छत्तीसगढ़ का शिमला: मैनपाट

छत्तीसगढ़ में भी बर्फ का लुत्फ उठाया जा सकता है. आप को यकीन नहीं हो रहा तो छत्तीसगढ़ के खूबसूरत पर्यटन स्थल मैनपाट जाएं. बर्फ की सफेद चादर से ढकी वादियों का नजारा देख रोमांच से भर उठेंगे.

पर्यटन की अपार संभावनाओं से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ के हरेभरे जंगल, झरने और पहाड़ सहज ही पर्यटकों का मन मोह लेते हैं. बहुत कम सैलानियों को शायद ही यह पता होगा की छत्तीसगढ़ में मैनपाट एक ऐसी खूबसूरत जगह है जहां बर्फ गिरती है और सर्दियों में यह इलाका बर्फ की सफेद चादर से ढक जाता है. मैनपाट में काफी ठंडक रहती है, यही कारण है कि इसे ‘छत्तीसगढ़ का शिमला’ कहा जाता है.

मैनपाट छतीसगढ़ का एक पर्यटन स्थल है. यह स्थल अंबिकापुर नगर, जो पूर्व सरगुजा, विश्रामपुर के नाम से भी जाना जाता है, 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. मैनपाट विंध्य पर्वतमाला पर स्थित है. समुद्र की सतह से इस की ऊंचाई 3,780 फुट है. मैनपाट की लंबाई 28 किलोमीटर और चौड़ाई 12 किलोमीटर है. यह बहुत ही आकर्षक स्थल है.

छत्तीसगढ़ के मैनपाट की वादियां शिमला का एहसास दिलाती हैं खासकर सावन और सर्दी के मौसम में. प्रकृति की अनुपम छटाओं से परिपूर्ण मैनपाट को सावन में बादल घेरे रहते हैं, तब इस की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है. लगता है, जैसे आकाश से बादल धरा पर उतर रहे हों. अंबिकापुर से दरिमा होते हुए कमलेश्वरपुर तक पक्की घुमावदार सड़क और दोनों ओर घने जंगल मैनपाट पहुंचने से पहले ही हर किसी को प्रफुल्लित कर देते हैं.

मैनपाट की वादियां यों तो पहले से ही खूबसूरत हैं, लेकिन बादलों की वजह से इस की खूबसूरती में चारचांद लग जाते हैं. शिमला, कुल्लूमनाली जैसे पर्यटन स्थलों में प्रकृति की अनुपम छटा देख चुके लोग जब मैनपाट की वादियों को देखते हैं तो इस की तुलना शिमला से करते हैं.

यहां पर्यटकों को सावधानी से वाहन चलाना पड़ता है. रिमझिम फुहारों के कारण कई स्थानों पर तो दिन में भी वाहनों की लाइट जलाने की जरूरत पड़ जाती है.

अंबिकापुर से दरिमा होते हुए मैनपाट जाने के मार्ग में जैसेजैसे चढ़ाई ऊपर होती जाती है, सड़क के दोनों ओर के घने जगल अनायास ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. मैनपाट में सुबह काफी देर से होती है देर तक तक घना कोहरा छाया रहता है और दोपहर में भी धूप के बावजूद गरमाहट का एहसास नहीं होता. जुलाई महीने में मैनपाट ही ऐसा नजारा देख पर्यटक आश्चर्यचकित रह जाते हैं.

प्राकृतिक संपदा से भरपूर बादलों से घिरे मैनपाट में सरभंजा जलप्रपात, टाइगर पौइंट और फिश पौइंट मुख्य दर्शनीय स्थल हैं. शहरी कोलाहल, प्रदूषण, भागमभाग और रोजमर्रा के तनाव से हट कर हरियाली के बीच मैनपाट पर्यटकों को खासा लुभाता है. यहां पहुंच कर पर्यटकों को बादलों को नजदीक से देखने का अनुभव प्राप्त होता है.

पर्यटकों के लिए यहां होटल के अलावा कुछ निजी रिजौर्ट और गैस्ट हाउस भी ठहरने के लिए उपलब्ध हैं. छत्तीसगढ़ के शिमला के नाम से विख्यात मैनपाट की प्राकृतिक सुंदरता से हर कोई वाकिफ है और यही कारण है कि हर मौसम में यहां दूर-दूर से पर्यटक पहुंचते हैं.

कैसे चुनें हेयर कलर

एक समय था जब काले, लंबे, घने बालों वाली महिला को ही सुंदर कहा जाता था. मगर बदलते फैशन और ट्रैंड ने बालों की लंबाई को घटा दिया है और अब बालों के आधार पर महिलाओं की खूबसूरती को आंकने के पैमाने भी बदल चुके हैं.

इन पैमानों में सब से खास है बालों का रंग. जी हां, महिलाएं जितनी चूजी अपनी ड्रैस के कलर को ले कर होती हैं अब उतनी ही अपने बालों के रंग को ले कर भी हैं. विशेषतौर पर वे लड़कियां या महिलाएं जो अपने बालों के प्राकृतिक रंग से ज्यादा खुश नहीं हैं, उन्हें संतुष्ट करने के लिए बाजार में कई बड़े ब्रैंड्स के हेयर कलर मौजूद हैं. मगर इन का चुनाव सावधानी से न किया जाए तो लुक संवरने की जगह बिगड़ भी सकता है.

इस बारे में लौरियल मैट्रिक्स हेयर कलर की टीम का कहना है, ‘‘माना कि महिलाएं बौलीवुड ऐक्ट्रैसेज को आदर्श मान कर उन के जैसे लुक को पाने की कोशिश करती हैं, मगर हेयर कलर का चुनाव किसी को आदर्श मान कर नहीं, बल्कि अपनी पर्सनैलिटी, स्किन टोन, प्रोफैशन और आईबौल्स के रंग के आधार पर होना चाहिए.’’

जानें कलर लैवल्स

लौरियल मैट्रिक्स हेयर कलर टीम के अनुसार ज्यादातर महिलाओं को अपने बालों के रंग के बारे में भी नहीं पता होता. यहीं बालों के लिए सही रंग चुनने की प्रक्रिया में बड़ी चूक हो जाती है. इसलिए सब से पहले यह जानना जरूरी है कि बालों का प्राकृतिक रंग क्या है.

मैट्रिक्स टीम  के अनुसार बालों के रंगों को 12 शेड्स में विभाजित किया जाता है. इन 12 शेड्स लैवल में से भारत में केवल 1 से 5 तक के लैवल के शेड्स बालों में पाए जाते हैं. इन शेड्स में ब्लैक, जैड ब्लैक, ब्राउन, डार्क ब्राउन, लाइट ब्राउन रंग शामिल हैं.

दरअसल, बालों का रंग जानना इसलिए जरूरी है, क्योंकि इस से तय हो पाता है कि कौन सा रंग बालों पर चढ़ेगा और कौन सा नहीं. उदाहरण के तौर पर बालों का रंग हलका है तो उन पर गहरे शेड्स के हेयर कलर चढ़ जाते हैं. मगर बालों का रंग गहरा है तो हलके रंग बहुत ही मुश्किल से चढ़ पाते हैं.

इस बाबत मैट्रिक्स हेयर कलर टीम का कहना है, ‘‘काले बालों पर यदि कोई शेड लगाया जाए तो वह 100% रिजल्ट कभी नहीं देता है. कई बार महिलाएं ब्लीच का इस्तेमाल करती हैं. इस से बालों में कलर इफैक्ट तो आ जाता है, मगर यह तरीका बालों की सेहत के लिए बहुत ही नुकसानदायक साबित हो सकता है. फिर इस तरह के कैमिकल ट्रीटेड बालों पर कलर चढ़ने में भी दिक्कत आती है. इसलिए बालों के कलर के हिसाब से ही रंग चुना जाए यह तो जरूरी है ही, साथ ही बालों के रंग के साथ ज्यादा छेड़खानी भी नहीं करनी चाहिए.

डैवलपर संख्या की भी हो जानकारी

हेयर कलरिंग में सारा खेल डैवलपर का होता है. इसी से बालों के रंग को लिफ्ट कराया जाता है. लौरियल मैट्रिक्स हेयर कलर टीम के अनुसार, ‘‘डैवलपर में 3 नंबर होते हैं. चाहे कोई भी ब्रैंड हो 20,30,40 नंबर के डैवलपर का ही इस्तेमाल किया जाता है.

जहां 20 नंबर वाला डैवलपर बालों के रंग को 1-2 लैवल तक ही लिफ्ट करता है, वहीं 30 नंबर वाला डैवलपर 3 से 5 लैवल तक बालों के रंग को लिफ्ट कर देता है, 40 नंबर वाला डैवलपर कलर शेड पर निर्भर करता है, मगर बालों के रंग को 5 से 7 लैवल तक लिफ्ट कर देता है.’’

