बेबी बंप : छिपाने की क्या बात है

2011 में मलयेशियन डेयरी फ्रीसो ने जब मलयेशियाई गर्भवती महिलाओं को अपने लुक्स और बढ़ते पेट के आकार को ले कर सैल्फ कौंशियसनैस से उबरने में मदद के उद्देश्य से फेसबुक पर कैंपेन चलाया था, तब इस कैंपेन में देश की महिलाओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. कैंपेन के तहत गर्भवती महिलाओं को अपने बेबी बंप के साथ एक पिक्चर क्लिक कर के फ्रीसो के पेज पर अपलोड करनी थी.

मलयेशियन सैलिब्रिटी डीजे मम द्वारा इस कैंपेन में सब से पहले बेबी बंप वाली तसवीर अपलोड की गई. इस के बाद तो मलयेशियन महिलाओं ने सारी हिचकिचाहट को दरकिनार कर अपने बेबी बंप के साथ तसवीरें अपलोड करनी शुरू कर दीं. इस कैंपेन द्वारा 2 हजार से भी अधिक मलयेशियन गर्भवती महिलाओं की गर्भावस्था के दौरान लुक्स को ले कर होने वाली झिझक को दूर करने का प्रयास किया गया था.

यदि बात भारत जैसे विकसित देश की करें, जहां डिजिटल क्रांति वर्षों पहले ही दस्तक दे चुकी है, वहां इस तरह का डिजिटल कैंपेन अब तक नहीं किया गया, जिस में आम गर्भवती महिलाओं ने हिस्सा लिया हो. मगर भारत की कुछ सैलिब्रिटीज द्वारा अपने बेबी बंप की तसवीरें ट्वीट करने या इंस्टाग्राम पर अपलोड करने के कई मामले देखे गए हैं.

दोहरी मानसिकता में फंसा बेबी बंप

हाल ही में अभिनेत्री करीना कपूर खान द्वारा कराए गए प्रीमैटरनिटी फोटोशूट के चर्चा में आने के बाद जरूर 1-2 गर्भवती महिलाओं ने इसे खुद पर आजमाया है, मगर उन के फोटोशूट को सोशल मीडिया पर ज्यादा सराहा नहीं गया. इंदौर की वीर वाधवानी उन्हीं महिलाओं में से एक हैं. उन्होंने करीना कपूर के फोटोशूट की देखादेखी यह शूट कराया और उन्हीं के पोज की नकल भी की. मगर जहां करीना कपूर खान को उन के फोटोशूट के लिए दर्शकों की प्रशंसा मिली, वहीं वीर को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. लोगों ने वीर के इस स्टैप को ऐक्शन सीकिंग स्टंट तक कह दिया. फिर क्या वीर की तसवीरें अलबम में बंद हो कर रह गईं.

मगर यहां लोगों की डिप्लोमैटिक सोच पर बड़ा सवाल खड़ा होता है कि एक सैलिब्रिटी और एक आम महिला, दोनों ही एक ही अवस्था में हैं, फिर व्यवहार दोनों के साथ अलगअलग क्यों? इस प्रश्न का जवाब देते हुए कानपुर स्थित सखी केंद्र की संचालिका एवं सोशल ऐक्टिविस्ट नीलम चतुर्वेदी कहती हैं, ‘‘समाज महिलाओं के चरित्र को हमेशा खुद से ही वर्गीकृत कर देता है. यदि इस संबंध में बात की जाए तो समाज की सोच यहां दोहरी हो जाती है. करीना कपूर खान ऐक्ट्रैस हैं, तो फोटो खिंचवाना उन के पेशे का हिस्सा है. मगर वीर जैसी आम महिलाएं ऐसा नहीं कर सकतीं, क्योंकि समाज उन्हें बंदिशों में जकड़ कर रखना चाहता है.’’

मोटा दिखने की हिचकिचाहट

दिल्ली मैट्रो में करोल बाग से वैशाली तक रोजाना सफर करने वाली मयंका की प्रैगनैंसी का 8वां महीना चल रहा है. उन का पहला बेबी है, इसलिए वे बेहद ऐक्साइटेड हैं. लेकिन बेबी बंप के साथ पब्लिक प्लेस पर उन्हें थोड़ा अटपटा लगता है. इसलिए वे हमेशा दुपट्टे से पेट ढक कर रखती हैं.

यह अकेली मयंका की ही नहीं, बल्कि हर भारतीय गर्भवती महिला की यही कहानी है कि बढ़ा पेट ले कर कैसे किसी के सामने जाएं? ऐसे में प्रीमैटरनिटी फोटोशूट कराने का हौसला कम ही महिलाएं दिखा पाती हैं.

ऐसी ही बुलंद हौसले वाली महिला हैं दिल्ली निवासी हीना. हीना ने 2013 में अपनी पहली संतान को जन्म देने से 2 दिन पूर्व ही प्रीमैटरनिटी फोटोशूट कराया था. अपना अनुभव बताते हुए वे कहती हैं, ‘‘पहले थोड़ी हिचकिचाहट हुई थी. लग रहा था कि मोटी दिखूंगी. मगर पति और सास के सहयोग से यह मेरे लिए आसान हो गया.’’

घर वालों के साथ से बन सकती है बात

भारतीयों की मानसिकता गर्भवती महिला के शरीर में होने वाले प्रतिदिन के बदलाव को अलगअलग रूप में परिभाषित करती है. इन में सब से पहले उस के खुद के घर वाले आते हैं. बस यहीं पर गर्भवती का आत्मविश्वास डगमगा जाता है और वो खुद को दूसरों की नजर से देखने लगती है.

इस अवस्था में महिलाओं की साइकोलौजी के बारे में बात करते हुए मनोचिकित्सक, प्रतिष्ठा त्रिवेदी कहती हैं, ‘‘गर्भावस्था में महिलाओं के शरीर में कई परिवर्तन होते हैं. उन का वजन बढ़ जाता है, शरीर का आकार बदल जाता है, चेहरे पर परिपक्वता आ जाती है. इन्हें आसानी से स्वीकार करना हर महिला के बस में नहीं होता. अलगअलग लोग जब उन के लुक पर अलगअलग बातें करते हैं, उन्हें सलाह देने लगते हैं, तो उन का थोड़ाबहुत असहज होना स्वाभाविक है. मगर गर्भवती का बेबी बंप दिखना तो प्राकृतिक है. इस बात को समझना मुश्किल नहीं है.’’

कई बार पति द्वारा मजाक में फिगर खराब होने की बात सुन कर भी गर्भवती महिला भावुक हो जाती हैं. यहां पति को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि मजाक का विषय सावधानी से चुने. पुष्पावति सिंघानिया रिसर्च इंस्टिट्यूट में हैड गाइनोकोलौजिस्ट, राहुल मनचंदा कहते हैं, ‘‘बेबी बंप केवल 7वें, 8वें और 9वें महीने में ही मैच्योर स्टेज पर होता है. प्रसव के बाद साल भर के अंदर महिलाएं वापस अपनी पुरानी बौडी शेप को पा सकती हैं. इसलिए वजन कभी कम नहीं होगा यह सोचना गलत है. वजन को ले कर महिलाओं का भावुक होना समझा जा सकता है, क्योंकि हारमोनल बदलाव से उन का मूड स्विंग होता रहता है. असल में तो वे भी यह जानती हैं कि ऐसा हमेशा के लिए नहीं है. मगर महिलाओं को इस बात का बारबार एहसास करना पड़ता है ताकि वे अवसाद जैसी गंभीर स्थिति का शिकार न हों. यह काम केवल गर्भवती महिला का पति और घर वाले ही कर सकते हैं.

