ऐसे होगी शिशु की बेहतर देखभाल

हाल ही में की गई एक रिसर्च में अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि युवा माताओं में अपने नवजात शिशु की देखभाल और उस के स्वास्थ्य को ले कर चिंता बढ़ती ही जा रही है. कुछ हद तक इस के लिए न्यूक्लियर फैमिली का सिस्टम और कुछ हद तक इंटरनैट पर बेहद सहजता से उपलब्ध तरहतरह की स्वास्थ्य सूचनाएं भी जिम्मेदार हैं.

मोनाश विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अनुसंधान में पाया गया कि ज्यादातर मांएं खुद को गैरजिम्मेदार, लापरवाह और खराब मां मान कर अपराधबोध से घिरी रहती हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि वे एक अच्छी मां नहीं हैं. इस से उन के मन में शर्म, एंग्जाइटी और स्ट्रैस जैसी भावनाएं घर कर जाती हैं.

अपराधबोध क्यों

सेहत विज्ञानियों ने पाया कि 40 फीसदी नई मांओं में ऐंग्जाइटी का स्तर थोड़ा ही ज्यादा था, जबकि 45 फीसदी में यह काफी अधिक था. कंसल्टैंट साइकिएट्रिस्ट डा. संजय गर्ग कहते हैं कि नई मांओं में अपने नवजात शिशु के प्रति चिंता आजकल एक आम समस्या है. उन का कहना है कि न्यूक्लियर फैमिलीज में अनुभवी सास तो होती नहीं, इसलिए पढ़ीलिखी आधुनिक बहुएं हर सवाल का जवाब इंटरनैट पर ढूंढ़ती हैं. इस में इतनी सारी बातें लिखी होती हैं कि वे कन्फ्यूज हो जाती हैं और काफी हद तक डर भी जाती हैं. उन्हें पलपल यह डर सताने लगता है कि वे तो अपने बच्चे के लिए इन में से बहुत सारी बातों पर अमल कर ही नहीं रहीं.

इस के अलावा नई मांओं में हारमोनल बदलाव भी आते हैं और उन की सामाजिक, पारिवारिक और कैरियर लाइफ में भी उतारचढ़ाव आते हैं. इन सब के साथ अचानक तालमेल बैठा पाना कोई सहज काम नहीं होता है. इसलिए नई मांएं आसानी से ऐंग्जाइटी स्ट्रैस का शिकार हो जाती हैं.

क्या है पोस्टपार्टम ऐंग्जाइटी

किसी भी मां के लिए अपने अबोध शिशु के लिए चिंता करना एक सहज सी बात है, क्योंकि शिशु अपनी बात कह कर नहीं बता सकता और खुद की रक्षा करने में भी अक्षम होता है. लेकिन जब यह चिंता सतत और जरूरत से ज्यादा हो, तो मां की सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकती है. इस स्थिति को पोस्टपार्टम ऐंग्जाइटी कहते हैं. इस मनोस्थिति में ये लक्षण नजर आते हैं:

– खुद को अच्छी मां नहीं समझना.

– बच्चे की सेहत, सुरक्षा, नींद आदि के बारे में हर वक्त चिंतित रहना.

– मन में शिशु के जीवन को ले कर बुरे खयाल आना और बुरे सपने देखना.

– शिशु की हर गतिविधि में कुछ कमी नजर आना. बारबार डाक्टर के पास ले कर जाना.

– नींद से चौंक कर उठना और बारबार शिशु की ओर निहारना.

– भूख न लगना.

– मांसपेशियों में दर्द और खिंचाव महसूस होना.

– किसी भी काम में मन न लगना, मन का एकाग्र न हो पाना.

– भुलक्कड़ प्रवृत्ति हावी हो जाना.

– चिड़चिड़ा स्वभाव और बातबात में गुस्सा आना.

– सिरदर्द की शिकायत और रोंआसा स्वभाव होना.

कैसे उबरें इस अपराधबोध से

आप को यह बात समझनी होगी कि आप की ऐंग्जाइटी अच्छी पेरैंटिंग की बड़ी दुश्मन हो सकती है. इसलिए आप को समस्या से उबरने की गंभीर कोशिश करनी होगी. अपराधबोध और अवसाद से उबरने के लिए आप को अपनाने होंगे ये उपाय:

शिशु रोग विशेषज्ञ पर रखें भरोसा: शिशु की सेहत या पालनपोषण से संबंधित कोई भी संदेह या प्रश्न मन में हो तो बच्चों के डाक्टर से खुल कर सलाह लें. आप के दिमाग में जितनी भी शंकाएं उमड़ रही हों उन्हें एक कागज पर नोट कर के ले जाएं और क्रम से सब का समाधान पूछ लें ताकि बाद में कुछ छूट न जाए. इंटरनैट पर शिशु पालन के टिप्स खोजने के बजाय बच्चों के डाक्टर या परिवार की अनुभवी बुजुर्ग महिलाओं की सलाह लें.

भावनाएं शेयर करें: किसी प्रकार की शंका या सवाल मन में हो, तो खुदबखुद उस से जूझने और मन ही मन चिंता करने के बजाय अपने पति, मां, भाभी, बहन से शेयर करें. इस से उन की सलाह मिलेगी और मन हलका होगा.