स्किन कलर टोन के हिसाब से चुनें रंग सही हेयर कलर के चुनाव के लिए जितना जरूरी बालों का प्राकृतिक रंग जानना है उतना ही जरूरी स्किन कलर टोन जानना भी है. हेयर एक्सपर्टस के अनुसार, ‘‘हर किसी का स्किन कलर टोन अलग होता है और बालों का रंग यदि उस हिसाब से तय न किया जाए तो इस का असर उस की पर्सनैलिटी पर पड़ता है. उदाहरण के लिए पेल व्हाइट स्किन टोन वाली महिला के बाल यदि जैड ब्लैक हों तो यह थोड़ा भद्दा लगता है, क्योंकि चेहरा ओवरव्हाइट लगने लगता है और फीचर्स उभर कर नहीं दिखते. इसलिए ऐसी स्किन टोन वाली महिलाओं को ब्राउन या लाइट ब्राउन शेड का हेयर कलर ही बालों के लिए चुनना चाहिए.’’

अन्य स्किन कलर टोन के लिए कौन सा हेयर कलर चुनना चाहिए, आइए जानते हैं.

डार्क स्किन टोन

इस कलर टोन वाली महिलाओं के लिए ब्लैक और जैड ब्लैक हेयर कलर सब से अच्छे विकल्प हैं. इन से त्वचा का रंग भी थोड़ा निखरा लगता है. इस कलर टोन की महिलाओं को कभी हलके शेड्स नहीं चुनने चाहिए.

व्हीटिश स्किन टोन

भारत में सब से अधिक अनुपात इस स्किन टोन वाली महिलाओं का है. इस स्किन टोन पर ब्लैक और डार्क ब्राउन शेड्स काफी सूट करते हैं. चाहें तो बर्गंडी रंग का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. यह शेड भी इस कलर टोन वाली महिलाओं को रिच लुक देता है.

फेयर स्किन टोन

इस कलर टोन पर लाइट ब्राउन और लाइट ब्लोंड शेड बहुत ही खूबसूरत लगते हैं.

इन बातों का रखें ध्यान

यदि बाल सफेद हैं तो कभी ब्लैक या डार्क ब्राउन शेड का इस्तेमाल न करें, क्योंकि इस से बाल नकली लगने लगते हैं या फिर यह पता चलता है कि इन्हें रंगा गया है. सफेद बालों के लिए हमेशा डार्क ब्राउन शेड का चुनाव करें. बारबार हेयर कलर ब्रैंड न बदलें, क्योंकि इस से बालों को नुकसान पहुंचता है और उन का रंग भी बदलता रहता है.

अगर आप भी अपने बालों को कलर कराना चाहती हैं तो लौरियल मैट्रिक्स हेयर कलर आपके लिए एक बेहतर विकल्प है. 

न्यूट्रिशियस मेवा स्लाइस

सर्दियां यानी कि घूमने और अलग अलग तरह के व्यंजन बनाने और खाने का मौसम. सर्दियों में मेवा स्वास्थय के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि यह शरीर को चुस्ती और फुर्ती देता है.

तो घर पर जरूर बनायें मेवा स्लाइस. हमें बतायें, ये डिश आपको कैसी लगी.

सामग्री

– 30 हाइड ऐंड सीक बिस्कुट

– कटे बादाम, काजू, नारियल, पिस्ता 1 कप

– 1/2 कप चोकर

– 1 बड़ा चम्मच कोको पाउडर

– 200 ग्राम कंडैंस्ड मिल्क.

विधि

मेवा को हलका सा रोस्ट कर लें. चोकर को भी हलका सा रोस्ट करें. बिस्कुटों का चूरा कर उन में सारी सामग्री मिला कर लंबे लंबे रोल बनाएं. ऐल्युमिनियम फौयल में लपेट कर फ्रिज में 2-3 घंटे सैट होने के लिए रखें. फिर फौयल हटा कर 1/2-1/2 इंच मोटे टुकड़े काट लें.

व्यंजन सहयोग: नीरा कुमार

बर्थडे स्पेशल: दीपिका से जुड़ी रोचक बातें

दीपिका पादुकोण आज सिर्फ बॉलीवुड ही नहीं, बल्कि हॉलीवुड में भी अपनी एक अलग पहचान बना चुकी हैं. दीपिका की पहली हॉलीवुड फिल्म ‘ट्रिपल एक्स द रिटर्न ऑफ जेंडर केज’ इसी 14 को रिलीज होने वाली है.

खेल जगत से एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने वाली दीपिका ना सिर्फ अपने अभिनय से बल्कि अपनी खूबसूरती और अपने परफेक्ट लुक से भी धमाल मचा रही हैं. अभी हाल ही में दीपिका, देसी गर्ल प्रियंका चोपड़ा को पछाड़ते हुए एशिया की सबसे सेक्सी महिला बन गई हैं.

दीपिका को सबसे पहले फरहा खान ने अपनी फिल्म ‘ओम शांति ओम’ में कास्ट किया था. कहा जाता है कि फरहा ने दीपिका को हिमेश रेशमिया के एलबम ‘नाम है तेरा…’ में देखा और उन्हें दीपिका पसंद आ गईं. इस तरह से हिमेश रेशमिया के एलबम में काम करना दीपिका के लिए लकी साबित हुआ.

आज इस खूबसूरत एक्ट्रेस दीपिका पादुकोन का 31वां जन्मदिन है.

दीपिका के इस जन्मदिन पर उनके अब तक के सफर पर डालते हैं एक नजर और जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें.

खेल जगत में भी दिखा रहीं थी अपना जलवा

दीपिका ने अपने करियर की शुरुआत एक स्पोर्ट्स पर्सन के रूप में की थी. जाने-माने बैडमिंटन प्लेयर प्रकाश पादुकोण की बेटी दीपिका स्टेट लेवल पर बैडमिंटन खेल चुकी थीं और जल्द ही नेशनल प्लेयर की लिस्ट में भी उनका नाम शामिल होने वाला था. इसके साथ ही दीपिका बासकेट बॉल की भी स्टेट प्लेयर रह चुकी हैं.

जन्म,बचपन और शुरूआती जीवन

जानी-मानी अभिनेत्री दीपिका का जन्म डेनमार्क की राजधानी कोपनहेगन में 5 जनवरी 1986 को हुआ. वह बैडमिंटन खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण की बेटी हैं. दीपिका की मां, उज्जला एक ट्रेवल एजेंट हैं. छोटी बहन अनिषा एक गोल्फर हैं. दीपिका के दादा रमेश पादुकोण भी मैसूर बैडमिंटन के सेक्रेटरी रह चुकें हैं.

जब दीपिका 1 साल की थीं तब उनका परिवार कोपनहेगन से बेंगलुरु में शिफ्ट हो गया. दीपिका ने अपनी शुरूआती पढाई बेंगलुरु से किया. इंदिरा गाँधी नेशनल यूनिवर्सिटी से दीपिका ने सोशियोलॉजी में बेचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री हासिल की.

मॉडलिंग में कदम रखा

राष्ट्रिय स्तर पर बैडमिंटन खेलने के बावजूद दीपिका ने  बैडमिंटन को छोड़ कर मॉडलिंग को अपने करियर के तौर पर चुना. अच्छी कद काठी होने की वजह से देखते ही देखते मॉडलिंग में दीपिका का नाम रौशन हो गया. मॉडलिंग में नाम होने के बाद दीपिका के पास फिल्मों के लिए भी ऑफर्स आने शुरू हो गए.

फिल्मों की दुनिया में रखा कदम

अभिनेत्री दीपिका पादुकोण को एक्टिंग के साथ-साथ डांस में भी दिलचस्पी है, जिसके चलते फिल्मों में उनके डांस को भी सराहा गया. उन्होंने मॉडलिंग में सफलता के बाद एक्टिंग के क्षेत्र में कदम रखा.

सबसे पहले उन्होंने हिमेश रेशमिया के पॉप अल्बम ‘आप का सुरूर’ में गीत ‘नाम है तेरा’ से अभिनय की शुरुआत की. दीपिका पादुकोण मॉडलिंग करते हुए फिल्मों की दुनिया की ओर आकर्षित हो गईं. उन्होंने सबसे पहले साल 2006 में कन्नड फिल्म ऐश्वर्या के जरिए फिल्मी सफर की शुरुआत की. जिसे निर्देशक इन्द्रजीत लंकेश ने निर्देशित किया था.

बॉलीवुड में एंट्री

साल 2007 में दीपिका ने बॉलीवुड में कदम रखा वो भी किंग खान के साथ जिसका सपना हर किसी एक्ट्रेस का होता है. फिल्म ओम शांति ओम में दीपिका को ऐसी भूमिका मिली की वो अपनी पहली फिल्म से ही बॉलीवुड की टॉप की एक्ट्रेस बन गईं. फराह खान की इस फिल्म के जरिये दीपिका पादुकोण ने कई खिताब अपने नाम किए.

बॉलीवुड की प्रिंसेस

इसके बाद बचना ए हसीनो (2008), लव आज कल ( 2009), हाउसफुल (2010), परिंदे 2010) में भी दीपिका नजर आईं. हालांकि कुछ फिल्मों में उन्हें निगेटिव कमेंट्स भी मिले.

साल 2012 में आई फिल्म कॉकटेल ने दीपिका के करियर को गति दी. इसके बाद उन्हें कई अवॉर्ड्स कैटेगरी में नॉमिनेशन मिला. फिर आई ये जवानी है दीवानी (2013), चेन्नई एक्सप्रेस (2013), हैप्पी न्यू ईयर (2014). इन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई की.

