रेप केस में फंसा ‘बेहद’ का ये एक्टर, मेडिकल रिपोर्ट भी आई पौजिटिव

‘देवों के देव महादेव’ में राम की भूमिका और ‘बेहद’ में समय का किरदार निभाने वाले पीयूष सहदेव को मुंबई पुलिस ने रेप के आरोप में गिरफ्तार किया था और फिर उसके बाद कोर्ट ने पीयूष को 27 नवंबर तक पुलिस रिमांड पर भेजा था.

पीयूष पर पिछले हफ्ते ‘सपने सुहाने लड़कपन के’ की एक 23 साल की ऐक्ट्रेस ने पीयूष पर शादी का झांसा देकर रेप करने का आरोप लगाया है. खबरों के मुताबिक एक्टर की मेडिकल रिपोर्ट पौजिटिव आई है जिसकी वजह से उनपर लगा आरोप सही साबित हो गया है. पीयूष पर आईपीसी की धारा 376 के तहत मुकदमा दर्ज कराया गया है. उनकी जमानत याचिका को कोर्ट ने नामंजूर कर दिया है. जिसकी वजह से वह इस समय भी मुंबई के आर्थर रोड स्थित जेल में बंद हैं.

बताया जा रहा है कि एक्‍ट्रेस और पीयूष पिछले दो महीने से लिवइन रिलेशनशिप में रह रहे थे. इस मामले में पीयूष की बहन मेहर विज ने एक समाचार पत्र को बताया, ‘जब से पीयूष की शादी हुई, तब से वह पीयूष के टच में नहीं हैं. उनकी वाइफ के कुछ मसले थे तो वो बीच में नहीं पड़ी.’ बता दें कि मेहर ने सलमान खान की फिल्म बजरंगी भाईजान में चाइल्ड एक्टर हर्षाली मल्होत्रा की मां शाहिदा का रोल और ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ में भी वह एक अहम रोल निभा चुकी हैं.

वहीं पीयूष की पूर्व पत्‍नी आकांक्षी रावत का कहना है, ‘मैं पिछले 4 महीने से पीयूष के संपर्क में नहीं हूं, हम 6 महीने पहले अलग हो गए थे इसलिए मुझे नहीं पता कि ये खबरें सही है या नहीं.

इस मामले में पीयूष के पिता कुलवीर सिंह ने भी कहा कि वे इस बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं. वहीं पीयूष के बड़े भाई और टीवी अभिनेता गिरीश सहदेव ने अभी तक इस मामले में कुछ नहीं कहा है.

बता दें कि पीयूष और आकांक्षा की शादी साल 2012 में हुई थी लेकिन यह शादी ज्‍यादा दिनों तक टिक नहीं पाई. आकांक्षा ने पीयूष के खिलाफ क्रूरता और शोषण का केस दर्ज कराया था. कहा जाता है कि पीयूष और उनकी पत्नी आकांक्षा रावत के तलाक की वजह पीयूष का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर था.

पहले खबरें थी कि पीयूष का अफेयर सीरीयल ‘बेहद’ की क्रिएटिव टीम की एक सदस्‍य के साथ चल रहा था. हालांकि इन खबरों के बाद पीयूष ने खुद इस बारे में बताया था कि उन्‍होंने तलाक की अर्जी दी है. तलाक की प्रक्रिया चल रही है. लेकिन मुझे लेकर कई तरह की बातें उड़ रही है जो महज अफवाह है. खासतौर पर एक्‍सट्रा मैरिटल अफेयर वाली बात में कोई सच्‍चाई नहीं है. यह बेबुनियाद है.

ब्राइडल ज्वैलरी खरीदने से पहले इन अनूठे आभूषणों पर भी गौर करें

आभूषण की दमक के बगैर दुलहन का श्रृंगार अधूरा रहता है. भावी दुलहनें अभी से ज्वैलरी शौपिंग का प्लान बनाने लगी होंगी. इस बार ब्राइडल ज्वैलरी खरीदने से पहले इन अनूठे आभूषणों पर भी गौर करें:

निजामी झूमर

नवाबों के खानदान में बड़े चाव से पहना जाने वाला गहना है निजामी झूमर, जिसे मांगटीके की ही तरह माथे के कोने में पहना जाता है. वैसे तो झूमरों की कई डिजाइनें इन दिनों चलन में हैं, लेकिन सब से खूबसूरत होती है निजामी डिजाइन, जिस के बारीक काम को देख कर कोई भी दुलहन इस पर रीझ जाएगी. इस का नवाबी लुक उस के श्रृंगार को और भी उभारेगा.

गढ़वाली नथ

भारत में गढ़वाली महिलाओं की खूबसूरती की चर्चा हमेशा रहती है. उन की इसी खूबसूरती में चार चांद लगाती हैं परंपरागत नथ, जिस की खूबसूरती के सामने सब कुछ फीका लगने लगता है. आजकल गढ़वाली महिलाओं के अलावा यह नथ देश के बाकी स्थानों में भी महिलाएं पहनने लगी हैं. यदि दुलहन अपने सलोने चेहरे को एक नई आभा से सजाना चाहती है, तो गढ़वाली नथ उस के लिए सब से सुंदर गहना है.

बीड ज्वैलरी

अगर आप ट्रैडिशनल लुक से बोर हो चुकी हैं और शादी पर अपने लुक में मौडर्न का तड़का देना चाहती हैं, तो आप को बीड ज्वैलरी जरूर पहननी चाहिए. इस में सोने की लड़ों को एकसाथ जोड़ कर मौडर्न लुक के साथ पेश किया जाता है. इसे पहनने के बाद आप को इंडोवैस्टर्न लुक मिलता है.

खमेर ज्वैलरी

खमेर कंबोडिया की परंपरागत डिजाइन के रूप में जानी जाती है. इसे खमेर प्रदेश की महिलाएं बड़े प्रेम से पहनती हैं. इन दिनों खमेर ज्वैलरी का भारत में भी चलन है. यदि दुलहन अपनी परंपरागत पोशाक के साथ खमेर ज्वैलरी पहने, तो उस की खूबसूरती में चार चांद लग जाएंगे. खासतौर पर इस ज्वैलरी के कड़े दुलहनों के बीच बहुत प्रचलित हैं.