खुद को सराहें: अपनेआप को सराहें कि एक मां के रूप में आप अपने शिशु के लिए जो कुछ कर रही हैं, वह बैस्ट है. खुद को समझाएं कि आप शिशु को हर संभव सुविधा दे रही हैं, समयसमय पर डाक्टर को दिखा रही हैं, सही ढंग से स्तनपान करा रही हैं और जरूरी टीकाकरण भी करा रही हैं. एक मां इस से ज्यादा और कर भी क्या सकती है.

शिशु की जिम्मेदारी दूसरों को भी दें: दिन भर नवजात शिशु के पीछे लगे रहने और उस की 1-1 गतिविधि को शंका की दृष्टि से देखना शिशु और खुद आप के लिए भी नुकसानदायक होता है. दिन में कुछ वक्त अपनी साजसंभाल और आराम के लिए भी निकालें. उस दौरान शिशु की देखभाल की जिम्मेदारी पति, आया या परिवार के किसी दूसरे सदसय को दें. आप समुचित आराम करेंगी और सही समय पर भोजन करेंगी तभी बच्चे का ठीक से खयाल रख पाएंगी. 

मनोचिकित्सक की मदद लें: अगर आप ऐंग्जाइटी से ज्यादा परेशान हैं और इसे कम करने की आप की कोशिश कामयाब नहीं हो रही है, तो बेहिचक किसी अनुभवी मनोविज्ञानी की सलाह लें. वे आप को कई रिलैक्सेशन टैक्निक्स बताएंगे व आप की काउंसलिंग करेंगे, जिस से आप को सुकून मिलेगा.

शराब करे बरबाद

मध्यवर्गीय शहरी भारतीय महिलाओं के लिए शराब पीना अब वर्जित नहीं रहा. ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि ज्यादातर औरतें शराब क्यों पी रही हैं? अध्ययन करने पर निम्न कारण सामने आते हैं:

– आर्थिक स्वतंत्रता व बदलते सामाजिक वातावरण ने महिलाओं में फैली वर्जनाओं को कम किया है.

– कार्य का दबाव, प्रोफैशनल जिम्मेदारियां और दोस्तों का दबाव हफ्ते में 1 बार ड्रिंक करने के लिए महिलाओं को विवश कर देता है.

– मैट्रो शहरों में हफ्ते में 1 बार लेडीज नाइट ने ड्रिंक की आदत बहुत बढ़ाई है.

– भारतीय उद्योग में स्त्रियों की हर साल 15% बढ़ोतरी हो रही है.

– हर हफ्ते ज्यादातर महिलाएं सामान्य से अधिक मात्रा में शराब पीती हैं.

– पुरुषों के मुकाबले महिलाओं पर शराब ज्यादा बुरा प्रभाव डालती है. इस की आदी होने की संभावना भी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में अधिक होती है.

30 वर्षीय हर्षिता मेनन का कहना है कि उसे शराब पी कर नाचना बहुत पसंद है. जब वह पीए हुए नहीं होती तब नाचना ऐसा नहीं होता जैसाकि नशे के बाद होता है, क्योंकि नशे के बाद संगीत के प्रति उस की दीवानगी और बढ़ जाती है. शरीर संगीत के अनुसार नाचने लगता है. शराब उसे खुशी प्रदान करती है तथा बातूनी व बेशर्म बनाती है. यह युवा प्रोजैक्ट मैनेजर हफ्ते में औसतन 5 बार शराब पीती है. यह अपने बौयफ्रैंड के साथ रोज शाम को कम से कम 1 बोतल बीयर अवश्य पीती है और यदि सुबह 2 बजे तक मजा न आए तो व्हिस्की पीती है.

मध्यवर्गीय शहरी भारतीय महिलाओं में से सिमरन कौर भी एक है, जो हर हफ्ते कम से कम 2 दिन ‘बार’ अवश्य जाती है, जहां दिन भर के काम के बाद शराब पीती है या फिर 2 रात कौकटेल्स में गुजारती है.

महिलाओं में बढ़ती शराब की लत

आर्थिक रूप से अपनी आजादी व बदलती सामाजिकता के कारण शहरी महिलाएं पहले से ज्यादा शराब पीने लगी हैं. इन आधुनिक महिलाओं की पीने की शुरुआत बीयर से होती है. उस के बाद ये व्हिस्की, वोदका, जिन आदि पीने लगती हैं और फिर यह सिलसिला लगातार जारी रहता है.

20वीं सदी के अंत तक भारतीय महिलाएं लगभग 25 वर्ष की उम्र में पीना शुरू करती थीं, लेकिन वर्तमान समय में यह उम्र घट कर मात्र 11-12 साल रह गई है.

19 साल की लीला का कहना है कि वह 12 साल की उम्र से शराब पी रही है. 22 वर्षीय चेन्नई निवासी संगीता एक ऐड एजेंसी में काम करती है. वह कहती है कि उस ने 15 साल की उम्र तक आतेआते वह सब कर लिया था, जो एक 19 साल का लड़का करता है.

स्टेटस सिंबल है शराब

आधे से ज्यादा पियक्कड़ औरतें पुरुषों जितनी तेजी से ही शराब पीती हैं. ज्यादातर पार्टियों में जहां हर कोई इस बात पर सहमत होता है कि किसी का भी स्तर उस के पीने के स्तर से मापा जाएगा, वहां बहुत बड़े स्तर पर सामाजिक सहमति होती है तथा वहां आप की आधुनिकता को भी चैलेंज होता है, जिस में आप का मेजबान आप से बारबार यह पूछता है कि आप की ड्रिंक कहां है?

