भाषा और देश की सीमाओं से परे ‘ओम पुरी’

66 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस लेने वाले अभिनेता ओमपुरी ने अभिनय जगत में न सिर्फ एक मिसाल पेश की थी, बल्कि बौलीवुड में ‘‘फिल्मी हीरो’’ की चरिपरिचत पहचान को धता बताते हुए खुद को न सिर्फ हीरो के रूप में बौलीवुड में पेश किया, बल्कि दूसरे प्रतिभाशाली कलाकारों के लिए राह खोली भी.

यह एक कटु सत्य है. बौलीवुड में आम धारणा यही रही है कि बौलीवुड में अभिनेता बनने के लिए चिकना चुपड़ा अति खूबसूरत चेहरा चाहिए. जबकि खुद ओम पुरी चिकने चेहरे की बजाय खुरदरे चेहरे के मालिक थे,मगर अपनी अभिनय क्षमता के बल पर उन्होंने सिर्फ बौलीवुड ही नहीं बल्कि हौलीवुड और अमरीकन फिल्मकारों को भी अपने साथ काम करने पर मजबूर किया था.

इन दिनों गैर फिल्मी परिवारों से आकर बौलवुड में कार्यरत कई कलाकार इस बात का रोना रोते रहते हैं कि उन्हे तो अभी भी बौलीवुड में ‘बाहरी’ होने का अहसास कराया जाता है. पर ओम पुरी ने ऐसा कभी नहीं कहा. जबकि जिस वक्त ओम पुरी ने अपने करियर की शुरुआत की थी, उस वक्त भी सिनेमा से जुड़ना हर किसी के लिए आसान नहीं था. उस वक्त भी बौलीवुड पर चंद फिल्मी परिवारों का ही कब्जा था. मगर एक बार ओम पुरी ने हमसे कहा था-‘‘कौन बाहरी..हम बाहरी कैसे हो सकते हैं…मैं तो वह इंसान हूं जो कि दूध में शक्कर की तरह घुल जाता है. हमें तो कभी किसी ने बाहरी नहीं कहा..’’

ओम पुरी के अभिनय करियर में भी काफी विविधता रही है. जिन दिनों मुंबई में स्व. बाल ठाकरे की नई नई गठित पार्टी ‘शिवसेना’ के चलते ‘मराठी वाद’ व ‘आमची मुंबई’ का नारा बुलंद था, उन्ही दिनों अंबाला, पंजाब वासी ओम पुरी ने मुंबई पहुंचकर 1976 में विजय तेंडुलकर लिखित राजनीति व्यंग प्रधान मराठी भाषी नाटक‘‘घासीराम कोटवाल’’ पर आधारित मराठी भाषा की फिल्म ‘‘घासीराम कोटवाल’’ में घासीराम का किरदार निभाकर सिनेमा में कदम रखा था. इस फिल्म में ओम पुरी ने मोहन अगाशे के साथ अभिनय किया था. के हरिहरन निर्देशित इस फिल्म की भी पटकथा विजय तेंडुलकर ने ही लिखी थी. इससे पहले वह सिर्फ थिएटर ही कर रहे थे.

विजय तेंडुलकर ने स्व.बाल ठाकरे व उनकी नव गठित राजनीतिक पार्टी ‘‘शिवसेना’’ के बढ़ते प्रभाव के चलते यह ऐतिहासिक नाटक ‘‘घासीराम कोटवाल’’ लिखा था. जो कि पुणे सामाज्य के पेशवा नाना फड़नवीस की जीवनी पर आधारित है.

मराठी फिल्म ‘‘घासीराम कोटवाल’’ में अभिनय करने के बाद 1977 में ओम पुरी ने कन्नड़ फिल्म ‘‘तबलिया नीनादे मगाने’’ की. उसके बाद श्याम बेनेगल के साथ कम्युनिस्ट विचारधारा वाली कुछ फिल्मों में छोटे किरदार निभाए. हिंदी फिल्म ‘आक्रोश’ में गूंगे युवक का किरदार निभाकर पहली बार ओम पुरी चर्चा में आए थे. इस फिल्म के लिए उन्हें सह कलाकार का फिल्मफेअर अवार्ड भी मिला था. उसके बाद उन्होंने गुजराती भाषा की केतन मेहता निर्देशित प्रयोगात्मक फिल्म ‘‘भवानी भवाई’’ की थी.

1982 में कैमरामैन मनमोहन सिंह के साथ चित्रार्थ की पंजाबी फिल्म ‘‘चन्न परदेसी’’ की जिसमें उनके साथ राज बब्बर थे. 1982 में ही प्रदर्शित फिल्म ‘आरोहण’ के लिए उन्हे सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल गया. फिर 1983 में ओम पुरी ने ‘अर्धसत्य’ में अपने आस पास के सिस्टम से लड़कर जीतने वाले ईमानदार पुलिस वाले का किरदार निभाकर दूसरा सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल किया था. ‘आक्रोश’ ने यदि ओम पुरी को कलाकार के तौर पर स्थापित किया था, तो ‘अर्धसत्य’ ने उन्हे स्टार बना दिया था. अब तक वह संजीदा कलाकार के रूप में स्थापित हो चुके थे. लेकिन इसी वर्ष कुंदन शाह निर्देशित हास्यव्यंग प्रधान फिल्म ‘‘जाने भी दो यारों’’ में वह एकदम अलग रंग में नजर आए. तो वहीं वह एक बार फिर इसी वर्ष राज बब्बर, मेहर मित्तल व गुरूदास मान के साथ पंजाबी फिल्म ‘लोंग दा रिष्कारा’ में नजर आए.

1984 में ही छलांग लगाकर ब्रिटिश टीवी सीरियल ‘‘द ज्वेल इन द क्राउन’’ की थी, यहीं पर उनकी मित्रता ब्रिटिश कलाकार आर्ट मलिक से हुई थी. यह एक अलग बात है कि इस ब्रिटिश सीरियल की शूटिंग भारत के राजस्थान में हुई थी. जिसमें ओम पुरी व सईद जाफरी के अलावा सभी ब्रिटिश कलाकार थे. इसके बाद इंग्लिशफिल्म ‘सिटी आफ ज्वाय’ में भी ओम पुरी व आर्ट मलिक ने एक साथ काम किया था. आर्ट मलिक व ओम पुरी2016 में प्रदर्शित राकेश ओम प्रकाश मेहरा की फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ में एक साथ नजर आए थे.

ओम पुरी की चर्चा करते हुए आर्ट मलिक ने मुझसे 28 सितंबर 2016 को कहा था-‘‘मैं आज से चौंतीस वर्ष पहले 1982 में ब्रिटिश टीवी सीरियल ‘ज्वेल इन द क्राउन’ की शूटिंग के लिए पहली बार ब्रिटेन से भारत पहुंचा था. हमने इस सीरियल की शूटिंग राजस्थान में की थी. तब ओम पुरी से हमारी मुलाकात हुई थी. उसके बाद अब फिल्म ‘मिर्जिया’ में शूटिंग के दौरान ओम पुरी ने मेरे हिंदी उच्चारण दोष कम करने में काफी मदद की.वह बहुत अच्छे इंसान और उम्दा कलाकार हैं.’’

उसके बाद ओम पुरी, श्याम बेनेगल, कुंदन शाह, अजीज मिर्जा जैसे फिल्मकारों के साथ कई फिल्में करते रहे. पर यह सब कलात्मक फिल्में थी.

1988 में ओम पुरी ने पहली मलयालम फिल्म ‘‘परवर्थम’’ की. इस फिल्म में ओम पुरी ने रेवती के संग मुख्य भूमिका निभायी थी. 1990 में ओम पुरी को भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ से नवाजा. 1992 में रेवती के साथ ही ओम पुरी ने तेलगू फिल्म ‘‘अंकुरम’’ की थी.

1994 में इंग्लिश फिल्म ‘‘वोल्फ’’ की थी. 1998 में इंग्लिश फिल्म ‘सच ए लांग जर्नी’ में रोशन सेठ, सोनी राजदान के साथ अभिनय किया था. पर 1998 की फिल्म ‘ईस्ट इज ईस्ट’ ने उन्हे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफीशोहरत दिलायी.

इस बीच वह हिंदी फिल्में करते रहे. बीच में कन्नड़ फिल्म भी की. पर 2003 में ओम पुरी ने इंग्लिश फिल्म‘‘कोड 46’’ की. इसके बाद 2004 में ओम पुरी को ‘‘आर्डर आफ द ब्रिटिश एम्परर’’ का खिताब मिला. तो वहीं2004 में ही वह ‘युवा’ और ‘देव’ जैसी फिल्मों में नजर आए. फिल्म ‘देव’ के किरदार से असहमति की बात करउन्होंने हंगामा मचा दिया था. पर यहीं से उनके करियर में पतन का दौर शुरू हुआ. उसके बाद वह हर साल तीन से चार फिल्में करते रहे, पर यह वह फिल्में नहीं थी, जिनमें उनके अभिनय को यदि किया जाता या उनके अभिनय की चर्चा होती.

