धन बनाम धन

देश के विकास के लिए सरकार विदेशी पूंजी को फौरेन डायरैक्ट इनवैस्टमैंट रूट के जरिए बड़े लालगलीचे बिछा कर स्वागत करने के लिए खड़ी रहती है. नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस बारे में कुछ ज्यादा ही उत्साह दिखाया है. इस में शक नहीं कि चीन व अन्य कम विकसित देशों ने भी विदेशी कंपनियों का अपनी जमीन पर पैर जमाने के लिए खुलेदिल से स्वागत किया जैसा मुगल बादशाहों ने अंगरेजों का और मुसलिम आक्रमणकारियों के समय हिंदू राजाओं ने किया. नतीजा क्या हुआ, यह बताने की जरूरत नहीं है.

पर वही सरकार, जो विदेशी व्यापारियों को मुनाफा बनाने के लिए पैसा लाने पर उत्सुक दिखती है, विचारों, स्वास्थ्य, समाजसुधार, वनरक्षा, पशुप्रेम, पर्यावरण संरक्षण, ऐतिहासिक धरोहरों के पुनर्निर्माण आदि मामलों में पैसा देने वाली विदेशी संस्थाओं को भय से देखती है. भाजपा सरकार से पहले बना फौरेन रैमीटैंस कानून कांग्रेस सरकार ने बनाया था जो नहीं चाहती थी कि किसी ऐसे के हाथ में पैसा आए जो सरकार की पोलपट्टी अपरोक्ष रूप से भी खोल सके.

भाजपा सरकार तो इस बारे में बहुत बेचैन है क्योंकि वह मुनाफे की भाषा तो समझती है पर बाकी सब बातें उस के लिए निरर्थक हैं. पैसा बने, यह मंजूर है क्योंकि हिंदू धर्म इसी पर टिका है पर न्याय, पर्यावरण, बराबरी, बीमारी, गरीबी, भुखमरी, इतिहास उस के लिए निरर्थक हैं क्योंकि ये सब विश्वगुरु होने के दावे की पोल खोलते हैं.

कांग्रेसी कानून के अंतर्गत लगभग 36,000 संस्थाओं ने विदेशी सहायता का जुगाड़ कर रखा था. मौजूदा सरकार ने लगभग 11,000 संस्थाओं पर विदेशी धन लाने पर प्रतिबंध लगा दिया है.

विदेशी पैसा मुफ्त में आता हो, यह तो संभव नहीं है. विदेशी स्वयंसेवी भारत आते हैं तो इसलिए नहीं कि उन का दिल यहां की गरीबी, बीमारी देख कर पसीजता है बल्कि इसलिए कि वे एक नया अनुभव चाहते हैं और एक ऐसे समाज के बारे में जानना चाहते हैं जो एक वर्ग को या एक प्रथा को यथावत रखना चाहता है. उन्हें भारत में पैर रखने की जगह चाहिए होती है और जब वे आ जाते हैं तो देश की बुरी हालत पर टिप्पणी किए बिना नहीं मानते.

यह न कांग्रेस सरकार को मंजूर था और न मौजूदा ज्यादा संकुचित सरकार को. अगर इन संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाया गया है तो बहुत गलत नहीं माना जाएगा पर ऐसा ही मुनाफा कमाने वाली कंपनियों पर भी लगाया जाए. अगर देश को न विदेशी तकनीक चाहिए, न गाडि़यां, न मोबाइल, न लड़ाकू हवाईजहाज, न पनडुब्बियां, न राइफलें, न टैंक तो शायद सरकार का फैसला सही माना जाता. पर जब सरकार खुद देश की रक्षा को विदेशियों के हाथों में खुले हाथों देने को तैयार है तो देश की कालिख की पोल खोल सकने वाली संस्थाओं को विदेशी सहायता पर प्रतिबंध लगाना गलत ही नहीं, सरकार की जबरदस्ती भी माना जाएगा.

‘लड़कियों को है अपनी मर्जी के कपड़े पहनने का हक’

लगातार सफलता की ओर अग्रसर श्रद्धा कपूर ने जब से अभिनय के साथ साथ गायन को भी महत्व देना शुरू किया है, तब से उनके करियर में काफी गड़बड़ी शुरू हो गयी है.

श्रद्धा पिछली फिल्म ‘रॉक ऑन 2’ बॉक्स आफिस पर बुरी तरह से मात खा गयी. मगर उन्हें इस बात की परवाह नहीं है. उनका मानना है कि सफलता असफलता तो आती जाती रहती है. इन दिनों वह आदित्य रॉय कपूर के संग अपनी दूसरी फिल्म ‘ओके जानू’ को लेकर काफी उत्साहित हैं, जो कि मणिरत्नम निर्देशित तमिल की सफलतम फिल्म ‘ओ कंधाल कंमानी’ का रीमेक है.

अपनी पिछली फिल्म रॉक ऑन 2’ की असफलता पर क्या कहना चाहेंगी?

सफलता-असफलता आती जाती रहती है. मेरे करियर की पहली दो फिल्में ही असफल थीं. असफलता से हम बहुत कुछ सीखते हैं.

पर आप भी कुछ तो विश्लेषण करती होंगी?

देखिए, जब मुझे ‘रॉक ऑन 2’ का ऑफर मिला, तो मैं बहुत खुश थी. मुझे कहानी बहुत रोचक लगी थी. फिल्म में मैं तीन गाने भी गा रही थी. बहुत अच्छी लोकेशन पर इसे फिल्माया जाना था. इसलिए मुझे कहीं से भी नहीं लगा कि मैंने गलत निर्णय लिया. मुझे कहानी व किरदार इतना पसंद आया था कि मैं बहुत खुश थी कि मैं ‘रॉक ऑन 2’ का हिस्सा बनने जा रही हूं. 

मुझे लगता है कि रॉक ऑन 2’ में आपकी गायकी हावी हुई और अभिनय दब गया?

यह आपकी राय हो सकती है. लेकिन मैं खुद अपनी परफॉर्मेंस को लेकर कोई राय नहीं दे सकती. मैं तो परफॉर्म करने के बाद उस पर सही गलत सोचने का काम दर्शकों व पत्रकारों पर छोड़ देती हूं.

आशिकी 2’ के बाद अब आपने आदित्य रॉय कपूर के साथ दूसरी फिल्म ओके जानू की है. आपने उनमें क्या बदला महसूस किया?

कोई बदलाव नहीं आया. वह सिनेमा के प्रति फोकस है. वह सिनेमा देखने के काफी शौकीन है.

तो क्या आप फिल्मों के शौकीन नहीं हैं?

मैं भी फिल्मों की शौकीन हूं पर मैंने बहुत कम फिल्में देखी हैं. मैं जितनी फिल्में देखना चाहती हूं, देख नहीं पाती हूं. काष! मैंने और अधिक फिल्में देखी होती. पिछले तीन वर्षो से फिल्में देखने का तो वक्त ही नहीं मिला. अभी पिछले दिनों मैंने ‘दंगल’ देखी. उम्मीद करती हूं कि इस वर्ष मुझे ज्यादा फिल्में देखने का मौका मिले.

