ग्लोइंग स्किन की है चाहत, तो डाइट में शामिल करें ये फूड्स

हमारी त्वचा बहुत ही नाजुक और संवेदनशील होती है. इस पर पर्यावरण का सीधा प्रभाव पड़ता है इसलिए हम को इस को स्वस्थ, साफ, चमकदार और जवान बनाए रखने के लिए अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है. इस के लिए हम लोशन, क्रीम आदि का उपयोग करते हैं, लेकिन अपने खानेपीने की आदतों में बदलाव नहीं लाते जिस के कारण त्वचा को स्वस्थ और जवां रखने में असमर्थ रहते हैं और असमय ही त्वचा पर झुर्रियां आ जाती हैं. ऐसे में इन परेशानियों से बचने के लिए स्किन को डिटौक्सीफाई करना जरूरी है.

इन सब्जियों और फलों को इस्तेमाल कर आप अपनी स्किन यानी त्वचा को चमकदार बना सकती हैं और चेहरे पर असमय आने वाली झुर्रियों से बच सकती हैं:

  1. ऐलोवेरा

चमकदार त्वचा के लिए ऐलोवेरा का उपयोग करना फायदेमंद होता है. यह झुर्रियों को कम कर मुहांसों की समस्या को ठीक करता है, साथ ही यह त्वचा को स्वस्थ और कोमल बना कर उसे नई चमक भी प्रदान करता है.

2. हल्दी

त्वचा के लिए हल्दी का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहता है, साथ ही इस में ऐंटीबैक्टीरियल, ऐंटीसैप्टिक और ऐंटीइनफ्लैमेटरी गुण होते हैं, जो मुंहासों को ठीक कर चेहरे की चमक को बरकरार रखने में मदद करते हैं.

3. पानी

चमकती त्वचा के लिए रोजाना कम से कम 8 से 10 गिलास पानी पीना फायदेमंद माना जाता है. यह शरीर से विषैले पदार्थोें को बाहर निकालने में मदद करता है, जिस से त्वचा में निखार आता है.

3. फल

फलों का सेवन भी त्वचा की चमक को बरकरार रख सकता है. विटामिन सी से युक्त फलों को अपने आहार में शामिल कर त्वचा की रक्षा कर सकती हैं और उसे चमकदार बना सकती है. फलों में ऐंटीऔक्सीडैंट्स होते हैं जो त्वचा को जवान बनाए रखने में मददगार होते हैं.

4. दही

दही कई प्रकार के गुणों से समृद्ध होता है. यही वजह है कि इस का सेवन न केवल स्वास्थ्य बल्कि त्वचा को भी फायदा पहुंचाता है. दही स्किन की इलास्टिसिटी को बूस्ट करता है, साथ ही आप चाहे तो दही का इस्तेमाल फेस पैक के तौर पर भी कर सकती हैं. यह त्वचा की  डिटौक्सीफिकेशन की प्रक्रिया में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस से शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और स्किन ग्लो करने लगती है.

5. ब्रोकली

ब्रोकली की गिनती सुपरफूड के रूप में की जाती है. यह न केवल ऐंटीऔक्सीडैंट बल्कि विटामिन सी से भी समृद्ध होती है. इस में जिंक और कौपर भी अच्छी मात्रा में मौजूद होते हैं. इस में मौजूद सभी पोषक तत्त्व त्वचा को हैल्दी बनाए रखते हैं. शरीर में कैल्सियम, आयरन और प्रोटीन की कमी पूरा करने के लिए ब्रोकली को अपने आहार में जरूर शामिल करना चाहिए. इस के अलावा ब्रोकली में संक्रमण से भी लड़ने की क्षमता होती है और यह इम्यूनिटी भी बढ़ाती है.

6. अनार

अनार को स्वास्थ्यवर्धक तो माना ही जाता है, साथ ही यह त्वचा में निखार लाने में भी मदद करता है. अनार में हाइपरपिगमैंटेशन के साथसाथ दागधब्बों को रोकने की क्षमता होती है. इस का ऐंटीऐजिंग गुण चेहरे की झुर्रियों को कम करने में मदद करता है. इस के अलावा शरीर में हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाने में अनार का जूस लाभकारी होता है जिस का स्किन टोन पर भी प्रभाव पड़ता है.

7. करेला

करेला भले ही स्वाद में कड़वा हो, लेकिन स्किन के ग्लो को बढ़ाने में यह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. इस में ऐंटीऔक्सीडैंट व ऐंटीपिगमैंटेशन प्रभाव मौजूद होता है, जो त्वचा की रक्षा करता है और जो स्किन के ग्लो को बनाए रखने में मदद करता है.

8. खीरा

खीरे का इस्तेमाल शुरू से ही स्किन के ग्लो को बढ़ाने और उसे टाइट करने के लिए किया जाता रहा है. इस का रस सिलिका से भरपूर होता है, जो रंगत निखारने और त्वचा में चमक लाने के लिए जाना जाता है. पानी से भरपूर खीरा त्वचा की नमी को भी बनाए रखता है.

9. ग्रीन टी

वजन घटाने के अलावा त्वचा की चमक निखारने के लिए भी ग्रीन टी का नियमित सेवन किया जा सकता है. इस में पौलीफेनोल्स नामक कंपाउंड मौजूद होता है, जो त्वचा में ब्लड सर्कुलेशन और औक्सीजन को बढ़ाने में मदद करता है. यह एक अच्छा ऐंटीऔक्सीडैंट्स भी है जो त्वचा को जवान बनाए रखता है.

10. नियमित व्यायाम करें

  •  नियमित व्यायाम शरीर को डिटौक्सीफाई करने में मदद करता है.
  • व्यायाम के कारण आने वाला पसीना टौक्सिन और इंप्यूरिटी को बाहर निकालता है.
  •  पसीना स्किन को डिटौक्सीफाई करने का अच्छा विकल्प है.
  • चेहरे की चमक को बढ़ाने के लिए हैल्दी डाइट के साथसाथ योगासन करना भी जरूरी है  इसलिए रोजाना सुबह उठ कर कपालभाति व अनुलोमविलोम जैसे प्राणायाम जरूर करें.

11. भरपूर नींद लें

  •  रात में ज्यादा देर तक फोन का उपयोग न करें क्योंकि यह आप को सोने के समय को खराब करता है.
  •  अपनी पसंद की किताब पढ़ें ताकि अच्छी नींद आ सके.
  • देर रात तक जागने से भी चेहरे की चमक फीकी पड़ सकती है. अगर ग्लोइंग या चमकदार स्किन पानी है तो कम से कम 8 घंटे की नींद जरूर लें.
  • किसी भी तनाव से बचें.ऐसे करें स्किन डिटौक्सीफाई
  • स्किन को डिटौक्स करने और शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने का सब से अच्छा तरीका नियमित रूप से ढेर सारा पानी पीना है. पानी की बोतल हमेशा अपने साथ रखें ताकि पूरा दिन पानी पी कर

12. खुद को हाइड्रेट कर सकें

  •  किसी भी खट्टे फल या खीरे के कुछ स्लाइस काट सकती हैं और इसे अपनी पानी की बोतल में  मिला सकती हैं ताकि पानी में हलका स्वाद घोल या जोड़ सकें और आप को विटामिन भी मिल सके, जो डिटौक्सीफाइंग प्रक्रिया में और मदद करता है.
  • अपने दिन की शुरूआत ग्रीन जूस से कर सकती हैं जिस में केला, खीरा और अनान्नास शामिल हैं.द्य रात में सोने से पहले और सुबह उठने के बाद अपने चेहरे और त्वचा को साफ करना जरूरी है ताकि सोते समय स्किन पर मौजूद गंदगी को दूर किया जा सके.
  • शरीर को स्वस्थ और जवान रखने के लिए शरीर को सिर्फ बाहर से ही साफ नहीं बल्कि अंदर की गंदगी को भी दूर करने के लिए शरीर को डिटौक्स करने की आवश्यकता होती है. इस के लिए कुछ खाद्य और पेयपदार्थों का सेवन करना, ज्यादा पानी पीना और हरी सब्जियां खाना बहुत जरूरी होता है एवं कुछ पदार्थों का त्याग करना पड़ता है जैसे शराब, तले पदार्थ, चीनी, रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोसैस्ड फूड आदि क्योंकि विषैले पदार्थों के कारण तनाव बढ़ जाता है.
  • स्किन के ग्लो को बढ़ाने के लिए चेहरे पर अधिक मात्रा में कैमिकल युक्त पदार्थों का इस्तेमाल न करें क्योंकि इन से त्वचा को नुकसान पहुंच सकता है.

 

क्या है पोस्टपार्टम डिप्रैशन, न्यू मौम्स के लिए खुद का रखें इस तरह ख्याल

विश्व में प्रसव के बाद लगभग 13% महिलाओं को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है, जो उन्हें परेशान कर देता है. प्रसव के तुरंत बाद होने वाले डिप्रैशन को पोस्टपार्टम डिप्रैशन कहा जाता है. भारत और अन्य विकासशील देशों में यह संख्या 20% तक है.  2020 में सीडीसी द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार यह सामने आया है कि 8 में से 1 महिला पोस्टपार्टम डिप्रैशन की शिकार होती है. विशेष रूप से टियर 2 और टियर 3 शहरों में  पोस्टपार्टम डिप्रैशन होने के चांसेज ज्यादा होते है.

इस संबंध में बैंगलुरु के मणिपाल हौस्पिटल की कंसलटैंट, ओब्स्टेट्रिक्स व गायनेकोलौजिस्ट डाक्टर हेमनंदीनी जयरामन बताती हैं कि महिलाओं में मानसिक समस्याएं होने पर वे अंदर से टूट जाती हैं. इन्हें परिवार के लोग भी समझ नहीं पाते हैं, जिस से वे खुद को बहुत ही असहाय महसूस करती हैं.

पोस्टपार्टम का मतलब बच्चे के जन्म के तुरंत बाद का समय होता है. प्रसव के तुरंत बाद महिलाओं में शारीरिक, मानसिक व व्यवहार में जो बदलाव आते हैं, उन्हें पोस्टपार्टम कहा जाता है. पोस्टपार्टम की अवस्था में पहुंचने से पहले 3 चरण होते हैं जैसे इंट्रापार्टम यानी प्रसव से पहले का समय और एंट्रेपार्टम यानी प्रसव के दौरान का समय तथा पोस्टपार्टम बच्चे के जन्म के बाद का समय होता है.

भले ही बच्चे के जन्म के बाद एक अनोखी खुशी होती है, लेकिन इस सब के बावजूद कई महिलाओं को पोस्टपार्टम का सामना करना पड़ता है. इस समस्या का इससे कोई संबंध नहीं होता है कि प्रसव नौर्मल डिलिवरी से हुआ है या फिर औपरेशन से. पोस्टपार्टम की समस्या महिलाओं में प्रसव के दौरान शरीर में होने वाले सामाजिक, मानसिक व हारमोनल बदलावों की वजह से होती है.

डिप्रैशन की वजह

पोस्टपार्टम मां व बच्चे दोनों को भी हो सकता है. न्यू मौम्स में कई हारमोनल व शारीरिक बदलाव देखे जाते हैं, जिस के कई लक्षण हैं- बारबार रोने को दिल करना, ज्यादा सोने का मन करना, कम खाने की इच्छा होना, बच्चे के साथ ठीक से संबंध बनाने में खुद को असमर्थ महसूस करना इत्यादि. इस डिप्रैशन की वजह से कई बार मां खुद को व बच्चे को भी नुकसान पहुंचा देती है. ऐसी स्थिति में मरीज के मस्तिष्क में कई बदलाव होते हैं, जिस से एन्सिएंटी के दौरे भी पड़ने लगते हैं.

प्रसव के बाद महिलाओं को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इस के लिए जरूरी है कि उन्हें बच्चे के साथसाथ खुद की भी खास तौर पर केयर करने की जरूरत होती है क्योंकि इस दौरान शरीर के कमजोर होने के साथ शरीर पर स्ट्रैच मार्क्स दिखना, बढ़ते तनाव की वजह से पीठ में दर्द होना, लगातार बालों का झड़ना, स्तनों के आकार में बदलाव होना जैसे बदलावों से मां को गुजरना पड़ता है. इस के साथ ही अगर वह वर्किंग है, तो उसे अपने कैरियर को जारी रखने की भी चिंता सताती रहती है.

परिवार का सहयोग

ऐसे में न्यू मौम्स की लाइफ में एक ही व्यक्ति पौजिटिविटी ला सकता है और वह है बच्चे का पिता क्योंकि जब न्यू मौम का शरीर कमजोर होता है और वह अपने नए जीवन के साथ जूझ रही होती है, तब आप का हैल्पफुल पार्टनर आप को हर तरह से सपोर्ट देने का काम करता है. जैसे सब हो जाएगा, मैं और मेरा पूरा परिवार तुम्हारे साथ है. ऐसी स्थिति में पोस्टपार्टम से जूझ रही महिला पार्टनर की बातों से पौजिटिव होने लगती है और उसे लगने भी लगता है कि अब वह बच्चे का ठीक से खयाल भी रख पाएगी यानी पार्टनर व परिवार के सहयोग से वह इस प्रौब्लम से उभर जाती है.

