‘कभी खुशी कभी गम’ की पू बनी इमरान की हीरोइन

इमरान हाशमी की नई फिल्म ‘कैप्टन नवाब’ का पहला पोस्टर रिलीज हो गया है. इस फिल्म में जिस एक्ट्रेस ने काम किया है उन्हे आप ‘कभी खुशी कभी गम’ में पहले ही देख चुके हैं.

करण जौहर की फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ में जिस एक्ट्रेस ने बतौर बाल कलाकार काम किया था, वो अब इमरान हाशमी की हीरोइन के रूप में नजर आ रही है. आपको बता दें मालविका राज फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ में करीना कपूर के बचपन के किरदार में नजर आई थीं और अब निर्देशक टोनी डिसूजा की फिल्म ‘कैप्टन नवाब’ से मालविका राज बौलीवुड में बतौर अभिनेत्री के रूप में एन्ट्री कर रही हैं.

फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े परिवार का हिस्सा होने और बतौर बाल कलाकार काम करने की वजह से मालविका को अभिनय की अच्छी समझ हैं मालविका को कई औडिशन्स राउंड से होकर गुजरना पड़ा. तब जाकर उन्हें उनकी अच्छी परफार्मेन्स की वजह से फिल्म ‘कैप्टन नवाब’ की हीरोइन के लिए चुना गया.

इस फिल्म में इमरान आपको एक आर्मी अफसर के रोल नजर आएंगे. सत्य घटनाओं पर आधारित यह फिल्म अगले साल 2018 में रिलीज होगी.

टोनी डिसूजा कहते हैं, हम कुछ नया करने जा रहे थे. इस फिल्म के लिए मेकर्स को एक नए चेहरे की तलाश थी. उन्हें एक ऐसी नायिका चाहिए थी जिसका स्क्रीन प्रेजेंस काफी आकर्षक हो.

ऐसे में कहानी की नायिका के किरदार का सही चयन होना जरूरी था. उन्होने कहा कि मालविका के आडिशन के बाद उन्हें अहसास हुआ कि मालविका ही उनकी फिल्म की नायिका हो सकती है. उनका कहना है कि मालविका को इस किरदार में चुनकर उन्हें अच्छा लग रहा है.

घर के सीढ़ियों के नीचे बनाएं पेबल गार्डन

घर का वातावरण शुद्ध रखने के लिए लोग घर के अंदर भी गार्डन बना रहे हैं. इनडोर प्लांटस से घर का वातावरण शुद्ध रहेगा और बेकार पड़ी खाली जगह का इस्तेमाल हो जाएगा. घर के अंदर गार्डन बनाने के लिए जगह भी खास होनी चाहिए. अगर इस गार्डन को सीढियों के नीचे पड़ी खाली जगह पर बनाया जाए तो ना तो घर में चलने-फिरने में कोई दिक्कत होगी ना ही गार्डन को कोई नुकसान पहुंचेगा.

सीढ़ियों के नीचे बनाए गए इस गार्डन को पेबल गार्डन (Pebble Garden) भी कहा जाता है और इसमें मिट्टी का नहीं बल्कि छोटे-छोटे पत्थरों का इस्तेमाल किया जाता है. मार्केट में यह अलग-अलग आकार, रंगों और क्वालिटी में मिल जाते हैं. यह गार्डन और फिश टैंक के लिए अलग-अलग क्वालिटी में मिलते हैं. इसकी मदद से पौधे उगाएं जाते हैं और इनसे ही पौधों को पोषण मिलता है.

आप अपनी पसंद के हिसाब से पौधों का चुनाव कर सकती हैं लेकिन इस बात का ध्यान रखें की यह छोटे हों, बड़े आकार को पौधे घर के अंदर उगाने मुश्किल हो जाएंगे.

पेबल गार्डन बनाने से पहले रखें इन बातों का ध्यान.

– सबसे पहले इस बात को जांच लें कि सीढियों के नीचे कितनी जगह पर गार्डन बनाना है. इस जगह को कवर करके अच्छे से साफ कर लें.

– इस जगह के किनारों पर बाउंड्री बना लें. जिसे लकड़ी, मार्बल या फिर कांच से कवर कर सकती हैं. इससे गार्डन देखने में भी बहुत खूबसूरत लगेगा.

– इसके बाद जरूरत के हिसाब से पेबल को बिछाएं. इस बात का ध्यान रखें कि ये 4-5 इंच मोटी परत में बिछाएं. 

– अब इसमें छोटे-छोटे पौधे, फूल और डेकोरेटिव प्लांट लगाएं. आप इसमें सीधे पौधे लगाने की बजाएं इसमें गमलों का भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

– आप इसे और भी आकर्षित बनाने के लिए स्टैचू, घास, अलग-अलग रंग के पेबल के अलावा और भी डेकोरेटिव आइटमस से इसे सजा सकती हैं.

– गार्डन को और भी खूबसूरत बनाने के लिए आप इसमें लाइट्स लगा सकती हैं.

कालेज के फैशनेबल कपड़ों के अंदाज निराले

कालेज गोइंग युवतियों में फैशन को ले कर खासा क्रेज होता है. वे अपने लुक और स्टाइल को ले कर नएनए ऐक्सपैरिमैंट्स करती रहती हैं. एक ही ड्रैस को अलगअलग तरीकों से मिक्स ऐंड मैच कर लुक में वैराइटी पा सकती हैं. कालेज में डेली में पहने जाने वाले फैशनेबल कपड़े हों, या फिर कालेज की पार्टी हो, युवतियों को तो सजने का बहाना चाहिए. तो आइए जानें वे कैसे अलगअलग मौकों पर फैशनेबल दिखने के साथसाथ डिसैंट भी लगेंगी.

नी लैंथ स्कर्ट

नी लैंथ स्कर्ट इन दिनों कालेज गोइंग गर्ल्स में काफी पौपुलर है. इसे आप क्रौप या लूज टौप के साथ पहन सकती हैं. इस के साथ सनग्लासेज और कंफर्टेबल हील फैशनेबल लगती हैं.

डैनिम्स आउटफिट है हिट

डैनिम शर्ट, ट्यूनिक, स्कर्ट अपनेआप में ही एक स्टाइल है और आजकल तो डैनिम के जंपसूट भी चल रहे हैं जो पतली युवतियों पर खूब फबते हैं. डैनिम के साथ नैकपीस और ड्रैस से मैच करती हुई बैल्ट लगाने पर डैनिम की रंगत और भी बढ़ जाती है.

प्लाजो सूट

प्लाजो पैंट लंबी और स्ट्रेट टाउजर होती है जोकि ऊपर से टाइट और बौटम से लूज होती है. यह बैलबौटम, गूचो टाउजर, हैरम पैंट्स और पैरलर्स से थोड़ा अलग होती है. इस के साथ ऊपर इस से मिलताजुलता कोई टौप या सूट जरूर होता है, वैसे यह पाकिस्तान की काफी फैमस ड्रैस है जो कि अब इंडिया में भी काफी पसंद की जा रही है और ट्रैंड में है. स्पैशली युवतियों में यह ड्रैस काफी पौपुलर हो चुकी है. इसे आप लौंग शर्ट, फ्रौक, सूट के साथ पहन सकती हैं. प्लाजो पैंट स्पैगिटी के साथ भी अच्छी लगती है.

प्लाजो सूट कैसे कैसे

–  जौर्जट प्लाजो सूट के साथ शिफान के दुपट्टे का फैशन काफी चल रहा है.

– ये प्लाजो राजस्थानी प्रिंट के भी आते हैं. इन में कई कलर और प्रिंट मिलते हैं. इन्हें आप लूज शर्ट टौप के साथ पहन सकती हैं.

– इस के अलावा लौंग शर्ट को नीचे से अंब्रेला कट के साथ डिजाइन कर के ज्यादा खुले प्लाजो के साथ पहनने पर भी अच्छा लुक आता है.

– बाटिक प्रिंट की लौंग कुरती के साथ प्लेन कलर का प्लाजो भी जंचता है.

