फिल्में हमारे जीवन का अटूट हिस्सा हैं या कहें कि फिल्में समाज का आईना हैं तो अतिशयोक्ति न होगी. लोग फिल्मों से प्रभावित होते थे, होते हैं और होते रहेंगे. भला इस में किसे संदेह हो सकता है? बात बच्चों की करें तो यह तथ्य आसानी से समझ में आ जाता है कि चाहे उन्हें पाठ्यपुस्तकों में लिखी बातें समझ में आएं या न आएं लेकिन फिल्मों के गीत, संवाद ऐसे कंठस्थ हो जाते हैं जैसे तोता रटंत विद्या में पारंगत हो जाता है.
इसलिए हम आज के फिल्म उद्योग ‘बौलीवुड’ के हृदय से आभारी हैं. कारण, जनमत को जगाने और ‘शिक्षाप्रद’ फिल्मी गीतों की रचना में जो जिम्मेदारी उस ने उठा रखी है वह वाकई काबिलेतारीफ है. आजकल जनहित में ऐसेऐसे शिक्षाप्रद फिल्मी गीतों का निर्माण हो रहा है कि उन्हें सुनसुन कर दर्शकों का मन प्रफुल्लित हो जाता है. दिल में एक नया जोश, उमंग और अरमान उठने लगते हैं. ऐसी अद्भुत काव्य रचनाएं बच्चे, युवा और बुजुर्ग पीढ़ी की जबान पर इस कदर रचबस गई हैं कि ये फिल्मी गीत प्रेरणास्रोत का कार्य कर रहे हैं.
इन फिल्मी गीतों के ‘गूढ़ संदेश’ को आसानी से समझा जा सकता है. बशर्ते, हम अपने दिमाग का इस्तेमाल इन्हें समझने में कतई न करें. ‘तर्क’ या ‘बुद्धि’ से इन गीतों को समझना नामुमकिन है, इन्हें समझने के लिए एकदम ‘बुद्धिहीन’ होना पड़ेगा. आज के फिल्मी गीतों पर गौर फरमा लीजिए, आप भी हमारी बात आसानी से समझ जाएंगे.
‘मुन्नी बदनाम हुई…’ इस लोकप्रिय गीत ने आजकल देशविदेश में खूब धूम मचाई है. इस गीत के मूल संदेश को सब आसानी से समझ गए हैं, ‘बदनामी’ में ही लोकप्रियता का राज छिपा है. पहले भी एक नामचीन शायर महोदय ने फरमाया था, ‘बदनाम होंगे तो क्या…नाम भी तो होगा…’ वही बात हुई न? पल भर में सुपरडुपर लोकप्रियता पाने का इस से अच्छा दूसरा उपाय क्या हो सकता है?
मुन्नीजी ने अपनी बदनामी का गली- गली ढिंढोरा पिटवा कर रातोंरात लोक- प्रियता का चरम छू लिया. इस से तो हमें भी जलन होती है. इतना लिखलिख कर अभी तक हम अपने लिए एक अदद पुरस्कार या सम्मान नहीं जुटा सके. अजी, कौन भाव देता है हमें. हम तो बस कलम घिसे जा रहे हैं. एक बार एक साहित्य सेवी संस्था ने हमें सम्मानित करने का ‘सशुल्क औफर’ भी दिया था लेकिन हमारी मजबूरी थी कि हमारे पास उतनी रकम नहीं थी, सो लोकप्रियता पाने से चूक गए.
यह गीत ‘शौर्टकट’ में प्रसिद्धि पा लेने का नायाब गुरुमंत्र है. मुन्नीजी आज सब की आदर्श और प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं. आज हालत यह है कि उन की प्रेरणा पा कर उच्च, मध्यम और निम्न परिवारों की कन्याएं यथाशीघ्र बदनाम होने में जुट गई हैं ताकि वे भी लोकप्रियता की बुलंदी पा लें और जम कर पैसा बटोर सकें. हमारे लाखों युवा मुन्नीजी के बताए बदनामी के रास्ते पर चल कर फटाफट लोकप्रियता की बुलंदियों पर पहुंचने को बेताब हैं.
लेकिन एक बात समझ से बाहर है कि बदनाम हो कर ‘लोकप्रियता’ पाने का ‘झंडूबाम’ से भला क्या संबंध है? हो सकता है कि कवि ने इस ‘रूपक’ को इस गीत की रचना में किसी खास प्रयोजन के लिए इस्तेमाल किया हो. यह हमारी कमअक्ली ही है जो प्रसिद्धि पाने और ‘झंडूबाम’ होने के बीच के अनिवार्य और शाश्वत संबंध को नहीं समझ पा रहे हैं. यह निश्चय ही कोई खास संदेश देती कालजयी काव्य रचना है.