23 वर्षीय बैंगलुरु निवासी शोध छात्रा प्रीति ने बताया कि वह अपनी सब से बड़ी कमजोरी शराब न पीना मानती है. उस का कहना कि उस के पब के साथी उस से यही कहते हैं कि जब शराब नहीं पीनी है, तो पब क्यों आई. उसे उन की बातों का जवाब देना बहुत कठिन हो जाता है. उस पर पिछड़ेपन का ठप्पा लग जाता है.

इस तरह की पार्टी या गैटटूगैदर में सोबर लोग फिट नहीं होते हैं. 26 वर्षीय पूजा का कहना है कि जब उस ने ऐडवरटाइजिंग एजेंसी में नौकरी शुरू की तो ड्रिंकिंग केवल सप्ताह के अंत में या फिर किसी के जन्मदिन आदि मौके पर ही होती थी, परंतु अब यह आदत में शुमार हो गई है. अब यह मीटिंग, सामाजिक संबंधों तथा आपसी संपर्क बढ़ाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण चीज है. साथ ही, अपना तनाव मिटाने या रात के 2 बजे तक काम करने की हताशा को दूर करने का जरिया भी है.

डा. अतुल कक्कड़ कहते हैं, ‘‘शराब पीने वाली महिलाओं की तादाद दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही है. मैं पिछले 5 सालों में कई ऐसी युवा लड़कियों से मिला, जिन्हें ड्रिंकिंग से होने वाली समस्याएं थीं जैसे पाचनक्रिया में कमी, गैस की समस्या, हैपेटाइटिस, ध्यान की कमी, याददाश्त की समस्या, हलके दौरों की समस्या आदि.’’

अब पहले जैसा माहौल नहीं रहा है, न ही कोई वर्जना महिलाओं, लड़कियों को पीने से रोक पाती है. अब सब कुछ सामान्य है. किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह क्या करता या करती है. आधुनिक लड़कियां एकदूसरे को पिछली गुजरी बरबाद रात के बारे में गले में हाथ डाल कर ऐसे बताती हैं जैसे उन्होंने कोई बहुत बड़ा काम किया हो.

भारतीय शराब उद्योग इस में अधिकतम बढ़ोतरी चाहता है. शराब कंपनियां लगातार अपने हथियारों का प्रयोग कर रही हैं. वे इसी कोशिश में हैं कि औरतें बार से दूर न रहें. इस के लिए विज्ञापनों को और आकर्षक बनाया जा रहा है. फिल्मों के सैटों पर मुक्त शराब बांटी जाती है ताकि फिल्मों में नायकनायिका भी पीते दिखाए जा सकें. अब खलनायक ही नहीं पीते.

भारतीय नाइट क्लबों तथा बड़े लोगों की होने वाली नाइट पार्टियां जो केवल शराब से रंगीन होती हैं, उन की संख्या बढ़ती जा रही है. जिस तरह से औरतों के बीच शराब पीना एक सामाजिकता बनती जा रही है, उस के अनुसार 1-2 पैग पर रुकना बहुत मुश्किल है.

हाल ही के एनआईएमएचएएनएस के अध्ययन के अनुसार ज्यादातर भारतीय महिलाएं 1-2 पैग पर नहीं रुकती हैं. एक बार में सामान्य ड्रिंक की अपेक्षा कम से कम दोगुना तो पीती ही हैं.

सेहत पर भारी पड़ती शराब

यह दुख की बात है कि महिलाएं भी पुरुषों की तरह बिना जमीन पर गिरे इस पेय को घूंटघूंट कर पी रही हैं, इसलिए उन का लिवर भी अब पहले जैसा नहीं रहा है. स्त्रियों के लिवर में डीहाइड्रोजन ऐंजाइम की मात्रा कम होती है, जोकि शराब के टुकड़े करता है. यही कारण है कि तंत्रिका प्रणाली पर शराब का नशीला प्रभाव बढ़ जाता है. चूंकि महिलाओं के शरीर में पानी की मात्रा कम होती है, इसलिए शराब ज्यादा अम्लीय हो जाती है. इस से उन के शरीर में फैट हारमोन व सैक्स हारमोन की अधिकता हो जाती है. लंबे समय तक शराब का सेवन करने से उस का दुष्प्रभाव ज्यादा भयानक होता है, क्योंकि मस्तिष्क व लिवर के ऊतक क्षतिग्रस्त हो जाते हैं.

डा. बेनेगल के अनुसार महिलाओं का एक बड़ा वर्ग अपना दुख, घबराहट, चिंता आदि को मिटाने के लिए भी शराब का सहारा ले रहा है, जबकि पुरुष केवल अच्छा महसूस करने व सामाजिक संबंध बनाने के लिए पीते हैं. अत: आधुनिक व उदारवादी समाज होने व शराब पीने वालों के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है, जो औरतें आदतन शराब पीती हैं वे पुरुषों से ज्यादा जल्दी शराब पीने की आदी हो जाती हैं.