स्लोगन टीशर्ट का है जमाना

समर सीजन में टीशर्ट सब से कूल फैशन स्टाइल होता है और इस में यदि स्लोगन टीशर्ट पहनी जाए तो कहना ही क्या. इन दिनों गर्ल्स में खूब पौपुलर हो रही है स्लोगन टीशर्ट. इन टीशर्ट्स पर कोई न कोई संदेश लिखा होता है जिसे इन टीशर्ट का डिजाइन भी कह सकते हैं. इन पर लिखी ये इबारतें इतनी रुचिकर होती हैं कि जब तक हम इन्हें पूरा न पढ़ लें, हमें चैन ही नहीं आता है. अटपटीचटपटी लिखी ये बातें किसी न किसी तरह हमें आकर्षित करती हैं. यही कारण है कि टीशर्ट यंगिस्तान का फेवरेट फैशन बन गया है. इन में कई तरह की शेप होती हैं, जैसे वी शेप गला, राउंड नेक, बोट नैक आदि. इस के अलावा ये टीशर्ट्स कई स्टाइल्स में भी आती हैं.

डबल डैकर टीशर्ट

ये टीशर्ट्स स्पैगिटी के साथ अटैच्ड होती हैं इसलिए इन में 2 टीशर्ट होने की वजह से इन्हें डबल डैकर टीशर्ट कहते हैं. ये टीशर्ट्स कटस्लीव्स में भी मिलती हैं और यही उन का डिजाइन भी होता है. साथ ही, ये टौपनुमा भी होती हैं जिन पर एक कट स्लीव्स स्पैगिटी के साथ ऊपर एक ओर टौप जुड़ा होता है, जिस पर मैसेज लिखा होता है. यह स्टाइल इन टीशर्ट्स को फंकी लुक भी देता है.

औफ डाउन शोल्डर टीशर्ट

इन टीशर्ट्स में शोल्डर नीचे गिरा होता है और यही इस टीशर्ट का स्टाइल स्टेटमैंट होता है.

ओवरसाइज टीशर्ट

इस तरह की टीशर्ट नीचे से थोड़ी लैंथ में बड़ी होती है. यह बौडी का काफी बड़ा पार्ट कवर करती है, इसलिए इसे ओवरसाइज टीशर्ट कहते हैं.

स्टाइप ओवरसाइज टीशर्ट

इस में भी स्लोगन लिखे होते हैं लेकिन स्टाइप के बीच में स्लोगन होते हैं. ये अधिकतर व्हाइट कलर में आती हैं और इन पर ब्लैक या रैड स्टाइप्स होते हैं.

आउटशोल्डर टौप टीशर्ट

इस तरह की टीशर्ट में शोल्डर ऊपर से तो कटे हुए होते हैं लेकिन शोल्डर के नीचे बाजू होती है, जो इस टीशर्ट को एक अलग फंकी लुक देती है.

आर्म टीशर्ट

यह टीशर्ट साइड से बिलकुल कटी हुई होती है और सिर्फ ऊपर व नीचे का हिस्सा जुड़ा हुआ होता है, पर बीच में से कटी होती है. इस में नीचे स्पैगिटी आदि पहननी पड़ती है.

ओपन फ्रंट ट्यूरटल नैक लौंग

इस तरह की टीशर्ट में गले से नीचे और चैस्ट से ऊपर एक कट वाला डिजाइन होता है जिस से गले और चैस्ट के बीच की जगह दिखाई देती है. इस में स्लीव्स फुल होती है. लेकिन यह टौप काफी सैक्सी लगता है. इस पर स्लोगन कुछ इस तरह के होते हैं, ‘आई एम सैक्सी’ आदि.

यह टौप टीशर्ट बोल्ड लड़कियां कैरी करती हैं.

फैशन में है कलरफुल जींस

यह सीजन कलरफुल रंगों के लिए परफैक्ट है, तो फिर ऐसे में हम जींस में यही पुराने ब्लू, ब्लैक कलर ही क्यों पहनें. दरअसल, इन दिनों कलर्ड जींस में कई वैराइटियां आ रही हैं, जिन में कई तरह के कंट्रास्ट व डिफरैंट कलर्स यूज किए जा रहे हैं. आइए जानें ये जींस किस तरह की हैं.

कलर्ड जींस में प्रिंट भी है

कलर्ड जींस अब सिर्फ प्लेन नहीं है बल्कि उस में कई तरह के प्रिंट भी हैं, जो उसे खास बनाते हैं. कई जींस को रिप्ड लुक भी दिया जा रहा है जिस में नीचे की तरफ से धागे निकले होते हैं जो इसे एक अलग ही फंकी लुक देते हैं.

– इस के साथ ही एक डिजाइन में डिफरैंट तरह के स्टड्स और स्पाइक्स भी लगे होते हैं.

– नौर्मल जींस को रगड़ कर हलका सा स्किनी टच देने की कोशिश भी की गई है.

– इस तरह की कलर्ड जींस को नीचे से पजामी लुक दिया गया है जो पहनने में स्लैक्स जैसी कंफर्टेबल है और देखने में जींस का लुक भी देती है.

– यह जींस नीचे से थोड़ी खुली होती है जिसे चेन की सहायता से बंद किया गया होता है. यह स्टाइल जींस में एक डिजाइन का काम भी करता है और साथ ही, इसे पहनने में आसानी भी होती है.

– कई कलर्ड जींस में ऊपर पट्टी दूसरे कलर की होती है जो उसे एक अलग लुक देती है.

ऐक्सैसरीज भी हों खास

इस जींस के साथ ऐक्सैसरीज में लकड़ी के कड़ों से ले कर शौर्ट जैकेट, ईयररिंग, ट्राइबल स्टाइल के गहने, फंकी ईयररिंग्स और बड़ी सी वौच फैशन में हैं.

जींस के साथ टौप कैसा हो

– अगर जींस किसी डार्क कलर की हो तो उस के साथ स्ट्रिप नौट शर्ट पहनना अच्छा लगता है.

– यह जींस अधिकतर लो वैस्ट होती है. शौर्ट टौप के साथ इस में फिगर काफी अच्छी लगती है.

– स्पैगिटी टौप भी अच्छा लगता है, यह जींस को एक अलग ही लुक देता है.

कलर भी हो कूल

गरमी में हमेशा ड्रैस के मैटीरियल के साथ उस के कलर पर भी ध्यान देना पड़ता है. गरमी में कलर ऐसे पहनने चाहिए जो हलके, कूल और आंखों को ठंडक देने वाले हों. गरमी में ग्रीन कलर ठंडक देता है, इसलिए ग्रीन जरूर कैरी करें, चाहें तो आप ग्रीन कलर की टीशर्ट या जींस पहनें या फिर ग्रीन पर्स या सैंडिल भी पहन सकती हैं.

पिंक कलर भी युवतियों में काफी पसंद किया जाता है और बेबी पिंक की तो युवतियां वैसे ही दीवानी होती हैं और इस मौसम में वह अच्छा भी लगता है. अगर इन कलर्स से बोर हो चुकी हैं तो औरेंज कलर भी ट्राई कर सकती हैं.

फैब्रिक भी हो कुछ ऐसा

कौटन मिक्स सिल्क, शिफौन, लिनन, जौर्जेट व हैंडलूम और खादी से बने वस्त्रों को पहनें जो पसीना सोखने वाले हों.

फेयरवैल पार्टी ड्रैस

कट वर्क ड्रैस

यह ड्रैस पहनने में काफी स्टाइलिश लुक देती है. यह वन पीस ड्रैस है, जिस में अंदर एक ड्रैस घुटनों तक होती है और ऊपर से जौर्जेट का कपड़ा लौंग लैंथ का होता है जो इसे स्टाइलिश बनाता है.

प्लेटेड ड्रैस

पार्टी के लिए यह अच्छी ड्रैस है. इस ड्रैस का प्लेन बेस और डिजाइनर स्लीव्स इसे स्मार्ट बनाता है. इस तरह की फ्रौक समर्स में ज्यादा अच्छी लगती है. यह एक लौंग ड्रैस है जिस में घुटने तक एक स्पैगिटी होती है और नीचे तक एक ट्रांसपेरैंट कपड़ा होता है.

बोट नैक ड्रैस

इस ड्रैस में बोट नैक होता है. यह ड्रैस स्लीव वाली भी होती है और विदाउट स्लीव्स भी. यह घुटने तक की शौर्ट ड्रैस होती है. कालेज पार्टी के लिए यह परफैक्ट ड्रैस है.

लौंग शौर्ट स्टाइल ड्रैस

यह ड्रैस पहनने में काफी ट्रैंडी लुक देती है और कालेज पार्टी के लिए बैस्ट है. इस में कई मिक्स ऐंड मैच कलर्स होते हैं.