हसली नैकलैस

परंपरागत और पुराने समय की ज्वैलरी की याद दिलाते हसली नैकलैस इन दिनों मौडर्न टच के साथ पेश किए जा रहे हैं. यह राजस्थानी ज्वैलरी का एक प्रकार है, जिस में हसली या चांद के आकार के साथ नैकलैस बनाए जाते हैं, जो पहनने पर गरदन की गोलाई को खूबसूरती से उभारने का काम करते हैं. वैस्टर्न ज्वैलरी में भी इस डिजाइन का चलन है, लेकिन भारतीय पोशाक के साथ इस के ट्रैडिशनल रूप को बेहद पसंद किया जाता है.

घुंगरू लंबानी पायल

लंबानी पायल एक ऐसी ज्वैलरी है, जो दुलहन के पांवों की खूबसूरती को तिगुनी कर सकती है. इस में मोती के आकार के छोटेछोटे घुंघरू लगाए जाते हैं, जिन की मोटी परत पैरों को भव्यता के साथ उभारने में मदद करती है. रौयल लुक पाने के लिए होने वाली दुलहन को यह पायल जरूर पहननी चाहिए.

उबिका माथापट्टी

माथापट्टी का नाम लेते ही दुलहन के जेहन में दक्षिण भारतीय गहनों की डिजाइन आती है. लेकिन इस तरह की माथापट्टी आजकल उत्तर भारतीय शादियों में भी दुलहन पहनना पसंद करती है. इसे परंपरागत रूप न दे कर मीनाकारी और कुंदनकारी के काम से सजाया जाने लगा है, जिस से इसे एक रौयल लुक मिलता है. यह माथे पर एक ताज की तरह होती है, जिस से दुलहन की खूबसूरती को पूरे चांद की गरिमा मिल जाती है.

शादी के बाद समारोह के लिए पहनें ऐसे गहनें

अकसर यह देखा जाता है कि शादी के बाद दुलहन को गहनों से लाद दिया जाता है, जिस की वजह से उस का लुक बिगड़ जाता है. अत: उसे हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि यदि वह भारी साड़ी पहन रही है, तो उसे हैवी ज्वैलरी सैट नहीं पहनना चाहिए. यदि बनारसी साड़ी पहन रही हो, तो उस के साथ जड़ाऊ झुमके भी अच्छे लगेंगे. इस के अलावा बहुत सारी चूडि़यों की जगह जड़ाऊ कड़ों की जोड़ी या सतलड़ी माला की जगह जड़ाऊ चोकर या टैंपल ज्वैलरी भी पहन सकती है.

कम बजट में ऐसे खरीदें ज्वैलरी

इन दिनों जड़ाऊ चोकर पहनने का ट्रैंड चल रहा है, जिस के साथ दुलहन छोटी राउंड शेप इयररिंग्स पहन सकती है. यदि बजट कम हो तो सोने के साथ सेमीप्रिशियस स्टोन्स का इस्तेमाल कर गहनें खरीद सकती हैं. इन स्टोन्स में रूबी और पन्ने का समावेश होता है, जिन्हें बीड्स के तौर पर सोने से बने पैंडेंट के साथ पिरोया जाता है. इन बीड्स का इस्तेमाल आप रंग के अनुसार कर सकती हैं. आप चाहें तो मोती का इस्तेमाल भी कर सकती हैं

जैसलमेर : पैसा वसूल है यह ट्रिप, आपने इसे न देखा तो क्या देखा

राजस्थान एक ऐसा राज्य है जहां के बारे में बात करते ही हमारे अंदर राजा, रजवाड़े, किले तथा रेत का ख्याल मन में आने लगता हैं. जैसलमेर इसी राज्य के अंतर्गत आनेवाला एक बेहद खूबसूरत जगह है, जहां जाकर आपको एक से बढ़कर एक नजारे देखने को मिलेंगे, क्योंकि जैसलमेर अपने आप में यहां की कला, संस्कृति और इतिहास को समेटे हुए है.

जैसलमेर की तारीफ हम मौखिक रुप से चाहे जितना करलें लेकिन फिर भी यह तारीफ अपने आप में कम होगी. आज हम आपको जैसलमेर की यात्रा पर ले जाने के लिए आए हैं. एक बात तो तय है कि अगर आप यहां घूमने जाती हैं तो आपकी यह यात्रा पैसा वसूल  होगी, क्योंकि यहां जैसलमेर में एक ही जगह पर भिन्न भिन्न प्रकार की चीजें आपको देखन को मिलेगी, तो चलिये चलते हैं दिखाते हैं आपको राजस्थान स्थित जैसलमेर के अनेकों रंग.

किला नहीं नगर है यह

शहर में दूर- दूर तक रेत के टीले फैले हुए हैं जो हवा और आंधियों के साथ अपना स्वरूप बदलते रहते हैं. इन्हीं रेतीले टीलों के मध्य त्रिकूट पहाड़ी पर बना है जैसलमेर फोर्ट यानी जैसलमेर का किला. नीला आसमान और चारों ओर फैली बंजर भूमि के बीच शान से खड़ा सुनहरा किला ऐसा प्रतीत होता है मानो इस शहर की जान हो. किले के आसपास बने सुनहरे मकान किसी देवता की शरण में झुके हुए भक्तों के समान दिखाई देते हैं.

यह भारत का एकमात्र ऐसा किला है जिसकी सुंदरता इसके खंडहरों में नहीं, वरन इनमें बसे उन सैंकड़ों परिवारों के सदियों पुराने घरों में बसी है. चहकती संकीर्ण गलियों में साइकिल चलाते बच्चे, चौराहों पर बैठे पगड़ी पहने बुजुगरें की टोली, सुरमयी अंखियों से झांकती झरोखों में बैठी स्‍त्रियां और जगह-जगह लगी कठपुतलियां इस किले में राजस्थानी संस्कृति की झलक पेश करती हैं. किले के मध्य में स्थापित संगमरमर का तख्त आपको उन ऐतिहासिक यादों में ले जायेगा, जब जैसलमेर के राजा अपनी प्रजा के साथ हर्षोउल्लास व आनंदोत्सव में शामिल होते थे.

पानी के बिना निर्माण

कहा जाता है कि पानी के अभाव को ध्यान में रखकर इस किले का निर्माण पानी का उपयोग किये बगैर किया गया था. जैसलमेर के महारावल का पुराना निवास स्थान आज भी इस किले की शोभा बढ़ाता है. अनगिनत झरोखे और उनमें की गई बारीक नक्काशी आपको जैसलमेर की अनोखी कारीगरी एवं कला से रूबरू करायेंगी.