साल 2013 में आई फिल्म गोलियों की रासलीला राम लीला के लिए दीपिका को फिल्म फेयर का बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड भी मिला. इसके बाद साल 2015 में आई फिल्म ‘पीकू’ के लिए भी दीपिका के काम को सराहा गया. फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ ने बतौर अभिनेत्री बॉलीवुड में उनकी पहचान को मजूबत बना दिया.

कई पुरस्कार जीते

दीपिका ने अपने फिल्मी करियर के दौरान कई पुरस्कार जीते. इनमें बेस्ट एक्ट्रेस,बेस्ट न्यू कमर, पॉपुलर हिरोइन, जैसे पुरस्कार शामिल हैं.

जिनमे खास कर फिल्मफेअर की बात करे तो 2007 में उन्हें फिल्म ओम शांति ओम के लिए बेस्ट डेब्यू और साल 2013 में फिल्म गोलिओं के रासलीला के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड मिला.

अफेयर की चर्चाएँ आम हुईं

बॉलीवुड में चमकते सितारे के बारे में तरह तरह की बातें होना आम बात है. दीपिका के अफेयर्स ने भी जमकर सुर्खियाँ बटोरी. पहले दीपिका का नाम रणबीर कपूर के साथ जुड़ा. दीपिका ने कभी भी अपने रिलेशनशिप पर बात करने में झिझक महसूस नहीं की. रणबीर कपूर के साथ रिलेशनशिप को लेकर दीपिका ने करण जौहर से कहा था ‘एक समय आया था जब मुझे लगा कि मैं प्यार में पड़ गई हूं. वो एक ऐसा रिश्ता था जो मुझे लगा था कि सीमाओं से परे जाएगा. दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ.’

रणबीर के साथ रिश्ता टूटने के बाद दीपिका सहम गईं थी, लेकिन अब उनका नाम रणवीर सिंह के साथ जोड़ा जा रहा है. दीपिका और रणवीर ने इस रिश्ते के बारे में कई बार खुलकर बोला भी है.

कालीन साफ करने के आसान टिप्स

घर की सजावट और जरूरत के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले गलीचे और कालीन को साफ रखना एक बड़ी चुनौती है. विशेषज्ञों की मानें तो इसे लंबे समय तक ठीक ढंग से रखने के लिए साफ रखे जाना जरूरी है.

वेक्यूम क्लीनर से सफाई करना : रोजाना वेक्यूम से कार्पेट साफ रखने में मदद मिलती है. कार्पेट अधिक नाजुक होती है, जिसके चलते इसे ब्रश के बिना वेक्यूम से साफ करना चाहिए. अगर कार्पेट का धागा निकलता है तो इसे खिचना नहीं, बल्कि कैंची से काटना चाहिए.

धब्बे साफ करें : ड्रॉप गिरने या बहाव होने पर इसे प्लॉटिंग पेपर के साथ तुरंत सुखाना चाहिए. अगर यह सोल्वेंट या स्प्रिट से साफ न हो तो इसे सफेद सिरके और बराबर मात्रा में पानी के साथ साफ करें.

धुलाई : इसे घर पर धोने का प्रयास न करें. इसके लिए किसी पेशेवर से संपर्क करें. धूल, मिट्टी और नमी से बचाएं : गीले कालीन पर फफूंदी लग जाती है. इससे गीला ऊन सड़ना शुरू हो जाता है, जिससे गंध आने लगती है. इसमें नमी बनाए रखने के लिए इसे सूरत या उचित वातावरण प्रदान किया जाना चाहिए.

उचित ढंग से रखना : सूखी और उचित जगह पर रखना. गलीचे मोड़ कर नहीं रखना चाहिए.

प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत मेल पश्चिम बंगाल

आधुनिकता और सांस्कृतिक धरोहर को अपने में समेटे पश्चिम बंगाल में जहां एक ओर प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना दार्जिलिंग है वहीं दूसरी ओर पूर्वोत्तर भारत का प्रवेशद्वार कोलकाता है, जो पर्यटकों को अपनी ओर बरबस आकर्षित करते हैं.

पश्चिम बंगाल अपनी अलग संस्कृति एवं सभ्यता के कारण भारत के अन्य राज्यों से अलग अहमियत रखता है. इस के उत्तर में विशाल हिमालय व दक्षिण में बंगाल की खाड़ी है. पश्चिम बंगाल अनेक शासकीय परिवर्तनों का  गवाह रहा है. ईस्ट इंडिया कंपनी की आड़ में अंगरेजों ने धीरेधीरे इसे अपनी कर्मस्थली बना कर पूरे हिंदुस्तान पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया था.

पश्चिम बंगाल जूट उद्योग के कारण व्यापारियों के आकर्षण का केंद्र रहा है. यहां जन्मे अनेक महान साहित्यकारों द्वारा रचा साहित्य न सिर्फ साहित्य प्रेमियों को आकर्षित करता है बल्कि पर्यटकों के लिए इस राज्य में घूमनेफिरने के लिए कई ऐसी जगह हैं जहां वे अनायास ही खिंचे चले आते हैं.

दार्जिलिंग

शिवालिक पर्वत श्रृंखला में समुद्रतल से लगभग 7 हजार फुट की ऊंचाई पर बसे दार्जिलिंग को पहाड़ों की रानी कहा जाता है. दार्जिलिंग चाय और हिमालयन रेलवे के कारण दुनियाभर में प्रसिद्ध है.

दार्जिलिंग पर्वत क्षेत्र के इन तीनों महकमों (दार्जिलिंग, कर्सियांग और कालिंपोंग) में विभाजित है. दार्जिलिंग जिले के नजदीक का महकमा खारसांग, आम लोगों के लिए कर्सियांग के नाम से जाना जाता है. इस का अपना ऐतिहासिक महत्त्व है. यहां का सफेद और्किड विश्वविख्यात है, जो स्थानीय भाषा में सुनखरी के नाम से जाना जाता है. यहां के गिद्ध पहाड़ के करीब सुभाषचंद्र बोस का पैतृक मकान है जहां उन्होंने लंबे समय तक एकांतवास किया था.

दार्जिलिंग का तीसरा महकमा कलिंपोंग है, जिस का भूटानी भाषा में अर्थ है मंत्रियों का गढ़. दार्जिलिंग और कर्सियांग को तिस्ता नदी कलिंपोंग से अलग करती है. नदी के किनारे हरेभरे जंगल हैं. जंगलों के बीच पहाड़ी,  झरने यहां की प्राकृतिक शोभा में चार चांद लगाते हैं. दार्जिलिंग विशेष रूप से टौय ट्रेन के लिए जाना जाता है. शुरुआती तौर पर यह टौय ट्रेन हिमालयन रेलवे का हिस्सा थी, जिस की स्थापना 1921 में हुई थी. यह रेलमार्ग 70 किलोमीटर लंबा है. यह बतासिया लूप तक जा कर खत्म होता है. इस ट्रेन से मोनैस्ट्री तक के सफर के दौरान पर्यटक दार्जिलिंग के प्राकृतिक सौंदर्य के नजारों का लुत्फ उठा सकते हैं.

दार्जिलिंग का दूसरा मुख्य आकर्षण टाइगर हिल है. इसे रोमांटिक माउंटेन के रूप में भी जाना जाता है. इस टाइगर हिल से एवरेस्ट समेत विश्व की तीसरी सब से ऊंची चोटी कंचनजंघा का दृश्य देखना पर्यटकों के लिए रोमांचकारी होता है.

दार्जिलिंग अपने बौद्ध मोनैस्ट्री या मठों के लिए भी जाना जाता है. दार्जिलिंग का विख्यात मठ घूम मोनैस्ट्री है. इस के अलावा यहां के दर्शनीय स्थलों में एक जापानी ‘पीस पैगोडा’ भी है, जिस की स्थापना विश्व शांति के मकसद से महात्मा गांधी के मित्र फूजी गुरु ने की थी. गौरतलब है कि यह भारत में कुल 6 शांति स्तूपों में से एक है. पीस पैगोडा से पूरे दार्जिलिंग और कंचनजंघा की शृंखला का नजारा दिखाई देता है.

दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद और गोरखा टेरिटोरियल औटोनौमस बौडी द्वारा नवनिर्मित गंगामाया पार्क, रौक गार्डन, राजभवन, वर्धमान महाराजा की कोठी आदि यहां के दर्शनीय स्थलों में से है. इस के अलावा मिरिक झील, सिंजल झील, जोर पोखरी, सिंगला बाजार, संदाकफू, फालुट भी पर्यटन के दृष्टिकोण से काफी लोकप्रिय हैं. माउंटेनियरिंग संस्थान के करीब पद्मजा नायडू जैविक उद्यान है, जो न सिर्फ बच्चों के लिए बल्कि बड़ों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है. इस उद्यान में हिमालयन तेंदुआ और लाल पांडा को भी देखा जा सकता है. यह उद्यान तेंदुआ और पांडा के प्रजनन केंद्र के लिए भी जाना जाता है.

