साल 2017 में बौलीवुड ने हमेशा के लिए खो दिए ये सितारे

हाल ही में बौलीवुड के एक्टर नीरज वोरा का निधन हुआ. मौत से पहले वे करीब एक साल से कोमा में थे. उनकी मौत के बाद बौलीवुड इंडस्ट्री के लोग बेहद दुखी दिखाई दिए. पिछले साल अक्टूबर में उन्हें हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक आया था, जिसके बाद उन्हें दिल्ली स्थित एम्स में भर्ती करवाया गया. इसके बाद वे कोमा में चले गए और उन्होंने आखिर तक अपनी आंखें नहीं खोली. अंत में उन्हें उनके दोस्त फिल्म निर्माता फिरोज नाडियाडवाला के घर शिफ्ट कर दिया गया था, जहां उन्हें वैंटिलेटर पर रखा गया था. उनके दोस्त ने उन्हें बचाने की पुरजोर कोशिश की, लेकिन वे इस कोशिश में सफल नहीं हो पाए.

नीरज की ही तरह साल 2017 में बौलीवुड के कई ऐसे कलाकारों ने दुनिया को अलविदा कह दिया. आइये जानते हैं ऐसे कलाकारों में बारे में..

शशि कपूर

shashi kapoor

बौलीवुड के दिग्गज अभिनेता शशि कपूर ने हाल ही में दुनिया को अलविदा कह दिया. उन्होंने 79 साल की उम्र में आखिरी सांस ली. वे कई दिनों से सांस से जुड़ी बीमारी से जूझ रहे थे, जिसकी वजह से उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. आखिरी समय में वे कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती थे. बता दें कि उन्हें 2011 में सरकार ने पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था, वहीं साल 2015 में उनको दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. बौलीवुड के ऐसे महान कलाकार के चले जाने से इंडस्ट्री को जरूर बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है.

विनोद खन्ना

vinod khanna

बौलीवुड में अपने अभिनय का बड़ा योगदान देने वाले विनोद खन्ना ने 70 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया. वे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से कई दिनों से जूझ रहे थे, जिसके बाद उन्होंने आखिरी सांस ली. उन्होंने अपने फिल्मी सफर की शुरूआत साल 1968 मे फिल्म ‘मन का मीत’ से की, इस फिल्म में वे खलनायक के रूप में नजर आए थे. इसके बाद तो जैसे उन्होंने रुकने का नाम ही नहीं लिया और अपने फिल्मी करियर को बुलंदियों तक पहुंचाया. हीरो के रूप में पहचान बनाने के बाद विनोद खन्ना ने ‘आन मिलो सजना’ , ‘पूरब और पश्चिम’, ‘सच्चा झूठा’ जैसी फिल्मों में काम किया और 1971 में फिल्म ‘मेरे अपने’ से उन्हें अलग पहचान मिली.

ओम पुरी

om puri

मशहूर अभिनेता ओम पुरी ने 66 साल की उम्र में मुंबई स्थित अपने प्लैट में आखिरी सांस ली. लेकिन उनकी मौत पर कई सवाल खड़े हुए, जिसके बाद मुंबई पुलिस ने इस केस को अपने हाथ में ले लिया. 18 अक्टूबर 1950 को पटियाला में जन्मे ओमपुरी का पूरा नाम ओम राजेश पुरी था और दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हुई थी. ओम पुरी ने फिल्म इंडस्ट्री को अपने जीवन के चालीस से ज्यादा साल दिए और इस दौरान अनेक फिल्मों में अपने अभिनय का जादू दिखाया. उन्होंने पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्युट औफ इंडिया से ग्रेजुएशन किया था और इसके बाद वे नसीरूद्दीन शाह के साथ नेशनल स्कूल औफ ड्रामा में साथ थे. छह साल की उम्र में वे एक चाय वाले की दुकान पर काम करते थे, इस तरह उन्होंने बड़ी गरीबी में अपना बचपन व्यतीत किया.

रीमा लागू

rima laagu

बौलीवुड में मां के किरदार की वजह से फेमस हुई रीमा लागू ने कई फिल्मों में अपने अभिनय से लोगों का दिल जीता है. उन्होंने उनकी मौत 18 मई, 2017 को हार्ट अटैक की वजह से हुई. उन्हें मौत से पहले दिन बेचैनी की शिकायत थी, जिसके बाद उन्हें कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती करवाया गया. बाद में परिवारवालों को पता चला कि उन्हें माइल्ड हार्ट अटैक हुआ है. इसके बाद उनकी तबियत गिरती चली गई और करीब रात के 3 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. इसके बाद उनके एक्स हसबैंड को उनकी मौत की खबर दी गई.

सीताराम पांचाल

sitaram panchal

फिल्म पान सिंह तोमर में अपने अभिनय से लोगों का दिल जीतनेवाले सीताराम पांचाल की मौत किडनी और लंग कैंसर की वजह से हुई. इस दौरान उनका वजन मात्र 30 किलो रह गया था. उनकी मौत से पहले उनके मित्रों ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये उनकी आर्थिक रूप से मदद करने की गुहार लगाई थी, जिसके बाद यह पोस्ट कई दिनों तक लोगों के बीच चर्चा का विषय बना रहा. उनकी मौत से पहले तीन सालों से मित्र उनकी आर्थिक रूप से सहायता कर रहे थे, लेकिन इसके बाद भी उन्हें नहीं बचाया जा सका. वे हरियाणा के कैथल जिले के डूंडर हेड़ी गांव में 1963 में जन्मे थे.

नये साल पर जाएं अफ्रीका की सैर पर, बेहद सुखद है यह ट्रिप

अफ्रीका एक ऐसा महाद्वीप है जो कि अपने आप में अनोखा है, क्योंकि यहां के ज्यादातर भू भाग पर जंगल और रेगिस्तान है, लेकिन अफ्रीका के कुछ जगह ऐसे भी हैं जहां लोग घूमने के लिये बेकरार रहते हैं. अगर आप अफ्रीका में छुट्टियां बिताने की योजना बना रही हैं तो हम आपको बताते हैं अफ्रीका की कुछ खास जगहों के बारे में, जहां जाकर आप अपना न्यू ईयर रंगीन और खुशनुमा बना सकती हैं.

केपटाउन

केपटाउन में यूरोपीय और अफ्रीकी आबादी का आंकड़ा लगभग बराबर है, लेकिन विश्व के बेहद खूबसूरत माने जाने वाले शहर केपटाउन की शान निराली है. ऊंचे पहाड़ मनोरम समुद्री किनारों का मजा लेना है तो यहां आपका स्वागत है. साथ ही ये दक्षिण अफ्रीका का सबसे पुराना शहर भी है. यहां का चपटा टेबिल माउंट, अंगूर के बगीचे और बीच आपके मन में बस जाएगा.

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जोहांसबर्ग

‘द सिटी औफ गोल्ड’ के नाम से मशहूर ये शहर दक्षिण अफ्रीका का सबसे बड़ा शहर भी है. अगर आप दक्षिण अफ्रीका को गहराई से समझना चाहती हैं, तो जोहांसबर्ग में घूमकर आपको अंदाजा हो जाएगा.

