चुलबुल की रज्जो बनेंगी काजोल

‘दबंग’ और ‘दबंग 2’ के बाद सलमान खान कई सुपर हिट फिल्में दे चुके हैं, लेकिन उनके फैंस को चुलबुल पांडे का इंतजार है और अब आ रही है एक ऐसी खबर जो फैंस के इंतजार को राहत पहुंचा सकती है.

खबर है कि ‘दबंग 3’ की फीमेल लीड फाइनल हो गई है और जब आप इस हीरोइन का नाम सुनेंगे तो हैरान हो जाएंगे.

‘दबंग 3’ में काजोल सलमान खान की लीडिंग लेडी बनने वाली हैं. अगर ऐसा होता है तो सलमान के साथ काजोल का ये रीयूनियन होगा. सलमान और काजोल 1998 की फिल्म ‘प्यार किया तो डरना क्या’ में साथ आए थे, जिसे सोहेल खान ने डायरेक्ट किया था. इस फिल्म में अरबाज खान ने काजोल के बड़े भाई का किरदार निभाया था.

अरबाज ‘दबंग 3’ के प्रोड्यूसर-डायरेक्टर हैं. 2010 में आई ‘दबंग’ सुपर हिट रही थी और इस फिल्म से सोनाक्षी सिन्हा ने बॉलीवुड में डेब्यू किया था. ‘दबंग 2’ में भी सोनाक्षी का किरदार जारी रहा, लेकिन तीसरे पार्ट में लीडिंग लेडी को लेकर काफी सस्पेंस बना हुआ है.

सोनाक्षी सिन्हा से भी कई मौकों पर इस बारे में पूछा गया, लेकिन वो भी कोई ठोस जवाब नहीं दे सकी थीं. कुछ दिनों पहले ये खबरें भी आयीं थीं कि काजोल ने खुद कहा था कि उन्हें यह फिल्म ऑफर हुई है, लेकिन उन्होंने तब हां नहीं कहा था. ताजा डेवलपमेंट यही है कि काजोल फिल्म के लिए राजी हो गई हैं और उन्हें ध्यान में रखते हुए फिल्म की आगे की कहानी लिखी जा रही है.

दीपिका-प्रियंका में लगी रेस

दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा के हॉलीवुड में कदम रखने के बाद से ही ये तय हो गया था कि अब इनके पास इंटरनेशनल प्रोजेक्ट्स की लाइन लगने वाली है और इस कड़ी में पहला नंबर लगा है चाइना से.

देश में भले ही इन दिनों चाइना के सामानों का विरोध हो रहा हो लेकिन इंडो-चाइनीज फिल्म के लिए दीपिका और प्रियंका रेस का हिस्सा बन चुकी हैं. खबर है कि ‘बैंग बैंग’ के निर्देशक सिद्धार्थ आनंद ने पिछले दिनों तीन फिल्मों के लिए एक इंडो-चाइनीज डील साइन की थी जिसके तरह हिंदी और मेंडरिन भाषा में एक फिल्म बनाई जायेगी. ये बीजिंग की एक रोमांटिक कहानी पर आधारित होगी जिसमें लीड रोल में चाइनीज स्टार डेंग चाओ होंगे.

सिद्धार्थ और उनके निर्माता ने ये संकेत भी दिए हैं कि इस फिल्म के लिए बॉलीवुड की ऐसी बड़ी स्टार को कॉस्ट किया जाएगा जिसका इंटरनेशनल स्तर पर रूतबा हो. दीपिका की विन डीजल के साथ ‘ट्रिपल एक्सः रिटर्न ऑफ एक्सेन्डर केज’ जल्द ही रिलीज होने वाली है जबकि प्रियंका चोपड़ा ने भी फिल्म ‘बेवॉच’ में अपने विलेन के रोल की शूटिंग पूरी कर ली है.

गौरतलब है कि सलमान खान भी इन दिनों चाइनीज कनेक्शन जोड़े हुए हैं. कबीर खान निर्देशित फिल्म ‘ट्यूबलाई’ की कहानी भी भारत चीन के 1962 युद्ध की कहानी है जिसमें सलमान के अपोजिट चीनी हीरोइन झू-झू काम कर रही हैं.

“पहले प्यार के लिए फिल्में बनाना छोड़ सकता हूं”

बॉलीवुड फिल्ममेकर शूजीत सरकार ने अपने पहले प्यार के बारे में खुलासा किया है. ‘विक्की डोनर’ और ‘पीकू’ जैसी फिल्में बनाने वाले शूजीत का कहना है कि वो अपने पहले प्यार के फिल्में बनाना भी छोड़ सकते हैं.

शूजीत सरकार का कहना है कि फुटबॉल उनका पहला प्यार रहा है. शूजीत का कहना है कि उन्हें फुटबाल खेलना इतना पसंद है कि यदि सरकार उन्हें सब्सिडी देने के लिए सहमत हो जाती है और खेल में हिस्सा लेने के लिए कहती है, तो वह फिल्म निर्माण का काम छोड़ देंगे.

शूजीत ने कहा, ‘मैं अचानक ही निर्देशन में आया हूं. यह मेरा पहला प्यार नहीं है. खेल मेरा पहला प्यार है. मैं यहां तक कि युवा फुटबॉल खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देता हूं. मैं अब भी फिल्म जगत से संबंधित नहीं. मैं कोलकाता में रहता हूं और काम के लिए मुंबई आया. मेरे पास करने के लिए कुछ नहीं था और इसलिए मैं फिल्म निर्माण के कार्य में आया. यदि सरकार मुझे सब्सिडी देकर फुटबाल खेलने के लिए कहती है, तो मैं निर्देशन का काम छोड़ दूंगा.’

शूजीत ने कहा कि जीवनभर फुटबॉल ही उनका पहला प्यार रहेगा और वह अब भी फिल्म निर्माण का कार्य सीख रहे हैं. शूजीत ने 18वें जियो मामी मुंबई अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में कहा, मैं एक आकस्मिक फिल्मकार हूं. मेरा फिल्मों के साथ कुछ लेना-देना नहीं था और यह मेरा पहला प्यार भी नहीं था. मेरा पहला प्यार खेल है. मैं फुटबॉल खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करता हूं और यह मेरा पहला प्यार है.

जब ATM से निकलें नकली नोट…

जब चेन्नई में एक व्यक्ति ने एटीएम से 27 नकली नोट निकाले तब एटीएम सिक्यॉरिटी पर फिर से लोगों और अधिकारियों का ध्यान जा रहा है. जिन ग्राहकों को एटीएम से नकली नोट मिलते हैं उनके लिए कोई ऐसी कानूनी सहायता मौजूद नहीं है क्योंकि यह साबित करना बहुत मुश्किल होता है कि नकली नोट कहां से आया है.

एक साइबर क्राइम अधिकारी ने बताया, ‘जब आपको किसी एटीएम से नकली नोट मिलता है तो आप उसका स्रोत नहीं साबित कर सकते. इसमें बैंक नेटवर्क की गलती है न कि ग्राहक की. बैंक कभी भी कस्टमर के दावे पर असली नोट नहीं देते. वास्तव में यह चिंता की बात क्योंकि महीनेभर में ही शहर में नकली नोटों का यह दूसरा मामला सामने आया है.’

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इसके लिए स्पष्ट गाइडलाइंस घोषित कर रखी हैं जिसके मुताबिक, बैंकों को जमाकर्ताओं से करेंसी लेते समय सावधानीपूर्वक जांच कर लेना चाहिए कि नोट नकली तो नहीं है. इसके साथ ही, बैंक को एटीएम में पैसा डालते समय दोबारा करेंसी की पूरी जांच करनी चाहिए.

आमतौर पर कोई बैंक एक शहरी एटीएम में 3-4 लाख जबकि अर्ध-शहरी इलाको में 1-2 लाख रुपये डालता है. हालांकि, भीड़भाड़ वाली जगहों पर बैंक एक दिन में 10 लाख रुपये तक डालते हैं. पुलिस ने ग्राहकों को सलाह दी है कि जिसे भी एटीएम से नकली नोट मिलें वह सीसीटीवी कैमरे के सामने नकली नोट को दिखाएं. अगर कैमरा काम नहीं कर रहा है तो हर एटीएम पर एक गार्ड भी रहता है. यह बेहतर होगा कि इसकी शिकायत तुरंत एटीएम पर ही की जाए क्योंकि एक बार एटीएम से बाहर आने के बाद यह साबित करना बहुत कठिन होगा कि वह नोट एटीएम मशीन से ही निकला है.

5 मिनट रैसिपीज: कुरकुरे आलू बौल्स

सामग्री:

2 उबले आलू, 1 प्याज कटा, 1 हरीमिर्च कटी, 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी, 2 बड़े चम्मच मैदे का घोल, 2-3 बड़े चम्मच पोहा/चिड़वा (हलका कुटा हुआ), नमक स्वादानुसार, तलने के लिए पर्याप्त तेल.

