दुनिया की सबसे ऊंची इमारत से जुड़ी ये बातें जानते हैं आप

दुनिया भर में एक से बढ़कर एक गगनचुंबी इमारते हैं जो अपनी किसी ना किसी खासियत की वजह से जानी जाती हैं. बुर्ज खलीफा विश्व की सबसे लंबी इमारत है जो दुनिया के सबसे धनी शहरों में से एक दुबई में है. गगनचुंबी इमारत बुर्ज खलीफा की ऊंचाई 829.8 मीटर है. इमारत के निर्माण में छह साल का लम्बा समय लगा और आठ अरब डौलर की राशि खर्च हुई.

इसका निर्माण 21 सितंबर 2004 में शुरू हुआ था और इसका आधिकारिक उद्घाटन चार जनवरी 2010 को हुआ था. इमारत निर्माण में 1,10,000 टन से ज्यादा कंक्रीट, 55,000 टन से ज्यादा स्टील रेबर लगा है. बुर्ज खलीफा को देखते ही आभास होता है कि यह इमारत शीशे और स्टील से बनी है. इमारत का बाहरी आवरण 26,000 ग्लास पैनलों से बनी है.

शीशे के आवरण के लिए चीन से खासतौर पर 300 आवरण विशेषज्ञों को बुलाया गया था. इमारत के निर्माण में लगभग 12,000 मजदूरों ने प्रतिदिन काम किया. ऊंचाई के कारण इमारत के शीर्ष तलों पर तापमान भूतलों की अपेक्षा 15 डिग्री सेल्सियस कम रहता है.

इसके साथ सबसे ऊंची फ्रीस्टैंडिंग इमारत, सबसे ऊंची मस्जिद, सबसे ऊंचे स्वीमिंग पूल, सबसे तेज और लंबी लिफ्ट, दूसरे सबसे ऊंचे अवलोकन डेक और सबसे ऊंचे रेस्तरां का खिताब भी बुर्ज खलीफा के नाम है. 163 तलों वाली यह इमारत दुनिया के सबसे ज्यादा तलों वाली इमारत भी है.

इस इमारत की लिफ्ट 65 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है और इमारत के 124वें तल पर स्थित अवलोकन डेक ‘एट द टौप’ तक मात्र दो मिनट में पहुंच जाती है. इस अवलोकन डेक पर टेलीस्कोप से पर्यटक दुबई का नजारा देख सकते हैं. यह बात भी दिलचस्प है कि निर्माण के समय इस इमारत का नाम बुर्ज दुबई था लेकिन इमारत के निर्माण में वित्तीय सहायता देने वाले संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति शेख खलीफा बिन जायेद अल नाहयान के सम्मान में उद्घाटन के समय इसका नाम बुर्ज खलीफा कर दिया गया.

इमारत के 76वें तल पर दुनिया का सबसे ऊंचा स्वीमिंग पूल और 158वें तल पर दुनिया की सबसे ऊंची मस्जिद और 144वें तल पर दुनिया का सबसे ऊंचा नाइटक्लब है. वेबसाइट ‘बुर्जखलीफा डौट एई’ के मुताबिक, टौवर के लिए जल आपूर्ति विभाग दिन भर में औसतन 9,46,000 लीटर पानी की आपूर्ति करता है.

यह इमारत विवादों के घेरे में भी रही है. मानवाधिकार संगठनों ने आरोप लगाया था कि इमारत के निर्माण में अधिकतर मजदूर दक्षिण एशिया के थे और उन्हें मात्र पांच डौलर दिहाड़ी मजदूरी दी गई थी. इसके अलावा इसे ठंडा रखने के लिए एसी में खर्च होने वाली बिजली पर भी सवाल उठाए गए थे.

बालों को दें कुदरती चमक

दुनिया में हर किसी को अपने बालों से प्यार से होता है. आज के इस बदलते दौर में हर कोई फैशनेबल दिखने के लिए बालों को लेकर रोज नए-नए प्रयोग कर रहा है. नतीजा असमय बालों का सफेद होना, झड़ना-टूटना और बालों का कमजोर होना जैसी शिकायतें. फैशन, प्रदूषण और तनाव ने हसीन जुल्फों को दिन में दिखने वाले सपने जैसा बना दिया है. मगर कुछ नेचुरल हेयर केयर टिप्स अपनाकर आप अपने इस सपने को हकीकत में तब्दील कर सकती हैं. आइये आज हम आपको बताते हैं ऐसे ही कुछ खास टिप्स जो आपके बालों को मजबूत बनाने के साथ कुदरती चमक भी देंगे.

ऐसे करें बालों की देखभाल

बालों के स्कैल्प साफ रखने के लिए हफ्ते में 2 से 3 बार माइल्ड शैंपू करें.

हफ्ते में एक दिन 15 मिनट तक बालों की जड़ों की मसाज तेल से करें और हमेशा हर्बल हेयर प्रोडक्ट का ही इस्तेमाल करें.

रूखे और बेजान बालों में सीरम का प्रयोग करें इससे बालों में शाइनिंग आएगी.

बालों की मसाज करें

नारियल तेल

बालों की मजबूती के लिए नारियल तेल काफी फायदेमंद है रोजाना अगर हम नारियल तेल से 15 मिनट तक बालों की मसाज करें तो बालों का झड़ना बंद हो जाएगा और आपके बाल सिल्की भी होंगे.

शहद और अंडे की जर्दी

शहद से बालों की जड़ों को पोषण मिलता है अगर शहद के साथ अंडे की जर्दी मिला दे तो इसका असर दोगुना हो जाता है बालों की स्कैल्प को इससे जरुरी प्रोटीन मिलती है.

भृंगराज के तेल

रोजाना भृंगराज के तेल से बालों की मालिश करने से बाल काले और घने होते हैं. इससे बालों का झड़ना बंद तो होता है साथ ही इसे लगाने से बालों की रुसी भी कम हो जाती है. यह सर को ठंडक भी देता है.

बादाम तेल

बादाम दिमाग को तंदुरुस्त रखने के साथ ही उसे जरुरी पोषण भी देता है बादाम में विटामिन ई पाया जाता है, जिससे बालों को मजबूती मिलती है. हफ्ते में एक दिन बादाम तेल से बालों की मालिश जरुर करनी चाहिए इसके इस्तेमाल से बालों का झड़ना भी कम होता है.