फिल्म ओके जानूक्या है?

यह मणिरत्नम निर्देशित तमिल फिल्म ‘ओ कंधाल कंमनी’ का हिंदी रीमेक है, जिसे निर्देशक शाद अली ने तमिल फिल्म के फ्लेवर को बेरकरार रखते हुए बनाया है. उन्होंने इसमें कोई खास बदलाव नहीं किए. यह एक रोमांटिक फिल्म है, मगर बहुत अलग किस्म की. इसमें दो लोग छोटे शहरों से बड़े सपने लेकर बड़े शहर आते हैं. यह एक दूसेर से मिलते हैं, एक दूदरे से प्यार करते हैं. मगर इनकी प्रधानता करियर है, इसलिए यह शादी नहीं करना चाहते. तो आज की युवा पीढ़ी की समस्या को इस फिल्म में चित्रित किया गया है.

फिल्म ओके जानू करने की वजह क्या रही?

वास्तव में हर बार होता यह है कि निर्देशक आपको फिल्म की कहानी सुनाता है या आपको पटकथा पढ़ने को देता है. लेकिन शदा अली ने मुझसे कहा कि यह फिल्म देखकर बताओ कि इस फिल्म की लड़की का किरदार मैं निभाना चाहूंगी. क्योंकि अभी हमने पटकथा नहीं लिखी है. फिल्म देखकर मैं बहुत खुश हुई और मैंने हां कर दिया था.

आप अपने पापा के किस रीमेक फिल्म में अभिनय करना चाहेंगी?

डैड की किसी फिल्म का रीमेक न बने. वह महान कलाकार हैं. उनकी फिल्में इतनी अच्छी हैं कि उनका रीमेक नहीं होना चाहिए.

दूसरी कौन सी फिल्में कर रही हैं?

मेरी दो फिल्में आ रही हैं. एक फिल्म है ‘हाफ गर्ल फ्रेंड’, जो कि मशहूर उपन्यासकार चेतन भगत के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है. यह बिहार की पृष्ठभूमि की कहानी है. इसकी शूटिंग पूरी हो चुकी है. दूसरी फिल्म है ‘हसीना’, जो कि अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद की बहन हसीना पारकर के जीवन पर एक काल्पनिक कथा है. इसकी शूटिंग शुरू करने वाली हूं.

फिल्म हसीना के लिए तैयारी करते हुए अंडरवर्ल्ड को समझने या जानने का अवसर मिल रहा होगा. तो अब अंडरवर्ल्ड को लेकर आपकी क्या सोच है?

देखिए, हमारी फिल्म अंडरवर्ल्ड पर नहीं है. एक काल्पनिक कहानी है. पर अंडरवर्ल्ड के बारे में जो कहानी लोग सुनते रहते हैं, वही मैंने भी सुनी है. मेरी कोशिश है कि मैं जिस तरह से हसीना का किरदार निभाउं, वह लोगों को विष्वसनीय लगे.

फिल्म हसीना के किरदार के लिए किस तरह की तैयारी कर रही हैं?

मैं एक बार हसीना के पारिवारीक सदस्यों से मुलाकात कर चुकी हूं. दोबारा फिर से मिलने वाली हूं. इसके लिए कुछ एक्टिंग वर्कशॉप भी करने वाली हूं. इस फिल्म में मेरा भाई ही हसीना के भाई दाउद का किरदार निभा रहे हैं.

कुछ दिन पहले एक तमिल फिल्म निर्देशक ने तमन्ना भाटिया का नाम लेकर हीरोइनों के पहनावे पर कमेंट किया है. क्या सही है?

मुझे इसकी जानकारी नहीं इसलिए कुछ नही कहूंगी.

बंगलुरू में एक लड़की के साथ जो हादसा हुआ उसके लिए अब्बू आजमी व फरहान आजमी ने लड़की के पहनावे को दोश ठहराया है? इस पर आपकी राय?

यह बहुत अचरज की बात है. मैंने वह वीडियो देखा है. जब लड़की के साथ छेड़खानी हो रही थी, तब तमाम पुरूष वहां खड़े होकर तमाशा देख रहे थे. कोई भी उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया. पर कोई नेता हो अभिनेता हो या आम इंसान जो यह कह रहा है कि लड़की की पोशाक सही नहीं थी, छोटी थी या भड़काने वाली थी, वह गलत कह रहा है. इस तरह के विचार किसी पुरूष को नहीं रखने चाहिए. हर किसी को अपनी पसंद अपनी रूचि के अनुसार पोशाक पहनने का हक है. लोगों को यह देखना चाहिए कि हरकत करने वाला कौन है? लेकिन लोग छेड़खानी करने वाले पर कोई बात नहीं करते. सीधे लड़की के पहनावे को दोषी ठहरा देते हैं.

पर जिन लोगों ने मदद नहीं किया. उनकी संजीदगी खत्म हो गयी है या इंसानियत खत्म हो रही है, समाज में ?

मुझे नहीं पता कि ऐसा क्यों हो रहा है. पर मुझे सदमा लगा कि लोग चुपचाप खड़े देखते रह गए. मैंने खुद कईयों से सवाल किया कि लोग देखते रहे और लड़की परेशान होती रही.

क्या आपने देखीं है बॉलीवुड की ये रोमांटिक फिल्में

आपने भी कभी न कभी, किसी न किसी से जरूर ही प्यार किया होगा. वैसे प्यार में जब तक थोड़ा रोमांस न हो तो प्यार अधूरा लगता है. थोड़ी मस्ती थोड़ा रोमांस तो जरूरी ही है प्यार में. चलिए आज हम आपको बताते हैं बॉलीवुड की रोमांटिक फिल्मों के बारे में जिसे देखकर आपको अपना प्यार जरूर याद आ जाएगा.

1. मुगल-ए-आजम

सलीम और अनारकली तो आपको याद ही होंगे. रोमांस और प्यार का जिक्र जहां भी आता है लोग इनका उदाहरण जरूर देते हैं. इस फिल्म के हीरो दिलीप कुमार और हीरोइन मधुबाला थी. आपने अगर ये फिल्म नहीं देखी है तो रोमांस का एक हिस्सा मिस किया है. इसमें एक सच्ची लव स्टोरी दिखायी गयी है.

2. दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे

रोमांस की बात हो और किंग खान का जिक्र न हो ऐसा कैसे हो सकता है. बड़े बड़े देशों में छोटी-छोटी बातें होती रहती है. शाहरुख खान और काजोल स्टारर सदाबहार हिट फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ का विकल्प कोई और फिल्म नहीं हो सकती. 1995 में आई इस फिल्म ने भारतीय दर्शकों के दिलों पर एकछत्र राज किया है. हाल ही में इस फिल्म ने अपने 25 साल पूरे किए हैं. अगर नहीं देखी है तो अभी देख लिजिए.

