फिल्म रिव्यू : बादशाहो

आपातकाल की पृष्ठभूमि में प्यार, धोखा, गुस्सा, नफरत, बदले की कहानी व एक्शन से भरपूर मिलन लूथरिया की फिल्म ‘‘बादशाहो’’ बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं डालती. सत्तर व अस्सी के दशक में इस तरह की कहानी पर तमाम मसाला फिल्में बन चुकी हैं. सिर्फ आपातकाल की पृष्ठभूमि बताने से कहानी असरदार नहीं बनती.

फिल्म ‘‘बादशाहो’’ की कहानी शुरू होती है 1973 में जयपुर की महारानी गीतांजली के महल में चल रही एकपार्टी से. इस पार्टी में शासक दल के बड़े नेता संजीव (प्रियांशु चटर्जी) भी मौजूद हैं, जो कि महारानी से नाराज होकर महल से बाहर निकलते हैं. दो साल बाद आपातकाल लगने पर संजीव सेना को आदेश देते हैं कि अब महाराज नहीं रहे, इसलिए जयपुर के राजमहल की तलाशी लेकर महारानी गीतांजली के पास मौजूद सारा सोना जब्त करके दिल्ली के सरकारी खजाने में जमा किया जाए.

सेना का अफसर सैन्य बल के साथ राजमहल पहुंचता है. उसे जो कुछ मिलता है, उसकी जानकारी वह संजीव को देता रहता है. सोना मिलने के बाद महारानी को जेल भेज दिया जाता है. जेल के बाहर महारानी को छुड़ाने के लिए हंगामा होता है. इसी हंगामे में बदमाश भवानी सिंह (अजय देवगन) गिरफ्तार होकर जेल के अंदर पहुंचते हैं, जहां महारानी गीतांजली उनसे अपना सोना सरकारी खजाने तक पहुंचने से पहले वापस लाकर देने के लिए कहती हैं. पता चलता है कि भवानी सिंह कभी राजमहल में ही रहा करता था. वह महाराजा का अतिविश्वासपात्र था. महाराजा की मौत के बाद महारानी ने उस पर विश्वास किया था. दोनों के बीच कुछ ज्यादा ही अच्छे संबंध रहे हैं. पर एक गांव के जलाए जाने पर भवानी सिंह को अहसास हुआ था कि महारानी ने अपने चेहरे पर कई मुखौटे ओढ़ रखे हैं. तब वह महल से दूर चला गया था. पर अब वह महारानी की मदद के लिए तैयार है.

महारानी की सेक्रटरी संजना (ईशा गुप्ता) भी भवानी सिंह के साथ हैं. इसके अलावा भवानी सिंह ने महारानी के सोने को सरकारी खजाने में पहुंचने से पहले ही लूट लेने के मकसद से अपने सहयोगी दलिया (इमरान हाशमी) तथा ताला खोलने में माहिर तिकला (संजय मिश्रा) को बुला लिया है.

सरकार ने जब्त सोने आर्मी ट्रक में भरकर दिल्ली लाने की जिम्मेदारी सैन्य अधिकारी व कमांडो सहर (विद्युत जामवाल) को दी है. यह ट्रक व सैन्य अधिकारी चलते हैं. रास्ते में भवानी सिंह अपने साथियों के साथ सभी को हराकर ट्रक पर कब्जा कर भागते हैं. रास्ते में एक पुलिस अफसर (शरद केलकर) उनका पीछा करता है. अंततः एक जंगल में जाकर भवानी सिंह व उसके साथी सारा सोना पिघलाकर उसे ऊंटो पर लादकर चल देते हैं. इधर पता चलता है कि कमांडो सहर तो महारानी गीतांजली से मिला हुआ है.

अंततः सारा सोना उस गांव में जाकर बंट जाता है, जिस गांव को जलाने का आदेश कभी महारानी गीतांजली ने दिया था. खैर, अब आर्मी कहां गयी, महारानी कहां गयी, कुछ स्पष्ट नहीं होता. पर एक खंडहर में भवानी सिंह व उसके साथी आपस में बातें करते हुए नजर आते हैं.

अस्वाभाविक दृश्यों से भरपूर तितर बितर व अति कमजोर  पटकथा से युक्त फिल्म ‘‘बादशाहो’’ में आकर्षण वाला कोई मामला नही है. किरदारों का चरित्र चित्रण भी गड़बड़ है. अति कमजोर कहानी व पटकथा वाली यह फिल्म बोर ही करती है. संजीव के किरदार को संजय गांधी जैसा लुक दिया गया जिसकी वजह महज फिल्म को आपातकाल की पृष्ठभूमि से जोड़ना रहा या कुछ और यह फिल्मकार ही बेहतर जानते होंगे.

फिल्म की लोकेशन अच्छी है. कैमरामैन ने कुछ अच्छे दृश्य कैमरे में कैद किए हैं. जहां गीत संगीत का सवाल है,तो फिल्म का एक गाना ‘‘मेरे रश्के  कमर..’ ही ठीक है. जहां तक अभिनय का सवाल है, तो अजय देवगन कुछ कमाल नहीं दिखा पाए. इमरान हाशमी निराश करते हैं. ईलियाना डिक्रूजा जरुर अच्छी लगी हैं. विद्युत जामवाल का अभिनय भी ठीक ही है. संजय मिश्रा के हिस्से कुछ संवाद अच्छे आ गए हैं और उनकी परफार्मेंस भी अच्छी है.

दो घंटे तीस मिनट की अवधि वाली फिल्म का निर्माण मिलन लूथरिया, भूषण कुमार व किशन कुमार ने किया है. फिल्म के लेखक रजत अरोड़ा, निर्देशक मिलन लूथरिया, संगीतकार तनिष्क बागची व अंकित तिवारी तथा कलाकार हैं-अजय देवगन, इमरान हाशमी, ईलियाना डिक्रूजा, शरद केलकर, संजय मिश्रा, ईशा गुप्ता व अन्य.

इन तरीकों से महिलाएं सुरक्षित कर सकती हैं अपना भविष्य

भारत में ऐसी घरेलू महिलाओं की तादाद बहुत ज्यादा है जो अपने पति पर निर्भर हैं और किसी भी तरह के वित्तीय फैसलों में उनकी भागीदारी न के बराबर है. इसके बावजूद वह घर की मैनेजर होती हैं और उनकी जिम्मेदारी अपने घर के बजट को मैनेज करने की होती है.

