मैकलॉडगंज की यात्रा

मैकलॉडगंज धौलाधार पहाड़ियों से घिरा हिमाचल प्रदेश का पॉपुलर टूरिस्ट डेस्टिनेशन है. यहां बड़ी संख्या में तिब्बती माइग्रेंट्स बसे हैं, जिनके कल्चर की झलक पूरे शहर में नजर आती है. ज्यादातर टूरिस्ट बौद्ध कल्चर और रिलीजन को जानने के लिए मैकलॉडगंज आते हैं. यहां तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का घर है, जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में टूरिस्ट आते हैं. यहां यूनीक स्टाइल के कैफे और रेस्टोरेंट्स हैं, जहां थाई, चाइनीज, तिब्बतियन, इटालियन, जैपनीज और कॉन्टिनेंटल फूड अवेलेबल है.

हनुमान जी का टिब्बा

मैकलॉडगंज के धौलधार पर्वत शृंखला की सबसे ऊंची चोटी है हनुमान जी का टिब्बा. ये चोटी चारों ओर से ग्लेशियर से घिरी है. प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, संजीवनी बूटी लाते समय हनुमान इसी चोटी पर रुके थे, जिस कारण इसका नाम हनुमान जी का टिब्बा पड़ा. बताया जाता है कि इसकी चोटी तक पहुंचना किसी खतरे से खाली नहीं है. यहां हजारों लोग हर साल ट्रैकिंग के लिए आते हैं. ठंड और खतरनाक रास्तों का सामना करते हुए कई लोगों की यहां मौत भी हो चुकी है. हालांकि, ट्रैकिंग के नियमों को फॉलो कर ऐसे हादसों से बचा जा सकता है .

बिर बिलिंग

जमीन से 2400 फीट की ऊंचाई पर स्थित है बिर बिलिंग. 17 वीं सदी में इस जगह के अस्तित्व में आने के प्रमाण मिलते हैं, समय- समय पर यहां कई राजाओं ने शासन किया है. लेकिन अब ये जगह एशिया की बेस्ट पैराग्लाइडिंग प्लेस कहलाती है. ये जगह जंगल कैपिंग और पैराग्लाइडिंग के लिए मशहूर है.  यहां अक्सर पैराग्लाइडिंग टूर्नामेंट्स होते हैं, जिसमें दुनिया भर के लोग शामिल होते हैं.

त्रिउंड हिल ट्रैकिंग

त्रिउंड ट्रैक गालू मंदिर से शुरू होता है. यहां पहुंचने के लिए आप मैकलॉडगंज से टैक्सी या ऑटो रिक्शा के जरिए धरमकोट (3 किमी) पहुंचना होगा. धरमकोट से गालू मंदिर एक किलोमीटर का रास्ता है. गालू मंदिर से त्रिउंड की दूरी 6 किलोमीटर है. इसके अलावा भागसू नाथ से भी छोटे ट्रैक के जरिए गालू मंदिर पहुंचा जा सकता है.

आप चाहें तो  त्रिउंड पहुंचकर हिमाचल टूरिज्म के फॉरेस्ट गेस्ट हाउस या कैम्प में रुक सकते हैं. दूसरे दिन लाहेश गुफा के लिए 5 घंटे का ट्रैक किया जा सकता है. त्रिउंड से ही लाका ग्लेशियर का भी ट्रैक किया जा सकता है.

सेंट जॉर्ज चर्च

समुद्र तल से 5600 फुट की ऊंचाई पर बसा ये चर्च 1852 में बनाया गया था. 1905 में भूकंप से हुई भारी तबाही के बावजूद यह आज भी सही हालत में है. चर्च के नजदीक ही वायसराय लॉर्ड इलगिन जेम्स ब्रूस का स्मारक भी बना है. चर्च में विंडो ग्लास पेंटिंग लगाई गई है, जिसे इटालियन आर्टिस्ट ने बनाया था. मैकलॉडगंज बस स्टेशन से 20 मिनट वॉक करके यहां पहुंचा जा सकता है. यह सिर्फ रविवार को ही प्रार्थना के समय (सुबह 10 -12) ही खोला जाता है. हालांकि, टूरिस्ट बाहर से चर्च आर्किटेक्चर को देख सकते हैं.

नामग्याल मोनेस्ट्री

यहां 14वें दलाई लामा के घर के अलावा मॉनेस्ट्री और तांत्रिक कॉलेज है. 1959 में चीन के तिब्बत पर कब्जा करने के बाद लामा समेत हजारों तिब्बती भारत आ गए थे. इनमें 55 भिक्षु भी शामिल थे, जो तिब्बत की पवित्र जगह नामग्याल मॉनेस्ट्री से थे. दलाई लामा को भारत में राजनीतिक शरण मिलने के बाद इन्हीं भिक्षुओं ने मैकलॉडगंज में नामग्याल मोनेस्ट्री की स्थापना की.  बीते 50 सालों से यहां बड़ी संख्या में तिब्बती माइग्रेंट्स रह रहे हैं, जिस कारण इसे अब ‘लिटिल ल्हासा’ कहा जाने लगा है.

भागसूनाग मंदिर और फॉल

शिव का यह प्राचीन मंदिर मैक्लॉडगंज से करीब तीन किलोमीटर ऊपर है.  राजा भागसू ने नाग देवता को मनाने के लिए यह मंदिर बनवाया था. कहा जाता है कि राजा ने पवित्र नाग झील से पानी चुरा लिया था, जिसके बाद नाग देवता नाराज हो गए थे. बाद भागसू ने नाग देवता से क्षमा मांगने के लिए इसे बनवाया. यह सुबह 5 से दोपहर 12 और शाम 4 से रात 9 बजे तक खुलता है

नौरोजी एंड संस

ये हिमाचल प्रदेश की सबसे पुरानी दुकान है. पारसी फैमिली नौरोजी इसे ब्रिटिश टाइम में खोला था. अब इसे दलाई लामा के दोस्त नौजेर नौरोजी इसे चलाते हैं. ब्रिटिश टाइम में यहां बेकरी आइटम, टोबैको, शराब और हथियार तक बेचे जाते थे. लेकिन अब यहां सिर्फ न्यूजपेपर, मैगजीन और कन्फेक्शनरी आइटम बेचे जाते हैं. 156 साल पहले शुरू हुई इस दुकान में आज चल रही है. यहां का इन्फ्रास्टक्चर लकड़ी से बना है.

धर्मशाला स्टेडियम

धौलाधार पहाड़ियों से घिरा ये शानदार स्टेडियम धर्मशाला से है. ये कांगड़ा के गागल एयरपोर्ट से 12 किलोमीटर दूर है. स्टेडियम 2003 में बनकर तैयार हो गया था, जबकि यहां पर पहला वनडे इंटरनेशनल मुकाबला 2013 में खेला गया. यह भारत का इकलौता स्टेडियम है, जहां रेग्रास का यूज किया जाता है. इसकी खासियत है कि ये -10 डिग्री सेल्सियस में भी खराब नहीं होती.

कैसे पहुंचे

By Air: मैकलॉडगंज से सबसे नजदीकी एयरपोर्ट गग्गल है, जो 19 किलोमीटर दूर है. इसके अलावा कुल्लू का भुंतर एयरपोर्ट करीब 200 किलोमीटर दूर है. दिल्ली से इन दोनों एयरपोर्ट के लिए सीधी फ्लाइट्स हैं.

By Train: मैकलॉडगंज में कोई रेलवे स्टेशन नहीं हैं, हालाँकि नजदीकी स्टेशन कांगड़ा और नगरौटा है जो छोटी लाइन पर है. इन स्टेशन्स के लिए पठानकोट से हर रोज सुबह 10 बजे ट्रेन चलती है. कांगड़ा रेलवे स्टेशन से मैकलॉडगंज की दूरी करीब 30 किमी है.

By Road: दिल्ली आईएसबीटी और हिमाचल भवन से हिमाचल टूरिज्म, हरियाणा रोडवेज, पंजाब रोडवेज और हिमाचल रोडवेज की फ्रीक्वेंट बस सर्विस है. इसके अलावा चंडीगढ़, जालंधर और अंबाला से भी यहां के लिए सीधी बस सर्विस अवेलेबल है.