3. मैने प्यार किया

1989 में आई ‘मैंने प्यार किया’ एक शानदार फिल्म है, इसे देखते हुए आप अपनी आंखें बंद नहीं कर पाएंगे. सलमान खान, भाग्यश्री और आलोकनाथ के साथ सूरज बड़जात्या ने पर्दे पर कमाल रच दिया. हां सलमान और भाग्यश्री की इस फिल्म में एक सादगी वाला रोमांस था. ये फिल्म आपको जरूर देखनी चाहिए. अगर आप अपने लवमेट के सच्चे आशिक हैं तो.

4. बॉबी

इस फिल्म का हीरो और उस हीरो का बेटा दोनो ही रोमांटिक हैं. जी हम ऋषि कपूर की बात कर रहे हैं. अपने समय में युवाओं के स्टाइल आइकॉन रहे ऋषि कपूर की इस फिल्म का एक गाना ‘हम तुम एक कमरे में बंद हों’ ही फिल्म के रोमांस को दरशा देगा.

5. कभी-कभी

दो पीढ़ियों तक फैली प्रेम की कहानी. जो ‘कभी कभी’ घटती है. एक लीजेंडरी डायरेक्टर ने सिनेमाई पर्दे पर सच्चा प्यार रच दिया. इस सच्चे प्यार को शशि कपूर, वहीदा रहमान, राखी गुलजार और अमिताभ बच्चन ने पर्दे पर जीवंत कर दिया.

6. सिलसिला

प्यार के खोने और पाने की कहानी है ‘सिलसिला’, जिसे सामाजिक बंधनों के आगे झुकना पड़ता है. निर्देशक यश चोपड़ा की यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कोई कमाल नहीं दिखा सकी, लेकिन कॉस्टिंग को लेकर खबरों में रही और अब भी है. अमिताभ बच्चन और रेखा के प्यार को पर्दे पर देखने के लिए इस फिल्म को बार बार देखा जा सकता है.

7. वीर-जारा

इसके बारे में क्या कहना ये तो आप सबने देखी ही होगी. फिल्म में हिंदुस्तानी और पाकिस्तानी रोमांस दिखाया गया है. एक बेहतरीन प्रेम कहानी है. नहीं देखा अगर तो समझना तुम दुनिया के 8वें अजूबे हो.

8. कुछ-कुछ होता है

शाहरूख और काजोल की एक रोमांटिक लव स्टोरी है. बीच में सलमान खान भी आते हैं. पर रोमांस शाहरूख और काजोल का ही है. अगर इन फिल्मों में से एक भी फिल्म मिस किया है तो समझना आप रोमांस को अभी अच्छे से जान नही पाई हैं.

9. गाइड

विजय आनंद निर्देशित फिल्म ‘गाइड’ एक सच्चे प्रेमी के विश्वास और ईश्वर को दर्शाने की कहानी है. फिल्म की कहानी एक ‘गाइड’ के एक शादीशुदा स्त्री के प्रेम में पड़ जाने की कहानी है. जिसे बाद में धोखाधड़ी और चोरी के इल्जाम में जेल जाना पड़ता है. देव आनंद, वहीदा रहमान, लीला चिटनिस और अनवर हुसैन के अभिनय से सजी यह फिल्म आज भी दर्शकों के दिलों पर राज करती है.

10. प्यासा

1957 में आई गुरुदत्त की ‘प्यासा’ को कौन भूल सकता है. माला सिन्हा, वहीदा रहमान और गुरुदत्त के अभिनय से सजी यह फिल्म की आत्मा में रोमांस बसा है, जिसे भुलाया नहीं जा सकता.

11. मधुमति

दिलीप कुमार और वैजयंती माला के अभिनय और बिमल रॉय के निर्देशन से सजी ‘मधुमति’ हमारे दिलों पर अपनी छाप छोड़ गई.

12. देवदास

शानदार सेट और उम्दा अभिनय वाली संजय लीला भंसाली की ‘देवदास’ एक जबरदस्त फिल्म है. इस फिल्म में शाहरुख खान, माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय और जैकी श्रॉफ ने अभिनय की परिभाषा दोबारा लिखी. 185 मिनट की इस फिल्म को टाइम मैगजीन ने अपनी टॉप 10 फिल्मों की लिस्ट में आठवें नंबर पर रखा.

13. दाग

एक साधारण आदमी के प्रेम को आसाधारण तरीके से बयां करती है फिल्म ‘दाग’. राजेश खन्ना, राखी गुलजार, प्रेम चोपड़ा और शर्मिला टैगोर के अभिनय के लिए भी यश चोपड़ा निर्देशित इस फिल्म को देखा जा सकता है.

एन इवनिंग इन पेरिस

पेरिस की चकाचौंध देख कर आंखें चौंधिया गईं. पेरिस में न केवल एफिल टावर बल्कि कई दर्शनीय स्थल भी हैं. खूबसूरत बिल्डिंग्स और पेरिस की साफ सफाई देख कर हम खुश हो गए.

बचपन से ही दिल में पेरिस घूमने की ख्वाहिश थी, जो इस साल पूरी हुई. 2 फ्लाइट बदलने और 16 घंटे सफर करने के बाद जब हम पेरिस के चार्ल्स डि गौले एयरपोर्ट पहुंचे तो थकान के बावजूद सभी बहुत खुश और उत्साहित थे. हम एयरपोर्ट से सीधे होटल पहुंचे. हमारा घूमनेफिरने का प्रोग्राम अगले दिन से था, क्योंकि हम उस दिन शाम 8 बजे के करीब वहां पहुंचे थे. जब एयरपोर्ट से बाहर निकले तो अच्छीखासी धूप निकली हुई थी, क्योंकि वहां अंधेरा 10 बजे के आसपास होता है और सुबह 5 बजे तक दिन निकल आता है. हम सब उजाला देख कर बहुत खुश हुए.

होटल तक के कई किलोमीटर लंबे रास्ते में हम ने कई बातें नोट कीं जैसे वहां की बिल्डिंग्स बहुत खूबसूरत हैं, पूरे शहर में कहीं भी गंदगी का नामोनिशान नहीं है, यहां सभी गाडि़यां लैफ्ट हैंड ड्राइव हैं और यहां भी काफी देर तक ट्रैफिक जाम में फंसना पड़ता है.

अगले दिन हम लोग सब से पहले डिज्नीलैंड गए, जो शहर से थोड़ा दूर है. वाल्ट डिज्नी के पात्रों और फिल्मों की थीम पर बना यह पार्क इतना बड़ा है कि एक किनारे से दूसरे किनारे तक जाने के लिए ट्रेन का सहारा लेना पड़ता है.