2014 में उन्होंने इंग्लिश व फ्रेंच फिल्म ‘द हंड्रेड फुट जर्नी’ की. 2016 में उन्होंने पाकिस्तानी फिल्मकार नाबिल कुरेशी निर्देशित फिल्म ‘एक्टर इन ला’ कर पाकिस्तानी फिल्मों में भी अपना खाता खोल लिया था.

इस वर्ष उनके अभिनय से सजी गुरिंदर चड्ढा निर्देशित अंग्रेजी भाषा की फिल्म ‘‘वायसराय हाउस’’ प्रदर्शित होने वाली है. तो वहीं उनकी पूर्व पत्नी सीमा कपूर व सलमान खान की कबीर खान निर्देशित फिल्म ‘ट्यूब लाइट’ में भी उनका कुछ दिन का काम बाकी है. कन्नड़ फिल्म ‘टाइगर’ की भी वह शूटिंग पूरी नही कर पाए.

बर्थडे स्पेशल: बचपन की लेडी गुंडा आज की टॉप एक्ट्रेस

मॉडलिंग से एक्टिंग में आई बंगाली बाला बिपाशा बसु का आज बर्थडे है. 7 जनवरी, 1979 को दिल्ली में एक बंगाली फैमिली में जन्मीं बिपाशा 8 साल की उम्र तक दिल्ली में रहीं. मॉडलिंग जगत में खूब नाम कमाने के बाद बिपाशा ने हिन्दी सिनेमा जगत की ओर रूख किया.

उन्होंने साल 2001 में थ्रिलर फिल्म ‘अजनबी’ से बी-टाऊन में डेब्यू किया था. इस फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट फीमेल डेब्यू के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया. साल 2016 में करण ग्रोवर के साथ शादी करके बिपाशा फिलहाल अपनी पर्सनल लाइफ एन्जॉय कर रही हैं.

आज उनके जन्मदिन के खास मौके पर जानिए उनके बारे में कुछ दिलचस्प बातें.

लेडी गुंडा बुलाते थे लोग

भले ही आज बिपाशा की गिनती सेक्सी और खूबसूरत एक्ट्रेस में होती है, लेकिन उनकी मानें तो वे बचपन में काली और मोटी थीं. उस समय कोई भी उन्हें प्रिटी नहीं समझता था. एक बार बिपाशा ने यह भी बताया था कि स्कूल के दिनों में उनकी शॉर्ट और कमांडिंग पर्सनालिटी के कारण हर कोई उनसे डर जाया करता था. प्यार से लोग उन्हें ‘लेडी गुंडा’ बुलाया करते थे.

पढ़ने में थी दिलचस्पी

बिपाशा पढ़ने में अच्छी थी और उन्हें पढ़ना भी अच्छा लगता था. उनकी शुरूआती पढ़ाई दिल्ली में हुई. बिपाशा ने कभी नहीं सोचा था कि वो मॉडलिंग शुरू करेंगी, लेकिन फिर एक बार वह मॉडल मेहर जेसिया रामपाल से मिली और उन्होंने बिपाशा को मॉडलिंग करने को कहा.

बिपाशा बसु भले ही आज एक बड़ी एक्ट्रेस हो गई हैं, लेकिन उन्हें आज तक इस बात का मलाल है कि उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ी.

इन एक्टर्स से रहा बिपाशा का अफेयर

बिपाशा बसु अपने अफेयर्स को लेकर भी काफी चर्चा में रही हैं. बिपाशा के साथ सबसे पहला नाम डीनो मोरिया का जुड़ा था. उसके बाद जॉन अब्राहम के साथ उनका लंबा रिलेश चला था. उन्होंने जॉन को करीब 10 साल तक डेट किया और लिव-इन में भी रहीं. इससे पहले बिपाशा का अफेयर एक्टर डीनो मोरिया के साथ रहा. हरमन बावेजा से उनका लिंकअप रहा है. बिपाशा का नाम उनकी फिल्म ‘जोड़ी ब्रेकर्स’ के को-स्टार आर. माधवन से भी जुड़ा. आज बिपाशा अपने पति करण सिंह ग्रोवर के साथ अपनी जिन्दगी एन्जॉय कर रही हैं.

अर्जुन रामपाल की पत्नी की सलाह पर मॉडल बनीं बिपाशा

एक एक्ट्रेस होने के साथ-साथ बिपाशा का नाम सफल मॉडल्स में भी गिना जाता है. खबरों की मानें तो उन्हें मॉडलिंग में लाने का श्रेय एक्टर अर्जुन रामपाल की पत्नी और पूर्व सुपर मॉडल मेहर जेसिया को जाता है. को

लकाता के एक होटल में बिपाशा और मेहर की मुलाकात हुई थी. तभी मेहर ने बिप्स को मॉडलिंग में करियर बनाने की सलाह दी थी. फाइनली, बिपाशा ने न केवल इस फील्ड में कदम रखा, बल्कि सफलता भी हासिल की.

अप्रैल 2016 में हुई करण सिंह ग्रोवर से शादी

बिपाशा बसु और करण सिंह ग्रोवर ने 30 अप्रैल 2016 को मुंबई में शादी की. सलमान खान, डीनो मोरिया, सोनम कपूर, प्रिति जिंटा और रितेश देशमुख सहित कई बॉलीवुड स्टार्स उनके वेडिंग रिसेप्शन में शामिल हुए थे. गौरतलब है कि ‘अलोन’ के सेट पर ही बिपाशा और करण की नजदीकियां बढ़ी थीं.

बिपाशा की कुछ प्रमुख फिल्में

बिपाशा ने हॉरर फिल्म राज, आंखें, मेरे यार की शादी है, चोर मचाए शोर, गुनाह, जिस्म, फुटपाथ, जमीन, ऐतबार, रुद्राक्ष, रक्त, मदहोशी, चेहरा, बरसात, नो एंट्री, अपहरण, शिखर, हमको दिवाना कर गए, डरना जरूरी है, फिर हेरा-फेरी, अलग, कारपोरेट, ओमकारा, जाने होगा क्या, धूम-2, नो स्मोकिंग, गोल, रेस, बचना ऐ हसीनो, आक्रोश, प्लेयर्स, रेस-2, आत्मा, हमशकल्स, क्रिएचर और अलोन जैसी फिल्मों में काम किया.

ब्रैड पिट की दीवानी

बिपाशा बसु ब्रैड पिट को बहुत पसंद करती हैं. एक बार तो बिपाशा ने यह भी कहा था कि जो भी उनका मिस्टर राइट होगा उसमें ब्रैड पिट जैसा कॉन्फिडेंस होना चाहिए.

शराब है खराब

सावधान, शराब का शौक न केवल आप के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है बल्कि इस से आप के आपसी संबंधों में भी खटास पैदा होती है, साथ ही आप अपराधी बनने पर भी मजबूर हो जाते हैं.

संजय को शराब पीने की लत उस समय लगी जब वह 10वीं में पढ़ रहा था और बोर्ड की परीक्षा में कम अंक आने की वजह से उस ने अपने जैसे कुछ दोस्तों के साथ टैंशन कम करने के लिए पहली बार बियर पी थी. इस के बाद वह धीरेधीरे इस का आदी होता चला गया. जिस के चलते वह इंटर की परीक्षा में दो बार फेल हुआ. जब इस बात की जानकारी संजय के पिता को हुई तो उन्होंने संजय की पढ़ाई बीच में ही छुड़वा कर उसे अपने कपड़े के व्यवसाय में सहयोग करने के लिए अपने साथ ही लगा लिया, लेकिन संजय अपनी शराब पीने की बुरी आदत के चलते पिता के व्यवसाय से होने वाली आमदनी से पैसे चुरा  कर शराब पीने लगा था, जिस को ले कर अकसर संजय व उस के पिता में तू-तू, मैं-मैं होती रहती थी.

एक दिन संजय को उलटियां होने लगीं जो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. संजय के घर वाले आननफानन में उसे ले कर अस्पताल ले गए, जहां जरूरी चैकअप के बाद डाक्टर ने बताया कि अत्यधिक शराब के सेवन के चलते संजय को लिवर का कैंसर हो गया है जो अपनी अंतिम अवस्था में है. संजय के बचने के चांसेज बहुत कम है. डाक्टरों ने उसे बचाने की भरपूर कोशिश की लेकिन बचा नहीं पाए.

