टैटू बनवाने जा रही हैं तो जान लें ये बातें

टैटू बनवाने की परंपरा बहुत पुरानी है, पुराने जमाने की बात करें तो शादी के बाद अक्‍सर पति-प‍त्‍नी एक दूसरे का नाम गुदवाते थे. तो कुछ लोग अपने बच्‍चों के हाथों में अपने नाम का टैटू गुदवाते थे, जिससे यदि बच्‍चे गायब हो जाएं तो उन्‍हें पहचानने में आसानी रहे.

आजकल युवाओं के बीच फिर से ये ट्रेंड खासा लोकप्रिय हो रहा है. युवा नाम लिखवाने के साथ-साथ अलग-अलग तरह की डिजाइन्स भी अपने शरीर पर बनवाते हैं. यहां तक कि टैटू गुदवाना अब स्टाइल सिंबल बन गया है. लेकिन इसके कई खतरे भी हैं. टैटू कई तरह की संक्रामक बीमारियों का घर होते हैं. टैटू बनवाते समय सुरक्षा, सफाई और स्वास्थ्य को लेकर सावधानियां बरतनी जरूरी है.

इंक की क्‍वालिटी

टैटू आर्टिस्‍ट विकास और मिक्‍की मलानी के मुताबिक, आजकल छोटे और लो कॉस्ट आर्टिस्ट चाइनीज इंक का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो काफी खतरनाक है. इससे बचने के लिए हमेशा अच्छे आर्टिस्ट से टैटू बनवाना चाहिए.

टीका लगवाएं

आपको जानकारी के लिए बता दें कि टैटू बनवाने से पहले लोगों को हेपेटाइटिस बी का टीका लगवा लेना चाहिए. इसके अलावा आपको किसी स्पेशलिस्ट से ही टैटू बनवाना चाहिए जो इस कला में माहिर हो. स्पेशलिस्ट उपकरण और साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखते हैं. जिस जगह पर टैटू बनवाएं वहां पर रोजाना एंटीबायोटिक क्रीम जरूर लगाते रहें.

टैटू बनाने के उपकरण

आपको यह भी देखना है कि टैटू आर्टिस्ट की दुकान साफ सुथरी हो, उसके पास टैटू से जुड़े जरूरी उपकरण हों, जैसे दस्ताने, मास्क, सुई और ये सभी स्टर्लाइज्ड भी हों. अगर आपको किसी तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्या है, जैसे हृदय रोग, एलर्जी, डायबीटीज़ तब आप टैटू बनवाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर सलाह मश्विरा कर लें. अगर आपकी त्वचा में कल्यॉड जैसी एलर्जी होने की संभावना है तो आप परमानेंट टैटू नहीं बनवाएं.

स्‍थाई या अस्‍थाई टैटू

एक्‍पर्ट की मानें तो जो फैशन, स्टाइल के लिए टैटू बनवाने का शौक रखते हैं, उन्हें अस्थायी टैटू ही बनवाना चाहिए. ये आपकी त्वचा को नुकसान भी नहीं पहुंचाते हैं और इसे आप अपने मूड के मुताबिक बदल भी सकते हैं. इसी के साथ ये बात भी ध्‍यान रहे कि परमानेंट टैटू बनवाना जितना आसान लगता है उसे हटाना उतना ही मुश्किल हो जाता है.

बीमारियों से बचें

कॉस्‍मेटिक एक्‍सपर्ट की मानें तो टैटू से कई तरह के संक्रमण का खतरा होता है. इससे हेपेटाइटिस, एचआईवी, ग्रैनूलोमस और केल्यॉड जैसी बीमारियां फैल सकती हैं. एचआईवी और हेपेटाइटीस ए,बी,सी खून के संक्रमण से होने वाली बीमारियां हैं जो टैटू की एक ही सुई के कई लोगों पर बार बार इस्तेमाल होने से हो सकते हैं. ग्रैनूलोम्स टैटू के आस-पास शरीर में होने वाली प्रतिक्रिया से होती है. इसी तरह टैटू से त्वचा पर केल्यॉड होने का भी खतरा होता है. केल्यॉड एक तरह का घाव है जहां त्वचा लाल हो जाती है और उसमें एलर्जी हो जाती है.

विमुद्रीकरण के बाद अपनायें ये फाइनेंशियल टिप्स

विमुद्रीकरण के बाद से ही हम सभी को बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. आम आदमी के अलावा टीवी कलाकारों को भी नोट बंदी के कारण दिक्कतें हो रही हैं. एक टीवी कलाकर को तो अपनी शादी तक टालनी पड़ी. जब तक स्थिति पहले जैसी नहीं हो जाती हमें कैश की कमी से निपटने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा. समझदारी इसी में है कि आप अपना कैश बचाकर रखिए और खर्च के लिए ऑनलाइन सर्विस का ही प्रयोग करें.

कैश की कमी को समय ये टिप्स अपनायें-

ग्रोसरी

आप घर के लिए साग सब्जी मंडी या फिर लोकल विक्रेता से ही खरीदती होंगी. साग सब्जी की जरूरत तो हर दिन पड़ेगी, इससे समझौता नहीं हो सकता. पर अभी के दौर में आप ऑनलाइन ग्रोसरी स्टोर का रुख कर सकती हैं. बिग बास्केट, ग्रोफर जैसे ऑनलाइन स्टोर से आपको ताजी सब्जियां मिल जायेंगी और वो भी डिस्काउंट के साथ.

पब्लिक ट्रांसपोर्ट

पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग तो हम सभी करते हैं. नोट बंदी से यातायात बंदी तो नहीं हो जाएगी. इस समस्या का भी ऑनलाइन समाधान है. आप मेट्रो रिचार्ज पेटीएम द्वारा भी कर सकती हैं. अगर कैब बुक करनी है तो इसके लिए भी आप प्लास्टिक मनी का उपयोग कर सकती हैं.

दुकानों पर पेटीएम

आपके आसपास कई दुकानें होंगी जहां आप पेटीएम से भुगतान कर सकती हैं. तो अपने पेटीएम वॉलेट में पैसे डालें और ऑफलाइन शॉपिंग करें पर प्लास्टिक मनी से.

ऑनलाइन भुगतान की डालें आदत

आपने ताउम्र ऑफलाइन भुगतान से ही अपना घर चलाया है. पर वक्त के साथ आपको भी बदलना होगा. अगर आपको ऑनलाइन भुगतान की जानकारी नहीं है तो आप अपने परिवार की मदद ले सकती हैं. पर जब हर फैसीलिटी ऑनलाइन उपलब्ध है तो आप उसका यूज करना भी सीख लीजिए.

सर्दियों में घटायें बिजली बिल

सर्दियां आ गई हैं. प्यार के मौसम में भी बिजली का बिल सताता है. घर में इतने एप्लायंस जो चलते हैं. माना की गर्मी के मौसम में बिजली का बिल सातवें आसमान पर होता है. पर सर्दियों में भी इसमें कुछ खास कमी नहीं आती. ये टिप्स अपनाकर सर्दियों में मैनेज करें बिजली का बिल-

1. नहाने में ज्यादा समय न लगायें

यूं तो सर्दियों में नहाने से बहुत से लोग कतराते हैं. पर सभी ऐसे नहीं होते. गीजर कई घंटों तक चलाने से बिजली का बिल बहुत ज्यादा आता है. इसलिए नहाने में ज्यादा समय न लगाने में ही भलाई है. फिर आपको एक्सपोजर का भी खतरा है.