वरुण का एक और सपना हुआ पूरा

वरुण धवन की खुशी का ठिकाना नहीं है, क्योंकि सलमान खान ने ‘जुड़वा’ में गेस्ट अपियरेंस करने के लिए हामी भर दी है. सलमान खान ‘जुड़वा’ में वरुण के गुरू बनेंगे जो कॉमिक अंदाज में उन्हें गुंडागर्दी के दांवपेंच सिखाएंगे.

काफी समय से वरुण की तमन्ना थी कि वो अपने पिता डेविड धवन की सुपरहिट फिल्म ‘जुड़वा’ के सीक्वल में डबल रोल निभाएं. ओरिजनल जुड़वा के हीरो सलमान खान थे.

अब वरुण की ‘जुड़वा’ 2017 में शुरू होगी. इस फिल्म के निर्माता साजिद नाडियाडवाला ही होंगे जो पहले पार्ट के भी निर्माता थे और निर्देशक होंगे साजिद फरहाद. डेविड धवन की सलाह में ही फिल्म बनेगी. ‘जुड़वा’ का मशहूर गाना ‘टन टना टन टारा’ रीमिक्स करके फिर से फिल्म में डाला जाएगा.

पहले पार्ट में सलमान टपोरी और बिजनेसमैन के किरदार में थे और उनके अपोजि‍ट करिश्मा कपूर और रंभा थीं. वरुण के सामने कौन एक्ट्रेस होंगी ये अभी तय नहीं हुआ है लेकिन देखना दिलचस्प होगा, वरुण सलमान की सफलता दोहरा पाएंगे या नहीं.

“फिल्में सरकार को ध्यान में रख कर नहीं बनतीं”

12वर्ष के अपने अभिनय कैरियर में सोहा अली खान ने व्यावसायिक फिल्मों की बनिस्बत ‘रंग दे बसंती’, ‘मुंबई मेरी जान’, ‘मुंबई कटिंग’, ‘मिडनाइट चिल्ड्रेन’, ‘चार फुटिया छोकरे’ जैसी यथार्थपरक फिल्मों को ही प्रधानता दी.

हाल ही में सोहा सिख दंगों पर आधारित फिल्म ‘31 अक्तूबर’ में एक सिख महिला के किरदार में नजर आई हैं. पेश हैं, उन से हुई गुफ्तगू के कुछ अंश:

फिल्म ‘31 अक्तूबर’ में आप का एक पीडि़त सिख परिवार की महिला का किरदार निभाने की वजह?

इस फिल्म को करने के पीछे मेरी इतिहास में रुचि रही. यह फिल्म 1984 में हुए सिख विरोधी दंगे के दौरान की एक रात की कहानी है. इस सिख परिवार के साथ जो कुछ हुआ था, उस की एक मानवीय कहानी है.

हम ने इस फिल्म में दिखाया है कि उस वक्त किस तरह से लोगों ने अपनी जिंदगी को खतरे में डाल कर दूसरों की मदद की थी, उन की जिंदगी बचाई थी. कहानी के इस मानवीय पहलू ने मुझे इस फिल्म के साथ जुड़ने के लिए मजबूर किया.

32 वर्ष बाद सिख दंगों की कथा को बयां करने का कारण?

यह एक ऐसी कहानी है, जिसे आज के दौर में सुनाना बहुत जरूरी है. आज माहौल बहुत अजीब हो गया है, जिसे देखो वही इनटौलरैंस यानी असहिष्णुता की बात कर रहा है. हमारी यह फिल्म उसी असहिष्णुता की कहानी है. इस फिल्म को देखने के बाद आज की युवा पीढ़ी की समझ में आना चाहिए कि वास्तव में इनटौलरैंस क्या होता है? उस दौर में लोगों ने यथार्थ में अपनी जिंदगी को खतरे में डाल कर दूसरों की जिंदगी बचाई थी. उस वक्त लोगों ने यह नहीं देखा था कि वे जिन की जिंदगी बचा रहे हैं, वे किस कौम या मजहब से हैं.

क्या आप ने निजी जिंदगी में कभी खुद को असुरक्षित महसूस किया?

नहीं, मैं ने अपनी निजी जिंदगी में प्यार ही प्यार देखा है. मैं भी अल्पसंख्यक समुदाय से हूं. महिला हूं पर असुरक्षा की अनुभूति नहीं हुई.

क्या आप मानती हैं कि इस तरह के बड़े घटनाक्रमों के पीछे सिस्टम का फेल होना मुख्य वजह है?

जी हां, मैं मानती हूं कि जब भी इस तरह की घटना घटती है, तो कहीं न कहीं सिस्टम असफल होता है. जो लोग सिस्टम में या सिस्टम में ताकतवर पदों पर बैठे होते हैं, वे सिस्टम का उपयोग भी करते हैं. वे सिस्टम का उपयोग क्यों करते हैं, यह एक अलग मुद्दा है. मेरा मानना है कि जब सिस्टम में बैठे लोग सिस्टम का उपयोग या दुरुपयोग करते हैं, उस वक्त धर्म कहीं नहीं आता, बल्कि धर्म के नाम पर ही कुछ लोग सिस्टम की अपनी ताकत का गलत तरीके से उपयोग करते हैं.

हम एक ऐसे लोकतांत्रिक देश में रहते हैं, जहां सर्वधर्म समभाव की बात की जाती है. मैं अपने घर के अंदर अल्लाह या भगवान के साथ जो कुछ करूं, वह बहुत निजी मसला है. लेकिन मुझे बहुत अखरता है, जब मैं गणपति पंडाल में जाती हूं और लोग मुझ पर सवाल उठाते हैं. मेरी राय में मेरे धर्म से दूसरों को कोई लेनादेना नहीं होना चाहिए.

हम ऐसे देश में रहते हैं, जहां हम मिल कर एकदूसरे के धार्मिक समारोहों का जश्न मनाते हैं. यही हमारे देश की व हमारी सब से बड़ी ताकत है. पर कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए हमारी इस ताकत को तोड़ने का काम करते हैं और यह सब महज वोट के लिए होता है.

सरकार बदलने के साथ क्या सिनेमा में बदलाव आता है?

सिनेमा में मेरा अनुभव बहुत कम समय का है. पर मेरा जो अनुभव है, उस में मैं ने सरकारों के साथ सिनेमा में बदलाव कम देखा है. जब हम फिल्म ‘31 अक्तूबर’ की शूटिंग कर रहे थे, उस वक्त कांग्रेस की सरकार थी और जब हमारी फिल्म प्रदर्शित हुई है, तो भाजपा की सरकार है. हम अपनी फिल्म को 2 साल पहले ही प्रदर्शित करना चाहते थे, पर नहीं कर पाए. हम सिनेमा सरकार को ध्यान में रख कर नहीं बनाते हैं. फिल्में अपनी बात कहने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हैं.

शादी के बाद कम काम करने का निर्णय लिया है?

ऐसा कुछ नहीं है. मुझ से ज्यादा बेहतर आप फिल्म इंडस्ट्री की कार्यशैली को समझते हैं. आप को पता है कि फिल्मकारों के घर या औफिस के चक्कर लगाना मेरी फितरत में नहीं है. मेरे पास जिन फिल्मों के औफर आते हैं, उन्हीं में से कुछ बेहतर चुनने की मेरी कोशिश हमेशा रही है.

क्या अभिनय के इतर कुछ काम कर रही हैं?

एक टीवी सीरियल के निर्माण की योजना है. मैं ने अपने पति कुणाल खेमू के साथ मिल कर एक फिल्म प्रोडक्शन कंपनी भी बनाई है, जिस का नाम ‘रेनगेड’ रखा है. फिल्म निर्माण की भी योजना है. एक बायोपिक फिल्म का सहनिर्माण कर रही हूं.

पति कुणाल खेमू को ले कर क्या कहेंगी?

वे बहुत ही ज्यादा रचनात्मक इनसान हैं. अच्छे अभिनेता हैं. पटकथा भी लिखते हैं. एक दिन फिल्म भी निर्देशित करेंगे.

पर आप दोनों के बीच तो तलाक की खबर गरम थी?

मुझे भी नहीं पता. मैं और कुणाल दोनों आश्चर्यचकित हैं कि इस तरह की खबरें क्यों और किस ने उड़ाईं.

आतंकवाद को ले कर कभी विचार किया?

