खूबसूरती को दीजिए अलग अंदाज

कहने को तो मेकअप पूरे चेहरे का होता है, लेकिन फेस पर मेन चार्म आई मेकअप से ही आता है. अगर बात करें लेटैस्ट लुक की तो इन दिनों आंखों पर ‘कैट आई लुक’ काफी इन है. मेकअप की शुरुआत में फेस पर बेस के तौर पर आप सूफले का इस्तेमाल कर सकती हैं. यह लगाते ही पाउडर फौर्म में तबदील हो जाता है और फेस को मैट लुक देता है. लेकिन स्किन ड्राई है, तो फाउंडेशन के तौर पर टिंटिड मौश्चराइजर का इस्तेमाल कर सकती हैं. इससे स्किन सौफ्ट हो जाएगी और त्वचा ग्लोइंग नजर आएगी.

मैचिंग और कौंप्लिमैंटिंग आई मेकअप के साथसाथ यह वक्त है आंखों को कैटी लुक देने का. इस लुक के लिए आईशैडो या आईलाइनर किसी का भी इस्तेमाल कर सकती हैं या फिर स्मोकी शेड्स के साथ भी इस लुक को क्रिएट कर सकती हैं. जैसे-

कैट लुक विद स्मोकी इफैक्ट:

स्मोकी कैटी लुक के लिए मैटेलिक सिल्वर, स्टील ग्रे, इलैक्ट्रिक ब्लू, पिकौक ग्रीन जैसे हौट कलर्स का प्रयोग कर सकती हैं. लोअर लैशेज पर भी अपर आईज जैसा वाइबरैट लुक जगाने के लिए स्मज करते हुए लाइनर लगाएं और ऊपर से कंटूरिंग के लिए कलर लाइनर का इस्तेमाल जरूर करें जैसे ब्राउन आईज के साथ पर्पल, ग्रीन के संग मैरून और ब्लू के साथ ब्लू या कौपर.

कैट लुक विद आईशैडो:

आईशैडो को भी कैट लुक के लिए इस्तेमाल कर सकती हैं. जैसे- अपनी ड्रैस से मैचिंग शेड को आईज पर बाहर की ओर निकालते हुए लगाएं और फिर आईलिड पर ब्लैक लाइनर और लैशेज पर मसकारा के कोट्स लगा कर आईज को पौप्ड आउट करें.

कैट लुक विद लाइन:

आईज पर न्यूट्रल शेड जैसे बेज या वैनिला कलर का आईशैडो लगा कर ब्लैक जैल लाइनर से भी आंखों को कैट आई लुक दे सकती हैं.

परफैक्ट कलर्स फौर कैट लुक:

कैट लुक के साथ चौकलेट ब्राउन, मरसाला, ऐमरल्ड ग्रीन, इंडिगो ब्लू, कौपर, रस्ट, गोल्डन, आर्किड, लाइट ब्राउन जैसे कई वाइब्रैंट शेड्स इस्तेमाल कर सकती हैं.

कैटी लुक से आंखें काफी सैक्सी नजर आती हैं, साथ ही उठी हुई भी दिखाई देती हैं. इसी कारण यह मेकअप बढ़ती उम्र की महिलाओं पर काफी अच्छा लगता है, क्योंकि एक उम्र के बाद आंखें झुकने लगती हैं.

अगर आई मेकअप डार्क है तो लिप्स पर स्टैनिंग कर सकती हैं. यह इन दिनों काफी इन भी है. इसके लिए आप लिप स्टैन पैन, क्रेयान्स आदि का इस्तेमाल कर सकती हैं और अगर मेकअप लाइट है तो लिप्स को ब्राइट शेड जैसे औक्सब्लड, रोस्टेड कौफी, मरसाला, चैरी रैड जैसे मैट शेड्स से सील करें. इन दिनों लिपग्लौस आउट औफ ट्रैंड है. ऐसे में इसके इस्तेमाल से बचें.

हेयरस्टाइल:

बालों में कंघी कर के इयर टू इयर सैक्शन अलग कर लें. टौप के बालों को छोड़ कर उन के बाद के बालों की एक तरफ पोनी बनाएं और उसी साइड पोनी पर आर्टिफिशियल बाल पिन से सैट करें. अब बीच से बाल ले कर लेयर्स में बैककौंबिंग करें और हलका स्प्रे करें. यह स्प्रे बालों को होल्ड करेगा.

अब सारे बैककौंबिंग वाले बाल पोनी की तरफ लेकर आएं. इन्हें कंघी से नीट लुक दें. फिर इन्हें पोनी पर ही सैट करें. अब आगे से साइड की मांग निकाल कर आगे की तरफ कंघी कर के हेयरस्प्रे कर ट्विस्ट करते हुए अनटाइडी लुक दें. फिर उसे पिन से सैट कर दें. अब इसमें हेयरस्प्रे करें. नीचे के बालों की 1-1 लट ले कर जैल लगा कर ट्विस्ट करें. अब आगे के बालों की बैककौंबिंग करें. फिर नीड करते हुए एक साइड से बालों को प्लेन करके पोनी में ही सैट करें और स्प्रे करें. अब पोनी को फ्लौवर ऐक्सैसरीज से सजाएं.

गैट ए कौरपोरेट लुक

कौरपोरेट मेकअप लुक के लिए शियर या लाइट यलो शेड का फाउंडेशन चुनें. यह नैचुरल लुक देता है. इसे ब्रश की सहायता से पूरे चेहरे पर लगा कर मेकअप का बेस तैयार कर लें. अगर चाहती हैं कि मेकअप लंबे समय तक टिका रहे, तो मौश्चराइजर और फाउंडेशन के बाद पूरे चेहरे और गले पर स्पंज की सहायता से हलका सा ट्रांसल्यूसैंट पाउडर लगाएं.

बेस मेकअप को फाइनल टच देने के लिए ब्रोंजर स्प्रे यूज करना न भूलें. नैचुरल लुक के लिए पीच, लाइट पिंक या रोजी पिंक शेड का ब्रोंजर चुनें. इसे फोरहैड, नोज, चीक्स, चिन और नैक एरिया पर स्प्रे कर के ब्रश की सहायता से अच्छी तरह फैला दें. इस से स्किन नैचुरल ग्लो करेगी और मेकअप भी लंबे समय तक टिका रहेगा. जब बेस मेकअप अच्छी तरह सैट हो जाए तब आई मेकअप शुरू करें. शुरुआत आईशैडो से करें. इस के लिए ग्रे, पीच, आइवरी, शैंपेन, बेबी पिंक, बेज, कौपर आदि आईशैडो चुनें. आईशैडो को पूरी पलकों पर अच्छी तरह लगाएं.

आई मेकअप को कंप्लीट और लैश लाइन को डिफाइन करने के लिए ब्राउन शेड की आईपैंसिल का इस्तेमाल करें या फिर आईलैशेज को हाईलाइट करने के लिए ब्राउन मसकारे का सिंगल कोट लगाएं.

मेकअप के दौरान ज्यादातर लिपलाइनर के बाद लिपस्टिक लगाई जाती है, लेकिन कौरपोरेट मेकअप कर रही हैं, तो पहले लिपस्टिक लगाएं. उस के बाद लिपलाइनर से लिप्स को परफैक्ट डिफाइन करें. आखिर में लाइट शेड का लिपग्लौस लगा कर लिप मेकअप को कंप्लीट करें.

हेयरस्टाइल:

कौरपोरेट लुक हेयरस्टाइल में नीट लुक ही होना चाहिए. इसके लिए छोटे बालों के लिए आधे बालों को उठा कर पिन से सैट करें और आधे बालों को खुला छोड़ दें. लंबे बालों की ऊंची पोनी बनाएं.

अरेबियन मेकअप

अगर बोल्ड लुक पसंद है, तो अरेबियन मेकअप जरूर लुभाएगा. इसमें रंगों की भरमार है जैसे गोल्ड, सिल्वर, मेहंदी ग्रीन, क्रिमसन रैड, औरेंज, फ्यूशिया आदि.

चेहरे को फ्रैश व फ्लालैस लुक देने के लिए फाउंडेशन के तौर पर सूफले या फिर मूज का इस्तेमाल करें. यह औयल को सोख लेगा और फेस पर बिलकुल लाइट नजर आएगा. चीक्स को हाईलाइट करने और फेस पर ग्लो जगाने के लिए पीच शेड का ब्लशऔन लगाएं.

अपनी आंखों पर चार्मिंग एहसास जगाने के लिए इनर कौर्नर पर सिल्वर, सैंटर में गोल्डन व आउटर कौर्नर पर डार्क मेहंदी कलर का आईशैडो लगाएं. इसके बाद कट क्रीज लुक देते हुए ब्लैक कलर से आंखों की डीप सेटिंग कंटूरिंग कर लें. ऐसा करने से आंखें बड़ी व सैक्सी नजर आएंगी.

आईब्रोज के नीचे पर्ल गोल्ड शेड से हाईलाइटिंग करें और आईज पर शाइन जगाने के लिए मल्टीग्लिटर्स को ऊपर लगाएं. ऐसा करने से आई मेकअप और भी ज्यादा खूबसूरती से हाईलाइट होगा और आंखें सितारों की तरह जगमगाएंगी. आंखों की शेप को डिफाइन करने के लिए अरेबियन स्टाइल को अपना सकती हैं.

इस लाइनर में ऊपर व नीचे दोनों तरफ बाहर को विंग निकाल दें और इनर कौर्नर पर लाइनर को थोड़ा नुकीला कर दें. अब बाहर निकली हुई इन दोनों विंग की स्पेस को सिल्वर ग्लिटर से फिल कर दें. आंखों को कंप्लीट सैंशुअल लुक देने के लिए पलकों पर आर्टिफिशियल लैशेज जरूर लगाएं. लैशेज को आईलैश कर्लर से कर्ल कर के मसकारा का कोट लगाएं ताकि वे नैचुरल लैशेज के साथ परफैक्टली मर्ज हो जाएं. वाटर लाइन पर बोल्ड काजल लगा कर आई मेकअप को कंप्लीट करें.

