काबिल पर लगा कंटेट चोरी का आरोप

एक्टर रितिक रोशन से जुड़े विवाद खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं. कभी कंगना विवाद तो कभी शाहरुख खान की फिल्म रईस से काबिल की भिड़ंत. लेकिन अब रितिक पर चोरी का आरोप लगा है. इस सिलसिले में उनपर लीगल एक्शन लिया जाएगा. रितिक की काबिल पर कंटेंट चोरी का आरोप लगाया गया है.

अमेरिका के प्रोडक्शन हाउस और स्ट्रीमिंग कंपनी नेटफ्लिक्स ने ‘काबिल’ पर कंटेंट चोरी का आरोप लगाया है. अब प्रोडक्शन हाउस काबिल को नोटिस भेजने की तैयारी में हैं.

नेटफ्लिक्स ने यह दावा किया हैं कि उनके प्रोडक्शन में बनी ड्रेव गॉडर्ड निर्देशित और मार्वल कॉमिक्स पर बेस्ड टेलीविजन वेब सीरीज ‘डेयरडेविल’ के कंटेंट को काबिल में फिल्माया गया है. उन्होंने कहा कि काबिल में रितिक का रोल डेयरडेविल वाले किरदार से मिलता-जुलता है.

कंपनी के मुताबिक, फिल्म के सीन्स और कैरेक्टर के साथ कलर स्कीम को भी कॉपी किया गया है. फिल्म के निर्माता राकेश रोशन, प्रोडक्शन हाउस फिल्मक्राफ्ट और निर्देशक संजय गुप्ता के खिलाफ ठोस कदम उठाए जाएंगे.

शाहरुख खान की ‘रईस’ और काबिल एक साथ बॉक्स ऑफिस पर दस्तक देंगी. हाल ही में फिल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ था, जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया.

इस फिल्म में रितिक और यमी गौतम के साथ रोनित और रोहित रॉय पहली बार साथ नजर आएंगे. दोनों ही फिल्म में नेगटिव रोल निभा रहे हैं.

ऑस्कर की दौड़ से बाहर हुई फिल्म ‘विसरनाई’

किसी भारतीय फिल्म का ऑस्कर पाने का सपना इस साल फिर टूट गया है. भारत की तरफ से सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा की फिल्म के वर्ग में ऑस्कर की दौड़ में भेजी गई तमिल फिल्म ‘विसरनाई’ पहले ही राउंड में बाहर हो गई.

ऑस्कर को दुनिया में सबसे ज्यादा प्रतिष्ठा वाला फिल्म पुरस्कार माना जाता है जो यूं तो अमेरिकी फिल्मों के लिए होता है, लेकिन इसमें एक वर्ग विदेशी फिल्मों के लिए भी रखा जाता है. इस वर्ग के लिए विभिन्न देश हर साल अपनी एक-एक फिल्म भेजते हैं. इस साल 89वें ऑस्कर पुरस्कारों में भारत की तरफ से वेट्रीमारन निर्देशित तमिल फिल्म ‘विसरनाई’ को भेजा गया था.

ऑटो रिक्शा चालक से लेखक बने एम. चंद्रकुमार के उपन्यास ‘लॉकअप’ पर आधारित ‘विसरनाई’ पुलिस फोर्स के बीच संगठित अपराधों के बारे में है. यह पुलिस की बर्बरता को भी दर्शाती है. इस फिल्म में दिनेश, सामुथिराकानी, अजय घोष और किशोर मुख्य भूमिकाओं में हैं.

कुल 85 देशों से आईं फिल्मों को ऑस्कर अकादमी के सैंकड़ों सदस्यों ने देख कर पहले राउंड में 9 फिल्मों को चुना है. इनमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, डेनमार्क, ईरान, नॉर्वे, रूस, स्वीडन और स्विट्जरलैंड की फिल्में शामिल हैं. अब इनमें से 5 फिल्मों का नामांकन फाइनल राउंड के लिए होगा जिसकी घोषणा 24 जनवरी को की जाएगी.

उनमें से किसी एक फिल्म को 26 फरवरी को ऑस्कर की प्रतिष्ठित मूरत मिलेगी. गौरतलब है कि भारत 1957 से इस वर्ग के लिए अपनी फिल्में भेज रहा है और सिर्फ तीन बार ही कोई भारतीय फिल्म आखिरी राउंड तक पहुंच पाई. और ये फिल्में- ‘मदर इंडिया’ (1957), ‘सलाम बांबे’ (1988), ‘लगान’ (2001) भी ऑस्कर न पा सकीं.

बैंकिंग में महिलाओं की बढ़ती रूची

कुछ दशक पहले तक बैंकों से केवल पुरुषवर्ग ही जुड़ा रहता था. व्यक्ति चाहे वह व्यवसायी हो या नौकरीपेशा, अपना या अपनी फर्म का खाता बैंक में खुलवाता था तथा स्वयं ही उस का संचालन करता था. महिलाओं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं की पहुंच बैंक तक थी ही नहीं और न ही उन्हें बैंक से जुड़ी किसी प्रक्रिया की जानकारी थी. आज परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है. लड़कियां और महिलाएं न केवल अपने खाते बैंकों में खुलवा रही हैं बल्कि उन्होंने बैंकिंग प्रक्रिया को समझा भी है. यही नहीं, बड़ी संख्या में महिलाएं बैंकों में नौकरी भी करने लगी हैं. जाहिर है, इन सब से महिलाओं के आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता में वृद्घि हुई है.

पहले पुरुष ही अपने नाम से बैंकों में बचत खाते खुलवाते थे. यदि वे अपनी पत्नी या बेटी के नाम से खाते खुलवाते भी थे, तो उन का संचालन वे स्वयं ही करते थे. महिलाओं को बैंक में प्रवेश करने में शर्म व झिझक होती थी. लेकिन पिछले 10 सालों में ही बैंकों में बचत खाते खोलने वाली महिलाओं की संख्या में तीनगुना वृद्घि हुई है.

देश में 13 राज्यों में महिलाओं से जुड़े 8 मुद्दों का 114 पैमानों पर एक सर्वे हुआ, जिस में एक मुद्दा बैंक में बचत खाते से संबंधित भी है. सर्वे के मुताबिक, 2005-06 की तुलना में 2015-16 में बैंक में बचत खाता खुलवाने वाली 15 से 49 वर्ष की महिलाओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्घि हुई है. इस मामले में 82.8प्रतिशत के साथ गोवा की महिलाएं सब से आगे हैं. यदि प्रतिशत की बात करें तो इस हिसाब से सब से ज्यादा 400 प्रतिशत बढ़ोतरी मध्य प्रदेश में दर्ज की गई.

आज महिलाओं के न केवल बैंकों में खाते हैं, बल्कि वे नैटबैंकिंग या ई बैंकिंग का इस्तेमाल भी कर रही हैं. अधिकांश खातेदार महिलाओं के पास अपने एटीएम कार्ड भी हैं, जिन से वे जब चाहे अपनी जरूरतों के मुताबिक धनराशि निकाल लेती हैं.

लड़कियों में बैंकिंग के प्रति रुझान उस समय शुरू हो जाता है जब वे स्कूलकालेजों में पढ़ती हैं. तरहतरह की सरकारी छात्रवृत्ति योजनाएं तथा अन्य हितग्राही योजनाओं की राशि या तो सीधे उन के खाते में जमा होती है या फिर उन्हें चैक से भुगतान किया जाता है. दोनों ही स्थितियों में बैंकों में खाता होना जरूरी है. बड़ी हो कर जब वे किसी नौकरी या पेशे को जौइन करती हैं तो भी उन्हें नकद के बजाय बैंकों के माध्यम से खाते में ही भुगतान किया जाता है. इस कारण भी वे अपना खाता बैंक में खुलवाने लगी हैं.

कुछ दशक पहले तक महिलाओं को बैंक की पर्चियां भरना तक नहीं आता था. बात चाहे रुपए या चैक जमा करने की हो या रुपए निकालने की, पर्चियां या फौर्म भरने के लिए उन्हें दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता था. वे अपना अंगूठा लगाती थीं या अधिक से अधिक अपने दस्तखत कर देती थीं. लेकिन शिक्षा के प्रचारप्रसार और महिलाओं में बढ़ती जागरूकता के कारण वे बैंकिंग प्रक्रिया में माहिर हो चुकी हैं. उन्हें अब कोई मूर्ख नहीं बना सकता है.

पहले महिलाएं अपने रुपए, पैसे या गहने या तो घर की तिजोरी में रखती थीं या फिर अपने खेत या घरों में गाड़ कर छिपा देती थीं लेकिन आज वे अपने रुपएपैसे बैंक में जमा कराने लगी हैं तथा गहने बैंक लौकर में रखती हैं. उन्हें बैंक के लौकर का संचालन भी भलीभांति आने लगा है और अब वे स्वतंत्र रूप से अकेली बैंक लौकर का संचालन करती हैं.

बैंक से ऋण या कर्र्ज लेने की प्रक्रिया से भी आज की महिलाएं अनजान नहीं हैं, क्योंकि उन्हें स्वरोजगार आदि के लिए कर्ज की आवश्यकता होती है. महिलाएं अपनी बचत को मियादी जमा, आवर्ती जमा आदि में भी रखने लगी हैं. इस कारण उन्हें विभिन्न तरह के खातों से रूबरू होना पड़ता है.

आज किसी भी महिला को बैंक की दहलीज पर जाने में घबराहट नहीं होती और वे सहज रूप से बैंक में प्रवेश कर अपना आर्थिक लेनदेन कर सकती हैं. बैंकों में कार्यरत महिलाकर्मी पुरुषों से बेहतर काम करती हैं. इन सब बातों से स्पष्ट है कि आज की महिलाएं स्मार्ट ही नहीं, दबंग भी हैं.

यादगार बनायें अपना हनीमून

हमारे देश में खूबसूरत डेस्टिनेशन की भरमार है. खूबसूरती ने ही तो देश को न जाने कितने सालों तक गुलाम बनाये रखा. हर नवविवाहित जोड़ा विवाह के बाद एक दूसरे के साथ कुछ खास पल बिताना चाहता है. अगर आपकी भी शादी होने वाली है तो आप भी कुछ ऐसा ही सोच रही होंगी. आप सोच रही होंगी कि अपने हनीमून पर आप ‘हनी’ के साथ हाथों में हाथ डाले तन्हाई में प्यार के पल बितायेंगी. पर आप कहीं भी जायें भीड़ तो आपको मिलेगी ही. पर हम बता रहे हैं कुछ खास डेस्टीनेशन जहां आप सुकून से प्यार के पल बिता सकती हैं. अगर आप हनीमून से वापस आ चुकी हैं, तो दूसरे हनीमून की प्लैनिंग कर लीजिए…

1. चक्राता, उत्तराखंड

सर्दियां यानी की प्यार का मौसम. अगर आपको ठंड पसंद है तो आप यहां जरूर जायें. समुद्री तल से 7000 फीट की ऊंचाई पर बसा यह हिल स्टेशन किसी जमाने में ब्रिटिश इंडियन आर्मी की छावनी थी. यहां इतिहास की झलक भी मिलेगी. तो अपने हनीमून को यादगार बनाने के लिए यहां जरूर जायें.

2. यूमथांग वैली, सिक्कीम

यूमथांग वैली को ‘वैली ऑफ फ्लावर्स’ भी कहते हैं. यह सिक्किम की पूर्वी दिशा में बसा है. बाकी हिल स्टेशन की भीड़ भाड़ से दूर यहां आप अपने प्यार के साथ कुछ खास पल बिता सकती हैं. यहां आकर ‘जिरो पॉयंट’ पर जाना न भूलें. एक बार यहां आकर आपको वापस जाने का मन नहीं करेगा.

3. तारकार्ली, महाराष्ट्र

मुंबई से 546 किमी की दूरी पर है तारकार्ली. अगर आप बीच लवर हैं तो यहां की प्लैनिंग कर लीजिए. बाकी बीच के मुकाबले यहां आपको शांत बीच मिलेंगे. आप यहां वाटर स्पोर्ट्स का भी मजा ले सकती हैं. प्राइवेसी भी मिलेगी. अगर इतिहास में भी रूची है तो आप सावंतवाड़ी जरूर जायें.

4. ऐलेप्पी, केरल

इश्क लफ्जों से नहीं आंखों से बयां किया जाता है. ऐलेप्पी के शांत वातावरण में आपको एक दूजे की आंखों को पढ़ने का बहुत सारा वक्त मिलेगा.

5. कुर्ग, कर्नाटक

कर्नाटक में प्रकृति के बहुत से खजाने हैं. यहां की हसीन रोमेंटिक वादियों में आपको जिस सुकून की तलाश थी वो मिल जाएगा. साथ अगर हमसफर हो तो, फिर क्या? दुनिया को भूल जाइए और प्यार में डूब जाइए. यहां के कॉफी प्लांटेशन को देखना मत भूलिएगा.

6. स्पीति, हिमाचल प्रदेश

अगर आप सर्दियों का अच्छा उपयोग करना चाहती हैं तो स्पीति से बेहतर कोई जगह हो ही नहीं सकती. यह दुनिया की सबसे ज्यादा ऊंची जगहों में से एक है. क्या पता आपको यहां स्नो लेपर्ड भी दिख जाए.

7. कोडाइकनाल, तमिलनाडू

स्विट्जरलैंड में हनीमून मनाने का आइडिया भी बूरा नहीं है. कोडाइकनाल को भारत का स्विट्जरलैंड कहा जाता है. यहां की सर्द हवायें देखकर यकीन करना मुश्किल है कि यह जगह दक्षिण भारत है. प्रकृति के बीच अगर आप हमसफर के साथ तन्हाई के कुछ पल बिताना चाहती हैं तो यहां का रूख करें.

लैला बनने के लिए सनी को मिले 4 करोड़

बहुचर्चित फिल्म ‘रईस’ के लैला गाने को लाइव परफॉर्म करने के लिए सनी लियोनी को बड़ी रकम ऑफर की गई है. सात दिसंबर को ‘रईस’ फिल्म का ट्रेलर लॉन्च किया गया. ट्रेलर को दर्शकों ने खुब सराहा. इस ट्रेलर में सनी लियोनी की झलक भी मिली.

फिल्म में सनी फेमस गाना ‘लैला मैं लैला’ पर ठुमके लगाती नजर आएंगी. क्रिसमस और न्यू इयर फेस्टिवल को ध्यान में रखते हुए, एक सबर्ब होटेल ने सनी लियोनी को 4 करोड़ की धनराशि ऑफर की है, ताकि वह ‘लैला ओ लैला’ गाने का लाइव परफॉमेंस उनके होटेल में फेस्टिवल के दौरान दर्शकों के लिए करें.

लाइव परफॉमेंस, हर फेस्टिव पार्टी का अहम हिस्सा माना जाता है, इसलिए होटल के आयोजक चाहते हैं कि सनी लियोनी लाइव परफॉर्म करें. जब से ट्रेलर लॉन्च हुआ है तब से आयोजक इस गाने को एक हिट पार्टी सॉन्ग मानते हैं और सनी लियोनी अपने परफॉर्मेंस से दर्शकों में हिट रही हैं. अब दर्शक फिल्म के इस गाने पर झूमने को तैयार हैं. फिल्म ‘रईस’ 25 जनवरी 2017 को सिनेमाघरों में आएगी.

अम्मा की जिंदगी पर फिल्म बनाएंगे रामू

असल जिंदगी की घटनाओं से प्रभावित होकर फिल्में बनाने के लिए मशहूर निर्देशक राम गोपाल वर्मा इन दिनों बाला साहब ठाकरे की लाइफ से इंस्पायर अपनी सुपरहिट सीरीज ‘सरकार’ के तीसरे भाग की शूटिंग कर रहे हैं.

रामू ने अपने सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर के जरिये तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता की जिंदगी पर फिल्म बनाने की घोषणा की है. रामू ने लिखा है, ‘मैंने अपनी नई फिल्म का टाइटल ‘शशिकला’ रजिस्टर्ड करवा लिया है, यह कहानी मेरी सबसे करीबी दोस्त और पॉलिटिशन की है.’

रामू जयललिता की कहानी को उनकी सबसे करीबी सहेली और नेता शशिकला के नजरिये से दिखाएंगे. रामू ने जयललिता की जिंदगी पर बनने वाली फिल्म का टाइटल ‘शशिकला’ रखने की वजह बताते हुए कहा कि, जयललिता के सबसे करीबी दोस्त और राजनीति में उनके साथ हमेशा रहीं शशिकला का नजरिया जयललिता को समझने के लिए सबसे खूबसूरत होगा.

बॉलीवुड फिल्मों में अर्जुन ने बनाया अनोखा रिकॉर्ड

बॉलीवुड एक्टर अर्जुन कपूर ने अलग-अलग एक्ट्रेस के साथ काम कर नया रिकॉर्ड बनाया है. अर्जुन कपूर ने आठ फिल्मों में अलग-अलग हीरोइनों के साथ काम किया है. अब वह अपकमिंग फिल्म में नई हीरोइन के साथ दिखाई देंगे.

बॉलीवुड में ऐसे बहुत कम नए हीरो हैं जिन्हें अपनी ज्यादातर फिल्मों में अलग-अलग हीरोइनों के साथ काम करने का मौका मिला हो. फिल्मी करियर की शुरुआत में अलग हीरोइनों के साथ काम करने वालों में अजुर्न कपूर का नाम सबसे ऊपर है. इससे पहले ऋषि कपूर ऐसे एक्टर हैं जिन्होंने 14 नई हीरोइनों ने काम किया है.

अर्जुन कपूर ‘इश्कजादे’ में परिणिती चोपड़ा, ‘औरंगजेब’ में साशा आगा, ‘गुंडे’ में प्रियंका चोपड़ा, ‘टू स्टेट्स’ में आलिया भट्ट, ‘फाइंडिंग फेनी’ में दीपिका पादुकोण, ‘तेवर’ में सोनाक्षी सिन्हा, ‘की एंड का’ में करीना कपूर खान और ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ में श्रृद्धा कपूर के साथ काम कर चुके हैं.

अर्जुन अपनी आने वाली फिल्म ‘मुबारकां’ में इलियाना डिक्रूज और अथिया शेट्टी के साथ दिखाई देंगे.

तीनों खान को पछाड़ सुशांत पहुंचे टॉप पर

बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत और दिशा पटानी अभिनीत फिल्म ‘एम.एस. धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी’ और सुपरस्टार सलमान खान की फिल्म ‘सुल्तान’ को साल 2016 में गूगल पर सबसे अधिक बार सर्च किया गया.

गूगल इंडिया ने साल 2016 में भारतीयों द्वारा गूगल पर सबसे अधिक बार सर्च किए गए महत्वपूर्ण कार्यक्रमों और हस्तियों के नामों की सूची जारी की है. बॉलीवुड हस्तियों में सबसे ज्यादा सर्च किए गए एक्टर सुशांत सिंह राजपूत और एक्ट्रेस दिशा पटानी हैं.

इसके साथ ही उर्वशी रौतेला, पूजा हेगड़े और मंदाना करीमी को भी लोगों ने सर्च किया. सुशांत के बाद सबसे अधिक सर्च किए गए बॉलीवुड अभिनेताओं में कबीर बेदी, हर्षवर्धन कपूर, पुलकित सम्राट और सलमान खान रहे.

फिल्मों में सबसे अधिक सर्च किए जाने की सूची में सलमान खान की फिल्म ‘सुल्तान’ टॉप पर रही. उसके बाद सुपरस्टार रजनीकांत की ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘कबाली’ रही.

इसके अलावा शाहिद कपूर की फिल्म ‘उड़ता पंजाब’, अक्षय कुमार की फिल्म ‘एयरलिफ्ट’ और रणबीर कपूर व अनुष्का शर्मा अभिनीत फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ ने भी इस सूची में जगह बनाई.

सरसों के तेल से पायें नैचुरल ब्यूटी

ठंड का मौसम और कुछ ही दिनों में न्यू ईयर पार्टी भी. अगर आप इन दोनों फंक्शंस में दिखना चाहती हैं एलिगेंट और सबसे अलग तो अपने ब्यूटी प्रॉडक्ट्स में मस्टर्ड ऑयल यानी सरसों का तेल शामिल करें. सरसों का तेल खाने का स्वाद तो बढ़ाता ही है साथ में आपके चेहरे की रंगत भी निखारता है. सिर्फ चेहरे की ही नहीं इस तेल से आप बॉडी मसाज से लेकर स्काल्प मसाज भी कर सकती हैं. बॉडी पेन दूर करने के लिए भी यह तेल काफी असरदायक है

1. नैचुरल सन्स्क्रीन

आप हमेशा एसपीएफ 20 या फिर उससे अधिक का सन्सक्रीन खरीदती हैं. लेकिन सरसों के तेल से बेहतर कोई सन्स्क्रीन नहीं है. इसमें विटामिन ई होता है, जो नैचुरल सन्स्क्रीन की तरह काम करता है. यह खतरनाक यूवी रेज से आपके स्कीन को प्रोटेक्ट करता है.

2. बालों को सफेद होने से रोकता है

सरसों के तेल में ऐसे तत्व होते हैं, जो आपके बालों को लंबे समय तक काला बनाए रखते हैं. इतना ही नहीं यह बालों को सफेद होने से भी बचाता है. शैम्पू करने से पहले सरसों के तेल से मसाज करें.

3. त्वचा की रंगत निखारने के लिए

त्वचा की रंगत को हल्का करने के लिए आप जिन फेयरनेस क्रीम का इस्तेमाल करती हैं, वह आपकी त्वचा के लिए काफी हानिकारक होते हैं. लेकिन सरसों के तेल को इस्तेमाल करने से आपकी त्वचा को कोई नुकसान नहीं होगा

इसके अलावा आप बेसन में नींबू और सरसों का तेल मिला लें. इसके बाद इस पेस्ट को मिलाकर अपने चेहरे पर लगा लें, इसे 10 से 15 मिनट के लिए चेहरे पर लगा रहने दें और फिर चेहरा धो लें. अच्छे परिणाम के लिए इस पेस्ट को हफ्ते में कम से

4. नैचुरल स्किन ग्लो

ऐसे बहुत से लोग हैं, जो बॉडी मसाज के लिए सरसों का तेल ही यूज करते हैं. यह स्किन की ड्राईनैस को खत्म करता है. लेकिन अगर आप टैनिंग हटाना चाहती हैं, तो सरसों के तेल को योगर्ट और लेमन जूस के साथ मिला लें और इस बॉडी पैक से बॉडी की मसाज करें. बॉडी पर नेचरल ग्लो आ जाएगा.