मैं एक बात जानती हूं कि आतंकवाद धर्म की वजह से नहीं होता. जब भी कोई आतंकवादी घटना घटती है, तो मैं यही सोचती हूं कि किसी मुसलमान का हाथ न हो.

हम सभी पढ़ेलिखे लोग इस बात को समझते हैं कि आतंकवाद का इसलाम से कोई संबंध नहीं है. अब आईएसआई वाले आतंकवादी घटना की जिम्मेदारी ले लेते हैं, तो उस के पीछे पैसा जुटाना या राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा भी हो सकती है.

इतिहास में आप की रुचि है. पर क्या अर्थशास्त्र में भी आप की रुचि है, क्योंकि हाल ही में आप ने रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे रघुराम राजन के पक्ष में टिप्पणी की थी?

देखिए, अर्थशास्त्र एक ऐसा विषय है, जिस में हर इनसान की थोड़ी बहुत रुचि जरूर होती है. इसी को ले कर मैं ने रघुराम राजन पर अपने विचार रखे थे. पर इस का यह मतलब नहीं कि मैं आर्थिक नीति पर अपनी राय दे रही हूं.

देश के राजनीतिक हालात पर आप की क्या राय है?

भारत बहुत बड़ा देश है, जहां कई धर्मों व भाषाओं के लोग रहते हैं. मुझे लगता है कि विकेंद्रीकरण करना जरूरी है. राज्यों को खुद को संभालने की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए. इन दिनों सब कुछ केंद्रीयकृत हो गया है. मेरी राय में डिसैंट्रलाइजेशन होना चाहिए. सिर्फ एक केंद्रीय सत्ता नहीं होनी चाहिए अन्यथा अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ा, फिर वह चाहे मुसलिम हो या कोई और अपनी बात कह नहीं पाता है.

मीडिया मेकअप से पाएं बेदाग खूबसूरती

फिल्म, टीवी सीरियल ऐक्ट्रैस को देख कर हर लड़की सोचती है कि काश, वह भी इस की तरह खूबसूरत दिखे. लेकिन क्या आप को पता है कि इन तारिकाओं के नैननक्श को उभारने और बेदाग दिखाने में मेकअप का कितना बड़ा योगदान होता है. यह मेकअप कैसा होता है. इस बारे में बता रही हैं मीडिया मेकअप आर्टिस्ट पूजा पालीवाल.

‘‘मीडिया मेकअप द्वारा जहां चेहरे के हर हिस्से की कमी को दूर किया जाता है, वहीं दबे हुए हिस्से को उभारा जाता है, क्योंकि कैमरा छोटी से छोटी कमी को भी बड़ी जल्दी कैच कर लेता है. इस के साथ ही तेज लाइट में स्किन को भी बचाना होता है. इसलिए बेस हमेशा अच्छी क्वालिटी का ही लगाएं ताकि स्किन आसानी से कवर हो सके.’’

आईज मेकअप

सब से पहले आंखों का मेकअप करें. आईज पर मैट गोल्डन, ब्लैक कलर का आईशैडो ब्रश की सहायता से लगाएं. आंख के इनर पार्ट में गोल्डन और आउटर पार्ट में ब्लैक आईशैडो लगाएं. इसे ब्रश की सहायता से ऐसे मर्ज करें जिस से कि यह अलगअलग न दिखे. बाहरी कौर्नर्स डार्क रहें. फिर जैल आईलाइनर या वीओवी का काजल इनर पार्ट से लेते हुए बाहरी पार्ट तक एक स्ट्रोक में लगाएं.

यदि आईज छोटी हैं, तो आईलाइनर मोटा लगाएं और बड़ी हैं तो पतला. आईशैडो लगाने से पहले आईज पर एक बेसकोट जरूर लगाएं ताकि आईशैडो अधिक समय तक टिका रहे. इस के बाद आईज के वाटरलाइन एरिया में काजल ब्रश से लगाएं.

अगर आईज को बड़ा दिखाना चाहती हैं तो नीचे आईज पर बाहर की तरफ लाइनर लगा कर वाटरलाइन एरिया में ब्रश से व्हाइटर लगाएं. इस से आंखें बड़ी दिखेंगी. इस के बाद मसकारा ऊपर और नीचे की आईलैशेज पर अच्छी तरह घुमाते हुए लगाएं.

आईब्रोज को क्लीन लुक देने के लिए ब्राउन पैंसिल या शैडो का प्रयोग करें.

फेस बेस मेकअप

आईज मेकअप के बाद आई एरिया को छोड़ कर फेस को अच्छी तरह क्लीन कर लें ताकि अगर आईशैडो गिरा हो तो वह साफ हो जाए. इस के बाद पूरे फेस पर जैल वाला प्राइमर लगाएं. अगर फेस पर दागधब्बे हैं, तो प्राइमर के बाद कंसीलर का प्रयोग करें. कंसीलर को थपथपाते हुए लगाएं ताकि दागधब्बे अच्छी तरह से कवर हो सकें. फिर पूरे फेस पर डर्मा का एक टोन डार्क बेस लगाएं. बेस को अच्छी तरह मर्ज जरूर करें.

फेस करैक्शन

मीडिया मेकअप में फेस करैक्शन करना बहुत जरूरी है ताकि कैमरे में फेस का लुक शार्प लगे. इस के लिए फेस के दबे हुए हिस्से को उभारें. अगर नाक छोटी व चपटी है तो दोनों तरफ के बाहरी हिस्सों पर डार्क ब्राउन बेस स्पौंज ब्रश की सहायता से लगाएं और उसे उंगलियों की सहायता से मर्ज करें. ऐसे ही फोरहैड और चीक्सबोंस पर भी करें. इस से बड़ा फेस छोटा दिखेगा.

चीक्स मेकअप

गालों को उभारने के लिए पीच या पिंक कलर का ब्लशर ब्रश की सहायता से चीक्सबोंस पर ही वन स्ट्रोक में लगाएं ताकि यह पैची न दिखे. फिर इसे ब्रश से अच्छी तरह मर्ज करें.

लिप मेकअप

होंठों को कौटन से अच्छी तरह क्लीन कर के एक बेस कोट लगाएं. फिर इस पर ब्रश से डार्क कलर की आउटलाइन बनाएं. अगर लिप छोटे व पतले हैं तो आउटर एरिया से आउटलाइन बनाएं और अगर मोटे हैं, तो इनर एरिया से लेते हुए आउटलाइन बनाएं. फिर लिप पर ब्रश की सहायता से लिपस्टिक लगाएं. शाइनिंग के लिए लिप्स पर ग्लौस का एक कोट लगाएं.

तो लोग आंटी नहीं कहेंगे

अपने रिश्तेदारों, मौसी, मामी, चाची, भाभी, दीदी या फिर अपने पासपड़ोस की आंटियों के भड़कीले मेकअप को देख कर अकसर मुंह से निकल जाता है कि बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम. 65 साल की मौसी के होंठों पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक देख कर बरबस हंसी छूटना स्वाभाविक है.

थुलथुल बदन वाली मामीजी जब पैंसिल हील वाले सैंडल पहन कर इतराती हुई चलती हैं और बार बार गिरते गिरते बचती हैं, तो वह बड़ा ही दिलचस्प नजारा होता है. गहरी सांवली मोटी चाची को किसी पार्टी में पीले रंग की साड़ी में लिपटा देख कर भी हंसी छूट जाती है. कई मौकों पर उम्रदराज महिला रिश्तेदारों और पड़ोसिनों का पहनावा और मेकअप देख कर हंसी के साथ साथ शर्म भी महसूस होने लगती है.

दरअसल, ज्यादातर महिलाओं को यह पता ही नहीं चलता है कि उन के जीवन का वसंत काफी साल पहले गुजर गया है. बढ़ती और ढलती उम्र का उन्हें एहसास ही नहीं होता है या फिर यह भी हो सकता है कि वे अपनी उम्र और झुर्रियों को छिपाने के लिए चटकदार कपड़े पहनती और गहरा मेकअप करती हों.

मामला चाहे कुछ भी हो, लेकिन बढ़ती उम्र को मेकअप और रंगीन कपड़ों से ढकने की उन की तरहतरह की दिलचस्प कोशिशें उन्हें कई बार हंसी का पात्र बना देती हैं.

उम्र के साथ पहनावा जरूरी

ब्यूटी ऐक्सपर्ट सीमा कुमारी कहती हैं कि बढ़ती उम्र की महिलाओं को यह जान और मान लेना चाहिए कि वक्त के थपेड़ों को हरा कर वे हमेशा जवान नहीं रह सकती हैं. लेकिन उम्र के हिसाब से मेकअप और पहनावे के जरीए वे हमेशा स्मार्ट बनी रह सकती हैं. उस तरह के पहनावे से वे खुद भी रौयल महसूस करेंगी और उन के रिश्तेदार और दोस्त भी पार्टियों में उन का मजाक नहीं उड़ाएंगे. उम्र के साथ पहनावा बदलना जरूरी है.

मेकअप और कपड़ों का चुनाव

ज्यादातर घरों में यही देखा जाता है कि 40-45 साल की महिलाएं अपनी हैल्थ को ले कर काफी लापरवाह होती हैं, जिस से उन का शरीर बेडौल, थुलथुल हो जाता है. बेडौल शरीर पर किसी भी तरह का पहनावा नहीं जंचता है.

फैशन डिजाइनर अमित सिन्हा कहते हैं कि शहरों में उम्रदराज औरतें मोटी होने के बाद भी जींसटौप या लैगिंग्स आदि पहन लेती हैं. अब ऐसी महिलाओं को कौन समझाए कि उम्र और शरीर की बनावट के लिहाज से उन पर ऐसे कपड़े नहीं जंचते हैं.

खुद का मजाक

उम्र के चौथे दशक के बाद महिलाओं को ऐक्स्ट्रा केयर की जरूरत होती है. खानापीना ठीक रख कर और नियम से ऐक्सरसाइज कर वे शरीर को चुस्तदुरुस्त और स्मार्ट बनाए रख सकती हैं.

मधुबनी पेंटिंग आर्टिस्ट अनुपमा कहती हैं कि बढ़ती उम्र की महिलाओं को खुद को ब्यूटीफुल दिखने के बजाय स्मार्ट और रौयल दिखने की कोशिश करनी चाहिए. इस से परिवार और समाज में उन की पर्सनैलिटी की तारीफ होगी. अटपटा मेकअप कर ज्यादातर महिलाएं खुद हंसी का पात्र बनती हैं.

40 साल की आयु के बाद मेकअप और पहनावा पर्सनैलिटी निखारने वाला होना चाहिए. देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पर्सनैलिटी को याद कीजिए. हलके रंग की साड़ी को सलीके से पहनने और बालों के बीच सलीके से छोड़ी गई सफेदी से उन की गरिमा कई गुना ज्यादा बढ़ जाती थी.

ब्यूटीशियन रंजना कहती हैं कि ज्यादा सुंदर और अलग तरह की दिखने दिखाने के चक्कर में उम्रदराज औरतें चटकीले भड़कीले कपड़े पहन लेती हैं और आंखों को चुभने वाला मेकअप कर लेती हैं. महिलाओं को अपनी स्किनटोन के मुताबिक ही मेकअप और कपड़ों का चुनाव करना चाहिए.

खुद को कैसे रखें फिट

स्किन स्पैशलिस्ट डाक्टर सत्य प्रकाश बताते हैं कि उम्र के बढ़ने के साथ स्किन का कसाव कम होने लगता है और आंखों के पास डार्कसर्कल्स हो जाते हैं. झांइयां और झुर्रियां बढ़ जाती हैं.

ऐसे में नियमित रूप से फेशियल, बौडी मसाज आदि ट्रीटमैंट्स के जरीए बढ़ती उम्र में होने वाली परेशानियों को कम किया जा सकता है, पर इन से पूरी तरह बचा नहीं जा सकता है. जंक फूड के बजाय हैल्दी फूड खाएं और किसी डाइटीशियन से डाइट चार्ट बनवा कर उस पर अमल करें.

यह भी रखें ध्यान

ज्यादा सुंदर दिखने के चक्कर में अधिक उम्र वाली महिलाएं भड़कीली ड्रैस पहनने के साथसाथ हैवी मेकअप तो कर लेती हैं पर शारीरिक फिटनैस की तरफ से लापरवाह होती हैं. आप ब्यूटी क्वीन तभी बन सकती हैं जब शारीरिक रूप से भी फिट हों. इस के लिए बेहतर डाइट और नियमित व्यायाम बेहद जरूरी है.

अगर शरीर चुस्तदुरुस्त होगा तो किसी अवसर पर अगर भड़कीली ड्रैस पहन भी ली जाए तो वह अखरती नहीं है. बेडौल शरीर पर भड़कीला पहनावा हंसी का पात्र ही बनाता है.

स्वस्थ रह कर ही महिलाएं खुद को हर तरह से फिट और हिट रख सकती हैं. स्मार्ट शरीर पर उम्र के मुताबिक रौयल पहनावे और हलके मेकअप के साथ वे पार्टियों में जानदार, शानदार और रोबदार दिख सकती हैं. इसलिए मौसियों, चाचियों, भाभियों और हर आंटी से अनुरोध है कि उम्र के हिसाब से पहनावे और मेकअप को अपना कर स्मार्ट कहलाने का जतन करें, न कि ब्यूटी क्वीन दिखने की भेड़चाल में शामिल हों.

मसालेदार आलू कोरमा

आलू तो सब्जियों का राजा होता है. बच्चे, बुढ़े और जवान सबका पसंददीदा है आलू. वैसे तो आपने आलू के कई पकवान खाए होंगे लेकिन क्या आपने कभी आलू कोरमा ट्राई किया है? नहीं ना. तो जानिए कैसे बनता है आलू कोरमा.

सामग्री

250 ग्राम छोटे आलू

1 छोटा चम्मच जीरा

1 छोटा चम्मच सौंफ पाउडर

1/4 कप प्याज बारीक कटा

2 छोटे चम्मच अदरक व लहसुन पेस्ट

मीडियम आकार के 2-3 टमाटरों की प्यूरी

1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

1 बड़ा चम्मच खसखस पाउडर

1 कप ताजा नारियल कद्दूकस किया

1 छोटा चम्मच मिर्च पाउडर

1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

4 बड़े चम्मच फिगारो औलिव औयल

नमक स्वादानुसार

सजाने के लिए थोड़ी सी धनियापत्ती कटी.

विधि

आलुओं को प्रैशरकुकर में पानी के साथ एक सीटी आने से पहले ही आंच बंद कर दें. आलू कम गलने चाहिए ताकि उन के छिलके उतारे जा सकें. छिलके उतार कर ठंडा कर कांटे से हर आलू को चारों तरफ से गोद दें.

अब खसखस और नारियल को मिक्सी में अच्छी तरह पीस लें. एक नौनस्टिक पैन में 2 बड़े चम्मच तेल गरम कर आलू सौते करें. बचे तेल को प्रैशरकुकर में डाल कर जीरा तड़का कर प्याज से पारदर्शी होने तक भूनें. अब इस में अदरकलहसुन पेस्ट डाल कर 2 मिनट भूनें.

फिर नारियल पेस्ट डाल कर तेल छूटने तक भूनें. इस में टोमैटो प्यूरी डालें और साथ ही सूखे मसाले भी. जब सब अच्छी तरह भुन जाएं तो आलू डाल कर 2 कप पानी व नमक डालें और 1 सीटी आने तक पकाएं. सब्जी के ऊपर गरममसाला बुरकें और फिर धनियापत्ती बुरक दें. आलू कोरमा तैयार है.

कोचिंग बाजार: ऊंची दुकान, फीका पकवान

बिहार में सरकारी स्कूलों और कालेजों में पढ़ाईलिखाई की बदहाली के चलते कोचिंग की अमरबेल बखूबी पनप चुकी है.दरअसल, कोचिंग के पनपने के पीछे सरकारी शिक्षा को साजिश के तहत पंगु बनाए रखना है. पटना विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफैसर जगन्नाथ प्रसाद कहते हैं कि अगर सरकारी स्कूलों और कालेजों में अच्छी पढ़ाई होती, तो कोचिंग इंस्टिट्यूट कभी न पनपते. सरकारी स्कूलों और कालेजों के टीचर मोटा वेतन पाने के बावजूद पढ़ाई को ले कर लापरवाह बने रहते हैं. वही टीचर प्राइवेट कोचिंग सैंटरों में जा कर पूरी तल्लीनता से पढ़ाते हैं. ज्यादातर सरकारी टीचर तो अपने घर पर ही कोचिंग सैंटर चलाते हैं और मोटी कमाई करते हैं. सरकारी टीचर जितना मन लगा कर बच्चों को कोचिंग सैंटरों में पढ़ाते हैं अगर उस का 50 फीसदी भी सरकारी स्कूलों और कालेजों के बच्चों को पढ़ा दें तो उन्हें अलग से कोचिंग की जरूरत ही न पड़े.