यों तो लिप मेकअप हमेशा आई मेकअप को ध्यान में रख कर किया जाता है, लेकिन अरेबियन मेकअप में ओवरऔल लुक बोल्ड रहता है, इसलिए आईज के साथसाथ लिप्स पर भी बोल्ड कलर की लिपस्टिक लगाएं.

हेयरस्टाइल:

अरेबियन ओवरलैपिंग के लिए बालों को अच्छी तरह कंघी करें ताकि हेयरस्टाइल बनाते समय बाल उलझें नहीं. सबसे पहले इयर टू इयर पार्टीशन करें.

इस के बाद क्राउन एरिया से थोड़े से बाल लेकर अच्छी तरह कंघी करें. अब स्टफिंग रख कर बालों को आगे की तरफ रोल करके पिन करें. फिर फ्रंट के बालों में सैंटर पार्टिंग निकालें और 1-1 लेयर लेकर ओवरलैपिंग करें यानी राइट साइड वाले बालों को लैफ्ट साइड में और लैफ्ट साइड वाले बालों को राइट साइड में ला कर पिन करें. पीछे के बालों की छोटीछोटी लेयर लेकर ट्विस्ट करें और पिन लगाएं. अंत में हेयर ऐक्सैसरीज से डैकोरेट करें.

जिंदगी पूजापाठ से नहीं चलती

नवरात्रों के अवसर पर निधि के घर में बड़ा धार्मिक माहौल रहता है. वह 9 दिनों तक व्रत रखती है. रोज मंदिर जाती है और नवमी के दिन महाकन्या भोज कराती है. जब मैं ने उस से पूछा कि इतना सब कैसे कर लेती है, तो वह बड़े विश्वास से मुसकराते हुए बोली, ‘‘सब देवीजी की शक्ति से मुमकिन हो पाता है और ये सब मैं अपने घर की सुखशांति के लिए करती हूं.’’ जबकि सच यह है कि उस के घर में हर समय पतिपत्नी में झगड़ा होता रहता है. कई बार झगड़ा इतना बढ़ जाता है कि पड़ोसियों या फिर परिचितों को हस्तक्षेप करना पड़ता है.

पेशे से शिक्षिका निधि के दोनों बेटे अपने घर आने से कतराते हैं. वे कहते हैं कि जब भी घर आओ मम्मीपापा दोनों हर छोटीछोटी बात को भी प्रतिष्ठा का मुद्दा बना कर लड़ते रहते हैं. इन का झगड़ा देखने से तो अच्छा है घर में कम से कम रहा जाए.

नीता के पति की जब मृत्यु हुई, तो बेटा विशाल 8वीं कक्षा का छात्र था. पापा से बहुत घुलामिला होने के कारण उन की मृत्यु के बाद वह एकदम अकेला पड़ा गया. नीता बैंक में सर्विस करती थी. वह सुबह बैंक जाने से पहले 2 घंटे पूजा करती और फिर औफिस से आ कर शाम को भी 1 घंटा. जब तक उसे फुरसत मिलती बेटा सो चुका होता. अत: बच्चे से उस की सिर्फ औपचारिक बातचीत ही हो पाती थी. अपने मन की बात किसी से शेयर न कर पाने के अभाव में बेटा धीरेधीरे अकेलेपन का शिकार हो कर अवसाद में चला गया. अब परेशान हो कर नीता उसे डाक्टरों के पास ले कर घूम रही है.

अंधविश्वास की पराकाष्ठा

गरिमा की आदत है कि नहा कर जब तक पूजा नहीं कर लेती तब तक पानी भी नहीं पीती. फिर चाहे घर का काम समाप्त करतेकरते उसे दोपहर ही क्यों न हो जाए. पति विनय ने उसे कईर् बार समझाया, ‘‘गरिमा, बिना नाश्ता किए यो दोपहर तक भूखे रहना ठीक नहीं. किसी दिन मुसीबत में आ जाओगी.’’ पर गरिमा ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. एक दिन अचानक चक्कर खा कर बेहोश हो गई. डाक्टर ने कहा लंबे समय तक भूखे रहने की वजह से इन का बीपी लो हो गया है. इतना सब कुछ होने के बाद भी गरिमा अपनी इस आदत को छोड़ नहीं पाई, जिस से रोज उस के घर में कलह होती.

पूजा के पति को लिवर सिरोसिस हुआ था. 1 माह तक हौस्पिटल में रहने के बाद एक दिन डाक्टरों ने उन्हें जवाब दे दिया. उसी दौरान पूजा के कथित गुरुजी आ गए. जब पूजा ने उन्हें अपने पति की हालत के बारे में बताया तो वे बोले, ‘‘यदि महामृत्युंजय का जाप करवाया जाए तो इन की जान बच सकती है.’’

उम्मीद की किरण देख कर बिना अपने विवेक का प्रयोग किए पूजा ने आननफानन में पंडितजी को जाप के लिए क्व25 हजार दे दिए. अगले ही दिन उस के पति की मृत्यु हो गई. रीता की सौफ्टवेयर इंजीनियर बेटी को अपने ही सहकर्मी से प्यार हो गया. उस ने सर्वप्रथम यह बात अपनी मां को बताई. मातापिता को भी कोई ऐतराज नहीं था. एक ही जाति का होने के कारण दोनों ही पक्ष राजी थे, परंतु जब दोनों पक्षों ने अपनेअपने पंडितजी को कुंडली दिखाईर् तो बोले, ‘‘लड़की घोर मंगली है. यह विवाह तो हो ही नहीं सकता. यदि होगा तो लड़का या लड़की में से एक अपनी जान से हाथ धो बैठेगा.’’

फिर क्या था दोनों परिवारों ने इस शादी के लिए मना कर दिया. लड़कालड़की दोनों ने ही अपनेअपने मातापिता को समझाने की बहुत कोशिश की, पर उन के न पिघलने पर उन्होंने कोर्ट में शादी कर ली. दोनों के ही मातापिता शादी में शामिल नहीं हुए और अपने बच्चों से हाथ धो बैठे. जबकि लड़कालड़की आज 15 साल बाद भी खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

आत्मघाती कदम

अस्मिता एक भजन मंडली की सदस्या है. हर दूसरेतीसरे दिन वह अपनी मंडली के सदस्यों के साथ भजन करने चली जाती है. हाल ही में उस के 10वीं कक्षा में पढ़ने वाले बेटे ने गणित का पेपर खराब हो जाने पर आत्महत्या कर ली. यदि अस्मिता अपना कुछ समय दे कर बेटे की भावना या उस के मन की उथलपुथल को भांपती तो बेटे को इस आत्मघाती कदम उठाने से रोक सकती थी. इस प्रकार की कई घटनाएं रोज सब को अपने आसपास देखने को मिल जाती हैं. पूजापाठ, धार्मिक कर्मकांड कई घरों में इस कदर अपने पैर पसार लेते हैं कि वे आंतरिक कलह और बरबादी का कारण बन जाते हैं. भारतीय जनमानस में प्रत्येक समस्या का समाधान ईश्वर से मांगा जाता है जबकि उस का समाधान उन की स्वयं की समझदारी, विवेक और बुद्घि में छिपा होता है.

किसी कीमती वस्तु के गुम हो जाने पर, किसी सदस्य के बीमार हो जाने पर, घर में कलह और क्लेश होने पर, बच्चे के बेरोजगार होने पर तुरंत ईश्वर को इस प्रकार याद किया जाता है कि प्रभु, अमुक समस्या को हल कर दो, क्व1100 चढ़ाऊंगा या चढ़ाऊंगी. जबकि वास्तव में जीवन एक ऐसी नाव है, जिस में बैठ कर आप को हर पल, हर क्षण अपनी बुद्घि और विवेकरूपी पतवार से दुनियादारी के समुद्र में अपनी नाव को बढ़ाना है. जहां आप ने अपनी अज्ञानता या नासमझी दिखाई वहीं आप की नाव गोते खाने लगेगी.

ऐसे में आप भी चाहते हैं कि आप के समक्ष भी ऐसी स्थिति न आए तो इन सुझावों पर गौर फरमाएं:

परिवार को दें प्राथमिकता: पतिपत्नी के आपसी झगड़ों को सुलझाने के लिए आपसी समझ और धैर्य की जरूरत होती है. देवीजी के व्रत, उपासना, उपवास, कन्याभोज, घंटों पूजापाठ या और कोई कर्मकांड करने के बजाय एकदूसरे को समझा जाए, कुछ उन के अनुसार ढला जाए और कुछ उन्हें अपने अनुसार ढाला जाए तब बड़ी से बड़ी समस्या को भी सुलझाया जा सकता है.

गृहस्थ जीवन का तो आधारस्तंभ ही प्यार, विनम्रता, सहनशीलता, त्याग, सहयोग और समर्पण की भावना है. पतिपत्नी के रिश्ते को खूबसूरती से निभाने के लिए सब से जरूरी है अहंकार का त्याग. घरपरिवार की छोटीमोटी समस्याओं को कभी मुद्दा न बनाएं. किसी भी प्रकार के मतभेद या नाराजगी को अहं के कारण लंबा न खींच कर उसी समय हल करें. यदि आप की पूजा घर में कलह का कारण है, तो तार्किक बुद्धि से सोचें कि ऐसे पूजापाठ से क्या लाभ, जिस से आप के घर की ही शांति भंग हो. घरपरिवार की शांति की कीमत पर कुछ भी न करें.