इकलौते बेटे की मौत ने संजय के पिता को तोड़ दिया. संजय की शराब पीने की लत के कारण उस का कैरियर तो दांव पर लगा ही साथ ही शराब ने उस की जान भी ले ली.

शराब से ऐसा बुरा हश्र सिर्फ संजय का ही नहीं बल्कि हर रोज हजारों लोगों का होता है. शराब न केवल स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है बल्कि यह अपराध को भी बढ़ावा देने का एक प्रमुख कारण है. शराब पीने के बाद व्यक्ति का दिल और दिमाग अच्छे और बुरे में फर्क करना भूल जाता है. शराब की वजह से व्यक्ति अपनी सुधबुध खो बैठता है. ऐसे में वह अपने से बड़ों से अभद्रता से बात करने में भी नहीं हिचकता. 

शराब की लत की वजह

अकसर शौकिया तौर पर शराब पीने की शुरुआत होती है जो धीरेधीरे उन की आवश्यकता बन जाती है. शराब की लत का एक बड़ा कारण घरेलू माहौल भी है, क्योंकि जब घर का कोई बड़ा सदस्य घर के दूसरे सदस्यों व बच्चों के सामने खुलेआम शराब पीता है या पी कर आता है तो अनुभव लेने की इच्छा के चलते पत्नी, बच्चे व घर के अन्य सदस्य भी शराब पीने के आदी हो सकते हैं.

शराब की लत लगने का एक कारण गलत संगत भी है. अगर व्यक्ति शराब पीने वाले साथियों के साथ ज्यादा समय बिताता है तो उसे शराब की लत पड़ सकती है. तमाम लोग शराब को अपना सोशल स्टेटस मानते हैं.

शराब की लत लगने की एक बड़ी वजह निराशा, असफलता व हताशा को भी माना जाता है, क्योंकि अकसर लोग इन चीजों को भुलाने के लिए शराब का सहारा लेते हैं जो बाद में बरबादी का कारण भी बनता है.

पढ़ाई व कैरियर

किशोरों व युवाओं में नशे की लत दिनोदिन बढ़ती जा रही है. इस कारण शराब उन की पढ़ाई व कैरियर के लिए बाधा बन जाती है.

सामाजिक व आर्थिक नुकसान

शराबी व्यक्ति की समाज में इज्जत नहीं होती, शराब की लत के चलते परिवार में सदैव आर्थिक तंगी बनी रहती है, जिस वजह से परिवार के सदस्यों के साथ मारपीट आम बात हो जाती है. शराब की जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यक्ति अपनी स्थायी जमा पूंजी भी दांव पर लगा देता है, जिस से बच्चों की पढ़ाई व कैरियर भी प्रभावित होता है. 

स्वास्थ्य का दुश्मन

स्वास्थ्य के लिए शराब जहर की तरह है जो व्यक्ति को धीरेधीरे मौत की तरफ ले जाती है. मानसिक व नशा रोग विशेषज्ञ डा. मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन के अनुसार शराब में पाया जाने वाला अलकोहल शरीर के कई अंगों पर बुरा असर डालता है, जिस की वजह से 200 से भी अधिक बीमारियां होने का खतरा बना रहता है. 

अत्यधिक शराब पीने से शरीर में विटामिन और अन्य जरूरी तत्त्वों की कमी हो जाती है. शराब का लगातार प्रयोग पित्त के संक्रमण को बढ़ाता है, जिस से ब्रैस्ट और आंत का कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है.

शराब में पाया जाने वाला इथाइल अल्कोहल लिवर सिरोसिस की समस्या को जन्म देता है जो बड़ी मुश्किल से खत्म होने वाली बीमारी है. इथाइल अलकोहल की वजह से पाचन क्रिया गड़बड़ा जाती है, जिस से लिवर बढ़ जाता है और ऐसी अवस्था में भी व्यक्ति अगर पीना जारी रखता है तो अल्कोहल हैपेटाइटिस नाम की बीमारी लग जाती है. 

सैक्स पर असर

जिला अस्पताल बस्ती के चिकित्सक डा. बी के वर्मा के अनुसार शराब सैक्स के लिए जहर है. लोग सैक्स संबंधों का अधिक मजा लेने के चलते यह सोच कर शराब पीते हैं कि वे लंबे समय तक आत्मविश्वास के साथ सहवास कर पाएंगे, लेकिन लगातार शराब के सेवन के चलते प्राइवेट पार्ट में तनाव आना कम हो जाता है, जिस का नतीजा नामर्दी के रूप में दिखता है. कामेच्छा की कमी के साथ ही महिलाओं की माहवारी अनियमित हो जाती है.

सड़क दुर्घटना का कारण

अकसर सड़क दुर्घटना का सब से बड़ा कारण शराब पी कर गाड़ी चलाना होता है, क्योंकि शराब पीने के बाद गाड़ी ड्राइव करने वाले का दिमाग उस के वश में नहीं रहता और ड्राइव करने वाला व्यक्ति गाड़ी से नियंत्रण खो देता है और दुर्घटना हो जाती है.

अपराध को बढ़ावा

शराब का नशा दुनिया भर में होने वाले अपराधों की सब से बड़ी वजह माना जाता है. अकसर शराबी व्यक्ति नशे में अपने होशोहवास खो कर ही अपराध को अंजाम देता है.

ऐसे पाएं छुटकारा

शराब की लत का शिकार व्यक्ति इस से होने वाली हानियों को देखते हुए अकसर शराब को छोड़ने की कोशिश करता है, लेकिन प्रभावी कदम की जानकारी न होने की वजह से वह शराब व नशे से दूरी नहीं बना पाता है. यहां दिए उपायों को अपना कर व्यक्ति शराब जैसी बुरी लत से छुटकारा पा सकता है : 

– अगर आप शराब की लत के शिकार हैं और इस से दूरी बनाना चाहते हैं तो इस को छोड़ने के लिए खास तिथि का चयन करें. यह तिथि आप की सालगिरह वगैरा हो सकती है. छोड़ने से पहले इस की जानकारी अपने सभी जानने वालों को जरूर दें.

– अगर आप का बच्चा शराब का शिकार है तो मातापिता को चाहिए कि उस की गतिविधियों पर नजर रखें और समय रहते किसी नशामुक्ति केंद्र ले जाएं और मानसिक रोग विशेषज्ञ से संपर्क जरूर करें.

– ऐसी जगहों पर जाने से बचें जहां शराब की दुकानें या शराब पीने वाले लोग मौजूद हों, क्योंकि ऐसी अवस्था में फिर से आप की शराब पीने की इच्छा जाग सकती है.

– कमजोरी, उदासी या अकेलापन महसूस होने की दशा में घबराएं नहीं बल्कि अपने भरोसेमंद व्यक्ति के साथ अपने अनुभवों को बांटें और कठिनाइयों से उबरने की कोशिश करें.

– शराब छोड़ने के लिए आप इस बात को जरूर सोचें कि आप ने शराब की वजह से क्या खोया है और किस तरह की क्षति पहुंची है. इस से न केवल आप शराब से दूरी बना सकते हैं बल्कि खराब हुए संबंधों को पुन: तरोताजा भी कर सकते हैं.

– शराब छोड़ने से उत्पन्न परेशानियों से निबटने के लिए किसी अच्छे चिकित्सक या मानसिक रोग विशेषज्ञ की सलाह लेना न भूलें.

फिल्म इंडस्ट्री में आना ही नहीं चाहती थीं तापसी पन्नू

अत्यंत भोली और खूबसूरत अभिनेत्री तापसी पन्नू ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत तमिल, तेलुगू और हिंदी फिल्मों से की. बचपन में तापसी को अभिनेत्री बनने का शौक नहीं था. दिल्ली की रहने वाली तापसी एक सौफ्टवेयर इंजीनियर है. पढ़ाई के दौरान बीच बीच में शौकिया तौर पर मौडलिंग कर वह अपना जेबखर्च चलाती थी. वह कुछ अलग करना चाहती थी, लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे.

इतना ही नहीं उस ने 2008 में पैंटालून फेमिना मिस फ्रैश फेस और साफी फेमिना मिस ब्यूटीफुल स्किन का खिताब भी जीता. वह काफी मेहनती है और हर फिल्म में अपना सौ फीसदी देने की वचनबद्धता रखती है. फिल्म ‘पिंक’ में उस ने मोलेस्टेशन की शिकार युवती की भूमिका बखूबी निभाई है.

वह पिछले 6 साल से फिल्म इंडस्ट्री में है. अपनी जर्नी उस ने दक्षिण भारतीय फिल्मों से शुरू की. बॉलीवुड इंडस्ट्री में वह 3 साल पहले आई. वह एक इंजीनियर है और उस की अच्छी कंपनी में जौब भी लग गई थी, लेकिन उस ने जौइन नहीं किया, क्योंकि वह तो इस क्षेत्र में जाना ही नहीं चाहती थी. उस की एमबीए करने की इच्छा थी. वह मार्केटिंग की जौब चाहती थी.