पोर्ट सेंट जौन्स

पोर्ट सेंट जौन्स के उत्तर में स्थित ‘सिलाका नेचुरल रिजर्व’ एक छोटा समुद्री बीच है. यहां ऊदबिलाव और सफेद समुद्री चिडि़या बड़ी संख्या में पाई जाती हैं, तो अगर आपको वाइल्ड लाइफ में दिलचस्पी है, तो यहां घूम सकती हैं. डटबस, उमटाटा या लुसिकीसिकी से बस द्वारा पोर्ट सेंट जौन्स तक पहुंचा जा सकता है.

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लोकम टिस्ट्री म्यूजियम

इस म्यूजियम में अफ्रीका का इतिहास छिपा हुआ है. डरबन में अंर्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा है और यहां से दक्षिण अफ्रीका के विभिन्न बड़े शहरों के लिए बस एवं रेल सेवा भी उपलब्ध है. ‘गार्डन रूट’ भी घूमने फिरने अच्छी जगह है. यहां विशाल येलावुड के वृक्ष, जंगली वनस्पतियां काफी मात्रा में मिलती है.

सनसिटी

सन सिटी के प्रमुख आकर्षणों में यहां के भव्य होटल, सुंदर वौटर गार्डन्स, गोल्फ कोर्स, गैंबलिंग हौल्स, खूबसूरत कसीनो और बेहतरीन मनोरंजक कार्यक्रमों की प्रस्तुतियां शामिल हैं. यहां पूरे साल रौक स्टार परफौर्म करते हैं.

ब्लू ट्रेन का शाही जलवा

दक्षिण अफ्रीका में अगर आप जंगल सफारी करने के लिये जाती हैं, तो यह सफारी यात्रा आप बेहद आरामदेह ट्रेन में बैठकर भी तय कर सकती हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं, दुनिया की सबसे आराम की सवारी माने जाने वाली, ‘ब्लू ट्रेन’ की. अब यह हमारी देशी पैलेस औन व्हील्स से ज्यादा आरामदायक है या नहीं, यह तुलना करनी थोड़ी मुश्किल है. लेकिन इतना तय है कि ब्लू ट्रेन को पटरियों पर शाही सवारी की मिसाल के रूप में दुनियाभर में जाना जाता है. दुनियाभर के कई शासकों, राष्ट्राध्यक्षों वगैरह ने इस रेल यात्रा का आनंद उठाया हुआ है.

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रोमांच की बात करें तो यह ट्रेन पहाड़ों के चारों तरफ से नहीं बल्कि पहाड़ों के बीचों-बीच चलती है. यह ट्रेन आपको ऐसे सफर पर लेकर जाती है, जहां पेड़ के नीचे बैठा चीता (जो हमारे देश में अब देखने को भी नहीं बचा) आपको लगातार देखता है, जहां हाथियों का झुंड और जंगली जानवरों का इलाका है. जहां बड़ी-बड़ी चट्टानें, समतल मैदान, झरने, घाटियां और विभिन्न प्रकार के खिलते फूल है.

ये ट्रेन यात्रा दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केप टाउन से लेकर प्रिटोरिया तक और जिम्बाब्वे के मशहूर विक्टोरिया फौल तक सफर कराती है. 110 किलोमीटर की रफ्तार से चलने वाली यह ब्लू ट्रेन महज 84 यात्रियों को लेकर चलती है.

हनीमून के लिए लोकप्रिय

वाटरफौल्स से बनने वाला कुहासा बीस किलोमीटर दूर से भी देखा जा सकता है. इसी तरह उसकी गर्जना भी बहुत दूर से सुनी जा सकती है. सौ मीटर नीचे पानी के गिरने से बाद उठने वाली बौछारें काफी हद तक उस इलाके में मौजूद रेनफौरेस्ट को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार हैं. नजारा तब और खूबसूरत हो उठता है जब अलग-अलग कोण से इंद्रधनुष पानी के ऊपर देखने को मिलते हैं. यह दक्षिणी अफ्रीका के सबसे पसंदीदा पर्यटक स्थलों में से एक है.

यह दुनियाभर में हनीमून के लिए भी यह सबसे लोकप्रिय जगहों में से एक है. जाम्बेजी नदी में क्रूज, गेम रिजर्व व सफारी यहां के अन्य आकर्षण हैं. नवंबर से अप्रैल का समय यहां काफी गरम, उमस भरा व भीगा होता है. मार्च व अप्रैल की बाढ़ में यह अपने पूरे प्रवाह पर होता है लेकिन इसकी बौछारें इतनी तेज होती हैं कि आपको दूर-दूर तक गीला कर देती हैं और उसे देख पाना तक मुश्किल हो जाता है.

विक्टोरिया फौल्स मौज मस्ती का जगह

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विक्टोरिया फौल्स के लिए अफ्रीका में सभी प्रमुख स्थानों से आसानी से पहुंचा जा सकता है. विक्टोरिया फौल्स के ही नाम से शहर इस प्रपात से थोड़ा ही दूर है, जहां रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा, दोनों हैं. दक्षिण अफ्रीका, जिंबाब्वे, जांबिया, बोत्सवाना आदि जगहों से सीधे संपर्क में है. वैसे तो यहां पूरे सालभर जाया जा सकता है. यह समय न केवल फौल्स का बेहतर आनंद देता है बल्कि इन दिनों राफ्टिंग, बंजी जंपिंग, तार से बंधकर प्रपात के ऊपर उड़ने और अन्य कई हवाई करतबों जैसी बाकी रोमांचक गतिविधियां भी हो सकती है.

दिसंबर से जनवरी में फौल्स अपने सबसे निचले और अप्रैल में अपने सबसे उफानी स्तर पर होता है. दक्षिण अफ्रीका में प्रीटोरिया से एक विशेष लक्जरी ट्रेन भी चलती है जो तीन दिन में पीटर्सबर्ग पहुंचाती हैं जहां से विक्टोरिया फौल्स के नजारे को देखने के लिए दो घंटे की विशेष उड़ान होती है. इसके अलावा भी कई टूर पैकेज हैं जिनमें विक्टोरिया फौल्स के अलावा आस-पास के गेम रिजर्व व सफारी भी शामिल है.

क्रिसमस पार्टी : वोडका से निखारें अपना रूप

दिसंबर का महीना आते ही सभी को क्रिसमस का इंतजार रहता है. आज क्रिसमस सिर्फ विदेश में ही नहीं भारत में भी हर्षोल्लास से सेलिब्रेट किया जाता है. इस दिन को सेलिब्रेट करने के लिए लोग पहले से अपने घर को सजाने में लग जाती हैं. सिर्फ घर सजाना ही नहीं महिलाएं क्रिसमस पार्टी के लिए अपना रूप निखारने में भी लग जाती हैं. अगर आप भी इस क्रिसमस आकर्षक और सुंदर दिखना चाहती हैं तो वोडका से निखारें अपना रूप.

वोडका हमारे सौन्दर्य के लिए अच्छा होता है. इससे बाल और त्वचा की खूबसूरती बढ़ती है. हम आपको कुछ टिप्स बता रहे हैं जिससे आप अपना सौन्दर्य और रूप निखार सकती है.

झुर्रियां

इससे ढीली त्वचा में कसाव आता है वोडका में स्टार्च होता है जो लटकती हुई त्वचा को टाइट बनाने में मदद करता है. इसके नियमित प्रयोग से बारीक धारियां गायब हो जाती हैं.

स्किन टोन

कौटन बौल में इसे भिगोकर चेहरे परे मलने से ओपन पोर्स बंद हो जाते हैं. इससे स्किन टाइट हो जाती है और चेहरा स्मूथ दिखने लगता है.

