गेट खोल कर निम्मी अंदर जाने लगी कि सामने के मकान के गेट पर खड़ी युवा महिलाओं के झुंड ने आवाज दे कर रोक लिया.
‘‘आज किट्टी में क्यों नहीं आई… बाजार का चक्कर लगाने की फुरसत है हमारे बीच बैठने की नहीं,’’ रश्मि ने उलाहना देते हुए कहा.
‘‘आज थोड़ा बिजी थी. कल ननद अपने परिवार के साथ यहां सासूजी से मिलने आ रही हैं, तो घर का सामान लेने और रुपए निकालने एटीएम तक गई थी.’’
‘‘क्यों हमारे बैंकर भाई साहब कहां हैं, जो तुम्हें पैसों के लिए दौड़ना पड़ गया?’’
‘‘उन की बात न ही करो तो अच्छा. उन के चक्कर में ही घर में नकदी नहीं रहती. जितनी जरूरत हो बस उतने ही ले कर शाम को आ जाएंगे. मैं तो 1 रुपया पार नहीं कर सकती इन की जेब से. 1-1 नोट गिन कर रखते हैं. क्या मजाल कि 10 का नोट भी अपनी जगह से खिसक जाए. अपना तो अपना मेरे पर्स के भी नोट उन्हें जबानी याद रहते हैं,’’ निम्मी का आक्रोश उमड़ पड़ा.
‘‘यह अच्छा है, मेरे पति को तो कुछ खबर नहीं रहती. दोपहर दुकान बंद कर जब लंच में घर आते हैं तो 1-2 बड़े नोट उड़ा लेती हूं, ‘‘शिखा गर्व से बोली,’’ यह हार उन्हीं रुपयों का है.’’
निम्मी जलभुन कर राख हो गई. पर प्रकट में बोली, ‘‘जब वे दूसरों के रुपयों का दिन भर बैठ कर हिसाब लगाते रहते हैं, तो क्या अपनी मेहनत की कमाई का हिसाब नहीं रखेंगे? तुम लोग लकी हो कि पति की जेब कट भी जाए, तो उन्हें पता नहीं चलता.’’
रसोईघर में सामान व्यवस्थित कर अपनी सास से निम्मी ने कहा, ‘‘सारा सामान ले आई हूं और 5 हजार रुपए भी निकाल लिए हैं. अगर दीदी और बच्चे शौपिंग करना चाहें तो इन से काम चल ही जाएगा. कल बुधवार है, अब ये बृहस्पतिवार सुबह ही भोपाल से लौटेंगे. इस दूसरे शनिवार और इतवार को छुट्टी रहेगी बैंक में. तभी हम सभी कहीं पास का घूमने का प्रोग्राम बना लेंगे.’’
‘‘यह ठीक किया बहू, जो रुपए निकाल लाई. वैसे भी रीमा 2 साल बाद आ रही है… मेरे पास भी नकदी नहीं है घर में. अगर होती तो तुम्हें यों परेशान न होना पड़ता.’’
‘‘कोई बात नहीं मांजी, मेरी आदत भी खराब हो गई है. नकद रुपयों का कुछ ध्यान ही नहीं रखती. ये ही हर हफ्ते के हिसाब से घर खर्च के रुपए अलमारी में रख देते हैं. अब इन्हें अचानक भोपाल मीटिंग में जाना पड़ गया और मुझे किट्टी के पैसे भी देने थे, तो बस नकदी खत्म हो गई. वैसे हालफिलहाल इन से काम चल ही जाएगा. परसों दिन तक ये लौट आएंगे,’’ निम्मी अपनी तरफ से निश्चिंत हो उठ कर रसोई के काम में लग गई.
तभी फोन की घंटी बजी तो निम्मी ने रिसीवर उठा कर कहा, ‘‘हैलो, कहां पहुंचे?’’
‘‘वह सब छोड़ो, जरा टीवी पर देख कर बताओ कि 5 सौ और 1 हजार के नोट बंद हो गए क्या?’’ विनीत ने हड़बड़ी में पूछा.
‘‘क्या कह रहे हो? अभी टीवी औन करती हूं. हां ‘मन की बात’ में मोदीजी कह रहे हैं कि आज रात 12 बजे से ये नोट बंद हो जाएंगे.’’
‘‘जरा फोन का स्पीकर औन कर मुझे सुनाओ.’’
‘‘अच्छा… तुम्हारी मीटिंग भी इसीलिए है क्या?’’