सूबे में सरकार हर साल तालीम पर अरबों रुपए खर्च करती है. इस के बाद भी बच्चों को बेहतर पढ़ाई के लिए कोचिंग सैंटरों पर निर्भर रहना पड़ता है. बिहार में 2015-16 में पढ़ाईलिखाई पर करीब 22 हजार करोड़ खर्च किए गए. इस के अलावा केंद्र सरकार भी तालीम के नाम पर अलग से रुपए देती है. प्राथमिक शिक्षा के लिए 11 हजार करोड़, माध्यमिक शिक्षा पर 6 हजार करोड़, विश्वविद्यालयी शिक्षा पर 5 हजार करोड़ और प्रौढ़ शिक्षा पर 255 करोड़ खर्च किए गए. इतनी बड़ी रकम खर्च करने के बाद भी सूबे में जितनी तेजी से शिक्षा की बदहाली बढ़ती जा रही है उस से कई गुना तेजी से शिक्षा का प्राइवेट बाजार फूलताफलता जा रहा है.

सपने दिखा कर लूट

सरकार मानती है कि राज्य में करीब 1,500 करोड़ से ज्यादा का कोचिंग का कारोबार है और करीब 1 लाख लोग इस की बहती गंगा में हाथ ही नहीं धो रहे हैं, बल्कि नहा रहे हैं. कोचिंग उद्योग रेलवे के गैंगमैन से ले कर आईएएस अफसर बनाने तक का सपना छात्रों को दिखाता है. यूपीएससी, स्टेट पीएससी, एसएससी, रेलवे, बैंकिंग, मैनेजमैंट, क्लर्क आदि की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने के अलावा कंप्यूटर कोर्स और इंगलिश स्पीकिंग कोर्स कराने के नाम पर भी कोचिंग संचालक चांदी काट रहे हैं. रेलवे, बैंकिंग, कर्मचारी चयन आयोग आदि की परीक्षाओं की तैयारी में लगे करीब 3 लाख, मैडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी में लगे करीब 2 लाख और प्रशासनिक और मैनेजमैंट परीक्षाओं की तैयारी में लगे करीब 75 लाख छात्र हर साल कोचिंग इंस्टिट्यूटों के भरोसे इम्तिहान पास करने का सपना देखते हैं, जो बिहार के कोचिंग संस्थानों के नैटवर्क को साल दर साल मजबूत बनाते हैं.

कुछ पूछना मना है

कोचिंग सैंटरों में छात्रों की बढ़ती भीड़ को देख कर कोटा और दिल्ली के कई कोचिंग संस्थानों ने भी पटना में अपने सैंटर खोल लिए हैं. इंजीनियरिंग, मैडिकल की कोचिंग के लिए 60 हजार से 1 लाख, मैनेजमैंट संस्थानों में दाखिले की तैयारी कराने के एवज में 25 से 50 हजार, बैंकिंग प्रतियोगिताओं के लिए गाइड लाइन देने के लिए 10 से 30 हजार, यूपीएससी के इम्तिहान की तैयारी कराने के नाम पर 20 से 40 हजार, हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट के इम्तिहान में अच्छे नंबरों से पास कराने के टिप्स देने के लिए 10 से 15 हजार की कोचिंग फीस वसूली जा रही है.

इतनी बड़ी रकम वसूलने के बाद भी ज्यादातर कोचिंग सैंटरों में छात्रों को सवाल पूछने की इजाजत ही नहीं है. सर ने जो भी पढ़ाया उसे कोई समझे या न समझे, इस से कोचिंग संचालकों को कोई मतलब नहीं है. क्लास में सवाल पूछने वालों को डांटडपट कर बैठा दिया जाता है.

आईआईटी की तैयारी कर रहा छात्र मयंक वर्मा बताता है कि उस ने एक नामी कोचिंग सैंटर में एक नामी टीचर की वजह से दाखिला लिया था. मगर कोर्स खत्म हो गया पर वे कभी क्लास लेने नहीं आए. इंटर और ग्रैजुएशन में पढ़ने वाले छात्रों द्वारा ही पढ़ाया गया. यह हाल है कोचिंग सैंटरों का. इन कोचिंग सैंटरों पर ऊंची दुकान फीका पकवान वाली कहावत सौ फीसदी सटीक बैठती है.

सरकारी योजनाएं विफल

ज्यादातर छात्र और उन के मातापिता भी कोचिंग सैंटरों को कामयाबी का जरीया मान बैठे हैं. अब तो यह हाल है कि 8वीं क्लास से ही बच्चों को कोचिंग सैंटर में दाखिल करा दिया जाता है. रिटायर्ड जिला शिक्षा पदाधिकारी उपेंद्र प्रसाद कहते हैं कि यह सच है कि शिक्षा के नाम पर बनाई गई ज्यादातर योजनाएं फाइलों से बाहर ही नहीं निकल पाती हैं. इस वजह से सैकड़ों शिक्षा माफिया शिक्षकों के भेस में छात्रों को लूट ही नहीं रहे हैं, उन के कैरियर से भी खिलवाड़ कर रहे हैं. जब कोचिंग और प्राइवेट ट्यूशन से बच्चों का भविष्य चमक सकता है, तो सरकारी स्कूलों और कालेजों पर हर साल अरबों रुपए खर्च करने की क्या जरूरत है?

बिहार में 6000 बड़ेछोटे कोचिंग इंस्टिट्यूट हैं और उन का सालाना टर्न ओवर 1,500 हजार करोड़ का है. करीब 90 हजार लोग कोचिंग के कारोबार से जुड़े हुए हैं. रेलवे, बैंकिंग, कर्मचारी चयन आयोग आदि परीक्षाओं के छात्र 3 लाख के करीब हैं. मैडिकल की तैयारी में हर साल डेढ़ लाख से ज्यादा और इंजीनियरिंग की तैयारी में हर साल 1 लाख स्टूडैंट लगे होते हैं. प्रशासनिक और मैनेजमैंट परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र अलग से हैं. इस से यह साफ हो जाता है कि पटना के कोचिंग संस्थानों का नैटवर्क और आमदनी कितनी तगड़ी है.

पिछले साल फरवरी महीने में कोचिंग संस्थानों की मनमानी के खिलाफ छात्रों का उपजा गुस्सा कहीं से भी गलत नहीं था. यह गुस्सा अचानक पैदा नहीं हुआ था, बल्कि सालों से पनप रहा था. कोचिंग के छात्रों ने पटना के करीब 60 कोचिंग संस्थानों पर हमला कर तोड़फोड़ की और कई जगहों पर आग लगा दी. कोचिंग संस्थानों के पढ़ाने के ढर्रे के बारे में पड़ताल की गई तो उन की मनमानी और तानाशाहीपूर्ण रवैए की परतें खुलती चली गईं. कोर्स पूरा कराने के एवज में कोचिंग संस्थानों द्वारा इंजीनियरिंग और मैडिकल की तैयारी करने वाले हर छात्र से कोर्स के मुताबिक 60 हजार से डेढ़ लाख वसूले जाते हैं. जितना बड़ा ब्रैंड उतनी ही मोटी फीस होती है. प्रतियोगी परीक्षाओं में कामयाब होने का सपना लिए छात्र अपनी पढ़ाई में सुधार और निखार के लिए कोचिंग सैंटरों में दाखिला लेते हैं. दाखिले से पहले कोचिंग संस्थान छात्रों को खूब सब्जबाग दिखाते हैं पर दाखिले के बाद ज्यादातर कोचिंग सैंटरों के छात्र खुद को ठगा महसूस करते हैं.

अंकुश लगाना जरूरी

कोचिंग संस्थानों में साप्ताहिक, मासिक, तिमाही, छमाही और सालाना टैस्ट लिया जाता है. किसी टैस्ट में छात्रों के फेल होने के बाद उन पर अलग से ज्यादा ध्यान देने के बजाय उन्हें घर पर ही मेहनत करने की सलाह दी जाती है.