पिछले कुछ सालों में महंगाई तो बढ़ी है, लेकिन उस अनुपात में सैलरी नहीं बढ़ी है. लेकिन कई बार जब घर में कोई इमर्जेंसी आती है जैसे जौब छूटना, हेल्थ प्रोब्लम, घर लेना तब सारा बोझ पत्नी के ऊपर होता है कि वो कैसे संब कुछ संभाले और समस्या से निजात दिलाये.

मनी फ्लो मैनेजमेंट

ज्यादातर घरों महिलाएं केवल ग्रौसरी की खरीदारी तक ही सीमित हो जाती हैं. जैसे सब्जी अगर लेनी होती है, तो सोचती हैं कि हफ्ते भर की सब्जी लेकर रख लें, यहां एक गलती हो जाती है की अगर सब्जी या खाने के सामान खराब हो गये तो उन्हें फेंकना पड़ता है. जिससे पैसों की बर्बादी होती है. लेकिन हाउसवाइव्स को इसके आगे बढ़ते हुए फाइनेंस को मैनेज करने का तरीका पता होना चाहिेए. इससे पता चलेगा कि कहां आपको ज्यादा खर्च करना है और कहां बचाना है. और यह कोई रौकेट साइंस नहीं और न ही इसके लिए किसी एक्सपर्ट की सलाह की जरूरत है. आप इसे खुद से या अपने पति की सलाह से भी कर सकती हैं.

खर्च कंट्रोल करना                        

अब जब आप मनी फ्लो मैनेजमेंट करना जान गईं हैं तो बारी है खर्चों पर कंट्रोल करने की, जैसे अगर आपके घर का बिजली का बिल 2 हजार हर महीने आता है, तो आपको सोचने की जरूरत है कि कैसे आप इसे कम कर सकती हैं. अगर आप हर रोज वौशिंग मशीन का इस्तेमाल करती हैं तो हफ्ते में 3-4 दिन ही इस्तेमाल करें. ऐसी ही कई चीजों का ध्यान रखकर आप खर्चों में कटौती कर सकती हैं.

पैसो की बचत के बारे में सोचे

हमेशा पैसों की बचत के बारे में सोचें. इसके लिए सबसे पहला कदम है एक अकाउंट खोलना. इसके अलावा आप सरकार की ओर से चलाई जा रही तमाम तरह की योजनाओं में भी अपना रजिस्ट्रेशन करवा कर फायदा उठा सकती हैं. आप चाहें तो महंगी ब्रांडेड दवाओं की जगह सस्ती जेनेरिक दवाओं का इस्तेमाल करके भी पैसे बचा सकती हैं.

घर बैठे कमाएं पैसे

अगर आप पढ़ी लिखी हैं इसके बावजूद घर की जिम्मेदारियों के चलते आप अपने पति की कोई मदद नहीं कर पा रही हैं, तो घर बैठे पैसे कमाने की तरकीब ढूंढना शुरू कर दें. आप फ्रीलांसर की तरह काम कर सकती हैं. इसके अलावा अगर आपकी पेंटिंग, डांसिंग, टीचिंग जैसी कोई हौबी है तो आप इसके लिए अलग से क्लास चला सकती हैं और घर में क्लास लेकर पैसे कमा सकती हैं.

निवेश करें

निवेश की पहली सीढ़ी है बचत. अगर आप हर महीने पैसे बचाती हैं तो आपको सोचना चाहिए कि महंगाई को काटते हुए कैसे आप अपने पैसे को बढ़ा सकती हैं. कभी भी पैसे को अकाउंट में या घर पर भी खाली पड़े नहीं देना चाहिए. उसे फिक्स या फिर रिकरिंग डिपौसिट में निवेश करना चाहिए. अगर आपका पैसा 10 हजार से बढ़कर 11 हजार भी हो जाता है तो यह एक फायदे का सौदा है.

इन 10 खूबसूरत हिल स्टेशनों का अलग ही है आनंद

अगर आप घूमने फिरने के शौकीन हैं और हिल स्टेशन पर जाना आपको पसंद है, तो आप हमारे देश के इन खूबसूरत हिल स्टेशनों पर जा सकते हैं. जहां साल भर सुहाना मौसम बना रहता है. आप यहां अपनी छुट्टियां, हनीमून और घूमने के लिहाज से यहां आकर इन जगहों का मजा ले सकते हैं.

कलिमपोंग

वेस्‍ट बंगाल के दार्जिलिंग में बसे कलिमपोंग हिल स्‍टेशन का मौसम हमेशा खुशनुमा रहता है. यहां आने वाले टूरिस्‍ट ट्रैकिंग का खूब मजा लेते हैं. यहां के पहाड़ और खूबसूरत रास्‍ते लोगों को काफी आकर्षित करते हैं. यहां आने के बाद आप जरूर चाहेंगे की इस जगह को आप कैमरे में कैद कर लें क्योंकि ये जगह है ही इतनी खूबसूरत.

हफलौंग

वाइट एंट हिलौक के नाम से मशहूर हफलौंग हिल स्टेशन असम में स्थित है. यह गुवाहाटी से 310 किलोमीटर की दूरी पर बसा है, जिसे खूबसूरत लैंडस्केप्स, झीलों और पर्वतों के लिए जाना जाता है. हफलौंग असम में सबसे ज्यादा घूमा जाने वाला टूरिस्ट प्लेस है. नीले पहाड़, अलग-अलग प्रकार के पक्षियों, और्किड के फूलों के बीच बहती नदियां यहां की खूबसूरती में चार चांद लगाती हैं.

मासिनगुड़ी

ऊटी से 30 किमी दूर बसा मासिनगुड़ी काफी हरी-भरी जगह है. यह घूमने की बेहतरीन जगहों में शामिल है. मासिनगुडी शांति और सुकून के साथ ही अपनी वनस्पतियों के लिए खास तौर पर जाना जाता है. अगर आप ऊटी घूमने आए हैं तो 2-3 घंटे निकालकर मासिनगुड़ी जाना ना भूले. यहां के रिजौर्ट में नाइट सफारी, जंगलों में घूमने-फिरने और ट्रैकिंग का भी मजा लिया जा सकता है.

कुन्‍नूर

चाय के बागानों के लिए प्रसिद्ध तमिलनाडू का कुन्‍नुर हिल स्‍टेशन काफी खूबसूरत है. यह नीलगिरी की पहाड़ियों पर बसा है और ऊटी से 19 किमी दूर है. यह फेमस हनीमून डेस्‍टिनेशन भी है. यहां का मौसम काफी सुहावना रहता है.