ऐक्सपर्ट डाक्टर्स की टीम महिलाओं को इस स्थिति से पूरी समझदारी व परिपक्वता से निबटने की सलाह देते हैं. विशेष रूप से जिन महिलाओं को जुड़वां या फिर दिव्यांग बच्चे होते हैं उन पर ऐक्सपर्ट डाक्टर्स के साथसाथ परिवारजनों को भी विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत होती है ताकि उन्हें इस स्थिति से उबरने में आसानी हो.

कई महिलाओं को यह पता भी नहीं होता कि वे डिप्रैशन से गुजर रही हैं. ऐसे में हमें उन्हें इस स्थिति से अवगत करवाना पड़ता है. पोस्टपार्टम डिप्रैशन का समय पर उपचार करना जरूरी होता है क्योंकि अगर इस स्थिति का समय रहते उपचार न किया जाए तो इस से महिला खुद के साथसाथ बच्चे पर वह ध्यान केंद्रित नहीं कर पाती है. इस के अलावा वह बच्चे की जरूरतों को भी समझने में असमर्थ होती है, जबकि जन्म के बाद बच्चे को मां की ही सबसे ज्यादा जरूरत होती है. इसलिए समय पर ट्रीटमैंट जरूरी है.

मेरे पति का औफिस में अफेयर चल रहा है, मुझे क्या करना चाहिए?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं शादीशुदा गृहिणी हूं. पति स्मार्ट व हैंडसम हैं और अपनी उम्र से काफी छोटे दिखते हैं. वे सरकारी महकमे में अधिकारी हैं. 2 बेटे हैं जो अपनेअपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन जी रहे हैं. मेरी समस्या यह है कि पिछले 1 साल से पति ने मेरे साथ सैक्स नहीं किया, हालांकि हमारे में कोई विवाद नहीं है. 1-2 लोगों ने मुझे बताया है कि उन के अपनी सहकर्मी से संबंध हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

जैसाकि आप ने बताया कि आप दोनों के बीच कोई विवाद नहीं है पर पति सैक्स में दिलचस्पी नहीं लेते तो आप को इस की वजह जानने की कोशिश करनी होगी.

संभव है कि वे बतौर अधिकारी काम के बो झ तले दबे हों और तनाव में रहते हों या फिर उन्हें कोई अंदरूनी परेशानी हो. वक्त और मूड देख कर आप को पति से बात करनी चाहिए.

रही बात उन का अपनी सहकर्मी से संबंध की, तो बातों पर भरोसा करना दांपत्य जीवन में जहर ही घोलता है. दूसरों की कही बातों पर भरोसा न करें.

वैसे भी विवाहेतर संबंध ज्यादा दिनों तक नहीं टिकते. देरसवेर इस रिश्ते पर विराम लग ही जाता है.

बावजूद इस के अगर आप अपने रिश्ते में जान फूंकना चाहती हैं तो पति के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताएं, उन्हें भरपूर प्यार दें, कामकाज के बारे में पूछें, साथ घूमने जाएं.

हां, अगर उन में किसी शारीरिक विकार के लक्षण दिखें तो डाक्टर से परामर्श लें.

ये भी पढ़ें

रात के 10 बज रहे थे. 10वीं फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट से सोम कभी इस खिड़की से नीचे देखता तो कभी उस खिड़की से. उस की पत्नी सान्वी डिनर कर के नीचे टहलने गई थी. अभी तक नहीं आई थी. उन का 10 साल का बेटा धु्रव कार्टून देख रहा था. सोम अभी तक लैपटौप पर ही था, पर अब बोर होने लगा तो घर की चाबी ले कर नीचे उतर गया.

सोसाइटी में अभी भी अच्छीखासी रौनक थी. काफी लोग सैर कर रहे थे. सोम को सान्वी कहीं दिखाई नहीं दी. वह घूमताघूमता सोसाइटी के शौपिंग कौंप्लैक्स में भी चक्कर लगा आया. अचानक उसे दूर जहां रोशनी कम थी, सान्वी किसी पुरुष के साथ ठहाके लगाती दिखी तो उस का दिमाग चकरा गया. मन हुआ जा कर जोर का चांटा सान्वी के मुंह पर मारे पर आसपास के माहौल पर नजर डालते हुए सोम ने अपने गुस्से पर कंट्रोल कर उन दोनों के पीछे चलते हुए आवाज दी, ‘‘सान्वी.’’

सान्वी चौंक कर पलटी. चेहरे पर कई भाव आएगए. साथ चलते पुरुष से तो सोम खूब परिचित था ही. सो उसे मुसकरा कर बोलना ही पड़ा, ‘‘अरे प्रशांत, कैसे हो?’’

प्रशांत ने फौरन हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया, ‘‘मैं ठीक हूं, तुम सुनाओ, क्या हाल है?’’

सोम ने पूरी तरह से अपने दिलोदिमाग पर काबू रखते हुए आम बातें जारी रखीं. सान्वी चुप सी हो गई थी. सोम मौसम, सोसाइटी की आम बातें करने लगा. प्रशांत भी रोजमर्रा के ऐसे विषयों पर बातें करता हुआ कुछ दूर साथ चला. फिर ‘घर पर सब इंतजार कर रहे होंगे’ कह कर चला गया.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अबोला नहीं : बेवजह के शक ने जया और अमित के बीच कैसे पैदा किया तनाव

क्यारियों में खिले फूलों के नाम जया याद ही नहीं रख पाती, जबकि अमित कितनी ही बार उन के नाम दोहरा चुका है. नाम न बता पाने पर अमित मुसकरा भर देता.

‘‘क्या करें, याद ही नहीं रहता,’’ कह कर जया लापरवाह हो जाती. उसे नहीं पता था कि ये फूलों के नाम याद न रखना भी कभी जिंदगी को इस अकेलेपन की राह पर ला खड़ा करेगा.

‘‘तुम से कुछ कहने से फायदा भी क्या है? तुम फूलों के नाम तक तो याद नहीं रख पातीं, फिर मेरी कोई और बात तुम्हें क्या याद रहेगी?’’ अमित कहता.

छोटीछोटी बातों पर दोनों में झगड़ा होने लगा था. एकदूसरे को ताने सुनाने का कोई भी मौका वे नहीं छोड़ते थे और फिर नाराज हो कर एकदूसरे से बोलना ही बंद कर देते. बारबार यही लगता कि लोग सही ही कहते हैं कि लव मैरिज सफल नहीं होती. फिर दोनों एकदूसरे पर आरोप लगाने लगते.

‘‘तुम्हीं तो मेरे पीछे पागल थे. अगर तुम मेरे साथ नहीं रहोगी, तो मैं अधूरा रह जाऊंगा, बेसहारा हो जाऊंगा. इतना सब नाटक करने की जरूरत क्या थी?’’ जया चिल्लाती.

अमित भी चीखता, ‘‘बिना सहारे की  जिंदगी तो मेरी ही थी और जो तुम कहती थीं कि मुझे हमेशा सहारा दिए रहना वह क्या था? नाटक मैं कर रहा था या तुम? एक ओर मुझे मिलने से मना करतीं और दूसरी तरफ अगर मुझे 15 मिनट की भी देरी हो जाता तो परेशान हो जाती थीं. मैं पागल था तो तुम समझदार बन कर अलग हो जाती.’’

जया खामोश हो जाती. जो कुछ अमित ने कहा था वह सही ही था. फिर भी उस पर गुस्सा भी आता. क्या अमित उस के पीछे दीवाना नहीं था? रोज सही वक्त पर आना, साथ में फूल लाना और कभीकभी उस का पसंदीदा उपहार लाना और भी न जाने क्याक्या. लेकिन आज दोनों एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप लगा रहे हैं, दोषारोपण कर रहे हैं. कभीकभी तो दोनों बिना खाएपिए ही सो जाते हैं. मगर इतनी किचकिच के बाद नींद किसे आ सकती है. रात का सन्नाटा और अंधेरा पिछली बातों की पूरी फिल्म दिखाने लगता.

जया सोचती, ‘अमित कितना बदल गया है. आज सारा दोष मेरा हो गया जैसे मैं ही उसे फंसाने के चक्कर में थी. अब मेरी हर बात बुरी लगती है. उस का स्वाभिमान है तो मेरा भी है. वह मर्द है तो चाहे जो करता रहे और मैं औरत हूं, तो हमेशा मैं ही दबती रहूं? अमितजी, आज की औरतें वैसी नहीं होतीं कि जो नाच नचाओगे नाचती रहेंगी. अब तो जैसा दोगे वैसा पाओगे.’

उधर अमित सोचता, ‘क्या होता जा रहा है जया को? चलो मान लिया मैं ही उस के पीछे पड़ा था, लेकिन इस का यह मतलब तो नहीं कि वह हर बात में अपनी धौंस दिखाती रहे. मेरा भी कुछ स्वाभिमान है.’

फिर भी दोनों कोई रास्ता नहीं निकाल पाते. आधी रात से भी ज्यादा बीतने तक जागते रहते हैं, पिछली और वर्तमान जिंदगी की तुलना करते हुए मन बुझता ही जाता और चारों ओर अंधेरा हो जाता. फिर रंगबिरंगी रेखाएं आनेजाने लगती हैं, फिर कुछ अस्पष्ट सी ध्वनियां, अस्पष्ट से चेहरे. शायद सपने आने लगे थे. उस में भी पुराना जीवन ही घूमफिर कर दिखता है. वही जीवन, जिस में चारों ओर प्यार ही प्यार था, मीठी बातें थीं, रूठनामनाना था, तानेउलाहने थे, लेकिन आज की तरह नहीं. आज तो लगता है जैसे दोनों एकदूसरे के दुश्मन हैं फिर नींद टूट जाती और भोर गए तक नहीं आती.

सुबह जया की आंखें खुलतीं तो सिरहाने तकिए पर एक अधखिला गुलाब रखा होता. शादी के बाद से ही यह सिलसिला चला आ रहा था. आज भी अमित अपना यह उपहार देना नहीं भूला. जया फूल को चूम कर ‘कितना प्यारा है’ सोचती.

अमित ने तकिए पर देखा, फूल नहीं था, समझ गया, जया ने अपने जूड़े में खोंस लिया होगा. उस के दिए फूल की बहुत हिफाजत करती है न.

तभी जया चाय की ट्रे लिए आ गई. उस के चेहरे पर कोई तनाव नहीं था. सब कुछ सामान्य लग रहा था. अमित भी सहज हो कर मुसकराया है. जया के केशों में फूल बहुत प्यारा लग रहा था. अमित चाहता था कि उसे धीरे से सहला दे, फिर रुक गया, कहीं जया नाराज न हो जाए.

अमित को मुसकराते देख जया मन ही मन बोली कि शुक्र है मूड तो सही लग रहा है.

तैयार हो कर अमित औफिस चला गया. जया सारा काम निबटा कर जैसे ही लेटने चली, फोन की घंटी बजी. जया ने फोन उठाया. अमित का सेक्रेटरी बोल रहा था, ‘‘मैडम, साहब आज आएंगे नहीं क्या?’’

जया चौंक गई, अजीब सी शंका हुई. कहीं कोई ऐक्सीडैंट… अरे नहीं, क्या सोचने लगी. संभल कर जवाब दिया, ‘‘यहां से तो समय से ही निकले थे. ऐसा करो मिस कालिया से पूछो कहीं कोई और एप्वाइंटमैंट…’’

सेक्रेटरी की आवाज आई, ‘‘मगर मिस कालिया भी तो नहीं आईं आज.’’

जया उधेड़बुन में लग गई कि अमित कहां गया होगा. सेक्रेटरी बीचबीच में सूचित करता रहा कि साहब अभी तक नहीं आए, मिस कालिया भी नहीं.

बहुत सुंदर है निधि कालिया. अपने पति से अनबन हो गई है. उस की बात तलाक तक आ पहुंची है. उसे जल्द ही तलाक मिल जाएगा. इसीलिए सब उसे मिस कालिया कहने लगे हैं. उस का बिंदास स्वभाव ही सब को उस की ओर खींचता है. कहीं अमित भी…

सेके्रटरी का फिर फोन आया कि साहब और कालिया नहीं आए.

यह सेके्रटरी बारबार कालिया का नाम क्यों ले रहा है? कहीं सचमुच अमित मिस कालिया के साथ ही तो नहीं है? सुबह की शांति व सहजता हवा हो चुकी थी.

शाम को अमित आया तो काफी खुश दिख रहा था. वह कुछ बोलना चाह रहा था, मगर जया का तमतमाया चेहरा देख कर चुप हो गया. फिर कपड़े बदल कर बाथरूम में घुस गया. अंदर से अमित के गुनगुनाने की आवाज आ रही थी. जया किचन में थी. जया लपक कर फिर कमरे में आ गई. फर्श पर सिनेमा का एक टिकट गिरा हुआ था. उस के हाथ तेजी से कोट की जेबें टटोलने लगे. एक और टिकट हाथ में आ गया. जया गुस्से से कांपने लगी कि साहबजी पिक्चर देख रहे थे कालिया के साथ और अभी कुछ कहो तो मेरे ऊपर नाराज हो जाएंगे. अरे मैं ही मूर्ख थी, जो इन की चिकनीचुपड़ी बातों में आ गई. यह तो रोज ही किसी न किसी से कहता होगा कि तुम्हारे बिना मैं बेसहारा हो जाऊंगा.