पहले साल उस के लिए परीक्षा दी, लेकिन वह अपनी परफौर्मैंस से संतुष्ट नहीं थी. दोबारा परीक्षा देने की सोची और इस दौरान कुछ करने की योजना बनाई. पहले से ही कुछ औफर उसे दक्षिण भारतीय फिल्मों के मिल रहे थे, क्योंकि पढ़ाई के दौरान वह पौकेटमनी के लिए मौडलिंग करती थी, जिस कारण लोगों के पास उस की तसवीरें थीं. उन्होंने उसे औफर देना शुरू कर दिया, लेकिन उस ने कहा कि मुझे न तो दक्षिण भारतीय भाषा आती है और न ही ऐक्टिंग, तो मैं कैसे काम करूंगी?

तब उसे हिंदी फिल्मों के औफर नहीं मिल रहे थे, इसलिए उस ने सीरियसली नहीं लिया. साउथ की फिल्में बड़े नाम वाली थीं साथ ही तापसी से कहा गया कि यहां आ कर सभी भाषा सीख लेते हैं. फिर तापसी वहां गई और एकसाथ 2 फिल्में तमिल और तेलुगू में करने लगी.

पहली फिल्म रिलीज होने से पहले ही उस ने 3 फिल्में और साइन कर ली थीं. दोनों फिल्में दोनों भाषाओं में हिट हो गईं. इस तरह से तापसी का फिल्मी सफर शुरू हो गया. काम करते करते एक दिन फोन आया कि डेविड धवन की फिल्म ‘चश्मेबद्दूर’ में काम करना है. वह उन से जा कर मिली और तब से हिंदी फिल्मों की ओर रुख कर लिया.

तापसी पन्नू को फिल्मों में आने की प्रेरणा किसी से नहीं मिली. वह आम युवतियों की तरह फिल्में देखती थी, कोई पैशन नहीं था. किसी ऐक्टर को ले कर क्रेजी या फैन्स वाली फीलिंग्स भी नहीं थीं. इसलिए काम करतेकरते चाहत बनी.

 तापसी का कहना है, ‘‘मेरे परिवार वालों का मुझे यहां तक पहुंचाने में बहुत बड़ा योगदान रहा. उन्होंने कभी मुझ से प्रश्न नहीं किया कि मैं कहां क्या कर रही हूं? उन को विश्वास था कि मैं जो भी करूंगी, सही करूंगी. उन के प्रयास से ही मैं ने इन ऊंचाइयों को छुआ.’’

यहां तक का सफर तय करने में तापसी को काफी जद्दोजेहद करनी पड़ी. साउथ में तो तापसी की पहली फिल्म हिट हो गई थी, लेकिन अब प्रश्न यह था कि आगे क्या करे. ऐक्टिंग अब करती रहनी पड़ेगी और जिसे ऐक्टिंग ही नहीं आती हो, उस के लिए अपने लैवल को उठाना आसान नहीं होता.

दिल्ली में डीटीसी बसों में तापसी ने काफी ट्रैवल किया है. इस दौरान उस ने देखा कि अकसर सिरफिरे महिलाओं को छूने की कोशिश करते हैं.

तापसी ने न तो कोई रिसर्च किया और न ही किसी ऐसी लड़की से मिली जिस ने उस की मदद की हो. अकसर लड़की को चाहिए कि यदि कोई लड़का उसे छुए तो वह कैसे व्यवहार करे.

निर्देशक सुजीत सरकार दिन में केवल एक बार आ कर कहते थे कि यदि आप के साथ ऐसा हुआ है, तो वही दिमाग में रखना है. फिर वह सीन को समझ जाती थी. वही काफी होता था तापसी के लिए, क्योंकि 2 महीने बाद तापसी को लगने लगा था कि वाकई उस के साथ ऐसा कुछ हुआ है.

इस फिल्म से वह कुछ बदली नहीं है. काफी सालों से वह इस खास विषय से जुड़ी है. वह एक रेप विक्टिम एनजीओ के साथ काम करती है. समय मिलने पर वह अखबार पढ़ती है और मजबूती से इस बारे में बात भी करती है.

पहले महिलाएं अपने साथ होने वाले अन्याय को चुपचाप सहती थीं अब वे इन घटनाओं की रिपोर्ट करती हैं. लेकिन मीडिया की भागीदारी भी इस में अधिक है इसलिए यह अधिक दिखता है. कुछ फर्जी घटनाएं भी होने लगी हैं.

तापसी ने प्रकाश राज की फिल्म ‘तड़का’ के लिए अपने बाल कलर करवाए थे. फिल्म खत्म होने के बाद उस के बाल काफी खराब भी हो गए थे. इसलिए उस ने उन्हें कटवा दिया. फिर साकिब के साथ फिल्म ‘मखना’ करनी थी, जिस में आधी फिल्म के बाद लुक बदलना था. ऐसे में उसे बाल कटवाना ही सही लगा.

तापसी का कोई पर्टिकुलर डिजाइन नहीं है. उस की स्टाइलिश देवकी है. वह जो कहती है वह फौलो करती है. तापसी फिल्म निर्देशक मणिरत्नम की फिल्म करना चाहती है और फवाद अफजल खान के साथ अभिनय करना चाहती है.

ओमपुरी की वो बातें, जो आपने कभी नहीं पढ़ी होंगी

थिएटर से शुरूआत कर फिल्मों में अपनी एक अलग पहचान बनाते हुए अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले अभिनेता ओमपुरी हमेशा दर्शकों को एक अलग रंग में नजर आते रहे. बदले हुए समाज व बदले हुए सिनेमा के रूप व स्तर से ओम पुरी कभी खुश नहीं रहे. उन्होंने हर मसले पर हमेशा अपनी बेबाक राय रखी. मगर समय,समाज व सिनेमा के बदलाव के साथ उनके निजी जीवन व उनके व्यवहार में भी अप्रत्याशित बदलाव आता रहा.

मुझे याद है ओम पुरी ने बौलीवुड में जब अपना करियर शुरू किया था, उस वक्त वह बहुत सहृदय इंसान थे. वह मुंबई में बैंड स्टैंड के पास एक बंगले में एक फिल्म की शूटिंग कर रहे थे. उस वक्त तक उन्हे फिल्म‘आरोहण’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने के साथ ही फिल्म ‘‘अर्धसत्य’’ में उनके अभिनय की काफी तारीफें होने लगी थीं. फिल्म ‘‘अर्धसत्य’’ के उनके अनंत वेलनकर के किरदार की हर कोई प्रशंसा कर रहा था. जब मैं उनके पास बैठा हुआ था, उसी वक्त खबर मिली थी कि उन्हें फिल्म ‘‘अर्धसत्य’’ के लिए दूसरा राष्ट्रीय पुरस्कार मिल गया है. उस वक्त ओम पुरी ने बड़ी विनम्रता के साथ कहा था, ‘‘मैं तो कलाकार हूं. कला की सेवा करने आया हूं. यह पुरस्कार तो मेरी जिम्मेदारी में इजाफा कर रहे हैं.’’ मगर 2005 के बाद ओम पुरी के अंदर एकगुस्सैल इंसान ने जगह ले ली थी.

राष्ट्रीय पुरस्कार की खबर सुनकर ओम पुरी को बधाई देने के लिए धीरे धीरे कई निर्माता निर्देशकों का वहां जमावड़ा लग गया था. (वास्तव में यह 1983 की बात है. जब मोबाइल फोन थे नहीं और न ही हर किसी के घर या आफिस में फोन हुआ करता था. आज के जमाने में शायद लोग मोबाइल फोन पर ही बधाई देकर चुप बैठ जाते.) बहरहाल, उस वक्त वहां इकट्ठा हुए फिल्मकार यही कह रहे थे कि ओमपुरी जी अभिनय को नित नए आयाम देते जा रहे हैं और यह सिलसिला कहां जाकर ठहरेगा, कोई नहीं कह सकता. लेकिन जैसे ही कला सिनेमा मृत प्राय हुआ और ‘कला सिनेमा’ की बदौलत कमायी गयी शोहरत के बल पर ओम पुरी मुंबईया मसाला फिल्मों का हिस्सा बने, वैसे ही उनकी प्रतिभा धूमिल होती चली गयी. उनके बोल बदलते चले गए. जनवरी 2012 में ओम पुरी ने हमसे कहा था-‘‘मैं तो जिंदगी जीने के लिए कमर्शियल फिल्में कर रहा हूं.’’