2. बल्ब को कहें बाय-बाय

सर्दियों में सूरज जल्दी डूब जाता है. इसलिए घर में लाइटें भी जल्दी ऑन कर दी जाती हैं. अगर आपके घर में अभी भी बल्ब और ट्यूब लाइट ही लगे हैं तो इन्हें चैंज करके एलईडी को घर में लाए. यह 80 प्रतिशत तक बिजली बचाता है.

4. एप्लायंस की जांच करें

अपने एप्लायंस को चैक करें. पुराने एप्लायंस ज्यादा बिजली का प्रयोग करते हैं. इसलिए समय समय पर इन्हें मैनटैन करवायें. जरूरत पड़ने पर सर्विसिंग करवाते रहें.

5. बिजली बचायें

जरूरत न पड़ने पर एप्लायंस का प्रयोग न करें. कई बार हम लाइट या एप्लायंस ऑन छोड़ देते हैं. अपने घर के मेमबर्स को भी बिजली सेव करने की आदत डलवायें.

अवॉर्ड शो में अधिक उत्साहित नहीं होतीः वाणी

अभिनेत्री वाणी कपूर पुरस्कार समारोह को महज अभ्यास मानती हैं और उन्हें इसमें उर्जा खपाना उन्हें पसंद नहीं है.

‘शुद्ध देसी रोमांस’ के साथ करियर की शुरुआत करने वाली ‘वाणी’ ने कहा, “अवॉर्ड शो में अधिक उत्साह पसंद नहीं है. यह अभ्यास है और सभी इस पर ध्यान केंद्रित करते हैं और सही मायने में कोई किसी की सराहना करना नहीं चाहता. मंच पर भाषण देने वालों को कोई नहीं सुनता.”

इसके बाद उन्होंने कहा कि ‘शुद्ध देसी रोमांस’ में आदि (फिल्म निर्माता आदित्य चोपड़ा) ने मेरे काम को देखा और इसलिए मुझे ‘बेफिक्रे’ मिली.” ‘बेफिक्रे’ 9 दिसंबर, 2016 को रिलीज होगी.

कंगना के बाद अब तमन्ना बनेंगी क्वीन

विकास बहल के निर्देशन में बनी बॉलीवुड फिल्म ‘क्वीन’ को तमिल में दोबारा बनाया जा रहा है. इस फिल्म का नाम अभी तय नहीं किया गया है लेकिन कंगना रनौत के किरदार ‘रानी’ के लिए तमन्ना भाटिया को साइन कर लिया गया है. फिल्म अभिनेत्री रेवती के निर्देशन में बनने वाली है.

फिल्म के बारे में बात करते हुए तमन्ना ने कहा, “जब मैंने ‘क्वीन’ देखी, तो मैं इसके रीमेक का हिस्सा बनना चाहती थी. तब मुझे यह भी नहीं पता था कि यह दोबारा बनेगी या नहीं. ‘क्वीन’ खास इसलिए है, क्योंकि यह महिला केंद्रित फिल्म है, जिसने सफलता की सभी ऊंचाइयां हासिल की है.” उन्होंने बताया कि वह इसके लिए काफी उत्साहित हैं.

उन्होंने कहा, “जब मैंने ‘क्वीन’ देखी तो खुद में एक मुक्ति का भाव महसूस हुआ और मैं इसके रीमेक पर काम करने का इंतजार नहीं कर सकती. रेवती मैम इस फिल्म का निर्देशन कर रही हैं, इस वजह से यह मेरे लिए और भी खास है, क्योंकि वह ‘देवी’ में मेरी प्रेरणा थीं.” फिल्म के संवाद अभिनेत्री-फिल्मकार सुहासिनी मणिरत्नम देंगी.

एक बार फिर आरजे बनेंगी विद्या

बॉलीवुड गलियारों में टी-सीरीज और एलिप्सिस एंटरटेनमेंट मिलकर नई फिल्म बनाने की योजना बना रहे हैं. फिल्म का नाम ‘तुम्हारी सुलु’ होगा. इसमें लीड रोल विद्या बालन निभाएंगी. विद्या के किरदार का नाम सुलोचना होगा जिन्हें सभी सुलु के नाम से जानते हैं.

सुलु एक ऐसी लड़की का किरदार है जो देर रात रेडियो पर एक शो करती हैं. फिल्म का निर्देशन सुरेश त्रिवेणी करेंगे. इससे पहले वो टीवीसी के कुछ शो होस्ट कर चुके हैं. आईपीएल के साथ ही इंडिया-पाकिस्तान मैच के दौरान आए एड मौका-मौका में भी नजर आ चुके हैं. यह खासा चर्चित हुआ था.

भूषण कुमार ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा ‘आज के दर्शक वास्तविक सिनेमा देखना चाहते हैं जो उनसे जुड़ा हुआ हो. ‘तुम्हारी सुलु’ एक प्यारी कहानी है जो दिल को छू जाएगी. हमें गर्व है कि एलिप्सिस के साथ मिलकर हम इसे प्रोड्यूस कर रहे हैं.’

निर्देशक सुरेश त्रिवेणी ने कहा, ‘तुम्हारी सुलु की कहानी विद्या के लिए बनाई गई है. मेरी पहली फिल्म में वो बतौर लीड काम करेंगी. यह मेरे लिए सम्मान की बात है. मैं करीब एक साल से इस स्टोरी के साथ जुड़ा हुआ हूं. मैं उत्सुक हूं कि कब यह परदे पर आएगी. मैं आभारी हूं कि इसके लिए बड़े प्रोड्यूसर्स मिले हैं. एलिप्सिस और टी-सीरीज का साथ पाकर यह सफर शानदार बन जाएगा.’

विद्या बालन ने कहा, ‘सुलु मतलब एक निंबू. आप स्वाद बढ़ाने के लिए निंबू का इस्तेमाल करते हैं या फिर स्वाद को बराबर करने के लिए इसका उपयोग करते हैं. मुझे लगता है कि इसके जरिए मेरा नटखटपन परदे पर निकलकर आएगा.’ फिल्म की शूटिंग अगले साल अप्रैल से शुरू होगी.

नोटबंदी के दौर में भी घूमें बेफिक्री से

विमुद्रीकरण के बाद घूमने-फिरने या ट्रेवलिंग के बारे में शायद आप सोच भी न रहे हो. पर ट्रेवलिंग के शौकीनों के बारे में जरा सोचिए. नोट बैन के बाद आम लोगों के साथ-साथ टूरिस्ट और ट्रेवेलर्स को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. विदेशी सैलानियों की परेशानी के बारे में कई रिपोर्ट और वीडियो भी जारी किए गए.

पर वो जिन्दगी ही क्या जिसमें चुनौतियां न हो? पर चिंता की बात नहीं है. नोट बंदी के इस दौर में भी आप आराम से ट्रेवल कर सकती हैं. बस आपको अपनाने होंगे ये टिप्स-

– पैकेज बुक करें: ऐसे पैकेज बुक करें जिसमें ट्रेवल से जुड़ी हर छोटी-बड़ी चीज एडेड हो. क्योंकि तंगी के माहौल में कहीं ऐसा न हो कि आपके पास खाने या शापिंग करने के लिए पैसे न बचें.

– ऑनलाइन पैमेंट: अपने डेस्टीनेशन पर पहुंचने से पहले ही ठहरने के लिए ऑनलाइन प्री बुकिंग कर लें. क्योंकि इस वक्त आप होटल ढूंढने नहीं निकल सकती.

– ट्रेवल एजेंट: ट्रेवल करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि आपका ट्रेवल एजेंट क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड एक्सेप्ट करता है या नहीं.

– कैब से करें ट्रेवल: ऐप बेस्ड कैब से सफर और आसान हो जाएगा.

– मोबाईल वॉलेट का करे इस्तेमाल: ऐसे कई ऐप हैं जो प्लास्टिक मनी प्रोवाइड करते हैं. मोबाईल में ऐसे ऐप डाउनलोड करें.

– एटीएम और बैंक: घर से निकलने से पहले अपने आस-पास के एटीएम और बैंक के बारे में सारी जानकारी इकट्ठा कर लें. अपने डेस्टीनेशन के आस-पास भी अपने बैंक के नजदीकी ब्रांच के बारे में जानकारी हासिल कर लें.

– आउटींग: ऐसे रेस्त्रां में खायें या ऐसी जगह से शॉपिंग करें जहां प्लास्टिक मनी वैलिड हो.

वह नीला परदा: भाग-2

पूर्व कथा

एक रोज जौन सुबहसुबह अपने कुत्ते डोरा के साथ जंगल में सैर के लिए गया, तो वहां नीले परदे में लिपटी सड़ीगली लाश देख कर वह बुरी तरह घबरा गया. उस ने तुरंत पुलिस को सूचना दी. बिना सिर और हाथ की लाश की पहचान कराना पुलिस के लिए नामुमकिन हो रहा था. ऐसे में हत्यारे तक पहुंचने का जरिया सिर्फ वह नीला परदा था, जिस में उस लड़की की लाश थी. इंस्पैक्टर क्रिस्टी ने टीवी पर वह नीला परदा बारबार दिखाया, मगर कोई सुराग हाथ नहीं लगा. एक रोज क्रिस्टी के पास किसी जैनेट नाम की लड़की का फोन आया, जो पेशे से नर्स थी. वह क्रिस्टी से मिल कर नीले परदे के बारे में कुछ बताना चाहती थी.

अब आगे पढ़ें…

मौयरा की मदद से जैनेट एक गत्ते का बड़ा सा डब्बा कमरे के बीचोबीच खींच लाई. बीच में बिछे गलीचे पर नीचे बैठ कर उस ने सभी चीजें तरतीब से सजा दीं. फैमी नाम की इस स्त्री का फोटो करीब 9५12 इंच के स्टील के फ्रेम में जड़ा था. उस में क्रिस्टी द्वारा प्रसारित खिड़की के अनुमानित चित्र से मिलतीजुलती एक खिड़की के सामने एक काले चमड़े से मढ़ा सोफा पड़ा था और उस पर एक युवती लगभग 3 साल के गोलमटोल बच्चे को गालों से सटाए बैठी मुसकरा रही थी.

‘‘क्या नाम बताया जैनेट आप ने?’’

‘‘फैमी.’’

‘‘सरनेम पता है?’’

‘‘नहीं, बताया तो था परंतु विदेशी नामों को याद रखना बेहद कठिन लगता है.’’

‘‘क्यों, क्या किराए की कोई लिखतपढ़त नहीं है?’’

जैनेट का मुंह उतर गया. घबरा कर हकलाती हुई वह बोली, ‘‘लड़की भली थी. ऐडवांस किराया नकद दे कर यहां रहने आई थी. कोई किरायानामा तो मैं ने नहीं लिखवाया, मगर रसीद मैं उसे जरूर दे देती थी. पहली तारीख को वह महीने का किराया कैश दे देती थी. मैं कुसूरवार हूं अफसर, पर यह कोई ऐसी बड़ी आमदनी तो न थी जिसे छिपाया जाए…’’

‘‘घबराओ नहीं, ऐसे गैरकानूनी अनुबंध अनेक बेवकूफ लोग कर लेते हैं. अब खुद ही देखो न क्या हो सकता है लापरवाही का अंजाम…’’

 

‘‘क्यों, क्या कोई संगीन मामला है?’’

‘‘हो भी सकता है. हम तुम्हें डराना नहीं चाहते, क्योंकि अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. बहरहाल, हम एक लापता लड़की को ढूंढ़ रहे हैं. क्या कोई सुराग तुम हमें दे सकती हो? कोई इस का मित्र? यह तसवीर वाला बच्चा?’’

‘‘शायद यह बच्चा उस का बेटा है, जो अपने बाप के पास रहता है. फैमी छुट्टी वाले दिन शायद इस से मिलने जाती थी.’’

‘‘इस का मतलब वह तलाक ले चुकी थी?’’

‘‘नहीं पता.’’

‘‘बाकी समय वह क्या करती थी?’’

‘‘ठीक से नहीं पता, मगर कहीं 9 से 5 तक नौकरी करती थी. घर जल्दी आ जाती थी और मेरी ही रसोई में पकातीखाती थी. अफसर, बात यह है कि मैं ज्यादातर यूरोप में रहती हूं. मैं ने खुद ही नहीं पूछा.’’

‘‘जैनेट, यहां उस का कोई परिचित तो आता होगा?’’

‘‘विदेशियों पर मेरा इतना विश्वास नहीं है, इसलिए मैं ने उसे साफ मना कर दिया था कि वह किसी मेहमान को नहीं लाएगी. आप को तो पता ही है कि यहां जवान लड़कियां क्याक्या कर्म करती हैं. मगर मेरी पीठ पीछे अगर कोई आता हो तो कह नहीं सकती.’’

‘‘जब रखा तब कोई रेफरेंस लैटर तो लिया होगा उस के बौस का या बैंक का?’’

‘‘हां, मगर जब वह वापस नहीं आई तो मैं ने फेंक दिया.’’

‘‘कुछ कह कर गई थी तुम से?’’

‘‘हां, उस ने कहा कि वह क्रिसमस की छुट्टियों में मोरक्को अपने वतन जा रही है.’’

‘‘अच्छा, मदद के लिए शुक्रिया. अगर आप को कोई एतराज न हो तो मैं सामान का यह डब्बा संग ले जाऊं?’’

‘‘बेशक, बेशक.’’

अपने औफिस में ला कर क्रिस्टी ने सारा सामान खोला, मगर उस स्त्री की पहचान के सभी कागजात गायब थे. कहीं नाम तक का सुबूत नहीं था. क्रिस्टी ने अनुमान लगाया कि किसी ने जानबूझ कर सभी कागजात गायब किए होंगे. मगर मेज पर रखी तसवीर शायद इसलिए फेंक गया कि उस की अब जरूरत नहीं थी. फिर भी कुछ भी ठीक नहीं बैठ रहा था.

क्रिस्टी ने पुलिस फाइल के अगले कार्यक्रम में इस चित्र को प्रसारित किया. टीवी स्क्रीन पर बड़ा कर के दिखाया, मगर उस स्त्री को जानने वाला कोई भी सामने नहीं आया. उस का अगला कदम था, मोरक्को जाने वाली सभी सवारियों की पड़ताल. पिछले 1 साल के सभी यात्रियों के रिकार्ड उस ने हीथ्रो एअरपोर्ट से मंगवाए, मगर कोई सफलता नहीं मिली. हो सकता है कि वह स्त्री किसी अन्य देश में गई हो और फिर वहां से मोरक्को चली गई हो. हो सकता है, फैमी नाम केवल बुलाने का नाम हो. मगर उस का असली नाम क्या होगा?

मौयरा ने सुझाया कि जाने वाले यात्रियों के बजाय वह मोरक्को से आ कर यहां बस जाने वाली लड़कियों के रिकार्ड तफतीश करे. क्रिस्टी को यह बात जंच गई.

उस ने मोरक्को के दूतावास से संपर्क किया. वहां से आए नागरिकों को पासपोर्ट औफिस में ढूंढ़ा. आखिरकार एक लड़की का पता मिला, जो 7-8 साल पहले पढ़ाई करने के लिए यहां आई थी. उस का नाम फहमीदा सादी था. फहमीदा सादी के वापस मोरक्को जाने का कोई प्रमाण नहीं मिला. यह आसानी से अपना नाम फैमी रख सकती थी. क्रिस्टी ने इसे भी एक सूत्र मान लिया और अपनी खोज जारी रखी, मगर अन्य तथ्यों की तरह यह भी एक हवाईकिला था. केवल मान्यता पर की गई खोज से क्या हत्यारा मिल जाएगा?

लंदन में फहमीदा सादी कहां रह रही थी, यह पता लगाना कठिन काम था, मगर पासपोर्ट औफिस से उस के अपने देश में उस का पता मिल गया. क्रिस्टी ने जैसेतैसे अपने विभाग को दलीलें दे कर खर्चे के लिए राजी कर लिया और वह मोरक्को चला गया फहमीदा के परिवार से मिलने.

फहमीदा का परिवार बहुत अमीर नहीं था. 1 विधवा अधेड़ उम्र की मां, 1 अंधा भाई और 3 कुंआरी छोटी बहनें. पर ये लोग बड़े शिष्ट और विनम्र थे.

 

क्रिस्टी को देख कर वे लोग घबरा न जाएं, इसलिए उस ने अपनेआप को उन की पुत्री का प्रोफेसर बताया. बताया कि फहमीदा उन से कई महीनों से नहीं मिली है. वह इत्तफाक से किसी रिसर्च के सिलसिले में यहां आए थे. उन्होंने सोचा वह यहां होगी. अत: मिलने चले आए.

फहमीदा की मां ने कौफी और खजूर चांदी की तश्तरी में पेश किए और हंस कर बोली कि उन की बेटी लंदन में ही है और उस के खत बराबर आते हैं.

अब क्रिस्टी यह कैसे सोच लेता कि फहमीदा मर गई है? उस का यहां आना बेकार की कोशिश साबित हो रहा था. उसे लग रहा था कि वह गलत जगह झक मार रहा है. अपनी नकली मित्रता की साख बरकरार रखने के लिए वह बेकार के हंसीमजाक और बातचीत की कडि़यां पिरोता रहा, लेकिन कुछ बातों पर मां और भाई की तरफ से अनापेक्षित बातें सुनने को मिलीं. मसलन, उस के यह कहने पर कि वह हिजाब पहनती है, इसीलिए मैं ने यहां से उस के लिए 2 बढि़या रूमाल खरीदे हैं. मां आश्चर्य से उसे देख कर बोली, ‘‘अरे वह कब से रूमाल सिर पर बांधने लगी?

वह तो नित नए फैशन रचती है केशों के.’’

क्रिस्टी सकपका गया. बोला, ‘‘नहीं, लंदन में विवाहित स्त्रियां हिजाब पहनने लगी हैं. उस का बेटा कैसा है?’’

‘‘हमारी बेटी तो अभी तक कुंआरी है. आप गलत पते पर आ गए हैं,’’ मां ने कहा.

‘‘हो सकता है. आप के पास आप की बेटी का कोई फोटो है?’’

मां झटपट फोटो ले आई. निस्संदेह यह फैमी का ही चित्र है. हालांकि इस में उस

के केश लंबे और वेशभूषा मोरक्कन थी. अब क्रिस्टी का माथा ठनका. उस ने दुभाषियों के माध्यम से बातचीत जारी रखते हुए पूछा, ‘‘क्या मैं आप की पुत्री के पत्र देख सकता हूं?’’

फैमी की मां को भी कुछ संदेह हुआ, मगर फिर वह पत्र ले आई. क्रिस्टी ने बहाने से मां को समझाया कि उसे ये पत्र दे दे ताकि वह फैमी को इन्हें दिखा कर चकित कर सके.

दुभाषियों के समझाने पर मां ने पत्र दे दिए.

‘‘1-2 दिन शहर घूम लूं. फिर आप से आ कर मिलूंगा जाने से पहले,’’ यह कह कर क्रिस्टी उठ खड़ा हुआ. फहमीदा सादी की मां को असमंजस में छोड़ कर वह भारी मन से बाहर आ गया.

2 बातें पक्की हो गई थीं. एक तो यह कि लड़की यही चित्र वाली लड़की थी, दूसरी यह कि उस का नाम फैमी ही था.

 

मगर तीसरी बात एक विशाल प्रश्न के हुक से लटक रही थी, वह यह कि फैमी का बेटा कहां था, क्यों उस के बारे में मां को पता नहीं था. जरूर या तो वह अवैध था या गोद लिया. जैनेट ने साफसाफ कहा था कि उस का किसी से संबंध था. बच्चा अपने बाप के पास था और फैमी उस से बराबर मिलने जाती थी. लंदन में अनेक बच्चे अकेले अभिभावक पालते हैं, परंतु अधिकांश में स्त्री के पास बच्चा रहता है और पुरुष अपना आनाजाना भर रखता है. यहां स्थिति उलटी बैठ रही थी. शायद अपने अवैध रिश्ते को छिपाने के लिए फैमी ने बच्चे को पिता के पास रखा हुआ था, विचित्र.

फैमी के लिखे हुए शुरू के पत्र, खुले दिल से एक बेटी की ओर से अपनी मां को लिखे गए पत्र थे. वे बराबर हर हफ्ते लिखे गए थे. उन में पैसा घर भेजने का भी जिक्र था, मगर बाद वाले पत्र बेहद संक्षिप्त और औपचारिक समाचार भर थे. पैसों का कोई जिक्र नहीं था.

अगले 2-4 दिन बाद क्रिस्टी फैमी की मां से विदा लेने गया. बातोंबातों में उस ने पूछा कि जब एक कुंआरी लड़की को इतनी दूर परदेश भेजा था तो कोई तो मित्र या जानपहचान का परिवार वहां होगा. मां ने कई नाम गिना दिए.

क्रिस्टी ने उन के पते मांगे तो मां अचंभित रह गई, पूछने लगी, ‘‘आप क्या करेंगे?’’

‘‘वह कई दिनों से मिली नहीं है न, इसलिए उस के मित्रों से पूछ लूंगा. यों ही बस.’’

फैमी की बहन ने किसी पुरानी डायरी में से 1-2 पते दिए, जो कई साल पहले के रहे होंगे. पते ले कर वह लंदन लौट गया.

लंदन आ कर क्रिस्टी ने उन पतों पर तहकीकात करनी चाही. एक घर में अब कोई नाइजीरियन परिवार रह रहा था, तो दूसरे घर के व्यक्ति का रुख बड़ा टालमटोल वाला था. ये सभी पते लंदन के पूर्वी भाग के थे, जो मुख्य शहर से करीब 30-40 मील दूर पड़ते हैं. तीसरे व्यक्ति ने फहमीदा के बारे में अच्छा नहीं बोला, मगर क्रिस्टी ने बल दे कर उस से तहकीकात की. पुलिस का नाम सुन कर वह कुछकुछ बता पाया.

फहमीदा पहले इधर ही रहती थी और कैडबरी की फैक्टरी में काम करती थी. मगर

4 साल पहले वह यह जगह छोड़ कर पता नहीं कहां चली गई.

इस फैक्टरी में सब कुछ बदल गया था. कैडबरी कंपनी ने यहां का काम बंद कर दिया था और कारखाना कोटपैंट बनाने वाले एक भारतीय ने खरीद लिया था.

फैमी अभी भी उस से आंखमिचौली खेल रही थी. कैडबरी के पुराने रजिस्टरों से उसे उसी जगह काम करने वाली स्त्रियों के नामपते मिले. बहुत ढूंढ़ कर एक ऐसी औरत मिली, जो फैमी को जानती थी और उसे कुछकुछ याद था. यह थी लारेन, जो फैमी के संग उसी जगह काम करती थी और आयरलैंड से आई थी. दोनों हमउम्र और विदेश में अकेली थीं, इसलिए मित्र बन गई थीं.

लारेन ने क्रिस्टी को बताया, ‘‘फैमी बेहद भोली और खुशमिजाज थी. 3-4 साल यहां रह कर वह अपने पुराने खयालों से उबर रही थी. खूब फैशन करती थी. कई लोग, जो उस के अपने ही कबीले के थे उस से शादी करना चाहते थे, मगर वह एक पढ़ालिखा व्यक्ति चाहती थी. धीरेधीरे उस की दोस्ती मुहम्मद नाम के एक आदमी से हो गई. मुहम्मद पढ़ने के लिए लंदन आया था.

वह मोरक्को का ही था. शायद कानून की पढ़ाई कर के यहां आया था. देखने में हट्टाकट्टा और अच्छी शक्लसूरत का था. फैमी उस के प्रेम में फंस गई, मगर जब उसे पता चला कि वह मुहम्मद के बच्चे की मां बनने वाली है तब सब कुछ ताश के किले की तरह ढह गया. मुहम्मद ने उस से गर्भ गिरा देने को कहा, क्योंकि वह शादीशुदा था. उस ने दलील दी कि उस की बीवी ही सब कुछ की मालिक है, वह उसी के दम पर इंग्लैंड आया है वगैरह…

‘‘फहमीदा ने बच्चा गिराने से मना कर दिया और वह सब से मुंह छिपा कर कहीं चली गई. उस को लड़का हुआ था और वह बहुत खुश थी. उस ने बेटे का नाम अब्दुल रखा था. यह बात उस ने मुझे फोन पर बताई थी. उस ने यह भी बताया कि मुहम्मद उस से मिलने और बेटे को देखने आया था.

‘‘बस, इस के बाद क्या हुआ, मुझे नहीं पता. फिर मेरी भी शादी हो गई, तो मैं यहां नए घर में आ गई. फैमी की 4 साल से कोई खबर नहीं मिली.’’

लारेन की कहानी सुन कर क्रिस्टी फैमी को तो जान गया, मगर यह कैसे पता चले कि वह कहां है. जो नीले परदे वाली लाश थी वह फैमी है या कोई और? लारेन की बातों से क्रिस्टी ने अंदाजा लगाया कि यह बच्चा अब्दुल करीब 5 साल का हो गया होगा. झटपट उस ने मौयरा से बर्थ रजिस्टर चैक करने को कहा. पूरे देश के जन्ममृत्यु के खाते में से यह ढूंढ़ना बड़ा मुश्किल काम था. कुछ दिन लगे, मगर बर्थ सर्टिफिकेट मिल गया. पिता का नाम मुहम्मद भी मिल गया. बच्चे का जन्म ईस्ट ऐंड के पास ही के इलाके हैक्नी के एक अस्पताल में हुआ था.

‘‘कहां मिलेगा यह बच्चा?’’

‘‘स्कूल में.’’

‘‘हां, मगर कहां के स्कूल में?’’

‘‘हर 2 मील पर स्कूल है. जन्म की तारीख मैच कराई जाए तो मिल जाएगा.’’

‘‘लगभग 20 हजार प्राइमरी स्कूलों में तुम ढूंढ़ने जाओगी? पागलपन है यह. कुछ

और सोचो.’’

क्रिस्टी का धीरज जवाब दे रहा था. अगर यह बच्चा मिल भी जाता तो केवल 1 फीसदी उम्मीद थी कि उस की मां का कत्ल हुआ है. मोरक्को में मिली फहमीदा सादी और बेसिंगस्टोक से मिली तसवीर भले ही एक हो, मगर उस के पास जो लाश थी वह उसी की थी, इस का भी कोई सुबूत नहीं था.

 

अगले दिन मौयरा ने एक और सलाह दी. हर बच्चे के नाम से उस के मांबाप को सरकारी भत्ता मिलता है. फहमीदा नाम की स्त्री या मुहम्मद नाम का पुरुष जरूर यह भत्ता ले रहा होगा कहीं न कहीं. क्रिस्टी यह सुन कर उछल पड़ा.

करीब 2 हफ्ते हरेक जगह से तमाम रजिस्टर देखतेदेखते वे लोग पस्त हो गए, जन्म की तारीख मिलती तो नाम नहीं. दोनों मिल भी गए तो जन्मस्थान का फर्क. तीनों मिल गए तो मांबाप सलामत.

यह एक जरिया भी बंद हो गया. हताश हो कर क्रिस्टी ने मौयरा से फाइल बंद करने को कहा. लंदन जैसे शहर में यह कोई एक ही किस्सा नहीं था उस के लिए. उस की टीम को जाने कितने कत्लों की तहकीकात करनी होती थी. यह बात और थी कि यह सब से ज्यादा चुनौती देने वाला कत्ल था.

क्रिस्टी और मौयरा दोनों दिमागी थकान से चूरचूर हो गए थे. हफ्ते भर के लिए यूरोप में छुट्टियां बिताने चले गए. क्रिस्टी अपने बीवीबच्चों के साथ और मौयरा अपने बौयफ्रैंड और उस की 7 साल की बेटी के साथ.

 

हफ्ते भर बाद सोमवार की एक सुहानी सुबह थी जब क्रिस्टी वापस अपने दफ्तर की कुरसी पर बैठा. सामने मेज पर एक स्लिप उस की फाइलों के रैक पर चिपकी उसे घूर रही थी. स्लिप के ऊपर एक नंबर लिखा था कि उसे फोन कर ले.

क्रिस्टी ने फोन मिलाया तो दूसरी तरफ से बैंक मैनेजर जौन की बीवी डोरा बोली, ‘‘इंस्पैक्टर, मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं. मुझ से आ कर मिलो या वक्त दो तो मैं ही आ जाऊं.’’

‘‘आप ही इधर आ जाइए. शहर में आ कर कुछ मन बदल जाएगा. जौन भी साथ

होगा क्या?’’

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकेगा, क्योंकि जौन अस्पताल में है. मैं ही आ जाती हूं अकेली.’’

‘‘तो फिर आप मुझ से विक्टोरिया अल्बर्ट म्यूजियम के दरवाजे के पास मिलिए, जहां सभी झंडे लगे हैं. ठीक 2 बजे दोपहर यह आप के लिए ठीक रहेगा.’’

‘‘हां, मैं पहुंच जाऊंगी.’’

ठीक 2 बजे डोरा स्कर्ट और लंबा कोट पहने हैट लगाए टैक्सी से उतरी. क्रिस्टी ने लपक कर उसे टैक्सी से उतारा और उस के हाथ को झुक कर चूमा. डोरा गंभीर स्वर में बोली, ‘‘हैलो, मैं आप को देख कर बेहद खुश हूं.’’

वे दोनों अंदर चले गए. वहां थोड़ा इधरउधर घूम कर वे एक बेंच पर एकांत में बैठ गए.

 

डोरा ने बताया कि 1 हफ्ता पहले शनिवार को वह शौपिंग करने गई थी अपनी पड़ोसिन को साथ ले कर. जौन घर पर अकेला था और रसोई के इलैक्ट्रिक उपकरण आदि चमका रहा था.

‘‘मैं ने जौन के लिए एक धुएं के रंग जैसा डल नीला जंपर खरीदा उस दिन. मगर जब मैं ने उसे घर ला कर दिखाया तो वह भड़क उठा.’’

‘‘ले जा, ले जा वापस यह ड्रैस. यह भी कोई रंग है जिंदा व्यक्ति के पहनने का,’’ यह कह कर वह कांपने लगा. उसे चक्कर से आए और उस की आंखें जैसे मेरे आरपार देखने लगीं. मैं एकदम घबरा गई और मैं ने एंबुलेंस मंगवा ली. जौन तभी से अस्पताल में है. जंपर मैं ने वापस कर दिया, मगर बड़ी हैरान हूं.’’

‘‘तुम बात को समझो, डोरा. शायद वह नीला रंग उसे कुछ याद दिला गया हो. तुम अब इस बात का खयाल रखना कि उसे कुछ भी ऐसा न दिखे, जो उसे उत्तेजित करे.’’

‘‘ठीक है, पर बात यहीं खत्म नहीं होती. अस्पताल के डाक्टर ने बताया कि वह रात

में 2-3 बार डर कर बड़बड़ करने लगा, जैसे किसी से कह रहा हो कि घबराओ नहीं, वह जरूर मिलेगा. डेविड, प्लीज कुछ करो.’’

‘‘कुछ नहीं कर पा रहे हम लोग, कोई सूत्र नहीं मिलता. फिलहाल केस बंद ही समझो.’’

‘‘ऐसा मत करो, केस बंद हो गया तो वह आत्मा निराश हो जाएगी.’’

‘‘हम पुलिस वाले आत्माओं से आर्डर नहीं लेते. तुम भी यह अंधविश्वास छोड़ दो. कोई आत्मावात्मा नहीं होती.’’

दोटूक बात सुन कर डोरा रोआंसी व हक्कीबक्की रह गई. क्रिस्टी ने उसे सांत्वना दी, रेस्तरां में जा कर चाय पिलाई और वादा किया कि वह जौन को देखने जरूर आएगा. उसे समझाएगा कि यह एक डेड केस है, जिस का कोई हल नहीं निकल सकता.

एक टैक्सी बुला कर उस ने डोरा को विदा किया और वापस अपने औफिस लौट आया. उस समय 5 बजे थे. अगले दिन का एजेंडा लिख कर और मौयरा को सब आदेश दे कर वह घर जाने की तैयारी कर रहा था. उस ने कोट व हैट पकड़ा ही था कि टैलीफोन की घंटी बज उठी. रिसीवर उठाया तो उधर से आवाज आई, ‘‘हैलो इंस्पैक्टर क्रिस्टी, मैं लारेन बोल रही हूं. आप ने मुझे पहचाना? कुछ दिन पहले आप मुझ से मिले थे, फैमी नाम की औरत के बारे में जानने के लिए, याद आया?’’

‘‘हांहां, कहिए, कैसे फोन किया?’’

‘‘मेरा खयाल है मैं ने परसों मुहम्मद को देखा. वह एक सब्जी वाले से बातें कर रहा था. मैं उस की ओर बढ़ी पर पता नहीं कैसे वह भीड़ में गुम हो गया. मुझे पक्का विश्वास है कि वह मुहम्मद ही था. मैं ने उस सब्जी वाले से पूछा भी कि वह धारीदार कमीज वाला कौन था, तो उस ने बताया कि वह उस दुकान का पुराना मालिक नासेर था. मैं ने पूछा क्या उस का नाम मुहम्मद है, तो सब्जी वाला बोला, ‘नहीं वह नासेर ही है.’ पर इंस्पैक्टर मुझे तो वह मुहम्मद ही लगा.’’

‘‘ओ.के. लारेन, थैंक्स फौर कौलिंग. हम कल शाम को तुम से मिलते हैं.’’

लारेन के घर पर क्रिस्टी उस से मिला. लारेन का पति घर पर ही था. एक अच्छे नागरिक की तरह उस ने अपनी ओर से मदद करने को कहा. क्रिस्टी ने उस से पूछा कि यदि वह लारेन को ले जाए कुछ देर के लिए, तो क्या वह बच्चों को देख लेगा घर पर? इस पर वह सहर्ष राजी हो गया.

क्रिस्टी अपनी कार में लारेन को ले कर उस दुकान पर गया. दुकान बंद हो चुकी थी. मगर पूछने पर पता चला कि मालिक ऊपर ही रहता है. क्रिस्टी ने बहाना बना कर घंटी बजाई और सीधा सवाल पूछा, ‘‘मुहम्मद है क्या?’’

‘‘यहां तो इस नाम का कोई नहीं है. आप कौन हैं?’’

‘‘उस का पुराना दोस्त हूं. वह यहीं रहता था.’’

‘‘नहींनहीं, आप शायद धोखा खा रहे हैं. हम से पहले यहां एक औरत रहती थी. उस के आदमी के नाम से यह दुकान थी, मगर वह तो कई साल पहले नशे की बुरी लत के कारण मर गया. औरत 3 बेटियों के साथ विधवा हो गई. हालांकि उस ने दूसरी शादी कर ली थी, लेकिन यह दुकान वही चलाती थी. उस का दूसरा पति यहां आताजाता था, मगर रहता कहीं और था. वह पढ़ता था शायद, उस का भी नाम मुहम्मद नहीं, नासेर था.’’

‘‘क्या वह तुम से कल मिलने आया था?’’

‘‘वह अकसर आ जाता है यहां. इधर उस के देश वाले लोग रहते हैं शायद. कभीकभी दुकान पर भी आ जाता है, मगर हम उस को नहीं जानते. हम लोग पाकिस्तान से हैं और हमारी भाषा उन से नहीं मिलती.’’