तभी अमित बाथरूम से बाहर आया. जया का चेहरा देख कर ही समझ गया कि अगर कुछ बोला तो ज्वालामुखी फूट कर ही रहेगा. अमित बिना वजह इधरउधर कुछ ढूंढ़ने लगा. जया चुपचाप ड्राइंगरूम में चली गई. धीरेधीरे गुस्सा रुलाई में बदल गया और उस ने वहीं सोफे पर लुढ़क कर रोना शुरू कर दिया.

अमित की समझ में कुछ नहीं आ रहा था, फिर अब दोनों के बीच उतनी सहजता तो रह नहीं गई थी कि जा कर पूछता क्या हुआ है. वह भी बिस्तर पर आ कर लेट गया. कैसी मुश्किल थी. दोनों ही एकदूसरे के बारे में जानना चाहते थे, मगर खामोश थे. जया वहीं रोतेरोते सो गई. अमित ने जा कर देखा, मन में आया इस भोले से चेहरे को दुलार ले, उस को अपने सीने में छिपा कर उस से कहे कि जया मैं सिर्फ तेरा हूं, सिर्फ तेरा.

मगर एक अजीब से डर ने उसे रोक दिया. वहीं बैठाबैठा वह सोचता रहा, ‘कितनी मासूम लग रही है. जब गुस्से से देखती है तो उस की ओर देखने में भी डर लगने लगता है.’

तभी जया चौंक कर जग गई. अमित ने सहज भाव से पूछा, ‘‘जया, तबीयत ठीक नहीं लग रही है क्या?’’

‘‘जी नहीं, मैं बिलकुल अच्छी हूं.’’

तीर की तरह जया ड्राइंगरूम से निकल कर बैडरूम में आ कर बिस्तर पर निढाल हो गई. अमित भी आ कर बिस्तर के एक कोने में बैठ गया. सारा दिन कितनी हंसीखुशी से बीता था, लेकिन घर आते ही… फिर भी अमित ने सोच लिया कि थोड़ी सी सावधानी उन के जीवन को फिर हंसीखुशी से भर सकती है और फिर कुछ निश्चय कर वह भी करवट बदल कर सो गया.

दोनों के बीच दूरियां दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही थीं, लेकिन वे इन दूरियों को कम करने की कोई कोशिश ही नहीं करते. कोशिश होती भी है तो कम होने के बजाय बढ़ती ही जाती है. यह नाराज हो कर अबोला कर लेना संबंधों के लिए कितना घातक होता है. अबोला की जगह एकदूसरे से खुल कर बात कर लेना ही सही होता है. लेकिन ऐसा हो कहां पाता है. जरा सी नोकझोंक हुई नहीं कि बातचीत बंद हो जाती है. इस मौन झगड़े में गलतफहमियां बढ़ती हैं व दूरी बढ़ती जाती है.

लगभग 20-25 दिन हो गए अमित और जया में अबोला हुए. दोनों को ही अच्छा नहीं लग रहा था. लेकिन पहल कौन करे. दोनों का ही स्वाभिमान आड़े आ जाता.

उस दिन रविवार था. सुबह के 9 बज रहे होंगे कि दरवाजे की घंटी बजी.

‘कौन होगा इस वक्त’, यह सोचते हुए जया ने दरवाजा खोला तो सामने मिस कालिया और सुहास खड़े थे.

‘‘मैडम नमस्ते, सर हैं क्या?’’ कालिया ने ही पूछा.

बेमन से सिर हिला कर जया ने हामी भरी ही थी कि कालिया धड़धड़ाती अंदर घुस गई, ‘‘सर, कहां हैं आप?’’ कमरे में झांकती वह पुकार रही थी.

सुहास भी उस के पीछे था. तभी अमित

ने बालकनी से आवाज दी, ‘‘हां, मैं यहां हूं. यहीं आ जाओ. जया, जरा सब के लिए चाय बना देना.’’

नाकभौं चढ़ाती जया चाय बनाने किचन में चली गई. बालकनी से अमित, सुहास और कालिया की बातें करने, हंसने की आवाजें आ रही थीं, लेकिन साफसाफ कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. जया चायबिस्कुट ले कर पहुंची तो सब चुप हो गए. किसी ने भी उसे साथ बैठने के लिए नहीं कहा. उसे ही कौन सी गरज पड़ी है. चाय की टे्र टेबल पर रख कर वह तुरंत ही लौट आई और किचन के डब्बेबरतन इधरउधर करने लगी.

मन और कान तो उन की बातों की ओर लगे थे.

थोड़ी देर बाद ही अमित किचन में आ कर बोला, ‘‘मैं थोड़ी देर के लिए इन लोगों के साथ बाहर जा रहा हूं,’’ और फिर शर्ट के बटन बंद करते अमित बाहर निकल गया.

कहां जा रहा, कब लौटेगा अमित ने कुछ भी नहीं बताया. जया जलभुन गई. दोनों के बीच अबोला और बढ़ गया. इस झगड़े का अंत क्या था आखिर?

हफ्ते भर बाद फिर कालिया और सुहास आए. कालिया ने जया को दोनों कंधों से थाम लिया, ‘‘आप यहां आइए, सर के पास बैठिए. मुझे आप से कुछ कहना है.’’

बुत बनी जया को लगभग खींचती हुई वह अमित के पास ले आई और उस की बगल में बैठा दिया. फिर अपने पर्स में से एक कार्ड निकाल कर उस ने अमित और जया के चरणों में रख दिया और दोनों के चरणस्पर्श कर अपने हाथों को माथे से लगा लिया.

‘‘अरे, अरे, यह क्या कर रही हो, कालिया? सदा खुश रहो, सुखी रहो,’’ अमित बोला तो जया की जैसे तंद्रा भंग हो गई.

कैसा कार्ड है यह? क्या लिखा है इस में? असमंजस में पड़ी जया ने कार्ड उठा लिया. सुहास और निधि कालिया की शादी की 5वीं वर्षगांठ पर होने वाले आयोजन का वह निमंत्रणपत्र था.

निधि कालिया चहकते हुए बोली, ‘‘मैडम, यह सब सर की मेहनत और आशीर्वाद का परिणाम है. सर ने कोशिश न की होती तो आज 5वीं वर्षगांठ मनाने की जगह हम तलाक की शुरुआत कर रहे होते. हम ने लव मैरिज की थी, लेकिन सुहास के मम्मीपापा को मैं पसंद नहीं आई. मेरे मम्मीपापा भी मेरे द्वारा लड़का खुद ही पसंद कर लेने के कारण अपनेआप को छला हुआ महसूस कर रहे थे. बिना किसी कारण दोनों परिवार अपनी बहू और अपने दामाद को अपना नहीं पा रहे थे. उन्होंने हमारे छोटेमोटे झगड़ों को खूब हवा दी, उन्हें और बड़ा बनाते रहे, बजाय इस के कि वे लोग हमें समझाते, हमारी लड़ाइयों की आग में घी डालते रहे. छोटेछोटे झगड़े बढ़तेबढ़ते तलाक तक आ पहुंचे थे.

‘‘सर को जब मालूम हुआ तो उन्होंने एड़ीचोटी का जोर लगा दिया ताकि हमारी शादी न टूटे. 1-2 महीने पहले उन्होंने हमें अलगअलग एक सिनेमा हाल में बुलाया और एक फिल्म के 2 टिकट हमें दे कर यह कहा कि चूंकि आप नहीं आ रहीं इसलिए वे भी फिल्म नहीं देखना चाहते. टिकटें बेकार न हों, इसलिए उन्होंने हम से फिल्म देखने का आग्रह किया. भले ही मैं और सुहास अलग होने वाले थे, लेकिन हम दोनों ही सर का बहुत आदर करते हैं, इसलिए दोनों ही मना नहीं कर पाए.

‘‘फिल्म शुरू हो चुकी थी इसलिए कुछ देर तो हमें पता नहीं चला. थोड़ी देर बाद समझ में आया कि सिनेमाहाल करीबकरीब खाली ही था. लेकिन सिनेमाहाल के उस अंधेरे में हमारा सोया प्यार जाग उठा. फिल्म तो हम ने देखी, सारे गिलेशिकवे भी दूर कर लिए. हम ने कभी एकदूसरे से अपनी शिकायतें बताई ही नहीं थीं, बस नाराज हो कर बोलना बंद कर देते थे. जितनी देर हम सिनेमाहाल में थे सर ने हमारे मम्मीपापा से बात की, उन्हें समझाया तो वे हमें लेने सिनेमाहाल तक आ गए. फिर हम सब एक जगह इकट्ठे हुए एकदूसरे की गलतफहमियां, नाराजगियां दूर कर लीं. मैं ने और सुहास ने भी अपनेअपने मम्मीपापा और सासससुर से माफी मांग ली और भरोसा दिलाया कि हम उन के द्वारा पसंद की गई बहूदामाद से भी अच्छे साबित हो कर दिखा देंगे.

‘‘उस के बाद से कोर्ट में चल रहे तलाक के मुकदमे को सुलहनामा में बदलने में सर ने बहुत मदद की. आज इन की वजह से ही हम दोनों फिर एक हो गए हैं, हमारा परिवार भी हमारे साथ है, सब से बड़ी खुशी की बात तो यही है. परसों हम अपनी शादी की 5वीं वर्षगांठ बहुत धूमधाम से मनाने जा रहे हैं, केवल सर के आशीर्वाद और प्रयास से ही. आप दोनों जरूर आइएगा और हमें आशीर्वाद दीजिएगा.’’

निधि की पूरी बात सुन कर जया का तो माथा ही घूमने लगा था कि कितना उलटासीधा सोचती रही वह, निधि कालिया और अमित को ले कर. लेकिन आज सारा मामला ही दूसरा निकला. कितना गलत सोच रही थी वह.

‘‘हम जरूर आएंगे. कोई काम हो तो हमें बताना,’’ अमित ने कहा तो निधि और सुहास ने झुक कर उन के पांव छू लिए और चले गए.

जया की नजरें पश्चात्ताप से झुकी थीं, लेकिन अमित मुसकरा रहा था.

‘आज भी अगर मैं नहीं बोली तो बात बिगड़ती ही जाएगी,’ सोच कर जया ने धीरे से कहा, ‘‘सौरी अमित, मुझे माफ कर दो. पिछले कितने दिनों से मैं तुम्हारे बारे में न जाने क्याक्या सोचती रही. प्लीज, मुझे माफ कर दो.’’

अमित ने उसे बांहों में भर लिया, ‘‘नहीं जया, गलती सिर्फ तुम्हारी नहीं मेरी भी है. मैं समझ रहा था कि तुम सब कुछ गलत समझ रही हो, फिर भी मैं ने तुम्हें कुछ बताने की जरूरत नहीं समझी. न बताने के पीछे एक कारण यह भी था कि पता नहीं तुम पूरी स्थिति को ठीक ढंग से समझोगी भी या नहीं. अगर मैं ने तुम्हें सारी बातें सिलसिलेवार बताई होतीं, तो यह समस्या न खड़ी होती.

‘‘दूसरे का घर बसातेबसाते मेरा अपना घर टूटने के कगार पर खड़ा हो गया था. लेकिन उन दोनों को समझातेसमझाते मुझे भी समझ में आ गया कि पतिपत्नी के बीच सारी बातें स्पष्ट होनी चाहिए. कुछ भी हो जाए, लेकिन अबोला नहीं होना चाहिए. जो भी समस्या हो, एकदूसरे से शिकायतें हों, सभी आपसी बातचीत से सुलझा लेनी चाहिए वरना बिना बोले भी बातें बिगड़ती चली जाती हैं. पहले भी हमारे छोटेमोटे झगड़े इसी अबोले के कारण विशाल होते रहे हैं. वादा करो आगे से हम ऐसा नहीं होने देंगे,’’ अमित ने कहा तो जया ने भी स्वीकृति में गरदन हिला दी.

इन महिलाओं के बेहद करीब थे Mahatma Gandhi, ‘सरला देवी’ को माना था आध्यात्मिक पत्नी

महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ऐसी शख्सियत हैं, जिनके बारे में सिर्फ भारत ही नहीं विदेशों में भी उनके बारे में अध्ययन किया जाता है. दुनियाभर में गांधीजी बापू के नाम से प्रसिद्ध हैं. इस दुनिया में जीवित न रहते हुए भी गांधीजी हमेशा के लिए अमर हैं. कल देशभर में महात्मा गांधी का जन्मदिन गांधी जयंती के रूप में मनाया जाएगा. इस दिन हर साल पूरे देश में सार्वजनिक अवकाश रहता है.

किसी से ये बात छिपी नहीं है कि देश को आजाद कराने में महात्मा गांधी का कितना बड़ा योगदान था. देश की आजादी के लिए सत्य और अहिंसा को भी हथियार बनाया जा सकता है, ये बात कोई इस महापुरुष से सिखें. अंग्रेजों के चंगुल से देश को आजाद कराने में गांधीजी ने जो भूमिका निभाई, इस बात को भारत कभी नहीं भुला सकता है.

