‘व्यवसाय में फिल्मों से ज्यादा चुनौतियां’

नागेश कुकनूर की फिल्म ‘बौलीवुड कॉलिंग’ से डेब्यू करने वाली अभिनेत्री पेरिजाद जोराबियन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फिल्म ‘जौगर्स पार्क’ से कामयाबी मिली. दरअसल, बचपन से ही स्टेज परफौर्मैंस का शौक रखने वाली पेरिजाद ने न्यूयौर्क में एमबीए की पढ़ाई खत्म करने के बाद अफ्रीकन डांस सीखा. 12 साल बैले किया. थिएटर में थोड़े दिनों तक काम किया.

उन्हें जहां भी मौका मिलता स्टेज पर अवश्य परफौर्म करतीं. तब फिल्मों के बारे में कभी सोचा भी नहीं था. पर पेरिजाद ने जब फिल्म में काम करना शुरू किया, तो उन्हें परिवार का पूरा सहयोग मिला. धीरे धीरे उन्होंने कई फिल्में कर डालीं.

अलग रास्ता

हालांकि वे सिर्फ अनुभव लेना चाहती थीं. पर एक के बाद एक फिल्में करती गईं, तो पिता के पोल्ट्री फार्म के व्यवसाय में उन की उपस्थिति कम होने लगी. फिर एक दिन पिता ने साफ साफ उनकी इच्छा जाननी चाही कि उन्हें करना क्या है. तब पेरिजाद भी तय कर चुकी थीं कि वे क्या करेंगी.

अत: वे ऐक्टिंग छोड़ बिजनैस में आ गईं. जब वे एन. चंद्रन की फिल्म ‘ये है मेरा इंडिया’ की शूटिंग कर रही थीं, उसी दौरान रियल ऐस्टेट व्यवसायी बमन रुस्तम ईरानी से एक इवेंट के दौरान मुलाकात हुई. फिर प्यार हुआ और फिर शादी. तब पेरिजाद ने तय किया कि वे पहले परिवार को बढ़ाएंगी, फिर काम. वे 2 बच्चों बेटी अजहा और बेटे जयान की मां बनीं.

परिवार का श्रेय

आज पेरिजाद ‘जोराबियन चिकन’ की ओनर और डायरैक्टर हैं. यहां तक पहुंचने का श्रेय वे अपने मातापिता और पति को देती हैं, जिन्होंने उन का पूरा पूरा साथ दिया.

व्यवसाय में आप को किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

पेरिजाद कहती हैं, ‘‘यह सही है कि ‘पोल्ट्री’ का व्यवसाय मेल डौमिनेट है. मैं जब यहां आई तो मैं ही एक लड़की थी. पर बाद में मैं ने कई लड़कियां रखीं ताकि उन्हें काम मिले और मुझे काम करने में आसानी हो. मैं महिलाओं को शक्तिशाली बनाने में विश्वास रखती हूं. मेरे पिता ने मुझ में और मेरे भाई में कोई फर्क नहीं किया. मेरा भाई पोल्ट्री फार्म हाउस संभालता है. मातापिता के हिसाब से मेरी और उस की काबिलीयत बराबर की है. टीम में सारे लड़के हैं. वे किसी महिला द्वारा कही गई बात को अधिक नहीं मानते थे. अत: मैंने तय किया कि उन का सहयोग पाने के लिए चीखने चिल्लाने की जगह धैर्य से काम लेना होगा.”

‘‘मैं ने अपना सम्मान जबरदस्ती नहीं, बल्कि प्यार से पाया है, जो बहुत मुश्किल था. मेरा ब्रैंड 5 साल पुराना हो चुका है और मैं खुश हूं कि कुछ हद तक इस में मुझे सफलता मिली है. मैं इस में चिकन की रिटेल लाइन को देखती हूं. पहले मेरे पापा होलसेल मार्केट को देखते थे जो मुंबई और पुणे तक सीमित थी, लेकिन धीरे धीरे इस में कंपीटिशन बढ़ने लगा, तो मैंने ही सलाह दी कि रिटेल बेचना आज बहुत जरूरी है, क्योंकि जो लोग होटल में खाना खाते हैं उन्हें कौन सा चिकन दिया जा रहा है पता नहीं होता. ऐसे में ब्रैंड स्थापित नहीं हो सकता. आज रिटेल की डिमांड है. तब हमारी बहुत अच्छी ग्रोथ हुई. मुंबई, पुणे, दिल्ली, भोपाल, बैंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई, सूरत आदि सभी जगहों पर इस की काफी डिमांड है.’’

खुद करती हैं देखभाल

पेरिजाद बताती हैं, ‘‘मेरे पास अंडों से ले कर चिकन बनने तक का पूरा प्रोसैस है, जिसे हम अपनी देखरेख में करते हैं. अच्छा दाना, अच्छी देखभाल, बेहतर साफसफाई से मुरगेमुरगियां उत्तम क्वालिटी की होती हैं. इन्हें किसी प्रकार का इंजैक्शन दे कर बड़ा नहीं किया जाता. चिकन की कई रैसिपीज जैसे शामी कबाब, सीख कबाब आदि को महिलाएं, पुरुष व यूथ सभी चंद मिनटों में बना सकते हैं. सामान हम हमेशा डिमांड से थोड़ी कम मात्रा में बनाते हैं ताकि बचे नहीं.’’

परिवार के साथ काम संभालने में परेशानी नहीं होती?

पेरिजाद बताती हैं, ‘‘मेरी टीम बहुत अच्छी है. घर पर जो मेरा सपोर्ट सिस्टम है वह भी बहुत अच्छा है. सुबह उठ कर थोड़ा वर्कआउट करती हूं. फिर औफिस और शाम को घर पहुंच कर बच्चों की पढ़ाई देखती हूं.’’

अब फिल्मों में आने की इच्छा नहीं होती?

‘‘अभी मेरे बच्चे छोटे हैं. फिर भी अगर अच्छी फिल्म मिलेगी, तो मैं अवश्य करना चाहूंगी.’’

ट्रेवल के दौरान भी फेसबुक से चिपके रहते हैं भारतीय

भारत में अधिकांश पर्यटक यात्रा के दौरान अपना अधिकांश समय फेसबुक का इस्तेमाल करने में व्यतीत करते हैं. एक ताजा अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है. इस अध्ययन में कहा गया है कि भारतीय पर्यटक कुर्सी पर आराम फरमाने से 50 फीसदी ज्यादा समय फेसबुक के साथ बिताते हैं.

