‘द रेल्स’: राष्ट्रीय रेल संग्रहालय का आकर्षण!

संग्रहालय, ज्ञान के खजाने हैं पर अक्सर हर कोई इनकी ओर आकर्षित नहीं होते न ही ज्यादातर लोग इनमें दिलचस्पी लेते हैं. इसलिए हर बार कई नई परियोजनाओं का निर्माण किया जाता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित किया जा सके. इसी को मद्देनजर रखते हुए आईआरसीटीसी अपनी एक नई परियोजना के साथ जल्द ही आ रही है, ‘द रेल्स’, दिल्ली के राष्ट्रीय रेल संग्रहालय में स्थापित होने वाला एक भव्य रेस्तरां(रेस्टोरेंट).

यह दिल्ली में राष्ट्रीय रेल संग्रहालय को शाम के समय एक आदर्श गंतव्य स्थल बनाने के लिए शुरुआती पहल है. पर्यटक संग्रहालय में प्रदर्शनियों को सराहने के साथ-साथ परिसर में ही लजीज व्यंजनों का लुत्फ भी उठा सकेंगे. यह एक विषय आधारित(थीम बेस्ड) रेस्तरां है, जिसके आगे का भाग मुंबई में स्थित छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के केंद्रीय गुंबद भाग से मिलता जुलता है.

राष्ट्रीय रेल संग्रहालय

राष्ट्रीय रेल संग्रहालय सिर्फ एक इंडोर संग्रहालय ही नहीं, एक आउटडोर संग्रहालय भी है, जहां पुराने विरासत के इंजन और एक टॉय ट्रैन भी रखे हुए हैं. इस संग्रहालय को सन् 1977 में नई दिल्ली के चाणक्यपुरी में 10 एकड़ की जमीन पर स्थापित किया गया था. यह राष्ट्रीय रेल संग्रहालय भारतीय रेल के विरासत और इतिहास के बारे में गहराई तक जानकारी प्रदान करता है.

इसी राष्ट्रीय रेल संग्रहालय में जल्द ही खुलने वाला ‘द रेल्स’ रेस्तरां इस संग्रहालय का सबसे बड़ा आकर्षण होगा. आईआरसीटीसी संग्रहालय परिसर के अंदर ही ‘लाइट एंड साउंड शो’ और विंटेज होटल को भी बनाने की योजना बना रही है. ‘विंटेज होटल’ पैलेस ऑन व्हील्स के कोचों पर बनाया जाएगा जो भारत के लक्जरी रेलों जैसा दिखेगा.

आईआरसीटीसी की यह भव्य योजना जरूर ही राष्ट्रीय रेल संग्रहालय को दिल्ली पर्यटन के टॉप चार्ट्स में शामिल करेगा. ‘द रेल्स’ अपनी अन्य विशेषताओं के साथ आपके शाम और वीकेंड को बिताने के लिए दिलचस्प जगह होगी. इसके साथ ही लोग भारतीय रेलवे की विरासत और इतिहास से पूरी तरह रूबरू हो पाएंगे और अपना मनोरंजन भी कर पाएंगे.

राष्ट्रीय रेल संग्रहालय कैसे पहुंचें?

राष्ट्रीय रेल संग्रहालय दिल्ली के प्रसिद्घ इलाकों में से एक इलाके में स्थित है. आप आराम से यहां किसी भी लोकल परिवहन ,ऑटो, डी.टी.सी बसों आदि की मदद द्वारा पहुंच सकते हैं.

लिपस्टिक बढ़ाए आपकी खूबसूरती

लिपस्टिक महिलाओं की मेकअप किट का एक बेहद अहम हिस्सा है. इससे चेहरे पर एक अलग ही निखार आ जाता है.

अगर आप अपने लुक के साथ एक्सपेरिमेंट करना चाहती हैं तो ऑरेंज, ब्लैक और पर्पल रंग के लिपस्टिक का चुनाव कर सकती हैं. आइए जानते हैं सीजन के लेटेस्ट लिपिस्टिक शेड्स के बारे में, जिन्हें लगा कर आप एकदम अलग नजर आएंगी.

सुर्ख लाल रंग की लिपस्टिक

सुर्ख लाल रंग की लिपस्टिक हर अवसर पर इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं, इस रंग का दौर हमेशा बरकरार रहता है.

ऑरेंज लिपस्टिक

ऑरेंज रंग की लिपस्टिक या इससे मिलते-जुलते शेड्स इस सीजन में छाए हुए हैं. इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह हर ड्रेस और गोरी या सांवली हर महिला पर जंचता है.

ब्राउन रंग की लिपस्टिक

ब्राउन रंग की लिपस्टिक चमकते लुक के ऊपर खूब जंचते हैं. कम मेकअप के साथ इसे लगाने से यह आपके लुक को अलग अंदाज देगा.

पर्पल लिपस्टिक

पर्पल रंग की लिपस्टिक से होठों को सजा आप इसके साथ मैंचिंग रंग के कपड़े या मिक्स रंग के कपड़े भी पहन सकती हैं. साथ ही इसी रंग का चमकीला आईलाइनर लगाना ना भूलें. यह आपको बोल्ड लुक देगा.

काले रंग की लिपस्टिक

काले रंग की लिपस्टिक शेड आजकल लड़कियों के बीच काफी लोकप्रिय है. शाम की पार्टी में आप इसे लगाएं. यकीनन आप भीड़ से अलग नजर आएंगी.

उबटन से चमक उठेगा चेहरे का निखार

उबटन से आप अपने सौंदर्य में चार चांद लगा सकती हैं. नहाने से पहले उबटन लगाने से त्वचा की सुंदर और निखरी-निखरी रहती है.

उबटन, आपकी खूबसूरती को बढ़ा देंगे…

1. बेसन-हल्दी का उबटन

बेसन, हल्दी और चंदन पाउडर को मिलाकर इसमें गुलाबजल डालें और गाढ़ा पेस्ट तैयार कर लें. अब इस पेस्ट को उबटन की तरह चेहरे और हाथ-पैरों के अलावा गर्दन पर भी लगाएं. जब यह आधा सूख जाए तो गुनगुने पानी से नहा लें.