शराब पीने की आदत ज्यादातर स्त्रियों की नौकरी व सेहत आदि को प्रभावित करती है. वे चाहें तो अपनी मित्रों के साथ मिल कर शराब पीना छोड़ सकती हैं. 30 वर्षीय रुचिता का कहना है

कि 11 साल पहले जब उस ने स्वयं सहायता समूह जौइन किया था तब मुश्किल से ही कोई महिला उस में शामिल होती थी. लेकिन अब लगभग 45 नियमित मैंबर्स हैं और दर्जनों जुड़ने की कोशिश करती हैं. लेकिन आज भी वे अपनी गुप्त सभाओं को बंद करने को तैयार नहीं हैं. पहले सभी घर में रहते थे परंतु अब सब बाहर रहते हैं. पहले विदेशी महिला, विदेशी व्हिस्की के मुकाबले आराम से मिल जाती थी. समाज को दोनों चीजों की जरूरत थी. आज आप विदेशी बीयर, वाइन, व्हिस्की और वोदका आसानी से पा सकते हैं. विदेशी महिला नहीं. यदि आप शराब से नजरें चुराएंगे तो आप को बहुत पिछड़ा कहा जाएगा. इस तरह से शराब का शिकंजा कसता जाता है.

नूपुर ने अपनी 14 साल की शराब पीने की आदत को हाल ही में छोड़ा है, जो किसी भी शराबी के लिए बहुत बड़ी बात है. उस ने बताया, ‘‘मैं ने पहले धीरेधीरे शराब को बुरा मानना शुरू किया. फिर मैं ने पार्टी में एक अलग ग्रुप बना लिया. जब मैं ने एक दिन होस्ट से कहा कि मुझे शराब नहीं पीनी तो उस ने कहा कि आप की सोच बहुत अच्छी है. फिर कभी मैं ने शराब का सेवन नहीं किया. फिर मेरी हर शाम खुशनुमा बन गई.’’

सीमा ने बताया, जो अब तलाकशुदा का बिल्ला लगाए घूमती है, ‘‘अपने पूर्व पति के साथ 10 दिन की जयपुर यात्रा से लौटने पर मुझे बिना शराब पीए रहना मुश्किल हो गया था, क्योंकि मैं इस की आदी हो गई थी. एक दिन शराब न मिलने पर मेरा शरीर इस के लिए तड़प रहा था. मैं ने दोपहर में वोदका पी, क्योंकि इस से महक नहीं आती और रात में 5-6 पैग व्हिस्की पी और फिर अगले दिन भी शराब पी. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि मैं क्या पी रही हूं. मेरा वैवाहिक जीवन जो ठीक से शुरू भी नहीं हुआ था, खत्म हो गया था यानी पति से संबंधविच्छेद हो गया.’’

कभी कालेज की ब्यूटी क्वीन रही सीमा का चेहरा धब्बेदार, शरीर थुलथुल व बेकार हो गया था. पुराने दोस्त उसे पहचान नहीं पा रहे थे. इस से सब कुछ साफ हो जाता है कि शराब कितनी हानिकारक है. यही नहीं कई शराबी अपराधी भी बन जाते हैं.     

– डा. प्रेमपाल सिंह वाल्यान –

बढ़ते खर्च के लिए माता पिता जिम्मेदार

सीबीएसई यानी सैंट्रल बोर्ड औफ सैकंडरी एजुकेशन ने देश के सारे निजी स्कूलों को अपने आर्थिक मामलों की विस्तृत जानकारी जनसाधारण के लिए नैट पर डालने का आदेश जारी किया है, जिस में अध्यापकों के वेतन, हर मद पर किया खर्च, बिल्डिंग के रखरखाव का खर्च आदि शामिल है. महंगी होती शिक्षा से परेशान पेरैंट्स बहुत हल्ला मचा रहे हैं कि शिक्षा व्यवसाय बन गई है और स्कूलों को व्यापार की तरह चला कर संचालक मालिक बन बैठे हैं.

यह बात सही है कि स्कूल अब धंधा बन गए हैं और इस धंधे में लगे लोगों ने एक माफिया बना लिया है, जिस में स्कूली शिक्षा से जुड़ी नौकरशाही पूरी तरह शामिल हो गई है और इस में राजनीति पूरी तरह घुस गई है. बहुत से नेताओं का व्यवसाय स्कूल ही हैं और वे अपनी राजनीति स्कूलों के दफ्तरों से चलाते हैं.

इन स्कूलों पर लगाम लगाने के लिए लगभग कोई संस्था नहीं है. सीबीएसई का मुख्य काम तो पाठ्यक्रम तय करना व परीक्षाएं करवाना है. स्कूल कैसे चलते हैं, यह देखना उस का काम नहीं है पर चूंकि कोई और रैग्युलेटर नहीं है, यह संस्था ही निर्देश जारी करती रहती है, जिन में से ज्यादातर अव्यावहारिक होते हैं और उन से न शिक्षा का स्तर सुधरा है और न ही मुनाफाखोरी बंद हुई है. कहने को तो शिक्षा देना व्यवसाय नहीं, जन सेवा का काम है और स्कूलों की आय पर कर नहीं लगता पर स्कूल अपना लाभ मालिकों या संचालकों में बांट भी नहीं सकते. स्कूलों को ज्यादातर सोसायटियां चलाती हैं पर हर सोसायटी पर परिवारों का कब्जा होता है और कभीकभार पेरैंट्स के दबाव में या नुकसान होने पर खरीदफरोख्त होती है.