बालों को मौइश्चराइज करें

बालों के माइश्चराइजेशन के लिए बादाम, कैस्टर, जैतून, नारियल और लैवेंडर इन पांच प्रकार के तेलों की बराबर मात्रा लेकर इसे मिक्स करें अब इससे बालों की मसाज करें और फिर इसे चार घंटे तक छोड़ दें. इसे हफ्ते में दो दिन इस्तमाल करें. इन पांच प्रकार के तेलों के मालिश से न कि केवल बालों में शाइनिंग आएगी बल्कि इससे बालों की जड़ों को मजबूती भी मिलेगी.

क्या नहीं करें

बालों की सुंदरता के लिए बाजार में बिकने वाले हेयर कलर, हेयर डाई, जेल के ज्यादा इस्तेमाल से बचें.

संभव हो तो हेयर कलर से परहेज करें और हेयर जेल व हेयर स्प्रे का भी ज्यादा इस्तेमाल न करें.

गीले बालों को बांधें नहीं इससे स्किन इंफेक्शन का खतरा रहता है.

बालों की सुंदरता के लिए बाजार में बिकने वाले हेयर कलर, हेयर डाई, जेल के ज्यादा इस्तेमाल से बचें.

राष्ट्रीयकरण गधे का

आज प्रजातांत्रिक जंगल की राजधानी दुर्गति का मैदान छोटेबड़े सभी तरह के जानवरों से खचाखच भरा हुआ है. अभी भी दूरदूर से सभ्य और सुसंस्कृत जंगली जानवर बसों व ट्रकों में ठुंसे हुए चले आ रहे हैं और जाहिल तथा शहरी आदमियों की तरह बाकायदा धक्कामुक्की और गालीगलौज जारी है. आज की आमसभा की विशेषता है ‘शेर’ जो जंगल का प्रधानमंत्री होने के साथसाथ ‘राष्ट्रीय पशु’ भी है.

‘एक व्यक्ति, एक पद’ के सिद्धांत पर अमल करते हुए ‘शेर’ राष्ट्रीय पशु का ताज स्वयं छोड़ कर गधों को सौंपने वाला है. शुरूशुरू में तानाशाह शेर जंगल में प्रजातांत्रिक प्रणाली के नाम से हिचकिचाया था मगर जब विशेषज्ञों ने उसे समझाया कि इस से फायदे ही फायदे हैं, फर्क सिर्फ इतना पड़ेगा कि लोग उसे ‘राजा’ के बजाय प्रधानमंत्री कहेंगे बाकी सबकुछ यथावत रहेगा, तब शेर मान गया और वह मजे में था. जब जनता भूख से रोती, शेर उस के हाथ में रोटी के बजाय लोकतंत्र का झुनझुना पकड़ा देता. प्रजा बेचारी बहल जाती, आराम से सो जाती और शेर का काम बन जाता.

शेर के न आने की वजह से आज की सभा शुरू नहीं हो पा रही थी जैसा कि हमेशा होता है. ऐसे समय में मंत्री देर से ही आते हैं. फिर चमचे माइक पर आ कर उन का आभार मानते हैं कि वे अपना कीमती समय निकाल कर पधारे. खैर, शेर आया और आते ही उस ने माइक संभाल लिया. पहले एक घंटे के भाषण के दौरान उस ने जनता को बताया कि वह कितना ‘महान’ है, अगले एक घंटे तक यह समझाया कि असल में वह इतना महान क्यों है, फिर एक घंटे तक सरकार की पिछले 40 साल की उपलब्धियां गिनाईं और उन्हें डराया कि उन की सरकार का न होना जंगल के लिए कितना खतरनाक था.

अंत में आज के मुख्य विषय पर आते हुए उस ने कहा, ‘‘भाइयो और बहनो, मुझे बड़ा दुख है कि गधों की सीधीसादी व मेहनती कौम, जो हमेशा से दलित और पिछड़ी रही है, का न केवल सदियों से शोषण किया गया है बल्कि ‘गधा’ शब्द सदैव गाली के रूप में प्रयुक्त होता है,’’  शेर ने रुक कर जेब से रूमाल निकाला और अपनी आंखों से उन आंसुओं को पोंछा जो थे ही नहीं, फिर आगे बढ़ा, ‘‘मगर अब ऐसा नहीं होगा, सरकार ने इस के लिए आवश्यक कदम उठाए हैं, जिन में गधों को सभी क्षेत्रों में आरक्षण व उच्च पदों पर नौकरियां दी जाएंगी. आइंदा उन्हें ‘गर्दभराज’ जैसे सम्मानजनक शब्दों से संबोधित किया जाएगा तथा गधे को गधा कहना कानूनन अपराध होगा. इस के लिए जगहजगह ‘गधा कल्याण थाने’ बनाए जाएंगे जहां पुलिस वाले भी ‘गधे’ ही होंगे. इस के अलावा आज के इस मंच पर गधों को ‘राष्ट्रीय पशु’ के खिताब से सुशोभित भी किया जाएगा.’’

शेर की घोषणाएं सुन कर सभी ने जोरदार तालियां बजाईं. इस के बाद गधों के प्रतिनिधि को आमंत्रित किया गया ताकि वे मंच पर आ कर दो- सवा दो शब्द कहें और ‘राष्ट्रीय पशु’ का सम्मान स्वीकार करें.  भीड़ में से एक शांत और सौम्य गधा, जो पिछले दिनों ही शहर से हिंदी माध्यम से ‘सत्य की सदा विजय होती है’ पढ़ कर लौटा था और नादानी में बेचारा इसे सच समझ बैठा था, मंच पर आया. उस ने माइक हाथ में ले कर गंभीर वाणी में कहना शुरू किया, ‘‘प्यारे दोस्तो, ‘भाइयो’ कहने से आप को बुरा लग सकता है, जब अगला चुनाव नजदीक हो तो जंगल की सरकार पिछड़े वर्गों के लिए चिंतित हो जाती है और गाहेबगाहे ऐसे कार्यक्रमों की घोषणा करती रहती है जिस से कि उन की उन्नति होने का भ्रम पैदा होता रहे.

‘‘अभी माननीय प्रधानमंत्रीजी ने अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाईं, जब सरकार पिछले 40 सालों से मुल्क की तरक्की के लिए दिनरात जुटी है तब तो देश का यह हाल है कि आम जनता को पीने का पानी नसीब नहीं है, अगर सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी होती तो इस देश का क्या हाल होता, यह सोच कर ही मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं.’’