‘मुन्नी की बदनामी’ का एक हमसाथी गीत ‘शीला की जवानी…’ और भी ज्यादा शिक्षाप्रद फिल्मी गाना है. ‘शीला’ अपनी जवानी और सैक्सी फिगर का सार्वजनिक प्रदर्शन करकर के युवा, बुजुर्ग और बच्चों में एक नया जोश भर रही है. कितना सुखद अनुभव होता है जब नर्सरी के बच्चे ‘शीला-सैक्सी-शीला की जवानी’ जैसी विशुद्ध साहित्यिक शब्दावली का धड़ल्ले से उच्चारण करते हुए बुलंद आवाज में इस गीत को गाते नजर आते हैं.
दिल को बड़ा संतोष होता है कि फिल्मों के जरिए ही सही बच्चों का सामान्य ज्ञान और ‘आई क्यू’ तेजी से ‘इंपू्रव’ हो रहे हैं. ये दृश्य मन को प्रफुल्लित करते हैं. हमारे देश में वैसे तो चाहे ‘सैक्स शिक्षा’ के नाम पर कितना ही विवाद या बहस क्यों न हो लेकिन इन शिक्षाप्रद फिल्मी गानों से ‘सैक्स’ जैसे नाजुक और संवेदनशील विषय की जानकारी कितनी आसानी से दी जा सकती है, यह इस गीत का गूढ़ प्रयोजन प्रतीत होता है.
एक और गीत बड़ा महत्त्वपूर्ण है. ‘जोर का झटका हाय जोरों से लगा… शादी बन गई उम्रकैद की सजा…’ लगता है इस गाने की रचना जनसंख्या और परिवार कल्याण मंत्रालय के सौजन्य से हुई है. यह गीत देश की विस्फोटक होती जनसंख्या की समस्या और शादीब्याह से उत्पन्न होने वाले लफड़ोें पर हमारा ध्यान आकृष्ट कराता है. जनसंख्या के बारे में सरकारी हिदायतों व संदेशों पर चाहे जनता ध्यान न देती हो लेकिन इस गीत ने बड़े सुंदर ढंग से गृहस्थी में होने वाले रोजरोज के लफड़ों को बखूबी समझाने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है.
गीत पर गौर फरमाएं. इस में बाकायदा विश्लेषण किया गया है कि हमें उस ‘तथाकथित’ पहले बुद्धिहीन ‘जोड़े’ को ढूंढ़ना चाहिए जिस ने अपने रोमांस के मजे के चक्कर में अक्षम्य गलती कर के इस सृष्टि को आदमजात से भर दिया. वहीं से गृहस्थ जीवन में अंतहीन आफतों, लफड़ों का पुलिंदा शुरू हुआ. ‘हम दो हमारे दो’ की भी क्या जरूरत है? शादी के लफड़े में फंसना ही मूर्खता है. अगर इस ‘मूल मंत्र’ को युवा समझ लें तो जनसंख्या वृद्धि, बेरोजगारी, दहेज प्रथा, तलाक और हत्या जैसी सामाजिक समस्याओं का समाधान क्षणमात्र में संभव है.
हम उस महान कवि के आगे भी नतमस्तक हैं जिन्होंने एक अमूल्य रहस्यवादी गीत ‘चोली के पीछे क्या है’ रच कर जनता पर बड़ा उपकार किया था. इस गीत ने पहली बार उस रहस्य की ओर सब का ध्यान खींचा था कि आखिर ‘चोली के पीछे’ क्या रहस्य छिपा है?
हमें लगता है इस से पहले तक दुनिया पागल थी, जो इस ‘रहस्य’ को सार्वजनिक करने की तरफ ध्यान ही नहीं दे रही थी. इस रहस्य को उजागर करने का एकमात्र श्रेय उस गीत के रचनाकार को ही दिया जाना चाहिए. हम यह नहीं मान सकते कि पहले किसी व्यक्ति को चोली के पीछे के रहस्य का ज्ञान नहीं था, हमें शिकायत इस कारण है कि अनुभवी बुजुर्ग पीढ़ी इस दिव्य ज्ञान को अब तक छिपाए क्यों बैठी थी? यह युवा पीढ़ी के साथ सरासर अन्याय और उन के ‘राइट टू नो’ का खुला उल्लंघन था. इस पहेली को इस संगीत ने चुटकियों में सुलझा दिया. इस गीत ने ही बच्चेबच्चे का ध्यान चोली के पीछे छिपे गूढ़ रहस्य की तरफ आकर्षित किया और बच्चों के सामान्य ज्ञान में अभूतपूर्व वृद्धि कर दी.
एक और गीत देखिए, ‘तेरे इश्क से मीठा कुछ भी नहीं…’ भला इस गीत से क्या शिक्षा मिलती है? साफसुथरा निष्कर्ष है कि दुनिया में सब से मीठा ‘इश्क’ है. इस तथ्य को समझ लें तो देश में चीनी के बढ़ते दामों की समस्या को यह गाना चुटकियों में हल कर सकता है.