दुनिया के 31 देशों के 9,200 पर्यटकों पर किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, यात्रा करते हुए छुट्टियां बिताने के दौरान लोग सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताते हैं, अपने मोबाइल से यात्रा के लिए जरूरी चीजें तलाश करते रहते हैं और अपने साथी यात्रियों की बजाय फेसबुक से चिपके रहते हैं.

वेबसाइट पर जारी बयान के अनुसार, 95 फीसदी भारतीय पर्यटक यात्रा के दौरान अपना अधिकांश समय अन्य सोशल साइटों की जगह फेसबुक पर ज्यादा गुजारते हैं.

जब भी छुट्टियों में कहीं घूमने का विचार करते हैं तो नदी किनारे घंटों आराम करने या किसी नए नगर के नयनाभिराम दृश्यों को निहारते रहने की कल्पना आपको रोमांच से भर देती है, लेकिन यह सर्वेक्षण इसके उलट बताया है कि न सिर्फ भारत के बल्कि पूरी दुनिया के पर्यटक यात्रा के दौरान अधिकांश समय मोबाइल के साथ ही गुजारते हैं.

औसतन भारतीय पर्यटक पर्यटन के दौरान सिर्फ दो घंटे प्रतिदिन आराम फरमाते हुए बिताते हैं, जबकि फेसबुक पर वे प्रतिदिन साढ़े तीन घंटा व्यतीत करते हैं.

सर्वे में एक और रोचक खुलासा किया गया है कि 40 प्रतिशत वैश्विक पर्यटकों ने स्वीकार किया कि दिखावे के लिए पर्यटन स्थलों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर अपलोड करते हैं, जबकि 27 फीसदी पर्यटकों ने स्वीकार किया कि अपने मित्रों को जलाने के लिए वे सोशल मीडिया पर नए-नए पर्यटक स्थलों को ढूंढते और उनका जिक्र करते रहते हैं.

जायकेदार स्मोकी सालसा

सामग्री

– 4 बड़े टमाटर छिले और 6 टुकड़ों में कटे हुए

– 1-2 छोटी सूखी लालमिर्चें

– 1 मध्यम आकार का प्याज 6 टुकड़ों में कटा हुआ

– 1 कली लहसुन

– 1/3 कप सिरका

–  नमक स्वादानुसार

विधि

हैवल्स ग्राइंडर में 4 की स्पीड पर टमाटर, सूखी लालमिर्चें, प्याज, लहसुन को पीस लें और एक बाउल में मिश्रण निकाल लें. अब बची सामग्री को मिश्रण में मिक्स करें और मिश्रण को उबालें. गाढ़ा होने पर सालसा को एक सौस पैन में डालें और

5 से 10 मिनट तक पका कर सर्व करें.

मोटापा आपके दिमाग को भी बनाता है मोटा

अगर आपको लगता है कि मोटापे की वजह से सिर्फ पर्सनैलिटी पर असर पड़ता है तो आप गलत हैं. दरअसल, मोटापे का असर न केवल हमारी पर्सनैलिटी पर पड़ता है बल्क‍ि इससे हमारा दिमाग भी प्रभावित होता है.

यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज में हुई एक स्टडी में पाया गया है कि एक पचास साल के मोटे आदमी का वाइट मैटर, 60 साल के सामान्य आदमी जितना होता है.

हमारे दिमाग में मौजूद वाइट मैटर, सेंसटिव टिशू होते हैं जो सूचनाओं को दिमाग के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक ले जाने को काम करते हैं. हमारे दिमाग में मौजूद ये वाइट मैटर उम्र के साथ संकुचित होता जाता है.

उम्र के साथ हमारा दिमाग सिकुड़ने लगता है. लेकिन दिमाग के संकुचन पर मोटापे का भी असर होता है. मोटापा भी दिमाग के सिकुड़ने को प्रभावित करता है. इसके अलावा मोटापा कैंसर, डायबिटीज और दिल से जुड़ी बीमारियों का भी कारण हो सकता है.

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने ये जानने की कोशिश की कि मोटापे का हमारे दिमाग पर क्या असर होता है.

इसके लिए उन्होंने 473 लोगों पर अध्ययन किया. इन सभी लोगों की उम्र 20 से 87 के बीच थी. इस अध्ययन को दो भागों में बांटा गया. एक में पतले-दुबले लोगों को रखा गया और दूसरे में ओवर-वेट लोगों को.

शोधकर्ताओं को दोनों किस्म के लोगों के वाइट मैटर में जबरदस्त अंतर देखने को मिला. अध्ययन में पाया गया कि मोटे लोगों का वाइट मैटर तुलनात्मक रूप से ज्यादा तेजी से सिकुड़ता है. इस अध्ययन को न्यूरोबायोलॉजी ऑफ एजिंग में पब्ल‍िश किया गया है.

फिर से नहीं: भाग-6

अब तक आप ने पढ़ा:

प्लाक्षा और विवान में गहराई तक दोस्ती थी. बात शादी तक पहुंचती, इस से पहले ही दोनों का ब्रेकअप हो गया. कुछ साल बाद दोनों की फिर से मुलाकात हुई, जो बढ़ती ही गई. अपनीअपनी शादी रुकवाने के लिए दोनों ने एकदूसरे के घर वालों के सामने नाटक किया और कुछ दिनों तक के लिए शादी रुकवा ली. उधर जिस लड़की साक्षी को विवान ने अपनी मंगेतर बताया था, उसे प्लाक्षा के बचपन के एक दोस्त आदित्य ने भी अपनी मंगेतर बता कर प्लाक्षा की उलझनें बढ़ा दी थीं. उन दोनों को एकसाथ प्लाक्षा ने मौल में भी खरीदारी करते देखा था. पर जब इस बात की जानकारी उस ने विवान को दी तो विवान ने कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई. प्लाक्षा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है. जब वह विवान से मिली तो यह सुन कर और भी हैरान रह गई कि यह सब उस ने उसे ही पाने के लिए किया था.

विवान के बारबार झूठ बोलने की वजह से प्लाक्षा का उस से मोहभंग हो चुका था. विवान के बारबार मनाने के बावजूद भी दोबारा जुड़ने और शादी करने को ले कर प्लाक्षा ने साफसाफ मना कर दिया था. आंखों में आंसू लिए विवान वापस लौट गया और फिर कभी उसे फोन नहीं किया.

कुछ दिनों बाद अपने मम्मीपापा की बारबार विवाह करने की जिद पर वह एक लड़के वाले के घर मिलने जाने के लिए तैयार हो गई. एक दिन जब प्लाक्षा अपने मम्मीपापा के साथ लड़के वाले के यहां पहुंची तो उस के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. प्लाक्षा के मम्मीपापा उसे जिस लड़के वाले के यहां ले कर आए थे, वह तो विवान का ही घर था. वहां भी विवान उसे अकेले में कमरे में मिला तो रोरो कर उस की आंखें लाल हो गई थीं. विवान अपने किए पर शर्मिंदा था और बारबार प्लाक्षा से माफी मांग रहा था. प्लाक्षा ने शादी के लिए उस वक्त हां कर दी.

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मेरे लिए यह सब किसी सपने से कम नहीं था. उस दिन तो अचानक सारा सच सामने आ जाने के कारण कुछ महसूस नहीं कर पा रही थी. लेकिन आज यह सब मुझे अच्छा लग रहा था. आज लग रहा था कि मैं खास हूं. कोई मुझ से इतना प्यार करता है और सब से बड़ी बात यह कि वह और कोई नहीं बल्कि विवान है, जिस से मैं ने अपनी जिंदगी में सब से ज्यादा प्यार किया है.

‘‘थैंक्यू सो मच प्लाक्षा. अब आखिरी और सब से अहम सवाल,’’ एक पल को चुप्पी छा गई. मेरा दिल बहुत जोरजोर से धड़क रहा था, क्योंकि मुझे पता था कि वह क्या पूछने वाला था. वह उस की आंखों में साफ लिखा था. यह पहली बार नहीं था कि वह मुझ से यह पूछने वाला था, लेकिन उस दिन मैं कोई और ही थी. आज विवान के आंसुओं ने मेरा कड़वापन धो दिया था. आज मैं फिर से उस की पहले वाली प्लाक्षा बन गई थी, जो उस के मुंह से प्यार भरे शब्द सुनने को हर पल बेकरार रहती थी. कई दिनों बाद मेरी आंखों में फिर से वही हसरत थी. आखिरकार उस ने खामोशी तोड़ी.

‘‘तुम तो जानती हो प्लाक्षा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. मेरी अब तक की हरकतों से तो शायद तुम्हें समझ आ ही गया होगा,’’ विवान मासूमियत से बोला.

मैं हंस पड़ी. सच में अब उस की हरकतें याद कर के मुझे हंसी आ रही थी. अब गुस्सा कहीं नहीं था. बस यह लग रहा था कि उस ने जो कुछ भी किया मेरे लिए किया. मुझे यह बताने के लिए किया कि मैं उस के लिए कितनी महत्त्वपूर्ण हूं. उस के एकएक शब्द से मेरे शरीर में अजीब सी लहर दौड़ रही थी.

‘‘पहले शायद मैं तुम्हारे प्यार को समझ नहीं पाया, लेकिन जिस दिन से समझ आया तो जीना दुश्वार हो गया. तुम्हें पाने का जनून सा सवार हो गया. उसी जनून में न जाने क्याक्या कर गया.’’

मैं बस मुसकरा रही थी. वह बोलता जा रहा था और आज मैं बस उसे सुनना चाहती थी.

‘‘तुम ने मुझ से बहुत प्यार किया है प्लाक्षा. उस का हिसाब तो मैं जीवन भर नहीं चुका सकता. बस इतनी कोशिश कर सकता हूं कि हमेशा तुम्हें और तुम्हारे प्यार को पूरी अहमियत दे पाऊं. मैं तुम से प्यार करता हूं प्लाक्षा और हमेशा करता रहूंगा.’’

मेरी आंखों से आंसू छलक पड़े. लेकिन इस बार ये दुख के नहीं, बल्कि खुशी के थे.

‘‘मैं भी तुम से प्यार करती हूं विवान. मैं ने हमेशा सिर्फ और सिर्फ तुम से ही प्यार किया है और जिंदगी भर करती रहूंगी,’’ मैं उस से लिपट कर रो पड़ी. आज अपने अंदर का सारा जहर निकाल देना चाहती थी. उस की बांहों का एहसास मुझे सुकून दे रहा था. एक यही वह जगह थी जहां मुझे शांति मिल सकती थी. वह हौलेहौले मेरी पीठ सहला रहा था. धीरेधीरे मेरे आंसुओं का सैलाब थमने लगा. आज सालों बाद उस का स्पर्श पा कर लग रहा था जैसे मैं फिर से जी उठी थी.

‘‘प्लाक्षा, क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’ उस ने मुझे बांहों में लिए हुए ही पूछा.

‘‘शादी? मम्मीपापा को तो मैं ने शादी के लिए मना कर दिया था. अब फिर से क्या कहूंगी उन से? वे तो किसी और के साथ मेरी बात चला रहे थे,’’ मैं उस की बांहों से निकल कर हकीकत में आ गई, ‘‘क्योंकि मैं ने उन से कह दिया था कि हमारा ब्रेकअप हो गया है.’’

मेरी बात सुन कर वह परेशान होने के बजाय हंस पड़ा.

फिर बोला, ‘‘अरे हां, एक बात बताना तो मैं भूल ही गया. मैं ने तुम से एक और बात छिपाई है.’’

‘‘क्या?’’ मैं ने संदेह से उस की तरफ देखा.

‘‘मैं तुम्हारे मम्मीपापा से पहले मिल चुका हूं.’’

‘‘हां, मुझे पता है. मेरे साथ ही तो गए थे.’’

मैं उस की बात बीच में ही काट कर बोला, ‘‘उस से भी पहले मैं उन से मिला था, अपने मम्मीपापा के साथ अपनी शादी की बात करने के लिए,’’ वह हलकी मुसकान के साथ डरते हुए मुझे देख रहा था.

‘‘क्या?’’ पिछले कुछ दिनों में क्याक्या कर गया था विवान. और मम्मीपापा ने भी मुझे कुछ नहीं बताया.

‘‘हां बेटा यही है वह लड़का जिसे हम ने तेरे लिए पसंद किया था,’’ मम्मी ने कमरे में दाखिल होते हुए कहा. पापा और विवान के मम्मीपापा भी अंदर आ चुके थे.

‘‘बेटा, पहली बार विवान जब अपने मम्मीपापा के साथ हमारे घर आया तो हमें भी कुछ अटपटा लगा. मैं तो इसे पहले से जानती ही थी, कुछ तुम ने भी इस के बारे में बताया था. इस से बात करने पर पहले तो यह हमें नहीं जंचा. लेकिन खुशी इस बात की थी कि कोई हमारी बेटी से इतना प्यार करता है कि उस के लिए कुछ भी करने को तैयार है. फिर भी हम शंकित तो थे ही. जब तुम ने इसे घर बुलाया तब हम जानते थे कि तुम दोनों नाटक कर रहे हो. उस दिन विवान की बातें सुन कर यकीन हो गया कि वह तुम से कितना प्यार करता है.’’

कितना कुछ हो रहा था मेरी पीठपीछे और मुझे कोई खबर ही नहीं थी. बड़ी होशियार समझती थी खुद को. मगर आज इन सब ने मिल कर कितनी सफाई से मुझे बेवकूफ बना दिया था.

‘‘लेकिन हमारे लिए यह जानना ज्यादा जरूरी था कि तुम्हारे मन में क्या है. मैं ने कई बार तुम्हारे मन को टटोलने की कोशिश की और हर बार यही पाया कि तुम विवान से अपने प्यार को दबाती रही हो.’’

मां मेरे पास आ कर बैठ गईं और मेरा सिर सहलाने लगीं. फिर बोलीं, ‘‘जब तुम ने ब्रेकअप की खबर सुनाई तो मैं घबरा ही गई थी. मैं ने उसी वक्त विवान को फोन लगाया, तो उस ने बताया कि तुम ने साक्षी को देख लिया है. उसे मैं ने हमारे दिल्ली आने के प्लान के बारे में बताया और आगे कुछ भी करने को मना कर दिया. मुझे लगा कि तुम दोनों की आमनेसामने अच्छे से बात कराने से ही सब कुछ ठीक होगा. लेकिन फिर तुम ने साक्षी और आदित्य को साथ देख लिया जिस से मामला और बिगड़ गया.

‘‘विवान तो बिलकुल हिम्मत हार चुका था लेकिन हम ने प्लान में कोई बदलाव नहीं किया. यहां आ कर तुम्हें देखा तो यह भी विश्वास हो गया कि हम जो कुछ भी कर रहे हैं सही है. हम जानते थे कि तुम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हो. बस कुछ गलतफहमियां और अहं ही बीच में आ रहा है. जब आमनेसामने बैठ कर एकदूसरे की दिल की बात सुनोगे तो सब ठीक हो जाएगा.’’

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या प्रतिक्रिया करूं. सब को सब कुछ पता था, एक मैं ही इन सारी बातों से अनजान थी. सब मेरी तरफ देख कर मुसकरा रहे थे. विवान माफी मांगने के अदांज में मेरी तरफ देख रहा था. मैं कुछ कहूं उस से पहले ही पापा बोल पड़े, ‘‘तुझे जितना गुस्सा आ रहा है उसे इस विवान पर निकालना. यही मुजरिम है तेरा. हम बस तुम्हें खुशी देना चाहते थे. इसी ने हमें झूठ बोलने पर मजबूर किया. अब जी भर के इस की पिटाई करो,’’ सब हंस पड़े साथ में मैं भी.

विवान के मम्मीपापा ने भी उन का साथ देते हुए कहा, ‘‘हमारी बातों का कुछ बुरा लगा हो, तो माफ कर देना बेटा. हम तो बस इस के कहे अनुसार चल रहे थे. यही तुम्हारा गुनहगार है. अब तुम ही इस से निबटो,’’ इतना कह कर वे सब बाहर चले गए.

एक बार फिर हम दोनों अकेले थे. विवान मेरे पास आ कर बैठ गया. टेबल से अंगूठी उठा कर मेरे सामने कर दी और बोला, ‘‘अब तो हां कर दो या अब भी कोई ऐतराज है?’’

मैं ने हामी में सिर हिलाया, ‘‘अब क्या, अब तो सब कुछ साफ हो गया न? अब क्या बचा है?’’ वह फिर से नर्वस दिखने लगा.

‘‘वादा करो अब कभी मुझे परेशान नहीं करोगे, झूठ नहीं बोलोगे और…’’ मैं ने गंभीरता से कहा.

‘‘और?’’ उस ने पूछा.

‘‘और रोज मुझे दिन में कम से कम एक बार ‘आई लव यू’ कहोगे. कभी गुस्सा हुए तब भी,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.

‘‘पक्का,’’ कह कर उस ने मुझे सीने से लगा लिया. अब मुझे कोई डर नहीं था. उस की आंखें, उस का स्पर्श, उस की खुशी सब कुछ एक ही बात कह रहे थे कि वह अब कभी मेरा दिल नहीं दुखाएगा. उस की बांहों का घेरा यही सुकून दे रहा था कि अब फिर से मुझे कभी प्यार के लिए तरसना नहीं पड़ेगा.

डेयरी शौप से डेयरी ब्रैंड तक का सफर

मैं कभी पैसे के पीछे नहीं दौड़ा, बल्कि हमेशा अपने कंज्यूमर्स की जरूरत को समझने की कोशिश की है. यह कहना है आनन्दा ग्रुप के मालिक राधेश्याम दीक्षित का. बाजार में प्रचलित आनंदा डेरी प्रोडक्ट्स इसी ग्रुप का हिस्सा हैं. वर्तमान समय में ये प्रोडक्ट्स सभी की पहली पसंद बन चुके हैं. इस की बड़ी वजह है इन प्रोडक्ट्स की शुद्घता. इस बाबत राधेश्याम कहते हैं, कस्टमर तक अपनी पहुंच बनाने के लिए जरूरी है कि उन का भरोसा न टूटने पाए और आनन्दा ग्रुप अपने उत्पादों की शुद्घता को बनाए रखने के लिए डट कर काम करता है.

यही ईमानदारी ही राधेश्याम की सफलता की बड़ी वजह है. तब ही तो 12 साल की कड़ी मेहनत के बाद वे आनन्दा को इस मुकाम तक पहुंचा सके. वे आगे बताते हैं, पिताजी की एक छोटी सी डेयरी शौप थी. हम तीनों भाई पिताजी के साथ बारीबारी से दुकान में बैठते थे और काम सीखते थे. मैं ने तो 12वीं कक्षा से ही काम शुरू कर दिया था.

इतनी कम उम्र में ही बिजनैस के दांवपेच समझ जाने के बाद राधेश्याम यह तो तय कर चुके थे कि कुछ बड़ा करना है. यह मौका भी उन्हें मिला. एक बड़े ब्रैंड ने उन्हें अपनी एजेंसी देने का औफर दिया. यह उस वक्त बड़ी बात होती थी. राधेश्याम बताते हैं, हमारी डेयरी शौप बहुत मुनाफा कमा रही थी. लेकिन इस औफर के बारे में पिताजी और हम भाई सोचने पर मजबूर हो गए. बाद में यही तय किया कि हम एजेंसी का काम लेंगे.

चलती और मुनाफा कमाती दुकान किसी और को बेच कर और एक बड़ा जोखिम उठाते हुए राधेश्याम और उन के पिता जी ने एजेंसी काम शुरू किया अब दूध नहीं मक्खन बेचना था. काम चल पड़ा अब दूसरे डेयरी ब्रैंड भी राधेश्याम और उनके पिताजी को अपने प्रोडक्ट्स की एजेंसी लेने के लिए सपंर्क करने लगे थे. इस बाबत राधेश्याम बताते हैं, हम तैयार थे दूसरी एजेंसियों का काम लेने के लिए भी, लेकिन इस में कई अड़चनें भी थीं. पहली अड़चन यही थी कि पहली वाली एजेंसी दूसरी एजेंसी का हम काम लें . इस के सर्मथन में नहीं थी लेकिन काम तो लेना ही था सो एक एजेंसी मैं देखने लगा और दूसरी मेरा भाई.

लेकिन एक वक्त आया जब एजेंसी अपनी डिस्ट्रीब्यूटरशिप का काम वापस भी लेने लगीं. यह एक परेशानी वाली बात थी लेकिन इस कठिन समय का राधेश्याम ने डंट कर सामना किया. वे बताते हैं, हम उम्र में भी बड़े हो चुके थे और तजुर्बे में भी. मैं ने और भाइयों ने मिल कर तय किया कि अब हम प्रोडक्ट की डिस्ट्रीब्यूटरशिप लेने की जगह अपना ही प्रोडक्ट बनाएंगे. एक बार फिर हम जोखिम उठाने के लिए तैयार थे. इस के लिए सब से पहले हम ने वर्ष 1989 में एक चलता हुआ डेयरी प्लांट खरीदा और आनन्दा डेयरी की शुरुआत हो गई.

मगर यह उतना आसान नहीं था. अपना प्रोडक्ट बनाना, कस्टमर की डिमांड को ध्यान में रखना और उत्पाद की शुद्घता को बरकरार रखना. अब इन सभी की ओर ध्यान रखना पड़ता था. राधेश्याम बताते हैं, प्लांट हम तीनों भाइयों ने शुरू किया था. मगर धीरेधीरे हम सभी ने अपना अलगअलग काम शुरू कर दिया. आनन्दा डेयरी का काम मुझे अकेले ही देखना था इसलिए मैं एअरकंडीशनर औफिस में बैठ कर सब नहीं कर सकता था. मैं गांवगांव जाता और किसानों से मिलता. उन के लिए वर्कशौप कराता और उन्हें तैयार करता की वे अपनी गायभैंस का दूध हमें बेचें. धीरे से इस काम के लिए मै नें रूरल एरिया के लिए कोर टीम बनाई. इस टीम में हम कुछ गांव के लोगों को भी कंपनी के कर्मचारी के रूप में अपौइंट करने लगे.

लेकिन बात सिर्फ अपने उत्पादों की बिक्री की नहीं थी, बल्कि अपने डेयरी प्रोडक्ट्स को अन्य ब्रैंड के डेयरी प्रोडक्ट्स से बेहतर बनाने की थी. इस के लिए भी राधेश्याम को कड़ी मेहनत करनी पड़ी. वह बताते हैं, किसान ज्यादा दूध देने के चक्कर में कई बार जानवर को इंजैक्शन लगा देते हैं. लेकिन हम जिन 1 लाख 75 हजार किसानों से दूध लेते हैं, उन को हम ने ऐसा करने से रोकने के लिए हमने 3400 गांव में मिल्क ऐनालाइजर सिस्टम लगवाया. साथ ही हर 150 गांव के बीच 1 चिलिंग सैंटर होता है, जहां दूध रखा जाता है. दूध की शुद्घता को भी 2 बार मापा जाता है. पहले गांव में ही किसान से दूध लेते वक्त और दूसरी बार हमारी लैब में दूध को दोबारा जांचा जाता है. इस के बाद ही यह कंज्यूमर तक पहुंचता है.

इतना ही नहीं जानवरों के स्वास्थ्य के लिए आनंदा ग्रुप में 15 डाक्टर की टीम भी है, जो लगातार गायभैंस की ब्रीड को सुधारने के लिए काम करती रहती हैं.

दूध की इसी शुद्घता के साथ आनन्दा ग्रुप दूध के साथ ही मक्खन, पनीर, छांच, लस्सी, चाय वाला दूध, बच्चों के लिए विशेष दूध, चीज, घी जैसे कई डेयरी प्रोडक्ट्स बना रहा है और दिल्ली एनसीआर के बाजारों में यह सभी उत्पाद ग्रुप के ही 105 जी प्लस स्टोर्स और अन्य कंफैशनरी शौप में आसानी से उपलब्ध हैं.

इन सभी के अतिरिक्त आनन्दा ग्रुप जल्दी ही बाय मिल्क औनलाइन सुविधा भी लौंच करने वाला है. इस बारे में राधेश्याम जी बताते हैं,

इस में 1 माह भर के दूध के लिए पहले से ही पैसा जमा कर लिया जाएगा और घरों में इंस्यूलेटिड बौक्स लगवाए जाएंगे, जिस में मिल्क मैन कंज्यूमर के बताए टाइम पर दूध का पैकट रख कर जाएगा. यह तकनीक लोगों के लिए दूध प्राप्त करने की प्रक्रिया को और भी आसान बना देगी.

हे प्रभु, क्या कर दिया

अब मायके जाना आसान नहीं रह जाएगा. प्रभु, ऊपर वाले नहीं, रेल मंत्री ने, 50% किराया बढ़ाने का इंतजाम कर लिया है. एक तरह से रेल टिकट लेना एक लौटरी बन गई है. अब पहले 10% को ही सामान्य दर पर टिकट मिलेंगे, उस के बाद हर 10% को पहले से 10% ज्यादा देने पड़ेंगे और 50% तक अधिक देने पड़ सकते हैं.

यह रेलों के एकाधिकार का दुरुपयोग है. रेलें सस्ती हैं या नहीं यह अंदाजा लगाना आसान नहीं, क्योंकि इस पर सरकारी कब्जा है. कहां बरबादी हो रही है, यह कैसे पता चले? सरकार तो रेल मंत्रालय को पुलिस थानों की तरह से चलाती है, जहां हर मुलाजिम सेवा के लिए नहीं वसूलने के लिए खड़ा होता है. सेवा तो बहाना है. मकसद तो नौकरी सुरक्षित करना है.

रेल किराया बढ़ाना और वह भी इस तरह, बेहद नाइंसाफी है. रेल के एक डब्बे में बैठे 10% को 50% की छूट हो यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है. तत्काल सुविधा के अंतर्गत रेलवे पहले ही कुछ सीटें रिजर्व कर के अतिरिक्त वसूल रही थी. अब खाली ट्रेन में भी केवल 10% ही निर्धारित किराया दें यह मनमानी है और किसी भी तरह से इसे मान्य नहीं समझा जा सकता. रेलों के लिए आज भी सरकार मनमाने दामों पर जमीन वसूलती है. कर से प्राप्त पैसा निवेश करती है, यह नागरिकों की सेवा के लिए है और हर नागरिक को कमाने का बराबर का पैसा देने का हक तो बनता ही है. पहले 10% में आने के लिए तो टिकट बुकिंग कराना पीटी ऊषा की तरह दौड़ लगाना होगा, जिस में भी पदक न मिलने का डर रहे.

इस नियम को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए. हां, कुछ सीटों की 10% की नीलामी हो सकती है ताकि दलालों का हाथ न रहे और जिन्हें रूठ कर मायके आज ही जाना है वे टिकट न मिलने पर फिर स्टेशन से अपने घर पति के पास न लौटें.          

जलवा आधुनिक फैशन का?

फैशन में केवल वस्त्र ही नहीं, बल्कि उस की तकनीक, उस के लुक को भी आज के दौर में हर बार नए रूप में लाने की कोशिश की जाती है. ऐसा ही दिखा इस बार के ‘लैक्मे फैशन वीक विंटर फैस्टिव’ में. 92 डिजाइनरों ने अपने खास अंदाज में अपनी पोशाकें रैंप पर पेश कीं. आने वाले उत्सव और वैडिंग सीजन को ध्यान में रखते हुए वैसे ही कपड़े लहंगा चोली, साड़ियां, पार्टी ड्रेसेज आदि को उतारा गया.

आधुनिक लुक

डिजाइनर अनुराधा कहती हैं, ‘‘आसाम के पहनावे ‘मेखला चादोर’ को तो कोई पहनता ही नहीं है. ऐसे में मुझे कुछ और क्रिएट करना था. इसलिए साड़ी के बारे में सोचा. आसाम के म्यूजियम से मैं ने पुराने आर्ट को ले कर नया रूप दिया है. इस में प्रयोग किए जाने वाले रंग सौ प्रतिशत नैचुरल हैं. धागा भी नैचुरल सिल्क का है.

मैं ने बचपन से इसे सीखा है. मैं और मेरी मां दोनों ही इसे बनाना जानती हैं. 45 दिनों में एक साड़ी बनती है. इस फैशन शो के द्वारा इस कला को आगे बढ़ने में यकीनन मदद मिलेगी.’’

ब्राइडल कलैक्शन में पायल सिंघल, सोनम ऐंड पारस मोदी, अनुश्री रेड्डी, रिद्धि मेहरा आदि सभी ने तरहतरह की पोशाकें रैंप पर उतारीं जिन में कढ़ाई के साथसाथ आधुनिक लुक को भी अधिक महत्त्व दिया गया.

उम्दा और खास

डिजाइनर मनीष मल्होत्रा का फैशन बेहद उम्दा और सैलिब्रिटी के साथ होता है. लेकिन इस बार उन्होंने नए चेहरे रैंप पर उतारे ताकि खास के अलावा आम महिलाएं भी उन के वस्त्रों को पहनें.

डिजाइनर वैंडिल रोड्रिक ने अपने अनूठे कलैक्शन ‘ट्रैपिजोइड’ के साथ रैंप पर जलवा बिखेरा तो अनाविला मिश्र ने साड़ी जिसे आज की महिलाएं कम पहनती हैं, उसे अलग अंदाज में पेश किया. इस फैशन वीक में अधिकतर डिजाइनरों ने वैल्वेट, सिल्क, टसर आदि फैब्रिक के ऊपर कढ़ाई का प्रयोग कर नया लुक देने की कोशिश की है.

अलग अंदाज में करीना

ग्रैंड फिनाले के दिन डिजाइनर सब्यसाची के परिधान पर करीना कपूर खान ने बेबी बंप के साथ ग्लैमरस लुक में रैंप पर वाक किया. ट्रैडिशनल औलिव ग्रीन कपड़ों में वे बेहद खूबसूरत दिखीं. करीना कहती हैं कि मां बनना उन के लिए गर्व की बात है. इसे वे सब के साथ शेयर करना पसंद करती हैं.

नए रंग में हैंडलूम

डिजाइनर अदिति होलानी चंडोक कहती हैं, ‘‘मेरे साथ 150 महिलाएं काम करती हैं. मेरे कलैक्शन का नाम ‘आगोर’ है. इस का अर्थ है कि ऐसी पोशाकें सब से अलग हैं. इसे अभिनेत्री सारा जेन डायस ने बड़ी ही खूबसूरती से पहना. आसाम के लोग जिस कारीगरी को जानते हैं उसे मैं ने नए रूप में लाने की कोशिश की है. कंटैंपररी और इस का एजी लुक सब को अच्छा लगता है. जब हम हैंडलूम के बारे में सोचते हैं, तो बहुत बोरिंग और बेजान कपड़ों की बात सामने आती है. मैं ने उस बाउंड्री से हट कर नया और ग्लैमरस लुक देने की कोशिश की है, जो सब को अच्छा लगा.’’

सारा कहती हैं, ‘‘हैंडलूम का इतना अच्छा लुक मैं ने कभी नहीं देखा और मैं खुश हूं कि मुझे ऐसी पोशाक पहनने का मौका मिला. मुझे आसाम का कल्चर बहुत पसंद है. इसे बनाने में महिलाओं को सालों लगते हैं. मैं उन की पोशाक पहन कर उन के भावों को पूरी दुनिया में फैलाना चाहती हूं.’’

इन के अलावा गौरांग का ‘वृंदावन’ थीम का कलैक्शन भी आकर्षक था. यह चमक और ग्लैमर के साथसाथ दूल्हा-दुल्हन के लिए परफैक्ट पहनावा है. इस में सफेद, गोल्ड, ब्लू, यलो और ग्रीन रंग के कपड़ों के ग्लैमरस घाघरे, पारंपरिक साडि़यां, स्टाइलिश कुरते, दुपट्टे, चोलियां आदि सभी मन मोह रहे थे.

ब्राइडल कलैक्शन

लैक्मे फैशन वीक का इस बार का थीम ‘इल्युमिनेट’ था, जिसे लैक्मे के मेकअप और ब्राइडल कपड़ों के साथ पायल खंडवाला ने रैंप पर उतारा. हालांकि जितनी उम्मीद इस शो से थी उतना कुछ भी इस में देखने को नहीं मिला. आधुनिकता के नाम पर फीका मेकअप परिधान को नीरस बना रहा था. उम्मीद है लैक्मे अगली बार इस पर ध्यान देगा. इस के अलावा डिजाइनर शांतनु और निखिल ने ब्राइडल कलैक्शन में पुरुष और महिला दोनों के परिधानों को अलगअलग व अद्भुत ढंग से पेश किया. डिजाइनर शांतनु कहते हैं, ‘‘मैं अधिक यात्रा करता हूं. उसी से प्रेरित हो कर मैं ने पुरुषों के लिए ‘म्युटिनी ऐक्ट’ को थीम बनाया. उस समय कैसा लिबास पुरुष पहनते थे उसी को नए रूप में लाया. हर कलैक्शन में स्ट्रैंथ, आत्मविश्वास, खूबसूरती सभी को दिखाने की कोशिश की गई है. जबकि महिलाओं के लिए थीम स्पेन का था. पुरुषों के शो स्टौपर रितेश देशमुख थे जबकि महिलाओं के लिए मलाइका अरोड़ा ने शो की अगुआई की.’’

सितारों का रैंपवाक

मलाइका का कहना था कि इस शो का हिस्सा बन कर वे बहुत खुश हैं. पुरुषों का ऐसा फैशन शो उन्होंने अभी तक नहीं देखा था. जिसे शांतनु और निखिल ने इतना खूबसूरत बनाया. वे कहती हैं कि वे कभी ट्रैंड फोलो नहीं करतीं, जो अच्छा लगता है उसे पहनती हैं.

डिजाइनर निखिल बताते हैं कि यात्रा करने के बाद उन्हें वहां के लोगों ने अधिक प्रभावित किया. लोग पुरुषों के लिए अधिक कपड़े नहीं बनाते. इन कपड़ों को पुरुष किसी भी अवसर पर पहन सकते हैं.

अभिनेता रितेश कहते हैं कि वे कभी ट्रैंड नहीं बनाते. निखिल और शांतनु के बनाए कपड़ों को पहन कर वे खुश हो जाते हैं. स्टाइल से अधिक कंफर्ट की उन्हें आवश्यकता होती है.

सबसे साफ टूरिस्ट स्पॉट है गैंगटॉक

गैंगटॉक या स्थानीय नाम गान्तोक भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य सिक्किम की राजधानी, एक बहुत आकर्षक शहर है जो रानीपूल नदी के पश्चिम ओर बसा है. यह उत्तर-पूर्वी राज्यों का एक मुख्य पर्यटक स्थल भी है.

कंचनजंघा शिखर की संपूर्ण शृंखला की सुंदर दृश्यावली यहां से दिखाई देती है. गंगटोक के प्राचीन मंदिर, महल और मठ आपको सपनों की दुनिया की सैर कराएंगे. इतना ही नहीं गैंगटॉक को सबसे साफ टूरिस्ट स्पॉट माना गया है.

गैंगटॉक इन सात चीजों के लिए भी मशहूर है.

रुमटेक मोनेस्ट्री

गैंगटॉक में कई विश्वप्रसिद्ध मोनेस्ट्रीज हैं. कुछ तो कई सौ साल पुरानी हैं. सबसे पुरानी है रुमटेक मोनेस्ट्री, जिसका निर्माण 1700 में हुआ था और यह पूरे देश का सबसे बड़ा बौद्ध धर्म सीखने का सेंटर है.

यमथंग वैली

यह काफी खूबसूरत स्थान है. चारों ओर से हिमालय से घिरी है. इसे वैली ऑफ फ्लावर्स भी कहा जाता है. गैंगटॉक से यह 150 किमी दूर है.

टिसोमगो लेक

गैंगटॉक जाएं तो इस लेक को जरूर देखें. यह ऊंचे पहाड़ों से घिरी है. यहां घूमने का मजा तभी है जब याक सफारी करें. यह याक अपनी पीठ पर सवार कर लेक का पूरा चक्कर लगवाता है.

पमेयंगसे मोनिस्ट्री

ये सिक्क‍िम की दूसरी सबसे पुरानी मोनिस्ट्री है.है है. इसे 1705 में लामा लहातसुन चैंपो ने डिजाइन किया था. उन्होंने ही इसकी स्थापना भी की. इसके अनूठे शिल्प से लोग इस मोनिस्ट्री को दूर-दूर से देखने आते हैं.

नाथुला पास

यह 14,140 फीट की ऊंचाई पर है. यह भारत-चीन सीमा के पास है. यहां घूमने के लिए परमिट की आवश्यकता होती है. यहां से आप चीन को देख सकते हैं.

एमजी मार्ग

गैंगटॉक के मध्य में स्‍थि‍त है एमजी मार्ग. यहां आप कई तरह के व्यंजनों का स्वाद उठा सकते हैं. यहां का खाना और खिड़की से पहाड़ों का व्यू देखकर मजा आ जाता है. यहां टेस्ट ऑफ तिब्ब्त, चॉपस्टिक्स, रोल हाउस आदि जा सकते हैं.

हिमालयन जूलॉजिकल पार्क

यह अलग तरह का जू है क्योंकि यहां कई जानवरों को जंगल का वातावरण देकर रखा जाता है. यह पार्क 230 एकड़ में फैला है. यह गैंगटॉक शहर से 6 किमी दूर है. इस पार्क में आप गाड़ी या पैदल घूम सकते हैं. कई दुर्लभ जानवरों के लिए यह प्रसिद्ध है. यहां ब्लैक बीयर, स्नो लेपर्ड, कॉमन लेपर्ड, लेपर्ड कैट, तिब्बती वोल्फ आदि देखे जा सकते हैं.

अवनि और मैं कई मामलों में एक हैं: आर्शीन नामदार

आज के बच्चे छोटी उम्र में ही ज्यादा समझ रखने के साथ-साथ अपनी जिम्मेदारियों को भी भलीभांति समझते हैं जैसे अवनि. वह समझदार है, जिज्ञासु है, अपनी मां का ध्यान रखती है, उन्हें हमेशा खुश रखती है. वह अपने मासूम सवालों से ऐसे सवाल उठाती है, जो हमारे समाज को चुनौती देते हैं.

पेश हैं, अवनि का किरदार निभा रही आर्शीन नामदार से बातचीत के खास अंश

नामकरण शो की खास बात क्या है?

इस शो की खास बात यह है कि इस में खूबसूरत गानों के साथ कहानी को दर्शकों के सामने एक अलग अंदाज में प्रस्तुत किया जा रहा है. यह आइडिया प्रसिद्ध डायरैक्टर महेश भट्ट का है. यह शो 10 साल की एक बच्ची अवनि की कहानी है, जिस का एक अनोखा परिवार है.

उसके पिता की अनुपस्थिति उसे इतनी कम उम्र में अन्य बच्चों की तुलना में मजबूत बनाती है. अवनि के पिता हर समय उन के साथ नहीं रहते, वे आते जाते रहते हैं. अन्य बच्चों के पिता की तरह वे हर जगह नहीं आते.

यह अवनि के लिए एक उलझन है, क्योंकि उस के दोस्तों के मातापिता ऐसा व्यवहार नहीं करते. अवनि के दोस्त उस के पापा को ‘मिस्टर इंडिया’ कहते हैं. अवनि को यह बिलकुल पसंद नहीं है कि उस के दोस्त उस के पापा का मजाक बनाएं.

आप का कैरेक्टर किस तरह से अलग है?

मैं अवनि का कैरेक्टर निभा रही हूं. वह मुझ से और मेरे बाकी दोस्तों से काफी अलग है. उस का चरित्र निभाने पर मुझे समझ आया कि कैसे हर परिवार अलग होता है. अवनि एक प्रभावशाली और आत्मविश्वासी लड़की है. उस का परिवार सामान्य है, लेकिन उस के पिता की अनुपस्थिति उस की सब से बड़ी ताकत बन गई है.

आप अपने कैरेक्टर से कितनी मिलती हैं?

अवनि और मैं कई मामलों में एक से हैं. हम दोनों ही बहुत सवाल पूछते हैं. वह प्रभावशाली और आत्मविश्वासी लड़की है. मुझे लगता है कि मैं भी ऐसी ही हूं. इस के अलावा उसे काफी अच्छे मातापिता मिले हैं और मेरे भी हैं. वह अपनी लाइफ में एक भाई या बहन चाहती है और मैं भी रियल लाइफ में एक भाई या बहन चाहती हूं.

इस शो में कौन सब से ज्यादा पसंद है?

सैट पर हर कोई मुझे पसंद है. शो में सब मेरे साथ अभ्यास करते हैं, मुझे बताते हैं कि मुझे कैसे और कहां सुधार करना चाहिए. सैट पर हम हर छोटे से छोटे अवसर को सैलिबे्रट करते हैं. इसलिए हम सब यहां खुश रहते हैं, क्योंकि मैं बरखा मैम के साथ ज्यादा समय बिताती हूं इसलिए वे मेरे बहुत करीब हैं. हम औन स्क्रीन और औफ स्क्रीन दोनों जगह साथ ही रहते हैं. वे एकदम मेरी मम्मी की तरह हैं. मैं उन के साथ सुरक्षित महसूस करती हूं.

शूटिंग में व्यस्त रहने के बाद आप पढ़ाई और दोस्तों के लिए समय कैसे निकालती हैं?

मुझे जब भी समय मिलता है तो घर पर या सैट पर पढ़ाई करती हूं. मेरी मम्मी और आशा मां हमेशा मेरी पढ़ाई का ध्यान रखती हैं. हमेशा ये देखती रहती हैं कि मैं ने होमवर्क पूरा किया कि नहीं, समय पर प्रोजैक्ट तैयार किया कि नहीं.

इस शो में कुछ खूबसूरत गाने हैं. इन में आप का पसंदीदा कौन सा है?

इस शो में मुझे ‘मिट्टी है जहां खुशियां हैं परियों के भेष में…’ लोरी बहुत पसंद है. मेरी मम्मी ने जब इस गाने में मुझे देखा तो वे भी रो पड़ीं.

अपने अन्य प्रोजेक्ट्स के बारे में बताइए?

फिलहाल मैं अपना सारा ध्यान ‘नामकरण’ पर केंद्रित कर रही हूं. हालांकि यह एक फुल टाइम शो है, इसलिए मुझे नहीं लगता कि मुझे किसी अन्य अवसर पर ध्यान देने की जरूरत है. इस शो की शुरुआत पर मैं बहुत खुश हूं.

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