नेचर और वाइल्डलाइफ से है प्यार तो भारत की इन जगहों पर जरूर जाएं

हमारे आसपास ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्हें वाइल्डलाइफ और नेचर का बहुत शौक होता है. वो ऐसी जगहों पर घूमना चाहते हैं, जहां पर उन्हें नेचर और वाइल्डलाइफ देखने का मौका मिले. अगर आप भी इन्हीं लोगों में शामिल है, तो हम आपको बताने जा रहे हैं जंगल सफारी के लिए डेस्टिनेशन्स, जहां पर घूमकर आप अपनी ट्रिप मजेदार बना सकती हैं.

गिर नेशनल पार्क, गुजरात

अगर एशियाटिक शेर देखना चाहती हैं, तो गुजरात के गिर नेशनल पार्क जरूर जाइये. गिर जंगल एशियाटिक शेरों का दुनिया में एकमात्र आशियाना है.

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कैसे पहुंचे

आप जूनागढ़ तक पहुंचकर बस या टैक्सी से गिर के लिए 65 किमी की सड़क यात्रा ले सकती है.

कान्हा नेशनल पार्क, मध्य प्रदेश

यह जंगल बारह सिंहा के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन यहां चीता, बाघ और पक्षियों की कई प्रजातियां भी पाई जाती हैं. जंगल देखने का शौक है, तो एक बार आपको कान्हा नैशनल पार्क घूमने जरूर जाना चाहिए.

कैसे पहुंचे

जबलपुर रेलवे स्टेशन कान्हा पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी स्टेशन है. जबलपुर कान्हा से 175 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां से राज्य परिवहन निगम की बसों या टैक्सी से कान्हा पहुंचा जा सकता है.

रणथम्भोर नेशनल पार्क, राजस्थान

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रणथम्भोर नेशनल पार्क, उत्तर भारत के सबसे बड़े जंगलों में से एक है. यह रायल बंगाल टाइगर के लिए लोकप्रिय है. जंगल के बीच में 10वीं सदी का एक किला भी है. इस वजह से यह जगह पर्यटकों को काफी पसंद आती है.

कैसे पहुंचे

आप जयपुर से 130 किलोमीटर दूरी पर स्थित सवाई माधोपुर पहुंचकर रणथम्भोर नेशनल पार्क पहुंच सकती हैं.

जिम कौर्बेट नेशनल पार्क, उत्तराखंड

जिम कौर्बेट नेशनल पार्क भारत के सबसे पुराने नेशनल पार्कों में से एक है. यहां कई प्रकार के जंगली जानवरों के साथ-साथ आप पहाड़ों की खूबसूरती का भी मजा ले सकती हैं.

कैसे पहुंचे

आप ट्रेन से काठगोदाम पहुंचकर किसी बस या टैक्सी की मदद से जिम कौर्बेट नेशनल पार्क पहुंच सकती हैं.

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आखिर रणवीर सिंह के साथ यह लड़की कौन है

बौलीवुड एक्टर रणवीर सिंह अपनी दमदार एक्टिंग के साथ-साथ अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर भी चर्चा में रहते हैं. बौलीवुड के हैंडसम हीरो में से एक रणवीर की इन दिनों एक फोटो सोशल मीडिया पर काफी चर्चा बटोर रही है. इस फोटो में वह एक लड़की के साथ नजर आ रहे है.

तस्वीर रणवीर के लुक की वजह से ज्यादा चर्चा में आ गई है. इसमें उनका लुक काफी अलग सा नजर आ रहा है. रणवीर की यह फोटो उनके कौलेज के दिनों की बताई जा रही है. इसमें वह एक लड़की को गले लगाए दिख रहे हैं. रणवीर हाल हाल ही में फिल्म पद्मावत में अलाउद्दीन खिलजी के किरदार में नजर आए थे. इस फिल्म में उनकी दमदार एक्टिंग सभी को बेहद पसंद आई.

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रणवीर इन दिनों अपनी अपकमिंग फिल्म ‘गली बौय’ की शूटिंग में बिजी हैं. कुछ दिन पहले ही फिल्म के सेट से कुछ फोटो लीक हुई थीं, जिनमें रणवीर और आलिया बेहद अलग अंदाज में दिखाई दे रहे थे. इस बीच उनकी एक और फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है.

यह फोटो उनके कौलेज के दिनों की बताई जा रही है. फोटो में वह एक लड़की को गले लगाए दिख रहे हैं. इसमें रणवीर बीच की मांग किए लंबे बालों और बड़ी खत में दिख रहे हैं. रणवीर बौलीवुड के हैंडसम हीरो में से एक हैं वहीं इस फोटो को खिंचवाते समय वह एकदम अलग लग रहे हैं.

पद्मावत में शानदार एक्टिंग के लिए तारीफ पाने वाले रणवीर बहुत अब अपने नेक्स्ट प्रोजेक्ट में बिजी हो गए हैं. वह आलिया भट्ट के साथ फिल्म ‘गली बौय’ करने के बाद रोहित शेट्टी की फिल्म ‘सिंबा’ में नजर आएंगे.

इस फिल्म में रणवीर एक पुलिस वाले के किरदार में होंगे. रिलीज हुए फिल्म के पोस्टर में रणवीर का लुक काफी हटके दिखा है. वह इसमें लंबी मूछों में नजर आने वाले हैं. इस फिल्म के साथ-साथ रणवीर फेमस क्रिकेटर कपिल देव की बायोपिक फिल्म ’83’ में नजर आने वाले हैं.

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रूखी त्वचा से ऐसे पाएं छुटकारा और बरकरार रखें अपनी खूबसूरती

सर्दियों में त्वचा और बालों से जुड़ी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में इस मौसम में खुद की ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है.

