स्मार्ट ट्रिक्स : आपका पुराना घर लगेगा नया सा

घर को नया लुक देने के लिए आजमाकर देखें ये ट्रिक्स…

सबसे पहले मुख्य दरवाजे की रंगत को थोड़ा बदलिए. आप इसे फन और ग्लॉसी तरीके से पेंट करवा सकते हैं. लाल, नारंगी या पीले रंग का कोई शैड चुन सकते हैं.

यदि आप फ्लो को बरकरार रखना चाहते हैं, तो दीवारों को पीच या ग्रे कलर से पेंट कराएं. आपको कलर ट्रांजिशंस को भी न्यूनतम रखना चाहिए. न्यूट्रल दीवारें आपको सबसे अधिक डेकोरेटिंग फ्लेक्सिबिलिटी देती हैं और कमरे में रखी एसेसरीज की ओर ध्यान आकर्षित कराती हैं.

पुराने घर में फर्नीचर का अरेंजमेंट बदला जा सकता है. होटल की लॉबी को सोचिए. वहां फर्नीचर को इस तरह से ग्रुप में रखा जाता है कि वह बातचीत का आमंत्रण देता है. आप अपने लिविंग रूम के फर्नीचर को भी वैसे ही व्यवस्थित कर सकते हैं.

यदि आप घर की दीवारों पर इस तरह का बदलाव दिखाना चाहती हैं, जिस पर सभी का ध्यान जाए, तो खिड़कियों को बदलिए. नए स्टाइल की बड़ी खिड़कियां लगवाएं, जिनसे पर्याप्त रोशनी भी अंदर आए.

इसके अलावा दीवारों को आर्टवर्क से भी सजाया जा सकता है. दीवारों को कॉम्प्लिमेंट करने वाली कलाकृतियों को स्थान दीजिए. आजकल बड़े आकार की कलाकृतियों का चलन है.

VIDEO : रोज के खाने में स्वाद जगा देंगे ये 10 टिप्स

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क्या आपको पता है एसबीआई रिवार्ड स्कीम के बारे में, जानिये विस्तार से

अगर आप भी शौपिंग के शौकीन हैं तो स्टेट बैंक औफ इंडिया आपके लिए एक खास स्कीम लेकर आया है. एसबीआई की इस स्कीम के अंतर्गत हर बार शौपिंग करने पर आपको कुछ प्वाइंट्स दिए जाएंगे जिसका इस्तेमाल आप एसबीई कार्ड को अनुमति देने वाले औउटलेट्स पर स्वाइप के जरिए खरीदारी के लिए कर सकते हैं.

किसके लिए लौन्च किया प्रोग्राम

सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक एसबीआई ने अपने लौयल कस्टमर्स के लिए एक लौयलिटी प्रोग्राम लौन्च किया है जिसे स्टेट बैंक रिवार्ड नाम दिया गया है. यह प्रोग्राम ग्राहकों को रिवार्ड प्वाइंट हासिल करने और पैसे कमाने के कई मौके देगा.

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कैसे काम करेगी यह योजना

एसबीआई ने कहा, “स्टेट बैंक रिवार्डज में हम मानते हैं कि जब भी आप स्टेट बैंक के उत्पादों या सेवाओं का उपयोग करते हैं तब आपको पुरस्कृत किया जाना चाहिए. स्टेट बैंक रिवार्ड आपको कई तरह से रिवार्ड देगा, जिसकी मदद से आप तेजी से रिवार्ड प्लाइंट हासिल कर सकते हैं. आप इसके बाद इसका इस्तेमाल मूवी टिकट खरीदने, मोबाइल डीटीएच रीचार्ज करने, एयर टिकट खरीदने, एपैरल, इलेक्ट्रौनिक्स, होम अप्लायंस, एसबीआई गिफ्ट कार्ड और अन्य की खरीद के लिए कर सकते हैं.”

कैसे बनें स्टेट बैंक रिवार्ड का हिस्सा

स्टेट बैंक औफ इंडिया के सभी कस्टमर स्टेट बैंक रिवार्डज् में पहले से ही एनरोल्ड किए जा चुके हैं. प्रत्येक सदस्य के पास स्टेट बैंक रिवार्डज के साथ केवल एक सदस्यता होगी. स्टेट बैंक औफ इंडिया के तमाम खातों में मिलने वाले रिवार्डज एक ही कस्टमर आईडी (सीआईएफ) में मर्ज कर दिए जाएंगे.

कैसे इस्तेमाल कर पाएंगे रिवार्ड प्वाइंट

अगर आप अपने रिवार्डज प्वाइंट का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आपको खुद को स्टेट बैंक रिवार्ड में रजिस्टर्ड करवाना होगा. इसके लिए आपको www.StateBankRewardz.com पर साइन अप करना होगा. इसके लिए आप स्टेट बैंक रिवार्डज मोबाइल ऐप का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

कैसे हासिल कर पाएंगे रिवार्डज प्वाइंट

बैंक के इस लौयलिटी प्रोग्राम के तहत रिवार्डज प्वाइंट हासिल करने के लिए आपको निम्नलिखित बैंकिंग सेवाओं के जरिए लेन-देन करना होगा. इसमें निम्नलिखित शामिल हैं.

  • डेबिट कार्ड
  • इंटरनेट बैकिंग
  • मोबाइल बैंकिंग
  • पर्सनल बैंकिंग
  • लोन
  • रूरल बैकिंग
  • एसएमई अकाउंट

ऐसे मिलेंगे एक्स्ट्रा रिवार्ड

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अगर आप एकस्ट्रा रिवार्ड प्वाइंट हासिल करना चाहते हैं तो आप स्टेट बैंक के डेबिट कार्ड का इस्तेमाल मैक्स गैट मोर पार्टनर्स पर कर सकते हैं, जिसके 8000 से ज्यादा स्टोर भारत में हैं. अगर आप इसके बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करना चाहते हैं को आप स्टेट बैंक की रिवार्डज मोबाइल एप के पार्टनर टैब को टैप कर सकते हैं.

कैसे जान सकते हैं अपना रिवार्ड प्वाइंट बैलेंस

आप अपने रिवार्ड प्वाइंट बैलेंस को किसी भी समय कहीं पर भी चैक कर सकते हैं. इसके लिए आपको स्टेट बैंक रिवार्डज अकाउंट को लौग इन करना होगा. इसके लिए आप या तो www.StateBankRewardz.com पर जा सकते हैं या तो स्टेट बैंक रिवार्डज ऐप का इस्तेमाल कर सकते हैं.

कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं अपने रिवार्डज प्वाइंट

आप अपने रिवार्ड प्वाइंट का इस्तेमाल फ्री गिफ्ट, मर्चेंडाइज और अन्य सेवाओं का लाभ लेने के लिए कर सकते हैं. इसके लिए आपको www.StateBankRewardz.com पर जाना होगा नहीं तो आप इसकी ऐप का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

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कटरीना ने शेयर की फोटो और ट्रोल हुए आमिर खान, आखिर क्यों

बौलीवुड एक्टर आमिर खान और एक्ट्रेस कटरीना कैफ की आगामी फिल्म ‘ठग्स औफ हिन्दुस्तान’ से जुड़ी जानकारियां फैंस के बीच बहुत कम ही सेट से बाहर आ पा रही हैं. अभी तक सिर्फ सेट से आमिर खान और अमिताभ बच्चन के फिल्म में कुछ लुक्स जरूर सामने आए हैं, लेकिन ये तस्वीरें भी फिल्म को लेकर बहुत राज नहीं खोलती हैं. वहीं, हाल ही में कैटरीना ने फातिमा सना शेख और आमिर खान के साथ की एक तस्वीर इंस्टाग्राम पर शेयर की, जिसके बाद से ही लोगों ने आमिर खान को ट्रोल करना शुरू कर दिया.

इस कारण ट्रोल हुए आमिर खान

दरअसल, कटरीना ने जो तस्वीर शेयर की उसमें आमिर कटरीना से लंबे नजर आ रहे हैं, बस इसके बाद से लोगों ने यह सवाल पूछने शुरू कर दिए कि आखिर आमिर कैटरीना से लंबे कैसे नजर आ रहे हैं. इस तस्वीर को शेयर करते हुए कटरीना ने लिखा, ‘ठग्स.. मेरे प्यारे आमिर और फातिमा.’ तस्वीर में आमिर सेंटर में हैं, वहीं उनके साथ कटरीना कैफ खड़ी हैं और आमिर के पीछे फातिमा खड़ी हैं.

Thugs?✨?my dearest aamir and @fatimasanashaikh ?

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टाइगर जिंदा है’ की सक्सेस के बाद है इस फिल्म पर नजर

सलमान खान और कटरीना कैफ की फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’ के बौक्स औफिस पर अच्छा कलेक्शन करने के बाद कैटरीना कै फैंस को भी ‘ठग्स औफ हिन्दुस्तान’ का इंतजार है. इस फिल्म में कटरीना के अलावा ‘दंगल’ फेम फातिमा सना शेख भी नजर आएंगी.

अपनी फिल्मों के सेट पर मोबाइल बैन रखते हैं आमिर

‘ठग्स औफ हिन्दुस्तान’ के सेट से जितनी भी तस्वीरें सामने आई हैं, वो धुंधली या फिर बहुत दूर से खींची गई हैं. वैसे भी आमिर खान अपनी फिल्मों को लेकर बेहद सतर्क रहते हैं और हमेशा फिल्म से जुड़ी हुई बातों को लेकर सीक्रेट बनाए रखने में विश्वास रखते हैं. इतना ही नहीं अपनी फिल्म के सेट पर आमिर फोन रखने तक की अनुमति नहीं देते हैं.

आमिर ने फिल्म के लिए बदला पूरा लुक

हाल ही में ‘ठग्स औफ हिंदुस्तान’ के सेट की कुछ फोटोज सोशल मीडिया पर लीक हुए थे. इनमें आमिर नोज रिंग पहने हुए नजर आ रहे थे. कुछ तस्वीरों में तो उन्हें पहचानना भी बेहद मुश्किल हो रहा है. इन फोटोज में आमिर बिखरे बालों के साथ, फटेहाल दिख रहे हैं. दरअसल, इस फिल्म में आमिर एक ठग का रोल कर रहे हैं, जिसके लिए उन्होंने अपना पूरा लुक बदला है. इतना ही नहीं नाक और कान में छेद करवाकर आमिर ने बालियां भी पहनी हैं. इस रोल के लिए आमिर ने मूंछों के साथ अपने बाल भी लंबे किए हैं. हालांकि, ये पहला मौका नहीं है जब आमिर ने किसी फिल्म के लिए मेकओवर किया हो. इसके पहले भी वो अपनी कई फिल्मों के लिए लुक चेंज कर चुके हैं.

फिल्म के लिए घटाया 20 किलो वजन

खबरों की मानें तो आमिर ने इस फिल्म के लिए करीब 20 किलो वजन कम किया है. साथ ही वो इस फिल्म में बेहद अलग कौस्ट्यूम में नजर आएंगे. आमिर ‘पीके’, ‘दंगल’ और ‘गजनी’ जैसी फिल्मों के लिए भी अपने वजन को घटा और बढ़ा चुके हैं.

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वैलेंटाइन स्पेशल : मुन्नार में शुरू हुई स्नोफौल, यहां मनाएं प्यार का जश्न

वैलेंटाइन वीक शुरू हो चुका है. ऐसे में सभी कपल्स किसी रोमांटिक जगह की तलाश में होंगे, जहां जाकर वो पार्टनर से अपने प्यार का इजहार कर सके, अगर आप भी ऐसी किसी खूबसूरत जगह की तलाश में हैं, तो हम आपको ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं. मुन्नार एक ऐसी जगह है, जहां पर आप अपने प्यार भरे लम्हों को और भी खूबसूरत बना सकती हैं. सबसे खास बात ये है कि फरवरी के महीने में यहां स्नोफौल भी हो रही है. आइए, जानते हैं क्या है खास है यहां.

टी म्यूजियम

ये म्यूजियम टाटा टी का म्यूजियम है. इस संग्रहालय में 1880 में मुन्नार में चाय उत्पादन की शुरुआत से जुड़े मूमेंटो रखे गए हैं. यहां कई ऐतिहासिक तस्वीरें भी लगी हुई हैं. इसके पास ही स्थित टी प्रोसेसिंग ईकाई में चाय बनने की पूरी प्रक्रिया को करीब से देखा व समझा जा सकता है.

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इराविकुलम नेशनल पार्क

यह उद्दान मुन्नार से 15 किलोमीटर दूर है. यह जगह देवीकुलम में पड़ता है. पार्क के दक्षिणी क्षेत्र में अनामुडी चोटी है. मूल रूप से इस पार्क का निर्माण नीलगिरी जंगली बकरों की रक्षा करने के लिए किया गया था. 1975 में इसे सेंचुरी घोषित किया गया था. वनस्पति और जंतु के पर्यावरण जगत में इसके महत्व को देखते हुए 1978 में इसे नेशनल पार्क घोषित कर दिया गया. 97 वर्ग किमी में फैला यह पार्क प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर है.

पल्लईवसल

मुन्नार के चित्रापुरम इलाके से तीन किमी दूर है पल्लहईवसल. यह वही जगह है जो केरल के पहले हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के लिए जाना जाता है. यह जगह काफी खूबसूरत है और पर्यटकों का फेवरेट पिकनिक स्पौट भी है.

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कैसे पहुंचे

मुन्नार, केरल और तमिलनाडु दोनों राज्यों से आसानी से पहुंचा जा सकता है. दक्षिण भारत के सभी भागों से इस बेहतरीन गंतव्यो स्थल के लिए कई टूरिस्ट पैकेज भी उपलब्ध हैं. अगर आप उत्तर भारत में रहती हैं, तो दक्षिण भारत जाने के लिए आप फ्लाइट से जा सकती हैं.

घूमने के लिए बेस्ट जगह

आप साल के किसी भी महीने यहां घूम सकती हैं.

यहां करें शौपिंग 

आप मट्टूपेथी डैम मार्केट, मुन्नार टाउन लोकल मार्केट में शौपिंग कर सकती हैं.

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वह मेरी अच्छी दोस्त है : साकिब सलीम

सिनेमा के इस बदले हुए दौर में कई प्रतिभाएं काफी तेजी से आगे बढ़ रही हैं. मगर साकिब सलीम ने सात वर्ष में महज सात फिल्में ही की, उनका करियर काफी धीमी गति से ही चल रहा है, पर उन्हें यकीन है कि ‘दिल जंगली’ के प्रदर्शन के बाद उनका करियर तेज गति से भागेगा.

आपका करियर काफी धीमी गति से आगे बढ़ रहा है?

यह सच है. मगर इस बीच मैने बहुत कुछ सीखा है. मैने कुछ अच्छी, कुछ कम अच्छी और कुछ खराब फिल्में की हैं. जहां तक मेरे करियर के धीमी गति से चलने का सवाल है, तो इसके लिए कहीं न कहीं फिल्मों के चयन को लेकर मेरा जो एटीट्यूड रहा, वह भी दोषी है.

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पर आपने अतीत में ‘मुझसे फ्रेंडशिप करोगे’,मेरे डैड की मारूती’ व ‘हवा हव्वाई’ सहित कुछ अच्छी फिल्में की हैं? इन फिल्मों का भी फायदा आपको नहीं मिल पाया?

सर, मुझे इसका जवाब पता होता तो मैं उसे सुधार लेता. मैं लोगों के पास काम के लिए मिन्नतें करने नहीं गया. मैं आज आपके सामने बैठा हूं, तो अपने बलबूते पर बैठा हूं. आज तक किसी ने भी मेरी मदद नहीं की. आज तक किसी ने मुझसे नहीं कहा कि आओ मैं तुम्हें हीरो बना दूं. ऊपर वाले ने मुझे इतनी नियामत दी है, मेरे माता पिता ने मुझे इतना सिखाया है कि मैं मेहनत करके आगे बढ़ सकता हूं. मैं वही करने का प्रयास कर रहा हूं. कई बार आपको अपने ऊपर काफी भरोसा होता है, पर कुछ लोगों को आपकी काबीलियत पर भरोसा नहीं होता है. तो कभी कभी लोगों का भरोसा जीतने में, कभी कभी अच्छी फिल्म ढूढ़ने में समय लग जाता है.

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सही लोगों के साथ काम करने का अवसर पाने में समय लग जाता है. हां! मैं मानता हूं कि मेरे पास लंबे समय तक फिल्में नही रही, मैं इधर उधर भटक गया. मैंने सोचा कि कुछ इंतजार करते हुए अच्छी फिल्म हासिल की जाए. उसके बाद मेरे पास लोग आएं. मेरे पिता का नाम मोहम्मद कुरेशी है. मेरी फिल्म से पहले उन्होंने आखिरी फिल्म ‘‘मुगल ए आजम’’ देखी थी, पर मुझे समझ में आया कि मुझे यहां रहना है, तो इनके बीच ही प्रतिस्पर्धा करनी होगी. मेरी समझ में आया कि बौलीवुड में आपका लोकप्रिय होना बहुत जरुरी है, अन्यथा आपकी काबीलियत नहीं आंकी जाएगी.

तो अब पापुलर होने के लिए क्या कर रहे हैं?

-कुछ नहीं कर रहा. मैं झूठ बोलने में यकीन नहीं करता. मैं लोगों को बताना चाहता हूं कि मैं अति नहीं करता. मैं दिखावा नहीं करता.

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जब गैर फिल्मी परिवार से कोई यहां आता है, तो उसे दो वर्ष यह समझने में लग जाते हैं कि बौलीवुड से कैसे जुड़ा जाए. लोग किसी कलाकार के साथ तस्वीर खिंचाते हैं, तो वह खुद को महान बताने लगते हैं. मगर मैं जब मुंबई आया, तो मुझे आते ही दो फिल्में मिल गयी. दोनों फिल्में सुपरहिट हो गयीं. अब यह कितनी बड़ी बात थी, इसका अहसास करने में ही मुझे दो से तीन वर्ष लग गए. मेरी समझ में आया कि जब हम यह सोचने लगते हैं या यह पता लगाने लगते है कि लोग मुझे किस वजह से पसंद कर रहे हैं, तो हम बहुत कौंशियस होकर फिल्में चुनने लगते हैं, इससे भी नुकसान होता है. यह सब सोचने के चक्कर में ही मैं डेढ़ दो वर्ष तक हर चीज से कट गया.

देखिए, मैं मुंबई अभिनेता बनने के लिए नहीं आया था, पर मैं बन गया. यदि शिद्दत से अभिनेता बनना चाहता, तो अल्लाह मियां मेरा पसीना निकाल देते. ऊपर वाले के करम से गाड़ी राइट जाते जाते लेफ्ट चली गई और ऐसे मुकाम पर पहुंच गयी, जहां मुझे पता ही नहीं था कि यहां पर कितना बड़ा खजाना है. खजाने को समझने में ही मेरे दो तीन साल चले गए और जब समझ में आया, तो मैने सोचा कि मुझे जो अच्छे अवसर मिले, उनका उपयोग न कर मैने गलती की है. दूसरी बात हम कोई खास फिल्म करने की इच्छा रखते हैं, पर उस फिल्म का निर्माता मुझे उस फिल्म के साथ नहीं जोड़ना चाहता, पर हम सोचते हैं कि मुझे जब वह फिल्म करनी है, तो जो मिल रही है, वह क्यों करुं. इस चक्कर में हम दोनों फिल्मों से हाथ धो बैठते हैं. सच कहूं तो बौलीवुड की जो प्रक्रिया है, उसके साथ मैं ठीक से तालमेल नहीं बिठा पाया. फिर भी मुझे आसान नहीं, कठिन काम ही करना है. बहरहाल, मुझे ‘दिल जंगली’ से काफी उम्मीदें हैं.

फिल्मदिल जंगली’ को लेकर क्या कहेंगे?

-आलिया सेन निर्देशित और वासु भगनानी व दीपशिखा देशमुख निर्मित यह फिल्म रोमांटिक कामेडी तथा एडवेंचरस फिल्म है.

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तो इसमें आपने रोमांटिक किरदार निभाया है?

ऐसा ही है, पर कुछ अलग तरह का है. मैंने दिल्ली के लाजपत नगर में रहने वाले सुमित उप्पल का किरदार निभाया है, जो कि जिम ट्रेनर है, पर बहुत बड़ा फिल्मी हीरो बनने का सपना देख रहा है. वह सिर्फ अपने बारे में ही सोचता है. उसने कुछ मौडलिंग की है, पर उनमें उसका चेहरा कभी नही आया. इसके अलावा उसे अंग्रेजी नही आती. अंग्रेजी सीखने के लिए करोली सेन की अंग्रेजी क्लास से जुड़ता है और फिर करोली के संग उसकी प्रेम कहानी शुरू होती है. यह आम कंविंशनल हीरो नहीं है. यह वैसा हीरो नहीं है, जो गलतियां नहीं करता. यह हीरो तो गलतियां करता है. छोटी नहीं बल्कि बड़ी बड़ी गलतियां करता है. इसे निभाना बहुत कठिन था, क्योकि हमें हीरो के तौर पर दर्शक भी नहीं खोने थे. बहुत ज्यादा ‘ग्रे’ भी नहीं होना था.

किरदार को निभाने के लिए किस तरह की तैयारी करनी पड़ी?

-मैं जिम तो पहले से ही जाता रहा हूं, पर इस फिल्म के किरदार सुमित उप्पल के लिए मुझे जिम जाकर ऐसी बौडी बनानी पड़ी कि मुझमे जिम ट्रेनर नजर आए. यह ऐसी फिल्म नहीं है, जिसके लिए मुझे खुद को किसी कमरे के अंदर बंद करके तैयारी करने की जरुरत पड़ी हो.

तापसी पन्नू के संग आपके रोमांस की भी चर्चा होती रहती है?

गलत है. मैं इतना ही कह सकता हूं कि वह मेरी अच्छी दोस्त हैं. हम दोनो ही दिल्ली से हैं. हमने एक साथ एक म्यूजिक वीडियो ‘तुम हो तो लगता है’ किया था और अब फिल्म ‘दिल जंगली’ की है.

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सोशल मीडिया को आप कितना सही मानते हैं?

यह पूरे विश्व से जोड़ता है. मगर इसे लत नहीं बनानी चाहिए. हमें खुद तय करना पड़ेगा कि हमें इससे कितनी दूरी बनाकर रखनी चाहिए. मेरी इच्छा होती है कि कुछ समय के लिए जंगल में जाकर ट्वीटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम के बिना रहूं. जन्मदिन पर केक काटने के पल को कोई जीना ही नहीं चाहता, सभी अपने कैमरे को लेकर सेल्फी लेने में ही व्यस्त रहते हैं. मैं भी इसी बीमारी का शिकार हूं.

फिटनेस पर कितना ध्यान देते हैं?

स्पोर्ट्स में मेरी शुरू से रूचि रही है. इस कारण हमेशा फिट रहा हूं. पहले भी मैं जिम जाता था, पर घर पर खूब खाता भी था. मेरी मम्मी कश्मीरी हैं. दिल्ली में मेरे पापा के कई रेस्टोरेंट हैं, तो हम घर पर जमकर नौनवेज खाते हैं. फिटनेस के लिए मुझे अपने खाने पर पाबंदी लगाने की जरूरत कभी महसूस नही हुई. लेकिन ‘दिल जंगली’ के लिए मुझे जिम ट्रेनर वाली बौडी बनानी पड़ी. उसके बाद ‘रेस 3’ सलमान खान के साथ कर रहा हूं, तो उनके सामने बौडी बनाकर रखना जरूरी है. फिलहाल हर दिन ढाई घंटे जिम में बिताता हूं. वेट ट्रेनिंग लेता हूं. मिश्रित फंक्शनल वर्कआउट करता हूं. हफ्ते में तीन दिन वेट लिफ्टिंग करता हूं. योगा भी करता हूं. पर साथ में पौष्टिक भोजन भी लेता हूं. यदि आप अपनी जिंदगी में तेल, नमक व शक्कर कम कर दें, तो जिम जाने की भी जरूरत नही पड़ेगी.

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प्यार बनाम आत्मनिर्भरता

आज लड़के यह समझने को तैयार नहीं हैं कि लड़की के लिए उस का भविष्य उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि स्वयं किसी लड़के का होता है. लड़कियों के लिए भविष्य कोई सपना या विकल्प नहीं, बल्कि उस की आवश्यकता है. यह आवश्यकता केवल वित्त की ही नहीं, बल्कि लड़कियां अपनी क्षमता साबित करने और व्यक्तित्व को परिभाषित करने के लिए भी यह जरूरी समझती हैं.

स्त्री और पुरुष दोनों ही अपना भविष्य चुनने के लिए स्वतंत्र होते हैं. लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि धीरेधीरे पनप रहे अपने प्रेमसंबंध से वे अपने पथ से विचलित हो जाएं. लेकिन दीर्घ अवधि का प्रेमालाप और मोमबत्ती की मध्यम रोशनी में साथ किया गया रात्रिभोज उन्हें एक रात के यौनसुख की ओर अग्रसर करता है और फिर सप्ताह के अंत में मद्यपान की शुरुआत होती है, जो धीरेधीरे प्रतिदिन में बदल जाती है. संपूर्ण प्रतिस्पर्धी, मतलबी दुनिया में युवाओं की यही सचाई है.

स्त्रीपुरुष संबंधों की विशेषज्ञा लूसी बेरेसफोर्ड अपनी पुस्तक ‘इनविजिबल थ्रैड्स’ के विमोचन समारोह में दिल्ली आई थीं. उन का कहना है कि आज के युवा आपसी संबंधों की अपेक्षा नौकरी और भविष्य को ज्यादा महत्त्व दे रहे हैं. वे ऐसे संबंधों को त्यागने, जो खुद के लिए कारगर नहीं हैं या खुद को अपने साथी के अनुरूप न पाने पर भी अलग होने में जरा भी देर नहीं करते. उन्हें विश्वास होता है कि उन के जीवन में शीघ्र ही कोई दूसरा आ जाएगा.

28 वर्षीय राकेश चौबे हाल ही में हुए अपने प्रथककरण की व्याख्या करते हुए कहते हैं, ‘‘मैं अपने साथी से व्यक्तित्व या गलतफहमी के आधार पर अलग नहीं हुआ, बल्कि व्यावसायिक व्यस्तता की असमानता और पद के बेमेल के कारण हुआ हूं.’’

27 वर्षीय अनीता सिंघल अपनी आंखों में आंसू झलकाते हुए पूर्व में हुए ब्रेकअप का जिक्र करते हुए कहती हैं, ‘‘पूर्व प्रेमी के साथ मेरा भविष्य सुरक्षित नहीं था क्योंकि कालेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद भी वह अपने रोजगार के प्रति प्रतिबद्ध नहीं था. प्यार का मतलब यह नहीं कि हम अपनी महत्त्वाकांक्षाओं और भविष्य को ले कर आंखें मूंद लें. सचाई यही है कि आप अपना भविष्य या नौकरी का चुनाव अपने भावनात्मक संबंधों पर नहीं छोड़ सकते.’’

29 वर्षीय व्यवसाई अंकित सक्सेना का कहना है, ‘‘जीवन में प्रेमालाप को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता लेकिन आपसी संबंधों का मतलब होता है कि हम एकदूसरे को खुशी प्रदान करें, एकदूसरे को सहयोग करें, एकदूसरे की आवश्यकताओं का ध्यान रखें. तनाव, चिंता और दबाव प्रत्येक व्यवसाय तथा नौकरी के हिस्से हैं. इन्हें हमें अपने निजी क्षणों पर हावी नहीं होने देना चाहिए. अगर हमारा जीवनसाथी हमारे लक्ष्य पर सवाल उठाता है, हम पर शक करता है, छोटीछोटी बातों को तूल दे कर झगड़ा करता है, तो अच्छा है कि हम एकदूसरे से अलग हो जाएं.’’

उपरोक्त उदाहरणों से आप ने जान लिया होगा कि प्यार से अधिक महत्त्वपूर्ण आत्मनिर्भरता है. अगर आप आत्मनिर्भर हैं तो आप को जीवनसाथी की कमी नहीं. इसलिए आप अपना ध्यान आत्मनिर्भर होने पर केंद्रित करें.

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बच्चों की सुरक्षा और सतर्कता जरूरी

7 साल का प्रद्युम्न ठाकुर गुड़गांव के ख्यातिप्राप्त रायन इंटरनैशनल स्कूल की कक्षा 2 का छात्र था. रोजाना की तरह गत 8 सितंबर को मां ने प्यार से तैयार कर उसे पढ़ने के लिए स्कूल भेजा. पिता द्वारा प्रद्युम्न को स्कूल में पहुंचाने के आधे घंटे के अंदर घर पर फोन आ गया कि बच्चे के साथ हादसा हो गया है.

प्रद्युम्न को संदिग्ध परिस्थितियों में ग्राउंडफ्लोर पर मौजूद वाशरूम में खून से लथपथ मृत अवस्था में पाया गया. देखने से स्पष्ट था कि उस की हत्या की गई है. उस पर 2 बार चाकू से वार किए गए थे. अत्यधिक खून बहने से उस की मौत हो गई.

प्रारंभिक जांच में बस कंडक्टर को दोषी पाया गया मगर बाद की जांच में उसी स्कूल की 11वीं कक्षा के एक छात्र को हिरासत में लिया गया. आरोपी छात्र ने स्वीकार किया कि महज परीक्षा की तिथि और टीचर पेरैंट्स मीटिंग की तारीख आगे बढ़वाने के मकसद से

उस ने, जानबूझ कर, इस घटना को अंजाम दिया. वैसे, इस केस में स्कूल प्रशासन पर सुबूत छिपाने के इलजाम भी लगे और एक बार फिर स्कूलों में बच्चों की लचर सुरक्षा व्यवस्था की हकीकत सामने आ गई.

बच्चों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा करता ऐसा ही मामला द्वारका, दिल्ली के एक स्कूल का है. यहां 4 साल की बच्ची के साथ यौनशोषण की घटना सामने आई. आरोप बच्ची की ही कक्षा में पढ़ने वाले 4 साल के बच्चे पर लगा.

छोटी सी बच्ची से बलात्कार का एक मामला 14 नवंबर को दिल्ली के अमन विहार इलाके में भी सामने आया. यह नाबालिग बच्ची अपने मातापिता के साथ किराए के मकान में रहती थी. आरोपी युवक उसी मकान में पहली मंजिल पर रहता था.

दिल्ली के एक स्कूल में 5 साल की बच्ची के साथ स्कूल के चपरासी द्वारा बलात्कार की घटना ने भी सभी को स्तब्ध कर दिया.

इन घटनाओं ने स्कूल परिसरों में बच्चों की सुरक्षा को ले कर कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं. स्कूल परिसरों में मासूम लड़कियां ही नहीं, लड़के भी यौनशोषण के शिकार हो रहे हैं.

इस संदर्भ में सभी राज्य सरकारों, स्कूल प्रशासनों और मातापिता को सतर्क होने की जरूरत है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न घट सकें.

स्कूल की जिम्मेदारियां

कोई भी मातापिता जब अपने बच्चे के लिए किसी स्कूल का चुनाव करते हैं तो स्कूल की आधारभूत संरचना और वहां की पढ़ाई के स्तर को जांचने के साथ ही उन का विश्वास भी होता है जो उन्हें किसी विशेष स्कूल को अपने बच्चे के लिए चुनने हेतु प्रेरित करता है. ऐसे में स्कूल प्रशासन की पूरी जिम्मेदारी बनती है कि वह न सिर्फ बेहतरीन शिक्षा उपलब्ध कराए, बल्कि मातापिता के विश्वास पर भी खरा उतरे.

मातापिता की जिम्मेदारियां

हर मातापिता का कर्तव्य है कि वे घरबाहर अपने बच्चों की सुरक्षा को ले कर सतर्क रहें. घर के बाद बच्चे सब से अधिक समय स्कूल में बिताते हैं. ऐसे में स्कूल परिसर में बच्चों की सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा है.

मातापिता को चाहिए कि जिस स्कूल में वे बच्चे को दाखिल कराने जा रहे हैं, वहां की सुरक्षा व्यवस्था की वे विस्तृत जानकारी लें.

हमेशा टीचरपेरैंट्स मीटिंग में जाएं और बच्चों की सुरक्षा से संबंधित कोई कमी नजर आए तो टीचर से उस की चर्चा जरूर करें.

बच्चों से स्कूल में उन के अनुभवों के बारे में खुल कर चर्चा करें. अगर अचानक बच्चा स्कूल जाने से घबराने लगे या उस के नंबर कम आने लगें तो इन संकेतों को गंभीरता से लें और इन का कारण जानने का प्रयास करें.

बच्चों को अच्छे और बुरे टच के बारे में समझाएं ताकि यदि कोई उन्हें गलत मकसद से छुए तो वे शोर मचा दें.

बच्चों को यह भी समझाएं कि यदि कोई बच्चा उन्हें डराधमका रहा है तो वे टीचर या मम्मीपापा को सारी बात बताएं.

बच्चों को मोबाइल और दूसरी कीमती चीजें स्कूल न ले जाने दें.

अगर आप के बच्चे का व्यवहार कुछ दिनों से बदलाबदला नजर आ रहा है, वह आक्रामक होने लगा है या ज्यादा चुप रहने लगा है तो इस की वजह जानने का प्रयास करें.

रोज स्कूल से आने के बाद बच्चे का बैग चैक करें. उस के होमवर्क, क्लासवर्क और ग्रेड्स पर नजर रखें. उस के दोस्तों के बारे में भी सारी जानकारी रखें.

छोटे बच्चे को बस में चढ़नाउतरना सिखाएं.

बसस्टौप पर कम से कम 5 मिनट पहले पहुंचें.

आप अपने बच्चों को सिखाएं कि किसी आपातकालीन स्थिति में किस तरह के सुरक्षात्मक कदम उठाए जा सकते हैं. हो सके तो बच्चों को सैल्फडिफैंस के गुर, जैसे मार्शल आर्ट व कराटे वगैरा सिखाएं.

मनोवैज्ञानिक पहलू

तुलसी हैल्थ केयर, नई दिल्ली के मनोचिकित्सक डा. गौरव गुप्ता बताते हैं कि गुड़गांव के प्रद्युम्न केस की बात हो या 4 साल की बच्ची का यौनशोषण, इस तरह की घटनाएं बच्चों में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति व गलत कामों के प्रति आकर्षण को चिह्नित करती हैं.

इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि आज लोगों के पास वक्त कम है. हर कोई भागदौड़भरी जिंदगी में व्यस्त है. संयुक्त परिवारों की प्रथा खत्म होने के कगार पर पहुंच चुकी है. नतीजा यह है कि बच्चों का लालनपालन एक मशीनी प्रक्रिया के तहत हो रहा है. परिवार वालों के साथ रह कर जीवन की वास्तविकताओं से अवगत होने और टीवी धारावाहिक व फिल्में देख कर जिंदगी को समझने में बहुत अंतर है.

एकाकीपन के माहौल में पल रहे बच्चों के मन की बातों और कुंठाओं को समझना जरूरी है. मांबाप द्वारा बच्चों के आगे झूठ बोलने, बेमतलब की कलह और विवादों में फंसने, छोटीछोटी बातों पर हिंसा करने पर उतारू हो जाने जैसी बातें ऐसी घटनाओं का सबब बनती हैं क्योंकि बच्चे बड़ों से ही सीखते हैं.

स्कूल भी पीछे कहां हैं? स्कूल आज शिक्षाग्रहण करने का स्थान कम, पैसा कमाने का जरिया अधिक बन गए हैं. स्कूल का जितना नाम, उतनी ही महंगी पढ़ाई. जरूरी है कि शिक्षा प्रणाली में बाल मनोविज्ञान का खास खयाल रखा जाए.

अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. यदि हम सब आज भी अपनी आने वाली पीढ़ी के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें और उसे सही ढंग से निभाएं तो अवश्य ही हम उन्हें बेहतर भविष्य दे सकते हैं.

साइबर बुलिंग

बुलिंग का अर्थ है तंग करना. इतना तंग करना कि पीडि़त का मानसिक संतुलन बिगड़ जाए. बुलिंग व्यक्ति को भावनात्मक और दिमागी दोनों ही तौर पर प्रभावित करती है. बुलिंग जब इंटरनैट के जरिए होती है तो इसे साइबर बुलिंग कहते हैं.

साइबर बुलिंग के कहर से भी स्कूली बच्चे सुरक्षित नहीं हैं. हाल ही में 174 बच्चों पर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, 17 फीसदी बच्चे बुलिंग के शिकार हैं. स्टडी में पाया गया कि 15 फीसदी बच्चे शारीरिक तौर पर भी बुलिंग के शिकार हो रहे हैं. इस में मारपीट की धमकी प्रमुख है. लड़कियों की तुलना में लड़के इस के ज्यादा शिकार होते हैं.

अपराध के बढ़ते मामले चिंताजनक

एनसीआरबी द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2015 और 2016 के बीच बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या में 11 फीसदी बढ़ोतरी हुई है.

क्राइ यानी चाइल्ड राइट्स ऐंड यू द्वारा किए गए विश्लेषण दर्शाते हैं कि पिछले एक दशक में बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध तेजी से बढ़े हैं. 2006 में 18,967 से बढ़ कर 2016 में यह संख्या 1,06,958 हो गई. राज्यों के अनुसार बात करें तो 50 फीसदी से ज्यादा अपराध केवल 5 राज्यों उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में दर्ज किए गए है. उत्तर प्रदेश 15 फीसदी अपराधों के साथ इस सूची में सब से ऊपर है. वहीं महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश क्रमश: 14 और 13 फीसदी अपराधों के साथ ज्यादा पीछे नहीं हैं.

अपराध की प्रवृत्ति और कैटिगरी की बात करें तो सूची में सब से ऊपर अपहरण रहा. 2016 में दर्ज किए गए कुल अपराधों में से लगभग आधे अपराध इसी प्रवृत्ति

(48.9 फीसदी) के थे. इस के बाद अगली सब से बड़ी कैटिगरी बलात्कार की रही. बच्चों के खिलाफ दर्ज किए गए 18 फीसदी से ज्यादा अपराध इस श्रेणी में दर्ज किए गए.

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प्यार भरे इस खास मौसम में पाएं दमकती त्वचा

वैलेंटाइन डे के खास दिन यानी कि प्यार भरे इस खास मौसम में आप भी चाहेंगी कि आपकी खूबसूरती आकर्षण का केंद्र हो. इस दिन अगर आप भी दमकती त्वचा और आकर्षक चेहरें की ख्वाहिश रखती हैं तो आपको पहले से इसके लिए कुछ खास तैयारियां करनी पड़ेगी. घबराइये नहीं क्योंकि इसके लिए आपको पार्लर जाकर सजने सवरने और ज्यादा पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं है. हम आपको कुछ आसान से ब्यूटी टिप्स बता रहे हैं जिसे अपनाकर आप मनचाही खूबसूरती पा सकती हैं.

मलाई और हल्दी का मिश्रण बना कर इसे चेहरे पर लगा कर दस मिनट रखें और इसके बाद चेहरे को पानी से धो लें इससे आपकी त्वचा साफ हो जाएगी और चेहरे पर खोई आभा एक बार फिर लौट आएगी. चेहरे की रंगत चमकाने के लिए आप बेसन, चंदन और हल्दी का भी फेस पैक इस्तेमाल कर सकती है. इस पेस पैक को बना कर रोजाना चेहरे पर प्रयोग करने से आपकी त्वचा दमक उठेगी.

शहद में सफेद अंडा मिलाकर इसे चेहरे पर लगाएं और 5 मिनट बाद ताजे साफ पानी से धो डालिए. अगर आपकी त्वचा अत्यधिक शुष्क है इसमें थोड़ा सा दूध मिला लीजिए. चेहरे को साफ करने के बाद गुलाब जल में भीगे काटन वूल की मदद से त्वचा को दबाइए.

गुलाब जल में काटन वूल पैड डूबो कर 10 मिनट के लिए फ्रीज में रखें. इसके बाद इससे अपने चेहरे को धीरे-धीरे सहलाएं. इस मिश्रण को गालों पर ऊपरी तथा निचली दशा में हल्के-हल्के सहलाते हुए लगाएं तथा प्रत्येक स्ट्रोक को कनपटी तक ले जाएं. इस मिश्रण को माथे पर लगाते समय मध्य बिन्दू से शुरू करके तथा दोनों तरफ बाहरी दिशा में कनपटी तक घुमाएं. ठोड़ी पर इसे घुमावदार तरीके से लगाएं. इसके बाद गुलाब जल में भीगे काटनवूल पैड से त्वचा को तेजी से थपथपाइए. इससे आपकी त्वचा में निखार आएगा.

फेशियल स्क्रब का उपयोग कीजिए. इससे त्वचा से मृत कोशिकाएं हट जाती हैं जिससे त्वचा दमक उठती है. फेशियल स्क्रब बनाने के लिए अखरोट के पाउडर, शहद और दङी का प्रयोग करें. अखरोट के पाउडर में एक चम्मच शहद और एक चम्मच दही को अच्छी तरह मिलाकर फेशियल स्क्रब बना लीजिए इस मिश्रण को कुछ समय तक चेहरे पर लगा रहने दीजिए. इसके पश्चात चेहरे पर हल्के से मसाज कीजिए तथा बाद में स्वच्छ पानी से धो डालिए.

इस उपाय को 2 सो 3 बार अपनाने के बाद ही आपके तेहरे पर निखार आने लगेगा, आप इस आसान से उपाय को अपनाकर प्राकृतिक निखार पा सकती हैं.

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मै काफी रोमांटिक हूं और कविताएं भी वैसी ही लिखता हूं : जेन खान दुर्रानी

इन दिनों बौलीवुड में बहुमुखी प्रतिभाओं का आगमन और उनकी स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है. अब बौलीवुड से जो प्रतिभाएं जुड़ रही हैं, वह सिनेमा की कई विधाओं में खुद को झोंकना चाहते हैं. ऐसे ही प्रतिभाओं में से एक हैं- मूलतः श्रीनगर, कश्मीर निवासी डाक्टर पिता और मनोविज्ञान की प्रोफेसर मां के बेटे जेन दुर्रानी खान, जिनकी बतौर हीरो पहली फिल्म ‘‘कुछ भीगे अल्फ़ाज’’ 16 फरवरी को प्रदर्शित होने जा रही है. पर जेन खान दुर्रानी सिर्फ अभिेनता ही नही बथ्लक एक बेहतरीन कवि भी हैं. उन्होने बौलीवुड में 2014 में प्रवेश किया था. बौलीवुड में जेन ने अपने करियर की शुरूआत फिल्म ‘‘शब’’ के निर्माण के दौरान फिल्मकार ओनीर के साथ बतौर सहायक निर्देशक काम करते हुए शुरू किया था और अब ओनीर के ही निर्देशन में उन्होंने फिल्म ‘‘कुछ भीगे अल्फ़ाज’’में अभिनय किया है.

आपके पिता डाक्टर, आपकी मां सायकोलौजी की प्रोफेसर और आपके परिवार के कई लोग पुलिस व प्रशासन से जुड़े रहे हैं. तो फिर किससे प्रेरित होकर आपने अभिनय को करियर बनाने का निर्णय लिया?

मेरे पापा डाक्टर होने के साथ साथ सिनेमा के शौकीन हैं. मैने उनके साथ घर पर वीडियो पर तमाम फिल्में देखी हैं. इसके अलावा श्रीनगर में पढ़ाई के दौरान मैं स्कूल के नाटकों में अभिनय किया करता था. मेरे एक नाना कवि और कश्मीर रेडियो पर एंकर रहे हैं, तो मुझे भी कविताएं लिखने का शौक पैदा हुआ था. मैं पिछले 14 वर्षों से यानी कि जब मैं बारह साल का था, तब से कविताएं लिखता आ रहा हूं. पर अभिनय को करियर बनाने की बात मेरे दिमाग में कभी नहीं आयी थी.

आपने थिएटर में क्या किया है?

मैंने प्रोफेशनल थिएटर कभी नहीं किया. स्कूल में नाटको में अभिनय जरूर किया है. मैं श्रीनगर के जिस स्कूल में पढ़ा हूं, वहां पर बहुत सी गतिविधियां होती थी. जिन्होंने मुझे कला के प्रति प्रेरित किया. स्कूल स्तर पर कई नाट्य प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और विजेता बना. मैंने एक नाटक में अभिनय करने के साथ ही उसे निर्देशित किया था. श्रीनगर के टैगोर हौल में अपने स्कूल की तरफ से कई नाटक किए. एक नाटक साइंस अकादमी, दिल्ली में किया था.

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तो फिर मुंबई आना और अभिनय से जुड़ना कैसे संभव हुआ?

मैं उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए श्रीनगर से दिल्ली आ गया था. जब मैं बीकौम के अंतिम वर्ष की परीक्षा की तैयारी कर रहा था, तब अपने एक दोस्त के बार बार कहने पर मैंने एक फिल्म के लिए औडीशन दे दिया था, क्योंकि उन्हें कश्मीरी लड़का चाहिए था. इस फिल्म के लिए मेरा चयन नहीं हुआ. पर फिल्म निर्देशक ओनीर की सलाह पर मैं मुंबई आ गया और मैने उनके साथ बतौर सहायक निर्देशक फिल्म ‘‘शब’’ की. पिछले तीन वर्षो से मुंबई में मेरे माता-पिता, परिवार, मेरे गुरू सब कुछ ओनीर सर ही हैं. पर मैंने इस बीच कुछ विज्ञापन फिल्मों में काम किया. कई फिल्मों के लिए औडीशन दिया. पर अंत में वह फिल्में किसी अन्य को मिलती रही. औडीशन देते देते मेरी समझ में आया कि मेरे अंदर अभिनय क्षमता चाहे जितनी भरी हो, पर निर्देशक तभी मुझे चुनेगा जब पटकथा के अनुसार निर्देशक के जेहन में किरदार की जो छवि है, वह मेरे अंदर नजर आएगी. बहरहाल, मैने सारेगामा निर्मित और ओनीर निर्देशित फिल्म ‘‘कुछ भीगे अल्फ़ाज’’ के लिए औडीशन दिया, जिसके लिए मेरा चयन हुआ. अब यह फिल्म प्रदर्शित होने जा रही है.

फिल्म‘‘कुछ भीगे अल्फाज’’के निर्देशक ओनीर ही हैं.तो फिर आपको आॅडीषन देने की जरूरत क्यांे पड़ी?

फिल्म की निर्माण कंपनी ‘सारेगामा’ है और औडीशन निर्माण कंपनी की तरफ से लिए जा रहे थे. इसलिए ओनीर ने कहा कि मैं औडीशन दूं. वहीं से चयन हो, तभी सही होगा. बहरहाल, सारेगामा कंपनी ने औडीशन के बाद स्क्रीन टेस्ट लिया. उसके बाद मेरा चयन हुआ.

फिल्म ‘‘कुछ भीगे अल्फाज’’ करने की मूल वजह क्या रही है?

पहली वजह तो बतौर हीरो फिल्म करने का अवसर मिल रहा था. दूसरी वजह फिल्म की कहानी व मेरे किरदार ने मुझे प्रभावित किया. इस फिल्म के नायक की ही तरह मैं भी निजी जिंदगी में काफी रोमांटिक हूं.

फिल्म ‘‘कुछ भीगे अल्फ़ाज’’ के अपने किरदार पर रोशनी डालेंगे?

इसमें मैने प्रेम में टूटे व बिखरे अल्फाज नामक एक रेडियो जाकी की भूमिका में हूं, जो कि कलकत्ता रेडियो पर रात दस बजे एक कार्यक्रम में रोमांटिक कहानियों के साथ ही गाने सुनाता है. वह अल्फाज के नाम से शायरी भी लिखता है, पर वह अपनी असली पहचान छिपाकर रखता है. मगर अर्चना नामक एक लड़की उसके प्यार में पड़ जाती हैं.

जब आप फिल्म ‘‘कुछ भीगे अल्फाज’’ की शूटिंग कर रहे थे, उस वक्त आपको अपने पहले प्यार और उसके लिए लिखे गए 2500 पन्नों में से कुछ याद आया?

कई दफा, क्योंकि एक कलाकार अपनी जिंदगी, अपने अनुभवों और अपने अहसास से ही कुछ लेकर फिल्म के अपने किरदार में पिरोता है. कलाकार जिन भावनाओं का अहसास कर चुका होता है, उन्ही को उठाकर नए अंदाज व नई कहानी में पेश करता है. कई बार मुझे अपने पहले प्यार के अहसास को याद करना पड़ा.

फिल्म “कुछ भीगे अल्फ़ाज’’ सोशल मीडिया के इर्दगिर्द है. आप भी सोशल मीडिया से जुड़े हुए हैं. क्या यह सही माध्यम है?

सोशल मीडिया को समझना व इसे मैनेज करना हर किसी के लिए मुश्किल हो रहा है. क्योंकि एक तरफ इसके कई फायदे हैं, तो वहीं इसके कई नुकसान भी हैं. एक तरफ आप इस मीडिया पर अपनी बात खुलकर कह सकते हैं और आपकी बात सुनी भी जा रही है. जबकि पहले आपकी राय सिर्फ आपके वोट तक ही सीमित थी. अब आप अपनी बात लोगों से कह सकते हैं. और लोगों के जवाब भी जान सकते हैं. इसी के साथ सोशल मीडिया एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी है. आपको यह समझना पड़ेगा कि महज आपकी अपनी राय होना ही जरूरी नहीं है, बल्कि वह कितना उपयोगी व जानकारी वाली है, यह भी जरूरी है.

सोशल मीडिया पर जिस तरह से लोग कमेंट कर रहे हैं, उससे नहीं लगता कि अराजकता फैल रही है?

मुझे लगता हैं कि इंसान शुरू से ही ऐसा रहा है. सोशल मीडिया आ गया, तो हमें यह बात समझ आ रही है. अब हमें समझ आ रहा है कि हमारा समाज कैसा है? देखिए, सआदत हसन मंटो से लोग सवाल करते थे कि आप ऐसी कहानियां क्यों लिखते हैं? तब वह जवाब देते थे कि,‘‘मैं कुछ नहीं लिखता. मैं सिर्फ तुम्हें और तुम्हारे समाज को तुम्हारा ही एक आइना दिखा रहा हूं. अब वह तुम्हें अच्छा लगे या बुरा लगे, यह तुम्हारी गलती है. तो सोशल मीडिया भी ऐसा ही है.

इंस्टाग्राम पर आप जो कुछ पोस्ट करते हैं, उस पर किस तरह की प्रतिक्रिया मिलती हैं?

मैं सिर्फ मोहब्बत की बात करता हूं, इसलिए मेरे पास नकारात्मक प्रतिक्रियाएं नहीं आती. उम्मीद है कि भविष्य में भी ऐसा ही होगा. मुझे लगता है कि जब इंसान बिना सोचे समझे कुछ भी पोस्ट कर देता है. तब उसे नकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिलती हैं. लेकिन आप इस डर से ना बोले कि आपके मुंह से कुछ गलत निकल जाएगा, तो भी गलत है. सही चीज है कि आप गलत चीज बोलने के लिए ना बोले.

आप कविताएं भी लिखते हैं. यह शौक कहां से पैदा हुआ?

यह मुझे ईश्वर प्रदत्त गुण है. मैं 12 साल की उम्र से कविताएं लिखता आ रहा हूं. सबसे पहले मैंने अपने नाना के बारे में कविता लिखी थी. मुझे अपने नाना से बहुत मोहब्बत हैं. मेरे नाना श्रीनगर में पुलिस विभाग में बड़े पद पर थे. उन्हें उर्दू कविताओं का बड़ा शौक रहा है. उनके भाई यानी कि मेरे दूसरे नाना जी जिया सुल्तान मशहूर कवि रहे हैं. वह रेडियो कश्मीर में एंकरिंग किया करते थे. मुझे भी कविताएं अच्छी लगती थीं. मैंने स्कूल में भी उर्दू को पढ़ाई की तरह नहीं बल्कि बड़े मौज से पढ़ा. कश्मीर के एक बहुत बडे़ शायर की औटोग्राफ की हुई इकबाल की कविताओं की किताब मैंने सबसे पहले पढ़ी थी, उन कविताओं को पढ़ते हुए मैं अपनी नयी कविता लिखता था. शुरूआत में मैंने ज्यादातर कविताएं अंग्रेजी में लिखी. फिर हिंदी और उर्दू में लिखी. पिछले 14 वर्षो के अंतराल में कम से कम 500 कविताएं लिखी होंगी. इनमें से कुछ कविताओं को मैं कभी कभी अपने इंस्टाग्राम पर डाल देता हूं. मेरी मम्मी चाहती हैं कि मैं इन कविताओं को किताब के रूप में प्रकाशित करूं. पर मैंने अब तक ऐसा किया नहीं है. मैं इनमें से कुछ चुनिंदा कविताओं को किताब के रूप में लोगों के सामने लाना चाहता हूं. पर उन्हें चुनने की हिम्मत अभी तक नहीं ला पाया. वैसे आपको बता दूं कि कुछ वर्ष पहले मेरी आदत फोन पर ही कविताएं लिखने की थी. एक दिन फोन ऐसा टूटा कि मेरी करीबन 125 कविताएं भी चली गयी. जिसका मुझे बड़ा दुःख हुआ. क्योंकि मोबाइल टूटने के बाद वह कविताएं रिकवर नहीं हो पायी. वैसे इंस्टाग्राम पर मेरी कविताओं को पसंद किया जा रहा है. पर बहुत जल्द इसी वर्ष मैं किताब के रूप में कुछ कविताओं को लेकर जरूर आउंगा.

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किस तरह की कविताएं लिखते हैं?

मैं रोमांस को लेकर ही कविताएं लिखता हूं. मेरी लिखी कविताएं किसी एक डायरी में नहीं है. कुछ अखबार के पन्नों पर हैं, कुछ कागजों पर हैं. जब मेरे दिमाग में कुछ लिखने की बात आती है, तो मैं डायरी तलाशने की बजाय जो भी कागज सामने होता है, उसी पर लिखने बैठ जाता हूं. निजी जीवन में मैं रोमाटिक इंसान हूं.

आप फिल्म ‘‘कुछ भीगे अल्फाज’’ में कविता या गाना लिख सकते थे?

सच कहूं तो मैंने जब पटकथा पढ़ी, तो उसमें जो शायरी लिखी हुई थीं, वह बहुत अच्छी थीं. जिन्हें अभिषेक चटर्जी और ओनीर की भतीजी रिचा ने लिखा है. यह सब फिल्म के साथ बहुत सटीक बैठती हैं. इसलिए मैंने खुद लिखने के बारे में नहीं सोचा. मुझे खुशी थी कि मुझे ऐसी बेहतरीन शायरी पर अभिनय करने का मौका मिल रहा था. वैसे भी मैं दी गयी सिच्युएशन के आधार पर कविताएं लिखने में माहिर नहीं हूं. मेरे दिमाग में जब कोई ख्याल आता है, तो उसे लिखता हूं. मेरा मानना है कि कविता लिखना मेहनत का काम नहीं है. बल्कि कविता लिखने का अर्थ होता है, दिल में जो बात आए, उसे कागज पर उतार देना.

कई बार ऐसा हुआ कि फिल्म देखते समय मैं किसी किरदार के साथ इस कदर जुड़ गया हूं कि उसको लेकर भी मैंने कुछ कविताएं लिखी. मैं अपने आसपास के अनुभवों को भी कविताओं का हिस्सा बनाता हूं. मैंने कश्मीर के हालातों पर भी कविताएं लिखी हैं. अपना दर्द बयां किया है. जब मैं कश्मीर जाता हूं, तो उस वक्त बहुत कुछ घटित होता रहता है. दिमाग में बहुत कुछ चलता है. ढेर सारे एहसास होते हैं, तो उन्हें कागज पर उतार कर सकून मिलता है. अपनी ही लिखी कविता को जब मैं कुछ समय बाद पढ़ता हूं, तो मुझे एहसास होता है कि मैं उन चीजों को किस तरह से एहसास कर रहा था.

आप किस तरह की चीजें पढ़ना पसंद करते हैं?

मैं अमर्त्य सेन का बहुत बड़ा फैन हूं. मुझे उनकी लिखायी बहुत पसंद है. मुझे हरिवंशराय बच्चन की कविता ‘अग्निपथ’ बहुत पसंद है. फैज अहमद फैज मुझे बहुत अच्छे लगते हैं. मुझे उनकी रोमांटिक कविताएं बहुत पसंद हैं. इकबाल व जोश मलिहाबादी को भी मैने काफी पढ़ा है.

इन दिनों क्या पढ़ रहे हैं?

आज कल मैं फैज अहमद फैज को पुनः पढ़ रहा हूं. फैज अहमद फैज की रोमांटिक कविता में जो मिठास है, वह मुझे हर दिन तरोताजा करती हैं. इसके अलावा मुझे अपनी मम्मी के कौलेज की मनेाविज्ञान विषय वाली किताबें पढ़ना भी बहुत पसंद रहा हैं. जिसकी वजह से मेरे अंदर सायकोलौजी की बहुत अच्छी समझ विकसित हुई.

सायकोलौजी/मनोविज्ञान की किताबें पढ़ने से क्या फायदा हुआ?

किसी भी किरदार को निभाना बहुत आसान हो गया है. देखिए, मैं बहुत बड़ी बड़ी बातें नहीं करना चाहता. अन्यथा लोग कहेंगे कि बिना किसी मुकाम को पाए ही बकवास कर रहा है. पर इन किताबों को पढ़ने से मुझे इंसानी दिमाग से प्यार हो गया है. अब मेरे लिए किसी भी इंसान को समझना आसान हो गया है. कलाकार के तौर पर हमें किरदार को समझने में मनोविज्ञान काफी मदद करता है. मनोविज्ञान को पढ़ने से ही मेरे अंदर अभिनय को समझने में रूचि पैदा हुई.

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