‘‘मुझे कुछ नहीं पता,’’ और फोन कट गया.
‘ट्रेन में सिग्नल मिलना बंद हो गया होगा,’ सोच कर निम्मी ने रिसीवर रख दिया और फिर सोचने लगी कि अब ये 5 हजार किस काम के?
जल्दी से उठ कर अपने 2-3 पर्स खंगाल डाले. करीब हजार रुपए के छुट्टे मिले, तो राहत की सांस ली.
तभी फोन फिर बज उठा.
‘‘हैलो, हां प्रणाम जीजी, अरे आप वापस क्यों लौट गईं आधे रास्ते से… तो क्या हुआ… ठीक है घर पहुंच कर फोन करिएगा.’’
‘‘मांजी, जीजी आधे रास्ते से ही गाड़ी मोड़ कर जबलपुर लौट गईं. अब फिर कभी प्रोगाम बनाएंगी यहां आने का,’’ निम्मी ने सास को ननद के न आने की सूचना दी तो 80 वर्षीय वृद्घा परेशान हो उठीं.
‘‘क्यों लौट गई?’’ उन्होंने परेशान स्वर में पूछा.
‘‘अरे मांजी, हजार और 5 सौ के नोट बंद हो जाएंगे कल से… शायद घर में काफी नकदी रखी है उन्होंने… परेशान हो उठीं इस खबर को सुन कर और फिर लौट गईं.’’
‘‘जो नोट घर में हैं उन का क्या होगा?’’
‘‘वे बैंक से बदल कर दूसरे लेने पड़ेंगे और क्या? मगर आप को क्या परेशानी है? आप की पैंशन तो बैंक में जमा रहती है, आप जब भी निकालेंगी, आप को नए नोट ही मिलेंगे.’’
अंदर जा कर मांजी एक पर्स उठा लाईं. बोलीं, ‘‘देख इस में 20-25 नोट तो होंगे ही… तू कल ही जा कर इन्हें बदल आना.’’
निम्मी उन का चेहरा देखती रह गई कि अभी कुछ देर पहले तो 1 भी रुपया न होने का रोना रो रही थीं और अब अचानक इतने नोट…
‘‘और भी कहीं रखे हैं तो निकाल दीजिए,’’ निम्मी आज उन की पूरी बचत अपनी आंखों से देखना चाहती थी. थोड़ी देर में एक पोटली और ले आईं, जिस में रेजगारी रखी थी. बोलीं, ‘‘ये भी बंद हो गए क्या?’’
निम्मी मन ही मन हंसने लगी, पर कुछ न बोली. मांबेटे दोनों पैसों के मामले में बड़े तेज हैं… बेटे के पास 1-1 पाई का हिसाब रहता है, तो भी मां इतने सारे नोट छिपा कर रखे रहती हैं. जरूर अपनी बेटियों को छिप कर देती होंगी. बेटा इन को भी कुछ न कुछ हर माह तो देता ही होगा, मगर खर्चा कुछ होता नहीं. इन दोनों मांबेटे के बीच वही बेवकूफ है, जिस के पास कोई छिपा धन नहीं है.’’
फिर निम्मी ने सारे काम छोड़ कर पहले रुपए गिनने का काम किया. 20 हजार 4 सौ रुपए निकले. वह मन ही मन अपनी सास को परेशान देख कर खुश हो रही थी. फिर बोली, ‘‘कल बैंक बंद रहेंगे.’’
‘‘फिर क्या होगा?’’ सास की हवाइयां उड़ गईं.
‘‘अब परसों जब ये वापस आएंगे तभी पता चलेगा इन रुपयों का क्या होगा,’’ और फिर वह किचन का काम निबटाने चली गई. उस ने जानबूझ कर अपनी सास को सही जानकारी नहीं दी. सोचा होने दो परेशान जब मैं रुपयों को ले कर कुछ देर पहले परेशान थी तब तो ये चुपचाप बैठी थीं जैसे कुछ जानती ही न हों.
बुधवार को तो जिसे देखो वही विनीत भाई को खोजता चला आ रहा था.
‘अच्छा हुआ ये घर पर नहीं हैं वरना सब मिल कर दिमाग चाट लेते इन का’ सोच निम्मी मन ही मन कुढ़ रही थी. स्वभाव से वह बहुत ही शक्की और मतलबपरस्त थी. आज सुबह से ही लोगों के आनेजाने से उस की बहुत आफत आ गई थी. विनीत का फोन मिल नहीं रहा था. पहले ट्रेन में, फिर शायद मीटिंग में फोन बंद कर दिया होगा.