स्कूलों का व्यावसायीकरण तो होना ही है, क्योंकि मातापिता खुद मांग करते हैं कि स्कूल में तरहतरह की सुविधाएं हों. आजकल एयरकंडीशंड कमरों की मांग होने लगी है. इनडोर स्विमिंग पूल मांगे जा रहे हैं. साल में एक विदेशी यात्रा हो. बसों का रखरखाव अच्छा हो. स्कूल लिपापुता हो. स्कूल में कौफीकैफे डे या मैक्डोनाल्ड खुला हो. जब इस तरह की शिक्षा से अलग मांगें की जाएंगी तो पैसे तो कोई देगा ही.

अगर स्कूल फटेहाल लगे तो बच्चे खुद को हीन समझते हैं. वे जोर डालते हैं कि ऐसे स्कूल में भेजा जाए जहां फीस ज्यादा हो. मातापिता सामाजिक प्रतिष्ठा पाने के लिए अपनी हैसीयत से बढ़ कर नाम वाले महंगे स्कूल में भेजते हैं. फिर कैसी खर्चों की जांच? कैसा स्पष्टीकरण? यदि आप फाइवस्टार स्कूल में जाएंगे तो 300 की चाय के प्याले का खर्च कैसे पूछ सकते हैं?

निजी स्कूल महंगे हैं तो मातापिता सरकारी स्कूलों में बच्चों को भेजने के लिए स्वतंत्र हैं जहां अच्छे शिक्षक हैं भले रखरखाव खराब हो. अगर मातापिता मिल कर स्कूलों की सेवा करें तो सरकारी स्कूल भी चमचमा उठें. स्कूलों के बढ़ते खर्च के लिए मातापिता जिम्मेदार हैं, सरकार नहीं. कानूनअदालतों को इस डिमांडसप्लाई से दूर रखें. मूर्ख पेरैंट्स यही डिजर्व करते हैं तो कोई बीच में दखल न दे.

ब्रैंडेड वर वधू

हर लड़की अपने उपलब्ध विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ घरवर देख कर शादी करती है, पर जल्दी ही वह कहने लगती है, तुम से शादी कर के तो मेरी किस्मत ही फूट गई है या तुम ने आज तक मुझे दिया ही क्या है. इसी तरह प्रत्येक पति को अपनी पत्नी ‘सुमुखी’ से जल्द ही ‘सूरजमुखी’ लगने लगती है.

लड़के के घर वालों को तो बरात के लौटतेलौटते ही अपने ठगे जाने का एहसास होने लगता है, जबकि आज के इंटरनैट के युग में पत्रपत्रिकाओं, रिश्तेदारों, इंटरनैट तक में अपने कमाऊ बेटे का पर्याप्त विज्ञापन करने के बाद जो श्रेष्ठतम लड़की, अधिकतम दहेज के साथ मिल रही होती है, वहीं रिश्ता किया जाता है.

यह असंतोष तरहतरह से प्रकट होता है. कहीं बहू जला दी जाती है, तो कहीं आत्महत्या करने को विवश कर दी जाती है. पराकाष्ठा की ये स्थितियां तो उन से कहीं बेहतर ही हैं, जिन में लड़की पर तरहतरह के लांछन लगा कर उसे तिलतिल जलने पर मजबूर किया जाता है.

नवयुगल फिल्मों के हीरोहीरोइन की तरह उच्छृंखल हो पाए, इस से बहुत पहले सास, ननद की ऐंट्री हो जाती है. स्टोरी ट्रैजिक बन जाती है और विवाह, जो बड़े उत्साह से 2 अनजान लोगों के प्रेम का बंधन और 2 परिवारों के मिलन का संस्कार है, एक ट्रैजिडी बन कर रह जाता है. घुटन के साथ एक समझौते के रूप में समाज के दबाव में मृत्युपर्यंत यह ढोया जाता है. ऊपरी तौर पर सुसंपन्न, खुशहाल दिखने वाले ढेरों दंपती अलगअलग अपने दिल पर हाथ रख कर स्वमूल्यांकन करें, तो पाएंगे कि विवाह को ले कर एक टीस कहीं न कहीं हर किसी के दिल में है.

यहां आ कर मेरा व्यंग्य लेख भी व्यंग्य से ज्यादा एक सीरियस निबंध बनता जा रहा है. मेरे व्यंग्यकार मन ने विवाह की इस समस्या का समाधान ढूंढ़ने का यत्न किया. मैं ने पाया कि दामाद को 10वां ग्रह मानने वाले इस समाज में, यदि वरवधू की मार्केटिंग सुधारी जाए, तो स्थिति सुधर सकती है. विवाह से पहले दोनों पक्ष ये सुनिश्चित कर लें कि उन्हें इस से बेहतर और कोई रिश्ता उपलब्ध नहीं है. वरवधू की कुंडली मिलाने के साथसाथ भावी सासूमां से भी मिलवा ली जाए. वर यह तय कर ले कि जिंदगी भर ससुर को चूसने वाला पिस्सू बनने की अपेक्षा पुत्रवत, परिवार का सदस्य बनने में ही दामाद का बड़प्पन है, तो वैवाहिक संबंध मधुर स्वरूप ले सकता है.

अब जब वरवधू के ऐक्सलरेटेड मार्केटिंग की बात आती है, तो मेरा प्रस्ताव है ब्रैंडेड वर, वधू सुलभ कराने का. यों तो शादी डौट कौम जैसी कई अंतर्राष्ट्रीय वेबसाइट सामने आई हैं.