बासुंती

हिमाचल प्रदेश के नजदीक स्‍थित बासुंती इलाका काफी शांति और सुकून वाला है. यह जगह खासतौर पर योगा करने के लिए जानी जाती है. यहां की खुली हवा में योग क्‍लौस, फिशिंग और पेंटिंग करते हुए कई लोग मिल जाएंगे.

घूम

दार्जिलिंग से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित घूम की खूबसूरती भी देखने लायक है. दार्जिलिंग की हिल कार्ट रोड जाते वक्त घूम रेलवे स्टेशन से होकर ही जाना होता है. दार्जिलिंग की काफी ऊंची जगहों में शामिल घूम में टौय ट्रेन द्वारा भी घूमा जा सकता है.  

नागिनी

दिल्ली से 550 किलोमीटरी की दूरी पर स्थित नगिनी में बहुत सारे खूबसूरत नजारे देखने को आपको मिल जाएंगे. लार्जी नदी के किनारे पर लगभग 26 किलोमीटर आगे नगिनी गांव बसा है. यहां कई दुर्लभ जड़ी-बूटियां भी मिलती हैं. यहां से ट्रैकिंग करते हुए हिमालय राष्ट्रीय उद्यान की ओर जाया जा सकता है.

शिलांग

नार्थ ईस्‍ट इंडिया का सबसे खूबसूरत शहर शिलांग सिर्फ मेघालय की राजधानी नहीं, शांत और खूबसूरत रिजौर्ट्स के लिए भी जाना जाता है. यहां की खूबसूरत, शांत और दूर तक फैली उमियाम झील का नजारा किसी स्वर्ग से कम नहीं लगता. नौर्थ-ईस्ट के लोगों के लोगों के लिए घूमने की पसंदीदा जगहों में से एक है. इसे स्कौटलैंड औफ द ईस्ट के नाम से भी जाना जाता है. स्वच्छ वातावरण, मनोरम नजारे, ठंडा मौसम और यहां के अनेक दर्शनीय स्थल इसकी शोभा बढ़ाते हैं. यहां के झरने काफी खूबसूरत दिखते हैं.

नामिक रामगंगा वैली

हिमालय की ऊंची और सुंदर वादियों के बीच छुट्टियां बिताने का प्लान बहुत ही इंटरेस्टिंग और एडवेंचरस है. यहां की नामिक-रामगंगा वैली जो नंदा देवी और त्रिशूल के बहुत सारे गांवों के बीच स्थित है, जो अपनी परंपराओं और कलाओं के लिए खासतौर पर जानी जाती है. यहां के मंदिरों की लोकप्रियता अच्छी-खासी है. रामगंगा नदी, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित है. यहां के चारों ओर के खूबसूरत नजारों को देखकर काफी  मन को काफी आनंद मिलता है।

रानीखेत

उत्‍तराखंड के अल्‍मोड़ा जिले में बसा रानीखेत एडवेंचर्स पसंदीदा लोगों के लिए बेस्‍ट जगह है. इस फेमस हिल स्‍टेशन में छुट्टी बिताने का मजा ही कुछ और है. यहां आने वाले पर्यटक पैराग्‍लाइडिंग का खूब मजा लेते हैं. बताते हैं कुमाऊं के राजा सुखदेव की पत्नी रानी पद्मावती को रानीखेत की खूबसूरती इतनी पसंद आई कि उन्होंने यहां रहने का निश्चय कर लिया था. तभी से इस जगह का नाम रानीखेत पड़ गया.

फिल्म रिव्यू : शुभ मंगल सावधान

पुरुषों की स्तंभन की कमजोरी की बीमारी के इर्दगिर्द बुनी गयी प्रेम कहानी युक्त हास्य फिल्म ‘‘शुभ मंगल सावधान’’ में हास्य व नामदर्गी को एक साथ कहानी के ताने बाने में बुनने में लेखक असफल रहे. क्लायमेक्स तक पहुंचते पहुंचते फिल्म पूरी तरह से बिखरी हुई लगती है. जैसे ही दर्शक हास्य का लुत्फ उठाता है, पता चलता है कि फिल्म अपने मूल कथानक से भटक चुकी है. पर फिल्मकार ने मुदित के मुंह से मर्दानगी और मर्द की नई परिभाषा देते हुए कहलवाया है-‘‘मर्द वह होता है, जो न दर्द लेता है और न किसी को दर्द देने देता है.’’

फिल्म की कहानी दिल्ली में रह रहे मुदित शर्मा (आयुष्मान खुराना) और सुगंधा जोशी (भूमि पेडणेकर) के इर्द गिर्द घूमती है. दोनों के माता पिता उन पर शादी का दबाव डाल रहे हैं. पर दोनों शादी के लिए हां नहीं कह रहे हैं. मुदित और सुगंधा दोनों ही नौकरी करते हैं. अचानक दोनों की मुलाकातें हो जाती हैं. उनके बीच प्यार पनपता है. दोनों अपने प्यार का इजहार करते, उससे पहले ही अपनी मां के कहने पर मुदित, सुगंधा के परिवार वालों के पास आन लाइन शादी का प्रस्ताव भेज देता है. इस प्रस्ताव से सुगंधा भी खुश हो जाती है और सगाई की तारीख तय हो जाती है. अब सुगंधा इस अरेंज मैरिज को लव मैरिज में बदलने की बात सोच लेती है. वह मुदित से उसके आफिस में जाकर मिलती है.

मुलाकातें बढ़ती हैं. नाटकीय अंदाज में सुगंधा व मुदित की सगाई हो जाती है. फिर शादी दिल्ली की बजाय सुगंधा के चाचा के घर हरिद्वार में होनी है. सुगंधा के माता पिता हरिद्वार चले जाते हैं. इधर एक रात मुदित,सुगंधा के घर पहुंचता है. प्यार में आगे बढ़ते हुए शारीरिक संबंध बनाना चाहते हैं. पर मुदित को पुरुषों की बीमारी यानी कि स्तंभन की कमजोरी का अहसास होता है. अब सुगंधा, मुदित का हौसला बढ़ाना चाहती है. एक बार मुदित कह देता है कि वह शादी नहीं करेगा. पर सुगंधा कहती है कि यदि यही बात शादी के बाद पता चलती तो? हम शादी करेंगे.