सर्दियों में शरीर के उन भागों का खयाल रखना जरूरी होता है, जो 2 हिस्सों को जोड़ते हैं. जैसे कुहनियां और घुटने. सर्दियों में यहां की त्वचा काली और रूखी हो जाती है. शरीर के इन भागों पर डैड स्किन की एक परत भी तैयार हो जाती है, जिसे हटा कर उस हिस्से की सफाई करना एक चैलेंज हो जाता है. इन भागों की नियमित देखभाल से आप की सर्दियां खुशगवार गुजरेंगी.

कुहनियों के कालेपन से छुटकारा

दादीमां का नुसखा : सिरका और ग्लिसरीन को बराबर मात्रा में मिला कर इसे प्रभावित जगह लगाएं और फिर थोड़ी देर तक हलकी मसाज करने के बाद पानी से धो लें. दिन में 2 बार इस प्रक्रिया को दोहराएं. कुछ ही दिनों में पाएं बेदाग और कोमल कुहनियां और घुटने.

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इस के अलावा पके चावल से बने स्टार्च का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. नहाने से पहले प्रभावित भाग में स्टार्च लगाएं और फिर 15 मिनट बाद कुनकुने पानी से धो लें. इस प्रक्रिया को कुछ दिनों तक रोज दोहराएं.

ऐक्सपर्ट की राय : मुंबई की फेमस  डर्मेटोलौजिस्ट रिंकी कपूर के मुताबिक कुहनियों पर जमी डैड स्किन की परत को हटाने के लिए दिन में 1-2 बार माइल्ड स्क्रब की मदद से मसाज करें. दिन में 2-3 बार सेरामाइड युक्त मौइश्चराइजर लगाएं. इस के अलावा त्वचा के रूखेपन को दूर करने के लिए रोजाना नहाने के पानी में 2-3 बूंदें रोज औयल, शैल औयल और औलिव औयल मिलाएं.

जरूरी टिप : कुहनियों और घुटनों की मौइश्चराइजर से 5 मिनट तक सर्कुलर मोशन में मसाज करें.

बचाएं एडि़यों को फटने से

एडि़यां फटने की वजह से कई बार पैरों से खून आने और दर्द रहने की समस्या भी देखी जाती है. एडि़यों की त्वचा ड्राई होने की वजह से ये फटने लगती हैं.

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दादीमां का नुसखा :

1 बड़ा चम्मच ग्लिसरीन में 2 बड़े चम्मच गुलाबजल और 1/2 चम्मच नीबू का रस मिला कर इसे एडि़यों पर लगाएं और रात भर लगा रहने दें. ग्लिसरीन और गुलाबजल का मिश्रण एडि़यों को मौइश्चराइज तो करता ही है साथ ही दर्द से भी राहत देता है. अगर आप रोजाना इस उपाय को दोहराएंगी, तो आप की एडि़यां नहीं फटेंगी.

1 बड़ा चम्मच ओटमील को पीस कर इस में जोजोबा का तेल मिला कर गाढ़ा पेस्ट बना कर उसे फटी एडि़यों पर लगाएं. 1/2 घंटा लगा रहने के बाद ठंडे पानी से धो लें.

ऐक्सपर्ट की राय : डा. रिंकी बताती हैं कि फटी एडि़यों के लिए मैडिकेटेड क्रीम का इस्तेमाल करना जरूरी होता है, इसलिए यूरिया और लेक्टिक ऐसिड युक्त क्रीम का इस्तेमाल करें. घर में बनाया घी भी फटी एडि़यों में लगा सकती हैं. सर्दियों की शुरुआत होते ही घी लगाना शुरू कर दें. इस से एडि़यों की नर्माहट बनी रहेगी और वे फटेंगी नहीं.

जरूरी टिप: अगर आप की एडि़यां फट रही हैं तो पैरों में हमेशा मोजे पहने रहें. पैरों को धूल से बचाएं और दिन में 2-3 बार पैरों में मौइश्चराइज करें.

होंठों का रखें खास खयाल

अगर आप सर्दियों में रूखे होंठों से परेशान होती हैं, तो आप को जरूरत है सही सलाह की.

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दादीमां का नुसखा : नीबू के रस और गुलाबजल को मिला कर रोज रात को सोने से पहले होंठों में लगाएं. इस प्रक्रिया से होंठों का रूखापन तो दूर होगा ही उन की रंगत भी बनी रहेगी.

इस के अलावा सोने से पहले ग्लिसरीन, गुलाबजल और केसर को मिला कर होंठों पर लगा सकती हैं. कुछ ही दिनों में आप को फर्क दिखाई देने लगेगा.

ऐक्सपर्ट की राय : ऐसे लिप बाम, जिस में बीज वैक्स, सेरामाइड और पैट्रोलियम जैली हो, इस्तेमाल करें. ऐसा लिप बाम नहीं लगाना चाहिए, जिस में कलर और फ्रैगरैंस हो. यह होंठों को और ड्राई बना देता है.

जरूरी टिप: सर्दियों में कभी भी होंठों को रूखा न छोड़ें. हमेशा फटे होंठों पर पैट्रोलियम जैली, ग्लिसरीन और नारियल या जैतून का तेल लगाएं. अगर सर्दियों में आप के होंठ ज्यादा रूखे रहते हैं, तो मैट लिपस्टिक लगाने से बचें. उस की जगह जैली बेस्ड लिपस्टिक लगाएं.