प्रीमैटरनिटी फोटोशूट भी महिलाओं के लुक को ले कर चिंता पर काबू पाने का अच्छा विकल्प है. इस बाबत चाइल्ड फोटोग्राफर, साक्षी कहती हैं, ‘‘जब मानव प्रकृति की सब से खूबसूरत संरचना है, तो फिर एक नई जिंदगी को जन्म देने वाली महिला की यह अवस्था बदसूरत कैसे हो सकती है? इस अवस्था में तो हर दिन होने वाले परिवर्तनों को तसवीरों में कैद कर के रख लेना चाहिए ताकि बाद में यही तसवीरें अपने बच्चे को दिखाई जा सकें. बच्चे भी इन तसवीरों की मदद से खुद को भावनात्मक रूप से मां से जोड़ पाते हैं.’’

अंधविश्वास से रहें दूर

गर्भवती महिलाओं को कैमरे से जुड़े मिथों पर भी ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए. एक मिथ के अनुसार गर्भावस्था के दौरान इलैक्ट्रोनिक किरणें गर्भवती के पेट पर नहीं पड़नी चाहिए जबकि इस मसले पर गाइनोकोक्लौजिस्ट, डा. राहुल की राय अलग है. वे कहते हैं, ‘‘पहली तिमाही में जब बच्चे के और्गंस बन रहे होते हैं तब ऐक्सरे कराना मना होता है, मगर उस के बाद कोई परेशानी नहीं है. जहां तक बात कैमरे से तसवीर लेने की है तो विज्ञान में ऐसे प्रमाण कहीं नहीं मिलते कि बच्चे या मां पर इस का कोई बुरा असर पड़ता हो.’’

कई लोग यह भी कहते हैं कि गर्भवती महिला के तसवीर खिंचवाने से बच्चे की ग्रोथ पर असर पड़ता है और पेट का आकार कम हो जाता है. मगर डा. राहुल कहते हैं, ‘‘पेट का आकार कम है तो इंट्रायूटरिन ग्रोथ रिटारडेशन की संभावना होती है, जिस में बच्चे की ग्रोथ ठीक नहीं होती. मगर इस की वजह गर्भवती द्वारा अच्छी डाइट न लेना होती है. मगर पेट का साइज ज्यादा है तो यह भी अच्छी बात नहीं. ऐसे में बच्चा मधुमेह का शिकार हो सकता है. इन दोनों ही स्थितियों का कैमरे से कोई लेनादेना नहीं होता है.’’

अत: प्रीमैटरनिटी फोटोशूट को हौआ समझने या गर्भवती द्वारा अपने बेबी बंप के साथ सोशल मीडिया में फोटो अपलोड करने को आलोचना का विषय बनाना केवल संकुचित सोच की निशानी है, जिस का इलाज किसी भी चिकित्सक के पास नहीं है.

जैसी त्वचा वैसा मौइश्चराइजर

‘यह मौइश्चराइजर आप की त्वचा को निखारने के साथसाथ कोमल भी बनाता है’ एक ब्रैंडेड मौइश्चराइजर के विज्ञापन में लिखी ये पंक्तियां रितिका को इतनी प्रभावशाली लगीं कि वह उसी शाम बाजार से

वह मौइश्चराइजर खरीद लाई.

रितिका ने मौइश्चराइजर खरीदने से पहले यह भी नहीं देखा कि उस में किस तरह के इनग्रीडिएंट्स का इस्तेमाल किया गया है. इतना ही नहीं रितिका ने अपने स्किन टाइप को भी नए ब्रैंडेड मौइश्चराइजर के मुताबिक आंकने की जरूरत नहीं समझी. उसने यही सोचा कि सर्दियों में त्वचा के रूखेपन को ही तो खत्म करना है. कोई भी मौइश्चराइजर ले लो. बस खुशबूदार होना चाहिए और त्वचा में निखार आ जाना चाहिए.

रितिका अकेली ऐसी महिला नहीं, जो मौइश्चराइजर को मात्र त्वचा की ड्राईनैस खत्म करने वाली क्रीम समझती हो. ऐसी कई महिलाएं हैं, जो मौइश्चराइजर के चुनाव में लापरवाही बरतती हैं. मगर खुशबू, रंग और पैकिंग को सही आधार मान कर मौइश्चराइजर को खरीदने वाली महिलाओं को चेतावनी देते हुए कौस्मैटोलौजिस्ट अवलीन खोकर कहती हैं, ‘‘जहां सही मौइश्चराइजर का चुनाव त्वचा के लिए संजीवनीबूटी की तरह काम करता है, वहीं गलत मौइश्चराइजर त्वचा पर जहर जैसा असर दिखाता है, जिस के दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. इसलिए मौइश्चराइजर हमेशा स्किन टाइप को ध्यान में रख कर ही खरीदें.’’

किस त्वचा के लिए कौन सा मौइश्चराइजर

अमूमन महिलाओं को यही नहीं पता होता है कि उन की त्वचा किस टाइप की है. त्वचा के ड्राई, औयली और कौंबिनेशन 3 प्रकार होते हैं. जिन महिलाओं को अपनी त्वचा के प्रकार का अंदाजा नहीं होता वे हमेशा गलत कौस्मैटिक उत्पाद खरीद लेती हैं.

इस बारे में अवलीन कहती हैं, ‘‘त्वचा 50% पानी और 50% तेल के मिश्रण से बनी होती है. केवल बच्चों की त्वचा में ही यह अनुपात सही होता है. उम्र के साथसाथ यह अनुपात बदलता रहता है. जैसे ड्राई त्वचा वालों में तेल की मात्रा कम और पानी की अधिक होती है.

औयली स्किन वालों में तेल की अधिक मात्रा और पानी की कम होती है, तो कौंबिनेशन वाली त्वचा में कहीं कहीं पानी की तो कहीं तेल की मात्रा कम होती है. कभी कभी यह मात्रा अधिक भी हो सकती है. इसलिए तीनों प्रकार की त्वचा के लिए अलग अलग इनग्रीडिएंट्स वाले मौइश्चराइजर होते हैं. बस अपनी स्किनटोन के हिसाब से चुनाव करना चाहिए.

ड्राई स्किन

इस त्वचा में औयल ग्लैंड कम ऐक्टिव होती है. इसलिए त्वचा में तेल न के बराबर बनता है और पानी अधिक होता है. ऐसी त्वचा के लिए क्रीम और औयल बेस्ड मौइश्चराइजर का इस्तेमाल करना चाहिए. इस मौइश्चराइजर में तेल ज्यादा पानी कम होता है. इसलिए मौइश्चराइजर खरीदने से पूर्व देख लें कि उस में इमोलियंट्स एवं ह्यूमेकटैंट लोशन को इनग्रीडिएंट्स लिस्ट में जरूर शामिल किया गया हो. यदि त्वचा बहुत अधिक ड्राई है, तो कोको बटर और शिया बटर युक्त मौइश्चराइजर काफी फायदेमंद साबित हो सकता है.

औयली त्वचा

इस त्वचा पर हलका वाटर बेस्ड मौइश्चराइजर इस्तेमाल किया जाना चाहिए. कोशिश करें कि इस तरह की त्वचा पर जैल बेस्ड मौइश्चराइजर का इस्तेमाल किया जाए. अवलीन के अनुसार बाजार में ट्रांसपैरेंट और थिक जैल बेस्ड मौइश्चराइजर उपलब्ध हैं. मगर औयली त्वचा के लिए ट्रांसपैरेंट जैल मौइश्चराइजर ही बैस्ट रहते हैं.

कौंबिनेशन त्वचा

इस त्वचा में लोशन मौइश्चराइजर का इस्तेमाल करना चाहिए, जिस में पानी की अधिक और तेल की मात्रा कम हो.

मौइश्चराइजर की नई वैराइटीज

बैरीज मौइश्चराइजर

कौस्मैटिक के लगभग हर प्रोडक्ट में इस समय अलगअलग बैरीज का इस्तेमाल किया जा रहा है और कई अच्छे ब्रैंड्स के बैरीज युक्त मौइश्चराइजर भी बाजार में उपलब्ध हैं.