मुदित अपने दोस्तों से इस मर्दाना बीमारी के बारे में बात कर हल खोजने का असफल प्रयास करता है. पर सुगंधा के दबाव में व अपने परिवार की इज्जत की खातिर मुदित बारात लेकर हरिद्वार पहुंचता है. जहां पता चलता है कि सुगंधा के पिता को पता चल चुका है कि मुदित नामर्द है. वह उसे लेकर एक डाक्टर के पास जाते हैं. डाक्टर मुदित को समझाते हैं कि यह उसकी अपनी दिमागी सोच है. एक बार तनाव के चलते ऐसा हो गया,उसके बाद वह डर उसके मन से नहीं निकला. फिर मुदित की बीमारी दूर हो जाती है. कुछ नाटकीय घटनाक्रम के बाद सुगंधा व मुदित शादी के बंधन में बंध जाते हैं. 

पटकथा व एडीटिंग के स्तर पर फिल्म में काफी कमियां हैं. फिल्म के शुरू होने के दस मिनट बाद ही फिल्म भटक सी जाती है. इंटरवल के बाद तो फिल्म को जबरन खींचा गया है. फिल्म में जो परिवार दिखाए गए हैं,वह भी पूरी तरह से नकली यानी कि पूरी तरह से फिल्मी परिवार नजर आते हैं. लेखक के तौर पर हितेशकैवल्य निराश करते हैं. फिल्म का क्लायमेक्स तो बची खुची फिल्म को भी तहस नहस कर देता है. लेखक व निर्देशक मुदित व सुगंधा की शादी के सीन व फिल्म के समापन को लेकर दुविधा में नजर आते हैं. इसी के चलते लेखक ने पूर्व प्रेमिका, केले के पेड़ से शादी सहित कई दृश्य व चीजें बेवजह भर दी हैं. फिल्म में कंडोम का विज्ञापन करने वाला जिम्मी शेरगिल का सीन भी जबरन ठूंसा हुआ लगता है.

बतौर निर्देशक आर एस प्रसन्ना की हिंदी में यह पहली और उनके करियर की यह दसरी फिल्म है, पर उनके अंदर संभावनाएं नजर आती हैं. हरिद्वार में रहने वाले सुगंधा के चाचा को एक तरफ मध्यमवर्गीय परिवारों की संस्कृति का वाहक दिखाया गया है, जो कि छोटों द्वारा बड़ों के पैर न छूने पर नाराज होता है, वहीं बारात आने पर हर किसी, यहां तक कि होने वाले दामाद के गाल चूमते नजर आते हैं. यह अजीबोगरीब विरोधाभास है.

यू तो यह फिल्म 2013 में प्रदर्शित तमिल रोमांटिक फिल्म ‘‘कल्याण समयाल साधम’’ का हिंदी रीमेक है. मगर फिल्म के निर्माता आनंद एल राय के अनुसार तमिल फिल्म की आइडिया पर नए सिरे से लिखी गयी पटकथा पर बनी यह ताजी फिल्म है. ‘‘शुभ मंगल सावधान’’ देखकर इस बात का अहसास ही नहीं होता कि इस फिल्म का निर्माण उन्ही आनंद एल राय ने किया है, जो कि अतीत में ‘तनु वेड्स मनु, ‘रांझणा’ व ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न’के अलावा सिर्फ निर्माता के रूप में ‘निल बटे सन्नाटा’ जैसी फिल्म दे चुके हैं. पर वह इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि उन्होने एक व्यावसायिक फिल्म में सेक्स, पुरुष स्तंभन कमजोरी जैसे मुद्दे को उठाया, जिस पर हमारे देश में लोग खुलकर बात करना पसंद नहीं करते. पर वह पुरुषों की इस बीमारी का नाम फिल्म में लेने से बचते हुए नजर आए हैं. शायद वह इसे पारिवारिक फिल्म से इतर नहीं बनने देना चाहते थे. इस फिल्म से युवा पीढ़ी के लड़के व लड़कियों के बीच पुरुषों की इस बीमारी को लेकर जागरुकता आ सकती है. पर यदि फिल्म के निर्माता ने लेखक के साथ बैठकर कुछ काम किया होता, तो शायद यह फिल्म ज्यादा बेहतर बन जाती.  

फिल्म की खासियत इसकी लोकेशन है. फिल्म में एक भी लोकेशन ऐसी नहीं हैं, जो पहले दूसरी फिल्मों में नजर आयी हों. जहां तक अभिनय का सवाल है, तो  आयुष्मान खुराना कमाल नहीं दिखा पाए. भूमि पेडणेकर ने भी अपने आपको दोहराया ही है. ब्रजेंद्र काला व सीमा पाहवा ने ठीक ठाक अभिनय किया है.

फिल्म का गीत संगीत साधारण है. फिल्म का ‘कान्हा’ गीत जरुर प्रभावित करता है. एक घंटे 50 मिनट की अवधि की आनंद एल राय और कृषिका लुल्ला निर्मित फिल्म ‘शुभ मंगल सावधान’ के निर्देशक आर एस प्रसन्ना,लेखक हितेश कैवल्य, संगीतकार तनिष्क वायु, कैमरामैन अनुज राकेश धवन तथा कलाकार हैं-आयुष्मानखुराना, भूमि पेडणेकर, ब्रजेंद्र काला, सीमा पाहवा व अन्य.

अनुष्का की फिल्म ‘परी’ के सेट पर एक शख्स की मौत

बौलीवुड एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा के प्रोडक्शन हाउस की फिल्म ‘परी’ की शूटिंग पश्चिम बंगाल के परगना जिले में चल रही थी, तभी अचानक सेट पर करंट लगने से एक शख्स की मौत हो गई. हादसे के शिकार हुए इस शख्स का नाम शाहबे आलम है. जो उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे.

बताया जा रहा है कि प्रोडक्शन टीम ने लाइटिंग डिपार्टमेंट से कुछ लाइट को एक जगह से दूसरी जगह पर शिफ्ट करने के लिए कहा था, उसी दौरान लाइटमैन शाहबे आलम ने बिजली के तार को नंगे हाथों से छू लिया, इससे उन्हें करंट लगा और नजदीकी अस्पताल ले जाते वक्त उनकी मौत हो गई. फिल्म रिपोर्ट्स के अनुसार कोरोलबेरिया इलाके में परी की आउटडोर शूटिंग चल रही थी. इसी दौरान यह हादसा हुआ. फिलहाल पुलिस इस मामले की जांच कर रही है.