नाजुक अंगों की हो खास देखभाल

सर्दियों में शरीर के नाजुक अंगों की भी खास देखभाल की जरूरत पड़ती है. खासतौर पर महिलाओं को, जिन्हें मासिकधर्म की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. ऐसे में वैजाइनल एरिया में रूखेपन की वजह से रैश आना आम बात होती है.

दादीमां का नुसखा : वैजाइनल एरिया या जांघों के अंदरूनी हिस्सों की सफाई के लिए 1 मग पानी में नमक घोलें और उस पानी से नाजुक हिस्सों को धोएं. नमक एक प्राकृतिक ऐंटीसैप्टिक है, जो रूखी त्वचा को मुलायम बनाएगा.

जांघों के अंदरूनी भागों की कोमलता बनाए रखने के लिए आप नारियल तेल का भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

ऐक्सपर्ट की राय : जिन्हें वैजाइनल एरिया में इचिंग की शिकायत हो, उन्हें वैजाइनल वाश इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह उस जगह के पीएच स्तर को बिगाड़ सकता है. इन नाजुक अंगों के लिए सेरामाइड और स्वेलाइन युक्त मौइश्चराइजर का इस्तेमाल करें. ध्यान रहे कि जिस भी प्रोडक्ट का इस्तेमाल कर रही हों, उस में स्टेराइड न हो.

जरूरी टिप : सर्दियों में टाइट पैंट पहनने से बचें. ऐसे कपड़े पहनने से त्वचा को औक्सीजन नहीं मिल पाती और वह और भी रूखी हो जाती है. इस के अलावा इन अंगों को गरम पानी के बजाय ठंडे पानी से धोएं. वैजाइनल एरिया की सफाई में कतई कोताही न बरतें.

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15 फायदे ब्रैस्ट फीडिंग के : मां का दूध है कितना फायदेमंद, जरूर जानिए

आजकल की अधिकतर मांओं को बच्चे को फीड कराना मुश्किल काम लगता है जबकि बच्चे के जन्म के बाद मां का दूध बच्चे के लिए सब से अधिक फायदेमंद होता है. मां के दूध से बच्चे की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. यह दूध बच्चे के लिए अमृत समान होता है.

इसी बात को ध्यान में रखते हुए ‘वर्ल्ड फीडिंग वीक’ के अवसर पर मुंबई के ‘वर्ल्ड औफ वूमन’ की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञा डा. बंदिता सिन्हा कहती हैं कि ब्रैस्ट फीडिंग को ले कर आज भी शहरी महिलाओं में जागरूकता कम है, जबकि ब्रैस्ट फीडिंग कराने से ब्रैस्ट कैंसर की संभावना भी कम हो जाती है. जिन महिलाओं ने कभी ब्रैस्ट फीडिंग नहीं कराई होती है, उन में ब्रैस्ट कैंसर का रिस्क बढ़ जाता है.

एक अध्ययन में पाया गया कि जिन महिलाओं को ब्रैस्ट कैंसर मेनोपौज के बाद हुआ है, उन्होंने कभी ब्रैस्ट फीडिंग नहीं कराई थी. जबकि जिन महिलाओं ने 30 से पहले की उम्र में स्तनपान करवाया है वे 30 की उम्र पार कर स्तनपान करवा चुकी महिलाओं से ब्रैस्ट कैंसर से अधिक सुरक्षित हैं. इसलिए मां बन चुकी हर महिला को स्तनपान कराना जरूरी है और उसे यह समझ लेना चाहिए कि इस से बच्चा तंदुरुस्त होता है और साथ ही मां का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है. स्तनपान के 15 निम्न फायदे हैं:

– यह सब से गुणकारी दूध होता है. इस में पाया जाने वाला प्रोटीन और एमिनो ऐसिड बच्चे की ग्रोथ के लिए अच्छा होता है. यह बच्चे को कुपोषण के शिकार होने से बचाता है.

– ब्रैस्ट मिल्क बैक्टीरिया मुक्त और फ्रैश होने की वजह से बच्चे के लिए सुरक्षित होता है. जबजब मां बच्चे को दूध पिलाती है, बच्चे को ऐंटीबायोटिक दूध के जरीए मिलता है, जिस से बच्चा किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचता है.

– फीडिंग से मां और बच्चे के बीच प्यार भरा रिश्ता बनता जाता है, जिस से बच्चा मां की निकटता का एहसास करता है.

– बच्चे के जन्म के बाद मां के स्तनों से निकलने वाला पहला दूध कोलोस्ट्रम कहलाता है, जिस में ऐंटीबायोटिक की मात्रा सब से अधिक होती है, जो बच्चे की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है. इस के अलावा यह दूध बच्चे की अंतडि़यों और श्वसन प्रक्रिया को भी मजबूत बनाता है.

– ब्रैस्ट मिल्क हड्डियों को अच्छी तरह ग्रो करने और मजबूत बनाने में सहायक होता है.

– यह दूध ‘सडन इन्फैंट डैथ सिंड्रोम’ को कम करने में भी मदद करता है.

– जन्म के बाद बच्चे की प्रारंभिक अवस्था काफी नाजुक होती है. ऐसे में मां का दूध आसानी से पच जाता है, जिस से उसे कब्ज की शिकायत नहीं होती.

– मां के लिए भी इस के फायदे कम नहीं. ब्रैस्ट फीडिंग कराने से प्रैगनैंसी के दौरान बढ़ा मां का वजन धीरेधीरे कम होता जाता है.

– इतना ही नहीं ब्रैस्ट फीडिंग से महिला में यूटरस का संकुचन शुरू हो जाता है. डिलिवरी के बाद ब्लीडिंग अच्छी तरह हो जाती है, जिस से महिला को ब्रैस्ट और ओवेरियन कैंसर का खतरा कम हो जाता है.

