जीवन में बिना संघर्ष के कुछ हासिल नहीं होता और कठिन परिश्रम के बाद जो मिलता है उस की खुशी बयां करना मुश्किल होता है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है महिला उद्यमी रेवथी राय ने, जिन्होंने अपने पति के अचानक गुजर जाने के बाद 3 बेटों की परवरिश की. बेहद शांत स्वभाव की रेवथी की शुरू से व्यवसाय करने की इच्छा थी. लेकिन ऐसी स्थिति से गुजर कर उन्हें व्यवसाय में आना पड़ेगा, ऐसी कल्पना नहीं थी. उन्होंने 2007 में ‘फौर शी’ के नाम से टैक्सी सर्विस शुरू की थी, जहां 1000 से अधिक महिलाओं ने टैक्सी ड्राइविंग सीख कर इसे अपना प्रोफैशन बनाया. 2007 से ही उन का यह प्रयास उन महिलाओं के लिए अधिक कारगर सिद्ध हुआ जिन्हें अपने परिवार के लिए कुछ कमाना था ताकि वे अपने बच्चों का भविष्य संवार सकें.
रेवथी ने महिलाओं को गरीबी रेखा से ऊपर उठा कर इतना आत्मनिर्भर बना दिया कि वे महीने में कम से कम 10 हजार कमा सकें. आज भी उसी दिशा में कार्यरत हैं. जफ्फिरो लर्निंग लिमिटेड की शाखा ‘हे दीदी’ आज मुंबई में कार्यरत है. पेश हैं, उन से हुई मुलाकात के कुछ अंश:
अपने बारे में बताएं?
मैं ने अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री ली है. मैं एक ‘रैली ड्राइवर’ हूं. करीब 75 रैलियों में भाग ले चुकी हूं. 70 रैलियां जीत चुकी हूं. शुरू से उद्यमी बनना चाहती थी, मेरे पति भी सौफ्टवेयर व्यवसाय से जुड़े थे. उन की अचानक मृत्यु ने मुझे ‘कार ड्राइविंग’ के प्रोफैशन में जाने को मजबूर किया. पति हार्टअटैक के बाद ढाई साल तक ‘कोमा’ में रहे. उन की देखभाल करतेकरते पूरी जमापूंजी खत्म हो गई.
उन के व्यवसाय को बेच कर पूरा पैसा उन पर और घर खर्च पर लगा दिया. इस से मेरी वित्तीय स्थिति खराब हो गई. पहले तीनों बच्चे छोटे थे, लेकिन धीरेधीरे उन के बड़े होने की वजह से उन की जरूरतें भी बढ़ने लगी थीं. मैं कई जगह काम के लिए गई पर काम नहीं मिला. तीनों बच्चों को बड़ा करना था. मैं कार ड्राइविंग का काम जानती थी, इसलिए उसे करने लगी. 10 महीने तक उसे करने के बाद अपनी कंपनी ‘फौर शी’ 2007 में शुरू कर अपना घर चलाया.
2010 में ‘वीरा कैब्स’ की स्थापना की. ऐसा मैं ने अपने पैसे को बढ़ाने के लिए किया. इस में भी मैं ने लड़कियों को ड्राइविंग सिखाई. यह सेवा अधिकतर बुजुर्गों और लड़कियों के लिए शुरू की थी. अपनी ऐसी स्थिति के बाद उस समय मुझे यह समझ में आया कि एक महिला का सक्षम होना कितना जरूरी है. इतना पढ़लिख कर भी मुझे कोई जौब नहीं मिली. ऐसे में जो कम पढ़ीलिखी हैं, उन्हें अगर जीवन में कोई समस्या आए तो वे क्या करेंगी. लड़कियों को सक्षम बनाना मेरा पैशन बन गया. हर महिला का वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर होना आवश्यक है. अभी मेरी कंपनी ‘जफ्फिरो लर्निंग प्राइवेट लिमिटेड’ की एक शाखा ‘हे दीदी’ है, जो टू व्हीलर चलाना सिखाने का काम करती है.
आप ने ‘ड्राइविंग’ क्षेत्र को ही क्यों अपनाया कोई और व्यवसाय क्यों नहीं?