विधि:

उबले आलुओं को मैश करें. इस में नमक, प्याज, हरीमिर्च व धनियापत्ती मिला कर छोटी बौल्स तैयार करें. मैदे के घोल में बौल्स को लपेट कर पोहे (पोहे को हलका कूट लें) में लपेट कड़ाही में तेल गरम कर सुनहरा होने तक तल कर चटनी या सौस के साथ परोसें.

व्यंजन सहयोग:

अनुपमा गुप्ता

‘गोली और कल्चर का एक्सचेंज एक साथ नहीं’

फूल और कांटे’ फिल्म से अपने करियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता, निर्माता, निर्देशक अजय देवगन ने हर तरह की भूमिका निभाई. वे अपने गंभीर अभिनय के लिए जाने जाते हैं. पर उन्होंने कॉमेडी से लेकर रोमांटिक हर तरह की फिल्में की. ‘हम दिल दे चुके सनम’ उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट थी, जहां से उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. इसके बाद जो भी फिल्में उन्होंने की सभी हिट रहीं.

‘द लिजेंड ऑफ़ भगत सिंह’, ‘कंपनी’, ‘गंगाजल’, ‘राजनीति’, ‘सिंघम’ आदि सभी फिल्में सफल रही. जैसा वे अभिनय करते हैं वैसे ही वे दैनिक जीवन में भी हैं. हर काम को वह चुनौती समझते हैं, हर अभिनय उनके लिए नया होता है. काम के दौरान ही वह काजोल से मिले और एक समय ऐसा आया जब उन्हें लगा कि काजोल से अच्छी कोई जीवन साथी नहीं बन सकती. वह दो बच्चों के पिता हैं. अजय ‘कैमरा शाय’ हैं और केवल फिल्मों के प्रमोशन पर बात करते हैं. फिल्म ‘शिवाय’ के प्रमोशन पर उनसे बात हुई, पेश है अंश.

प्र. इस फिल्म की प्रोमो काफी अलग दिख रही है, इसकी वजह क्या है?

यह मैंने जान बूझकर किया है ताकि आप को फिल्म देखने की इच्छा हो, एक उत्सुकता बनी रहे. यह एक इमोशनल कहानी है, जो पिता और बेटी की है. जो आप फिल्म देखने के बाद ही पता कर सकते है.

प्र. आप ने कॉमेडी, सीरियस और इमोशनल फिल्में की है, कितना मुश्किल होता है सबको बैलेंस करना?

इसमें कॉमेडी, इमोशनल ड्रामा और एक्शन है. लोग जो फील करते हैं, उसे लेकर कहानी बनाई गई है. ‘दृश्यम’ मैंने नहीं बनायीं, उसमें एक्टिंग की थी, उसकी स्क्रिप्ट अच्छी थी. इसलिए मुझे अच्छी लगी थी. इस फिल्म में आज के ज़माने की बाप-बेटी की रियल इमोशन को इसमें दिखाने की कोशिश की है.

प्र. शिवाय नाम रखने की वजह क्या है?

यह कोई धार्मिक फिल्म नहीं, इसमें चरित्र का नाम शिवाय है. जो मजबूत है और आम इंसान की तरह है. जो अच्छा और बुरा कोई भी काम कर सकता है. यह एक साधारण इंसान का चरित्र है.

प्र. फिल्म में एक्शन दृश्यों को करना कितना ‘रिस्की’ होता है?

मैं हर दृश्य को सावधानी से समझकर करता हूं, ट्रेनर हमारे साथ होते हैं. इस फिल्म में मुझे कई बार चोट लगी है. इसमें कई ऐसे सीन्स भी हैं, जिसे पहले सबने करने से मना किया और कहा कि हमारे पास टेक्निशियन की कमी है. ये केवल हॉलीवुड में ही हो सकता है. लेकिन मैंने देखा कि यहां भी दिमाग है. आपको कम्फर्ट जोन से निकल कर पैशन के साथ इसे करना है. ऐसा ही हुआ, सारे दृश्य यहीं सही तरह से फिल्माये गये. मैंने कई बार एक्शन डिजाईन भी किया है पर हर फिल्म का एक एक्शन डायरेक्टर होता है.

प्र. इस फिल्म को विश्व में दिखाने के लिए कोई अलग रणनीति बनायीं है?

ये फिल्म पूरे विश्व में एक साथ रिलीज होगी. लेकिन इस बार कुछ नए देश भी इसे लेकर गए हैं जिसमें जर्मनी, बुल्गारिया,चाइना आदि सभी देश इसे देखना चाहते हैं कि भारत में ऐसी फिल्म कैसे बनी है.

प्र. रियल कहानी बहुत कम देखने को मिलती है, हर फिल्म किसी विदेशी फिल्म की कॉपी होती है, ऐसे में आपकी फिल्म कितनी अलग है?

कहानी का आईडिया सौ फिल्मों से होता है, स्क्रीनप्ले और इमोशन की बात होती है जो आप बनाते हैं. उसके लिए भी अनुभव जरुरी है कि किस तरह आप नए आईडिया को कहानी में बदलकर फिल्म बनाते हैं. इतना जरुर है इस फिल्म की कहानी आप किसी अंग्रेजी फिल्म में नहीं पा सकते.

प्र. फिल्म में इतने सारे विदेशी एक्टर लेने की वजह क्या थी?

यह स्क्रिप्ट की डिमांड थी और ये आपको फिल्म देखने के बाद पता चलेगी. यह परफोर्मेंस ओरिएंटेड फिल्म है. मुझे कोई शौक नहीं था कि विदेशी एक्टर जरुरत न पड़ने पर भी लूं. इसकी कास्टिंग में मुझे एक से डेढ़ साल लगा था.

प्र. आप प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, एक्टर और अब लेखक सब बन चुके हैं, कौन सा काम आपको मुश्किल लगता है?

सबसे अधिक मुश्किल निर्माता बनना लगता है, डायरेक्शन और एक्टर का काम मेरे लिए आसान है.

प्र. आप अपनी सफलता को कैसे देखते हैं?

मुझे लगता है कि अभी रास्ता बहुत लम्बा है. जिस दिन आपको लगा कि आप सफल हो गए हैं, उस दिन काम करने की भूख खत्म हो जाती है और आप अच्छा काम नहीं कर पाते.

प्र. आप के हिसाब से फिल्म के सफल होने में आलोचक की भूमिका कितनी बड़ी होती है?

आज हजारों में क्रिटिक है. हर कोई अपने आप को आलोचक कहने लगा है. बिना फिल्म को समझे कोई भी कुछ भी लिख देता है. ऐसे आलोचकों से परेशानी होती है. पत्रकारिता में ऐसा नहीं है कि आपने किसी बच्चे के हाथ में माइक दे दिया और उसकी जो मर्ज़ी वह कहे. आलोचक बनने के लिए समझ और अनुभव की आवश्यकता होती है. अगर कोई संस्था इस क्षेत्र में ट्रेनिंग के लिए हो तो बेहतर होगी. आज लोगो को बात करने का तरीका तक पता नहीं है, आधे से अधिक अपने आप को बड़ा सिद्द करने के लिए क्रिटिक बोल देते है. ऐसे में जो रियल क्रिटिक है उनका नाम ख़राब हो रहा है.

प्र. पाकिस्तानी कलाकारों को लेकर जो ये विवाद है इसमें क्या कहना चाहेंगे ?

मैंने कई पाकिस्तानी कलाकारों के साथ काम किया है. राहत फ़तेह अली खान ने मेरी कई फिल्मों के गाने भी गाएं हैं. लेकिन कई बार हालात ऐसे होती हैं, जहां कलाकार और कला की नहीं, बल्कि बात देश की होती है. देश की बात करें तो इतने सारे जवान मर रहे हैं, उनके परिवार क्या महसूस कर रहे हैं. ऐसे में उनकी संवेदना को समझना जरुरी है. आखिर वे देश की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं, अपनी जान गवां रहे है. मैं चाहता हूं कि ये जल्दी खत्म हो जाये ताकि आप फिर से काम कर सकें, लेकिन उस समय के लिए हमें देश के लिए खड़ा रहना चाहिए. गोलियों का  एक्सचेंज और कल्चरल एक्सचेंज एक साथ नहीं हो सकता.

अनचाहे बाल अब कल की बात

प्रस्तुत हैं, कुछ ऐसे उपाय जिन से बिना किसी परेशानी के आसानी से अनचाहे बालों को हटाया जा सकता है:

घरेलू उपचार से भी चेहरों के अनचाहे बाल हटाए जा सकते हैं. इस के लिए एक कटोरे में 1 अंडे का सफेद भाग ले कर उस में चीनी और कौर्नफ्लोर डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर इसे चेहरे और गरदन पर लगा कर 15 मिनट मसाज करने के बाद 5 मिनट ऐसे ही छोड़ दें. बाद में चेहरे को ठंडे पानी से धो लें. ऐसा हफ्ते में 2-3 बार करें. बाल हट जाएंगे.

– चीनी डैड स्किन को तो हटाती ही है, चेहरे के बालों को भी जड़ से निकाल देती है. अत: अपने चेहरे को पानी से गीला कर उस पर चीनी लगा कर हलके हाथों से रगड़ें. ऐसा हफ्ते में 2 बार जरूर करें.

– हल्दी पाउडर में नमक, कुछ बूंदें नीबू का रस और थोड़ा दूध डाल कर अच्छी तरह मिला कर उस से चेहरे की 5 मिनट तक मसाज करें.

– बेसन में हलदी और दही डाल कर मिलाएं और फिर चेहरे पर 20 मिनट लगाए रखें. बाद में दूध और ठंडे पानी से धो लें. ऐसा हफ्ते में 2 बार करें.

– बेसन में हलदी और सरसों का तेल डाल कर गाढ़ा पेस्ट बनाएं. फिर इसे चेहरे पर लगा कर रगड़ें. ऐसा करने से अनचाहे बाल हट जाएंगे और चेहरा साफ हो जाएगा.

उपाय पैरों के बाल हटाने के

– वैक्स त्वचा के अनचाहे हार्ड बालों को निकालने का कारगर तरीका है. इस से बालों को जड़ से निकाला जा सकता है. हालांकि इस में हलका सा दर्द होता है, परंतु इस तरीके से काफी दिनों तक त्वचा पर बाल नहीं आते हैं.

हेयर रिमूवल क्रीम

आजकल बाजार में तरह-तरह की हेयररिमूवर क्रीमें आसानी से उपलब्ध हैं, जिन से कुछ ही मिनटों में अनचाहे बालों से छुटकारा पा सकती हैं. क्रीम से त्वचा को न तो कोई नुकसान पहुंचता है और न ही दर्द होता है. त्वचा सौफ्टसौफ्ट, खिलीखिली रहती है.   

फोटोग्राफी: शौक वही अंदाज नया

मेरी सखी परी ने फोटोग्राफी का व्यवसाय शुरू किया तो मैं ने उस से मिलने का मन बनाया. उस के द्वारा खींचे गए फोटो फेसबुक पर देख कर मैं दंग रह जाती थी. किसी भी फोटो के बैकग्राउंड में वह ऐसे रंग भर देती थी जैसे किसी पेंटर ने अपनी पसंद के रंगों से उसे संवार दिया हो. फोटो में व्यक्ति के मन के भाव उस के चेहरे पर जीवंत और स्पष्ट दिखाई देते थे. उस के द्वारा खींचे गए दृश्य किसी स्वप्नलोक से कम नहीं लगते थे. उस की तसवीरों में विविधता देखते ही बनती थी.

स्कूल में भी वह अपनी रचनात्मकता के लिए जानी जाती थी. 12वीं कक्षा में कला की अध्यापिका ने छात्राओं को चित्र काट कर कोलाज की फाइल बनाने को कहा, तो उस में वह प्रथम आई थी और उस फाइल को स्कूल के द्वारा आयोजित प्रदर्शनी में भी दर्शकों के लिए दर्शनीय वस्तुओं का हिस्सा बनाया गया था. उस की वही कलात्मकता आज उस की फोटोग्राफी में झलकती है.

मिलने की ख्वाहिश

मैं ने सोचा, उस से मिल कर मैं भी क्यों न अपने परिवार के फोटो खिंचवा कर अपनी बचपन की सखी का लाभ उठाऊं. इसी बहाने उस के घर जाना भी हो जाएगा. दिल्ली पहुंच कर मैं ने परी से फोन कर के कहा कि मैं उस से मिलने आ रही हूं, तो वह खुशी से बोली, ‘‘वाह, मेरी सखी मुझ से मिलने आ रही है, आखिर मुझ से मिलने का टाइम मिल ही गया.’’

‘‘अब तुम इतनी मशहूर फोटोग्राफर बन गई हो तो. तुम्हारे पास टाइम कहां होगा. मुझ से मिलने आने के लिए? इसलिए मैं ने सोचा कि मैं ही तुम्हारे पास चली आती हूं. तेरी क्रिएटिविटी तो तेरे पास आ कर, तेरा स्टूडियो देख कर ही जान पाऊंगी न. तुझे पता है बचपन से ही मैं तेरी आर्ट की फैन हूं,’’ मैं ने कहा.

मेरी बात सुन कर वह बोली, ‘‘तो यों बोलो कि अपने मतलब के लिए आ रही हो. चलो, कोई बहाना तो मिला मुझ से मिलने का वरना तो अभी तक न मिलने के बहाने ही सुनने को मिलते रहे हैं.’’

उस के प्रतिवाद पर मैं खिलखिला कर हंस पड़ी. उस से उस का पता पूछा तो उस ने मैट्रो से आने की सलाह दी, जो नोएडा में ठीक उस के घर के पास पहुंचाती थी.

जैसे बोल पड़ेगी तसवीर

शाम के समय मैं उस के घर पहुंच गई. साथ में मेरे दोनों बच्चे और पति भी थे. वह अपनी बालकनी में खड़ी हो कर मेरा इंतजार करती दिखाई पड़ गई. वह एक अपार्टमैंट में 2 बैडरूम वाला फ्लैट था. ड्राइंगरूम में घुसते ही नजर तसवीरों पर टिक गई. चारों ओर, कहीं पर अपने परिवार के सदस्यों की आदमकद तसवीरें, कहीं कोलाज और कहीं छोटे फ्रेम में तसवीरें देख कर मुझे अद्भुत अनुभूति हुई. कुछ तसवीरों पर तो आंखें जम सी गईं. पहचानते हुए मैं ने कहा, ‘‘आंटीअंकल हैं न और वह तुम्हारी बहन?’’ तीनों ही अब इस दुनिया में नहीं थे. लेकिन उन की जीवंत तसवीरें उन के होने का एहसास करा रही थीं जैसे वे हमारे साथ हैं. मैं सोच में पड़ गई कि पहले हम अपने प्रियजनों की मृत्यु के बाद उन की तसवीरें इसलिए सामने नहीं रखते थे कि उन्हें देख कर उन की याद हमेशा हमारे मानसपटल पर रहेगी और हम उन को याद कर के उदास रहेंगे, लेकिन…

करीब होने का एहसास

उस ने मेरी सोच पर विराम लगाते हुए कहा, ‘‘तू जो सोच रही है, मैं समझ रही हूं. पहले मैं ने भी सोचा था कि इन के फोटो न लगाऊं, लेकिन फिर मुझे लगा कि ये ही तो मेरी कला के प्रेरणास्रोत हैं. इन की तसवीरें न होने से तो मेरी कला अधूरी ही रहेगी. इन के आशीर्वाद से ही तो मैं इन का सपना पूरा कर पाऊंगी और यह तभी संभव है, जब ये मुझे हर समय दिखाई देते रहेंगे. तुम सच मानो मुझे लगता ही नहीं कि ये मेरे साथ नहीं हैं. इन की उपस्थिति मैं हर समय महसूस करती हूं. मेरे दोनों बच्चे बाहर पढ़ रहे हैं. इन की तसवीरें लगाने से मुझे इन की कमी नहीं खलती, जब मैं यहां बैठती हूं तो लगता है जैसे मेरे साथ हैं और तो और बच्चों को भी अपनी तसवीरें देख कर लगता है जैसेकि वे इस घर के लिए खास हैं और उन के अंदर आत्मविश्वास पैदा होता है. बाजार से बनावटी तसवीरें खरीद कर लगाने से मकान सुंदर तो लगता है, लेकिन वह अपने घर की अनुभूति नहीं देता. इस का सुखद एहसास तो अपनी दीवारों को सजाने के बाद ही मुझे अनुभव हुआ है.’’

अलग फोटोग्राफी

बैडरूम में उस ने तरहतरह के दृश्य खींच कर लगा रखे थे, जिन से अतिरिक्त ऊर्जा और आंखों को ठंडक मिल रही थी. सभी कमरों की दीवारें बड़े करीने से सजा रखी थीं. मैं यह सब देख कर उस से बहुत प्रभावित हुई और बोली, ‘‘फोटो खींच कर ऐडिट तो कोई भी फोटोग्राफर कर लेगा, लेकिन फोटो का कलात्मकता से इस्तेमाल करना तो कोई मेरी सखी से सीखे. यही गुण तो तुझे अन्य फोटोग्राफरों से अलग करता है.’’

इस बीच बात करतेकरते परी ने चाय बनाई, मैं ने चाय पीतेपीते उस से कहा, ‘‘मैं ने तो यह सब तुझ से जाना है. सच में पहले फोटो खिंचवा कर अलबम में चिपका कर अलमारी में रख कर भूल जाते थे, कुछेक फ्रेम में जड़ कर कमरे की दीवार पर टांग दिए जाते थे या कौर्नर टेबल पर शो पीस की तरह शोभायमान होते थे, लेकिन…’’

परी ने मेरी बात काट कर कहा, ‘‘पहले जमाने में फोटोग्राफी कठिन और खर्चीला शौक भी तो माना जाता था, जो साधारण लोगों की पहुंच से दूर था. उस समय कैमरे से ही फोटो खींच सकते थे. इस के लिए उस में रील डालो, फिर फोटो खींच कर स्टूडियो में धुलवा कर प्रिंट बनवाओ. यदि फोटोग्राफर को बुलाना पड़े तो और भी महंगा पड़ता था.

सैल्फी की दीवानी दुनिया

‘‘आजकल फोटो खींचने के लिए तो हमारे मोबाइल का कैमरा ही पर्याप्त है, जोकि हर समय हमारे साथ रहता है अर्थात फोटोग्राफी पहले के मुकाबले सस्ती, सुंदर और टिकाऊ है, समय की बरबादी भी नहीं होती और तो और अपना फोटो भी हम स्वयं खींच सकते हैं, जो सैल्फी के नाम से प्रचलित है. कहीं घूमने जाते समय हम फोटो खिंचवाने के चक्कर में अपने व्यक्तित्व को भी संवारे रखने का ध्यान रखते हैं.

‘‘कुल मिला कर इस ने हमारे सारे

अस्तित्व को ही संवार दिया है. लेकिन अति हर चीज की बुरी होती है. फोटो खींचने में हमारा पूरा ध्यान कैमरे में होता है और जिस दृश्य का हम फोटो खींच रहे हैं, उस का आनंद उठा ही नहीं पाते दूसरा इस कार्यकलाप के दौरान ध्यानमग्न होने के कारण बहुत बार दुर्घटनाएं भी होते देखी गई हैं.

फोटोग्राफी में क्रांति

‘‘पहले फोटो ब्लैक ऐंड व्हाइट होते थे, ऐडीटिंग नाम मात्र की होती थी. कोई फोटोग्राफर से कहता कि उस का फोटो अच्छा नहीं आया तो वह हंस कर जवाब देता कि जैसा चेहरा होगा वैसा ही तो आएगा. लेकिन अब नई टैक्नोलौजी द्वारा डिजिटल कैमरे के आविष्कार के कारण फोटोग्राफी में क्रांति सी आ गई है. कैमरे में न तो रील डालने का न ही फोटो धुलवाने का झंझट है. फोटो खींचते ही हम उसे देख सकते हैं. रंगीन तसवीरों ने हमारा जीवन भी रंगों से भर दिया है. ऐडीटिंग के मामले में तो तहलका ही मचा दिया है. पहले जमाने में युवतियों के लिए रूपवती होना, रुपहले परदे की मलिका बनने के लिए पहली सीढ़ी होती थी, लेकिन अब इस के विपरीत आधुनिक फोटोग्राफी के कारण यह आवश्यक नहीं है. रील व्यक्तित्व में और रीयल व्यक्तित्व में कोई सामंजस्य ही नहीं दिखाई पड़ता. लेकिन यदि हम अपनेआप फोटो खींच कर प्रिंटआउट लेते हैं तो जानकारी न होने के कारण उतनी अच्छी ऐडीटिंग नहीं हो पाएगी. उस के लिए मेरे जैसे होशियार बंदे के पास आना ही पड़ेगा,’’ कंधे उचका कर परी ने आखिरी पंक्ति कही तो मैं खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘बिलकुल ठीक कह रही है तू, पहले और अब की फोटोग्राफी में बहुत अंतर आ गया है. अब तू ऐसा कर मेरे परिवार के भी फोटो खींच ताकि मैं भी अपने घर की दीवारों को जीवंत बना सकूं. अपने साथ भी हमारे फोटो ले ताकि हमारा यह मिलना यादगार बन जाए. और हां, मुझ से कंसेशनल चार्ज लेना.’’

‘‘तू मुझ से मार खाएगी,’’ उस के इतना बोलने पर मैं खिलखिला कर हंस पड़ी.

इस डर से बाहर निकलें

औरतें अकसर सफर में अपने आसपास बैठी दूसरी औरतों से बातचीत शुरू कर देती हैं और यात्रा के कई घंटों में सैकड़ों तरह की जानकारी का लेनदेन हो जाता है. हालांकि इस तरह की बातचीत में कई बार लुट जाने का डर भी रहता है पर यह अच्छा ही है और पुरुषों को भी सलाह दी जाती है कि वे नितांत अजनबियों से बातचीत करने में कतराए नहीं.

अमेरिकी लेखिका कियो स्टार्क ने ‘ह्वेन स्ट्रैंजर्स मीट’ में यह वकालत की है कि अमेरिकी, जो आमतौर पर अनजानों से बात नहीं करते हैं, गलत करते हैं. लेखिका का कहना है कि दोस्तों, सहकर्मियों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों से बात करते हुए हमारे बहुत से पूर्वाग्रह रहते हैं और इसीलिए हम सहज हो कर बात नहीं करते पर थोड़े समय के लिए मिलने वाले अजनबियों से कुछ भी बात कर लेने में कोई जोखिम नहीं रहता है.

कियो स्टार्क का यह भी कहना है कि अजनबियों से बात कर के आप उन के धर्म, क्षेत्र, भाषा, जाति, वर्ग, नागरिकता के बारे में अपने बहुत से पूर्वाग्रहों और डरों को भी दूर कर सकते हैं. समाज के लिए यह अच्छा है कि लोग उन से बात करें जिन के बारे में उन्हें कोई डर लगता है. सहज वातावरण में निरुद्देश्य बात से बहुत से डर दूर हो सकते हैं.

आदमियों में यह प्रवृत्ति रहती है कि वे घंटों रेल या हवाई यात्रा के दौरान पास बैठे व्यक्ति से बात न कर के कुछ पढ़ने या सोने का अभिनय करते रहते हैं. एकदूसरे को समझने और एकदूसरे की स्थिति के बारे में जानने के लिए अनायास मिलने वाले लोग बहुत लाभदायक होते हैं, क्योंकि वे अपना असली परिचय दिए बिना अपने बारे में बहुत कुछ बता ही नहीं देते, अपने विचार भी खुल कर कह सकते हैं.

आजकल पूरी दुनिया में लोग पड़ोसियों तक को शक की निगाहों से देखने लगे हैं और ज्यादातर इधरउधर के आदमियों से बातचीत को अपनी प्राइवेसी में खलल मान लेते हैं. इस लेखिका ने इस का विरोध किया है. उस का कहना है कि अनजाने, दूसरे देशों, रंग, धर्म या भाषा वालों को समझने के लिए चलतेफिरते छोटीमोटी बातें करना ज्यादा अच्छा है.

इसलिए अगली बार रेल या हवाई यात्रा करें तो पास वाला पुरुष ही क्यों न हो महिला होते हुए भी बात करना शुरू कर दें. सफर भी आराम से कटेगा और बहुत कुछ जाननेसमझने को भी मिलेगा. लोग अलगअलग तरह के होते ही हैं, यह स्वीकारना आसान रहेगा.      

शाहिद से शादी के बाद मीरा को है ये शिकायत

शाहिद कपूर का कहना है कि उनकी पत्नी मीरा राजपूत को बाहर जाना, घूमना-फिरना बहुत पसंद है, मगर अब वो पहले की तरह नहीं जा सकतीं क्योंकि लोग उन्हें पहचानने लगे हैं. शाहिद और मीरा ने पिछले साल जून में शादी की थी और हाल ही में दोनों एक बेटी के माता-पिता भी बन गए.

शाहिद के मुताबिक, मीरा उन्हें वास्तविकता के और करीब ले आई हैं, जो कि शादी से पहले मिसिंग थी. शाहिद का कहना है, ‘बहुत सी ऐसी चीजें हैं जो मीरा मुझे बताती है. यह इतनी सामान्य सी चीजे हैं जिससे मैं अब भी जुड़ा हुआ महसूस करता हूं जैसा कि पहले था.’

शाहिद ने यह भी बताया कि मीरा को आउटडोर पसंद है, मगर अब वो शिकायत करती है ‘अब लोग मुझे पहचानते हैं, मुझे अच्छा नहीं लगता.’ आपको बता दें कि शाहिद मुंबई में आयोजित मामी फिल्म फेस्टिवल में बोल रहे थे. इस दौरान उन्होंने अपनी पत्नी को लेकर इतनी सारी खट्टी-मीठी बातें शेयर की.

शाहिद ने यह भी बताया कि स्क्रिप्ट को लेकर वो मीरा से सुझाव भी लेते हैं. उनके मुताबिक, मीरा उनसे 13 साल छोटी हैं, मगर वो दर्शकों की समझ के बारे में उन्हें समझाती है.

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