एक्ने

अपने एंटीबैक्टीरियल गुणों के कारण मुंहासों पर वोडका लगाने से मुंहासे जल्दी सूख जाते हैं. बालों और त्वचा पर लगाने से इससे बालों और त्वचा की गंदगी साफ हो जाती है.

ग्लो

इससे चेहरे पर गजब का ग्लो आता है और निस्तेज त्वचा भी खिल उठती है.

बाल

शैंपू में अगर थोड़ा सा वोडका मिलाकर लगाया जाए तो इससे बाल मुलायम और सुंदर हो जाते हैं. बालों का रूखापन ठीक हो जाता है. वोडका में एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं, जो फंगस और बैक्टीरिया का खात्मा करता है. यही बैक्टीरिया सिर में रूसी का कारण बनते हैं. इससे बालों में रूसी की समस्या से भी निजात मिलेगी.

क्रिसमस स्पेशल : एनीमल पैन केक

क्रिसमस के मौके पर आप कप केक, प्लम केक या पैन केक आदि तो बनाती ही होंगी. हर क्रिसमस एक ही तरह के केक बनाकर आप बोर हो गई होंगी. तो क्यों ना इस क्रिसमस कुछ अलग ट्राई करें और एनीमल पैन केक बनाएं. इसे देखते ही आपके बच्चे के साथ मेहमान भी खुश हो जाएंगे. आइए जानते हैं इसे बनाने की विधि.

सामग्री

अंडे का सफेद भाग – 2

पिसी हुई चीनी – 2 बड़े चम्मच

दूध – 200 मिलीलीटर

अंडे की जर्दी – 2

मक्खन – 30 ग्राम

केक का आटा – 120 ग्राम

बेकिंग पाऊडर – 2 छोटे चम्मच (विभाजित)

व्हाइट चौकलेट – 70 ग्राम

डार्क चौकलेट – 75 ग्राम

कोको पाउडर – 15 ग्राम

विधि

एक बाउल में 2 अंडों का सफेद भाग और 2 बड़े चम्मच पिसी हुई चीनी डालकर अच्छे से मिला लें. अब एक अन्य बाउल में 200 मिलीलीटर दूध, 2 अंडे की जर्दी, 30 ग्राम मक्खन डालकर मिक्स करें. इस मिश्रण को दो अलग-अलग बाउल्स में निकाल लें.

एक छन्नी में 75 ग्राम केक का आटा और 1 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर डालकर 2 में से किसी एक बाउल में छान लें. फिर इसे मिलाकर एक स्मूथ मिश्रण तैयार कर लें.

इसके बाद इसमें अंडे के सफेद भाग वाला मिश्रण डालकर अच्छे से मिक्स करें. अब दूसरे बाउल में 45 ग्राम केक का आटा, 1 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर, 15 ग्राम कोको पाउडर डालकर मिला लें.

बाद में इसमें अंडे के सफेद भाग वाला मिश्रण मिलाएं. मध्यम आंच पर एक पैन गर्म करें और इस पर ब्रश की सहायता से मक्खन लगाएं.

अब दोनों मिश्रण को सौस वाली बोतल में डालकर पैन पर मनचाही शेप बनाएं. पकने के बाद इन्हें एक प्लेट में निकाल लें.

फिर डार्क चौकलेट और व्हाइट चौकलेट को माइक्रोवेव में 2 मिनट तक पकाएं. इन चौकलेट्स से पैन केक्स की आंख, नाक और मुंह बनाएं. आपका एनीमल पैन केक बनकर तैयार है.

सैल्फी का जानलेवा जुनून युवाओं के लिए बना बड़ा खतरा

आज के दौर में सैल्फी युवाओं व किशोरों के लिए फैशन व जनून बन गई है. वे अपनी मनचाही तसवीरें खींचते हैं और सोशल नैटवर्किंग साइट्स के अलावा व्हाट्सऐप पर अपने दोस्तों से शेयर करते हैं. इस में उन की खुशियां, फैशन और भाव झलकते हैं. इस में कोई दो राय नहीं कि अपनी तसवीरें लेने का सब से बेहतरीन और आसान तरीका सैल्फी ही है.

यह सुनहरा पहलू है, लेकिन दूसरा चिंताजनक पहलू यह है कि भारत में सैल्फी से होने वाली मौतों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है. स्थिति उन के लिए और भी खतरनाक है जो सैल्फी के लिए सारी हदों को लांघ जाते हैं. वे भूल जाते हैं कि जिंदगी की अहमियत एक सैल्फी से कहीं ज्यादा होती है.

खतरनाक सैल्फी लेने की होड़ में कब किस की सैल्फी आखिरी साबित हो जाए इस को कोई नहीं जानता. इस के खतरनाक रूप सामने आने के बाद युवाओं को खतरों से बचाने के लिए अब कानून का सहारा लेना पड़ रहा है. रेलवे ने पटरियों को ‘नो सैल्फी जोन’ घोषित कर दिया है. ऐसा करने वालों को जेल की हवा खाने के साथ जुर्माना भी भरना पड़ सकता है. यात्रियों को खतरों से आगाह भी किया जाएगा.

युवाओं के लिए बनी खतरा

जब वर्ष 2005 में सैल्फी शब्द सामने आया, तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि वह इतना चर्चित हो जाएगा और खतरा भी बनेगा. शब्द की तेजी से हुई चर्चाओं का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2013 तक यह सब से ज्यादा चर्चित हो गया.

औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने सैल्फी को वर्ल्ड औफ द ईयर तक चुना. यह युवाओं के दिमाग पर छा गया. हर हाथ में मोबाइल और सैल्फी का फैशन पंख लगा कर चल रहा है. इस के लिए दीवानगी है. नेताओं और फिल्मों ने भी इस को बढ़ावा दिया. नौबत ऐसी आ गई कि रेलवे को ‘नो सैल्फी’ की गाइडलाइन जारी करनी पड़ गई. ऐसी नौबत आने के पीछे भी बड़े कारण रहे.

ट्रेन में सफर करते समय खतरनाक तरीके से व पटरी पर सैल्फी लेना युवाओं की मौत का सबब बन गया. पहले हुए कई गंभीर हादसों की कड़ी में ताजा कई हादसे भी जुड़ते गए. मुंबईहावड़ा ऐक्सप्रैस में बिलासपुर के निपनिया के पास बोगी के गेट से बाहर लटक कर रेलवे पुल और अपनी सैल्फी लेते एक युवक का संतुलन बिगड़ गया और वह नदी में जा गिरा.

इसी तरह दुर्ग में भी ऐसा ही हादसा हुआ. खारून पुल के पास सैल्फी लेता एक युवक पैर फिसलने से गिर गया. वह दरवाजे पर लटक कर सैल्फी ले रहा था.

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में तो चलती ट्रेन के आगे सैल्फी लेने की चाहत में एक किशोर ने अपनी जान गवां दी. गीता कालोनी का रहने वाला कार्तिक कक्कड़ 10वीं का छात्र था. वह पढ़ाईलिखाई, खेलकूद में अव्वल था. उसे सैल्फी लेने का बहुत शौक था. वह तरहतरह की सैल्फी दोस्तों तक पहुंचाता था. एक दिन सुबह कार्तिक अपने दोस्तों समीर, प्रत्यूष व रोहित के साथ लढ़ौरा रेलवे फाटक पर सैल्फी लेने पहुंच गया. उस की ख्वाहिश थी कि सैल्फी चलती ट्रेन के आगे ली जाए ताकि रियल लुक आ सके.

उसे हरिद्वारअजमेर ऐक्सप्रैस ट्रेन आती दिखी, तो वह ट्रैक पर आ गया और सैल्फी लेने लगा. ट्रेन की रफ्तार का उसे अनुमान नहीं था. ट्रेन चालक ने उसे हटाने के लिए कई बार हौर्न दिया, लेकिन वह नहीं हटा. आखिर कार्तिक ट्रेन की चपेट में आ गया. करीब सौ मीटर दूर जा कर चालक ने ट्रेन रोकी. अगले हिस्से में फंसे उस के शरीर के टुकड़ों को निकाला गया. मौके पर उस के शरीर के हिस्से, मोबाइल के टुकड़े, जूते बिखर चुके थे. इस खौफनाक मंजर ने हर किसी को दहला दिया. एक सैल्फी के लिए उसे जान से हाथ धोना पड़ा. इस से उस के परिवार को जो दर्द मिला उस की भरपाई शायद ही कभी हो सके.

इसी दिन मिर्जापुर जिले में भी 2 युवाओं को चलती ट्रेन से सैल्फी लेना भारी पड़ गया. दरअसल, विनोद व जितेंद्र नामक युवक दिल्लीगुवाहटी ब्रह्मपुत्र मेल के बराबर में पटरियों पर खड़े हो कर सैल्फी ले रहे थे. तभी दूसरी तरफ से सिंगरौलीवाराणसी इंटरसिटी ट्रेन आ गई और वे उस की चपेट में आ गए. दोनों की मौके पर ही मौत हो गई. इस हादसे का दर्शक बनने की कोशिश एक अधेड़ यात्री को भी भारी पड़ गई. ब्रह्मपुत्र मेल में सवार यह यात्री करीब सौ मीटर दूर ट्रेन पहुंचने पर दरवाजे पर खड़े हो कर नीचे झांकने लगा, तभी उस का पैर फिसल गया और ट्रेन की चपेट में आ कर उस ने जान गवां दी.

एक साल पहले सैल्फी के चक्कर में मथुरा में 3 युवकों याकूब, इकबाल व अफजल को अपनी जान गंवानी पड़ी. तीनों जानलेवा जोखिम उठा कर चलती ट्रेन के सामने सैल्फी लेने लगे. चालक के हौर्न देने पर भी वे नहीं हटे और ट्रेन की चपेट में आ गए. इन के अलावा और भी कई अफसोसजनक हादसे हुए.

ऐसे हादसों के मद्देनजर ही रेलवे ट्रैक व दरवाजों पर खड़े हो कर सैल्फी लेने पर रोक लगाने का फैसला किया गया. रेल अधिकारियों के साथ जीआरपी व आरपीएफ के अधिकारियों की कई दौर की बैठक हुईं. उत्तर रेलवे दिल्ली मंडल ने सैल्फी लेने को प्रतिबंधित कर दिया. रेलवे का मकसद हादसों को रोकने के साथ ही यात्रियों को जागरूक करना है.

असुरक्षित और जानलेवा जोखिम वाली सैल्फी के जनून में देश में मौतें बढ़ रही हैं. अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल दुनियाभर में सैल्फी से होने वाली मौतों में से 27 हादसे भारत में हुए. बढ़ते हादसों से मुंबई पुलिस ने शहर के 16 जगहों पर नो सैल्फी जोन बना दिए. हादसों के बाद यह निर्णय लिया गया. पुलिस अब खतरनाक सैल्फी लेने वालों पर नजर रखती है. इसी तरह गोआ में भी कुछ स्थानों पर सैल्फी लेने पर रोक लगानी पड़ी. कई बार युवा साहसिक सैल्फी के लिए जोखिम उठाते हैं. अमेरिकी मनोचिकित्सक एसोसिएशन ने तो जरूरत से ज्यादा सैल्फी की आदत को एक मानसिक बीमारी माना है.

ऐसे जनूनी किशोरों व युवाओं की कमी नहीं जो सैल्फी लेने का कोई मौका नहीं चूकते. एडवैंचर्स सैल्फी उन्हें वाहवाही लूटने का माध्यम भी लगती है. ऐसी सैल्फी सोशल साइट्स के जरिए वे दोस्तों को पहुंचा कर ज्यादा से ज्यादा प्रतिक्रिया चाहते हैं. अलग अंदाज की सैल्फी की होड़ है. नेता भी सैल्फी को युवाओं के साथ जुड़ने का माध्यम बनाने लगे हैं. फिल्मों ने भी इसे खूब बढ़ावा दिया. बजरंगी भाईजान फिल्म का गाना ‘चल बेटा सैल्फी लेले रे…’ सिर चढ़ कर बोला. अभिनेता, अभिनेत्रियों और नेताओं की सैल्फी आती रहती हैं जो चर्चा का केंद्र भी बनती हैं.

कानपुर शहर के गंगाबैराज पर सैल्फी लेने के चक्कर में 6 दोस्तों की, पैर फिसलने से एकसाथ जान चली गई. एक अन्य युवक उन्हें बचाने के चक्कर में डूब गया.

सैल्फी के चक्कर में होने वाले हादसों पर डा. फरीदा खान कहती हैं, ‘‘सैल्फी की वजह से होने वाली मौतें झकझोर कर देने वाली हैं. हादसों से युवाओं को सबक लेना चाहिए. देखादेखी वे क्रेजी न बनें. ऐसी जिज्ञासा से दूर ही रहें जिस से जान का खतरा हो. अभिभावकों को भी अपने बच्चों को जागरूक करना चाहिए. जब जिंदगी ही नहीं होगी तो सैल्फी कहां से आएगी.’’

बकौल उत्तर रेलवे के दिल्ली मंडल के पीआरओ अजय माइकल, ‘‘सैल्फी लेने वालों पर रोक लगाने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे. यात्रियों को खतरों के बारे में आगाह किया जाएगा. जांच अभियान चलाने वाले पुलिसकर्मियों को निर्देश दिए जाएंगे कि वे लोगों को समझाएं. न मानने की दशा में उन पर कार्यवाही करें. सैल्फी के संबंध में यात्रियों की शिकायत को भी गंभीरता से लिया जाएगा.’’

सैल्फी लेना चलन है, इस से बचा नहीं जा सकता, लेकिन उन खतरों से जरूर बचा जा सकता है जिन के जनक युवा खुद बन जाते हैं. अपनी सैल्फी को ज्यादा पौपुलर करने के चक्कर में जोखिम उठा कर जान से ही हाथ धोने पड़ जाएं, तो ऐसी सैल्फी को कौन पसंद करेगा. साधारण सी बात है कि जान से ज्यादा कीमत तो किसी सैल्फी की नहीं हो सकती. जरूरत सावधान रहने की है. ऐसे जनून में कतई न पड़ें जो जान पर भी भारी पड़ जाए

रिवौल्वर के साथ सैल्फी, गई जान

पंजाब के पठानकोट के 15 वर्षीय किशोर रमनदीप को अपनी सैल्फी लेने का शौक था. उस ने बेहद रोमांचक सैल्फी लेने की सोची. इस का विकल्प उसे अपने घर में ही नजर आ गया. एक दिन उस ने अपने पिता की घर में रखी 32 बोर की लाइसैंसी रिवौल्वर उठाई और कनपटी पर लगा दी. वह रिवौल्वर के साथ सैल्फी लेने लगा. इसी बीच लोडेड रिवौल्वर का ट्रिगर दब गया और गोली चल गई. गोली लगते ही वह नीचे गिर पड़ा. मातापिता घर पर नहीं थे. गोली चलने की आवाज सुन कर घर पहुंचे पड़ोसियों ने उसे गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचाया. गोली उस के सिर में घुसी थी. बाद में उसे लुधियाना के अस्पताल में रैफर किया गया, लेकिन उस की मौत हो गई. अलगअलग अंदाज की सैल्फी का जनून मौत का कारण भी बन जाता है.