यहां निर्मित जैन एवं हिंदू मंदिर तथा लगातार बजती घंटियां यहां आध्यात्मिकता की अनुभूति कराती हैं. किले के मुख्य चौराहे पर बनी सीमा दीवारों से हजारों सुनहरे घरों को देखकर आप किसी और दुनिया में खो जाएंगे. यह आकर्षक नजारा रेगिस्तान में दिखते चमकती मृगमरीचिका के समान ही प्रतीत होता है. पीले बलुआ पत्थरों से बना यह किला देखने में संतरे के रंग का लगता है. 250 फीट ऊंची पहाड़ी पर बने इस किले की दीवारें 30 फीट की हैं. इसमें 99 बुर्ज हैं. इसे राजपूत राजा जैसाल ने वर्ष 1156 में बनवाया था. कालांतर में इस किले पर बहुत से शत्रुओं ने हमले किए, लेकिन इस पर कोई कब्जा नहीं कर पाया.

घुमानचंद पतवा की हवेली

जैसलमेर की गलियों से गुजरते हुए छोटे-छोटे मकानों के बीच यदि आपको कोई भव्य इमारत दिख जाए तो समझ जाएं कि आप शहर के सबसे धनवान, जरी और अफीम के व्यापारी घुमानचंद पतवा की मशहूर हवेलियों के पास पहुंच चुके हैं. हवेली की दीवार पर सजी रंगीन कांच से बनी आकृतियां आपको ‘मुगल-ए-आजम’ फिल्म के उस शानदार महल की याद दिलाएंगी, जहां चारों तरफ सिर्फ आपका ही प्रतिबिम्ब नजर आएगा. हवेली के वैभव और विलासिता देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी राजा के महल में आ गए हों. चांदी और सोने से मढ़े गए आईने, अलमारियां और चारपाई पतवाओं की धन्वंतता का प्रमाण देती हैं.

पांच हवेलियों का समूह

हवेली के प्रांगण में कुल 5 हवेलियां हैं जो घुमानचंदजी के पांचों बेटों के लिए बनवायी गयी थीं. हर-एक हवेली के झरोखों में की गई कलाकारी और लकड़ी के अद्भुत कलापूर्ण दरवाजे इन हवेलियों को अतुल्य इमारत बनाते हैं. आप चाहें तो पारंपरिक राजस्थानी पोशाक पहनकर इन झरोखों में फोटो खिंचवा सकती हैं. हालांकि बढ़ते व्यापार के साथ पतवा परिवार दूसरे शहरों में जा बसा, किन्तु उनकी हवेलियां आज भी यहां आनेवाले हर यात्री को उनकी कामयाबी और शान की गाथा सुना रही हैं.

एक भूल की निशानी

इसके अलावा, नथमलजी की हवेली, जो एक ‘आर्किटेक्‍चरल ब्लंडर’ होने के कारण मशहूर है, वह भी देखने लायक है. जैसलमेर के रहने वाले दिलबरजी बताते हैं, ‘इस हवेली का निर्माण दो वास्तुविद भाइयों ने अलग-अलग भागों से शुरू किया. दोनों की अलग ही निर्माण प्रक्रिया के कारण आज भी हवेली की वास्तुकला में चूक देखी जा सकती है. उनके हिसाब से हवेली की एक और खासियत यह है कि उस जमाने में चित्रकारों ने न ही पंखा देखा था न ही कोई गाड़ी, पर व्यापारियों के विवरण के हिसाब से चित्रकारों ने इन सारी चीजों की हूबहू तस्वीर दीवारों पर बना दी है.

नील गगन में देवता की सवारी

हल्के पीले पत्थरों से बना विशाल महल और उस पर सैर करती जहाज रूपी पांच मंजिला इमारत कुछ यूं नजर आती है जैसे नील गगन में किसी देवता की सवारी बादलों की सैर करने निकली हो. इसीलिए इस संरचना को ‘बादल महल’ के नाम से जाना जाता है. यह एक मुस्लिम वास्तुविद की अपने राजा के लिए अनोखी भेंट थी, जिसे देखकर आज भी राजपरिवार उनको याद करता है.

इस इमारत की हर एक मंजिल पर अनगिनत झरोंखे बनाकर इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाकर वास्तुविद हिंदुस्तान और अपने वतन को अलविदा कर पाकिस्तान रवाना हो गया और अपनी अनमोल निशानी अपने प्रिय राजा के लिए छोड़ गया. ताजिया जुलूस में रखे जानेवाले इमाम हुसैन के मकबरे से समानता के कारण यह इमारत ‘ताजिया टावर’ के नाम से मशहूर है. जैसलमेर पर्यटन का मुख्य आकर्षण बने इस ‘ताजिया टावर’ को शहर के हर कोने तथा किले से भी देखा जा सकता है. इसके अलावा आप महल के मुख्य प्रांगण में बने मंदिर तथा म्यूजियम गए शाही आर्टिफेक्ट्स भी देख सकती हैं.

सर्दियों में डेजर्ट ट्रेकिंग का आनंद

न रास्ता हो, न मंजिलें, बस पांव तले शीतल सुनहरी रेत हो, आसमान का साथ हो और हवा के झोकों के साथ कभी न खत्म होता वार्तालाप हो, सूरज के ढलते ही दिन ढले और सूर्योदय के साथ एक नए युग की शुरुआत हो. यदि आप ऐसी सपनों की दुनिया में कुछ दिन बिताना चाहते हैं तो यूथ हौस्टल एसोसिएशन औफ इंडिया द्वारा आयोजित ‘जैसलमेर डेजर्ट ट्रैकिंग प्रोग्राम’ में शामिल हो सकती हैं.

सैलानियों और शहर से कोसों दूर रेत के टीलों पर बने टेंट्स और थार रन के खुशनुमा माहौल में स्थानीय गायकों एवं नर्तकियों की कला देखते हुए दाल-बाटी और चूरमा खाने का जो आनंद है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. रेत के टीलों पर बैठकर सूर्य के नारंगी गोले को रेतरूपी लहरों में डूबता हुआ देखने का आनंद भी बिल्कुल निराला है. खाबा, बरना, साम, सुदासरी और खुरी जैसी जगहों पर जहां बड़े-बड़े थार के पेड़, पशु-पक्षियों और मीलों तक फैली रेत के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता, वहां आप रेगिस्तान की सुंदरता एवं खामोशी का आनंद ले सकती हैं.

