जानें कैसा लाइफ पार्टनर चाहती हैं एक्ट्रेस Ananya Panday, पढ़ें इंटरव्यू

फ़िल्मी परिवेश में जन्मी और पली – बड़ी हुई 24 साल की यंग एक्ट्रेस अनन्या पांडे ने अपनी कोमलता और खूबसूरती से इंडस्ट्री में एक जगह बना ली है. उनमे हर नई किरदार को करने में एक जुनून है, जो उन्हें बाक़ी नई एक्ट्रेस से अलग बनाती है. सोशल मीडिया पर छाने वाली अनन्या के फोलोअर्स काफी है. चंकी पांडे और भावना पांडे की इस बेटी ने फिल्म स्टूडेंट ऑफ़ द इयर 2 से इंडस्ट्री में कदम रखी और एक के बाद एक अलग-अलग फिल्मों में नजर आ रही है. फिल्मों के अलावा अनन्या ने कई विज्ञापनों में भी काम किया है. इसकी वजह उनका सौम्य स्वभाव है.

अभिनय के साथ-साथ वह युनिवर्सिटी ऑफ़ साउथ कैलिफोर्निया, लोस एन्जिलोस में फैशन डिजाईनिंग की कोर्स भी कर चुकी है. अनन्या का फैशन स्किल काफी अच्छा है और वह अपने हिसाब से पोशाक का चयन करती है. इसके अलावा अनन्या को घूमना और जिम जाना बहुत पसंद है, इसलिए वह कई बार पैपराज़ी फोटोग्राफर का शिकार हो जाती है.हिंदी सिनेमा जगत में अनन्या अपने बोल्ड लुक और हॉट पर्सनालिटी के लिए जानी जाती है. बॉलीवुड में इस एक्ट्रेस की एक्टिंग को काफी सराहनीय माना जाता है, जिसे अनन्या ने हर फिल्म में काफी मेहनत कर संभव बनाई. उनकी फिल्म ‘गहराइयाँ’ रिलीज पर है,उन्होंने कुछ बातें अपनी जर्नी की शेयर की, आइये उन बातों को जानते है.

जरुरी है रिलेशन को बनाए रखना

रिलेशनशिप के बारें में अनन्या बताती है कि प्यार मेरे लिए दोस्ती है, जिसे मैंने अपने पेरेंट्स से सीखा है. 24 साल की शादीशुदा जिंदगी बिता लेने के बाद भी वे अच्छे फ्रेंड्स है. उनमें आपस में झगड़े भी होते है, पर वे दोनों साथ में खुश रहते है. मेरे लिए वही व्यक्ति मेरा जीवनसाथी बन सकता है, जिसके साथ मैं कोम्युनिकेट अच्छी तरह से कर सकूँ और वह मुझे हमेशा हंसाए. उसे मेरे पिता की तरह होने की आवश्यकता है. रियल लाइफ में मेरा पेरेंट्स के साथ सबसे गहरा रिश्ता है.

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पसंद है चुनौतीपूर्ण फिल्में

गहराइयाँ फिल्म में अनन्या ने काफी चुनौती पूर्ण भूमिका निभाई है,जो उनकी उम्र से बड़ी भूमिका है. उनका कहना है कि मैं इसे बोल्ड चरित्र नहीं, बल्कि मैच्योर, इमोशनल चरित्र कहना पसंद करुँगी, जिसे करने सेपहले मैं घबराई हुई थी, लेकिन मुझे इसे करना भी था, क्योंकि ये मेरी विशलिस्ट के डायरेक्टर शकुन बत्रा की है. उन्होंने किसी फिल्म को फ़िल्मी से अधिक रियल दर्शाने की कोशिश की है. इसलिए निर्देशक शकुन बत्रा के साथ बैठकर मेरे किरदार को समझना पड़ा. केवल मैं ही नहीं बल्कि मेरे को स्टार सिद्दांत चतुर्वेदी को भी अपनी भूमिका के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी. इस फिल्म से मैंने बहुत सारी बातें सीखी है, जिसमें अगर कोई दुखी है, तो भले ही वह जोर से रोये नहीं, उसके आंसू न बहे , लेकिन उसके अंदर उसका इमोशन तो है और उसे पर्दे पर सजीव करना आसान नहीं होता. वैसे ही अगर आप दुखी होने पर हँसते है, तो उसमे ख़ुशी नहीं, बल्कि उस दबी हुई दुःख का एहसास होता हो,ऐसे कई मुश्किल अभिनय मैंने दीपिका से सीखे है. ये भाग मेरे लिए बहुत कठिन था. इसके अलावा किसी भी रिश्ते की गहराई में जाने पर अगर आपको धोखा मिलता है, तो उसे बिना छुपाये बाहर निकाल देना और शेयर करना जरुरी होता है, क्योंकि अपने अंदर किसी स्ट्रेस को रखकर मैं कुछ अलग नहीं सोच सकती और ये सभी के लिए लागू होती है.भले ही कोई कुछ कहे पर मुझे अपने रिश्ते को सच्चाई से जीना पसंद है.

एन्जॉयड द शूट

अनन्या को इस चरित्र को निभाने के बाद में कुछ समस्या भी आई.अनन्या कहती है कि निर्देशक के अनुसार मैं टिया खन्ना की तरह हूँ, इसलिए मुझे अधिक मेहनत करने की जरुरत नहीं है, लेकिन रियल लाइफ में मैं वैसी लड़की नहीं. दर्शक मुझे अनन्या नाम से नहीं, बल्कि टिया के रूप में याद रखेंगे और मेरे लिए ये डरावनी बात थी, पर मैंने खुद को इस डर से निकाला और शूट को एन्जॉय किया, लेकिन ये सही है कि मैं इस

पॉजिटिव सोच है जरुरी

अनन्या हर फिल को खुद चुनती है और अगर कुछ गलत हुआ तो उसकी जिम्मेदारी खुद को ही समझती है. उनके पेरेंट्स अनन्या की इस मैच्योरिटी को पसंद करते है. वह हमेशा सकारात्मक सोच रखना पसंद करती है. इतना ही नहीं अनन्या ने साल 2019 में सो पॉजिटिवएक संस्था ‘डिजिटल सोशल रेस्पोंसिबिलिटी’ को ध्यान में रखकर की है. वह कहती है कि मैं एक सेफ कम्युनिटी डिजिटल पर बनाना चाहती थी. केवल मेरे साथ ही नहीं हर किसी के साथ ऐसा होने पर, खासकर इन्स्टाग्राम पर लोग एक दूसरे को नफरत की निगाह से देख रहे थे, पर हर इंसान चुप था, जबकि एक बातचीत शुरू होने की जरुरत थी, जिसके साथ भी ऐसा होता है, वह व्यक्ति कैसे और कहाँ कॉम्प्लेन करें. सो पॉजिटिवने एक स्ट्रीम लाइन और गाइडबुक बनाई है, जहाँ परेशान व्यक्ति कहाँ और कैसे शिकायत करें. पिछले साल कोविड की दूसरी लहर के समय मैंने एक सीरीज बनाई थी, जो सोशल मीडिया फॉर सोशल गुड के नाम से था. मैंने 10 यंग लोगों से उनके काम के बारें में बात किया तो पता चला कि वे सोशल मिडिया पर अच्छे काम के लिए जुड़े है, जिसमें बीमार को एम्बुलेंस मुहैय्या करवाना, जरुरतमंदों को ऑक्सिजन सिलिंडर दिलवाना, स्ट्रीट जानवरों को सुरक्षा देना आदि कई काम कर रहे है, लेकिन इस काम के पीछे कौन व्यक्ति एक्टिव है, उसे बताने की कोशिश की है. इसका अनुभव भी मेरे साथ अच्छा हुआ है. जब मैं दूसरे शहर में भी किसी यूथ से मिलती हूँ तो यूथ इस मुहीम की तारीफ़ करते है और इस मुहीम से जुड़ने के बाद वे खुद को कभी अकेला महसूस नहीं करते.

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पेरेंट्स का मिला सहयोग

अनन्या आगे कहती है कि मैं पिता के बहुत करीब हूँ. मेरे पिता परिवार की एक मजबूत इंसान है. उन्होंने हमेशा समझाया है कि जीवन में सफलता और असफलता से अधिक प्रभावित नहीं होना चाहिए, दोनों ही परिस्थिति में न्यूट्रल रहने की जरुरत है. असफलता से सफलता को हैंडल करना अधिक मुश्किल है. इसके अलावा मेरे पिता ने कभी मुझे किसी बात पर टोका नहीं, लेकिन जरुरत के समय हमेशा मेरे साथ रहे.