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में हुआ था. 78 साल की उम्र में नाथूराम गोडसे ने गोली चलाकर उन्हें मार दिया. बताया जाता है कि जब उनकी हत्या हुई तो उनके साथ कुछ महिलाएं भी थीं. महात्मा गांधी हमेशा अपने करीबियों से घिरे रहते थे. इस भींड़ में कुछ महिलाएं भी शामिल थीं. जो गांधीजी की विचारों से बेहद प्रभावित थीं. इनकी जिंदगी में महात्मा गांधी के विचारों ने गहरा असर किया. ये महिलाएं भी गांधीजी के उसी रास्ते पर चलीं. आइए जानते हैं. गांधी जयंती के मौके पर बापू के जीवन से जुड़ी महिलाओं के बारे में…

मनु गांधी

कहा जाता है कि बहुत कम उम्र में ही मनु महात्मा गांधी के रास्ते पर चल पड़ी थीं. वह बापू के दूर की रिश्तेदार थीं. जब मनु उनके पास गई थीं तो महात्मा गांधी काफी बूढ़े हो चुके थे. तब मनु ने बापू के बूढ़े शरीर को सहारा दिया. उन दिनों बापू मनु के कंधे का सहारा लेकर चलते थे. गांधीजी के साथ मनु साल 1928 से लेकर उनके आखिरी दिनों में भी साथ रही थीं.

मीराबेन

मेडेलीन यानी मीराबेन ब्रिटिश एडमिरल सर एडमंड स्लेड की बेटी थीं. एक अफसर की बेटी होने के नाते उनकी जिंदगी अनुशासन में गुजरी. उनका संगीत में बहुत दिलचस्पी था. उन्होंने कई संगीतकारों पर लिखा. वह महात्मा गांधी से इतनी प्रभावित थीं कि उन्होंने बायोग्राफी भी लिख डाली.

मेडलीन ने महात्मा गांधी को चिट्ठी लिखकर अपने अनुभवों के बारे में बताया और गांधीजी के आश्रम जाने की इच्छा जाहिर की. वह अक्टूबर 1925 में मुंबई के रास्ते अहमदाबाद पहुंचीं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक मेडेलीन ने गांधीजी से अपनी पहली मुलाकात के बारे में इस तरह बताया- ‘जब मैं वहां दाखिल हुई तो सामने से एक दुबला शख्स सफेद गद्दी से उठकर मेरी तरफ बढ़ रहा था. मैं जानती थी कि ये शख्स बापू थे. मैं हर्ष और श्रद्धा से भर गई थी. मुझे बस सामने एक दिव्य रौशनी दिखाई दे रही थी. मैं बापू के पैरों में झुककर बैठ जाती हूं. बापू मुझे उठाते हैं और कहते हैं- तुम मेरी बेटी हो.’ मेडेलिन को नाम मीराबेन के नाम से जाना जाता है.

सरला देवी चौधरानी

सरला देवी रविंद्रनाथ टैगोर की भतीजी भी थी. वह भी गांधीजी के बेहद करीब थीं. सरला देवी संगीत और लेखन प्रेमी थीं. गांधी और सरला ने खादी के प्रचार के लिए देशा का दौरा किया. एक रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि लाहौर में गांधीजी सरला के घर पर रुके थे. उस समय सरला के स्वतंत्रता सेनानी पति रामभुज दत्त चौधरी जेल में थे. ये वो दौर था जब गांधीजी और सरला दोनों एकदूसरे के बेहद करीब रहें. लेकिन बाद गांधीजी ने सरला से खुद दूरी बना ली. दोनों के रिश्तों की खबर बाहर आने लगी. गांधी सरला को अपनी ‘आध्यात्मिक पत्नी’ भी बताते थे. सरला गांधीजी के साथ 1872 से लेकर 1945 तक रहीं थीं.
सुशीला प्यारेलाल की बहन थीं. महादेव देसाई के बाद गांधी के सचिव बने प्यारेलाल पंजाबी परिवार से थे.

डा सुशीला नय्यर

महात्मा गांधी के सचिव महादेव देसाई के बाद प्यारेलाल बने. जो पंजाबी परिवार से ताल्लुक रखते थे. सुशीला प्यारेलाल की बहन थीं. दोनों भाईबहन गांधीजी के बहुत बड़े समर्थक थे. उनकी मां ने इस बात को लेकर विरोध भी किया था लेकिन इसके बावजूद भी दोनों महात्मा गांधी के पास आए थे. बाद में इनकी मां भी गांधीजी से जुड़ गई.

सुशीला ने डौक्टरी की पढ़ाई की थीं. इसके बाद वह महात्मा गांधी की निजी डौक्टर बनीं. गांधीजी के आखिरी दिनों में सुशीला भी उनके साथ रहीं थीं. मनु और आभा के अलावा अक्सर गांधी जिसके कंधे पर अपने बूढ़े हाथ रखकर सहारा लेते, उनमें सुशीला भी शामिल थीं.

अर्पण : क्यों रो पड़ी थी अदिति

लेखिका- स्नेहा सिंह

आदमकद आईने के सामने खड़ी अदिती स्वयं के ही प्रतिबिंब को मुग्धभाव से निहार रही थी. उस ने कान में पहने डायमंड के इयरिंग को उंगली से हिला कर देखा. खिड़की से आ रही धूप इयरिंग से रिफ्लैक्ट हो कर उस के गाल पर पड़ रही थी, जिस से वहां इंद्रधनुष चमक रहा था. अदिती ने आईने में दिखाई देने वाले अपने प्रतिबिंब पर स्नेह से हाथ फेरा. फिर वह अचानक शरमा सी गई. इसी के साथ वह बड़बड़ाई, ‘‘वाऊ, आज तो हिमांशु मुझे जरूर कौंप्लीमैंट देगा.’’

फिर उस के मन में आया कि यदि यह बात मां सुन लेतीं, तो कहती कि हिमांशु कहती है? वह तेरा प्रोफैसर है.

‘‘सो ह्वाट?’’ अदिती ने कंधे उचकाए और आईने में स्वयं को देख कर एक बार फिर मुसकराई. अदिती शायद कुछ देर तक स्वयं को इसी तरह आईने में देखती रहती, लेकिन तभी मां की आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘अदिती, खाना तैयार है.’’

‘‘आई मम्मी,’’ कह कर अदिती बाल ठीक करते हुए डाइनिंग टेबल की ओर भागी.

अदिती का यह लगभग रोज का कार्यक्रम था. प्रोफैसर साहब के यहां जाने से पहले आईने के सामने वह अपना अधिक से अधिक समय स्वयं को निहारते हुए बिताती थी. शायद आईने को भी ये सब अच्छा लगने लगा था, इसलिए वह भी अदिती को थोड़ी देर बांधे रखना चाहता था. इसीलिए तो वह उस का इतना सुंदर प्रतिबिंब दिखाता था कि अदिती स्वयं पर ही मुग्ध हो कर निहारती रहती.

आईना ही क्यों अदिती को तो जो भी देखता, देखता ही रह जाता. वह थी ही इतनी सुंदर. छरहरी, गोरी काया, बड़ीबड़ी मछली काली आंखें, घने काले लंबे रेशम जैसे बाल. वह हंसती, तो सुंदरता में चार चांद लगाने वाले उस के गालों में गड्ढे पड़ जाते थे.

उस की मम्मी उस से अकसर कहती थीं, ‘‘तू एकदम अपने पापा जैसी लगती है. एकदम उन की कार्बन कौपी.’’

इतना कहतेकहते अदिती की मम्मी की आंखें भर आतीं और वे दीवार पर लटक रही अदिती के पापा की तसवीर को देखने लगतीं. अदिती जब 2 साल की थी, तभी उस के पापा का देहांत हो गया था. अदिती को तो अपने पापा का चेहरा भी ठीक से याद नहीं था. उस की मम्मी जिस स्कूल में नौकरी करती थीं, उसी स्कूल में अदिती की पढ़ाई हुई थी. अदिती स्कूल की ड्राइंग बुक में जब भी अपने परिवार का चित्र बनाती, उस में नानानानी, मम्मी और स्वयं होती थी. अदिती के लिए उस का इतना ही परिवार था.

अदिती के लिए पापा यानी घर दीवार पर लटकती तसवीर से अधिक कुछ नहीं थे. कभी मम्मी की आंखों से पानी बन कर बहते, तो कभी अलबम के ब्लैक ऐंड ह्वाइट तसवीर में स्वयं की गोद में उठाए खड़ा पुरुष यानी पापा. अदिती की क्लासमेट अकसर अपनेअपने पापा के बारे में बातें करतीं.

टैलीविजन के विज्ञापनों में पापा के बारे में देख कर अदिती शुरूशुरू में कच्ची उम्र में पापा को मिस करती थी, परंतु धीरेधीरे उस ने मान लिया कि उस के घर में 2 स्त्रियां वह और उस की मम्मी रहती हैं और आगे भी वही दोनों रहेंगी.

बिना बाप की छत्रछाया में पलीबढ़ी अदिती कालेज की अपनी पढ़ाई पूरी कर के कब कमाने लगी, उसे पता ही नहीं चला. वह फाइनल ईयर में पढ़ रही थी, तभी वह अपने एक प्रोफैसर हिमांशु के यहां पार्टटाइम नौकरी करने लगी थी.

डा. हिमांशु एक जानेमाने साहित्यकार थे. यूनिवर्सिटी में हैड औफ डिपार्टमैंट. अदिती इकौनोमिक ले कर बीए करना चाहती थी. परंतु हिमांशु का लैक्चर सुनने के बाद उस ने हिंदी को अपना मुख्य विषय चुना था. डा. हिमांशु अदिती में व्यक्तिगत रुचि लेने लगे थे. उसे नईनई पुस्तकें सजैस्ट करते, किसी पत्रिका में कुछ छपा होता, तो पेज नंबर सहित रैफरैंस देते. यूनिवर्सिटी की ओर से प्रमोट कर के 1-2 य्ेमिनारों में भी अदिती को भेजा था. अदिती डा. हिमांशु की हर परीक्षा में प्रथम आने के लिए कटिबद्ध रहती थी. इसीलिए डा. हिमांशु० अदिती से हमेशा कहते थे कि वे उस में बहुत कुछ देख रहे हैं. वह जीवन में जरूर कुछ बनेगी.

डा. हिमांशु जब भी अदिती से यह कहते, तो कुछ बनने की लालसा अदिती में जोर मारने लगती. उन्होंने अदिती को अपनी लाइब्रेरी में पार्टटाइम नौकरी दे रखी थी. डा हिमांशु जानेमाने नाट्यकार, उपन्यासकार और कहानीकार थे. उन की हिंदी की तमाम पुस्तकें पाठ्यक्रम में लगी हुई थीं. उन का लैक्चर सुनने और मिलने वालों की भीड़ लगी रहती थी. वे यूनिवर्सिटी से घर आते, तो रात 10 बजे तक उन से मिलने वालों की लाइन लगी रहती. नवोदित लेखकों से ले कर नाट्य जगत, साहित्य जगत और फिल्मी दुनिया के लोग भी उन से मिलने आते थे.

अदिती यूनिवर्सिटी में डा. हिमांशु को मात्र अपने प्रोफैसर के रूप में जानती थी. डा. हिमांशु पूरी क्लास को मंत्रमुग्ध कर देते हैं, यह भी उसे पता था. उसी क्लास में अदिती भी तो थी. अदिती डा. हिमांशु की क्लास कभी नहीं छोड़ती थी.

लंबे, स्मार्ट, सुदृढ़ शरीर वाले डा. हिमांशु की आंखों में एक अजीब सा तेज था. सामान्य रूप से वे हलके रंग की शर्ट और ब्लू डैनिम पहनने वाले डा. हिमांशु पढ़ने के लिए सुनहरे फ्रेम वाला चश्मा पहनते, तो अदिती मुग्ध हो कर उन्हें ताकती ही रह जाती. जब वे अदिती के नोट्स या पेपर्स की तारीफ करते, तो उस दिन अदिती हवा में उड़ने लगती.

फाइनल ईयर में जब डा. हिमांशु की क्लास खत्म होने वाली थी, तो एक दिन प्रोफैसर साहब ने उसे मिलने के लिए डिपार्टमैंट में बुलाया.

अदिती उन के कक्ष में पहुंची, तो उन्होंने कहा, ‘‘अदिती मैं देख रहा हूं कि इधर तुम्हारा ध्यान पढ़ाई में नहीं लग रहा है. तुम अकसर मेरी क्लास से गायब रहती हो. पहले 2 सालों में तुम फर्स्ट क्लास आई हो. यदि तुम्हारा यही हाल रहा, तो इस साल तुम पिछले दोनों सालों की मेहनत पर पानी फेर दोगी.’’

अदिती कोई भी जवाब देने के बजाय रो पड़ी.

डा. हिमांशु अपनी कुरसी से उठ कर अदिती के पास आ कर खड़े हो गए. उन्होंने अपना एक हाथ अदिती के कंधे पर रख दिया. उन के हाथ रखते ही अदिती को लगा, जैसे वह हिमालय के हिमाच्छादित शिखर के सामने खड़ी है. उस के कानों में घंटियों की आवाजें गूंजने लगी थीं.

‘‘तुम्हें किसी से प्रेम हो गया है क्या?’’ प्रोफैसर हिमांशु ने पूछा.

अदिती ने रोतेरोते गरदन हिला कर इनकार कर दिया.

‘‘तो फिर?’’

‘‘सर मैं नौकरी करती हूं. इसलिए पढ़ने के लिए समय कम मिलता है.’’