पार्टी गाउन

लौंग गाउन हमेशा से ही पार्टी गाउन रहे हैं फिर वह पार्टी चाहे घर की हो, औफिस की हो या फिर कालेज की. ये जौर्जेट, शिफौन, नैट आदि कई फैब्रिक में आते हैं. इन पर एंब्रौयडरी, सीक्वैंस, मोती, जरी आदि का काम होता है. वैसे, अगर इसे सोबर लुक देना हो तो इस के लिए फ्लोरल प्रिंट के गाउन भी लिए जा सकते हैं.

घर बैठे इस तरह कमायें पैसे

पैसा सब कुछ नहीं होता लेकिन फिर भी आज के समय में यह सबसे जरुरी चीजों में से एक है और भविष्य में भी रहेगा. और औनलाइन रहने से हमारे पास पैसे कमाने के काफी अवसर मौजूद होते हैं.

क्या लोग सचमुच घर से औनलाइन काम करके पैसे कमा सकते हैं?

विश्वास करिये कि ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जो घर से औनलाइन काम करके काफी अच्छी कमाई करते हैं. आज, मैं आपके साथ औनलाइन पैसे कमाने के कुछ आसान तरीके शेयर करने वाला हूं. सबसे अच्छी बात यह है कि यह किसी खास उम्र के  लोगों तक ही सीमित नहीं है. हर उम्र के लोग इस तरीके से घर बैठे पैसे कमा सकते हैं.

औनलाइन विभिन्न काम और घर से आय कमाने के अवसर उपलब्ध हैं और मुझे विश्वास कि आपमें से बहुत सारे लोगों ने क्लिक औन ऐड, और अर्न हैंडसम इनकम जैसे विज्ञापन देखे होंगे. मैं यह नहीं कहता कि उनमें से सभी स्कैम होते हैं.

पैसे के लिए शार्टकट जैसी कोई चीज नहीं होती है, लेकिन हां, कुछ ऐसे आसान तरीके हैं जैसे, औनलाइन चीजें बेचना, सर्वे फार्म भरना, और ऐसी ही बहुत सी चीजें जिनसे आप वास्तव में अच्छी कमाई कर सकते हैं. हालांकि, जब भी आप इनमें से किसी भी वेबसाइट का चयन करें तो मेक श्योर कि आप औनलाइन पेमेंट के बारे में उनका पूरा रिव्यू और फीडबैक जरूर पढ़ें, नहीं तो आप स्कैम के शिकार हो सकते हैं.

बहुत सारे इंटरनेट यूजर्स  का मानना है कि औनलाइन पैसे कमाना आरामदायक हो सकता है. आज के समय में औनलाइन पैसे कमाने के बहुत सारे विभिन्न तरीके इंटरनेट पर मौजूद हैं.

फ्रीलांसिग लेखन

फ्रीलांसिग लेखन ब्लागिंग से अलग है. यदि आपके पास अच्छा लिखने की कला हैं, तो आप खाली समय मे कुछ लिखकर आप अच्छी कमाई कर सकते हैं. साथ ही, Blogging से पैसे कमाने में समय लगता है लेकिन फ्रीलांसिग से आपको काम पूरा हो जाने के बाद तुरंत पैसे अदा कर दिये जाते हैं.

आपको अपने नेटवर्क में हमेशा ऐसे लोग मिल सकते हैं जिन्हें फ्रीलांसिग लेखन की तलाश होती है या फ्रीलांसिग लेखन का काम ढूंढने के लिए आप औनलाइन साइट्स का भी प्रयोग कर सकते हैं. यहां दो तरीके हैं जिन्हें आप चुन सकते हैं: एक्सपर्ट  या रैंडम विषयों पर लिखना. 

यू ट्यूब से पैसे कमाना

यह अब तक की एक ऐसी चीज है, जिसे सभी लोग कर सकते हैं और पैसे कमा सकते हैं. आप कितनी ही बार पर यू ट्यूब वीडियो पर प्रचार या किसी कम्पनी के ऐड देखते हैं. जब तक मुझे यू ट्यूब के माध्यम से पैसे कमाने के अवसरों के बारे में नहीं पता चला था, मुझे कभी नहीं पता था कि आपके और मेरे जैसा कोई सामान्य भी यू ट्यूब पर वीडियो अपलोड करके पैसे कमा सकता है. जरुरी नहीं है कि यह टेक्नोलोजी से ही जुड़ा हो, यह फनी से लेकर सीरियस तक कुछ भी हो सकता है. हालांकि, वीडियो का सही होना जरूरी होता है और आप यू ट्यूब पर वीडियो अपलोड कर सकते हैं और ऐड सेंस का प्रयोग करके इससे पैसे कमा सकते हैं.

यू ट्यूब पर वीडियो कैसे अपलोड करे

उपरोक्त सभी विकल्पों में से मुझे यू ट्यूब वीडियो से पैसे कमाना और कही कमाने से ज्यादा आसान तरीका लगा. आपको बहुत ज्यादा खर्च करने की या एक कैमरा या ऐसे कोई भी अन्य उपकरण खरीदने की जरुरत नहीं होती है, एक अच्छा स्मार्ट फ़ोन वीडियो रिकार्डर का आपका काम कर सकता है.

यहां असीमित अवसर और विकल्प मौजूद हैं, जिन्हें आप चुन सकते हैं और आसानी से औनलाइन पैसे कमा सकते हैं. कुछ समय के लिए एक विकल्प पर बने रहने का प्रयास करें और देखें कि कौन सा आपके लिए काम करता है और कौन सा नहीं करता है. एक सबसे साधारण गलती जो ज्यादातर लोग करते हैं वो यह कि वे एक बार में कई विकल्पों पर काम करने का प्रयास करते हैं, और इस प्रक्रिया में वे कभी भी किसी एक विकल्प के प्रभाव को दर्शा नहीं पाते हैं.

70 साल में धर्म से नहीं मिली आजादी

15अगस्त को देश की स्वतंत्रता के  70 साल पूरे हो गए हैं. इन  7 दशकों में औरतों के हालात कितने बदले? वे कितनी स्वतंत्र हो पाई हैं? धार्मिक, सामाजिक जंजीरों की जकड़न में वे आज भी बंधी हैं. उन पर पैर की जूती, बदचलन, चरित्रहीन, डायन जैसे विशेषण चस्पा होने बंद नहीं हो रहे. उन की इच्छाओं का कोई मोल नहीं है. कभी कद्र नहीं की गई. आज भेदभाव के विरुद्ध औरतें खड़ी जरूर हैं और वे समाज को चुनौतियां भी दे रही हैं.  7 दशक का समय कोई अधिक नहीं होता. सदियों की बेडि़यां उतार फेंकने में  7 दशक का समय कम ही है. फिर भी इस दौरान स्त्रियां अपनी आजादी के लिए बगावती तेवरों में देखी गईं. सामाजिक रूढिवादी जंजीरों को उतार फेंकने को उद्यत दिखाई दीं और संपूर्ण स्वतंत्रता के लिए उन का संघर्ष अब भी जारी है. संपूर्ण स्त्री स्वराज के लिए औरतों के अपने घर, परिवार, समाज के विरुद्ध बगावती तेवर रोज देखने को मिल रहे हैं.

एक तरफ औरत की शिक्षा, स्वतंत्रता, समानता एवं अधिकारों के बुनियादी सवाल हैं, तो दूसरी ओर स्त्री को दूसरे दर्जे की वस्तु मानने वाले धार्मिक, सामाजिक विधिविधान, प्रथापरंपराएं, रीतिरिवाज और अंधविश्वास जोरशोर से थोपे जा रहे हैं और एक नहीं अनेक प्रवचनों में ये बातें दोहराई जा रही हैं.