मैडिकल की तैयारी कर रही छात्रा सोनाली के पिता गोविंद यादव कहते हैं कि अगर बच्चा घर पर ही मेहनत कर ले तो उसे कोचिंग में भेजने की क्या जरूरत? बच्चों को स्पैशल ट्रेनिंग दिलाने के लिए ही अभिभावक उसे कोचिंग में दाखिला दिलाते हैं. हजारोंलाखों रुपए डकार कर भी कोचिंग वाले यह कहें कि घर पर ही मेहनत करो, तो फिर कोचिंग का क्या मतलब है?

सुपर-30 के संचालक आनंद कुमार कहते हैं कि यह सच है कि कुछ शिक्षा माफिया शिक्षकों के भेस में छात्रों को लूट ही नहीं रहे हैं उन के कैरियर के साथ खिलवाड़ भी कर रहे हैं. ऐसे लुटेरे संस्थानों पर नकेल कस कर ही छात्रों को इंसाफ दिलाया जा सकता है.

दरअसल, कोचिंग संस्थानों पर सरकार और कानून का कोई अंकुश ही नहीं है. अब जब हंगामा मचा है तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोचिंग संस्थानों के लिए नई नीति बनाने का ऐलान किया है. बिहार के मानव संसाधन विकास महकमे के प्रधान सचिव अंजनी कुमार सिंह कहते हैं कि सरकार को कोचिंग संस्थानों के चलने से कोई परेशानी नहीं है, पर अनापशनाप पैसा ले कर बच्चों को ठगने वाले संस्थानों पर अंकुश लगाना जरूरी है. वैसे सरकार पहले ही कोचिंग पौलिसी बनाने का मन बना रही थी, पर अब हंगामे के बाद तुरंत ऐक्ट बनाना जरूरी हो गया है.

छात्रों का नाराज होना गलत नहीं

मिर्जा गालिब कालेज के वाइस प्रिंसिपल प्रोफैसर अरुण कुमार प्रसाद कहते हैं कि कोचिंग संस्थान बच्चों को सब्जबाग दिखा कर दाखिल तो कर लेते हैं पर उन्हें गाइड करने का दायित्व भूल जाते हैं. प्रतियोगी परीक्षाएं सिर पर आ जाती हैं, मगर पाठ्यक्रम आधा भी खत्म नहीं हो पाता है. ऐसे में बच्चों का गुस्सा होना जायज है. यह कहीं से भी सही नहीं है कि स्पैशल पढ़ाई के नाम पर मोटी फीस ले कर एक बैच में 500 से 1000 बच्चों की भीड़ को पढ़ाया जाए. कोचिंग की हालत तो सरकारी स्कूलों और कालेजों से भी बदतर हो गई है. जब बच्चे स्कूलों और कालेजों में ही ठीक से पढ़ लें तो वे प्राइवेट कोचिंग संस्थानों में क्यों दाखिला लें?

यहां कई धंधे भी पनपते हैं

पटना में कोचिंग के कारोबार के साथ कई धंधे चल रहे हैं. कोचिंग संस्थानों के आसपास गर्ल्स और बौयज होस्टल, मेस, किताबकौपियों की दुकानें, सैलून, टिफिन वालों का कारोबार फूलताफलता रहा है. पटना के महेंद्रू, मुसल्लहपुर हाट, खजांची रोड, मखनियां कुआं, नया टोला, भिखना पहाड़ी, कंकड़बाग, चित्रगुप्त नगर, डाक्टर्स कालोनी, राजेंद्र नगर, बोरिंग रोड, कदमकुआं, आर्य कुमार रोड, पीरमुहानी, पोस्टल पार्क आदि इलाकों की गलीगली में कोचिंग सैंटर और होस्टलों की भरमार है. शहर में करीब 3000 से ज्यादा छोटेबड़े होस्टल हैं और इन का कारोबार करोड़ों रुपए का है.

होस्टलों में सीलन भरे दड़बानुमा छोटेछोटे कमरे होते हैं और उन में 2-3 चौकियां लगा दी जाती हैं. पढ़ाई के लिए बच्चों को कुरसीटेबल आदि नहीं दिए जाते. हवा आनेजाने के लिए ठीक से खिड़कियां तक नहीं होती हैं. बाथरूम और टौयलेट की भी नियमित साफसफाई नहीं की जाती है. संकरी सीढि़यां, दीवारों और छतों से उखड़ा प्लास्टर, रंगरोगन का नामोनिशान नहीं होता है. पानी की टंकियों की भी सफाई नहीं की जाती है. होस्टल के मेन गेट पर सिक्योरिटी के नाम पर खड़ा बूढ़ा और कमजोर गार्ड ही दिखाई देता है. ज्यादातर होस्टलों में तो कोई गार्ड भी नहीं होता है. राज्य सरकार की ओर से भी होस्टल के रजिस्ट्रेशन आदि का कोई नियम नहीं है.

असुरक्षित माहौल

गर्ल्स होस्टल्स का यह हाल है कि बाहर से देखने पर अजीब सा रहस्यमयी वातावरण नजर आता है. टूटेफूटे पुराने मकानों के कमरों में लड़की या प्लाईबोर्ड से पार्टिशन कर के छोटेछोटे कमरों का रूप दे दिया गया है. सीलन भरे कमरों में न ही ढंग से रोशनी का इंतजाम है, न पानी और साफसफाई का. खानेपीने की व्यवस्था काफी लचर है. खजांची रोड के एक गर्ल्स होस्टल में रहने वाली प्रिया बताती है कि 8 बाई 8 फुट के कमरे में 3 चौकियां लगी हुई हैं और खिड़की का कोई नामोनिशान नहीं है. खाने के लिए 2 हजार हर महीने लिए जाते हैं और घटिया चावल और उस के साथ दाल के नाम पर पानी दिया जाता है. सब्जी के रस में आलू या गोभी ढूंढ़ने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है.

होस्टल की सुरक्षा के नाम पर चारों ओर की खिड़कियां बंद कर दी जाती हैं. चारदीवारी को ऊंचा कर दिया जाता है और लोहे का बड़ा सा गेट लगा दिया जाता है. मखनियां कुआं के होस्टल में रह कर मैडिकल की तैयारी करने वाली पूर्णियां की रश्मि सिन्हा बताती है कि हर सुबह और रात को लड़कियों की हाजिरी नहीं लगाई जाती है. लड़कियों, उन के अभिभावकों और होस्टल संचालकों के बीच पारदर्शिता न होने पर होस्टलों को हमेशा संदेह की नजरों से देखा जाता है. ज्यादातर गर्ल्स होस्टलों के संचालक मर्द होते हैं, जो लड़कियों से अकसर बेशर्मी से पेश आते हैं.

पटना के सिटी एसपी चंदन कुशवाहा कहते हैं कि गर्ल्स होस्टलों की वार्डन महिला ही होनी चाहिए. लोकल थानों के नंबर होस्टलों में चिपकाने चाहिए. गर्ल्स होस्टलों की कई शिकायतें मिलने के बाद समयसमय पर महिला पुलिस द्वारा होस्टलों के मुआयने के निर्देश हर थाने को दिए गए हैं.

पटना के श्रीकृष्णापुरी महल्ले के मुसकान गर्ल्स होस्टल की इंचार्ज श्वेता वर्मा कहती हैं कि उन के होस्टल में ज्यादातर मैडिकल और इंजीनियरिंग की कोचिंग करने वाली लड़कियां ही रहती हैं. उन का दावा है कि उन के होस्टल में लड़कियों की हिफाजत, मैडिकल और साफसफाई का पूरा खयाल रखा जाता है. अगर किसी होस्टल के रखरखाव से लड़कियां और अभिभावक संतुष्ट नहीं होंगे तो उन का कारोबार चल ही नहीं सकता है. किसी भी तरह की बदनामी का धब्बा लगने के बाद होस्टल को चलाना मुमकिन नहीं है.

होस्टल में रह कर मैडिकल की तैयारी करने वाली सुरभि जैन कहती है कि उन के होस्टल का इंतजाम पूरी तरह से चुस्तदुरुस्त है. शाम 8 बजे तक हर हाल में होस्टल में आना होता है वरना वार्डन अभिभावकों को खबर देती है.

ढाबा, चाय और लिट्टीचोखा

कोचिंग सैंटरों और होस्टलों के आसपास छोटेमोटे ढाबे, चायबिस्कुट की दुकानें, समोसेपकौड़ों की दुकानें, गोलगप्पों और चाट वालों के ठेले, फलों और जूस की दुकानें आदि खुल गई हैं. गंदगी और खुले में रखी खानेपीने की चीजें छात्रों की सेहत को नुकसान पहुंचाती हैं. घरपरिवार से दूर रह कर कोचिंग संस्थानों में पढ़ाई कर बेहतर भविष्य बनाने के लिए जीतोड़ मेहनत करने वाले छात्रों को ढंग का खाना नहीं मिल पाता है. ज्यादातर स्टूडैंट्स गलियों और चौकचौराहों पर बने ढाबों में खाना खाने को मजबूर हैं, जिस से वे अकसर बीमार पड़ जाते हैं.

पटना के कंकड़बाग महल्ले में रह कर आईआईटी की तैयारी कर रहा शेखपुरा जिले का मयंक वर्मा बताता है कि कोचिंग सैंटर से पढ़ कर लौटने पर खाना बनाने की हिम्मत नहीं होती है. वह 4 दोस्तों के साथ एक कमरा किराए पर ले कर पटना में रहता है. वह कहता है कि ढाबे में एक टाइम खाना खाने पर कम से कम

40 चुकाने पड़ते हैं. उस के बदले में एक प्लेट चावल, दाल, एक सब्जी और प्याज मिलता है. कभीकभार अंडाकरी खा लेता है, जिस के लिए 30 अलग से देने होते हैं. कोचिंग सैंटरों और होस्टलों के आसपास मेस और ढाबा चला कर उन के मालिक खुद तो मालामाल हो रहे हैं पर छात्रों को शारीरिक और मानसिक तौर पर कमजोर कर रहे हैं.

बंदूकधारियों से घिरे रहते हैं

कोचिंग के कारोबार में मोटी कमाई और बढ़ती आपसी प्रतिद्वंद्विता की वजह से ज्यादातर कोचिंग संचालकों ने अपने चारों ओर सुरक्षा का मजबूत घेरा बना रखा है. प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड्स से घिरे कोचिंग संचालकों को स्टूडैंट्स की सुरक्षा का कोई खयाल नहीं रहता है. पटना विश्वविद्यालय के एक प्रोफैसर कहते हैं कि कोचिंग सैंटर चलाने वालों को सब से ज्यादा खतरा स्टूडैंट्स से ही होता है. 95 फीसदी कोचिंग सैंटरों में समय पर पाठ्यक्रम पूरा नहीं कराया जाता है, जबकि छात्रों से मोटी फीस पहले ही वसूल ली जाती है. ऐसे में स्टूडैंट्स का भड़कना लाजिम है. 2 साल पहले पटना के भिखना पहाड़ी महल्ले में जब स्टूडैंट्स ने हंगामा मचाया तो एक कोचिंग संचालक के सुरक्षा गार्ड ने लड़कों की भीड़ पर गोली चला दी थी, जिस से 5-6 दिनों तक खूब हंगामा होता रहा और पढ़ाईलिखाई ठप रही. महल्ले वालों को अलग ही परेशानी का सामना करना पड़ा.

छात्र भी अभिभावकों को ठगते हैं

शिक्षाविद् प्रियव्रत कुमार कहते हैं कि जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर होते हैं उन को भी उन के मातापिता जबरन मैडिकल या इंजीनियरिंग की कोचिंग में भेज देते हैं. वहीं कई बच्चे फुजूल में अपने दोस्तों की देखादेखी कोचिंग संस्थान में दाखिला ले लेते हैं. कोचिंग के बहाने लड़केलड़कियों को घर से बाहर निकलने का लाइसैंस मिल जाता है.

नहीं पढ़ने वाले बच्चे अपने मातापिता को कोचिंग की डबल फीस बताते हैं. मिसाल के तौर पर अगर किसी कोचिंग की फीस 50 हजार है तो लड़का पिता को 70-80 हजार बताता है. इस तरह वह 50 हजार कोचिंग में जमा कर देता है और बाकी रुपयों से मौज करता है. किताबों और कौपियों के बहाने भी बच्चे रुपए ऐंठते रहते हैं.

अत: अभिभावकों को भी अपने बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए और बीचबीच में कोचिंग सैंटर में जा कर उन की प्रोग्रैस की जानकारी लेते रहना चाहिए. 

हमारे यहां भी अरब देशों जैसा कानून बने: सना खान

दक्षिण भारत की कई सफलतम फिल्मों मे अभिनय करने के अलावा ‘बिग बास 8’ की वजह से चर्चा में रही ओर फिर सलमान खान के साथ फिल्म ‘‘जय हो’’ में मंत्री की बेटी का किरदार निभाने के अलावा बहुत जल्द प्रदर्शित होने वाली इरोटिक फिल्म ‘‘वजह तुम हो’’ की हीरोईन सना खान सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहती हैं. वह सोशल मीडिया पर लड़कियों को जागरुक करने के लिए काफी कुछ ट्वीट करती रहती हैं.

हाल ही में जब सना खान से हमारी बात हुई, तो हमने उनसे लड़कियों से जुड़े मुद्दों पर उनकी राय पूछी, तो सना खान का अंदर का गुस्सा बाहर आ गया. उन्होंने कहा- ‘‘सोशल मीडिया बहुत बड़ा माध्यम है. मैं इस पर बहुत कुछ करती रहती हूं. मैं फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम सब जगह हूं. मैं बहुत ट्वीट करती हूं. देखिए, मैं एक दकियानूसी मुस्लिम परिवार से हूं. तो मुझे पता है कि हमारी जैसी आम लड़की की क्या स्थिति होती है. हमारे पास बहुत कम जानकारी होती है. इसलिए मैं हर चीज को सोशल मीडिया पर प्रमोट करती हूं. लड़कियों को अपने बाल कैसे ठीक रखने चाहिएं? मेकअप में क्या करना चाहिए? मैं क्या मेकअप के लिए उपयोग करती हूं? कौन सा परफ्यूम उपयोग करना चाहिए? मैं लड़कियों में जागरुकता पैदा करना चाहती हूं. जिससे वह गलत चीजें उपयोग करने से बचें. इसके अलावा हर मुद्दे पर लिखती हूं. लड़कियों के साथ हो रहे शोषण बलात्कार आदि पर भी लिखती हूं.’’

आपको सोशल मीडिया पर किस तरह की प्रतिकियाएं मिलती हैं? इस सवाल पर सना खान ने कहा-‘‘सोशल मीडिया पर मेरी फालोअर्स लड़कों की बजाय लड़कियों ज्यादा हैं. मेरी नजर में इस देश में लड़कियों से जुडे़ बहुत सारे मुद्दे हैं, जिन पर हम लोग बड़े बड़े बयान जारी करते हैं. पर असल में होता कुछ नहीं है. लड़कियों की असुरक्षा, उनके साथ छेड़खानी, बलात्कार की घटनाएं बढ़ रही हैं. यह घटनाएं मुझे बहुत परेशान करती हैं. मैं तो अपनी तरफ से लड़कियों व लड़कों के बीच जागरुकता पैदा करने की पूरी कोशिश कर रही हूं. मगर यह सारी बुराइयां तब तक खत्म नहीं होगी, जब तक सरकार नहीं चाहेगी. हम सब नागरिक आपस में चाहे जितना प्रयास कर लें, उससे कोई बदलाव नहीं आएगा. सरकार के कानून का डर सबसे बड़ा डर होता है. सरकार को बहुत कठोर कानून बनाना पड़ेगा, तभी हमारे देश की लड़कियां सुरक्षित हो सकती हैं.’’