इस घटना की पुष्टि अनुष्का शर्मा के भाई कर्णेश शर्मा द्वारा की गई है. अनुष्का शर्मा के भाई कर्णेश शर्मा ने कहा कि यह घटना बेहद दुखद है. हमने इस हादसे में अपने लाइट डिपार्टमेंट के एक अच्छे सदस्य को हमेशा के लिए खो दिया. हमनें शाहबे आलम की जान बचाने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन हम उन्हे बचा न सके.

बता दें कि यह अनुष्का शर्मा के प्रोडक्शन की तीसरी फिल्म है. इससे पहले वह ‘एनएच 10’ और ‘फिल्लौरी’ फिल्म बना चुकी हैं. अनुष्का फिल्म ‘परी’ में सीरियर रोल में नजर आएंगी. अनुष्का के भाई कर्णेश इसमें बतौर प्रड्यूसर के रूप में काम कर रहे हैं.

लेटैस्ट मेकअप लुक्स

किसी खास अवसर पर अपने लुक में और भी निखार लाने के लिए पेश हैं, कुछ ब्यूटी टिप्स, जिन्हें आजमा कर आप भी बन सकती हैं ब्यूटी क्वीन.

प्री मेकअप टिप्स:

उम्र चाहे जो भी हो, सीटीएमपी नामक 4 स्टैप्स हर हाल में मेकअप से पहले जरूरी हैं. एक उम्र के बाद त्वचा अधिकतर ड्राई हो जाती है, इसलिए क्लींजिंग के लिए केवल नरिशिंग क्लींजिंग मिल्क या फिर क्लींजिंग क्रीम का इस्तेमाल करें. यह त्वचा को रूखा किए बिना डीप क्लीन करेगी. बढ़ती उम्र की निशानियों में बेहद कौमन समस्या है ओपन पोर्स की. समय के साथ पोर्स बढ़ जाते हैं, जिस के चलते स्किन पर ऐजिंग नजर आने लगती है. इन पोर्स को मिनिमाइज करने के लिए क्लींजिंग के बाद टोनिंग जरूर करें. मौइश्चर की कमी से चेहरे पर रिंकल्स दिखाई दे सकती हैं, इसलिए स्किन पर मौइश्चराइजर जरूर लगाएं. सूर्य की हानिकारक किरणें न केवल त्वचा को झुलसा देती हैं, बल्कि इन से त्वचा में झुर्रियां, ब्राउन स्पौट्स आदि भी दिखाई देने लगते हैं. इसलिए धूप में निकलने से पहले सनस्क्रीन लगा कर स्किन को इन हानिकारक किरणों से प्रोटैक्ट करें.

फेस मेकअप:

मेकअप की परफैक्ट शुरुआत के लिए सब से पहले फेस पर प्राइमर का इस्तेमाल करें. इस के अंदर सिलिकौन होता है, जो चेहरे की फाइन लाइंस व रिंकल्स वाली जगह को भर देता है. चूंकि मेकअप करने के बाद ऐजिंग साइंस ज्यादा दिखाई देते हैं, इसलिए इन्हें मेकअप से पहले फिल करना जरूरी होता है. डीडी यानी डैमेज डिफाइंग क्रीम से चेहरे को स्मूद टैक्स्चर दें. इस क्रीम में शामिल विटामिन और मिनरल्स स्किन को रिंकल्स से बचाते हैं. अगर चेहरे पर मार्क्स या स्कार्स हैं तो उन्हें लिक्विड कंसीलर की मदद से कवर करें और अगर आंखों के नीचे गड्ढे हैं, तो उस जगह पर लाइट डिफ्यूजर पैन का इस्तेमाल करें. यह पैन लाइट को रिफ्लैक्ट करता है, जिस से वह जगह भरी हुई नजर आती है.

आई मेकअप की तरफ आगे बढ़ने से पहले चेहरे पर लूज पाउडर लगा कर फेस मेकअप को फिक्स कर दें. उम्र के इस पड़ाव तक आतेआते चेहरा पहले से पतला हो जाता है. ऐसे में अपने फेस के फीचर्स को हाइड नहीं, बल्कि हाईलाइट करें. इस के लिए चीकबोंस के ऊपर, आईब्रोज के नीचे और ब्रिज औफ द नौज पर हाईलाइटर का इस्तेमाल करें और चीकबोंस पर क्रीम बेस्ड ब्लशऔन ही लगाएं. यह स्किन को हाईड्रेट करेगा साथ ही मेकअप पर ग्लो भी लाएगा.

आई मेकअप:

एक उम्र के बाद आईब्रोज झुकने और हलकी होने लगती हैं. ऐसी आंखों को उठाने के लिए आईपैंसिल की मदद से आर्क बना लें. अगर आर्क बना हुआ है, तो उसे पैंसिल से डार्क कर लें. इस से आंखें उठी हुईं और बड़ी नजर आएंगी.

आई मेकअप के लिए शिमर, ग्लिटर और बहुत ज्यादा लाउड शेड्स का इस्तेमाल न करें, क्योंकि इन से रिंकल्स और भी ज्यादा रिफ्लैक्ट होती हैं. आईशैडो के लिए सौफ्ट पेस्टल शेड्स का इस्तेमाल कर सकती हैं. इस के साथ ही आईज के आउटर कौर्नर्स पर डार्क ब्राउन शेड से कंटूरिंग जरूर करें. इस से आंखें डीप सैट और यंग नजर आएंगी.

त्वचा में कुदरती नमी और लचीलेपन में कमी आने के कारण आंखें पहले से थोड़ी छोटी हो जाती हैं. ऐसे में लिक्विड आईलाइनर के बजाय पैंसिल आईलाइनर या फिर आईलैश जौइनर का इस्तेमाल करना ठीक रहता है. आईलाइनर की एक पतली सी लाइन लगा कर स्मज कर लें. ध्यान रखें कि वह ड्रूपिंग न हो, बल्कि उठी हुई हो. इस ऐज में आंखों पर कलर्ड लाइनर लगाने से बचें. आईलैशेज पर वौल्यूमाइजिंग मसकारे का डबल कोट जरूर लगाएं. इस ऐज तक आतेआते लगभग सभी की आंखें छोटी होने लगती हैं, इसलिए वाटरलाइन पर व्हाइट पैंसिल लगाएं, क्योंकि इस से आंखें बड़ी नजर आती हैं.

लिप मेकअप:

होंठों पर ब्राइट शेड की लिपस्टिक लगा कर ज्यादा यंग दिख सकती हैं. यदि होंठ पतले हो गए हैं, तो उन्हें ब्राइट शेड के लिपलाइनर से आउटलाइन करें और लिप प्लंपर का इस्तेमाल करें. ऐसा करने से लिप्स पाउटी नजर आएंगे. इस के बाद लिपलाइनर से मैच करती ब्राइट शेड की लिपस्टिक से लिप्स को फिल करें.

फैशन को दें सही स्टाइल

फैशन और स्टाइल का व्यक्ति से सीधा संबंध है. अगर उस की स्टाइल सैंस सही नहीं है तो फैशन कितना भी करे जंचता नहीं. महंगे कपड़े और भारीभरकम गहने आदि पहन लेने से कोई सुंदर नहीं लग सकता. इस के लिए शरीर की संरचना के साथसाथ अवसर, मौसम का भी खयाल रखना पड़ता है. अगर आप को इस की समझ नहीं है तो फैशन स्टाइलिस्ट के पास जा कर सही ड्रैस सैंस का विकास कर सकती हैं.

व्यक्ति अलग स्टाइल अलग

इस संबंध में मुंबई की इमेज कंसल्टैंट और फैशन स्टाइलिस्ट नेहा गुप्ता बताती हैं, ‘‘मैं 15 सालों से इस क्षेत्र में काम कर रही हूं. फैशन हर साल बदलता है, लेकिन स्टाइल हर व्यक्ति का अलगअलग होता है और यह बदलता नहीं. स्टाइलिंग के लिए व्यक्ति के रंग, उस की शारीरिक संरचना पर अधिक ध्यान देना पड़ता है. चाहे प्लस साइज हो या थिन, सही स्टाइलिंग से व्यक्ति ग्लैमरस और आकर्षक दिखता है. यह जरूरी नहीं कि सुंदर दिखने के लिए महंगे कपड़े पहनें. अगर साधारण सी ड्रैस भी अपने स्टाइल के हिसाब से चुनी है, तो आप अच्छी लग सकती हैं. कोई भी ड्रैस कलर, फैब्रिक और उद्देश्य के आधार पर पहनी जानी चाहिए.’’

यह समझना भी आवश्यक है कि स्टाइल को कैसे बनाए रखें. इस बारे में नेहा का मानना है कि कुछ में मैनर्स नैचुरली होते हैं, लेकिन कुछ की बौडी लैंग्वेज सही नहीं होती. ऐसे में उन्हें अपने कार्यक्षेत्र में आगे बढ़ने का मौका नहीं मिलता. उन्हें बातचीत का सलीका सीखने की जरूरत होती है, ताकि अपने क्षेत्र में सफल हों.

प्रेजैंटेबल बनें

हाउसवाइफ भी इस की शिकार होती हैं. अगर उन्होंने सही तरह से बातचीत करना सीख लिया, तो उन का आत्मविश्वास बढ़ता है. वे खुद को कमतर नहीं समझतीं. वे परिवार में अच्छा वातावरण कायम कर सकती हैं. यह एक तरह का विज्ञान है, जिसे समझना जरूरी है. करीब 90% महिलाएं और पुरुष अपने बारे में नहीं जानते.

नेहा कहती हैं, ‘‘अधिकतर महिलाएं मुझ से पूछती हैं कि उन में क्या कमी है? ऐसे में उन्हें समझाना पड़ता है कि कमी कुछ भी नहीं है, केवल उन्होंने खुद को सही तरह से प्रेजैंट नहीं किया है. वे इसे सीख लेती हैं, तो उन की समझ में आ जाता है और वे आगे बढ़ती जाती हैं. इस के अलावा कई बार महिलाएं या पुरुष सोचते हैं कि उन का लुक खराब है, जबकि ऐसा नहीं होता. इंडस्ट्री के कई ऐसी ऐक्ट्रैसेज और ऐक्टर्स हैं, जो खास लुक्स न होने पर भी सफल रहे हैं. फेस की शेप और बौडी के अनुसार कौंबिनेशन में कपड़े पहनना सही रहता है. सही स्टाइल से मूड बदलता है, अपने काम पर अधिक फोकस कर सकते हैं, स्मार्ट दिख सकते हैं, अच्छा सोच सकते हैं, आत्मविश्वास बढ़ता है और फिर काम करने का तरीका भी बदल जाता है.’’

पहले इमेज को ले कर भारत में इतनी जागरूकता नहीं थी, पर अब सब इस पर ध्यान देते हैं. जब काम के बाद तारीफ मिलती है, तो व्यक्ति को प्रेरणा मिलती है. इसलिए आजकल कई कंपनियां भी इमेज कंसलटैंट हायर करती हैं.

लोगों के सामने प्रेजैंटेबल दिखने की कला ही आप की पहचान बनाती है इसलिए सचेत रहें और स्मार्ट दिखें.

फैशन मिस्टेक्स

नेहा के हिसाब से कुछ गलतियां जो अकसर लोग करते हैं, वे निम्न हैं.

– सही फैब्रिक न पहनना.

– कपड़े का रंग सही न होना.

– पार्टी के अनुसार तैयार न होना.

– दूसरों को अपने से अच्छा समझना.

इस में सुधार के निम्न उपाय हैं.

– कहीं जाने से 2 दिन पहले कपड़े का चयन करें और उसे ट्राई कर देख लें कि वह ठीक है या नहीं.

– गरमी के मौसम में हलके रंग अधिक पहनें तो सर्दी के मौसम में डार्क कलर. मेकअप भी उन के अनुसार ही करें. अगर पोशाक हैवी हो तो गहने कम पहनें. इसी तरह लाइट पोशाक पर हैवी गहने सही लगते हैं.

– दिन में हलका रंग और फैब्रिक तो रात में गहरा रंग और हैवी फैब्रिक पहना जा सकता है.

कुछ ऐसा हो आपकी लाडली का कमरा

खूबसूरत रंगों से सजा, खुशनुमा और परीकथाओं सा सुंदर, आपकी कल्पना में कुछ ऐसी ही होगी आपके लाडली के कमरे की सजावट. बच्चों के कमरे की सजावट की बात हो तो सामने संभावनाओं का पूरा आकाश है. चाहें तो कमरे की छत को चांद-तारों से सजा सकती हैं या कमरे की किसी एक दीवार को ग्लो पेंट या अपने लाडली के पसंदीदा कार्टून या हीरो के वाल स्टिकर से सजा सकती हैं. अगर आप भी अपने बच्चे का कमरा सजाने जा रही हैं तो कुछ बातों का खयाल जरूर रखें.

बच्चे की पसंद का रखें ध्यान

जब बात बच्चों के कमरे की सजावट की आती है तो सबसे पहले जरूरी है कि इसमें बच्चे की पसंद को शामिल करें. बच्चे के पसंदीदा रंग, उसकी पसंदीदा गतिविधियों और उसकी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कमरे को सजाएं.

बनाएं मल्टी फंक्शनल कमरा

बच्चे का कमरा केवल उसके सोने के लिए ही नहीं होता. इसमें वह अन्य ढेर सारी गतिविधियां करता है. इसमें उसके पढ़ने, खेलने, क्राफ्ट, पेंटिंग जैसी चीजों के लिए अलग-अलग जोन बनाएं, जहां वह आराम से ये सभी चीजें कर सके. छोटे बच्चे के कमरे में आप नंबर या अल्फाबेट के डिजाइन वाली दरी बिछा सकती हैं या किसी एक दीवार पर गिनती या अल्फाबेट वाले पैटर्न लटका सकती हैं.

वालपेपर हो बेहतर

बच्चे के कमरे की दीवारों को पेंट करवाने की जगह खासतौर पर बच्चों के लिए बने डिजाइनर वालपेपर का प्रयोग करें. अकसर बच्चे शरारत में दीवारों को कभी अपनी चित्रकारी का हुनर दिखाकर, तो कभी गंदे हाथ लगाकर खराब कर देते हैं. ऐसे में अगर दीवारों पर पेंट है, तो उसे दोबारा करवाना काफी झंझट भरा होने के साथ ही महंगा भी होता है. वालपेपर खराब हो जाने की स्थिति में इसके किसी भी हिस्से की स्ट्रिप को आसानी से बदला जा सकता है.

स्टोरेज हो पर्याप्त

बच्चा चाहे किसी भी उम्र का हो, उसके पास ढेर सारा सामान होता है. किताबें, कपड़े, स्टेशनरी, खिलौने और बड़े चाव से इकट्ठा किए गए सामानों का पिटारा होता है उसके पास. बौक्स बेड की जगह ऐसा बेड चुनें, जिसके साथ हेड बोर्ड शेल्फ और अंडर बेड ड्राअर जुड़े हों. इसके अलावा फोल्डेबल स्टोरेज बिन, दीवारों और दरवाजों पर हुक्स, खूबसूरत टोकरियों और शेल्फ का इस्तेमाल करके स्टोरेज स्पेस बनाया जा सकता है.

बढ़ती उम्र की जरूरतें

बच्चे के कमरे की सजावट इस प्रकार करें कि उसमें उम्र के साथ बदलती जरूरतों के अनुरूप आसानी से बदलाव किए जा सके. छोटे बच्चों को आर्ट और क्राफ्ट के लिए प्ले टेबल की जरूरत होती है, तो स्कूल जाने वाले बच्चों को स्टडी टेबल की. बच्चे के कमरे के लिए फर्नीचर भी ऐसा चुनें, जिसे जरूरत के मुताबिक आसानी से बदला जा सके.

नाश्ते में बनाएं इडली चाट

सामग्री

40 मिनी इडली

20 पापड़ी

50 ग्राम उबला हुआ काबुली चना

75 ग्राम कटा हुआ पनीर

50 ग्राम कतरा हुआ आलू

4 टेबल स्पून मिंट या पुदीने की चटनी

4 टेबल स्पून सोठ पाउडर

20 टेबल स्पून मीठा दही

सजाने के लिए कतरी हुई मिर्च और हरी धनिया

स्वादानुसार नमक

1 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर

जरूरत के अनुसार तेल

विधि

इडली, पनीर और आलू को अलग-अलग तल लें. अब काबुली चने, हरी मिर्च, धनिया, नमक और लाल मिर्च पाउडर एक बाउल में डालें. इसमें पापड़ी को तोड़कर डालें. फिर हलके से सभी सामग्री एकसाथ मिलाएं.

अब पुदीने की चटनी और सोंठ डालकर अच्छी तरह मिलाएं. अब एक अन्य बाउल में इस मिश्रण को व्यवस्थित करें. फिर बाउल के किनारे पर दही डाले और हरी धनिया से सजाकर सर्व करें.

‘शुभ मंगल सावधान’ में अस्थायी नपुंसकता का मुद्दा है : आयुष्मान खुराना

‘विक्की डोनर’ से लेकर ‘बरेली की बर्फी’ तक आयुष्मान खुराना ने काफी उतार चढ़ाव देखे हैं. उनकी कुछ फिल्में सफल तो कुछ असफल भी हुई. मगर उन पर असफल कलाकार का लेबल चस्पा नहीं हुआ. फिलहाल वह ‘शुभ मंगल सावधान’ को लेकर चर्चा में हैं, जिसमें उनका किरदार उनकी पहली फिल्म ‘विक्की डोनर’ से ठीक विपरीत है.

आपके करियर की शुरुआत बहुत अच्छी हुई थी. लेकिन बीच में कहां गड़बड़ हो गयी? क्या बीच में आपने फिल्म गलत चुन ली?

यदि हमें पहले से पता चल जाए कि कौन सी फिल्म सफल होगी, तो हम असफल होने वाली फिल्म क्यों चुनेंगे. अभी तक सफल फिल्म का फार्मुला सामने नहीं आया है .दूसरी बात मुझे रिस्क लेने में आनंद आता है. मेरी कोई रिस्क कामयाब होगी, कोई नही. इसी तरह से मेरा करियर चलता रहेगा. मैं रिस्क लेने से नही डरता. मैं पहले ‘एक्टर’ हूं, मेरा स्टार स्टेटस तो दर्शकों द्वारा मेरी फिल्में किस तरह से स्वीकार करते हैं, उस आधार पर बनेगा.