12 साल के संघर्ष के बाद पंकज त्रिपाठी को मिली मंजिल, पढ़ें खबर

बिहार के गोपालगंज के बेलसंड गांव में जन्में अभिनेता पंकज त्रिपाठी हिंदी सिनेमा जगत के एक जाना-माना नाम है और आज हर निर्माता निर्देशक उन्हें अपनी फिल्मों में लेना चाहते है, लेकिन कामयाबी के इस मुकाम तक पहुंचना पंकज के लिए आसान नहीं था. उनके पिता का नाम पंडित बनारस त्रिपाठी और माँ का नाम हेम्वंती त्रिपाठी है. पिता किसान होने के साथ-साथ पंडिताई भी करते थे. चार बच्चों में सबसे छोटे पंकज को बचपन से ही अभिनय का शौक था. छोटी उम्र में ही उन्होंने लड़की की वेशभूषा धारण कर किसी भी उत्सव या अवसर पर अभिनय किया करते थे, इससे उनके अंदर अभिनय की इच्छा जगी और वे इसे ही अपना प्रोफेशन मान लिए थे, लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वे डॉक्टर बने और उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने पटना भेज दिए.

स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद पकज ने होटल मनेजमेंट की पढाई की और पटना के एक पांच सितारा होटल में किचन सुपरवाईजर का काम करने लगे, क्योंकि उन्हें कुछ पैसा कमा लेना था. पंकज के आदर्श मनोज बाजपेयी है, एक बार जब मनोज पटना होटल में आये और अपना स्लीपर छोड़कर चले गए थे तो पंकज ने उन स्लीपर्स को सम्हाल कर अपने पास रखा, ताकि अभिनय के प्रति उनकी शौक बनी रहे. करीब 7 साल होटल में काम करने के बाद वे दिल्ली एक्टिंग की ट्रेनिंग लेने के लिए शिफ्ट हो गए और नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में ग्रेजुएशन कर अभिनय के लिए मुंबई आ गए. मुंबई वे अपनी पत्नी मृदुला और बेटी आशी के साथ आये थे. अभी उनकी बेटी दसवीं कक्षा में है और पढाई पर ध्यान दे रही है.

पंकज को लगा नहीं था कि उनकी संघर्ष इतनी लम्बी होगी, लेकिन उन्होंने धीरज नहीं हारी. शुरू में पंकज ने कई विज्ञापनों और एक दो सीन्स में काम किये,उस दौरान उनकी पत्नी, मृदुला,जो एक स्कूल टीचर थी, पूरे परिवार का खर्चा चलाया और पंकज को उनके सपनों को पूरा करने की आज़ादी दी. कुछ दिनों बाद पंकज को फिल्म ‘रन’ मिली, लेकिन फिल्म ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ उनके अभिनय कैरियर की माइलस्टोन बनी, जिसके बाद से उन्हें मुड़कर पीछे देखना नहीं पड़ा. इस फिल्म की ऑडिशन पंकज ने करीब 8 घंटे तक दिया था. व्यस्त जीवन शैली के बीच पंकज त्रिपाठी ने मुंबई स्थित अपने आवास से टेलीफोन पर गृहशोभा के लिए खास बात की, जो रोचक थी, पेश है, कुछ खास अंश.

सवाल – अभिनय की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली?

जवाब –जब गाँव में था तो वह किसी भी अवसर पर नाटक करता था. पटना जाने के बाद भी मैं वहां थिएटर करने लगा था, फिर महसूस हुआ कि ये फील्ड अच्छी है, इसमें काम कर जीवन चलाना आसान होगा. इसके बाद पटना से दिल्ली आ गया और एनएसडी में ज्वाइन किया. आज यहं तक पहुंचा हूँ. 12 साल की संघर्ष के बाद मुझे लोग थोडा जानने लगे थे. काम मिलने लगा था.

सवाल- 12 साल की संघर्ष में किसका सहयोग रहा?

जवाब – मेरी पत्नी मृदुला का जो उस समय मुंबई में टीचर थी और उनके पैसे से ही घर चल जाता था. उस दौरान मैं काम खोज रहा था और अपने क्राफ्ट पर काम कर रहा था. उन्होंने उनका काम मेरे स्टाब्लिश होने के बाद छोड़ दिया और अपने मनपसंद शूटिंग की कंपनी चलाती है.

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सवाल –पत्नी से आप कैसे मिले थे?

जवाब – मैं उनसे एक शादी में मिला था, मुझे मृदुला बहुत अच्छी लगी थी. इसके बाद प्यार और प्रेमविवाह किया है.

सवाल – मुंबई आने पर काम के लिए कितनी समस्याएं आई? क्या आउटसाइडर होने की वजह से आपको अधिक मेहनत करनी पड़ी?

जवाब –हमारे देश में हर काम के लिए भीड़-भाड होती है और एक्टर बनना तो सबसे कठिन काम होता है. उसमें जो मेहनत करते है, उनके लिए रास्ते बन जाने है, मैंने भी मेहनत कर अपना रास्ता बनाया. इतना ही नहीं कई बार काम होते-होते पता चलता था कि नहीं हुआ किसी दूसरे को ले लिया है, ये पार्ट ऑफ़ ऑडिशन होता है.

सवाल – आपकी अधिकतर फिल्मों या वेब सीरीज में आपके काम को सराहा जाता है, इसकीवजह क्या मानते है?

जवाब – इसके लिए मैं उन कहानियों में काम करना पसंद करता हूँ, जो मुझे अच्छी लगती है. उसे सजीव करने के लिए पूरी मेहनत करता हूँ और उससे जुड़ जाता हूँ. ये अच्छी बात है कि मेरे काम की प्रसंशा दर्शक करते है, जिससे मुझे हर फिल्म में अधिक अच्छा करने की इच्छा होती है.

सवाल – आप अपनी जर्नी से कितना संतुष्ट है, क्या कोई रिग्रेट रह गया है?

जवाब – मैं अपने जर्नी से बहुत संतुष्ट हूँ, क्योंकि जितना मैंने सोचा, उससे अधिक मुझे मिला है, इसलिए किसी प्रकार की रिग्रेट मुझमे नहीं है. इसके अलावा मैं सुकून गति का व्यक्ति हूँ और जिस गति से मेरा काम चल रहा है,उसे मैं वैसे ही चलने देना चाहता हूँ. मेरे जीवन में ठहराव है औरजब समय मिलने पर दार्शनिक किताबे पढना पसंद करता हूँ.

सवाल – आपके मुंबई एक्टिंग के लिए आने पर परिवार की प्रतिक्रियां कैसी थी?

जवाब – परिवार वालों को मुझपर भरोसा था, वे जानते थे कि मैं कुछ न कुछ अच्छा अवश्य कर लूँगा, इसलिए उन्होंने सफल होने का आशीर्वाद दिया. गांव मैं हर तीन से चार महीने बाद 2 दिन के लिए जाता हूँ. मेरे जाते ही कई लोग मुझसे मिलने आ जाते है.

सवाल –मुंबई में सभी यूथ हीरो बनने के लिए आते है,आपकी इच्छा क्या थी?

जवाब –मेरी इच्छा एक्टिंग करने की थी, इसलिए जो भी काम मिला मैं करता गया. इसमें मैंने केवल गैंग्स्टर ही नहीं, वकील, कॉमेडियन, आम आदमी आदि सबकी भूमिका निभा रहा हूँ.

सवाल – आगे आपकी कौन-कौन सी फिल्में रिलीज पर है?

जवाब – आगे फिल्म ‘ओह माय गॉड 2’ और  ‘शेरदिल’ है, जिसपर काम चल रही है.

सवाल – अभिनय से पहले और अब एक सफल एक्टर बनने की जर्नी में आप वजह क्या मानते है?

जवाब –मेरा धीरज, निरंतर प्रयास करते रहना, अपने क्राफ्ट को सवांरते रहना आदि कई बातें है, जिसे मैंने अपने जीवन में शामिल किया है.

सवाल – रियल लाइफ में पंकज कैसे है?

जवाब – रियल लाइफ में पंकज एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार का बेटा है, जिन्हें बाज़ार जाकर सब्जियां खरीदना, ट्रेन के स्लीपर कोच में सफ़र करना, परिवार के साथ समय बिताना, गांव और खेती को देखना, खाना बनाना आदि सब पसंद है.

सवाल – अगर आपको कोई सुपर पॉवर मिले तो आप देश में क्या बदलना चाहेंगे?

जवाब – मैं बहुत सारे पौधे लगाना चाहता हूँ, ताकि बहुत हरियाली रहे. ऑक्सिजन की कमी न रहे, नदियाँ साफ़ रहे, वातावरण सुंदर रहे, पशु पक्षी का समागम हो और सभी सुखी रहे. सुपर पॉवर से मैं पूरी दुनिया को सुखी बनाना चाहता हूँ.