रण में जलतरंग

वीरान रेगिस्तान के बीच यदि मृगमरीचिका आए तो रण में भटकता इंसान खुशी से उसकी तरफ खिंचा चला जाता है. कुछ इसी तरह जैसलमेर के आकर्षक बंजर के बीच बना गडीसर तालाब सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है. सूर्यास्त के समय जब एक ओर जैसलमेर किला कोई दिव्य इमारत सा प्रतीत होता है तो दूसरी ओर तालाब के किनारे बने मंदिर और बीच में बनी छतरियां पानी में लहराती हुई नजर आती हैं. अनगिनत पक्षी भी इस अद्भुत नजारे का लुत्फ उठाते नजर आते हैं. उनकी चंचलताभरी उड़ान देखकर ऐसा आभास होता है जैसे वह सूर्यदेव को अगली सुबह जल्दी आने का आगाज दे रही हों. बाकी शहरों में भले ही बड़ी-बड़ी नदियों पर बने घाट शहर की रौनक लगते हों किन्तु जैसलमेर के गडीसर तालाब पर बने घाटों की सुंदरता अतुलनीय है. एक जमाने में यह तालाब पूरे शहर के लिए पर्याप्त जल प्रदान करता था और जैसलमेर वासियों के लिए नदी की कमी पूरी करता था. आज हैंड-पंप और कैनाल की मौजूदगी से यह तालाब केवल एक धरोहर बनकर रह गया है. तालाब के किनारे बने घरों में आज भी सदियों पुरानी मूर्तियां पायी जाती हैं जो अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय खंडित की गयी थीं. गणगौर उत्सव के दौरान किले में रखी गयी देवी की सोने की मूर्ति को तालाब के किनारे स्थित शिव-मंदिर पर लाया जाता है. उस समय तालाब की सुंदरता इस आध्यात्मिक वातावरण से और ज्यादा निखर जाती है.

थार में रात का अलौकिक नजारा

जब ठंडी हवा बालों को सहला रही हो तो नींद से सिर्फ सूरज की तपती किरणें ही उठा सकती हैं. जैसलमेर के नजदीक खुरी सैंड ड्यून्स पर कुछ ऐसी ही रातों में सितारों की बारात का नजारा देखने के लिए अमावस्या की रात सैकड़ों घुमक्कड़ आ पहुंचते हैं. यहां न कोई टेंट होते हैं न ही कोई सुविधा बस एक खानाबदोश जीव के जैसे प्रकृति के चमत्कारों से विस्मित होकर रोमांच के एहसास में खो जाना ही उद्देश्य होता है. यदि आप तारों और नक्षत्रों के जानकार हैं या उनमें दिलचस्पी रखती हैं तो ‘मिनीटेलीस्कोप’ ले जा सकती हैं और जिन तारों, ग्रहों एवं नक्षत्रों के बारे में केवल किताबों में पढ़ा है तो उन्हें जानने और देखने का यह एक उत्तम स्थान है.

कुलधरा के रहस्यमय खंडहर

एक तरफ जैसलमेर की रंगीन संस्कृति और वास्तुकला आपको मंत्रमुग्ध कर देगी तो दूसरी ओर शहर से कुछ ही किलोमीटर दूर वीरान खंडहरों में सूरज ढलते ही अजीब सन्नाटा छा जाता है. रात की काली चादर इन खंडहरों को और भयानक बना देती है. लोगों का मानना है कि चुड़ैलों और भूतों का वास इस जगह को डरावना बनाता है तो दूसरी ओर इतिहासकारों का मानना है कि सदियों पुराना अभिशाप जो पालीवाल ब्राह्मण की इस जमीन का त्याग करने के समय दिया गया था, वह इस क्षेत्र को आम इंसान के लिए वर्जित बनाता है.

दिन के उजाले में यह परित्यक्त नगर एक आम खंडहर जैसा दिखता है और इतना जानदार प्रतीत होता है कि आप गलियों में खेलते बच्चे, आंगन में काम करती औरतों और नुक्कड़ पर सामान बेचते नौजवानों की कल्पना कर सकती हैं. त्यक्त मकानों की सुंदरता आपको उस दृश्य की कल्पना करने पर मजबूर कर देगी, जब भारी मन के साथ यहां के लोगों ने यह गांव छोड़ा होगा और अपने इस प्रिय नगर में कोई भी बस न पाए इसलिए पूरे दिल से कामना की होगी. कहा जाता है कि आज की तारीख तक कुलधरा में रात्रिवास करने वाले लोग या तो बच ही नहीं पाए या उनके साथ चौकाने वाली रहस्यमय घटनाएं घटी हैं और इसी कारण पर्यटन विभाग ने सूर्यास्त के बाद इस क्षेत्र में प्रवेश वर्जित घोषित कर दिया है.

रण उत्सव का आनंद

ढलते सूरज के साथ एकतारे के सुर हवाओं में घुलते हैं और कालबेलियां रास से महफिल में रंग भर उठते हैं. घूमर और तेराताली की लय के साथ आपका मन डोलने लगता है और राजस्थानी गीत, संगीत एवं नृत्य आपको झूमने पर मजबूर कर देता है. पुष्कर, जयपुर, बीकानेर, मंडावा और राजस्थान के कई अनसुने गांवों और कस्बों से भिन्न-भिन्न प्रकार के संगीतवाद्य बजाकर आपको अपने कौशल से मंत्रमुग्ध कर देंगे. तीन दिन के इस उत्सव में पूरे विश्र्व से हजारों लोग राजस्थानी संस्कृति का मजा लेने आते हैं और कई यात्री संगीतकारों के साथ बैठकें उनके वाद्यों की जानकारी भी लेते हैं. यदि आप चाहें तो 2-3 दिन रहकर संगीतकारों के साथ बैठकर उनके वाद्य बजाना भी सीख सकती है.

क्या खरीदें

यहां से राजस्थानी मिरर वर्क एम्ब्रौयडरी, वुडन बौक्स और सिल्वर जूलरी जरूर खरीदें. हाथ से बुने ब्लैंकेट और यहां के ट्रेडिशनल कालीन भी खास हैं. एंटीक और ओल्ड स्टोनवर्क का सामान भी आपका मन लुभाएंगे. यहां के सदर बाजार, खादी ग्रामोद्योग एंपोरियम, राजस्थानी गवर्नमेंट शौप, पंसारी बाजार, मानक चौक और गांधी दर्शन से खरीदारी कर सकती हैं.