जैसेजैसे हम अंदर की ओर बढ़ते गए. ऐलिस इन वंडरलैंड, पीटर पैन, पाइरेट्स औफ द कैरेबियन स्नोव्हाइट आदि जितने भी डिज्नी के मशहूर पात्र हैं, सब हमारी आंखों के आगे जीवंत हो उठे. हर राइड मानो अपने पात्र की पूरी कहानी बयां कर रही थी. स्लीपिंग ब्यूटी का महल पार्क के बीचोंबीच बना हुआ है और यह पूरे डिज्नीलैंड की शान है. यह महल इतना सुंदर है कि एक बार को तो हमें ऐसा लगा मानो हम सचमुच परीलोक में ही आ गए हैं.

शाम के समय इस में लेजर शो होता है, जो दर्शकों को सम्मोहित करता है. बड़ेबड़े पेड़ों पर बने रोबिनसन के घर (ट्री हाउस) देखने के लिए संकरी सीढ़ियों से चढ़ कर जाना पड़ता है, जो बड़ा ही रोमांचक है. पाइरेट्स की राइड में जब घने अंधेरे और डाकुओं की तलवारों के शोरशराबे के बीच अचानक आप की गाड़ी कई फुट नीचे गिरती है तो रोमांच के साथसाथ थोड़ा डर भी लगता है. शाम के समय निकलने वाली परेड देख कर तो मजा आ गया. इस में डिज्नी के सारे पात्र नाचतेकूदते पूरे डिज्नीलैंड का चक्कर लगाते हैं. पूरा दिन यहां बिता कर शाम को हम ली इन्वैलिड्स गए.

यहां कुछ म्यूजियम और कुछ अन्य इमारतें बनी हुई थीं, जिन्हें लुइ 14वें ने युद्ध में घायल सैनिकों के इलाज के लिए बनवाया था. बूढ़े और अपाहिज सैनिकों व उन के परिवारों के लिए यहां मुफ्त में खानेपीने, इलाज और रहने का इंतजाम किया जाता था. नैपोलियन और उस के परिवार के कई सदस्यों तथा फौज के अनेक मार्शलों की कब्रें भी यहीं पर बनी हुई हैं.

यहां से हम आर्क औफ ट्राइंफ गए, जो इंडिया गेट की याद दिला रहा था. फ्रांस की क्रांति और अनेक युद्धों में मारे गए शहीदों की याद में यह गेट बनाया गया है और इंडिया गेट की ही तरह इस की दीवारों पर भी शहीदों के नाम खुदे हुए हैं.

अब रात के 9 बज चुके थे और हमें वापस होटल लौटना था. रास्ते में हमारे गाइड ने पेरिस के बनने की कहानी सुनाई, जो बड़ी रोचक थी. वर्ष 1852 तक पेरिस आम शहर जैसा ही था. 1852 में नैपोलियन बोनापार्ट का भतीजा लुई राजा बना. वह शहर को बिलकुल नए रूप में ढालना चाहता था और राजा बनते ही उस ने इस पर काम शुरू भी कर दिया.

बैरन हौसमैन नामक इंजीनियर को उस ने यह काम सौंपा. वह चाहता था कि उस का शहर न सिर्फ सुंदर बने बल्कि उस के हर हिस्से से अमीरी टपकती दिखाई दे. लुई ने शहर में जितनी भी गरीब बस्तियां थीं, उन्हें उजाड़ कर जनता को जबरदस्ती शहर के बाहरी हिस्सों में भेज दिया और फिर चौड़ी खूबसूरत सड़कों, बड़े-बड़े ब्लौक्स और महंगे बाजारों तथा बड़े सुंदर घरों का निर्माण शुरू किया. हरियाली की कमी न हो, इस बात का भी दोनों ने पूरा ध्यान रखा.

17 साल तक यह सारा काम चलता रहा और जनता हौसमैन को कोसती और गालियां देती रही. गरीब तो गरीब, अमीरों ने भी उस का विरोध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. लेकिन 1870 तक जो पेरिस बन कर तैयार हुआ, उस ने हैरान कर दिया और कुछ ही समय में सारा विरोध खत्म हो कर यह शहर पूरे यूरोप के गर्व का कारण बन गया. अगले दिन सुबह सब से पहले हम एफिल टावर देखने गए. 2 घंटे लाइन में इंतजार करने के बाद जब हम ऊपर पहुंचे, तो वहां से पूरे पेरिस का सुंदर दृश्य देखने को मिला, उसे देख कर हम सब अभिभूत हो गए. वेसे तो इस की ऊंचाई लगभग 1 हजार फुट है, लेकिन मैटल से बना होने के कारण सूर्य की गरमी से प्रभावित हो कर यह मौसम के अनुसार 15 सेंटीमीटर तक घटताबढ़ता रहता है. इस के डिजाइनर अलैक्जेंडर गुस्ताव एफिल के नाम पर ही इस का नाम रखा गया है.

हमारे गाइड ने बताया कि वर्ष 1889 में फ्रांस की क्रांति के 100 साल पूरे होने पर फ्रांस में जश्न मनाया जा रहा था. इस के लिए वहां एक बड़ा वर्ल्ड फेयर आयोजित किया जा रहा था, जिस के मुख्य द्वार के रूप में एक बड़ा भव्य टावर बनाने का निश्चय किया गया, जिसे बाद में तोड़ा जाना था. लेकिन जब यह बन कर तैयार हुआ, तो इस की सुंदरता को देख कर इसे नष्ट करने का विचार त्याग दिया गया.

आजकल इसे एक बड़े रेडियो ऐंटीना की तरह प्रयोग किया जाता है. आज की तारीख में यह टावर पेरिस की पहचान और शान दोनों बन गया है. वहां के लोग अपनी इस धरोहर से कितना प्यार करते हैं, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब हिटलर पेरिस में घुसा तो लोगों ने टावर की लिफ्ट के केबल काट दिए ताकि  वह उन के शहर की इस शान पर चढ़ न सके. हिटलर कुछ सीढि़यां तो चढ़ा, पर फिर हार मान कर लौट गया.

इस के बाद हम सैंट चैपल चर्च और नोट्रे डैम कथीड्रल गए. दोनों ही चर्च दुनिया के मशहूर चर्चों में से हैं और अत्यंत खूबसूरत हैं. नोट्रे डैम कथीड्रल में जीजस क्राइस्ट के क्रौस का एक छोटा सा टुकड़ा क्राउन औफ थोर्न तथा कुछ अन्य रेलिक्स भी रखे गए हैं. नैपोलियन बोनापार्ट का राज्याभिषेक भी यहीं हुआ था. यहां बहुत बड़ेबड़े 10 घंटे हैं, जिन में से सब से बड़ा 13 टन से भी अधिक भारी है और इस का नाम इमान्युएल है. यहां से हम कौनकौर्ड स्क्वायर होते हुए लूव्र म्यूजियम पहुंचे. कौनकौर्ड स्कैवायर वह जगह है जहां लुई 16वें और उस की पत्नी मैरी एंटोनिएट के सिर काटे गए थे. लुई की तानाशाही से फ्रांस की जनता बहुत दुखी थी और मैरी से तो सब घृणा करते थे. एक तो वह आस्ट्रिया के राजपरिवार की बेटी थी और दूसरे बहुत ही फुजूलखर्च, घमंडी और बेवकूफ थी.