औयली और कौंबिनेशन वाली त्वचा के लिए बैरीज युक्त मौइश्चराइजर सब से अच्छा विकल्प है, क्योंकि  इस में ऐंटीऔक्सीडैंट और हाइड्रेटिंग प्रौपर्टीज के साथ ही कई तरह के विटामिन भी होते हैं. इन में हीलिंग एजेंट भी पाए जाते हैं, जो त्वचा को हर प्रकार के संक्रमण से बचाते हैं.

कूलिंग एजेंट मौइश्चराइजर

इस तरह के मौइश्चराइजर में ऐलोवेरा, खीरा, संतरा, नीबू और पिपरमिंट औयल जैसे इनग्रीडिऐंट्स शामिल होते हैं, जो ऐंटीइनफ्लेमेटरी, ऐंटीसैप्टिक और हीलिंग एजेंट्स से भरपूर होते हैं. ये त्वचा को संक्रमित होने से बचाते हैं और उसे तरोताजा बनाए रखते हैं.

गोट मिल्क ऐक्सट्रैक्ट मौइश्चराइजर

ड्राई स्किन वाली महिलाओं के लिए यह मौइश्चराइजर बहुत लाभदायक साबित होता है. गोट मिल्क ऐक्सट्रैक्ट ऐसा इनग्रीडिएंट है, जिस में विटामिन ए और बी प्रचुर मात्रा में होते हैं, साथ ही इस में सिलेनियम जैसे स्किन मिनरल्स भी पाए जाते हैं, जो ड्राई स्किन को कालेपन से बचाते हैं और

उसे रिंकलफ्री बनाते हैं. इस मौइश्चराइजर में हाइड्रोऔक्सी ऐसिड भी होता है, जो डैड स्किन को निकाल कर उस की जगह नई स्किन बनाता है और उसे हाईड्रेट कर हमेशा जवां बनाए रखता है.

खरीदने से पहले यह जरूर जांचें

अधिकतर महिलाएं मौइश्चराइजर लेने से पहले प्रोडक्ट के पीछे लिखी इन बातों पर ध्यान नहीं देती हैं. अधिक खुशबूदार मौइश्चराइजर न लें. सिंथैटिक फ्रैगरैंस से स्किन ऐलर्जी होने की संभावना रहती है.

हमेशा हाईपोऐलर्जेनिक मौइश्चराइजर ही लें. इस से त्वचा पर ऐलर्जिक रिऐक्शन होने की संभावना बहुत कम हो जाती है.

मौइश्चराइजर हमेशा नौनकोमेडोजैनिक होना चाहिए.

डर्मैटोलौजिस्ट अप्रूव्ड मौइश्चराइजर ही खरीदें.

मौइश्चराइजर पैराबिन फ्री और सल्फेट फ्री होना चाहिए वरना इस की मौजूदगी से स्किन कैंसर होने की संभावना रहती है.

फिल्म रिव्यू: दंगल

रियल लाइफ की गीता फोगट और बबीता कुमारी से प्रेरित होकर बनाई गई फिल्म ‘दंगल’ रेसलर के जीवन में कामयाबी पाने के लिए कितनी जद्दोजहद होती है, उसे बड़ी खुबसूरती से परदे पर उतारने में सफल रही है. ये सही भी है कि मेडल पाने के लिए एक खिलाड़ी को अपने आत्मविश्वास को चरम सीमा पर ले जाने की जरुरत होती है. कुछ सेकंड की दांव-पेंच ही पूरे खेल के इमेज को बदल देती है. इसके अलावा खेल को सही दिशा में ले जाने के लिए एक अच्छे कोच की भी आवश्यकता होती है. ये आसान नहीं होता, क्योंकि भ्रष्ट राजनीति और सिस्टम इस पर हमेशा हावी होता आया है. फिल्म में गीता और बबीता की भूमिका निभाने वाली फातिमा शेख और सान्या मल्होत्रा ने जबरदस्त भूमिका निभाकर रियल लाइफ की गीता और बबीता के साथ पूरा न्यायकिया है.

परफेक्शनिस्ट आमिर खान ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि वे अपने काम की हर बारीकियों को देखते हैं. कहानी से लेकर पटकथा, संवाद और अभिनय सब कुछ बहुत ही उम्दा है. साक्षी तंवर ने आमिर खान की पत्नी की भूमिका सटीक निभाई है. निर्देशक नितीश तिवारी की यहां तारीफ़ करनी होगी कि उन्होंने एक पल के लिए भी दर्शकों को बोर नहीं होने दिया. इतना ही नहीं ये फिल्म उन राज्य, परिवार और धर्म के ठेकेदारों के लिए एक जोरदार तमाचा है जो लड़कियों को सिर्फ चूल्हा चौका और शादी कर बच्चे पालना ही उनका काम समझते हैं. पुरुष मानसिकता के लिए ये एक अच्छी फिल्म है, जो लड़के को अपना सबकुछ मानते हैं और उसे पाने के लिए कुछ भी कर डालते है.  

फिल्म की कहानी इस प्रकार है-

हरियाणा के एक छोटे से गांव में भूतपूर्व नेशनल चैम्पियन कुश्ती प्लेयर महावीर सिंह फोगट (आमिर खान) अपनी पत्नी दया कौर (साक्षी तंवर) के साथ रहते हैं. उनकी इच्छा है कि उनका एक बेटा हो, जो उनके लिएअन्तर्राष्ट्रीय कुश्ती चैम्पियन में गोल्ड मेडल जीते और देश का नाम रोशन करे. ये उनका सपना था, जो वे किसी कारणवश खुद पूरा कर नहीं पाए थे. लेकिन हर बार उन्हें लड़की ही होती थी.

निराश होकर महावीर ने एक दिन अपने सारे अचिवेमेंट और सपने को एक बॉक्स में बंद कर दिया. लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि उन्हें लगने लगा कि उनकी छोरियां, गीता फोगट (फातिमा शेख) और बबीता कुमारी (सान्या मल्होत्रा) किसी छोरे से कम ना हैं और उसी दिन से वे उन्हें सख्ती से ट्रेनिंग देने लगे. इसमें उन्हें बहुत कठिनाइयां आई, पर वे टस से मस नहीं हुए. अनुशाषित जीवन, लगन, मेहनत, सही खान-पान और सही तकनीक ही उन्हें अपनी मंजिल तक पहुंचाती है. रस्ते में जहां भी मुश्किलें आई, महावीर एक मजबूत चट्टान की तरह सामने खड़े रहे.

फिल्म के संगीत निर्देशन को प्रीतम ने बहुत खूबसूरती से गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य के शब्दों को कहानी के अनुरूप पिरोया है. ये एक बेहतरीन फिल्म इस साल की है, जिसे पूरा परिवार साथ मिलकर देख सकता है. इसे फोर एंड हाफ स्टार दिया जा सकता है.

सरकार मस्त गरीब पस्त

कालेधन की समस्या के निबटान का जो चमत्कार कुछ लोग सोच रहे हैं, वह एकदम बेबुनियाद है. देश में करों से बचाया गया कालाधन कर दे कर बचाए गए धन की तरह है और फर्क यह है कि उस पर कर कम दिया गया. अधिकतम आयकर 30% है पर आमतौर व्यापारियों को अगर लाभ हो तो भी 15-20% के बराबर का कर देना होता है. कंपनियां ही पूरा 30% देती ही हैं. भारत में कृषि उत्पादन और कृषि आय वैसे ही आयकर व दूसरे करों से मुक्त हैं.

काले धन को भी पूरी तरह कमाना पड़ता है और उस में उतनी ही मेहनत लगती है जितनी सफेद टैक्स दिए गए कर में लगती है. इसलिए यह कहना कि काले धन से लोग ऐयाशी करते हैं गलत है.