सवाल – आपने अधिकतर फिल्मों में बाहुबली की भूमिका निभाई है, क्या आपको राजनीति में जाने की कभी इच्छा है?

जवाब –अभी तो बताना मुश्किल है, क्योंकि इस बारें में मैंने सोचा नहीं है, लेकिन आगे क्या होगा उसे आज समझ पाना बहुत मुश्किल है. राजनीति डेमोक्रेटिक देश में बहुत जरुरी होती है, क्योंकि इससे सामाजिक क्षमता बढ़ जाती है. हाथ में पॉवर होता है और आप कुछ सही काम करना चाहते है तो कर सकते है. देश का संविधान भी एक महत्व पूर्ण अंग है, जिसके आधार पर हम सब चलते है. इसके द्वारा हमें अपने अधिकार, कर्तव्य, स्वतंत्रता आदि कई मूलभूत बातों का पता चलता है.

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सवाल – बिहार का विकास बाकी राज्यों की तुलना में काफी कम है, क्या आप अपने राज्य के विकास के बारें में कभी सोचा है?

जवाब – सोचते है कि गांव और राज्य का विकास हो. अपने हिसाब से करने का प्रयास भी करते है. इसके अलावा कई सामाजिक कार्य से जुड़ा हूँ, पर उस बारें में बात करना नहीं चाहता.

सवाल – कोविड और लॉकडाउन ने बता दिया है कि हमारे देश में लोग कितने गरीब है और कितनी संख्या में वे माइग्रेट करते है, खासकर मुंबई से बिहार, उत्तरप्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों से, आपकी सोच इस बारें में क्या है?

जवाब – देश में माइग्रेशन सालों से होता आया है, मुंबई में अधिक होने की वजह काम का मिलना है, जिससे वे अपने गांव और शहर से आकर अपनी रोजी -रोटी कमाते है. विस्थापन एक बड़ी समस्या है और इसपर लगाम तभी लग सकेगा, जब उन राज्यों का समुचित विकास हो. अगर मेरे गाँव में एक फैक्ट्री लग जाती है, तो कोई मुंबई या कल्याण की फैक्ट्री में काम करने क्यों आएगा? हर राज्य में उद्योग – धंधे और काम के मौके का सही विकास हो तो कोई भी व्यक्ति अपने शहर और परिवार को छोड़कर दूसरी जगह नहीं जायेगा.

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REVIEW: जानें कैसी वेब सीरिज ‘बरूण राय एंड द हाउस औन द क्लिफः’

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः युनीकोर्न मोशन पिक्चर प्रोडक्शन

निर्देशकः सैम भट्टाचार्यजी

कलाकारः प्रियांशु चटर्जी,नायरा बनर्जी,सिड मक्कर,

अवधिः लगभग दो घंटे 45 मिनट , छह एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः ईरोज नाउ

इन दिनों छोटे परदे के साथ साथ ओटीटी प्लेटफार्म पर भी हॉरर यानी कि डरावनी कहानियंा व घटनाक्रम काफी पसंद किए जा रहे हैं. यह एक अलग बात है कि इस तरह के सीरियल, वेब सीरीज व फिल्में अंधविश्वास,आत्मा व भूतप्रेत आदि को बढ़ावा ही देती हैं. बहरहाल,इंग्लैंड के एक तट पर पहाड़ी पर नदी के किनारे बसे एक गांव में हो रही रहस्यमयी आत्महत्याओं का सच जानने के लिए पुलिस एक परामनोवैज्ञानिक की मदद लेता है. क्योंकि इन आत्महत्याओं के पीछे कोई स्पष्ट संदिग्ध नहीं है और परिस्थितियां समझ से परे हैं. पर इस वेब सीरीज को देखकर डर पैदा नही होता.

कहानीः

कहानी इंग्लैंड के एक टापू  कोर्विड्स हेड के एक छोटे से गांव में लगातार पुरूषों द्वारा आत्महत्या करने का सिलसिला जारी है. इन आत्महत्याओं को कोई स्पष् ट कारण भी समझ से परे है. ऐसे में इसकी जांच पड़ताल के लिए पुलिस  इंस्पेक्टर जेनी जोन्स (एम्मा गैलियानो), परामनोवैज्ञानिक जासूस बरुण राय (प्रियांशु चटर्जी) को कॉर्विड्स हेड के छोटे से गाँव में बुलाती है. बरूण राय परामनोविज्ञान में महारत रखते हैं. जेनी जोम्स की सोच के अनुसार ऐसे में बरुण की विशेष योग्यताएं असाधारण वजहों को जानने में मदद कर सकती हैं.

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इधर नवविवाहित जोड़ा  हरमेश (सिड मक्कड़) और शौमिली (नायरा बनर्जी) भारत से इंग्लेंड पहुॅचते हैं. वह कॉर्विड्स क्लिफ में एक घर में रहने पहुॅचते हैं. शौमिली नर्स के तौर पर कार्यरत है. दो दिन के अंदर ही शौमिली को घर के अंदर आसामान्य गतिविधियां घटित होने का अहसास होने लगता है. पुलिस को कुछ भी गलत नजर नहीं आता. उधर डौक्टर शौमिली कोे डिप्रेशन की दवा देने लगते हैं. पर हरमेश व शौमिली की जिंदगी खतरे में पड़ जाती है. उधर ब्रायन(जौर्ज डावसन ) छिप कर इनकी तस्वीरें खींचता रहता है. धीरे धीरे यह स्पष्ट होता है कि एक बुरी आत्मा ही लोगों की इस तरह हत्या कर रही है कि वह आत्महत्या लगे. अब यह बुरी आत्मा हरमेश को भी मारना चाहती है.

स्थानीय चर्च के पादरी फादर पॉल (टोनी रिचर्डसन) और उनके गुरु (डेविड बेली) को इस आत्मा के बारे में कुछ ज्ञान है,जो इस घर के साथ ही हरमेश व शौमिल को प्रताड़ित कर रही है. फादर पॉल अतीत में कई बार इस बुराई से लड़ने का असफल प्रयास कर चुके हैं. अब वह शौमिली व हरमेश की मदद करने इनके घर पहुॅचते हैं,पर किसी तरह अपनी जान बचाकर वापस आ जाते हैं.

इधर बरूण रौय को भी असफलता ही मिल रही हे. एक दिन ‘मिली,बरूण राय को एक किताब देती है. बरूण राय उस किताब को पढ़कर कुछ तो समझता है,पर इस किताब में ‘कोड वर्ड’ में भी कुछ लिखा है,जिसके लिए बरूण राय सुखबीर की मदद लेता है. इस किताब से बरूण की समझ में आता है कि किसी समय एलेक्जेंडर व पोली पूर्णिमा के दिन चांद की रोशनी में शादी करने वाले थे,मगर अलेक्जेंडर ने पोली को धो दिया था. इन सारी बातों को पोली ने इस किताब में लिखा है और यह भी लिखा है कि वह हर पुरूष से अपना बदला लेती रहेगी. इस बीच हरमेश भी नदी में कूदकरी आतमहत्या कर लेता है और बुरी आत्मा लगातार शौमिली को परेशान कर रही है. ब्रायन भी मारे जाते हैं.

अब पूर्णमासी की रात आ रही है. और बरूण राय,फादर पॉल व उनके गुरू के पास इस शहर के निवासियों को पोली की बुरी आत्मा से बचाने का एक आखिरी मौका है, इससे पहले कि आत्मा इतनी शक्तिशाली हो जाए कि कोई भी रोक न सके. बरूण व फादर पॉल पूरी तैयारी के साथ शौमिली के घर पहुंचते और इन्हें अपने लक्ष्य में सफलता मिल जाती है.

लेखन व निर्देशनः   

वेब सीरीज का हर एपीसोड बहुत धीमी गति से आगे बढ़ता है. पटकथा काफी गड़बड़ है. किसी भी किरदार को सही ढंग से विकसित नही किया गया है. एक भी दृश्य ऐसा नही है,जिससे दर्शक के अंदर भय का अहसास हो. कहानी का कोई प्रवाह नजर नही आता. कई दृश्यों के समय आदि की भी सही व्याख्या नही की गयी है. इस सीरीज की खासियत यह है कि इसमें बौलीवुड फिल्मों में दिखायी जाती रही बुरी आत्माएं या भूतप्रेत नजर नही आते.

कई दृश्य तो दर्शकों को भी द्विविधा में डालते हैं. निर्देशक ने अचानक  फर्नीचर के टकराने व हिलने या हवा से अचानक खिड़की के खुलने जैसे बहुप्रचलित साधनों का उपयोग कर डर व रहस्यमय माहौल पैदा करने का असफल प्रयास किया है. क्लायमेक्स तो काफी घटिया है.