‘‘क्यों?’’ डा. हिमांशु ने आश्चर्य से कहा, ‘‘शायद तुम्हें शिक्षा के महत्त्व का पता नहीं है. शिक्षा केवल कमाई का साधन ही नहीं है. शिक्षा संस्कार, जीवनशैली और हमारी परंपरा है. कमाने के चक्कर में तुम्हारी पढ़ाई में रुचि खत्म हो गई है. इस तरह मैं ने तमाम विद्यार्थियों की जिंदगी बरबाद होते देखी है.’’

‘‘सर…’’ अदिती ने हिचकी लेते हए कहा, ‘‘मैं पढ़ना चाहती हूं, इसीलिए तो नौकरी करती हूं.’’

डा. हिमांशु ने अदिती के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘आई एम सौरी… मुझे पता नहीं था.’’

‘‘इट्स ओके सर.’’

‘‘क्या काम करती हो?’’

‘एक वकील के औफिस में टाइपिस्ट हूं.’’

‘‘मैं नई किताब लिख रहा हूं. मेरी रिसर्च असिस्टैंट के रूप में काम करोगी?’’ डा. हिमांशु ने पूछा तो अदिती ने आंसू पोंछते हुए ‘हां’ में गरदन हिला दी.

उसी दिन से अदिती डा. हिमांशु की रिसर्च असिस्टैंट के रूप में काम करने लगी.  इस बात को आज 2 साल य्हो गए हैं. अदिती ग्रेजुएट हो गयी है. वह फर्स्ट क्लास फर्स्ट आई थी यूनिवर्सिटी में. डा. हिमांशु एक किताब खत्म होते ही अगली पर काम शुरू कर देते. इस तरह अदिती का काम चलता रहा. अदिती ने एमए में एडमीशन ले लिया था.

डा. हिमांशु अकसर उस से कहते, ‘‘अदिती, तुम्हें पीएचडी करनी है. मैं तुम्हारे नाम के आगे डाक्टर लिखा देखना चाहता हूं.’’

फिर तो कभीकभी अदिती बैठी पढ़ रही होती, तो कागज पर लिख देती, डा. अदिती हिमांशु. फिर शरमा कर उस कागज पर इतनी लाइनें खींचती कि वह नाम पढ़ने में न आता. परंतु बारबार कागज पर लिखने की वजह से यह नाम अदिती के हृदय में इस तरह रचबस गया कि वह एक भी दिन डा. हिमांशु को न देखती, तो उस का समय काटना मुश्किल हो जाता.

पिछले 2 सालों में अदिती डा. हिमांशु के घर का एक हिस्सा बन गई थी. सुबह घंटे डेढ़ घंटे डा. हिमांशु के घर काम कर के वह उन के साथ यूनिवर्सिटी जाती. फिर 5 बजे उन के साथ ही उन के घर आती, तो उसे अपने घर जाने में अकसर रात के 8-9 बज जाते. कभीकभी तो 10 भी बज जाते. डा. हिमांशु मूड के हिसाब से काम करते थे. अदिती को भी कभी घर जाने की जल्दी नहीं होती थी. वह तो डा. हिमांशु के साथ अधिक से अधिक समय बिताने का बहाना ढूंढ़ती रहती थी.

इन 2 सालों में अदिती ने देखा था कि डा. हिमांशु को जानने वाले तमाम लोग थे. उन से मिलने भी तमाम लोग आते थे. अपना काम कराने और सलाह लेने वालों की भी कमी नहीं थी. फिर डा. हिमांशु एकदम अकेले थे. घर से यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी से घर… यही उन की दिनचर्या थी.

वे कहीं बाहर जाना या किसी गोष्ठी में भाग लेना पसंद नहीं करते थे. बड़ी मजबूरी में ही वे

किसी समारोह में भाग लेने जाते थे. अदिती को ये सब बड़ा आश्चर्यजनक लगता था क्योंकि डा. हिमांशु का लैक्चर सुनने के लिए अन्य यूनिवर्सिटी के स्टूडैंट आते थे, जबकि वे पढ़ाई के अलावा किसी से भी कोई फालतू बात नहीं करते थे.

अदिती उन के साथ लगभग रोज ही गाड़ी से आतीजाती थी. परंतु इस आनेजाने में शायद ही कभी उन्होंने उस से कुछ कहा हो. दिन के इतने घंटे साथ बिताने के बावजूद डा. हिमांशु ने काम के अलावा कोई भी बात अदिती से नहीं की थी. अदिती कुछ कहती, तो वे चुपचाप सुन लेते. मुसकराते हुए उस की ओर देख कर उसे यह आभास करा देते कि उन्होंने उस की बात सुन ली है.

किसी बड़े समारोह या कहीं से डा. हिमांशु वापस आते, तो अदिती बड़े ही अहोभाव से उन्हें देखती रहती. उन की शाल ठीक करने के बहाने, फूल या किताब लेने के बहाने, अदिती उन्हें स्पर्श कर लेती. टेबल के सामने डा. हिमांशु बैठ कर लिख रहे होते, तो अदिती उन के पैर में अपना पैर स्पर्श करा कर संवेदना जगाने का प्रयास करती.

डा. हिमांशु भी उस की नजरों और हावभाव से उस के मन की बात जान गए थे. फिर भी उन्होंने अदिती से कभी कुछ नहीं कहा. अब तक अदिती का एमए हो गया था. वह डा. हिमांशु के अंडर ही रिसर्च कर रही थी. उस की थिसिस भी अलग तैयार ही थी.

अदिती को भी आभास हो गया था कि डा. हिमांशु उस के मन की बात जान गए हैं. फिर भी वे ऐसा व्यवहार करते हैं, जैसे उन्हें कुछ पता ही न हो. डा. हिमांशु के प्रति अदिती का आकर्षण धीरेधीरे बढ़ता ही जा रहा था. आईने के सामने खड़ी स्वयं को निहार रही अदिती ने निश्चय कर लिया था कि आज वह डा. हिमांशु से अपने मन की बात अवश्य कह देगी. फिर वह मन ही मन बड़बड़ाई कि प्रेम करना कोई अपराध नहीं है. प्रेम की कोई उम्र भी नहीं होती.

इसी निश्चय के साथ अदिती डा. हिमांशु के घर पहुंची. वे लाइब्रेरी में बैठे थे. अदिती उन के सामने रखी रैक से टिक कर खड़ी हो गई. उस की आंखों से आंसू बरसने की तैयारी में थे. उन्होंने अदिती को देखते ही कहा, ‘‘अदिती बुरा मत मानना, मेरे डिपार्टमैंट में प्रवक्ता की जगह खाली है. सरकारी नौकरी है. मैं ने कमेटी के सभी सदस्यों से बात कर ली है. तुम अपनी तैयारी कर लो. तुम्हारा इंटरव्यू फौर्मल ही होगा.’’

‘‘परंतु मुझे यह नौकरी नहीं करनी है,’’ अदिती ने यह बात थोड़ी ऊंची आवाज में कही. उस की आंखों में आंसू भर आए थे.

डा. हिमांशु ने मुंह फेर कर कहा, ‘‘अदिती, अब तुम्हारे लिए हमारे यहां काम नहीं है.’’

‘‘सचमुच?’’ अदिती ने उन के एकदम नजदीक जा कर पूछा.

‘‘हां, सचमुच,’’ अदिती की ओर देखे बगैर बड़े ही मृदु और धीमी आवाज में डा. हिमांशु ने कहा, ‘‘अदिती वहां वेतन बहुत अच्छा मिलेगा.’’

‘‘मैं वेतन के लिए नौकरी नहीं करती?’’ अदिती और भी ऊंची आवाज में बोली, ‘‘सर, आप ने मुझे कभी समझ ही नहीं.’’

डा. हिमांशु कुछ कहते, उस के पहले ही अदिती उन के एकदम करीब पहुंच गई. दोनों के बीच अब मात्र हथेली भर की दूरी रह गई थी. उस ने डा. हिमांशु की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘सर, मैं जानती हूं, आप सबकुछ जानतेसमझते हैं… प्लीज इनकार मत कीजिएगा.’’

अदिती की आंखों के आंसू आंखों से निकल कर उस के कपोलों को भिगोते हुए नीचे तक बह गए थे. वह कांपते स्वर में बोली, ‘‘आप के यहां काम नहीं है? इस अधूरी पुस्तक को कौन पूरा करेगा? जरा बताइए तो चार्ली चैपलिन की आत्मकथा कहां रखी है? बायर की कविताएं कहां हैं? विष्णु प्रभाकर या अमरकांत की नई किताबें कहां रखी हैं?’’

डा. हिमांशु चुपचाप अदिती की बातें सुन रहे थे. उन्होंने दोनों हाथ बढ़ा कर अदिती के गालों के आंसू पोंछे और एक लंबी सांस ले कर कहा, ‘‘तुम्हारे आने के पहले मैं किताबें ही खोज रहा था. तुम नहीं रहोगी, तो भी मैं किताबें ढूंढ़ लूंगा.’’

अदिती को लगा कि उन की आवाज यह कहने में कांप रही है.

उन्होंने आगे कहा, ‘‘इंसान पूरी जिंदगी ढूंढ़ता रहे, तो भी शायद उसे न मिले और यदि मिले भी, तो इंसान ढूंढ़ता रहे. उसे फिर भी प्राप्त न हो सके ऐसा भी हो सकता है.’’

‘‘जो अपना हो, उस का तिरस्कार कर के,’’ इतना कह कर अदिती दो कदम पीछे हटी और चेहरे को दोनों हाथों में छिपा कर रोने लगी. फिर लगभग चीखते हुए बोली, ‘‘क्यों?’’

डा. हिमांशु ने थोड़ी देर तक अदिती को रोने दिया. फिर उस के नजदीक जा कर कालेज में पहली बार जिस सहानुभूति से उस के कंधे पर हाथ रखा था, उसी तरह उस के कंधे पर हाथ रखा. अदिती को फिर एक बार लगा कि हिमालय के शिखरों की ठंडक उस के सीने में समा गई है. कानों में घंटियां बजने लगीं. उस ने स्नेहिल नजरों से डा. हिमांशु को देखा. फिर आगे बढ़ कर अपनी दोनों हथेलियों में उन के चेहरे को भर कर चूम लिया.

फिर वह डा. हिमांशु से लिपट गई. वह इंतजार करती रही कि उन की बांहें उस के इर्दगिर्द लिपटेंगी. परंतु ऐसा नहीं हुआ. उस ने डा. हिमांशु की ओर देखा. वे चुपचाप बिना किसी प्रतिभाव के आंखें फाड़े उसे ताक रहे थे. उन का चेहरा शांत, स्थितप्रज्ञ और निर्विकार था.

‘‘आप मुझ से प्यार नहीं करते?’’

डा. हिमांशु मात्र उसे देखते रहे.

‘‘मैं आप के लायक नहीं हूं?’’

डा. हिमांशु के होंठ कांपे, पर शब्द नहीं निकले.

‘‘मैं अंतिम बार पूछती हूं,’’ अदिती की आवाज के साथ उस का शरीर भी कांप रहा था. स्त्री हो कर स्वयं को समर्पित कर देने के बाद भी पुरुष के इस तिरस्कार ने उस के पूरे अस्तित्व को हिला कर रख दिया था. उस की आंखों से आंसुओं की जलधारा बह रही थी.

एक लंबी सांस ले कर वह बोली, ‘‘मैं पूछती हूं, आप मुझे प्यार करते हैं या नहीं या फिर मैं आप के लिए केवल एक तेजस्विनी विद्यार्थिनी से अधिक कुछ नहीं हूं,’’ फिर उन की कालर पकड़ कर झकझरते हुए बोली, ‘‘सर, मुझे अपनी बातों के जवाब चाहिए.’’

डा. हिमांशु उसी तरह जड़ बने थे. अदिती ने लगभग धक्का मार कर उन्हें छोड़ दिया. रोते हुए वह उन्हें अपलक ताक रही थी. उस ने दोनों हाथों से आंसू पोंछे. पलभर में ही उस का हावभाव बदल गया. उस का चेहरा सख्त हो गया. उस की आंखों में घायल बाघिन का जनून आ गया था. उस ने चीखते हुए कहा, ‘‘मुझे इस बात का हमेशा पश्चात्ताप रहेगा कि मैं ने एक ऐसे आदमी से प्यार किया, जिस में प्यार को स्वीकार करने की ताकत ही नहीं है. मैं तो समझती थी कि आप मेरे आदर्श हैं, समर्थ्यवान हैं, परंतु आप में एक स्त्री को सम्मान के साथ स्वीकार करने की हिम्मत ही नहीं है.

‘‘जीवन में यदि कभी समझ में आए कि मैं ने आप को क्या दिया है, तो उसे स्वीकार कर लेना. जिस तरह हो सके, उस तरह क्योंकि आज के आप के तिरस्कार ने मुझे छिन्नभिन्न कर दिया है. जो टीस आप ने मुझे दी है, हो सके तो उसे दूर कर देना क्योंकि इस टीस के साथ जीया नहीं जा सकता,’’ इतना कह कर अदिती तेजी से पलटी और बाहर निकल गई. उस ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा.

