जिंदगी को रफ्तार देती स्किल्स

हर जरूरी स्किल क्लासरूम में नहीं सिखाई जाती. कुछ स्किल्स जिंदगी से भी सीखी जाती हैं. इन्हीं स्किल्स से कैरियर की नींव तैयार होती है. अगर आप के पास इन स्किल्स का अभाव है, तो आप की प्रोफैशनल ग्रोथ में परेशानी हो सकती है. आइए जानते हैं इन स्किल्स के बारे में :

निर्णय लेना : हमें हर समय कोई न कोई निर्णय लेना पड़ता है. गलत निर्णय लेने से कैरियर खराब हो सकता है. क्या आप जानते हैं कि अच्छा निर्णय किस तरह से लिया जाए? खुद से 3 सवाल पूछें : क्या इस से आप के कैरियर के लक्ष्य की तरफ कदम बढेंगे? क्या इस से आप की प्रोफाइल मजबूत होगी? क्या इस से आप की ग्रोथ के मौके पैदा होंगे? अब अपने निर्णय की कीमत और इस से कंपनी, टीम व आप को होने वाले फायदों के बारे में विचार करें.

खुद को प्रमोट करना : अगर आप खुद का प्रमोशन नहीं करेंगे, तो इस काम को आप के बदले कोई भी नहीं करेगा. अपने बौस, टीम और कंपनी के सामने खुद को प्रमोट करने के लिए आप को खुद प्रयास करने चाहिए. इस बात को सीखें कि बेहतर सीवी किस तरह से बनाएं. छोटी बातचीत में अपनी खूबियों के बारे में बताना सीखें. आप ने अच्छे काम किए हैं, तो उन के बारे में लोगों को बताने से न चूकें.

बिजनैस को समझना : बिजनैस का लक्ष्य होता है, लाभ कमाना. क्या आप को पता है कि रेवन्यू कहां से आता है? कस्टमर आप की फर्म से क्यों जुड़े हैं? आप की फर्म के बड़े खर्चे क्या हैं? क्या आप कंपनी की कौस्ट कम करने या रेवन्यू बढ़ाने में मदद करते हैं? इन के  जवाब खोजने से खुद का महत्त्व पता लगेगा.

ध्यान से सुनना : प्रोफैशनल की सब से बड़ी गलती होती है कि वे सही तरह से सुनने की कला नहीं जानते. इस से कम्युनिकेशन स्किल्स अधूरी रहती है. सुनने के लिए पूरी तरह उस के शब्दों के चयन, आवाज की टोन और बौडी लैंग्वेज पर गौर करना पड़ता है. स्पीकर के पूरे मैसेज के साथ अनकही बात को भी समझना पड़ता है.

कनैक्शन बनाना :  आप वर्कप्लेस पर लोगों से कट कर नहीं रह सकते. अपनी कोर स्किल्स के बल पर आप हर लक्ष्य हासिल नहीं कर सकते, अगर लोग आप के साथ काम करना पसंद नहीं करते, मदद नहीं करते और वे आप से नहीं जुड़ते तो परेशानी हो सकती है.

समय निकालना : सफल लोग ज्यादा काम करते हैं, इसलिए बड़ी सफलता हासिल करते हैं. आम लोग अपने टारगेट्स पूरा करने के लिए ही ओवरटाइम करते हैं. सफल लोग अपने रूटीन में से समय निकालना जानते हैं. समय को वे सीखने या ज्यादा अनुभव प्राप्त करने में खर्च करते हैं. समय बचाने के लिए दिन के खास काम पहले करें. कठिन कार्य दैनिक रूटीन में शामिल करें. डैडलाइंस सैट करें. मल्टीटास्किंग के चक्कर में काम की क्वालिटी से समझौता न करें. काम के दौरान आने वाली बाधाओं से दूर रहने का प्रयास करें. दिन में एक घंटे का समय सोचने, प्रशिक्षण लेने और खुद के विकास के लिए निकालें. खुद के लिए समय नहीं निकालेंगे तो परेशान रहेंगे.                                       

ऐसे न बनें

गुस्से वाला : भले ही आप समझदार हों, लेकिन यदि बातबात पर गुस्सा करते हैं, तो बात बिगड़ सकती है.

कठिनाई से बचने वाला : भले ही आप काबिल हों, पर समस्या के दौरान यदि भागने की कोशिश करते हैं तो इस से कैरियर में दिक्कत आ सकती है.

ज्यादा काम लेने वाला : क्षमता से ज्यादा जिम्मेदारियां लेने वाला व्यक्ति प्रमोशन के बजाय विफलता को न्योता देता है, इसलिए अपनी क्षमताएं पहचानें.

ज्यादा क्रैडिट लेने वाला : अपनी टीम को क्रैडिट देने के बजाय सारा श्रेय खुद लेने वाले व्यक्ति के बारे में देरसवेर सब को पता लग जाता है. इस से उसे कैरियर में नुकसान होता है.

बौलीवुड में सैरोगेसी और टैस्टट्यूब बेबी का बढ़ता चलन

हाल ही में प्रसिद्ध ऐक्टर जीतेंद्र के सुपुत्र तुषार कपूर ने कुंआरा बाप बन कर पूरी फिल्म इंडस्ट्री को चौंका दिया. तुषार कपूर के अनुसार वे पिता का सुख पाना चाहते थे और उस के लिए ज्यादा इंतजार भी नहीं करना चाहते थे लिहाजा, उन्होंने सैरोगेसी का सहारा लिया. वे बच्चों को बहुत पसंद करते हैं, लेकिन उन का फिलहाल शादी का कोई इरादा नहीं है. दरअसल, जब उन की डाक्टर फिरोजा पारीख से मुलाकात हुई तो उन्होंने उन्हें आईवीएफ के जरिए सैरोगेसी के सहारे बच्चा पैदा करने का सुझाव दिया. उन्हें डाक्टर का यह सुझाव पसंद आया और उन्होंने उस को फौलो किया. फाइनली वे एक बच्चे के पिता बन गए हैं जिस का नाम उन्होंने लक्ष्य रखा है. फिल्म इंडस्ट्री में कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने किराए की कोख यानी सैरोगेसी और टैस्टट्यूब बेबी जैसी नई मैडिकल तकनीक के जरिए बच्चों को जन्म दिया है.

एक समय था जब मातापिता इस तकनीक को गलत मानते थे और कुछ लोगों की यह भी धारणा थी कि मैडिकल साइंस के द्वारा जन्मे बच्चे स्वस्थ नहीं होते और उन की उम्र भी ज्यादा नहीं होती. लेकिन धीरेधीरे मैडिकल साइंस ने साबित कर दिया कि मैडिकल साइंस के जरिए न सिर्फ बच्चे जन्मे जा सकते हैं बल्कि वे स्वस्थ भी होते हैं. इसी के चलते काफी साल पहले सुभाष घई ने टैस्टट्यूब के जरिए एक बच्ची को जन्म दिया था जिस का नाम है मुसकान.

सुभाष घई को भी बच्चे का सुख प्राप्त करने में मुश्किलें आ रही थीं जिस के चलते उन्होंने एक बेटी को गोद लिया. उस के बाद कई साल के बाद उन को टैस्टट्यूब बेबी की जानकारी मिली और टैस्टट्यूब बेबी के जरिए एक बच्ची को उन की पत्नी रेहाना ने जन्म दिया.

बांझपन दुखदायी

एक औरत के लिए मां बनना सब से सुखद एहसास होता है जबकि किसी महिला के लिए बांझ कहलाना सब से ज्यादा दुखदायी होता है, लेकिन आज मैडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि सैरोगेसी का सहारा ले कर सिर्फ स्त्री ही नहीं बल्कि पुरुष भी बाप बनने का सुख प्राप्त कर सकते हैं. अगर आप के पास पैसा है और आप मां या बाप बनने की इच्छा रखते हैं तो यह कार्य अब मुश्किल नहीं है. सूत्रों के मुताबिक सैरोगेसी या टैस्टट्यूब बेबी के जन्म के लिए लाखों में खर्च आता है. सैरोगेसी के लिए तकरीबन 10 से 15 लाख रुपए तक खर्च करने पड़ते हैं.

बौलीवुड में सैरोगेसी

फिल्म इंडस्ट्री में ज्यादा से ज्यादा मैडिकल साइंस का सहारा ले कर बच्चे पैदा करने का चलन है. इस की कई वजह हैं, जैसे कि कुछ लोग कैरियर बनाने के चक्कर में उस उम्र को पार कर गए जब बच्चे नैचुरल तौर पर पैदा किए जा सकते हैं. बढ़ती उम्र में शादी कर के बच्चे पैदा करना मुश्किल ही नहीं खतरनाक भी साबित हो सकता है, इसीलिए कुछ बड़ी उम्र के मातापिता ने टैस्टट्यूब बेबी या सैरोगेसी का सहारा ले कर बच्चा पाने का सुख प्राप्त किया.

इस के लिए कोरियोग्राफर डायरैक्टर फराह खान का नाम सब से पहले आता है जिन्होंने मैडिकल साइंस के जरिए 3 बच्चों को एकसाथ जन्म दिया. फराह खान के अलावा शाहरुख खान और आमिर खान ने भी 50 की उम्र में सैरोगेसी से पिता बनने का सुख प्राप्त किया. शाहरुख खान ने इस उम्र में बाप बनने का मन इसलिए बनाया, क्योंकि जब उन के 2 बच्चों सुहाना और आर्यन का जन्म हुआ था तो वे अपने अभिनय कैरियर को संवारने में इतने व्यस्त थे कि उन को अपने बच्चों का बचपन ऐंजौय करने का समय ही नहीं मिला. लिहाजा, अबराम के जरिए अब वे अपने बच्चे का बचपन ऐंजौय कर रहे हैं.

शाहरुख खान की तरह आमिर खान ने भी अपनी दूसरी पत्नी किरण के लिए सैरोगेसी के जरिए एक बच्चे को जन्म दिया जिस का नाम आजाद है. आमिर खान की तरह सोहेल खान ने भी सैरोगेसी का सहारा ले कर एक बेटे को जन्म दिया. इस के अलावा 400 से ज्यादा मलयालम, तेलुगू, तमिल और हिंदी फिल्मों में काम कर चुकी शोभना की बेटी नारायणी भी सिंगल पेरैंट हैं.

फिल्म विक्की डोनर

पिछले दिनों मैडिकल साइंस द्वारा बच्चे पैदा करने की पद्धति को ले कर एक फिल्म बनी थी ‘विक्की डोनर.’ इस फिल्म का हीरो आयुष्मान खुराना पैसा कमाने के लालच में अपने स्पर्म बेचता है और उस की वजह से करीबन 46 लोगों को मांबाप बनने का सुख प्राप्त होता है. इस फिल्म व मैडिकल साइंस के जरिए बच्चे पैदा करने की प्रथा को बढ़ावा दिया गया था जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया.

करण जौहर भी सैरोगेसी के जरिए 2 बच्चों के पिता बन चुके हैं करण जौहर ने बेटे का नाम यश और बेटी का नाम रूही रखा है. करण 44 वर्ष के हैं और वे हमेशा अपने जैंडर को ले कर चर्चा में रहे हैं.

कुछ स्टारों ने बच्चे गोद ले कर पाया बच्चों का सुख…

बौलीवुड में कई स्टार ऐसे भी हैं जिन्होंने बच्चे गोद ले कर उन को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाया है, जिन में सब से पहले नाम आता है सलमान खान का, जिन्होंने अर्पिता को न सिर्फ गोद लिया बल्कि ढेर सारा प्यार भी दिया. अर्पिता सलमान की फेवरिट हैं और वे अपनी बहन के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं. इसी तरह सुष्मिता सेन, रवीना टंडन, मिथुन चक्रवर्ती जैसे कई स्टारों ने बच्चों को गोद ले कर उन का जीवन संवारा है.

फिल्म इंडस्ट्री में समलैंगिकता, अतिव्यस्तता और बड़ी उम्र में विवाह कर बच्चा पैदा न कर पाने वाले लोगों के लिए सैरोगेसी और टैस्टट्यूब बेबी वरदान साबित हुआ है. कई सारे अविवाहित ऐक्टर जो 40-50 की उम्र पार कर चुके हैं और अविवाहित हैं. ऐसे लोगों के लिए तुषार कपूर ने कुंआरा बाप बन कर इस प्रथा की शुरुआत कर दी है, जिस में अब महिलाएं भी सिंगल मदर बनने के लिए तैयार हैं और अब किसी को बच्चे न होने के दुख से भी नहीं गुजरना पड़ेगा.

होंठों को दें मैट प्रूफ लुक

खूबसूरत, गुलाबी होंठों की चाह हर महिला की होती है और इस के लिए वह तमाम चीजों का सहारा लेती है, ले भी क्यों न, क्योंकि सुंदर होंठ सभी का ध्यान आकर्षित जो करते हैं.

होंठों के मेकअप को ले कर सौंदर्य विशेषज्ञ इशिका तनेजा कहती हैं कि लिप मेकअप का मतलब सिर्फ ट्रैंड के अनुसार होंठों पर कोई भी लिपस्टिक लगा लेना नहीं है, बल्कि उन का सौंदर्य बढ़ाने के लिए कुछ बातों का ज्ञान होना आवश्यक है.

बारिश के बाद उमस भरे दिनों में हौट लिपस्टिक ट्रैंड को अगर देखें तो मैल्ट पू्रफ लुक के लिए मैट लिपस्टिक ही इन दिनों सब से ज्यादा पसंद की जाती है, जिस तरह से कपड़ों का फैशन बदलता है, उसी तरह से ब्यूटी प्रोडक्ट्स में भी नए कलर, नए स्टाइल आते हैं, इसलिए अगर खुद को फैशन के साथ अपडेट रखना चाहती हैं, तो न्यू लिपस्टिक ट्रैंड को ही फौलो करें.

अब फैशन ग्लौसी लिपस्टिक का नहीं, बल्कि मैट लिपस्टिक का है. मैटी फिनिश वाली लिपस्टिक बारिश के बाद उमस भरे दिनों के लिए सब से अच्छी होती है, क्योंकि इस की खासीयत यह होती है कि यह ह्यूमिडिटी और चिपचिपाहट वाले दिनों में होंठों पर फैलती नहीं है, उलट डिसैंट लुक देती है. मैट लिपस्टिक में डीप रैड, चैरी रैड, वाइन, प्लम, बरगंडी, कोरल रैड, डार्क ब्राउन, मैरून, ब्लैकिश मैरून, ब्लैक कलर ट्रैंड में हैं.

मैट का है बोलबाला

इस सीजन में मैट का ही बोलबाला है. आजकल कई कंपनियां लिक्विड फौर्म में भी मैट लिपस्टिक बाजार में उतार चुकी हैं, जिन से आप को मैट लुक ही नहीं मिलेगा, बल्कि ऐसी लिपस्टिक्स होंठों को हाइड्रेट भी करती हैं. आप को न्यूड से ले कर डार्क टोन्स तक के मैट लिप कलर मार्केट में मिल जाएंगे.

मैकाडामिया औयल, विटामिन ई और ऐवोकाडो बटर से बनी हाई क्वालिटी की कई मैट लिपस्टिक्स आप के होंठों की खूबसूरती को चार चांद लगाती हैं. इन की एक और खासीयत है कि ये लंबे समय तक खराब नहीं होती हैं.

मैट लिपस्टिक नैचुरल दिखने में मदद करती है. यह होंठों पर इस तरह लगती है मानो होंठों का रंग ही वैसा है. लिपस्टिक चार्ट या ऊपर से लिपस्टिक का रंग देख कर लिपस्टिक खरीदना समझदारी नहीं है. जो भी लिपस्टिक खरीदें वह लगाने पर आप की स्किन से मैच करे.

ध्यान रखें कि निचले होंठ के रंग से 2 शेड गहरी लिपस्टिक ही लें. रंग परखने के लिए लिपस्टिक को निचले होंठ पर लगाएं और ऊपर के होंठ को देख कर रंग की गहराई को चैक करें.

रैड मैट लिपस्टिक तुरंत ग्लैमरस लुक देती है. लेकिन लिपस्टिक के रंग का सही प्रभाव देखने के लिए बिना मेकअप किए इसे एक बार लगा कर जरूर चैक कर लें.

मान लें अगर आप कई शेड्स खरीद रही हों तो उन्हें चैक करते समय ध्यान रहे कि एक शेड को पोंछने के बाद ही दूसरा शेड होंठों पर लगाएं.

मैट लिपस्टिक का प्रयोग

मैट लिपस्टिक का अच्छा लुक आए इस के लिए कंसीलर का प्रयोग जरूरी है. पहले होंठों पर कंसीलर लगा लें ताकि लिपस्टिक का रंग उभर कर आए. इस का 1 नहीं 2 कोट लगाएं और कोट लगाने के पहले या बाद में होंठों को आपस में रब करने से बचें. हां, लिपस्टिक के पहले लिपलाइनर लगा कर होंठों को शेप देना न भूलें. इस का कारण यह है कि लिपलाइनर की इस शेप पर ही टिक कर मैट लिपस्टिक काम करेगी. ग्लौसी लिपस्टिक की तरह मैट लिपस्टिक होंठों पर अपनेआप नहीं फैलती है, इसलिए होंठों पर लिपलाइनर की आउटलाइन ले कर इसे लगाना जरूरी होता है.

जिन के होंठ बहुत मोटे होते हैं, वे मैट लिपस्टिक का इस्तेमाल कर के अपनी लिपशेप को पतला दिखा सकती हैं. सांवली त्वचा वाली महिलाओं पर लिपस्टिक के मैट शेड्स ज्यादा अच्छे लगते हैं.

अगर दिन में कहीं जाना है या औफिस, कालेज जाते समय लिपस्टिक लगानी है, तो हलके व मैट शेड्स का प्रयोग करें, क्योंकि दिन में बहुत गाढ़े व चमक वाले रंग सूट नहीं करते.

मैट लिपस्टिक के प्रयोग में सावधानी जरूरी है. अगर होंठ फटे हों तो यह लिपस्टिक न लगाएं. ऐसी हालत में मैट लिपस्टिक लगाने से पहले होंठों को स्क्रब कर के ऐक्सफौलिएट कर लें. वैसे भी इन लिपस्टिक्स के इस्तेमाल से पहले नौर्मल होंठों पर बेबी औयल से हलकी मालिश कर लेनी चाहिए, क्योंकि कौमन मैट लिपस्टिक्स होंठों को रूखा कर देती हैं. बेबी औयल लगाने से एक तो दरारे नजर नहीं आतीं दूसरे होंठ भी नम हो जाते हैं.               

– इशिका तनेजा, ऐग्जीक्यूटिव डायरैक्टर एल्प्स ब्यूटी क्लीनिक

अब आप भी घर बैठे कमा सकती हैं पैसे

आज के जमाने में पैसे की अपनी अलग अहमियत है और हर कोई पैसा कमाना चाहता है. देश में लोगों की भीड़ लगी पड़ी है नौकरी के लिए लेकिन नौकरी पाना इतना आसान नहीं. ऐसे में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो नौकरी करना ही नहीं चाहते. लेकिन पैसा तो इंसान की जरुरत है इसलिए यहां हम बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे तरीके जिससे आप घर बैठे भी पैसे कमा सकती हैं.

1. टिफिन सिस्टम

अगर आपको खाना बनाने का शौक है तो आप इस हुनर को अपने प्रोफेशन में बदल सकती हैं और इससे आप कापी अच्छा पैसा कमा सकती हैं. इसके लिए आप शुरू में पांच टिफिन से भी शुरुआत कर सकती हैं. धीरे-धीरे फिर टिफिन के साथ-साथ पैसे में भी इजाफा होगा.

2. औनलाइन राइटिंग

लेखना एक कला है, जो हर किसी को नहीं आता और अगर आप इस कला में पारंगत हैं तो आप अपनी सर्विस किसी कंपनी को दे सकती हैं. कंटेन्ट राइटिंग, ब्लौग, औनलाइन रिव्यू और आर्टिकल जैसे कई औप्शन हैं जिसके बदले आपको अच्छे पैसे कमाने का मौका मिलता है.

3. ब्याज का पैसा

अगर आपने भी अच्छे-खासे पैसे जमा कर लिए हैं तो आप इस पैसे को बैंक में या फिर म्यूचुअल फंड्स आदि में लगा सकती हैं. ऐसा कर आप घर बैठे ही पैसे कमा लेंगी. इसके अलावा जरूरतमंदों को पैसे उधार देकर भी आप चाहें तो ब्याज कमा सकती हैं.

4. किराए पर चीजें देना

अगर आपके घर में कमरे खाली हैं तो आप इन्हें किराए पर देकर भी अच्छे पैसे कमा सकती हैं. इसी तरह और कोई चीज जैसे अगर आप अपनी कार का इस्तेमाल रोज नहीं करती हैं तो आप इसे प्रति दिन के हिसाब से रेंट पर दे सकती हैं.

5. औनलाइन कोचिंग

आज कल औनलाइन पढ़ाने का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है. इसलिए अगर आप पढ़ाई में अच्छी हैं तो आप औनलाइन क्लासेज के जरिए स्टूडेंट को पढ़ा सकती हैं और पैसे कमा सकती हैं. इसके लिए जरूरी नहीं है कि आपकी हर विषय में पकड़ हो. आप किसी एक विषय की भी कोचिंग क्लास दे सकती हैं.

गरमी और उमस के मौसम में ऐसे रखें अपनी त्वचा का ख्याल

सूरज की यूवी किरणों से त्वचा की हिफाजत के लिए रोजाना न सिर्फ घर से बाहर जाते वक्त, बल्कि घर में रहने पर भी 40+ एसपीएफ युक्त सनस्क्रीन लगाएं ताकि खिड़की से आने वाली यूवी किरणें आपकी त्वचा को नुकसान न पहुंचा सकें.

अगर आप बाहर जा रही हैं तो दिन में 2 बार या जरूरत पड़ने पर 2 से अधिक बार भी फेसवाश से चेहरा धोकर सनस्क्रीन लगाएं.

नर्म मुलायम होंठों को कड़ी धूप से बचाने के लिए रोजाना उनपर लिप बाम अप्लाई करें.

गरमी में त्वचा की नमी कम हो जाने से वह रुखी और बेजान नजर आती है. ऐसे में त्वचा को हाइड्रेट रखने के लिए भरपूर पानी पीएं. इससे त्वचा नमी युक्त होगी और मुलायम भी बनी रहेगी.

सुबह 10 बजे से लेकर दोपहर 3 बजे की धूप ज्यादा हानिकारक होती है, अत: इस दौरान घर से बाहर जाने से परहेज करें.

गरमी में यंग और फ्रैश स्किन के लिए अपनी डाइट लाइट रखें. अपने डाइट प्लान में वैजीटेबल और फ्रैश फ्रूट्स शामिल करें.

सेहतमंद त्वचा के भरपूर नींद भी जरूरी है. इसलिए रोजाना 8 घंटे की नींद जरूर लें.

क्या कभी आपने देखे हैं ऐसे अनोखे जंगल

आज हम आपको दुनिया के कुछ मशहूर जंगलों के बारे में बताएंगे जहां दुनिया भर से पर्यटक यहां आते हैं. ताकि इन खूबसूरत जंगलों का आनंद ले सकें.  

डेड वेली, नांबिया
यह नांबिया का बेहद खूबसूरत जंगल है. इसे डेड वेली यानी कि मौत की घाटी के नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं कि कभी दुनिया के सबसे ऊंचे रेत के टीले पर घना जंगल हुआ करता था, लेकिन आज यह रेगिस्तान में पेड़ों का कब्रिस्‍तान बन चुका है.

क्लाउड फौरेस्ट, कोस्टा रिका

यह जंगल समुद्र तल से करीब 4724 फीट ऊपर बना है. इसके ऊपर छाये बादलों और घने पेड़ों के चलते सूर्य की रोशनी के सीधे नीचे तक ना पहुंच पाने के कारण यहां जमीन सूख नही पाती. जिसके चलते यहां हमेशा उमस भरी गर्म घनी धुंध छायी रहती और धुंध का बादल छाया रहता है.  