साल 2017 में ये कंट्रोवर्सीज बनी खबरों का हिस्सा, बौलीवुड के ये सितारे हुए बदनाम

साल 2017 में बौलीवुड में कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिसने कईयों का करियर बनाया, तो कईयों को करियर की चिंता में डाल दिया. बाहुबली ने सिल्वर स्क्रीन पर लोगों का दिल जीता और करोड़ों की कमाई की, वहीं 100 करोड़ क्लब के बादशाह सलमान खान की ट्यूबलाइट बुरी तरह पिट गई. लेकिन इन सब के अलावा बौलीवुड में कई सितारों को लेकर कंट्रोवर्सी हुई, जिसने विवादों को जन्म तो दिया ही, बल्कि चर्चाओं का बाजार भी गर्म किया.

इन कंट्रोवर्सीज में बौलीवुड के बड़े नाम शामिल हैं, जिनमें से किसी के बयानों ने, तो किसी के सोशल मीडिया पर ट्वीट ने लोगों के बीच विवाद खड़ा कर दिया. इनमें करीना कपूर से लेकर करण जौहर का नाम भी शामिल है. आइये जानते हैं वह कौन सी खबरें थीं, जिन्होंने साल 2017 में बवाल खड़ा किया है.

सोनू निगम अजान कंट्रोवर्सी

सोनू निगम ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से अहले सुबह एक के बाद एक 4 ट्वीट किये थे, जिसमें उन्होंने लिखा था कि ‘उनके घर के पास बनी मस्जिद से दी जाने वाली अजान की वजह से उनकी नींद खराब होती है. वे मुसलमान नहीं है, तो वे इतनी सुबह क्यों उठे?’ इस बात को लेकर सियासत गर्म होती चली गई और इससे एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया. सिर्फ बौलीवुड के सितारे ही नहीं, बल्कि राजनितिक पार्टी के नेता भी अपने-अपने मतों के साथ इस विवाद में कूद पड़े थे, जिसके बाद एक कंट्रोवर्सी खड़ी हो गई थी.

गायक अभिजीत का ट्विटर हैंडल बंद

गायक अभिजीत भटाचार्य ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से छात्र नेता शहला राशिद के खिलाफ आपत्तिजनक ट्वीट किया था, जिसके बाद उनकी शिकायत की गई और इसी वजह से उनका सोशल मीडिया अकाउंट ट्विटर सस्पेंड कर दिया गया. इसके बाद उनके सपोर्ट में बौलीवुड के कुछ गायकों ने भी अपना ट्विटर अकाउंट डीएक्टिवेट कर दिया था, लेकिन दोबारा अभिजीत का सोशल मीडिया अकाउंट चालू नहीं किया गया.

फिल्म लिपस्टिक अंडर माय बुर्खा

इस फिल्म को लेकर लोगों के बीच कई दिनों तक विवाद चलता रहा. फिल्म में दिखाए गए आपत्तिजनक कंटेंट के चलते सीबीएफसी ने इसे सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया था, जिसके बाद न सिर्फ बौलीवुड की अदाकाराएं, बल्कि आम महिलाऐं भी सीबीएफसी के खिलाफ खड़ी हो गई थी. यह फिल्म कई दिनों तक चर्चा में बनी रही थी.

मीरा राजपूत और करीना कपूर

शादी के बाद जब पहली बार शाहिद की पत्नी मीरा राजपूत ने मीडिया से बात की, जिसके दौरान उन्होंने कहा था “उनकी बेटी मीशा कोई ‘पपी’ नहीं है, जिसे वह घर पर छोड़ दें और पूरे दिन में केवल एक घंटा उसके साथ बिताएं.” इसके बाद इस कमेन्ट को करीना कपूर से जोड़कर देखा गया और समझा गया कि मीरा ने ये कमेन्ट करीना कपूर पर किया था. क्योंकि वह सोशली काफी एक्टिव रहती हैं. इस बात को कई दिनों तक मीडिया में उछाला गया और मीरा राजपूत कंट्रोवर्सी की शिकार हुईं.

पीएम मोदी से प्रियंका चोपड़ा की मुलाकात

प्रियंका चोपड़ा को लेकर तब कंट्रोवर्सी खड़ी हुई, जब वे शौर्ट ड्रेस पहनकर पीएम मोदी से मिलने गई थीं. लोगों ने सोशल मीडिया पर उनके ड्रेसिंग सेन्स को लेकर उन्हें ट्रोल किया था, जिसके जवाब में प्रियंका ने अपने अंदाज में जवाब दिया था. लेकिन इसे लेकर कई दिनों तक सोशल मीडिया पर चर्चा चलती रही.

अभय देओल का फेयरनेस क्रीम पर हमला

अभय देओल ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये उन सभी सेलिब्रिटीज की जमकर आलोचना की, जो फेयरनेस क्रीम बेचने के इस गोरखधंधे से जुड़े हुए हैं. उन्होंने उन सभी सेलेबस की जमकर आलोचना की, जो सच जानते हुए भी लोगों के सामने गलत उदाहरण पेश कर रहे हैं. इस पोस्ट के बाद उनके और बौलीवुड के सेलिब्रिटीज के बीच सोशल मीडिया पर जंग छिड़ गई थी, जो कई दिनों तक चलती रही. अपने विवादित पोस्ट के जरिये अभय कंट्रोवर्सी का शिकार हुए थे.

कंगना का नेपोटिज्म विवाद

कंगना रानौत सुर्खियों का हिस्सा तब बनीं, जब उन्होंने करण जोहर के शो ‘कौफी विद करण’ में जाकर बौलीवुड में चल रहे भाई-भतीजावाद पर बयान दिया. उन्होंने करण के शो पर जाकर उन पर भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देना का आरोप लगाया, जिसके बाद करण ने भी इस मामले पर अपने अंदाज में जवाब दिया. इस बयान के बाद बौलीवुड में दो गुट बन गए थे, जिसमें सेलेबस अपना-अपना मत रख रहे थे. ये विवाद कई दिनों तक चलता रहा और करण जोहर कंट्रोवर्सी का शिकार बने.

जिंदगी ने मुझे हार न मानने की सीख दी है : चांदनी

जिंदगी खूबसूरत है, सभी जानते हैं, इसे सही तरह से जीने का मौका कुछ को तो मिल जाता है, कुछ को नहीं. ऐसे में कुछ हार मान लेते हैं, तो कुछ सालों साल इस जद्दोजहद की जिंदगी से निकलने का प्रयास कर कामयाब हो जाते हैं. कुछ ऐसी ही संघर्षपूर्ण जिंदगी से निकल कर अपने आपको स्थापित करने वाली नोएडा के मुस्लिम परिवार की 19 वर्षीय चांदनी.