स्त्री नर्क का द्वार

धर्मशास्त्रों में स्त्री को नर्क का द्वार, पाप की गठरी कहा गया है. मनु ने स्त्री जाति को पढ़ने और सुनने से वर्जित कर दिया था. उसे पिता, पति, पुत्र और परिवार पर आश्रित रखा. यह विधान हर धर्म द्वारा रचा गया. घर की चारदीवारी के भीतर परिवार की देखभाल और संतान पैदा करना ही उस का धर्म बताया गया. औरतों को क्या करना है, क्या नहीं स्मृतियों में इस का जिक्र है. सती प्रथा से ले कर मंदिरों में देवदासियों तक की अनगिनत गाथाएं हैं. यह सोच आज भी गहराई तक जड़ें जमाए है. इस के खिलाफ बोलने वालों को देशद्रोही कहा जाना धर्म है. स्त्री स्वतंत्रता आज खतरे में है.  औरत हमेशा से धर्म के कारण परतंत्र रही है. उसे सदियों से अपने बारे में फैसले खुद करने का हक नहीं था. धर्म ने औरत को बचपन में पिता, जवानी में पति और बुढ़ापे में बेटों के अधीन रहने का आदेश दिया. शिक्षा, नौकरी, प्रेम, विवाह, सैक्स करना पिता, परिवार, समाज और धर्म के पास यह अधिकार रहा है और 7 दशक बाद यह किस तरह बदला यह दिखता ही नहीं है. कानूनों और अदालती आदेशों में यह हर रोज दिखता है.

अब औरतें अपने फैसले खुद करने के लिए आगे बढ़ रही हैं. कहींकहीं वे परिवार, समाज से विद्रोह पर उतारू दिखती हैं.  आजादी के बाद औरत को कितनी स्वतंत्रता मिली, उसे मापने का कोई पैमाना नहीं है. लेकिन समाजशास्त्रियों से बातचीत के अनुसार देश में लोग अभी भी घर की औरतों को दहलीज से केवल शिक्षा या नौकरी के अलावा बाहर नहीं निकलने देते. लिबरल, पढे़लिखे परिवार हैं, जिन्हें जबरन लड़कियों के प्रेमविवाह, लिव इन रिलेशन को स्वीकार करना पड़ रहा है. लोग बेटी और बहू को नौकरी, व्यवसाय करने देने पर इसलिए सहमत हैं, क्योंकि उन का पैसा पूरा परिवार को मिलता है. फिर भी इन लोगों को समाज के ताने झेलने पड़ते हैं. देश में घूंघट प्रथा, परदा प्रथा का लगभग अंत हो रहा है पर शरीर को ढक कर रखो के उपदेश चारों ओर सुनने को मिल रहे हैं.

आज औरतें शिक्षा, राजनीति, न्याय, सुरक्षा, तकनीक, खेल, फिल्म, व्यवसाय हर क्षेत्र में सफलता का परचम लहरा रही हैं. यह बराबरी संविधान ने दी है. वे आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर हो रही हैं. उन में आत्मविश्वास आ रहा है, पर पुरुषों के मुकाबले अभी वे बहुत पीछे हैं.  इन 70 सालों में औरत को बहुत जद्दोजहद के बाद आधीअधूरी आजादी मिली है. इस की भी उसे कीमत चुकानी पड़ रही है. आजादी के लिए वह जान गंवा रही है. आए दिन बलात्कार, हत्या, आत्महत्या, घर त्यागना आम हो गया है. महिलाओं के प्रति ज्यादातर अपराधों में दकियानूसी सोच होती है.

लगभग स्वतंत्रता के समय दिल्ली के जामा मसजिद, चांदनी चौक  इलाके में अमीर मुसलिम घरों की औरतों को बाहर जाना होता था, तो 4 लोग उन के चारों तरफ परदा कर के चलते थे. अब जाकिर हुसैन कालेज, जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में युवतियां बुरके के बजाय जींसटौप में देखी जा सकती हैं. पर ठीक उसी के पास कम्युनिटी सैंटर में खुले रेस्तराओं में हिजाब और बुरके में लिपटी भी दिखेंगी.

बराबरी का हक

जीन और जींस की आजादी यानी पहननेओढ़ने की आजादी, पढ़नेलिखने की आजादी, घूमनेफिरने की आजादी, सैक्स करने की आजादी जैसे नारे आज हर कहीं सुनाई पड़ रहे हैं पर बराबरी का प्राकृतिक हक स्त्री को भारत में अब तक नहीं मिल पाया है.  दुनिया भर में लड़कियों को शिक्षित होने के हरसंभव प्रयास हुए. अफगानिस्तान में हाल  तक बड़ी संख्या में लड़कियों के स्कूलों को मोर्टरों से उड़ा दिया गया. मलाला यूसुफ जई ने कट्टरपंथियों के खिलाफ जब मोरचा खोला, तो उस पर जानलेवा हमला किया गया. कट्टर समाज आज भी स्त्री की स्वतंत्रता पर शोर मचाने लगता है.

दरअसल, औरत को राजनीति या पुरुषों ने नहीं रोका. आजादी के बाद सरकारों ने उन्हें बराबरी का हक दिलाने के लिए कई योजनाएं लागू कीं. पुरुषों ने ही नए कानून बनाए, कानूनों में संशोधन किए. स्वतंत्रता के बाद कानून में स्त्री को हक मिले हैं. उसे शिक्षा, रोजगार, संपत्ति का अधिकार, प्रेमविवाह जैसे मामलों में समानता का कागजों पर हक है. सती प्रथा उन्मूलन, विधवा विवाह, पंचायती राज के 73वें संविधान संशोधन में औरतों को एकतिहाई आरक्षण, पिता की संपत्ति में बराबरी का हक, अंतर्जातीय, अंतधार्मिक विवाह का अधिकार जैसे कई कानूनों के जरीए स्त्री को बराबरी के अधिकार दिए गए. बदलते कानूनों से महिलाओं का सशक्तीकरण हुआ है.

स्वतंत्रता पर अंकुश

औरतों पर बंदिशें धर्म ने थोपीं. समाज के ठेकेदारों की सहायता से उन की स्वतंत्रता पर तरहतरह के अंकुश लगाए. उन के लिए नियमकायदे गढे़. उन की स्वतंत्रता का विरोध किया. उन पर आचारसंहिता लागू की, फतवे जारी किए. अग्निपरीक्षाएं ली गईं.  कहीं लव जेहाद, खाप पंचायतों के फैसले, वैलेंटाइन डे का विरोध, प्रेमविवाह का विरोध, डायन बता कर हमले समाज की देन हैं. औरतें समाज को चुनौती दे रही हैं. सरकारें इन सब बातों से औरतों को बचाने की कोशिश करती हैं.  पर औरत को अपनी अभिव्यक्ति की, अपनी स्वतंत्रता की कीमत चुकानी पड़ रही है. मनमरजी के कपड़े पहनना, रात को घूमना, सैक्स की चाहत रखना, प्रेम करना ये बातें समाज को चुनौती देने वाली हैं इसलिए इन पर हमले किए जाते हैं.

आज स्त्री के लिए अपनी देह की आजादी का सवाल सब से ऊपर है. उस की देह पर पुरुष का अवैध कब्जा है. वह अपने ही शरीर का, अंगों का खुद की मरजी से इस्तेमाल नहीं कर पा रही है. उस पर अधिकार पुरुष का ही है. पुरुष  2-2, 3-3 औरतों के साथ संबंध रख सकता है पर औरत को परपुरुष से दोस्ती रखने की मनाही है. यहां पवित्रता की बात आ जाती है, चरित्र का सवाल उठ जाता है, इज्जत चली जाने, नाक कटने की नौबत उठ खड़ी होती है. आज ज्यादातर अपराधों की जड़ में स्त्री की आजादी का संघर्ष निहित है. भंवरी कांड, निर्भया मामला औरत का स्वतंत्रता की ओर बढ़ते कदम को रोकने का प्रयास था. औरतें आज घर से बाहर निकल रही हैं, तो इस तरह के अपराध उन्हें रोकने के लिए सामने आ रहे हैं. स्त्रियों की स्वतंत्रता से समाज के ठेकेदारों को अपनी सत्ता हिलती दिख रही है.

आजकल अखबारों में रोज 5-7 विज्ञापन युवा लड़कियों के गायब होने, अपहरण होने के छप रहे हैं. ये वे युवतियां होती हैं, जिन्हें परिवार, समाज से अपने निर्णय खुद करने की स्वतंत्रता हासिल नहीं हो पाती, इसलिए इन्हें प्रेम, शादी, शिक्षा, रोजगार जैसी आजादी पाने के लिए घर से बगावत करनी पड़ रही है. स्वतंत्रता का असर इतना है कि अब औरत की सिसकियां ही नहीं, दहाड़ें भी सुनाई पड़ती हैं. पिछले 30 सालों में औरतें घर से निकलना शुरू हुई हैं. आज दफ्तरों में औरतों की तादाद पुरुषों के लगभग बराबर नजर आने लगी है. शाम को औफिसों की छुट्टी के बाद सड़कों पर, बसों, टे्रेनों, मैट्रो, कारों में चारों ओर औरतें बड़ी संख्या में दिखाई दे रही हैं.