सना खान ने आगे कहा-‘‘निर्भया कांड होने के बाद जो कुछ हुआ और जो निर्णय आया, वह देखकर मुझे रोना आ गया. हमारी सरकार कहती है कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ.’ इस पर निर्भया के पिता ने कहा था कि, ‘जब बेटी बचेगी ही नहीं, तो उसे पढ़ाएंगे कहां से?’ उसके बाद जब एक सरकार ने एक ऐसा कदम उठाया कि मुझे लगा कि उसे जाकर थप्पड मारूं. अदालत ने कुछ समय बाद नाबालिग/जुवेनाइल कहकर ‘निर्भया कांड’ के एक आरोपी को जेल से बाहर कर दिया. और दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने उसे सिलाई मशीन दी. जो लड़का एक लड़की का बलात्कार करता है, उसके शरीर के अंग काट देता है, उसका यूट्रस निकाल देता है. मैं तो अल्लाह से कहती हूं कि ऐसा दुश्मन के साथ भी ना हो. मेरी नजर में तो ऐसा लड़का जुवेनाइल/नाबालिग हो ही नहीं सकता.

आपने एक लडकी का यूट्रस निकाल दिया और आप नाबालिग हैं, यह कैसे हो सकता हैं. ऐसा लड़का तो बीमार है, पागल है, उसे जेल से बाहर निकलने ही नही देना चाहिए था. यह सब देखकर दिमाग में सवाल उठता है कि हम किस देश में रह रहें हैं. आखिर हमारी सरकार लड़कियों की सुरक्षा के लिए क्या कर रही है? आपका कानून इतना लचर है कि छोटी छोटी लड़कियों के बलात्कार होते हैं और अपराधी बच जाता है. आज जरूरत है कि हमारे देश में भी सख्त कानून बने. बलात्कार एक ऐसा जुर्म है, जिसके लिए अपराधी को तुरंत मृत्युदंड दिया जाना चाहिए. इसके लिए हमारे देश में भी अरब देशों की तरह सख्त कानून होना चाहिए. यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो लड़कियों की सुरक्षा कैसे होगी?’’

जब हमने सना खान का ध्यान इस बात की ओर दिलाया कि ‘निर्भया कांड’ के बाद कैंडल मार्च निकाए गए थे. तो सना खान ने कहा-‘‘कैंडल मार्च तो अपना गुस्सा दिखाने का जरिया है. इससे अधिक आम जनता क्या कर सकती है? दूसरी बात पीड़ित परिवार को इससे इस बात का संतोष होता है कि उसके साथ इतने लोग हैं. हमारे देश में जिस तरह के कानून हैं और सरकारें जिस तरह के कदम उठा रही हैं, उससे लड़कों का तो मनोबल बढ़ रहा है. लड़के सोचते हैं कि अपराध करो, बलात्कार करो और सिलाई मशीन पा जाओ. जब आप कहते हैं कि आप देश या राज्य संभाल रहे हैं, तो आपकी पहली जिम्मेदारी लोगों की सुरक्षा करना होता है. हमारा संविधान भी कहता है कि समय के अनुसार कानून बदलने चाहिए. हमारी सरकारें या नेता किसानों की तरफ भी ध्यान नहीं देती. बल्कि हाथी की मूर्तियां बनाने में पैसा खर्च कर देती हैं. एक बार सरकार ने किसानों के नाम पर आम लोगों से एक एक रूपए मांगा था, वह पैसा कहां गया? हमारे देश के सैनिक परिवारों के साथ क्या होता है? मौत के बाद जिंदगी वापस नही ला सकते. पर एक शहीद सैनिक के परिवार को इतना कम पैसा देकर लज्जित तो मत करो? हमारे किसान कितनी तकलीफ में हैं, सरकार उनके लिए कोई कदम क्यों नहीं उठा रही है.’’

सिर दर्द दूर करने के लिए घरेलू उपाय

सिर दर्द होना इतना सामान्य हो गया है कि अब हम इसे हेल्थ प्रॉब्लम की तरह देखते ही नहीं हैं. सिर दर्द होना, है तो सामान्य बात लेकिन अगर दर्द बढ़ जाए तो पूरा दिन बर्बाद हो जाता है.

हममें से ज्यादातर लोग सिर दर्द बर्दाश्त नहीं होने पर पेन-किलर ले लेते हैं लेकिन हर बार दवा लेना सही तो नहीं है. इसके कई साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं. दर्द दबाने के लिए इन दवाओं में एस्टेरॉएड का इस्तेमाल किया जाता है. हो सकता है आपको शुरू में इन दवाओं से फायदा हो जाए लेकिन भविष्य में इसके खतरनाक परिणाम हो सकते हैं.

ऐसी स्थिति में बेहतर होगा कि आप घरेलू उपायों का रुख करें. सामान्य सिर दर्द के लिए ये उपाय बहुत ही फायदेमेद हैं लेकिन अगर सिर दर्द किसी मेडिकल कंडिशन की वजह से है तो डॉक्टर से सलाह जरूर लें.

1. विनेगर या सिरका

सिरका एक औषधि है. इसका इस्तेमाल पेट दर्द में भी किया जाता है और यह सिर दर्द में भी फायदेमंद है. हल्के गुनगुने पानी में एक चम्मच सिरका मिला लें. इसे पीकर कुछ देर के लिए लेट जाएं. सिर दर्द कम हो जाएगा और धीरे-धीरे गायब.

2. ग्रीन टी

सिर दर्द होने पर चाय तो हम सभी पीते हैं लेकिन ऐसे में ग्रीन टी पीना सबसे अधिक फायदेमंद होता है. इसमें मौजूद ऐंटीऑक्सिडेंट्स दर्द कम करने में मददगार होते हैं.

3. काढ़ा

आप चाहें तो काढ़ा बनाकर भी पी सकते हैं. इससे भी सिर दर्द दूर हो जाता है. काढ़ा बनाते समय उसमें दालचीनी, कालीमिर्च जरूर डालें. चीनी की जगह गुड़ या फिर शहद की इस्तेमाल करें.

4. लौंग का तेल

सिर दर्द तेज हो तो लौंग के तेल से मसाज करना भी फायदेमंद रहेगा. लौंग का तेल न हो तो लौंग का धुआं लेना भी फायदेमंद रहेगा.

5. पानी पीते रहें

कई बार शरीर में पानी की कमी हो जाने की वजह से भी सिर दर्द होने लगता है. ऐसे में शरीर में किसी भी हालत में पानी की कमी नहीं होने दें.

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जैकी श्रॉफ बनेंगे सुनील दत्त

संजय दत्त के जीवन पर बनने जा रही फिल्म के लिए जैकी श्रॉफ ने दिग्गज अभिनेता सुनील दत्त की भूमिका निभाने के लिए स्क्रीन टेस्ट दिया है. हालांकि उन्होंने अभी फिल्म साइन नहीं की है. राजकुमार हिरानी के निर्देशन में बनने वाली इस फिल्म में प्रमुख भूमिका में रणबीर कपूर होंगे और जैकी उनके पिता सुनील दत्त की भूमिका में होंगे.

जैकी ने बताया, ‘मैंने सुनील दत्त साहब के किरदार के लिए लुक टेस्ट दिया है. यह मेरे लिए बड़ी बात है कि उन्होंने इस किरदार के लिए मेरे बारे में सोचा. (निभाने के लिहाज से) यह एक मुश्किल किरदार है. मैं कोशिश करूंगा कि मैं उन जैसा न दिखूं. मैं उनके व्यवहार को अपनाने की कोशिश करूंगा.’

जैकी ने कहा, ‘मैं उनसे (सुनील दत्त) एक-दो बार मिला हूं. पहली बार मैं उनसे तब मिला था, जब बाबा (संजय दत्त का प्यार का नाम) ने मेरा परिचय उनसे कराया. हमारे बीच सामान्य बातचीत हुई.’ जैकी ने कहा कि हिरानी ने उनके लुक टेस्ट की तस्वीरें संजय को दिखाईं और संजय को ये पसंद आईं.

सूत्रों के अनुसार, सुनील दत्त के किरदार के लिए सुपरस्टार आमिर खान और मेगास्टार अमिताभ बच्चन से भी संपर्क किया गया था लेकिन उन्होंने यह प्रस्ताव नहीं लिया. हालांकि जैकी ने अभी फिल्म साइन नहीं की है लेकिन उनकी मानें तो यदि उनके चयन को लेकर सब ठीक रहता है तो वह अगले साल जनवरी से शूटिंग शुरू कर देंगे. फिलहाल जैकी राम गोपाल वर्मा की ‘सरकार 3’ में व्यस्त हैं. इस फिल्म में बिग बी मुख्य भूमिका में हैं.

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