‘‘भाभी सुनो तो, आज बैंक बंद हैं न?’’ यह सामने वाली कुसुम थी, ‘‘भैया हैं क्या घर पर?’’
‘‘नहीं, कल तक आएंगे.’’
‘‘यह कोई बात है भला, तुम ने हमें पहले नहीं बताया कि नोट बंद हो जाएंगे… बैंक वालों को तो पता चल ही जाता है पहले से,’’ कुसुम उलाहना देते हुए बोली.
‘‘अरे, हमें भी क्या पता था. कल ही तो एटीएम से 5 सौ के 10 नोट ले कर आई हूं… ऐसे ही बैंक वालों को पता होता तो उन के दोस्त, रिश्तेदार और पड़ोसियों को पता न चल जाता?’’ निम्मी चिढ़ कर बोली और भीतर चली गई.
‘‘बहू इन नोटों का क्या होगा?’’ सास बहुत चिंतित थीं.
‘‘अरे, आप के बेटे कल आप के अकाउंट में जमा कर देंगे,’’ निम्मी ने उन्हें परेशान देख कर सच बता ही दिया.
‘‘मगर जो मैं ने गांव की अलमारी में रखे हैं उन का क्या होगा?’’ सास बोलीं.
‘‘क्या? वहां घर में क्यों रखे आप ने? डाकखाने में खाता खोल तो रखा है आप का,’’ निम्मी हैरानी से बोली.
‘‘अरे बारबार कौन चक्कर लगाए डाकखाने के. वहां भी तो शादीविवाह, नातेदारी, मेहमानों के लिए कुछ तो रखना था घर में. पिछले 8-9 महीनों से तो यही हूं, तो वे रुपए वैसे ही रखे हैं.’’
‘‘कितने रुपए हैं?’’
‘‘10 हजार निकाले थे डाकखाने से. 9 हजार तो होंगे ही वहां. हजार रुपए ले कर मैं यहां आ गई थी.’’
‘‘गांव क्या पास में है? 2-3 हजार किलोमीटर दूर है यहां से. ट्रेन से 9-10 हजार रुपए लग ही जाएंगे. अब तत्काल से टिकट निकालने पड़ेंगे. आप के साथ मुझे ही जाना पड़ेगा. इन्हें तो अब छुट्टी मिलने से रही. हुंह, बिना बात आप की वजह से लफड़ा होगा,’’ निम्मी भुनभुनाई.
मांजी कुछ सोच कर बोलीं, ‘‘उसी डाकखाने को वापस दूंगी, जिस ने ये नोट मुझे दिए हैं.’’ निम्मी कुछ न बोली.
बृहस्पतिवार को जब दोपहर को विनीत भोपाल से लौटा, तो मांजी अपने नोट ले कर तुरंत खड़ी हो गईं. मानो अभी न जमा हुए तो भूचाल आ जाएगा. विनीत भी बस तुरंत तैयार हो बैंक को निकल गया.
सौ के नोट की एक गड्डी ले कर रात 8 बजे घर में घुसा तो निम्मी ने राहत की सांस ली. तभी कुसुम हाजिर हो गई.
‘‘भैया एटीएम में तो नोट खत्म हो गए थे. बैंक में इतनी लंबी लाइन थी कि हिम्मत ही नहीं पड़ी लगने की, फिर सोचा जब भैया बगल में हैं तो हम क्यों परेशान हों.’’
‘‘सही कहा आप ने. बोलिए आप की क्या सेवा करूं.’’
‘‘बस आप 2 हजार के खुले दे दें, तो काम चल जाएगा,’’ अपने हाथ में पुराने नोट लिए कुसुम ने कहा.
‘‘आप ऐसा करिए, मुझे 2 हजार का चैक दे दीजिए और निम्मी से खुले नोट ले लीजिए. ये पुराने नोट और पासबुक यहीं छोड़ दीजिए, कल आप के अकाउंट में जमा कर दूंगा.’’
‘‘साहब, मुझे भी 1 हजार चाहिए,’’ यह विनीत का ड्राइवर था, जो कार की चाबी देने को खड़ा था.
‘‘तुम ने दिन में बैंक से क्यों नहीं लिए? निम्मी… इसे भी 1 हजार दे दो.’’
‘‘भाभी आप ने बोला था, साहब आएंगे, तो नोट बदल देंगी. मैं आप के दिए नोट ही वापस लाई हूं,’’ यह स्यामा थी, कामवाली, 5 सौ के 4 नोट पकड़े, ‘‘शर्माजी के घर मेहमान आए हैं इसीलिए आज देर तक वहीं थी. फिर साहब की गाड़ी देखी तो दौड़ कर घर से रुपए उठा लाई. अब और तो कोई खुले दे नहीं पा रहा.’’
निम्मी ने उस के नोट ले कर उसे खुले नोट दे दिए. अब 5 हजार के ही 100 के नए नोट हाथ में बचे थे उस के. ‘‘अब किसी और को नोट घर से देने की जरूरत नहीं है,’’ वह बड़बड़ाई.
मगर कुसुम ने जो सुविधा प्राप्त की उस का डंका दूसरे दिन सभी महिला मंडल को लग गया. विनीत से घर बैठे सुविधा का लाभ लेने का मौका भला वे क्यों छोड़तीं. अभी सुबह के 8 ही बजे थे कि रीना, मधु, गीतिका सजधज कर हाजिर हो गईं.
‘‘मेरे पास 10 हजार हैं, बदल जाएंगे?’’ मधु अपनी आवाज में शहद की मिठास घोल कर बोली.
‘‘मेरे पास 30 हजार हैं,’’ रीना ने बताया.
‘‘मेरे पास 50 हजार हैं, पर मैं ने सोचा अपने विनीत भाई हैं न, फिर क्यों परेशान होना,’’ यह गीतिका थी.
‘‘भैया मेरा तो छोटा सा प्राइवेट स्कूल है, दोढाई लाख की तो मुझे हर महीने पेमैंट ही करनी होती है. किराया, सैलरी इन सब के लिए मेरे पास 8-10 लाख तक कैश रखा है, कोईकोई पेरैंट्स 3-3 और 6-6 महीनों की फीस इकट्ठा ही दे जाते हैं. 10 तारीख तक फीस जमा होती है. फिर उसी से पेमैंट करती हूं, अब मैं क्या करूं?’’ यह प्रतीक्षा थी. उसे शायद देर से खबर लगी थी. इसीलिए वह तो नाइट गाउन में ही भागी चली आई थी.
प्रतीक्षा के गहरे गले की नाइटी को विनीत घूरघूर कर देखता रहा. फिर मुसकरा कर बोला, ‘‘निम्मी, भाभी लोगों को चायपानी पिलाओ.
आप लोग अपनीअपनी पासबुक और रुपए ले कर बैंक में आ जाएं. वहां लाइन में न लग कर सीधे मेरे कैबिन में आ जाना. सभी के खाते में रुपए जमा करवा दूंगा और 4 हजार के नोट बदल लीजिएगा.’’
‘‘आप मेरा सारा कैश बदल कर कल वापस कर दीजिए. बैंक में तो लाखों के नए नोट होंगे,’’ मधु अपने लहराते पल्लू को संभालते हुए बोली.
‘‘हां, यह ठीक रहेगा. हमारी बचत पतियों को पता नहीं चल पाएगी,’’ बाकियों ने हां में हां मिलाई.
‘‘अरे, ऐसे कैसे नोट बदल दूं. एक आदमी अपनी आईडी पर 4 हजार ही एक दिन में बदल सकता है,’’ विनीत को हंसी आ गई.
‘‘अंदर ही अंदर बदल दीजिए, काउंटर से नहीं.’’
‘‘ऐसा नहीं हो सकता, सीसीटीवी की निगरानी में काम होना है. आप लोग परेशान न हों. फिलहाल कल आ कर 4 हजार ले कर काम चलाइए, कोई परेशानी हो, तो मैं हूं न.’’
तभी विनीत का फोन बज उठा, ‘‘नमस्कार हां, आप कल बैंक आ जाएं. नहींनहीं, वह तो अकाउंट में ही जमा करना पड़ेगा… नहीं नकद तो बदल कर अभी 4 हजार ही मिलेंगे. बाद में कोई नया रूल आया तब देखेंगे कि क्या कुछ हो सकता है… ठीक है.’’
‘‘किस का फोन था?’’ निम्मी चाय की ट्रे लिए हाजिर हुई.
‘‘तहसीलदार का. बोल रहे थे 2 लाख कैश है घर में. उसे बदलना है.’’
‘‘अरे, उन की छोड़ो, मैं तुम्हें बताना भूल गई. मांजी गांव में 9 हजार रख कर यहां आ गईं. अब नोट कैसे बदलेंगे?’’
‘‘एक नई मुसीबत. बैंक में कम हायहाय हो रही है जो तुम लोग घर में भी कुछ न कुछ तमाशा करते रहते हो,’’ विनीत झल्ला कर बोला.
‘‘मैं ने नहीं, तुम्हारी मां का कियाधरा है. मेरे पास तो फूटी कौड़ भी नहीं है पुरानी रकम के नाम पर.’’
‘‘ऐसा करो, तुम दोनों कल तत्काल टिकट से गांव निकल जाओ 1-2 हफ्तों के लिए.’’
‘‘हां भैया आप हमारे घर पर ही लंच, डिनर कर लिया करना,’’ मधु बोली.
‘‘अरे, हम सब हैं न, बारीबारी से अपने घर से खाना बना कर भेज देंगे, तुम निश्ंिचत हो कर मांजी को ले कर गांव चली जाओ,’’ प्रतीक्षा बोली.
‘‘मैं कहीं नहीं जाने वाली, 8-10 हजार तो आनेजाने में ही खर्च हो जाएंगे, तो फायदा क्या होगा, उन नोटों को बदल कर? इस से तो अच्छा वे अपनेआप बेकार हो जाएं,’’ निम्मी गुस्से से बोली. उस ने सोचा कि ये सब औरतें मिल कर उस के पति पर डोरे डालने में लगी हैं. अभी काम कराना है इन को विनीत से.
अपने रुपयों की बात सुन मांजी भी मैदान में कूद पड़ीं, ‘‘कोई जाए या न जाए, मेरा टिकट कटा दो. मैं अकेले ही चली जाऊंगी.’’
विनीत सिर पकड़ कर बैठ गया. तभी उस का फोन फिर बज उठा, ‘‘हां सर, नए नोट 20 लाख के ब्रांच के लिए और 4 लाख एटीएम के लिए चाहिए. हांहां, मैं 9 बजे तक पहुंच जाऊंगा सर कैश लेने. ठीक है सर,’’ फिर रिसीवर रख कर विनीत खड़ा होते हुए बोला, ‘‘भाभीजी, आप लोग बैंक में आ जाइएगा. वहीं आप का काम हो जाएगा. अभी मुझे तैयार हो कर तुरंत निकलना है.’’
जब वे चली गईं तो विनीत बोला, ‘‘निम्मी, तुम मां के साथ गांव जाने के टिकट बुक कर लो… मुझे परेशान न करो.’’
निम्मी भी तैश में थी. अत: बोली, ‘‘तुम अपनी ब्रांच संभालो, घर को मैं देख लूंगी. मैं गांव जाऊं और तुम यहां गुलछर्रे उड़ाओ… मुझे क्या करना है क्या नहीं, तुम्हें बताने की जरूरत नहीं है.’’
विनीत के स्नानघर में जाते ही उस ने तुरंत गांव में फोन मिला दिया और मांजी को थमा कर बोली, ‘‘यह लीजिए रघु काका से बात हो गई है. वे घर के ताले की डुप्लीकेट चाबी बनवा कर खोल भी देंगे और अलमारी में रखी रकम को आप के खाते में डाकखाने में जमा भी करा देंगे. आप भी उन्हें बता दो अलमारी की चाबी कहां रखी है.’’
मांजी को गुस्सा तो बहुत आया पर क्या करें मजबूरी थी. अत: बोलीं, ‘‘हां रघु, रसोई में चायपत्ती के डब्बे में रखी है अलमारी की चाबी. निकाल कर रुपया जमा कर देना… बाकी सब ठीक है न?’’
जब निम्मी रिसीवर रख कर जाने लगी तो मांजी बोल पड़ीं, ‘‘आज रघु को भी पता चल गया कि हमारे पास पैसे हैं. अब कभी वह मांगेगा तो मना नहीं कर सकेंगे. अच्छा है बेटे ने जेवर लौकर में रखवा दिए वरना तुम तो उन्हें भी गांव भर को दिखा देती.’’
निम्मी कुछ न बोल कर विनीत के नाश्ते और टिफिन तैयार करने में लग गई. विनीत के जाने के कुछ देर बाद शिखा और पिंकी आ धमकीं.
‘‘ओह, भैया आज जल्दी चले गए. मेरे को उन से बहुत जरूरी काम था,’’ शिखा बोली.
‘‘मुझे भी पता चला तुम गांव जा रही हो रुपए बदलवाने, तो मैं भी राय लेने आ गई,’’ पिंकी ने बताया.
‘‘लगता है बहुत माल भरा है तुम दोनों के पास… शिखा तुम गहने क्यों नहीं खरीद लेती?’’ निम्मी ने उसे छेड़ा.
‘‘कल मैं सब से पहले अपने सुनार के पास ही दौड़ कर गई थी. मगर उस का सारा सोना तो रात में ही बिक गया था. 30 हजार का सोना
40-45 हजार में बेचा उस ने… 3 तोले का हार पहले से पसंद कर के आई थी. उसी के लिए
1 लाख जोड़ कर रखे थे. अब तो बैंक का ही सहारा है,’’ शिखा एक सांस में बोल गई.
‘‘मुझे तो तुम्हारी तरह ही अपने मायके जाना पड़ेगा नोट बदलने के लिए,’’ पिंकी बोली.
‘‘कितने रुपए हैं?’’ निम्मी ने पूछा.
‘‘13 लाख. पूरे 15 सालों में जमा किए हैं मैं ने,’’ पिंकी बोली.
‘‘तो घर में क्यों रखे? बैंक में रखती उन को?’’ निम्मी को आश्चर्य हुआ.
‘‘अरे बैंक में ही तो रखे हैं, मगर अब तो वे नहीं चलेंगे. उन्हें ही तो बदलवाना है,’’ पिंकी की बात सुन निम्मी जोरजोर से हंसने लगी.
‘‘कैसे बदलोगी, जरा मैं भी तो सुनूं?’’ निम्मी अपनी हंसी पर ब्रेक लगा कर बोली.
‘‘कुछ पता भी है तुम्हें, अपने खाते से निकाल कर रोज 4 हजार रुपए बदलती रहूंगी. न जाने कितने दिन सतना जा कर रहना पड़े,’’ पिंकी दुखी हो कर बोली, ‘‘मुझ पर हंस क्यों रही हो? तुम भी तो अपने गांव जा रही हो नोट बदलने?’’
‘‘तुम भी न पिंकी पढ़ीलिखी हो कर ऐसी बातें कर रही हो, तो अनपढ़ लोग क्याक्या बातें न करते होंगे. तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं, बैंक खुद तुम्हारे रुपयों को बदल देगा, बस इतना समझ लो.’’
‘‘और मेरा क्या होगा?’’ शिखा बोली.
‘‘कुछ नहीं होगा, जा कर अपने अकाउंट में डाल दो और क्या.’’
तभी फोन बज उठा. निम्मी सुबह से बज रहे फोन से परेशान थी, ‘‘अरे ये फोन नहीं उठा रहे हैं तो मैं क्या करूं?’’ ये रिश्तेदार भी न… चैन नहीं है किसी को, वह रिसीवर पटकते हुए बोली.
‘‘दीदी, छुट्टे मिलेंगे क्या?’’ अब दूध वाला आ गया था पुराने नोटों के साथ.
‘‘अरे बैंक में नौकरी करते हैं कोई नोट छापने की मशीन नहीं है घर में,’’ बड़बड़ाते हुई निम्मी 1 हजार के नोट उसे थमाते हुए बोली.
अब तक सब की बकबक से परेशान हो सिर दर्द कर गया निम्मी का. दवा खा कर बैठी ही थी कि मांजी फिर हाजिर हो गईं. ‘‘बहू…’’ बड़े मीठे स्वर में बोलीं.
‘‘अब क्या हुआ?’’ निम्मी खीज कर बोली.
‘‘वह अभी याद आया बहू, 5 हजार दाल के डब्बे में भी रखे थे. यहां आने से एक दिन पहले ही सुमन उधारी वापस करने आई थी, तो वहीं रसोई में काम करते हुए डब्बे में रख दिए थे, मगर फिर तुम सब की जल्दबाजी में भूल गई संभालना उन को. मुझे लगता है गांव जाना ही पड़ेगा. पता नहीं अभी और भी कहीं रखे हों. अभी याद नहीं आ रहा.’’
‘‘अब यह भी मेरी ही गलती है,’’ निम्मी सिर पकड़ कर बैठ गई. उसे लगा वह नोटों के भंवरजाल में फंस कर रह गई है.