चांदनी ने यह सिद्ध कर दिया है कि गंदी बस्तियों और रास्ते पर जीवन बिताने वालों का भी एक सपना होता है और उसे पूरा करने की जिम्मेदारी भी खुद की ही होती है. चांदनी के इस प्रयास को रीबूक ने ‘फिट टू फाइट’ के अंतर्गत पुरस्कार से नवाजा है. जिसे पाकर वह खुश है और आगे और अच्छा करने की कोशिश कर रही है. आज चांदनी ‘वोइस औफ स्लम’ की प्रेसिडेंट है और अपना काम बखूबी कर रही है.

चांदनी अपने बारे में बताती है कि मैं 5 साल की उम्र से काम करती आई हूं. मेरी मां कहती है कि उस समय मैं अपने पिता के साथ खेल तमाशा करती थी. इस तरह एक शहर से दूसरे शहर जाना पड़ता था, लेकिन उस काम से जो पैसा मिलता था उससे परिवार को भरपेट भोजन मिल जाता था. ऐसे करते-करते हम दिल्ली आ गए और मेरे पिता की मृत्यु लकवा मारने से हो गयी, उनका इलाज करवाया गया पर वे नहीं बचे. उस समय मैं ही घर में बड़ी थी, बाकी मेरे दो भाई-बहन छोटे थे. समझना मुश्किल था कि क्या करें.

फिर मैंने अट्टा मार्केट और नोएडा में कूड़ा बीनना शुरू कर दिया. जौब तो मिल नहीं सकती थी, क्योंकि मैं पढ़ी-लिखी नहीं थी और मेरी उम्र केवल 8 साल थी. कूड़ा बीनते वक्त भी समस्या आई, पुलिस वालों ने मुझे एक दिन के लिए जेल में चोरी का आरोप लगाकर डाल दिया था. फिर मैंने डर के मारे कूड़ा बीनना छोड़कर सिग्नल पर फूल और भुट्टा बेचने लगी.

इतनी कम उम्र में चांदनी के लिए परिवार के लिए रोजी-रोटी की व्यवस्था करना आसान नहीं था. कैसे उसने ऐसे काम किये, कितना मुश्किल था किसी छोटी लड़की का बाहर जाकर कूड़ा बिनना और उसे बाजार में बेचना, इन सब के बारे में बात करते हुए आज भी उसकी आंखों से आंसू निकल आते हैं.

बीते दिनों को याद करती हुई वह कहती है कि मैं रात के तीन बजे कूड़ा बीनने जाती थी और इतनी रात को कोई भी इंसान अच्छी नियत का नहीं होता था. ऐसे में उनसे अपने आप को बचाना पड़ता था. इसके लिए जो बड़े उम्र की महिलाएं थी, जो मुझे कूड़ा बीनने नहीं देती थी. फिर भी मैं उनके पीछे-पीछे जाती थी, ताकि ऐसे लोगों से बच जाऊं. जब कूड़ा बीनना बंद किया तो फूल दिन में नहीं, रात में बेचती थी ताकि ‘पब’ से निकलकर लोग मेरे फूल खरीद लें. उस समय समस्या सर्दी में आती थी, जब तन पर गरम कपड़े नहीं हुआ करते थे, ऐसे में मैं गाड़ियों या दीवारों के पीछे बैठकर ठंड से अपने आप को बचाती थी.

चांदनी को पढ़ने का बहुत शौक था, उसने कोशिश की और एक संस्था से मिली और खुद पढ़ाई शुरू की. साथ ही आस-पास के बच्चों को भी पढ़ने ले जाया करती थी. वह कहती है कि मेरा एक सपना था कि मैं स्कूल ड्रेस पहनूं, अच्छी-अच्छी किताबें पढूं. उस एनजीओ के एक संगठन का नाम ‘बढ़ते कदम’ था. मैं उससे जुड़कर उनके साथ काम और पढ़ाई करने लगी. वहां राष्ट्रीय स्तर पर सचिव बनी और उनकी एक मैगजीन की एडिटर भी बन गयी. इस तरह से मैं सड़क और कामकाजी दस हजार बच्चों के साथ उनकी शिक्षा, उनके अधिकार पर ट्रेनिंग देती रही.

इस दौरान मुझे कई उपलब्धियां भी मिली, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग संगठन से मिलकर भी काम किया. जब मेरी उम्र 18 साल से अधिक हो गयी, तो मुझे उस संस्था को छोड़ना पड़ा, क्योंकि ऐसी संस्था 18 साल तक के बच्चों के लिए ही काम करती है. इसके बाद मैं फिर वापस स्लम और भुट्टे की दुकान पर पहुंच गयी, लेकिन 8वीं तक मेरी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी. फिर मैंने कई दूसरे बच्चों को भी देखा जो 18 वर्ष होने के बाद संस्था से निकाले जा चुके हैं और इधर-उधर घूम रहे हैं. मैंने उन सबको मिलाकर एक टीम बनाई, क्योंकि भले ही ये बच्चे पढ़े-लिखे अधिक नहीं थे, पर उन्हें ऐसे गरीब बच्चों को मैन स्ट्रीम से जोड़ना आता था. वे उनकी मानसिकता को समझते थे. जिससे उन्हें वहां से लाना आसान था. ऐसे में मैंने एक संस्था खोलने का मन 20 लड़के और लड़कियों के साथ मिलकर बनाया, जिसका नाम ‘वोइस औफ स्लम’ रखा.

चांदनी के लिए इस संस्था को खोलना आसान नहीं था. अभी तक वह केवल झुग्गी झोपड़ियों में जाकर बच्चों को संस्था में लाने का काम करती थी, लेकिन खुद की संस्था के खोलते ही कई समस्याएं आने लगी. रजिस्ट्रेशन के काम में जहां सिर्फ 50 रुपये लगे, उसे लोगों ने कभी 5 हजार तो कभी 10 हजार मांगे. चांदनी ने खुद ये सब काम किया. पैसे के लिए उसने फेसबुक का सहारा लिया. अपने दोस्तों को केवल एक रुपये डोनेट करने की मांग की. दो घंटे के अंदर पेटीएम में 25 हजार रुपये आ गए. इस तरीके से उसने नोएडा में दो से तीन सेंटर खोले हैं. इसमें वे उन जरूरतमंद बच्चों को लाकर उनके ‘स्किल’ पर काम करती है.