इस के अलावा यहां साइबेरियन बाघ और तिब्बती भेडि़ए भी हैं. भारत में इन वन्य जीवों को एकसाथ एक ही जगह देखने का मौका पर्यटकों को कहीं और नहीं मिल सकता. लियोर्डस वनस्पति उद्यान भी यहां है. इस उद्यान में और्किड की 50 किस्म की प्रजातियां देखने को मिल जाती हैं. इस के अलावा यहां कई तरह के दुर्लभ पेड़पौधे और जड़ीबूटियां भी पाई जाती हैं.

दार्जिलिंग चायबागानों के लिए विश्वविख्यात है. यह एक रोचक तथ्य है कि चाय के पौधे का पहला बीज कुमाऊं से लाया गया था और यही चाय आगे चल कर दार्जिलिंग चाय के नाम से दुनियाभर में जानी जाने लगी. चायबागान में पत्तियों को तोड़ते हुए देख पर्यटकों के लिए अच्छा शगल है. पर्यटक यहां पत्तियों को प्रोसैस होते

हुए भी देख सकते हैं. हालांकि इस के लिए चायबागान के अधिकारियों से विशेष अनुमति लेनी होगी.

कैसे पहुंचें

दार्जिलिंग का नजदीकी एअरपोर्ट बागडोगरा है, जो सिलीगुड़ी में है. कोलकाता, गुवाहाटी, दिल्ली और पटना से प्रतिदिन उड़ानें हैं. बहरहाल, बागडोगरा से दार्जिलिंग पहुंचने के लिए यहां से 90 किलोमीटर की यात्रा किराए की कार या जीप से की जा सकती है. रेलवे से यात्रा करनी हो तो सब से करीबी स्टेशन जलपाईगुड़ी है. कोलकाता से दार्जिलिंग मेल व कामरूप ऐक्सप्रैस ट्रेन जलपाईगुड़ी तक पहुंचती हैं. जलपाईगुड़ी से टौय ट्रेन द्वारा लगभग 8 घंटे की यात्रा कर दार्जिलिंग पहुंचा जा सकता है. दिल्ली से गुवाहाटी तक राजधानी ऐक्सप्रैस से पहुंचा जा सकता है. यहां से हवाई या सड़क के रास्ते दार्जिलिंग पहुंचा जा सकता है. सड़क मार्ग से कोलकाता से सरकारी और निजी बसें भी जाती हैं.

क्या खरीदें

जहां तक दार्जिलिंग में खरीदारी का सवाल है तो चाय पत्तियों के अलावा सेमी प्रेसियस स्टोन से ले कर हस्तशिल्प के सामान और ऊनी कपड़े खरीदे जा सकते हैं. साथ ही यहां अच्छे किस्म की पेंटिंग्स भी मिल जाती हैं. यहां की पेंटिंग्स को पर्यटक दार्जिलिंग सफर की यादगार के रूप में जरूर ले कर जाते हैं.

कोलकाता

कोलकाता ऐसा शहर है जहां प्राचीन मान्यता और आधुनिक विचार, अंधविश्वास व प्रगतिशीलता साथसाथ चलती है. कोलकाता शहर का एक बड़ा महत्त्व इसलिए भी है क्योंकि यह देश की सांस्कृतिक राजधानी होने के साथ ही साथ यह पूर्वोत्तर भारत का प्रवेशद्वार भी है. अब यह शहर काफी बदल चुका है. एक समय था जब कोलकाता पहुंचने के लिए पहले इस के उपनगर हावड़ा से हो कर जाना पड़ता था. कारण, ज्यादातर लंबी दूरी की ट्रेनें हावड़ा ही आती थीं. लेकिन अब कोलकाता का अपना टर्मिनस भी बन गया है. ‘कोलकाता टर्मिनस’. अब यहां पहुंचना वाया हावड़ा जरूरी नहीं है. फिर भी हावड़ा ब्रिज का महत्त्व किसी भी तरह से कम नहीं हुआ है.

लगभग पौने दो सौ साल पुराना बिन खंभे का यह झूलता हुआ पुल आज भी आकर्षण का केंद्र है, फिर वह चाहे पर्यटन के लिहाज से हो या कोलकाता को हावड़ा समेत अन्य उपनगरों से जोड़ने का मामला हो. हावड़ा ब्रिज के अलावा पूर्वी भारत के इस सब से बड़े महानगर कोलकाता के दर्शनीय स्थलों में विक्टोरिया मैमोरियल, अजायबघर  और बिड़ला प्लेनेटोरियम समेत बहुत सारे स्थल हैं.

विक्टोरिया मैमोरियल

विक्टोरिया मैमोरियल  भारत में ब्रिटिश राज का एक स्मारक स्थल है. 228×338 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैले इस स्मारक में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के साथ अन्य ब्रिटिश प्रशासकों का अभिलेखागार भी है. महारानी विक्टोरिया की मृत्यु के बाद 1901 में इसे तत्कालीन वायसराय ने बनवाया था. 1921 में पहली बार इसे आम लोगों के दर्शन के लिए खोल दिया गया. संग्रहालय के ऊंचेऊंचे खंभे, रंगीन कांच और राजकीय सजावट बरतानिया राज और महारानी विक्टोरिया की उपस्थिति की कहानी सुनाते हैं.

बोटैनिकल गार्डन

यह भी गंगा के किनारे कोलकाता के उस पार स्थित है. यह भारत का सब से बड़ा बोटैनिकल पार्क है. 213 एकड़ में फैले इस पार्क में 1,400 प्रजातियों के लगभग 12 हजार दुर्लभ किस्म के पेड़ पाए जाते हैं, इसी कारण यह विश्वविख्यात है. 25 हिस्सों में बंटे इस उद्यान के अलगअलग भाग में विभिन्न किस्म के पेड़पौधे हैं.

अलीपुर चिडि़याघर

यह एक ऐतिहासिक चिड़ियाघर है. जिस के मछलीघर में विभिन्न प्रजातियों की रंगबिरंगी मछलियां हैं. चिड़ियाघर में एक तरफ रेपटाइल्स हाउस है जहां किस्म किस्म के सांपों के अलावा मगरमच्छ और घडि़याल भी हैं. यहां बंगाल के मशहूर रौयल बंगाल टाइगर के अलावा सफेद बाघ, जलहस्ती, गैंडा, अफ्रीकी जिराफ, जेब्रा, नीलगाय, बारहसिंगा आदि भी हैं.

इंडियन म्यूजियम

यह एशिया के वृहत्तम संग्रहालयों में से एक है. यहां हजारों वर्ष पुराने, शिवालिक काल के जीवाश्म रखे गए हैं. शिवालिक की पहाड़ियों पर पाए जाने वाले 20 फुट दांतों वाले विशाल हाथी से ले कर न्यूजीलैंड के एक प्राचीन पक्षी और 1891 में अमेरिका के अरिजोना में हुए उल्कापात के अवशेष और बहुत सारे अजीब और अनोखे संग्रह यहां देखने को मिलते हैं.

राष्ट्रीय पुस्तकालय

अलीपुर में चिड़ियाघर के सामने ही राष्ट्रीय पुस्तकालय है. यह देश का सब से बड़ा पुस्तकालय है.

मिलेनियम पार्क

गंगा किनारे बसा मिलेनियम पार्क महानगर के सौंदर्यीकरण का हिस्सा है. यहां से हावड़ा ब्रिज और हुगली सेतु का नजारा बहुत ही लुभावना नजर आता है. गंगा के किनारे से लगे पूरे इलाके को पार्क में तबदील कर दिया गया है. यहां तैरता हुआ चारसितारा होटल भी है. गंगा नदी में तैरते हुए होने के कारण यह फ्लोटेल कहलाता है.

शहीद मीनार

यह मीनार तुर्की, मिस्र और सीरियाई स्थापत्य कला का मिलाजुला स्वरूप है. भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर इस का नाम शहीद मीनार रखा गया. 48 मीटर ऊंची इस मीनार से पूरे कोलकाता का नजारा देखा जा सकता है. लेकिन यहां से हुई आत्महत्याओं की घटना के बाद इस में प्रवेश के लिए कोलकाता पुलिस मुख्यालय से विशेष अनुमति लेनी पड़ती है. इन प्रमुख पर्यटक स्थलों के अलावा कालीघाट, दक्षिणेश्वर, बेलूर मठ और फोर्ट विलियम भी दर्शनीय स्थल हैं. इन पर्यटन स्थलों को देखने का सब से अच्छा समय सितंबर से मार्च तक होता है.

कैसे पहुंचें

कोलकाता अपने दमदम एअरपोर्ट से राष्ट्रीय स्तर पर भारत के लगभग सभी हिस्सों से और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दक्षिणपूर्व एशियाई देशों से जुड़ा हुआ है. हावड़ा, सियालदह और कोलकाता रेलवे टर्मिनस में देश के विभिन्न हिस्सों से ट्रेनें आती हैं. कोलकाता के विभिन्न स्थलों को बस, मिनी बस, ट्राम, लांच, मैट्रो ट्रेन, लोकल ट्रेन, लक्जरी एसी बस द्वारा देखा जा सकता है.

