निर्माताओं को निहलानी की सलाह

‘केंद्रीय फिल्म प्रमाण बोर्ड’ के चेअरमैन पहलाज निहलानी ने कुछ फिल्म ट्रेंड पत्रिकाओं में अपनी तरफ से निर्माताओं के नाम एक अपील छपवायी है. इस अपील में पहलाज निहलानी ने नोट बंदी की वजह से पैदा हुए हालात के सामान्य होने तक ‘डिअर जिंदगी’, ‘कहानी 2’, ‘बेफिक्रे’ और ‘दंगल’ फिल्म के निर्माताओँ से अपील की है कि वह अपनी अपनी फिल्मों के प्रदर्शन को स्थगित कर समय का इंतजार करें.

पहलाज निहलानी ने अपनी इस अपील में लिखा है कि “नोट बंदी की वजह से दस नवंबर से थिएटरों में दर्षक नहीं पहुंच रहे हैं. मल्टीप्लैक्स के लिए दर्षक ऑनलाइन टिकट खरीद रहा है. पर हर सिनेमा घर में ऑनलाइन टिकट खरीदने की सुविधा नहीं है. जिसके चलते मटीप्लैक्स में 20 से तीस प्रतिशत लोग ही टिकट खरीद पा रहे हैं. जबकि सिंगल थिएटर में टिकट तो नगद पैसे से ही खरीदे जा सकते हैं, जिसके चलते सिंगल थिएटरो में टिकट सबसे कम बिक रहे हैं. लोग अभी अपने पुराने नोटों के बदलवाने में व्यस्त हैं. इसलिए मैं निर्माताओं से कहना चाहूंगा कि उन्हें कुछ समय इंतजार करना चाहिए और जब बाजार में नगदी के हालात सुधर जाएं, तब वह अपनी फिल्म के प्रदर्शन की तारीखें तय करें.”

अब कौन सा फिल्म निर्माता ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’ के चेअरमैन पहलाज निहलानी की इस अपील पर क्या कदम उठाएगा, यह तो वक्त ही बताएगा.

घर से ऐसे भगायें मच्छर

बरसात भले जा चुकी है पर बरसाती मच्छर हैं कि जाने का नाम ही नहीं ले रहे. अगर आप भी मच्छरों से परेशान हैं तो चलिए मच्छरों को भगाने के कुछ ऐसे तरीके बताते हैं जिन पर ज्यादा खर्च भी नहीं करना पड़ेगा और मच्छर भी भाग जाएंगे       

– सरसों के तेल में अजवायन पाउडर मिला कर इस से गत्ते के टुकड़ों को तर कर लें. अब इन टुकड़ों को कमरे में ऊंचाई पर रखें. मच्छर भाग जाएंगे. तेल में तरबतर टुकड़ों को प्लेट में रखना न भूलें वरना चींटियों के आने का अंदेशा रहता है.

– मोस्कीटो रिपेलैंट में लिक्विड खत्म हो जाए तो उस में नींबू का रस और नीलगिरी का तेल भर कर जलाएं. इसे आप हाथ और पैरों पर भी लगा सकते हैं.

– नींबू के 2 टुकड़े कर लें. अब आधे टुकड़े में 10-12 लौंग फंसा कर प्लेट में रखें. मच्छर भाग जाएंगे.

– एक लैंप में थोड़ा सा मिट्टी का तेल डालें. फिर उस में कुछ बूंदें नीम के तेल की डालें. इस में आधी टिकिया कपूर की मिला दें. फिर लैंप को जला दें. मच्छर भाग जाएंगे.

– घर में तुलसी का पौधा मच्छरों को भगाने में मदद करता है.

बदलेगा ‘ट्यूबलाइट’ का क्लाइमेक्स?

फिल्मकार कबीर खान चाहे जितने दावे करें और सफाई देते रहे, मगर कबीर खान और सलमान खान के बीच बढ़ती दूरियां साफ नजर आने लगी है.

सूत्रों की मानें तो सलमान खान की कबीर खान से बिलकुल नहीं पट रही है. कबीर खान व सलमान खान के बीच पैदा हुई दूरी के ही चलते सलमान खान ने कबीर खान के निर्देशन में करीबन चार फिल्में करने से इंकार कर दिया.

इतना ही नहीं इसी वजह से फिल्म ‘ट्यूबलाइट’ की शूटिंग भी बीच में रूक गयी थी. ‘ट्यूबलाइट’ की शूटिंग फिर से शुरू हुई है, तो सलमान खान ने फिल्म के निर्देशक कबीर खान से साफ साफ कहा है कि उन्होंने इस फिल्म का क्लाइमेक्स जो फिल्माया है, उसे बदलकर नया क्लाइमेक्स फिर से फिल्माएं.

इतना ही नहीं सलमान खान क्लाइमेक्स को फिल्माने के लिए पुनः मनाली जाने की बजाय चाहते हैं कि मुंबई में ही सेट बनाकर मनाली को गढ़ा जाए. मजेदार बात यह है कि फिल्म के निर्माता खुद सलमान खान हैं. सूत्रों का दावा है कि सलमान खान के नजदीकी लोग सलमान खान को समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि मुंबई में मनाली का माहौल नहीं रचा जा सकता, पर फिलहाल सलमान खान अपनी जिद पर अड़े हुए हैं.