बौलीवुड में तो एक्टर की बजाय स्टार को ज्यादा अहमियत दी जाती है

ऐसा हमेशा होगा. पर हम हर बार टिपिकल स्टार वाला रास्ता नहीं अपना सकते. कुछ अलग एक्टर भी होंगे. कोई अमोल पालेकर या फारूख शेख भी होंगे. मैंने तो अलग राह अपनायी है. मैं हर फिल्म एक जैसी नहीं कर सकता. मेरी कुछ फिल्में बेहतरीन कंटेंट वाली होंगी, कुछ फिल्में किसी सामाजिक मुद्दे पर होंगी, तो कुछ फिल्में किसी टैबू को तोड़ने वाली होंगी. ऐसे में मेरी कुछ फिल्में लोगों को समझ में आएंगी. कुछ फिल्में लोगों को अच्छी लगेंगी. ऐसा होता रहेगा.

फिल्म बरेली की बर्फी के प्रदर्शन के हज 15 दिन में आपकी दूसरी फिल्म शुभ मंगल सावधान प्रदर्शित हो रही है.

मेरी जिंदगी में ऐसा पहला अनुभव हो रहा है. ‘दम लगा के हाइशा’ के बाद दो वर्ष तक मेरी एक भी फिल्म प्रदर्शित नहीं हुई. पर अब 15 दिन में दो फिल्में आ रही हैं. जब तक कलाकार फिल्म से बड़ा न हो, तब तक फिल्म के प्रदर्शन को लेकर अंतिम निर्णय निर्माता का ही होता है. हर सुपरस्टार खुद तय करता है कि उसकी फिल्म की रिलीज की तारीख क्या हो. पर अभी मैं फिल्म से बड़ा नही हूं. ‘बरेली की बर्फी’ सोलो रिलीज हुई है. जबकि मेरी दूसरी फिल्म एक सितंबर को अजय देवगन व इमरान हाशमी की फिल्म ‘बादशाहो’ के संग रिलीज हो रही है. लेकिन उसके बाद के सप्ताहों में कोई बड़ी फिल्म नहीं है. तो मेरी समझ से ‘शुभ मंगल सावधान’ को अच्छा अवसर मिलेगा.

आपकी नजर में बरेली की बर्फीऔर शुभ मंगल सावधान में सबसे बड़ा अंतर क्या है?

आपने ‘बरेली की बर्फी’ देखी होगी, तो पाया होगा कि यह एक रौम कौम है. इसमें त्रिकोणीय प्रेम कहानी है. जबकि ‘शुभ मंगल सावधान’ समाज में टैबू माने जाने वाले इरेक्टाइल डिस्फंक्षन यानी कि अस्थायी नपुंसकता, जिसे कुछ लोग नामदर्गी भी कहते हैं, पर बात करती है. साथ में प्रेम कहानी भी है. मेरा दावा है कि ‘शुभ मंगल सावधान’ के प्रदर्शन के बाद लोग नपुंसकता पर खुलकर बात करना शुरू कर देंगे. लोगों को हमारी फिल्म का ट्रेलर काफी पसंद आया है.

शुभ मंगल सावधानका आफर मिलने पर आपके दिमाग में पहली प्रतिक्रिया क्या हुई थी?

इस फिल्म की पटकथा सुनकर मैं काफी प्रभावित हुआ था. मैंने 2012 में ‘विक्की डोनर’ की थी. अब उसके ठीक विपरीत नामर्दगी पर आधारित फिल्म का आफर है. ‘विक्की डोनर’ के ठीक विपरीत कांसेप्ट वाली फिल्म का मिलना मेरी उपलब्धि ही है. फिर जब पता चला कि इसी विषय परा तमिल भाषा में सफल फिल्म बन चुकी है, तो मेरा उत्साह बढ़ गया. पर मैंने मूल तमिल फिल्म आज तक नहीं देखी.

जिस विषय पर लोग बात नहीं करना चाहते, उसी विषय वाली फिल्म में अभिनय करते समय आपके मन में कोई हिचक रही?

जी नहीं. मेरे करियर की शुरूआत ही टैबू वाले विषय यानी कि स्पर्म डोनर की कहानी पर बनी फिल्म से हुई. शायद आप भी जानते होंगे कि ‘विक्की डोनर’ भी कई बड़े स्टार कलाकारों को आफर की गयी थी, सभी ने ठुकरा दिया, तब वह फिल्म मेरे पास आयी थी. अब ‘शुभ मंगल सावधान’ के साथ भी ऐसा ही हुआ. मैं तो वह फिल्में करता रहूंगा, जिन्हें बड़े कलाकार स्वीकार नहीं करेंगे. मैं तो वही फिल्म करुंगा, जो अलग किस्म की हों, जो फिल्म मुझे एक्साइट करे, लोगों को एक्साइट करे. यह फिल्म ऐसे विषय पर बनी है, जिस पर आज तक लोग खुलकर बात नहीं कर पाए. मजेदार बात यह है कि यह डाक्यूमेंटरी नहीं, बल्कि एक मनोरंजक फीचर फिल्म है. इसे पूरा परिवार एक सथ बैठकर देख सकेगा.

संगीत के क्षेत्र में क्या प्रगति है?

मैं अपनी फिल्मों में ही अवसर मिलने पर गीत गाता हूं. पर मैंने बीच में अपनी दो फिल्मों में नहीं गाया. ‘बरेली की बर्फी’ में एक गाना गया है. ‘शुभ मंगल सावधान’ में एक गाना ‘कान्हा..’ गाया है.

आप सिंगल गाने गा रहे हैं. इस तरह के गीतों को किस तरह का रिस्पांस मिलता है?

मैं टीसीरीज के साथ मिलकर ही सिंगल भी निकालता हूं. उनकी मार्केटिंग बहुत अच्छी है. तो हमेशा अच्छा रिस्पांस मिलता है. मेरे गाने युवा पीढ़ी ज्यादा पसंद करती है. म्यूजिकल कंसर्ट करता रहता हूं. गत वर्ष न्यूजीलैंड व कनाडा गया था. अभी सितंबर माह में मेरा म्यूजिकल कंसर्ट मुंबई और गोवा दोनों जगह होने वाला है. इस तरह पूरे वर्ष म्यूजिकल कंसर्ट का दौर भी चलता रहता है.

सोशल मीडिया पर आप काफी सक्रिय रहते हैं?

जी हां! मगर मेरा ट्विटर एकाउंट मेरी आने वाली फिल्म का इश्तहार नहीं बनता. मैं इससे थोड़ा दूर रहता हूं. मैं अपनी फिल्म के पोस्टर कम लगाता हूं. मैं नहीं चाहता कि ट्विटर पर मेरे फालोअर्स यह न समझे कि मैं खुद को बेच रहा हूं.

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