2. तिल का उबटन

तिल को रातभर दूध या पानी में भिगोकर रख दें और सुबह इसका पेस्ट तैयार करके उबटन की तरह पूरे शरीर पर लगाएं. यह उबटन सिर्फ आपकी त्वचा को निखरेगा बल्कि सर्दी के मौसम में आपकी स्किन को प्रोटेक्ट भी करेगा.

3. कच्चा दूध और बेसन

कच्चे दूध में बेसन और हल्दी मिलाकर इसका लेप तैयार करें और इसे पूरे शरीर पर लगाकर कुछ देर के लिए छोड़ दें. यह उबटन स्किन की नमी को बनाएं रखता है.

4. नीम और तुलसी का उबटन

नीम और तुलसी की पत्तियों को पीसकर लेप तैयार करें और इसे चेहरे के साथ ही पूरे शरीर पर भी लगाएं. यह एंटीबायोटिक की तर‍ह काम करता और त्वचा को इंफेक्शन से बचाकर कांतिवान बनता है.

5. चावल का उबटन

एक चम्म्च चावल के आटे में बराबर मात्रा में शहद और गुलाबजल डालकर अच्छी तरह इसका लेप तैयार करें. अब इस लेप पूरे शरीर पर लगाएं. यह आपकी त्वचा को मुलायम बनता है और इसे लगाने से स्किन में में कसाव भी बना रहता है.

कीट पतंगे बने हथियार

एक बार एक मधुमक्खी ने मेरी गर्दन पर डंक मारा तो मेरे पति फौरन घर के भीतर से आलू का आधा टुकड़ा काट कर लाए और फिर उसे डंक वाली जगह पर रख दिया. ऐसा करने से डंक का असर कम करने में मदद मिलती है, लेकिन कुछ दिनों तक दर्द बना रहता है.

राजीव और सोनिया एक बार बच्चों के साथ पिकनिक मनाने गए थे. बच्चों में से किसी ने वहां ततैयों के छत्ते पर पत्थर मार दिया. फलस्वरूप ततैयों के झुंड ने सभी को कई डंक मारे. ये लोग कई दिनों तक बीमार रहे. अच्छी बात यह रही कि इन में से कोई भी जहर के प्रति ऐलर्जिक नहीं था, क्योंकि जो जहर के प्रति ऐलर्जिक होते हैं उनकी तो एक ही डंक में जान पर बन आती है.

मधुमक्खी भी हैं खतरनाक

जब मधुमक्खी काटती है, तो वह मर जाती है, क्योंकि उस का डंक उस के पेट का हिस्सा होता है. डंक मारते समय यह व्यक्ति के शरीर में ही टूट जाता है. यदि डंक को शरीर से न निकाला जाए तो जहर फैलने लगता है और बहुत दर्द होता है.

मधुमक्खियों का परागण के लिए बेहद महत्त्व है. इन का शहद भी लोग बड़े चाव से खाते हैं. 2000 से चलन में आए निकोटिनौइड पेस्टीसाइड्स ने इस प्रजाति को 70% तक खत्म कर दिया. पता नहीं हमारी युवा पीढ़ी ने मधुमक्खियों को देखा भी है या नहीं. आइए, आप को इन के उस समय में ले चलते हैं जब ये इतिहास बनाया करती थीं:

योद्धा मधुमक्खियां: ‘सिक्स लैग्ड सोल्जर्स’ किताब के अनुसार, युद्ध में मधुमक्खियों का प्रयोग पहली बार तब किया गया था जब इनसान गुफाओं में रहता था. युद्ध करने वाले कबीलों के लोग मधुमक्खियों के छत्तों को रात में उस समय काट लेते थे जब वे शांत होती थीं और घुसपैठियों को ठीक से देख नहीं पाती थीं. ये योद्धा छत्ते को गीली मिट्टी से ढक देते थे ताकि मधुमक्खियां छत्ते से बाहर न निकल सकें. फिर हमला करने से पहले इन छत्तों को दुश्मन की गुफाओं में फेंक देते थे. छत्ता टूटते ही गुस्से से पागल मधुमक्खियां बाहर निकल कर गुफा के लोगों को डंक मारने लगती थीं. गुफा के लोग बचने के लिए बाहर भागते थे तो वहां हमला करने वाले घात लगा कर बैठे रहते थे.

बाइबल के पुराने विधान में मधुमक्खियों, ततैयों को हमला करने के लिए इस्तेमाल करने की युक्ति स्पष्ट रूप से दर्ज है. जोशुआ के अध्याय 24:12 के अनुसार, ‘मैं ने दुश्मनों को बाहर खदेड़ने के लिए ततैये भेजे हैं जो उन को बाहर निकाल लाएंगे, यहां तक कि अमोराइट के 2 राजाओं को भी.’

एग्जोडस के अनुसार, ‘और मैं उन के लिए ततैये भेजूंगा जो हिवाइट, द कैनानाइट और द हाइटाइट को बाहर निकाल लाएंगे.’

इतिहास: प्राचीनकाल के नाइजीरियाई कबीले के लोगों ने मधुमक्खियों की तोपें तैयार की थीं. इन तोपों में एक खास तकनीक से मधुमक्खियों को भर कर दुश्मनों पर दागा जाता था. मायन समुदाय ने एक अनूठा हथियार बनाया था. योद्धाओं के पुतले तैयार कर के ये लोग उन के सिरों में मधुमक्खियां ठूंस देते थे. दुश्मन जब इन पुतलों के सिर पर वार करता था तो ये मधुमक्खियां झुंड में इन पर टूट पड़ती थीं.

मिडल ईस्ट की सेनाएं तो और भी ज्यादा चतुर निकलीं. यहां मिट्टी के बरतन बनाने वाले महारथियों ने कीटपतंगों को आकर्षित करने के लिए मिट्टी के ऐसे कंटेनर बनाए, जिन में कीट अपना ठिकाना बना लेते थे. जब दुश्मनों पर इन कंटेनरों का इस्तेमाल करना होता था तो ये लोग इन्हें घासफूस से ढक कर इन की तरफ फेंकते थे. मधुमक्खियों से हमले की सफलता को देखते हुए बाद में चींटियों और बिच्छुओं पर भी प्रयोग किए गए.

समय बदला हथियार नहीं: जैस-जैसे शहरों की तरक्की होती गई वैसे-वैसे शहरों और राज्यों के बीच युद्ध भी बढ़ते गए. शहरों के आस-पास का इलाका बढ़ता गया और हर शहर एक किले में बदल गया. किले पर हमला करने वाले योजना बना कर किले के चारों तरफ डेरा जमा लेते थे ताकि किले को पहुंचने वाला खानापानी रोक सकें. ये किले के भीतर चुपचाप घुसने के लिए सुरंगें भी बनाते थे.

400 ईसापूर्व युद्ध रणनीतिज्ञ एनियस ने छोराबंदी से निबटने के तरीकों पर एक किताब लिखी थी. घेराबंदी में फंसे लोगों को सलाह देते हुए उस ने कहा था कि जिन सुरंगों से घुस कर दुश्मन आने वाला है उन में ततैयों और मधुमक्खियों को छोड़ दो.

रोम की सेना मधुमक्खियों और अन्य कीटों को अपने साम्राज्य विस्तार के लिए प्रमुख हथियार के रूप में इस्तेमाल करती थी. प्लीनि, जिसे अपने समय का सब से जानकार प्रकृति विज्ञानी माना जाता था, उस ने प्रकृति के जीवजंतुओं के बारे में सब बकवास बातें लिखी हैं. उस ने यह भी कहा था कि इनसान को मौत के घाट उतारने के लिए 27 डंकों की जरूरत पड़ती है. रोम में मधुमक्खियों से हमला करने का तरीका इतना ज्यादा प्रचलित हुआ कि रोमन साम्राज्य के दौरान मधुमक्खियों के छत्ते दिखना ही कम हो गए थे.

मधुमक्खियां बनीं अचूक हथियार: रोमन साम्राज्य के दौरान ही किलों को सुरक्षित रखने का यह तरीका आम हो गया था. इंगलैंड के चैस्टर पर  हमला करने के लिए स्कैंडीनैविएंस ने सुरंगें बनाई थीं. चैस्टर के निवासियों ने इस हमले से बचने के लिए मधुमक्खियों को इन सुरंगों में छोड़ दिया, जिस की वजह से दुश्मनों को भागना पड़ा. इस घटना के 700 सालों के बाद स्कैंडीनैविएंस ने सिटी औफ किसिंजेन पर हमला किया और बचाव में यहां के निवासियों ने इन पर मधुमक्खियां छोड़ दीं. इस बार हमला करने वाले मधुमक्खियों से बचने के लिए पूरी तरह तैयार थे, लेकिन उन के घोड़े मधुमक्खियों की वजह से परेशान हो गए और इधरउधर भागने लगे. इस तरह यह हमला भी असफल रहा.

धीरेधीरे पूरे यूरोप ने इस तरीके को अपना लिया. जरमन ने आस्ट्रियन के खिलाफ, ग्रीक ने लुटेरों से बचने के लिए, तो हंगरी के लोगों ने तुर्क हमले से बचाव के लिए इस तरीके का इस्तेमाल किया. यहां तक कि यूनाइटेड किंगडम के ज्यादातर शहरों में भी बड़े स्तर पर मधुमक्खी पालन शुरू कर दिया गया, खासतौर पर स्काटलैंड में. आज भी कहींकहीं इस के निशान देखने को मिल जाते हैं.

शेर दिल के नाम से प्रसिद्ध किंग रिचर्ड, जिन का नाम तक रोबिन हुड की कहानियों में नहीं मिलता, ने मुसलिम साम्राज्य पर हमला करने के लिए इंगलैंड छोड़ा था. इस लड़ाई को धर्मयुद्ध के नाम से जाना गया था. इस लड़ाई के बाद किंग रिचर्ड का ‘शेर दिल’ उपनाम ‘बी आर्म्ड’ में बदल गया था, क्योंकि रिचर्ड युद्ध में मधुमक्खियों से हमले की तकनीक का इस्तेमाल करता था.यहां तक कि समुद्री लड़ाइयों में भी 300 बीसी के दौरान इस तकनीक का इस्तेमाल शुरू हो गया था. जहाजों में मधुमक्खियों को ले जाया जाता था और दूसरे जहाजों पर इन के छत्ते फेंक कर हमला किया जाता था. 16वीं शताब्दी तक इसी तरह हमले किए गए. बौमबार्ड शब्द, जिस का अर्थ बड़ी संख्या में अस्त्र या गोले चलाना है, लैटिन शब्द बौमबस से बना है. बौमबस का मतलब है गुंजायमान करना.

Internet banking को बनाएं और ज्‍यादा सुरक्षित

इंटरनेट बैंकिंग काफी तेजी से बिल का पेमेंट करने या पैसे ट्रांसफर करने का सुविधाजनक जरिया बन गया है. इससे बैंक जाकर लंबी लाइन में खड़े होने से भी लोग बच जाते हैं और सारा काम घर बैठे सिर्फ कुछ क्लिक के जरिए बड़ी आसानी से हो जाता है. हालांकि, Internet Banking का इस्‍तेमाल करते समय खास सावधानी बरतने की जरूरत है. नहीं तो, धोखाधड़ी के शिकार हो सकते हैं. आइए, आज Internet Banking को सुरक्षित करने के ऐसे ही कुछ तरीकों की चर्चा करते हैं.

नियमित तौर पर बदलें अपना पासवर्ड

– समय-समय पर अपने Internet Banking का पासवर्ड बदलते रहें.

– अपने पासवर्ड को हर बार गोपनीय रखें और उसे किसी के साथ शेयर ना करें.

– अगर आप कई बैंक अकाउंट के नेट बैंकिंग का इस्तेमाल करते हैं तो अपने सभी पासवर्ड को कभी भी एक जगह ऑनलाइन सुरक्षित न रखें.

– इन पासवर्ड्स को कहीं किसी डायरी में सुरक्षित रखना ज्‍यादा अच्‍छा रहेगा.

पब्लिक कंप्यूटर पर Internet Banking का इस्‍तेमाल न करें

 – जहां तक संभव हो तो साइबर कैफे या लाइब्रेरी जैसी जगहों के कंप्यूटर पर Internet Banking करने से बचें.

– ऐसी जगहें भीड़भाड़ वाली होती हैं और एक कंप्यूटर कई लोगों द्वारा इस्तेमाल भी किया जाता है.

– ऐसे में दूसरों के द्वारा आपके पासवर्ड के देखने और चोरी किए जाने का जोखिम बढ़ जाता है.

– अगर ज्‍यादा जरूरत है तो ऐसे कंप्‍यूटर से ब्राउजिंग हिस्‍ट्री और टेंपरेरी फाइल डिलीट करना कभी न भूलें.

– इसके अलावा लॉगइन करते समय किसी भी ब्राउज़र में ‘रिमेंबर आईडी एंड पासवर्ड’ के ऑप्‍शन पर क्लिक न करें.

नेट बैंकिंग से जुड़ी जानकारी किसी से शेयर न करें

– बैंक कभी भी आपके ATM PIN, जन्मतिथि जैसी गोपनीय और निजी जानकारी की सूचना फोन या ईमेल के जरिए नहीं पूछता है.

– इस संबंध में लगातार बैंक SMS अलर्ट भी भेजते हैंं.

– अपनी लॉगइन आईडी और पासवर्ड का इस्तेमाल बैंक के आधिकारिक साइट पर ही करें और यह एक सुरक्षित वेबसाइट होनी चाहिए.

– इस बात पर गौर करें कि यूआरएल में ‘https://’लिखा हो. इसका मतलब होता है कि वेबसाइट सिक्योर है.

हमेशा इंटरनेट बैंकिंग का URL ही टाइप करें

– इंटरनेट बैंकिंग के सुरक्षित इस्तेमाल के लिए जरूरी है कि ब्राउज़र के एड्रेस बार में जाकर अपने बैंक का URL टाइप करें.

– कभी भी ईमेल में भेजे गए लिंक पर क्लिक न करें.

– फर्जीवाड़े के लिए हैकर्स बैंक की ओरिजिनल वेबसाइट जैसी साइट डिजाइन कर वही लिंक ईमेल से भेजते हैं.

– अगर आप ऐसी किसी फर्जी वेबसाइट पर एक बार लॉगइन करते हैं तो आपका अकाउंट हैक कर पैसे चुराए जा सकते हैं.

दिल्ली के दीवाली मेले

रौशनी, मिठाइयां, नए-नए कपड़ें, रंगोली के रंगों का त्यौहार दिवाली सबके मन में एक नई उमंग लेकर आता है. घर की सफाई और ढेर सारी शॉपिंग के साथ त्यौहार का स्वागत किया जाता है. इन्हीं सारी तैयारियों को सुविधाजनक बनाने के लिए हर साल जगह-जगह पर दिवाली मेलों का आयोजन किया जाता है, जहां आपको एक ही जगह पर त्यौहार के सारे सामान एक साथ मिल जाते हैं.

दिल्ली इसी रंग-बिरंगे रौशन दिवाली मेलों के लिए भी प्रसिद्ध है. कई अलग-अलग जगहों में दिवाली के मेले लगाए जाते हैं, जहाँ लोग शॉपिंग के साथ वहां आयोजित होने वाले मजेदार क्रियायों में भी हिस्सा लेते हैं, लजीज व्यंजनों का लुफ्त उठाते हैं, आदि.

चलिए आज हम ऐसे ही कुछ खास मेलों की सैर पर चलते हैं जहां जाकर आपकी दिवाली और भी रौशन हो जाएगी.

1. डिफेन्स कॉलोनी दिवाली मेला

डिफेन्स कॉलोनी दिवाली मेला साउथ दिल्ली में आयोजित किया जाने वाला सबसे प्रसिद्ध मेला है, जिसे साउथ दिल्ली दिवाली मेले के नाम से भी जाना जाता है. हर साल इस मेले का आयोजन डिफेन्स कॉलोनी रेसिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा किया जाता है. मेले के मुख्य आकर्षण यहां मिलने वाले लजीज व्यंजन, म्यूजिक प्रोग्राम और कई तरह की प्रतियोगोताएं होती हैं.

2. दस्तकार रौशनी का त्यौहार

छत्तरपुर, देसु कॉलोनी के नेचर बाजार में हफ्ते भर पहले से शुरू हो जाने वाले दिवाली का कार्यक्रम दिल्ली के सबसे प्रसिद्ध मेलों में से एक है. यहां के हस्तशिल्प के सामान देश भर में मौजूद बेहतरीन शिल्पकारों द्वारा तैयार किये जाते हैं. मेले में लगी दुकानें रंग-बिरंगे परिधानों, गहनों, घरों को सजाने वाले सामानों आदि से भरे होते हैं. यह कार्यक्रम वास्तव में त्यौहार, संस्कृति और खुशहाली का उत्सव है.

3. सुंदर नगर दिवाली मेला

सुन्दर नगर दिवाली मेला दिल्ली का सबसे बड़ा मेला है जो लगभग 52 सालों से यहां आयोजित किया जा रहा है. यह यहां का सबसे ऑथेंटिक मेला है, जिसे हर साल सुन्दर नगर कॉलोनी पार्क दिल्ली पब्लिक स्कूल के सामने आयोजित किया जाता है. मेले में कई सारी दुकानें सजती हैं, झूले लगते हैं, जादू के खेल दिखाए जाते हैं और कई तरह की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं. यह शहर का सबसे भीड़भाड़ वाला मेला होता है

4. सेलेक्ट सिटी वॉक दिवाली मेला

अगर आप कुछ महंगे और ब्रांडेड दिवाली तोहफों की तलाश में हैं, तो सोचिये मत निकल पड़िये सेलेक्ट सिटी वॉक दिवाली मेले की ओर. यहां फर्स्ट फ्लोर के बालकनी और बाहरी गलियारे में मेले का आयोजन किया जाता है. मेले में ब्रांडेड कपड़ों से लेकर आर्टिफिशियल गहनों और हाथ से की गई चित्रकारी की भरमार होती है.

5. ब्लाइंड स्कूल मेला

ब्लाइंड स्कूल मेला दिल्ली के सबसे प्रसिद्ध और प्रतिभा से भरे मेलों में से एक है, जहां नेत्रहीन बच्चों की कौशल को निखारने का पूरा मौका दिया जाता है. यहां मिलने वाले दिवाली के सामानों से कई सारी भावनाएं भी जुड़ी होती हैं जो चीजों को और भी खूबसूरत बना देती हैं. आपके त्यौहार को और खुशहाल और रौशन बनाने के लिए जरूरत पड़ने वाले हर तरह के सामान यहां आपको आराम से मिल जायेंगे. नेत्रहीन बच्चों द्वारा बनाई गई यहां मिलने वाली मोमबत्तियां, दीये, हाथ से बने चॉकलेट, मिठाइयां, घरों को सजाने वाले सामान जैसे बेशकीमती चीजें बिल्कुल ही सस्ते दरो पर मिलती हैं. ब्लाइंड स्कूल रिलीफ एसोसिएशन द्वारा आयोजित किये जाने वाले इस मेले में हर किसी का स्वागत होता है.

6. दिल्ली हाट दिवाली मेला

दिल्ली हाट दिवाली मेला कार्निवाल की तरह आयोजित किया जाता है, जहां कई अलग-अलग तरह के खेल, प्रतियोगिताएं, झूलें, नाटक आदि का आयोजन होता है. यहां आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में देश की अलग-अलग संस्कृतियों और परंपराओं की झलक दिखती है. यह मेला देश की विविध संस्कृतियों को बखूबी दर्शाता है. अलग-अलग राज्यों में किस तरह दिवाली के त्यौहारों का आयोजन होता है, सारी झलकियां आपको यहां देखने को मिलेंगी.

7. एपिक सेंटर दिवाली मेला

दिल्ली एनसीआर, गुड़गांव में आयोजित किया जाने वाला यह मेला दिवाली शॉपिंग सबसे बड़ा का केंद्र है. मेले में मजेदार और रंग बिरंगे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. दुकानों में सांस्कृतिक परिधान, दीए, लाइट्स, घरों को सजाने वाले सामान सजे होते हैं. यहां फूड कोर्ट भी बनाया जाता है.

तो इस दिवाली इन मेलों में जायें और अपने त्यौहार को और खास बनाइये और इसके साथ ही साथ प्रतिभाशील बच्चों और जरूरतमंद लोगों की भी जिन्दगी में खुशियों के नए रंग भरिए.

FILM REVIEW: ऐ दिल है मुश्किल

फिल्म की कहानी लंदन में रह रहे अयान (रणबीर कपूर) और अलीजेह (अनुष्का शर्मा) के इर्दगिर्द घूमती है. अमीर परिवार के अयान अपने पिता के डर से एमबीए की पढ़ाई कर रहा है, जबकि उसे गायक बनना है. एक दिन अयान की मुलाकात अलीजेह से हो जाती है और वह उससे इकतरफा प्यार करने लगता है. अलिजेह का मानना है कि इकतरफा प्यार एक कमजोरी है. अलिजेह ने प्यार में बहुद दर्द सहा है. अलिजेह, अयान से अपने रिश्तों को दोस्ती का नाम देती है. वह लखनऊ में अली (फवाद खान) से प्यार करती थी. पर एक दिन अली उसे धोखा देकर चला जाता है.

तब वह डॉ.फजाद के संग रिश्ता बना लेती है, पर वह अली द्वारा दिए गए दर्द को भूली नहीं है. एक दिन जब अयान के साथ अलिजेह पेरिस पहुंचती है, तो वहां उसकी मुलाकात डीजे बन चुके अली से होती है. पुराना प्यार जागता है और वह अयान को अकेले पेरिस से लंदन भेज देती है. कुछ दिन बाद अलिजेह फोन करके अयान को लखनऊ बुलाती है और बताती है कि वह अली के संग शादी कर रही है. अयान लखनऊ पहुंचता है और सोचता है कि शायद अलिजेह का मन बदल जाए, पर वह निराश होकर वहां से लौटता है और एअरपोर्ट पर उसकी मुलाकात मशहूर शायरा सबा तालियार खान (ऐश्वर्या राय बच्चन) से होती है, जिसका मानना है कि एक तरफा प्यार में बड़ी ताकत होती है.

अयान व सबा करीब आते हैं और एक दिन अयान विएना जाकर सबा के घर रहने लगता है. दोनों के बीच संबंध बनते हैं. एक दिन अयान यह बात अलिजेह को बताता है. अलिजेह, अयान से मिलने विएना आती है. सबा से भी मिलती है और यहां एक बार फिर अलिजेह के प्रति अयान का प्यार जागता है. पर अलिजेह उसे सिर्फ दोस्त कहकर चली जाती है. 2 साल बाद पता चलता है कि अलिजेह व अली के बीच बातचीत नहीं है. अयान, अलिजेह की खोज करता है. जब अलिजेह मिलती है, तो पता चलता है कि वह कैंसर की मरीज है. यानी कि प्यार कैंसर बन गया है. इस बीच अयान मशहूर गायक बन चुका है. अलिजेह अभी भी अयान को दोस्त मानती है, जबकि अयान कहता है कि वह उससे प्यार करता है. पर अंततः एकतरफा प्यार जीतता है.

फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में भी पटकथा के स्तर पर काफी कमियां हैं. यूं तो करण जौहर ने इस फिल्म में रिश्तों, प्यार व भावनाओं को परिभाषित करने का सफल प्रयास किया है. पर वह नई व पुरानी पीढ़ी के बीच के अंतर को पाटने के चक्कर में फिल्म को बर्बाद कर बैठे. इंटरवल से पहले की फिल्म पूरी तरह से वर्तमान समय के टीनएजर की सोच के अनुसार है. वर्तमान पीढ़ी सोचती है कि प्यार ‘कैफे काफी डे’ पर शुरू होकर ‘कैफे काफी डे’ पर खत्म हो जाता है. इंटरवल तक टीनएजर वाला धमाल व मस्ती है, पागलपन है. बहुत ही सतही स्तर का रिश्ता है.

मगर इंटरवल के बाद ऐश्वर्या के किरदार के आने के साथ फिल्म अलग रूप ले लेती है. तब परिपक्व प्यार की बात होती है. शायरी गुनगुनायी जाती हैं. प्यार के मायनों की बात होती है, मगर फिर पटकथा की ऐसी गड़बड़ होती है कि फिल्म संभलने की बजाय बर्बाद हो जाती है.

कुछ नई बात कहते कहते अचानक करण जौहर फिल्म पर अपनी पुरानी फिल्मों वाली छाप छोड़ने के चक्कर में प्यार को कैंसर बता गए. इंटरवल से पहले संवाद लेखक ने पुरानी फिल्मों के कुछ संवादों, कुछ पुरानी फिल्मों के नाम व सनी लियोनी के नाम का उपयोग कर स्तरहीन सेवाद लिखें हैं. जिन्हें सुनकर टीनएजर भी बोर होने लगते हैं. इंटरवल से पहले अयान का संवाद है ‘चांटा प्यार का एहसास करा गया. दूसरा चांटा प्यार का दर्द दे गया.’ यह बात समझ से परे है. फिल्म में कुछ अच्छी शायरी है.

करण ने फिल्म को सफल बनाने के लिए सारे मसाले डाल दिए हैं. इस के चलते शाहरुख खान, आलिया भट्ट व लिसा हेडन भी गेस्ट एपियरेंस में नजर आ गए. मगर जहां तक अभिनय का सवाल है, तो इस फिल्म में एक बार फिर अनुष्का ने अपनी चिरपरिचित अभिनय शैली के साथ दर्शकों का दिल जीतने में सफल रही हैं. ऐश्वर्या का किरदार बहुत बड़ा नहीं है. इंटरवल के बाद फिल्म में उनके आने से कुछ उम्मीदें बंधती है मगर वह बहुत जल्द खत्म हो जाती हैं.

छोटे किरदार में भी ऐश्वर्या इंटीमसी के दृश्य देकर चौंकाती हैं. मगर शाहरूख के किरदार के आने के बाद लगता है कि कहानी में नया मोड़ आएगा. क्योंकि सबा बता चुकी है कि शाहरूख का किरदार यानी कि तालियार खान से उनका तलाक हो चुका है, पर वह अभी भी अच्छे दोस्त हैं. लेकिन सबा व तालियार खान की मुलाकात अयान की मौजूदगी में क्यों करवायी गई, पता ही नहीं चलता. फिल्म में रणबीर कपूर और अनुष्का शर्मा के बीच केमिस्ट्री सही ढ़ग से नहीं उभर पाती, जिसका असर कथा कथन पर भी पड़ता है. अलिजेह ने प्यार में कई धोखे खाए हैं, उसका प्रभाव उभर कर नही आता. फवाद खान प्रभावित करने में असफल रहे.

फिल्म की अवधि 2 घंटे 37 मिनट है, मगर फिल्म जिस तरह से बढ़ती है, उससे दर्शक सोचने लगता है कि फिल्म कब खत्म होगी, यह बात निर्देशक व पटकथा लेखक की कमजोरी की ओर इशारा करती है. फिल्म का अंत करते समय अलिजेह को कैंसर का मरीज बताकर फिल्म को बर्बाद करने की ही कोशिश कही जाएगी. रणबीर कपूर, ऐश्वर्या राय बच्चन, अनुष्का शर्मा,फवाद खान जैसे बेहतरीन कलाकारों, लंदन व पेरिस की खूबसूरत लोकेशन का सही उपयोग करने में निर्देशक बुरी तरह से मात खा गए.

विवेक ओबेरॉय ने पापा को दिया सरप्राइज दीवाली गिफ्ट

बॉलीवुड अभिनेता विवेक ओबेरॉय के लिए उनका परिवार कितना मायने रखता है इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वह तकरीबन हर छोटे बड़े त्यौहार पर अपने परिवार के साथ ही होते हैं. हाल ही में उन्होंने अपने परिवार के साथ गणेश चतुर्थी पर पूजन किया था जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब शेयर हुईं.

अब इस दिवाली पर उन्होंने अपने पिता सुरेश ओबेरॉय को एक लक्जरी एसयूवी कार गिफ्ट की है. एक मीडिया सूत्र से मिली खबर के मुताबिक विवेक हर साल अपने परिवार के लिए कुछ न कुछ खरीदते हैं, लेकिन इस बार इस मामले में उन्होंने थोड़ा और आगे जाने का फैसला किया है. उन्होंने अपने परिवार के हर सदस्य से पूछा कि वह क्या चाहते हैं? जानकारी के मुताबिक उनके पिता ने विवेक को कुछ भी नहीं बताया. अब क्योंकि विवेक इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि उनके पिता को भी विवेक की ही तरह कारों का शौक है, तो विवेक ने अपने पिता तो कार गिफ्ट करने का फैसला किया और उनके लिए एक महंगी एसयूवी कार खरीद लाए.

इस कार को हाल ही में उनके मुंबई स्थित घर पर डिलीवर किया गया. विवेक ने कहा कि मुझे आज भी अपनी पहली कार याद है जो मेरे पिता ने मुझे गिफ्ट की थी. इसलिए यह मेरे लिए एक बहुत ही एक्साइटेड कर देने वाला मोमेंट था. गौरतलब है कि हाल ही में दिए एक बयान में विवेक ने कहा था कि वह उनकी अगली फिल्म ‘पावर प्ले’ इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) पर आधारित होगी, जिसमें इस खेल से जुड़े पहलुओं को भी शामिल किया जाएगा. विवेक ने कहा, “फिलहाल हम एक्सेल इंटरटेनमेंट द्वारा निर्मित एक रोमांचक परियोजना की शूटिंग कर रहे हैं. इसका नाम ‘पावर प्ले’ है और यह आईपीएल पर आधारित है. इसकी कहानी आईपीएल से प्रेरित है और यह पर्दे के पीछे घटित कांड, रैकेट और भी कई बातों को उजागर करेगी.”

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, विवेक 12 हिस्सों की वेब सीरीज में आईपीएल के पहले चेयरमैन व कमीश्नर ललित मोदी के किरदार में नजर आएंगे. बड़े पर्दे पर वह यशराज फिल्म्स की फिल्म ‘बैंक चोर’ में दिखाई देंगे.अभिनेता ने बताया कि अगले साल मार्च में प्रदर्शित होने वाली इस फिल्म को लेकर वह बहुत उत्साहित हैं.’ कृष-3′ में नकारात्मक किरदार निभाने वाले विवेक को फिल्म ‘कृष-4’ के लिए भी साइन किया गया है.वह राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘कंपनी-2’ से इस साल के अंत में बतौर निर्माता शुरुआत करने जा रहे हैं.

पूजा भट्ट पहुंची पाकिस्तान

एक तरफ जहां सभी विवादों से बचकर फिल्म ‘ए दिल है मुश्किल’ आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. उरी हमले के बाद से इस फिल्म में पाकिस्तानी कलाकार होने के चलते फिल्म का काफी विरोध हुआ था. खैर, खबर हम लाए हैं पूजा भट्ट की. दरअसल, पूजा भट्ट हाल ही में पाकिस्तान गई हैं.

बता दें कि पूजा भट्ट कराची में ‘फैशन पाकिस्तान वीक’ को अटेंड करने के लिए गई हैं. इस पर पूजा भट्ट ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि वो पाकिस्तान जाकर काफी खुश हैं.

वहीं जब पाकिस्तानी कलाकारों पर भारत में लगे बैन के बारे में पूजा से बात की तो पूजा ने कहा, कि भारत और पाकिस्तान के बीच जब हवाई रास्ते खुले हैं, तो कलाकारों का आना-जाना लगा ही रहेगा. आपको बता दें कि पूजा भट्ट इस शो में रैंप वॉक करती नजर आएंगी.

बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं जगाती ‘शिवाय’

एक्शन और रोमांच से भरपूर  अजय देवगन निर्देशित फिल्म का बजट लगभग एक सौ दस करोड़ रूपए है. यह फिल्म बाक्स ऑफिस पर अपनी लागत वूसल कर पाएगी, इसमें संशय है. अजय देगवन का दावा है कि यह फिल्म पिता पुत्री के रिश्तों की कहानी है, मगर इसमें फिल्म पूरी तरफ से सफल नहीं हो पाती. फिल्म में एक्शन की भरमार है, मगर भावनात्मक दृष्य ठीक से नहीं उभरे हैं.

फिल्म ‘‘शिवाय’’ की कहानी शिवाय (अजय देवगन) से शुरू होती है, जो कि ऊंची से ऊंची हिमालय की चोटियों में आराम से चढ़ जाता है. उसे ट्रेकिंग में महारत हासिल है. वह पर्वतारोहण का इंचार्ज है. एक दिन जब वह कुछ देसी व विदेशी सैनानियों को ट्रेकिंग पर हिमालय की सबसे ऊंची चोटी पर ले जाता है, तो जिस पहाड़ी पर वह होते हैं, वहां बादल फटने लगता है. पर शिवाय चलाकी से सभी को वहां से दूसरी पहाड़ी पर भेज देता है और अंत में वह बुलगैरिया से आयी सैलानी ओलगा (इरिका कर) को बचाने जाता है, तो उसी वक्त पहाड़ी दो टुकडे़ में फट जाती है. पर उससे पहले वह खुद ओलगा के साथ बचाने में सफल हो जाता है.

दोनों के बीच प्यार पनपने के साथ ही शारीरिक संबंध बन जाते हैं और फिर ओलगा जिद करती है कि उसे वापस अपने देश बुलगेरिया जाना है. ओलगा का मानना है कि उसे अपने देश में बहुत काम करना है. और शिवाय के साथ उसका जो भी संबंध था, वह उतने दिन के लिए ही था. पर वह उससे प्यार करती रहेगी. लेकिन तभी पता चलता है कि वह गर्भवती है. अब शिवाय कि जिद है कि वह बच्चे को जन्म देने के बाद ही बुलगैरिया जा सकती है. शिवाय की जिद के चलते ओलगा एक बेटी गौरा (अबिगेल याम्स) को जन्म देती है. पर उसका ना नाम रखती हैं ना चेहरा देखती है. वापस अपने वतन बुलगैरिया चली जाती है. इधर शिवाय अकेले ही अपनी बेटी को पालता है. पर्वतारोहण के समय उसे अपने साथ ले जाता हैं.

गौरा गूंगी है,पर ट्रेकिंग में वह भी माहिर है. एक दिन गौरा को अपनी मां की फोटो और उनकी लिखी चिट्ठी मिल जाती है, जिन्हें पढ़कर वह शिवाय से जिद करती है कि वह उसे बुलगैरिया ले जाए. बेटी की खुशी के लिए वह उसे लेकर बुलगैरिया जाता है. बुलगैरिया में वह जिस होटल में रुकता है, उस होटल के एक कमरे में एक नाबालिग बच्चे को यौन शोषण से मुक्त कराकर अपराधी को पुलिस के हवाले कर देता है. फिर ओलगा की तलाश के लिए वह भारतीय दूतावास में मदद मांगने जाता है, जहां उसकी मुलाकात अनुष्का (साएशा सहगल) से होती है.

बाहर निकलकर शिवाय एक रेस्टारेंट में  बैठकर कुछ खाना चाहता है कि तभी गौरा का अपहरण हो जाता है. शिवाय गौरा के अपहरणकर्ताओं का पीछा करता है, उसके हाथ से कई खून हो जाते हैं. पर अपहरणकर्ता भाग जाते हैं. पुलिस शिवाय को पकड़कर उस पर  आरोप लगाती है कि वह ह्यूमन ट्रेफीकिंग व जिस्म फरोशी का धंधा करवाता है और उसने कुछ लोगों की हत्या की है. भारतीय दूतावास शिवाय की मदद के लिए वकील भेजता है. पर वकील ज्यादा मदद नही कर पाता. शिवाय को पता चलता है कि यदि तीन दिन में उसकी बेटी नही मिली, तो उसकी बेटी को दूसरे देश पहुंचा दिया जाएगा. क्योंकि वहां पर बच्चों के साथ यौनशोषण और ह्यूमन ट्रेफीकिंग का धंधा काफी बड़े पैमाने पर होता है.

जब पुलिस उसे अदालत ले जा रही होती है, तभी वह सभी पुलिस वालों को मारकर भागता है. फिर एक देहव्यापार के अड्डे पर जाकर सभी लड़कियों को छुड़ाता है. फिर अनुष्का को बुलाता है. अनुष्का उसे पुलिस के सामने समर्पण की सलाह देती है. पर वह तैयार नही है. तभी वहां पुलिस पहुंच जाती है. शिवाय अकेले उन सभी पुलिस वालों को मार कर वहां से निकल जाता है. अपने पिता (गिरीष कर्नाड) के कहने पर अनुष्का, शिवाय की मदद करना चाहती है. अब अनुष्का के कहने पर अनुष्का का प्रेमी व मशहूर हैकर वाग उसकी मदद के लिए आता है. पता चलता है कि गौरा कहां है, पर  वहां शिवाय व अनुष्का के पहुंचने से पहले उस शख्स को मार दिया जाता है.

अंत में पता चलता है कि इसका सरगना पुलिस अफसर चंगेज है. तथा गौरा को एक वैन में भरकर देश की सीमा की तरफ ले जाया जा रहा है. खैर, शिवाय वैन तक पहुंच जाता है. उसमें से वह गौरा के साथ साथ दूसरे तमाम बच्चों को भी छुड़ा लेता है. तभी वहां हैलीकोप्टर से चंगेज पहुंच जाता है. फिर चंगेज व दूसरे पुलिस वालों के साथ शिवाय की मारामारी होती है. अंततः सभी पुलिस वाले और चंगेजा मारा जाता है. शिवाय अस्पताल पहुंच जाता है. स्वस्थ होने पर वह ओलगा के घर गौरा को लेने जाता है, जहां वह पाता है कि गौरा, ओलगा के घर में ज्यादा खुश है. इसलिए गौरा को छोड़कर भारत वापस आने लगता है. एयरपोर्ट पर अनुष्का उसे समझाती है, तो शिवाय सोच में पड़ जाता है कि वह भारत वापस जाए या ना जाए. इसी बीच वहां गौरा पहुंचती हैं और शिवाय से झगड़ती है कि वह उसे छोडकर क्यों जा रहा था. गौरा, शिवाय की एअर टिकट फाड़ कर फेंक देती है. शिवाय, गौरा को गोद में उठा लेता है.

फिल्म में कामिक्स को लेकर कई घटिया व गलत संवाद हैं. फिल्म का सबसे बड़ा कमजोर पक्ष इसकी लंबाई है. फिल्म के कथानक वगैरह को देखते हुए यह फिल्म दो घंटे में आराम से समेटी जा सकती थी. इंटरवल के बाद फिल्म के पटकथा लेखक बुरी तरह से मात खा गए हैं. कैमरामैन बधाई के पात्र हैं. बेहतरीन लोकेशन हैं. उन्होंने कई दिल दहलाने वाले सीन फिल्माए हैं. उनकी फोटोग्राफी हालीवुड फिल्मों की याद दिला देती है.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो एक्शन दृश्यों में अजय देवगन बहुत अच्छे उभरते हैं, मगर भावनात्मक दृश्यों में अजय देवगन और इरिका कर दोनों ही निराश करते हैं. गिरीष कर्नाड ने अपने करियर में इससे अधिक कमजोर किरदार कभी नहीं निभाया होगा. इस फिल्म से साएशा सहगल अपने करियर की शुरुआत कर रही हैं. जबकि यदि उनके किरदार को फिल्म से हटा दिया जाए, तो भी कथानक पर कोई असर न पड़ता. मगर इस फिल्म से वह अभिनय करियर शुरू कर रही हैं, तो उनका ग्लैमरस दिखना जरुरी था. इसी कारण उन्हे बाथटब में स्नान करते हुए भी दिखा दिया गया. बाल कलाकार अबिगेल याम्स ने एक गूंगी लड़की का किरदार बहुत ही बेहतरीन तरीके से निभाया है. सौरभ शुक्ला के हिस्से में करने को कुछ है ही नहीं.

दो घंटे 52 मिनट यानी कि लगभग तीन घंटे की अवधि वाली फिल्म ‘‘शिवाय’’ के निर्माता, निर्देशक व कहानीकार अजय देवगन, पटकथा व संवाद संदीप श्रीवास्तव, संगीतकार मिठुन, कैमरामैन असीम बजाज तथा कलाकर हैं- अजय देवगन, साएशा सहगल, इरिका कर, अबिगेल याम्स, वीर दास, गिरीष कर्नाड, सौरभ शुक्ला व अन्य..

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