जिन की आय किसी भी कारण से ज्यादा है वे बड़ी गाडि़यों, भव्य शादियों, विदेश यात्राओं, महलनुमा मकानों पर खर्च करते हैं और ज्यादातर हिस्सा उस में टैक्स दिए गए पैसे का ही होता है.

काले धन की जरूरत आम लोगों को इसलिए होती है कि वे अपना हिसाबकिताब रखना नहीं जानते या उन्हें आता ही नहीं. वे तो अपनी कापी में या अपने मन में पूरा हिसाब रख लेते हैं. किस से कितना लेना है कितना देना है, उस के लिए उन्हें लैजर कैश बुक, कंप्यूटर की जरूरत नहीं है. सरकार उन्हें ये जबरन थोप रही है. उन का काम बढ़ा रही है. खर्च बढ़ा रही है.

काले धन को बुरा मानने वाले कम नहीं हैं पर वे बुरा मानने वाले खुद जेब में काला धन लिए घूमते हैं और काला धन इस्तेमाल करने वालों के यहां काम करते हैं, उन का सामान खरीदते हैं.

यह मामला उन पापियों का है जो लूट का कुछ पैसा मंदिरों में दे कर अपने को पाप मुक्त समझ लेते हैं. काले धन के घोड़ों पर सवार हो कर आई सरकार काले धन को समाप्त करना नहीं चाहती, वह चमत्कार के चक्कर में है जिस से गरीब जनता की वाहवाही लूट सके और धन्ना सेठों, आतंकवादियों और देशद्रोहियों की आड़ में विरोधियों को पटकनी दे सके.

इस देश का एक हिस्सा अमीरों या अपने से ज्यादा खुशहालों से इतना चिढ़ा रहता है कि वह अपनी झोपड़ी भी जलाने को तैयार है यदि उस की आग से बराबर के महल का कुछ हिस्सा भी जल जाए. नोटबंदी देश की अर्थव्यवस्था की दिल की नाडि़यों में कितनी ही रुकावटें पैदा कर देगी. देश का दिल वैसे ही कमजोर है. लेकिन यह मरेगा तो नहीं पर घिसटता, सिसकता रहेगा. 

 

आस्था की आड़ में अतिक्रमण

‘‘ क्याभारत के संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का इस्तेमाल धर्म आधारित राजनीति को प्रोत्साहन देने के लिए किया जा रहा है?’’ पिछले दिनों केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा यह कड़ी टिप्पणी दिल्ली की सड़कों पर फैलते धार्मिक ढांचों और अतिक्रमणों को हटाने में टालमटोल पर की गई थी. इतना ही नहीं, आयोग ने दिल्ली पुलिस को यह आदेश भी दिया था कि वह इस सिलसिले में अपील दायर करने वाले को और लोक निर्माण विभाग को यह सूचित करे कि उपरोक्त अवैध ढांचा हटाने के मामले में कब तक काररवाई करेगा?

मालूम हो कि रोहतक रोड पर अवैध ढंग से बने धार्मिक ढांचे को वहां से हटाने की जानकारी अपीलकर्ता ने मांगी थी. आयोग ने इस बात पर भी चिंता जताई थी कि किस तरह हर धार्मिक अतिक्रमण उस जटिल संकट को जन्म देता है, जिसे फिर सियासतदानों की तरफ से हवा दी जाती है.

गौरतलब है कि प्रार्थना स्थलों के अवैध निर्माणों या धार्मिक उत्सवों के अवसरों पर गैरकानूनी ढंग से पंडाल खड़ा करने आदि का मसला अब समूचे देश में चिंता का सबब बन रहा है, जिस के बारे में उच्चतम न्यायालय ही नहीं, बाकी अदालतें भी अपने निर्देश दे चुकी हैं. उदाहरण के तौर पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सभी राज्यों ने गिनती कर उसे यह भी सूचित किया है कि उन के यहां कितने अवैध धार्मिक स्थल हैं. ध्यान रहे कि ऐसे प्रार्थना स्थल सड़कों, चौराहों के अलावा गलीमहल्लों या अपार्टमैंट्स के अंदर भी तेजी से बन रहे हैं.

दुश्वार होती जिंदगी

पिछले दिनों राजस्थान के उच्च न्यायालय ने जयपुर की एक आवासीय सोसायटी में अवैध ढंग से पानी की टंकी पर बने मंदिर को गिराने का आदेश दिया. अपार्टमैंट के निवासी की निजता के अधिकार की याचिका को मंजूर करते हुए न्यायालय ने 2 माह के भीतर मंदिर को उपरोक्त स्थान से हटाने का निर्देश दिया तथा अवैध ढंग से मंदिर बनाने के लिए सोसायटी के 2 सदस्यों पर 50-50 हजार रुपए का जुर्माना भी ठोंका.

याचिकाकर्ता का कहना था कि मंदिर में लाउडस्पीकर तथा अन्य संगीत उपकरणों के इस्तेमाल तथा वहां नियमित चलने वाले धार्मिक आयोजनों से उन का शांति से जीना दुश्वार हो गया है. वे रात को भी नहीं सो पाते.

उधर मुल्क की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई की उच्च अदालत का आदेश धार्मिक अतिक्रमणों के अस्थाई रूप को रेखांकित करता है. दरअसल, आए दिन होने वाले त्योहारों के नाम पर सड़कों पर पंडाल लगाने, लाउडस्पीकर बजाने और आम नागरिकों के सड़कों व फुटपाथों पर सुरक्षित ढंग से चलने के मूल अधिकार के बाधित होने की बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए मुंबई स्थित ठाणे के डाक्टर बेडेकर ने याचिका डाली थी. उन का कहना था कि मुंबई के बगल में स्थित ठाणे जिले में इस सिलसिले में बनाए गए तमाम नियमों का बारबार उल्लंघन होता है और शिकायत किए जाने पर भी सुनवाई नहीं होती है.

अदालत पहुंचते मामले

महानगर पालिका के आला अफसरों को  मामले में डांट लगाते हुए उच्च न्यायालय ने साफ कहा था कि सार्वजनिक स्थल पर पूजा का आयोजन मूल अधिकार में शामिल नहीं होता है. इतना ही नहीं न्यायालय ने आम रास्तों

व फुटपाथों पर नवरात्रों, गणेशोत्सव आदि उत्सवों के अवसरों पर अस्थाई पंडाल लगाने को ले कर अधिक सख्त निमयों का ऐलान भी किया था और राज्य सरकार से कहा था कि वहां इस आदेश के बारे में ‘ऐक्शन टेकन रिपोर्ट’ ले कर कुछ समय बाद अदालत के सामने हाजिर हो.

आस्था का सवाल इस दौर में जितना संवेदनशील हुआ है, उसे मद्देनजर रखते हुए अकसर इस मसले को आसानी से निबटाना भी संभव नहीं होता. पिछले दशक के अनुभव बताते हैं कि यदि सही तरीके से समझाया जाए, तो आम लोग आस्था के सवाल को जनहित के मातहत करने को तैयार भी हो जाते हैं. 21वीं सदी की पहली दहाई में हमारे सामने 3 अलगअलग सूबों के ऐसे उदाहरण दिखते हैं, जिन्हें एक तरह से नजीर माना जा सकता है.

यातायात पर संकट

उदाहरण के लिए 2005-06 के दौरान मध्य प्रदेश के चर्चित शहर जबलपुर में, जहां मुल्क के किसी भी अन्य शहर की तरह कई धर्मोंसंप्रदायों के अनुयायी रहते हैं, वहां पर डेढ़ साल के अंतराल में 168 धार्मिकस्थल हटा कर दूसरे स्थान पर बनाए गए. क्या यह बात आज के माहौल में किसी को आसानी से पच सकती है कि शहर के यातायात व सामाजिक जीवन को तनावमुक्त बनाए रखने के लिए सभी आस्थाओं से संबंधित लोगों ने इस के लिए मिलजुल कर काम किया और एक तरह से बाकी मुल्क के सामने सांप्रदायिक सद्भाव की नई मिसाल पेश की?