दीघा

यह कोलकाता से 187 किलोमीटर दूर स्थित है. भारतीय समुद्रतटों में दीघा ऐसा पर्यटन स्थल है जहां बीच पर अठखेलियां करती लहरों का लुत्फ उठाने देशविदेश से पर्यटक बड़ी तादाद में आते हैं. दीघा में पर्यटन का सब से अनुकूल समय नवंबर से मार्च तक है. वैसे पर्यटकों का पूरे साल यहां आना लगा रहता है. इस का पुराना नाम बारीकूल है. पर अब यह दीघा के ही नाम से जाना जाता है. यहां सूर्योदय और सूर्यास्त के नजारे मनमोहक होते हैं.

दीघा का साफसुथरा समुद्र तट ऐसा है कि इस तट पर दूरदूर तक पैदल चला जा सकता है. गौरतलब है कि दीघा का समुद्र तट ओडिशा के समुद्रतट से जा कर मिलता है. इसीलिए कहा जाता है कि अगर कोई दीघा के समुद्रतट के किनारेकिनारे चलता जाए तो वह ओडिशा पहुंच जाएगा. अगर ओडिशा की ओर न जाना हो तो दीघा के करीब और भी बहुत सारे पर्यटन स्थल हैं. इन्हीं में से एक है न्यू दीघा. हाल के दिनों में न्यू दीघा को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है. यहां समुद्रतट के अलावा  झील और पार्क भी हैं.

दीघा से 14 किलोमीटर की दूरी पर है शंकरपुर. इस की ख्याति फिशिंग प्रोजैक्ट के रूप में अधिक है. हाल के दिनों में इसे बीच रिजोर्ट के रूप में विकसित किया गया है. इस के अलावा लोगों के लिए पिकनिक स्थल है चंदनेश्वर. दीघा में नहाने, तैरने की सुविधा है. लेकिन यहां पर तट के कुछ ऐसे भी स्थल हैं जहां तैरने की सख्त मनाही है, विशेष रूप से ज्वार के दौरान जब समुद्रतट का पानी उफान पर होता है. दीघा में समुद्रतट के अलावा तटीय वृक्षों का एक जंगल भी है जो स्थानीय रूप से  झाऊवन के नाम से जाना जाता है. समुद्र की लहरों में तैरनेखेलने के बाद अकसर लोग ‘ झाऊवन’ में आराम करते हैं.

दीघा पहुंचने का रास्ता

कोलकाता से दीघा रेल और सड़क दोनों रास्तों से पहुंचा जा सकता है. कोलकाता से दीघा की दूरी मात्र 4 घंटे में तय हो जाती है. कोलकाता के एस्प्लानेड, उल्टाडांगा से दीघा के लिए सीधी बसें जाती हैं. हावड़ा से दीघा के लिए ट्रेनसेवा भी है. ट्रेन से दीघा पहुंचने में महज 2 घंटे का समय लगता है.

बिग बॉस का विनर नहीं बनाया तो..

अपनी हरकतों और बड़बोलेपन की वजह से हमेशा ही सुर्खियों में रहने वाले ओम स्वामी ने अब ऐसा कारनामा किया है जिसकी कल्पना कोई नहीं कर सकता. ओम स्वामी ने बिग बॉस शो के मेकर्स को धमकी दी है कि अगर उन्हें शो का विजेता नहीं बनाया गया तो वो उत्पात मचाएंगे और सख्त कदम उठाएंगे.

एक वेबसाइट की खबर के मुताबिक ओम स्वामी घर में वापस आ चुके हैं और घरवालों के घर काम में फिर से अड़ंगा डाल रहे हैं. लेकिन हद तो तब हो गई जब उन्होंने शो की टीम को धमकी दे डाली कि वो उन्हें ही बिग बॉस 10 का विजेता बनाएं वरना वो और उनकी यूनियन शो के फाइनल में आकर सख्त कदम उठाएंगे.

ओम स्वामी की इस धमकी के बाद देखते हैं कि शो की टीम और खुद सलमान खान उनके खिलाफ क्या एक्शन लेते हैं. वैसे अभी तक ओम स्वामी की हरकतों को रोकने के लिए जो भी किया गया उसमे असफलता ही हाथ लगी लेकिन स्वामी बाज नहीं आए.

घरवाले उनसे बेहद परेशान हैं लेकिन स्वामी हैं कि सुधरने का नाम ही नहीं ले रहे और तो और दिए गए मालगाड़ी टास्क में वो सभी के लिए बाधा बनते रहे. उन्होंने मन बना लिया कि वो घर के किसी भी सदस्य को इसमें कामयाब नहीं होने देंगे.

देखते हैं कि घर के अंदर ओम स्वामी की हरकतें रुकती हैं या फिर उनके खिलाफ कोई ठोस कदम उठाया जाएगा.

17 संदेश जीवन को बेहतर बनाने के

जिंदगी में हम कई दफा उतने खुश नहीं रह पाते जितना रह सकते हैं. दरअसल, हम जीवन को उस के बेहतरीन रूप में नहीं स्वीकारते. कहीं न कहीं हम स्वयं ही इस के लिए जिम्मेदार होते हैं. यदि हम कुछ बातों का ध्यान रखें तो यकीनन हमारी जिंदगी पहले से कहीं ज्यादा खूबसूरत और मकसदपूर्ण  बन सकती है. जानिए, कुछ ऐसी ही बातें:

बच्चों से 17 साला की सी बातें करें

तुलसी हैल्थकेयर के डायरैक्टर, डा. गौरव गुप्ता कहते हैं कि जब आप के बच्चे 17-18 साल के हो जाएं तब उन के साथ मां की तरह नहीं, बल्कि एक बड़ी बहन की तरह व्यवहार करें. ऐसा करने से उम्र का अंतर खत्म हो जाएगा. उन के मन में आप के लिए सम्मान तो हो लेकिन वे बिना किसी झिझक के अपने दिल की बात आप से साझा कर सकें.

यह उम्र बड़ी नाजुक होती है. बच्चे युवावस्था की दहलीज पर कदम रख रहे होते हैं. उन में जोश तो भरपूर होता है, लेकिन जीवन की समझ उतनी नहीं होती. कई बार इस उम्र के बच्चे कुछ ऐसा कदम उठा लेते हैं, जिस के परिणाम गंभीर होते हैं. ऐसे में बहुत सावधानी की जरूरत है.

बच्चों पर अपनी बातें थोपें नहीं, बल्कि उन का नजरिया समझने की कोशिश करें. उन्हें आप के साथ व सुरक्षा की जरूरत है पर विकसित होने के लिए उन्हें पूरा स्पेस भी दें. 17-18 साल की उम्र के बच्चों की अपनी एक समझ विकसित

हो जाती हैं. उन्हें उन के तरीके से सोचने और काम करने दें, लेकिन उन्हें अच्छेबुरे का अंतर जरूर समझाएं.

17 साला मानसिकता जरूरी

डा. अतुल कहते हैं कि बड़े होने पर सामान्यतया हम जिंदगी के बनेबनाए नियम फौलो करने लगते हैं. इस से हमारी रचनात्मकता कहीं गुम हो जाती है. हमें सदैव यह याद रखना चाहिए कि हम सभी के अंदर एक बच्चा है, जो अपनी मनमानी करना चाहता है, नएनए तरीकों से हर तरह के काम करना चाहता है. आप किसी भी उम्र में हों, यही मानसिकता बनाए रखें. तभी आप के अंदर पहले जैसी ऊर्जा व उत्साह कायम रहेगा और आप एक बेहतर जिंदगी जी सकेंगे.

दिमाग व मन को रखें चुस्त

आप 25 के हों या 55 के, दिमाग और मन स्वस्थ रखना जरूरी है. दिमाग को चुस्त रखने के लिए नियमित रूप से मैंटल ऐक्सरसाइज करते रहें. समयसमय पर दिमाग को चैलेंज करें. नए शब्द, नई बातें सीखें. नया सीखने की ललक कायम रखें. कभीकभी काम से ब्रेक ले कर परिवार व दोस्तों के साथ कहीं घूमने निकल जाएं. खानपान पर ध्यान दें. सकारात्मक सोच रखें. मुसकराने की आदत डालें व सोशल बनें. फिजिकल ऐक्टीविटीज भी भरपूर करें.

17 घंटों का बेहतर प्रयोग करें

हम सामान्यतया दिन के 24 घंटों में से 7 घंटे सोने में गुजारते हैं. बचे हुए 17 घंटों को बेहतर उपयोग करने के लिए जरूरी है छोटीछोटी बातों का ध्यान रखना. मसलन:

– व्हाट्सऐप, फेसबुक, ईमेल वगैरह चैक करने का काम दोपहर में लंच टाइम में करें ताकि सुबह के वक्त जब आप की ऐनर्जी सब से अधिक होती है, जरूरी काम निबटा लें.

– कम समय में बेहतर काम करना चाहते हैं, तो घर या औफिस अपने काम की जगह को साफसुथरा व व्यस्थित रखें. इस से न सिर्फ जरूरी चीजें, फाइल्स, कागजात वगैरह ढूंढ़ने में समय की बरबादी नहीं होती वरन काम करने में मन भी लगता है.

– काम के साथसाथ शरीर को आराम भी दें.

90 मिनट काम के बाद 10 मिनट का ब्रेक आप को रिफ्रैश करने के लिए जरूरी है.

– हमेशा सभी के लिए उपलब्ध न रहें. न कहना भी सीखें. दुनिया की भीड़ से अलग किसी एकांत जगह पर कभीकभी सिर्फ अपने साथ रहें. मोबाइल, कंप्यूटर वगैरह बंद कर आत्मचिंतन करें, रचनात्मक काम करें.