बच्चों को दें भरपूर समय: आजकल के खुलेपन के माहौल में किशोर होते बच्चों को अधिकाधिक समय देने की जरूरत होती है. अत: उन्हें भरपूर समय दें, उन के साथ मित्रवत व्यवहार करें, उन से जीवन के प्रत्येक विषय पर बातचीत करें ताकि वे अपने मन की हर बात को आप के साथ साझा कर सकें. यदि वे कभी परेशानी में हैं, तो उन के मन को भांप कर उन्हें सही दिशा दिखाएं. जब बच्चों को घर में समुचित प्यार और माहौल नहीं मिलता है तो वे अपने दोस्तों की ओर रुख करते हैं, जिस से कई बार वे भटक भी जाते हैं.

ध्यान रखें आप के पूजापाठ के कारण आप के बच्चे उपेक्षित न हों, साथ ही बच्चों को भी गैरजरूरी पूजापाठ, व्रतउपवास के फेर में न उलझाएं. ‘उन की पढ़ाई ही उन की पूजा है’ यह सीख दें ताकि वे मन लगा कर पढ़ाई कर सकें. स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही न करें: कुछ लोगों का नियम होता है कि वे पूजापाठ किए बिना अन्न ग्रहण नहीं करते. पुरुष और कामकाजी महिलाएं चूंकि औफिस जाते हैं, इसलिए वे तो समय पर खा लेते हैं, परंतु जो महिलाएं घर में रहती हैं वे काम समाप्त करने के चक्कर में नाश्ता न कर के सीधे भोजन ही ग्रहण करती हैं और ऐसा कर के कई बीमारियों को न्योता देती हैं. डाक्टरों के अनुसार, रात और दोपहर के भोजन में अधिक अंतराल हो जाने के कारण शरीर के लिए नाश्ता करना बेहद जरूरी हो जाता है, क्योंकि अधिक अंतराल हो जाने पर शरीर से कई विषैले हारमोन निकलने लगते हैं, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से तो बेहद हानिकारक होते ही हैं, साथ ही मोटापा भी बढ़ाते हैं. न बनें अंधविश्वासी: कई घरों में किसी बीमार के होने पर या किसी समस्या के समाधान हेतु तंत्रमंत्र, झाड़फूंक, जादूटोने का सहारा लिया जाता है, जो गलत है. इस की अपेक्षा डाक्टर के पास जाएं ताकि उस बीमारी की दवा ली जा सके और बीमारी को आगे बढ़ने से रोका जा सके.

रीमा की 3 वर्षीय बेटी बेहद नटखट और शरारती है. एक दिन उसे अचानक बुखार आ गया. रीमा 1 सप्ताह तक उसे यहांवहां ले जा कर नजर झड़वाती रही, जबकि उसे टायफाइड हुआ था. बाद में डाक्टर के लंबे इलाज के बाद वह ठीक हो सकी. अत: आडंबर, अंधविश्वास और कर्मकांड के चक्कर में न पड़ें. धर्म के नाम पर पैसा कमाने वालों से बचें. अपने पैसे का सदुपयोग करें न कि दुरुपयोग.

बच्चों की खुशी को दें प्राथमिकता: शादीब्याह समझदारी, त्याग, सहयोग से निभाए जाते हैं न कि जन्मपत्री में निहित गुणों के मिलान से. यदि ऐसा होता तो सभी जन्मपत्री मिलाए गए जोड़े सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रहे होते. बच्चे की पसंद में जाति, जन्मपत्री जैसी अंधविश्वासी बातों की जगह योग्यता और अच्छे घरपरिवार को मानदंड बनाएं और बच्चे की खुशी में शामिल हों. उस की खुशी में ही अपनी खुशी देखें. व्यर्थ के कर्मकांडों के चक्कर में पड़ कर अपने बच्चे की खुशी का त्याग न करें, क्योंकि हर बच्चा मातापिता की छत्रछाया में ही अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत करना चाहता है. जब मातापिता अपनी जिद पर अड़ जाते हैं, तो उन की गैरमौजूदगी में विवाह करना उन की मजबूरी होती है खुशी नहीं.

तार्किक बनें

जीवन एक संघर्ष है. इस में समयसमय पर सुख और दुख तो आतेजाते रहते हैं. यहां आने वाली अनगिनत समस्याओं का समाधान विवेक और बुद्घि का प्रयोग कर के निकाला जा सकता है, पूजापाठ से नहीं. वर्तमान समय में धर्म की आड़ में भगवान के दूत बन कर पूजापाठ करवाने वालों की भरमार है, जो स्वयं तो पूजा करवाते ही हैं, आप को भी पूजा के विभिन्न उपाय बताते हैं. न केवल महिलाएं, बल्कि पुरुष भी जीवन की विभिन्न समस्याओं के हल के लिए पूजापाठ, धार्मिक अनुष्ठान का सहारा लेते हैं, जबकि उन्हें जरूरत होती है अपनी तार्किक बुद्घि का प्रयोग करने की कि जिन समस्याओं का संबंध आप के जीवन और आप के अपने लोगों से है उन का समाधान भी आप के हाथ में ही है. कोई अन्य उन्हें कैसे सुलझा सकता है?

समझना यह चाहिए कि क्या सही है और क्या गलत? क्या लाभकारी है और क्या हानिकारक? पूर्वाग्रहों, अंधविश्वासों और वहम जैसी भावनाओं से परे हट कर जब तक समझ और तार्किक बुद्घि का प्रयोग कर के जीवन नहीं चलाया जाएगा, जीवन अकसर दुरूह होता जाएगा. अत: पूजापाठ के स्थान पर जीवन में अपनी प्राथमिकताएं तय कर के समझदारी से काम लिया जाए.

लोग क्या कहेंगे

पढ़ाई पूरी कर सिल्की को नौकरी शुरू किए बमुश्किल 7-8 महीने ही हुए होंगे कि अगलबगल और रिश्तेदारों ने उस का जीना हराम कर दिया. घरपरिवार या पासपड़ोस में कहीं कोई शादीब्याह या और कोई गैटटुगैदर हो, उसे देखते ही सवालों की बाढ़ आ जाती.

‘‘अरे सिल्की, पढ़ाई पूरी हो गई? कहां जौब कर रही हो? कितना पैकेज मिलता है?’’

‘‘और बताओ क्या चल रहा है आजकल…’’ इस सवाल से सिल्की बहुत घबराती थी, क्योंकि अगला सवाल उसे मालूम होता.

‘‘तब शादी कब कर रही हो? कोई ढूंढ़ रखा है, तो बता दो हमें?’’

खींसें निपोरती कोई भी आंटी, बूआ या मौसी की आत्मीयता प्रदर्शित करते इस प्रश्न से सिल्की को बड़ी कोफ्त होती. फलस्वरूप उस ने धीरेधीरे इन पारिवारिक समारोहों से खुद को काट लिया.

‘‘अरे, जिस की शादी/जन्मदिन/मुंडन में आए हो उस की बातें करो, प्लेट भर खाओ. मेरी जोड़ी क्यों बनाने लगते हो,’’ सिल्की भुनभुनाती. वही हाल उस की मम्मी का था. जब भी फ्लैट की महिलाओं की मंडली जमती उसे देखते ही सभी जैसे मैरिज ब्यूरो खोल लेतीं, ‘‘मेरा बेटा सिल्की से 3 वर्ष छोटा है यानी सिल्की की उम्र …इतनी हो गई,’’ एक कहती.

‘‘अरे, इस उम्र में तो हमें 2 बच्चे भी हो गए थे,’’ दूसरी गर्व से कहती.

‘‘देखो तुम्हें अब लड़का देखना शुरू कर देना चाहिए,’’ तीसरी समझाने के स्वर में कहती.

‘‘कहीं किसी से कोई चक्कर तो नहीं, किस जाति/धर्म का है? भाई आजकल तो लड़कियां पहले से ही किसी को पटा लेती हैं. अच्छा है न तुम्हें दहेज नहीं देना पड़ेगा,’’ 2 बेटों की मां अनीता बुझे स्वर में कहतीं मानों उन के भोलेभाले बेटों के शिकार के लिए ही लड़कियां पढ़ाईलिखाई कर रही हैं.

‘‘अभी सिल्की का आगे पढ़ने का इरादा है, एकाध साल नौकरी कर वह पढ़ेगी पहले…’’ सिल्की की मां रोंआसे स्वर में कहती.

‘‘देखो, पहले शादी कर दो, फिर पढ़ाई होती रहेगी,’’ फिर एक कहती.

‘‘वक्त पर शादी होना ज्यादा जरूरी है वरना बाद में खोजती रह जाओगी,’’ दूसरी डराने की कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती.

‘‘मेरी बेटी होती तो मैं कब के हाथ पीले कर निश्चिंत हो जाती. अपने बेटे की तो मैं 25 वर्ष से पहले जरूर कर दूंगी शादी वरना ये आजकल की लड़कियां बड़ी तेज होती हैं… जाने कौन उसे अपने चंगुल में फंसा ले,’’ 2 बेटों की सुखी मां प्रवचन देती.

सिल्की की मां से सुना नहीं जाता. वहां से जाने के सिवा कोई चारा नहीं बचता. पर संशय का बीज तो दिमाग में अंकुरित होने लगता कि क्या सच में बेटी को ज्यादा पढ़ाना गलत होगा या बड़ी उम्र में शादी करने में वाकई दिक्कत आएगी? टांग खींचने में आगे यही वे 4 लोग होते हैं, जिन के डर से या यों कहें इन्हीं 4 लोगों को खुश करने के लिए कितने फैसले लिए जाते हैं. इन्हीं 4 लोगों की बातों पर किसी लड़की का समय से पहले विवाह करा दिया जाता है या नौकरी छुड़ा दी जाती है. ये लोग लड़कों से ज्यादा दूसरों की लड़कियों में रुचि रखते हैं. इन्हीं 4 लोगों को खुश रखने के लिए कभी देर रात आने पर डांट पड़ जाती है, तो कभी किसी ड्रैस को पहनने से मना कर दिया जाता है. पर क्या वास्तव में ये 4 लोग कभी खुश होते भी हैं? नहीं, कभी नहीं. टांग खींचने में भले अग्रसर रहे हों पर सराहना के बोल इन के मुंह से कम ही फूटते हैं. जैसे हम सिल्की की बात कर रहे थे. कभी कोई रिश्तेदार तो कभी कोई पड़ोसी आए दिन यह चर्चा शुरू कर ही देता, विभिन्न उदाहरणों के साथ जहां उम्र बढ़ जाने से लड़की की शादी नहीं हुई या लड़की ने कोई गलत कदम उठा लिया. अवसादों में घिरती सिल्की की मम्मी ने आखिर उस के लिए वर ढूंढ़ना शुरू ही कर दिया. कुछ ही महीनों में शादी निबटा कर उस की मम्मी एक दिन फिर उन्हीं की संगत में बैठी थी कि पीछे से फुसफुसाहट सुनाई दी.