यातायात के बढ़ते दबाव को ज्यादा गंभीर बनाने वाले व सड़कों के बीचोंबीच स्थित इन धार्मिकस्थलों को स्थानांतरित करने वाले इस अभियान की शुरुआत शहर के पौश इलाके सिविल लाइन में स्थित एक मजार को स्थानांतरित कर के हुई. इस के बाद शुरू हुए सिलसिले में बड़ी तादाद में धर्मस्थलों को अपने स्थान से हटा कर दूसरे स्थान पर स्थापित किया गया.

न्यायालय का हस्तक्षेप

इस मामले में न्यायपालिका का भी बेहद सकारात्मक रूख रहा और जिला प्रशासन ने भी इस काम को अंजाम देने के पहले समाज के कई तबकों को भरोसे में ले कर उन से सुझाव व सहयोग ले कर ही काम को आगे बढ़ाया.

गौरतलब है कि जबलपुर शहर की इस नायाब पहल के पहले ‘मंदिरों के शहर’ कहे जाने वाले दक्षिण भारत के मदुराई में भी इसी किस्म की कार्यवाही की गई थी. उच्च न्यायालय के आदेश के तहत नगर पालिका की अगुआई में अवैध रूप से बनाए गए 250 से अधिक मंदिर, 2 चर्च व 1 दरगाह को हटाया गया.

मुंबई में भी, जहां 1992-93 में बड़ी संख्या में लोग सांप्रदायिक दंगों के शिकार हुए थे, वहां ऐसे धार्मिकस्थलों की मौजूदगी तनाव बढ़ाने का सबब बनी थी. वहां आम नागरिकों के संगठित हस्तक्षेप के चलते 1 हजार से अधिक अवैध धर्मस्थलों को प्रशासन ने हटा दिया था.

राजस्थान की राजधानी जयपुर में भी अदालत के निर्देश पर धर्मस्थल हटाने की कार्यवाही हुई है. राजनीति के चलते इस मामले में गतिरोध जरूर आया है और प्रशासन पर गलत कार्यवाही के आरोप भी लगे हैं. लेकिन मैट्रो कारैपोरेशन ने 200 से ज्यादा धार्मिक स्थलों को हटा दिया है.

ऐसे चलता है अतिक्रमण का खेल

कई बड़े शहरों में तो जहां जगह की काफी कीमत है, मंदिरमसजिद बना कर जमीन हथियाने वालों के पूरे गिरोह रहते हैं और यह एक बाकायदा धंधा बन चुका था. शहर में जहां कहीं भी सार्वजनिक जमीन खाली पड़ी होगी या व्यावसायिक स्थलों पर सड़कों के किनारे फालतू जगह होगी, इन लोगों की गिद्धदृष्टि में आ जाएगी.

यह बात केवल हिंदुओं के मंदिरों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कमोबेश सभी धर्म वाले लोगों को धार्मिक भावनाओं का नाजायज फायदा उठाते रहे हैं. रास्तों और गोलचक्करों पर कई मसजिदें और अनजान पीरफकीरों की मजारें भी बनी हुई मिल जाएंगी.

खुले स्थानों पर बनवाए धर्मस्थल भी अकसर संचालकों की मिलबांट और पुजारी परिवार के विस्तार के ही साधन बनते हैं. ये लोग जनता से बटोरे धन से कमरे आदि बनवा कर न सिर्फ अपने पूरे कुनबे को इन में बसा लेते हैं व मुफ्त का चढ़ावा खाते हैं, बल्कि दुकानें बनवा कर उन का किराया भी वसूल करते हैं.

दंगल: रिव्यू से पहले पढ़ें सान्या-फातिमा का इंटरव्यू

फिल्म ‘दंगल’ में फ्री स्टाइल रेसलर और कॉमनवेल्थ गोल्ड मेडलिस्ट गीता फोगट और उसकी रेसलर बहन बबीता कुमारी की भूमिका निभाने वाली फातिमा शेख और सान्या मल्होत्रा अपने चरित्र को लेकर खास चिंतित हैं. उन्होंने इस किरदार को जीवंत करने के लिए बहुत मेहनत की है.

रियल लाइफ के कोच के संरक्षण में उन्होंने 8 महीने तक प्रशिक्षण लिया. यह फिल्म उन दोनों के लिए चुनौती है और आगे दर्शकों की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रही हैं. उनसे मिलकर बात करना अच्छा था. आइये जाने कैसे उन्होंने इस भूमिका को निभाया है.

प्र. आप दोनों अपने बारें में बतायें.

सान्या मल्होत्रा – मैं दिल्ली की हूं और बचपन से ही अभिनय का शौक था. पर दिल्ली में ऐसा कुछ खास नहीं है. फिर मैंने कंटेम्पर्री, बैले, हिप-हॉप सब तरह का डांस सीख लिया. पिता की आज्ञा लेकर केवल 15 दिनों के लिए मुंबई अपने दोस्तों के साथ रहने आई. फिर वापस दिल्ली गई और कहा कि मुझे एक्टिंग करनी है. मुझे मुंबई में रहना पड़ेगा. मेरे पिता एक पल के लिए रुके और बोले कि मुझे पता है कि तुम अच्छा करोगी, इसलिए जाओ. मेरे माता पिता ने मेरे काम के लिए बहुत सहयोग दिया.

मैं मुंबई आई, 4-5 महीने तक तो पता नहीं चला कि मैं क्या करूं, कहां जाऊं, किसको कॉल करूं, आदि चलता रहा. लेकिन धीरे-धीरे ऐड में काम मिलने लगा, काफी संघर्ष था. फिर मुझे दंगल फिल्म के गीता की भूमिका की ऑडिशन के लिए कॉल आया. मैंने ऑडिशन दिया और काफी अच्छा ऑडिशन हुआ था. फिर भी एक महीने तक कोई उत्तर नहीं मिला. लेकिन आशा थी कि यह भूमिका शायद मुझे ही मिलेगी.

इस दौरान मैं मेरी मां की बर्थडे के लिए दिल्ली जा रही थी कि मुझे कॉल आया कि आप शॉर्टलिस्ट हो चुके हो. आपसे आमिर खान मिलना चाहते हैं. मैं एयरपोर्ट में थी, इसलिए वहां से लौटकर आने की बात कही. यहां आकर देखा कि 15 लड़कियां अब भी मेरे सामने थी. यह एक और बाधा थी. उसमें कुछ लड़कियां गीता तो कुछ बबीता के लिए ऑडिशन दे रही  थी. लेकिन अंत में मुझे बबीता की भूमिका मिली और यहीं से मेरी जर्नी शुरू हो गई.

फातिमा शेख- मेरे माता-पिता जम्मू कश्मीर के हैं. मैं मुंबई में पैदा हुई और छोटी उम्र से ही कुछ फिल्में की है. चाची 420, वन टू का फॉर, जमानत आदि फिल्मों में काम किया था. फिर मैंने एक्टिंग बंद कर पढाई पर ध्यान दिया. पढाई के दौरान एक्टिंग को ‘मिस’ करने की वजह से फिर से एक्टिंग में आ गई और छोटी-छोटी भूमिका निभाने लगी. 12वीं के बाद मैंने पढाई छोड़ दी और एक्टिंग में आ गई.

प्र. आप दोनों इतनी कॉन्फिडेंट कैसे थी कि ये फिल्म आप दोनों को ही मिलेगी, ऑडिशन में आपको क्या पूछा गया था?