हर्ज क्या अगर स्कूलों में टीचर्स भी साफ करें टौयलेट?

छोटा सा लेकिन दिलचस्प और एक सबक सिखाता वाकेआ मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के ग्यारसपुर ब्लौक के गांव पिपरिया जागीर का है. 20 अगस्त को एक व्हाट्सऐप ग्रुप पर शिक्षक गेंदा सिंह मालवे की कुछ तसवीरें वायरल हुईं जिन में वे टौयलेट की साफसफाई करते नजर आ रहे थे.

विवाद साफसफाई और उस की अहमियत को ले कर नहीं, बल्कि इस बात पर हुआ कि ये तसवीरें जानबूझ कर वायरल की गई थीं. गेंदा सिंह मालवे का आरोप था कि उन पर हैदरगढ़ की क्लस्टर प्रभारी राधा यादव ने अपने दौरे के दौरान टौयलेट साफ करने का दबाव बनाया और फिर टौयलेट साफ करते उन की तसवीरें जानबूझ कर व्हाट्सऐप ग्रुप पर डालीं जिस से वे बेइज्जत महसूस कर रहे हैं. इस बात की शिकायत उन्होंने कलैक्टर, विदिशा और अजाक थाने में की.

इस आरोप के जवाब में राधा यादव ने कहा कि जब वे दौरे पर गईं थीं तो स्कूलटीचर टौयलेट साफ कर रहे थे. उन्होंने उन के फोटो खींचे ताकि अन्य लोगों को संदेश दिया जाए कि शिक्षक भी साफसफाई करते हैं. स्वच्छता अभियान का संदेश देने के लिए उन्होंने फोटो जन शिक्षा केंद्र के व्हाट्सऐप ग्रुप पर साझा किए थे. उन का इरादा किसी को बेइज्जत करने का नहीं था और जातिगत तौर पर अपमान के आरोप झूठे हैं.

स्कूलों में आएदिन ऐसे विवाद आम हैं पर इस झगड़े से एक सार यह निकल कर आया कि अगर टीचर्स टौयलेट्स की साफसफाई खुद करते एक मिसाल पेश करें तो हर्ज की क्या बात. उलटे, इस बात का तो स्वागत किया जाना चाहिए और उस में जातपांत की बात तो होनी ही नहीं चाहिए. विदिशा के विवाद में किस की मंशा क्या थी, इस बात की कोई अहमियत नहीं. अहमियत इस बात की है कि स्कूलों को साफ रखा जाना बेहद जरूरी है.

साफसफाई सिखाएं

साफसफाई की अहमियत कभी किसी सुबूत की मुहताज नहीं रही लेकिन इस में एक बड़ी दिक्कत यह है कि यह मान लिया गया है कि टौयलेट आदि की सफाई का काम छोटी कही जाने वाली खास जाति के लोग ही करें तो बेहतर है, क्योंकि पीढि़यों से उन का पेशा यही है.

धर्म से आई यह बात स्कूली किताबों में नहीं, बल्कि घरों में ही पढ़ाई जाती है, जिसे बच्चे पूरी जिंदगी ढोते रहते हैं. सरकारी स्कूलों में जातपांत इतना आम है कि सवर्ण बच्चे मध्याह्न भोजन भी छोटी जाति के शिक्षकों से लेना अपनी तौहीन समझते हैं. ऐसे में कोई शिक्षक खुद को जातिगत रूप से बेइज्जत महसूस करे तो इस में उस की क्या गलती.

पढ़ाई से इतर भी स्कूलों में बच्चे काफीकुछ सीखते हैं. अब किसी भी तबके के मातापिता के पास इतना वक्त नहीं है कि वे अपने बच्चों को साफसफाई के बारे में एक हद से ज्यादा बता या सिखा पाएं. ऐसे में यह जिम्मेदारी शिक्षकों को दी जाए तो बात बन सकती है.

इस में शक नहीं कि देशभर के सरकारी स्कूल बेतहाशा गंदगी के शिकार हैं. वजह, इस काम की जिम्मेदारी सफाई कमियों पर डाल रखी गई है, जो न आएं या काम से जी चुराएं तो बच्चों को भारी गंदगी के बीच रहना व पढ़ना पड़ता है.  शिक्षक की तरह साफसफाई में उन की भी कोई दिलचस्पी या रोल नहीं रहता.

जब शिक्षकों को साफसफाई करने में तौहीन लगती हो तो उन को रोल मौडल मानने वाले बच्चों से क्या खा कर उम्मीद रखी जाए कि वे साफसफाई करने को छोटा और शर्म वाला काम नहीं समझेंगे. राजनति से हट कर देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वच्छ भारत अभियान एक अच्छी शुरुआत है. यहां यह बात गौरतलब है कि यह अच्छी मुहिम अनजाने में जातिवाद की शिकार हो चली है.

विदिशा के एक मामूली स्कूली विवाद का इस बात से गहरा नाता है कि साफसफाई के लिए हम तक छोटी जाति वालों के मुहताज हैं. शौक या प्रचार के लिए सड़कों पर झाड़ू लगाना एक अलग बात है पर संजीदगी से स्वच्छता के प्रति जागरूक होना या करना एक अलग मुद्दा है जिस में सरकार नाकाम साबित हो रही है.

किसी व्हाट्सऐप ग्रुप  पर टीचर्स द्वारा टौयलेट साफ करने की तसवीरें वायरल हों, यह कतई शर्म या बेइज्जती की बात नहीं. एतराज की बात यह है कि यह टीचर छोटी जाति का ही क्यों है, सवर्ण क्यों नहीं. यानी सभी जातियों और वर्ग के शिक्षक अगर अपने स्कूलों के टौयलेट की सफाई की जिम्मेदारी लें तो बच्चों में साफसफाई का जज्बा आते देर नहीं लगेगी.

हिचकिचाहट क्यों

देशभर के सरकारी स्कूलों के शिक्षक आएदिन इस बात पर धरनेप्रदर्शन और हड़तालें कर हल्ला मचाते रहते हैं कि उन से पढ़ाई के अलावा कोई काम न लिया जाए. इस से बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ता है और वे पढ़ाने के लिए वक्त नहीं निकाल पाते हैं.

बात एक हद तक सही है लेकिन यह स्कूल की साफसफाई पर लागू नहीं होती और न ही होनी चाहिए. स्कूलों की साफसफाई की जिम्मेदारी शिक्षक अगर लें तो सरकारी स्कूल भी प्राइवेट स्कूलों की तरह चमचमाते नजर आएंगे.