माधुरी दीक्षित ने तो एक चैनल पर बाकायदा एक सीरियल ही शादी करवाने को ले कर चला रखा था. अनेक सामाजिक एवं जातिगत संस्थाएं सामूहिक विवाह जैसे आयोजन कर ही रही हैं. लगभग सभी अखबार, पत्रिकाएं वैवाहिक विज्ञापन दे ही रहे हैं. पर मेरा सुझाव कुछ हट कर है.

यों तो गहने, हीरे, मोती सदियों से हमारे आकर्षण का केंद्र रहे हैं, पर हमारे समय में जब से हीरा है सदा के लिए विज्ञापन का महावाक्य आया है, हमें टिकाऊपन की कीमत समझ आने लगी है. आईएसआई प्रमाणपत्र का जमाना है साहब! खाने की वस्तु खरीदनी हो तो हम चीज नहीं ऐगमार्क देखने के आदी हो गए हैं. पैकेजिंग की डेट और ऐक्सपायरी अवधि, कीमत सब कुछ प्रिंटेड पढ़ कर हम कुछ भी सुंदर पैकेट में खरीद कर खुश होने की क्षमता रखते हैं. अब आईएसआई के भारतीय मार्के से हमारा मन नहीं भरता. हम ग्लोबलाइजेशन के इस युग में आईएसआई प्रमाणपत्र की उपलब्धि देखते हैं. और तो और स्कूलों को भी आईएसआई प्रमाणपत्र मिलता है. यानी सरकारी स्कूल में दो दूनी चार हो, इस की कोई गारंटी नहीं है, पर आईएसआई प्रमाणित स्कूल में यदि दो दूनी छ: पढ़ा दिया गया, तो कम से कम हम कोर्ट केस कर के मुआवजा तो पा ही सकते हैं.

हाल ही में एक समाचार पढ़ा कि अमुक ट्रेन को आईएसआई प्रमाणपत्र मिला है. मुझे उस टे्रन में दिल्ली तक सफर करने का अवसर मिला, पर मेरी कल्पना के विपरीत टे्रन का शौचालय यथावत था, जहां विशेष तरह की चित्रकारी के द्वारा यौन शिक्षा के सारे पाठ पढ़ाए गए थे, मैं सब कुछ समझ गया. खैर, विषयातिरेक न हो, इसलिए पुन: ब्रैंडेड वरवधू पर आते हैं. आशय यह है कि ब्रैंडेड खरीद से हम में एक कौन्फिडैंस रहता है.

शादी एक अहम मसला है. लोग विवाह में करोड़ों रुपए खर्च कर देते हैं. कोई हवा में विवाह रचाता है, तो कोई समुद्र में. हाल ही में भोपाल में एक जोड़े ने ट्रैकिंग करते हुए पहाड़ पर विवाह के फेरे लिए. एक चैनल ने बाकायदा इसे लाइव दिखाया. विवाह आयोजन में लोग जीवन भर की कमाई खर्च कर देते हैं, उधार ले कर भी बड़ी शानोशौकत से बहू लाते हैं.

विवाह के प्रति यह क्रेज देखते हुए मेरा अनुमान है कि ब्रैंडेड वरवधू की अवश्य ही सफलतापूर्वक मार्केटिंग की जा सकेगी. ब्रैंडेड वरवधू को ब्रैंडेड बनाने वाली मल्टीनैशनल कंपनी सफल विवाह की कोचिंग देगी. मैडिकल परीक्षण करेगी. खून की जांच होगी. वधुओं को सासों से निबटने के गुर सिखाएगी. लड़कियों को विवाह से पहले खाना बनाने से ले कर सिलाईकढ़ाईबुनाई आदि ललित कलाओं का प्रशिक्षण देगी. भावी पति को वह कंपनी बच्चे खिलाने से ले कर खाना बनाने तक के तौरतरीके बताएगी, ताकि पत्नी इन गुणों की कमी के आधार पर पति को ब्लैकमेल न कर सके. विवाह का बीमा होगा.

इसी तरह के छोटेबड़े कई प्रयोग हमारे पढ़े लड़के ब्रैंडेड दूल्हेदुलहन पर लेबल लगाने से पहले कर सकते हैं. कहीं ऐसा न हो कि दुलहन के साथ साली फ्री का लुभावना औफर ही कोई व्यावसायिक प्रतियोगी कंपनी प्रस्तुत कर दे. अस्तु, मैं इंतजार में हूं कि सुंदर गिफ्ट पैक में लेवल लगे, आईएसआई प्रमाणित दूल्हेदुलहन मिलने लगेंगे और हम प्रसन्नतापूर्वक उन की खरीदारी करेंगे, विवाह एक सुखमय, चिरस्थाई प्यार का बंधन बना रहेगा. सात जन्म का साथ निभने की कामना के साथ, पत्नी ही नहीं, पति भी हरतालिका व्रत रखेंगे और ऐसे पति का ब्रैंडेड नाम होगा ‘पत्नीव्रता पति’.

यूएन में होगी पिंक की स्पेशल स्क्रीनिंग

बॉलीवुड के मेगास्टार अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘पिंक’ को भारत में दर्शकों द्वारा खूब सराहा गया है. फिल्म में अमिताभ और तापसी पन्नू द्वारा निभाए गए किरदार को काफी पसंद किया गया था. दर्शकों के साथ-साथ क्रिटिक्स को भी फिल्म बहुत पसंद आई थी और लगता है अब इस फिल्म को एक और उपलब्धि मिलने वाली है.