सान्या मल्होत्रा – मुझे फिल्म के ही तीन दृश्य करने के लिए दिए गए थे. जो गीता फोगट के थे. मैंने अच्छे से कर लिया था. लेकिन बाद में मुझे बबीता की भूमिका मिली. उससे मुझे कोई समस्या नहीं थी. मैं आमिर खान से मिलकर इतनी खुश थी कि कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्योंकि मुझे एक बड़ी फिल्म मिल रही थी.

फातिमा शेख – ये ऑडिशन साधारण नहीं था, करीब 4-5 स्तर तक हमें निरीक्षण किया गया. इसमें पूरी शारीरिक स्वस्थता पर अधिक ध्यान  दिया गया. जिसमें मैं दौडू या व्यायाम करती हूं तो कैसी दिखती हूं. सारी बारीकियों को देखा गया. इसके अलावा हमारी एक्टिंग आमिर खान के साथ भी ली गई. सभी कलाकार के कॉम्बिनेशन को अच्छी तरह से परखा गया था. फिर हमें बुलाया गया, मुझे लगा कि अब फाइनल सुनने को मिलेगा. वहां रेसलिंग के ट्रेनर कृपा शंकर सिंह उपस्थित थे, मैं दुबली हूं, तो उन्होंने कहा कि मैं रेसलर नहीं बन सकती. वापस बुलाया फिर रेसलिंग का टेस्ट हुआ, जहां हम दो हफ्ते सिर्फ रेसलिंग ही करते रहे. ये मेरे लिए पहली बार था. कभी हमने इतना वर्कआउट जिंदगी में नहीं किया. मैं सुबह हाथ पैर न उठा पाने की वजह से रोती थी. लेकिन शुरू किया और टेस्ट में पास हुई. जब इसे आमिर खान ने बताया तो मेरे लिए इससे ख़ुशी की बात कुछ भी नहीं थी. फिल्म मिली है ये बात तो मैंने सुनी थी इसके बाद उन्होंने जो भी कहा था, मुझे कुछ भी सुनाई नहीं पड़ा. एक पल के लिए मैं सुन्न हो गई थी.

प्र. सान्या, आपको फिल्मों में आने की प्रेरणा कहां से मिली, क्या आपके परिवार का कोई कनेक्शन फिल्मों से था?

मुझे बचपन से फिल्म देखने का और डांस करने का शौक था. गाने चलते थे तो मैं खूब डांस करती थी. मैं कभी भी किसी समय डांस कर सकती थी. मुझे अवार्ड फंक्शन देखना बहुत पसंद था. मैं शीशे के आगे जाकर अवार्ड लेने की प्रैक्टिस करती थी. कहां से एक्टिंग का कीड़ा आया पता नहीं. मेरी मां को पेंटिंग अच्छा बनाना आता है. शायद यहीं से मेरे अन्दर क्रिएटिविटी आई. मेरे माता-पिता दोनों जॉब करते है.

प्र. आप दोनों अपने चरित्र के बारें में कितना जानती थी? कितनी तैयारियां की?

फातिमा शेख – मुझे गीता के बारें में बहुत अधिक पता नहीं था. ट्रेनिंग शुरू होने के बाद रोज मैं उनकी वीडियो देखती थी. ट्रेनर ने हमें प्रैक्टिस वीडियो भी दिया था. वीडियो ने चरित्र में घुसने में काफी मदद की. हरियाणवी भाषा में थोड़ी मुश्किल आई. मैं मुंबई की होने की वजह से हरियाणवी का ट्यूशन लिया.

सान्या मल्होत्रा – वीडियो देखकर पता चलता था कि रेसलर प्रैक्टिस कैसे करते है. अगर खड़े होते हैं तो कैसे पोज़ बनाते हैं आदि सारे हाव-भाव देखा प्रैक्टिस की, तब जाकर शूटिंग शुरू हुई. मुझे हरियाणवी आती है, क्योंकि मैं दिल्ली की हूं.

प्र. आप दोनों को स्पोर्ट्स का कितना शौक है?

सान्या मल्होत्रा – मुझे स्पोर्ट्स का ज़रा भी शौक नहीं. मुझे डांस पसंद है.

फातिमा शेख – मैं स्कूल में थोड़ी बहुत खेलती थी.

प्र. आमिर खान के साथ काम करने का अनुभव कैसा था?

सान्या मल्होत्रा – वे अपने काम को लेकर बहुत पैशनेट रहते हैं, लेकिन किसी को उसका प्रेशर नहीं देते. उन्हें देखकर मुझे बहुत प्रेरणा मिली.

फातिमा शेख – मुझे बहुत अच्छा लगा, वे अभिनय को आसान कर देते हैं. वे बहुत ही हंसमुख हैं.

प्र. कितना प्रेशर महसूस कर रही हैं? आप दोनों का खेल और खिलाड़ियों के प्रति भाव कैसा है?

सान्या मल्होत्रा – दंगल फिल्म ने मेरी लाइफ बदल दी. इन दो सालों के दौरान मैं एक रेस्पोंसिबल इंसान बन चुकी हूं. मेरे अन्दर बहुत बदलाव आ गया है. आत्माविश्वास बहुत बढ़ा है. मैं पहले बहुत इंट्रोवर्ट थी, किसी के साथ बात कर नहीं पाती थी. पहले मुझे रेसलिंग आसान लगा था. लेकिन ऐसा नहीं था. सात से आठ महीने मैंने रेसलिंग की प्रैक्टिस की है. अभी मैं कुछ भी कर सकती हूं.

फातिमा शेख – मेरे अन्दर खिलाड़ियों के लिए बहुत सम्मान बढ़ा है. वे कितना मेहनत करते हैं, फिर भी जब वे मेडल नहीं ला पाते, तो हम उसे ‘रिजेक्ट’ कर देते हैं, जो गलत है. अगर हम एक एथलीट की तरह जी पाते हैं, तो हम अपने प्रोफेशन में बहुत आगे बढ़ पाएंगे. इसके अलावा जिम्मेदारी मेरे अन्दर अवश्य बढ़ी है. मैं चाहतीहूं कि मेरा काम सबको पसंद आये.

प्र. रियल गीता, बबीता से क्या आप दोनों मिली है?

सान्या मल्होत्रा – हम दोनों एक बार फिल्म की मुहूर्त पर गीता फोगट और बबीता कुमारी से मिले है.

प्र. शूटिंग के दौरान आप दोनों को कोई मुश्किलें आई?

फातिमा शेख – हम दोनों ने काफी तैयारियां फिल्म के पहले की थी इसलिए शूटिंग करना कठिन नहीं था. सारे संवाद पूरी तरह याद थे. निर्देशक नितीश तिवारी ने बहुत मदद की. सारी शूट लुधियाना, पूना और दिल्ली में हुई.

प्र. फिल्मों में अन्तरंग दृश्य करने में आप दोनों कितनी सहज है?

सान्या मल्होत्रा – मैं कलाकार हूं और हर तरह के अभिनय करना चाहती हूं. मैं अपने आप को किसी भी परिस्थिती में रोकना नहीं चाहती, अगर चरित्र मुझे अच्छा लगे.

फातिमा शेख – मेरे हिसाब से अभिनय मेरा प्रोफेशन है, रियल नहीं, इसलिए जो भी काम मिलेगा उसे करना चाहूंगी.

प्र. आप दोनों कितनी फैशनेबल है?

सान्या मल्होत्रा – मैं अधिक फैशनेबल नहीं, लेकिन अब थोड़ा सोचना पड़ता है. मैं बहुत फूडी हूं, कुछ भी अच्छा मिले, खा लेती हूं. मां के हाथ का बना दाल चावल मुझे बहुत पसंद है.

फातिमा शेख – मैं कुछ भी पहन लेती हूं कई बार भाई के कपड़े भी मैं पहन लेती हूं. मलाई और घी पसंद है. मेरे पापा अच्छा खाना बनाते हैं. उनके हाथ का बना राजमा चावल और यखनी, कश्मीरी डिश पसंद है.