– तनाव न लें. जितना समय हम दूसरों के साथ वादविवाद या काम बिगड़ने के तनाव में गुजारते हैं, उस से कम समय में हम बिगड़े काम और बिगड़े रिश्तों को सुधार सकते हैं.

औफिस में 17 साला जोश से करें काम

कहा जाता है कि 17 की उम्र का जोश कुछ अलग ही होता है, गलत नहीं है. यही वह उम्र है जिस में व्यक्ति अपनी प्राथमिकताओं को समझने लगता है और उन्हें पूरा करने की भरपूर कोशिश करता है. इस उम्र में वह अपने साधनों व लक्ष्यों को ले कर काफी उत्साहित रहता है. पर उम्र बढ़ने के साथसाथ व्यक्ति थोड़ा आलसी हो जाता है. वह बेमन से काम करने लगता है. यह उचित नहीं, इनसान को अपने अंदर 17 साला जोश और कुछ कर दिखाने का जज्बा सदैव कायम रखना चाहिए. तभी वह किसी भी उम्र में उपलब्धियों का आसमान छू सकेगा.

बजाय पुरानी पत्नी के 17 साला प्रेमिका बनें

उम्र बढ़ने के साथसाथ महिलाएं भौतिक सुखसुविधाएं  जुटाने व घरगृहस्थी के कामों में उलझ जाती हैं. घर व बच्चों की जिम्मेदारियों के बीच अपनी चाहत और जीवनसाथी के प्रति अपने प्रेम को प्रकट नहीं कर पातीं, पर यह रवैया सही नहीं. पतिपत्नी के रिश्ते में ताजगी बनाए रखना भी जरूरी होता है. अपनी फिटनैस पर ध्यान दें. शारीरिक व मानसिक रूप से फिट रहें. जिम जौइन करें. अपने लुक के साथ पहले की तरह ही नएनए ऐक्सपैरिमैंट करें. ट्रैंडी कपड़े और फुटवियर खरीदें. ऐसी किताबें पढ़ें, जो आप को प्रेरित करें. पति के साथ बीचबीच में चुहलबाजियां और रिश्तों की गरमाहट बनाए रखें.

खुश रहने की वजह ढूंढें़

खुश रहना एक भावनात्मक और मानसिक प्रक्रिया है, जो आप की जिंदगी को खुशहाल बनाने में बहुत अहम भूमिका निभाती है.

खुश रहने का मतलब यह नहीं कि आप की जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा है. इस का मतलब यह है कि आप अपनी परेशानियों को भूल कर भी खुशीखुशी जी सकते हैं. इस से आप को परेशानियों से लड़ने की शक्ति मिलती है. खुश रहने से इनसान को अपने आसपास की हर चीज अच्छी लगने लगती है, जिस से उस के मन के नकारात्मक खयाल दूर भागने लगते हैं और वह एक बेहतर जिंदगी जी सकता है.

खुश रहने के कारण ढूंढ़ें.

बड़ी खुशियां ही नहीं, छोटीछोटी खुशियां भी महसूस करें.

खुश रहें, सोचें कि आप के पास किसी चीज की कमी नहीं. हाथपैर सहीसलामत हैं, दोस्त नातेरिश्तेदार हैं, घर है, पैसा है, बच्चे हैं, कामधंधा है, तो फिर क्यों न अपने पास जो चीजें हैं, उन्हीं में खुश रहें.

दोस्तों के साथ करें 17 साला मस्ती

क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट डा. अतुल कहते हैं, ‘‘जैसेजैसे हमारी उम्र बढ़ती है, हमारी जिम्मेदारियां भी बढ़ने लगती हैं. कम उम्र में जिस तरह से हम खुल कर दोस्तों से अपने मन की बात कहते थे, घूमतेफिरते, हंसीमजाक करते थे, उस से हमें नई ऊर्जा मिलती थी. मगर समय के साथ सब छूटता चला जाता है.’’

पुराने दास्तों के साथ उसी बेफिक्री के साथ मिल कर देखिए. यह एक थेरैपी की तरह आप को नई ऊर्जा और फ्रैश फीलिंग से भर देगा और आप का जिंदगी को देखने का नजरिया बदल जाएगा.

पति को 17 साला ढांचे में रखें

पति की सेहत, रूटीन, पहनावे व खानपान का ध्यान आप को ही रखना है. प्रयास करें कि उन्हें पौष्टिक भोजन दें. शुगर/कोलैस्ट्रौल बढ़ाने वाली चीजों से परहेज कराएं. सही समय पर सारे काम करने को प्रेरित करें. उन के लिए ऐसे सलीकेदार पहनावे चुनें, जिस से वे स्मार्ट व सौम्य दिखें. ऐक्सरसाइज व अधिक से अधिक पैदल चलने के लिए प्रेरित करें.

17 की तर्कशीलता जरूरी

इस संदर्भ में क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट डा. अतुल कहते हैं, ‘‘कम उम्र में हम किसी भी बात को सहजता से नहीं स्वीकारते. हम इस पर गहराई से विचार करते हैं कि क्या सही है और क्या गलत. सामाजिक बंधनों व रीतिरिवाजों को तोड़ कर वही करते हैं, जो हमें सही लगता है. किसी भी बात को तर्क की कसौटी पर जांचते हैं.

‘‘मगर उम्र बढ़ने के साथसाथ हम बातों को जैसा है, वैसा ही मानने लगते हैं. कम उम्र में हमें अधिक अनुभव नहीं होता पर उम्र बढ़ने के साथसाथ अनुभव और ज्ञान बढ़ते जाते हैं. ऐसे में हमें बैलेंस रखना होगा. अनुभव के साथ हम तर्क का प्रयोग भी करें, तो पुरातनपंथी सोच से किनारा करते हुए अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं.’’

17 तरीकों से परिवार में आएं खुशियां

– औफिस से घर लौटते वक्त कभीकभी खानेपीने की चीजें या बच्चों के लिए खिलौने वगैरह ले लें.

– जीवनसाथी को बीचबीच में सरप्राइज गिफ्ट देते रहें.

– परिवार के साथ कभी अचानक घूमने जाने का प्रोग्राम बनाएं.

– परिवारिक झगड़े का समाधान प्रेमपूर्वक करें.

– हर सदस्य को परिवार में उस के स्थान और उपयोगिता का एहसास कराएं.

– छुट्टियों का वक्त मोबाइल/इंटरनैट/दोस्तों के साथ बिताने के बजाय परिवार के साथ बिताएं.

– परिवार में सभी को एकदूसरे की इज्जत करने का पाठ पढ़ाएं.

– कभीकभी घर में खाना बनाने के बजाय खाना और्डर करें और घर में ही पार्टी का माहौल बनाएं.

– घर के हर सदस्य के जन्मदिन या अन्य खास मौकों को यादगार बनाएं.

– घर पहली पाठशाला है. बच्चों को ईमानदारी और संस्कार की अहमियत सिखाएं.

– घर के बुजुर्गों का सम्मान करें.

– टीवी देखने का समय निर्धारित कर दें.

– घर में अुनशासन रखें.

– रिश्तेदारों के यहां सीमित आनाजाना रखें.

– लड़केलड़की में भेद न करें.

– कोई समस्या आने पर घर के सभी सदस्यों से शेयर करें और उन की राय लें.

– घर में सभी को बचत करने की आदत डालें.

रिश्तों में करें निवेश

जिंदगी में हम नहीं जानते, कब कौन हमारे काम आ जाए. इसलिए बिना लाभहानि की परवाह किए, जितना हो सके, दूसरों के साथ रिश्ते को प्रगाढ़ करें. महीने में एक बार ही सही, पर अपने रिश्तेदारों को याद जरूर करें. दास्तों के काम आएं और अनजानों की भी मदद करें.

सीखें हर पल कुछ नया

सीखने की कोई उम्र नहीं होती, जिंदगी में जब मौका मिले, कुछ नया सीखने से गुरेज नहीं करना चाहिए. आज के समय के युवाओं की तरह समय के साथ नईनई तकनीकों से दोस्ती कीजिए और देखिए, कैसे आप को छोटेबड़े कामों के लिए अपने बच्चों/पति का मुंह नहीं देखना पड़ेगा.

डा. अतुल कहते हैं कि हालफिलहाल नोटबंदी की स्थिति में सभी के लिए जरूरी हो गया है कि वह कैशलैस ट्रांजैक्शन के तरीके सीखे. यह आज के समय की मांग है. पर आज यदि इस से जुड़ी जानकारियां और बारीकियां समझने का प्रयास यह सोच कर नहीं करेंगी कि इस उम्र में इन लफड़ों व झंझटों में कौन पडे़, तो यह आप की गलत सोच है. आप इसे अपनाएंगी, तो आप की ही जिंदगी आसान हो जाएगी.

जब बच्चे 17 के होने लगे

प्राइमस सुपर स्पैशियालिटी हौस्पिटल के डा. संजू गंभीर कहते हैं कि यह बहुत जरूरी है कि जब आज के बच्चे 17 के होने लगें, तब आप उन से अच्छे से जुडे़ रहें क्योंकि यही उम्र होती है, जब बच्चे सही और गलत के बीच फर्क नहीं कर पाते. ऐसे में यदि किसी बड़े का साथ हो तो बहुत अच्छा होता है.