जाहिर है इस के लिए यह हिचक, झिझक, शर्म या पूर्वाग्रह उन्हें छोड़ना पड़ेगा कि हम क्या कोई भंगी हैं, मेहतर हैं जो साफसफाई करें, हमारा काम तो पढ़ाना है.

जबकि शिक्षकों का काम महज पढ़ाना ही नहीं, बल्कि बच्चों में अच्छी आदतें डालना भी होता है. साफसफाई इन में अहम है. अगर टीचर तय कर लें कि टौयलेट की सफाई के साथसाथ स्कूलों में झाड़ूबुहारी का काम भी वे करेंगे तो कोई वजह नहीं कि स्वच्छ भारत अभियान परवान न चढ़े. इस काम में छात्रों को भी, समूह बना कर, वे शामिल करें तो बात सोने पे सुहागा वाली होगी.

साफसफाई में ज्यादा वक्त नहीं लगता है. अगर एक पीरियड अलग से इस के लिए रखा जाए तो बच्चे और शिक्षक दोनों गंदगी से नजात पा सकते हैं और वे सफाई के बाबत किसी के मुहताज भी नहीं रहेंगे. इस के लिए इकलौती जरूरत दृढ़ इच्छाशक्ति और शर्म छोड़ने की है.

जब टीचर्स झाड़ू लगाएंगे या टौयलेट साफ करते नजर आएंगे, तो छात्र खुदबखुद उन का साथ देंगे. पर इस के लिए पहल तो टीचर्स को ही करनी पड़ेगी. बच्चों से पहले उन्हें खुद को समझना होगा कि स्कूल हम सब का है और यह शिक्षा का घर है. उस की साफसफाई हम खुद करें तो छोटे नहीं हो जाएंगे. उलटे, हम में गैरत और स्वावलंबन की भावना आएगी.

जब स्कूलों से बच्चे साफसफाई का सबक खुद यह काम कर के सीखेंगे तो तय है कि आगे चल कर उन्हें इस की अहमियत समझ आएगी और वे भी इस में हिचकेंगे नहीं. साफसफाई का काम एकदूसरे पर थोपने की बीमारी की वजह से ही पूरा देश गंदा और बदबूदार हो गया है. हर स्कूल में राष्ट्रपिता कहे जाने वाले महात्मा गांधी की तसवीर टंगी रहती है पर यह कोई याद नहीं रखता कि वे साफसफाई करने में हिचकते नहीं थे और एक वक्त तो वे अपना मैला भी खुद साफ करने लगे थे.

उस दिन किसी स्वच्छ भारत अभियान की जरूरत नहीं रह जाएगी जिस दिन स्कूलों के टीचर टौयलेट साफ करते अपने फोटो खुद सोशल मीडिया पर फख्र से शेयर करेंगे. यह बिलाशक बड़े पैमाने पर प्रेरणा देने वाला काम होगा और इस के लिए किसी सरकारी हुक्म या हिदायत की नहीं, बल्कि खुद को एक प्रतिज्ञा करने की जरूरत है कि मेरा स्कूल, मैं साफ रखूंगा और जरूरत पड़ी तो टौयलेट भी साफ करूंगा.

सरकार को चाहिए कि वह ऐसी पहल करने वाले शिक्षकों को पुरस्कार व विशेष वेतनवृद्धि दे कर उन्हें प्रोत्साहित व सम्मानित करे. अगर हम अपने घर की तरह ही देश के हर कोने, गली, नाली की साफसफाई के लिए दूसरों पर निर्भर होने के बजाय स्वयं करना शुरू कर देंगे तो यह भावी पीढ़ी को भी प्रेरणा देगा और गंदगी से फैलने वाली बीमारियों से नजात मिलेगी.

इस योजना में करें निवेश, सबसे कम वक्त में दोगुना होगा पैसा

हर किसी की मंशा होती है कि वह पैसा ऐसी योजना में निवेश करें जिसमें उसे अच्छा रिटर्न मिले. कई बार लोग ज्यादा रिटर्न के चक्कर में गलत जगह भी निवेश कर देते हैं. ऐसे में एक समय बाद उनके पास पछताने के सिवाए कोई विकल्प नहीं होता.

ऐसे में जरूरत है निवेश से पहले अच्छी तरह जानकारी कर लें. संतुष्टि होने पर ही निवेश करें, हो सकता है आपने भी निवेश पर अच्छा रिटर्न लेने के लिए कई तरह से योजना बनाई होगी. लेकिन, किसी को ठीक से यह जानकारी नहीं होती कि पैसा कब, कहां दोगुना होगा.

सबसे तेज म्युचुअल फंड में पैसा डबल होता है, लेकिन लोगों में यहां निवेश को लेकर विश्वास नहीं है. क्योंकि लोग शेयर मार्केट के रिस्क से दूर रहना चाहते हैं. ऐसे में उनके पास सिर्फ बैंक या पोस्ट औफिस ही विकल्प के तौर पर होता है.

फिर भी लोगों को यह जानकारी नहीं होती कि पैसा पोस्ट औफिस में जल्द डबल होगा या बैंकों में. हम आपको बता दें बैंक की तुलना में पोस्‍ट औफिस में पैसा जल्दी डबल होता है, यहां दो साल कम समय लगता है.

बैंक FD में 12 साल में होता है डबल

यदि आप किसी सरकारी बैंक में FD करते हैं तो आपका पैसा 12 साल में डबल हो सकता है. मौजूदा समय में SBI इस वक्‍त 5 से 10 साल की FD पर 6 फीसदी ब्‍याज देता है. इस ब्‍याज दर से निवेश किए गए 1 लाख रुपए 12 साल में दो लाख से ज्‍यादा हो जाएंगे.

एसबीआई में FD करने पर

6 फीसदी है ब्‍याज (5-10 साल की FD पर)

  • 1 लाख रुपए का निवेश
  • 12 साल में हो जाएगा
  • 2 लाख रुपए से कुछ ज्‍यादा

पोस्‍ट औफिस में 10 साल में डबल होगा पैसा

बैंक की तुलना में पोस्‍ट आफिस में पैसा 2 साल कम में डबल हो जाएगा. पोस्‍ट औफिस की 5 साल की टाइम डिपौजिट में इस वक्त 7.6 फीसदी ब्‍याज है. टाइम डिपौजिट एक बार में अधिकतम 5 साल के लिए कराया जा सकता है. ऐसे में एक बार में जमा के बाद ब्‍याज के साथ जो भी पैसा मिले उसे अगर दोबारा जमा कराया जाए तो 10 साल में पोस्‍ट औफिस में निवेश दोगुना से ज्‍यादा हो जाएगा.

पोस्‍ट औफिस टाइम डिपाजिट

7.6 फीसदी है ब्‍याज (5 साल के लिए)

  • लाख रुपए का निवेश
  • 10 साल में 2 लाख रुपए से ज्‍यादा
  • बैंक, पोस्ट औफिस से जल्दी यहां पैसा होगा डबल

पोस्‍ट औफिस में किसान विकास पत्र में पैसा 115 माह (9 साल और 7 माह में डबल) में पैसा डबल हो जाएगा. पोस्‍ट औफिस 1000, 5000, 10,000 और 50,000 रुपए के KVP जारी करता है. इसमें अधिकतम जमा की कोई सीमा नहीं है. जरूरत पड़ने पर ढाई साल बाद इसमें निवेश को निकाला भी जा सकता है.

प्रकृति के स्पर्श को महसूस करना है तो एक बार जरूर आएं सिक्किम

हिमालय की गोद में बसे सिक्किम राज्य को  प्रकृति के रहस्यमय सौंदर्य की भूमि या फूलों का प्रदेश कहना गलत नहीं होगा. वास्तव में यहां के नैसर्गिक सौंदर्य में जो आकर्षण है, वह दुर्लभ है. नदियां, झीलें, बौद्ध मठ और स्तूप तथा हिमालय के बेहद लुभावने दृश्यों को देखने के अनेक स्थान, ये सभी हर प्रकृति प्रेमी को बाहें फैलाए आमंत्रित करती हैं. विश्व की तीसरी सबसे ऊंची पर्वतचोटी कंचनजंगा (28156 फुट) यहां की सुंदरता में चार चांद लगाती है.

सूर्य की सुनहली किरणों की आभा में नई-नवेली दुल्हन की तरह दिखने वाली इस चोटी के हर क्षण बदलते मोहक दृश्य सुंदरता की नई-नई परिभाषाएं गढ़ते हुए से लगते हैं. मनुष्य की कल्पनाओं का सागर यहां हिलोरें मारने लगता है. सिक्किम भारत का एक छोटा सा पर बेहद खूबसूरत राज्य है इस ठंड के मौसम में एक बार आप भी वहां हो आएं, अन्यथा सिक्किम की सुन्दरता देखने से आप इस वर्ष चूक सकती हैं. क्योंकि बर्फ से ढके पर्वत, नदिया बिल्कुल अलग बनाते हैं सिक्किम को, चलते हैं सिक्किम के सुहाने सफर पर और आपको रूबरू कराते हैं सिक्किम के प्रसिद्ध स्थलो से जहां जाकर आपको सुकून का एहसास होगा.

बंजाखरी वौटरफौल

गंगटोक शहर से मात्र 10-12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस वौटरफौल के नज़दीक पहुंचने का रास्ता भी बहुत सुंदर है. पहाड़ी घुमावदार रास्तों से होते हुए इस वौटरफौल तक पहुंचा जाता है. यह रंका मोनेस्ट्री के रास्ते में पड़ता है. यह पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है. बंजाखरी वौटरफौल के पीछे नेपाली समुदाय के बीच प्रचलित एक कहानी है. यह कहानी इसके नाम से जुड़ी है. वन का अर्थ है-जंगल और नेपाली भाषा में जाखरी का अर्थ है-साधु. स्थानीय लोग मानते हैं कि यहां जंगल में एक साधु तपस्या करते थे. उनके नाम पर ही इस वौटरफौल का नाम बंजाखरी पड़ा है. इस जगह को आप एक अम्यूजमेंट पार्क के रूप में भी देख सकती हैं.

जमा हुआ झरना

अगर आप नवंबर-दिसंबर में गंगटोक जाएंगे तो आपको नजदीक ही कुछ ऐसा देखने को मिलेगा, जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की होगी. जी हां, यहां है फ्रोजन वौटरफौल यानी जमा हुआ झरना. यह नजारा गंगटोक से थोड़ा ऊपर नाथुला पास की ओर जाने पर बीच में देखने को मिलता है. आमतौर पर प्रकृति के ऐसे नजारे उन खुशनसीब लोगों को देखने को मिलते हैं जो कि हिमालय की ऊंचे-ऊंचे शिखरों पर ट्रेकिंग करने जाते हैं.

लेकिन सिक्किम में ये नजारे एक आम टूरिस्ट को भी देखने को नसीब हो जाते हैं और वह भी बिना मुश्किल ट्रेकिंग किए हुए. छंगू लेक से ऊपर जाने पर बाबा हरभजन सिंह की समाधि से लगा हुआ ही एक वौटरफौल इन दिनों जम कर बर्फ में तब्दील हो जाता है. आप बड़ी आसानी से सड़क मार्ग से अपनी गाड़ी दौड़ाते हुए यहां तक पहुंच सकती हैं. यह वौटरफौल सफेद शीशे की तरह चमक रहा होता है. इससे निकालने वाली पानी की धाराएं भी जम जाती हैं. भारत में आम टूरिस्ट को यह अद्भुत नजारा केवल यहीं देखने को मिलता है. इसे आप कभी भुला नहीं पाएंगे.

छांगू लेक

इसका एक नाम तसोमगो लेक भी है, यह एक ग्लेशियर लेक है. गंगटोक से लगभग 35 किलोमीटर दूर नाथुला बौर्डर की ओर जाने वाली सड़क जवाहर लाल नेहरू रोड पर समुद्र तल से 12000 फीट की ऊंचाई पर बनी एक खूबसूरत लेक है. इसका आकार अंडाकार है और गहराई लगभग 50 फीट है. इसके चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ हैं. इन्हीं पहाड़ों के बर्फ के पिघलकर आने वाले पानी से यह लेक बनी है. सर्दियों के मौसम मे यह लेक जम भी जाती है. यहां जाने के लिए एक दिन पहले जिला प्रशासन से अनुमति लेनी होती है. आप जब गंगटोक जाएं तो अपने होटल वाले को पहले ही दिन सूचित कर दें. गंगटोक के सभी होटल आने वाले सैलानियों के लिए अनुमति का इंतजाम कर देते हैं. अपने साथ 2 फोटो और पहचान पत्र ले जाना न भूलें. यहां जाने के लिए सुबह जल्दी निकलें, क्योंकि इतनी ऊंचाई पर होने पर दोपहर के बाद यहां मौसम अचानक बदल जाता है. छांगू लेक का मुख्य आकर्षण है याक की सवारी. आप जब यहां जाएं, तो याक की सवारी का आनंद ज़रूर उठाएं.

नाथुला बौर्डर

नाथुला पास समुद्र तल से 14,140 फीट की ऊंचाई पर पड़ता है. चीन के साथ भारत की यह एक व्यापारिक सीमा है. इस पास के दूसरी ओर तिब्बत पड़ता है. यह रास्ता प्राचीन सिल्क रूट के नाम से भी जाना जाता था. भारत-चाइना के बीच यह एकमात्र बौर्डर है, जहां तक टूरिस्ट पहुंच सकती हैं. दोनों ओर सेना तैनात रहती है. आप इस बौर्डर पर जाकर चीनी सैनिकों के साथ हाथ मिला सकती हैं, फोटो खिंचवा सकती हैं.

हनुमान टोक

गंगटोक में कई दार्शनिक स्थल हैं लेकिन उन सबके बीच हनुमान टोक सबसे अलग है. यह सिर्फ एक मंदिर नहीं है, बल्कि एक ऐसा केन्द्र बिंदु है, जहां से खूबसूरत कंचनजंघा चोटियों के दर्शन सबसे साफ होते हैं. इसीलिए गंगटोक आने वाला हर सैलानी यहां आना नहीं भूलता. शहर से 25 किलोमीटर पूर्व में स्थित यह स्थान समुद्र तल से लगभग 11000 फीट की ऊंचाई पर है.

लाल बाजार में शौपिंग

गंगटोक मे शौपिंग करने के कई विकल्प मौजूद हैं, महात्मा गांधी रोड पर पूरा का पूरा मार्केट सजा हुआ है. अगर आप थोड़ी बचत करना चाहते हैं तो महात्मा गांधी रोड के आखिरी सिरे तक चहलकदमी करते हुए चले जाएं. वहीं पर लाल बाज़ार है, जो कि यहां के लोगों का लोकल बाजार है. इस बाजार से लिड वाला टी मग जरूर खरीदें. यह सिक्किमी मग यहां की पहचान है.