हकीकत यही है कि 2004 के बाद ओम पुरी कमर्शियल मसाला फिल्मों में काफी छोटे छोटे किरदार निभाने लगे थे. इस पर उन्होंने हमसे कहा था-‘‘सच कहूं तो पैसे के लिए कई फिल्में कर रहा हूं. मैं अपने करियर कीशुरूआत में बहुत अच्छा काम कर चुका हूं. अब बुढ़ापे के लिए, बच्चे की परवरिश के लिए, बच्चे को अच्छे स्कूल में पढ़ाने के लिए, बीमार होने पर दवा के लिए धन चाहिए. उसी धन के लिए मैं तमाम ऐसी फिल्में कर रहाहूं. सीधे सपाट शब्दों में कहूं तो जिंदगी जीने के लिए कमर्शियल फिल्में कर रहा हूं.’’

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए ओम पुरी ने कहा था-‘‘मैंने 2003 में फिल्म ‘धूप’ की थी. जिसमें मैने उस चरित्र को निभाया था, जो कि फिल्म का मुख्य प्रोटोगानिस्ट था. मगर बौलीवुड में ज्यादातर फिल्में ‘हीरो’ आधारित होती हैं, चरित्र आधारित नहीं. जब चरित्र आधारित फिल्में बनती हैं, तो वह मुझे ज्यादा पसंद आती हैं. कुछ चरित्र आधारित फिल्में बन रही हैं, पर उनमे ‘हीरो’ रहे कलाकार ही चरित्र निभाने लगे हैं. तो फिर हमें कौन याद करने वाला है.’’

ओम पुरी पर 2000 के बाद आरोप लगने लगे थे कि वह अपने समकक्ष नसिरूद्दीन शाह जैसे कलाकारों की तरह अपने अभिनय, अपनी कार्यशैली व अपने किरदारों में बदलाव नही ला पाए. इस पर उनका हमेशा एक ही रोना रहा कि उन्हे प्रियदर्शन की फिल्म ‘मेरे बाप पहले आप’ के बाद अच्छे किरदार नहीं मिले.

इतना ही नही जब उन्होंने अति घटिया फिल्म ‘‘टेंशन मत ले यार’’ स्वीकार की थी, तब ओम पुरी ने अपनी खीझ मिटाते हुए दर्शकों को सलाह देते हुए कहा था-‘‘मैं दर्शकों की या प्रशंसकों की परवाह कब तक करूं?कितने दिन व कितने माह तक अच्छे किरदार के आफर का इंतजार करते हुए घर पर खाली बैठा रहूं? पूरे तीन माह तक घर पर खाली बैठे रहने के बाद मैंने  फिल्म ‘टेंशन मत ले यार’ साइन की है. मैं हर दर्शक से यही कहना चाहूंगा कि हमें कभी भी करोड़ों रूपए नहीं मिले. मुझे फिल्म ‘आक्रोश’ के लिए 9 हजार, ‘जाने भी दो यारों’ के लिए 5 हजार रूपए मिले थे. फिल्म ‘आराहेण’ के लिए मैने पूरे दो माह तक शूटिंग की थी. जिसके लिए मुझे सिर्फ दस हजार रूपए मिले थे. तो भइया आजीविका के लिए व्यावसायिक फिल्में करनी ही पड़ेगी. वैसे भी अब कला फिल्में बनती नहीं हैं. व्यावसायिक फिल्मों में से ही कुछ चुनिंदा फिल्में करनी पड़ रही हैं. जिन हीरो को जिन कलाकारों को करोड़ों रूपए मिल रहे हैं, उनसे कहो कि वह घटिया काम करना बंद करें. ’’

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए ओम पुरी ने कहा था-‘‘आजकल स्टार कलाकार भी कला फिल्में कर रहा है. क्योंकि उन्हें भी अलग तरह की लोकप्रियता चाहिए. तो जब कला फिल्म में शाहरुख खान या अमिताभ बच्चन काम करने के लिए तैयार हों, तो हमें कौन पूछेगा? एक वक्त था जब हम शिखर पर थे. पर अब हम ढलते सूरज हैं. इस सच को मानने से क्यों इंकार किया जाए? मुझे अच्छी तरह से याद हैं कि मैं और नसिरूद्दीन शाह एसेल स्टूडियो में एक फिल्म की शूटिंग कर रहे थे. हम दोनों इंस्पेक्टर बने थे. हमने सामने देखा कि भीड़ में भारत भूषण जी बैठे हैं. सीन खत्म होने के बाद हम दोनों आश्चर्य के साथ उनके पास गए. तो उन्होंने भी यही बात कही थी कि ‘अब हम ढलते सूरज हैं.’’

इतना ही नहीं ओम पुरी ने फिल्मकारों को कोसते हुए कहा था-‘‘कितनी दुःखद स्थिति है कि हमारे यहां ‘शीला की जवानी..’ और ‘मुन्नी बदनाम हुई..’ जैसे गाने बन रहे हैं. मैं फिल्मकारों की इस बात से सहमत नही हूं कि वह दर्शकों की पसंद के अनुसार ही चीजें दे रहे हैं. सच यह हैं कि हमारे फिल्मकार व्यावसायिकता की अंधी दौड़ में दौड़ते चले जा रहे हैं. उन्हें खुद इस बात का अहसास ही नही हैं कि दर्शक क्या चाहता है? इसी वजह से फिल्मों की असफलता की संख्या ज्यादा बढ़ी हैं. इसके अलावा साठ व सत्तर के दशक में कलात्मक और व्यावसायिक सिनेमा की स्थिति अच्छी थी. उन दिनों कई जानरों की फिल्में एक साथ बना करती थीं. तब विविधता वाला सिनेमा दर्शकों को देखने को मिलता था, पर अब वह भी नहीं रह गया. भारतीय सिनेमा मौलिकता से भटक गया है. भारतीय फिल्मकार व कलाकार साहित्य से दूर हो गए हैं. हमारे फिल्मकार व कलाकार अब विदेशी नकल करने पर उतारू हो गए हैं. इतना ही नही कारपोरेट जगत ने भी सिनेमा को बर्बाद किया है.’’

आमिर खान निर्मित फिल्म ‘‘दिल्ली बेले’’ की आलोचना और इसे कभी न देखने की चर्चा करते हुए ओम पुरी ने हमसे कहा था-‘‘यथार्थ के नाम पर समाज की बुराइयों को परदे पर दिखाना गलत है. सिनेमा का अर्थ होता है कि वह समाज को उसका आइना दिखाते हुए चीजें इस तरह से पेश करें कि समाज से बुराइयां दूर हो ना कि समाज की बुराइयों को ग्लोरीफाय किया जाए. मैंने तो आमिर खान की फिल्म ‘दिल्ली बेले’ नहीं देखी. उसने इस फिल्म में काफी गालियां भर दी है, जो कि गलत हैं. मैं आमिर खान की फिल्म ‘दिल्ली बेले’ देखने के लिए पैसे नहीं खर्च करुंगा. मैं ‘दिल्ली बेले’ की डीवीडी के लिए भी पैसे खर्च नहीं करूंगा. मेरी समझ में नही आ रहा है कि हमारे सेंसर बोर्ड को क्या हो गया है. वह क्या कर रहा हैं. क्या सेंसर बोर्ड कुछ बड़े नामों पर आखें बंद कर लेता है.’’

इतना ही नहीं ओम पुरी की कथनी व करनी में काफी विरोधाभास रहा है. वह हमेशा रीमेक फिल्मों का विरोध करते रहे. जबकि खुद उन्होंने ‘अग्निपथ’ के रीमेक में काम किया था. इस पर जब उनसे सवाल किया गया था, तो काफी गुस्से में उन्होंने कहा था-‘‘मैंने कोई गुनाह तो नहीं किया. सिनेमा की जो स्थिति है और मैं जहां हूं, वहां जिस ढंग का काम मिलेगा, करना ही पडे़गा. मैंने पहले ही कहा कि जिंदा रहने के लिए कुछ काम करने पड़ते हैं. वैसे भी मैं फिल्में बहुत कम देखता हूं. पिछले दस साल से मैं किसी फिल्म के प्रीमियर पर नही गया. क्योंकि प्रीमियर में फिल्में रात में दस बजे शुरू होती हैं और रात दो बजे खत्म होती है. इससे दूसरा दिन बर्बाद हो जाता है. मैंने पुरानी ‘अग्निपथ’ तो देखी थी,प र मैंने यह ‘अग्निपथ’ नहीं देखी, जिसमें मैंने भी अभिनय किया है.’’