शांति की तलाश यहां होगी खत्म

भारत एक सांस्कृतिक देश है जहां पर अलग-अलग किस्म के लोग रहते हैं. भारत के चारों दिशाओॆ में कई तरह के रंग, वेशभूषा, और पहनावे देखने को मिलते हैं. यह सब राज्य में रहने वाले लोगों में और खासकर उस राज्य में देखा जा सकता है.

ऐसे कई राज्य हैं जहां पर शिलाएं, प्राचीन इमारतें और किलें देखे जा सकते हैं. कुछ को तो विश्व में प्रसिद्धी मिल गई है, पर कुछ अपने अस्तित्व को लेकर लड़ रहे हैं. अगर आपको भी अपनी संस्कृति से बहुत ज्यादा प्यार है, पर आप शांति की तलाश कर रहे हैं, तो आपको यहां जरूर जाना चाहिए. अगर आपको अपने देश के बारे में नई-नई बातें जानने का शौक है, तो भारत की इन जगहों पर जरूर जाएं. यहां पर आपको संस्कृति की झलक के साथ-साथ सुकून भी मिलेगा.

कोलकाता

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता का खुद एक अलग ही महत्व है. यह हुगली नदी के किनारे बसा एक ऐसा शहर है जहां देखने के लिए फोर्ट विलियम, ईडन गार्डन्स, बॉटनिकल गार्डन्स, बेलूर मठ, मार्बल पैलेस जैसी जगहें हैं. यहां का फोर्ट विलियम भारत के सबसे बड़े पार्कों में से एक है. ईडन गार्डन्स का भी विशेष आकर्षण है. बॉटनिकल गार्डन्स में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा बरगद का पेड़ है जो 10,000 वर्ग मीटर में फैला है, इसकी लगभग 420 शाखाएं हैं. मार्बल पैलेस में महत्वपूर्ण प्रतिमाएं और पेंटिंग हैं.

गया

तीन दिन और रात के तपस्या के बाद में गौतम बुद्ध ने फाल्गु नदी के तट पर बोधि पेड़ के नीचे ज्ञान की प्राप्ति की थी. बिहार में इसे मंदिरों के शहर के नाम से भी जाना जाता है. यहां का सबसे प्रसिद्ध मंदिर महाबोधि मंदिर है. इस मंदिर को यूनेस्‍को ने 2002 में वर्ल्‍ड हेरिटेज साइट घोषित किया था. इसके अलावा गया में घूमने के लिए नालन्‍दा और राजगीर भी हैं. बोधगया घूमने का सबसे बढ़िया समय बुद्ध जयंती महाबोधि मंदिर है.

जयपुर

जयपुर को गुलाबी नगरी अर्थात पिंक सिटी के नाम से जाना जाता है. इस शहर में सुंदर नगरों, हवेलियों और किलों की भरमार है. जयपुर का अर्थ है – जीत का नगर. जयपुर शहर किसी रजवाडे के शहर से कम नहीं लगता है. सिटी पैलेस जयपुर का एक प्रमुख लैंडमार्क है. पैलेस में एक संग्राहलय है जिसमें राजस्थानी पोशाकों व मुगलों तथा राजपूतों के हथियार का बढ़िया संग्रह हैं. इसमें विभिन्न रंगों व आकारों वाली तराशी हुई मूंठ वाकी तलवारें भी हैं, जिनमें से कई मीनाकारी के जड़ाऊ काम व जवाहरातों से अलंकृत है तथा शानदार जड़ी हुई म्यानों से युक्त हैं.

इसके साथ ही यहां देखने के लिए सिटी पैलेस से कुछ दूर जयपुर का जंतर मंतर, गोविंद देवजी का मंदिर, सरगासूलीराम निवास, बागरामगढ़ झील, सांगानेर, जयगढ़ किला, पुराना शहर, आमेर जैसी ऐसी कई जगहें हैं.

वाराणसी

वाराणसी धर्म एवं विद्या की पवित्र तथा प्राचीनतम् नगरी है. वैदिक साहित्य की संहिताओं ब्राह्मण ग्रन्थों एवं उपनिषदों में काशी का उल्लेख है. यहां के काशी विश्वनाथ मंदिर पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं. यहां लगभग 84 घाट हैं. ये घाट लगभग 4 मील लम्‍बे तट पर बने हुए हैं. इन 84 घाटों में पांच घाट बहुत ही पवित्र माने जाते हैं. इन्‍हें सामूहिक रुप से ‘पंचतीर्थी’ कहा जाता है.

अस्‍सीघाट सबसे दक्षिण में स्थित है जबकि आदिकेशव घाट सबसे उत्तर में स्थित हैं. काशी को बहुत लोग मिनी भारत भी कहते हैं.

सावधानी से करें आइपीओ में निवेश

किसी भी कारोबार की शेयर वैल्यू फिक्स होने के बाद उसका आइपीओ (आरंभिक सार्वजनिक निर्गम) बाजार में आता है. निवेशकों और आम जनता की इसमें काफी रुचि रहती है.

आइपीओ में निवेश से कुछ बातों पर ध्यान देना जरूरी है

कंपनी बीहेवियर

आइपीओ में निवेश करने से पहले कंपनी का पास्ट और ग्रोथ का एनालिसिस जरूर करें. यदि इंडस्‍ट्री में कंपनी बेहतर प्रदर्शन कर रही है तो इसमें निवेश करना फायदेमंद हो सकता है.

आइपीओ का उद्देश्य

आइपीओ का उद्देश्य जानना बेहद जरूरी है. ऐसा करने से आपको इस बात का पता चलेगा कि कंपनी आइपीओ के जरिए पैसे क्यों जुटा रही है. इससे आप अनुमान लगा सकती हैं कि कंपनी का ग्रोथ होगा या नहीं.

कंपनी के आइपीओ प्रोस्पेक्टस को पढ़ें

निवेश करने से पहले कंपनी के आइपीओ प्रोस्पेक्टस को ध्यान से पढ़ें. ऐसा करने से आपको आइपीओ के उद्देश्‍य को समझने में आसानी होगी और साथ ही इससे जुड़े जोखिमों के बारे में भी पता चलेगा.

इश्यू प्राइस को देखें

इश्यू प्राइस कहीं ओवर प्राइस्‍ड या अंडर प्राइस्‍ड तो नहीं है, यह जानने के लिए इनकी तुलना करना जरूरी है.

‘आ गया हीरो’ से कमबैक कर रहे हैं गोविंदा

कॉमेडी किंग माने जाने वाले गोविंदा आ गया हीरो फिल्म से बड़े पर्दे पर कमबैक करने वाले हैं. फिल्म का फर्स्ट लुक गोविंदा ने ट्वीट कर जारी किया.

हालांकि पिछले कुछ सालों में गोविंदा ने फिल्मों में छोटे रोल्स भी किए हैं. लेकिन लीड रोल में उनकी फिल्म बहुत दिनों बाद आ रही है.

दरअसल इस फिल्म की शूटिंग बहुत पहले शुरू हुई थी लेकिन किन्हीं वजहों से इसे रोक दिया गया था. फिल्म को गोविंदा ही प्रोड्यूस कर रहे हैं और फिल्म का नाम पहले ‘अभिनय चक्र’ रखा गया था.

बता दें कि फिल्म में गोविंदा आईपीएस ऑफिसर के रोल में दिखेंगे. आ गया हीरो में आशुतोष राणा का भी अहम किरदार है.