सलमान खान एक तरफ ‘ट्यूबलाइट’ का क्लाइमेक्स पुनः फिल्माना चाहते हैं, जबकि वह एक साथ कई फिल्मों की शूटिंग के लिए हामी भर चुके हैं. एक तरफ उन्हें ‘यशराज फिल्मस’ की अली अब्बास जफर के निर्देशन में बन रही फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’ की शूटिंग कटरीना कैफ के साथ करनी है, तो दूसरी तरफ उन्हें अपनी बहन अल्वीरा की फिल्म की भी शूटिंग करनी है.

‘दबंग 3’ के अलावा अपने पिता सलीम खान लिखित एक फिल्म भी करनी है. वहीं वह ‘रेस 3’ भी करने वाले हैं. ऐसे में सवाल यही है कि क्या कबीर खान, सलमान खान की बात मानकर फिल्म ‘ट्यूबलाइट’ का क्लाइमेक्स बदलेंगे? दूसरा सवाल है कि क्या सलमान खान जिद छोड़कर क्लाइमेक्स को दुबारा फिल्माने के लिए मनाली जाएंगे?

आखिर कौन है आलिया का असली ब्वॉयफ्रेंड!

फिल्म इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा बातें आलिया की लव लाइफ के बारे में की जाती हैं. इसके बाद उनकी परफॉर्मेंस और फिल्मों के बारे में कोई सवाल किया जाता है. लेकिन आलिया ने कभी भी अपने साथ जुड़े नाम को डेट करने के सवाल पर कुछ नहीं कहा है.

सूत्रों की मानें तो जब से उन्होंने एक्टिंग करियर की शुरुआत की है तबसे वो वरुण धवन, अर्जुन कपूर और सिद्धार्थ मल्होत्रा को डेट कर चुकी हैं. हालांकि एक्ट्रेस ने हमेशा यही कहा है कि उनका सभी के साथ दोस्ती का रिश्ता है. तो सवाल उठता है कि आखिर कौन है आलिया का असली ब्वॉयफ्रेंड?

इस सवाल का जवाब किसी और ने नहीं बल्कि उनके स्टूडेंट ऑफ द ईयर को-स्टार वरुण धवन ने दिया है. कॉफी विद करण सीजन 5 के शो पर जब एक्टर से यह सवाल पूछा गया तो उन्होंने बताया कि आलिया दुबई के एक लड़के को डेट कर रही हैं.

यह बात मजाक नहीं बल्कि सच है. सिद्धार्थ मल्होत्रा को डेट करने से पहले एक्ट्रेस अली को डेट कर रही थीं. अली (दंडारकर) दुबई में रहते हैं. एक्ट्रेस ने इस बात को कभी स्वीकार नहीं किया कि उनका कोई ब्वॉयफ्रेंड है. लेकिन वरुण के खुलासे से यह बात साबित हो गई है कि अली को आलिया से बेहद प्यार है. हाल ही में अली एक बार फिर से उनकी जिंदगी में वापसी कर चुका है. ऐसा लगता है कि अली का चैप्टर अब खत्म हो चुका है क्योंकि एक्टर ने कहा कि वो उन्हें पहले डेट कर रही थी.

करण इस बात को जानना चाहते थे कि उनके शो पर आए दोनों मेहमान वरुण धवन और अर्जुन कपूर ने क्या कभी एक्ट्रेस को डेट किया है. जिससे दोनों ने ही इंकार कर दिया. उन्होंने बताया कि उनके काम की वजह से उनके पास आलिया के साथ कनेक्ट होने के लिए पर्याप्त समय नहीं था. जिसकी वजह से उनके बीच गैप आ गया. वरुण ने कहा कि क्योंकि मैंने एक्ट्रेस के साथ कई फिल्मों में काम किया है इसी वजह से लिंकअप की खबरें बढ़ी हैं. वो हम दोनों के लिए सिर्फ दोस्त है. हालांकि दोनों ने सिद्धार्थ के साथ भट्ट के रिश्ते के बारे में कुछ नहीं बोला.

4 दशकों की कहानी, पत्थरों की जुबानी…

अगर आप मुंबई से गोवा के बीच के आकाश में होगे तो खिड़की से बाहर झांकने पर दूर-दूर तक पानी का सैलाब, रंग-बिरंगे घर और हरियाली नजर आएगी. यह दृश्य देखते ही समझ जाइए आप गोवा पहुंचने वाले हैं. टैक्सी में बैठे बैठे भी सोशल मीडिया छोड़ आप गोवा की सड़कों की रौनक जरूर देखें. आने-जाने में असुविधा न हो, इसलिए दोपहिया वाहन किराए पर लेने में ही समझदारी है.

गोवा में सिर्फ बीच, पार्टी और खूबसूरत विदेशी ही नहीं है, यहां इनके अलावा भी बहुत कुछ है. यहां है देश के सबसे पुराने और संरक्षित ‘अग्वादा किला’. बिंदास माहौल और खुलेपन की मिसाल गोवा अपने में इतिहास की कई कहानियां समेटे है.

इतिहास के गलियारों से

उत्तरी गोवा की बारदेज तहसील में है अग्वादा किला. यह अरपोरा से 8 किलोमीटर दूर है. अरपोरा से कैंडोलिम और सिन्क्वेरिम समुद्र तट की तरफ जाने वाली सड़क आगे किले तक ले जाती है. फोर्ट रोड पर चहल-पहल भरे बाजार, कई अच्छे विदेशी रेस्तरां और कैफे हैं. बाजार पार करने के बाद हल्की चढ़ाई है. रास्ता थोड़ा घुमावदार हो जाता है, लेकिन खूबसूरत नजारे यहां भी आपके साथ रहते हैं. ट्रैफिक न के बराबर है और सड़क के दोनों तरफ झाडि़यां हैं.

अग्वादा पुर्तगाली भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है- पानी का स्थल. मांडवी नदी के मुहाने पर बसा अग्वादा किला 1612 ईस्वी में बनवाया गया था. इसे पुर्तगालियों ने बनवाया था. हर किले की तरह इस किले का निर्माण भी दुश्मनों से सुरक्षा के लिए किया गया. लेकिन इस किले को बनवाने का एक और मकसद था- यूरोप से आने वाले जहाजों के लिए ताजा पानी मुहैया कराना.

 किले में पानी जमा  रहे, इसके लिए यहां एक विशाल टंकी बनवाई गई थी. इसे संभालने के लिए 16 बड़े स्तंभों का प्रयोग किया गया. टंकी की भंडारण क्षमता कई लाख गैलन है. इसमें पानी एकत्र करने के लिए प्राकृतिक झरनों की मदद ली जाती थी. मजे की बात है कि ये झरने किले के अंदर ही थे. 17वीं और 18वीं शताब्दी में दूर-दराज से आने वाले जहाज यहां रुकते, और ताजे पानी का स्टॉक लेकर आगे बढ़ जाते.

किले के प्रांगण में प्रवेश करते है टंकी सामने ही दिखाई देती है. इस पर खड़े होकर चारों तरफ नजर दौड़ाने पर आपको लगेगा जैसे लंबी आयताकार दीवार ने आपको घेरा हुआ है. एक कोने पर सफेद रंग का लाइट हाउस तो दूसरे किनारे पर मांडवी नदी है. ये दोनों किले की खूबसूरती को बढ़ाते हैं.

 यहां निरभ्र शांति है, और सुकून चाहने वालों के लिए यह जगह किसी सौगात से कम नहीं है. किले की बाहरी दीवार लगभग ढह चुकी है. अंदर की दीवारें मजबूत हैं जो तीन तरफ से चौड़ी खाई से घिरी हैं. चौथा छोर नदी की तरफ खुलता है. किले की संरचना कुछ ऐसी है कि इसे दो भागों में बांट सकते हैं- एक ऊपरी भाग और दूसरा निचला भाग. किले के ऊपरी हिस्से में पानी की टंकी, लाइट हाउस, बारूद रखने का कक्ष और बुर्ज हैं, जबकि निचला हिस्सा पुर्तगाली जहाजों की गोदी के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. खास बात यह है कि अग्वादा देश का एकमात्र किला है जिस पर कभी किसी का आधिपत्य नहीं हो सका. यही वजह है कि पुर्तगाली किलों में अग्वादा सबसे अहम है.

पुराने दीप स्तंभों में से एक

लाइट हाउस किला परिसर में है और बाहर से ही दिखना शुरू हो जाता है. इसकी चार मंजिलें हैं. वर्ष 1864 में पुर्तगाल से आने वाले जहाजों को दिशा दिखाने के लिए इसे बनवाया गया था. अगर कहा जाए कि किले की शान लाइट हाउस है तो गलत नहीं होगा. अग्वादा लाइट हाउस देश के सबसे पुराने लाइट हाउस में से एक है. हालांकि बहुत-से लोग का मानना है कि यह एशिया का सबसे पहला दीप स्तंभ है. 1976 में इसका इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर दिया गया था.

सेंट्रल जेल

किले के निचले भाग को, जो बाकी हिस्सों के मुकाबले बेहतर हालत में है, जेल में तब्दील कर दिया गया है. अब यह गोवा की सेन्ट्रल जेल है जिसमें नशीली दवाओं के कारोबार से जुड़े कैदियों को रखा जाता है. सैलानियों को यहां आने की इजाजत नहीं है. अग्वादा से करीब एक किलोमीटर पहले सिन्क्वेरिम तट है. बारदेज से आते हुए बाईं तरफ कई मोटरबोट हैं, जो डॉल्फिन पॉइंट जाने के लिए खड़ी रहती हैं. बोट में बैठकर डॉल्फिन्स के ऊपर आने के इंतजार भी अपना अलग ही मजा है. पानी से उचककर जितनी तेजी से वो बाहर आती हैं, उतनी ही फुर्ती से गुम भी हो जाती हैं. यहीं किनारे पर आप सेन्ट्रल जेल देख सकते हैं. किले और लाइट हाउस का ऊपरी हिस्सा भी यहां से साफ नजर आता है.