चांदनी बताती है कि ऐसे बच्चों में मानसिकता होती है कि वे कुछ नहीं कर सकते, इसलिए वे भीख मांगना या कूड़े बीनने का काम कर रहे हैं. मानसिकता को बदलने पर पहले काम किया जाता है. फिर उन्हें शिक्षा और उनके अधिकार को समझाने के बाद उनकी कार्य क्षमता को निखारकर और अंत में काम पर लगाया जाता है. हमारी कोशिश ये रहती है कि वे एक ऐसा लीडर बन जाएं, जो अपनी समस्या खुद सुलझा सकें. ‘स्लम पोस्ट’ नाम की हमारी एक पत्रिका भी है. इसे भी हम सभी निकालते हैं. फंड के लिए हम पैसे नहीं लेते. जिस चीज की हमें जब जरुरत होती है, उसे ही लेते है, जैसे जगह का किराया, स्कूल का फर्निचर, अध्यापकों का वेतन आदि लोग खुद देखकर डोनेट करते हैं.

इसमें पुलिस वालों की दखलंदाजी सबसे अधिक होती है, कहीं कुछ भी चोरी चकारी हो, स्लम के बच्चों को उठाकर ले जाते हैं. इसलिए चांदनी ने भी कूड़ा बीनना बंद कर दिया था. अभी उसे बच्चों के अधिकार पता हैं और वह बच्चों को इसकी शिक्षा देती है. इतना ही नहीं चांदनी हर जरूरतमंद की सहायता करती है. अपने एक अनुभव के बारे में वह बताती है कि पिछले कुछ दिनों पहले नेपाल के 13 साल की लड़की के साथ एक अधेड़ उम्र के आदमी ने शादी कर उसे बहुत प्रताड़ित किया. वह एक बच्चे की मां भी बन चुकी थी, ऐसे में किसी तरह वह भागकर मेरे पास आई, मैंने उसकी मदद की, उसे उसके परिवार से मिलवाया और जिन लोगों ने उसके साथ गलत किया उन्हें जेल की सजा दिलवाई.

अभी चांदनी 10 वीं की पढाई कर रही है. इस काम में उसे सबसे मुश्किल होता है, स्लम के बच्चों और उनके माता-पिता की सोच को बदलना, वे अपने बच्चों को संस्था में भेजना नहीं चाहते, उनके हिसाब से जितने हाथ उतनी कमाई वे मानते हैं, लेकिन चांदनी को पता होता है कि उन्हें कैसे यहां तक लाना है, क्योंकि वह खुद भी इसी हालात से गुजर चुकी है. वह कहती है कि ये सही कि उन्हें अच्छी जिंदगी पता नहीं और मैं उसे ही दिखने की कोशिश करती हूं. जिससे उनके मन बदलते हैं. इसके लिए ऐसी जगहों पर हम ले जाते हैं, जहां ये कभी भी नहीं जा सकते. वहां अच्छे भोजन उन्हें खिलाते हैं, कई कार्यक्रम का आयोजन करते हैहैं. इससे उन्हें अलग एहसास होता है और ये मेरे पास आ जाते हैं.

कई बार तो बच्चे कुछ दिन पढ़ने आने के बाद स्कूल आना बंद कर देते हैं. ऐसे बच्चों से मिलकर उनकी समस्या और उसका हल भी उनसे ही जानने की कोशिश की जाती है. जिससे उनमें अपनी समस्या खुद हल करने की क्षमता हो. अभी तक करीब एक हजार बच्चे मेरे साथ जुड़ चुके हैं और आगे एक लाख बच्चों को ‘मेन स्ट्रीम’ में लाने की कोशिश है. इसके अलावा पूरे देश के ‘स्लम’ के बच्चों को अच्छी जिंदगी देने की इच्छा रखती हूं. मुझे कभी भी तनाव या दुःख होने पर भी इन्ही बच्चों के साथ समय बिता लेती हूं.

चांदनी की मां अभी ‘स्वीट कॉर्न’ की एक दुकान चलाती है, जिससे परिवार चलता है. उसके दो भाई बहन पढ़ते हैं. वह कहती है कि हमारे परिवार में 18 साल के होने पर शादी कर दी जाती है. मैं अपने परिवार की पहली लड़की हूं, जो पढ़ रही है, शादी नहीं की और एनजीओ चलाती है. मैं बहुत मेहनत कर यहां तक पहुंची हूं और अब आगे जो करना है, उसे अवश्य करुंगी.

अपनी शादी के लिये क्या अनुष्का ने दीपिका से झुमके उधार लिये थे

बौलीवुड एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा ने 11 दिसंबर को इटली में इंडियन क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली से शादी कर ली है. इस दौरान विराट और अनुष्का ने एक दूसरे से मैचिंग कपड़े पहने हुए थे. विराट ने हल्के गुलाबी रंग की शेरवानी और अनुष्का शर्मा ने हल्के गुलाबी रंग का लहंगा पहना हुआ था.

अनुष्का का लहंगा और ज्वैलरी सब्यसाची द्वारा डिजाइन किया गया था. सब्यसाची मुखर्जी द्वारा बनाए गए अनुष्का के शादी के लहंगे में चिड़िया और तितलियां बनी हुई हैं.

वहीं अब सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें एक तरफ दीपिका पादुकोण तो दूसरी तरफ दुल्हन बनी अनुष्का शर्मा दिखाई दे रही हैं. इस तस्वीर में अनुष्का ने जो झुमका पहना है, ठीक वैसा ही झुमका दीपिका पादुकोण के कान में भी नजर आ रहा है.

अनुष्का और विराट की शादी पर बारीकी से नजर रखने वालों की जब अनुष्का के झुमके पर नजर गई तो वह हैरान रह गए. दीपिका पादुकोण ने ऐसा ही झुमका रिलाइंस जियो फिल्मफेयर मराठी अवौर्ड्स के इवेंट पर पहना था. वहीं दीपिका की साड़ी भी सब्यसाजी ने ही डिजाइन की थी. दीपिका और अनुष्का की ये कोलाज वाली तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है. इसके चलते सोशल मीडिया के कई यूजर्स इस पर चुटकी लेते दिख रहे हैं. लोगों का कहना है कि अनुष्का ने दीपिका से कहीं उधार में झुमके तो नहीं लिए हैं.

बता दें, अपनी शादी के दिन एक्ट्रेस अनुष्का ने जो लहंगा पहना था उसकी कीमत एक लग्जरी कार से भी ज्यादा है. दोनों की शादी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर आते ही वायरल हो गई थीं. लोगों को अनुष्का का लहंगा और विराट की शेरवानी काफी पसंद आ रही है. शादी के दौरान विराट और अनुष्का स्टनिंग कपल लग रहे थे. दोनों की वेडिंग ड्रेस को इंडस्ट्री के प्रतिष्ठित डिजाइनर सब्यसाची मुखर्जी ने डिजाइन किया था.