उन के लिए आज अलग स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय बन गए हैं. उन्हें पुरुषों के साथ भी पढ़नेलिखने की आजादी मिल रही है.  औरतों ने जो स्वतंत्रता पाई है वह संघर्ष से, जिद्द से, बिना किसी की परवाह किए. नौकरीपेशा औरतें औफिसों में पुरुष साथी के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. घर आ कर भी फोन पर कलीग से, बौस से लंबी बातें कर रही हैं. वे अपने पुरुष मित्र के साथ हाथ में हाथ लिए सड़कों, पार्कों, होटलों, रेस्तराओं, पबों, बारों, मौलों, सिनेमाहालों में जा रही हैं. निश्चित तौर पर वे सैक्स भी कर रही हैं   कई औरतें खुल कर समाज से बगावत पर उतर आई हैं. वे बराबरी का झंडा बुलंद कर रही हैं. समाज को खतरा इन्हीं औरतों से लगता है, इसलिए समाज के ठेकेदार कभी ड्रैस कोड के नियम थोपने की बात करते हैं, तो कभी मंदिरों में प्रवेश से इनकार करते हैं. हालांकि मंदिरों में जाने से औरतों की दशा नहीं सुधर जाएगी. इस से फायदा उलटा धर्म के धंधेबाजों को होगा.

अब औरत प्रेम निवेदन करने की पहल कर रही है, सैक्स रिक्वैस्ट करने में भी उसे कोई हिचक नहीं है. समाज ऐसी औरतों से डरता है, जो उस पर थोपे गए नियमकायदों से हट कर स्वेच्छाचारी बन रही हैं  पर औरत के पैरों में अभी भी धार्मिक, सामाजिक बेडि़यां पड़ी हैं. इन बेडि़यों को तोड़ने का औरत प्रयास करती दिख रही है. केरल में सबरीमाला, महाराष्ट्र में शनि शिगणापुर और मुंबई में हाजी अली दरगाह में महिलाएं प्रवेश की जद्दोजहद कर रही हैं.

यहां भी औरतों को समाज रोक रहा है, संविधान नहीं. संविधान तो उसे बराबरी का अधिकार देने की वकालत कर रहा है. इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने रोक को गलत बताया है. उन्हें बराबरी का हक है.  लेकिन औरत को जो बराबरी मिल रही है वह प्राकृतिक नहीं है. उसे कोई बड़ा पद दिया जाता है, तो एहसान जताया जाता है. जब  प्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपति बनाया तो खूब गीत गाए कि देखो हम ने एक महिला को इस बड़े पद पर बैठाया है. महिला को राज्यपाल, राजदूत, जज, पायलट बनाया तो हम ने बहुत एहसान जता कर दुनिया को बताया. इस में बताने की जरूरत क्यों पड़ती है? स्त्री क्या कुछ नहीं बन सकती?  लड़की जब पैदा होती है, तो कुदरती लक्षणों को अपने अंदर ले कर आती है. उसे स्वतंत्रता का प्राकृतिक हक मिला होता है. सांस लेने, हंसने, रोने, चारों तरफ देखने, दूध पीने जैसे प्राकृतिक अधिकार प्राप्त होते हैं. धीरेधीरे वह बड़ी होती जाती है, तो उस से प्राकृतिक अधिकार छीन लिए जाते हैं. उस के प्रकृतिप्रदत्त अधिकारों पर परिवार, समाज का गैरकानूनी अधिग्रहण शुरू हो जाता है. उस पर धार्मिक, सामाजिक बंदिशों की बेडि़यां डाल दी जाती हैं. उसे कृत्रिम आवरण ओढ़ा दिया जाता है.  ऊपरी आडंबर थोप दिए जाते हैं. ऐसे आचारविधान बनाए गए जिन से स्त्री पर पुरुष का एकाधिकार बना रहे और स्वेच्छा से उस की पराधीनता स्वीकार कर लें.

हिंदू धर्म ने स्त्री और दलित को समाज में एक ही श्रेणी में रखा है. दोनों के साथ सदियों से भेदभाव किया गया. दलित रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाया गया तो खूब प्रचारित किया गया कि घासफूस की झोपड़ी में रहने वाले दलित को हम ने 360 आलीशान कमरों वाले राष्ट्रपति भवन में पहुंचा दिया, लेकिन आप ने इन्हें क्यों सदियों तक दबा कर रखा? ऊपर नहीं उठने दिया उस की सफाई कोई नही दे रहा.  आज औरत को जो आजादी मिल रही है वह संविधान की वजह से मिल रही है पर धर्म की सड़ीगली मान्यताओं, पीछे की ओर ले  जाने वाली परंपराओं और प्रगति में बाधक रीतिरिवाजों को जिंदा रखने वाला समाज औरत की स्वतंत्रता को रोक रहा है. दुख इस बात का  है कि औरतें धर्म, संस्कृति की दुहाई दे कर अपनी आजादी को खुद बाधित करने में आगे हैं. अपनी दशा को वे भाग्य, नियति, पूर्व जन्म का दोष मान कर परतंत्रता की कोठरी में कैद रही हैं. आजादी के लिए उन्हें धर्म की बेडि़यों को उतार फेंकना होगा.

मां मुझे भी जीना है

घरेलू हिंसा यानी घरों में परिवार के सदस्यों के द्वारा की जाने वाली हिंसा. आमतौर पर घरेलू हिंसा को पति के द्वारा पत्नी से की जाने वाली मारपीट के संदर्भ में ही देखा जाता है. भारतीय परिवारों में हिंसा की शिकार पत्नियां तो होती ही हैं, बेटियों के प्रति भी बहुत हिंसा होती है.  भारतीय परिवारों में बेटे और बेटी में फर्क किया जाता है. बेटे को जहां वंश की बेल बढ़ाने वाला, वृद्घावस्था का सहारा माना जाता है, वहीं बेटियों को बोझ मान कर उन से अनचाहे कार्य करवाना, कार्य न करने पर मारपीट करना या पढ़ने व आगे बढ़ने के अवसर न देना, इच्छा न होने पर भी विवाह के खूंटे से बांध देना एक प्रकार से हिंसा के ही रूप हैं. आमतौर पर प्रत्येक भारतीय परिवारों में पाई जाने वाली यह ऐसी हिंसा है जिस पर कभी गौर ही नहीं किया जाता.

प्रसिद्घ कवि बिहारीजी के दोहे ‘देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर’ को सही मानों में चरितार्थ करती इस हिंसा के निशान शरीर पर प्रत्यक्ष भले ही न दिखते हों, परंतु आंतरिक मनमस्तिष्क में इतना गहरा प्रभाव छोड़ जाते हैं कि प्रभावित लड़की उन से ताउम्र जूझती रहती है.

कैसी कैसी हिंसाएं

यौन हिंसा: घर की बेटियों से सगेसंबंधी, चाचा, मामा, ताऊ, चचेरे भाइयों द्वारा छेड़छाड़ करना, उन से जबरदस्ती यौन संबंध बनाने की कोशिश करना एक ऐसी हिंसा है, जिस की शिकार आमतौर पर प्रत्येक भारतीय लड़की होती है. इस हिंसा के घाव कई बार इतने गहरे होते हैं कि लड़की पूरी जिंदगी उन से उबर नहीं पाती और कभीकभी तो उन का वैवाहिक जीवन भी खतरे में पड़ जाता है.  8 वर्षीय गरिमा से उस के चचेरे भाई ने उस समय संबंध बनाने की कोशिश की जब वह सो रही थी. संकोचवश वह कभी अपने मातापिता को नहीं बता पाई, परंतु विवाह के बाद जब भी पति उस के साथ संबंध बनाने की कोशिश करता घबराहट से उस का पूरा शरीर पसीने से तरबतर हो जाता और वह लाख कोशिश करने के बाद भी पति को सहयोग नहीं दे पाती थी.  समझदार पति ने जब गरिमा की काउंसलिंग करवाई तो पता चला कि बचपन में हुई यौन हिंसा का असर उस के मनमस्तिष्क पर इतना गहरा बैठा है कि वह सैक्स शब्द सुन कर ही घबरा जाती है. इसी कारण पति के साथ संबंध बनाते समय वह असहज हो जाती है. लंबी काउंसलिंग के बाद वह अपनेआप को संभाल पाई.