सिनेमा को बढ़ावा देने के लिए बनेगा फिल्म प्रोत्साहन कोष

सरकार ने अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में भारतीय सिनेमा को बढ़ावा देने के लिए एक फिल्म प्रोत्साहन कोष बनाने की नई पहल की है. इस पहल से स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं को दुनिया भर में उनके कार्य को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी.

फिल्म प्रोत्साहन कोष अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के किसी भी प्रतियोगिता खंड में चुनी जाने वाली और प्रचार गतिविधियों के लिए विदेशी फिल्म श्रेणी के अंतर्गत अकादमी पुरस्कार के लिए भारत के आधिकारिक नामांकन में चुनी जाने वाली फिल्मों को वित्तीय सहायता प्रदान करेगा.

फिल्म समारोह निदेशालय को सरकार द्वारा गठित एक विशेषज्ञ पैनल की सिफारिशों के आधार पर इस पहल को कार्यान्वित करने के लिए एक नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया गया है. आईएफएफआई के 47वें संस्करण में सुगम्य भारत अभियान के अंतर्गत विशेष श्रव्य वर्णित तकनीक के साथ दिव्यांग बच्चों के लिए तीन फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा. इसका प्रदर्शन यूनेस्को और सक्षम के सहयोग से किया जाएगा.

सरकार के स्वच्छ भारत अभियान से प्रेरित होकर, आईएफएफआई 2016 में स्वच्छ भारत विषय पर आधारित पुरस्कार जीतने वाली 20 लघु फिल्मों के एक विशेष पैकेज का भी प्रदर्शन किया जाएगा. इन 20 फिल्मों को 4346 प्रविष्टियों में से चुना गया है और नई दिल्ली में दो अक्टूबर को राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम द्वारा आयोजित ‘स्वच्छ भारत फिल्म महोत्सव’ में सम्मानित किया गया.

आईएफएफआई इस नई प्रतियोगिता खंड के अंतर्गत युवा प्रतिभा को मान्यता देंगे. इस खंड में दुनिया भर के सिनेमा से 2016 की निर्देशकों की पहली शानदार फिल्मों का प्रदर्शन होगा. विजेता को एक रजत मयूर और दस लाख रुपये के नकद पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.

2016 में फिल्म, टेलीविजन और श्रव्य/दृश्य संचार अंतरराष्ट्रीय परिषद (आईसीएफटी), पेरिस और यूनेस्को भी एक ऐसी फिल्म को ‘आईसीएफटी- यूनेस्को गांधी पदक’ प्रदान करेगा जो शांति, सहिष्णुता और अहिंसा के आदर्शो को दर्शाती है.

आईएफएफआई 2016 में बारको इलेक्ट्रॉनिक्स के माध्यम से एक नए लेजर आधारित फोस्फर व्हील प्रोजेक्टर को प्रस्तुत किया जाएगा, जिसका उपयोग दुनिया भर में किसी भी फिल्म महोत्सव में पहली बार किया जा रहा है.

ताकि सर्दियों में बाल गिरने न पाएं

वैसे तो बालों के झड़ने की प्रॉब्लम हमेशा ही बनी रहती है लेकिन सर्दियों में यह कुछ बढ़ जाती है. ऐसा कहा जाता है कि एक दिन में 100 बाल गिरना समान्य बात है लेकिन अगर इनकी गिनती बहुत ज्यादा है तो यह वक्त संभलने का है. इन उपायों को अपनाकर आप अपने बेशकीमती बालों को गिरने से रोक सकते हैं.

– बाल धोने से पहले कंघी जरूर करें. बाल धोने के दौरान उलझ जाते हैं. ऐसे में पहले से ही उलझे बाल और भी बुरे हो जाएंगे. इसके साथ ही यह भी याद रखें कि गीले बालों में गलती से भी कंघी न करें. इससे बाल कमजोर हो जाएंगे.

– हर रात कंघी करके ही सोएं. इससे सुबह उठने पर आपको उलझे हुए बाल नहीं मिलेंगे. इससे बालों का गिरना भी कम होगा.

– गुगुने पानी से बाल धोएं. गर्म पानी से बाल धोना सही नहीं है. इससे बाल और ज्यादा गिरने लगेंगे. ज्यादातर लोग इन दिनों में गर्म पानी से बाल धो लेते हैं, जिससे यह समस्या बढ़ जाती है.

– बेबी शैंपू यूज करें. माइल्ड शैंपू यूज करने से बाल उलझेंगे भी कम और झड़ेंगे भी कम.

– कंडिशनर का इस्तेमाल करें लेकिन जड़ों में नहीं.

– बालों को सामान्य तरीके से सूखने दें. ड्रायर का इस्तेमाल बालों को रूखा तो बनाएगा ही साथ इससे बाल भी गिरेंगे.

इस टेंशन भरे माहौल में भी दिखें फ्रेश

घर में काम की टेंशन. फ्रेंड सर्कल और रिश्तेदारों के यहां हो रही शादियों की टेंशन. बदलते मौसम में सेहत खराब होने की टेंशन और अब ये नोटबंदी की टेंशन. सही कहा जाए तो यह मौसम ही टेंशन का है.

टेंशन के इन सब कारणों से आप किसी न किसी तरह निपट ही लेंगी, लेकिन इस दौरान चेहरे पर पड़ने वाले असर का क्या? ऐसा न हो कि दुनियाभर की टेंशन चेहरे की रौनक छीनकर उसे थका-थका कर दे. टेंशन लेने की बात नहीं है. अपनाएं कुछ टिप्स और बनाएं रखें अपनी खूबसूरती…

थकान और टेंशन की वजह से चेहरे की रौनक गायब हो जाती है. चेहरा मुरझाया सा नजर आने लगता है. यदि समस्या लंबे समय तक रहे तो इसकी वजह से चेहरे पर महीन लकीरें भी उभर आती हैं, जो बाद में झुर्रियों में बदलने लगती हैं. तनाव की वजह से यदि नींद नहीं आ रही तो इसका असर और बुरा पड़ता है. इसके कारण त्वचा संबंधी कई समस्याएं हो सकती हैं, जैसे, झुर्रियां, आंखों के नीचे डार्क सर्कल और काले धब्बे. चेहरे की थकान दूर करने के लिए आप घर पर ही कुछ उपाय कर सकती हैं.

घर पर बनाएं फेस पैक

इसमें सबसे आसान है फेस पैक तैयार करना. आप रोजवॉटर, दही, दूध और हल्दी पाउडर मिलाकर फेस पैक बना सकती हैं. यह एक तरह का हाइड्रेटिंग फेस मास्क है. इसे लगाने से चेहरे की स्किन टाइट और ग्लोइंग हो जाती है. वैसे, चेहरे की थकान दूर करने के लिए अच्छी नींद लेना सबसे ज्यादा जरूरी है.

स्क्रब से हटेंगी डेड सेल्स

टेंशन और थकान से चेहरे की स्किन डेड हो जाती है. इसे हटाने के लिए स्क्रब जरूरी है. डेड स्किन के निकलते ही चेहरे पर ग्लो नजर आने लगता है. खीरे के टुकड़े आंखों पर रखने से आंखों की सूजन कम होती है. आप आलू की स्लाइस भी आजमा सकती हैं.

हाइड्रेटिंग क्रीम करें यूज

इसके अलावा थके चेहरे को चमकदार बनाने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप रात में हाइड्रेटिक क्रीम लगाएं. इससे सुबह चेहरा चमकदार रहेगा. यह क्रीम चेहरे में नमी भरती है. इसके अलावा गुलाब जल में कॉटन बॉल्स डुबोकर त्वचा को पोंछा जाए तो वह फ्रेश दिखती है.

‘वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर होना जरूरी’

जीवन में बिना संघर्ष के कुछ हासिल नहीं होता और कठिन परिश्रम के बाद जो मिलता है उस की खुशी बयां करना मुश्किल होता है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है महिला उद्यमी रेवथी राय ने, जिन्होंने अपने पति के अचानक गुजर जाने के बाद 3 बेटों की परवरिश की. बेहद शांत स्वभाव की रेवथी की शुरू से व्यवसाय करने की इच्छा थी. लेकिन ऐसी स्थिति से गुजर कर उन्हें व्यवसाय में आना पड़ेगा, ऐसी कल्पना नहीं थी. उन्होंने 2007 में ‘फौर शी’ के नाम से टैक्सी सर्विस शुरू की थी, जहां 1000 से अधिक महिलाओं ने टैक्सी ड्राइविंग सीख कर इसे अपना प्रोफैशन बनाया. 2007 से ही उन का यह प्रयास उन महिलाओं के लिए अधिक कारगर सिद्ध हुआ जिन्हें अपने परिवार के लिए कुछ कमाना था ताकि वे अपने बच्चों का भविष्य संवार सकें.

रेवथी ने महिलाओं को गरीबी रेखा से ऊपर उठा कर इतना आत्मनिर्भर बना दिया कि वे महीने में कम से कम 10 हजार कमा सकें. आज भी उसी दिशा में कार्यरत हैं. जफ्फिरो लर्निंग लिमिटेड की शाखा ‘हे दीदी’ आज मुंबई में कार्यरत है. पेश हैं, उन से हुई मुलाकात के कुछ अंश:

अपने बारे में बताएं?