कुछ दिनों बाद अदिती अखबार पढ़ रही थी, तो अखबार में छपी एक सूचना पर उस

की नजर अटक गई. सूचना थी ‘प्रसिद्ध साहित्यकार, यूनिवर्सिटी के हैड आफ दि डिपार्टमैंट डा. हिमांशु की हृदयगति रुकने से मृत्यु हो गई है उन का…’

अदिती ने इतना पढ़ कर पन्ना पलट दिया. रोने का मन तो हुआ, लेकिन जी कड़ा कर के उसे रोक दिया. अगले दिन अखबार में डा. हिमांशु के बारे में 3-4 लेख छपे थे, परंतु अदिती ने उन्हें पढ़े बगैर ही उस पन्ने को पलट दिया.

इस के 4 दिन बाद ही पाठ्य पुस्तक मंडल की ओर से ब्राउन पेपर में लिपटा एक पार्सल अदिती को मिला. भेजने वाले का नाम उस पर नहीं था. अदिती ने जल्दीजल्दी उस पैकेट को खोला तो उस में वही पुस्तक थी, जिसे वह अधूरी छोड़ आई थी. अदिती ने प्यार से उस पुस्तक पर हाथ फेरा. लेखक का नाम पढ़ा. उस ने पहला पन्ना खोला, किताब के नाम आदि की जानकारी… दूसरा पन्ना खोला…

‘‘‘अर्पण…’ मेरे जीवन की एकमात्र स्त्री को, जिसे मैं ने हृदय से चाहा, फिर भी उसे कुछ दे न सका. यदि वह मेरी एक पल की कमजोरी को माफ कर सके, तो मेरी इस पुस्तक को अवश्य स्वीकार कर लेना.’’

उस किताब को सीने से लगाने के साथ ही अदिती एकदम से फफक कर रो पड़ी. पूरा औफिस एकदम से चौंक पड़ा. सभी उठ कर उस के पास आ गए. हरकोई एक ही बात पूछ रहा था, ‘‘क्या हुआ अदिती? क्या हुआ?’’

रोते हुए अदिती मात्र गरदन हिला रही थी. उसे खुद पता नहीं था कि उसे क्या हुआ.

ऐक्टर Govinda के पैर में लगी गोली, रिवौल्वर साफ करते समय हुआ ये हादसा

Govinda: बौलीवुड एक्टर गोविंदा के फैंस के लिए हैरान कर देने वाली खबर सामने आई है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, गोविंदा के घुटने में गोली लग गई है और ये गोली एक्टर को अपने ही रिवौल्वर से लगी है. जानकारी के अनुसार, ये हादसा तब हुआ, जब गोविंदा अपनी रिवौल्वर साफ कर रहे थे और गलती से गोली चल गई, जो घुटने में जाकर लगी. यह घटना आज ही यानी मंगलवार की सुबह 4.45 की है.

GS-web-banner

मुंबई के इस अस्पताल में भर्ती हैं गोविंदा

 

खबरों के अनुसार, ऐक्टर आईसीयू में भर्ती है. गोविंदा की हालत में अब सुधार होने की खबर है. गोविंदा Criti Care अस्पताल में भर्ती है, वहां से अभी कोई जानकारी नहीं मिली है.

अभिनेता के मैनेजर ने  जारी किया बयान

गोविंदा के मैनेजर ने इस घटना के बारे में अपडेट दिया. रिपोर्ट के मुताबिक एक्टर के मैनेजर शशि सिन्हा ने बयान जारी कर बताया कि एक्टर कोलकाता जाने की तैयारी कर रहे थे और वह सूटकेस में जब अपनी लाइसेंसी रिवौल्वर रख रहे थे तभी उनके हाथ से रिवौल्वर नीचे गिर गई और गोली चल गई और सीधा उनके पैर पर लगी. हालांकि डौक्टर ने उनके पैर से गोली निकाल दी है. गोविंदा की बेटी अभी हौस्पिटल में उनके साथ मौजूद हैं. एक्टर को दो दिनों तक हौस्पिटल में औब्जर्वेशन में रखा जाएगा.

जब ये घटना हुई तो पत्नी नहीं थीं मुंबई

रिपोर्ट के मुताबिक जब यह घटना हुआ तो, गोविंदा की पत्नी सुनीता आहूजा मुंबई में नहीं थी. गोविंदा के वर्क फ्रंट की बात करे, तो वह लंबे समय से फिल्मों से दूर है. एक्टर रियलिटी शोज का हिस्सा बनते हैं और कंटेस्टेंट्स का उत्साह बढ़ाते हैं. अभिनेता की पत्नी सुनीता आहूजा भी चर्चे में रहती हैं और उनका बेबाक अंदाज दर्शकों को खूब पसंद आता है.

पौडकास्ट के दौरान सुनिता आहूजा कहीं ये बात

सुनीता आहूजा ने कुछ दिनोंं पहले ही एक पौडकास्ट में अपनी शादी के बारे में जिक्र किया था.  उन्होंने कुछ पाबंदियों के बारे में बताया, जिनका उन्हें सामना करना पड़ा.  उन्होंने बताया कि वह मुंबई के समृद्ध पाली हिल में पलीबढ़ी थीं, जबकि गोविंदा विरार से थे. यह एक ऐसा अंतर था जिससे उन्हें शुरू में जूझना पड़ा. सुनीता ने आगे ये भी बताया कि जब टीना का जन्म हुआ था, तब गोविंदा उनके पास नहीं थे.

जीत गया जंगवीर: क्यों जगवीरी से नहीं मिलना चाहती थी मुनिया

‘‘खत आया है…खत आया है,’’ पिंजरे में बैठी सारिका शोर मचाए जा रही थी. दोपहर के भोजन के बाद तनिक लेटी ही थी कि सारिका ने चीखना शुरू कर दिया तो जेठ की दोपहरी में कमरे की ठंडक छोड़ मुख्यद्वार तक जाना पड़ा. देखा, छोटी भाभी का पत्र था और सब बातें छोड़ एक ही पंक्ति आंखों से दिल में खंजर सी उतर गई, ‘दीदी आप की सखी जगवीरी का इंतकाल हो गया. सुना है, बड़ा कष्ट पाया बेचारी ने.’ पढ़ते ही आंखें बरसने लगीं. पत्र के अक्षर आंसुओं से धुल गए. पत्र एक ओर रख कर मन के सैलाब को आंखों से बाहर निकलने की छूट दे कर 25 वर्ष पहले के वक्त के गलियारे में खो गई मैं.

जगवीरी मेरी सखी ही नहीं बल्कि सच्ची शुभचिंतक, बहन और संरक्षिका भी थी. जब से मिली थी संरक्षण ही तो किया था मेरा. जयपुर मेडिकल कालेज का वह पहला दिन था. सीनियर लड़केलड़कियों का दल रैगिंग के लिए सामने खड़ा था. मैं नए छात्रछात्राओं के पीछे दुबकी खड़ी थी. औरों की दुर्गति देख कर पसीने से तरबतर सोच रही थी कि अभी घर भाग जाऊं. वैसे भी मैं देहातनुमा कसबे की लड़की, सब से अलग दिखाई दे रही थी. मेरा नंबर भी आना ही था. मुझे देखते ही एक बोला, ‘अरे, यह तो बहनजी हैं.’ ‘नहीं, यार, माताजी हैं.’ ऐसी ही तरहतरह की आवाजें सुन कर मेरे पैर कांपे और मैं धड़ाम से गिरी. एक लड़का मेरी ओर लपका, तभी एक कड़कती आवाज आई, ‘इसे छोड़ो. कोई इस की रैगिंग नहीं करेगा.’

‘क्यों, तेरी कुछ लगती है यह?’ एक फैशनेबल तितली ने मुंह बना कर पूछा तो तड़ाक से एक चांटा उस के गाल पर पड़ा. ‘चलो भाई, इस के कौन मुंह लगे,’ कहते हुए सब वहां से चले गए. मैं ने अपनी त्राणकर्ता को देखा. लड़कों जैसा डीलडौल, पर लंबी वेणी बता रही थी कि वह लड़की है. उस ने प्यार से मुझे उठाया, परिचय पूछा, फिर बोली, ‘मेरा नाम जगवीरी है. सब लोग मुझे जंगवीर कहते हैं. तुम चिंता मत करो. अब तुम्हें कोई कुछ भी नहीं कहेगा और कोई काम या परेशानी हो तो मुझे बताना.’ सचमुच उस के बाद मुझे किसी ने परेशान नहीं किया. होस्टल में जगवीरी ने सीनियर विंग में अपने कमरे के पास ही मुझे कमरा दिलवा दिया. मुझे दूसरे जूनियर्स की तरह अपना कमरा किसी से शेयर भी नहीं करना पड़ा. मेस में भी अच्छाखासा ध्यान रखा जाता. लड़कियां मुझ से खिंचीखिंची रहतीं. कभीकभी फुसफुसाहट भी सुनाई पड़ती, ‘जगवीरी की नई ‘वो’ आ रही है.’ लड़के मुझे देख कर कन्नी काटते. इन सब बातों को दरकिनार कर मैं ने स्वयं को पढ़ाई में डुबो दिया. थोड़े दिनों में ही मेरी गिनती कुशाग्र छात्रछात्राओं में होने लगी और सभी प्रोफेसर मुझे पहचानने तथा महत्त्व भी देने लगे.

जगवीरी कालेज में कभीकभी ही दिखाई पड़ती. 4-5 लड़कियां हमेशा उस के आगेपीछे होतीं.

एक बार जगवीरी मुझे कैंटीन खींच ले गई. वहां बैठे सभी लड़केलड़कियों ने उस के सामने अपनी फरमाइशें ऐसे रखनी शुरू कर दीं जैसे वह सब की अम्मां हो. उस ने भी उदारता से कैंटीन वाले को फरमान सुना दिया, ‘भाई, जो कुछ भी ये बच्चे मांगें, खिलापिला दे.’ मैं समझ गई कि जगवीरी किसी धनी परिवार की लाड़ली है. वह कई बार मेरे कमरे में आ बैठती. सिर पर हाथ फेरती. हाथों को सहलाती, मेरा चेहरा हथेलियों में ले मुझे एकटक निहारती, किसी रोमांटिक सिनेमा के दृश्य की सी उस की ये हरकतें मुझे विचित्र लगतीं. उस से इन हरकतों को अच्छी अथवा बुरी की परिसीमा में न बांध पाने पर भी मैं सिहर जाती. मैं कहती, ‘प्लीज हमें पढ़ने दीजिए.’ तो वह कहती, ‘मुनिया, जयपुर आई है तो शहर भी तो देख, मौजमस्ती भी कर. हर समय पढ़ेगी तो दिमाग चल जाएगा.’

वह कई बार मुझे गुलाबी शहर के सुंदर बाजार घुमाने ले गई. छोटीबड़ी चौपड़, जौहरी बाजार, एम.आई. रोड ले जाती और मेरे मना करतेकरते भी वह कुछ कपड़े खरीद ही देती मेरे लिए. यह सब अच्छा भी लगता और डर भी लगा रहता. एक बार 3 दिन की छुट्टियां पड़ीं तो आसपास की सभी लड़कियां घर चली गईं. जगवीरी मुझे राजमंदिर में पिक्चर दिखाने ले गई. उमराव जान लगी हुई थी. मैं उस के दृश्यों में खोई हुई थी कि मुझे अपने चेहरे पर गरम सांसों का एहसास हुआ. जगवीरी के हाथ मेरी गरदन से नीचे की ओर फिसल रहे थे. मुझे लगने लगा जैसे कोई सांप मेरे सीने पर रेंग रहा है. जिस बात की आशंका उस की हरकतों से होती थी, वह सामने थी. मैं उस का हाथ झटक अंधेरे में ही गिरतीपड़ती बाहर भागी. आज फिर मन हो रहा था कि घर लौट जाऊं.

मैं रो कर मन का गुबार निकाल भी न पाई थी कि जगवीरी आ धमकी. मुझे एक गुडि़या की तरह जबरदस्ती गोद में बिठा कर बोली, ‘क्यों रो रही हो मुनिया? पिक्चर छोड़ कर भाग आईं.’ ‘हमें यह सब अच्छा नहीं लगता, दीदी. हमारे मम्मीपापा बहुत गरीब हैं. यदि हम डाक्टर नहीं बन पाए या हमारे विषय में उन्होंने कुछ ऐसावैसा सुना तो…’ मैं ने सुबकते हुए कह ही दिया.

‘अच्छा, चल चुप हो जा. अब कभी ऐसा नहीं होगा. तुम हमें बहुत प्यारी लगती हो, गुडि़या सी. आज से तुम हमारी छोटी बहन, असल में हमारे 5 भाई हैं. पांचों हम से बड़े, हमें प्यार बहुत मिलता है पर हम किसे लाड़लड़ाएं,’ कह कर उस ने मेरा माथा चूम लिया. सचमुच उस चुंबन में मां की महक थी. जगवीरी से हर प्रकार का संरक्षण और लाड़प्यार पाते कब 5 साल बीत गए पता ही न चला. प्रशिक्षण पूरा होने को था तभी बूआ की लड़की के विवाह में मुझे दिल्ली जाना पड़ा. वहां कुणाल ने, जो दिल्ली में डाक्टर थे, मुझे पसंद कर उसी मंडप में ब्याह रचा लिया. मेरी शादी में शामिल न हो पाने के कारण जगवीरी पहले तो रूठी फिर कुणाल और मुझ को महंगेमहंगे उपहारों से लाद दिया.