‘‘कितनी बदइंतजामी थी सिल्की की शादी में,’’ एक स्वर.

‘‘मुझे तो स्वीट डिश मिली ही नहीं. यदि व्यवस्था नहीं कर सकते हैं, तो क्यों इतने लोगों को बुला लेते हैं,’’ दूसरी फुसफुसाहट.

‘‘लड़के को देखा मुझे तो बड़ी उम्र का लग रहा था,’’ तीसरी चुगली.

सिल्की की मम्मी सोच रही थी, उस ने बेटी की शादी उन की सलाहानुसार कर दी, सराहना करेंगे उस की. पर यहां तो कोई और ही रिकौर्ड कानों में बज रहा था. अंदर से चिढ़ते हुए पर साक्षात मुसकराते हुई पीछे घूमी. बोली, ‘‘बहनजी, क्या हाल हैं आप के बेटे के? कल उसे बाजार में देखा… कोई लड़की उस की मोटरसाइकिल के पीछे बैठी थी.’’

‘‘अरे …वह… हां… बेटा बता रहा था उस के औफिस की ही कोई लड़की है, जो जबरदस्ती उस के गले पड़ी रहती है,’’ पर बेटे की मां के चेहरे की रंगत इस उड़ती खबर से अवश्य उड़ने लगी थी. अब 4 लोगों के सामने उन की नाक जो कट रही थी.

अब बातचीत का रुख सिल्की की शादी से हट दूसरी ओर चला गया. सिर्फ अफसोस जहां 4 लोग मिलेंगे वहां 4 बातें होंगी ही. देशविदेश, प्रदेश से होती हुई चर्चा का विषय अपने आसपास ही टिकता है. ज्यादातर उन पर जो मौजूद नहीं होते. फिर दूसरों के मामलों में टांग अड़ाना हमेशा से प्रिय शगल होता है. इन बातों के लिए सिर्फ महिलाओं को ही जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए, पुरुष भी गौसिप करने का सामाजिक दायित्व उतनी ही शिद्दत से निभाते हैं. हम सिल्की की बात कर रहे हैं. सिल्की की मम्मी को लगा कि उस ने बेटी की शादी कर दी. उसे आगे नहीं पढ़ने दिया. अब 4 लोग उस से खुश रहेंगे और वह मिसाल बन जाएगी 4 लोगों के बीच. पर अफसोस ऐसा कुछ नहीं हुआ, बल्कि सालडेढ़ साल गुजरते ही वही लोग उसे फिर सवालों के कठघरे में खड़ा करने लगे.

‘‘सिल्की कैसी है? शादी के बाद खुश तो है?’’ एक ने पूछा.

‘‘कितने साल हो गए उस की शादी को? खुशखबरी कब सुना रही है?’’ दूसरी की उत्सुकता का अंत नहीं था.

‘‘अरे, अभी तो नईनई नौकरी जौइन की है उस ने. पहले कुछ दिन पैर जमा ले,’’ सिल्की की मां ने समझाना चाहा.

‘‘सही वक्त पर बच्चे हो जाने चाहिए वरना फिर जिंदगी भर पछताना पड़ेगा. जाने क्याक्या दवाएं ये लोग खा लेती हैं कि बाद में गर्भधारण ही नहीं कर पातीं,’’ 4 बच्चों की अम्मां मुफ्त में अपनी राय बांचने लगी.

फिर तो सिलसिला ही चल पड़ा तरहतरह के उदाहरणों का जहां लड़की को बच्चा होने में दिक्कतें आई थीं. 4 लोग बैठ अपने ज्ञान के पिटारे से मोती लुटाने लगे. अब सिल्की की मां समझ गई कि कोई अंत नहीं इन की समझाइश का. वह भी अब होशियार हो चुकी थी. झट बातों को किसी दूसरी की तरफ मोड़ते हुए अपने प्रश्नों का तीर चला दिया. फिर सारे तीर उधर ही बरसने लगे और इस बीच सिल्की की मां को नानी बनने हेतु बेटी को समझाएं जैसे टिप्स से राहत मिल गई.

अब जब वह होशियार हो चली थी तो 4 लोगों की संगत उसे भाने लगी. 4 लोगों के साथ बैठ वह भी दूसरों को ज्ञान की बातें सिखाने लगी. सच अब उसे उस समय अनुपम सुख का अनुभव महसूस होने लगता जब मुफ्त में बिना मांगे किसी को सलाह देती. 4 लोगों के साथ किसी 5वें को शर्मिंदा करना, उस की खाल खींचना जैसे स्वर्गिक आनंद का रस लेने लगी.

निजी जीवन में दखलअंदाजी

अब सिल्की की मां भी नहीं सोचती कि किसी को बारबार टोकना कि उस की बेटी/बेटे की शादी क्यों नहीं हो रही है से किसी पर क्या प्रभाव पड़ेगा. दूसरों से खुशखबरी सुनने को आतुर उन का मन अब एक क्षण नहीं सोचता कि पता नहीं किस कारण से कोई मां नहीं बन पा रही है. अपने आसपास की छोटी से छोटी बातोें को जान लेने की प्रवृत्ति उसे यह संकोच नहीं करने देती कि वह किसी के निजी जीवन में दखलंदाजी कर रही है. अपने बच्चे भले फेल हो रहे हों पर दूसरों के बच्चों का प्रतियोगी परीक्षा में क्या परिणाम आया, यह उत्सुकता वह 4 लागों के साथ जरूर जाहिर करती. अपनी सास को भले खाना नहीं दे पाती सिल्की की मां पर अनीता की बहू क्यों मायके चली गई उस का प्रिय विषय रहता.

सिल्की की मां धीरेधीरे जान ही नहीं पाई कि वह भी उन 4 लोगों में शामिल हो गई है जिन से लोग बचना चाहते हैं, जिन की बातों को कोई गंभीरता से नहीं लेता और जिन का काम ही है कुछ न कुछ कहते रहना. बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना टाइप उन के व्यवहार को लोग सिर्फ सुनते हैं पर करते अपने मन की ही हैं.

अकेले हैं तो क्या गम है

‘‘बेचारी को देखो, 35 साल की हो गई है और अभी तक सिंगल है.’’

‘‘देखने में तो खूबसूरत है, बड़ी अफसर भी है, फिर भी पता नहीं क्यों अभी तक शादी नहीं हुई?’’

अपनी सोसाइटी में जैसे ही सोमा घुसी ये बातें उस के कानों में पड़ीं. हालांकि इस तरह की बातें उस के लिए नई नहीं थीं. वह इस तरह की बातें सुनने की आदी हो चुकी थी, फिर भी कभीकभी उसे ये बातें चुभ जाती थीं. आखिर क्यों लोग उस की जिंदगी में दखल देते हैं? क्यों नहीं उसे चैन से रहने देते? उस की हर गतिविधि को गौर से देखा जाता है. मानो सिंगल होना कोई बड़ा अपराध है. उस ने अपनी मरजी से यह लाइफ चुनी है तो इस में समाज को क्यों परेशानी होती है? वह तो खूब ऐंजौय करती है अपनी लाइफ.

अपनी दीदी की शादीशुदा जिंदगी की त्रासदी देखने के बाद ही सोमा ने अकेले रहने का फैसला लिया था. कितने प्रतिबंध हैं उस पर. कोई भी काम वह अपने पति की आज्ञा लिए बिना नहीं कर पाती है. सोमा ने पैनी नजरों से रीना को देखा. बेचारी तो ये हैं जो 35 साल में ही 60 साल की लगने लगी हैं.

सोमा जैसी सिंगल विमन की आज कमी नहीं है, क्योंकि वे अपनी मरजी से शादी न करने का फैसला ले रही हैं. वे अपनी तरह से जिंदगी जीना चाहती हैं. फिर अगर किसी वजह से शादी न भी हुई तो भी अकेले रह कर खुशी से जीवन बिताया जा सकता है. बस जीने के तरीके आने चाहिए.

सोमा कहती हैं, ‘‘मुझे लगता है कि शादी हो ही ऐसा कोई जरूरी नहीं है. कई बार बहुत चाहने पर भी सही लाइफपार्टनर न मिलने की वजह से आप शादी नहीं कर पाते या कोई पसंद भी आता है तो लगता है कि इस के साथ पूरी जिंदगी नहीं काटी जा सकती. मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. यह भी सच है कि प्यार एक खूबसूरत एहसास है, लेकिन अगर आप को कोई साथी न मिल पाए तो इस का मतलब यह कतई नहीं है कि आप अपने जीवन से नाखुश हैं. जैसाकि समाज सोचता है. यह मानना गलत है

कि अगर आप सिंगल हैं तो आप की लाइफ अधूरी है. शादी ही सब कुछ नहीं, जीवन हमें अंतहीन संभावनाएं देता है. बस आप को उन्हें खोजना व उन का सही तरीके से प्रयोग करना आना चाहिए.’’