मैं ने अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री ली है. मैं एक ‘रैली ड्राइवर’ हूं. करीब 75 रैलियों में भाग ले चुकी हूं. 70 रैलियां जीत चुकी हूं. शुरू से उद्यमी बनना चाहती थी, मेरे पति भी सौफ्टवेयर व्यवसाय से जुड़े थे. उन की अचानक मृत्यु ने मुझे ‘कार ड्राइविंग’ के प्रोफैशन में जाने को मजबूर किया. पति हार्टअटैक के बाद ढाई साल तक ‘कोमा’ में रहे. उन की देखभाल करतेकरते पूरी जमापूंजी खत्म हो गई.

उन के व्यवसाय को बेच कर पूरा पैसा उन पर और घर खर्च पर लगा दिया. इस से मेरी वित्तीय स्थिति खराब हो गई. पहले तीनों बच्चे छोटे थे, लेकिन धीरेधीरे उन के बड़े होने की वजह से उन की जरूरतें भी बढ़ने लगी थीं. मैं कई जगह काम के लिए गई पर काम नहीं मिला. तीनों बच्चों को बड़ा करना था. मैं कार ड्राइविंग का काम जानती थी, इसलिए उसे करने लगी. 10 महीने तक उसे करने के बाद अपनी कंपनी ‘फौर शी’ 2007 में शुरू कर अपना घर चलाया.

2010 में ‘वीरा कैब्स’ की स्थापना की. ऐसा मैं ने अपने पैसे को बढ़ाने के लिए किया. इस में भी मैं ने लड़कियों को ड्राइविंग सिखाई. यह सेवा अधिकतर बुजुर्गों और लड़कियों के लिए शुरू की थी. अपनी ऐसी स्थिति के बाद उस समय मुझे यह समझ में आया कि एक महिला का सक्षम होना कितना जरूरी है. इतना पढ़लिख कर भी मुझे कोई जौब नहीं मिली. ऐसे में जो कम पढ़ीलिखी हैं, उन्हें अगर जीवन में कोई समस्या आए तो वे क्या करेंगी. लड़कियों को सक्षम बनाना मेरा पैशन बन गया. हर महिला का वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर होना आवश्यक है. अभी मेरी कंपनी ‘जफ्फिरो लर्निंग प्राइवेट लिमिटेड’ की एक शाखा ‘हे दीदी’ है, जो टू व्हीलर चलाना सिखाने का काम करती है.

आप ने ‘ड्राइविंग’ क्षेत्र को ही क्यों अपनाया कोई और व्यवसाय क्यों नहीं?

इस के पीछे एक कहानी है. मुझे ड्राइविंग का शौक था. पहले जब पति थे, तो मैं लेट नाइट पार्टी के बाद ड्रिंक की हुई अपनी सहेलियों को घर छोड़ती थी. तभी एक दिन मेरी एक सहेली से कुछ कहासुनी हुई तो मैं ने कहा कि आप लोगों को घर छोड़ने के बजाय क्यों न मैं एक ‘टैक्सी सर्विस’ शुरू करूं ताकि आप कुछ पैसे खर्च करो और सुरक्षित घर पहुंचो. साथ ही, मुझे भी कुछ पैसा मिलेगा. आप मेरी मेहनत को याद नहीं रखतीं, क्योंकि अगली सुबह आप सब भूल जाती हैं कि किस ने आप को घर छोड़ा. तब मैं ने उन से ऐसे ही कहा था, लेकिन यही मेरा व्यवसाय बनेगा, सोचा नहीं था. जब कोई काम नहीं मिल रहा था तो मेरे एक फैमिली फ्रैंड ने ही ड्राइविंग का काम शुरू करने की सलाह दी. मुझे सलाह सही लगी और मैं ने यह व्यवसाय शुरू कर दिया. लेकिन इस के लिए गाड़ी, ड्राइवर सब कुछ चाहिए था. इसलिए मैं ने पहले खुद टैक्सी ड्राइवर बन कर 10 महीने टैक्सी चलाई. कुछ पैसे कमा कर ‘फौर शी’ कंपनी खोली और लड़कियों को ट्रेनिंग देने लगी.

उस दौरान मेरे पास 100 से भी अधिक टैक्सियां थीं. अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए उन्हें बेच कर मैं ने ‘वीरा कैब्स’ कंपनी 2010 में शुरू की. उस में भी काफी लड़कियों ने प्रशिक्षण लिया. लेकिन इसे भी बेचना पड़ा, क्योंकि ट्रांसपोर्ट ड्राइविंग लाइसैंस की समस्या आ गई थी. फिर मैं ने 1 साल पहले ‘हे दीदी’ की स्थापना की. इस में मैं ‘टू व्हीलर’ चलाना सिखाने का काम कर रही हूं.

ट्रांसपोर्ट लाइसैंस की समस्या क्या थी?