जब उसे यह बताया गया कि उस के राज्य में लोगों के पास खाने को रोटी नहीं है और वे भूखों मर रहे हैं, तो उस बेवकूफ औरत का जवाब था, ‘‘उन के पास रोटी नहीं है तो वे केक क्यों नहीं खा लेते?’’ इस से पहले से ही गुस्साई जनता और भड़क गई और उन दोनों को पकड़ कर उन्होंने मार दिया. इस प्रकार कौनकौर्ड स्क्वायर फ्रांस की क्रांति का प्रतीक बना. जब हम लूव्र म्यूजियम पहुंचे तो उस के सामने बना कांच का विशाल पिरामिड देखा.

यह म्यूजियम कई वजहों से खास है. पहला, यह पूरे संसार के कुछ सब से बड़े म्यूजियमों में से एक है. इस के बारे में कहा जाता है कि अगर आप यहां की हर कलाकृति को सिर्फ 4 सैकंड के लिए देख कर आगे बढ़ जाएं तो भी आप को पूरा म्यूजियम देखने के लिए 3 महीने का समय चाहिए. दूसरा, मोनालिसा, वर्जिन औफ द रौक्स और हम्मूराबी की आचा रसंहिता जैसी अनेक विश्व प्रसिद्ध कलाकृतियां यहीं पर हैं, जिन्हें देखने विश्व के कोनेकोने से लोग आते हैं. मोनालिसा की पेंटिंग के आगे जब हम खड़े हुए तो उस की भव्यता देख कर समझ आया कि सारी दुनिया उस की दीवानी क्यों है. लेखक डैन ब्राउन की बहुचर्चित पुस्तक ‘द डा विनची कोड’ में इस म्यूजियम का बहुत ही मनोरंजक चित्रण किया गया है. यह हमारी पेरिस यात्रा का अंतिम पड़ाव था और यहां से वापस होटल जाते समय पेरिस घूमने की खुशी थी तो जल्दी वापस जाने का गम भी. सपनों के शहर पेरिस का यह ट्रिप हमें हमेशा याद रहेगा. 

शशिंद्र पाल त्यागी की गिरफ्तारी

इटली की हैलीकौप्टर कंपनी अगस्ता से 12 एडब्लू 101 हैलीकौप्टरों की खरीद में हुए भ्रष्टाचार पर भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार ने पूर्व एयरमार्शल शशिंद्र पाल त्यागी को गिरफ्तार कर लिया है. 2010 में हुए इस सौदे पर 2012 में ही मीडिया में हेराफेरी की भनक लग गई थी और 2014 में इटली की एक अदालत ने हैलीकौप्टर बनाने वाली कंपनी अगस्ता के प्रमुख को जेल की सजा दे दी थी. अप्रैल 2014 में इटली कोर्ट के कागजों में शशिंद्र पाल त्यागी का नाम आया पर जीरो सहन करने वाली नरेंद्र मोदी सरकार ने दिसंबर 2016 में उन्हें तब गिरफ्तार किया जब पूरा देश नोटबंदी के भ्रष्टाचार की मार बुरी तरह सह रहा था.

कतारों में लगे देश को इटली से हुए सौदे में हेराफेरी से कोई दर्द हुआ, यह साफ नहीं क्योंकि आजकल तो देश अपने साथ सरकार के ही किए भ्रष्टाचार से पीडि़त है.

अगर सरकारें अपने पैसे को सुरक्षित नहीं रख सकतीं तो चाहे कांग्रेस सत्ता में हो या भारतीय जनता पार्टी की खुद को महाईमानदार बताने वाली सरकार, जनता को यही लगेगा कि हम जो सरकारें चुन रहे हैं वे एक से बढ़ कर एक हैं.

12 हैलीकौप्टरों की खरीद में रिश्वत लेना कोई नई बात नहीं है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय सौदों, खासतौर पर सैन्य सामान की खरीद, में रिश्वत तो होती ही है और दुनिया के सारे देश इस में माहिर हैं. सैनिक सामान बनाने वाली कंपनियां जानती हैं कि वे जो भी बेच रही हैं, उस का कोई मूल्य तय नहीं हो सकता और वे जितना चाहें, मनमाने दाम ले सकती हैं. हर देश इस तरह की खरीद गुप्त रखता है और नेता व सैनिक अफसर इस का पूरा लाभ उठाते हैं, लगभग हर सौदे में. ऐसे सौदे किसी भी देश में हों, रिश्वत तो ली ही जाती है.

शशिंद्र पाल त्यागी को पकड़ना तो भाजपा सरकार के लिए आसान है पर वह उन्हें दंड नहीं दे पाएगी, यह लगभग पक्का है. सेना हर देश में, हमारे यहां भी, इतनी मजबूत होती है कि नेता उस से घबराते हैं. सैनिक अधिकारी चाहें तो सरकार को मजबूर कर सकते हैं कि मामले को रफादफा करो क्योंकि एक को पकड़ने का अर्थ है सैकड़ों को पकड़ने का अधिकार ले लेना.

इस पर सेना में खुसुरफुसुर शुरू हो गई. वर्तमान एयर चीफ मार्शल ने इस गिरफ्तारी को वायुसेना के मानसिक बल पर आघात माना है. ऐसे में सरकार टिक नहीं पाएगी. सैनिक अफसरों की पहुंच बहुत दूर तक होती है. और फिर एक तरफ सैनिकों की शहादत को वोटों के लिए भुनाने वाली सरकार उसी सेना की एक विंग के पूर्व प्रमुख को गद्दार कहने लगे, यह दोगली बात कैसे हो सकती है? भारतीय जनता पार्टी 15 दिन पहले ही सैनिकों की आड़ में अपने को कांग्रेस से ज्यादा देशभक्त साबित करने में लगी थी. क्या देश पर मरमिटने वाले शशिंद्र पाल  त्यागी जैसे होते हैं? क्या कहना चाहती है भाजपा असल में?

क्या यह नोटबंदी के कारण उठते हुए गुबार पर पानी के छींटे डालने का प्रयास है? अगर ऐसा है, तो भी भाजपा की स्वघोषित नीति के खिलाफ है जो सैनिकों और पंडितों को एक सा देवताओं समान शुद्ध, देशभक्त, मुहिमों से ऊपर मानती है. नोटबंदी के कारण उठते गुस्से को भ्रष्टाचार के 2-4 मामलों में कुछ गिरफ्तारियों से समाप्त नहीं किया जा सकता. मोदी सरकार अपनी गलती को पिछली सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचारों के चीथड़ों से नहीं ढक सकती.

नोटबंदी के बाद कैशलैस

नोटबंदी के धड़ाम से औंधेमुंह गिर जाने के बाद और कालेधन का अंशभर भी नहीं निकलने पर नरेंद्र मोदी ने देश को एक और काले कुएं में धकेलने का फैसला कर लिया है. अफसोस यह है कि उन के कैशलैस हवन में चाहे पूरा लाक्षागृह जल जाए पर भक्तों को सुध नहीं आएगी और वे उसी तरह जपतप व जयजयकार करते रहेंगे जैसे सदियों से इस देश में होता रहा है.