अपने पिंक कलर के लंहगा चोली में अनुष्का किसी ड्रीमगर्ल से कम नहीं लग रही थीं. इस लहंगे में सोने और चांदी के धागों से कढ़ाई के अलावा, मोती और बीड्स लगाई गई थीं. एक रिपोर्ट के अनुसार अनुष्का के इस खूबसूरत लंहगे की कीमत 25 से 30 लाख रुपए है. वहीं उनके पूरे लुक की कामत 40 से 45 लाख रुपए है. इतनी रकम में भारत की दस आम शादियां निपट सकती हैं.

घर पर ही बनाएं क्रिसमस केक

ढेर सारे सूखे मेवे, देशी मसाले मिला कर बना क्रिसमस केक स्वाद में तो खास होता ही है, साथ ही इसकी शेल्फ लाइफ भी सामान्य केक की तुलना में अधिक होती है.

सामग्री

मैदा – 250 ग्राम

ग्लेस चेरी – 150 ग्राम

डार्क ब्राउन शूगर – 200 ग्राम

सफेद मक्खन – 200 ग्राम

सूखे मेवे – 250 ग्राम

मार्मलेड – 100 ग्राम

अंडे – 04

ब्रैंडी – 05 बड़े चम्मच (इच्छानुसार)

शक्कर की चाशनी – 02 बड़े चम्मच

दालचीनी पाउडर – 1/2 छोटा चम्मच

वनीला एसेंस – 1/4 छोटा चम्मच

नमक – स्वादानुसार

केक सजाने के लिए

मार्जपेन – 200 ग्राम

बारीक शक्कर – 50 ग्राम (छनी हुई)

ऐपल जैम – 03 बड़े चम्मच

नींबू का रस – 01 बड़ा चम्मच

विधि

क्रिसमस केक बनाने के लिये सबसे पहले मैदा को एक बड़े बाउल में छान लें. फिर उसमें दालचीनी पाउडर, मक्खन व चीनी मिला कर फेंट लें.

इसके बाद चाशनी, मार्मलेड व वनीला एसेंस डालें और तब तक फेटें, जब तक कि मिश्रण फूल न जाए. मिश्रण के फेंटने के बाद उसमें अंडे और आधे मेवे डालें और एक बार पुन: हल्का सा फेंट लें.

अब ओवन को 150 से0 पर गर्म करें. जब तक ओवन गर्म हो रहा है, केक के बर्तन में नीचे की सतह पर व चारों ओर बेकिंग पेपर लगा दें. उसके बाद केक के मिश्रण को बर्तन में डाल दें. अब केक के बर्तन को ओवन में रख दें और 02 घंटे तक बेक करें. (बीच में एक-दो बार केक को निकाल कर देखते भी रहें).

बेक करने के बाद केक को बाहर निकालें और चाकू को उसमें गड़ा कर देखें. अगर चाकू में केक चिपकता है, तो इसका मतलब है कि केक अभी पूरी तरह से बेक नहीं हुआ है. ऐसी दशा में फिर उसे 20 मिनट के लिए बेक कर लें.

अगर केक पूरी तरह से बेक हो गया है, तो उसे खुले में रख दें और ठंडा हो जाने दें. ठंडा होने पर केक में चाकू की सहायता से कुछ छेद करें और उनमें ब्रैंडी भर दें. उसके बाद केक को प्लेट में निकाल लें.

इसके बाद केक पर मेवे लगाकर ऊपर से आइसिंग शुगर छिड़कें. फिर चाकू की सहायता से चारों ओर ऐपल जैम लगाएं. उसके बाद मार्जपेन की कोटिंग करें और ऊपर से नींबू का रस छिड़क दें.

अब आपका क्रिसमस केक बनकर तैयार है. इसे चाकू की सहायता से छोटे-छोटे पीस में काटें और सर्व करें.

22 साल से इस समस्या से जूझ रही हैं रानी मुखर्जी

हिंदी सिनेमा की नामचीन अभिनेत्रियों में से एक रानी मुखर्जी काफी लंबे ब्रेक के बाद एक बार फिर से फिल्म इंडस्ट्री में वापसी कर रही हैं. वो जल्द ही अपनी अगली फिल्म ‘हिचकी’ में दिखने वाली हैं. इस फिल्म में रानी का किरदार स्टैमरिंग करता दिखायी देगा.

दिलचस्प पहलू ये है कि रानी का ये किरदार उनकी असल जिंदगी से जुड़ा है. खबरों की मानें तो रानी मुखर्जी ने अपने एक इंटरव्यू में स्वीकार किया है कि भले ही रानी इस फिल्म में हकलाने वाली लड़की की भूमिका अदा करेंगी, लेकिन यह उनकी असल जिंदगी से जुड़ा है, क्योंकि वे भी 22 साल हकलाने की समस्या से जूझ चुकी हैं.

रानी ने कहा कि एक समय था जब वह अपनी जिंदगी में स्टैमरिंग को लेकर घबराती थीं. लेकिन अब उन्होंने अपने हकलाने वाली समस्या पर अब काबू पा लिया है. यही वजह है कि किसी को भी अब तक इसके बारे में जानकारी नहीं है. यहां तक कि मेरी टीम को भी इस बारे में कई सालों तक कोई जानकारी नहीं थी. वजह यह रही कि मैंने इस पर काफी मेहनत की है.

शूटिंग के दौरान मैं अपनी लाइंस की पूरी जानकारी रखती हैं और इस बात का ख्याल रखती हैं कि कहां पौज लेना है. रानी ने आगे कहा कि मैंने हमेशा पौजिटिव साइड देखने की कोशिश की है इसलिए मुझे लगता है कि अब यह कोई मेरी कोई कमजोरी नहीं है. मैं इन सबसे डील करना अच्छी तरह से सीख चुकी हूं.

आपको बताते चलें कि कुछ वक्त पहले ही रानी मुखर्जी के पिता राम मुखर्जी का देहांत हो गया था, यह खबर उनके लिए बेहद शौकिंग थी. जिससे निकलना भी मुश्किल था मगर अब इस शौक से निकलने के लिए वह बेटी आदिरा का सहारा लेती हैं. रानी कहती हैं, मुझे आदिरा को खुश होते देखकर काफी खुशी मिलती है और अपने पिता को खोने के बाद सिर्फ इसी वजह से मैं अपने डिप्रेशन से बाहर निकल पा रही हूं.

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