किसी बात का पछतावा नहीं: सनी लियोन

“खूबसूरती परफैक्ट फिगर में नहीं, बल्कि फिट फिगर में होती है. कहने का मतलब यह है कि बहुत जरूरी है कि आप की फिगर ही नहीं, बल्कि आप की सेहत भी अच्छी हो. अगर आप की सेहत अच्छी होगी तो आप की त्वचा और फिगर अपनेआप ही खूबसूरती की दास्तान कह देगी. इसलिए बहुत जरूरी है कि आप अपनी सेक्सी फिगर से ज्यादा अच्छी सेहत पर ध्यान दें’’ यह कहना है दुनिया की सबसे सेक्सी सनी लियोन का, जिनकी खूबसूरती के चर्चे हर मर्द की जबान पर हैं.

हर औरत सनी लियोन की तरह सेक्सी और खूबसूरत फिगर की मालकिन बनना चाहती है. लिहाजा हमने सनी से उनकी खूबसूरती और सेक्सी फिगर का राज जानने के लिए उन से बातचीत की. पेश हैं, सनी की जबानी उन की खूबसूरती की कहानी:

सनी का परफेक्ट बौडी में नहीं फिट बौडी में विश्वास का कारण?

मैं परफैक्ट बौडी से ज्यादा फिट बौडी में विश्वास रखती हूं. मैं ने ज्यादातर लोगों को देखा है सेक्सी फिगर पाने के लिए डाइटिंग शुरू कर देते हैं, जिस से वे अत्यधिक पतले हो कर बीमार लगने लगते हैं जबकि सच बात यह है कि डाइटिंग करने के बजाय हैल्दी खाना खाना चाहिए. आप जितना सही खाना खाएंगे उतना ही फिट रहेंगे. मेरी अच्छी सेहत का राज सही खानपान और समय पर खाना है.

क्या खाएं और क्या नहीं?

जिंदगी में अगर हमने स्वादिष्ठ खाने का त्याग करना सीख लिया तो समझ लो हम स्वस्थ जीवन के लिए बुक हो गए हैं. ज्यादातर देखा गया है कि जबान को अच्छी लगने वाली चीजें सेहत के लिए खराब होती हैं जैसे जंक फूड, मिठाई, चौकलेट, केक आदि. मैं इन सब चीजों से दूर रहती हूं. मेरी डाइट प्लान बहुत ही बोरिंग है, लेकिन हैल्दी है. जैसे मैं दिन की शुरुआत नारियल पानी से करती हूं. नारियल पानी पीने से तरोताजा महसूस होता है और स्किन भी अच्छी रहती है. चाय की जगह ब्लैक कौफी पीना पसंद करती हूं. 100 कैलोरी से ज्यादा का नाश्ता नहीं करती हूं, नाश्ते में अंडे की सफेदी और टोस्ट खाती हूं.

खूबसूरत दिखने के नायाब नुस्खे क्या हैं?

खूबसूरत दिखने के लिए 2 चीजें बहुत जरूरी हैं, सब से पहले आप की पौजिटिव सोच और दूसरी आप का अपने प्रति आत्मविश्वास. अगर अपनी बात करूं तो मैं अपनी जिंदगी में कभी किसी बात को ले कर पछतावा नहीं करती.

जब मैं ने बौलीवुड में कदम रखा तो मुझे अपने लिए कई सारी बातें सुनने को मिलीं, लेकिन मैं ने उन्हें ले कर कभी ओवर रिएक्ट नहीं किया और न ही निगेटिव सोच रखी. उस का नतीजा यह है कि धीरे धीरे मुझे बौलीवुड इंडस्ट्री स्वीकार करने लगी. पौजिटिव सोच और सबने मुझे एक मजबूत इनसान बनाया.

अगर आप में आत्मविश्वास की कमी होगी या आप की सोच निगेटिव होगी तो वह सब आप की बौडी लैंग्वेज में नजर आ जाएगा. इसलिए खूबसूरत दिखने के लिए पौजिटिव सोच और आत्मविश्वास होना बहुत जरूरी है.

ऐक्सरसाइज करने के खास तरीके?

मैं हफ्ते में 3 दिन ऐक्सरसाइज जरूर करती हूं. अगर शूटिंग होती है तो 30 मिनट की ऐक्सरसाइज करती हूं और अगर फ्री होती हूं तो पूरे 2 घंटे ऐक्सरसाइज करती हूं. मुझे अपने पति के साथ ऐक्सरसाइज करने में बहुत मजा आता है.

जिम में वही मेरे पार्टनर हैं. मैं कार्डियो ज्यादा करती हूं, जिस में ऐक्सरसाइज के दौरान मेरा मकसद कैलोरी कम करना ही होता है. कंधों की ऐक्सरसाइज के लिए बौक्सिंग करती हूं और कमर के नीचे का हिस्सा पतला करने के लिए साइकलिंग ज्यादा करती हूं, मैं हर सैशन में 500-600 कैलोरी बर्न करती हूं.

मेकअप टिप्स?

दरअसल, मुझे मेकअप करने से सख्त नफरत है. खासतौर पर मुझे पाउडर लगाना बिलकुल पसंद नहीं है. इसलिए मैं क्रीम बेस्ड मेकअप करती हूं. मेकअप उतारने के लिए जैपनीज मौइश्चराइजर का इस्तेमाल करती हूं. इस के अलावा ब्लश भी क्रीम बेस्ड ही लगाती हूं. मेकअप के लिए मेरे ज्यादातर प्रोडक्ट वाटर बेस्ड होते हैं. मसकारा भी मैं लाइट वेट और पतला इस्तेमाल करती हूं. लाइनर और काजल भी वाटर बेस्ड ही लगाना पसंद करती हूं. इस के अलावा किस फौर ग्लौसी जो हर रंग में आता है उसे जरूर होंठों पर लगाती हूं. अगर शूटिंग नहीं होती तो मैं बहुत हलका मेकअप करती हूं. ताकि मेरी स्किन को भी थोड़ा आराम मिले.

बालों की देखभाल?

मुझे बालों की खासतौर पर देखभाल करनी पड़ती है, क्योंकि प्रोफैशन के हिसाब से मेरे बालों पर कैमिकलयुक्त प्रोडक्ट्स और बहुत ज्यादा ब्लो ड्राई का इस्तेमाल होता है. इसलिए मैं नियमित तौर पर बालों में नारियल तेल लगा कर मसाज करती हूं. बालों को मजबूत बनाने के लिए प्रोटीनयुक्त पदार्थ भी लगाती हूं ताकि बालों की जड़ से देखभाल हो सके.

ड्रैसिंग स्टाइल?

मुझे इंडियन ड्रैसेज खासतौर पर साड़ी पहनना बहुत पसंद है और वह शायद इसलिए कि मुझे पहले कभी खूबसूरत साड़ी पहनने का मौका नहीं मिला. इंडिया आने के बाद मैं सारी प्रैस कौन्फ्रैंस में साड़ी पहन कर जाना पसंद करती हूं. इस के अलावा मुझे गाउन और जींसटीशर्ट पहनना भी पसंद है. इनमें मैं काफी सहज रहती हूं.

पसंदीदा ज्वैलरी?

रोजमर्रा की जिंदगी में मुझे लाइट वेट ज्वैलरी पहनना पसंद है जैसे डायमंड, प्लैटिनम पर्ल से बनी ज्वैलरी. लेकिन खास मौकों पर मुझे नक्काशीदार सोने से बनी जड़ाऊ ज्वैलरी पहनना अच्छा लगता है. पर्सनली मैं खूबसूरत ज्वैलरी की बहुत शौकीन हूं. मेरे पास अच्छाखासा कलैक्शन है.

लाइफस्टाइल?

मेरा मानना है कि अगर आप को अच्छी जिंदगी जीनी है तो पर्सनल लाइफ में सादा जीवन उच्च विचार रखों. अगर आप शोओफ की जिंदगी जीएंगे तो आप सहज नहीं रह पाएंगे, फिर अगर आप सहज नहीं रहेंगे तो आप की सेहत पर इस का बुरा असर होगा. इसलिए कोशिश करें कि पर्सनल जिंदगी पर प्रोफैशनल जिंदगी की छाप न आने दें.

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