मगर इस सीरीज में इंग्लैंड के ग्रामीण इलाकों की सुंदरता के साथ-साथ शानदार चट्टानों और तट को बेहतरीन तरीके से कैद करने में फिल्मकार सफल रहे हैं. यानी कि लोकेशन काफी सुंदर व खूबसूरत चुनी गयी है. हॉरर फिल्म या सीरीज  में आम तौर पर जिस तरह का संगीत परोसा जाता है,उससे इसका संगीत काफी अलग है.

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अभिनयः

परामनोवैज्ञानिक बरूण के किरदार में प्रियांशु चटर्जी काफी सुस्त नजर आते हैं. शोमिली के किरदार में कुछ दृश्यों में डर की भावनाओं को चित्रित करने में नायरा बनर्जी सफल रही हैं. नायरा बनर्जी अपने आस पास होने वाली घटनाओ को बेहतर अहसास दिलाती हैं. शौमिली के किरदार में उन्होने इस बात के संकेत दिए हैं कि उनके अंदर अभिनय प्रतिभा की कमी नही है. जरुरत है एक बेहतरीन निर्देशक की,जो उनके अंदर की कला को निखार सके. एम्मा गैलियानो, सिड मक्कर, टोनी रिचर्डसन और जॉर्ज डावसन के हिस्से करने को कुछ खास नही रहा.

Virat Kohli की Copy हैं बेटी Vamika, Anushka Sharma संग सामने आई Cute फोटोज

बौलीवुड एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा (Anushka Sharma) और क्रिकेटर विराट कोहली (Virat Kohli) अपनी बेटी वामिका (Vamika Kohli) की प्राइवेसी का पूरा ध्यान रखते हैं, जिसके चलते वह पूरी कोशिश करते हैं कि उसका चेहरा मीडिया या फैंस के सामने ना आए. लेकिन हाल ही में विराट कोहली के मैच के दौरान अनुष्का शर्मा ने अपनी बेटी का चेहरा फैंस को दिखा दिया हैं. वहीं वामिका की फोटोज सोशलमीडिया पर छा गई हैं. आइए आपको दिखाते हैं वामिका की फोटोज….

बेटी वामिका का चेहरा आया सामने

 

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भारत और साउथ अफ्रीका के बीच तीसरे वनडे मुकाबले के दौरान विराट कोहली की बेटी वामिका की पहली झलक दिखाई दी. दरअसल, मैच के दौरान विराट कोहली की पत्नी यानी बॉलीवुड एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा स्टैंड्स में अपनी बेटी वामिका के साथ विराट कोहली और टीम इंडिया के लिए चीयर करती नजर आईं. वहीं इस दौरान कैमरा की नजर वामिका पर पड़ी, जो पिंक कलर की ड्रेस पहने अनुष्का शर्मा की गोद में दिखीं. वहीं विराट बेटी को हाय करते हुए भी दिखे.

 

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विराट  की कौपी हैं वामिका

वामिका कोहली की फोटोज वायरल होने के बाद जहां फैंस उसकी क्यूटनेस की तारीफें कर रहे हैं तो वहीं वह वामिका को पापा विराट की कौपी बताते नजर आ रहे हैं. इसी के साथ सोशलमीडिया पर वामिका और अनुष्का शर्मा और विराट के बचपन की फोटोज वायरल हो रही हैं.

बता दें, क्रिकेटर विराट कोहली और एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा शुरुआत से ही मीडिया और फैंस से अपील की थी कि वह अपनी बेटी की प्राइवेसी का ख्याल रखते हुए उसे मीडिया से दूर रखेंगे. लेकिन मैच के दौरान वायरल हुई फोटोज और वीडियो को देखने के बाद फैंस के मजेदार रिएक्शन देखने को मिल रहे हैं. बात करें वामिका की तो वह जनवरी में ही एक साल की हुई हैं, जिसका बर्थडे सेलिब्रेशन मैच के दौरान ही मनाया गया था.

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बौलीवुड एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा (Priyanka Chopra) अपनी फिल्म की बजाय पर्सनल लाइफ को लेकर अक्सर सुर्खियां बटोरती हैं. बीते दिनों जहां उनके तलाक की खबरों ने फैंस को हैरान कर दिया था तो वहीं अब एक्ट्रेस की मां बनने की खबर ने लोगों को चौंका दिया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

मां बनीं प्रियंका चोपड़ा

 

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दरअसल, थोड़ी देर पहले ही प्रियंका चोपड़ा (Priyanka Chopra) ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक पोस्ट शेयर किया है, जिसमें उन्होंने अपने फैंस को जानकारी  दी है कि वह और उनके पति निक जोनस (Nick Jonas) सरोगेसी के जरिए पेरेंट्स बन गए हैं. प्रियंका चोपड़ा (Priyanka Chopra) ने लिखा ये बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि हमने सेरोगेसी के जरिए बच्चे का स्वागत किया है. हम इस विशेष समय में आपसे सम्मानपूर्वक प्राइवेसी की अपील करते हैं क्योंकि हम अपने परिवार पर ध्यान दे रहे हैं. बहुत-बहुत धन्यवाद. वहीं निक जोनस ने भी एक जैसा पोस्ट अपने फैंस के लिए शेयर किया है. हालांकि दोनों ने बेटा या बेटी होने की खबर नहीं दी है. वहीं इस पोस्ट पर सेलेब्स और फैंस दोनों को बधाई देते नजर आ रहे हैं.

 

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फैमिली बढ़ाने को लेकर कह चुकी हैं ये बात

 

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साल 2018 के दिसंबर में जोधपुर में हिंदू और फिर ईसाई रीति-रिवाज से  शादी करने वाली प्रियंका चोपड़ा (Priyanka Chopra)मां बनने की इस खबर से पहले कई बार पति निक (Nick Jonas) के साथ परिवार बढ़ाने की बात कहते हुए नजर आ चुकी हैं. वहीं एक शो में उन्होंने लाइव औडियंस के सामने फैमिली बढ़ाने की बात कही थीं. हालांकि बाद में उन्होंने खुद उसे मजाक कहा था. इसके अलावा वह इंटरव्यू में भी वह मां बनने की बात कहती नजर आईं थीं.

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‘गहराइयां’ के ट्रेलर लांच पर इमोशनल हुईं Deepika Padukone, जानें वजह

अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की फिल्म ‘गहराइयाँ’ की ट्रेलर लांच होने के मौके पर दीपिका भावुक हो गयी, क्योंकि उन्होंने इस फिल्म में उनकी भूमिका अबतक की सभी फिल्मों से अलग बताया है, क्योंकि इसमें दिखाई गयी कहानी भारत में पहली बार होगी, ऐसी फिल्में विदेशों में बहुत सामान्य होती है. इसे करने के पीछे उनकी भावनाएं है,जिसे उन्होंने अपने रियल लाइफ में जिया है. इसलिए उन्होंने इस फिल्म को करने के बारें में जरा भी नहीं सोची. वह इस फिल्म में अलीशा की भूमिका निभा रही है. इसमें रिलेशनशिप और प्यार को एक अलग नजरिये से दिखाया गया है, जिसमें प्रेम लालसा और तड़प खास है,जिसे हमारे देश के लोग अँधेरे में रहकर निभाते है.

वह कहती है कि रिलेशनशिप या प्यार को कई तरीके से निभाया जा सकता है, ये केवल बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड के लिए नहीं होती, बल्कि किसी दोस्त या रिश्ते में भी हो सकती है. मेरे लिए भी ये एक स्ट्रोंग और चुनौतीपूर्ण चरित्र है, जिसे निभाना आसान नहीं था. चरित्र का संघर्ष और उनका सफर एकदम असली, स्वाभाविक और आम लोगों के जीवन से जुड़ा है, इसलिए बहुत हद तक दर्शक इससे जुड़ सकेंगे. इस चरित्र को आसान बनाने में निर्देशक शकुन बत्रा का काफी हाथ रहा. उन्होंने मुझे पूरी भूमिका के ग्राफ को बता दिया था, जिससे काम करना आसान हो गया. इसके अलावा मैंने इस फिल्म में हर काम टीम के साथ-साथ किया है, जिसमें एक साथ खाना, एक साथ शूटिंग करना, एक साथ कही घूमने जाना आदि.इससे मेरे और टीम के बीच एक अच्छी बोन्डिंग स्थापित हुई जिससे अभिनय करना आसान हुआ.