खुद के साथ समय बिताएं

कभीकभी किसी ऐसी जगह जा कर बैठें, जहां कोई आप को डिस्टर्ब न कर सके. अपने मोबाइल/कंप्यूटर वगैरह बंद कर दें और फिर शांत मन से आगे का प्लान सोचें.   

17 बातें जो जीवनसाथी से कभी न कहें

– आप की ड्रैसिंग सैंस अच्छी नहीं.

– तुम से नहीं होगा, छोड़ो मैं कर लूंगी.

– तुम मेरी थोड़ी भी केयर नहीं करते.

– देखो न मैं मोटी हो गई हूं.

– मुझे तुम से शादी करनी ही नहीं चाहिए थी.

– मुझे तुम्हारे दोस्त अच्छेनहीं लगते.

– नौकरी कब बदलोगे.

– व्हाट इज रौंग विद यू.

– रुको, मैं बताती हूं, यह काम कैसे करना है.

– डोंट टच मी, दूर रहो.

– काश, तुम थोड़ा ज्यादा कमा रहे होते.

– मेरा ऐक्स मेरे लिए हमेशा मेरी पसंद की साड़ी लाता था. मेरी चौइस की बहुत परवाह थी उसे.

– तुम बिलकुल अपने पिता जैसे जिद्दी हो.

– यदि तुम सचमुच मुझ से प्यार करते, तो ऐसा नहीं करते.

– मेरी मां ने पहले ही वार्निंग दी थी कि तुम से निभ नहीं सकती.

– तुम्हारी मां कितना बोलती हैं.

– तुम्हारी बहनों ने मेरी जान खा ली है.

17 चीजें जिन से दूर रहें

इन 17 चीजों को घर और मन से दूर रखना जरूरी है:

1. ईर्ष्या

2. क्रोध

3. पछतावा

4. नकारात्मक सोच

5. टालने की प्रवृत्ति

6. चिंता

7. चुगलखोर दोस्त

8. बुराइयां निकालने वाले लोग

9. हतोत्साहित करने वाले लोग/रिश्तेदार

10. अंधविश्वासी सोच

11. झूठा दंभ

12. कृतघ्नपूर्ण व्यवहार

13. हारने का खौफ

14. अनिश्चय की स्थिति

15. गलत सोच वाले व्यक्ति का साथ

16. फुजूलखर्ची

17. प्रतिकार की भावना

निकम्मापन और नोटबंदी

नरेंद्र मोदी की सरकार ने साबित कर दिया है कि न उन्हें राज करना आता है और न ही उसे सीखने की उन की इच्छा है. उन की सरकार के लोग प्रवचनों से निकल कर आए हैं और वे आम साधुसंतों, स्वामियों व बाबाओं की तरह के प्रवचन दे सकते हैं, कल्याण भव: का आशीर्वाद दे सकते हैं, पर सरकार नहीं चला सकते.

नोटबंदी तो उन के निकम्मेपन का एक बड़ा नमूना है, वरना उन के अब तक के ढाई साल के फैसलों में कोई एक अच्छा फैसला नहीं हुआ, जिस से आम गृहिणी को राहत मिली हो. सरकार उन बाबाओं की तरह काम कर रही है, जो शायद खुद इस झूठ को मानते हैं कि व्यक्ति के दुखों का कारण उस के पिछले जन्मों या इस जन्म के पाप हैं और धर्मगुरु व सरकार उन्हें पापमुक्ति दिलाने के लिए कष्ट दे तो ही उन का जीवन सुधरेगा. जैसे पापों के प्रायश्चित्त के लिए नंगे पैर चलना, कईकई दिन भूखे रहना, ठंडे पानी में स्नान करना, अपना सर्वस्व दान करना शामिल है, वैसे ही सरकार बिना कुछ किए जनता से त्याग, बलिदान और कष्ट उठाने की बात आते ही करने लगी कि इस के कुछ दिन बाद उन की घोर तपस्या फल जाएगी और सुनहरे महलों का वरदान उन्हें स्वयं भगवान देंगे.

हमारी मूढ़ जनता, जिन में महिलाएं ज्यादा शामिल हैं, इस गलतफहमी में रह रही है और हर कष्टमय काम को ताली बजा कर स्वागत करती रही है, चाहे वह गैस सब्सिडी समाप्त करने का मामला हो, गौरक्षा के नाम पर दलितों और मुसलिमों पर अत्याचार की घटनाएं हों, टैलीविजन मीडिया पर अंकुश लगाने वाले नियम हों, किसानों से जबरन जमीन लेने का प्रयास हो या अब नोटबंदी हो, धर्मभीरु जनता उन्हें स्वामियों, धर्मगुरुओं का आदेश मान कर सह रही है.

सरकार चलाना और मठआश्रम चलाना अलग है. केवल बातों से सरकार नहीं चलती. जहां भी केवल बकबकिए नेता बने और सरकार में घुस गए, वहां की जनता ने बहुत अनाचारअत्याचार देखे, चाहे वह लेनिन हो, स्टालिन हो, ईदी अमीन हो, माओ हो.

नोटबंदी एक ऐसी चमत्कारी तपस्या की तरह पेश की गई थी, मानो इस कष्ट को सहने के बाद भगवान प्रकट हो कर खुद ही इस भारतभूमि पर स्वर्ग फैला देंगे. नरेंद्र मोदी की गलती कम है, इस देश की मूर्खता की गलती ज्यादा है. काले धन के मर्म को पहचाने बिना और यह जाने बिना कि पाप होते क्यों हैं, जपतप से पुण्य कमाने की सहमति जो जनता दे रही है, नोटबंदी जैसे फैसले का कारण है.

अब हालत यह हो गई है कि धर्मगुरुओं के कहने पर जनता को अब गणेश को दूध पिलाने के लिए कतारों में खड़ा होना पड़ेगा और वह भी नंगे पैर और भूखे पेट. जय नोट महाराज की. कल्याण करो, वर दो, वर दो.       

सोशल मीडिया की लत के खिलाफ: विद्या बालन

फिल्म ‘कहानी-2: दुर्गा रानी सिंह’ की सफलता से उत्साहित विद्या बालन महिलाप्रधान किरदारों को निभाने में माहिर होती जा रही हैं. महिला सशक्तीकरण के मुद्दे व अभिनय में नृत्य, संगीत के प्रशिक्षण के असर पर जानिए उन की बेबाक राय.

मूलतया दक्षिण भारतीय विद्या बालन को कोलकाता के लोग बंगाली समझते हैं क्योंकि वह बहुत अच्छी हिंदी बोलती हैं. उनसे बात करते समय इस बात का एहसास ही नहीं होता कि वे हिंदी भाषी नहीं हैं. सुजोय घोष निर्देशित फिल्म ‘कहानी 2 : दुर्गारानी सिंह’ में उन्हें सराहा गया है. उन्हें एक सफल फिल्म की आवश्यकता थी जो ‘कहानी 2 : दुर्गारानी सिंह’ ने पूरी कर दी.

विद्या बालन की एक खासीयत यह भी है कि उन्होंने संगीत का प्रशिक्षण ले रखा है, हालांकि अभी तक उन्होंने दूसरी बौलीवुड अभिनेत्रियों की तरह किसी भी फिल्म में गीत नहीं गाया है. हाल ही में जब विद्या बालन से मुलाकात हुई, तो उन से बंगाल, संगीत व महिलाओं के हालात पर विशेष बातचीत की.

आप को पश्चिम बंगाल खासकर कोलकाता के लोग बंगाली समझते हैं?

मैं मूलतया दक्षिण भारतीय हूं, लेकिन कोलकाता के लोग मुझे बंगाली समझते हैं. यह महज संयोग है कि मैं ने 4 फिल्मों की शूटिंग कोलकाता में की और उन में से 3 फिल्मों में मैं ने बंगाली किरदार निभाया. मैं ने 2003 में एक बंगला फिल्म ‘भालो ठेको’ में भी अभिनय किया था. अब तक मैं ने बंगला भाषा काफी सीख ली है. मैं बंगला गीत व संगीत की भी दीवानी हूं. कोलकाता में शूटिंग करना मेरे लिए हमेशा सुखद अनुभव रहता है. वहां हमेशा मुझे गरमजोशी का एहसास मिलता है. वहां के लोग कला और कलाकार की कद्र करना जानते हैं. शायद इसलिए मेरी पहचान से बंगाल जुड़ गया है.

आप ने कर्नाटक संगीत का प्रशिक्षण लिया है, फिर भी अभी तक किसी फिल्म में गाना नहीं गाया?

मैं पेशेवर गायक नहीं हूं. मैं बहुत बेसुरा गाती हूं. संगीत सीखने का अर्थ यह नहीं होता कि सभी लता मंगेशकर बन जाएं. कुछ चीजें अपने लिए सीखी जाती हैं. दक्षिण भारत में हम लड़के व लड़कियों को नृत्य व संगीत बचपन से सिखाया जाता है. इस से हमारे अंदर अनुशासन आता है. इसलिए मैं ने कर्नाटक संगीत के अलावा नृत्य का भी प्रशिक्षण लिया था. पर मैं ने कभी नहीं चाहा कि मैं किसी फिल्म में गीत गाऊं.