गधे की स्पष्ट और व्यंग्यभरी जबान सुन कर सब को सांप सूंघ गया. शेर की भृकुटि एक पल के लिए तनी फिर वह सामान्य दिखाई देने लगा. उपहास उड़ाने वालों के चेहरों पर अब आश्चर्य के भाव थे. उन्हें गधे से ऐसी उम्मीद नहीं थी. गधा आगे बढ़ा, ‘‘‘राष्ट्रीय पशु’ होने की उपाधि लेने से पहले मैं चाहूंगा कि हम एक दृष्टि उन चीजों पर डाल लें जो ‘राष्ट्रीय’ हैं.  ‘‘मोर हमारा ‘राष्ट्रीय पक्षी’ है, उस का हाल यह है कि मोर तो कहीं दिखते नहीं चारों तरफ कौवे ही कौवे हैं. जिसे बोलने में हमें सब से ज्यादा शर्म आती है. वह ‘राष्ट्रभाषा’ है जिस का गान न हो वह ‘राष्ट्रगीत’ है. जिस का मान न हो वह ‘राष्ट्रध्वज’ है. जो बुजुर्ग महोदय सब से उपेक्षित व अपमानित से किसी कोने में खड़े अपनी और देश की दुर्दशा पर आंसू बहा रहे होंगे वे जरूर ‘राष्ट्रपिता’ होंगे. जो संपत्ति लुटीपिटी, खाईअधखाई, सब के बाप की होगी वह ‘राष्ट्रीय संपत्ति’ होगी. ‘हौकी’ हमारा ‘राष्ट्रीय खेल’ है, क्या मैं उस के बारे में भी कुछ कहूं? सारांश कि जिस के बुरे दिन आते हैं उस का ‘राष्ट्रीयकरण’ हो जाता है.’’

इतना कह कर गधे ने एक लंबी सांस खींची. सन्नाटा ऐसे पसरा हुआ था कि हर कोई अपने बगल वाले के मन की आवाज सुन सकता था. अब लोगों के चेहरों पर गधे के लिए साफसाफ प्रशंसा के भाव थे.  गधे ने आगे कहा, ‘‘मैं मानता हूं कि हम गधे हैं मगर इतने भी ‘गधे’ नहीं हैं जितना कि प्रधानमंत्रीजी हमें समझ रहे हैं. आज ‘राष्ट्रीय पशु’ शेर की नस्ल खत्म होने को है जबकि देश में गधों की संख्या सर्वाधिक है और इन्हीं ‘गधे मतदाताओं’ की वजह से कहें या मतदाताओं के गधेपन की वजह से, पिछले 40 सालों से एक ही पार्टी चुनाव जीतती आ रही है.

‘‘अब आप यह आसानी से समझ सकते हैं कि सरकार हमारी फिक्र में क्यों दुबली हो रही है. अंत में मैं यही कहूंगा कि अपनी कौम की सुरक्षा को मद्देनजर रख कर मैं ‘राष्ट्रीय पशु’ की उपाधि को विनम्रतापूर्वक अस्वीकार करते हुए प्रधानमंत्रीजी से प्रार्थना करूंगा कि बजाय आरक्षण के वे हमारी कौम की समुचित शिक्षा आदि का प्रबंध करें क्योंकि गधे को बग्घी में जोत देने से वह घोड़ा नहीं हो जाएगा और बग्घी का तो जो अंजाम होगा सो होगा ही. इतना कह कर मैं अपना स्थान ग्रहण करता हूं, धन्यवाद.’’

भाषण समाप्त होते ही इतनी जोर से तालियां बजीं कि पूरा पंडाल हिल गया. पूरे भाषण के दौरान शेर की आंखें सर्द थीं मगर अब चेहरे पर बराबर मुसकराहट बनी रही, बल्कि तालियां भी सब से पहले उसी ने बजाईं, आखिर वह 40 सालों से राजनीति में था.  अगले कुछ दिनों तक जंगल में चर्चा का विषय ‘गधा’ ही था. लोग गधे से मिलना चाहते थे, गधे का आटोग्राफ लेना चाहते थे, देखना चाहते थे, उसे सुनना चाहते थे पर अगले दिन उन्होंने गधे को नहीं, उस के समाचार को सुना और यह सुन कर ‘स्तब्ध’ रह गए कि कुछ हमलावरों ने गधे पर हमला कर एक ‘धारदार’ हथियार से उस की ‘धारदार’ जबान काट दी. गधा गंभीर अवस्था में अस्पताल में था, हमलावर फरार थे. पुलिस बहुत मेहनत करने के बाद यह ज्ञात करने में सफल रही कि वे तत्त्व ‘अज्ञात’ थे.

खबर सुन कर शेर को अत्यधिक दुख होना स्वाभाविक था. उस रात शेर स्वयं विशेष रूप से टैलीविजन पर आया और गधे को होनहार और प्रतिभाशाली बताते हुए उस के और उस के परिवारवालों के प्रति जो संवेदना प्रकट की वह ‘गहरी’ थी और गुंडा तत्त्वों की जो भर्त्सना की वह ‘कड़ी’ थी और जिस जांच का आश्वासन दिया वह ‘निष्पक्ष’ थी और दोषी लोगों के खिलाफ की जाने वाली कार्यवाही ‘सख्त’ थी और इस संकट की घड़ी में जनता को धैर्य रखने व आने वाले चुनाव में उस की ही सरकार को वोट देने की जो अपील की वह ‘विनम्र’ थी और..

हाई लिविंग लो थिंकिंग का जमाना

आज का यूथ लग्जरी जीवन जीने में विश्वास रखता है. उसे लगता है कि अगर पैसा है तो हर सुखसुविधा खरीदी जा सकती है, खुद की फ्रैंड्स में पैठ जमाई जा सकती है, समाज में अपनी अलग पहचान बनाई जा सकती है, जब चाहे पैसे फैंक कर कोई भी काम निकलवाया जा सकता है. भले ही उन्हें पैसे कमाने व लग्जरी जीवन जीने के चक्कर में अपनों से दूर होना पड़े, वे इस से भी पीछे नहीं रहते, जबकि असल में उन की ऐसी सोच सही नहीं है. क्योंकि आज भले ही पैसों की इंपौर्टैंस कहीं अधिक बढ़ गई है, लेकिन यह भी सचाई है कि जहां अपने काम आ सकते हैं, वहां पैसा नहीं. इसलिए पैसों की अंधीदौड़ में इस कदर न बह जाएं कि जीवन में कभी अपनों का साथ ही हासिल न हो.