इस पर जब हमने उनसे पूछा था कि  फिर वह रीमेक फिल्मों का विरोध क्यों करते हैं, तो ओम पुरी ने कहा था-‘‘फिल्मों का रीमेक करना गलत बात नहीं है. लेकिन रीमेक का अर्थ यह होता हैं कि पहले जो फिल्म बनी है, उससे बेहतर बनाएं. वैसे हमारे यहां रीमेक बहुत कम हुए हैं और जो हुए हैं, वह स्तरीय नहीं रहे. इसीलिए अब रीमेक को लेकर सवाल उठ रहे हैं. अन्यथा शेक्सपियर के नाटक पर आधारित नाटकों व फिल्मों को पूरेविश्व में कई बार बनाया गया और हर बार वह सफल रहे.’’

इसी तरह ओम पुरी जिन किरदारों को निभाते थे, उनके साथ अपनी असहमित की बात भी कहने से चूकते नहीं थे. उन्होने गोविंद निहलानी के साथ भी काम किया था. पर वह हमेशा गोविंद निहलानी निर्देशित फिल्म‘‘देव’’ के अपने किरदार के साथ असहमत होने का रोना भी रोते रहे. एक खास मुलाकात के दौरान ओम पुरी ने अपनी फिल्मों की चर्चा करते हुए कहा था-‘‘ तमस, आरोहण, आक्रोश, अर्द्धसत्य जैसी फिल्मों को लोग हमेशा याद रखेंगे. फिल्म ‘देव’ भी अच्छी बनी थी, पर फिल्म ‘देव’ के अपने किरदार से मैं सहमत नहीं था.’’

ओम पुरी भी उन कलाकारों में से रहे हैं, जिन्होंने फिल्मों से निराश होने के बाद दुबारा थिएटर की तरफ रूख नहीं किया था. इस पर उन्होंने कहा था-‘‘मैंने थिएटर से शुरूआत की थी. जब मैं फिल्मों से जुड़ा, तो मैं थिएटर की ही संजीदगी को फिल्मों में ले आया. इसलिए अच्छी फिल्में करते समय मुझे थिएटर न करने का कोई गम या दुख नहीं हुआ. मैंने ज्यादातर उन्ही फिल्मों में अभिनय किया, जो कि हमारी जिंदगी की बात करती हैं. मैने फिल्मों से भी अपने मन की ही बात पहुंचाने का प्रयास किया.’’

2012 के बाद तो वह अपने करियर से काफी निराश हो गए थे. और एक मुलाकात में उन्होंने हमसे कहा था-‘‘ख्वाहिश रखने से क्या फायदा? यहां ख्वाहिश पूरी होती नहीं. बौलीवुड में सिनेमा फार्मूला के आधार पर बनता है. आजकल के हीरो खुद ही चरित्र प्रधान किरदार निभाने लगे हैं. जीतेंद्र जब तक हीरो रहे, तब तक फिल्मों में अभिनय करते रहे. उसके बाद उन्होंने चरित्र नहीं निभाए. पर दूसरे हीरो के साथ ऐसा नही हैं. अबऋषि कपूर को देखिए, वह भी चरित्र अभिनेता बन गए हैं. हमें इन हीरो के चरित्र कलाकार बन जाने पर एतराज नही हैं. एतराज इस बात पर हैं कि सिनेमा अच्छा नहीं बन रहा हैं. मैं पटकथा, किरदार और धन इन तीनों बातों पर गौर करने के बाद ही फिल्म स्वीकार करता हूं. मुझे यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं कि मैंने कुछ फिल्में महज धन के लिए की. अब तो मैं बेहतरीन काम ही करना चाहता हूं. दूसरी बात अब मेरी उम्र साठ वर्ष हो गयी है. इस कारण भी सुस्त हो गया हूं. कम फिल्में कर रहा हूं. मैं तो अमिताभ बच्चन की एनर्जी का प्रशंसक हूं. वह मुझसे उम्र में काफी बड़े हैं और मुझसे कहीं अधिक काम कर रहे हैं.’’

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए ओम पुरी ने कहा था-‘‘मेरी इच्छाएं तो बहुत होती हैं. मुझे तो सेंसिबल कामेडी वाली फिल्में भी बहुत पसंद आती हैं. देखिए, मैं खुद को एक वर्सेटाइल कलाकार मानता हूं. मैंने हमेशा अलग अलग तरह के किरदार निभाए हैं. मैंने खुद को हीरो या विलेन में नहीं बांधा. मैंने हीरो, नकारात्मक, कामेडी,हर तरह के किरदार निभाए हैं और हर तरह के किरदारों में दर्शकों ने मुझे हमेशा पसंद भी किया है. वास्तव मेंमैं हमेशा अपने चरित्र के साथ परदे पर न्याय करने का प्रयास करता हूं. मैं चरित्रों को इस तरह निभाता हूं कि दर्शक को वह उनके बीच का पात्र लगता है. इसकी मूल वजह यह है कि मैं तो प्रकृति व लोगो से प्रेरणा लेता हूं. मैं हमेशा अपनी आंख व कान खुले रखता हूं. हर क्षण मैं आब्जर्व करता रहता हूं.’’

ओम पुरी का ज्योतिष में यकीन नहीं था. वह कहा करते थे-‘‘मै ज्योतिष या अंकशास्त्र में यकीन नहीं रखता. पर यह सच है कि हमारी फिल्मों के निर्माता अपनी फिल्मों के नाम अंकशास्त्र व ज्योतिष का सहारा लेकर ही रखते हैं. ‘बाबर’ भी उसी तरह से रखा गया नाम है.’’

जहां तक ओम पुरी के निजी जीवन का सवाल है, तो ओम पुरी का निजी जीवन भी उनके करियर की ही तरह हिचकोले लेते रहा है. शायद करियर का उतार चढ़ाव उनके निजी जीवन को संचालित करता रहा. जब वह एक संघर्षरत व कलात्मक सिनेमा के कलकार थे, तब उन्होंने अभिनेता अनु कपूर की बहन सीमा कपूर के संग विवाह किया था. पर सफलता के शिखर पर पहुंचते ही 1991 में ओम पुरी ने सीमा कपूर से संबंध खत्म कर लिए थे. उसके बाद 1993 मे उन्होंने पत्रकार व लेखक नंदिता पुरी से विवाह किया था, जिनसे उनका बेटा इशान पुरी है. मगर नंदिता पुरी से भी चार साल पहले 2013 मे ओम पुरी का तलाक हो गया था. पर कुछ माह पहले उन्होंने लखनऊ में अपनी पहली पत्नी सीमा कपूर के निर्देशन में फिल्म ‘‘कबाड़ी’’ में अभिनय किया था. ओम पुरी के करीबी और पारिवारिक दोस्तों में सनी देओल आते हैं.ज बकि अभिनेता सुरेंद्र पाल उन्हे अपना गुरू मानते हैं.

ओम पुरी की दूसरी पत्नी नंदिता पुरी ने 2011 में ओम पुरी की बायोग्राफी लिखी थी. लेकिन बाद में नंदिता पुरी ने ही ओम पुरी पर घरेलू हिंसा के गंभीर आरोप लगाये थे. पिछले कुछ वर्षों से ओम पुरी शराब का काफी सेवन करने लगे थे. शायद करियर व निजी जिंदगी में लगातार विफलता के चलते उन्हें शराब की लत लगी हो. 

2017 का सबसे बड़ा धमाका, रंगून का ट्रेलर रिलीज

शाहिद कपूर, सैफ अली खान और कंगना रनौत स्टारर निर्देशक विशाल भारद्वाज की मोस्ट अवेटेड फिल्म ‘रंगून’ के एक साथ तीन अलग-अलग पोस्टर और ट्रेलर जारी कर फिल्म की टीम ने नए साल का यह सबसे बड़ा धमाका किया है.

जारी ट्रेलर में रोमांस, वार और इमोशंस की भरमार दिख रही है. विशाल भरद्वाज की इस फिल्म में उनके तीन फेवरेट स्टार्स हैं. शाहिद कपूर सैफ अली खान और कंगना रनौत. फिल्म के तीन पोस्टर एक साथ रिलीज हुए हैं.

दूसरे विश्व युद्ध के बैकड्रॉप पर आधारित विशाल की इस फिल्म में पोस्टर देख कर पता चलता है कि फिल्म जहां त्रिकोणीय मोहब्बत की कहानी है, वहीं वार भी जोरदार है, इस प्यार और वार के बीच में छल भी है.

जारी हुए तीन अलग-अलग पोस्टर फिल्म के तीनों किरदारों की इमेज को बता रहे हैं. कहीं वर्दी में कंगना हंटरवाली बनी हैं तो कहीं वह शाहिद और सैफ के साथ मोहब्बत की कहानी लिख रहे हैं. हॉलीवुड स्टाइल के तीनों पोस्टर में वार फिल्म की झलक मिल रही है.