‘भगवान भला करेंगे और पूजापाठ करो. संतोंमहंतों की सेवा करो, इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में कल्याण होगा ही’ की तर्ज पर नरेंद्र मोदी ने प्रकांड पंडित और महात्मा का बाना ओढ़ लिया है और नोटबंदी व कैशलैस के अखंड जागरण में देश को धकेल दिया है. वे तो अपने को अब संसद से भी ऊपर समझने लगे हैं. संसद में कुछ कहने के बजाय जमा की हुई भक्तों की भीड़ में प्रवचन दे कर देश के कल्याण का जपतप कर रहे हैं.

गनीमत बस यही है कि दुनिया के बाकी सभी देश किसी न किसी उलझन में फंस गए हैं. अमेरिका ने डोनाल्ड ट्रंप जैसे सिरफिरे को राष्ट्रपति चुन लिया है. चीन में लगातार आर्थिक गिरावट आ रही है. यूरोप का एक होने का सपना ब्रिटेन के बाहर जाने के  फैसले के कारण टूट गया है. रूस तेल के दामों में कमी को ले कर यूरोप को धमका कर पूरा करने की कोशिश में अपनी कमजोरी छिपा रहा है.

ऐसे में भारत में यदि कुछ खराब हो रहा है तो दुनिया में किसी को चिंता नहीं है और विदेशी समाचारों पर निर्भर हमारा मीडिया खुश है कि भारत की नोटबंदी व कैशलैस स्ट्राइकों पर दुनिया की नजर ज्यादा नहीं है, तो ये अच्छे ही होंगे. अगर बैंकों व एटीएमों के बाहर लंबी कतारें न लगतीं तो शायद इस पूरे जंजाल की पोल भी न खुलती. नोटबंदी से कालाधन निकला नहीं और कैशलैस आम जनता रोटीकपड़ामकानलैस हो जाएगी, यह डर नहीं बैठता.

आधुनिक तकनीक अपनाई जाए, इस की वकालत करना ठीक है पर यह फैसला सरकार का एक मुखिया बिना सहमति के देश पर थोप दे, यह स्वीकार्य नहीं है. नरेंद्र मोदी का कैशलैस सपना और लालकृष्ण आडवाणी का बाबरी मसजिदलैस अयोध्या एकजैसे हैं. जैसे 2002 के दंगों के बाद गुजरात से मुसलमान गायब नहीं हो गए हैं, राम मंदिर अभी तक नहीं बना है (और बन भी जाए तो क्या वह कोई कल्याण करेगा?) वैसे ही कैशलैस सपना भूखी जनता के कई निवाले छीन कर भुला दिया जाएगा.

ताकि गर्म कपड़ों को भी सर्दी की नजर न लगे

सर्दियों में आप अपनों का खास ख्याल रखती हैं. खाने पीने से लेकर गर्म कपड़े पहनाने तक, आप एक्सट्रा केयर लेती हैं. जिस तरह ठंड के मौसम में ऊनी कपड़े आपको गर्म रखते हैं, वैसे ही आपका फर्ज बनता है कि आप ऊनी कपड़ों का भी खास ख्याल रखें. ऊनी कपड़े सही से नहीं धोने से अपनी अपनी चमक खो देते हैं.

इन टिप्स को अपनाने से आपके ऊनी कपड़े लगेंगे नए जैसे.

ऐसे धोयें ऊनी कपड़ों को

– ऊनी कपड़ों को साफ रखना बहुत जरूरी हा.

– 7-10 दिन में एक बार ऊनी कपड़ों को जरूर धोएं.

– वाशिंग मशीन में कपड़ों को न धोयें.

– इसलिए धूप देखकर ही कपड़ें धोयें, वरना वे नहीं सूखेंगे.

– वुलन धोने के लिए माइल्ड डिटर्जेंट यूज करें.

– ब्रश का प्रयोग न करें, हल्के हाथों से कपड़ों को धोयें.

ध्यान से सुखायें कपड़ें

– वाशिंग मशीन में वुलन को धोने के साथ ही ड्राईर में कपड़ों को सुखाने से भी बचें. ड्राईर से कपड़ों का शेप बिगड़ सकता है.

– रूम टेम्प्रेचर पर या धूप में कपड़ों को सुखाएं. तेज धूप में सुखाने से भी बचें.

सावधानी से करें प्रेस

– अगर ऊनी कपड़ों को प्रेस करना है तो स्टीम प्रेस ही करें.

– कपड़ों को कभी सीधा प्रेस न करें. उल्टा करके ही प्रेस करें.

– वहीं वुलन सेटिंग के बाद प्रेस करें.

इन टिप्स को भी अपनायें

– अगर किसी वुलन पर दाग लग गया है, तो उसे तुरंत पानी में डालें. दाग निकल जाएगा.

– कपड़ों से धूल साफ करने के लिए सॉल्ट पेपर का इस्तेमाल करें.

– गर्म पानी में कपड़ें न भिगोयें.

– हल्के गीले कपड़ों को अल्मारी में न रखें.

– ऊनी कपड़ों को धोने के लिए ब्लीच या अमोनिया का इस्तेमाल न करें.

बॉक्स ऑफिस पर ‘जॉली’ की ‘जॉली’ से टक्कर

10 फरवरी को बॉक्स ऑफिस पर नए और पुराने जॉली एल एल बी यानी अक्षय कुमार और अरशद वारसी भिड़ने जा रहे हैं. इस दिन जहां एक तरफ अक्षय कुमार की फिल्म ‘जॉली एलएलबी 2’ रिलीज हो रही है तो वहीं दूसरी तरफ पहली ‘जॉली एलएलबी’ के जॉली यानी अभिनेता अरशद वारसी की फिल्म ‘इरादा’ सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है.

फिल्म ‘इरादा’ में अरशद वारसी के साथ नसीरुद्दीन शाह मुख्य भूमिका निभा रहे हैं जिनकी जोड़ी ‘इश्कियां’ और ‘डेढ़ इश्कियां’ जैसी सफल फिल्में दे चुकी है. दूसरी तरफ हिट फिल्म ‘जॉली एलएलबी’ के सीक्वल में अरशद की जगह अक्षय की एंट्री हुई है इसलिए बॉक्स ऑफिस पर दोनों फिल्मों को साथ रिलीज किये जाने पर इसे दो जॉलियों की टक्कर समझा जा रहा है.

फिल्म ‘जॉली एलएलबी 2’ जहां हंसी मजाक से भरपूर कोर्ट ड्रामा है वही दूसरी तरफ अपर्णा सिंह निर्देशित फिल्म ‘इरादा’ समाज से जुड़े मुद्दों पर बनी फिल्म है. शायद इसीलिए फिल्म ‘इरादा’ की निर्माता फाल्गुनी कहती हैं कि ये टक्कर दिलचस्प होगी. हालांकि उनकी नजर और भी विकल्पों पर है.