क्यों जीते हैं लग्जरी लाइफ

देखादेखी बढ़ा लग्जरी लाइफ का चलन

आज युवा अधिकांश चीजें देखादेखी ही खरीदते हैं. उन्हें लगता है कि उन के फ्रैंड के पास महंगा मोबाइल फोन है जिस के फीचर्स उन के फोन से कही अधिक हैं तो वे भी बिना सोचेसमझे वैसा ही फोन और कई बार तो उस से भी महंगा फोन खरीद लेते हैं, जबकि वे ऐसा करते वक्त एक बार भी यह नहीं सोचते कि इस की उन्हें जरूरत है भी या नहीं. उन का देखादेखी इस तरह चीजें खरीदना सही नहीं है, क्योंकि वे अपनी ऐसी सोच के कारण भविष्य के लिए कुछ जमा नहीं कर पाते, जिस से भविष्य में पछतावे के सिवा उन के पास कुछ नहीं रहता.

जल्दी पैसा कमाने की चाह

आज वे जल्दी ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए स्टैप बाई स्टैप चलना नहीं, बल्कि शौर्टकट रास्ता अपनाना पसंद करते हैं, भले ही ऐसा रास्ता कांटों भरा हो. उन्हें तो हर हाल में जल्दी पैसा कमाना होता है. इस के लिए वे गलत काम करने में भी पीछे नहीं रहते. उन की इस के पीछे ऐसी सोच होती है कि चाहे रास्ता कैसा भी हो पैसा तो हाथ में आ ही रहा है और इस से उन की सारी हाई डिमांड्स भी पूरी हो रही हैं.

खुद को रिच दिखाने के लिए

भले ही अंदर से कितने भी खोखले क्यों न हों, लेकिन सब के सामने यह जताने की कोशिश करना कि हम बहुत रिच हैं, इस के लिए वे महंगे ब्रैंडेड कपड़े, घड़ी, परफ्यूम वगैरा खरीदने पर हजारों रुपए पानी की तरह बहाते हैं. भले ही चीजें खरीदने के लिए उन्हें डांट ही क्यों न खानी पड़े, लेकिन वे इस में भी पीछे नहीं रहते, क्योंकि वे नहीं चाहते कि उन का स्टेटस डाउन हो.

गर्लफ्रैंड पर इंप्रैशन जमाने के लिए

चाहे खुद की पौकेट में कुछ हो या न हो, लेकिन गर्लफ्रैंड पर तो हर सूरत में इंप्रैशन झाड़ना ही है, जिस के लिए वे उसे लंच या डिनर करवाने के लिए अपनी सारी पौकेट मनी तक उड़ा देते हैं और उसे महंगे गिफ्ट्स देने के लिए वे पापा से उधार मांगने में भी पीछे नहीं रहते, क्योंकि उन का पूरा फोकस सिर्फ गर्लफ्रैंड के सामने खुद को रिच शो करना जो होता है.

खुद की कमी छिपाने के लिए

पता है कि वे प्रैजैंटटेबल नहीं हैं, उन में ढेर सारी कमियां हैं और उन्हीं को छिपाने के लिए वे हाई लिविंग स्टाइल में जीना पसंद करते हैं ताकि उन की कमियों पर परदा पड़ सके. इस चक्कर में वे यह नहीं सोचते कि अगर आज बिना सोचेसमझे इस कदर पैसा बरबाद करेंगे तो उन का कल सुरक्षित नहीं हो पाएगा.

ज्यादा कमाई भी रीजन

कम उम्र में ज्यादा इनकम होने के कारण वे लग्जरी जीवन जीने में विश्वास करने लगे हैं, जिस से अब उन्हें कुछ भी खरीदने से पहले सोचने की जरूरत नहीं पड़ती.

बनें टैक्नोस्मार्ट मौम

उत्सव की रौनक हो या रिश्तेदारों के साथ खुशनुमा वक्त बिताने का मौका, बच्चों का होमवर्क कराना हो या प्यारी मौम का फर्ज निभाना, नई तकनीक का यह नया दौर हर पल को खास बनाता है. एक तरफ जहां स्मार्ट फोन के जरीए आप खूबसूरत तसवीरें खींच कर कभी भी, कहीं भी सोशल साइट्स पर अपलोड कर सकती हैं, तो वहीं प्रिंटर्स की मदद से सजावट के लिए रंगबिरंगी कलरफुल डिजाइनों की कौपियां निकाल कर अपनी कला को अंजाम दे सकती हैं.

गृहिणियों के लिए कितनी कारगर

औफिस हो या घर, तकनीक हर क्षेत्र में महिलाओं के लिए सुविधाएं ले कर आई है. बस जरूरत है इसे समझने और प्रयोग में लाने की. टैक्नोलौजी के मामले में देखा जाए तो यह समय इस का सुनहरा समय ही कहा जाएगा. ऐनर्जी सप्लायर ऐंड पावर द्वारा कुछ समय पहले यूके की 577 वयस्क महिलाओं पर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक महिलाएं औसतन 1 सप्ताह में 18.2 घंटे घर के कामों में बिताती पाई गईं और इन कामों में क्लीनिंग, वैक्यूमिंग, शौपिंग और कुकिंग वगैरह शामिल है जबकि करीब 5 दशक पहले यही प्रतिशत 44 घंटे प्रति सप्ताह था.

घरेलू कामों में लगने वाले समय में लगातार कमी की मुख्य वजह नई तकनीकों का प्रयोग है. एक समय था जब महिलाओं का सारा समय खाना बनाने, बच्चे पालने और घरेलू कामों को निबटाने में बीतता था. मगर आज वक्त बदल चुका है. नई तकनीक की मदद से घरेलू महिलाएं भी फटाफट काम खत्म कर अपने बचे समय का सदुपयोग कर रही हैं. आज खाना बनाने के लिए इलैक्ट्रौनिक और दूसरे कई तरह के गैजेट्स आ गए हैं, जिन से वक्त की बचत की जा सकती है. कुकर, रोटी मेकर, डिशवाशर, टचस्क्रीन इंडक्शन, ओवन जैसे कितने ही उत्पाद हैं, जिन्होंने जहां किचन का काम आसान कर दिया है, वहीं फुली औटोमैटिक वाशिंग मशीन, वैक्यूम क्लीनर जैसे उत्पाद घर के काम फटाफट करने में मदद करते हैं. इन के जरीए अधिक सरलता से बेहतर काम हो जाता है. मगर इन सब को औपरेट करना और ढंग से सैट करना आना चाहिए.

तकनीकी ज्ञान जरूरी

दिल्ली की मनीषा अग्रवाल, जो हाउसवाइफ हैं, कहती हैं, ‘‘मैं हर तरह का तकनीकी ज्ञान रखती हूं. कोई भी नई तकनीक आती है तो उसे जाननेसमझने का प्रयास करती हूं. परिणामस्वरूप हाउसवाइफ होने के बावजूद मैं घरबाहर के सभी ऊपरी काम निबटा लेती हूं. मसलन, बैंक के सारे काम जैसे एफडी, डीडी आदि बनवाना, अपडेट कराना, क्रैडिट/डैबिट कार्ड्स का प्रयोग कर ट्रांजैक्शन वगैरह करना, औनलाइन टिकट बुक कराना, आधार से पैन कार्ड लिंक करना, एलआईसी प्रीमियम भरना वगैरह. हर जगह काम कंप्यूटरीकृत और औनलाइन होने लगे हैं. मैं उन्हें आसानी से कर लेती हूं.

‘‘दरअसल, हर महिला के लिए तकनीकी ज्ञान होना अपेक्षित है. उसे कंप्यूटर औपरेट करना आना चाहिए. गैजेट्स के तकनीकी पहलुओं की समझ होनी चाहिए. तभी वह स्मार्ट वूमन के साथ इंटैलिजैंट मौम बन सकती है.

‘‘बच्चों का होमवर्क मुझे ही करवाना होता है. उन्हें इस तरह के प्रोजैक्ट्स मिलते हैं, जिन्हें बिना कंप्यूटर और प्रिंटर के करना मुमकिन नहीं. कंप्यूटर से सामग्री निकालनी होती है. एमएस पावर पौइंट, एमएस पेंट, एमएस वर्ल्ड आदि पर काम करना पड़ता है. फिर प्रोजैक्ट तैयार कर प्रिंटर से कलर प्रिंटआउट निकालने होते हैं. इन सब के लिए कंप्यूटर और उस के सौफ्टवेयर से परिचित होना जरूरी है.

‘‘मैं ने तो यह जाना है कि यदि महिला तकनीकी रूप से समृद्घ है तो वह न सिर्फ पति और बच्चों की मदद कर सकती है वरन अपने परिचितों और रिश्तेदारों को भी सहयोग दे सकती है.’’

आत्मनिर्भर हो रही हैं महिलाएं

आज तकनीक ने हमें इतनी सुविधाएं दे दी हैं कि एक सिंगल टच से हम मीलों दूर शख्स के साथ भी वार्त्तालाप कर सकते हैं. स्मार्टफोन हाथ में हो तो जब चाहें कितनी भी दूर स्थित किसी भी परिचित या ऐक्सपर्ट के साथ अपनी परेशानियां शेयर कर समाधान पा सकती हैं. स्क्रीनशौट और व्हाट्सऐप के जरीए तसवीरें भेज कर हर तरह की इनफौरमेशन शेयर की जा सकती है. इसी का नतीजा है कि महिलाएं घरपरिवार, बच्चों या औफिस से जुड़े किसी भी मसले को स्वयं हल करने में समर्थ बन सकी हैं.

कहीं भी जाना हुआ आसान

यदि महिला का अकेले या बच्चों के साथ कहीं जाना जरूरी हो जाए तो भी टैंशन की कोई बात नहीं. औनलाइन आसानी से टिकट बुक करा कर वह प्रोग्राम तय कर सकती है. आजकल ऐसे ऐप्स आ गए हैं, जिन के जरीए 5-10 मिनट में कैब घर पर बुलाई जा सकती है. गूगल मैप के जरीए सहजता से दुनिया के किसी भी कोने में पहुंचा जा सकता है. बिना किसी तरह की असुरक्षा के एहसास के महिलाएं घूम सकती हैं, क्योंकि तकनीक ने स्मार्टफोन में कई तरह के ऐसे ऐप्स डाल दिए हैं जो उन की सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करते हैं.

नए विकल्पों की बढ़ती संभावना

महिलाएं स्मार्टफोन से फेसबुक वगैरह के जरीए अपने स्कूलकालेज के दोस्तों से जुड़ सकती हैं तब उन्हें कैरियर में आगे बढ़ने के नएनए विकल्पों की जानकारी मिल सकती है. इस से उन का दिमाग खुलता है. आजकल महिलाएं घर से फ्रीलांसिंग भी करने लगी हैं. वैबसाइट्स बना रही हैं. बिजनैस कर रही हैं. इन सब बातों का सकारात्मक पक्ष यह है कि महिलाएं स्मार्ट और ऐक्टिव बनने के साथसाथ आत्मनिर्भर भी बन रही हैं.

जिम्मेदारियों का बेहतर निर्वहन

लेखिका और समाज सेविका कुसुम अंसल कहती हैं, ‘‘दुनिया भले ही 21वीं सदी में पदार्पण कर चुकी हो पर आज भी भारत में ज्यादातर महिलाएं परिवार से सबंधित घरेलू कार्यों और विभिन्न जिम्मेदारियों से जुड़ी हुई हैं. पुरुषों की तुलना में वे कम तर्कसंगत और कुशल पाई जाती हैं. लेकिन अब तकनीकी विकास के पसरते कदमों ने इन रूढिवादी बाधाओं को पार करना शुरू कर दिया है. आज की महिलाएं स्मार्टफोन, लैपटौप और कंप्यूटर वगैरह को आसानी से ऐक्सैस कर सकती हैं. वे यूट्यूब सरीखे सोशल मीडिया प्लेटफौर्मों पर उपलब्ध विभिन्न ट्यूटोरियल्स से सीख कर अपनी योग्यता बढ़ा सकती हैं ताकि अपने हितों व जिम्मेदारियों का बेहतर निर्वहन कर सकें.’’

ऐसा नहीं है कि महिलाओं के लिए तकनीकी ज्ञान में अपडेट रहना कठिन है या उन्हें इस की समझ नहीं. वे चाहें तो खुद को इस क्षेत्र में पुरुषों से कहीं बेहतर साबित कर सकती हैं. हाल ही में रिट्रेवो द्वारा किए गए गैजेटोलौजी टीएम स्टडी के मुताबिक महिलाएं कंज्यूमर इलैक्ट्रोनिक प्रोडक्ट्स के बारे में पुरुषों के मुकाबले कहीं ज्यादा जानती हैं जबकि पुरुषों को भ्रम रहता है कि उन्हें अधिक जानकारी है. स्त्रियों को समझना होगा कि अपने परिवार व बच्चों को हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने और सफल बनाने के लिए जरूरी है कि वे स्वयं भी स्मार्ट बनें. टैक्नोसेवी वूमन बन कर उन का मार्गदर्शन करें.         

अगर चाहती हैं सुंदर मुस्कान, तो ऐसे रखे दांतों का खयाल

हर चेहरे पर फबती है एक सुंदर सी मुस्कान और मुस्कान को सुंदर बनाते हैं आपके स्वस्थ दांत. अगर दांत पीले होंगे, उनमें कीड़े लगे होंगे या फिर खून जमा होगा तो आपकी मुस्कान को नजर लग सकती है अस्वस्थ दांतों की. इतना ही नहीं, दांतों की बीमारियों की वजह से पेट से जुड़ी कई समस्याएं भी जन्म ले सकती हैं.

अक्सर दांत में दर्द होने पर हम सोचते हैं कि कुछ देर में ठीक हो जाएगा. दांत पर लौंग रखते हैं, लौंग का तेल लगा लेते हैं या फिर किसी दवा से दर्द ठीक हो जाता है. इसके बाद हम फिर शुरू हो जाते हैं दांतों के प्रति लापरवाही बरतने में. हाल ही में हुए एक अध्ययन से यह पता चला है कि भारत में दांतों की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता है. लगभग 95 फीसदी भारतीयों में मसूड़ों की बीमारी है, 50 फीसदी लोग टूथब्रश का प्रयोग नहीं करते और 15 साल से कम उम्र के 70 फीसदी बच्चों के दांत खराब हो चुके हैं.

दांतों की सेंस्टिविटी एक और बड़ी समस्या है, क्योंकि इस समस्या वाले मुश्किल से चार फीसदी लोग ही दंत चिकित्सक के पास परामर्श के लिए जाते हैं. लेकिन यह बहुत जरूरी है कि आप अपने दांतों का खास ख्याल रखें. नियमित रूप से दांतों का चेकअप जरूरी है. इससे आपके दांत तो स्वस्थ रहेंगे साथ ही मुंह से जुड़ी कोई समस्या होने पर शुरुआती अवस्था में ही पता चल जाएगा.

दांतो को खयाल कैसे रखे

आप दिन में जितनी बार खाना खाते हैं उतनी ही बार दांतों को साफ करना आपके लिए जरूरी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप खाना खाने के तुरंत बाद ब्रश लेकर दांतों को साफ करना शुरू कर दें. खाने से बने एसिड दांतों के एनेमल को मुलायम कर देते हैं. इसलिए खाने के कम से कम एक घंटे बाद ही ब्रश करें.

हममे से ज्यादातर लोगों को यह पता ही नहीं कि दांतों को ब्रश करने का सही तरीका क्या है. हम बस ब्रश पर पेस्ट लगा कर दांतों को रगड़ देते हैं और सोचते हैं कि दांत साफ हो गए. कुछ लोग तो बस एक ही राउंड में कुल्ला कर लेते हैं. जबकि आपको कम से कम दो मिनट तक ब्रश करना चाहिए और दिन में दो बार करना चाहिए.

अपने टूथब्रश को अक्सर बदलते रहें और नया टूथब्रश इस्तेमाल करें. ज्यादा जोर लगाकर ब्रश न करें, ऐसा करने से दांत और मसूड़े जख्मी हो सकते हैं. जरूरत है कि हम बच्चों को सही तरीके से ब्रश करने की आदत डालें ताकी वह ताउम्र सही तरीके से ही ब्रश करें.

अगर आप धूम्रपान करती हैं, तो आज ही इसे बंद करें क्योंकि धूम्रपान के बाद काफी बैक्टीरिया मुंह में रह जाते हैं और ये दांतों व मसूड़ों का संक्रमण फैलाने का काम करते हैं. इसलिए दांतों को स्वस्थ रखने के लिए धूम्रपान की आदत को छोड़ने की जरूरत है.

विटामिन सी और कैल्शियम युक्त उचित स्वास्थ्यपरक आहार के साथ मौसमी खाद्य पदार्थों और सब्जियों का सेवन जरूरी है. मानसून में सेब, नाशपाती, स्ट्राबेरी, दही और ओट का सेवन लाभकारी होता है.

मिठास का एहसास, केसरी जलेबी

सामग्री

250 ग्राम मैदा

थोड़ा सा चावल का आटा

1/4 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर

10 ग्राम दही

120 एमएल गरम पानी

थोड़ा सा औरेंज कलर

1/2 छोटा चम्मच केसर

200 ग्राम चीनी

70 एमएल पानी

1/2 छोटा चम्मच इलायची पाउडर

तलने के लिए पर्याप्त घी.

विधि

केसर को गरम पानी में मिला दें. अब मैदा, चावल का आटा, औरेंज कलर, केसर वाला पानी, बेकिंग पाउडर व दही एकसाथ मिला कर बैटर तैयार करें.

बैटर को अच्छी तरह फेंट कर 2-3 घंटों के लिए छोड़ दें. चाशनी तैयार करने के लिए पानी में इलायची पाउडर, चीनी और थोड़ा सा केसर मिला कर उबालें.

जलेबी के बैटर को फिर से फेंट कर मसलिन कलोथ में भरें. पैन में घी गरम कर के जलेबियां सुनहरी होने तक तलें. निकाल कर चाशनी में डिप कर के परोसें.

– व्यंजन सहयोग: रुचिता कपूर जुनेजा

पुरानी और बेकार पड़ी चीजों से सजाएं घर

क्या घर सजाने के लिए हर बार मोटी रकम खर्च करना जरूरी है? अगर हम आपसे कहें नहीं तो शायद आपको यकीन न हो लेकिन अगर आप चाहें तो अपने घर के पुराने और बेकार सामान से भी घर को नया लुक दे सकती हैं.

घर में प्लास्टिक की बोतलों से लेकर मैगजीन तक का सामान किसी न किसी काम में दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है. बढ़ती महंगाई में हर बार कुछ नया खरीद पाना संभव नहीं है. ऐसे में ये उपाय आपके लिए बहुत कारगर साबित हो सकते हैं.

इसके लिए सबसे पहले घर में अच्‍छी तरह नजर दौड़ाएं ताकि आपको ये पता चल जाए कि आपके घर में ऐसी कौन-कौन सी चीजें हैं जिनका इस्तेमाल आप कर सकती हैं.

पुरानी कांच की बोतलें

पुरानी कांच की बोतलों को हम अक्सर फेंक देते हैं. पर आप चाहें तो इनका इस्तेमाल घर सजाने के लिए कर सकते हैं. पुराने पड़े ऊन और फेवीकोल की सहायता से आप इन बोतलों को नया रूप दे सकती हैं और इनका इस्‍तेमाल फ्लावर पौट की तरह कर सकती हैं.

पुराने बैग

पुराने हो चुके बैग फेंके नहीं बल्कि इन्‍हें नया लुक देकर अपनी मनपसंद फोटो लगाकर दीवार पर सजाएं. आप चाहें तो इसे डेकोरेट करने के लिए आर्टिफिशि‍यल फूलों का इस्‍तेमाल भी कर सकती हैं. आप चाहें तो ढेर सारे बैग लेकर इनकी मदद से वर्टिकल गार्डन भी तैयार कर सकती हैं.

संतरे के छिलके

आप संतरे के छिलके को मोमबत्ती स्टैंड की तरह प्रयोग कर सकती है. थोड़ा सा संतरा ऊपर से काट ले और अंदर से सारा गुदा निकल ले. इसे डिजाइन से काट कर आप इसमें मोमबत्ती रख सकती है.

पुराने टायर

गाड़ि‍यों के पुराने टायर जब भी चेंज कराएं तो उन्हें कहीं फेंकने के बजाय अपने साथ घर लेते आएं. इसका इस्तेमाल आप अपने गार्डन को खूबसूरत बनाने के लिए कर सकती हैं. इन टायरों को गाढ़े और चटक रंगों से रंग दें और इनके बीच में मिट्टी भरकर इनमें फूलों वाले पौधे लगाएं. आप इन्हें कवर कराकर सोफे की तरह लौबी या बैकयार्ड में भी रख सकती हैं.

पुराने बक्से

भले ही अब कोई पुराने और भारी बक्से इस्तेमाल नहीं करता हो लेकिन आप चाहें तो घर को नया लुक देने के लिए पुराने बक्‍सों को प्रयोग में ला सकती हैं. पुराने बक्‍सों पर पेंटिंग करके उन्‍हें घर के कोने में सजा सकते हैं या फिर मैटल वर्क कराकर भी इसे आकर्षक लुक दे सकते हैं.

पुरानी दराज

अगर आपके घर में कोई पुरानी दराज है जो स्टोर रूप में बेकार पड़ी हुई उस बेकार दराज को बाहर निकालने का समय आ गया है. आप चाहें तो उसका इस्तेमाल डेकोरेटिव कार्नर के रूप में कर सकती हैं. बेकार पड़े फूलदान और एंटीक पीसेज को साफ करके और थोड़ा सा डेकोरेट करके आप इन्‍हें इन दराजों पर सजा सकती हैं.

पुरानी सीडी

आप घर में पुरानी पड़ी सीडी से फोटो फ्रेम बना सकती हैं. जिससे आपके घर की दीवार और भी अच्छी लगेगी.

कभी देखी हैं आपने बौलीवुड की ये महिला प्रधान फिल्में

हमेशा से बौलीवुड पर पुरुष प्रधान होने का आरोप लगता रहा है. इसके नायक भी हमेशा लार्जर दैन लाइफ होते रहे हैं. कभी ही मैन, तो कभी एंग्री यंग मैन और कभी रोमांस के बादशाह, लेकिन नायिकाओं के लिए ऐसे टाइटिल कभी कभार ही मिलते हैं. ऐसी ही एक फिल्‍म थी मदर इंडिया जिसमें नरगिस दत्‍त की शानदार एक्‍टिंग ने सभी पुरानी मान्‍यताओं को ध्‍वस्‍त करके एक नया रास्‍ता खोला था. हालाकि पैरेलल सिनेमा या आर्ट फिल्‍मों में महिला प्रधान फिल्‍में आती रहीं हैं, लेकिन मुख्‍य धारा की ऐसी फिल्‍मों कि लिस्ट बहुत लंबी नहीं है. फिर भी कुछ फिल्‍में हैं जिनमें नायिका को केंद्र में लेकर मेन स्‍ट्रीम फिल्‍में बनायी गयीं. उसमें भी पिछले दो चार सालों में ऐसी फिल्‍मों की गिनती बढ़ी हैं.

आइये आपको बताते हैं ऐसी ही दस फिल्‍मों के बारे में हालाकि आप चाहें तो इसमें अपनी पसंद की कुछ और फिल्‍मों के नाम जोड़ सकते हैं.

कहानी

विद्या बालन की एक्‍टिंग के सभी कायल हैं और फिल्‍म कहानी में तो उनका रोल देख कर हर कोई हैरान रह गया. अपने दम पर फिल्‍म को चलाना और उसे कामयाब बनाना इसकी तो विद्या को आदत हो चुकी है.

सात खून माफ

ये फिल्‍म वाकई प्रियंका चोपड़ा के उन सारे गुनाहों को माफ कर देती है जो उन्‍होंने कुछ बेसिर पैर की भूमिकाओं को कर के किए हैं. फिल्‍म में हीरो बददलते रहे पर प्रियंका अन्‍नु कपूर, इरफान खान और नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकारों पर भारी पड़ती रहीं.

फैशन

इसके साथ ही प्रियंका की एक और फिल्‍म को भी देखना अच्‍छा अनुभव होगा जिसमें उनके साथ उतनी ही प्रभावशाली कंगना रानौत भी नजर आयी थीं. फिल्‍म थी फैशन जो आधुनिक दौर में लड़कियों के सपनों और उनको पूरा करने के संघर्ष को बेहद सच्‍चाई से दिखाती है.

डर्टी पिक्‍चर

विद्या की एक और कमाल परफार्मेंस वाली फिल्‍म जिसमें वो बोल्‍ड बिंदास और कान्‍फीडेंट दिखीं थीं.

बैंडिट क्‍वीन

हालाकि सीमा विश्‍वास को लीड रोल बहुत नहीं मिले लेकिन एक पिक्‍चर जिसने उन्‍हें एक झटके में ऐसे सम्‍मान जनक स्‍थान पर स्‍थापित कर दिया जहां से फिर कोई उन्‍हें नहीं हटा पाया. ये फिल्‍म थी फूलन देवी की जिंदगी से इंस्‍पायर्ड फिल्‍म बैंडिट क्‍वीन.