गर्भ में ही हिंसा:
टियों के साथ तो उन के जन्म से पूर्व ही हिंसा का व्यवहार शुरू हो जाता है. कुछ समय पूर्व तक मातापिता अजन्मी बेटियों को गर्भ में ही मार देते थे. अल्ट्रासाउंड तकनीक से पता लगा कर यदि गर्भ में बेटी है, तो गर्भपात करवा दिया जाता था. इस का प्रत्यक्ष प्रमाण 2011 जनगणना के आंकड़े देखने से पता चलता है, जिस के अनुसार भारत में 1000 पुरुषों के अनुपात में महिलाओं की संख्या 933 है. समाज में बटियों को गर्भ में ही मार दिए जाने की प्र्रथा को रोकने के लिए सरकार द्वारा कानून बना कर गर्भस्थ शिशु का लिंग जानने पर रोक लगा देने के बाद खुलेआम तो चैकिंग बंद हो गई पर आज भी पिछड़े और ग्रामीण इलाकों में चोरीछिपे दाइयों और कंपाउंडरों द्वारा गर्भ में बेटी होने पर गर्भ को गिरा दिया जाता है.  राजस्थान और बिहार जैसे राज्यों में तो जन्म हो जाने के बाद भी बेटियों को जमीन में गाढ़ देने या गला घोंट कर मार देने की घटनाएं प्रकाश में आए दिन आती रहती हैं. कई बार जुड़वां बच्चों में से एक के बेटी होने पर मां के द्वारा बेटी को भूखा रखा जाता है. यह भी हिंसा नहीं तो और क्या है?

मानसिक हिंसा:
ह वह हिंसा है, जिस में अभिभावकों द्वारा जानेअनजाने में बेटियों को मानसिक रूप से कष्ट पहुंचाया जाता है. रीमा का बेटा पढ़ने में औसत और बेटी बहुत मेधावी थी, परंतु जब उच्च शिक्षा के लिए बेटी को बाहर भेजने की बारी आई तो मातापिता ने असमर्थता जता दी और उसे अपने शहर के ही कालेज से स्नातकोत्तर करने को कहा. इस का मलाल उस की बेटी को आज 50 वर्ष की हो जाने पर भी है.

यद्यपि शहरी क्षेत्रों में इस दिशा में काफी सुधार हुआ है, परंतु ग्रामीण और औसत मध्यवर्गीय परिवारों में बेटियों के प्रति आज भी दोहरा व्यवहार किया जाता है. उन्हें पढ़ाई के समान अवसर नहीं दिए जाते. शिक्षा के साथसाथ उन से घर के सारे काम करने की भी अपेक्षा की जाती है. ग्रामीण परिवेश में बेटियां जहां घर का सारा काम करती हैं, कई किलोमीटर दूर से पानी ले कर आती हैं, वहीं बेटों को आवारा घूमने दिया जाता है.

शारीरिक हिंसा:
क अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार एक मां ने अपनी बेटी के सिर पर दरांता महज इसलिए फेंक मारा कि उस ने अपने भाई के लिए खाना नहीं बनाया था. आरुषि हत्याकांड बेटियों के प्रति की जाने वाली शारीरिक हिंसा का साक्षात उदाहरण है. अकसर उन से उम्र में छोटे भाई भी उन पर हाथ उठाने से नहीं हिचकते. मातापिता, दादी, चाचा और ताऊ के द्वारा भी जम कर पिटाई की जाती है. हरियाणा, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों में लड़की के द्वारा अपने मनपसंद साथी से विवाह कर लेने पर खाप पंचायतों द्वारा सरेआम लड़की को मारने के उदाहरण देखने को मिलते हैं. ग्रामीण इलाकों में आज भी मातापिता को यदि लड़की के प्रेम संबंधों के बारे में पता चलता है, तो उस के साथ हिंसक व्यवहार किया जाता है.

भावनात्मक हिंसा:
यह वह हिंसा है जिस की शिकार आमतौर पर कमाऊ बेटियां होती हैं. जिन परिवारों में मातापिता की देखभाल करने वाला कोईर् नहीं होता अथवा परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होती है, उन परिवारों में बेटी को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल किया जाता है. मातापिता और परिवार के प्रति जिम्मेदारी निभाने के कारण वह कभी अपने बारे में सोच ही नहीं पाती. ऐसे परिवारों में परिवार बेटी के प्रति भावनात्मक हिंसा करता है, जिस के कारण लड़की ताउम्र पारिवारिक जिम्मेदारियां उठाती है. ऐसे मामलों में अकसर लड़कियां मातापिता की सेवा करतेकरते स्वयं अविवाहित रह जाती हैं.

भारतीय परिवारों में अपनी बेटियों के प्रति मातापिता जानेअनजाने ऐसी हिंसा करते हैं, जिस का असर उन की बेटियों को अंदर ही अंदर कचोटता रहता है, परंतु पारिवारिक संस्कार, मातापिता का सम्मान और संकोच के कारण वे कभी आवाज नहीं उठा पातीं और यही बेटियां जब किसी परिवार की बहू, किसी की पत्नी बनती हैं, तो वहां पर भी उन का यह संकोच, संस्कार और सम्मान की भावना उन्हें अपने प्रति होने वाली हिंसा के विरुद्घ आवाज न उठाने देती है. वे पूरा जीवन हिंसा का शिकार होती रहती हैं.

फिल्म रिव्यू : स्निफ

पुरस्कृत फिल्म ‘तारे जमीन पर’ के लेखक तथा ‘स्टेनली का डिब्बा’ और ‘हवा हवाई’ जैसी उत्कृष्ट फिल्मों के सर्जक अमोल गुप्ते इस बार बाल जासूस फिल्म ‘‘स्निफ’’ लेकर आए हैं, जो कि बहुत निराश करती है.

‘‘हर बच्चे में कोई न कोई काबीलियत होती है.’’ इस मूल मुद्दे के साथ बाल जासूस वाली फिल्म ‘स्निफ’ देखकर मन में एक ही सवाल उठता है कि क्या इस फिल्म के सर्जक वही अमोल गुप्ते हैं, जिन्हें फिल्म ‘‘तारे जमीन पर’’जैसी फिल्म के लेखन के लिए कई पुरस्कार मिले थे? क्या ‘स्निफ’ के लेखक व निर्देशक वही अमोल गुप्ते हैं, जो अतीत में ‘‘स्टेनली का डिब्बा’’ और ‘‘हवा हवाई’’ जैसी फिल्म का सृजन कर चुके हैं.

फिल्म की कहानी मुंबई की एक कास्मोपोलीटीन इमारत की है, जिसमें हर प्रांत, हर भाषा के लोग रहते हैं. इसी इमारत में एक सरदार परिवार रहता है, जिनका अचार का व्यापार है. उनका बेटा सनी (खुशमीत गिल) अभी तीसरी कक्षा का छात्र है. मगर सनी की दादी (सुरेखा सीकरी) परेशान है कि सनी कुछ भी सूंघ नहीं पाता. यहां तक कि डाक्टर भी कह देते हैं कि सनी की नाक में एक ऐसी व्याधि है, जिसके चलते वह कुछ भी सूंघ नहीं सकता. पर अचानक एक दिन स्कूल की लैबोरेटरी में दो रासायनिक पदार्थों के मिश्रण से एक गैस निकलती है,जो कि सनी की नाक में चली जाती है. सनी को जोर की छींक आती है और फिर उसे अद्भुत चमत्कारिक सूंघने की शक्ति मिल जाती है. वह दो किलोमीटर दूर तक सूंघ सकता है. एक दिन इस इमारत के निवासी कुमार (राजेश पुरी) की कार चोरी हो जाती है. कार को ढूढ़ने के प्रयास में पुलिस लगी हुई है. पर  सनी अपने तरीके से प्रयास करता है. अंततः कुमार की कार वापस मिल जाती है.

