वहीं अगर आप यहां फ्लाइट से आना चाहती हैं तो जम्मू-कश्मीर और लेह जाने वाली फ्लाइट बुक कर सकती हैं.

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