बौबैस के एवेन्यू, मेडागास्कर

साउथ अफ्रिका के मेडागास्कर में करीब 1000 फीट की ऊंचाई पर स्‍थित इस जंगल में 800 वर्ष की आयु तक के बाबाब वृक्ष मौजूद हैं. इन को स्थानीय लोग रेनाला-मालागासी यानि “वेनेजुलाज मदर” के नाम से पुकारते हैं.

बोनीड बीच, फ्लोरिडा

फ्लोरिडा के समुद्र तट मौजूद ये पेड़ों के ठूंठ ऐसे पेड़ों के हैं जो मूल रूप से समुद्र में विकसित नहीं हुए थे, लेकिन जैसे ही पानी बढ़ता गया वे जलमग्न होते गए और मरने लगे. अब ये सिर्फ ठूंठ की शक्‍ल में रह गए और सूरज की रोशनी और समुद्र में मौजूद नमक के चलते सफेद नजर आते हैं. 

टनल औफ लव, यूक्रेन

यूक्रेन स्थित इस टनल में पेड़ों से आच्‍छादित एक सुरंग जैसी आकृति बन गई है, जहां से ट्रेन गुजरती हैं. इसके अलावा यह दुनिया का सबसे रोमांटिक स्थान हैं जहां प्रेमी जोड़े समय बिताना पसंद करते हैं. 

ड्रैगन ब्‍लड फौरेस्‍ट, सौकोट्रा

यमन के तटीय इलाके में बसा है सौकोट्रा जो पूरी तरह ये अपने को दुनिया से अलग किए रहना पसंद करता है. प्राचीन वर्षों में प्रकृति के अनमोल खजाने छिपे थे जिसमें से एक था खास किस्‍म के पेड़ों से निकलने वाला एक लाल रंग का तरल पदार्थ जिसे ‘ड्रैगन का रक्त’  कहा जाता था. हालाकि अब धीरे धीरे ये सब गायब होता जा रहा है. 

मेघालय की लिविंग रूट ब्रिज, भारत

मेघालय में स्थित ये कुदरत का एक गजब नजारा है. एक पेड जिसका नाम फिकस इलास्टिका ट्री होता है , की जडो से ये पुल बनते हैं। यह पेड अपनी जडो से दूसरी सीरीज पैदा करता है. ऐसे पुलो में से कुछ की लम्बाई सौ फुट तक है. बहुत सालो में जाकर ये पेड इस स्थिति में आ जाते हैं कि दोनो किनारों के पेडो की जडें आपस में बंध जाती हैं. ये इतनी मजबूत होती हैं कि 50 लोगों का वजन उठा सकती हैं. यहां कुछ पुल इस तरह भी बने हैं कि वे एक दूसरे के उपर हैं और उन्हे डबल डेकर लीविंग रूट ब्रिज कहा जाता है. 

ग्रीन लेक, औस्ट्रिया

इस खास जंगल का नजारा विश्‍व भर के लोगों को कुछ ही महीनों के लिए मयस्‍सर होता है जब मौसम बदलने पर सर्दियों में जमी बर्फ पिघलती है. उस समय  प्राकृतिक रूप से बना पार्क का यह क्षेत्र पानी से भर जाता है. सारा जंगल पानी में डूबा होता है और पहाड़ियों के बीच बने इस क्षेत्र में लंबी यात्रा करके पहुंचा जा सकता है. गोताखोरी के शौकीन लोगों के लिए उस समय यहां स्‍वर्ग जैसा नजारा होता है. ऐसा लगता है कि आप पानी के अंदर बसे जंगल की सैर कर रहे हों.  

थे पोएम मैंग्रोव, थाईलैंड

थाईलैंड के इन मैंग्राव जंगल में विकसित होने वाले पेड़ों ने यहां की जमीन में मौजूद तीव्र नमकीनता और औक्सीजन की कमी का विरोध करने के लिए हवाई जड़ें विकसित कर ली हैं और वो जमीन के ऊपर दूर तक फैली दिखाई देती हैं.

ओत्जारेटा फौरेस्‍ट, स्पेन

स्पेन के इस जंगल में खूबसूरत गोर्बिया नैचुरल पार्क भी बना है. यहां कई प्राचीन पेड़ों की किस्‍में पाई जाती हैं. यहां का वातावरण ज्यादातर धुंध से भरा होता है. जिसके चलते यह जंगल एक रहस्यमयी आवरण में लिपटा मालूम पड़ता है.

विरासत में भी मिलती है एलर्जी

कुछ लोग एलर्जी के आसान शिकार होते हैं क्योंकि उन में एलर्जन के प्रति संवदेनशीलता जन्मजात होती है. लड़कों में लड़कियों के मुकाबले आनुवंशिक रूप से एलर्जी होने की आशंका अधिक होती है. जन्म के समय जिन बच्चों का भार कम होता है उन्हें भी एलर्जी होने का खतरा बढ़ जाता है. अगर मातापिता दोनों में से एक को या दोनों को एलर्जी होती है तो उनके बच्चे एलर्जी के आसान शिकार होते हैं. वैसे, आनुवंशिक कारण ही एलर्जी होने का एकमात्र कारण नहीं है. एलर्जी होने के कई और कारण भी हो सकते हैं. वे बच्चे, जिन के मातापिता या परिवार में किसी को एलर्जी नहीं है, भी एलर्जी के शिकार हो सकते हैं.

एलर्जी एक मैडिकल कंडीशन है जो आप को बीमार अनुभव कराती है. जब आप किसी चीज को खाते हैं या उस के संपर्क में आते हैं तब एलर्जी होती है. जब इम्यून तंत्र यह विश्वास कर लेता है कि किसी व्यक्ति ने जो चीज खाई है या उस के संपर्क में आया है, वह शरीर के लिए हानिकारक है. शरीर की रक्षा के लिए इम्यून तंत्र एंटीबौडीज उत्पन्न करता है. एंटीबौडीज मास्ट सेल (शरीर के एलर्जी सैल्स) को ट्रिगर करते हैं कि वे रक्त में रसायनों को रिलीज करें.

इन रसायनों में से एक है हिस्टामिन. हिस्टामिन आंख, नाक, गले, फेफड़े, त्वचा या पाचन मार्ग पर कार्य करता है और एलर्जिक रिऐक्शन के लक्षण उत्पन्न करता है. एक बार जब शरीर किसी निश्चित एलर्जन के विरुद्घ एंटीबौडीज का निर्माण कर लेती है, तो ये एंटीबौडीज आसानी से उन एलर्जन को पहचान लेते हैं, शरीर फिर से हिस्टामिन को रक्त में रिलीज कर देता है, जिस से एलर्जी के लक्षण दिखाई देने लगते हैं.

एलर्जी और आनुवंशिकता

एलर्जी विकसित होने की प्रवृत्ति अकसर आनुवंशिक होती है, जिस का अर्थ है कि यह आप के जींस द्वारा आप की अगली पीढ़ी में पास हो सकती है. हालांकि ऐसा नहीं है कि आपके जीवनसाथी या आपको एलर्जी है तो आप के सभी बच्चों को निश्चित ही एलर्जी हो. अगर माता पिता दोनों में से किसी एक को एलर्जी है तो बच्चों के एलर्जी की चपेट में आने का खतरा 50 प्रतिशत होता है. लेकिन अगर माता पिता दोनों को एलर्जी है तो बच्चों के एलर्जी की चपेट में आने की आशंका 75 प्रतिशत तक रहती है.

यह जरूरी नहीं है कि मातापिता को जो एलर्जी है वही बच्चों को भी हो, उन्हें किसी दूसरे प्रकार की एलर्जी भी हो सकती है. एलर्जी न केवल आनुवंशिकता से संबंधित होती है, बल्कि माता पिता और बच्चों के लिंग से भी संबंधित होती है.