लज्‍जा

रेखा, मनीषा कोईराला, माधुरी दीक्षित और महिमा चौधरी जैसी अभिनेत्रियों के सामने लज्‍जा में अनिल कपूर और जैकी श्रौफ जैसे अपने दौर के बड़े एक्‍टर भी फीके पड़ते नजर आये.

चांदनी बार

मुंबई की बार बालाओं की जिंदगी के अंधेरे पहलुओं को जिस बारीकी से तब्‍बु ने फिल्‍म चांदनी बार में दिखाया है, उसके चलते मधुर भंडारकर डायरेक्‍टेड ये फिल्‍म एक माइल स्‍टोन बन गयी.

दामिनी

अपने समय की हिट हिरोइन मीनाक्षी शेषाद्री ने एक से एक बढ़ कर हिट फिल्‍में दीं. घायल, घातक और शहंशाह जैसी सुपरहिट फिल्‍में देने वानी मीनाक्षी को आज भी दामिनी के लिए ही याद किया जाता है.

खून भरी मांग

रेखा की अभिनय क्षमता किसी प्रमाण की मोहताज नहीं है. इसके बावजूद फिल्‍म खून भरी मांग में उनका एक्‍शन अवतार पहली बार दिखा और क्‍या कमाल दिखा.  

क्‍वीन

इस क्रम में अगर कंगना रनौत की फिल्‍म क्‍वीन का जिक्र ना हो तो बात अधूरी रह जायेगी. आपकी चाहतें मर्दो के सहारे की मोहताज नहीं होतीं इसका अहसास इस फिल्‍म को देख कर जिस गहराई से होता है वो ही इस फिल्‍म का कमाल है. 

हर इंसान राजनीति से प्रभावित होता है : राजकुमार राव

अभिनय करियर की शुरुआत के साथ ही राज कुमार राव निरंतर कुछ अलग तरह की फिल्मों में प्रयेागात्मक किरदार निभाते हुए नजर आ रहे हैं. इन दिनों वह फिल्म ‘‘न्यूटन’’ को लेकर चर्चा में हैं, जिसमें राज कुमार राव ने शीर्ष भूमिका निभायी है. 22 सितंबर को प्रदर्शित होने वाली अमित मसूरकर निर्देशित फिल्म ‘‘न्यूटन’’ में दिखाया गया है कि छत्तीसगढ़ के जंगलों, खासकर नक्सल प्रभावित इलाकों में चुनाव करना कितना पेचीदा है. पर सुरक्षा बलों की उदासीनता के बावजूद न्यूटन निश्पक्ष चुनाव कराने की पूरी कोशिश करता है. न्यूटन सिस्टम में रहकर चीजों को बदलने के लिए प्रयासरत हैं.

इस फिल्म की चर्चा चलने पर खुद राज कुमार राव कहते हैं, ‘‘फिल्म ‘न्यूटन’ में दुनिया की व्यवहारिकता और सनकवाद के खिलाफ आदर्शवादी युवाओं की दुर्दशा पर प्रकाश डाला गया है. भारतीय संविधान के प्रस्तावना और  हमारे समय की वास्तविकता के साथ डार्क कामेडी वाली फिल्म है. इसमें चुनाव प्रक्रिया के साथ ही वोट देने की बात की गयी है. लोकतांत्रिक प्रकिया में इंसान का सबसे मजबूत हथियार वोट है. वोट देकर हम तय कर सकते हैं कि हमें किस तरह का देश चाहिए. यानी कि कहीं न कहीं राजनीतिक प्रभाव की भी बात की गयी है.’’

जब हमने राज कुमार से पूछा कि वह राजनीति से कितना प्रभावित होते हैं तो राज कुमार राव ने कहा, ‘‘मेरी राय में राजनीति से हर इंसान प्रभावित होता है. हम सभी परोक्ष व अपरोक्ष रूप से राजनीति से जुड़े हुए हैं. हमारी जिंदगी में तमाम बदलाव सरकार द्वारा लिए जा रहे निर्णय के कारण भी आते हैं. इसलिए भी लोग इस फिल्म के साथ जुड़ेंगे क्योंकि हम लोकतात्रिंक देश में रहते हैं जिसमें चुनाव तथा वोट अपनी अहमियत रखता है. यह संदेश हमारी फिल्म बड़े सहज तरीके से लोगों तक पहुंचाएगी. यह फिल्म उपदेश या ज्ञान देने वाली फिल्म नहीं है. यह एक सुंदर मनोरंजक कहानी है. यदि आप कोई सीख लेते हैं, तो ठीक हैं, नहीं, तो आप कहानी का मजा लीजिए.’’

वह आगे कहते हैं, ‘‘देखिए, राजनीति ने हमें हमेशा अच्छे या बुरे तरीके से प्रभावित किया है. आज कल जो हालात चल रहे हैं, वह बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करते हैं. अब राम रहीम वाला जो मसला है, कई लोग मर रहे हैं, यह बहुत दुःखद है. मैं खुद गुड़गांव से हूं. हमारे हरियाणा में ही राम रहीम ने डेरा बनाया हुआ है. वहां यह सब होता था, तकलीफ होती है पर हम इस उम्मीद के साथ जीते हैं कि सुनहरा कल आएगा.’’

क्या हम सभी सिर्फ सुनहरे कल की आस में जीते हैं? हमारे इस सवाल पर राज कुमार राव ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है. हम सभी अपनी अपनी क्षमता के अनुरूप काम करते हैं. हम कलाकार हैं, तो हम अपनी फिल्मों के माध्यम से कुछ बात कहने का प्रयास करते हैं. जब भी कुछ गलत हो रहा होता है, तो मैं कहने से हिचकता नही हूं. पर यदि हमारे पास बदलाव लाने की अथौरिटी है, तो हम वह भी कर सकते हैं.’’

राम रहीम की चर्चा चलने पर राज कुमार राव ने कहा, ‘‘मुझे तो यह अंध भक्ति लगती है. इसलिए राम रहीम के भक्तों को बुरा लगा. इस देश का नागरिक होने के नाते मैं अदालत के निर्णय का सम्मान करता हूं. पिछले दस दिनों में अदालत ने जिस तरह से निर्णय लिए हैं, उसके लिए हमें उसे सलाम करते हैं. यह खुशी की बात है कि हमारी न्याय प्रणाली ताकतवर है.’’

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