मैं दिल्ली आ गई. जगवीरी 7 साल में भी डाक्टर न बन पाई, तब उस के भाई उसे हठ कर के घर ले गए और उस का विवाह तय कर दिया. उस के विवाह के निमंत्रणपत्र के साथ जगवीरी का स्नेह, अनुरोध भरा लंबा सा पत्र भी था. मैं ने कुणाल को बता रखा था कि यदि जगवीरी न होती तो पहले दिन ही मैं कालेज से भाग आई होती. मुझे डाक्टर बनाने का श्रेय मातापिता के साथसाथ जगवीरी को भी है. जयपुर से लगभग 58 किलोमीटर दूर के एक गांव में थी जगवीरी के पिता की शानदार हवेली. पूरे गांव में सफाई और सजावट हो रही थी. मुझे और पति को बेटीदामाद सा सम्मानसत्कार मिला. जगवीरी का पति बहुत ही सुंदर, सजीला युवक था. बातचीत में बहुत विनम्र और कुशल. पता चला सूरत और अहमदाबाद में उस की कपड़े की मिलें हैं.

सोचा था जगवीरी सुंदर और संपन्न ससुराल में रचबस जाएगी, पर कहां? हर हफ्ते उस का लंबाचौड़ा पत्र आ जाता, जिस में ससुराल की उबाऊ व्यस्तताओं और मारवाड़ी रिवाजों के बंधनों का रोना होता. सुहाग, सुख या उत्साह का कोई रंग उस में ढूंढ़े न मिलता. गृहस्थसुख विधाता शायद जगवीरी की कुंडली में लिखना ही भूल गया था. तभी तो साल भी न बीता कि उस का पति उसे छोड़ गया. पता चला कि शरीर से तंदुरुस्त दिखाई देने वाला उस का पति गजराज ब्लडकैंसर से पीडि़त था. हर साल छह महीने बाद चिकित्सा के लिए वह अमेरिका जाता था. अब भी वह विशेष वायुयान से पत्नी और डाक्टर के साथ अमेरिका जा रहा था. रास्ते में ही उसे काल ने घेर लिया. सारा व्यापार जेठ संभालता था, मिलों और संपत्ति में हिस्सा देने के लिए वह जगवीरी से जो चाहता था वह तो शायद जगवीरी ने गजराज को भी नहीं दिया था. वह उस के लिए बनी ही कहां थी. एक दिन जगवीरी दिल्ली आ पहुंची. वही पुराना मर्दाना लिबास. अब बाल भी लड़कों की तरह रख लिए थे. उस के व्यवहार में वैधव्य की कोई वेदना, उदासी या चिंता नहीं दिखी. मेरी बेटी मान्या साल भर की भी न थी. उस के लिए हम ने आया रखी हुई थी.

जगवीरी जब आती तो 10-15 दिन से पहले न जाती. मेरे या कुणाल के ड्यूटी से लौटने तक वह आया को अपने पास उलझाए रखती. मान्या की इस उपेक्षा से कुणाल को बहुत क्रोध आता. बुरा तो मुझे भी बहुत लगता था पर जगवीरी के उपकार याद कर चुप रह जाती. धीरेधीरे जगवीरी का दिल्ली आगमन और प्रवास बढ़ता जा रहा था और कुणाल का गुस्सा भी. सब से अधिक तनाव तो इस कारण होता था कि जगवीरी आते ही हमारे डबल बैड पर जम जाती और कहती, ‘यार, कुणाल, तुम तो सदा ही कनक के पास रहते हो, इस पर हमारा भी हक है. दोचार दिन ड्राइंगरूम में ही सो जाओ.’

कुणाल उस के पागलपन से चिढ़ते ही थे, उस का नाम भी उन्होंने डाक्टर पगलानंद रख रखा था. परंतु उस की ऐसी हरकतों से तो कुणाल को संदेह हो गया. मैं ने लाख समझाया कि वह मुझे छोटी बहन मानती है पर शक का जहर कुणाल के दिलोदिमाग में बढ़ता ही चला गया और एक दिन उन्होंने कह ही दिया, ‘कनक, तुम्हें मुझ में और जगवीरी में से एक को चुनना होगा. यदि तुम मुझे चाहती हो तो उस से स्पष्ट कह दो कि तुम से कोई संबंध न रखे और यहां कभी न आए, अन्यथा मैं यहां से चला जाऊंगा.’

यह तो अच्छा हुआ कि जगवीरी से कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ी. उस के भाइयों के प्रयास से उसे ससुराल की संपत्ति में से अच्छीखासी रकम मिल गई. वह नेपाल चली गई. वहां उस ने एक बहुत बड़ा नर्सिंगहोम बना लिया. 10-15 दिन में वहां से उस के 3-4 पत्र आ गए, जिन में हम दोनों को यहां से दोगुने वेतन पर नेपाल आ जाने का आग्रह था. मुझे पता था कि जगवीरी एक स्थान पर टिक कर रहने वाली नहीं है. वह भारत आते ही मेरे पास आ धमकेगी. फिर वही क्लेश और तनाव होगा और दांव पर लग जाएगी मेरी गृहस्थी. हम ने मकान बदला, संयोग से एक नए अस्पताल में मुझे और कुणाल को नियुक्ति भी मिल गई. मेरा अनुमान ठीक था. रमता जोगी जैसी जगवीरी नेपाल में 4 साल भी न टिकी. दिल्ली में हमें ढूंढ़ने में असफल रही तो मेरे मायके जा पहुंची. मैं ने भाईभाभियों को कुणाल की नापसंदगी और नाराजगी बता कर जगवीरी को हमारा पता एवं फोन नंबर देने के लिए कतई मना किया हुआ था.

जगवीरी ने मेरे मायके के बहुत चक्कर लगाए, चीखी, चिल्लाई, पागलों जैसी चेष्टाएं कीं परंतु हमारा पता न पा सकी. तब हार कर उस ने वहीं नर्सिंगहोम खोल लिया. शायद इस आशा से कि कभी तो वह मुझ से वहां मिल सकेगी. मैं इतनी भयभीत हो गई, उस पागल के प्रेम से कि वारत्योहार पर भी मायके जाना छूट सा गया. हां, भाभियों के फोन तथा यदाकदा आने वाले पत्रों से अपनी अनोखी सखी के समाचार अवश्य मिल जाते थे जो मन को विषाद से भर जाते. उस के नर्सिंगहोम में मुफ्तखोर ही अधिक आते थे. जगवीरी की दयालुता का लाभ उठा कर इलाज कराते और पीठ पीछे उस का उपहास करते. कुछ आदतें तो जगवीरी की ऐसी थीं ही कि कोई लेडी डाक्टर, सुंदर नर्स वहां टिक न पाती. सुना था किसी शांति नाम की नर्स को पूरा नर्सिंगहोम, रुपएपैसे उस ने सौंप दिए. वे दोनों पतिपत्नी की तरह खुल्लमखुल्ला रहते हैं. बहुत बदनामी हो रही है जगवीरी की. भाभी कहतीं कि हमें तो यह सोच कर ही शर्म आती है कि वह तुम्हारी सखी है. सुनसुन कर बहुत दुख होता, परंतु अभी तो बहुत कुछ सुनना शेष था. एक दिन पता चला कि शांति ने जगवीरी का नर्सिंगहोम, कोठी, कुल संपत्ति अपने नाम करा कर उसे पागल करार दे दिया. पागलखाने में यातनाएं झेलते हुए उस ने मुझे बहुत याद किया. उस के भाइयों को जब इस स्थिति का पता किसी प्रकार चला तो वे अपनी नाजों पली बहन को लेने पहुंचे. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी, अनंत यात्रा पर निकल चुकी थी जगवीरी.

मैं सोच रही थी कि एक ममत्व भरे हृदय की नारी सामान्य स्त्री का, गृहिणी का, मां का जीवन किस कारण नहीं जी सकी. उस के अंतस में छिपे जंगवीर ने उसे कहीं का न छोड़ा. तभी मेरी आंख लग गई और मैं ने देखा जगवीरी कई पैकेटों से लदीफंदी मेरे सिरहाने आ बैठी, ‘जाओ, मैं नहीं बोलती, इतने दिन बाद आई हो,’ मैं ने कहा. वह बोली, ‘तुम ने ही तो मना किया था. अब आ गई हूं, न जाऊंगी कहीं.’ तभी मुझे मान्या की आवाज सुनाई दी, ‘‘मम्मा, किस से बात कर रही हो?’’ आंखें खोल कर देखा शाम हो गई थी.

महिलाओं के लिए असुरक्षित माहौल, कौन है इसका जिम्मेदार ?

‘ कब तक लौटोगी,’ ‘अभी रुको’, ‘कैसे जाओगी’, ‘अकेली मत जाओ’, ‘पहुंच कर कौल कर देना’, ‘मैं छोड़ देता हूं’  – ये बहुत सामान्य लाइनें हैं जिन्हें लड़कियां बचपन से सुनते हुए बड़ी होती हैं. हमारे घरों में अक्सर 10 -11 साल का लड़का भी अपनी जवान और बालिग बहन की सुरक्षा के लिए उसके साथ बाहर जाने पर भेजा जाता है. यानी 10 साल का लड़का 20 साल की लड़की के देखे ज्यादा मजबूत माना जाता है. इतना मजबूत कि अपनी कमजोर बहन को मर्दों की दुनिया में सुरक्षा दे सके.

हालात ये हैं कि अपनी सुरक्षा की चिंता में और सुरक्षित यात्रा हो इस की कोशिश में महिलाएं कितनी भी रकम खर्च करने को तैयार रहती हैं. वर्ल्ड बैंक के द्वारा दिल्ली में महिलाओं पर किए गए शोध के अनुसार महिलाएं सुरक्षित रास्तों से यात्रा करने के लिए हर साल 17,500 रुपये का अतिरिक्त खर्च उठाने को तैयार रहती हैं.

मगर जब बात फिटनेस और खुद को मजबूत बनाने की आती है तो महिलाएं पीछे हट जाती हैं. घरवाले भी उन्हें ऐसा करने को मजबूर करते हैं. हाल ही में फिटनेस को ले कर एक सर्वे किया गया. अपनी तरह का यह पहला सर्वे था जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर यह समझने की कोशिश की गई कि देशवासियों के बीच स्पोर्ट्स और फिजिकल एक्टिविटी का क्या लेवल है. इसका सबसे दिलचस्प पहलू यह रहा कि इस मामले में भी जेंडर का भेद साफ साफ दिखा. हालांकि पारंपरिक तौर पर देखा जाए तो महिलाएं घर में काफी ज्यादा शारीरिक श्रम करती हैं फिर भी आधुनिक मानदंडों पर फिजिकल फिटनेस बनाए रखने के लिए की जाने वाली गतिविधियों में आधी आबादी की हिस्सेदारी काफी कम है. खासकर शहरों में रहने वाली लड़कियां फिज़िकली सब से ज्यादा इनएक्टिव पाई गई.

यह सर्वे एक नौन प्रौफिट और्गनाइजेशन स्पोर्ट्स एंड सोसायटी ऐक्सेलरेटर और डेलबर्ग अडवाइजर्स, एशिया पैसिफिक ने मिलकर किया था. इस रिपोर्ट के मुताबिक 45% भारतीय मानते हैं कि लड़कियों को स्पोर्ट्स एक्टिविटी में शामिल नहीं होना चाहिए क्योंकि अगर चोटवोट लग गई तो उन की शादी में दिक्कत होगी. पार्क जैसे सार्वजनिक स्थानो पर जाना भी लड़कियों की सेफ्टी के लिहाज से ठीक नहीं माना जाता. 20% महिलाओं और लड़कियों को प्रेग्नेंसी और पीरियड्स के दिनों में एक्सरसाइज करने से रोक दिया जाता है.

कई महिलाएं और लड़कियां इस डर से भी एक्सरसाइज से बचती है कि अगर मसल मजबूत हो गए तो वे कोमलांगी नहीं दिखेगी. जबकि हमारी पितृसत्ता मानसिकता यह कहती है कि एक लड़की की खूबसूरती का अहम् हिस्सा उस का कोमलांगी होना है. अगर मजबूत मसल्स वाला शरीर होगा तो पुरुषों को उन्हें प्यार करने में मजा नहीं आएगा साथ ही फिर वे कमजोर नहीं रह जाएंगी. ऐसे में वह पुरुषों की हुकूमत नहीं सहेंगी और पुरुष भी उन पर अपनी तथाकथित मर्दानगी नहीं दिखा पाएंगे.

इस सोच को बढ़ावा देने में सब से आगे हमारा धर्म है जो स्त्रियों को पुरुष के अधीन और कमजोर बने रहने की सीख देता है. इन सब बातों का नतीजा यह निकलता है कि स्त्रियां पुरुषों के देखे फिज़िकली कमजोर रह जाती हैं और अपनी सुरक्षा खुद नहीं कर पातीं। वे हमेशा ही डरी सहमी घर से निकलती हैं या किसी पुरुष को रक्षा हेतु साथ रखती हैं. देश में महिलाओं की सुरक्षा का प्रश्न केवल पारिवारिक नहीं बल्कि एक बड़ी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समस्या बन चुकी है. शहर हो या गांव जब बात महिलाओं की सुरक्षा की आती है तो कई तरह के सवाल सामने आ जाते हैं.