एक नए अध्ययन के अनुसार, बच्चे को विरासत में एलर्जी मिलने की आशंका बढ़ जाती है अगर माता पिता में से समान लिंग वाला एलर्जी से पीडि़त है. जैसे, अगर पिता को एलर्जी है तो बेटे को विरासत में एलर्जी मिलने की आशंका अधिक होगी. ऐसे ही, अगर मां को एलर्जी है तो बेटी के लिए खतरा बढ़ जाएगा. एलर्जी अकसर आनुवंशिक होती है लेकिन यह जरूरी नहीं जो एलर्जी मातापिता को हो, वही बच्चों को हो.

आजादी के बाद हिंदी फिल्में और महिलाओं के प्रति बेरुखी

अगर हिंदी सिनेमा के 7 दशक को देखें तो पाएंगे कि आजादी यानी 1947 के बाद से लेकर आज तक किसी भी सुपरहिट फिल्म की कहानी में महिलाओं को प्रमुख स्थान नहीं दिया गया. पूरी फिल्म का क्रैडिट पुरुष कलाकार के खाते में ही गया है. महिलाओं को केंद्र में रखकर बौलीवुड में कई फिल्मों का निर्माण हुआ है, लेकिन उनमें से बहुत कम फिल्में ही अति सफल क्लब में शामिल हो पाई हैं. जो फिल्में अति सफल पायदान पर पहुंची भी हैं, तो उनमें भी महिला किरदारों को कोई खास तवज्जो नहीं मिली. यही हाल परदे के पीछे भी है. यहां भी महिला कलाकारों को पुरुष कलाकारों की तुलना में भेदभाव का शिकार होना पड़ता है. दीपिका पादुकोण की गिनती आज सफल अदाकाराओं में होती है, लेकिन पारिश्रमिक के मामले में उन्हें आज भी लोकप्रिय अभिनेताओं से कम पारिश्रमिक दिया जाता है और यह विषमता दशकों से चली आ रही है.

आजादी के बाद का दौर    

अगर 1947 से 1967 तक की फिल्मों का दौर देखें तो उनमें महिलाओं को बहुत ही पारंपरिक एवं घरेलू रूप में प्रस्तुत किया गया. लेकिन कुछ फिल्म निर्माताओं ने ऐसी फिल्में बनाने का भी साहस किया, जो पारंपरिक भूमिकाओं से बिलकुल हटकर महिलाओं के व्यक्तित्व के सशक्त पक्ष को दिखाती हैं. उनकी इस जिद को भी दिखाती हैं कि पितृसत्तात्मक समाज में भी कैसे वे अपने आप को बाहर निकाल कर अपना वजूद बनाने और आत्मनिर्भर बन कर सम्मानित जिंदगी जीने में सक्षम हैं.

1947 में आई फिल्म ‘जुगनू’ की गिनती उस समय की बंपर हिट फिल्मों में होती है. इस फिल्म में अदाकारा नूरजहां ने एक अनाथ लड़की जुगनू का रोल निभाया था. उनके साथ दिलीप कुमार और शशिकला भी थीं. यह एक म्यूजिकल फिल्म थी. उस समय दिलीप कुमार नूरजहां की तुलना में बहुत छोटे कलाकार थे, इसलिए पूरी फिल्म नूरजहां की ही फिल्म थी.

उस दौर की सफल फिल्मों में ‘दर्द’, ‘मिर्जा साहिब’, ‘शहनाई’ के नाम आते हैं. लेकिन इस दौर की सभी फिल्मों में अदाकारी से ज्यादा गायिकी छाई थी, क्योंकि सुरैया, नूरजहां, गीता बाली अच्छे सुरों की मलिका भी थीं. अगर 47 के दौर की फिल्मों को म्यूजिकल फिल्मों का दौर कहें तो सही होगा.

1948 में आई फिल्म ‘शहीद’ व ‘चंद्रलेखा’ का नाम उस समय की सब से महंगी फिल्मों में होता है, लेकिन 1949 में नरगिस, राजकपूर और दिलीप कुमार के प्रेम त्रिकोण पर बनी फिल्म ‘अंदाज’ में नरगिस के नैसर्गिक सौंदर्य को उन की अदाकारी की तुलना में ज्यादा दर्शाया गया था. इस पूरी फिल्म में राज कपूर और दिलीप कुमार ही छाए रहे.

1953 में आई निर्देशक विमल राय की फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ उस दौर की सफल फिल्म थी. सूदखोरी और जमींदारी प्रथा पर बनी इस फिल्म में बलराज साहनी और निरुपमा राय ने मुख्य भूमिका निभाई थी. लेकिन पूरी फिल्म बलराज साहनी के इर्दगिर्द ही घूमती रही. निरुपमा को सिर्फ रोती हुई असहाय गरीब महिला ही दिखाया गया, जिस पर जमींदार के मुनीम की नजर होती है. यह किरदार ज्यादा सशक्त नहीं था.

मजबूत महिला किरदार

सिनेमा में महिला सशक्तीकरण वाली फिल्मों का नाम जब आता है तो महबूब खान की फिल्म ‘मदर इंडिया (1957)’ का नाम सबसे पहले आता है ‘मदर इंडिया’ राधा (नरगिस) की कहानी है, जो नवविवाहिता के रूप में गांव आती है और घर गृहस्थी की जिम्मेदारियां उठाने में पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलती है.

1959 में आई विमल राय की ‘सुजाता’ में मुख्य भूमिका सुनील दत्त और नूतन ने निभाई थी. यह फिल्म भारत में प्रचलित छुआछूत की कुप्रथा को उजागर करती है. इसमें एक ब्राह्मण पुरुष और एक अछूत कन्या की प्रेम कहानी है. इस फिल्म को 1959 का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला था.

1963 में विमल राय की ‘बंदिनी’ दूसरी नारीप्रधान फिल्म थी, जिसकी कहानी जेल की कैदी कल्यानी (नूतन) के इर्दगिर्द घूमती है. यह शायद अकेली ऐसी फिल्म है, जिसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांव की साधारण महिलाओं का योगदान दर्शाया गया.

1965 में विजय आनंद के निर्देशन में फिल्म ‘गाइड’ में पहली बार फिल्मों में लिव इन रिलेशन को दिखाया गया. इस फिल्म में रोजी बनी वहीदा रहमान का चरित्र नकारात्मक था पर एक स्त्री के मन की उथलपुथल को निर्देशक ने फिल्म में बखूबी दर्शाया.

1966 में लेखक फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी मारे गए गुलफाम पर ‘तीसरी कसम’ नाम से गीतकार शैलेंद्र ने फिल्म बनाई थी. इस फिल्म को उतनी सफलता नहीं मिली पर सर्कस कंपनी में काम करने वाली हीराबाई का किरदार वहीदा रहमान ने अच्छी तरह निभाया.

परिवर्तन का दौर : 1967 से ले कर 2007 

1967 से लेकर 2007 तक की फिल्मों में तो महिलाओं के ग्रे शेड और बोल्ड किरदार केवल वैंप और आइटम गर्ल का रोल निभाने वाली महिलाओं तक ही सीमित थे. हालांकि ऋषिकेश मुखर्जी, गुलजार जैसे निर्देशकों ने अपनी फिल्मों में महिलाओं की सम्मानजनक तसवीर पेश की. लेकिन हीरो के सर्वव्यापी चित्रण से हीरोइनों की भूमिका दोयम दर्जे की

हो गई. इन्हें फिल्मों में नाचगाने के लिए रखा जाने लगा. लेकिन पिछली सदी के अंतिम दशक में उन की सूरत बदली. उन्हें सुंदर, ग्लैमरस आधुनिक दिखाया जाने लगा. लेकिन वे फैसले लेती नहीं दिखीं.

1972 में हेमा मालिनी को रमेश सिप्पी की फिल्म ‘सीता और गीता’ में काम करने का अवसर मिला, जो उनके सिने कैरियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई. इस फिल्म की सफलता के बाद वे शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचीं. उन्हें इस फिल्म में दमदार अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यह फिल्म ‘सीता और गीता’ जुड़वा बहनों की कहानी है जिन में एक बहन ग्रामीण परिवेश में पलीबढ़ी, डरीसहमी रहती है तो दूसरी तेजतर्रार होती है. हेमामालिनी के लिए यह किरदार चुनौती भरा था लेकिन उन्होंने अपने  सहज अभिनय से इसे बहुत अच्छी तरह निभाया. फिल्म रमेश सिप्पी ने दिलीप कुमार की राम और श्याम से प्रेरित होकर बनाई थी. फिल्म हेमा की होने के बाद भी दर्शक हर समय हेमा की दिलीप कुमार से तुलना करते रहे.

1975 में आई रमेश सिप्पी की सुपरडुपर हिट फिल्म ‘शोले’ में सभी किरदारों के ऊपर एकसमान कैमरा घूमा पर हेमा मालिनी को सिर्फ तांगे वाली बसंती के रूप में ही दर्शक याद रख सके. फिल्म में जया भादुड़ी और हेमा के अभिनय को अमिताभ, धर्मेंद्र, संजीव कुमार, अमजद खान जैसे कलाकारों ने छोटा कर दिया.

1989 से 2006 तक कई सुपरहिट फिल्में ‘मैंने प्यार किया’, ‘हम आपके हैं कौन’, ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’, ‘धूम 2’ फिल्में आई, जिन्होंने सफलता के झंडे गाड़े पर इनमें महिला किरदार सिर्फ ग्लैमर या प्रेमिका के रूप में ही दिखे.

2007 से 2017 की फिल्में

यह हिंदी सिनेमा के बौलीवुडकरण का दौर था. डिजिटल तकनीक के आने से फिल्में तकनीकी रूप से बहुत अच्छी बन रही थीं. 20वीं शताब्दी के आरंभिक दौर में आई फिल्मों में 16 पुरस्कार अपने नाम करवाने वाली इम्तियाज अली की फिल्म ‘जब वी मेट’ वर्ष 2007 की सुपरहिट फिल्म थी. इसमें करीना कपूर ने पंजाबी चुलबुली लड़की गीत का किरदार निभाया है जो बहुत बोलती है और उसकी मुलाकात मुंबई से पंजाब आते समय एक बिजनेसमैन लड़के आदित्य (शाहिद कपूर) से होती है. दोनों कैसे पंजाब पहुंचते हैं फिर गीत की आदित्य कैसे मदद करता है, पूरी फिल्म इसी कहानी पर घूमती है. पूरी फिल्म में करीना ही छाई रहीं. इस फिल्म का डायलौग ‘जब कोई प्यार में होता है तो कोई सही गलत नहीं होता’ काफी हिट हुआ था.

इसी वर्ष महिला हाकी टीम पर बनी फिल्म ‘चक दे इंडिया’, ‘भूलभुलैया’ और मणिरत्नम की फिल्म ‘गुरु’ आईं, जिस में ऐश्वर्या ने सुजाता देसाई का किरदार निभाया था. दीपिका पादुकोण ने भी इसी वर्ष फराह खान की फिल्म ‘ओम शांति ओम’ से बौलीवुड डेब्यू किया था. यह फिल्म भी शाहरुख खान की फिल्म थी. दीपिका को इससे केवल एक फायदा यह मिला कि उन्हें बौलीवुड में लोग पहचानने लगे.

2008 की सफल फिल्मों में आमिर खान की ‘गजनी’, आशुतोष गोवरिकर की ‘जोधा अकबर’ थी. लेकिन कंगना की ‘तनु वैड्स मनु’ ने सब से ज्यादा दर्शक खींचे. इस के बाद 2011 में जेसिका लाल हत्याकांड पर बनी फिल्म ‘नो वन किल्ड जेसिका’ आई जिस में 2 दमदार अभिनेत्रियों विद्या बालन और रानी मुखर्जी ने किसी पुरुष अभिनेता की कमी महसूस नहीं होने दी. इसी साल विद्या की ही फिल्म ‘डर्टी पिक्चर’ ने सिनेमाघरों में खूब धूम मचाई.

80 के दशक की साउथ हीरोइन सिल्क स्मिता के जीवन पर बनी इस फिल्म की कहानी में एक गरीब लड़की रेशमा से सैंसेशनल स्टार सिल्क बनने का और फिर उस के डाउनफाल होने को दिखाया गया है. इस में भी स्त्री पात्र को असहाय दिखाया गया है.

इसके अगले साल 2012 में विद्या बालन की फिल्म ‘कहानी’ का कैमरा भी सिर्फ विद्या के आसपास घूमता रहा. फिल्म की कहानी भी पुरुष समाज की सोच से आगे नहीं निकल पाई. इसमें गर्भवती होने का ढोंग करके नायिका अपने पति के हत्यारों से बदला लेती है. 2013 में ‘कृष-3’, ‘धूम-3’, ‘चेन्नई ऐक्सप्रैस’, ‘गोलियों की रासलीला रामलीला’ जैसी फिल्में आईं, लेकिन इन सभी में महिला किरदारों की स्थिति दोयम दर्जे की रही. 2014 की ब्लौकबस्टर फिल्म ‘पीके’ में अनुष्का शर्मा का किरदार एक स्टैपनी की ही तरह लगा. इसका सारा श्रेय तो आमिर खान ले गए.

इसी साल आई मुक्केबाज ‘मैरीकौम’ की बायोपिक में प्रियंका ने अच्छा अभिनय किया लेकिन यह सिर्फ औसत प्रदर्शन ही कर पाई. सिर्फ फिल्म ‘मार्गरिटा विद स्ट्रा’ में कल्कि कोचलीन ने सेरेब्रल पीडि़त लड़की के किरदार में जान डाल दी लेकिन यह फिल्म बौक्स औफिस पर असफल रही.

यही हाल महिलाओं के सामाजिक मुद्दों को उठाती फिल्म ‘पिंक’ का रहा. इसी समय फिल्म ‘सुलतान’ भी आई, जिस में अनुष्का का काम सिर्फ सलमान खान के साथ नाचने गाने तक ही रहा.

दंगल रही सुर्खियों में

अब तक की सब से ज्यादा कमाई करने वाली 2016 की सुपरडुपर हिट फिल्म ‘दंगल’ ने बेटियों को आगे बढ़ाने का मैसेज दिया पर पूरी फिल्म में देखा जाए तो एक बाप की अपनी बेटियों को पहलवान बनाने की जिद ही सामने आती है. चटपटा खाने, सजने संवरने की शौकीन बेटियों को कैसे एक जिद्दी बाप अपने सपनों को सच करने लायक बनाता है. फिल्म में सिर्फ महावीर फोगट बने आमिर खान ही नजर आते हैं. बेटियों का रोल कर रही फातिमा सना शेख और सान्या मल्होत्रा आमिर खान के सामने कहीं छिप जाती हैं.

चीन में भी इस फिल्म ने सफलता के झंडे गाड़े हैं. वहां इस फिल्म ने सबसे ज्यादा कमाई वाली फिल्म ‘योरनेम’ को पछाड़ दिया है. चीनी मीडिया ने इसकी तारीफ की है. कुछेक  ने आलोचना भी की है कि यह एक जिद्दी बाप की अपने बच्चों पर थोपी गई जिद की कहानी है. इसी वर्ष आई फिल्म ‘मौम’ में जरूर श्री देवी ने एक सशक्त मां की भूमिका निभाई थी जो अपनी बच्ची के बलात्कारियों को एकएक करके मौत के घाट उतारती है.

जितनी भी सफल फिल्में आई हैं उन सभी में महिला किरदारों की भूमिका सिर्फ पुरुष किरदारों के आसपास घूमने वाली रही है. केंद्र में तो पुरुष ही रहा है, क्योंकि हमारे पुरुषप्रधान समाज में सिर्फ कहने के लिए ही महिलाओं को संवैधानिक समानता और अधिकार दिए गए हैं. असल में तो आज भी महिलाएं घर की चौखट नहीं लांघ पाई हैं.

फिल्मों ने 70 साल में महिलाओं की आजादी में कोई योगदान दिया हो, यह निष्कर्ष निकालना कठिन है.

फिल्म निर्माण में भी भेदभाव

बौलीवुड में गिनेचुने नाम ही महिला निर्देशकों के हैं, जो सफल हैं. मीरा नायर, गुरिंदर चड्डा, फराह खान, मेघना गुलजार, जोया अख्तर, गौरी शिंदे के अलावा भी रोज कई नए नाम सुनने को मिलते हैं पर उनकी फिल्में कहां गुम हो जाती हैं पता नहीं चलता. यही हाल फिल्म निर्माण का है. पूजा भट्ट को भी फिल्म निर्माण में तभी सफलता मिली जब उन्होंने भट्ट कैंप का दामन छोड़ा. दीया मिर्जा, गौरी खान, दिव्या खोसला जैसे नाम सुनने में जरूर आते हैं, लेकिन यह सभी को पता है कि उनके फैसले लेता कौन है.

फिल्मों और छोटे परदे पर कई वर्षों से काम कर रही अभिनेत्री सुप्रिया पाठक कहती हैं कि कभी पुरुषों के अधिकार वाले मेकअप जैसे तमाम विभागों में महिलाओं की काफी घुसपैठ हो गई है. पहले मुश्किल से शूटिंग स्पौट पर 1 या 2 लड़कियां होती थीं, लेकिन आज प्रोडक्शन, लाइटिंग, मेकअप और निर्देशन के क्षेत्र में उन की सक्रियता ज्यादा दिख रही है.

छोटे परदे भी अछूते नहीं

पिछले दिनों टीवी ऐक्ट्रैस शिल्पा शिंदे ने ‘भाभी जी घर पर हैं’ शो के निर्माता पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था. कई फिल्मी नायिकाएं भी उन पर हुए सैक्सुअल हैरसमैंट को स्वीकार चुकी हैं, पर काम न छिन जाए की मजबूरी उन्हें आवाज उठाने नहीं देती. अभिनेता हेमंत पांडेय बताते हैं कि आज कंपीटिशन इतना बढ़ गया है कि हमेशा काम मिलने की चाह में हर कोई चुपचाप अपने साथ हुए हादसे को सहन कर लेता है.

प्यार को जाहिर करना जरूरी : शमता अंचन

आशुतोष गोवारीकर के धारावाहिक ‘एवरेस्ट’ में मजबूत अभिनय कर चर्चा में आने वाली टीवी अभिनेत्री शमता अंचन ने मौडलिंग से अपने कैरियर की शुरुआत की. मुंबई की शमता को बचपन से ही अभिनय की इच्छा थी, जिस में साथ दिया उन के मातापिता ने. उन्होंने अपनी बेटी को हमेशा अच्छा और गुणवत्तापूर्ण काम करने की सलाह दी. स्वभाव से नम्र शमता के लिए अभिनय के क्षेत्र में आना मुश्किल नहीं था क्योंकि उस ने कैरियर की शुरुआत 18 साल की उम्र में मौडलिंग से की थी.

उसी दौरान आशुतोष ने उस के एक टीवी विज्ञापन को देखा. उन्हें एक नए चेहरे की तलाश थी, जिस के लिए स्क्रीन टैस्ट के बाद उस का चयन हो गया. इस के बाद उसे करीब डेढ़ साल बाद जी टीवी के धारावाहिक ‘बिन कुछ कहे’ में काम मिला, जिस की पूरी शूटिंग राजस्थान के जयपुर में हो रही है. उन से मिल कर बात करना रोचक था.

एवरेस्टधारावाहिक आप का माइलस्टोन धारावाहिक था, जिस से आप को अभिनय के क्षेत्र में आने का मौका मिला, अभी आप दूसरा धारावाहिक कर रही हैं, अपने आप में कितना बदलाव महसूस करती हैं?

‘एवरेस्ट’ सीरियल की टीआरपी अच्छी नहीं थी, लेकिन वह मेरे लिए एक यादगार धारावाहिक था. उस में ऐडवैंचर था, जो मुझे पसंद था. अब मुझे अलगअलग भूमिकाएं मिल रही हैं और मैं काम के साथ ग्रो कर रही हूं.

यह शो एक सीमित समय में खत्म होने वाला है, जबकि आजकल के टीवी शो सालोंसाल चलते हैं, आप को क्या पसंद है?

यह यूथ शो है और यूथ को ‘ड्रेगी शो’ अधिक पसंद नहीं आते. धारावाहिक ‘एवरेस्ट’ भी सीमित अवधि में खत्म हो गया था. मुझे ऐसे ही काम पसंद हैं. मेरे हिसाब से किसी की भी क्रिएटिविटी एक कहानी के लिए सीमित होती है, सालोंसाल उसे खींचते रहने से उस की आत्मा मर जाती है.

आप किस तरह की कहानी को अधिक पसंद करती हैं?

‘एवरेस्ट’ के बाद मुझे कोई अच्छी कहानी न तो किसी टीवी शो में मिली और न ही किसी फिल्म में. मैं हमेशा से एक अच्छी कहानी से अच्छी भूमिका निभाना पसंद करती हूं. मुझे सासबहू की कहानियां प्रेरित नहीं करतीं और न ही मैं देखती हूं. एवरेस्ट में मैं ने ऐडवैंचर और ड्रामा किया है. इस में मैं एक लाइट हार्टेड भूमिका में हूं, जिस में कौमेडी और रोमांस है. दोनों में मेरी भूमिका अलग है.

आप ने कभी अभिनय नहीं सीखा, ऐसे में पहली बार कैमरे के आगे खड़े होने का अनुभव कैसा था?

मैं ने मौडलिंग की है. इसलिए कैमरे का ऐंगल समझ में आ गया था. अभिनय नहीं किया था, उसे ही समझना पड़ा. मैं हर धारावाहिक से पहले वर्कशौप को अच्छी तरह अटैंड कर लेती हूं. इस से कुछ समझ में आ जाता है, बाकी अभिनय के दौरान सीख लेती हूं.

आजकल की अभिनेत्रियों द्वारा सोशल मीडिया पर काफी सारे पिक्चर अपलोड किए जाते हैं, जिन्हें बहुत लोग नापसंद करते हैं, और कुछ भी कमैंट लिखते हैं. आप की इस बारे में क्या राय है?

मेरे हिसाब से आप लोगों की नजर में होते हैं, ऐसे में आप की जिम्मेदारी बनती है कि आप कुछ भी सोशल मीडिया पर न तो कहें, न ही डालें. आप को सावधानी बरतनी चाहिए. क्योंकि आप के अभिनय से वे प्रभावित हो कर कई बार आप को आदर्श बना लेते हैं. पर ऐसे भी कुछ लोग होते हैं. जो पौपुलैरिटी को बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं. अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ भी लिखते और पोस्ट करते रहते हैं. यह गलत है. मैं सोशल मीडिया पर अधिक ऐक्टिव नहीं हूं और ऐसी प्रतिक्रिया लिखने वाले लोगों को इग्नोर करती हूं.

आप की नजर में प्यार और रोमांस में अंतर क्या है?

प्यार तो सभी करते हैं, लेकिन रोमांस उस प्यार को भावनात्मक रूप से जाहिर करना है, जिसे अधिकतर लोग नहीं कर सकते. अगर आप किसी से प्यार करते हैं, तो उसे जाहिर करना भी जरूरी है.

आप के सपनों का राजकुमार कैसा होना चाहिए?

अभी मैं ने इस बारे में सोचा नहीं है, पर मुझे केयरिंग, शेयरिंग और लविंग पार्टनर चाहिए.

आप के यहां तक पहुंचने में परिवार का कितना सहयोग रहा?

परिवार का हमेशा ही सहयोग रहा है, उन के बिना तो आप कुछ नहीं कर सकते. इस फील्ड में उतारचढ़ाव बहुत आते हैं, जिन में परिवार का सहयोग जरूरी है. मुझे इस बात की खुशी है कि मैं मुंबई से हूं और मेरा परिवार मेरे साथ है.

क्या फिल्मों में आने की इच्छा है?

बिलकुल, मैं इम्तियाज अली के साथ काम करना चाहती हूं.

किस बात से नाराज हो जाती हैं?

कोई अगर झूठ बोले तो मुझे गुस्सा आ जाता है.

घूमने जाना हो तो कहां जाना पसंद करेंगी?

मुझे घूमने जाना बहुत पसंद है. विदेश में मुझे पेरिस और स्पेन बहुत पसंद हैं और वहां जा कर तरहतरह के व्यंजन टेस्ट करने में मजा आता है. अपने देश में मुझे दार्जिलिंग जाने की इच्छा है.

आप फिटनैस पर कैसे ध्यान देती हैं?

मुझे अधिक ध्यान नहीं देना पड़ता क्योंकि मेरी शारीरिक बनावट ऐसी है कि मैं कभी मोटी नहीं होती. मैं बहुत फूडी हूं. मां के हाथ की बनी चिकनबिरयानी बहुत पसंद है.

कितनी फैशनेबल हैं?

अपने मूड के हिसाब से आरामदायक कपड़े पहनती हूं, जिस में जींस और टीशर्ट खास हैं. हाई हील्स मुझे जरा भी पसंद नहीं.

मेकअप कितना पसंद है?

लाइट मेकअप पसंद करती हूं.

आएदिन महिलाओं के साथ मोलेस्टेशन की घटनाएं होती हैं, आप किसे जिम्मेदार मानती हैं?

लोगों की सोच खराब है. हर महिला को कभी न कभी इस से अवश्य गुजरना पड़ता है. मां को इस की जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी कि बचपन से ही अपने बेटों को महिलाओं की इज्जत करना सिखाएं.

यूथ लड़कियों के लिए क्या मैसेज देना चाहती हैं?

खुद में कौन्फिडैंस रखें और लोगों को यह न पता चलने दें कि आप काम के लिए कितना डेस्पेरेट हैं, इस से लोग आप का लाभ उठाते हैं. ऐसे में स्मार्ट होना चाहिए. साथ ही, अपनी शिक्षा पूरी करें. इस के बाद जो भी प्रोफैशन आप चुनेंगी, आप उस में अवश्य सफल होंगी.

गेहूं से एलर्जी : एक गुमनाम बीमारी

दिल्ली के रहने वाले कुशाल की उम्र 11 वर्ष है लेकिन वह अपने क्लास में सब से छोटा दिखता है. कुशाल की मां को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे?

कुशाल की मां ने बताया कि कुशाल जब 1-2 साल का था तब से ही लग रहा था कि इस का विकास नहीं हो रहा है, कुछ भी खाता है तो पेटदर्द की शिकायत बताता है, बारबार दस्त आते हैं. वह कुशाल को लेकर डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने उसे चैक किया और दवा दे दी.

दवा से 1-2 दिन आराम तो मिल जाता था पर फिर से वही परेशानी. समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.  दूसरे डाक्टर को दिखाया, फिर तीसरे, इस तरह डाक्टर बदलती रही. 8 साल तक यही सिलसिला चलता रहा. फिर एक डाक्टर ने एंटीटीटीजीआईजीए नामक टैस्ट लिखा. जब इस की रिपोर्ट आई तो पता चला कि कुशाल को गेहूं से एलर्जी है. अब कुशाल ने गेहूं से दूरी बना ली है तो इस परेशानी से दूर है.

यही समस्या 8 वर्षीय राघव निर्माण की भी है. दिल्ली के गांधीनगर में रहने वाले राघव की मां पूनम ने बताया कि पहले 5 वर्ष तक तो हमें पता ही नहीं चला, 5 वर्ष तक तो राघव ठीक रहा. पर उसे दस्त की समस्या शुरू हो गई. फिर उसे डाक्टर के पास ले गई. डाक्टर ने दवा दे दी लेकिन उस से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. उस के बाद राघव ने पेटदर्द की शिकायत की, फिर उसने खाना छोड़ दिया. बारबार डाक्टर को दिखाने के बाद भी कुछ पता नहीं चल पा रहा था. डाक्टर बदलती रही पर समस्या ज्यों की त्यों. तब एक डाक्टर ने एंटीटीटीजीआईजीए नामक टैस्ट लिखा. जब उस की रिपोर्ट आई तो पता चला कि राघव को गेहूं से एलर्जी है यानी वह सीलियक रोग से ग्रस्त था. अब वे राघव को कोई भी ऐसा पदार्थ नहीं देती जिसमें गेहूं हो.

दरअसल, यह बीमारी एक प्रोटीन, जिस का नाम ग्लूटेन है, की एलर्जी से होती है. यह प्रोटीन गेहूं, जौ और सफेद वाली राई में पाया जाता है. यह एक गुमनाम बीमारी है. आमतौर पर यह बचपन में देखी और महसूस की जाती है पर इस बीमारी का विस्तार इतना धीमा या मामूली है कि वयस्क होने के बाद भी इसका पता न चलना संभव है. रोग निदान दो चरणों में होता है. पहला खून की जांच और फिर पुष्टि के लिए आंतरिक बायोप्सी. वर्षों तक यह पकड़ में नहीं आता क्योंकि डाक्टर शुरुआत में इसकी जांच लिखते ही नहीं, जबकि यह पनपता रहता है. नतीजा यह होता है कि इस से बच्चों का विकास रुक जाता है. ग्लूटेन की एलर्जी खास कर आंत को प्रभावित करती है. रोग के लंबे समय तक जारी रहने पर आंतों के कैंसर और लिंफोमा यानी प्रतिरोध प्रणाली के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.

क्या खाएं

ग्लूटेनमुक्त भोजन का मतलब गेहूं, जौ और सफेद राई का सूक्ष्म अंश भी भोजन में न हो. गेहूं से बनने वाला आटा, सूजी, मैदा और इन से बनने वाले सभी खाद्यपदार्थ बिलकुल न लें. डबल रोटी, बिस्कुट, पैस्ट्री, समोसे आदि नहीं लेने चाहिए. इस के अलावा बाजार में बहुत सी चीजों को गाढ़ा बनाने के लिए मैदे का इस्तेमाल किया जाता है. मसलन, आइसक्रीम, कुल्फी, टमाटर का सूप, व सौस आदि से बचें.

सवाल उठता है कि फिर क्या खाएं

ग्लूटेनमुक्त खाद्यपदार्थ के तहत मक्का, बाजरा, चावल, ज्वार, सभी प्रकार की दालें, बेसन, दूध और दूध से बने सभी पदार्थ, कुट्टू व सिंघाड़े का आटा, हर तरह के फल व सब्जी का इस्तेमाल कर सकते हैं.

सीनियर कंसल्टैंट व पीडियाट्रीशियन डा. विद्युत भाटिया ने बताया कि भारतीय बाजार में ग्लूटेनफ्री फूड पदार्थ आसानी से उपलब्ध नहीं हैं. इसलिए जिस बच्चे को यह बीमारी है, उस के मातापिता को यह गांठ बांध लेना चाहिए कि घर में ही उसके लिए आटा तैयार करें जिस में गेहूं का एक अंश भी न हो और वही अपने बच्चे को खिलाएं. बच्चों को यह भी समझाएं कि स्कूल में किसी से टिफिन शेयर न करें. बाहर कोई भी पदार्थ न खाएं.

दिल्ली के अपोलो अस्पताल के सीनियर पीडियाट्रीशियन डा. अनुपम सिब्बल कहते हैं कि 80 के दशक के उत्तरार्ध तक सीलियक डिजीज को देश में दुलर्भ माना जाता था. कई अध्ययनों से पता चला है कि बड़ी संख्या में लोग इस बीमारी से पीडि़त हैं. इस बीमारी का एकमात्र इलाज है जीवनभर ग्लूटेन मुक्त भोजन करने के निर्देश का पालन किया जाए.

सीलियक सपोर्ट और्गेनाइजेशन के अध्यक्ष और सीनियर पीडियाट्रीशियन डा. एस के मित्तल ने बताया कि मातापिता को यह पता ही नहीं है कि उन के बच्चे को ग्लूटेन की वजह से परेशानी हो रही है, उसे गेहूं से बने पदार्थ से एलर्जी है.

आज बाजार में दर्जनों कंपनियां ग्लूटेन फ्री होने का दावा कर अपने प्रोडक्ट को बाजार में बेच रही हैं. उन प्रोडक्ट को खाने के बाद भी ग्लूटेन की मात्रा मरीजों में बढ़ जाती है. इन तमाम कंपनियों के दावे बेकार हैं. चिंता की बात यह है कि ऐसे फूड प्रोडक्ट की जांच के लिए भारत में कोई लैब नहीं है.

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