फिर कुछ रुक कर पुन: बोला, ‘‘देखो अफसरजी, हम कुछ और नहीं बता पाएंगे, क्योंकि दुकान का सौदा जिस एजेंट के साथ हुआ था वह मर गया. उस का बेटा अपना कारोबार किसी और को बेच कर अमेरिका चला गया. आप को उसी से सब पता चल सकता है.’’

क्रिस्टी को लगा वह व्यक्ति सच बोल रहा है. लारेन से उस ने पूछा, ‘‘क्या तुम्हें पक्के तौर पर लगा कि तुम ने मुहम्मद को देखा है?’’

लारेन ने जिसे देखा था उस की महीन कटी हुई दाढ़ी थी, जबकि मुहम्मद दाढ़ी नहीं रखता. यह सोच कर लारेन असमंजस में पड़ गई. जो मुहम्मद उसे याद था वह इतना मोटा नहीं था जितना कल वाला नासेर. फिर भी क्रिस्टी ने लारेन को तसल्ली दी कि उस की मदद काफी काम आई है.

लारेन को उस के घर छोड़ कर क्रिस्टी वापस चला गया. अगले दिन उस ने मोयरा को उस दुकान के कागजात निकलवाने के लिए भेज दिया. दुकान की पहली मालकिन साफिया नासेर नाम की औरत थी. वह तुर्की की थी जिस की उम्र 42 वर्ष थी.

मगर सवाल यह था कि दुकान बेच कर वह चली कहां गई?

– क्रमश:                                              

… तो चमक उठेंगी आप

मेकअप से चेहरे की सुंदरता में चार चांद लग जाते है और आजकल ग्लिटर चेहरे के लिए नम्‍बर एक मेकअप एक्सेसरी में से है. ग्लिटर मेकअप की मदद से आप एक नए लुक में दिखाई देती हैं.

अगर आप पार्टी या फंक्‍शन में अलग लुक पाना चाहती हैं तो ग्लिटर मेकअप आपके लिए एक बेस्‍ट ऑप्‍शन है. यह सिंपल मेकअप से बिल्कुल अलग है. ब्राइट थीम का यह मेकअप फेस को गोल्डन, सिल्वर और ब्रॉन्ज लुक देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

ज्यादातर शादी, पार्टी और स्पेशल फंक्शन पर ही यह मेकअप किया जाता है. ग्लिटर को बिल्‍कुल सही तरीके से लगाना भी एक कला है. आइए जानते हैं आकर्षक दिखने के लिए ग्लिटर को सही तरीके से लगाने के तरीके के बारे में.

आंखों पर ग्लिटर लगाने का तरीका

आंखे चेहरे का बहुत ही हाईलाईटेड हिस्सा होती हैं, इसलिए आंखो के मेकअप पर विशेष रूप से ध्यान दें. आंखों का मेकअप करते समय आंखो के इनर कॉर्नर पर मैटेलिक शाइन जरूर एड करें. ऐसा करने से आपकी आंखे ब्राइट लगने लगेंगी. ग्लिटर आईशैडों को बेहद सावधानी पूर्वक लगाना होता है. इसे लगाने के लिए टिप या ग्लिटर एप्‍लीकेटर का इस्‍तेमाल करना चाहिए. पलकों पर शेड लगाने से पहले हल्‍का शेड करें और उसके बाद प्रॉपर लगाएं. इसे लगाते समय हिलें नहीं और न ही पलकों को झपकाएं. अगर आप ग्लिटर आईशेडो को लगाने से पहले बेस कलर का इस्‍तेमाल करती हैं तो इससे ग्लिटर में एक्‍स्ट्रा चमक आती है.

बालों में ग्लिटर

बालों को कलर करना तो अब भी फैशन के हॉट ट्रेंड में है, लेकिन ग्लिटर से बालों को सजाना उससे भी ज्यादा ट्रेंडी है. यह बात सुनने में थोड़ी अजीब लग सकती है और हो सकता है ये ट्रेंड हर किसी को पसंद न आए, लेकिन फैशन के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले फैशनपरस्तों को ये क्रेजी स्टाइल जरूर पसंद आएगा.

इस अजीबोगरीब ट्रेंड के अपने कुछ फायदे भी है. अगर आप पार्टी में अपनी पसंद से कलर किए बालों में जाना चाहती हैं लेकिन आपके पास उतना समय नहीं है, तो बस अपनी पसंद के रंग या रंगों में ग्लिटर्स बालों में लगाइए और पार्टी के लिए तैयार हो जाइए. इसे लगाने के लिए बस आपको अपने हेयर क्रीम से बालों को गीला कर उस पर अपनी पसंद से ग्लिटर लगाना है. आप चाहें तो बाल खुले छोड़ दीजिए या पोनी बना लीजिए या कोई और स्टाइल कीजिए.

नाखूनों को ग्लिटर से बनायें आकर्षक

मंहिलाओं की सुंदरता में सुंदर नाखूनों को सबसे महत्‍वपूर्ण माना जाता है. नाखूनों पर आर्ट बनाना काफी पुरानी प्रथा है. अब आप नाखूनों को ग्लिटर की मदद से सुंदर बना सकती हैं. अपनी पसंद का रंग चुनें. इसे सही से लगाएं. पहला कोट सूख जाने के बाद, नेलपॉलिश का दूसरा कोट लगाएं. आसपास लग जाने वाले कलर को हटा लें. और उस पेंट को अच्‍छी तरह से सूख जाने दें. नेलपेंट लगाने के बाद आप ग्लिटर को लेकर ब्रश की सहायता से नाखूनों पर लगाएं. या टूथपिक की मदद से नाखून के बीच में लाइन भी खींच सकते हैं.इसके बाद नेल्‍स पर हल्‍की सी आर्ट बनाएं. इसे अच्‍छे से सूख जाने दें. बनी हुई आर्ट को सूख जाने के बाद, उस पर शाइनर को लगाएं.

हम से अलग नहीं चींटियों की दुनिया

जब मैं ने जीवजंतुओं पर लिखना शुरू किया था तब सोचा था कि मैं लोगों को जागरूक बनाने के लिए लिख रही हूं ताकि उन के मन में जीवजंतुओं के प्रति दयाकरुणा का भाव पैदा हो सके और उन में वैज्ञानिक सोच तैयार हो. लेकिन अब मुझे लगने लगा है कि मैं अपने लिए लिखती हूं, अपने दिली सुकून के लिए लिखती हूं. ठीक उसी तरह जिस तरह कोई डांसर या सिंगर अपनी खुशी के लिए नाचता या गाता है. इस ब्रह्मांड और इस के जीवजंतुओं के लिए कद्र हफ्ता दर हफ्ता मेरे लेखन में फूट पड़ती है. मैं लिखती इसलिए हूं, क्योंकि मैं यह सब लिखे बगैर रह नहीं सकती.

जरा सोचिए उन छोटे जीवों के बारे में, जो हम से लगभग मिलतेजुलते हैं. वहीं प्रभावशाली जीवजंतु अधिक खूबसूरती, अधिक बुद्धिमत्ता से और सफलतापूर्वक हर मानवीय क्रियाकलापों का प्रतिफलन होते हैं. चींटियों की ऐसी ही दुनिया का अस्तित्व यहां है.