जी हां, हाल ही में अमिताभ ने ट्विटर के जरिए इस बात की जानकारी दी है कि फिल्म ‘पिंक’ की टीम को यूएन के हेडक्वॉटर न्यूयार्क में स्पेशल स्क्रीनिंग के लिए इंवाइट किया गया है. फिल्म की टीम को ये इंविटेशन यूएन के महासचिव सहायक ने दिया है.

बता दें कि फिल्म की कहानी तीन लड़कियों की थी जो दिल्ली में छेड़खानी का शिकार हो जाकी हैं. अमिताभ फिल्म में इन तीनों लड़कियों के वकील हैं.

अनिरुद्ध रॉय चौधरी द्वारा निर्देशित ‘पिंक’ 16 सितंबर को रिलीज हुई थी. फिल्म में अमिताभ और तापसी के साथ कीर्ति कुल्हारी और नवोदित एंड्रिया टैरियांग लीड रोल में थे.

ताकि घर से आती रहे भीनी भीनी खूशबू

घर में कई तरह की चीजें होती हैं. पर कुछ चीजों के कारण किचन या घर से बदबू आने लगती है. कई बार रूम फ्रेशनर से भी बदबू नहीं जाती. ऐसे में आपको और आपके घर के लोगों को बहुत परेशानी होती है. जरा सोचिए अगर ऐसे में कोई मेहमान घर आ जाए तो? ऐमबेरेसमेंट के अलावा फिर कुछ नहीं हो सकता.

इन टिप्स को अपनाने से आप मेहमानों के सामने ऐमबैरेस होने से बच सकती हैं-

1. दूर रखें बदबू

घर में डस्टबिन के नीचे ड्राइड कॉफी पाउडर या बाइकार्बोनेट सोडा रखें. ये चीजें बदबू एबसॉर्ब करती हैं. आप एक कटोरे में कॉफी और पानी का पेस्ट बनाकर फ्रिज में भी रख सकती हैं. इससे फ्रिज से बदबू नहीं आएगी. 15-20 दिन में बाउल बदलती रहें.

2. सिंक को दें खास ट्रिटमेंट

आपके किचन के सिंक में न जाने कितनी सारी चीजें जाती हैं, गंदे बर्तन से लेकर, गंदे ऐपलायंस तक. हर दिन, न जाने कितनी बार. इसलिए हफ्ते में कम से कम एक बार सिंक की अच्छे से सफाई करें. किचन के ड्रेन को साफ करने के लिए पहले एक कप बाइकार्बोनेट सोडा डालें उसके बाद एक कप सफेद सिरका डालें. 5 मिनट बाद गर्म पानी डाल दें. सिंक के आस पास की जगह से बदबू नहीं आएगी.

3. जब चाहिए इन्सटेंट फ्रेगनेंस

मेहमानों के आने में थोड़ा समय बाकी है और घर को खूशबूदार बनाना है. इसके लिए एक बर्तन में पानी उबाल लें. इसमें दालचीनी, नींबू या संतरे के छिलके का पाउडर और वैनिला ऐसेंस डालें. आप तुरंत फर्क महसूस करेंगी.

4. खूशबूदार रहे कालीन, रग्स और डोरमैट

बाइकार्बोनेट सोडा और दालचीनी के पाउडर को एक कप में मिक्स कर लें. अब इसे कार्पेट, रग्स और डोरमैट पर छिड़क दें. 1 घंटे के बाद वेक्युम कर लें. अगर आपका कार्पेट सफेद है तो दालचीनी यूज न करें.

5. जूते रहें घर से बाहर

बच्चों के गंदे, बदबूदार जूतों को घर से बाहर रखने में ही भलाई है. अगर आप ऐसा नहीं कर सकती, तो उन्हें समय समय पर साफ करते रहें.

6. मोमबत्ती

मोमबत्ती और सेंटेड कैंडल से घर की बदबू गायब हो जाती है. सेंटेड कैंडल को बिना जलाए हुए अलमारी में रखिए और फर्क देखिए.

7. पौधे

पौधे हवा को शुद्ध करते हैं. कुछ पौधे जैसे रोजमैरी की खूशबू आपको अपने घर में एक अलग ही एहसास देगी.

“अंगूरी भाभी का किरदार निभाना पसंद करूंगी”

टीवी रियलिटी शो ‘भाभी जी घर पर हैं’ हर घर का लोकप्रिय शो बन गया है. हर कोई इसका दीवाना हो रहा है. अब इस लिस्ट में पार्श्वगायिका अलका याज्ञनिक का नाम भी शामिल हो गया है.

पार्श्वगायिका अलका याज्ञनिक ‘भाभी जी घर पर हैं’ में अंगूरी भाभी की भूमिका को साधारण और प्यारा मानती हैं. इस वजह से अगर उन्हें यह किरदार निभाने का मौका मिलेगा, तो वह यह भूमिका जरूर निभाना चाहेंगी. अलका जल्द ही इस शो में दिखाई देंगी.

उन्होंने कहा, मैं भाभी जी घर पर हैं देखती हूं और मेरा पूरा परिवार इसका बहुत बड़ा प्रशंसक है. मुझे इसके सभी किरदार पसंद हैं, लेकिन सही पकड़े हैं संवाद ने सबको आकर्षित किया है. इसलिए मैं अंगूरी की फैन हूं. वह बहुत ही साधारण, प्यारी और नरमी से बोलने वाली हैं.