 

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इसके आगे दीपिका कहती है कि बोल्ड अभिनय को लेकर कई भ्रांतियां है, बोल्ड के अर्थ को समझने के लिए कहानी में चरित्र को देखना पड़ेगा, क्योंकि बोल्ड का स्ट्रोंग के साथ-साथ  इंटिमेसी भी है, जिसे फिल्म में बहुत ही बेहतरीन तरीके से पेश किया गया है. इस तरह की इंटेंस सीन्स, जिसमें संबंधों के कई लेयर्स को पर्दे पर लाने में निर्देशक का हाथ रहा,जिसने ऐसे सीन्स के लिए अलग से कोरियोग्राफ किया. इससे इस फिल्म की किसी भी अन्तरंग दृश्य को परफॉर्म करने में सोचना नहीं पड़ा. इसके अलावा फिल्म में सिंद्दान्त चतुर्वेदी, अनन्या पांडे और धैर्य करवा ने साथ मिलकर हर अभिनय को अधिक रियल बनाया है.

 

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बहरहाल इस तरह की इंटेंस इमोशन के खेल को लेकर बनी फिल्में हमारी दर्शक अधिक डाइजेस्ट नहीं कर पाती और फिल्म फ्लॉप हो जाती है, लेकिन गहराइयाँ के लिए निर्माता निर्देशक बहुत अधिक गहराई तक सोच चुके है, उन्हें उबरने में कितना समय लगेगा, ये तो फिल्म की रिलीज के बाद ही पता चल पाएगी. ‘गहराइयां’ अमेजन प्राइम वीडियो पर 11 फ़रवरी को स्‍ट्रीम की जाएगी.

 

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Web Series Review: जानें कैसी है शेफाली शाह और कीर्ति कुल्हारी की Human

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः सनशाइन पिक्चर्स

निर्देशकःमोजेज सिंह

कलाकारः‘शेफाली शाह, कीर्ति कुल्हारी, सीमा विश्वास,विशाल जेठवा, राम कपूर,इंद्रनील सेन गुप्ता, आदित्य श्रीवास्तव,दामिनी सिन्हा, अतुल कुमार मित्तल,मोहन अगाशे,संदप कुलकर्णी, गौरव द्विवेदी व अन्य

अवधिः लगभग पैंतालिस मिनट के दस एपीसोडः साढ़े सात घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः हॉटस्टार डिज्नी

कोरोना महामारी के दौरान जब  लोगों की जिंदगी की अहमियत लोगों की समझ में आयी और दवा फार्मा कंपनियों ने रिसर्च कर वैक्सीन का निर्माण व परीक्षण किया,उसी दौर में विपुल अमृत लाल शाह,मोजेज सिंह व उनकी टीम दस एपीसोड की वेब सीरीज ‘‘ ह्यूमन’’ लेकर आयी है. जिसमें अस्पताल के अंदर चल रहे अनैतिक करोबार व दवा के अवैध परीक्षण के स्याह पक्ष के साथ इंसानी महत्वाकांक्षा का चित्रण है.  एक समासायिक व अत्यावश्यक विषय केा जरुर उठाया गया है,मगर यथार्थ को पेश करते हुए इसमें भोपाल गैस कांड,समलैगिकता व समलैंगिक प्यार ,आपसी जलन व प्रतिस्पधा,राजनीति, सेक्स,ड्ग्स सहित बहुत कुछ ठॅूंस कर मूल मुद्दे को ही गौण कर दिया गया. पूरी सीरीज को जिस तरह से पेश किया गया है,उसके चलते यह सीरीज बोर करती है. पहले एपीसोड से ही दर्शक का सीरीज से मन उचट जाता है.

कहानीः

कहानी के केंद्र में प्रतिष्ठित भोपाल न्यूरोसर्जन डॉ गौरी नाथ (शेफाली शाह) हैं,जो कि शहर के बहुत बड़े मल्टीफैशिलिटी अस्पताल की मालिक भी है. वह अपने पति   (राम कपूर) के पूर्ण समर्थन के साथ महत्वाकांक्षी विस्तार योजना शुरू करने पर काम कर रही हैं.  कहानी शुरू होती है ‘मंथन’में नई कार्डियो सर्जन डॉ सायरा सबरवाल (कृति कुल्हारी) की नियुक्ति से.  डॉ. सायरा की शादी हो चुकी है और उसके पति व फोटो-पत्रकार (इंद्रनील सेनगुप्ता) दूसरे देश में युद्ध के मैदान में कार्यरत हैं.  डॉ.  सायरा, डॉ.  गौरी के असली खेल से अनजान  उनकी योजना की सहभागी बन जाती है. डॉ.  गौरी का अपना अतीत है. उसके माता पिता भोपाल गैस त्रासदी मंे मारे गए थे,तब डॉ.  युधिष्ठिर ने उसे अपनी बेटी बनाया था. मगर घर मे उसे गरीब समझकर हमेशा नौकरों के कमरे में ही रखा गया. वहीं पर रोमा भी है,जिन्हे गौरी, ‘रोमा मां’(सीमा बिस्वास) कहती हैं.  फिर गौरी व रोमा ने मिलकर साजिश रचते हुए डॉ. युधिष्ठिर के परिवार से बदला लेने की भावना के साथ ही ‘मंथन’ का जन्म हुआ था.

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आज भी डॉ.  गौरी के गलत काम को आगे बढ़ाने में रोमा मां पूरा हाथ बंटा रही है. डॉ.  सायरा यौन संबंधों का एक ऐसा अतीत है,जिससे वह आज तक लड़ रही है. महज दस वर्ष की उम्र से ही वह समलैंगिक संबंध बनाती आ रही है. इसी के साथ अवैध दवा परीक्षण का कारोबार है,जिसकी मुखिया डॉ.  गौरी नाथ ही हैं.  वायु फार्मा कंपनी हृदय रोगियों के लिए ‘एस 93 आर’ दवा बना रही है. इस दवा में खामियां हैं. वह अपनी इस नई दवा का अवैध परीक्षण डॉ.  गौरी की ही कंपनी के मार्फत गरीबांे को फंसाकर कर रही है.  जिन पर भी परीक्षण किया जा रहा है,वह सभी मौत के मुॅह में जा रहे हैं. रोमा मां ने कुछ लड़कियों को बहला फुसलाकर अपने साथ सारी सुविधाएं देते हुए रखा है,उन्हे नर्स बना दिया है. इन पर ‘न्यूरो’ संबंधी एक दवा का अवैध परीक्षण हो रहा है.  ,जिन्हे हर दिन ऐसी दवा दी जा रही है,जो कि उनके अंदर खास तरह का बदलाव ला रही है. यह लड़कियां ही नर्स बनकर गरीबों पर अवैध दवा का परीक्षण करने के लिए इंजेक्शन लगाने से लेकर दवाएं आदि देती हैं.

बहरहाल,कहानी तब मोड़ लेती है जब इस दवा के ट्ायल@परीक्षण के चलते गरीब तुकाराम और गरीब युवक मंगू (विशाल जेठवा) की मां पर इस दवा का रिएक्शन होता है.  यह दानों तड़प-तड़प कर मर जाते हैं.  मंगू जैसे और भी लोग हैं, जिनके परिवारों ने ट्रायल के खराब नतीजे भुगते.  जब सवाल उठने लगते है तो डॉ.  गौरी खुद को बचाने के लिए डॉ. विवेक सहित दूसरों को मरवाने गलती है. तभी एक एनजीओ ‘आरोग्य’ इन पीड़ितों को मुआवजा और न्याय दिलानें के लिए आगे आता है. उधर राजनीतिक चालें चली जाती हैं. महत्वाकांक्षी प्रताप भी अपनी पत्नी का साथ देने की बजाय उसे ही बलि का बकरा बना देता है.

समीक्षाः       

फिल्मकार ने अहम विषय उठाया, मगर सीरीज देखकर अहसास होता है कि इस विषय व फार्मा कंपनियों  की उन्हें खास जानकारी ही नही है. संभावित रूप से घातक ड्रग परीक्षणों में बेहद गरीब लोगों को लुभाना सदियों पुरानी वैश्विक प्रथा है,जिसे दर्शक सैकड़ों फिल्मों मे देख व आपराधिक उपन्यासों में पढ़ता रहा है. इंसान लालच व स्वार्थपूर्ति में अंधा होकर किस हद तक जा सकता है,यह सब भी बहुत पुराना मसाला है. कारपोरेट अस्पतालों में किस तरह से मरीज को लूटा जाता है,यह भी किसी से छिपा नही है. इतना ही नही सीरीज का अंत जिस तरह से खत्म किया गया है,वह अति फिल्मी हो गया है. क्लायमेक्स अति घटिया है. पटकथा लेखन में काफी कमियंा हैं. इंद्रनील सेन गुप्ता के किरदार नील को विकसित ही नही किया गया. यह तो जबरन ठॅूंसा हुआ लगता है.