इस के पीछे एक कहानी है. मुझे ड्राइविंग का शौक था. पहले जब पति थे, तो मैं लेट नाइट पार्टी के बाद ड्रिंक की हुई अपनी सहेलियों को घर छोड़ती थी. तभी एक दिन मेरी एक सहेली से कुछ कहासुनी हुई तो मैं ने कहा कि आप लोगों को घर छोड़ने के बजाय क्यों न मैं एक ‘टैक्सी सर्विस’ शुरू करूं ताकि आप कुछ पैसे खर्च करो और सुरक्षित घर पहुंचो. साथ ही, मुझे भी कुछ पैसा मिलेगा. आप मेरी मेहनत को याद नहीं रखतीं, क्योंकि अगली सुबह आप सब भूल जाती हैं कि किस ने आप को घर छोड़ा. तब मैं ने उन से ऐसे ही कहा था, लेकिन यही मेरा व्यवसाय बनेगा, सोचा नहीं था. जब कोई काम नहीं मिल रहा था तो मेरे एक फैमिली फ्रैंड ने ही ड्राइविंग का काम शुरू करने की सलाह दी. मुझे सलाह सही लगी और मैं ने यह व्यवसाय शुरू कर दिया. लेकिन इस के लिए गाड़ी, ड्राइवर सब कुछ चाहिए था. इसलिए मैं ने पहले खुद टैक्सी ड्राइवर बन कर 10 महीने टैक्सी चलाई. कुछ पैसे कमा कर ‘फौर शी’ कंपनी खोली और लड़कियों को ट्रेनिंग देने लगी.
उस दौरान मेरे पास 100 से भी अधिक टैक्सियां थीं. अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए उन्हें बेच कर मैं ने ‘वीरा कैब्स’ कंपनी 2010 में शुरू की. उस में भी काफी लड़कियों ने प्रशिक्षण लिया. लेकिन इसे भी बेचना पड़ा, क्योंकि ट्रांसपोर्ट ड्राइविंग लाइसैंस की समस्या आ गई थी. फिर मैं ने 1 साल पहले ‘हे दीदी’ की स्थापना की. इस में मैं ‘टू व्हीलर’ चलाना सिखाने का काम कर रही हूं.
ट्रांसपोर्ट लाइसैंस की समस्या क्या थी?
किसी को भी प्राइवेट गाड़ी चलाने का लाइसैंस मिलना आसान होता है, पर यलो प्लेट वाली गाड़ी चलाने के लिए ‘ट्रांसपोर्ट लाइसैंस’ का मिलना बहुत मुश्किल होता है. मैं ने तब सरकार से अपील की थी कि हमारी लड़कियों को अलग सुविधा दी जाए. सरकार ने मेरी बात मान कर ट्रांसपोर्ट लाइसैंस मिलने की अवधि 1 साल के बजाय 1 महीना कर दी, जिस में नौनट्रांसपोर्ट लाइसैंस के 1 महीने बाद उन्हें ट्रांसपोर्ट लाइसैंस मिलता था. वह मार्च 2015 तक लागू था. लेकिन अभी फिर वह नियम 1 साल का हो गया है. इस तरह गाड़ी चलाना सीखने के 15 महीने बाद उन्हें लाइसैंस मिलेगा.
ये लड़कियां बहुत गरीब घरों से होती हैं. इन्हें कुछ सीख कर कमाना है. फिर मैं ने सोचा ये लड़कियां करेंगी क्या? गाड़ी चलाना सीखने से ले कर लाइसैंस मिलने तक मैं उन से क्या करवाऊंगी? उन्हें सैलरी भी देनी पड़ेगी. कैसे ये सब हो पाएगा? इसलिए मैं ने टू व्हीलर्स चलाना सिखाने की प्लानिंग की. आजकल ‘इ कौमर्स’ का जमाना है. सब लोग औनलाइन शौपिंग करते हैं. अभी डिलिवरी लड़के करते हैं. ऐसे में अगर लड़कियां इस प्रोफैशन में आएं तो और अधिक अच्छा रहेगा. फिर मैं ने उन्हें इस की ट्रेनिंग देनी शुरू की. ये लड़कियां सभी रेस्तराओं और होटलों से जुड़ी होती हैं. अभी मैं ने ‘सबवे’ के साथ टाई अप किया है.
लड़कियों को ड्राइविंग सीखने के लिए राजी करना कितना मुश्किल था?