सनी लियोन लॉन्च करेंगी अपना एप

बॉलीवुड की हॉट एक्ट्रेस सनी लियोनी के दुनिया भर में लाखों फैन्स हैं जो उन्हें बहुत चाहते हैं, इसलिए सनी अब अपने फैन्स को एक तोहफा देने वाली हैं. बता दें कि वो तोहफा ये है कि सनी का एक एप लॉन्च होने वाला है.

जी हां, सनी ने ट्विटर के जरिए खुद इस बात की जानकारी दी है. पहले सनी ने ट्वीट किया, ‘मैं ये बताते हुए बहुत उत्साहित महसूस कर रही हूं कि 6 दिनों के अंदर मैं खुद का एप लॉन्च करने जा रही हूं. एक्सक्लूसिव कंटेंट के लिए इसे अभी प्री-रजिस्टर करें’.

इसके बाद उन्होंने फिर ट्वीट किया और लिखा, ‘मेरा ऑफिशयल एप लॉन्च होने में 5 दिन बचे हैं. क्या आपने अभी तक रजिस्टरेशन किया?’

बता दें कि सनी ने इससे पहले भी सनी ने साल 2014 में अपना एप लॉन्च किया था. सनी के उस एप को काफी पंसद भी किया गया था.

मुझे सिद्धार्थ से प्यार हैः आलिया

कुछ दिनों पहले खबर आई कि आलिया भट्ट और सिद्धार्थ मल्होत्रा का ‘ब्रेकअप’ हो गया है. हालांकि आलिया और सिद्धार्थ में से किसी ने भी अभी तक यह नहीं कबूला था कि वो रिलेशनशिप में हैं. लेकिन आखिरकार आलिया भट्ट ने कह ही दिया कि उन्हें सिद्धार्थ मल्होत्रा से प्यार है.

आलिया और सिद्धार्थ ने एक ही फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ से बॉलीवुड में कदम रखे थे. तभी से यह सुनने को मिल रहा था कि ये दोनों रिलेशनशिप में हैं. लेकिन पिछले दिनों खबर आ रही थी कि आलिया-सिद्धार्थ अब अलग हो गए हैं. कुछ प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान आलिया ने सिद्धार्थ से जुड़े सवालों को अनदेखा कर दिया. इससे भी लगा कि इन दोनों के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. लेकिन एक अंग्रेजी वेबसाइट को दिए हालिया इंटरव्यू के दौरान आलिया ने एक चौंकानेवाला कबूलनामा किया है.

हालांकि आलिया ने एक गेम के दौरान ही सही, लेकिन यह मान लिया कि उन्हें सिद्धार्थ से प्यार है. दरअसल, यहां आलिया से ऐसे सवाल किए गए, जो उनसे सर्च इंजन गूगल पर पूछे गए हैं. इनमें से एक सवाल यह भी था कि क्या आलिया को सिद्धार्थ से प्यार है? इस पर आलिया ने बिना कुछ सोचे बोल दिया, ‘हां मुझे सिद्धार्थ मल्होत्रा से प्यार है.’

वैसे बता दें कि आलिया इन दिनों अपनी फिल्म ‘डियर जिंदगी’ को लेकर चर्चा में हैं, जिसे बॉक्स ऑफिस पर अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. आलिया के साथ इस फिल्म में पहली बार शाहरुख खान स्क्रीन शेयर करते हुए नजर आ रहे हैं.

कहीं आपके मुंह से बदबू तो नहीं आती?

खान-पान में परहेज न करने, सोते समय दांत साफ न करने, पेट साफ न रहने व कब्ज रहने से मुंह से बदबू आती है. कई बार भरपूर पानी न पीने से भी मुंह से बदबू आती है. कुछ लोगों के मुंह से बदबू आना प्राकृतिक भी रहता है. आपके मुंह से बदबू आने पर आपके साथ बात करने वाले आपको हीन नजर से देखते हैं और आपसे दूर रहने का प्रयास करते हैं.

आप इन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं तो यहां दिए जा रहे टिप्स पर गौर फरमाएं, ये आपको अपने मुंह से आने वाली बदबू से छुटकारा दिलाएंगे.

– नीम या बबूल की नरम डाली का ब्रश बनाकर दांत साफ करने से दुर्गंध दूर होती है.

– 5 ग्राम सौंफ या धनिया या इलायची चबाने से मुख शुद्धि होती है.

– इलायची और पुदीना डालकर पान चबाना लाभकर है.

– इलायची, दालचीनी तथा सूखी पुदीना पत्ती डालकर बनाए गए घोल से गरारे करना दुर्गंध मिटाता है.

– इलायची चबाना भी दुर्गंध रोकता है.

– एक कप पानी में जीरे के तेल की 2-3 बूंदें डालकर गरारे करने से लाभ होता है.

– छुआरे की गुठली के चूर्ण से मंजन करने से सांस की दुर्गंध मिटती है.

और सबसे महत्वपूर्ण है, सोने से पहले मंजन करें, पानी भरपूर पिएं, दोनों समय शौच जाएं, जल्द हजम होने वाला भोजन करें तथा किसी से भी बात करें तो दो फीट की दूरी से बात करें.

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