– पोस्टपार्टम डिप्रैशन का खतरा मां के लिए कम हो जाता है.

– ब्रैस्ट फीडिंग से ब्रैस्ट की सुंदरता में कोई फर्क नहीं पड़ता, यह मात्र एक भ्रम है.

– अधिक उम्र में बच्चा होने पर भी अगर महिला सही तरह से स्तनपान कराती है तो कैंसर के अलावा मधुमेह, मोटापा और अस्थमा जैसी बीमारियों से भी अपनेआप को बचा सकती है.

– स्तनपान 1 साल से अधिक समय तक कराने से मां और बच्चा दोनों ही स्वस्थ रह सकते हैं.

– जो बच्चे 6 महीने तक लगातार ब्रैस्ट फीड पर निर्भर होते हैं उन की इम्युनिटी अधिक होती है.

– मां का दूध नवजात के लिए सर्वोत्तम है.

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मराठी फिल्म रिव्यू : गुलाब जाम

खाना बनाना एक ऐसी कला है जो हर किसी को नहीं जमती है. लेकिन जिनके पास यह कला होती है वह व्यक्ति कभी भी भूखा नहीं रहता है. उसके हाथ का बना खाना खानेवाले प्रत्येक व्यक्ति का पेट और मन हमेशा भरा हुआ रहता है, क्योंकि उसमें बनाने वाले का प्यार मिला होता है. ऐसे ही पाककला से प्यार करने वाली राधा आगरकर (सोनाली कुलकर्णी) हमें गुलाब जाम फिल्म में देखने को मिलती है.

पुणे में नौकरीपेशा वर्ग के लिए सुबह डिब्बा बनाने वाली राधा हमेशा अकेली और परेशान रहती है. अपने हाथों के बने खाने से संतुष्ट चेहरों को उसने कभी देखा तो नहीं, फिर भी हर सुबह बड़े उत्साह से डिब्बे बनाती हैं. दूसरी तरफ पाककला में निपुण होने की इच्छा रखने वाला आदित्य नाईक (सिद्धार्थ चांदेकर) लंदन से अच्छी सैलरी की नौकरी छोड़कर वापस घर आ जाता है. परन्तु उसे दाल-चावल, सब्जी और चपाती बनाने के अलावा कुछ नहीं आता है और वो सभी तरह के मराठी व्यंजन सीखकर लन्दन में मराठी होटल शुरू करना चाहता है. लेकिन घरवाले उसकी इच्छा को नहीं समझते हैं.

इसलिए वह लन्दन जा रहा है कहकर पुणे में एक फ्रेंड के पास जाता है. जहां आने वाले डिब्बे में से एक गुलाब जामुन अपने मुंह में डालता है और उसे बनाने वाले को ही अपना गुरू मान लेता है. किसी तरह तलाश करने के बाद वह राधा के घर पहुंच जाता है. पहले तो राधा अकेले रहने की आदत के कारण उसे घर में लेने से इंकार कर देती है. लेकिन आदित्य बार-बार उसके यहां जाता है और अंत में राधा उसे पाककला सिखाने के लिए तैयार हो जाती है.

आदित्य को राधा के चिडचिडेपन की आदत हो जाती है और धीरे-धीरे दोनों में जमने लगती है और गुरू-शिष्य का रिश्ता दोस्ती में बदल जाता है. पाककला सिखाते-सिखाते राधा आदित्य से अपने मन की बाते कहती है कि कैसे एक दुर्घटनावश 11 साल कोमा में रहकर बाहर आने के बाद उसके पास ना कोई दोस्त रिश्तेदार होता है, ना ही कोई पुरानी यादें. अगर कुछ होता है तो वो पाककला. ये जानने के बाद आदित्य और राधा का रिश्ता मजबूत हो जाता है. इस रिश्ते का आगे का सफर देखने लायक है. इस बीच उनके साथ होती है विविध प्रकार की पाककला.

फिल्म का नाम इतना मीठा है इसलिए फिल्म शुरू होने पर अनेक प्रकार के खाद्यपदार्थ देखने मिलेंगे, ऐसी उम्मीद दर्शको के मन में होती है जो कुछ हद तक पूरी भी होती है. लेकिन मुंह से पानी निकले, ऐसा कुछ भी फिल्म में नहीं है. विविध प्रकार के डिशेस और लिखित पाककृती स्क्रीन पर दिखते है, लेकिन कोई भी नयी डिश का नाम सुनने नहीं मिलता है. सच कहें तो, आदित्य और राधा के अलावा व्यंजन फिल्म का तीसरा पात्र है. इस पात्र को यदि और महत्त्च दिया जाता तो फिल्म ज्यादा स्वादिष्ट हो सकती थी. इसका मतलब यह नहीं कि फिल्म बिलकुल स्वादहीन है. क्योंकि इसके सीधे सरल संवादों को कविता के रूप में पेश किया गया है, जो काफी अच्छा लगता है.

कहानी कहने का तरीका बहुत सीधा और सरल है. जिसमें भूतकाल पर ज्यादा फोकस ना करते हुए वर्तमान मे ही कहानी आगे बढती रहती है. इसलिए फिल्म कहीं भी उलझती नहीं है और दर्शकों की आंखों को खटकती नहीं है, जो मराठी सिनेमा में बहुत दिनों बाद देखने मिला है. इंटरवल के बाद फिल्म थोड़ी इमोशनल हो जाती है, लेकिन वो कहानी की जरूरत है. सिर्फ अंत में फिल्म थोड़ी खिचती है, जिसे नजरअंदाज किया जा सकता है, क्यूंकि फिल्म का अंत अच्छा है. पार्श्वसंगीत के चलते प्रसंग काफी उठावदार है. इसके अलावा मुख्य कलाकार के साथ फिल्म के सभी कलाकारों ने बहुत बढ़िया अभिनय किया है.

कुल मिलकर हम कह सकते हैं कि चाशनी में अच्छी तरह से घुले गुलाब जाम की मिठास का अनुभव एक बार तो जरूर लेना चाहिए.

दुनिया के 5 सबसे खुशहाल देश, जो घूमने के लिये हैं परफेक्ट

भागती-दौड़ती जिंदगी में खुश रहना सबसे बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. हमारी जिंदगी में इतनी परेशानियां है, जिससे जूझते हुए हम अपनी मुस्कान और खुशियां दोनों खो बैठते हैं. खुश न रहने की कई वजहें हो सकती है लेकिन खुश न रहने के कुछ नतीजे तो फिक्स हैं, जिनमें से एक है उम्र का कम होना.

इन बातों से अलग दुनिया में ऐसे देश भी हैं, जहां के लोग सबसे ज्यादा खुश रहते हैं. खुश रहने की वजह से यहां के लोग सबसे ज्यादा जीते हैं. सबसे खास बात ये कि टूरिज्म के मामले में भी ये देश सबसे ऊपर आते हैं. इन देशों को ब्लू जोन्स औफ द वर्ल्ड नाम से जाना जाता है.

साउथ कोरिया

साउथ कोरिया के लोग दुनिया में सबसे ज्यादा जीते हैं. इनके ज्यादा जीने की वजह है खुश रहना. हाल ही में हुए एक रिसर्च के मुताबिक साउथ कोरिया दुनिया का पहला देश है जहां लाइफ एक्सपेक्टेंसी 90 साल है. साथ ही यहां की हेल्थकेयर सुविधाओं की वजह से पश्चिमी देशों की तुलना में यहां के नागरिकों में ब्लड प्रेशर की समस्या कम है, कलेस्ट्रौल की समस्या कम है, लोगों को कैंसर नहीं होता और कोरिया के नागरिकों की इम्यूनिटी भी स्ट्रौन्ग है.

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सिंगापुर

टूरिस्ट्स के बीच पहले से ही काफी पौपुलर डेस्टिनेशन रहा सिंगापुर अब रहने के मामले में लोगों की पहली पसंद बनता जा रहा है. दुनियाभर में सबसे ज्यादा जीने वाले लोगों की लिस्ट में दूसरे नंबर पर है, सिंगापुर और यहां लोगों की औसत लाइफ एक्सपेक्टेंसी 83.1 साल है.

जापान

जापान एक ऐसा देश है जो हमेशा से लंबी लाइफ जीने के लिए जाना जाता है. दुनियाभर में सबसे ज्यादा जीने वाले लोगों की लिस्ट में जापान तीसरे नंबर पर है और यहां के लोग की ऐवरेज लाइफ एक्सपेक्टेन्सी 83 साल है. जापान में एक जगह है जिसका नाम ओकिनावा है जिसे अमर लोगों की भूमि कहा जाता है. यहां करीब 400 लोग ऐसे हैं जिनकी उम्र 100 साल से ज्यादा है.

स्पेन

स्पेन के लोगों की भी ऐवरेज लाइफ एक्सपेक्टेंसी 82.8 साल है, जो करीब-करीब जापान के लोगों जितनी ही है. स्पेन के लोगों की लंबी लाइफ का क्रेडिट उनकी भूमध्यसागरीय डायट को जाता है जिसमें हार्ट को हेल्दी रखने वाला औलिव औयल, सब्जियां और वाइन शामिल है. यहां तक की स्पेन का वर्क कल्चर भी इसके हिसाब से बनाया गया है. यहां के लोगों को आधे घंटे के लंच ब्रेक की बजाए 2 से 3 घंटे का ब्रेक मिलता है.

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स्विटरलैंड

इस देश की औसत लाइफ एक्सपेक्टेन्सी 81 साल है. अपने लौन्ग लाइफ वातावरण की वजह से यह यूरोप के सबसे धनी देशों में से एक है. यहां के सभी नागरिकों को हाई क्वालिटी हेल्थकेयर, स्ट्रौन्ग पर्सनल सेफ्टी और सामाजिक सुख प्राप्त है. कुछ स्टडीज ने इस बात को साबित किया है कि यहां के लोग बड़ी तादाद में चीज और डेयरी प्रौडक्ट्स का सेवन करते हैं जिससे यहां के नागरिकों का जीवन लंबा होता है.

क्या सैनिटरी नैपकीन से बढ़ रहा है सर्वाइकल कैंसर? जानें पूरा सच

मासिक धर्म के दौरान महिलाओं द्वारा किये जाने वाले सैनिटरी नैपकिन्स के इस्तेमाल को लेकर कई तरह की बाते की जा रही हैं. एक ओर जहां फिल्मों के माध्यम से इसके इस्तेमाल को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने की कोशिश की जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ इसे लेकर कई तरह की अफवाहें भी लोगों के बीच जड़ें जमा रही हैं. सैनिटरी नैपकिन्स को लेकर बहुत से लोगों का मानना है कि इससे महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.

महिलाएं भी इस खबर को पढ़ रही हैं और इससे काफी डर रही हैं. वो सैनिटरी नैपकिन्स के ऊपर खड़े हो रहे इस सवाल की सच्चाई जानना चाहती हैं. वो ये जानना चाहती हैं कि वाकई इसमें जरा भी सच्चाई है, तो आपको बता दें कि यह बिल्कुल ही भ्रामक तथ्य है. इस बारे में जाइनेकोलौजिस्ट रागिनी अग्रवाल बताती हैं कि ऐसा कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण या फिर शोध अभी तक उपलब्ध नहीं है जो यह बता सके कि सेनिटरी नैपकिन्स के इस्तेमाल से सर्वाइकल कैंसर होता है, हालांकि बाजार में मौजूद तमाम तरह के सैनिटरी नैपकिन्स में बहुत से ऐसे भी नेपकिन हैं जिनके इस्तेमाल से महिलाओं को कुछेक समस्याएं जरूर झेलनी पड़ती हैं लेकिन यह किसी भी तरह के कैंसर का कारण नहीं होता.

रागिनी कहती हैं कि सैनिटरी नैपकिन्स सर्वाइकल कैंसर का कारण नहीं बनते. हालांकि, इनके इस्तेमाल से इर्रिटेशन, खुजली और वेजिनल रिएक्शन जैसी समस्याएं होती हैं. उनका कहना है कि आज बाजार में कई तरह के सैनिटरी नैपकिन्स मौजूद हैं. उनमें बहुत से ऐसे हैं जिन्हें बनाने में प्लास्टिक कंटेंट का इस्तेमाल होता है, जो महिलाओं में एलर्जी और इर्रिटेशन की वजह बनता है. इसके अलावा लंबे समय तक नैपकिन्स न बदलने की वजह से भी यह महिलाओं के लिए नुकसानदेह साबित होते हैं.

कैसे होता है सर्वाइकल कैंसर

डा. रागिनी के मुताबिक सर्वाइकल कैंसर होने का मुख्य कारण ह्यूमन पैपिलोमा वायरस है. यह वायरल इन्फेक्शन अक्सर असुरक्षित यौन संबंधों की वजह से होता है. इसके अलावा सर्वाइकल कैंसर एकमात्र ऐसा कैंसर है जिसे आसानी से रोका जा सकता है. डा. रागिनी बताती हैं कि दुनिया भर में कैंसर जैसी बीमारी के तेजी से फैलने का प्रमुख कारण लोगों की आरामदायक जीवनशैली है. उन्होंने बताया कि आर्टिफिशयल उत्पादों के बढ़ते प्रयोग, प्लास्टिक्स से बने पदार्थों के इस्तेमाल, प्रोसेस्ड फूड्स के सेवन आदि की वजह से कैंसर की समस्या तेजी से बढ़ रही है. ऐसे में कैंसर रोकने के लिए जरूरी है कि हम अपनी सेहत की नियमित जांच करवाते रहें.

एक शोध के दौरान भी यह पाया गया है कि महिलाओं द्वारा किये जाने वाले सैनिटरी नैपकिन्स का इस्तेमाल पूरी तरह से सुरक्षित है. इसका इस्तेमाल कोई भी महिला बिना किसी संदेह के कर सकती हैं, लेकिन ध्यान रखें कि इसका इस्तेमाल 5 से 6 घण्टे से ज्यादा ना करें, नहीं तो खुजली, इंफेक्शन, जलन आदि समस्याओं को झेलना पड़ सकता है.

फिल्म रिव्यू : कुछ भीगे अल्फाज

‘बस एक पल’, ‘आई एम’, ‘शब’ जैसी विचारोत्तेजक फिल्मों के सर्जक ओनीर पहली बार पूर्णरूपेण रोमांटिक फिल्म ‘‘कुछ भीगे अल्फाज’’ लेकर आए हैं. वर्तमान समय में जबकि युवा पीढ़ी पूरी तरह से फेसबुक, ट्वीटर व व्हाट्स अप जैसे सोशल मीडिया की दीवानी है. इस आधुनिक सोशल मीडिया की ही वजह से न सिर्फ दो अजनबी इंसानों की प्रेम कहानी परवान चढ़ती है, बल्कि यह दोनों अपनी कमजोरियों से उबरते हैं.

फिल्म की कहानी के केंद्र में कलकत्ता के एक एफएम रेडियो पर देर रात प्रसारित होने वाला कार्यक्रम ‘‘कुछ भीगे अल्फाज’’ और सोशल मीडिया है. रेडियो के इस कार्यक्रम में रेडियो जौकी अल्फाज (जेन खान दुर्रानी) रोमांटिक कहानियों के साथ रोमांटिक गाने सुनाते हैं. पर वह अपनी असली पहचान हर किसी से छिपाकर रखते हैं. इसी वजह से वह सोशल मीडिया के किसी प्लेटफार्म पर नहीं हैं. उनकी इसी जिद के चलते रेडियो मालिक को भी नुकसान होता है. क्योंकि अल्फाज सामने नहीं आना चाहते.

उधर कलकत्ता की एक विज्ञापन एजेंसी से जुड़ी और अपनी मां के साथ रह रही अर्चना प्रधान (गीतांजली थापा) के चेहरे पर 8 साल की उम्र से ही सफेद दाग/ ल्यूकोडर्मिक है. वह इसी के चलते  हीन भावना से ग्रस्त है. उसे लगता है कि उसे प्यार करने वाला कोई युवक नहीं मिलेगा. इसलिए वह हर दिन ब्लाइंड डेट पर जाती रहती है. सहकर्मी अप्पू (श्रेय तिवारी) से उसकी अच्छी दोस्ती है. वह अल्फाज के कार्यकम्र की बहुत बड़ी फैन है. ब्लाइंड डेट पर जाने के लिए फेसबुक पर उनके नाम चुनकर फोन करती रहती है, जिन्होंने अपने बारे में खुलकर फेसबुक पर बयां नहीं किया है.

एक दिन अर्चना अनजाने में एक गलत नंबर मिला बैठती है, जो कि अल्फाज का है. उसके बाद अल्फाज से वह अक्सर बातें करने लगती है. इधर करियर में उंचाइयां छूने के लिए अर्चना का बनाया हुआ एक जोक अप्पू अपने नाम से मालिक को दे देता है, इस बात से अर्चना को ठेस पहुंचती है और वह नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाती है. तब अर्चना अपनी मां के कहने पर वाट्स अप से जुड़ जाती है. अब अर्चना ‘कुछ भीगे अल्फाज’ कार्यक्रम में अल्फाज द्वारा पेश की गयी शायरी को किसी तस्वीर या कोई चेहरा बना कर सोशल मीडिया पर डालना शुरू करती है.

वाटस अप पर वह अल्फाज को भी जोड़ती है. तो अल्फाज तक भी सारी चीजें पहुंचती है. कहानी आगे बढ़ती है. एक दिन अर्चना अपने चेहरे की कमी का जिक्र अल्फाज से कर देती है. अल्फाज उसे समझाता है कि वह निराश न हो, क्योंकि असली प्यार में चेहरे की रंगत नहीं देखी जाती. उसे प्यार करने वाला युवक अवश्य मिलेगा. फिर अर्चना, अल्फाज को ट्राम में मिलने के लिए बुलाती है. दोनों पहुंचते हैं, पर मुलाकात नहीं हो पाती.

एक दिन अर्चना एफएम रेडियो के औफिस जाती है, तो उसे अल्फाज की असलियत पता चल जाती है. तब अल्फाज खुद को गुमनाम रखने की वजह बताते हैं. पता चलता है कि शिमला में कालेज के दिनों में अल्फाज बास्केटबाल खेलते थे. उन्हे अपनी सहपाठी व कालेज में मशहूर एक लड़की से प्यार हो गया था. यह लड़की कालेज में भाषण व निबंध प्रतियोगिता में हिस्सा लेती थी. जब उसे अल्फाज की सबसे ज्यादा जरुरत होती है, उस वक्त अल्फाज खेल के चक्कर में उसका साथ नहीं देते हैं. वह लड़की आत्महत्या कर लेती है.

कालेज का प्रिंसिपल सब कुछ जानते हुए भी अल्फाज के दादाजी के सामने लड़की की मौत के लिए एक वाचमैन पर दोष मढ़ देते हैं. असलियत अल्फाज के दादाजी को भी पता नहीं चलती. पर इस अपराध बोध से ग्रस्त अल्फाज शिमला से कलकत्ता आ जाते हैं और अब अपनी पहचान छिपाकर रहकर रेडियो जाकी के रूप में ऐसी रोमांटिक कहानियां सुनाते हैं, जिससे दो प्रेमियों या पति पत्नी के बीच की दूरी मिट सके.

तब अर्चना, अल्फाज को दर्द से उबरने के लिए प्रेरित करती है. अंत में अर्चना के कहने पर अल्फाज ट्राम में मिलने आते हैं और दोनों की प्रेम कहानी आगे बढ़ जाती है.

अभिषेक चटर्जी लिखित पटकथा पर ओनीर ने रोमांस, सोशल मीडिया, एफएम रेडियो के देर रात के कार्यक्रम, कलकत्ता, कलकत्ता की ट्राम और बारिश का बहुत सुंदर संयोजन किया है. ओनीर ने एक बार फिर साबित किया है कि वह किसी भी विषय पर एक बेहतरीन मनोरंजक फिल्म बना सकते हैं. वैसे तो फिल्म कि गति थोड़ी धीमी है, पर रोमांस का असली मजा भी शायद इसी में है.

बतौर निर्देषक ओनीर ने एक बार फिर साबित किया है कि वह रोमांस को भी परर्दे पर बहुत बेहतर तरीके से पेश कर सकते हैं, उन्होंने तमाम दृश्यों को बहुत बेहतर तरीके से गढ़ा है. फिल्म उदासीन मूड़ से वर्तमान तक को बेहतर ढंग से चित्रित करती है. अभिषेक चटर्जी की पटकथा लेखक के तौर पर पहली फिल्म है. उन्होंने एक अच्छी पटकथा लिखी है. पर यदि इसकी गति थोडी बढ़ जाती, तो अच्छा होता. अर्चना, अल्फाज के कार्यक्रम की फैन है, वह हर दिन अल्फाज का रेडियो कार्यक्रम ध्यान से सुनती है और अल्फाज से भी हर दिन बात करती है, मगर वह अल्फाज की आवाज पहचान नहीं पाती. यह पटकथा लेखक के अलावा निर्देशक की भी सबसे बड़ी चूक है. फिल्म में पुराने गानों को अच्छे ढंग से उपयोग किया गया है. शायरी काफी अच्छी लिखी गयी हैं. कुछ संवाद अच्छे बन पड़े हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो बतौर अभिनेता जेन खान दुर्रानी के करियर की यह पहली फिल्म है. प्यार में चोटिल व अपराध बोध से ग्रसित रेडियो जौकी अल्फाज के जटिल किरदार को काफी अच्छे ढंग से निभाया है. यूं तो वह अपने अंदर के दर्द व अपराध बोध को बेहतर तरीके से पेश कर पाए हैं, अपने दर्द को छिपाकर लोगों को रोमांटिक कहानियां व शायरी सुनाते हुए लोगों को प्रेरित सुनाते हुए शानदार आवाज के रूप में शोहरत बटोरते हैं, पर लंबी रेस का घोड़ा बनने के लिए अभी उन्हें और मेहनत करने की जरूरत है. कई जगह चेहरे के भाव सही ढंग से नहीं उभरते. अर्चना के किरदार में गीतांजली थापा ने कमाल का अभिनय कर पूरी फिल्म को अपनी फिल्म बना लेती हैं.