अपनी सुरक्षा के लिए मानसिक और आर्थिक खामियाजा उठा रही हैं महिलाएं

झारखण्ड के हजारीबाग की रहने वाली 40 वर्षीय अनु अविवाहित है और छोटे बच्चों के स्कूल में टीचर का काम करती है. जब भी उस के स्कूल में किसी साथी टीचर के बच्चों का बर्थडे की वजह से या स्कूल के कार्यक्रम में देर तक रहना पड़ता है तो वह अकेली घर नहीं जा पाती है. वह कहती है, “ हमारे इलाके में 8 बजे के बाद किसी लड़की का अकेले घर या कहीं भी जाना सुरक्षित नहीं माना जाता है. इसी वजह से मैं सबके साथ वापस लौटती हूं या फिर कोई पुरुष टीचर घर तक छोड़ते हैं. अगर ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हो पाती तो मैं कार्यक्रम में नहीं जाती. ”

भले ही यह बात छोटी सी लगे मगर समस्या बड़ी है. कई दफा जरुरी काम होने के बावजूद लड़कियों को निकलने में डर लगता है. अगर किसी के घर में रात के समय कोई इमरजेंसी आ जाए या कोई बीमार हो तो वह डिसाइड नहीं कर पाती कि क्या करे क्योंकि उसे अकेले बाहर निकलने की हिम्मत नहीं होती.

सामान्य रूप से महिलाओं के लिए पैदल चलना और सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट पहले विकल्प होते हैं. पर ज्यादा दूर पैदल चलना आसान नहीं. रात में तो यह लड़कियों के लिए बिलकुल भी सुरक्षित नहीं. सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट सेवा भी भीड़भाड़ और आवारा लोगों की मौजूदगी के कारण ज्यादा सुरक्षित नहीं रह जाती। वैसे भी सार्वजनिक वाहनों के लिए प्रतीक्षा करना काफी मुश्किल होता है.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार शहरों की लगभग आधी आबादी नुकसान में है क्योंकि शहरों में महिलाओं के लिए वातावरण उचित नहीं है. यह इस तथ्य के बावजूद है कि पहले से कहीं अधिक लोग लगभग 4.4 अरब लोग या वैश्विक आबादी का 55 फीसद शहरों में रहते हैं. यह संख्या साल 2050 तक दोगुनी होने वाली है जिसमें प्रत्येक 10 में से सात लोग शहरी वातावरण में रहेंगे. इसके बावजूद शहर या गांव महिलाओं की सुरक्षा के अनुसार नहीं डिजाइन किया जाता.

यात्रा के दौरान बहुत सी समस्याओं का सामना करती हैं महिलाएं

कोलकाता में महिलाओं के लिए सार्वजनिक परिवहन तक पहुंचने में रोजमर्रा के संघर्ष पर एक शोध किया गया. साइंस डायरेक्ट में छपे इस शोध के अनुसार पैदल चलने, ऑटो-रिक्शा और बसों तक पहुंचने में मुख्य बाधाओं में भारी यातायात, तेज गति से चलने वाले वाहन, लापरवाही से वाहन चलाना, बसों में भीड़ भाड़ और छेड़छार, असुरक्षित तरीके से चढ़ना और उतरना और फुटपाथों का अभाव शामिल है. ये बाधाएं महिलाओं को असुरक्षित महसूस कराती हैं, उनके सार्वजनिक वाहन के विकल्प को प्रभावित करती हैं और यात्रा के समय को बढ़ाती हैं. सार्वजनिक परिवहन की पहुंच में चुनौतियां महिलाओं को अक्सर ज्यादा महंगे विकल्प चुनने के लिए मजबूर करती हैं जिसका असर उन के काम और पारिवारिक जीवन पर पड़ता है.

असुरक्षित रहने का मानसिक खामियाजा

जब एक लड़की रात में घर लौटती है और उसे पता होता है कि देर होगी तो ऐसे में वह सब से पहले घरवालों को बताती है. गाड़ी का नंबर, लोकेशन आदि घरवालों को देती हैं. ट्रिप डिटेल्स शेयर करती हैं. फिर भी अगर असुरक्षित महसूस होता है तो जिस इलाके से गुजरती है वहां के किसी दोस्त या परिचित को फोन पर बताते हुए चलती हैं कि उसी इलाके से क्रॉस कर रही हूं.

यही वजह है कि यात्रा महिलाओं के लिए तनाव भरा होता है. देश में शायद ही कोई पुरुष हो जिसने कभी अपने वाहन का नंबर प्लेट सुरक्षा के मद्देनजर परिजनों से साझा किया होगा या अपनी लाइव लोकेशन अपने बचाव के लिए किसी को भेजा होगा. सड़क पर उत्पीड़न या सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न दुनिया भर में एक गंभीर समस्या है. दिल्ली में  एक शोध के मुताबिक 16 से 49 वर्ष की 95 प्रतिशत महिलाएं सार्वजनिक स्थानों पर असुरक्षित महसूस करती हैं. महिलाओं को यौन उत्पीड़न से काफी मनोवैज्ञानिक नुकसान होता है और वे इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए सक्रिय रूप से सावधानी बरतती हैं. एक शोध के अनुसार देश में 40 या उससे कम आयु की 84 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि वे उत्पीड़न या उसके डर के कारण अपने शहर के किसी निश्चित क्षेत्र में जाने से बचती हैं.

अकेली महिला के तौर पर उन का फील्ड वर्क करना और दुसरे शहर जाना भी मुश्किल होता है. कभी रात में लौटना हुआ तो एक दिन ज्यादा रुकना पड़ता है. अगर ये संभव नहीं है तो रात में वापस आकर किसी के यहां रुक कर सुबह निकलती हैं. उन्हें होटल लेते वक्त भी ध्यान रखना होता है कि रूम बिल्कुल अंदर का न हो, स्टाफ ठीक हो और होटल की लोकेशन भी सही हो. इन सब में होटल का खर्च ज्यादा आता है. निश्चित रूप से खुद की सुरक्षा की चिंता एक अतिरिक्त काम है जो लड़कियों को अपनी सुरक्षा के लिए करना पड़ता है.यही नहीं महिलाओं को यह भी चिंता करनी होती है कि किस जगह क्या पहनना उचित होगा, कहां किस समय जाना है, कितनी देर तक बाहर रहना है ताकि वह सुरक्षित रह सकें.

समाज और प्रशासन का योगदान भी जरूरी

महिलाएं अपनी सुरक्षा को ले कर भयभीत न रहें और सहजता से घर से बाहर की गतिविधियों में भाग लें इसके लिए सब से पहले जरुरी है को वे खुद की फिटनेस का ख़याल रखें और फिज़िकली स्ट्रांग बनने का प्रयास करें. इस के अलावा सड़कों और परिवहन के बुनियादी ढांचे को महिलाओं की जरूरतों के हिसाब से और सुरक्षित बनाया जाना चाहिए. सार्वजनिक परिवहन को और अधिक सुलभ बनाना चाहिए. पैदल यात्रा के लिए सही तरीके के फुटपाथ, जगह जगह स्ट्रीट लाइटें और वाशरूम हों, बस स्टैंड और स्टेशन जैसे व्यस्त इलाकों में अतिरिक्त सुरक्षा का इंतजाम होनी चाहिए.

दिल्ली सामूहिक बलात्कार और हत्या के एक साल बाद जस्टिस वर्मा समिति सिफारिश करती है कि सभी सड़कों पर स्ट्रीट लाइट, 24 घंटे सार्वजनिक परिवहन, पुलिस बूथों और कियोस्क की संख्या में वृद्धि और जेंडर के प्रति संवेदनशील पुलिसिंग का प्रस्ताव किया जाए. लेकिन असल में हालात चिंताजनक है. ये भी समझने की जरूरत है कि हमें महिलाओं के लिए नियम बनाने की नहीं बल्कि कुल मिलाकर एक सुरक्षित समाज बनाने की जरूरत है जहां इसकी जिम्मेदारी केवल महिलाओं पर नहीं बल्कि नागरिक समाज, प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था पर भी ठहराया जा सके.

बाथरूम की गंदगी से हो सकते हैं बीमार, रोजाना करें इसकी सफाई

राइटर-  शोभना अग्रवाल

झिलमिलाते परदे चमकता फर्नीचर, आकर्षक कालीन सभी रेखा के वैभव की कहानी कह रहे थे. घर का सजा कोनाकोना उस की सूझबूझ का परिचायक था. इतने सारे लोगों को खाने का निमंत्रण दे कर भी वह कितनी कुशलता से सबकुछ संभाल रही थी. मन ही मन मैं रेखा की तारीफ करते नहीं थक रही थी.

खाना खाने के बाद मुझे बाथरूम जाने की आवश्यकता महसूस हुई. पूछने पर रेखा मुझे बाथरूम के दरवाजे तक छोड़ पुन: काम में व्यस्त हो गई.

बाथरूम की दशा: मगर यह क्या? बाथरूम अपनी उपेक्षा पर आंसू बहा रहा था. सीलन, पेशाब व गीले कपड़ों की गंध मुझे अंदर आने से रोक रही थी. एक ओर बिना धुले कपड़ों का ढेर, दूसरी ओर छोटे बच्चों के सूसू, पौटी की चढ्ढी व नैपकिन पड़े थे. बाथरूम की दशा देख कर मुझे ऐसा लगा मानो घर की सजावट उचित नहीं थोथी है. यह बाथरूम सिल्क पर लगे टाट के पैबंद सरीखा है

अहमियत न समझना: प्राय: घरों में कमरों की सजावट एवं सफाई पर ही ध्यान दिया जाता है. बाथरूम को, अभी बहुत काम है बाद में देखेंगे सोच उपेक्षित ही छोड़ दिया जाता है. मगर यह सोच उचित नहीं है. बाथरूम को भी घर का एक आवश्यक  हिस्सा मान कर सफाई और सजावट की जानी चाहिए मेहमानों को खयाल में रख कर भी बाथरूम की उपेक्षा न करें. जो अतिथि आप के घर आता है उस तो बाथरूम की आवश्यकता हो ही सकती है. इस के गंदा होने पर घर की चमकदमक खोखली सी प्रतीत होगी.

रोशनी, पानी और हवा: बाथरूम कैसा भी हो अर्थात छोटा या बड़ा, उस में पर्याप्त हवा का प्रबंध होना आवश्यक है. यदि इस ओर ध्यान न दिया तो कभी परेशानी भी आ सकती है. दम घुटने जैसी या चक्कर आने की संभावना हो सकती है. छोटेछोटे या बड़े रोशनदान और खिड़की की व्यवस्था अवश्य देख लें. पानी व रोशनी भी उतनी ही आवश्यक है. इस का भी अवश्य ध्यान करें.

फ्यूज बल्ब बदल दिया जाए. पानी के नल में निरंतर पानी आए. पानी नल में उचित मात्रा में आना चाहिए. मेहमानों के आने के समय विशेष सावधानी बरतें. कभीकभी नल में कचरा आ जाता है और नल से कम पानी आने लगता है. उस की सफाई कर दें या करवा दें. पानी के निष्कासन का भी उचित प्रबंध होना जरूरी है. यदि संभव है तो निकास पंखा भी लगवाएं.

बाथरूम: अब तो घरों में बाथरूम कमरों से जुड़ा कर ही बनाएं जाते हैं. ऐसे में सफाई की अधिक आवश्यकता होती है. यह सेहत के लिए भी जरूरी है. चाहे स्वयं करें अथवा करवाएं, बाथरूम सदैव हर हाल में साफ ही रहना चाहिए. थोड़ी सी सुगंध की व्यवस्था भी हो तो सोने में सुहागा होगा. भीनीभीनी सुगंध मनभावक होगी.

आवश्यक चीजें: बाथरूम में आवश्यक चीजें भी यथास्थान होनी चाहिए. यह घर वालों की कुशलता की परिचायक होंगी. सभी कार्य केवल गृहिणी पर छोड़ देना उचित न होगा. भलीभांति देख लें कि वहां पर मग, बालटी, साबुन, तौलिया आदि रखा हो.

सजावट: यथा संभव बाथरूम में थोड़ी सी सजावट भी कर दें. जहां ठीक लगे वहां पायदान बिछा दें. 1 या 2 फूलदान भी सजा सकते हैं. जरूरत होने पर कागज या प्लास्टिक के फूल भी सजा सकते हैं. सजावट के लिए आप  बोतल या छोटी शीशी में मनी प्लांट आदि भी लगा सकते हैं. जगह के अनुसार छोटीबड़ी तसवीर भी लगाई जा सकती है. यदि चाहं तो परदे भी लगा सकते हैं.

प्रतिदिन की सफाई: बाथरूम की रोज सफाई होनी जरूरी है. यदि आप स्वयं सफाई करते हैं तो समय के अनुसार तय कर लें. नहाने से पहले का समय भी ले सकते हैं. दीवार और फर्श साफ करने के लिए बाजार से कोई भी वस्तु खरीद सकते हैं. वैसे तो आजकल विभिन्न प्रकार के टाइल्स लगाते हैं जो थोड़ी ही सफाई से साफ रहती हैं. मैले या गीले कपड़े रोज ही धो लिए जाए तो अच्छा रहता है वरना उन्हें किसी ढक्कन वाली टोकरी में या बालटी में रख दें और जल्दी से जल्दी धो डालें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें