ब्यूटी ट्रीटमैंट : खूबसूरती बढ़ाती नई तकनीकें

आधुनिक भारत तनाव के उच्च स्तर, अनिद्रा, मोटापा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह जैसी समस्याओं से जूझ रहा है. काम करने के अव्यवस्थित तरीके, अस्वास्थ्यप्रद आहार लेना, शारीरिक व्यायाम न करना, खानेपीने की चीजों में मिलावट, प्रदूषण, डिजिटल तनाव आदि आज स्वास्थ्य पर भारी पड़ रहे हैं.

स्वास्थ्य बिगड़ने का पहला संकेत मोटापा आज भारतीय पुरुषों और महिलाओं में महामारी की तरह फैल रहा है. समस्या वजन बढ़ने के साथ शुरू होती है और धीरेधीरे गंभीर जानलेवा रोगों जैसे हृदय रोग, कैंसर, कोरोनरी स्ट्रोक आदि का कारण बन जाती है.

हाल ही में ब्रिटिश मैडिकल जनरल द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार भारत में करीब 2 करोड़ महिलाएं मोटापे की शिकार हैं, वहीं मोटापे से पीडि़त पुरुषों की संख्या 1 करोड़ है.

आंकड़े चौंका देने वाले हैं और इन पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है. 40 एवं अधिक उम्र की महिलाओं की बात करें, तो उन के लिए वजन कम करना धीरेधीरे मुश्किल होता जाता है. ज्यादातर महिलाओं को लगता है कि उन्हें वजन कम करने के लिए बहुत कोशिश करनी पड़ेगी. जीवन की इस अवस्था के दौरान शरीर में चयापचयी बदलाव आने लगते हैं और पाचन प्रक्रिया में बदलाव के चलते शरीर के बीच के हिस्से, जांघों आदि में वसा जमने लगती है. हारमोनल बदलाव भी चयापचयी दर को प्रभावित करता है और वजन कम करना मुश्किल होता जाता है. उस पर अगर आप को कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या है, तो परेशानी और बढ़ जाती है.

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मोटापे की समस्या का अब प्रभावी उपचार उपलब्ध है. वजन कम करने की कोशिशों में नाकाम होने के बाद अब ज्यादातर लोग वजन कम करने के सर्जिकल एवं नौनसर्जिकल उपायों की ओर रुख करने लगे हैं. बढ़ती जागरूकता, अत्याधुनिक उपचार एवं प्रभावी चिकित्सा पेशेवरों की उपलब्धता के चलते नौनइनवेसिव सर्जिकल प्रक्रियाएं अब लोकप्रिय हो रही हैं.

सौंदर्य चिकित्सा अब शहरी पुरुषों और महिलाओं के लिए नया मंत्र बन गई है, क्योंकि अच्छी दवाओं और डर्मेटोलौजिस्ट की मदद से वे अपनी इन समस्याओं का समाधान कर सकते हैं. यह प्रभावी, तीव्र और आरामदायक तरीका है. सुरक्षित नौनइनवेसिव विधियां कंटूरिंग, त्वचा के ढीलेपन और गुणवत्ता में सुधार, फाइन लाइंस को हटाने, जिद्दी वसा को निकालने में कारगर हो सकती हैं. अब तक हमारे पास ऐसे उपकरण थे, जो मरीज के सीधे संपर्क में होते थे, लेकिन आज हमारे पास ऐसी तकनीक है, जिस में मरीज एवं डिवाइस के बीच सीधा संपर्क नहीं होता. मरीज उपचार कराने के साथसाथ किताब पढ़ सकता है, टीवी देख सकता है, अपने दोस्तों के साथ चैट कर सकता है.

सौंदर्य चिकित्सा पिछले 2 सालों में बेहद लोकप्रिय हो गई है और नई तकनीकों ने डाक्टरों एवं मरीजों को

कईर् विकल्प उपलब्ध कराए हैं. यह कौस्मैटिक सर्जरी से अलग है जैसा कि अकसर माना जाता है. कौस्मैटिक सर्जरी में शल्यक्रिया के द्वारा व्यक्ति के लुक में बदलाव लाया जाता है जबकि सौंदर्य चिकित्सा एक नौनइनवेसिव तरीका है.

राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बौडी कंटूरिंग एवं स्किन लैक्जिटी रिपेयर (त्वचा के ढीलेपन में सुधार) के कई समाधान उपलब्ध हैं जैसे क्रीयोलिपोलिसिस, लेजर लिपोलिसिस, अल्ट्रासाउंड एवं रेडियोफ्रीक्वैंसी आदि.

रेडियोफ्रीक्वैंसी भारतीय बाजार में सब से पसंदीदा सौंदर्य उपकरण बन चुकी है. रेडियोफ्रीक्वैंसी पर आधारित तकनीकें जैसे बीटीएल वैंक्विश एमई या मोनोपोलर रेडियोफ्रीक्वैंसी तथा अल्ट्रासाउंड जैसे बीटीएल ऐक्जिलिस एलाइट वसा कम करने में नौनइनवेसिव तकनीकें कारगर साबित हुई हैं.

ये तकनीकें एक ही सत्र में सब से बड़े हिस्से का उपचार करती हैं. उपचार में बाहरी त्वचा या वसा की परत के नीचे मौजूद पेशियों को नुकसान पहुंचने की संभावना नहीं होती है. इस का कोई साइड इफैक्ट भी नहीं है और न ही ज्यादा समय की जरूरत है. आप लंच ब्रेक ले कर अधिकतम 1 घंटे के सत्र में यह उपचार करवा सकती हैं.

रेडियोफ्रीक्वैंसी उन के लिए अच्छा विकल्प है, जो सर्जरी नहीं करवाना चाहते. 40 से अधिक उम्र के पुरुषों और महिलाओं को इस तरह के उपचार की सलाह दी जाती है, क्योंकि यह ढीली त्वचा पर भी बहुत अच्छी तरह से काम करता है. नए कोलोजन के निर्माण को बढ़ाता है, शरीर को कंटूर करता है और बिना चीरा लगाए अतिरिक्त फैट निकाल देता है.

-डा. अमित लूथरा, एलाइट टैक्नोलौजी विशेषज्ञ

अच्‍छी नींद पाने के लिये बेडरूम में लगाएं ये पौधे

आज की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में हम इंतना तनाव ग्रस्त हो जाते हैं कि हम ठीक से सो भी नहीं पाते. नींद ना पूरी हो तो हम ठीक से काम भी नहीं कर पातें हैं. हमारी ज़िन्दगी में नींद का बहुत बड़ा महत्‍व है. लेकिन आप घबराएं नहीं क्‍येांकि आज हम आपको कुछ ऐसे ही पौधों के बारे में बताने जा रहें हैं, जिन्हें अपने बेडरूम में लगाने से अच्‍छी नींद आएगी.

यही नहीं, प्रकृति के करीब होने से भी आपका मन हमेशा अच्‍छा रहेगा और तनाव नहीं रहेगा.

1. चमेली

एक अध्ययन में यहाँ पाया गया है कि चमेली के फूलों की महक से नींद अच्छी आती है. इसकी महक से व्यक्ति अच्छे से सो सकता है, साथ ही घबराहट और मूड स्विंग को भी ठीक रखता है.

2. लैवेंडर

लैवेंडर का फूल काफी सारी चीज़ों में प्रयोग किया जाता है, इसकी महक साबुन, शैंपू और इत्र बनाने में इस्तेमाल की जाती हैं. इसकी खूबियां यही समाप्त नहीं होती हैं एरोमाथेरेपी में भी इसका प्रयोग होता है, क्‍योंकि यह दिमाग को सुकून पहुंचाता है और इसमें एंटीसेप्टिक व दर्दनिवारक गुण होते हैं. लैवेंडर का तेल तंत्रिका थकावट और बेचैनी को दूर करने के लिए जाना जाता है. साथ ही यह मानसिक गतिविधि को बढ़ाता है और उसे शांत भी रखता है.

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3. गार्डेनिया

यह एक तरह का विदेशी फूल है, आप इस फूल को देखने से पहले ही इसकी खुशबू को महसूस कर लेंगे. तेज सुगंधित खुशबू वाला यह सफेद रंग का फूल, दिमाग को शांत रखता है. क्योंकि इसकी महक काफी तेज़ होती है, तो इसे अपने बैडरूम में लगाने से आपका कमरा भी महकने लगेगा, और आप आराम से सो सकेंगें

4.स्‍नेक प्‍लांट

यह नाइट्रोजन आक्साइड और प्रदूषित हवा को अपने अंदर खींच लेता है. इसलिए इसे आप अपने बैडरूम में लगा सकते हैं, जिससे आपको शुद्ध हवा मिलें. इस पौधे की एक और ख़ासियत है, यह रात में जब सारे पौधें नाइट्रोजन छोड़तें हैं तो यह ऑक्सीजन देता है.

5.एलोवेरा

इस पौधें में कई सारे औषधीय गुण पाये जाते हैं जैसे यह आपकी त्वचा के लिए काफी लाभ दायक है, शरीर के घाव को भी ठीक करता है साथ ही इसे खाने से आपका शरीर भी डिटाक्सफाइ हो जाता है. एलोवेरा का पौधा बैडरूम में लगाने से कमरे की हवा भी शुद्ध होती है.

पैडमैन : अक्षय कुमार और सोनम कपूर का उम्दा अभिनय

औरतों की माहवारी/मासिक धर्म को लेकर चली आ रही भारतीय संस्कृति व सामाजिक परंपरा  पर चोट करने के साथ ही मासिक धर्म के दौरान औरतों की स्वच्छता और उनके अच्छे स्वास्थ्य की चिंता करने वाली फिल्म ‘‘पैडमैन’’ की कहानी यूं तो पैडमैन कहे जाने वाले तमिलनाडु निवासी अरूणाचलम मुरूगनाथन की कहानी है. पर इसमें काल्पनिक कहानी व काल्पनिक पात्रों को ज्यादा तरजीह देकर इंटरवल से पहले इसे कुछ ज्यादा ही मेलोड्रामैटिक बना दिया गया है.

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माहवारी के पांच दिन औरतों द्वारा गंदा कपड़ा, राख, पत्ता आदि का उपयोग करने की बजाय सैनेटरी नैपकीन पैड के उपयोग की वकालत करने वाली फिल्म ‘पैडमैन’ में दावा किया गया है कि सिर्फ 12 प्रतिशत भारतीय महिलांए ही सैनेटरी नैपकीन पैड का उपयोग करती हैं. यदि यह आंकड़ा सही है, तो चिंता का विषय है.

फिल्म ‘‘पैडमैन’’ की कहानी महेश्वर, मध्यप्रदेश में रह रहे वेल्डिंग का काम करने वाले युवक लक्ष्मी कांत चौहान (अक्षय कुमार) की गायत्री (राधिका आप्टे) संग शादी से होती है. शादी के बाद अपनी पत्नी से प्यार करने वाला लक्ष्मी काफी खुश है. लेकिन उसे यह पसंद नहीं कि माहवारी के पांच दिन उसकी पत्नी घर से बाहर बैठे और गंदे कपड़े का उपयोग करे. वह दवा की दुकान पर जाकर अपनी पत्नी गायत्री के लिए55 रूपए में सैनेटरी नैपकीन पैड खरीदकर लाता है.

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उसे पैड मांगने में कोई शर्म नहीं महसूस होती. पर गायत्री इतना महंगा पैड उपयोग नहीं करना चाहती. उसका मानना है कि इससे घर में दूध नहीं आ पाएगा. गायत्री अपने पति लक्ष्मी को समझाती है कि वह औरतों के मसले पर अपना दिमाग न खपाए. पर पत्नी की तकलीफ लक्ष्मी कोबर्दाश्त नहीं. ऊपर से डौक्टर उसे बताता है कि जो औरतें माहवारी के पांच दिनों में पत्ता, गंदा कपड़ा या राख का उपयोग करती हैं, वह बीमारी को दावत देती हैं. तब लक्ष्मी प्रसाद एक पैड को खोलकर देखता है, तो उसे पता चलता है कि मलमल के कपड़े के अंदर कुछ रूई/कापुस/कपास लपेटा गया है.

तो वह कहता है कि चवन्नी की रूई के लिए 55 रूपए मांगे जा रहे हैं. अब वह दुकान से कपड़ा व रूई खरीदकर अपनी पत्नी को पैड बनाकर देता है. गायत्री अगली माहवारी की रात उस पैड का उपयोग करती है, पर कोई फायदा नहीं होता और वह पुनः वही गंदा कपड़ा उपयोग करने लगती है. तब लक्ष्मी दुबारा प्रयास कर पैड बनाता है और इस बार वह पड़ोस की लड़की को पहली बार माहवारी होने पर वह पैड देता है. इससे हंगामा मच जाता है. लक्ष्मी की मां लक्ष्मी की दो छोटी बहनों को बड़ी बहन की ससुराल में रहने भेज देती हैं. लोग उसे पागल कहने लगते हैं.

गांव के लेाग लक्ष्मीकांत के इस काम को गंदा बताते हैं. बच्चे औरतों की माहवारी को क्रिकेट मैच की संज्ञा देते हैं. एक दिन फैक्टरी में फैक्टरी का एक मालिक कहता है कि कोई भी चीज ग्राहक को देने से पहले खुद उसका उपयोग करके उसके सही होने का आकलन कर लेना चाहिए. अब लक्ष्मी नए सिरे से पैड बनाता है. और खुद उस पैड को पहनकर सायकल चलाता है, साथ में खून पैड में जाता रहे, ऐसी थैली लगा रखी है. जब उसकी पैंट लाल रंग से भीग जाती है, तो वह महेश्वर की नर्मदा नदी में कूद जाता है. इस पर गांव की पंचायत बैठती है. बीच पंचायत मेंगायत्री का भाई आकर उसे अपने साथ ले जाते हैं. अंततः पंचायत के निर्णय से पहले ही लक्ष्मी ऐलान कर देता है कि वह गांव छोड़कर जा रहा है.

लक्ष्मी शहर पहुंचकर एक प्रोफेसर के घर पर नौकरी करने लगता है. जहां प्रोफेसर के बेटे की सलाह पर कम्पयूटर पर गूगल की मदद से अमेरिका व मलेशिया से पैड बनाने में उपयोग होने वाला पदार्थ तथा करोड़ों की मशीन की कार्यशैली देखकर एक सूदखोर से कर्ज लेकर नब्बे हजार में नई मशीन का ईजाद करता है. इस मशीन की मदद से जो सैनेटरी नैपकीन पैड बनता है, उसकी कीमत सिर्फ दो रूपए होती है. नाटकीय तरीके से इस पैड का पहला उपयोग परी (सोनम कपूर) करती है. परी तबला वादक होने के साथ साथ एमबीए की विद्यार्थी है.

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परी के पिता आईआईटी में है. परी के कहने पर उसके पिता दिल्ली में आयोजित समाज उपयोगी नई खोज प्रतियोगिता में लक्ष्मी को उसकी मशीन के साथ बुलवाते है. जहां उसे दो लाख रूपए का पुरस्कार मिलता है. उसके बाद परी के साथ मिलकर लक्ष्मी इस पैड को गांव की औरतों तक पहुंचाने, जरुरतमंद औरतों को बैंक से कर्ज दिलवाकर उन्हे मशीन बेचते हैं, जिससे वह महिलाएं अपने गांव में पैड बनाकर औरतों को दो रूपए में बेचे.

उधर गायत्री के भाई चाहते हैं कि गायत्री, लक्ष्मी प्रसाद को तलाक देकर नई जिंदगी शुरू करे, इधर लक्ष्मी प्रसाद अमेरिका में युनाइटेड नेशन में पुरस्कार हासिल करता है. वापस भारत लौटते हुए उसे खबर मिलती है कि भारत सरकार उसे पद्मश्री देने जा रही है. यह खबर अखबारों में छपती हैं. गायत्री के  भाईयों को अपराध बोध होता है. लक्ष्मी के गांव के लोग उसे सम्मान देने लगते हैं. फिल्म के अंत में लक्ष्मी प्रसाद रक्षा बंधन पर अपनी बहनों को उपहार में सैनेटरी नैपकीन पैड देते नजर आते हैं.

नारी उत्थान ही नहीं बल्कि नारी के स्वास्थ्य के संदर्भ में एक अति उपयुक्त व जरुरी विषय पर बनी यह सामाजिक फिल्म कई जगह सरकारी जुमलों के अलावा अति मेलोड्रामैटिक फिल्म बनकर रह जाती है. लेखक ने थोड़ी मेहनत की होती तो यह फिल्म काफी बेहतर बन सकती थी. फिल्म बेवजह लंबी बनायी गयी है. इंटरवल से पहले यह फिल्म निराश करती है. फिल्मकार ने एक तरफ कम्प्यूटर, गूगल सर्च व मोबाइल युग की बात की है तो दूसरी तरफ ऐसे अंधविश्वास फैलाने वाले सीन रखे हैं, जिन पर कोई भी आम इंसान यकीन नहीं करता.

मसलन-हनुमान जी को एक नारियल पकड़ाएं, कुछ देर बाद टुकड़े के रूप में प्रसाद का मिलना या भगवान कृष्ण के हाथों लड्डू के प्रसाद का मिलना आदि बेवकूफी भरे सीन किस सोच के साथ रखे गए हैं, यह तो अक्षय कुमार व आर बालकी ही बेहतर जाने. फिल्म 2018 में बनी है,जब भारत के गांव गांव में मोबाइल फोन व इंटरनेट हावी है. पर इस तरह के दृश्यों को दिखाकर फिल्मकार क्या साबित करना चाहते हैं, यह तो वही जानें.

इंटरवल से पहले फिल्म की पटकथा में कसाव की जरुरत थी, जिस पर ध्यान नहीं दिया गया. इंटरवल के बाद सोनम कपूर के किरदार के साथ ही फिल्म में रोचकता बढ़ती है और अंततः फिल्म दर्शकों के बीच अपनी पकड़ बनाने में कामयाब रहती है. फिल्म के संवाद प्रभावित नहीं करते हैं. फिर भी फिल्म के निर्देशक आर बालकी मासिक धर्म की स्वच्छता के आस पास के सामाजिक प्रचलन और मासिक धर्म व सेनेटरी नैपकीन पैड को टैबू बनाए जाने पर गहरी चोट करने में सफल रहे हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो फिल्म में अक्षय कुमार, राधिका आप्टे और सोनम कपूर तीनों ने ही अपने अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया है. औरतों से जुड़े अति संजीदा मुद्दे पर आधारित इस फिल्म में अति संजीदा किरदार निभाना अक्षय कुमार के लिए रस्सी पर चलना जैसा कठिन  रहा, पर वह लोगों का दिल जीतने में कामयाब रहते हैं. राधिका आप्टे  ने साबित कर दिखाया कि वह हर तरह के बाखूबी किरदार निभा सकती हैं. सोनम कपूर के अभिनय में काफी सहजता रही.

फिल्म के संगीतकार अमित त्रिवेदी ने विषय के अनुरूप संगीत पिरोया है. फिल्म के कैमरामैन पी सी श्रीराम ने महेश्वर की खूबसूरती को बहुत बेहतरीन तरीके से कैमरे में कैद किया है. कुछ कमियों के बावजूद ‘‘पैडमैन’’ ऐसी फिल्म है, जो अंततः दर्शकों के मन में बेहतर कल की उम्मीद जगाती है. नारी के मासिक धर्म व सैनेटरी नैपकीन की उपयोगिता पर यह फिल्म जिस तरह से बात करती है, उसके लिए इसे देखा जाना चाहिए.

दो घंटे 19 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘पैडमैन’’ का निर्माण ट्विंकल खन्ना, क्रियाज इंटरटेनमेंट, एसपीई फिल्मस इंडिया, केप आफ गुड फिल्मस और होप प्रोडक्शन ने मिलकर किया है. फिल्म की कहानी ट्विंकल खन्ना की किताब ‘‘द लीजेंड आफ लक्ष्मीप्रसाद’’ पर आधारित और तमिलनाड़ु के असली पैडमैन कहे जाने वाले अरूणाचलम मुरूगनाथन के जीवन की कहानी से प्रेरित है. फिल्म के लेखक व निर्देशक आर बालकी, कैमरामैन पी सी श्रीराम, संगीतकार अमित त्रिवेदी, सूत्रधार अमिताभ बच्चन तथा फिल्म के कलकार हैं-अक्षय कुमार, राधिका आप्टे,सोनम कपूर, सुधीर पांडे, माया अलघ, अमिताभ बच्चन व अन्य.

फिल्म रिव्यू : पैडमैन

धर्म, समाज और परिवार में व्याप्त टैबू जिसमें खासकर महिलाओं की मासिक धर्म को लेकर निर्देशक आर बाल्की द्वारा बनी फिल्म ‘पैडमैन’ अपने आप में खास है. इस फिल्म में ग्रामीण महिलाओं के पर्सनल हाईजीन और स्वास्थ्य के बारे में की  गयी अवहेलना को पूरी तरह से दर्शाया गया है. इसे अभिनेता अक्षय कुमार ने अपने उम्दा अभिनय से और अधिक बेहतर बनाया है और यह सिद्ध कर दिया है कि किसी भी समस्या को अगर फिल्मों के जरिये मनोरंजक रूप से दिखाया जाये, तो वह समाज पर अधिक प्रभाव डालती है.

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हालांकि ये एक सत्य घटना पर आधारित बायोपिक है, जिसमें एक पति का अपनी पत्नी की हर मुश्किलों को आसान करने की हमेशा चाहत को दिखाया गया है. ऐसी फिल्मों को बौक्स औफिस पर हिट कराना मुश्किल होता है, पर इसमें अभिनय करने वाले सभी कलाकार ने काफी मेहनत की है. जिससे फिल्म रोचक बनी है.

कहानी

गांव के लक्ष्मीकांत चौहान (अक्षय कुमार) की शादी गायत्री (राधिका आप्टे) से होती है. उसके परिवार में उसकी दो छोटी बहनें और बूढ़ी मां है. एक दिन माहवारी के दौरान उसके पत्नी का कपडे के प्रयोग को देखकर वह चौंक जाता है. वह पत्नीके लिए बाज़ार से पैड खरीद कर लाता है, लेकिन उसके मूल्य को देखकर उसे प्रयोग करने से मना कर देती है. ऐसे में वह खुद सस्ता पैड बनाने की सोचता है, लेकिन इस काम में उसे प्रयोग कर उसकी गुणवत्ता को बताने वाला उसे कोई नहीं मिलता. जिससे भी वह इसके प्रयोग से अंजाम जानने की कोशिश करता है, वह महिला उसे भला-बुरा कहती है. यहां तक की उसकी पत्नी भी उसका साथ नहीं देती.

अंत में बहनें ,पत्नी और मां सभी उसका साथ छोड़ देते है, लेकिन लक्ष्मी परिवार और गांव की इस सोच को बदलने की कसम खाता है और जो भी करना पड़े, करने के लिए राज़ी हो जाता है. इस काम में साथ देती है दिल्ली की परी (सोनम कपूर). इस तरह कहानी काफी उतार-चढ़ाव के बाद अंजाम तक पहुंचती है.

फिल्म की कहानी को रोचकता पूर्ण लिखने वाले लेखक और निर्देशक आर बाल्की धन्यवाद के पात्र हैं, जिन्होंने कुछ बेहतरीन संवाद से सबका मन लुभाया है. अंत में अमिताभ बच्चन द्वारा लक्ष्मी को दिया गया पुरस्कार भी फिल्म का आकर्षक भाग था. फिल्म का पहला भाग काफी रुचिकर था, इंटरवल के बाद फिल्म की गति धीमी रही, जो खटक रही थी. बहरहाल फिल्म देखने लायक है. संगीतकार अमित त्रिवेदी का गाना ‘आज से तेरी ……’ गाना फिल्म के अनुरूप है और गुनगुनाने योग्य है. इसे थ्री एंड हाफ स्टार दिया जा सकता है.

पति से छिपा कर छोटी बचत करने के हैं कई फायदे

पति से छिपा कर की गई बचत घर की आर्थिक मुश्किल के समय अंतिम सहारा होती है. इसलिए महिलाओं को अपने दम पर सेविंग करना मुश्किल समय में बहुत काम आता है. वहीं सी.ए. शालिनी तलवार मानती हैं कि बढ़ती महंगाई और अनिश्चित भविष्य के चलते हर महिला को आर्थिक तौर पर अपनी सुरक्षा के लिए कुछ न कुछ बचत करनी ही चाहिए. सब से पहले तो अपनेआप को प्रिपेयर करना चाहिए कि बचत करनी है. अब चाहे इस के लिए आप अपनी किसी जरूरत को आधार बनाएं या अपने किसी सपने को पूरा करने की चाहत को.

बजट बनाना

घर को चलाने के लिए बजट बनाना बहुत जरूरी होता है और उस से भी ज्यादा जरूरी होता है अपने वास्तविक खर्च का बजट से मिलान करना, जिस से फिजूलखर्च को पहचान कर कंट्रोल किया जा सके और यदि कुछ अमाउंट बच जाए तो उसे सेव करना चाहिए.

इमरजेंसी फंड

कभीकभी अचानक पैसों की जरूरत पड़ सकती है. इसलिए आदत डालें कि आप के पास घर में ही कुछ ऐसा फंड जरूर हो जिसे इमरजेंसी मेें इस्तेमाल किया जा सके. इस के लिए रोज, हफ्ते या फिर कभी भी कुछ रुपए किसी गुल्लक में डाल कर जमा कर सकती हैं. यही आदत बच्चों को भी सिखाएं.

चिट फंड

हाउस वाइफ अंजु अपनी सोसाइटी में हर महीने चिट फंड के लिए 200 रुपए देती हैं, जिस में 15 महिलाएं मिल कर हर माह एक चिट निकालती हैं. जिस का नाम आता है उसे 3,000 रुपए मिल जाते हैं. ऐसे ही हर जमाकर्त्ता का नाम बारीबारी से आता है. उन का मानना है कि इस तरह से उन में बचत करने की आदत बनती है और फायदा यह होता है कि एकसाथ उन्हें ज्यादा अमाउंट मिल जाता है, पर इस तरह का फंड आपसी विश्वास से बनाया जाता है. कुछ लिखित में न होने के कारण कई बार पैसा फंस भी सकता है. इसलिए यहां ज्यादा राशि का रिस्क नहीं लेना चाहिए. सेफ सेविंग के लिए खाता खुलवाना ही बेहतर विकल्प है.

आर.डी. अकाउंट

रिकरिंग डिपोजिट अकाउंट बैंक और पोस्ट आफिस दोनों में खुल सकता है. पोस्ट आफिस में मात्र 10 रुपए से इस खाते की शुरुआत की जा सकती है. हर माह जमा करवाना अनिवार्य है, जिस पर 7.5% की ब्याज दर से (तिमाही आकलन से भुगतान किया जाएगा) 5 वर्ष की अवधि के लिए बचत की जाती है. इसे 3 साल में भी समाप्त किया जा सकता है पर ऐसा करने से सेविंग अकाउंट की ब्याज दर लागू होती है, जो इस समय 3.5% है. वहीं बैंकों में आर.डी. अकाउंट की शुरुआत 100 रुपए से की जा सकती है और साधारण तौर पर इस की ब्याज दर 7% (तिमाही आकलन से भुगतान किया जाएगा) तक बैंक के हिसाब से अलगअलग हो सकती है. इस का संचालन 6 महीने से ले कर 10 वर्षों तक किया जा सकता है. बैंक और पोस्ट आफिस दोनों में ही इस खाते के लिए अधिकतम जमा राशि की कोई सीमा नहीं है.

टाइम डिपोजिट अकाउंट

पोस्ट आफिस में इस खाते की शुरुआत कम से कम 200 रुपए से की जा सकती है. इस की अवधि 5 वर्ष हो सकती है. हर वर्ष ब्याज दर बढ़ती जाती है. इस समय पहले वर्ष की ब्याज दर 6.25%, दूसरे वर्ष 6.50%, तीसरे वर्ष 7.25%, चौथे वर्ष 7.50% है, जिस का आकलन तिमाही आधार पर किया जाता है, जो डिपोजिट अवधि के अंत में देय होगा. इस खाते के लिए अधिकतम जमा राशि की कोई निर्धारित सीमा नहीं है.

किसान विकासपत्र

इस खाते की शुरुआत न्यूनतम 100 रुपए से की जा सकती है और अधिकतम जमा की कोई सीमा निर्धारित नहीं है. इस की खासियत यह है कि एक बार जमा करवाई गई राशि आठ साल 7 महीने के बाद दोगुनी हो कर खातेधारक को प्राप्त होती है. इस खाते को ढाई साल के संचालन के बाद भी समाप्त किया जा सकता है, परंतु पूरा लाभ उठाने के लिए निर्धारित समय सीमा तक राशि का जमा होना अनिवार्य है.

पोस्ट आफिस सेविंग अकाउंट

इस खाते में राशि जमा करवाने का समय तय नहीं है. न्यूनतम 50 रुपए से शुरुआत की जा सकती है और अगली जमा कभी भी करा सकते हैं. पोस्ट आफिस में इस खाते के लिए सिंगल अकाउंट हेतु अधिकतम जमा राशि एक लाख रुपए तक निर्धारित की गई है वहीं जौइंट अकाउंट के लिए 2 लाख की राशि निर्धारित की गई है, जिस पर वर्तमान ब्याज दर 3.5% है.

मंथली इनकम स्कीम

इस स्कीम में एकसाथ न्यूनतम 1,500 रुपए से ले कर अधिकतम 4.5 लाख रुपए तक सिंगल आकउंट में जमा किए जा सकते हैं. वहीं जौइंट अकाउंट में इस की अधिकतम जमा सीमा 9 लाख रुपए तक है, जिस की परिपक्वता अवधि 6 वर्ष है और प्रत्येक वर्ष का ब्याज 8% की दर से हर महीने प्राप्त होता है. इस खाते में जमा करने का एक लाभ यह भी है कि मैच्योरिटी डेट पर यानी 6 वर्षों बाद खातेधारक को इस पर 5% का बोनस भी प्राप्त होता है.

पब्लिक प्रोविडेंट फंड

यह सेविंग लंबे समय के लिए लाभकारी है. पी.पी.एफ की सुविधा पोस्ट आफिस और बैंकों दोनों में उपलब्ध है. इस अकाउंट में जमा राशि पर निश्चित तौर पर तय की गई 8% ब्याज दर के कारण सी.ए. शालिनी इसे सब से सेफ सेविंग मानती हैं. इस खाते की शुरुआत न्यूनतम 500 रुपए से की जा सकती है और एक वर्ष में अधिकतम 70,000 हजार तक की राशि जमा की जा सकती है. खाते का संचालन करने के लिए जमा राशि को लंपसम या फिर 12 किश्तों में जमा कराया जा सकता है. एक साल में 12 बार से ज्यादा जमा कराना स्वीकार नहीं किया जाता. इस खाते का एक लाभ यह भी है कि 3 वर्ष पूरे हो जाने पर इस के बदले लोन लेने की सुविधा उपलब्ध हो जाती है.

गोल्ड

ज्यादातर महिलाएं स्वयं पहनने वाली ज्वैलरी को एक इनवैस्टमैंट समझती हैं. लेकिन डिजाइनिंग और कटिंग की वजह से उस की बाजार में कीमत काफी कम हो जाती है. वहीं खरीदते समय यह महंगी पड़ती है, क्योंकि डिजाइनिंग के चार्ज अलग से लगते हैं. इसलिए सोने में निवेश के लिए गोल्ड के सिक्के खरीदना एक बेहतर विकल्प है. इस में शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए.

कैसे रहें जागरूक

सी.ए. शालिनी तलवार का मानना है कि जब तक महिलाएं स्वयं जागरूक नहीं होंगी वे बचत नहीं कर सकतीं. इसलिए अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए वे बिजनेस मैगजीन, इंटरनेट पर सर्फ करने के साथ फाइनेंशियल एडवाइजर से भी बात कर सकती हैं. लेकिन खासतौर से इनवैस्ट करते हुए उन्हें जागरूक रहना चाहिए.

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चलो कहीं घूम आएं…क्योंकि आपके रिश्तों को विटामिन देता है सैर सपाटा

याद कीजिए फिल्म ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’ में रितिक, फहरान और अभय देओल के बैचलर ट्रिप को. इस ट्रिप ने रितिक उर्फ अर्जुन की जिंदगी बदल दी थी. हमेशा काम में फंसे रहने वाले अर्जुन को इस सफर ने जीने का नया नजरिया दिया. कुछ लोग काम के सिलसिले में घूमने निकलते हैं, कुछ रिलैक्स होने के लिए, तो कुछ रोमांच महसूस करने के लिए. मकसद जो भी हो, पर्यटन हमें रोजरोज की आपाधापी और तनाव भरी दिनचर्या से आजादी दे कर मन और शरीर को पुनर्जवां और तरोताजा बनाता है और अपनों के करीब आने का मौका देता है.

पर्यटन एक प्राकृतिक इलाज

आधुनिक समय में इंसान काम के बोझ से इस कदर दबा हुआ है कि उसे सांस लेने की भी फुरसत नहीं. ऐसे में पर्यटन आप को जिंदगी के तनावों और चिंताओं से दूर ला कर एक खुशनुमा माहौल देता है. आप की आंखें प्राकृतिक नजारों का आनंद लेती हैं, त्वचा को धूप का स्पर्श मिलता है. खुली हवा में सांस लेने से आप के लंग्स को ताजा हवा मिलती है. यह आप के दिल की सेहत के लिए भी अच्छा है. मैडिकल ऐक्सपर्ट्स दिल को स्वस्थ रखने के लिए 6 माह में एक बार लंबे ट्रिप पर जाने की सलाह देते हैं. रिसर्च बताते हैं कि पर्यटन ब्लडप्रैशर एवं कोलैस्ट्रौल घटाता है. दिल के लिए खतरनाक स्ट्रैस हारमोन, एपिनेफ्रीन के लैवल को कम करता है.

यात्रा के दौरान आप का अच्छाखासा शारीरिक व्यायाम भी हो जाता है. आप भले ही समुद्र किनारे घूम रहे हों, स्विमिंग कर रहे हों, किसी ऐतिहासिक शहर के स्मारकों को देख रहे हों या राइडिंग कर रहे हों, आप का शरीर ऐक्टिव रहता है. कहीं आप को सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं, तो कहीं बैग ढोने पड़ते हैं. ये सारी गतिविधियां कैलोरी बर्न करने के लिए मुफीद हैं. इस से स्टैमिना तो बढ़ता ही है, नींद भी अच्छी आती है और आप तरोताजा हो कर वापस लौटते हैं. एक स्टडी के मुताबिक जो महिलाएं 2 साल में एक बार से भी कम घूमने निकलती हैं, डिप्रैशन की ज्यादा शिकार होती हैं. जबकि साल में 2 बार पर्यटन करने वाली महिलाएं मानसिक रूप से स्वस्थ रहती हैं.

रिश्तों में नई जान

शादी के बाद नए युगल को हनीमून पर भेजने का रिवाज सदियों पुराना है. यह सफर उन्हें एकदूसरे के करीब आने और जिंदगी की जिम्मेदारियों को उठाने के लिए मन से तैयार करता है. शादी के बाद अकसर घरबाहर की दौड़भाग में हम दुनिया की सब से मूल्यवान पूंजी, प्यार के लिए वक्त नहीं निकाल पाते. रोमांस तो जीवन से गायब होता ही है, सैक्स भी रूटीन वर्क बन कर रह जाता है. ऐसे में हम रिश्तों को ऐंजौय नहीं करते. हमें लगने लगता है जैसे हम जिंदगी जी नहीं रहे वरन ढो रहे हैं. ऐसे में किसी खूबसूरत पर्यटन स्थल के लिए निकल कर हम रिश्ते में नई जान फूंक सकते हैं. एकदूसरे की बांहों में कुछ सुकून के पल गुजार सकते हैं. पर्यटन इस के लिए माहौल के साथ मौका भी देता है.

सोचिए, किसी सुहानी शाम को जब आप दोनों अकेले सागर किनारे बैठे हों, सूरज की किरणें धीरेधीरे सागर के दामन में समा रही हों, लहरें गुनगुना रही हों और रेशमी हवाओं की छुअन तनमन को प्यार के एहसास से सराबोर कर रही हो, तो क्या ऐसे में आप उन्हें आगोश में लेने को आतुर नहीं हो उठेंगे? यकीन कीजिए, इन पलों को भरपूर जीने के बाद आप खुद में अजीब सी ताजगी और ऊर्जा महसूस करेंगे. भले ही 10 दिनों के लिए ही आप घूमने गए हों पर उस की स्मृतियां महीनों मन को महकाती रहेंगी.

यंग, स्मार्ट और सैक्सी

बेलर कालेज औफ मैडिसिन, यूएसए की एक टीम ने गहन रिसर्च के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि छुट्टियों में टै्रवलिंग व्यक्ति को यंग महसूस करने में मदद करती है. वैज्ञानिक डेविड के मुताबिक, पहले कभी नहीं देखी हुई जगह की यात्रा करने से इंसान का मस्तिष्क एक अनोखे एहसास से भर उठता है. यह उसी तरह की खुशी होती है, जैसी एक बच्चे को कुछ नया हासिल करने के बाद होती है. घूमने के लिए आप ने कितना वक्त निकाला यह महत्त्वपूर्ण नहीं. आप भले ही 2 दिन के लिए जाएं, 10 दिन के लिए या 2 महीने के टूअर पर निकलें, सफर से लौटने पर आप का मन जवान और शरीर तरोताजा होगा.

सफर आप को स्मार्ट बनाता है. सफर के दौरान अलगअलग परिस्थितियों से निबटना, दौड़भाग करना आप को चुस्ती देता है. फिल्म ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’ में जिस तरह रितिक, फरहान और अभय देओल ने अपने डर को दूर किया, वैसा कुछ आप भी कर सकते हैं. आप को जिस चीज से डर लगता है, वही करें. मसलन, स्विमिंग, राफ्टिंग, स्केटिंग, हौर्स राइडिंग, पहाड़ों पर चढ़ना, हवाई यात्रा या फिर सुरंगों और भूलभुलैया में भटकना. कुछ ऐसा आजमाइए कि आप के मन का डर भाग जाए.

सफर के दौरान आप को काफी कुछ नया सीखने को मिलता है. आप नईनई जगहें जाते हैं, नए लोगों से मिलते हैं, उन से बातें करते हैं, उन की परंपरा, रीतिरिवाजों को समझते हैं. इस से जानकारी बढ़ती है. तरहतरह के फैशन से रूबरू होते हैं, जो अच्छा लगता है आप उसे आजमाते हैं. जायका बदलता है. आप खुली हवा में घूमते हैं, तरहतरह की चीजें खाते हैं. प्रकृति का स्पर्श आप की त्वचा को कांतिमय बनाता है तो मन की खुशी अंदर से चेहरे को चमक देती है.

खुद से एक मुलाकात

प्रकृति की गोद में, रम्य शांत वातावरण के बीच आप को खुद से मुलाकात करने का मौका मिलता है. कोई डैडलाइन नहीं, कोई मीटिंग, कोई घरेलू कामकाज नहीं. बस आप सुनते हैं अपने दिल की आवाज. आप अपने बारे में सोच सकते हैं, खुद को टटोल सकते हैं. जिंदगी के जिस मुकाम पर आज आप हैं उस से और बेहतर कैसे बनें, जिंदगी में यदि कुछ कमी है तो उसे कैसे पूरा करें, इन बातों का विश्लेषण करने और अपने अंदर झांकने का पर्यटन से अच्छा कोई बहाना नहीं हो सकता. फिर जब आप घूम कर वापस रोजमर्रा की जिंदगी में लौटते हैं तो आप के मन में कोई कन्फ्यूजन नहीं रहता.

नया नजरिया

पर्यटन हमें सोचने का नया नजरिया और जीने के नए आयाम देता है. जब आप रूटीन वर्क, ट्विटर, फेसबुक वगैरह से दूर कहीं पर्यटन के लिए निकलते हैं, तो रिश्तों में नया जुड़ाव आता है. यही नहीं, जब आप किसी खूबसूरत शहर में घूमने के खयाल से निकलते हैं, तो आप की आंखों के आगे उन लोगों के जीवन की हकीकत भी आती है, जिन के पास रहने को घर नहीं, खानेपहनने को भोजन और कपड़े नहीं. तब आप को इस बात का एहसास होता है कि जो आप के पास है, कितना जरूरी है और नाहक ही छोटीछोटी बातों को ले कर आप तनाव में रहते हैं.

इसी तरह 24 घंटे घर या औफिस के बंद कमरे में बैठ कर आप को नए आइडियाज नहीं आ सकते. प्राकृतिक सुंदरता से सराबोर जगह जब आप घूमने जाते हैं तो वहां के खुले वातावरण में आप के दिमाग में नए विचार खुदबखुद आने लगते हैं. आप का दिमाग खुलता है और वहां से लौट कर भी आप स्वयं को ज्यादा क्रिएटिव और ऊर्जा से भरपूर महसूस करते हैं.

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जब इनकम टैक्स की टीम पर किशोर कुमार ने छोड़ दिए कुत्ते

यह कहना गलत नहीं होगा कि बीते जमाने के गायकों को आज की पीढ़ी लगभग बिसारती जा रही हैं. आज युवा पीढ़ी को तड़क-भड़क वाले ‘फास्‍ट सांग’ पसंद हैं, लेकिन किशोर दा इसके अपवाद हैं उनके नगमे आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं. समय भले ही बदल गया हो लेकिन किशोर अभी भी प्रासंगिक हैं.

बहुमुखी प्रतिभ के धनी यह शख्‍स अभिनेता, गायक, निर्देशक, निर्माता, गीतकार सब कुछ थे. पर उनका मूल योगदान गायन और अभिनय के क्षेत्र में ही है. किशोर ही वह आवज थे जिसने हिंदी सिनेमा की गायकी के आसमान पर चकाचौंध बिखेरा. 60-70 के दशक में किशोर की गायकी का आलम यह था कि वे राजेश खन्‍ना, देवानंद और अमिताभ बच्‍चन जैसे बड़े सितारों की ‘आवाज’ बन चुके थे.

किशोर की खूबी यही थी कि देव साहब जैसे सीनियर मोस्‍ट अभिनेताओं से लेकर संजय दत्‍त, राजीव कपूर, सनी देओल जैसे उनके समय के नवोदित अभिनेताओं तक पर उनकी आवाज सूट करती थी. योडलिंग और अपने चुलबुलाहट भरी आवाजों से वे गानों में जान फूंकते थे. ‘जिंदगी एक सफर है सुहाना’ और ‘चला जाता हूं किसी की धुन में धड़कते दिल के तराने लिये’ जैसे गाने इसका शानदार उदाहरण हैं.

लेकिन क्‍या आप यकीन करेंगे कि आभास कुमार गांगुली यानी फिल्‍मी दुनिया के किशोर कुमार बचपन में ‘बेसुरे’ थे. उनके गले से सही ढंग से आवाज नहीं निकलती थी लेकिन एक हादसे ने उनके गले से इतनी ‘रियाज’ करवाई कि वे सुरीले बन गए.

किशोर कुमार के बड़े भाई अशोक कुमार ने एक इंटरव्‍यू में बताया था कि किशोर का पैर एक बार हंसिए पर पड़ गया. इससे पैर में जख्‍म हो गया. दर्द इतना ज्‍यादा था कि किशोर कई दिन तक रोते रहे. इतना रोये कि गला खुल गया और उनकी आवाज में ‘जादुई असर’ आ गया.

अभिनेता के रूप में उनकी शुरुआत 1946 की फिल्‍म ‘शिकारी’  से हुई. पहली बार गाने का मौका मिला फिल्‍म ‘जिद्दी’ में, इस गाने को देवानंद पर फिल्‍माया गया. यह वह दौर था जब अभिनेता किशोर को अपने गाने के लिए दूसरे सिंगर की आवाज उधार लेनी पड़ती थी.

वैसे तो किशोर ने कई फिल्‍मों में काम किया लेकिन ‘चलती का नाम गाड़ी’ और ‘पड़ोसन’ अभिनेता और गायक के रूप में उनके लिये मील का पत्‍थर रहीं. ‘चलती का नाम गाड़ी’ में उनके दो भाइयों अशोक कुमार और अनूप कुमार ने भी काम किया.

फिल्मी दुनिया में उनके ज्यादा दोस्त नहीं थे. वो खाली समय में अपने घर पर ही रहना पसंद करते थे. लेकिन इसके बावजूद कई विवादों में भी रहे. ऐसा कहा जाता है कि एक बार इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के कुछ लोग उनके घर आए, उन पर उन्होंने अपने कुत्ते छोड़ दिए. उन्होनें अपने घर के बाहर लिखवा रखा था कि किशोर कुमार से बचकर.

इतना ही नहीं उन्होंने 1975 और 1976 इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी और इंदिरा गांधी के 20 प्वाइंट प्रोग्राम पर आधारित कांग्रेस रैली में गाने के लिए माना कर दिया था. जिसके बाद औल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर उनके गानों पर बैन लगा दिया गया था.

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पढ़ना एक शानदार शौक है जो आपको अलग संसार में ले जाएगा

क्या आप ने कभी शब्दों और कल्पनाओं की दुनिया में डूब कर देखा है? पढ़ने का शौक अपना कर देखिए, किताबें आप को तनाव ओर जीवन की चिंताओं से दूर ऐसे अनूठे संसार में ले जाएंगी कि आप हैरान रह जाएंगे. कुछ देर ही कुछ भी मनपसंद पढ़ने के बाद आप का मन इतना हलका हो जाएगा कि आप स्वयं में उत्साह, ऊर्जा का अनुभव करेंगे. बारिश का मौसम हो, एक कप चाय और हाथ में अपनी मनपसंद किताब, एक बार इस अनुभव का आनंद अवश्य ले कर देखें. सारी बोरियत, अकेलापन, तनाव

चुटकियों में दूर हो जाएंगे. पढ़ने के शौक के फायदे क्या हैं, आइए, जानें :

–     पढ़ने की आदत हमें कई बार किसी और ही दुनिया में ले जाती है. पढ़ने के बाद आप की फिर यही इच्छा होती है कि अब दूसरी पुस्तक का आनंद लिया जाए. किताबों की दुनिया सब से आकर्षक दुनिया है. इस दुनिया का हिस्सा बनने पर आप को कोई नुकसान नहीं होगा. आप का व्यक्तित्व निखरता ही है.

–     मीनल वर्मा कहती हैं, ‘‘जितनी पुस्तकें आप पढ़ते हैं, उतना ही आप को एडवैंचर अच्छे लगते हैं. आप कई नायकों और खलनायकों का जीवन जी लेते हैं. आप सिर्फ वह पात्र जीते ही नहीं, उस पात्र का मस्तिष्क और उस की स्थिति भी समझने लगते हैं.’’

–   पढ़ते रहने से आप अकसर उन व्यक्तियों की बातों और विषयों के बारे में भी सोचने लगते हैं जिन पर आप कभी ध्यान न देते, यदि पढ़ा न होता. आप कई पात्रों के बारे में पढ़ कर जीवन को बेहतर समझ पाते हैं.

–     मनोवैज्ञानिक सीमा जैन कहती हैं, ‘‘यह अकसर कहा जाता है कि जिन्हें पढ़ने का शौक होता है वे दुनिया को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं बजाय उन के, जिन्हें पढ़ने की आदत नहीं होती. जब आप विभिन्न पात्रों के बारे में पढ़ते हैं, आप उन पात्रों को अकसर जी भी लेते हैं, उन का दुख और दर्द महसूस कर पाते हैं और दुनिया को कई तरह के दृष्टिकोण से समझ पाते हैं.’’

–     घूमनेफिरने की शौकीन और उत्सुक पुस्तकप्रेमी प्रिया जोशी को लगता है कि यदि घर पर बात करने के लिए कोई भी नहीं है या कभी अकेले समय बिताने का मन हो तो किताबें आप की सब से अच्छी साथी हैं. सफर की भी अच्छी साथी हैं किताबें. आप इन के साथ कभी बोर नहीं होंगे.

डब्लू सोमरसेट मौघेम ने भी यही कहा है, ‘‘पढ़ने की आदत आप को जीवन की परेशानियों से दूर ले जाती है.’’

सो, हर समय व्हाट्सऐप पर गुडमौर्निंग, गुडनाइट के मैसेज फौरवर्ड करने या फेसबुक पर ‘इस फोटो को लाइक करो तो बिगड़े काम पूरे होंगे’ जैसी पोस्ट पर अपना समय बरबाद न कर पढ़ने का शौक अपनाएं. कुछ भी पढ़ कर आप बहुतकुछ सीखते हैं, समझ जाते हैं. पढ़ने से अकेलापन या तनाव कुछ भी नहीं रहेगा.

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भारत में तेजी से बढ़ रहा है एलईडी बल्ब का काला कारोबार

भले ही देश में लाइट एमिटिंग डियोड्स यानी एलईडी बल्ब का बाजार 10 हजार करोड़ रुपए से ऊपर चला गया है, लेकिन घीरेधीरे यह काले कारोबार में तबदील हो रहा है, जो निश्चितरूप से चिंता की बात है. मौजूदा समय में एलईडी बल्ब का बाजार नकली उत्पादों से भरा पड़ा है. कंपनियां इसे मुनाफा कमाने का एक बड़ा साधन मान कर चल रही हैं.

इलैक्ट्रिक लैंप ऐंड कंपोनैंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन यानी एलकोमा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2010 में एलईडी लाइटिंग का भारतीय बाजार महज 500 करोड़ रुपए का था, जो अब बढ़ कर 10 हजार करोड़  रुपए का हो गया है. यह 22 हजार करोड़ रुपए की पूरी लाइटिंग इंडस्ट्री का लगभग 45 प्रतिशत से भी ज्यादा है. दरअसल, एलईडी बल्ब में विद्युत ऊर्जा की कम खपत होती है और इस की रोशनी पारंपरिक बल्ब से ज्यादा होती है, फिर भी यह आंखों को नहीं चुभती है, जिस के कारण इस की लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हो रहा है.

वैश्विक स्तर की ख्यातिप्राप्त एजेंसी नीलसन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि घरेलू बाजार में उलब्ध एलईडी बल्ब के 76 और एलईडी डाउनलाइटर के 71 प्रतिशत ब्रैंड सुरक्षामानकों के अनुकूल नहीं हैं. गौरतलब है कि ये मानक भारतीय मानक ब्यूरो यानी बीआईएस और इलैक्ट्रौनिक्स एवं सूचना प्रसारण मंत्रालय ने तैयार किए हैं. नीलसन ने अपने सर्वेक्षण में दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद और हैदराबाद में बिजली के उत्पादों की खुदरा बिक्री करने वाली 200 दुकानों के एलईडी बल्बों को नमूने के तौर पर शामिल किया था.

एलकोमा के अनुसार, बीआईएस मानकों के उल्लंघन के सब से ज्यादा मामले दिल्ली में देखे गए हैं. एलकोमा की मानी जाए तो अधिकृत मापदंडों पर खरा नहीं उतरने वाले उत्पादों से उपभोक्ता गंभीररूप से बीमार हो सकते हैं.

अमेरिकन मैडिकल एसोसिएशन यानी एएमए द्वारा 14 जून, 2016 को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार एलईडी द्वारा निकलने वाली रोशनी मानवस्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है. नकली उत्पाद से जोखिम की गंभीरता और भी ज्यादा बढ़ जाती है.

दूसरी तरफ नकली उत्पादों को बेचने से सरकार को भारीभरकम राजस्व का नुकसान हो रहा है क्योंकि ऐसे उत्पादों का निर्माण व उन की बिक्री गैरकानूनी तरीके से की जा रही है. देखा जाए तो नकली एलईडी बल्ब के कारोबार से सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ संकल्पना को भी नुकसान हो रहा है.

उल्लेखनीय है कि अगस्त 2017 में बीआईएस ने एलईडी बल्ब निर्माताओं को उन के उत्पाद की सुरक्षा जांच के लिए बीआईएस में पंजीकृत कराने का निर्देश दिया था, लेकिन कंपनियां इस आदेश की अनदेखी कर रही हैं. एलईडी बल्ब के काले कारोबार में बढ़ोतरी का एक बहुत बड़ा कारण भारतीय बाजार का चीन के उत्पादों से भरा हुआ होना भी है. आज की तारीख में एलईडी बल्ब बड़े पैमाने पर चीन से भारत गैरकानूनी तरीके से लाए जा रहे हैं.

सर्वेक्षण के मुताबिक, एलईडी बल्ब के 48 प्रतिशत ब्रैंडों पर बनाने वाली कंपनी का पता दर्ज नहीं है, जबकि 31 प्रतिशत ब्रैंडों की पैकिंग पर कंपनी का नाम नहीं लिखा है. साफ है, इन का निर्माण गैरकानूनी तरीके से किया जा रहा है. इसी तरह एलईडी डाउनलाइटर्स के मामले में भी 45 प्रतिशत ब्रैंडों की पैकिंग पर निर्माता का नाम दर्ज नहीं है और 51 प्रतिशत ब्रैंडों के उत्पादों पर कंपनी का नाम नहीं लिखा हुआ है.

नीलसन की रिपोर्ट के अनुसार, सर्वे में शामिल दिल्ली में बिकने वाले एलईडी बल्ब के तकरीबन तीनचौथाई ब्रैंड बीआईएस मानकों के अनुरूप नहीं हैं. एलईडी डाउनलाइटर्स के मामले की भी लगभग ऐसी ही स्थिति है. वर्तमान में घर, बाजार और दफ्तर में धड़ल्ले से एलईडी बल्बों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसी वजह से रोशनी के बाजार में इस की हिस्सेदारी बढ़ कर आज 50 प्रतिशत हो गई है.

हाल ही में सरकार ने ‘उजाला’ योजना के तहत देशभर में 77 करोड़ पारंरिक बल्बों की जगह एलईडी बल्ब इस्तेमाल करने का लक्ष्य रखा है. इस आलोक में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो ने आपूर्ति करने वाले निर्माताओं या डीलरों को स्टार रेटिंग वाले एलईडी बल्ब की आपूर्ति करने का निर्देश दिया है ताकि उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े.

बहरहाल, मौजूदा परिदृश्य में सरकार को नकली एलईडी बल्बों के प्रसार को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए, खासकर चीन से गैरकानूनी तरीके से आने वाले नकली व बिना ब्रैंड वाले उत्पादों को. नकली या बिना ब्रैंड वाले एलईडी बल्ब ईमानदार कारोबारियों, सरकार व उपभोक्ताओं सभी के लिए नुकसानदेह हैं.

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