ल्यूकोड्म से पीड़ित होते हुए भी अपने दर्द को छिपाकर जिस तरह से वह एक सामान्य लड़की के रूप आती हैं, वह कमाल का अभिनय है. फिल्म खत्म होते होते दर्शकों के दिलो दिमाग पर गीतांजली थापा अपनी छाप छोड़ जाती हैं. अप्पू के किरदार में श्रेय तिवारी भी ठीक ठाक हैं.

कुल मिलाकर यह एक ऐसी प्रेम कहानी है, जिसे अवश्य देखना चाहिए. विक्रम मेहरा और सिद्धार्थ आनंद कुमार द्वारा ‘सारेगामा’ व ‘यूडली फिल्मस’ के बैनर तले निर्मित फिल्म ‘‘कुछ भीगे अल्फाज’’ के लेखक अभिषेक चटर्जी, निर्देशक ओनीर, संगीतकार शाश्वत श्रीवास्तव, कैमरामैन नुसरत एफ जाफरी तथा कलाकार हैं – गीतांजली थापा, जेन खान दुर्रानी, श्रेय तिवारी, मोना अंबेगांवकर, चंद्रेय घोष, सौरव दास, साहेब भट्टाचरजी, शंखू करमरकर व अन्य.

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अपनी संपत्ति में एटीएम लगवाकर करें लाखों की कमाई

क्या आप घर बैठे कमाईं करने के बारे में सोच रहे हैं अगर हां तो आज हम ये खबर आपके ही लिये लेकर आएं है. घर बैठे कमाई करने की सोच रहे लोगों के लिए बेहतरीन मौका है. आप अपने स्पेस को एटीएम के लिए रेंट पर देकर कमाई कर सकते हैं. जी हां, आप ATM से सिर्फ पैसे निकाल ही नहीं सकते, बल्कि कमा भी सकते हैं. हालांकि, इसके लिए आपके पास मार्केट एरिया में दुकान या औफिस होना चाहिए. एटीएम लगवाना बेहद आसान है. आइये जानते हैं कि कैसे आप अपने संपत्ति में एटीएम लगवाकर ढेर सारे पैसे कमा सकते हैं.

वकरांगी ने दिया बड़ा और्डर

हाल में NBFC और बीएफएसआई से जुड़ी एक बड़ी कंपनी वकरांगी लिमिटेड ने 500 नए एटीएम का और्डर एनसीआर इंडिया को दिया है. एनसीआर इंडिया एटीएम बनाने वाली कंपनी है. वहीं, कुछ अन्य कंपनियों के वेबसाइट पर भी एटीएम लगाने के लिए आवेदन खुले हैं. ऐसे में आप भी अपना स्पेस एटीएम के लिए रेंट पर देकर अच्छी कमाई कर सकते हैं.

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ऐसे खोल सकते हैं ATM

व्‍हाइट लेबल ATM की फ्रेंचाइजी लेकर आप एटीएम खोल सकते हैं. व्‍हाइट लेबल एटीएम सर्विस देने वाली कंपनी है. यह कंपनी शहरी और ग्रामीण इलाकों में एटीएम लगाने की फ्रेंचाइजी देती है. पब्लिक और प्राइवेट बैंकों के अलावा इंडिकैश, मुत्‍थुट और इंडिया वन जैसी कंपनियां व्‍हाइट लेबल एटीएम सर्विस उपलब्‍ध कराती हैं.

कैसे होती है कमाई

एटीएम से कमाई रोजाना के ट्रांजैक्शन पर निर्भर करती है. अगर एक एटीएम से 50 ट्रांजैक्शन होनी है तो मंथली इनकम करीब 19,500 रुपए हो सकती है. वहीं, रोजाना 300 ट्रांजैक्‍शन होने पर 1.17 लाख रुपए मंथली इनकम होती है. एटीएम लगवाने के लिए आपको एटीएम इंस्टाल करने वाली कंपनी को सिक्योरिटी डिपौजिट के रूप में 2 से 3 लाख रुपए तक देने पड़ते हैं. कांट्रैक्ट खत्म होने पर आपको यह रकम वापस मिल जाती है.

क्या है ATM लगवाने के नियम और शर्तें

ATM लगवाने के लिए आपके पास कम से कम 50-100 स्‍क्‍वायर फुट की जगह होनी चाहिए. स्‍पेस ग्राउंड फ्लोर और गुड विजिबिलिटी वाली होनी चाहिए. एटीएम लगवाने के लिए आपको सिक्‍योरिटी डिपौजिट करनी पड़ेगी. सिक्‍योरिटी का इंतजाम आपको करना होगा. एटीएम के लिए इंडिया वन एटीएम की वेबसाइट पर औनलाइन अप्‍लाई कर सकते हैं.

ये कंपनियां दे रही हैं मौका

देश की बड़ी एनबीएफसी (नौन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी) मुथूट व्‍हाइट लेबल एटीएम लगाने का मौका दे रही है. इसमें वीजा, रुपे और मास्‍टर कार्ड तीनों तरह के एटीएम कार्ड इस्‍तेमाल किया जा सकते हैं. वहीं, इंडियान1 नाम की कंपनी भी एटीएम लगाने का मौका दे रही है. वकरांगी ने भी 500 नए एटीएम के लिए और्डर दिया है. कंपनी को कुल 15 हजार एटीएम लगाने के लिए आरबीआई से लाइसेंस मिला था. वकरांगी का फोकस सेमी अर्बन और रूरल एरिया में भी एटीएम की संख्‍या बढ़ाने पर है.

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