ये तो है साल के दूसरे महीने की टक्कर. 2017 के पहले ही महीने में शाहरुख खान की ‘रईस’ और रितिक रोशन की ‘काबिल’ बॉक्स ऑफिस पर रिलीज हो रही है. दोनों ही फिल्में गणतंत्र दिवस पर रिलीज हो रही हैं.

यह पहला मौका नहीं है जब कोई दो बड़ी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर टकरा रही है. इससे पहले भी फिल्मों की बॉक्स ऑफिस पर टक्कर हो चुकी है. पिछली दीवाली ही ‘शिवाय’ और ‘ऐ दिल है मुश्किल’ आपस में टकराई थीं.

युवा अब भी फैन हैं फिल्मी सितारों के

आज स्टार्स और उन के फैन्स के बढ़ते रिश्ते की वजह से फिल्म व्यवसाय दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की कर रहा है. यह रिश्ता न सिर्फ बौलीवुड तक सीमित है बल्कि हौलीवुड के भी कई अभिनेता अपनी फैन फौलोइंग के जरिए काफी पौपुलर हो रहे हैं, दोनों के बीच यह रिश्ता अटूट है और स्टार्स को पौपुलर बनाता है.

कुछ रिश्ते खून से होते हैं लेकिन कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो खून से नहीं बल्कि दिल से बनते हैं और इसी दिल के रिश्ते में एक रिश्ता होता है स्टार और फैन का.

इतिहास गवाह है कि एक स्टार जिस को उस का फैन दूर दूर तक नहीं जानता, वह उस से इतना प्यार करता है कि उस के लिए अपनी जान तक देने को भी तैयार हो जाता है. अपने प्यारे स्टार की एक झलक पाने के लिए वह उस के घर के बाहर घंटों खड़ा रहता है.

वैसे तो फैन और स्टार का रिश्ता बहुत पवित्र और निस्वार्थ है, लेकिन एक सच यह भी है कि यह रिश्ता भी तब तक ही चरम पर होता है जब तक कि वह स्टार लोकप्रिय है. जैसे ही उस की लोकप्रियता खत्म होती है वैसे ही फैन्स भी उस से दूरी बना लेते हैं.

कहने का तात्पर्य यह है कि फैन और स्टार का रिश्ता भी लोकप्रियता के आधार पर ही केंद्रित होता है.

इतिहास गवाह है कि जो सितारे लाखोंकरोड़ों फैन्स से घिरे रहते थे, उन्होंने गुमनामी की जिंदगी में अपना आखिरी समय गुजारा. फिर वे चाहे भगवान दादा हों या राजेश खन्ना या फिर परवीन बौबी ही क्यों न हों, आखिरी वक्त में इन के चाहने वाले इन से काफी दूर थे.

राजेश खन्ना के कैरियर में एक समय ऐसा था कि वे जहां से भी गुजरते थे वहां की धूलमिट्टी युवतियां माथे पर लगा लेती थीं. इतना ही नहीं, जब राजेश खन्ना की शादी डिंपल कापडि़या से हुई थी तब कई युवतियों ने अपनी चूडि़यां तोड़ डाली थीं और कइयों ने तो आत्महत्या करने की भी नाकाम कोशिश की थी.

ऐसे लोकप्रिय स्टार राजेश खन्ना अपने आखिरी समय में तनहा थे. दूरदूर तक उन का कोई हमदर्द उन के साथ नहीं था.

राजेश खन्ना की तरह ही ट्रैजडी किंग  दिलीप कुमार का इतना ज्यादा क्रेज था कि उन की दीवानी सायरा बानो फिल्मों में आईं ही इसलिए थीं ताकि वे दिलीप साहब के साथ काम कर सकें और उन का सामीप्य पा सकें, लेकिन आखिर में यह फैन वाला प्यार पतिपत्नी वाले प्यार में बदल गया और आज भी सायरा बानो दिलीप साहब की उतनी ही दीवानी हैं जितनी कि फिल्मों में आने से पहले हुआ करती थीं.

सवाल यह है कि क्या आज भी स्टार्स के प्रति फैन्स का प्यार वैसे ही बरकरार है? क्या आज भी स्टार्स के लिए फैन्स अपनी जान देने को तैयार हैं या फिर आज के युग में युवा अब काफी आगे बढ़ गए हैं और सचेत हो गए हैं.

इसी सवाल का जवाब पाने के लिए जब हम ने सब से पहले बौलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन से बात की तो उन्होंने बड़ी गंभीरता से कहा कि फैन और स्टार का एक अटूट रिश्ता है, जो कभी नहीं टूट सकता. फैन्स हैं तो हम हैं वरना यदि फैन्स ही नहीं होंगे तो हमारी क्या औकात, जो हम इंडस्ट्री में टिक पाएं.

यदि आप गौर करें तो इंटरनैट और सोशल मीडिया की वजह से फैन्स और स्टार्स का रिश्ता और मजबूत हो गया है. आज ट्विटर पर फेसबुक के जरिए हम अपने फैन्स के साथ डायरैक्ट बात कर सकते हैं और वे भी हमें गाइड कर देते हैं कि हमें अपने में क्या सुधार करना चाहिए.

फैन्स अगर हमारी तारीफ करते हैं तो वे बेहिचक हमारी बुराई भी बता देते हैं ताकि हम अपने काम में सुधार कर सकें. यदि मैं अपनी बात करूं तो आज मैं अगर इस इंडस्ट्री में जिंदा हूं तो अपने फैन्स की बदौलत हूं वरना मैं तो कब का खत्म हो जाता. आज इस उम्र में भी मुझे अपने फैन्स का इतना प्यार मिला है कि मैं अपनेआप को धन्य समझता हूं.

अमिताभ बच्चन की तरह सलमान खान की भी फैन फौलोइंग कुछ ज्यादा ही है. सलमान खान के चाहने वालों में सिर्फ लड़कियां ही नहीं बल्कि जवान, बच्चे, बूढ़े, और शादीशुदा सभी शामिल हैं. शायद यही वजह है कि उन की फैन फौलोइंग का फायदा उठाते हुए उन की कही बात को ज्यादा तूल दे दिया जाता है और उन का एक गलत स्टेटमैंट भी विवाद खड़ा कर देता है.

कई बार तो यह भी कहा जाता है कि सलमान द्वारा कही बात को जानबूझ कर तोड़मरोड़ कर पेश किया जाता है ताकि उस बात की वजह से उन की रिलीज फिल्म की पब्लिसिटी हो जाए. ज्यादातर देखा गया है कि सलमान का कोई न कोई स्टेटमैंट तभी हाईलाइट होता है जब उन की फिल्म रिलीज होने वाली होती है.

सलमान के फैन्स का तो यह आलम है कि सलमान के जेल जाने की खबर से ही उन के बीच इतना हड़कंप मच गया था कि उन के चाहने वाले एक फैन ने कोर्ट के बाहर जहर पी कर आत्महत्या करने की कोशिश की. इस से आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि वह सलमान को किस सीमा तक चाहता होगा.