प्यार, युद्ध और छलावे के ईर्दगिर्द घूमती फिल्म

फिल्म के तीनों पोस्टर में साफ दिख रहा है कि फिल्म प्यार, युद्ध और छलावे के ईर्द-गिर्द घूम रही है. तीनों किरदार लंब ट्राएंगल के बीच फंसे हुए हैं. फिल्म की शूटिंग अरुणाचल प्रदेश के घने जंगलों में की गई है ताकि दुसरे विश्व युद्ध की झलक को रियल अंदाज में दिखा सके. फिल्म 24 फरवरी को थिएटर में आएगी.

नहीं रहे मशहूर अभिनेता ओम पुरी

देश के बेहतरीन एक्टर्स में शुमार ओम पुरी का निधन हो गया है. 66 साल के ओम पुरी की मौत की वजह दिल का दौरा पड़ना बताया जा रहा है. ओम पुरी उन चंद कलाकारों में से एक थे जिन्होंने समानान्तर सिनेमा से लेकर कमर्शल सिनेमा तक में कामयाबी हासिल की. उनकी मौत की खबर सुनकर उनके फैंस सकते में हैं.

ओम पुरी का जन्म अंबाला के एक पंजाबी परिवार में हुआ था. 1993 में ओम पुरी ने नंदिता पुरी के साथ शादी की थी. 2013 में उनका तलाक हो गया था. उनका इशान नाम का एक बेटा भी है.

पुरी ने पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) से ग्रेजुएशन किया. उन्होंने दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) से भी पढ़ाई की. यहां नसीरुद्दीन शाह उनके क्लासमेट थे.

ओम पुरी का फिल्मी सफर

पद्मश्री ओमपुरी ने ‘अर्ध्य सत्य’, ‘धारावी’ ‘मंडी’ जैसी सैकड़ों फिल्मों में सशक्त अभिनय किया है. ओम पुरी ने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत मराठी नाटक पर आधारित फिल्म ‘घासीराम कोतवाल’ से की थी. वर्ष 1980 में रिलीज ‘आक्रोश’ ओम पुरी के सिने करियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई.

सनी देओल के साथ घायल और 1996 में गुलजार की माचिस में उन्होंने सिख आतंकवादी का किरदार निभाया. ‘माचिस’ में बोला गया उनका डायलॉग ‘आधों को 47 ने लील लिया और आधों को 84 ने’ काफी मशहूर हुआ.

ओम पुरी ने अपनी हिंदी सिनेमा करियर में कई सफल फिल्मों में अपने बेहतरीन अभिनय का परिचय दिया है. एक बिना फिल्मी परिवार से होने के कारण उन्हें हिंदी सिनेमा में अपनी जगह बनाने के लिए काफी कड़ा संघर्ष करना पड़ा.

उन्हें हिंदी सिनेमा में अपनी बेहतरीन अभिनय के चलते कई पुरुस्कारों से भी नवाजा गया है. ओम पुरी ने बॉलीवुड के अलावा ब्रिटेन और अमेरिका की भी फिल्मों में काम किया.

किसने क्या कहा

अशोक पंडित

अशोक पंडित ने ट्वीट कर बताया कि इस खबर से वो शॉक में हैं. उन्होंने ट्वीट किया कि “ओम पुरी का अचानक यूं चले जाना हिंदी सिनेमा का बड़ा नुक्सान है. बहुत कम एक्टर ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपने शक्ल सूरत के बजाय अपने अभिनय क्षमता से अपनी पहचान बनायी, ओम पुरी उन सबके लिए एक मिसाल हैं!”

शबाना आजमी

उनके निधन पर शबाना आजमी ने कहा कि उनसे करीब की दोस्ती रही थी, उनके साथ कई फिल्मों में काम किया, उनका निधन होना बहुत अफसोस की बात है.

मधुर भंडारकर

मधुर भंडारकर ने कहा कि यकीन नहीं होता कि इतना एक्टिव इंसान इस तरह अचानक चला गया, बहुत दुखद बात है, फिल्म इंडस्ट्री में उनका बहुत कमाल का योगदान रहा है.

डेविड धवन

डेविड धवन ने कहा कि बड़ा धक्का लगा उनकी डेथ की न्यूज सुनकर. 1974 में हम रूम मेट रह चुके थे. वो ब्रिलियंट एक्टर थे.

रजा मुराद

ओम पुरी की मौत पर एक्टर्स रजा मुराद ने दुख जताया है. उन्होंने कहा कि ओम पुरी ने बीच में बहुत ज्यादा शराब पीनी शुरू कर दी, जिसकी वजह से उनकी सेहत खराब हो गई. मुराद के मुताबिक, बेहद आम शक्ल सूरत होने के बावजूद ओम पुरी ने अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया.

नागिन के बाद आ रही है लेडी बिच्छू

कलर्स का टीवी शो नागिन काफी मशहूर है. इस शो ने अपनी लीड एक्ट्रेस मौनी रॉय का सफलता की नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है. हर कोई इस शो और इसकी लीड एक्ट्रेस का फैन है.

लेकिन अब खबर है कि टीवी पर नागिन के साथ-साथ एक बिच्छू की भी एंट्री होने वाली है. मतलब यह कि अब तक टीवी पर इच्छाधारी, इच्छाप्यारी नागिन और नेवला देखने वाले दर्शकों के लिए एंटरटेनमेंट का नया डोज आने वाला है.

जल्द आपको टीवी पर एक ऐसा विलेन दिखने वाला है जो आधा इंसान होगा और आधा बिच्छू. दरअसल लाइफ ओके चैनल अपना शो सुपर कॉप वर्सेज सुपर विलेन शुरू होने वाला है. इस शो में नीता शेट्टी और हर्षद अरोड़ा लीड रोल में नजर आने वाले हैं.

शो में हर्षद लोमड़ी के रोल में होंगे और नीता आधी इंसान और आधी बिच्छू होंगी. इस शो में लोमड़ी के रोल में नजर आने वाले हर्षद अरोड़ा को आप इससे पहले दहलीज और बेइंतेहां में देख चुके हैं. वहीं नीता शेट्टी घर की लक्ष्मी बेटियां, प्यार की एक कहानी, ससुराल सिमर का जैसे शो में काम कर चुकी हैं.

महिलाओं में सैल्फ अवेयरनैस जरूरी: मिलिंद सोमन

उम्र के 5 दशक पार कर चुके मिलिंद सोमन एक सुपर मौडल, अभिनेता, फिल्म निर्माता, स्पोर्ट्स पर्सन हैं और फिटनैस को प्रमोट करते हैं. महाराष्ट्र के मिलिंद सोमन ने 10 साल की उम्र से ही महाराष्ट्र को राष्ट्रीय स्तर पर रिप्रेजैंट करना शुरू कर दिया था.

उन्होंने 4 साल तक लगातार नैशनल सीनियर स्विमिंग चैंपियनशिप जीती. 30 दिनों में 1,500 किलोमीटर दौड़ कर अपना नाम लिम्का बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स में दर्ज करवाया. इस के अलावा उन्होंने ‘आयरन मैन’ चैलेंज को पहली ही कोशिश में 15 घंटों और 19 मिनट में पूरा किया. इस में साइक्लिंग, स्विमिंग और रनिंग शामिल हैं.

समय मिलने पर सोमन आज भी 10-12 किलोमीटर दौड़ते हैं और फिटनैस के लिए सब को प्रोत्साहित करते हैं. इस समय वे महिलाओं की मैराथन दौड़ ‘पिंकाथन’ के ब्रैंड ऐंबैसेडर हैं. हर बार मैराथन में भाग लेने वाली महिलाओं की बढ़ती संख्या को देख कर वे काफी खुश हैं. उन से हुई बातचीत के कुछ अंश प्रस्तुत हैं:

अच्छी हैल्थ के लिए फिटनैस कितनी जरूरी

फिट रहने से केवल शरीर ही नहीं, बल्कि मानसिक अवस्था भी अच्छी रहती है. आमतौर पर महिलाएं कुछ न कुछ बहाना बना कर फिटनैस से भागती हैं. ऐसे में इस तरह की दौड़ उन के लिए काफी आकर्षक होती है. हमारे समाज में कुछ पुरुषों का ही कहना है कि महिलाएं दौड़ नहीं सकतीं.

यही वजह है कि मैं ‘पिंकाथन’ से जुड़ा हूं. अधिकतर महिलाएं घरेलू होती हैं और उन्हें इस की जानकारी नहीं है, इसलिए आज मैं महिलाओं को अपने लिए, अपनी हैल्थ के लिए दौड़ने के लिए कह रहा हूं. मेरे खयाल से एक महिला जो सोचती है वह कर सकती है.

कुछ महिलाएं तो ऐसी भी हैं कि शादी से पहले अपने लिए सबकुछ करती हैं और शादी के बाद सब छोड़ कर घरपरिवार में व्यस्त हो जाती हैं. ऐसे में वे एक अच्छी सेहत को नहीं जी पातीं. उन का स्ट्रैस लैवल भी बढ़ता रहता है.

महिलाओं का झुकाव इस ओर कितना बढ़ा

महिलाओं में अवेयरनैस बढ़ रही है. पहले हम केवल 8 शहरों में इस दौड़ का आयोजन करते थे. अब छोटेबड़े अनेक शहरों जैसे विशाखापट्टनम, विजयवाड़ा, नागपुर आदि से भी लोग हमें बुला रहे हैं. मैं ने इन छोटेबड़े शहरों के लिए एक दूसरा इवैंट ‘इंडिया गोइंग पिंक’ भी और्गनाइज किया है.

 इस इवैंट से जुड़े लोग सब को गाइड करते हैं और दौड़ का आयोजन करते हैं. इस बार 14 शहरों में यह दौड़ होगी. मुंबई की पहली मैराथन में केवल 2 हजार महिलाओं ने भाग लिया था. पिछले साल 11 हजार महिलाओं ने भाग लिया था और इस बार यह संख्या लाखों में होने की संभावना है.

फिटनैस से महिला के जीवन में बदलाव

मैं तो सब को ले कर दौड़ता हूं. अंदर जो बदलाव आते हैं यह उन्हें ही पता चलता है. उन के अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है कि वे जो चाहें कर सकती हैं. वे अच्छा फील करती हैं. हमारे देश में पिछले कुछ सालों से ही महिलाएं दौड़ रही हैं, जबकि अमेरिका में 40-45 साल पहले ही यह ट्रैंड शुरू हो गया था. लेकिन तब केवल प्रतियोगिता के लिए ही लोग दौड़ते थे, जिन में अधिकतर पुरुष ही होते थे.

हैल्थ के लिए कोई भी नहीं दौड़ता था. अभी अमेरिका में हर सप्ताह 30 मिलियन लोग दौड़ते हैं, क्योंकि उन्हें इस के फायदे पता चल चुके हैं. वहां स्पोर्ट्स कल्चर है पर अपने देश में ऐसा नहीं है. महिलाएं तो स्पोर्ट्स के मामले में और भी पीछे हैं. लेकिन अब हर स्कूल, गांव, शहर, क्लब आदि जगह रनिंग के इवैंट कराए जा रहे हैं. लोग भाग भी ले रहे हैं.

इस तरह सभी एकदूसरे से प्रेरित हो रहे हैं, यह एक अच्छी बात है. अब महिलाओं की झिझक दूर हो रही है. अब उन्हें फिटनैस के फायदे समझ में आ रहे हैं. इस से उन का स्ट्रैस दूर होता ही है, साथ ही और कई बीमारियां भी कम हो रही हैं.

स्टै्रस को भगाना मुश्किल नहीं, अगर हम अपने दैनिक रूटीन में दौड़ना, व्यायाम आदि को शामिल करें. बड़े शहरों में महिलाएं सुबह से शाम तक दौड़ती रहती हैं, फिर भी बीमार रहती हैं. उन्हें अपने लिए थोड़ा समय निकाल कर जो भी व्यायाम अच्छा लगे, करना चाहिए. उन्हें अपने व्यायाम की समय सीमा खुद ही तय करनी चाहिए. महिलाओं का सैल्फ अवेयर होना बहुत ही जरूरी है.

विंटर वेडिंग के लिए ब्राइडल ड्रेस

शादी-ब्याह की तैयारी में दुलहन की ड्रेस भी अहम स्थान रखती है. लेटैस्ट फैशन, बढि़या डिजाइन, बजट, कलर सभी चीजों को ध्यान रख कर अपने लिए ब्राइडल वियर चुनती हैं. हर साल की तरह इस साल भी दुलहनों के लिए ब्राइडल वियर में नया क्या है, इस बारे में बता रही हैं फैशन डिजाइनर अनुभूति जैन.

लहंगा चोली

यह स्टाइल विंटर्स के लिए बिलकुल नया और इन है. दुलहन के लिए यह बहुत कंफर्टेबल भी है. यह आउटफिट स्पैशली उन दुलहनों के लिए है, जो ठंड के मौसम में गरम रहना चाहती हैं. इस में ब्लाउज के साथ यह लौंग या शौर्ट जैकेट होती है. इस जैकेट के किनारों पर लहंगे जैसी ही बहुत सुंदर ऐंब्रौयडरी हकी होती है, जो इसे और भी रौयल बनाती है.

लहंगा विद टेल

इस लहंगे में लहंगे का घेर पीछे से बहुत ज्यादा होता है. वह पीछे से जमीन को टच करता होता है. इसे पीछे से किसी को पकड़ कर चलना पड़ता है और यही चीज दुलहन की चाल में नजाकत और एक अदा लाती है.

जैकेट लहंगा

यह बहुत कुछ शरारे जैसा होता है और इस में लहंगे के ऊपर एक हैवी जैकेट होती है जोकि पूरे लहंगे को हैवी लुक देती है. यह जैकेट लहंगे के कलर की या फिर कंट्रास्ट भी हो सकती है.

नैट का लहंगा

यदि आप के पसंदीदा रंगों में से पिंक एक है, तो आप के लिए नैट का लहंगा जिस पर महीन हस्त कारीगरी से डिजाइन बनाए गए हों बेहद खूबसूरत लगेगा. इस के साथ फुल बाजू की कोटी अच्छी लगेगी. इस पर गोल्डन तार से काम किया जाता है, जो लहंगे को सोने जैसी चमक देता है.

लहंगा विद मिरर ऐंड क्रिस्टल

इस पूरे लहंगे पर मिरर और क्रिस्टल का काम होता है, जिस से इस की चमक कई गुना बढ़ जाती है. इस दिन दुलहन सब से अलग दिखना चाहती है. अत: इस काम का लहंगा भी लिया जा सकता है.

लौंग स्लीव्स लहंगा

विंटर की दुलहन के लिए यह अच्छा औप्शन है. इस में नैट या फिर सिल्क की स्लीव्स हो सकती हैं. डैस्टिनेशन वैडिंग के लिए भी यह परफैक्ट है. इस लहंगे में ऐंब्रौयडरी नीचे की तरफ होती है वही काम स्लीव्स पर भी होता है.

वैल्वेट का लहंगा

वैल्वेट का लहंगा एक बार फिर इन है. इस पर पैच वर्क होता है, जो कि अधिकतर गोल्डन कलर में किया जाता है. मैरून रंग के लहंगे पर गोल्डन कलर का पैच वर्क खूब फबता है.

रिसैप्शन के लिए

अगर आप को अपनी शादी के बाद रिसैप्शन में ग्लैमर और लीक से हट कर कुछ चाहिए तो आप गोलडन कलर की साड़ी पहनें. इस कलर की साड़ी के साथ सुविधा यह होती है कि इस में आप ज्वैलरी के साथ ऐक्सपैरीमैंट कर सकती हैं.

इस के अलावा रौयल और कंटैंपररी लुक के लिए रा सिल्क, जरदोजी में नीले रंग की साड़ी इस मौके पर अच्छी रहेगी. अपने लुक को और भी बोल्ड और ब्राइट बनाने के लिए इस में पीला या लाल रंग भी जोड़ें या फिर अलग से चुन्नी. इन कलर की साड़ी के साथ मिक्स ऐंड मैच कर सकती हैं.

गोटापट्टी वर्क की प्योर शिफौन साड़ी वैसे तो हलकी होती है, लेकिन अपने हैवी गोटापट्टी के काम की वजह से इस फंक्शन के लिए खूब हैवी लगेगी. इस के अलावा बनारसी सिल्क साड़ी भी दुलहन पर खूब फबती है, क्योंकि इस का लुक सब से हट कर होता है.

दुलहन नए रंग भी ट्राई करें. जब बात शादी की आती है तो दुलहन अकसर एक ही रंग पहनती है और वह है रैड. लेकिन बदलते समय के साथ दुलहन के लहंगे का कलर भी बदलने लगा है. अब दुलहनें ऐक्सपैरीमैंट करने से घबराती नहीं हैं वे अलगअलग रंगों के साथ प्रयोग कर रही हैं. वे पेस्टल से ले कर न्योन तक हर रंग के लहंगे ट्राई कर रही हैं.

लेकिन आप फिर पारंपरिक रैड मैरून रंग से किसी भी तरह का समझौता नहीं करना चाहतीं और वही पहनना चाहती हैं, तो उस में दुपट्टा या चोली अलग रंग की ले कर एक नया कलर कौंबिनेशन फ्यूजन के जरीए बना सकती है. बबलगम पिंक, स्काई ब्लू, लाइट ग्रीन, लीफ ग्रीन, औरेंज, रैड, पंपकिन औरेंज, गोल्डन आदि कलर ट्राई कर सकती हैं.

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