आप के दोस्त, रिश्तेदार, मातापिता, भाईबहन और समाज जो आप के अकेले होने का मतलब यह निकालता है कि आप दुखी होंगी वे आप को हमेशा सैटल हो जाने की सलाह देते रहते हैं. अगर आप शादी नहीं करना चाहतीं या आप के अकेले जीवन बिताने का फैसला करने की वजह चाहे जो हो, पर आप तो यह मान कर चलिए कि आप अकेले रह कर भी खुश रह सकती हैं. अकेले रहने का फैसला भी तभी करें जब आप इस के लिए पूरी तरह से तैयार हों.

बंधनमुक्त होने को सैलिब्रेट करें: जरूरी नहीं कि शादीशुदा हैं तो आप की लाइफ खुशियों से भरी होगी. जिम्मेदारियों के साथ समस्याएं बिना कहे चली आती हैं. सिंगल हैं तो न कोई जिम्मेदारी न कमिटमैंट, तो इसे सैलिब्रेट करें. किसी कपल को हाथ में हाथ डाले देख कर अफसोस मनाने के बजाय अपने लिए जीएं और आजादी की हवा में सांस लें. सिंगल स्टेटस को ले कर मन में निराशाएं पालने के बजाय सोचें कि आप के ऊपर किसी तरह की पाबंदी नहीं है. आप जब मरजी कहीं भी आ जा सकती हैं. बस इस के लिए अपने आत्मविश्वास को बनाए रखें और लोगों की बातों से दुखी होना या उन पर रिएक्ट करना बंद कर दें.

खुद पर टाइम स्पैंड करें: आप को खुद खूब समय मिलेगा. शादीशुदा औरत जिस तरह हमेशा एक गिल्ट में जीती रहती है, उस से आप को नहीं गुजरना पड़ेगा. पति, बच्चे, घरपरिवार की जिम्मेदारियों में औरत के पास अपने लिए वक्त ही नहीं बचता है. पर सिंगल होने का यह फायदा है कि आप खुद को वक्त दे सकती हैं. सजेंसंवरें, घूमेंफिरें और पसंदीदा म्यूजिक सुनें या बुक पढ़ें. कोई रोकटोक नहीं. और अकेलापन वह तो पास फटकेगा ही नहीं. अपने को जानने का ज्यादा समय मिलता है आप को और इस तरह स्वयं को तराशने का भी. न कोई अपेक्षा, न कोईर् उम्मीद, फिर मन में न तो विरोधाभासों के लिए जगह होगी न ही कड़वाहट ही वहां जगह बनाएगी.

सोशल हों: आप अपना सोशल सर्कल बनाएं. यह जरूरी भी है ताकि जब भी बोरियत महसूस हो तो पार्टी में जा सकें या रेस्तरां में फ्रैंड्स के साथ डिनर कर सकें. वैसे आप चाहे कितनी ही सोशल हो जाएं पर किसी पर निर्भर न हों कि कोई साथ चलेगा तभी आप मूवी देखने जाएंगी या रेस्तरां में लंच करेंगी. अकेले भी जा सकती हैं. क्यों हमेशा किसी के साथ की चाह रखनी. लेकिन अपने दायरे को लगातार बढ़ाती रहें ताकि कभी जरूरत पड़ने पर उन से बेहिचक सहायता मांग सकें. कैरियर पर शतप्रतिशत ध्यान: सिंगल वूमन हैं तो आराम से आप अपने कैरियर पर ध्यान दे सकती हैं. मैट्रो शहरों में रहने वाली लड़कियां कैरियर बनाने की खातिर और अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अकेले ही रहना पसंद करती हैं.

अनुभा जो एक एमएनसी में काम करती है और 37 साल की हैं, कहती हैं, ‘‘मैं ने जानबूझ कर शादी नहीं की. मैं अपने कैरियर को ले कर शुरू से ही बहुत आसक्त थी और जानती थी कि शादी के बाद बहुत कंप्रोमाइज करने पड़ेंगे. हो सकता है जौब कर ही न पाऊं. बीच में ब्रेक लेने से कैरियर ग्राफ पर असर पड़ता है और आप को घरबार नए सिरे से शुरू करना पड़ता है. पहले की सारी मेहनत बेकार हो जाती है, इसलिए मैं ने अपना सारा ध्यान कैरियर पर लगा दिया और आज सक्सैसफुल हूं. अपनी इस सक्सैस का मैं भरपूर आनंद लेती हूं.’’

सिंगल वूमन कैरियर में ज्यादा सफल होती है, यह बात तो प्रमाणित हो ही चुकी है और आजकल प्राइवेट कंपनियां उन्हें काफी प्रैफरैंस भी दे रही हैं, क्योंकि वे ज्यादा टाइम देने के साथसाथ ज्यादा फोकस्ड भी होती हैं. वे पूरा ध्यान लगा कर काम कर पाती हैं.

करें अपने शौक पूरे: सिंगल हैं तो पूरा वक्त आप का है और आप अपने शौक पूरा करें. बागबानी करें, बाइक चलाएं या फिर गेम्स खेलें. आप जो चाहें बेरोकटोक कर सकती हैं. कोई आप से यह नहीं कहेगा कि तुम्हारी उम्र है यह सब करने की? पेंटिंग करें या फिर कोई कोर्स कर लें. यह सही है कि आप को कोई न कोई हौबी जरूर अपनानी होगी. स्वयं को हमेशा आप नईनई बातों से अपडेट रख सकती हैं. अपने दिल की सुनें: साइक्लिंग, ट्रैकिंग करें. वीकैंड पर लौंग राइड्स पर जाएं या किसी सामाजिक कार्य में हिस्सा लें. खुशहाल और संतोष भरी जिंदगी जीना ही आप का मकसद होना चाहिए और आप को लोगों को भी यही दिखाना है कि आप सिंगल होने के बावजूद कितनी खुश हैं. सोलो ट्रिप पर निकल जाएं: घूमने का शौक किसे नहीं होता? तो फिर कौन रोक रहा है आप को? निकल जाइए घूमने. अपनी मरजी के स्पौट पर, अपने हिसाब से ट्रैकिंग करने या फिर किसी रिजोर्ट में आराम करने के लिए. सच में आप ऐंजौय करेंगी. बिना किसी किचकिच के कि यह मत करो या वहां मत जाओ. म्यूजिक फैस्टिवल में जाएं या नाटक देखें, कोई रोकटोक नहीं. शादीशुदा महिला ऐसा करने के बारे में सोच भी नहीं सकती है.

शौपिंग करें: आप कमाती हैं तो अपने ऊपर खर्च करें. अपनी कमाई से शौपिंग करने का मजा अलग ही होता है. कोई गिल्ट मन में नहीं आएगी कि आप अपने ऊपर पैसा खर्च कर रही हैं. जो चाहे खरीद सकती हैं और क्या खरीदना है इस के लिए किसी का दबाव नहीं होगा. जो मन को भाया उसे खरीदने का सुख आप ले पाएंगी. बारबार दूसरे से या पति से इजाजत लेनी पड़े या दूसरों की खुशियों और पसंद के हिसाब से अपनी पसंदनापसंद को तय करना पड़े उस से तो बेहतर है कि सिंगल रह कर अपनी पसंद से खाएंपीएं या कपड़े खरीदें.

नो कंप्रोमाइज: आप को किसी के लिए अपनी खुशियों को दांव पर लगाने की जरूरत नहीं है. लोग आप को स्वार्थी कह सकते हैं, पर इस में बुरा क्या है? थोड़ा स्वार्थी होना भी आवश्यक है वरना जिंदगी जब समझौतों के चक्र में फंसती है तो खुशी कम और दुख ज्यादा महसूस होता है. कुढ़कुढ़ कर पूरा जीवन गुजारने का क्या फायदा? खुद निर्णय लें. आखिर कोई दूसरा आप की खुशी निर्धारित क्यों करे? तो जीएं बेरोकटोक जीवन खुल कर. 

नूतन का बेटा हूं इसलिए सालों तक काम मिलता रहा : मोहनीश बहल

मांकी सीख और बौलीवुड में कुछ करने की ललक ही मोहनीश को मायानगरी की रंगीन दुनिया में लाई थी. 1983 में आई फिल्म ‘बेकरार’ से ऐक्टिंग की शुरुआत करने वाले मोहनीश आए तो थे ऐक्टर बनने पर 1989 की ब्लौकबस्टर फिल्म ‘मैं ने प्यार किया’ में सलमान के अपोजिट उन के नैगेटिव किरदार ने उन्हें सुर्खियों में ला दिया. 

मोहनीश ने कई यादगार किरदारों को निभाया है. फिल्म ‘हम आप के हैं कौन’ और ‘हम साथसाथ हैं’ में उन के द्वारा निभाया गया आदर्श बड़े भाई का किरदार हमेशा याद रहेगा. 3 साल पहले आई फिल्म ‘जय हो’ के बाद वे छोटे परदे से जुडे़ और दर्शकों का मनोरंजन कर रहे हैं. इन दिनों वे ऐंड टीवी पर आ रहे क्राइम शो ‘होशियार’ को होस्ट कर रहे हैं. पेश हैं, शो के प्रमोशन के दौरान उन से हुई बातचीत के कुछ अंश.

फिल्मों में कैसे आना हुआ?

फिल्मी परिवार से होने के कारण सैट्स पर मेरा अकसर आनाजाना होता था. जब मां मुंबई से बाहर शूटिंग के लिए जाती थीं तो मैं भी उन के साथ ही रहता था. एक दिन फिल्म निर्माता राज खोसला ने मुझे उर्दू सीखने के लिए बुलाया, तब मैं 18-19 साल का था, सैट्स पर ही मेरी उर्दू की क्लास चलने लगी.

फिल्मों में जाने का मन मैं पहले ही बना चुका था. खोसलाजी से मिलने पर यह बात फैल गई कि मैं इंडस्ट्री जौइन कर रहा हूं. सन्नी देओल, संजय दत्त, कुमार गौरव समेत मेरे साथ बहुत से स्टार संस ने डैब्यू किया था. शुरुआती फिल्में बौक्स औफिस पर बुरी तरह फ्लौप हुईं.