अवैध दवा परीक्षण,हमेशा आर्थिक रूप से कमजोर मनुष्यों का शिकार करने वाली एक सत्य व बड़ी समस्या है. इस पर बेहतरीन रोमांचक सीरीज बन सकती थी,मगर फिल्मकार ने महज कल्पना के घोड़े दौड़ाने के अलावा सेक्स,ड्ग्स,समलैंगिक प्यार,अवैध यौन संबंधो व राजनीतिक प्रतिद्वंदिता पर ही ज्यादा ध्यान दिया. इसमें जिस तरह से भोपाल गैस त्रासदी का मुद्दा उठाया गया,वह भी मजाक के अलावा कुछ नही रहा. वहीं एनजीओ की कार्यशैली को भी बहुत सतही स्तर पर ही पेश किया गया. इस सीरीज में गालियां कम नही है. डॉ.  गौरी के अतीत में गरीबी और चैंकाने वाली गालियां शामिल हैं.

अवैध दवा परीक्षण के दुश्परिणाम व मानवता की सेवा के नाम पर क्रूरता का सही अंदाज में चित्रण करने में लेखक व निर्देशक बुरी तरह से विफल रहे हैं. निजी दवा कंपनियां मुनाफे की खातिर लोगों की जान से खेलती है और कई बार इस खेल में बड़े अस्पताल और सम्मानित डॉक्टर तक हिस्सेदार होते हैं,वह डॉक्टर जिन्हें लोग भगवान का दर्जा देते हैं. इसे बहुत सतही स्तर पर ही पेश किया गया है. दवाओं के ट्रायल में हिस्सा लेने वाले इंसान कंपनियों और डॉक्टरों के लिए नोट छापने की मशीन में बदल जाते हैं,इसे भी ठीक से चित्रित नही किया गया.

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संसार में ब्लैक और व्हाइट दोेनो तरह के किरदार होते हैं. हर ंइंसाान में अच्छाई व बुराई होती है. मगर इस सीरीज का हर किरदार समस्याग्रस्त है. सभी के परिवार विखरे हुए हैं. ख्ुाशनुमा पल किसी की जिंदगीमें नहीं है. हर किरदार की किरदार अलग-अलग महत्वाकांक्षाएं है,जिनके ेचलते वह तनवाग्रस्त नजर आते हैं. यहां प्यार नही है. वैसे भी अंततः एक जगह डॉं.  गौरी नाथ कहती हैं-‘‘ प्यार जताने के लिए होना भी तो चाहिए. ’’जबकि रोमा मां बार बार  डॉ गोरी को आगाह करते हुए कहती हैं-‘‘प्यार हमेशा दर्द देता है,यह बात हमें कभी भूलनी नहीं चाहिए. ’’

इस सीरीज को देख कर दर्शक की समझ में यह बात जरुर आती है कि मानव-सेवा की आड़ में कैसे पैसे, भ्रष्टाचार और राजनीति का बोलबाला है.  यह एक मकड़जाल है,जिसमें ज्यादातर कीड़े-मकोड़े की जिंदगी जीने वाले गरीब और अभाव ग्रस्त लोग फंसते हैं. यह सीरीज डाक्टरों के अमानवीय व असंवेदनशील चेहरे को ही सामने लाती है. मगर अफसोस की बात यह है कि लेखक व निर्देशक ने मूल विषय को पेश करने की इमानदार कोशिश नही की.

अभिनयः

डॉ. गौरी के किरदार में शेफाली शाह ने बेहतरीन अभिनय किया है. कुटिलता उनके चहरे से साफ तौर पर उभरती है. उनके हाव भाव व चेहरे के भावों से यह स्पष्ट नजर आता है कि वह अपनी महत्वाकांक्षा के रास्ते मंे आने वाले को हटाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं.  कई दृश्यों में उनकी खामोशी और उनकी आॅंखे बहुत कुछ कह जाती हैं. डॉ. सायरा के किरदार में कीर्ति कुल्हारी ने बढ़िया काम किया है. किरदार के अंदर का अंतद्र्वंद भी उनके चेहरे पर पढ़ा जा सकता है. इमोशनल दृश्यों में उनका अभिनय उभरकर आता है.  गरीब युवक मंगू के किरदार में विशाल जेठवा अपनी एपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहते हैं. राम कपूर और इंद्रनील सेन गुप्ता की प्रतिभा को जाया किया गया है. सीमा विश्वास अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रही हैं.

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मानसिक दबाव के बढ़ने के बारें में क्या कहती है ’83’ की एक्ट्रेस Wamiqa Gabbi, पढ़ें इंटरव्यू

पंजाबी परिवार में पैदा हुई वामिका गब्बी को फिल्में देखने का बहुत शौक था. उनके परिवार के सभी सदस्यों को किसी नई फिल्म के रिलीज होने पर हॉल में जाकर देखना पसंद करते है. वामिका जब बड़ी हुई तो उसे हमेशा कुछ अलग काम करने की इच्छा रहती थी, कई बार उन्हें आसपास कई ऐसी घटनाएं दिखती थी, जिसमें जागरूकता बढ़ाने की जरुरत है.

महिलाओं और बच्चों पर हुए नाइंसाफी को वह खास मानती है. वामिका को लोगों तक पहुँचाने का माध्यम फिल्म लगती थी, क्योंकि पूरा देश फिल्मों का शौकीन है. उनके पिता का ट्रान्सफरेबल जॉब था, इसलिए वामिका को अलग-अलग स्थानों में जाने का अवसर मिलता रहा. वामिका ने हिंदी फिल्मों के अलावा पंजाबी, तमिल, तेलगू और मलयालम फिल्मों में काम किया है. उन्हें अपना कैरियर बहुत पसंद है, फिल्म 83 में उन्होंने क्रिकेटर मदनलाल की पत्नी अन्नू लाल की निभाई है, जिसमें उनके काम को काफी प्रशंसा मिली. उनसे उनकी जर्नी के बारें में टेलीफोनिक बात हुई पेश है, कुछ खास अंश.

सवाल – फिल्मों में आने की प्रेरणा कैसे मिली?

जवाब – बचपन से ही फिल्म देखने का शौक रहा और फिल्में भी हर भाषा में बनने के साथ-साथ हिंदी में भी बनती है, ऐसे में देखने वाले भी बहुत है. मेरे परिवार में सबको फिल्में देखना पसंद था, मैंने भी कई फिल्में देखी है. फिल्में हमेशा मुझे मोहित करती थी और कहानी कहने की इच्छा रहती थी, खासकर स्ट्रोंग और मनोरंजक, जिसे मैं अपनी तरह से कह सकती हूं. मौका था और मैं लकी थी कि मुझे फिल्म 83 मिली, जिसमें कहानी के साथ- साथ अच्छे निर्देशक, को स्टार सभी से कुछ न कुछ सीखने को मिला है.

सवाल –  दिल्ली से मुंबई कैसे आना हुआ?

जवाब – मेरे पिता की नौकरी का ट्रान्सफर हुआ करता था, ऐसे में मेरा जन्म दिल्ली में हुआ, लेकिन शिक्षा मैंने मुंबई में ली, इसके बाद मेरा फिर दिल्ली जाना हुआ और अंत में मैं मुंबई आ गयी, क्योंकि यही मेरी डेस्टिनेशन है. मैं पिछले 18 साल से मुंबई में काम कर रही हूं.

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सवाल –  पहली ब्रेक के मिलने में कितना समय लगा ?

जवाब – अभिनय के क्षेत्र में आने से पहले मैं एक फिल्म स्कूल में गयी. वहां मैंने एक शार्ट फिल्म बनायीं थी, इसके बाद कैंपस प्लेसमेंट से ही मुझे पहली फिल्म ‘मकबूल’ मिली थी. इसके बाद धीरे-धीरे काम आगे बढ़ता गया.

सवाल – रियल फिल्मों में काम करने की वजह क्या है?

जवाब – मैंने हमेशा से ही उन कहानियों को कहने की कोशिश की है, जो मेरे आसपास हो, इससे मनोरंजन के साथ-साथ एक सन्देश भी दर्शकों तक पहुँचता है. ऐसी कहानियों से ही सोच में थोडा परिवर्तन हो सकता है. भले ही दर्शक उसे पसंद न करते हो, पर सही स्क्रिप्ट से उसे मनोरंजक बनाया जा सकता है.

सवाल –  कोविड पेंड़ेमिक की वजह से आज ओ टी टी फिल्मों का बाज़ार बहुत बढ़ा है, हर तरह की कहानियाँ कही जारही है, लेकिन रीयलिस्टिक फिल्मों को दर्शक हॉल में देखना पसंद नहीं करते, क्या ऐसे में फिल्म मेकर को आगे किसी प्रकार का खतरा हो सकता है?

जवाब – ये समय स्टोरी टेलर्स के लिए अद्भुत है. निर्माता, निर्देशक,लेखक सभी प्रकार की फिल्मों को एक्स्प्लोर कर रहे है. पहले इन्हें समानांतर फिल्में कही जाती थी, लेकिन अब ऐसी फिल्में मुख्य धारा से जुड़ चुकी है. आसपास की कहानियों को पर्दे पर लाना ही मेरा उद्देश्य रहा है. अच्छी कहानियों को दर्शक भी पसंद करते है. ओटीटी की वजह से वे घर बैठकर आराम से पसंद की फिल्म को कभी भी देख सकते है.

सवाल – आपके आसपास घटित ऐसी कहानी जिसका प्रभाव आप पर अधिक पड़ा?

जवाब – कहानियां बहुत है, इसमें खासकर महिलाओं से सम्बंधित स्क्रिप्ट अधिक होते है, जिसमें एक महिला अलग-अलग परिस्थिति में कैसे रियेक्ट करती है, कैसे उन हालातों से गुजरती है ऐसी सभी कहानियां मेरे दिल के करीब है. मेरे आसपास के माहौल इंस्पायर्ड शो ‘हश हश हश’ है.

सवाल – क्या यूथ में बढ़ते मानसिक दबाव को लेकर क्या आप कुछ करने की इच्छा रखती है?

जवाब – आजकल मानसिक दबाव केवल बच्चों में ही नहीं, बड़ों में भी बहुत है, लेकिन इसमें जागरूकता की कमी है. शरीर ही नहीं, बल्कि दिमाग भी बीमार हो सकता है, लेकिन लोग इसे स्वीकार नहीं करना चाहते और बताने से भी शर्म महसूस करते है. मानसिक बीमारी को एक टैबू के रूप में लिया जाता है. इसमें परिवार को अपने बच्चे को समझाने की आवश्यकता है. जब वे किसी भी मानसिक परेशानी के शिकार होते है, तो सबसे पहले अपने नियर और डियर वन को बताएं. इसके अलावा सामाजिक और क्रिएटर्सका भी दायित्व है कि ऐसी बातों को फिल्मों के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचाएं. एक ऐसी ही कहानी पर काम चल रही है और जल्द ही वह पर्दे पर आएगी.

सवाल – आगे की योजनायें क्या है?

जवाब –आगे ‘राम सेतु’ फिल्म है, जिसकी शूटिंग चल रही है. इसके अलावा फिल्म ‘जलसा’ और कई वेब सीरीज भी है, जिसकी शूटिंग चल रही है.

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सवाल – परिवार का सहयोग आपको कितना मिला?

जवाब –परिवार की सहयोग के बिना फिल्मों में काम करना मुश्किल है. हर रोज परिवार एक नए काम के लिए प्रोत्साहन मिलती है. इसमें मेरा बेटा, पति, सास-ससुर और माँ सभी का साथ रहता है. खुद की दृष्टि को बढ़ाने के लिए परिवार का साथ होना बहुत जरुरी है. मेरे पति आरिफ शेख एक फिल्म एडिटर है. मेरा बेटा कियान शर्मा शेख है, जो 11 वर्ष का है और उसे फिल्में देखने का बहुत शौक है. फिलहाल उन्होंने क्रिकेट को अपना कैरियर बनाया है.

सवाल – नये साल का स्वागत कैसे करने वाली है?

जवाब – नए साल को मैं खुशियों के साथ मनाने वाली हूं. पिछले 2 सालों में पेडेमिक ने हमें बहुत कुछ सिखाया है. इसके अलावा मेरी कोशिश अच्छी कहानियों को कहने की रहेगी. सबको प्यार बाँटे, परिवार के साथ खुश और सुरक्षित रहे.

ओटीटी से सिनेमा को कोई खतरा नहीं- दिव्या खोसला कुमार

सोलह वर्ष की उम्र में दिल्ली से एक लड़की मौडलिंग करने मुंबई पहुंची थी. उस वक्त उसे फिल्मी दुनिया के बारे में कुछ भी नहीं पता था. बतौर अभिनेत्री 17 वर्ष की उम्र में उस की एक तेलुगु फिल्म ‘लव टुडे’ तथा हिंदी फिल्म ‘अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो’ प्रदर्शित हुईर् और लोगों ने उसे अभिनेत्री दिव्या खोसला के नाम से पहचाना. तब उसे लगा कि उसे तकनीक सीखनी चाहिए.

उस ने सिनेमैटोग्राफी और निर्देशन की ट्रेनिंग ली. फिर लगातार कई म्यूजिक वीडियो और ‘यारियां’ व ‘सनम रे’ जैसी फिल्मों का निर्देशन कर अपनी एक अलग पहचान बनाई. इस बीच टीसीरीज के भूषण कुमार के संग विवाह रचाया. एक बेटे की मां बनी और फिर कुछ फिल्मों का निर्माण भी किया. अब वह फिल्म ‘सत्यमेव जयते-2’ में एक सशक्त नारी का किरदार निभा रही है.

प्रस्तुत हैं दिव्या खोसला कुमार से हुई ऐक्सक्लूसिव बातचीत के अंश:

सवाल- आप अभिनेत्री, निर्माता, निर्देशक, मां व पत्नी हैं. इन सारी जिम्मेदारियों का निर्वाह आप किस तरह से करती हैं और कब किसे प्रधानता देती हैं?

हमें निजी और प्रोफैशनल जिंदगी के बीच तालमेल बैठा कर चलना पड़ता है. यह सच है कि हम सभी की निजी जिंदगी भी होती है. लेकिन प्रोफैशनल जिंदगी में जब मैं निर्देशन कर रही थी, तब मैं अभिनय नहीं कर रही थी और अब जब अभिनय कर रही हूं, तो निर्देशन नहीं कर रही हूं क्योंकि मेरा मानना है कि प्रोफैशनली एकसाथ कई चीजें करना संभव नहीं है, इन दिनों में सिर्फ अभिनय पर ही पूरा ध्यान दे रही हूं.

मैं बहुत पैशनेटली अभिनय के कैरियर को आगे बढ़ा रही हूं. पर यह तय है कि भविष्य में मैं पुन:निर्देशन करूंगी. जब हम निजी और प्रोफैशनल जिंदगी के बीच तालमेल बैठा कर चलते हैं, तो हमें परिवार से काफी मदद मिलती है. परिवार की तरफ से हौसलाअफजाई होती है. मेरी राय में प्रोफैशन में निरंतर आगे बढ़ने के लिए परिवार का सहयोग बहुत माने रखता है.

सवाल-मगर अकसर देखा गया है कि प्रोफैशनल जिंदगी जीते समय प्रोफैशन को महत्त्व देने पर पारिवारिक जिंदगी पर असर पड़ता है. कम से कम मां का जो रूप होता है, उस पर काफी असर पड़ता है. तो इस से उबरने के लिए आप क्या करती हैं?

जहां तक मेरा अपना सवाल है मैं अपने परिवार संग काफी समय बिताती हूं. बेटे को भी काफी समय देती हूं. मुझे अपने बेटे की हर बात पता है. मैं हर बात उसे बताती रहती हूं. हम जब फिल्म ‘सत्यमेव जयते-2’ की शूटिंग लखनऊ में कर रहे थे, तब घर से दूर थी. पर जब हमारी शूटिंग नहीं होती है, तो हम घर पर ही रहते हैं. जब हमारी प्रोफैशनल मीटिंग होती है, तब भी घर से दूर रहना पड़ता है. बेटे के साथ मेरी अच्छी दोस्ती है. वह भी मुझे अपनी हर बात बताता है. अभी तो काफी छोटा है, पर जिस ढंग से वह बड़ा हो रहा है, उसे देखते हुए मैं बहुत खुश हूं.

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सवाल-फिल्म ‘सत्यमेव जयते-2’ में ऐसी क्या खास बात लगी कि इस से आप ने अभिनय में वापसी की बात सोची?

मैं सशक्त नारी किरदार की तलाश में थी और मिलापजी ने मेरा किरदार काफी दमदार लिखा है. इस फिल्म में मिलाप झवेरी सर ने जिस संसार को गढ़ा है, वह अद्भुत है. फिल्म में भ्रष्टाचार पर कुठाराघात किया गया है. हमारे देश में हर जगह भ्रष्टाचार फैला हुआ है. लेकिन मिलाप सर ने पूरी फिल्म मनोरंजक बनाई है. यह फिल्म मनमोहन देसाई और रोहित शेट्टी मार्का मनोरंजक फिल्म है.

सवाल-फिल्म ‘सत्यमेव जयते-2’ के अपने किरदार को ले कर क्या कहना चाहेंगी?

मैं ने इस में एक सशक्त राजनेता विद्या का किरदार निभाया है. यह मेरे लिए एक बहुत ही ज्यादा चुनौतीपूर्ण किरदार है. निजी जीवन में मैं राजनीतिक पृष्ठभूमि से नहीं हूं. मैं निजी जीवन में विद्या जैसी नहीं हूं. मैं निजी जीवन में बहुत ही ज्यादा इमोशनल इंसान हूं, जबकि विद्या इमोशनल नहीं, बल्कि सख्त व सशक्त है. वह अपने आसपास के लोगों को भी ताकतवर बनाती है.

सवाल-फिल्म ‘सत्यमेव जयते-2’ में राजनेता विद्या को देख कर आम दर्शक या औरतें राजनीति से जुड़ने के संदर्भ में क्या सोचेंगी?

हर भारतीय अपने देश के लिए अंदर से एहसास करता है. जब वह देखता है कि कुछ नाइंसाफी हो रही है, तो वह सोचता है कि वह कुछ करे. फिर चाहे भ्रष्टाचार का ही मसला क्यों न हो. देश के लिए कुछ करने या राजनीति से जुड़ने की भावना फिल्म से नहीं बल्कि इंसान के अंदर से आती है. इंसान के अंदर से ही आवाज उठती है कि उसे समाज के लिए कुछ करना चाहिए. समाज में इस बुराई के खिलाफ आवाज उठा कर बदलाव लाना चाहिए.

मेरी राय में लोगों को खुद अपनी तरफ से इस दिशा में पहल करनी चाहिए. मैं देख रही हूं कि औरतें सिर्फ राजनीति ही नहीं हर क्षेत्र में बड़ी मजबूती के संग अपना झंडा गाड़ रही हैं. आप हमारी फिल्म इंडस्ट्री में ही देखिए औरतें अभिनय से ले कर लेखन, निर्देशन, नृत्य निर्देशन सहित हर विभाग में बेहतरीन काम कर रही हैं. राजनीति जगत में भी औरतों ने दमदार ढंग से अपना अस्तित्व बनाया है. यह युग औरतों के लिए सर्वश्रेष्ठ युग है.

सवाल-एक नागरिक के नाते किसी बात को ले कर आप को भी कोफ्त होती होगी. क्या उस पर इस फिल्म में बात की गई है?

मुझे भ्रष्टाचार को ले कर ही सब से ज्यादा कोफ्त होती है और इस फिल्म में उसी पर बात की गई है. जिस तरह से अदालत में मुकदमे लंबे समय तक चलते हैं, उस से मुझे कोफ्त होती है. हमारी फिल्म में कोर्ट केस को ले कर कोई बात नहीं की गई है. लेकिन फिल्म में भ्रष्टाचार के कई रूपों को ले कर बात की गई है. मुझे निजी स्तर पर लगता है कि जब आप किसी अदालत के मामले में या पुलिस के शिकंजे में आ जाते हैं, तो जबरदस्त भ्रष्टाचार नजर आता है.

छोटे से बड़े अफसर तक भ्रष्टाचार में लिप्त नजर आते हैं. यह बहुत दुख की बात है. बिना पैसा लिए आम नागरिक का काम न करना बहुत ही दुख की बात है. मगर यदि हम सभी खुद को भारतीय नागरिक समझें व देश को महत्त्व दें, तो भ्रष्टाचार पर लगाम लग सकती है.

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सवाल-नारी सशक्तीकरण की बातें काफी हो रही हैं, इस का असर फिल्म इंडस्ट्री पर हो रहा है?

मैं ने पहले ही कहा कि यह औरतों के लिए बहुत अच्छा समय है. हर क्षेत्र की तरह फिल्म इंडस्ट्री में भी औरतें काफी बढ़चढ़ कर बेहतरीन काम कर रही हैं. अब लड़कियां ज्यादा पढ़ रही हैं. सभी अपने बच्चों को शिक्षा दिला रहे हैं. औरतें नौकरी कर रही हैं. परिवार भी अब लड़कियों या औरतों को नौकरी या व्यवसाय करने के लिए बढ़ावा दे रहे हैं. समाज में काफी जागरूकता आ गई है. नारी सशक्तीकरण के ही चलते औरतें अपने सपनों को पूरा कर पा रही हैं.

सवाल-आप ने निर्देशन और सिनेमैटोग्राफी की शिक्षा ली. इस का अभिनय में कितना फायदा मिल रहा है?

अभिनय में तो हमारी जिंदगी के अनुभव मदद करते हैं. मैं इस क्षेत्र में 17 वर्ष की उम्र में आई थी. उस वक्त मैं कुछ भी नहीं जानती थी. अब मैं ने अपनी जिंदगी में कुछ ज्ञान अर्जित किया, कुछ अनुभव हासिल किए तो मेरे अंदर एक आत्मविश्वास पैदा हुआ. इसी आत्मविश्वास के चलते मैं कुछ अच्छा काम कर पा रही हूं. मेरी राय में इंसान की जिंदगी के अनुभव, उतारचढ़ाव उस की मदद करते हैं.

सवाल-इन दिनों ओटीटी प्लेटफौर्म जिस तरह से बढ़ रहे हैं, इस से सिनेमा को फायदा होगा या नुकसान?

मुझे नहीं लगता कि इस से सिनेमा को नुकसान होगा. कोविड-19 के समय जब हमारे पास मनोरंजन का कोई साधन नहीं था तब ओटीटी ही साधन बना. पर अब भी सिनेमाघर जा कर फिल्म देखना चाहते हैं तो ओटीटी व सिनेमाघर अपनीअपनी जगह रहेंगे.

सवाल-सोशल मीडिया पर आप सब से अधिक सक्रिय रहती हैं. आप कई बार विवादों में भी फंसीं. सोशल मीडिया को ले कर आप की सोच क्या है?

मेरी राय में लोगों से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया एक सशक्त माध्यम है. लोगों से सीधे बात करने का एक अच्छा जरीया है. रचनात्मक इंसान या कलाकार के तौर पर दर्शकों के साथ सीधे जुड़ाव होने से फायदा ही होता है. मैं ने म्यूजिक वीडियो का निर्देशन करने के साथसाथ अभिनय भी किया. उस के साथ भी लोग जुड़े. मैं तो सोशल मीडिया को अच्छा ही मानती हूं.

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‘महाराष्ट्राची गिरीशिखरे अवार्ड’ से नवाजे गए ये सेलेब्स, पढ़ें खबर

लंबे समय तक चले आंदोलन के बाद एक मई 1960 को मराठी भाषा के आधार पर ‘महाराष् ट्’राज्य का गठन हुआ था. अब साठ वर्ष पूरे होने पर ‘‘पीपुल्स आर्ट सेंटर’ की तरफ से हर क्षेत्र से चुनी गयी चालिस मराठी भाषी हस्तियों को ‘‘महाराष्ट्रची गिरी शिखरे पुरस्कार’’से नवाजा गया.मुंबई में बांदरा स्थित रंग शारदा सभागृह में 26 दिसंबर को महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सुरेश वाडेकर, उषा मंगेशकर, डॉ मीरा बोरवणकर, रोहिणी हतंगिड़ी, तेजस्विनी सावंत, भीमराव पंचाले, अशोक पतकी, अनंत कुलकर्णी,शशिकांत गरवारे,डॉ.आर के शेट्टी, माधव पवार आशा खाडिलकर सहित काफी हस्तियों को महाराष्ट्राची गिरीशिखरे अवार्ड से नवाजा.

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इन हस्तियों को अपने हाथों से ट्रॉफी देने के बाद राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सम्बोधित करते हुए कहा-‘‘मैं यहाँ सभी पुरस्कृत हस्तियों को बधाई देता हूँ.यह सभी अपने अपने क्षेत्रों के दिग्गज लोग हैं.जिन्हें भी सम्मानित किया गया न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि पूरा देश आप सभी पर गर्व महसूस करता है. समाज के कुछ लोग ऐसे होते हैं जो दूसरों के लिए उदाहरण पेश करते हैं. ऐसे ही लोगों को आज यह सम्मान दिया गया.पुरस्कार से प्रोत्साहन मिलता है.इसलिए समाज में अच्छा काम करने वालों का समय समय पर सम्मान किया जाना जरूरी होता है.  हम सब भारत माता की संतान हैं और अपने देश का नाम ऊंचा करने की दिशा में हम सबको कार्य करना चाहिए.पीपल स आर्ट सेंटर से जुड़े तमाम लोगों का मैं अभिनंदन करता हूँ.‘‘

1 मई 1960 को कोंकण, पश्चिमी महाराष्ट्र, विदर्भ और मराठवाड़ा के एक बहुभाषी राज्य मराठी भाषी लोगों के रूप में महाराष्ट्र के गठन तक लगभग डेढ़ दशक तक महाराष्ट्र का एक बहुमुखी इतिहास रहा है.इस शानदार कार्यक्रम में शास्त्रीय और लोक कलाकारों द्वारा रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पेश किए गए.

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