किसी को भी प्राइवेट गाड़ी चलाने का लाइसैंस मिलना आसान होता है, पर यलो प्लेट वाली गाड़ी चलाने के लिए ‘ट्रांसपोर्ट लाइसैंस’ का मिलना बहुत मुश्किल होता है. मैं ने तब सरकार से अपील की थी कि हमारी लड़कियों को अलग सुविधा दी जाए. सरकार ने मेरी बात मान कर ट्रांसपोर्ट लाइसैंस मिलने की अवधि 1 साल के बजाय 1 महीना कर दी, जिस में नौनट्रांसपोर्ट लाइसैंस के 1 महीने बाद उन्हें ट्रांसपोर्ट लाइसैंस मिलता था. वह मार्च 2015 तक लागू था. लेकिन अभी फिर वह नियम 1 साल का हो गया है. इस तरह गाड़ी चलाना सीखने के 15 महीने बाद उन्हें लाइसैंस मिलेगा.

ये लड़कियां बहुत गरीब घरों से होती हैं. इन्हें कुछ सीख कर कमाना है. फिर मैं ने सोचा ये लड़कियां करेंगी क्या? गाड़ी चलाना सीखने से ले कर लाइसैंस मिलने तक मैं उन से क्या करवाऊंगी? उन्हें सैलरी भी देनी पड़ेगी. कैसे ये सब हो पाएगा? इसलिए मैं ने टू व्हीलर्स चलाना सिखाने की प्लानिंग की. आजकल ‘इ कौमर्स’ का जमाना है. सब लोग औनलाइन शौपिंग करते हैं. अभी डिलिवरी लड़के करते हैं. ऐसे में अगर लड़कियां इस प्रोफैशन में आएं तो और अधिक अच्छा रहेगा. फिर मैं ने उन्हें इस की ट्रेनिंग देनी शुरू की. ये लड़कियां सभी रेस्तराओं और होटलों से जुड़ी होती हैं. अभी मैं ने ‘सबवे’ के साथ टाई अप किया है.

लड़कियों को ड्राइविंग सीखने के लिए राजी करना कितना मुश्किल था?

शुरूशुरू में यह काम करना कठिन था. लड़कियों को राजी करने के लिए मैं खुद झोंपड़पट्टी में जाती थी. उन्हें समझा कर ले आती थी. फंडिंग की समस्या प्रमुख थी. लेकिन थोड़ाथोड़ा पैसा लगा कर आगे बढ़ी. कई जगह तो उन के परिवार वाले भी राजी नहीं होते. फिर लड़कियों का गाड़ी चलाना, इस में थोड़ा रिस्क भी होता है, लेकिन इस काम में पूरी टीम होती है, जो सामाजिक कार्य करती है. वे उन जगहों पर जाती हैं जहां लड़कियां कम पढ़ीलिखी हैं, मगर कुछ करना चाहती हैं. आंगनबाड़ी, चाल आदि सभी जगहों पर वे जा कर कम्युनिटी डैवलपमैंट का काम करती हैं. फिर वे राजी होती हैं. इस काम में मुसलिम लड़कियां प्रमुखता से भाग लेती हैं. यहां हर आयु और वर्ग की लड़कियां हैं. साधारणतया लोग ट्रेनिंग देते हैं पर उन्हें काम नहीं दे पाते. यहां दोनों सुविधाएं हैं. मंच भी उन्हें मिलता है. सिखाने का खर्चा 10 हजार है पर मैं उन से केवल 1,500 लेती हूं. बाकी सरकार से मिलता है, क्योंकि ‘स्किल डैवलपमैंट’ में बहुत पैसा है और वे देने के लिए राजी होते हैं. 45 दिन में एक लड़की पूरी तरह ड्राइविंग सीख जाती है.

अभी जो लाइसैंस लड़कियां ले रही हैं, यह ‘टू व्हीलर’ के साथसाथ ‘4 व्हीलर’ का भी है जो 1 साल बाद ट्रांसपोर्ट लाइसैंस में बदल जाएगा. अभी मैं ‘टू व्हीलर’ का काम कर रही हूं आगे ‘थ्री व्हीलर’ और ‘फोर व्हीलर’ का काम भी

शुरू करूंगी, क्योंकि एक तो लड़कियां ड्राइविंग अच्छा करती हैं. साथ ही बड़ेबुजुर्ग और महिलाएं भी अपनेआप को सुरक्षित महसूस करते हैं. इस काम में महिलाएं 7,500 रुपए कम से कम कमाती हैं. इस के अलावा अगर वे निर्धारित राउंड से अधिक डिलिवरी करती हैं तो उस का पैसा अलग से मिलता है. इस तरह वे आसानी से करीब 10-11 हजार तक कमा लेती हैं.

महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में आप किस तरह पहल कर रही हैं?

इस काम में महिलाएं केवल कमाएंगी ही नहीं, बल्कि अगले 3 सालों में उस ‘टू व्हीलर’ की ओनर भी बनेंगी, क्योंकि यहां जो भी लड़कियां ड्राइविंग सीखती हैं उन्हें ‘टू व्हीलर’ खुद अपने कमाए पैसे से खरीदना पड़ता है. प्रशिक्षित महिलाओं को स्कूटर खरीदने के लिए वित्तीय सहायता भी मैं बैंक से दिलवाती हूं ताकि कुछ सालों बाद स्कूटर उन के खुद के हो जाएं. ये उन की संपत्ति बन जाते हैं. हर महीने लोन का भुगतान भी कम होता है, जो उन्हें कंपनी की तरफ से मिलने वाली सैलरी से जाता है. टू व्हीलर गर्ल्स की बहुत मांग है. अगर मैं महीने में 10 हजार लड़कियां भी तैयार करूं तो भी कम ही होंगी. इस साल के अंत तक मैं 10 हजार लड़कियां भी तैयार करूं तो भी कम ही होंगी.