5. रूखी त्वचा को मुलायम करे

अगर आपकी स्किन ड्राई है और आपको ड्राई स्किन पर मेकअप करना है, तो न परेशान हों. कुछ बूंदे सरसों का तेल लें. इससे 3 से 5 मिनट चेहरे पर हल्के हाथों से मसाज करें. इसके बाद पानी से फेस को धो लें. स्किन स्मूथ हो जाएगी और आप इस स्किन टोन पर आसानी से फाउंडेशन और मेकअप कर पाएंगी.

6. बालों के लिए परफेक्ट केयर

अगर आप बालों की डैंड्रफ, खुजलाहट, बालों का गिरना जैसी प्रॉब्लम्स से गुजर रही हैं, तो मस्टर्ड ऑयल का हॉट ट्रीटमेंट करवाएं. इसके लिए आप बालों की लेंथ के मुताबिक एक कटोरी में सरसों का तेल ले लें. उसे हल्का गुनगुना कर लें और हल्के हाथों से बालों की जड़ों पर मसाज करें. इसके बाद किसी माइल्ड शैंपू से बालों को वॉश कर लें. आप 10 से 12 दिन में ही इस समस्या से निजात पा लेंगी.

7. रूखे होठों को गुलाबी बनायें

सर्दियों में फटे होंठ एक आम समस्या है. रात को सोने से पहले लिप्स पर दो से तीन बूंदे मस्टर्ड ऑयल की लगाएं और फिर इसे ऊपर से लिप बाम से कवर कर दें.

नोटों की मौत, तड़पती जनता

हालात और नजारा 26 जून, 1975 सरीखे ही थे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को घोषणा की कि आज रात 12 बजे से 500 और 1000 रुपए के नोट अवैध हो जाएंगे. इंदिरा गांधी के आपातकाल से तुलना करें तो नरेंद्र मोदी का लगाया यह आर्थिक आपातकाल उस से कमतर नहीं जिस ने आम लोगों का जीना दुश्वार कर के देश भर में हाहाकार मचा दिया.

इंदिरा गांधी के आपातकाल में जहां लोग गिरफ्तारी के डर से घरों में छिपे बैठे थे या महफूज ठिकानों की तरफ भाग रहे थे वहीं नरेंद्र मोदी के आपातकाल में घरों से निकल कर बैंकों के सामने खड़े नजर आ रहे हैं, क्योंकि वे अगर पुराने नोटों के बदले नए नोट या फिर एटीएम से पैसे नहीं निकालेंगे तो रोजमर्रा के खर्चों को चला पाना मुश्किल होगा. इन दोनों आपातकाल में एक और फर्क यह समझ आया कि इंदिरा गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से सहमति ली थी जबकि नरेंद्र मोदी ने ऐसा कुछ नहीं किया. उन्होंने सीधेसीधे फरमान जारी कर दिया कि अब पुराने 1000 और 500 रुपए के नोट रद्दी हो चुके हैं और इन का चलन अब गैरकानूनी हो चुका है.

उस आपातकाल में बोलने की पूरी तरह मनाही थी लेकिन इस आपातकाल में बोलने पर आंशिक छूट है, जो हालांकि सोशल मीडिया के हंसीमजाक तक सिमट कर रह गई है, लेकिन हकीकत बेहद कड़वी है कि नोटबंदी के फैसले के पीछे कोई दूरगामी जनहित की बात नहीं है. और इस से वे समस्याएं भी हल होती नहीं दिखतीं जिन का जिक्र प्रधानमंत्री ने किया है.

क्या है नोटों के रद्दीकरण के पीछे छिपी मंशा और लोग क्यों नोटों की हत्या का गुनाह बरदाश्त कर रहे हैं, इसे 1975 के आपातकाल से ही बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. तब लोगों को बताया जा रहा था कि देश में अराजकता है और इस की एक बड़ी वजह बढ़ती आबादी है. लिहाजा इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने नसबंदी का फरमान जारी कर दिया था. लोगों को पकड़पकड़ कर उन की नसबंदी की गई और यह प्रचार भी किया गया कि सारे फसाद, भ्रष्टाचार और परेशानियों की जड़ जनसंख्या विस्फोट है. इसे जैसे भी हो इस पर काबू करना जरूरी है.

लोकतंत्र में कोई ऐसा फैसला जो बड़े जनाक्रोश की वजह बन सकता हो, जारी करने और थोपने से पहले उस के कृत्रिम फायदे जरूर गिनाए जाते हैं. प्रशासनिक स्तर पर दहशत भी फैलाई जाती है, जिस से ‘भय बिन होत न प्रीत’ की तर्ज पर लोग खामोशी से न केवल उसे मान लें, बल्कि सरकार की हां में हां भी मिलाने लगें. वही आज भी दोहराया जा रहा है.

नोटों की हत्या

‘हम जाली नोटों और कट्टरवाद के खिलाफ जंग लड़ने जा रहे हैं इस से उस लड़ाई को ताकत मिलने वाली है.’ 8 नवंबर की रात 8 बजे राष्ट्र के नाम संबोधन में यह कहते नरेंद्र मोदी ने लोगों को आश्वस्त भी किया कि उन्हें किसी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस के बदले उन्हें नए नोट मिल जाएंगे.

भ्रष्टाचार और कालाधन हमेशा ही 2 बड़े मुद्दे रहे हैं जिन से आम लोग त्रस्त रहते हैं. हकीकत में देश में पसरी गरीबी की एक बड़ी वजह यह भी है. 70 के दशक में इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था, तो लोगों ने उन का भरपूर साथ दिया था.

लोकसभा चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी ने बड़ेबड़े वादे किए थे इन में से जो सब से ज्यादा चला था वह यह था कि अगर विदेशों में जमा कालाधन देश में वापस आ जाए तो हरेक नागरिक के बैंक खाते में 15 लाख रुपए आ जाएंगे.

प्रधानमंत्री बने 2 साल से भी ज्यादा का वक्त गुजर गया और नरेंद्र मोदी से कुछ ठोस नहीं हुआ. जो समस्याएं न तो सड़कों पर झाड़ू लगाने से दूर होती दिख रही थीं, न ही डिजिटल इंडिया के नारे से जिस से देश की 80 फीसदी आबादी को कोई वास्ता था. वे समस्याएं थीं घूसखोरी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार की, जो नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में और बढ़ीं. आंकड़ों की जबानी देखें तो नोटबंदी के जोखिम भरे पर बचकाने फैसले को चमकाने के लिए दलीलें ये दी गईं कि इस से इन समस्याओं पर न केवल अंकुश लगेगा, बल्कि लोग अगर सब्र रखें तो ये 50 दिनों बाद दूर हो जाएंगी.

यह कैसे हो जाएगी किसी को नहीं मालूम. बात बिलकुल वैसी ही है कि अमावस्या की रात को पीपल के पेड़ के नीचे दीपक रखो, इस से कल्याण होगा. और ऐसे टोटके न करो तो फिर हमें दोष नहीं देना. हम ने तो आंकड़ों के जरिए सबकुछ गिना दिया है.

गिनाया यह गया कि देश की अर्थव्यवस्था में 62 फीसदी हिस्सा कालेधन का है. बड़े नोटों को रद्दी कर देने से घूसखोरी बंद हो जाएगी, भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा और नकली नोट चलाने वाले दिक्कत में पड़ जाएंगे. इस से आतंकवाद पर भी लगाम लगेगी और चुनावी भ्रष्टाचार भी खत्म होगा.

लेकिन यह सब चाहिए तो आप को धैर्य रखते त्याग करना पड़ेगा. यह त्याग पीपल के पेड़ के नीचे दीपक रखने जैसा मामूली ही है कि जनता को लाइन में लग कर 1000-500के नोट बदलने होंगे या अपने बैंक खाते में जमा करने पड़ेंगे. इस त्याग के एवज में उन्हें इस 62 फीसदी काली हो चुकी अर्थव्यवस्था से नजात मिलेगी जो गरीबी की बड़ी वजह है.

यह वह वक्त था जब 45 फीसदी टैक्स चुका कर कालाधन सफेद करने की योजना दम तोड़ चुकी थी, जिस में महज 65,000 करोड़ रुपए ही सरकारी खजाने में जमा हुए थे यानी धनकुबेरों ने इसे खारिज कर दिया था. 9 नवंबर को ही लोगों के सामान्य ज्ञान में यह बढ़ोतरी हो गई थी कि कालेधन के खिलाफ इस सर्जिकल स्ट्राइक की बड़ी वजह बड़े नोटों की भरमार है. इस वक्त देश में कुल 17 लाख करोड़ रुपए की करैंसी में 6.7 लाख करोड़ 1000 के और 8.2 लाख करोड़ रुपए 500 के नोट हैं जो पूरी करैंसी का लगभग86 प्रतिशत होते हैं. यह बात भी मोदी ने पत्रकारों को जोर दे कर गिनाई कि 145 लाख करोड़ रुपयों की भारतीय अर्थव्यवस्था में नोटों का प्रसार या प्रवाह केवल 16 लाख करोड़ रुपए का है और पूरी करैंसी का महज 3 फीसदी 4 करोड़ लोगों के पास है.

विभिन्न एजेंसियों द्वारा जारी ये आंकड़े बहुत ज्यादा विश्वसनीय नहीं माने जा सकते, जिन से आम लोगों को कोई खास लेनादेना नहीं था कि इस आर्थिक आपातकाल की जनप्रतिक्रिया हिंसात्मक न हो, इसलिए सरकार ने इस बात का पूरा खयाल रखा कि जरूरी सेवाओं में एक झटके में गैरकानूनी घोषित कर दिए गए नोटों को चलन में रखा जाए. इसलिए पहले परेशानी खड़ी कर लोगों को यह बताया जाने लगा कि वे पैट्रोल पंपों, बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों और अस्पतालों में नोट चला सकते हैं और फलां तारीख तक इन्हें सहूलियत से बदल सकते हैं. सरकार मुस्तैदी से सारे इंतजाम कर रही है.

इन इंतजामों की पोल जल्द ही खुल गई और यह भी साबित हो गया कि सरकार ने कितनी अदूरदर्शिता और नादानी से यह फैसला लिया है. तकनीकी कारणों से एटीएम मशीनों में नए नेट नहीं डाले जा सकते, इस बात ने अफरातफरी और बढ़ा दी.

पहले खुश बाद में रुठे

11 नवंबर तक आम लोग बेहद खुश थे, क्येंकि नसबंदी की तरह उन्हें नोटबंदी के फायदे गिनाए जा रहे थे कि देखो सारी नकदी जो बड़े नोटों की शक्ल में है, पूंजीपतियों की तिजोरियों में कैद है, उसे निकालने के लिए यह फैसला जरूरी था. आम लोग इस से खुश हुए जो दरअसल में धनाढ्यों के प्रति सनातनी ईर्ष्या थी. इसे भावनात्मक रूप से भुनाया गया.

यह दांव ज्यादा नहीं चला. 3 दिन लोगों ने रईसों को कोसा, लेकिन चौथे दिन से ही उन्हें समझ आने लगा कि वे अच्छे दिनों के नारे की तरह छले गए हैं. रईस तो पूरे ठाट और शान से अपने आलीशान बंगलों में मौज कर रहे हैं और यहां हम अपनी गाढ़ी और मेहनत की कमाई के नोटों की लाश ढोते परेशान हो रहे हैं. सारे त्याग और धैर्य हमारे हिस्से में ही क्यों डाल दिए गए और इस से हमें मिल क्या रहा है. वह कथित कालाधन भी जहां रहा होगा मर गया उस से हमें क्या, अमीरों के घर में ही नोटों की लाश होती और हमारे नोट जिंदा रहते तो बात एक दफा समझ आती.

15 नवंबर तक आम लोगों खासतौर से गरीबों ने जिंदगी के जो बेहद कठिन दिन देखे वे किसी सुबूत के मुहताज नहीं. हालत यहां तक रही कि बदइंतजामी के चलते पेट की आग बुझाने के लिए गरीबों ने 500 का नोट 300 में और 1000 का नोट 800 रुपए में बेचा. एक झटके में नोटों की कीमत गिर गई. मुद्रा का ऐसा अवमूल्यन दुनिया में पहले कहीं देखने में नहीं आया था.

लोगों को यह भी समझ आया कि जिन बड़े नोटों को परेशानियों, जमाखोरी और गरीबी की वजह बताया जा रहा था सरकार तो उस से भी बड़े नोट चलाने जा रही है और क्या नए नोटों से घूसखोरी बंद हो जाएगी? क्या अब नामांतरण के बाबत पटवारी को रिश्वत नहीं देनी पड़ेगी? क्या अब पुलिस वाले बेवजह डंडे बरसाना बंद कर देंगे और रिपोर्ट लिखने के लिए घूस नहीं मांगेंगे? क्या महंगाई कम हो जाएगी? क्या इस से हमारी आमदनी बढ़ जाएगी? ऐसे सैकड़ों सवालों से लोग बैचेन हो उठे और फिर खुद ही उन के जवाब ढूंढ़ लिए कि नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा. हम एक बार फिर दिनदहाड़े ठगे जा चुके हैं.

अमेरिका के नए राष्ट्रपति चुने गए डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की तरह वैश्विक नेता की इमेज बनाने पर उतारू हो आए नरेंद्र मोदी ने कुछ नहीं देखा,जिन्हें मालूम है कि देश के लोग बेहद डरपोक और भक्त टाइप के हैं जिन्हें दवा की खुराक की तरह निश्चित अंतराल पर वादों और झुनझुनों की अफीम चटाते रहो तो वे फिर सुस्त पड़ जाते हैं.

लेकिन तेजी से एक सवाल आम लोगों द्वारा यह भी किया जाने लगा कि क्या गारंटी है कि नोट या करैंसी माफिया नए नोटों की नकल नहीं करेगा या नहीं कर पाएगा और यह कालाधन दरअसल में होता क्या है. इस वक्त तक सोशल मीडिया पर अर्थशास्त्र का ज्ञान बहुत फैल चुका था. दूसरी तरफ एक छोटा ही सही एक और वर्ग सक्रिय था, जो बारबार कह रहा था कि देखते तो जाओ यह मोदीजी का मास्टर स्ट्रोक है, इस से धनकुबेर कराहने लगेंगे. आप मोदी का साथ तो दो फिर देखो कैसे पैसा बाहर आता है.

इस मामले में भी राष्ट्रभक्ति को यह कहते घसीटा गया कि क्या देश के लिए आप कुछ दिनों की परेशानी नहीं झेल सकते. इधर परेशानियां झेल रहे लोगों को यह ज्ञान भी प्राप्त हो गया था कि अच्छी बात तो यह है कि सरकार उन के पैसे छुड़ा नहीं रही, यह कम मेहरबानी की बात नहीं. इस आर्थिक आपातकाल को सहन कर तो लिया गया, लेकिन साफ यह भी दिख रहा है कि लोग अपनी भड़ास निकाले बगैर मानेंगे नहीं.

हकीकत बताई गोविंदाचार्य ने

कालेधन की परिभाषा और उदाहरणों के द्वंद में फंसे लोगों को यह भी समझ आ गया था कि दरअसल में यह कोई तकनीकी कदम या व्यवस्था नहीं है, बल्कि कालेधन के खिलाफ एक अस्थाई स्थगन आदेश है जिस की मियाद 30 दिसंबर, 2016 तक की है.

तमाम उमड़तीघुमड़ती शंकाओं और सवालों के जवाब कभी भाजपा के थिंकटैंक और आरएसएस के मुख्य चिंतक गोविंदाचार्य ने बिना किसी डर या लिहाज के पेश कर दिए. अभी तक जो बातें कहेसुने और अंदाजों पर की जा रही थीं उन्हें गोविंदाचार्य ने तर्क और उदाहरणों सहित प्रस्तुत किया.

बकौल गोविंदाचार्य इस कदम से महज 3 फीसदी ही कालाधन वापस आ पाएगा और इस के कोई दूरगामी नतीजे नहीं निकलने वाले, यह केवल चुनावी जुमला बन कर रह जाएगा. भारत में साल 2015 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 20 प्रतिशत अर्थव्यवस्था काले बाजार के रूप में मौजूद थी, जो साल 2000 के वक्त 40 फीसदी तक थी यानी यह धीरेधीरे घटते हुए 20 फीसदी तक पहुंची है. 2010 में भारत की जीडीपी 150 लाख करोड़ थी यानी उस साल देश में 30 लाख करोड़ रुपयों का कालाधन पैदा हुआ. इसी आधार पर अंदाजा लगाएं तो 2000 से ले कर 2015 तक कम से कम 400 लाख करोड़ रुपयों का कालाधन निर्मित हुआ.

एक सटीक दलील गोविंदाचार्य ने यह दी कि अगर रिजर्व बैंक के इस आंकड़े को सच मान भी लिया जाए कि मार्च 2016 में 500 और 1000 रुपए के नोटों का कुल मूल्य 12लाख करोड़ था जो देश में उपलब्ध 1 रुपए से ले कर 1000 तक के नोटों का 86 फीसदी था यानी यह मान लें कि देश में मौजूद सारे 500 और 1000 के नोट कालेधन की शक्ल में जमा हो चुके थे, यह असंभव बात है और इस के बाद भी बीते 15 सालों में जमा हुए 400 लाख करोड़ रुपए कालेधन का यह सिर्फ 3 फीसदी होता है.

गोविंदाचार्य की इस व्याख्या ने लोगों के इस अंदाज या खयाल को पुख्ता ही किया कि लोग कालेधन से सोनाचांदी, हीरेजवाहरात और जमीनजायदाद जैसी कीमती चीजें खरीद लेते हैं, क्योंकि ये चीजें नोटों से ज्यादा सुरक्षित होती हैं.

अपनी बात को और सहज बनाते और उस में दम लाते गोेविंदाचार्य ने कहा कि जो कालाधन उपरोक्त मदों में बदला जा चुका है, उस पर 500 और 1000 के नोटों को खत्म कर देने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.

नरेंद्र मोदी के इस आर्थिक आपातकाल की धज्जियां और फैसले का मखौल उन्होंने यह कहते भी उड़ाया कि दरअसल में कालाधन, घूस लेने वाले राजनेताओं, अफसरों और कर चोरी करने वाले बड़े व्यापारियों के अलावा नाजायज तरीके से धंधा करने वाले माफियाओं के पास रहता है. ये लोग बनती कमाई को नोटों की शक्ल में नहीं रखते हैं, बल्कि उपरोक्त चीजों में लगा देते हैं.

फिर सरकार कौन से कालेधन की बात कर लोगों को बहला रही है. यह बात वाकई सिरे से किसी की समझ में नहीं आ रही. वजह, नोट बदलने वाले पूरे सौ फीसदी लोग वे लोग थेजिन के पास एक नंबर का पैसा था. ये वे लोग थे जिन्होंने कुछ हजार या 4-5 लाख रुपए तक जमा कर रखे थे, जो अब यह सोचते नोटों की लाश के पास मातम मना रहे हैं कि क्या मेहनत से पैसा कमाना गुनाह हो गया है.

गोविंदाचार्य की इस बात से भी सभी सहमत दिखे कि इस फैसले से आम लोगों को सुविधा नहीं होगी. यह फैसला लोगों की आंखों में धूल झोंकने वाला है और देश को 500 और 1000 के नोटों को छापने में लग चुके धन का भी नुकसान है.

सरकारी तैयारियों की खामियां उजागर हुईं तो नई करैंसी को छापने से ले कर लागू करने तक का खर्च कितने हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया, इस का विवरण आना अभी बाकी है. अंदाजा भर लगाया जा सकता है कि इस में 20 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा खर्च होंगे जिस की मार भी आखिरकार आम आदमी को ही झेलना पड़ेगी.

तय है महंगाई और बढ़ेगी कई जरूरी चीजों की कमी बाजार में दिखने लगी है, क्योंकि नकदी आधारित अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रवाह थम सा गया है. नए बजट में टैक्स बढ़ाना सरकार की मजबूरी हो जाएगी वह भी उस सूरत में जब वह खुद के खर्च कम करने के बजाय और बढ़ा रही है. राष्ट्रपति और सांसदों का वेतन बढ़ाया जा चुका है और उसी अनुपात में भत्ते भी बढ़ाए जा चुके हैं. ऐसे में महंगाई तो दूर की बात है कालेधन, भ्रष्टाचार या घूसखोरी से राहत की बात सोचना भी बेवकूफी की बात है.

फिर भावुकता की खुराक

जब अफरातफरी मची और बगावत के आसार नजर आने लगे तो 13 नवंबर को फिर नरेंद्र मोदी ने गोआ में आयोजित एक कार्यक्रम में पुराना नुसखा आजमाया जो उम्मीद के मुताबिक ज्यादा कारगर साबित नहीं हुआ. गोआ में हैरतअंगेज तरीके से उन्होंने कहा, ‘मैं जानता हूं कि कैसेकैसे लोग मेरे खिलाफ हो जाएंगे. मैं 70 साल का उन को लूट रहा हूं, वे मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे, मुझे बरबाद कर के रहेंगे, उन को जो करना है करें.’

यहां उन्होंने, ‘‘भाइयो और बहनो (बकौल एक व्हाट्सऐप मैसेज जिसे सुन दहशत सी आ जाती है) सिर्फ कुछ दिन मेरी मदद करो, इस के बाद आप को सपनों का भारत मिलेगा.30 दिसंबर के बाद गलती निकल आए तो मैं सजा के लिए तैयार हूं. कालेधन पर सरकार का यह पहला वार है, अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.’’

जाहिर है नरेंद्र मोदी न केवल खिसिया गए हैं, बल्कि घबरा भी गए हैं और लगता ऐसा है कि वे नोटों की मौत से दुखी लोगों को प्रवचन यह दे रहे हैं कि आत्मा कभी नहीं मरती शरीर बदल लेती है यानी आप की 2-5 हजार की मुद्रा मरी नहीं है उस ने रंगरूप बदल लिया है इसलिए उस का शोक मत करो.

गोआ से एक नया बचकाना झुनझुना बेनामी जायदादों पर कानूनी शिकंजा कसने का उन्होंने थमाया. शायद ही कानून का कोई जानकार बताए कि बेनामी जायदाद क्या और कैसी होती है. जो बताई जा रही है उस के मुताबिक 2 से ज्यादा संपत्तियां रखना अपराध की श्रेणी में आएगा तो साफ दिख रहा है कि आर्थिक आपातकाल को पूरी तरह आपातकाल में बदलने की बात की जा रही है. क्योंकि इस से वाकई लोग और परेशान हो जाएंगे. संभावित विद्रोह को रोकना जरूरी हो जाएगा कि इंदिरा और संजय गांधी के नक्शेकदम पर चला जाए और गरीबों को बहलाया जाता रहे कि इत्मीनान रखो, अमीर तुम्हारी गरीबी की वजह है जिन से कार्ल मार्क्स के उसूलों पर चलते रौबिनहुड की तरह पैसा छुड़ा कर तुम्हें दिया जाएगा.

यह ठीक पंडेपुजारियों जैसा वादा भी है कि बस पूजापाठ करते रहो तमाम दुख दूर हो जाएंगे और मोक्ष मिल जाएगा यानी धर्म को अर्थ का जामा पहना कर अच्छे दिन लाने की बात कही जा रही है जिस की और भारी कीमत चुकाने के लिए लोगों को तैयार रहना चाहिए. कल को मुमकिन है नया फरमान आ जाए कि अपने घर में रखे सोने का हिसाब दो. महंगा, फर्नीचर और इलैक्ट्रौनिक आइटम सरकार के पास जमा करा दो. इस से गरीबी बढ़ रही है और असल कालाधन यही है. सार यह कि जैसे भी हो, सब को गरीब कर दो, जिस से न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.            

मजबूरी में जनता

लखनऊ का गोमतीनगर इलाका बेहद पौश इलाका है. यहां विरामखंड में डाक्टर प्रभा अपने पति नीलेश के साथ रहती हैं. 65 साल की डाक्टर प्रभा के 2 बेटे हैं. दोनों जरमनी में रहते हैं. वहां बड़ा बेटा इंजीनियर और छोटा बेटा डाक्टर है. बडे़ बेटे की शादी हो चुकी है और छोटा बेटा शादी की तैयारी में है. डाक्टर प्रभा और नीलेश बेटों के पास जरमनी रहने नहीं जा रहे, क्योंकि वे अपने घर को छोड़ना नहीं चाहते. डाक्टर प्रभा केंद्र सरकार के संस्थान में काम करती थीं. उन के पति हैल्थ विभाग में मैडिकल औफिसर के रूप में रिटायर हुए. घर में पतिपत्नी ने अपनी मदद के लिए 2 नौकर रखे हुए हैं. जिन में से एक खाना बनाने और दूसरा घर के दूसरे काम करता है.

सुरक्षा की नजर से डाक्टर प्रभा अपने पास कैश में पैसा कम ही रखती थीं. जो पैसा होता भी था वह 500 और 1000 के नोटों में होता था. पतिपत्नी अपनी मिलने वाली पैंशन को बैंक के खाते में ही रखते थे. कभी जरूरत होती थी तो बेटे भी बैंक के खाते में ही पैसे भेजते थे. डाक्टर प्रभा ने बताया, ‘‘8 नवंबर को जिस दिन बड़े नोट सरकार ने बंद कर दिए उस दिन मेरे पास केवल 400 रुपए के छोटे नोट थे. यह एक दिन का भी खर्च नहीं था. अब मेरे पास परेशानी आ गई. बडे़ नोटों में मेरे पास 10 हजार रुपए थे. अगले दिन उन को बैंक में जमा करा दिया. बैंक में पैसा जमा कराना जो सरल था पर निकालना मुश्किल था.’’

डाक्टर प्रभा कहती हैं, ‘‘मैं नौकर को साथ ले कर बैंक  गई. चैक से केवल 10 हजार रुपए निकाल सकी. बैंक वाले ने बताया कि सप्ताह में 20 हजार ही निकाल सकते हैं. मैं ने जब से बैंक में खाता खोला यह पहली बार हुआ. अगले दिन अपने पति को भेजा तो उन के खाते से 10 हजार रुपए निकाले. मेरे पति जब लाइन में लगे तो उन को अपना पैसा निकालने में 3 घंटे लाइन में लगना पड़ा. मुझे 2 घंटे लगना पड़ा था. हम बूढे़ लोग हैं. हमें अपनी जरूरत के लिए पैसे पास में रखने पड़ते हैं. इस के लिए कई बार लाइन में लग कर पैसे निकाले. ऐसे जब जरूरत होती थी एटीएम से निकाल लेते थे. नोटबंदी के बाद बैंकों के एटीएम बंद हो गए.’’

कामकाजी महिलाओं की परेशानी

नेहा कालेज में टीचर है. लखनऊ में अलग हौस्टल में रह कर अपनी नौकरी करती है. नोट बंद होने के समय उस के पास केवल 300 रुपए थे. इस के अलावा 1000 और 500 के ही एकएक नोट रखे थे. इस के अलावा उस का काम बैंक के डैबिट कार्ड से चलता था. वह बताती है, ‘‘स्कूल से छुट्टी नहीं मिल रही न तो बैंक में पैसा जमा करा पा रहे हैं और न ही एटीएम से. ऐसे में मैं ने वहां खाना खाना शुरू किया जहां पर डैबिट कार्ड से भुगतान हो रहा था. ऐसे में जो चाय, नाश्ता और खाना की कीमत बढ़ गई. मेरे पास जो पैसे थे वह आटो और रिक्शा को ही देने में खत्म हो गए.’’

नेहा बताती है, ‘‘मेरे स्कूल में हौस्टल में रहने वाले बच्चे परेशान हैं. उन के पास भी छुट्टे पैसे नहीं रह गए थे. ये लोग अपने खर्च के लिए परेशान हो गए. इन के पास जो एटीएम कार्ड थे वे सही तरह से चल नहीं रहे थे. खाते में पैसा होने के बाद भी लोग परेशान हुए. अगर सरकार ने बड़े नोट बंद करने के पहले छोटे नोट बाजार में जरूरी तादाद में डाले होते तो यह परेशानी जनता को नहीं होती. सरकार ने 2 हजार रुपए का नोट दिया उस के खुले पैसे मिलने मुश्किल हो गए. इस से लोग नाहक परेशान हो गए.’’  नेहा ने बताया कि 10 बार वह पैसे निकालने के लिए लाइन में लगी तब चौथे दिन जा कर उस को 2 हजार रुपए मिल सके.

घट रही खरीदारी

ऐसी परेशानी केवल शहरी इलाकों में ही नहीं है, गांवों में भी बुरा हाल है. निगोहां गांव के रहने वाले रामकुमार बताते हैं, ‘‘गेहूं की बोआई के लिए धान की फसल बेच कर हम अपना काम चलाते हैं. नोटबंदी से पहले धान की खरीद करने वाला आढ़तियां 1400 रुपए प्रति क्ंिवटल की दर से खरीद कर रहा था. नोटबंदी के बाद अनाज के खरीदार कम हो गए. सरकारी खरीद केंद्रों में दूसरी परेशानियां थीं. ऐसे में कुछ लोगों ने धान की खरीद 900 रुपए प्रति क्ंिवटल कर दी. अब मजबूरी में किसान को अपना धान कम पैसे में बेचना पड़ रहा है, क्योंकि धान बेच कर ही गेहूं की बोआई की जा सकती थी.’’

भारतीय किसान यूनियन लखनऊ उत्तर प्रदेश के प्रवक्ता आलोक कुमार सिंह कहते हैं, ‘‘केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के अचानक बडे़ नोट बंद करने की घोषणा से सब से अधिक प्रभाव गरीब और मजदूर वर्ग पर पड़ा है. गरीब लोगों के सामने राजमर्रा की जरूरतों के लिए नकदी की कमी आ गई. वहीं दिहाड़ी मजदूरों को काम मिलने में परेशानी आने लगी. इस से ये लोग भूखों मरने की कगार पर पहुंच गए. इस के अलावा किसान रबी की फसल की बोआई के वक्त बीज, खाद, कीटनाशक जैसी जरूरी चीजे नहीं खरीद पा रहा है. बोआई के जिस समय किसान को अपने खेत में होना चाहिए था उस समय वह ग्रामीण बैंकों, जिला सहकारी बैंकों, सहकारी समितियों व दुकानों के बाहर लाइन में खड़ा है. किसान को 4 बोरी खाद और बीज नहीं मिल पाया. नोट बंद करने से पहले सरकार को इन विषयों और सामाजिक हालात को ध्यान में रखना चाहिए था. भारत कृषि प्रधान देश है. खेती प्रभावित होने से इस का असर फसल की पैदावार पर पड़ेगा और देश में खाद्यान का संकट खड़ा हो जाएगा.’’

उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल के प्रांतीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद बनवारी लाल कंछल कहते हैं, ‘‘नोट के बंद हो जाने के बाद से देश का 95 प्रतिशत ईमानदार नागरिक परेशान हो रहा है. बैंकों के सामने सैकड़ों लोगों की लाइन लगी देखी जा सकती है. अपना ही पैसा लेने के लिए लोग भूखेप्यासे लाइन में लगे हैं. यह देश की जनता के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है. भारत सरकार को ऐसे कदम उठाने से पहले समस्या के समाधान पर विचार करना चाहिए था. सरकार ने जल्दबाजी में यह फैसला किया. इस तरह की समस्या आगे बढे़गी. छोटा कारोबारी इस से बहुत परेशान हो रहा है.’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बारबार कहते हैं कि नोटबंदी के बाद देश की आम जनता चैन से सो रही है. एक बार बैंकों में लगी लाइनों पर नजर डालें तो बात साफ हो जाती है कि परेशान कौन है? प्रधानमंत्री बारबार देश के कारोबारियों पर हमला बोल रहे हैं. सच तो यह है कि देश का 80 फीसदी कालाधन नेताओं और अफसरों के पास है. इन पर प्रधानमंत्री कोई भी टिप्पणी नहीं करते हैं. यह उचित नहीं है. बैंकों के सामने कोई भी बड़ा आदमी लाइन में नहीं लगा है. बैंकों के सामने मजदूर, किसान, गृहिणी, बिजनेसमैन, कारोबारी, बूढे़ और कर्मचारी लाइन में लगे हैं.’’

परेशान गृहिणियां

महिला कारोबारी नेता रजिया नवाज कहती हैं, ‘‘बिना फुटकर पैसे के घर का खर्च नहीं चल पा रही. सब्जी, दूध, मसाले, आटा, चावल खरीदने के पैसे नहीं हैं. बीमार

लोगों के लिए दवा के पैसे नहीं हैं. अस्पताल वाले चैक लेते हैं पर जो लोग डाक्टर को उन की क्लीनिक में दिखाने जाते हैं तो वहां नकद पैसे नहीं लिए जाते. सर्दी, बुखार और ऐसी ही बीमारी में डाक्टर को नकद पैसे चाहिए होते हैं. जिस का इंतजाम करना मुश्किल हो गया. मेरी जानने वाली एक महिला एक दिन आंख टैस्ट कराने डाक्टर के पास गई. डाक्टर की फीस 400 रुपए थी. फीस देना उन के लिए मुश्किल हो गया. डाक्टर ने उन को बाद में पैसे देने के लिए कहा तब उन की आंखों का टैस्ट हो सका.’’

रजिया कहती हैं, ‘‘सब से ज्यादा परेशान गृहिणियां हैं. एक तो उन के बचत के पैसे को सरकार कालाधन सा मान बैंक में जमा करने को कह रही है. दूसरी ओर घर के छोटे कामों के लिए फुटकर पैसों की जरूरत होती है. ऐसे में उन्हें अपनी जरूरत के लिए पैसे नहीं मिल पा रहे. ऐसे में गृहिणियों के परेशान होने से सरकार के खिलाफ बड़ा माहौल बन रहा है. सरकार को इस बात का अंदेशा है यही वजह है कि वह प्रधानमंत्री

नरेंद्र मोदी की मां के बैंक में जाने व नोट लेते हुए फोटो दिखाए गए, जिस से लोगों में नाराजगी कम हो जाए. इस के बाद भी गृहिणियों की नाराजगी कम नहीं हो रही है. उन का कहना है कि मोदीजी की मां को अपने पैसे निकालने के लिए लाइन में क्यों लगना पडे़ और हम गृिहणियों को भी क्यों लाइन में लगना पडे़.                 

– साथ में शैलेंद्र सिंह

नोटबंदी पर सिकुड़ी सियासत

कमजोर और बिखरा विपक्ष अकसर सत्तारूढ़ दल को निरंकुश बना देता है,

यह बात नोटबंदी के फैसले से उजागर हुई. एक बेहद संवेदनशील और अहम मुद्दे पर कांग्रेस सहित तमाम क्षेत्रीय दल एकदूसरे का मुंह ताकते नजर आए कि क्या करें, अपना रुख उन्होंने जनता का मूड भांपते तय किया तो यह नरेंद्र मोदी को राहत देने वाली बात थी, क्योंकि इस मसले को विपक्ष न उगल पाया और न ही निगल पाया. तात्कालिक प्रतिक्रिया यह आई कि इस फैसले का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से गहरा ताल्लुक है और घाटे में बसपा रहेगी, क्योंकि मायावती के पास अरबों की नकदी बड़े नोटों की शक्ल में है. इस कथित आरोप को धता बताते मायावती ने कहा इस फैसले से आम लोगों खासतौर से गरीबों को तरहतरह की तकलीफें उठानी पड़ रही हैं. इस बाबत उन्होंने कुछ उदाहरण भी गिना दिए.

यही कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी ने कहा तो सपा की तरफ से मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव ने कुछ छूटें देने की मांग नरेंद्र मोदी से की. तुक की बात पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यह कही कि वे कालाधन बरामद करने के खिलाफ नहीं पर इस फैसले से देश में आर्थिक अराजकता का माहौल बना है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल किसी घोटाले की तरफ इशारा करते नजर आए तो उन के गुरु समाजसेवी अन्ना हजारे ने इसे साहसिक कदम बताते केंद्र सरकार की तारीफों में कसीदे गढ़ डाले.

चौंका देने वाली एक प्रतिक्रिया शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने दी. उन्होंने कहा कि कहीं ऐसा न हो कि लोग सरकार के खिलाफ ही सर्जिकल स्ट्राइक कर दें.

जाहिर है इन में से कोई दल जरूरत के मुताबिक आक्रामक नहीं हो पाया तो उस की वजह शुरू में आम लोगों का इस फैसले से इत्तेफाक रखना था. जैसेजैसे लोगों को हकीकत समझ आई वैसेवैसे विपक्षी दल भी रंग बदलते नजर आए और उन का सारा फोकस लोगों की परेशानियों के इर्दगिर्द सिमटा रहा जो मोदी और उन की सरकार सहित भाजपा को भी राहत देने वाली बात थी. लेकिन साफ दिख रहा है कि जोशजोश में सत्तारूढ़ दल के कप्तान ने अपने ही पाले में गोल मार दिया है. रही बात चुनावी भ्रष्टाचार रोकने की तो लग नहीं रहा कि पूंजीपतियों की तरह राजनीतिक दलों पर इस फैसले से कोई खास फर्क पड़ेगा.

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