इतना ही नहीं, सलमान को चाहने वाली 2 जुड़वां बहनों ने सलमान की सलामती के लिए रात भर कामना की कि सलमान जमानत पर रिहा हो जाएं.

इसी तरह सलमान का एक फैन सलमान की हर फिल्म रिलीज का फर्स्ट शो मुफ्त में सब को दिखाता है यानी सलमान की हर फिल्म का पहला शो वह अपने पैसों से बुक करता है, जो सलमान के फैन्स के लिए फ्री में होता है.

सलमान और अमिताभ बच्चन के फैन सिर्फ इंडिया में ही नहीं बल्कि पूरे वर्ल्ड में हैं. सलमान की तरह ही माधुरी दीक्षित के भी लाखोंकरोड़ों फैन्स हैं, जिन की वजह से माधुरी दीक्षित पर एक फिल्म तक बन गई थी, ‘मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं…’

माधुरी दीक्षित की फैन फौलोइंग आम लोगों में ही नहीं बल्कि फिल्म इंडस्ट्री में भी बहुत ज्यादा है. कैटरीना कैफ से ले कर करोड़ों का बिजनैस करने वाली फिल्म ‘सैराट’ की हीरोइन रिंकू राजगुरु जोकि अभी 10वीं में है, भी माधुरी दीक्षित की जबरदस्त फैन हैं.

फिल्मों को अलविदा कहने के बाद और 2 बच्चों की मां बन कर फिल्मों में वापसी के बाद भी माधुरी दीक्षित की फैन फौलोइंग में कोई कमी नहीं आई.

एक टीवी शो को होस्ट करने वाले ऐंकर कपिल शर्मा की भी इतनी ज्यादा फैन फौलोइंग हो गई कि वे रातोंरात स्टार बन गए.

कलर्स चैनल पर प्रसारित ‘कौमेडी नाइट्स विद कपिल’ से प्रसिद्ध हुए कपिल शर्मा को इतनी ज्यादा लोकप्रियता मिली कि वे देशविदेश में प्रसिद्ध हो गए और उन की फैन फौलोइंग देख कर फिल्म स्टार्स भी अचंभित रह गए.

फैन्स का फायदा स्टार्स को इतना ज्यादा होता है जिस से उन की फैन फौलोइंग बढ़ती है. उन का पारिश्रमिक भी बढ़ जाता है, जिस के चलते स्टार्स किसी फंक्शन में आने का और रिबन काटने का भी करोड़ों रुपए मांग लेते हैं. किसी शहर में अगर किसी स्टार को परफौर्म करना हो तो वह उस की अच्छीखासी कीमत वसूल कर लेते हैं.

कहने का तात्पर्य है कि एक जमाने में स्टार्स और फैन का रिश्ता जहां दिल तक सीमित था वहीं वह अब जेब तक पहुंच गया है.

सलमान खान की फैन फौलोइंग का नतीजा यह है कि वे ‘बिगबौस’ को होस्टिंग करने के लिए एक एपीसोड का करोड़ों में पारिश्रमिक लेते हैं और हर नए सीजन में उन का रेट बढ़ जाता है, लेकिन फिर भी चैनल उन को ही यह जिम्मेदारी देता है, क्योंकि दर्शक ‘बिगबौस’ सलमान की वजह से ही देखते हैं और इसी के चलते बिगबौस शो कितना ही कमजोर क्यों न हो, को अच्छी टीआरपी मिल ही जाती है.

अमिताभ बच्चन, सलमान खान, माधुरी के अलावा अक्षय कुमार, दीपिका पादुकोण, शाहरुख खान, प्रियंका चोपड़ा जैसे कई स्टार्स की जबरदस्त फैन फौलोइंग है, जिस की वजह से उन को देश में ही नहीं विदेश में भी शो के जरिए पैसा कमाने का मौका मिल रहा है और उस से काफी फायदा हो रहा है.

स्टार्स और फैन्स के बढ़ते रिश्ते का तो आलम यह है कि आज फैंस और स्टार्स का रिश्ता सिर्फ बौलीवुड तक ही सीमित नहीं है यह हौलीवुड तक भी पहुंच गया है. आज का युवावर्ग न सिर्फ हौलीवुड की फिल्मों का कायल है बल्कि वहां के स्टार्स का भी जबरदस्त फैन है.

शायद यही वजह है कि आज अगर ऐंटरटेनमैंट बिजनैस की बात करें तो सिर्फ बौलीवुड ही नहीं हौलीवुड फिल्मों का भी हिंदुस्तान में अच्छाखासा बिजनैस हो रहा है.

इन सब बातों से यही निष्कर्ष निकलता है कि युग चाहे जो भी हो, लेकिन फैन्स और कलाकार का रिश्ता हमेशा अटूट रहेगा.

परफ्यूम लगाने का सही तरीका पता है आपको?

सुबह रेडी होते वक्त आपने अपनी मनपसंद खुशबू से खुद को महका लिया, लेकिन कुछ ही समय बाद यह खुशबू हवा में खो जाती है. जानिए, कहां परफ्यूम लगाएं ताकि यह लंबे समय तक टिका रहे.

बाल

परफ्यूम बालों पर लंबे समय तक टिका रहता है, लेकिन डायरेक्टली इसे बालों लगाने से यह आपके बालों को ड्राई बना सकता है क्योंकि इसमें एल्कोहल होता है. इसलिए कंघे पर परफ्यूम स्प्रे करें और फिर बाल संवारें.

कान के पीछे

कान के पीछे का हिस्सा काफी ऑइली होता है. ऑइल के कारण यहां परफ्यूम लगाने से इसका असर देर तक रहता है. साथ ही इसका साइकॉलोजिकल इफेक्ट भी होता है. जब आप किसी से गले मिलते हैं, तो वह इस खुशबू के जरिए तुरंत ही आपसे एक बॉन्ड महसूस करता है.

कोहनी पर

कलाई पर परफ्यूम लगाना अच्छा है, कोहनी पर परफ्यूम लगाना और भी अच्छा. अक्सर कोहनी मुड़ी रहती है, इससे परफ्यूम देर तक टिका रहता है. साथ ही यह बॉडी के हीट जनरेटेड पॉइंट्स और पल्स पॉइंट में से एक है, जिससे परफ्यूम की सौंधी गंध आपके आस-पास की हवा में तैरती रहती है.

घुंटनों के पीछे

पल्स पॉइंट थ्योरी यहां भी लागू होती है. इसलिए घुटनों के पीछे परफ्यूम लगाकर देर तक इसे महसूस किया जा सकता है.

बेली बॉटम

आमतौर पर आप जो ड्रेस कैरी करती हैं, वह बेली एरिया को कवर करके रखती हैं. यह बॉडी के सबसे अधिक हीट करने पार्ट्स में से है. यहां परफ्यूम देर तक रहता है और आपके मूड को खुशनुमा बनाए रखता है.

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