इस साल के अंत तक मैं 10 हजार लड़कियों को तैयार करना चाहती हूं. मुंबई के अलावा बैंगलुरु में भी इस का काम चल रहा है. अभी तक 200 लड़कियों ने काम शुरू कर दिया है.

गृहशोभा के जरीए क्या संदेश देना चाहती हैं?

मैं उन सभी महिलाओं से कहना चाहती हूं कि अगर उन की कुछ कमाने की इच्छा है तो वे मेरे साथ जुड़ सकती हैं, साथ ही कालेज जाने वाली लड़कियां, जिन्हें पढ़ाई के साथसाथ कुछ सीखने की भी इच्छा है वे भी इस में आ सकती हैं. इस के अलावा जो लड़कियां नाइट कालेज में जाती हैं, उन के लिए इस तरह का अवसर खास फायदेमंद होता है. इस में आप एक स्कूटर की मालिक होने के साथसाथ पैसा भी कमा सकती हैं.

जलवा जयललिता का

न बच्चे, न पति, न मातापिता और न भाईबहन का रोब, फिर भी तमिलनाडु की बीमार मुख्यमंत्री महारानी जे. जयललिता का जलवा ऐसा है कि वे अस्पताल में रह कर भी राज चला रही हैं और जरूरी कागजों पर उन के हस्ताक्षरों की जगह अंगूठे का निशान लिया जा रहा है यह कह कर कि उन के दाएं हाथ में सूजन है.

आमतौर पर इस तरह बीमार औरत के चारों ओर गिद्ध जमा होने लगते हैं, जो जीते जी औरतों को तो क्या आदमियों को भी लूट ले जाते हैं. ऐसे में तमिलनाडु के विधायकों, सांसदों, पंचायत अध्यक्षों, नेताओं में से एक की भी हिम्मत दूसरी पार्टी में जाने की नहीं हो रही कि कहीं जयललिता ठीक न हो जाएं और राजपाट न संभाल लें.

जयललिता ने जब राज पाया था तो वे एम.जी. रामचंद्रन की साथिन थीं, जो उस समय मुख्यमंत्री थे पर पहले फिल्मी परदे के बादशाह रहे थे. जयललिता ने रामचंद्रन की विधिवत पत्नी से सत्ता छीन ली थी पर तमाम मुसीबतों के बावजूद वे तमिलनाडु पर राज करती रहीं भले मुख्यमंत्री नहीं रहीं या जेल में रहना पड़ा. अगर यह ताकत किसी और में है, तो शायद ममता बनर्जी और मायावती में ही है. किसी भी पुरुष नेता में ऐसा दम नहीं कि जब कोई वारिस न हो तो भी सत्ता हाथ में रहे.

यह विशेष गुण औरतों का है या 36 खास नेताओं का कहना कठिन है पर जिन्हें क्लियोपैट्रा की कहानी मालूम है वे जानते हैं कि औरतों में सर्वाइवल की विशेष इंद्री होती है और वे जान जाती हैं कि उन का भला कौन करेगा और किस तरह उस जने को लुभाया जा सकता है. औरतें शेर को बकरे की तरह रख सकती हैं जैसी सोच चाहे पुरुषवादियों ने पैदा की हो पर यह जताती है कि अगर औरतों में जरा सी चतुराई हो, जरा सा आत्मविश्वास हो, वे जरा सा सामाजिकपारिवारिक बंधनों को ढीला कर दें तो किले फतह कर सकती हैं. उन्हीं के नाम पर ताजमहल जैसी सुंदर इमारत बन सकती है और वह भी मरने के बाद.

औरतों को अपने पर विश्वास होना चाहिए. रीतिरिवाज, धर्म, संस्कार ग्लास सीलिंग, परिवार की देखभाल आदि छद्म बहानों से औरतों को सदियों से रसोई तक सीमित रखा जा रहा है. पुरुष धर्म की सत्ता थोपते ही इसलिए हैं, क्योंकि हर धर्म औरतों को दबा कर, मन मार कर, मर्दों के बनाए नियमों में रह कर जीने को मजबूर करता है. अगर धर्म के चंगुल से निकल सकें तो औरतों को मायावती, ममता बनर्जी या जयललिता बनने से कोई नहीं रोक सकता. यह पूरे समाज के लिए सुखद होगा. समाज का विकास वहीं होता है जहां औरतें आजाद होती हैं वरना तमाम हथियारों के साथ पश्चिम एशिया के मुसलिम देश या तो तेल पर जी रहे हैं या फिर पहाड़ों में कबीलाई जिंदगी जी रहे हैं.

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