गंगटोक से आप तिब्बती कार्पेट खरीद सकती हैं, यहां भूटिया लोग हाथ से बने ऊनी कपड़े बेचते हैं. गंगटोक से तिब्बती बुद्धिस्ट पेंटिंग्स जिन्हें ‘तांगकस’ कहते हैं खरीद सकती हैं. यहां के लोग मानते हैं कि ये पेंटिंग्स घर में गुडलक लेकर आती हैं. गंगटोक मे बनी लगभग सभी मोनेस्ट्री के बाहर एक छोटा सा बाजार सजा होता है, जहां से आप हैंडीक्राफ्ट खरीद सकती हैं. गंगटोक से सिक्किम के इकलौते चाय बागान टेमी टी गार्डेन की और्गेनिक चाय भी खरीदी जा सकती है, जहां की चाय पूरे विश्र्व में मशहूर है.

सिक्किम के सतरंगे स्वाद

सिक्किम घर है कई जातियों का जिनमें प्रमुख हैं नेपाली, भूटिया, तिब्बती और लेपचा जनजाति. ऐसे में यहां इन सभी के खाने चखने को मिल जाते हैं. सिक्किम हिमालय का हिस्सा है और भारत का पहला और्गेनिक फार्मिंग राज्य भी है, इसलिए यहां के खाद्द पदार्थ में सब्जियों का प्रयोग प्रचुर मात्रा में होता है. यहां पर रहने वाले लोग नेपाल, भूटान और ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों से आकर बसे हैं इसलिए इनके खाने भी उसकी खुशबू लिए हुए हैं.

यहां मुख्य रूप से मोमो (स्टीम्ड डंपलिंग), टमाटर का अचार, थूपका (नूडल सूप), किन्मा करी (फर्मेंटेड सोयाबीन), गुंड्रूक आंड सींकी सूप (फर्मेंटेड वेजिटेबल सूप), गुंड्रूक का अचार, ट्रेडीशनल कौटेज चीज, छुरपई का अचार, छुरपई-निंग्रो करी, सेल रोटी (फर्मेंटेड राइस प्रोडक्ट), शिमी का अचार, पक्कु (मटन करी), आंड मेसू पिकल (फर्मेंटेड बंबू शूट) आदि मिलते हैं. इनके खानों में भांति-भांति के मीट, मछली और साग शामिल हैं.

कैसे और कब

गंगटोक पहुंचने के लिए रेल न्यू जलपाईगुड़ी तक जाती है. उससे आगे का रास्ता सड़क मार्ग से 4 से 5 घंटे में तय किया सकता है, या फिर बागडोगरा एयरपोर्ट से हेलीकौप्टर द्वारा बड़ी आसानी से यह सफर मात्र 35 मिनट में तय किया जा सकता है. इसके लिए पहले से बुकिंग करनी होती है.

‘स्वैग से करेंगे सबका स्वागत’ गाने का अरबी वर्जन हुआ लौंच, पहले से भी है अच्छा

बौलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान की आने वाली फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’ की रिलीज डेट जैसे-जैसे करीब आ रही है, लोगों की उत्सुकता भी काफी बढ़ गई है. फिल्म का गाना ‘स्वैग से करेंगे सबका स्वागत’ इतना हिट हुआ कि अरबी भाषा में इस गाने को रिलीज किया गया. यश राज फिल्म्स ने ‘स्वैग से स्वागत’ गाने को अरेबिक भाषा में भी रिलीज किया है. गुरुवार को रिलीज हुए इस गाने पर कुछ ही घंटों में एक लाख से ज्यादा बार लोगों ने देख लिया हैं. अरबी भाषा में इस गाने को रबिह और ब्रिगिट ने गाया है.

सलमान खान और कैटरीना कैफ की फिल्‍म ‘टाइगर जिंदा है’ का पहला गाना ‘स्‍वैग से करेंगे सबका स्‍वागत’ 21 नवंबर को रिलीज किया गया था. इस गाने में सलमान और कैटरीना मस्तमौला अंदाज में नजर आ रहे हैं. कैटरीना अपनी अदाओं का जलवा बिखेर रही हैं, जबकि सलमान अपना टशन दिखा रहे हैं. म्यूजिक डायरेक्टर विशाल और शेखक के इस गाने की लिरिक्स इरशाद कामिल ने लिखी है. जबकि आवाज विशाल ददलानी और नेहा भसिन की है.

बता दें, फिल्‍म ‘टाइगर जिंदा है’ के ट्रेलर ने भी आते ही धूम मचा दी थी. रिलीज के 24 घंटे के भीतर इस ट्रेलर को 29 मिलियन से ज्यादा व्यूज मिले थे, जो अपने आप में ही रिकौर्ड तोड़ है. अली अब्बास जफर के निर्देशन में बनी यह फिल्म 2012 में आई सलमान-कैटरीना की ‘एक था टाइगर’ की सीक्वल है.

‘एक था टाइगर’ का डायरेक्शन कबीर खान ने किया था, वहीं ‘टाइगर जिंदा है’ के निर्देशन की कमान सलमान की सुपरहिट फिल्म ‘सुल्तान’ के डायरेक्टर अली अब्बास जफर ने सम्भाली है. डायरेक्टर के साथ अली अब्बास जफर ने फिल्म की कहानी भी लिखी है. यह फिल्म 22 दिसंबर को रिलीज होगा.

दूसरी ओर ‘टाइगर जिंदा है’ फिल्म को पड़ोसी देश पाकिस्तान में देखने के लिए लोगो को अभी इतेजार करना पड़ेगा, क्योंकि पाकिस्तान सेंसर बोर्ड ने अभी तक फिल्म को सेंसर सर्टिफिकेट नहीं दिया है. जियो फिल्म्स जिसके पास पाकिस्तान में फिल्म रिलीज करने के राइट्स हैं, उसने सेंसर बोर्ड की मंजूरी के अधीन वाले नोट के साथ फिल्म की रिलीज की घोषणा करनी शुरू कर दी है. अभी तक फिल्म को 22 दिसंबर को ही वहां रिलीज करने की तैयारी हो रही थी ठिक इसी तरह फिल्म ‘एक था टाइगर’ को भी पाकिस्तान की बोर्ड ने क्लीयर नहीं किया था.

सूत्रों का कहना है कि सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय, राष्ट्रीय इतिहास और साहित्यिक विरासत ने फिल्म को सेंसर बोर्ड की सिफारिश पर फिल्म को अनापत्ति प्रमाणपत्र देने से मना कर दिया था. डौन न्यूज की खबर के अनुसार टाइगर जिंदा है को भी सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय, राष्ट्रीय इतिहास और साहित्यिक विरासत ने फिल्म को सेंसर बोर्ड की सिफारिश के चलते फिल्म को अनापत्ति प्रमाणपत्र देने से मना कर दिया है. ऐसी खबरे हैं कि पाकिस्तान से संबंधित सींस फिल्म फिल्म में होने की वजह से फिल्म को पास नहीं किया जा रहा है. अली अब्बास जफर के निर्देशन में बनी जासूसी थ्रिलर वाली यह फिल्म भारत में 22 दिसंबर को रिलीज होने के लिए तैयार है.

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