देश में चीनी का कम उत्पादन हो और दाम 50 रुपए से बढ़ कर 100 रुपए प्रतिकिलो तक भी जा पहुंचे तो क्या फर्क पड़ता है. ‘इश्क’ चीनी से कहीं ज्यादा स्वीट है तो फिर खूब ‘इश्क’ फरमाएं और शुगर की समस्या से हाथोंहाथ नजात पाएं. न ‘डायबिटीज’ का अंदेशा और न ‘शुगर की समस्या’. हो गई न लाइफ स्वीट और शुगर फ्री.
‘लेले ले, लेले मजा ले…रात का जम के मजा ले…’ कितना प्यारा और मासूम सा शिक्षाप्रद गीत है. यह गीत भटकों का पथप्रदर्शक तो है ही, साथ ही अनजान लोगों को ‘रात’ के मजे लूटने की मासूम प्रेरणा देता है. यह गीत घायल पड़े ‘आम आदमी’ को मरहम लगाने का बेहतरीन कार्य भी करता है.
‘आम आदमी’ का जीवन समस्याओं के जाल में इस कदर जकड़ा हुआ है कि उसे हमेशा दो जून की रोटी की चिंता ही सताती रहती है. बेचारे के पास रोमांस के लिए न तो समय है और न ही मूड. बेचारा ‘रात के मजे’ की कल्पना करे तो कैसे? महंगाई से टूटी कमर और बेरोजगारी, भुखमरी ने पहले ही उस की ‘रोमांस की कैपेसिटी’ को छूमंतर कर दिया है लेकिन यह गीत पलपल मानसिक सपोर्ट देने के साथ आम आदमी को ‘मोर ऐक्टिव’ और आशावादी बनने की पे्ररणा देता प्रतीत होता है.
‘तेरे मीठेमीठे होंठों की शबनम पी लूं… तेरे संग एक खुमारी है…’ यह गीत देश से पेयजल और नशे की लत छुड़ाने वाला उद्धारक प्रतीत होता है. होंठों की शबनम से प्यास बुझती है, यह कितनी अहम जानकारी हुई. भारत से पेयजल की समस्या तो हो गई न छूमंतर. क्या समाधान है, अधरों का रसपान करें और प्यास बुझा लें. तृप्ति का मुफ्त समाधान. न कोल्ड ड्रिंक की जरूरत और न बीयरशीयर की. खुमारी का एहसास भी होंठों से ही मिल रहा है.
यह तो बहुउपयोगी जानकारी हुई. इस ज्ञान से तो देश से मद्यपान की बुराई को आसानी से मुक्त किया जा सकता है. महात्मा गांधी बेचारे पूरे जीवन शराब की लत छुड़वाने के लिए संघर्ष करते रहे किंतु निष्ठुर जनता ने उन की एक न सुनी. हमें इस गीत से एक नई उम्मीद की किरण दिखाई पड़ती है. हो सकता है इस गीत को शराब कंपनियों और बोतल बंद पानी विक्रेता पसंद न करें किंतु यह गीत है बड़ा लोक कल्याणकारी.
एक गीत और देखें, ‘बीड़ी जलइ ले…जिगर मा बड़ी आग है…’ यह गीत ईंधन की समस्या का शर्तिया इलाज नजर आता है. ‘पावर क्राइसिस’ का क्रांतिकारी समाधान है. बीड़ी जिगर से जल सकती है तो फिर गैसचूल्हा भी आसानी से जल सकता है. लोग पता नहीं क्यों इन शिक्षाप्रद बातों को ग्रहण नहीं करते. देश की जनता फालतू ईंधन की किल्लत के लिए त्राहिमामत्राहिमाम का तांडव रचती है.
‘एक, दो, तीन, चार, पांच… दस, ग्यारह, बारह, तेरह…’ 90 के दशक में इस गीत ने प्राथमिक शिक्षा का कितना प्रचारप्रसार किया था. अध्यापक बेचारे बच्चों को 1 साल में भी 1 से 10 तक की गिनती नहीं सिखा पाते. वह काम इस गीत ने चुटकियों में कर दिखाया. मानेंगे न आप फिल्मों के असर के महत्त्व की बात को.
शिक्षाप्रद फिल्मी गानों की लंबी सूची है. कहां तक वर्णन करें? अच्छी बात यही है कि हम इन फिल्मी गीतों के सकारात्मक पहलू को परखें, उन के संदेशों को दिल से अपनाएं, ये गीत लोककल्याणकारी हैं. इन में न जाने कितनी ही समस्याओं के स्थायी और मुफ्त समाधान उपलब्ध हैं.