उस दौर की ‘पुराना मंदिर’ मेरी हिट फिल्म थी, लेकिन हौरर फिल्मों को उस समय बी ग्रेड माना जाता था. फिल्मों में नाकामयाब होने के बाद मैं ने इंडस्ट्री छोड़ने का मन बना लिया और फ्लाइंग सीखना शुरू कर दिया, क्योंकि काम तो करना ही था.

सलमान खान से मेरी दोस्ती बहुत पहले से थी, सूरजजी ‘मैं ने प्यार किया’ फिल्म के औडीशन ले रहे थे, सलमान ने कहा कि तू भी एक बार औडीशन क्यों नहीं देता. मैं गया और फिल्म के लिए सिलैक्ट हो गया. उस फिल्म में निभाया गया मेरा ग्रे करैक्टर मेरे कैरियर का टर्निंग पौइंट साबित हुआ.

मां का कितना प्रभाव पड़ा?

मां का अपने बच्चे पर प्रभाव पड़ना तो लाजिमी है. मां ने 3 बातें मुझे सिखाई थीं, पहली कैमरे के सामने सिंसियर हो कर काम करो, दूसरी, बड़ी तकनीकी वाली बात थी कि शूटिंग के समय रीटेक के बाद जब दोबारा शूटिंग शुरू हो तो याद रखना कि पहले हाथ का ऐंगल क्या था? यह छोटी बात जरूर थी मगर टैक्निकली बहुत बड़ी है. तीसरी बात वे हमेशा कहती थीं कि तुम्हारी नाक लंबी है इसलिए कैमरे के सामने इस का ध्यान रखना.

नूतन जी इतनी बड़ी अदाकारा थीं, परिवार को उन की कमी तो महसूस नहीं हुई?

वे जितनी अच्छी अदाकारा थीं उतनी ही अच्छी एक मां व एक पत्नी भी थीं. सामंजस्य क्या होता है यह मैं ने उन से ही सीखा. वे बेहद बहादुर थीं. कैंसर जैसी बीमारी का उन्होंने बहादुरी से सामना किया. जब उन्हें कैंसर का पता चला तो वे मायूस नहीं हुईं. उन्होंने कैंसर से पहली जंग जीत ली थी, लेकिन उस के बाद कैंसर ने उन के लिवर पर आक्रमण किया. बीमारी के दौरान भी वे हमें हौसला देती रहीं.

उन के जीवित रहते मेरा फिल्मी कैरियर शुरू हो चुका था, लेकिन परवान नहीं चढ़ा था. उन्होंने मेरी फिल्में ‘मैं ने प्यार किया’ और ‘बाग़ी’ देखीं. उन्हें मेरा काम पसंद आया.

जब बीच में मेरे पास कोई काम नहीं था तब वे हमेशा मेरी हिम्मत बढ़ाती रहतीं और अमितजी का उदाहरण देतीं. हालांकि मेरे ऊपर घर चलाने की जिम्मेदारी नहीं थी, लेकिन वे कहती थीं कि लाइफ में किसी भी चीज की गारंटी नहीं है. 

उन की कौन सी फिल्में आप को सब से ज्यादा पसंद हैं?

जब मैं छोटा था तब उन की फिल्में कम देखता था, क्योंकि मां अपनी फिल्मों में रोती बहुत थीं और मुझे उन्हें रोते हुए देखना बिलकुल पसंद नहीं था. 

मैं उन्हें परदे पर ही सही, लेकिन तकलीफ सहते हुए नहीं देख सकता था. कुछ फिल्में तो मैं ने तब देखीं, जब बड़ा हो गया था. उन की फिल्में ‘सुजाता’, ‘बंदिनी‘, और मिलन’ मुझे बहुत पसंद हैं. मां के नाम का सहारा इतना रहा कि 20-22 साल तक तो इसी नाम से फिल्में चलती रहीं और काम मिलता रहा. 

आप की इमेज एक ग्रे शेड ऐक्टर की बनी है, अब आप पौजिटिव किरदार निभा रहे हैं तो क्या इस बदलाव को दर्शक पचा पा रहे हैं?

यह सही है कि मैं ने नैगेटिव किरदार ज्यादा निभाए हैं, लेकिन सूरज की फिल्मों में दर्शकों ने मेरे बदले अवतार को बहुत सराहा है. जो प्यार मुझे अच्छे किरदार को निभाने में मिला वह कभी भी ग्रे शेड किरदार में नहीं मिला, इसलिए ऐसे रोल करने से बच रहा हूं क्योंकि इस उम्र में अपनी पहचान विलेन की नहीं एक अच्छे कलाकार की बनाना चाहता हूं.

आप के साथी कलाकारों ने ऊंचाइयां छू लीं. आप कैसे पीछे रह गए?

मैं ने फिल्म ‘तेरी बांहों में’ और ‘पुराना मंदिर’ में हीरो का किरदार निभाया था, लेकिन फिल्म ‘मैं ने प्यार किया’ में काम करने के बाद मैं विलेन बन गया. मैं ने कौमेडी भी की, पौजिटिव संजीदा किरदार भी निभाए हैं. इस के बाद अब छोटे परदे पर भी सक्रिय हूं. मैं मानता हूं कि मेरे साथी कलाकार आज सितारे बन गए हैं, लेकिन मुझे अपने आप से कोई शिकायत नहीं.

35 साल में आप में क्या बदलाव आया है?

असुरक्षा की भावना से मैं आज तक नहीं उबर पाया हूं. मैं मानता हूं कि हम सभी में असुरक्षा की भावना रहती है. जब मैं इंडस्ट्री में नया आया था तब से ले कर आज तक फिल्मों में जो बदलाव आया है वह तकनीकी रूप से ज्यादा आया है. पहले बंदिशें बहुत थीं, आज उतनी नहीं हैं. आज किसी ऐक्टर को देख कर आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि यह ऐसी फिल्म बनाएगा. पहले सभी के स्लौट सीमित थे. हर फिल्म में कौमेडियन, विलेन, हीरो सभी अलग होते थे, लेकिन आज की फिल्मों की कहानी अलग तरह की होती है. यह बदलाव ही है.

हमेशा से आप राजश्री की फिल्मों में रहे हैं, लेकिन प्रेम रतन धन पायोमें क्यों नहीं थे?

जब सूरजजी इस फिल्म को बना रहे थे तब मेरे पास उन का फोन आया था कि एक बार मैं इस फिल्म की स्क्रिप्ट देख लूं, लेकिन मैं ने स्क्रिप्ट पढ़ी तो पूरी कहानी में मेरे लायक कोई रोल नहीं था. सलमान इस फिल्म में वैसे ही डबल रोल निभा रहे थे.

आजकल कई सारे क्राइम शो आ रहे हैं, उन के हिट होने का क्या कारण है क्यों लोगों को अपराध देखना पसंद है?

उत्सुकता एक ऐसा शब्द है जो हर जगह होता है. मानवीय प्रवृत्ति ही ऐसी है जिस में दीवार के पीछे क्या है इस की उत्सुकता बनी रहती है. इसलिए ऐसे शोज हिट हैं.

बेबी कौर्न मंचूरियन : स्वाद है कुछ खास

सामग्री

100 ग्राम बेबी कौर्न

1/2 कप कौर्नफ्लोर

1/4 कप मैदा

1 बड़ा चम्मच चावल का आटा

1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च चूर्ण

तलने के लिए पर्याप्त तेल

2 छोटे चम्मच सोया सौस

2 छोटे चम्मच रैड चिली सौस

1 बड़ा चम्मच टोमैटो सौस

1 छोटा चम्मच व्हाइट सिरका

1 बड़ा चम्मच कौर्नफ्लोर

2 बड़े चम्मच प्याज बारीक कटा

1 छोटा चम्मच अदरक लहसुन पेस्ट

थोड़ी सी धनियापत्ती कटी सजावट के लिए

2 छोटे चम्मच रिफाइंड औयल

नमक स्वादानुसार

विधि

कौर्नफ्लोर, मैदा व चावल के आटे को मिक्स कर पकौड़ों लायक घोल तैयार करें. इसमें काली मिर्च चूर्ण और नमक डालें. बेबी कौर्न को 1/2 इंच के टुकड़ों में काट लें.

कड़ाही में तेल गरम कर प्रत्येक बेबी कौर्न के टुकड़े को घोल में डिप कर डीप फ्राई कर लें. एक नौनस्टिक कड़ाही में तेल गरम कर के प्याज सौते करें.

अदरक लहसुन पेस्ट डाल कर 30 सैकंड चलाएं. फिर सोया सौस, चिली सौस, टोमैटो सौस और सिरका डालें.

1/2 कप पानी में कौर्नफ्लोर घोल कर डाल दें. इस में फ्राइड बेबी कौर्न डालें और धीमी आंच पर चलाती रहें.

जब मिश्रण अच्छी तरह बेबी कौर्न पर लिपट जाए तब आंच बंद कर दें. सर्विंग डिश में पलट धनियापत्ती से सजा कर सर्व करें.

-व्यंजन सहयोग : नीरा कुमार

जैसी स्किन टोन वैसा नेल पेंट

अकसर महिलाएं नेल पेंट का चुनाव आउटफिट के अनुसार करती हैं. नतीजतन उस आउटफिट पर तो नेल पेंट खूबसूरत नजर आता है, लेकिन दूसरे आउटफिट के साथ उस की सारी खूबसूरती गुम हो जाती है. ऐसे में नेल पेंट का चुनाव आउटफिट के अनुसार न कर स्किनटोन को ध्यान में रख कर करें. इस से हाथों की खूबसूरती बरकरार रहती है. किस स्किनटोन पर कौन से शेड का नेल पेंट जंचता है, जानते हैं मेकअप आर्टिस्ट क्रिस्टल फर्नांडिस से.

वैरी फेयर स्किनटोन

– बहुत ज्यादा गोरी महिलाओं के लिए पिंक और पिंक शेड से मिलतेजुलते शेड के नेल पेंट्स परफैक्ट चौइस हो सकते हैं.

– ऐसी महिलाएं पेस्टल शेड के नेल पेंट्स को भी अपने वैनिटी बौक्स में जगह दे सकती हैं. ये इन की स्किनटोन पर खूब जंचते हैं.

– बोल्ड लुक के लिए ऐसी महिलाएं डार्क रैड शेड के नेल पेंट्स को अपनी पहली पसंद बना सकती हैं.

– अगर डार्क शेड नेल पेंट्स लगाना चाहती हैं, तो डार्क ब्लू, नेवी ब्लू, मिडनाइट ब्लू जैसे शेड्स ट्राई कर सकती हैं.

सुझाव

शीयर शेड्स के नेल पेंट्स लगाने से बचें. ये आप पर सूट नहीं करेंगे.

फेयर स्किन टोन

– गोरी महिलाओं के लिए डार्क रैड और रूबी आइडियल नेल पेंट शेड्स हैं. इन से हाथों की खूबसूरती दोगुनी हो जाती है.

– बहुत अधिक गोरी महिलाओं की तरह पेस्टल शेड्स गोरी महिलाओं पर भी सूट करते हैं यानी इन्हें भी अपने वैनिटी बौक्स में रख सकती हैं.

– प्लम्स, बरगंडी, पर्पल जैसे डार्क शेड के नेल पेंट्स गोरी महिलाओं को बोल्ड लुक देते हैं.

– अगर लाइट शेड के नेल पेंट्स लगाने हों तो सिल्वर, व्हाइट, पेल जैसे शेड्स चुनें. ये स्किनटोन पर सूट करते हैं.

– फ्रैश लुक के लिए ब्लू, औरेंज, पीच शेड के नेल पेंट्स चुन सकती हैं.

सुझाव

ट्रांसपैरेंट या इनविजिबल शेड के नेल पेंट्स लगाने से परहेज करें. ये आप की स्किनटोन के लिए नहीं हैं.

मीडियम स्किन टोन

– पीच और पेल शेड के नेल पेंट्स को मीडियम स्किनटोन वाली महिलाएं अपनी पहली पसंद बना सकती हैं.

– डार्क के बजाय पिंक, पर्पल, ब्लू और रैड के लाइट शेड्स भी मीडियम स्किनटोन वाली महिलाओं पर सूट करते हैं.

– अगर मीडियम स्किनटोन वाली महिलाएं डार्क शेड लगाना चाहती हैं, तो कोरल औरेंज नेल पेंट्स का चुनाव कर सकती हैं.

– पार्टी जैसे मौके के लिए सिल्वर शेड के नेल पेंट्स इन के हाथों की खूबसूरती में चार चांद लगा सकते हैं.

सुझाव

मीडियम स्किनटोन की महिलाओं पर गोल्ड और रस्ट शेड के नेल पेंट्स अच्छे नहीं लगते, इसलिए इन्हें लगाने से बचें.

डार्क स्किन टोन

– सांवली रंगत की महिलाएं डार्क के बजाय ब्राइट शेड्स को तवज्जो दें. ये आप की स्किनटोन पर ज्यादा खूबसूरत नजर आएंगे.

– ब्राइट औरेंज और ब्राइट मिंट शेड के नेल पेंट्स आप को फ्रैश लुक दे सकते हैं.

– अगर ब्लू शेड ट्राई करना चाहती हैं, तो ब्लू के डार्क शेड के चयन के बजाय बेबी ब्लू नेल पेंट चुनें.

– अगर पिंक शेड लगाना हो तो पिंक के न्यूड शेड का चुनाव करें. यह डार्क स्किन पर सूट करता है.

सुझाव

पेस्टल शेड के नेल पेंट्स से परहेज करें. ये आप के नाखूनों पर उभर कर दिखाई देंगे.

जब रजनीकांत को भिखारी समझ 10 रुपये दे गई एक महिला

66 साल के रजनीकांत के फिल्मी करियर के बारे में कुछ भी कहा जाए तो कम ही होगा. आप उनके करियर का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि दक्षिण भारत में उन्हें भगवान की तरह पूजा जाता है. और उनकी फिल्में लोग बड़ी धूमधाम से देखने जाते हैं. फिलहाल रजनीकांत अपनी अपकमिंग फिल्म ‘2.0’ के प्रमोशन में बिजी हैं. साल 2007 में आई उनकी फिल्म ‘शिवाजी’ जबरदस्त हिट रही.

बात अगर रजनीकांत के बारे में कर रहे हैं तो उनसे जुड़े कई सारे रोचक किस्से याद आते हैं और सारे किस्से एक से बढ़कर एक होते हैं. आज हम आपको रजनीकांत के एक ऐसे किस्से के बारे में बताएंगे जिसे सुन कर आपको उनसे और भी ज्यादा प्यार हो जाएगा. यह किस्सा तब का है, जब एक महिला ने सुपस्टार रजनीकांत को  मंदिर के बाहर बैठा भिखारी समझकर उनके हाथ में 10 रुपए रख दिए थे.

दरअसल, रजनीकांत अक्सर मंदिर जाते रहते हैं, ऐसे ही एक दिन जब वह मंदिर गए थे तब उनके साथ एक अजीब सी घटना घटी. कुछ वक्त पहले सुपरस्टार रजनीकांत ने इस किस्से के बारे में बताया था. उस दिन आमतौर पर पहले की तरह ही वे साधारण कपड़ों में मंदिर गए थे और पूजा करने के बाद कुछ देर मंदिर के एक पिलर के नीचे बैठे थे.

तभी एक औरत वहां से गुजरी जिसकी उम्र करीब 40 साल रही होगी. इस औरत ने रजनीकांत को वहां बैठे देखा लेकिन पहचान नहीं पाई और एक भिखारी समझकर 10 रुपए का नोट हाथ में रख कर आगे निकल गई.

यह देखकर रजनीकांत मुस्कुराए, हालांकि उन्होंने उस औरत से कुछ नहीं कहा, 10 रुपए का नोट जेब में रखा और कुछ देर बाद वहां से चल दिए. रजनीकांत अपनी गाड़ी में बैठ ही रहे थे कि तभी उस औरत की नजर रजनीकांत पर पड़ी औ उस औरत को अपनी गलती का एहसास हुआ. उस औरत ने रजनीकांत के पास पहुंचकर उस गलती के लिए माफी मांगी. लेकिन रजनीकांत ने औरत से बड़ी नम्रता से कहा कि ये तो भगवान का इशारा है ये बताने के लिए कि मैं रजनीकांत हूं कोई सुपरस्टार नहीं. जो रजनीकांत ने किया शायद ही उनके अलावा कोई ऐसा कर पाता. ऐसे ही कई अद्भुत किस्से और भी हैं रजनीकांत के जीवन के.

जब नरगिस को बचाने के लिए आग में कूद पड़े सुनील दत्त

बौलीवुड में यूं तो कई लव स्टोरीज हैं जिनके बारे में समय-समय पर हम आपको बताते ही रहते हैं. लेकिन आज हम जिस लव स्टोरी का जिक्र करने जा रहे हैं उसे बौलीवुड की अब तक की सबसे बेहतरीन लव स्टोरी कहना गलत नहीं होगा. हम बात कर रहे हैं बौलीवुड के दो सुपरस्टार्स नरगिस और सुनील दत्त की. मेहबूब खान की फिल्म ‘मदर इंडिया’ में इन दोनों ने साथ काम किया. और इसी फिल्म से नरगिस और सुनील दत्त की लव स्टोरी की शुरुआत हुई.

नरगिस सुनील दत्त से काफी सीनियर थीं, यही वजह थी कि सुनील दत्त उनकी इज्जत किया करते थे. सुनील नरगिस को बहुत चाहते थे लेकिन कभी किसी से उन्होंने इस बारे में कुछ जिक्र नही किया. एक दिन जब फिल्म ‘मदर इंडिया’ की शूटिंग चल रही थी तब अचानक सेट पर आग लग गई. आग को देख सब सेट से भागने लगे, लेकिन नरगिस उस आग की लपेट में आ गई. जब सुनील दत्त की नजर नरगिस पर पड़ी तो वह बिना खुद की जान की परवाह किए बगैर आग में कूद गए और नरगिस को वहां से सुरक्षित निकाल लाए.

हालांकि आग की चपेट से सुनील खुद नहीं बच पाए और थोड़े से जल गए थे. सुनील दत्त ने अपनी इस अदा से नरगिस को काफी हद तक प्रभावित किया था. सुनील दत्त ने जीवन के हर कठिन पड़ाव पर नरगिस का साथ दिया. बताया जाता है जब फिल्म की शूटिंग होती थी तो देर रात तक यह दोनों आपसे में बातें किया करते थे. यहां तक कि जब घर जाना होता तो दोनों एक-दूसरे को लेटर दे देते थे. जब उनकी फिल्म 1957 में रिलीज हुई तो लोगों को काफी पसंद आई. इसके ठीक एक साल बाद 1958 में सुनील और नरगिस ने शादी कर ली.

शादी के कुछ समय बाद जब सुनील से नरगिस और राज कपूर के पास्ट के बारे में सवाल पूछा गया था तो उन्होंने कहा, मुझे उनके रिश्ते में रोमांस तो दिखा ही नहीं. मैं सिर्फ इतना ही जानता था कि वो मेरे जीवन में मेरी अर्धांगिनी के रूप में आई हैं. मैं उनके अतीत को लेकर चिंतित नहीं था. आज भी बौलीवुड में इनकी लव स्टोरी की मिसाल दी जाती है.

भाई-भतीजावाद पर मैं विश्वास नहीं करता : कैलाश खेर

कश्मीरी पंडित परिवार में जन्मे मेरठ के इंडियन पौप रौक और प्लेबैक सिंगर कैलाश खेर ने ‘टूटा टूटा एक परिंदा….’ गाने से अपनी पहचान बनाई. उनका शुरूआती दौर काफी संघर्षपूर्ण था. केवल 13 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया था और अपने संगीत की पहचान बनाने के लिए पहले दिल्ली, फिर मुंबई आये. उन्होंने सूफी संगीत के साथ रौक का फ्यूजन कर जो शैली विकसित की है वह काबिले तारीफ है.

वह देश में ही नहीं विदेशों में भी अपने संगीत की वजह से पहचाने जाते हैं. वे हर तरह के गीतों को गाना पसंद करते हैं. उन्होंने आजतक 18 भाषाओं में गाने गाये हैं, जिसमें बौलीवुड के 300 गाने हैं. उन्हें अपनी उत्कृष्ट गायिकी के लिए इस साल पद्मश्री से भी नवाजा गया है. साधारण कद–काठी के कैलाश खेर से उनके अंधेरी स्थित स्टूडियो ‘कैलासा’ में मिलना हुआ. अपने मंजिल तक वह कैसे पहुंचे आइये उन्हीं से जानते हैं.

अपने बारे में बताएं.

मैं दिल्ली का हूं और मेरा बचपन काफी अलग था. मेरे पिता गाते थे, उन्हें देखकर, पढाई के साथ-साथ मुझे भी गाने का शौक हुआ करता था, लेकिन गाने से अधिक मुझे रहस्यवाद कवितायें लिखने का शौक था, जो सूफी कहलाता है. बड़े ये गाते थे और मुझे सुनने में बहुत अच्छा लगता था, उस समय मेरी उम्र केवल 4 से 5 साल की थी. वहीं से मेरे अंदर इसे गाने की इच्छा पैदा हुई, लेकिन परिवार वाले कहते थे कि पढाई पूरी कर नौकरी करना है, जो मुझे पसंद नहीं था. मैं अपनी जिद पर अड़ा था कि मैं गाना ही गाऊंगा, इसलिए मैं परिवार में किसी का प्यारा नहीं था और 14 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया. घर छोड़ देने के बाद मैंने सारे रिश्ते छोड़ दिए. अब अपने दम पर जीने की चुनौती आई.

कितना और कैसा संघर्ष था?

कामयाब होने से पहले मेरे जीवन में बहुत संघर्ष था. घर छोड़कर दिल्ली जैसे शहर में अकेले रहना, पेट भरना, पढाई पूरी करना और अपने आप को प्रूव करना सब एक साथ आ गया. किराये पर बहुत दिनों तक रहा, करीब 12 साल तक दिल्ली में 10 से 15 घर बदले. जिंदगी जीने का बहुत बड़ा संघर्ष था, लेकिन इस संघर्ष से मैंने विनम्र होना, जीना और चुनौती लेना सीखा. मैंने इस संघर्ष से एक इंसान बनना सीखा.

उस समय मैं संगीत क्या है, उसे करीब भूल चुका था. कैसे अपना पेट भरु, कैसे माता-पिता को अपनी शकल दिखाऊं, इस उठा-पटक में कब मैं 27 साल का हो गया, पता ही नहीं चला. जिसके लिए घर छोड़ा उसी को नहीं कर पाया, क्योंकि आटे, तेल, लकड़ी इसी में जिंदगी उलझ गयी थी. हमारे देश में ऐसे लाखों लोग हैं, जो सपने तो देखते हैं, पर वह पूरा नहीं हो पता. इसके अलावा मेरा दिल्ली में मेरा एक छोटा सा एक्सपोर्ट का व्यवसाय भी फेल हो चुका था. मैं अवसाद में चला गया था. उससे निकलने के कई काम किये. एक बार तो आत्महत्या की भी इच्छा हुई, पर इस दौरान मैंने देखा कि जब भी कुछ गाता था, तो सुनने वाले झूम उठते थे, फिर मैंने साल 2001 में मुंबई आने का प्लान बनाया और एल्बम बनाने की सोची. दो साल यहां मेहनत की और साल 2004 में ‘टूटा-टूटा’ गाने के रिलीज के बाद तो कहानी पूरी तरह से बदल गयी. कई टीवी, रेडियो जिंगल्स और फिल्मों में गाने का औफर मिलने लगे.

परिवार के साथ फिर से कैसे मिले? उनका सहयोग आपके जीवन में कितना है?

पहले तो नहीं था, लेकिन मुंबई आने के बाद काम के साथ-साथ जब पैसे मिलने लगे, तो जिंदगी में खुशियां मिलने लगी, आत्मविश्वास बढ़ने लगा. माता-पिता के पास गया, उन्हें मुंबई ले आये. अभी वे दोनों नहीं रहे, पर मैं खुश हूं कि उन्होंने मेरी कामयाबी को देखा है. मेरी शादी एरेंज्ड है, मेरी पत्नी शीतल भान हाउसवाइफ है, मेरा एक बेटा कबीर 7 साल का है, जो मेरे और अंग्रेजी गाने सुनता है. मेरी कामयाबी में परिवार पत्नी और मेरे सहयोगी सभी का हाथ है. ये सेलिब्रिटी स्टेटस भी उनके वजह से मिला है. जीवन में कोई भी प्रसिद्धी आसानी से नहीं मिलती और जो इससे गुजरते हैं, उन्हें इसका मूल्य पता होता है. इस लिए ग्राउंडेड रहने में कोई मुश्किल नहीं होती.

आपकी फिटनेस का राज क्या है?

मैं थोड़ा-थोड़ा खाता रहता हूं. गले के लिए गरम पानी पीता हूं. सकारात्मक सोच रखता हूं. किसी का दिल नहीं दुखाता. कोई दुखी हो तो उसे संगीत से खुशी देता हूं.

इंडस्ट्री आउटसाइडर को कितना मौका देती है?

जिनमें हुनर हो, उन्हें मौका मिलता है. इंडस्ट्री कोई नहीं होती, हुनर ही इंडस्ट्री है. आप में अगर प्रतिभा है तो हर कोई आपको पसंद करता है. जब मैंने ‘देव’ फिल्म के दौरान ‘पिया के रंग, रंग दीनी..’ गाना गाया तो अमिताभ बच्चन भी चौक कर मुझे देखने लगे थे. कैसे भी आप हो, छोटे-बड़े, कम या अधिक उम्र, लेकिन हुनर सबका बाप है. भाई-भतीजावाद पर मैं विश्वास नहीं करता. रंग-भेद और जातिवाद को कभी मैंने महसूस नहीं किया है, लेकिन शुरू में सब सोचते थे कि मैं कौन हूं, कहां से हूं और क्या गा सकता हूं. ये समस्या आई, लेकिन जब प्रतिभा दिखी, तो सब ने स्वीकार कर लिया.

अवार्ड का मिलना किसी कलाकार के लिए कितना मायने रखती है?

12 साल बाद मुझे पद्मश्री मिली. मुझे खुशी हुयी, लेकिन अवार्ड से जिम्मेदारी बढ़ती है.

क्या कभी ‘रिजेक्शन’ का सामना करना पड़ा?

मैं तो रिजेक्शन से ही आगे आया हूं. शुरू से अगर मुझे स्वीकृति मिल जाती तो मैं यहां तक पहुंच नहीं पाता. शुरू में मैंने शाहरुख खान की बड़ी फिल्म ‘चलते-चलते’ के लिए गाना गाया था, मैं खुश था कि मुझे बड़ा ब्रेक मिल रहा है, कुछ दिनों बाद जब म्यूजिक रिलीज हुई, तो उसमें मेरा नाम नहीं था. उसी गाने को किसी और सिंगर से गवाया गया था. ऐसी घटना से आपको पता नहीं चलता कि आप रिजेक्ट हो चुके हैं. बड़ा झटका लगा था, लेकिन ये सब चीजें आपको सीख देती हैं.

आजकल के अभिनेता और अभिनेत्री फिल्मों में गाने लगे हैं ऐसे में प्लेबैक सिंगर के लिए कितनी जगह रह जाती है?

इसकी उम्र छोटी होती है. जो रियल सिंगर है, सालों से मेहनत की है, उनकी चमक अलग होती है. मैं इसमें कोई खतरा महसूस नहीं करता. मैंने एल्बम से काम शुरू किया था. मेरी पहली एल्बम ‘कैलासा’ थी, मेरे बैंड का नाम ‘कैलासा’ है और मेरी स्टूडियो का नाम भी ‘कैलासा’ है. एल्बम कम चलते हैं, लेकिन अच्छे गानें हो तो लोग पसंद करते हैं.

कारगिल में जाने का अनुभव कैसा रहा?

मैं स्वच्छ भारत के अभियान में काम कर रहा हूं. मुझे ये सब करना अच्छा लगता है. मुझे जब भी मौका मिलता है, सैनिकों के बीच में जाता रहता हूं. करगिल में मैंने एक शो किया. वहां के सैनिक और आफिसर विषम परिस्थिति में किस तरह काम करते हैं. ये जानना और देखना मेरे लिए हृदय विदारक था. हमारे देश में पैसे के लिए अधिकतर लोग काम करते है, लेकिन कोई भी जिम्मेदारी से काम नहीं करता. अगर वे सही काम करते, तो देश आज और तरक्की करता. सरकारी काम लेते ही वे निकम्मे हो जाते हैं. आधा समय छुट्टियों में बिता देते हैं, लेकिन सरकारी नौकरी होने के बाद भी सैनिक अपनी जिम्मेदारी माइनस 40 डिग्री में निभाते हैं. सैनिकों के लिए मेरा संदेश है कि अगर वे देश के प्रति समर्पित हैं, तो मैं भी उनकी सेवा में हमेशा तत्पर रहूंगा. उनके लिए मैं एक गाना भी बना रहा हूं. देश की नागरिकों से कहना है कि आप देश को साफ बनाए इधर-उधर न थूकें, अपने आस-पास को साफ रखें. सैनिकों का सम्मान करें.

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