संगीत व नृत्य का प्रशिक्षण बतौर कलाकार अभिनय में कितना मदद करता है?

सिर्फ संगीत ही क्यों, नृत्य, मार्शल आर्ट या पेंटिंग का प्रशिक्षण हो, हर प्रशिक्षण इंसान को कभी न कभी मदद जरूर करता है. सभी प्रशिक्षण, जिन से आप जिंदगी में एक नए नजरिए से जुड़ सकें, जिंदगी को नए नजरिए से समझ सकें, कलाकार की मदद करते हैं. हम गीत, नृत्य व दृश्यों में भावनाओं को व्यक्त करते हैं. यदि कलाकार को इस का अनुभव है, यदि कलाकार ने विविध प्रकार का प्रशिक्षण ले कर अपनी भावनाओं को व्यक्त करना सीखा है, तो वह उस के लिए मददगार ही होता है. देखिए, यह जरूरी नहीं है कि एक कलाकार के तौर पर आप जो कहानी कह रहे हैं, उस के अनुभव से आप निजी जिंदगी में गुजरे हों, मगर यदि आप किताबें पढ़ते हैं, नाटक देखते हैं, संगीत सुनते हैं, तो आप को एक अनुभव का एहसास होता है, इस से आप के प्रदर्शन पर असर पड़ता है.

क्या आप को महिलाओं के मुद्दों पर समाज में कोई बदलाव नजर आ रहा है?

हम कुछ लड़कियों या औरतों से मिलते हैं या कुछ पढ़ते हैं, तो हमें लगता है कि कुछ बदलाव आ गया है. पर जब कुछ अजीब सी घटनाओं के बारे में सुनते हैं, तो लगता है कि कोई बदलाव नहीं आया.

मैं अखबार पढ़ रही थी. मैं ने खबर पढ़ी कि एक मां अपनी जुड़वां बेटियों को पैसे के लिए पड़ोसी के 17 साल के बेटे के हाथों बेचते हुए पकड़ी गई. इस खबर को पढ़ने के बाद मेरे दिमाग में सवाल उठा कि क्या आज भी औरतों की स्थिति व औरतों से जुड़े मुद्दों में फर्क नहीं आया. पर हम पूरी तरह से यह नहीं कह सकते कि कोई फर्क नहीं आया. कई जगह फर्क आ रहा है, कई जगह फर्क नहीं आया. पर हर जगह से लोग बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं, यह एक अच्छी बात है. यह 10-12 वर्ष का मामला नहीं है. सदियों से जो हमारी सोच चली आ रही है, उसे बदलने का मसला है, जिस में समय लगेगा. सदियों से कहा जाता रहा है कि यह मर्दों की दुनिया है. औरतों को इस तरह से रहना चाहिए, उन को फलां काम नहीं करना चाहिए आदि. हर औरत की जिंदगी पहले पिता, फिर भाई, फिर पति और फिर बेटे के साए में ही चलनी चाहिए, यह सोच इतनी जल्दी नहीं बदलेगी.

आप के विवाह के बाद से आप की फिल्में लगातार असफल होती रहीं?

फिल्मों की सफलता या असफलता का मेरी शादी से कोई संबंध नहीं है. हर फिल्म अपने कथानक के मापदंड पर सफल या असफल होती है. एक फिल्म की वजह से दूसरी फिल्म पर असर नहीं पड़ता. दर्शक को फिल्म पसंद आ गई, तो उसे सफल होने से कोई नहीं रोक पाता.

आप ने कहा था कि सोशल मीडिया से लोगों को नहीं जुड़ना चाहिए. पर अब तो आप खुद ही सोशल मीडिया से जुड़ गई हैं?

आप ने एकदम सही पकड़ा. मैं ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम से जुड़ गई हूं. पर मैं इस तरह के मीडियम की लत के खिलाफ आज भी हूं. लोगों में सोशल मीडिया की जो लत लग जाती है, जो एक नशा हो जाता है, मैं उस के खिलाफ हूं. कुछ लोग अपना काम छोड़ कर व्हाट्सऐप या फेसबुक पर लगे रहते हैं. यह गलत है. एक तरह से यह भी शराब की तरह एक नशा बन गया है.

मुझे लगता है कि यह क्या पागलपन है कि लोग सोशल मीडिया पर ही एकदूसरे से बात करते हैं. बगल में जो बैठा है, उस से बात करने के लिए उन के पास समय नहीं होता है. मैं सोशल मीडिया से जुड़ी हूं, पर अभी भी पूरी तरह से सोशल मीडिया से नहीं जुड़ी हूं. हर मुद्दे पर अपनी राय दूं, ट्वीट करूं, ऐसा नशा नहीं है. फेसबुक पर भी मैं थोड़ा ही सक्रिय हूं. मैं यह मानती हूं कि दर्शकों, अपने प्रशंसकों के साथ जुड़ने का यह अच्छा माध्यम है.

पर आप में सोशल मीडिया को ले कर जो बदलाव आया, उस की वजह क्या है?

देखिए, आज सभी सोशल मीडिया व ट्विटर पर सक्रिय हैं. हमारे देश के प्रधानमंत्री भी हर मुद्दे पर ट्वीट करते हैं. अमिताभ बच्चन भी ट्विटर, फेसबुक पर हैं, ब्लौग लिख रहे हैं. यदि ये सब दिग्गज सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं, तो फिर मुझे लगा कि मुझे ज्यादा दूरी नहीं रखनी चाहिए. मैं ने सोचा कि मैं कोशिश कर के देखती हूं. शायद यह मेरे बस का नहीं है या शायद मेरे बस का है. मुझे कहने में कोई संकोच नहीं कि यह इतना बुरा नहीं है. लेकिन इस की लत गलत है.

आप ‘निर्मल भारत अभियान’ से जुड़ कर देश में शौचालय बनवाने की मुहिम का हिस्सा हैं. मगर अब वहां भी कई तरह की गड़बडि़यां सामने आ रही हैं?

इस मसले पर मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है. पर मैं निर्मल भारत अभियान के तहत शौचालय बनवाने के लिए सिर्फ बड़े शहर ही नहीं, देहातों के कई कार्यक्रमों में जा चुकी हूं. मैं ने देखा है कि लोग जोश से इस मकसद के लिए पैसा इकट्ठा कर रहे हैं. अब कई प्रकाशक और कौर्पोरेट कंपनियां भी शौचालय बनाने के लिए आर्थिक मदद दे रही हैं. पर भ्रष्टाचार हर जगह होता है. हम सभी भ्रष्टाचार के आगे बेबस हैं. कोशिशें जारी हैं. बीचबीच में अड़चनें भी आती हैं.

बहरहाल, कुछ जगह जोरशोर से काम हो रहा है, कुछ जगह पर कार्य बहुत धीमी गति से हो रहा है. कुछ जगह पर लोग शौचालय बनाने के नाम पर पैसे खा रहे हैं, मैं दावे के साथ ऐसा कुछ कह नहीं सकती. पर मैं इस तरह की चीजें पढ़ती रहती हूं. जब हम कार्यक्रम में जाते हैं तो पता चलता है कि कहीं शौचालय बन गए हैं, पर उन में पानी नहीं है, तो सफाई नहीं है या जो बनाए गए थे, वे फिर से टूट रहे हैं, उन की मरम्मत नहीं हो रही. इस तरह की समस्याएं बहुत हैं. पर इन का हल जरूर निकलेगा.

आप एक फिल्म कर रही हैं, ‘बेगम जान’ जिस की कहानी भारत-पाक बंटवारे के समय सीमा के वेश्यालय की है, जहां बेगम जान 15-20 लड़कियों से वेश्या का धंधा करवाती है. देश की आजादी को 67 साल हो गए हैं, क्या हालात में बदलाव आया है या वही हालात हैं?

अभी भी बहुत कम औरतों को इस बात का एहसास है कि उन के शरीर पर पहला हक उस का अपना है. ज्यादातर औरतें अभी भी यही समझती हैं कि वे किसी की जायदाद हैं. उन्हें लगता है कि उन की जिंदगी की डोर किसी और के हाथ में है. पर मैं यह मानती हूं कि अब धीरेधीरे यह सोच भी बदल रही है. पर 67 वर्ष में जितना बदलना चाहिए था, उतना नहीं बदला.

एक औरत होने के नाते आप ‘बेगम जान’ के काम को कितना सही या गलत मानती हैं?

मुझे नहीं लगता कि कोई भी औरत या लड़की जानते हुए धंधा करती है. हर किसी की कुछ मजबूरी होती है. इसलिए सही या गलत के माने वहां नहीं रह जाते. उन्हें लगता है कि हम चोरी या डाका डालने या किसी को मौत के घाट उतारने के बजाय जो कर सकते हैं, वह कर रही हैं. ऐसे में सहीगलत कुछ होता नहीं है. हम यही उम्मीद करते हैं कि ऐसा वक्त आए जब किसी भी औरत को अपने गुजारे के लिए यह सब न करना पड़े. पर हो सकता है कि इस में भी बहुत वक्त लग जाए.

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