बौलीवुड में फिल्म ‘‘स्निफ’’ के निर्देशक अमोल गुप्ते की गिनती श्रेष्ठ बाल फिल्मकार के रूप में होती है. मगर‘स्निफ’ में वह बुरी तरह से विफल हुए हैं. अनूठी विषयवस्तु के बावजूद पटकथा की तमाम गड़बड़ियों के चलते फिल्म स्तर हीन हो जाती है. अफसोस की बात यह है कि बालक सनी न सुपर हीरो और न ही एक जासूस/डिटेक्टिव के रूप में उभर पाता है. इतना ही नहीं फिल्म के एक भी किरदार का सही ढंग से चित्रण ही नहीं हुआ. सभी किरदार बंगाली या महाराष्ट्यिन या सिंधी या गुजराती समुदाय के लोगों के कैरीकेचर मात्र हैं. फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो दर्शक के दिमाग में याद रह जाए. ‘स्निफ’ ऐसी फिल्म है, जिसे न देखने का अफसोस नहीं हो सकता.

इंटरवल से पहले कई खामियों के बावजूद फिल्म थोड़ी सी उत्सुकता जगाती है. दर्शक सोचता है कि इंटरवल के बाद सनी अपनी चमत्कारी सूंघने की शक्ति से कार चोर को पकड़ेगा, पर ऐसा कुछ नही होता. कार चोरी व कार वापस मिलने तक का पूरा प्लाट अति बचकाना और बोर करने वाला है. कहने का अर्थ यह कि इंटरवल के बाद फिल्म लेखक व निर्देशक के हाथ से बाहर चली जाती है. फिल्म देखते हुए लगता है कि शायद लेखक व निर्देशक ने बिना पटकथा के फिल्म फिल्मा डाली. फिल्म में मिस्टर मुखर्जी कई वर्षों से घर से बाहर क्यों नही निकले? उनकी पुलिस अफसर ने भी उनसे काम करने के लिए क्यों नहीं कहती? इसका जवाब फिल्म खत्म होने पर भी दर्शक को नहीं मिलता.

‘‘तारे जमीन पर’’ के प्रदर्शन के बाद से शिक्षा जगत में काफी बदलाव आया. मगर ‘तारे जमीन पर’ जैसी फिल्म के ही लेखक की फिल्म ‘स्निफ’ के कुछ सीन देखकर सवाल उठता है कि वह बच्चों को किस तरह का पाठ पढ़ाना चाहते हैं? फिल्म में एक सीन है, जिसमें परिवार के सभी सदस्य अचार को पहले सूंघकर और फिर अचार कीशीषी के अंदर से उंगली से अचार निकालकर चखते हैं कि अचार अच्छा बना है या नहीं. इस सीन से एक बालक कौन सी तमीज सीखेगा? कौन सी अच्छी सीख लेगा? क्या अचार को चखने के लिए चम्मच का उपयोग करना वर्जित है? इसी तरह फिल्म में एक बंगाली परिवार के अंदर का सीन है. हमेशा घर में रहने वाले औरशुगर के मरीज मिस्टर मुखर्जी के चोरी से मिठाई खाने पर उनकी पत्नी व पुलिस अफसर मिसेस मुखर्जी (सुष्मिता मुखर्जी) अपने पति के गाल पर बिना गिने धड़ाधड़ थप्पड़ लगाती हैं. आखिर इस सीन से फिल्मकार बच्चों को क्या सीख देना चाहते हैं? दूसरी बात इस सीन का फिल्म के मूल कथानक से कोई संबंध नजर नहीं आता.

फिल्म का गीत संगीत भी साधारण है. फिल्म में गणपति आरती जबरन ठूंसी हुई लगती है. जहां तक अभिनय का सवाल है, तो बाल कलाकार खुशमीत गिल ने कुछ दृश्यों में काफी अच्छा अभिनय किया है. इसके अलावा इस फिल्म में किसी भी कलाकार ने ऐसा अभिनय नहीं किया है, जो कि याद रहे.

डेढ़ घंटे की अवधि वाली फिल्म ‘‘स्निफ’’ का निर्माण ‘त्रिनिटी पिक्चर्स’ के साथ मिलकर अमोल गुप्ते ने किया है. फिल्म के लेखक व निर्देशक अमोल गुप्ते, कलाकार हैं- खुशमीत गिल, सुरेखा सीकरी, सुष्मिता मुखर्जी, राजेशपुरी, अमोल गुप्ते व अन्य.

फिल्म रिव्यू : बाबूमोशाय बंदूकबाज

अपराध कथा वाले टीवी सीरियल और फिल्म ‘‘गैंग्स आफ वासेपुर’’ दोनों के मिश्रण का अति घटिया संस्करण है कुशान नंदी की फिल्म ‘‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’’. यथार्थ सिनेमा और एक कांट्रैक्ट किलर की कहानी के नाम पर यह फिल्म महज प्यार, धोखा, राजनीति के कलुषित चेहरे और बदले की एक ऐसी कहानी है जो किसी को भी रास नहीं आ सकती.

फिल्म ‘‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’’ की कहानी उत्तर भारत के एक छोटे कस्बे की है. पैसे के एवज में किसी का कत्ल करना बाबू का पेशा है. बाबू (नवाजुद्दीन सिद्दिकी) एक राजनेता सुमित्रा (दिव्या दत्ता) के लिए काम करता है. सुमित्रा की जबान पर सदैव गंदी गंदी गालियां रहती हैं. तो दूसरी तरफ उसे फुलवा (बिदिता बाग) से प्यार भी हो गया है. सुमित्रा से पैसे लेकर बाबू एक इंसान की हत्या कर देता है. पर फुलवा के कहने पर बाबू बिना पैसे लिए अन्य दो की हत्या कर देता है. इसके एवज में फुलवा हमेशा के लिए बाबू की हो जाती है, मगर सुमित्रा अपने खास आदमी त्रिलोकी (मुरली शर्मा) के बहकावे में आकर बाबू से संबंध खत्म कर एक दूसरे राजनेता दुबे (अनिल जार्ज) से हाथ मिला लेती है. जबकि दुबे ने बाबू से हाथ मिलाया है.

दुबे, सुमित्रा के तीन खास आदमियों, (जिसमें त्रिलोकी भी शामिल है) को मारने का कांट्रैक्ट बाबू को देता है. बाबू, सुमित्रा को दीदी कहता है,इसलिए वह सुमित्रा को बताने जाता है कि उसे त्रिलोकी की हत्या का कांट्रैक्ट मिला है. यह बात दुबे को पता चल जाती है और दुबे उसी वक्त यास्मीन (श्रृद्धा दास) से बात कर उन तीन के साथ ही बाबू की हत्या का कांट्रैक्ट दे देता है. यास्मीन यह काम अपने प्रेमी बांके बिहारी (जतिन गोस्वामी) से कराती है, जो कि बाबू को अपना गुरू कहता है. अब बाबू और जतिन आमने सामने आ जाते हैं. दोनों के बीच शर्त लगती है कि दोनों में से जो पहले इन तीन को मारेगा, वह इस पेशे में रहेगा, दूसरा इस पेशे से चला जाएगा. हारने पर बांके बिहारी, बाबू को गोली मारकर कहता है कि उसे तो चार की हत्या का कांट्रैक्ट मिला था.

आठ साल बाद जब बाबू पुनः वापस आता है, तो बदले की कहानी शुरू होती है. एक मुकाम पर यह बात उजागर होती है कि बांके बिहारी ने फुलवा से शादी कर ली है और यास्मीन को प्यार में धोखा दे रहा है. जबकि बाबू और फुलवा का एक बेटा भी है. बहरहाल, बदला लेते हुए बाबू,सुमित्रा, दुबे, पुलिस अफसर, बांके बिहारी, फुलवा सभी की हत्या कर देता है. अपने बेटे को लेकर दूसरी जगह रहने चला जाता है, पर एक दिन उसका बेटा ही बाबू को गोली मार देता है.