चींटियों की अनोखी दुनिया

मैं ने उन के बारे में कई बार लिखा है. वे सुरंग खोदती हैं और बदलते मौसम के हिसाब से इंजीनियरों की तरह कुशलता से घर बनाती हैं. उन में भी जाति और वर्ग हैं. वे युद्ध भी करती हैं और अपनी सेवा के लिए गुलाम बनाती हैं, जो हरदम उन की सेवा में लगे रहते हैं और इन की कालोनियों के बाहर दरबान की तरह नियुक्त होते हैं. वे खेती करती हैं और खाद्यपदार्थों का उत्पादन करती हैं.

रसोई और मेस भी चलाती हैं, जहां चींटियां अपना खाद्यपदार्थ जमा करती हैं. उन के शयनकक्ष भी होते हैं और उन के घरों में साफसफाई का काम भी होता है. नदियां पार करने के लिए उन की नौकाएं भी हैं और वे सैनिकों, मजदूरों और घरेलू नौकरानियों को प्रशिक्षित भी करती हैं. शिक्षक क्लास लिया करते हैं. हम जो कुछ करते हैं, उन में से वे क्या नहीं करतीं, यह मैं सोच नहीं पा रही हूं. (यहां बेहतर करने वाली बात को अलग रखा गया है.) मुझे यकीन है कि अगर उन की बोली को समझने वाली कोई मशीन हमारे पास होती तो हमें पता चलता कि उन की विभिन्न कालोनियों में भी हमारी तरह ही जटिल अलगअलग बोलियां होती हैं. मुझे यकीन है कि एक दिन हम लोग जरूर जान पाएंगे कि मनोरंजन के लिए उन के पास

क्या साधन होते हैं. फिल्म दिखाने वाले बहुत ही छोटे प्रोजैक्टर के बारे में जरा कल्पना तो कीजिए.

चींटियों में भी चुनावी प्रक्रिया होती है और उन में भी समाज के विभिन्न स्तरों का निर्माण होता है. उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के रिसर्चर क्लाइंट पेनिक और औक्सफोर्ड विश्वविद्यालय तथा एरिजोना विश्वविद्यालय के सहरिसर्चरों के शोध अध्ययन पर अमेरिकन नैचुरलिस्ट द्वारा प्रकाशित ‘ए सिंपल बिहेवियरल मौडल प्रिडिक्ट्स द इमरजैंस औफ कौंप्लैक्स ऐनिमल हाईरार्कीज’ में इस बारे में विस्तार से बताया गया है.

जब किसी भारतीय जंपिंग एंट्स की कालोनी की रानी की मौत हो जाती है, तब पूरी कालोनी कुछ समय के लिए अस्तव्यस्त हो जाती है. हालांकि नई रानी और नया दरबार बनाने और महत्त्वपूर्ण चींटियों की पद व्यवस्था या महंतशाही (हाईरार्की) की प्रक्रिया जारी रहती है. वह भी उतनी ही तनावपूर्ण और खूंख्वार चुनावी प्रक्रिया है जैसी हमारे यहां हुआ करती है. वक्त के साथ उन के यहां एक नई पद व्यवस्था तैयार हो जाती है. जब किसी रानी चींटी की मृत्यु हो जाती है तब कालोनी में फैली उस की एक विशेष गंध भी खत्म हो जाती है. जो मजदूर चींटियां सामाजिक व्यवस्था में सब से नीचे होती हैं और प्रजनन क्षमता के बावजूद बच्चे पैदा नहीं करतीं, वे तुरंत कालोनी के केंद्र में पहुंच कर लार्वा और प्यूपा के चारों ओर एक सुरक्षा घेरा बना लेती हैं.

यह सब कुछ इस तरह चलता है – एक चींटी अपने ऐंटीना से दूसरी चींटी के सिर पर चोट करती है और तुरंत ही कालोनी की आधी चींटियां आपसी मल्लयुद्ध में जुट जाती हैं. युद्ध बढ़ता देख पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ता है.

सिर्फ एक वजह से चींटियां एकदूसरे से मारपीट करती हैं कि कौन सी चींटी अंडे देगी और कौन नहीं. महीनों के संघर्ष, जिस में किसी की मौत नहीं होती, के बाद 10 से 15 उम्मीदवार विजयी बन कर उभरते हैं. विजयी उम्मीदवारों के मस्तिष्क सिकुड़ने लगते हैं और उन के पेट अंडाशयों से भरने लगते हैं. उन का जीवनकाल अधिकतम 6 महीनों से 5 साल तक का हो जाता है. यह समूह बराबरी के आधार पर अंडे देने की क्षमता और रानी की प्रभुसत्ता प्राप्त कर लेता है.

नई कालोनी की व्यवस्था हमारे जैसी ही होती है, सत्ता के नए स्तर बनते हैं. जटिल सामाजिक व्यवस्था में हाईरार्की बनती है, जोकि इनसानों, डालफिनों और वानरों में भी पाया जाता है.

चींटियों की लड़ाई, जोकि अमेरिकी उम्मीदवार की बहस की तरह ही एक व्यवस्थित टूरनामैंट जैसी ही होती है, के दौरान चींटियां 3 तरह की हरकतें करती हैं- काटना या चुभाना, अपने ऐंटीना से मल्लयुद्ध और कोतवाली.

चींटी जब काटती है तब वह अपने प्रतिद्वंद्वी के सिर को अपने जबड़े से जकड़ लेती है. इस तरह विजेता अपना प्रभुत्व स्थापित करता है. जीत या हार से डोपामाइन स्तर में बदलाव आता है. विजेता का हारमोन बढ़ता है. दूसरे मल्लयुद्ध में उसे इस का लाभ मिलता है. इसे विजेता प्रभाव भी कहा जा सकता है. इस से उस में फिर से प्रजनन क्षमता सक्रिय होती है, जबकि हारने वाले की प्रजनन क्षमता खत्म हो जाती है.

इस टूरनामैंट से जैसेजैसे ज्यादा से ज्यादा चींटियां बाहर हो जाती हैं और मातहत चींटियां ऐसी चींटियों पर कोतवाली करने लगती हैं, जो हार मान लेने या लड़ाई के मैदान से बाहर जाने में आनाकानी करती हैं. 5 चींटियों का समूह प्रतिद्वंद्वियों को 2 दिनों तक रोके रखता है. इस से उन के हारमोन का स्तर गिर जाता है और मल्लयुद्ध से वे चींटियां बाहर होती जाती हैं.

जब चींटियां एकदूसरे को काटती हैं, तो एक पद व्यवस्था उभर कर सामने आती है, जो अपेक्षाकृत अधिक जनतांत्रिक होती है. यह एक हद तक सत्ता का विकेंद्रीकरण भी करती है. ऊपरी स्तर पर एक सीईओ सहित निचले स्तर तक प्रभुत्वशाली चींटियों का एक अफसरशाही ढांचा बन कर तैयार होता है. इस तरह विजेता रानी से ले कर मजदूर चींटियों तक सत्ता का रिसाव होता जाता है. जब आपसी युद्ध में एकदूसरे को काटने के साथ जबरदस्त कोतवाली चलती है तब ऊपर एकमात्र रानी होती है जिस की तानाशाही उभर कर आती है. नीचे की सारी चींटियां मजदूर श्रेणी में ही आती हैं और गुंडा चींटियां बौडीगार्ड का सम्मान पाती हैं. यह सब बड़ा जानापहचाना नहीं लगता है.

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