शुरूशुरू में यह काम करना कठिन था. लड़कियों को राजी करने के लिए मैं खुद झोंपड़पट्टी में जाती थी. उन्हें समझा कर ले आती थी. फंडिंग की समस्या प्रमुख थी. लेकिन थोड़ाथोड़ा पैसा लगा कर आगे बढ़ी. कई जगह तो उन के परिवार वाले भी राजी नहीं होते. फिर लड़कियों का गाड़ी चलाना, इस में थोड़ा रिस्क भी होता है, लेकिन इस काम में पूरी टीम होती है, जो सामाजिक कार्य करती है. वे उन जगहों पर जाती हैं जहां लड़कियां कम पढ़ीलिखी हैं, मगर कुछ करना चाहती हैं. आंगनबाड़ी, चाल आदि सभी जगहों पर वे जा कर कम्युनिटी डैवलपमैंट का काम करती हैं. फिर वे राजी होती हैं. इस काम में मुसलिम लड़कियां प्रमुखता से भाग लेती हैं. यहां हर आयु और वर्ग की लड़कियां हैं. साधारणतया लोग ट्रेनिंग देते हैं पर उन्हें काम नहीं दे पाते. यहां दोनों सुविधाएं हैं. मंच भी उन्हें मिलता है. सिखाने का खर्चा 10 हजार है पर मैं उन से केवल 1,500 लेती हूं. बाकी सरकार से मिलता है, क्योंकि ‘स्किल डैवलपमैंट’ में बहुत पैसा है और वे देने के लिए राजी होते हैं. 45 दिन में एक लड़की पूरी तरह ड्राइविंग सीख जाती है.
अभी जो लाइसैंस लड़कियां ले रही हैं, यह ‘टू व्हीलर’ के साथसाथ ‘4 व्हीलर’ का भी है जो 1 साल बाद ट्रांसपोर्ट लाइसैंस में बदल जाएगा. अभी मैं ‘टू व्हीलर’ का काम कर रही हूं आगे ‘थ्री व्हीलर’ और ‘फोर व्हीलर’ का काम भी
शुरू करूंगी, क्योंकि एक तो लड़कियां ड्राइविंग अच्छा करती हैं. साथ ही बड़ेबुजुर्ग और महिलाएं भी अपनेआप को सुरक्षित महसूस करते हैं. इस काम में महिलाएं 7,500 रुपए कम से कम कमाती हैं. इस के अलावा अगर वे निर्धारित राउंड से अधिक डिलिवरी करती हैं तो उस का पैसा अलग से मिलता है. इस तरह वे आसानी से करीब 10-11 हजार तक कमा लेती हैं.
महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में आप किस तरह पहल कर रही हैं?
इस काम में महिलाएं केवल कमाएंगी ही नहीं, बल्कि अगले 3 सालों में उस ‘टू व्हीलर’ की ओनर भी बनेंगी, क्योंकि यहां जो भी लड़कियां ड्राइविंग सीखती हैं उन्हें ‘टू व्हीलर’ खुद अपने कमाए पैसे से खरीदना पड़ता है. प्रशिक्षित महिलाओं को स्कूटर खरीदने के लिए वित्तीय सहायता भी मैं बैंक से दिलवाती हूं ताकि कुछ सालों बाद स्कूटर उन के खुद के हो जाएं. ये उन की संपत्ति बन जाते हैं. हर महीने लोन का भुगतान भी कम होता है, जो उन्हें कंपनी की तरफ से मिलने वाली सैलरी से जाता है. टू व्हीलर गर्ल्स की बहुत मांग है. अगर मैं महीने में 10 हजार लड़कियां भी तैयार करूं तो भी कम ही होंगी. इस साल के अंत तक मैं 10 हजार लड़कियां भी तैयार करूं तो भी कम ही होंगी.
इस साल के अंत तक मैं 10 हजार लड़कियों को तैयार करना चाहती हूं. मुंबई के अलावा बैंगलुरु में भी इस का काम चल रहा है. अभी तक 200 लड़कियों ने काम शुरू कर दिया है.
गृहशोभा के जरीए क्या संदेश देना चाहती हैं?
मैं उन सभी महिलाओं से कहना चाहती हूं कि अगर उन की कुछ कमाने की इच्छा है तो वे मेरे साथ जुड़ सकती हैं, साथ ही कालेज जाने वाली लड़कियां, जिन्हें पढ़ाई के साथसाथ कुछ सीखने की भी इच्छा है वे भी इस में आ सकती हैं. इस के अलावा जो लड़कियां नाइट कालेज में जाती हैं, उन के लिए इस तरह का अवसर खास फायदेमंद होता है. इस में आप एक स्कूटर की मालिक होने के साथसाथ पैसा भी कमा सकती हैं.