फिल्म की कहानी व पटकथा जिस तरह से आगे बढ़ती है, वैसे वैसे लगता है कि यह फिल्म नहीं बल्कि सीरियल है, जिसमें लगभ सभी किरदार कई बार मर कर जी उठते हैं. अस्सी के दशक में जिस तरह से खून खराबा, बदले की कहानी व सेक्स से भरपूर ‘सी ग्रेड’ फिल्में बनती थी, उसी की दिलाती है कुशान नंदी की फिल्म ‘‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’’. फिल्म ज्यों ज्यों आगे बढ़ती है, त्यों त्यों दर्शक फिल्म से खुद को अलग करता जाता है. यह फिल्म अति घटिया कहानी के साथ ही अति घटिया पटकथा की परिचायक है. फिल्मकार ने दर्शक जुटाने के लिए कहानी व पटकथा पर काम करने की बनिस्पत बेवजह का सेक्स परोसने पर कुछ ज्यादा ही ध्यान दिया है. फिल्म में मनोरंजन व भावनाओं का घोर अभाव है. फिल्म किसी भी स्तर पर किसी की भी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती है. निर्देशक के रूप में कुशान नंदी अपनी कोई छाप नहीं छोड़ पाते.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो पूरी फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दिकी अपने स्वाभाविक अभिनय के साथ छाए रहते हैं. नवाजुद्दीन सिद्दिकी के सामने जतिन गोस्वामी कहीं नहीं टिकते. दिव्या दत्ता एक अच्छी अदाकारा हैं, यह बात उन्होने पुनः साबित किया है बिदिता बाग के अभिनय की भी तारीफ करनी पड़ेगी. मगर इन कलाकारों को अपने किरदारों को निभाते समय पटकथा से कोई मदद नहीं मिली.

दो घंटे व तीन मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ का निर्माण किरण श्राफ, कुशान नंदी, अश्मित कुंडेर हैं. फिल्म के निर्देशक कुषान नंदी, लेखक गालिब असद भोपाली तथा कलाकार हैं- नवाजुद्दीन सिद्दिकी, बिदिता बाग, दिव्या दत्ता, जतिन गोस्वामी, श्रद्धा दास, मुरली शर्मा, अनिल जार्ज, भगवान तिवारी व अन्य.

एक बार फिर आपको करोड़पति बनाने आ रहे हैं अमिताभ बच्चन

कौन बनेगा करोड़पति के नए संस्करण की शुरुआत जल्द ही सोनी टीवी पर होने जा रही है. इस बार शो में कई परिवर्तन किए गए हैं. टीवी पर इन दिनों केबीसी प्रोमोशन में अमिताभ लोगों को हाट सीट का लुभावना आफर देते और आपकी किस्मत आजमाने का एक मौका आपको लेने के लिए कहते नजर आ रहे हैं.

अमिताभ ने कहा, उनके लिए यह शो सिर्फ एक कमर्शियल एसोसिएशन नहीं, एक भावनात्मक रिश्ता है. जो कई सालों से सोनी टीवी से जुड़ा हुआ है. उनके लिए शो के सारे कंटेस्टेंट घर के मेहमान की तरह हैं. उनका वो वैसा ही स्वागत करते हैं, जैसा परिवार के किसी सदस्य का.

वह कहते हैं कि इस शो ने सिर्फ लाखों लोगों की नहीं बल्कि मेरी भी जिंदगी बदली है. केबीसी मेरी जिंदगी के लिए लाइफ चेंजिंग शो रहा है. इस शो ने हमेशा आम लोगों के सपनों को सच करने की कोशिश की है. शो के पहले सीजन को याद करते हुए उन्होने बताया कि जब उन्हें यह शो पहली बार आफर हुआ था तब वो इंग्लैंड में थे. उसी दौरान वह इस शो के ओरिजिनल शो who wants to be millionaire के सेट पर गये थे. वहां से आने के बाद उन्होंने शो मेकर्स सिद्धार्थ बसु को कहा कि अगर आप ठीक वैसा ही शो करें, तो मैं इस शो से जुड़ने के लिए तैयार हूं.

केबीसी में इस बार क्या है खास

केबीसी में इस बार फिल्मों के प्रमोशन नहीं होंगे बल्कि रियल लाइफ चेंज मेकर को सेलिब्रिटी के रूप में हर शुक्रवार को एक स्पेशल एपिसोड में लाया जायेगा.

इस बार केबीसी 9 में आपको नई लाइफलाइन दी जाएगी, जिसमें फोन ए फ़्रेंड की जगह आप वीडियो काल ए फ़्रेंड कर सकेंगे. इस लाइफलाइन में पहले आप फोन पर अपने दोस्त को सुनते थे अब आप स्क्रीन पर अपने दोस्त वीडियो काल कर सकेंगे इससे एक नए तरीके का हास्य पैदा होगा क्योंकि पहले लोग फोन पर अमिताभ बच्चन को सुनकर घबरा जाते थे अब वो अमिताभ को देख पाएंगे.

इस बार सबसे ज्यादा ईनाम 7 करोड़ है जिसे ‘जियो जैकपाट’ के नाम से जाना जाएगा. इसकी शर्ते क्या होंगी और खिलाड़ी इसे कैसे जीत पाएंगे ये आपको शो के दौरान ही पता चलेगा.

मेनोपाज में होने वाले रोगों से ऐसे बचें

महिलाओं के साथ कुछ चीजें प्राकृतिक रूप से होती हैं और वह है मासिक धर्म. लेकिन उम्र के एक पड़ाव के बाद ऐसा वक्त आता है जब यह प्रक्रिया बंद हो जाती है. इस समय को मेनोपाज कहा जाता है. सामान्‍यत: मेनोपाज का वक्त 40 साल के बाद आता है. यह महिलाओं के लिए उम्र का ऐसा पड़ाव होता है जिसका अनुभव सिर्फ वह ही कर सकती है. इस लेख में इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.

मेनोपाज के बाद होने वाली समस्या

मेनोपाज के बाद वजन बढ़ने लगता है और लाख कोशिशों के बाद भी वजन पर नियंत्रण करना मुश्किल हो जाता है.

श्वेत प्रदर के स्राव की स्थिति बहुत ही बदतर होती है, यह असहनीय हो जाता है. इससे अनिद्रा की समस्या भी हो जाती है.

पेट में गैस बनने लगती है, इसके कारण पेट भी फूलने लगता है.

आपके शरीर में खुजली होती है और इसके कारण आप बहुत परेशान हो जाती हैं.

आप अक्सर शरीर में कमजोरी और थकान महसूस करती हैं.

आपकी याद्दाश्त भी कमजोर होने लगती है और ऐसा लगता है कि आप कुछ न कुछ हमेशा भूल ही जाती हैं.

रात में सोते वक्‍त बहुत अधिक पसीना होता है जिसके कारण आपका बेड भी गीला हो जाता है. सोने के बाद भी नींद अधूरी रहती है और पूरे दिन शरीर में आलस बना रहता है.

बाल कमजोर और पतले होने लगते हैं.

मेनोपाज में होने वाली समस्‍याओं से बचने के लिए जांच जरूरी

मेनोपाज गंभीर बिमारियों जैसे हार्ट अटैक, ऑस्टियोपोरोसिस, ब्रेस्ट कैंसर, सर्वाइकल कैंसर आदि से बचाव के लिए एक रिमाइंडर होता है. कुछ आवश्यक टेस्ट मेनोपाज के बाद होने वाली समस्याओं के बारे में आपको पहले से ही सावधान कर सकते हैं. कुछ टेस्ट मेनोपाज के बाद आपके स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद रहेंगे.

मेनोपाज के बाद हार्ट से संबंधित परेशानियों का खतरा तीन गुना बढ़ जाता है. महिलाओं में हृदयघात की सम्भावना अब पहले 70 प्रतिशत तक बढ़ती नजर आ रहीं है. इसलिए समय समय पर दिल के सेहत की जांच कराते रहना चाहिए.

मासिक धर्म बंद होने की आयु 45 से 51 वर्ष है. इससे दस वर्ष पहले ही महिलाओं को सतर्क हो जाना चाहिए. ऐसे में इस्ट्रोजेन हार्मोन की कमी से आस्टियोपोरोसिस की समस्या भी बढ़ जाती है और हड्डियां कमजोर होकर टूटने लगती हैं. कैल्शियम का नियमित सेवन करके व नियमित रूप से व्‍यायाम करके इससे बचा जा सकता है.

मेनोपाज के बाद, जब ओवरी हार्मोंस बनाना बंद कर देता है, तब मोटापा बढ़ाने वाले एस्ट्रोजन के मुख्य कारक बन जाते हैं. एस्ट्रोजन की मात्रा बढ़ने से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. मोटापे के कारण औरतों में फैट टिश्‍यूज की संख्‍या फी बढ़ जाती है, जो ब्रेस्ट ट्यूमर को बढ़ाने का काम करती हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें