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बहू-बेटी का फर्क: क्या सपना के बेटे का फैसला सही था

जब से वे सपना की शादी कर के मुक्त हुईं तब से हर समय प्रसन्नचित्त दिखाई देती थीं. उन के चेहरे से हमेशा उल्लास टपकता रहता था. महरी से कोई गलती हो जाए, दूध वाला दूध में पानी अधिक मिला कर लाए अथवा झाड़ ूपोंछे वाली देर से आए, सब माफ था. अब वे पहले की तरह उन पर बरसती नहीं थीं. जो भी घर में आता, उत्साह से उसे सुनाने बैठ जातीं कि उन्होंने कैसे सपना की शादी की, कितने अच्छे लोग मिल गए, लड़का बड़ा अफसर है, देखने में राजकुमार जैसा. फिर भी एक पैसा दहेज का नहीं लिया. ससुर तो कहते थे कि आप की बेटी ही लक्ष्मी है और क्या चाहिए हमें. आप की दया से घर में सब कुछ तो है, किसी बात की कमी नहीं. बस, सुंदर, सुसंस्कृत व सुशील बहू मिल गई, हमारे सारे अरमान पूरे हो गए.

शादी के बाद पहली बार जब बेटी ससुराल से आई तो कैसे हवा में उड़ी जा रही थी. वहां के सब हालचाल अपने घर वालों को सुनाती, कैसे उस की सास ने इतने दिनों पलंग से नीचे पांव ही नहीं धरने दिया. वह तो रानियों सी रही वहां. घर के कामों में हाथ लगाना तो दूर, वहां तो कभी मेहमान अधिक आ जाते तो सास दुलार से उसे भीतर भेजती हुई कहती, ‘‘बेचारी सुबह से पांव लगतेलगते थक गई, नातेरिश्तेदार क्या भागे जा रहे हैं कहीं. जा, बैठ कर आराम कर ले थोड़ी देर.’’

और उस की ननद अपनी भाभी को सहारा दे कर पलंग पर बैठा आती.

यह सब जब उन्होंने सुना तो फूली नहीं समाईं. कलेजा गज भर का हो गया. दिन भर चाव से रस लेले कर वे बेटी की ससुराल की बातें पड़ोसिनों को सुनाने से भी नहीं चूकतीं. उन की बातें सुन कर पड़ोसिन को ईर्ष्या होती. वे सपना की ससुराल वालों को लक्ष्य कर कहतीं, ‘‘कैसे लोग फंस गए इन के चक्कर में. एक पैसा भी दहेज नहीं देना पड़ा बेटी के विवाह में और ऐसा शानदार रोबीला वर मिल गया. ऊपर से ससुराल में इतना लाड़प्यार.’’

उस दिन अरुणा मिलने आईं तो वे उसी उत्साह से सब सुना रही थीं, ‘‘लो, जी, सपना को तो एम.ए. बीच में छोड़ने तक का अफसोस नहीं रहा. बहुत पढ़ालिखा खानदान है. कहते हैं, एम.ए. क्या, बाद में यहीं की यूनिवर्सिटी में पीएच.डी. भी करवा देंगे. पढ़नेलिखने में तो सपना हमेशा ही आगे रही है. अब ससुराल भी कद्र करने वाला मिल गया.’’

‘‘फिर क्या, सपना नौकरी करेगी, जो इतना पढ़ा रहे हैं?’’ अरुणा ने उन के उत्साह को थोड़ा कसने की कोशिश की.

‘‘नहीं जी, भला उन्हें क्या कमी है जो नौकरी करवाएंगे. घर की कोठी है.  हजारों रुपए कमाते हैं हमारे दामादजी,’’ उन्होंने सफाई दी.

‘‘तो सपना इतना पढ़लिख कर क्या करेगी?’’

‘‘बस, शौक. वे लोग आधुनिक विचारों के हैं न, इसलिए पता है आप को, सपना बताती है कि सासससुर और बहू एक टेबल पर बैठ कर खाना खाते हैं. रसोई में खटने के लिए तो नौकरचाकर हैं. और खानेपहनाने के ऐसे शौकीन हैं कि परदा तो दूर की बात है, मेरी सपना तो सिर भी नहीं ढकती ससुराल में.’’

‘‘अच्छा,’’ अरुणा ने आश्चर्य से कहा.

मगर शादी के महीने भर बाद लड़की ससुराल में सिर तक न ढके, यह बात उन के गले नहीं उतरी.

‘‘शादी के समय सपना तो कहती थी कि मेरे पास इतने ढेर सारे कपड़े हैं, तरहतरह के सलवार सूट, मैक्सी और गाउन, सब धरे रह जाएंगे. शादी के बाद तो साड़ी में गठरी बन कर रहना होगा. पर संयोग से ऐसे घर में गई है कि शादी से पहले बने सारे कपड़े काम में आ रहे हैं. उस के सासससुर को तो यह भी एतराज नहीं कि बाहर घूमने जाते समय भी चाहे…’’

‘‘लेकिन बहनजी, ये बातें क्या सासससुर कहेंगे. यह तो पढ़ीलिखी लड़की खुद सोचे कि आखिर कुंआरी और विवाहिता में कुछ तो फर्क है ही,’’ श्रीमती अरुणा से नहीं रहा गया.

उन्होंने सोचा कि शायद श्रीमती अरुणा को उन की पुत्री के सुख से जलन हो रही है, इसीलिए उन्होंने और रस ले कर कहना शुरू किया, ‘‘मैं तो डरती थी. मेरी सपना को शुरू से ही सुबह देर से उठने की आदत है, पराए घर में कैसे निभेगी. पर वहां तो वह सुबह बिस्तर पर ही चाय ले कर आराम से उठती है. फिर उठे भी किस लिए. स्वयं को कुछ काम तो करना नहीं पड़ता.’’

‘‘अब चलूंगी, बहनजी,’’ श्रीमती अरुणा उठतेउठते बोलीं, ‘‘अब तो आप अनुराग की भी शादी कर डालिए. डाक्टर हो ही गया है. फिर आप ने बेटी विदा कर दी. अब आप की सेवाटहल के लिए बहू आनी चाहिए. इस घर में भी तो कुछ रौनक होनी ही चाहिए,’’ कहतेकहते श्रीमती अरुणा के होंठों की मुसकान कुछ ज्यादा ही तीखी हो गई.

कुछ दिनों बाद सपना के पिता ने अपनी पत्नी को एक फोटो दिखाते हुए कहा, ‘‘देखोजी, कैसी है यह लड़की अपने अनुराग के लिए? एम.ए. पास है, रंग भी साफ है.’’

‘‘घरबार कैसा है?’’ उन्होंने लपक कर फोटो हाथ में लेते हुए पूछा.

‘‘घरबार से क्या करना है? खानदानी लोग हैं. और दहेज वगैरा हमें एक पैसे का नहीं चाहिए, यह मैं ने लिख दिया है उन्हें.’’

‘‘यह क्या बात हुई जी. आप ने अपनी तरफ से क्यों लिख दिया? हम ने क्या उसे डाक्टर बनाने में कुछ खर्च नहीं किया? और फिर वे जो देंगे, उन्हीं की बेटी की गृहस्थी के काम आएगा.’’

अनुराग भी आ कर बैठ गया था और अपने विवाह की बातों को मजे ले कर सुन रहा था. बोला, ‘‘मां, मुझे तो लड़की ऐसी चाहिए जो सोसाइटी में मेरे साथ इधरउधर जा सके. ससुराल की दौलत का क्या करना है?’’

‘‘बेशर्म, मांबाप के सामने ऐसी बातें करते तुझे शर्म नहीं आती. तुझे अपनी ही पड़ी है, हमारा क्या कुछ रिश्ता नहीं होगा उस से? हमें भी तो बहू चाहिए.’’

‘‘ठीक है, तो मैं लिख दूं उन्हें कि सगाई के लिए कोई दिन तय कर लें. लड़की दिल्ली में भैयाभाभी ने देख ही ली है और सब को बहुत पसंद आई है. फिर शक्लसूरत से ज्यादा तो पढ़ाई- लिखाई माने रखती है. वह अर्थशास्त्र में एम.ए. है.’’

उधर लड़की वालों को स्वीकृति भेजी गई. इधर वे शादी की तैयारी में जुट गईं. सामान की लिस्टें बनने लगीं.

अनुराग जो सपना के ससुराल की तारीफ के पुल बांधती अपनी मां की बातों से खीज जाता था, आज उन्हें सुनाने के लिए कहता, ‘‘देखो, मां, बेकार में इतनी सारी साडि़यां लाने की कोई जरूरत नहीं है, आखिर लड़की के पास शादी के पहले के कपड़े होंगे ही, वे बेकार में पड़े बक्सों में सड़ते रहें तो इस से क्या फायदा.’’

‘‘तो तू क्या अपनी बहू को कुंआरी छोकरियों के से कपड़े यहां पहनाएगा?’’ वह चिल्ला सी पड़ीं.

‘‘क्यों, जब जीजाजी सपना को पहना सकते हैं तो मैं नहीं पहना सकता?’’

वे मन मसोस कर रह गईं. इतने चाव से साडि़यां खरीद कर लाई थीं. सोचा था, सगाई पर ही लड़की वालों पर अच्छा प्रभाव पड़ गया तो वे बाद में अपनेआप थोड़ा ध्यान रखेंगे और हमारी हैसियत व मानसम्मान ऊंचा समझ कर ही सबकुछ करेंगे. मगर यहां तो बेटे ने सारी उम्मीदों पर ही पानी फेर दिया.

रात को सोने के लिए बिस्तर पर लेटीं तो कुछ उदास थीं. उन्हें करवटें बदलते देख कर पति बोले, ‘‘सुनोजी, अब घर के काम के लिए एक नौकर रख लो.’’

‘‘क्यों?’’ वह एकाएक चौंकीं.

‘‘हां, क्या पता, तुम्हारी बहू को भी सुबह 8 बजे बिस्तर पर चाय पी कर उठने की आदत हो तो घर का काम कौन करेगा?’’

वे सकपका गईं.

सुबह उठीं तो बेहद शांत और संतुष्ट थीं. पति से बोलीं, ‘‘तुम ने अच्छी तरह लिख दिया है न, जी, जैसी उन की बेटी वैसी ही हमारी. दानदहेज में एक पैसा भी देने की जरूरत नहीं है, यहां किस बात की कमी है, मैं तो आते ही घर की चाबियां उसे सौंप कर अब आराम करूंगी.’’

‘‘पर मां, जरा यह तो सोचो, वह अच्छी श्रेणी में एम.ए. पास है, क्या पता आगे शोधकार्य आदि करना चाहे. फिर ऐसे में तुम घर की जिम्मेदारी उस पर छोड़ दोगी तो वह आगे पढ़ कैसे सकेगी?’’ यह अनुराग का स्वर था.

उन की समझ में नहीं आया कि एकाएक क्या जवाब दें.

कुछ दिन बाद जब सपना ससुराल से आई तो वे उसे बातबात पर टोक देतीं, ‘‘क्यों री, तू ससुराल में भी ऐसे ही सिर उघाड़े डोलती रहती है क्या? वहां तो ठीक से रहा कर बहुओं की तरह और अपने पुराने कपड़ों का बक्सा यहीं छोड़ कर जाना. शादीशुदा लड़कियों को ऐसे ढंग नहीं सुहाते.’’

सपना ने जब बताया कि वह यूनिवर्सिटी में दाखिला ले रही है तो वे बरस ही पड़ीं, ‘‘अब क्या उम्र भर पढ़ती ही रहेगी? थोड़े दिन सासससुर की सेवा कर. कौन बेचारे सारी उम्र बैठे रहेंगे तेरे पास.’’

आश्चर्यचकित सपना देख रही थी कि मां को हो क्या गया है?

इस दिन जापान में रिलीज होगी किरण राव की फिल्म laapataa ladies

जियो स्टूडियोज की लापता लेडीज (laapataa ladies) फिल्म अपनी रिलीज से ही दर्शकों के दिल में घर कर बैठी है. 1 मार्च 2023 को रिलीज हुई यह फिल्म 100 से अधिक दिनों तक दर्शकों को सिनेमाघरों में आकर्षित करने तथा ओटीटी पर दर्शकों से प्यार और प्रशंसा बटोरने में सफल हुई थी. अब यह फिल्म जापान में दर्शकों को लुभाने के लिए तैयार है, जिसकी रिलीज 4 अक्टूबर, 2024 को निर्धारित है.

यह फिल्म, एक ही ट्रेन में अलग हो जाने वाली दो युवा दुल्हनों के बारे में हल्कीफुल्की एक मनोरंजक कौमेडी है. नितांशी गोयल, प्रतिभा रांटा, स्पर्श श्रीवास्तव और रवि किशन अभिनीत, लापता लेडीज जापानी दर्शकों को हसाने और मनोरंजक कहानी से मंत्रमुग्ध करने के लिए तैयार है.

निर्देशक किरण राव जापान से प्रतिक्रियाओं का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं. अपनी खुशी को साझा करते हुए, वह कहती हैं, ” मैं रोमांचित हूं कि लापता लेडीज जापान में रिलीज हो रही है. मैं जापानी सिनेमा की प्रशंसक रही हूं, मुझे हमेशा जापानी संस्कृति में गहरी दिलचस्पी रही है और मुझे उम्मीद है कि फिल्म का भावनात्मक सार जापानी दर्शकों के साथ वैसा ही जुड़ेगा जैसा कि हमारे साथ था.”

वह आगे कहती हैं, “यह रिलीज फिल्म के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है और यह दर्शाता है कि कैसे यह सिनेमा कहानियों और भावनाओं के माध्यम से संस्कृतियों को कैसे जोड़ सकता है. मेरे दिल के इतने करीब रही इस फिल्म को नए दर्शकों तक पहुंचते देखना सपने से कम नहीं. मैं फिल्म की वैश्विक पहुंच बढ़ाने के लिए जियो स्टूडियोज और आमिर खान प्रोडक्शंस की आभारी हूं. इसे जापान ले जाना एक रोमांचक अगला अध्याय है, और इसे संभव बनाने में उनका उत्साह और समर्थन महत्वपूर्ण रहा है.”

जियो स्टूडियोज द्वारा प्रस्तुत, लापता लेडीज किरण राव द्वारा निर्देशित और आमिर खान, किरण राव और ज्योति देशपांडे द्वारा निर्मित है यह फिल्म आमिर खान प्रोडक्शंस और किंडलिंग प्रोडक्शंस के बैनर तले बनाई गई है, जिसकी पटकथा बिप्लब गोस्वामी की एक पुरस्कार विजेता कहानी पर आधारित है. पटकथा और संवाद स्नेहा देसाई द्वारा लिखे गए हैं, जबकि अतिरिक्त संवाद दिव्यनिधि शर्मा द्वारा लिखे गए हैं.

Inspiration : ‘मुजरा करने लगी है’ सुनकर भी पचास पार इंफ्लूएंसर नीरू सैनी के पांव थिरकते रहे, कमर लचकती रहे, फौलोअर्स बढ़ते रहे  


50 साल की उम्र में नीरू सैनी ने अपने डांसिंग के पैशन को नई उड़ान देनी चाही तो उन्हें खूब ताने सुनने पड़ें, जैसे ‘बुड्ढी रामराम जपो’, ‘कमर खिसक जाएगी’,  ‘घुटने दर्द नहीं करते’. यह भी सुनना पड़ा कि ‘बड़ी उम्र की औरतें मुजरा करने लगी है अब बच्चों को नैतिक मूल्यों की बात कौन सिखाएगा?’.  सोशल मीडिया पर मिलनने वाले इन सब कमैंट्स के बावजूद नीरू का मनोबल कम नहीं हुआ बल्कि सोशल मीडिया पर उनके फौलोअर्स की संख्या बढ़ती ही चली गई और साथ ही साथ उनके कौन्फिडेंस का ग्राफ भी ऊपर की तरफ चढ़ता गया.  आइए नीरू की जुबानी सुनें एक साधारण महिला की हिम्मती जज्बे की कहानी 

अचानक तूफान आ गया … 

‘हैलन के गाने महबूबा महबूबा… ‘ पर बचपन में डांस करने की शौकीन नीरू बताती हैं,  “मेरे हसबैंड प्रदीप सैनी की डैथ ब्लड कैंसर से हुई थी, तब मेरी  उम्र केवल 32 साल थी. मेरी दोनों बेटियां बहुत ही छोटी थी.  प्रदीप और मेरी शादी अरैंज्ड मैरिज थी लेकिन ट्यूनिंग ऐसी थी जैसे हमने लव मैरिज की हो. प्रदीप के डैथ के बाद मैं ठीक से रो भी नहीं पाई.  उनके डैथ के पहले ही हमें पता चल गया था कि हमारा साथ अब आगे के 4 सालों तक का ही है.  मेरे हसबैंड जब कैंसर से जूझ रहे थे मैं अपने दर्द को निकालने के लिए रोतेरोते उस समय तक डांस करती रहती थी जब तक थक कर निढ़ाल न हो जाउं. प्रदीप अपने पीछे दो बेटियों प्रेरणा और देवांशी को छोड़ गए थे और यह कह कर गए थे कि नीरू, मेरी बेटियों को खूब पढ़ाना और काबिल बनाना. प्रदीप के चले जाने के बाद मैंने ट्यूशन्स लेना शुरू किया. मेरे पहले ट्यूशन से मुझे केवल 200 रुपए मिले तो मैं हताश हो गई. लगा, इससे घर कैसे चलेगा लेकिन 5 से 6 महीने के अंदर मैं इतना कमाने लगी कि मेरी दालरोटी का इंतजाम हो जाता था. मैं साइन्स की स्टूडेंट थी, मैडिकल इंट्रैस एग्जामिनेशन के लिए काफी स्टडी की थी जो इस दौरान काम आया. मैं अपने स्टूडेंट्स को साइन्स पढ़ाती थी.  धीरेधीरे ट्यूशन क्लासेज की चर्चा होने लगी और  ढेर सारे स्टूडैंट्स मिल गए. आज मेरी दोनों बेटियां अपने पैरों पर खड़ी हैं.  बड़ी बेटी प्रेरणा ने आर्किटेक्चर की पढ़ाई करने के बाद न्यूयौर्क की कौर्नेल यूनिवर्सिटी से फाइनैंस में एमबीए किया, अभी बैंक औफ अमेरिका की एम्पलौय हैं, दूसरी बेटी देवांशी बुकिंग डौट कौम की एम्पलौय है.

डांस करने की कैसे सूझी ? 

पति के डैथ के बाद 15 सालों तक मैं खुद को भूल गई थी. इन सालों में मेरी पर्सनैलिटी एक मां और एक टीचर के रूप में सिमट कर रह गई थी स्टडी और जौब की वजह से बेटियां दूसरे शहरों में चली गई, तो अचानक जिंदगी सूनी लगने लगी. उदासी ने मेरे चारों ओर गहरा पहरा बिठा दिया था, मुझे महसूस हुआ कि मैं डिप्रैशन में जा रही हूं. यह डिप्रैशन बढ़ता ही जा रहा था. तब मेरी बेटियों ने मुझे याद दिलाया कि मैं नेशनल लेवल की एथलीट थी. दोनों ने मुझे रनिंग और साइकलिंग शुरू करने को कहा. शुरुआत में मैं उन्हें कहा करती थी, “इस उम्र में मैं ये सब कहां कर पाउंगी, आपदोनों क्रैजी हो गए हो.” लेकिन बेटियों की जिद की वजह से नीरू ने सालों बाद अपना ट्रैक सूट और स्पोर्ट्स शूज पहना और दौड़ पड़ी अपनी उदासी से दूर भागने के लिए, सुबह के सूरज की रौशनी से दोबारा अपना परिचय कराने के लिए… आज भी यह सिलसिला जारी है. 

डांस से साक्षात्कार का दूसरा दौर…

डांस का शौक बचपन से ही था. मैं हेमामालिनी और हैलन दोनों के डांस की दीवानी थी. लेकिन उन दिनों हैलन के डांस को वल्गर माना जाता था हालांकि वह मुझे बेहद पसंद था इसलिए मैं छिपछिप कर हैलन की तरह डांस किया करती थी. शादी के बाद प्रदीप ने मेरे डांस को बढ़ावा दिया. वह अकसर अपने फ्रैंड सर्किल में कहते थे कि जब टीवी पर मूवी चल रही हो, तो उस समय नीरू के चेहरे को देखा करो, उसके चेहरे के भाव डायलौग की तरह बदल रहे होते हैं.  प्रदीप के जाने के बाद मैं बच्चों की परवरिश में इतनी व्यस्त हो गई कि अपने शरीर पर अपनी ग्रुमिंग पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया. लेकिन आज मैं हर महिला को कहती हूं कि वह अपना ख्याल रखे, अपनी सेहत और फिटनैस को लेकर चौकन्ना रहे, अपने लिए समय निकाले क्योंकि ज्यादातर महिलाओं को अपनी जंग खुद ही लड़नी होती है और इसके लिए अपनी देखभाल जरूरी है.

आज बेटियों की पैरेंटिंग में कहां गलती हो रही है 

आज के प्रोगेसिव सोसाइटी और फैमिली में भी  बेटियों के जन्म के बाद से पैरेंट्स उसके लिए दहेज का सामान जुटाने लगते हैं.  घर में कोई नया सामान आता है, तो उसे बेटी की शादी में देने के लिए संजो कर रख दिया जाता है,  भले ही उस समय बेटी बहुत ही छोटी हो क्यों न हो. यहां तक कि कुछ परिवारों में बेटी की शादी के लिए उसके बचपन में ही फ्लैट्स तक में पैसे इंवेस्ट कर देते हैं जबकि सही मायनों में बेटियों को सही एजुकेशन और कौन्फिडेंस देने की जरूरत होती है.  बेटियों को फिजिकली, मैंटली और इकोनौमिकली इंडीपेंट बनाने पर जोर देना जरूरी होता है.  लड़कों की परवरिश के दौरान पैरेंट्स इन्हीं चीजों का ख्याल रखते हैं, उन्हें घूमनेफिरने और काम करने की आजादी देते हैं. उनके ऊपर परिवार के भरणपोषण की जिम्मेदारी डालते हैं. लड़कियों के मामले में यहीं कमी रह जाती है इसलिए वह किसी नए काम को शुरू करने के पहले डरती है, दूसरे शहर अकेले ट्रैवल करने से डरती हैं और वह खुद को कमजोर मानना शुरू कर देती हैं. 

बेटियों के हुनर को निखारें 

हर लड़की में कुछ न कुछ हुनर होता है.  पैरेंट्स को एजुकेशन के साथसाथ बेटी को उस हुनर को ढूढ़ कर उसे निखारने में मदद करनी चाहिए.  यह स्किल आगे चल कर बहुत काम आते हैं.  यह हुनर किसी भी तरह का हो सकता है जैसे कुकिंग, पैंटिंग, ड्राइंग, एंब्रौयडरी, स्पोर्ट्स, डांसिंग और सिंगिग. इसके साथ ही फिजिकली स्ट्रौंग बनाना चाहिए.  लड़कियों को अगर फिजिकली स्ट्रौंग बनने का असर उसके मैंटल स्टेट्स पर भी पड़ता है.  शरीर की स्ट्रैंथ उन्हें मेंटल पावर देगी.  बचपन में ही उनमें यह स्किल्स को ढूढें और उसे उस दिशा में निखारें.

जब बात शादी की आए, तो 

मैंने अपनी बेटियों से यह भी कहा था कि जब शादी करने की बारी आए, तो कभी ऐसे व्यक्ति को नहीं चुनना जो दहेज की इच्छा रखता हो. अगर किसी ने सामने से आकर तुमसे किसी तरह की चीज की डिमांड की तो ऐसे रिश्ते में कभी आगे बढ़ने की जरूरत नहीं है. हालांकि मुझे इस बात का भी डर सताता था कि कहीं ऐसा न हो कि बेटियों के शादी के रिश्ते आने बंद हो जाए. हर लड़की को ऐसे साथी को तलाशना चाहिए जो केवल उसे बिना शर्त स्वीकारे.  

बेटियों का सपोर्ट सिस्टम बनो बैशाखी नहीं 

समाज में घट रही घटनाओं की वजह से पैरेंट्स बेटियों को लेकर बहुत डर में रहने लगे हैं, इस कारण वह उसे अकेले बाहर आनेजाने नहीं देते, उन पर कई तरह की बंदिशें लगाते हैं  ऐसा करने से लड़कियों में कौन्फिडेंस की कमी आ जाती है और वे आगे जीवन में आए दुखों के थपेड़ों का सामना नहीं कर पाती हैं. मेरा मानना है, “बेटियों को बंद मत रखो. उसे आगे बढ़ते देखना चाहते हैं, तो उसे हवा में उड़ने दो. इसकी शुरुआत धीरेधीरे होनी चाहिए.  मैंने अपनी दोनों बेटियों को पहले आसपास अकेले जाने की छूट दी. आसपास के शौप्स से वह साइकिल चला कर खुद ही सामान खरीद कर लाने लगी. मैंने इस बात का अंदाजा रखा कि जिस शौप पर मैंने उन्हें भेजा है वहां से घर की दूरी क्या है, उन्हें आने में कितना समय लगेगा, मैंने कई शौपकीपर्स को यह भी कह रहा था कि जब मेरी बच्चियां सामान लाए आए, तो उन्हें सबसे पहले दे दें. सालों बाद एक समय आया जब मेरी बेटी स्टडी के लिए अकेले विदेश गई. लड़कियों के पैरेंट्स को सपोर्टिंग सिस्टम बनना चाहिए, उन्हें बेटियों की बैशाखी नहीं बनना चाहिए. बेटियों  कौन्फिडेंस बढ़ाएं, मेरे पैरेंट्स ने मेरे अंदर यह आत्मविश्वास नहीं भरा होता, तो मैं अपने पति के डैथ के बाद टूट कर बिखर गई होती. ”  

 

 

ऐश्वर्या राय ने स्टेज पर फ्लौन्ट किया वेडिंग रिंग, आलिया भट्ट का मैटेलिक ड्रैस में दमदार स्टाइल

Paris Fashion Week 2024 : पेरिस फैशन वीक 2024 का आगाज हो चुका है. एक बार फिर बौलीवुड ऐक्ट्रैस रैंप पर अपनी खूबसूरती का जलवा बिखेर रही हैं. इस साल ऐश्वर्या राय और आलिया भट्ट पेरिस फैशन वीक 2024 का हिस्सा बनी हैं. दोनों ऐक्ट्रैस का चार्मिंग जादू फैंस को दीवाना बना रहा है. सोशल मीडिया पर आलिया भट्ट और ऐश्वर्या राय की तस्वीरें और वीडियो छाई हुई हैं. दोनों ऐक्ट्रैस रैंप पर अपना जलवा बिखेर रही हैं.

ऐश्वर्या राय ने दिखाया अपने हुस्न का जलवा

ऐश्वर्या राय पेरिश फैशन वीक में अपनी खूबसूरती से सबका ध्यान अपनी तरफ खींच रही हैं. ऐक्ट्रैस लाल परी बनकर फैंस का दिल जीत रही हैं. इस बार ऐश्वर्या राय ने रैंप पर रेड कलर का औफ शोल्डर गाउन में नजर आईं. वह इस गाउन में बेहद खूबसूरत नजर आईं. हर कोई सोशल मीडिया पर उनकी खूबसूरती का तारीफ कर रहा है. ऐक्ट्रैस ने इस लुक को कम्पलीट करने के लिए रेड गाउन के साथ लौन्ग टेल वाला दुपट्टा भी कैरी किया था. मेकअप की बात करे, तो ऐश ने ग्लौसी मेकअप फौलो किया था, इसके अलावा डार्क रेड लिपस्टिक उनकी खूबसूरती में चार चांद लगा रही थी.

तलाक की खबरों के बीच फ्लौंट किया वेडिंग रिंग

तलाक की खबरों के बीच ऐश्वर्या राय बच्चन ने रैंप वाक के दौरान स्टेज पर अपनी वेडिंग रिंग भी फ्लौन्ट करते हुए नजर आईं. जो लोग ऐश्वर्या का तलाक की खबरों पर जोर दे रहे थे, ऐसे में अब ये उम्मीद है कि ऐक्ट्रैस की ये रिंग देखकर तलाक खबरों पर विराम लगे. आपको ये भी बता दें कि इस फैशन वीक में ऐश्वर्या राय अपनी बेटी आराध्या बच्चन के साथ शिरकत की हैं.

हेयरस्टाइल को लेकर लोगों ने ऐश्वर्या को कर रहे हैं ट्रोल

सोशल मीडिया पर ऐश्वर्या राय की इस फैशन वीक से जुड़ी कई तस्वीरें छाई हैं. जिसमें एक तस्वीर में ऐक्ट्रैस की हेयरस्टाइल चर्चा में बना हुआ है. यूजर्स इसके लिए ऐश्वर्या राय को ट्रोल भी कर रहे हैं. कुछ यूजर्स ने हेयरस्टाइल को लेकर कमेंट किया है कि ‘ये चीड़िया को घोसला बनाने की क्या जरूरत थी ?’ तो वहीं अन्य यूजर ने लिखा कि ‘ये क्या करा लिया?’

मैटेलिक ड्रेस में आलिया भट्ट का जलवा

पहली बार पेरिस फैशन वीक में  ब्यूटी  ब्रांड लोरियल के एंबेसडर के  तौर पर आलिया भट्ट शामिल हुई. ऐक्ट्रैस की क्यूटनेस ने लोगों का दिल जीत लिया. ऐक्ट्रैस के लुक की बात करे, तो वो ब्लैक एंड सिल्वर ड्रैस में हुस्न की मल्लिका लग रही थी. आलिया ने मैटेलिक सिल्वर बस्टियर को ब्लैक औफ शोल्डर जंपसूट के साथ कैरी किया था.  इस गाउन पेंट में ऐक्ट्रैस बेहद गौर्जियस नजर आ रही थी.  इस लुक को कम्पलीट करने के लिए आलिया भट्ट ने चोकर इयररिंग कैरी किया था.

मेकअप की बात करे, तो आलिया भट्ट ने ग्लिटर आई मेकअप और न्यूड  लिप कलर अपनाया था. इसके अलावा मैटेलिक इयररिंग्स पहनी थी. आलिया ने बालों को खुला रखा. ऐक्ट्रैस खूबसूरत में लुक में फैंस को अपना दीवाना बना रही हैं.

तोषु और सागर के बीच होगी हाथापाई, Anupama की इस हरकत पर लोगों ने जाहिर किया गुस्सा

टीवी सीरियल अनुपमा (Anupama) की कहानी में कई नए एंगल दिखाए जा रहे हैं, जिससे दर्शकों का भरपूर एंटरटेनमैंट हो रहा है. यह सीरियल इतना पौपुलर है कि लगभग हर घर में इस शो के फैंस शामिल है. इस सीरियल के अपडेट को लेकर हर कोई एक्साइडेट रहता है कि आज के एपिसोड में क्या ट्विस्ट दिखाया जाएगा. तो देर किस बात की, आइए जानते हैं आज के एपिसोड के बारे में…

आशा भवन में तोषु करेगा चोरी

सीरियल में आप देख रहे हैं कि घर से बेघर होने के बाद शाह परिवार अनुपमा के साथ आशा भवन में रह रहे हैं. दूसरी तरफ तोषु और पाखी भी दोबारा आशा भवन में शरण लेने के लिए आ गए हैं. लेकिन बिगड़ैल तोषु एक बार फिर आशा भवन में ड्रामा खड़ा करेगा. सीरियल में आप देखेंगे कि जिस घर में तोषु ने पनाह लिया है, उसी घर में चोरी करेगा. इतना ही नहीं वह अपने चोरी का इल्जाम किसी और के सिर पर डालेगा.

अनुपमा के सामनो मीनू और सागर की खुलेगी पोलपट्टी

शो के लेटेस्ट एपिसोड में दिखाया जाएगा कि तोषु चुपचाप अनुपमा के कमरे में जाने की कोशिश करता है और वहां पर सारे पैसे और गहने निकालने लगता है. तभी मीनू और सागर भी इसी तरफ आते हैं फिर वो दोनों तोषु को अनुपमा के कमरे में चोरी करते देख लेते हैं.शो में आप आगे देखेंगे कि तोषु हल्ला मचाकर दोनों पर चोरी करने का आरोप लगा देता है. अनुपमा में आप ये भी देखेंगे कि तोषु अपनी हरकतों से बाज नहीं आएगा और वह सागर औ मीनू की प्रेम कहानी अनुपमा के सामने खोल देगा. वह अनुपमा को एक वीडियो दिखाता है, जो सागर और मीनू के लव लाइफ से जुड़ा है. इस सच को दिखाने में डिंपी और पाखी भी तोषु का साथ देते हैं. ये देखकर अनुपमा टूट जाती है.

अनुपमा से माफी मांगेगे सागर और मीनू

दूसरी तरफ शाह परिवार के लोग अनुपमा को खरी-खोटी सुनाने लगते हैं और दूसरी तरफ मीनू-सागर भी खुद अपना सच अनुपमा को बताते हैं. लेकिन अनुपमा को जब ये पता चलता है कि मीनू और सागर की सच्चाई अनुज और बाकी घरवालों को पता था, ये जानकर अनुपमा बहुत दुखी होती है. दूसरी तरफ सागर और मीनू अनुपमा के पैरों में गिरकर माफी मांगते हैं, लेकिन अनु अकेले रहना चाहती और अपने कमरे में चली जाती है.

शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि तोषु सागर के बीच हाथापाई होने लगती है. फिर अनुज बीच में आकर सबको शांत करवाता है. शो के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या सागर और मीनू का साथ अनुपमा देगी या वह भी उनके प्रेम कहानी में डौली की तरह विलेन बनेगी?

अनुपमा की इस हरकत पर भड़के लोग

हाल ही में रुपाली गांगुली का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिससे देखने के बाद यूजर्स ऐक्ट्रैस की एक हरकत से काफी नाराज नजर आ रहे हैं.  यहां तक कि पुलिस से उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.

दरअसल, इस वीडियो में देखा जा सकता है कि रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) स्कूटी पर बैठे नजर आ रही हैं. स्कूटी पर बैठी अनुपमा ने एक ट्रैफिक नियम का उल्लंघन किया है. वो काफी जल्दी में हैं और अपने मैनेजर के साथ स्कूटी पर बैठकर निकल जाती हैं.  स्कूटी चलाते वक्त उनके मैनेजर ने भी हेलमेट नहीं पहना और न ही रुपाली गांगुली ने पहना था. इस बात पर लोगों अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं और अनुपमा के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.

स्वर्ण मृग : झूठ और फरेब के रास्ते पर चल पड़ी दीपा

लेखक-  आदर्श मलगूरिया

स्मिता और दीपा मौल में बने सिनेमाहौल से निकलीं तो अंधेरा छा चुका था. दोनों को पिक्चर खूब पसंद आई थी. साइंस फिक्शन की पिक्चर थी. हीरो के साथ दूरदराज के किसी ग्रह पर भटकते, स्पोर्स पर बने तिलिस्मी महल में खलनायक के मशीनी दैत्यों से जूझते और मौत के चंगुल से निकलते हीरो को 3डी में देख कर स्मिता जैसे अपने को हीरो की प्रेमिका मान बैठी थी. बत्तियां जलीं तो उस के पांव यथार्थ के ठोस धरातल पर आ टिके. स्वप्न संसार जैसे कपूर सा उड़ गया.

स्मिता और दीपा सोच रही थीं कि अब टैक्सी के लिए देर तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी या फिर डलहौजी स्क्वेयर या मैट्रो तक पैदल चलना पड़ेगा. वह भी दूर ही था. ऊपर से काले बादल गहराते जा रहे थे. यदि कहीं तेज बारिश हो गई तो ट्रैफिक जाम हो जाएगा और फिर सड़कों पर जमे पानी के दर्पण में कितनी

देर तक भवनों, बत्तियों के प्रतिबिंब झिलमिलाते रहेंगे.

रात को देर से घर पहुंचने पर मौमडैड को ही नहीं बल्कि बिल्डिंग के गार्ड्स की तेज आंखों को भी कैफियत देनी पड़ेगी. स्मिता के मन में यही विचार घुमड़ रहे थे. उस की बिल्डिंग क्या थी, एक अंगरेजों के जमाने का खंडहर था जिस में 20 परिवार रहते थे. एक गार्ड जरूर रखा गया था ताकि चंदा मांगने वाले या पार्टी के लोगों को आने से रोका जा सके.

दीपा निश्चिंत हो कर 2 पैकेट मिक्स खरीद चुकी थी. एक पैकेट स्मिता की ओर बढ़ाती हुई वह हंस दी, ‘‘लो, यही चबा जब तक कार नहीं आती.’’

‘‘तुझे तो कोई चिंता नहीं है न. यहां मेरे घर पर पहुंचने पर ही कितनी पूछताछ शुरू हो जाएगी. यह शो देखना जरूरी था क्या? कितनी बार कहा था कि इतवार को दिन के शो में चलेंगे पर तु?ा पर तो इस साइंस फिक्शन का भूत चढ़ा था,’’ स्मिता चिल्लाई.

‘‘अरे भई, शुक्रवार को यह पिक्चर बदल न जाती?’’ दीपा ने अपना तर्क पेश किया.

‘‘पर अब घर पहुंचना मुश्किल हो जाएगा. तुझे तो कोई चिंता नहीं है पर मुझे कितनी जगह कैफियत देनी पड़ती है,’’ स्मिता चिंतित हो उठी थी.

किंतु दीपा इस तरह की चिंताओं से दूर थी. वह अपने परिवार से अलग रहती थी इसलिए पूरी तरह स्वतंत्र थी. दीपा के मांबाप अपने परिवार के साथ उत्तर प्रदेश के एक कसबे में रहते थे. दीपा यहां कोलकाता में पहले एक महिला होस्टल में कई वर्षों तक  रहती रही. फिर एक पुरुष मित्र के साथ दोस्ती होने पर दोनों ने आपस में एक लिव इन में रहना तय कर लिया था. वे स्वेच्छा से इस संबंध को समाप्त भी कर सकते थे परंतु दीपा को विश्वास था कि उस का पार्टनर कभी उस के मोहपाश से नहीं निकल पाएगा.

दीपा अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट थी. वह नौकरी करते हुए अपने परिवार व छोटे भाईबहनों की पढ़ाई के लिए अपने वेतन का बड़ा भाग भेज देती थी. स्वयं भी मजे से रह रही थी. उस के पार्टनर ने उसे एक कमरे का सुंदर फ्लैट किराए पर ले कर दे रखा था. सप्ताह में लगभग 3 बार वह उस के साथ रहता था.

स्मिता ने इसी बात की ओर संकेत किया था. कभीकभी दीपा के उन्मुक्त तथा अंकुश रहित जीवन पर उसे बड़ी ईर्ष्या होती थी. दोनों की स्थितियों में कितना अंतर था. दीपा की स्थितियों में कितना अंतर था. दीपा को आर्थिक दृष्टि से कोई चिंता नहीं थी और वह एक समर्थ पुरुष की प्रेमिका और एक तरह से उस की पत्नी थी. इस तरह वह स्वतंत्र अस्तित्व की स्वामिनी थी. रोकटोक रहित जीवन व्यतीत करती हुई वह हर तरह से सुखी थी. दूसरी ओर स्मिता जैसे कुंआरी भावनाओं की उमंगों की लाश मात्र रह गई थी.

कारखाने की एक दुर्घटना में हाथ कटने पर स्मिता के पिताजी जैसे जीतेजी मृत से हो गए थे. अधूरी पढ़ाई छोड़ कर टाइपिंग तथा शौर्टहैंड सीख कर उस ने परिवार का जो जुआ कंधे पर उठाया था, वह छोटी बहन व भाई की शादी के बाद भी नहीं उतरा था. अब वह हांफते और मुंह से लार गिराते थके टूटे बैल की तरह हो रही थी, जिस पर रोज छोटे भाई गैरी के तानों, मां की ग्रौसरी की चिंता, छोटी भाभी की नए कपड़ों की मांगों व निरीह पिता को दवाइयों के लिए कांपते बढ़ते हाथों के कोड़े बरसते थे.

स्मिता इसी में संतुष्ट रहना चाहती थी परंतु कभीकभी दीपा व अन्य सहेलियों को देख कर सांसारित सुख के सागर से कुछ पीने के लिए ललचा उठती थी पर उसी शहर में अपने परिवार वालों की आंखों के आगे रहते यह संभव नहीं था.

अचानक किसी कार के हौर्न की तीखी आवाज से उस के खयालों को झटका लगा. परिचित नंबर वाली एक एसयूवी सामने आ कर रुकी. रमेश स्टियरिंग पर बैठा उन्हें कार में आने का इशारा कर रहा था. स्मिता पहले तो सकुचाई, फिर घिरते हुए अंधेरे, वर्षा की रिमझिम और दीपा की कड़ी दृष्टि के संकेत ने उसे लिफ्ट स्वीकार करने पर विवश कर दिया. वैसे भी डर क्या था? वह तो है ही घोंचू सी. दीपा की खिलखिलाहट ने  उसे इस बात का एहसास करवा दिया.

रमेश उसी की फैक्टरी का असिस्टैंट मैनेजर था. सुना जाता था कि गांव की जमीनजायदाद से भी उसे काफी आमदमी होती थी. हंसमुख, सहृदय व लोकप्रिय होना शायद उच्च पद व धनी होने से संबंध रखता है. तभी तो रमेश इतने खुले दिल का और खुशमिजाज था, नहीं तो स्मिता के तबके के लोग कैसे डरेडरे, दयनीय लगते थे.

दीपा का घर पहले पड़ता था. उसे उतार कर रमेश स्मिता से उस के घरपरिवार तथा इधरउधर की बातें करता रहा. उस के अपनत्व के कारण उस के संकोच की गांठें धीरेधीरे खुलती गईं. अपना घर करीब आने से पहले ही उस ने कार रुकवा ली.

रमेश हाथ हिलाता चला गया. घुटनेघुटने तक पानी में वह घर पहुंची. मां ने चायनाश्ता बन कर सामने रखा. भाभी दांतों तले होंठ दबा कर यह कहने से बाज नहीं आई. ‘‘बड़ी देर कर दी, स्मिता दी.’’

‘‘हां, बारिश में फंस गई थी.’’

स्मिता भला और क्या कहती? मगर आधे घंटे बाद जैरी, जिस का असली नाम जैमिनी रौय था ने आ कर पूछा, ‘‘गाड़ी मोड़ पर ही क्यों रुकवा दी, दीदी? घर तक क्यों नहीं ले आईं. पैदल आने की क्या जरूरत थी?’’

स्मिता के तनबदन में आगे लग गई. उसे क्या हर छोटेबड़े के आगे सफाइ देनी पड़ेगी? क्या यही सिला है इस घर के लोगों के लिए मरनेखटने का?

चाय छोड़ कर वह अपने कमरे में चली गई. पीछे से मां की आवाज आती रही. मां जैरी को डांट रही थी, ‘‘क्यों आते ही उस के पीछे पड़ गया? बड़ेछोटे का भी लिहाज नहीं है?’’

‘‘वह भी तो मुझे टोकती रहती है,’’ जैरी इस तरह उस से बदला ले रहा था.

‘‘मुझे क्या, जो मरजी हो करे,’’ स्मिता ने जैरी की बात सुन कर मन ही मन सोचा. उस का हृदय कड़वाहट से भर गया था. उस ने तय कर लिया कि वह आज के जमाने के साथ चलेगी.

धीरेधीरे स्मिता के व्यवहार में अंतर आने लगा, जिसे दफ्तर के लोगों ने भी लक्ष्य किया. अब वह पहले वाली संकोची स्मिता नहीं रह गई थी. अपने सहकर्मियों से वह खुल कर गपशप लगाती थी. बातबात पर हंसतीखिलखिलाती थी. सब को पता था कि वह परिवर्तन रमेश की बदौलत है.

अब स्मिता की शामें अकसर रमेश के साथ गुजरतीं. कभी रात का भोजन, कभी चाय, कभी पार्क स्ट्रीट के एक से एक महंगे रेस्तरां में प्रोग्राम रहता. उस ने घर वालों की परवाह करना ही छोड़ दिया था.

धीरेधीरे रमेश उसे अपने दुखी पारिवारिक जीवन की कहानियां सुनाने लगा, उस ने बताया कि उस की पत्नी बिलकुल अनपढ़, झगड़ालू तथा गंवार औरत है. घर में पैर रखते ही उस का सिर भन्ना जाता है क्योंकि वह दिनरात चखचख लगाए रखती है. फिर रमेश धीरे से उस का हाथ दवा कर कहता, ‘‘तुम से वर्षों पहले मुलाकात क्यों नहीं हो गई?’’

‘‘मुलाकात होने से भी क्या होगा? मैं तो तब भी अपनी सलीब ढो रही थी,’’ स्मिता फीकी हंसी हंस देती. वह बीते वर्षों के बारे में सोचती तो उसे सबकुछ गलत लगता. अब शायद भागते समय से मुट्ठीभर प्रसन्नता छीन कर जी सके.

आखिर एक दिन रमेश ने चाय पीते समय उस के सामने लिव इन करने का प्रस्ताव रख दिया. रमेश उसे शहर के आधुनिक इलाके में एक छोटा सा फ्लैट ले देगा. स्मिता की आंखों के सामने सुखी गृहस्थी, बच्चे और अपने घर के इंद्रधनुषी रंग छितराने लगे. वह अपनी पत्नी को छोड़ देगा पर थोड़े दिन बाद क्योंकि तलाक में टाइम लगता है.

उस के अपने परिवार वालों को उस की आवश्यकता नहीं रह गई थी. पीछा छूट जाने पर वे भी प्रसन्न ही होंगे. और वह अब कहीं जा कर स्वयं अपने ढंग से जीवन जी सकेगी. जीवन के इस मोड़ पर आ कर कौन उस की मांग भर कर विधिविधान से 7 फेरे ले कर उसे दुलहन बनाएगा? जो मिल रहा है, वही सही. उस की जानपहचान की कितनी ही लड़कियां इस तरह लिव इन में रह कर प्रसन्न थीं. अगर वह भी ऐस कर ले तो क्या हरज है?

रमेश जैसा भला आदमी उसे फिर कहां मिलेगा और फिर वह अपने परिवार के दुखों से भी छुटकारा पा लेगी. एक पल में स्मिता यह सब सोच गई.

रमेश ने उस की आंखों में आंखें डाल दीं, ‘‘देख लो, तुम्हारा गुलाम बन कर रहूंगा. बच्चों के कारण पत्नी से पीछा नहीं छुड़ा सकता, नहीं तो किसी तरह उसे तलाक दे कर आज ही तुम्हारे साथ विवाह कर लेता. उस गंवार से मुझे अशांति के सिवा और मिलता ही क्या है? सुख के लिए सिर्फ तुम्हारे आगे ही हाथ फैला सकता हूं.’’

सुख से उस का आशय मानसिक था या शारीरिक, स्मिता समझ नहीं पाई. उस समय वह उसे सम?ाना भी नहीं चाहती थी.

‘‘न्यू अलीपुर में मेरे एक दोस्त का फ्लैट खाली है. 1 वर्ष के लिए वह विदेश गया हुआ है. उस की चाबी मेरे पास ही है. फिलहाल तुम उसी में रह लेना. बाद में तुम्हारे लिए कोई अच्छा फ्लैट ले लूंगा.’’

रमेश ने बिल चुकाया और दोनों बाहर आ गए. उसे उस की गली के मोड़ पर छोड़ कर वह चला गया. लेकिन उस दिन घर पहुंचने पर जैरी के कटाक्ष करने पर भी उसे क्रोध नहीं आया. सोचा, बस थोड़े दिन और कह ले जो भी मन में आए, अब उसे क्या परवाह है?

शनिवार को छोटी बहन इमामी मौल में चल रही एक नई फिल्म के 2 टिकट ले आई. दोनों दोपहर का शो देखने चली गईं. शो शुरू होने में अभी कुछ देर थी. दोनों पास की दुकानों में कुछ खरीदारी करने निकल गईं.

‘‘क्यों दीदी, जो कुछ मैं ने सुना है वह ठीक है?’’ छोटी बहन पूछ बैठी.

स्मिता कुछ नहीं बोली. मुसकरा भर दी. उस ने सोचा कि अब धीरेधीरे इन लोगों को बता ही दे कि वह बेचारी स्मिता नहीं रह गई. तभी उस की दृष्टि सामने के कार पार्क पर जा पड़ी.

रमेश कार का शीशा बंद कर रहा था. पास ही आधुनिक वेशभूषा में सुसज्जित कोई महिला खड़ी थी. रमेश के साथ ही शायद उस के कोई मित्र दंपती थे. स्मिता ओट में हो गई. रमेश के मित्र हंस कर कह रहे थे, ‘‘आज आप कैसे पकड़ में आ गए?’’

‘‘भई, आशा ने टिकट बुक कर रखे थे

सो आना ही पड़ा. मुझ से अगर बुक कराने को कहती तो…’’

‘‘तो यह रमेश की पत्नी है? आधुनिकता के अभिमान से भरीपूरी. वह पति को उलाहना दे रही थी और मानसिक अशांति की दुहाई देने वाला स्मिता का अधेड़ प्रेमी खीसें निपोर रहा था.

‘उफ, इतना झूठ,’ सोच स्मिता ने माथा थाम लिया.

‘‘क्या हुआ, दी?’’  छोटी बहन घबरा गई.

‘‘कुछ नहीं, यों ही चक्कर सा आ गया था,’’ स्मिता ने अपनेआप को संभाला. फिर पिक्चर में क्या दिखाया गया है, उसे कुछ याद नहीं रहा. वह तो किसी और ही उधेड़बुन में पड़ी थी.

सोमवार को दफ्तर पहुंचने पर पता चला कि रमेश दौरे पर चला गया है. स्मिता को राहत मिली. वह अभी उस का सामना नहीं करना चाहती थी. साथ ही समाचार मिला कि दीपा नर्सिंगहोम में भरती है. दीपा पास के ही एक दफ्तर में काम करती थी. शाम को स्मिता रजनीगंधा के फूल खरीद कर उसे देखने पहुंची. दीपा का मुख एकदम पीला पड़ चुका था.

‘‘क्या हो गया अचानक?’’ स्मिता उसे देख कर घबरा गई.

‘‘कुछ नहीं, अपनी भूल का दंड भुगत रही हूं.’’

स्मिता का दिल जोरों से धड़कने लगा. दीपा के ‘मैत्री करार’ का क्या यही परिणाम था?

‘‘पहेलियां मत बुझा, साफसाफ बता?’’

कमरे में अब कोई और नहीं था. नर्स दवा दे कर चली गई थी. दीपा धीरेधीरे बताने लगी कि लिव इन की ओट में उस के साथ कितना भयानक खिलवाड़ किया गया. वह अपने पुरुष मित्र की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर अपना सर्वनाश कर बैठी. प्रारंभ में तो सब ठीकठाक चलता रहा. बचपन में खेले घरघर का सपना साकार हो गया. परंतु धीरेधीरे मन भर जाने पर उस के मित्र की उकताहट साफ जाहिर होने लगी. वह तो पैसों के बल पर महज एक खेल चल रहा था जो जल्द ही खत्म हो गया.

‘‘मुझे 3-4 महीने पुरुष संसर्ग का सुख मिला परंतु इस के लिए कितना भारी मूल्य चुकानी पड़ी. जब मैं प्रैगनैंट हो गई तो वह पल्ला झाड़ कर अलग हो गया.’’

‘‘परंतु यह लिव इन भी हो तो कानूनी हो जाता है. वह इस की जिम्मेदारी से कैसे इनकार कर सकता है?’’ स्मिता गुस्से में उबल पड़ी.

‘‘अब मैं कहां कचहरी के चक्कर लगाती फिरूं? इस में मेरी ही बदनामी होगी. वैसे ये कहने की बातें हैं. कानून की दृष्टि में हमारा लिव इन अरेंजमैंट टैंपरेरी है जिस की कोई अहमियत नहीं है. कोई कोर्ट रलीफ दे देता है, कोई खड़ूस जज भगा देता है. जब मुझे गर्भ ठहर गया तो वह मुझे इस से जान छुड़ाने को कहने लगा. माना हम कानूनी तौर पर पतिपत्नी नहीं थे, केवल मित्र थे पर मेरी तो यह पहली संतान थी. मैं कैसे राजी हो जाती परंतु वह कहने लगा कि अभी बच्चों का झंझट क्यों पालती हो? एक बार मैं अपने ?ामेले से निकल लूं, फिर तुम्हारे साथ बच्चे होंगे तो उन का जन्मदिन मनाएंगे.

‘‘ऐसे में तो तुम काम पर भी नहीं जा पाओगी और वेबी बीमार पड़ जाए तो डाक्टरों के यहां चक्कर कैसे काटेगी? फिर आजकल बच्चे को स्कूल में दाखिल कराना कितना उठिन है, सिंगल मदर के लिए तो और मुश्किल होता है. जानती हो न? नहीं, भई, मैं ये सब मुसीबतें फिर अपने सिर पर लेने को तैयार नहीं. तुम्हारे साथ खुशियां बटोरने के लिए हम ने तय किया था कि इस सब झमेले में नहीं पड़ेंगे.’’

‘‘उफ,’’ स्मिता दीपा की बात सुन कर इतना ही कह सकी.

‘‘अब मैं क्या करती? अपने मातृत्व का

मुझे गला घोंटना पड़ा. सिंगल पेंरैंट कैसे बन जाती? बच्चे को बाप का नाम कौन देता? दीपा तकिए में मुंह गड़ा कर सुबकने लगी थी. स्मिता उस के सिर पर हाथ फेरने लगी. अचानक उसे लगा कि दीपा के स्थान पर वह स्वयं सुबक रही है. वह भी तो उसी की तरह बिना आगापीछा सोचे क्षणिक सुख के पीछे अंधी खाई में कूदने जा रही थी. 4 दिन की चांदनी रातें ढलने के बाद वह भी इसी तरह किसी नर्सिंगहोम में सिसकेगी, अधूरे मातृत्व के कारण तड़पेगी.

‘नहीं… नहीं, उसे मांगा या छीना हुआ

या भीख में मिला गृहस्थ सुख नहीं चाहिए.

यह तो कुएं से निकल कर खाई में कूदने वाली बात होगी. उस के घर और परिवार के लोग

जैसे भी हों, उस के अपने तो हैं,’ उस ने मन ही मन कहा.

जाने कैसे अपने पैरों को घसीट कर वह घर तक पहुंची. गली में बहुत भीड़ जमा थी. घर पहुंच कर उस ने देखा कि जैरी घबराया सा अंदर के कमरे में बैठा था. पता चला कि उस के दोस्तों ने मामूली गहने छीनने के लिए किसी भद्र महिला के घर में घुस कर आक्रमण कर दिया था. वह स्त्री शोर मचा कर लोगों को जमा करने में सफल हो गई थी नहीं तो शायद वह अपनी जान से भी हाथ धो बैठती.

वे लड़के जैरी को भी साथ ले जाना चाहते थे परंतु उस ने साफ इनकार कर दिया था. अब पुलिस उस के दोस्तों से पूछताछ कर रही थी. जैरी डर रहा था कि कहीं शक में वह भी न पकड़ लिया जाए. अब वह पहले वाला झगड़ालू और बातबात पर बड़ों का अपमान करने वाला जैरी नहीं रह गया था. वह डरा, सहमा सा एक छोटा बच्चा लग रहा था.

स्मिता ने धैर्य बंधाया, ‘‘तू क्यों बेकार डर रहा है? कह देना कि मुझे कुछ नहीं पता. बस.’’

दीदी की इस बात से जैरी कुछ संभला. आखिर वह था तो अभी किशोर ही. उस ने जैसे रोते हुए कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो, दी. अब बुरी संगत में कभी नहीं बैठूंगा. रोज स्कूल जाऊंगा और मन लगा कर पढ़ूंगा.’’

स्मिता उसे प्यार से एक चपत लगा कर कपड़े बदलने चली गई. यही उस का अपना घर था, अपना संसार था. यहां जिम्मेदारियां थीं तो अपनत्व का सुख भी. स्वर्ण मृग के पीछे वह कहां पगली सी भाग रही थी. अच्छा हुआ जो जल्दी होश आ गया.

रिश्ते की धूल : आखिर खुले मिजाज की सीमा के साथ क्या हुआ ?

लेखक- डा. के.  रानी

प्रियांक  औफिस के लिए घर से बाहर निकल रहा था कि पीछे से सीमा ने आवाज लगाई, ‘‘प्रियांक, 1 मिनट रुक जाओ मैं भी तुम्हारे साथ चल रही हूं.’’

‘‘मुझे देर हो रही है सीमा.’’

‘‘प्लीज 1 मिनट की तो बात है.’’

‘‘तुम्हारे पास अपनी गाड़ी है तुम उस से चली जाना.’’

‘‘मैं तुम्हें बताना भूल गई. मेरी गाड़ी सर्विसिंग के लिए वर्कशौप गई है और मुझे 10 बजे किट्टी पार्टी में पहुंचना है. प्लीज, मुझे रिच होटल में ड्रौप कर देना. वहीं से तुम औफिस चले जाना. होटल तुम्हारे औफिस के रास्ते में ही तो पड़ता है.’’

सीमा की बात पर प्रियांक झुंझला गए और बड़बड़ाया, ‘‘जब देखो इसे किट्टी पार्टी की ही पड़ी रहती है. इधर मैं औफिस निकला और उधर यह यह भी अपनी किट्टी पार्टी में गई.’’

प्रियांक बारबार घड़ी देख रहा था. तभी सीमा तैयार हो कर आ गई और बोली, ‘‘थैंक्यू प्रियांक मैं तो भूल गई थी कि मेरी गाड़ी वर्कशौप गई है.’’

प्रियांक ने सीमा की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया. उसे औफिस पहुंचने की जल्दी थी. आज उस की एक जरूरी मीटिंग थी. वह तेज गाड़ी चला रहा था ताकि समय से औफिस पहुंच जाए. उस ने जल्दी से सीमा को होटल के बाहर छोड़ा और औफिस के लिए आगे बढ़ गया.

सीमा समय से होटल पहुंच कर पार्टी में अपनी सहेलियों के साथ मग्न हो गई थी. 12 बजे उसे याद आया कि उस के पास गाड़ी नहीं है. उस ने वर्कशौप फोन कर के अपनी गाड़ी होटल ही मंगवा ली. उस के बाद अपनी सहेलियों के साथ लंच कर के वह घर चली आई. यही उस की लगभग रोज की दिनचर्या थी.

सीमा एक पढ़ीलिखी, आधुनिक विचारों वाली महिला थी. उसे सजनेसंवरने और पार्टी वगैरह में शामिल होने का बहुत शौक था. उस ने कभी नौकरी करने के बारे में सोचा तक नहीं. वह एक बंधीबंधाई, घिसीपिटी जिंदगी नहीं जीना चाहती थी. वह तो खुल कर जीना चाहती थी. उस के 2 बच्चे होस्टल में पढ़ते थे. सीमा ने अपनेआप को इतने अच्छे तरीके से रखा हुआ था कि उसे देख कर कोई भी उस की उम्र का पता नहीं लगा सकता था.

प्रियांक और सीमा अपनी गृहस्थी में बहुत खुश थे. शाम को प्रियांक के औफिस से घर आने पर वे अकसर क्लब या किसी कपल पार्टी में चले जाते. आज भी वे दोनों शाम को क्लब के लिए निकले थे. उन की अपने अधिकांश दोस्तों से यहीं पर मुलाकात हो जाती.

आज बहुत दिनों बाद उन की मुलाकात सौरभ से हो गई सौरभ ने हाथ उठा कर

अभिवादन किया तो प्रियांक बोला, ‘‘हैलो सौरभ, यहां कब आए?’’

‘‘1 हफ्ता पहले आया था. मेरा ट्रांसफर इसी शहर में हो गया है.’’

‘‘सीमा यह है सौरभ. पहले यह और मैं

एक ही कंपनी में काम करते थे. मैं तो प्रमोट हो कर पहले यहां आ गया था. अब यह भी इसी शहर में आ गया है और हां सौरभ यह है मेरी पत्नी सीमा.’’

दोनों ने औपचारिकतावश हाथ जोड़ दिए. उस के बाद प्रियांक और सौरभ आपस में बातें कर लगे.

तभी अचानक सौरभ ने पूछा, ‘‘आप बोर तो नहीं हो रहीं?’’

‘‘नहीं आप दोनों की बातें सुन रही हूं.’’

‘‘आप के सामने तारीफ कर रहा हूं कि आप बहुत स्मार्ट लग रही हैं.’’

सौरभ ने उस की तारीफ की तो सीमा ने मुस्करा कहा, ‘‘थैंक्यू.’’

‘‘कब तक खड़ेखड़े बातें करेंगे? बैठो आज हमारे साथ डिनर कर लो. खाने के साथ बातें करने का अच्छा मौका मिल जाएगा,’’ प्रियांक बोला तो सौरभ उन के साथ ही बैठ गया. वे खाते हुए बड़ी देर तक आपस में बातें करते रहे. बारबार सौरभ की नजर सीमा के आकर्षक व्यक्तित्व की ओर उठ रही थी. उसे यकीन नहीं हो पा रहा था इतनी सुंदर, स्मार्ट औरत के 10 और 8 साल के 2 बच्चे भी हो सकते हैं.

काफी रात बीत गई थी. वे जल्दी मिलने की बात कह कर अपनेअपने घर चले गए. लेकिन सौरभ के दिमाग में सीमा का सुंदर रूप और दिलकश अदाएं ही घूम रही थीं. उस दिन के बाद से वह प्रियांक से मिलने के बहाने तलाशने लगा. कभी उन के घर आ कर तो कभी उन के साथ क्लब में बैठ कर.

प्रियांक कम बोलने वाला सौम्य स्वभाव का व्यक्ति था. उस के मुकाबले सीमा खूब बोलनेचालने वाली थी. अकसर सौरभ उस के साथ बातें करता और प्रियांक उन की बातें सुनता रहता. सौरभ के मन में क्या चल रहा है सीमा इस से बिलकुल अनजान थी.

एक दिन दोपहर के समय सौरभ उन के घर पहुंच गया. सीमा तभी किट्टी पार्टी से घर लौटी थी. इस समय सौरभ को वहां देख कर सीमा चौंक गई, ‘‘आप इस समय यहां?’’

‘‘मैं पास के मौल में गया था. वहां काउंटर पर मेरा क्रैडिट कार्ड काम नहीं कर रहा था. मैं ने सोचा आप से मदद ले लूं. क्या मुझे 5 हजार रुपए उधार मिल सकते हैं?’’

‘‘क्यों नहीं मैं अभी लाती हूं.’’

‘‘कोई जल्दबाजी नहीं है. आप के रुपए देने से पहले मैं आप के साथ 1 कप चाय तो पी ही सकता हूं,’’ सौरभ बोला तो सीमा झेंप गई.

‘‘सौरी मैं तो आप से पूछना भूल गई. मैं अभी ले कर आती हूं,’’ इतना कह कर सीमा

2 कप चाय बना कर ले आई. दोनों साथ बैठकर बातें करने लगे.

‘‘आप को देख कर कोई नहीं कह सकता आप 2 बच्चों की मां हैं.’’

‘‘हरकोई मुझे देख कर ऐसा ही कहता है.’’

‘‘आप इतनी स्मार्ट हैं. आप को किसी अच्छी कंपनी में जौब करनी चाहिए.’’

‘‘जौब मेरे बस का नहीं है. मैं तो जीवन को खुल कर जीने में विश्वास रखती हूं. प्रियांक हैं न कमाने के लिए. इस से ज्यादा क्या चाहिए? हमारी सारी जरूरतें उस से पूरी हो जाती हैं,’’ सीमा हंस कर बोली.

‘‘आप का जिंदगी जीने का नजरिया औरों से एकदम हट कर है.’’

‘‘घिसीपिटी जिंदगी जीने से क्या फायदा? मुझे तो लोगों से मिलनाजुलना, बातें करना, सैरसपाटा करना बहुत अच्छा लगता है,’’ कह कर सीमा रुपए ले कर आ गई और बोली, ‘‘ये लीजिए. आप को औफिस को भी देर हो रही होगी.’’

‘‘आप ने ठीक कहा. मुझे औफिस जल्दी पहुंचना था. मैं चलता हूं,’’ सौरभ बोला. उस का मन अभी बातें कर के भरा नहीं था. वह वहां से जाना नहीं चाहता था लेकिन सीमा की बात को भी काट कर इस समय अपनी कद्र कम नहीं कर सकता था. वहां से उठ कर वह बाहर आ गया और सीधे औफिस की ओर बढ़ गया. उस ने सीमा के साथ कुछ वक्त बिताने के लिए उस से झूठ बोला था कि वह मौल में खरीदारी करने आया था.

अगले दिन शाम को फिर सौरभ की मुलाकात प्रियांक और सीमा से क्लब में हो गई. हमेशा की तरह प्रियांक ने उसे अपने साथ डिनर करने के लिए कहा तो वह बोला, ‘‘मेरी भी एक शर्त है कि आज के डिनर की पेमैंट मैं करूंगा.’’

‘‘हम दोनों ने भी तो डिनर करना है.’’

‘‘तो क्या हुआ आज का डिनर मेरी ओर

से रहेगा.’’

‘‘जैसे तुम्हारी मरजी,’’ प्रियांक बोला.

सीमा ने डिनर पहले ही और्डर कर दिया था. थोड़ी देर तक वे तीनों साथ बैठ कर डिनर के साथ बातें भी करते रहे. सौरभ महसूस कर रहा था कि सीमा को सभी विषयों की बड़ी अच्छी जानकारी थीं. वह हर विषय पर अपनी बेबाक राय दे रही थी. सौरभ को यह सब अच्छा लग रहा था. घर पहुंच कर भी उस के ऊपर सीमा का ही जादू छाया रहा. बहुत कोशिश कर के भी वह उस से अपने विचारों को हटा न सका. उस का मन हमेशा उस से बातें करने का करता. उसे सम?ा नहीं आ रहा था कि वह अपनी भावनाएं सीमा के सामने कैसे व्यक्त करे? उसे इस के लिए एक उचित अवसर की तलाश थी.

एक दिन उस ने बातों ही बातों में सीमा से उस का हफ्ते भर का कार्यक्रम पूछ लिया. सौरभ को पता चल गया था कि वह हर बुधवार को खरीदारी के लिए स्टार मौल जाती है. वह उस दिन सुबह से सीमा की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था.

सीमा दोपहर में मौल पहुंची तो सौरभ

उस के पीछेपीछे वहां आ गया. उसे देखते ही अनजान बनते हुए बोला, ‘‘हाय सीमा इस समय तुम यहां?’’

‘‘यह बात तो मुझे पूछनी थी. इस समय आप औफिस के बजाय यहां क्या कर रहे हैं?’’

‘‘आप से मिलना था इसीलिए कुदरत ने मुझे इस समय यहां भेज दिया.’’

‘‘आप बातें बहुत अच्छी बनाते हैं.’’

‘‘मैं इंसान भी बहुत अच्छा हूं. एक बार मौका तो दीजिए.’’

उस की बात सुन कर सीमा झेंप गई.

सौरभ ने घड़ी पर नजर डाली और बोला, ‘‘दोपहर का समय है क्यों न हम साथ लंच करें?’’

‘‘लेकिन…’’

‘‘कोई बहाना नहीं चलेगा. आप खरीदारी कर लीजिए. मैं भी अपना काम निबटा लेता हूं. उस के बाद इत्मीनान से सामने होटल में साथ बैठ कर लंच करेंगे,’’ सौरभ ने बहुत आग्रह किया तो सीमा इनकार न कर सकी.

सौरभ को यहां कोई खास काम तो था नहीं. वह लगातार सीमा को ही देख रहा था. कुछ देर में सीमा खरीदारी कर के आ गई. सौरभ ने उस के हाथ से पैकेट ले लिए और वे दोनों होटल में आ गए.

सौरभ बहुत खुश था. उसे अपने दिल की बात कहने का आखिरकार मौका मिल गया. वह बोला, ‘‘प्लीज आप अपनी पसंद का खाना और्डर कर लीजिए.’’

सीमा ने हलका खाना और्डर किया. उस के सर्व होने में अभी थोड़ा समय था. सौरभ ने बात शुरू की, ‘‘आप बहुत स्मार्ट और बहुत खुले विचारों की हैं. मुझे ऐसी लेडीज बहुत अच्छी लगती हैं.’’

‘‘यह बात आप कई बार कह चुके हैं.’’

‘‘इस से आप को अंदाजा लगा लेना चाहिए कि मैं आप का कितना बड़ा फैन हूं.’’

‘‘थैंक्यू. सौरभ आप ने कभी अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं बताया?’’ सीमा बात बदल कर बोली.

‘‘आप ने कभी पूछा ही नहीं. खैर, बता देता हूं. परिवार के नाम पर बस मम्मी और एक बहन है. उस की शादी हो गई है और वह अमेरिका में रहती है. मम्मी लखनऊ में हैं. कभीकभी उन से मिलने चला जाता हूं.’’

बातें चल ही रही थीं कि टेबल पर खाना आ गया और वे बातें करते हुए लंच करने लगे.

सौरभ अपने दिल की बात कहने के लिए उचित मौके की तलाश में था. लंच खत्म हुआ और सीमा ने आइसक्रीम और्डर कर दी. उस के सर्व होने से पहले सौरभ उस के हाथ पर बड़े प्यार से हाथ रख कर बोला, ‘‘आप मु?ो बहुत अच्छी लगती हैं. क्या आप भी मुझे उतना ही पसंद करती हैं जितना मैं आप को चाहता हूं?’’

मौके की नजाकत को देखते हुए सीमा ने धीमे से अपना हाथ खींच कर अलग किया और बोली, ‘‘यह कैसी बात पूछ रहे हैं? आप प्रियांक के दोस्त और सहकर्मी हैं इसी वजह से मैं आप की इज्जत करती हूं, आप से खुल कर बात करती हूं. इस का मतलब आप ने कुछ और समझ लिया.’’

‘‘मैं तो आप को पहले दिन से जब से आप को देखा तभी से पसंद करने लगा हूं. मैं दिल के हाथों मजबूर हो कर आज आप से यह सब कहने की हिम्मत कर रहा हूं. मुझे लगता है आप भी मुझे पसंद करती हैं.’’

‘‘अपनी भावनाओं को काबू में रखिए अन्यथा आगे चल कर यह आप के लिए भी और मेरे परिवार के लिए भी मुसीबत खड़ी कर सकती हैं.’’

‘‘मैं आप से कुछ नहीं चाहता बस कुछ समय आप के साथ बिताना चाहता हूं,’’ सौरभ बोला.

तभी आइसक्रीम आ गई. सीमा बड़ी तलखी से बोली, ‘‘अब मुझे चलना चाहिए.’’

‘‘प्लीज पहले इसे खत्म कर लो.’’

सीमा ने उस के आग्रह पर धीरेधीरे आइसक्रीम खानी शुरू की लेकिन अब उस की इस में कोई रुचि नहीं रह गई थी. किसी तरह से सौरभ से विदा ले कर वह घर चली आई. सौरभ की बातों से वह आज बहुत आहत हो गई थी. वह समझ गई  कि सौरभ ने उस के मौडर्न होने का गलत अर्थ समझ लिया .वह उसे एक रंगीन तितली समझने की भूल कर रहा जो सुंदर पंखों के साथ उड़ कर इधरउधर फूलों पर मंडराती रहती है.

सीमा इस समस्या का तोड़ ढूंढ़ रही थी जो अचानक उस के सामने आ खड़ी हुई थी और कभी भी उस के जीवन में तूफान खड़ा कर सकती है. वह जानती थी  इस बारे में प्रियांक से कुछ कहना बेकार है. अगर वह उसे कुछ बताएगी तो वह उलटा उसे ही दोष देने लगेगा, ‘‘जरूर तुम ने उसे बढ़ावा दिया होगा. तभी उस की इतना सब कहने की हिम्मत हुई है.’’

1-2 बार पहले भी जब किसी ने उस से कोई बेहूदा मजाक किया तो प्रियांक की यही प्रतिक्रिया रही थी. उसे सम?ा नहीं आ रहा था वह सौरभ की इन हरकतों को कैसे रोके? बहुत सोचसम?ा कर उस ने अपनी छोटी बहन रीमा को फोन मिलाया. वह भी सीमा की तरह पढ़ीलिखी और मौडर्न लड़की थी. उस ने अभी तक शादी नहीं की थी क्योंकि उसे अपनी पसंद का लड़का नहीं मिल पाया था. मम्मीपापा उस के लिए परेशान जरूर थे लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी हुई थी कि वह शादी उसी से करेगी जो उसे पसंद होगा.

दोपहर में सीमा का फोन देख कर उसने पूछा, ‘‘दी, आज जल्दी फोन करने की फुरसत कैसे लग गई? कोई पार्टी नहीं थी

इस समय?’’

‘‘नहीं आज कोई पार्टी नहीं थी. मैं अभी मौल से आ रही हूं. तू बता तेरे कैसे हाल हैं कोई मिस्टर परफेक्ट मिला या नहीं?’’

‘‘अभी तक तो नहीं मिला.’’

‘‘मेरी नजर में ऐसा एक इंसान है.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘प्रियांक के साथ कंपनी में काम करता है. तुम चाहो तो उसे परख सकती हो.’’

‘‘तुम्हें ठीक लगा तो हो सकता है मु?ो भी पसंद आ जाए.’’ रीमा हंस कर बोली.

‘‘ठीक है तुम 1-2 दिन में यहां आ जाओ. पहले अपने दिल में उस के लिए जगह तो बनाओ. बाकी बातें तो बाद में होती रहेंगी.’’

‘‘सही कहा दी. परखने में क्या जाता है. कुछ ही दिन में उस का मिजाज सम?ा में आ जाएगा कि वह मेरे लायक है कि नहीं.’’

सीमा अपनी बहन रीमा से काफी देर तक बातें करती रही. उस से बात कर के उस का मन बड़ा हलका हो गया था और काफी हद तक उस की समस्या भी कम हो गई थी. दूसरे दिन रीमा वहां पहुंच गई. प्रियांक ने उसे देखा तो चौंक गया, ‘‘रीमा, तुम अचानक यहां?’’

‘‘दी की याद आ रही थी. बस उस से मिलने चली आई. आप को बुरा तो नहीं लगा?’’ रीमा बोली.

‘‘कैसी बात करती हो? तुम्हारे आने से तो घर में रौनक आ जाती है.’’

सौरभ सीमा की प्रतिक्रिया की परवाह किए बगैर अपने मन की बात कह कर आज अपने को बहुत हलका महसूस कर रहा था. उसे सीमा के उत्तर का इंतजार था. 2 दिन हो गए थे. सीमा ने उस से फिर इस बारे में कोई बात नहीं की.

सौरभ से न रहा गया तो शाम के समय वह सीमा के घर पहुंच गया. ड्राइंगरूम में रीमा बैठी थी. उसी ने दरवाजा खोला. सामने सौरभ को देख कर वह सम?ा गई कि दी ने इसी के बारे में उस से बात की थी.

‘‘नमस्ते,’’ रीमा बोली तो सौरभ ने भी औपचारिकतावश हाथ उठा दिए. उसे इस घर में देख कर वह चौंक गया.

रीमा ने अजनबी नजरों से उस की ओर देखा. बोली, ‘‘अगर मेरा अनुमान सही है तो आप सौरभजी हैं.’’

‘‘आप को कैसा पता चला?’’

‘‘दी आप की बहुत तारीफ करती हैं. उन के बताए अनुसार मुझे लगा आप सौरभजी ही होंगे.’’

उस के मुंह से सीमा की कही बात सुन कर सौरभ को बड़ा अच्छा लगा.

‘‘बैठिए न आप खड़े क्यों हैं?’’

रीमा के आग्रह पर सौरभ वहीं सोफे पर

बैठ गया.

‘‘मैं प्रियांक से  मिलने आया था. इसी बहाने आप से भी मुलाकात हो गई.’’

‘‘मेरा नाम रीमा है. मैं सीमा दी की छोटी बहन हूं.’’

‘‘मेरा परिचय तो आप जान ही  गई हैं.’’

‘‘दी ने जितना बताया था आप तो उस से भी कहीं अधिक स्मार्ट हैं.’’

लगातार रीमा के मुंह से सीमा की उस के बारे में राय जान कर सौरभ का मनोबल ऊंचा हो गया. उस लगा कि सीमा भी उसे पसंद करती है लेकिन लोक लाज के कारण कुछ कह नहीं पा रही है.

‘‘आप की दी कहीं दिखाई नहीं दे रहीं.’’

‘‘वे काम में व्यस्त हैं. उन्हें शायद आप के आने का पता नहीं चला. अभी बुलाती हूं,’’ कह कर रीमा दी को बुलाने चली गई.

कुछ देर में सीमा आ गई. उस ने मुसकरा कर हैलो कहा तो सौरभ का दिल अंदर ही अंदर खुशी से उछल गया. उसे पक्का विश्वास हो गया था कि सीमा को भी वह पसंद है. उसे उस की बात का जवाब मिल गया था. उस ने पूछा, ‘‘प्रियांक अभी तक नहीं आया?’’

‘‘आते होंगे. आप दोनों बात कीजिए मैं चाय का इंतजाम करवा कर आती हूं,’’ कह कर सीमा वहां से हट गई.

‘‘कुछ समय पहले कभी दी से आप का जिक्र नहीं सुना. शायद आप को यहां आए ज्यादा समय नहीं हुआ है?’’

‘‘ मैं अभी कुछ दिन पहले ट्रांसफर हो कर यहां आया हूं.’’

‘‘आप की फैमिली?’’

‘‘मैं सिंगल हूं. मेरी अभी शादी नहीं हुई.’’

‘‘लगता है आप को भी अभी अपना मनपसंद साथी नहीं मिला.’’

‘‘आप ठीक कहती हैं. कुछ को ही अच्छे साथी मिलते हैं.’’

‘‘आप अच्छेखासे हैंडसम और स्मार्ट हैं. आप को लड़कियों की क्या कमी है?’’

बातों का सिलसिला चल पड़ा और वे आपस में बातें करने लगे. रीमा सौरभ को

बहुत ध्यान से देख रही थी. सौरभ की आंखें लगातार सीमा को खोज रही थीं लेकिन वह

बहुत देर तक बाहर उन के बीच नहीं आई. रीमा भी शक्लसूरत व कदकाठी में अपनी बहन की तरह थी. बस उन के स्वभाव में थोड़ा अंतर लग रहा था.

कुछ देर बाद प्रियांक भी आ गया. सौरभ को देख कर चौंक गया और फिर उस के साथ बातों में शामिल हो गया. प्रियांक बोली, ‘‘आप हमारी सालीजी से मिल लिए होंगे. अभी तक इन को अपनी पसंद का कोई साथी नहीं मिला है.’’

‘‘मैं ने सोचा ये भी अपनी बहन की तरह होंगी जिन्हें देख कर कोई नहीं कह सकता कि वे शादीशुदा हैं.’’

‘‘अभी मेरी शादी नहीं हुई है. अभी खोज जारी है.’’

प्रियंका के आने पर सीमा थोड़ी देर के लिए सौरभ के सामने आई और फिर प्रियांक के पीछे कमरे में चली आई. वह रीमा और सौरभ को बात करने का अधिक से अधिक मौका देना चाहती थी. बातोंबातों में रीमा ने सौरभ से उस का फोन नंबर भी ले लिया था.सौरभ को लगा सीमा आज उस के सामने आने में ?ि?ाक रही है और उस के सामने अपने दिल का हाल बयां नहीं कर पा रही है. कुछ देर वहां पर रहने के बाद सौरभ अपने घर लौट आया.

प्रियांक ने आग्रह किया था कि खाना खा कर जाए लेकिन आज सीमा की स्थिति को देखते हुए उस ने वहां पर रुकना ठीक नहीं सम?ा और वापस चला आया.

रीमा ने अगले दिन दोपहर में सौरभ को फोन किया, ‘‘आज आप शाम को क्या कर रहे हैं?’’

‘‘कुछ खास नहीं.’’

‘‘शाम को घर आ जाइएगा. हम सब को अच्छा लगेगा.’’

‘‘क्या इस तरह किसी के घर रोज आना ठीक रहेगा?’’

‘‘दी चाहती थीं कि मैं आप को शाम को घर बुला लूं.’’

‘‘कहते हैं रोजरोज किसी के घर बिना बुलाए नहीं जाना चाहिए. जब आप लोग चाहते हैं तो मैं जरूर आऊंगा,’’ सौरभ बोला. उसे लगा जैसे उस के अरमानों ने मूर्त रूप ले लिया है और उसे मन की मुराद मिल गई. वह औफिस के बाद सीधे सीमा के घर चला आया.

रीमा उस का इंतजार कर रही थी. उसे देखते ही बोली, ‘‘थैंक्यू आप ने हमारी बात मान ली.’’

‘‘आप हमें बुलाएं और हम न आएं ऐसा कभी हो सकता है?’’

आज भी उस की आशा के विपरीत

उसे सीमा कहीं दिखाई नहीं दे रही थी. थोड़ी देर बाद वह 3 कप चाय और नाश्ता ले कर

आ गई.

‘‘आप को पता चल गया कि मैं आ रहा हूं?’’

‘‘रीमा ने बताया था इसलिए मैं ने चाय और स्नैक्स की तैयारी पहले ही कर ली थी,’’ सीमा मुसकरा कर बोली.

सौरभ सीमा के बदले हुए रूप से अंचभित था. कल तक उस के सामने मौडर्न दिखने और बेझिझक बोलने वाली सीमा उस की रोमांटिक बातें सुनने के बाद से एकदम छुईमुई सी हो गई थी. वह अब उस की हर बात में नजर का लेती थी. उस का इस तरह शरमाना सौरभ को बहुत अच्छा लग रहा था. वह समझ गया कि वह भी उसे उतना ही पसंद करती है लेकिन खुल कर स्वीकार करने में झिझक उन के बीच आ रही है.

अब सौरभ के सामने एक ही समस्या थी वह कि वह सीमा की झिझक को कैसे दूर करे? उसे तो वही खूब बोलने वाली मौडर्न सीमा पसंद थी. मुश्किल यह थी कि रीमा की उपस्थिति में उसे सीमा से मिल कर उस की झिझक दूर करने का मौका ही नहीं मिल पा रहा था. वह चाहता था कि वह सीमा से ढेर सारी बातें करे पर वह उस के सामने ही बहुत कम आ रही थी.

सौरभ रीमा के साथ बहुत देर तक बातें करता रहा. तभी प्रियांक आ गया. उन दोनों को बातें करते देख कर वह बड़ा आश्वस्त लगा.

रात हो गई थी.सौरभ जैसे ही जाने लगे रीमा बोली, ‘‘डिनर तैयार हो रहा है. आज खाना खा कर ही जाइएगा.’’

‘‘आप बनाएंगी तो जरूर खाऊंगा.’’

‘‘ऐसी बात है तो मैं किसी दिन बना दूंगी. वैसे भी दी ने पहले से ही खाने की तैयारी कर ली होगी.’’

‘‘अगर आप दोनों बहनों का इरादा मुझे खाना खिलाने का है तो मैं मना कैसे कर सकता हूं?’’

रीमा वहां से उठ कर किचन में आ गई. प्रियांक सौरभ से बातें करने लगा. सीमा की मदद के लिए रीमा उस का हाथ बंटाने लगी. अब सौरभ को जाने की कोई जल्दी न थी. यहां पर सीमा की उपस्थिति का एहसास ही उस के लिए बहुत था. वैसे उसे अब रीमा की बातें भी अच्छी लगने लगी थीं. एकजैसे संस्कारों में पलीबढ़ी दोनों बहनों में काफी समानताएं थीं.

रीमा ने डाइनिंगटेबल पर खाना बड़े करीने से लगा दिया. सब खाना खाने लगे. सौरभ बीचबीच में चोर नजरों से सीमा को देख रहा था. वह  सिर झुकाए चुपचाप

खाना खा रही थी. गलती से कभी नजरें

टकरा जातीं तो सौरभ से निगाहें मिलते ही

वह झट से अपनी नजरें नीची कर लेती.

सौरभ को उस का यह अंदाज अंदर तक रोमांचित कर जाता.

रीमा को यहां आए हफ्ताभर हो गया

था. वह अब सौरभ से खुल कर बात करने लगी थी.

‘‘आज सुबहसुबह रीमा ने सौरभ को फोन किया, ‘‘आज शाम आप फ्री हो?’’

‘‘कोई खास काम था?’’

‘‘हम सब आज पिक्चर देखने का प्रोगाम बन रहे हैं. आप भी चलिए हमारे साथ.’’

‘‘नेकी और पूछपूछ मैं जरूर आऊंगा.’’

‘‘तो ठीक है आप सीधे सिटी मौल में ठीक 5 बजे पहुंच जाइए. हम आप को वहीं मिल जाएंगे.’’

सौरभ की मानो मन की मुराद पूरी हो गई थी. वह समय से पहले ही मौल पहुंच

गया. तभी उस ने देखा कि रीमा अकेली ही

आ रही है.

‘‘ प्रियांक और सीमा कहां रह गए?’’

‘‘अचानक जीजू की तबीयत कुछ खराब हो गई. इसी वजह से वे दोनों नहीं आ रहे और मैं अकेले चली आई. मु?ो लगा प्रोग्राम कैंसिल करना ठीक नहीं.आप वहां पर हमारा इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘इस में क्या था? बता देतीं तो प्रोग्राम कैंसिल कर किसी दूसरे दिन पिक्चर देख लेते.’’

‘‘हम दोनों तो हैं. आज हम ही पिक्चर का मजा ले लेते हैं,’’ रीमा बोली.

सौरभ का मन थोड़ा उदास सा हो गया लेकिन वह रीमा को यह सब नहीं जताना चाहता था. वह ऊपर से खुशी दिखाते हुए बोला, ‘‘इस से अच्छा मौका हमें और कहां मिलेगा साथ वक्त बिताने का.’’

‘‘आप ठीक कहते हैं,’’ कह कर वे सिनेमाहौल में आ गए. वहां सौरभ को सीमा की कमी खल रही थी लेकिन वह यह भी जानता था कि सीमा प्रियांक की पत्नी है. उस का फर्ज बनता है वह अपने पति की परेशानी में उस के साथ रहे. यही सोच कर उस से सब्र कर लिया और रीमा के साथ आराम से पिक्चर देखने लगा.

समय कैसे बीत गय पता ही नहीं चला. पिक्चर खत्म हो गई थी. सौरभ रीमा को

छोड़ने सीमा के घर आ गया. सामने प्रियांक दिखाई दे गया.

‘‘क्या बात है आप दोनों पिक्चर देखने

नहीं आए?’’

‘‘अचानक मेरे सिर मे बहुत दर्द हो गया था. अच्छा महसूस नहीं हो रहा था. इसीलिए नहीं आ सके. फिर कभी चलेंगे. तुम बताओ कैसी रही मूवी?’’

‘‘बहुत अच्छी. आप लोग साथ में होते तो और अच्छा लगता,’’ सौरभ बोला. उस ने चारों और अपनी नजरें दौड़ाईं पर उसे सीमा कहीं दिखाई नहीं दी. वह रीमा को छोड़ कर वहीं से वापस हो गया.

अब तो यह रोज की बात हो गई थी. रीमा सौरभ के साथ देर तक फोन पर बातें करती रहती और जबतब उसे घर बुला लेती. वे कभीकभी घूमने का प्रोग्राम भी बना लेते.

इतने दिनों में रीमा की सौरभ से अच्छी दोस्ती हो गई थी और सौरभ के सिर से भी सीमा का भूत उतरने लगा था.

एक दिन सीमा ने रीमा को कुरेदा, ‘‘तुम्हें सौरभ कैसा लगा रीमा?’’

‘‘इंसान तो अच्छा है.’’

‘‘तुम उस के बारे में सीरियस हो तो बात आगे बढ़ाई जाए?’’

‘‘दी अभी कुछ कह नहीं सकती. मुझे कुछ और समय चाहिए. मर्दों का कोई भरोसा नहीं होता. ऊपर से कुछ दिखते हैं और अंदर से कुछ और होते हैं.’’

‘‘कह तो तुम ठीक रही है. तुम उसे अच्छे से जांचपरख लेना तब कोई कदम आगे बढ़ाना. जहां तुम ने इतने साल इंतजार कर लिया है वहां कुछ महीने और सही,’’ सीमा हंस कर बोली.

रीमा को दी की सलाह अच्छी लगी.

1 महीना बीत गया था. सौरभ और रीमा एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे. अब सीमा उस के दिमाग और दिल दोनों से उतरती चली जा रही थी और उस की जगह रीमा लेने लगी थी.

सीमा ने भी इस बीच सौरभ से कोई बात नहीं की और न ही वह उस के आसपास ज्यादा देर तक नजर आती. सौरभ को भी रीमा अच्छी लगने लगी. उस की बातें में बड़ी परिपक्वता थी और अदाओं में शोखी.

एक दिन उस ने रीमा के सामने अपने दिल की बात कह दी, ‘‘रीमा तुम मुझे अच्छी लगती हो मेरे बारे में तुम्हारी क्या राय है?’’

‘‘इंसान तो तुम भी भले हो लेकिन मर्दों पर इतनी जल्दी यकीन नहीं करना चाहिए?’’

रीमा बोली तो सौरभ थोड़ा घबरा गया. उसे लगा कहीं सीमा ने तो उस के बारे में कुछ नहीं कह दिया.

‘‘ऐसा क्यों कह रही हो? मुझसे कोई गलती हो गई है क्या?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. इतने लंबे समय तक तुम ने भी शादी नहीं की हैं. तुम भी आज तक अपनी होने वाली जीवनसाथी में कुछ खास बात ढूंढ़ रहे होंगे.’’

‘‘पता नहीं क्यों आज से पहले कभी कोई जंची ही नहीं. तुम्हारे साथ वक्त बिताने का मौका मिला तो लगा तुम ही वह औरत हो जिस के साथ मैं अपना जीवन खुशी से बिता सकता हूं. इसीलिए मैंने अपने दिल की बात कह दी.’’

सौरभ की बात सुन कर रीमा चुप हो गई. फिर बोली, ‘‘इस के बारे में मुझे अपने दी और जीजू से बात करनी पड़ेगी.’’

‘‘मुझे कोई जल्दबाजी नहीं है. तुम चाहो जितना समय ले सकती हो,’’ सौरभ बोला.

थोड़ी देर बाद रीमा घर लौट आई. उस के चेहरे से खुशी साफ ?ालक रही थी. उसे देखते ही सीमा ने पूछा, ‘‘क्या बात है आज बहुत खुश दिख रही हो?’’

‘‘बात ही कुछ ऐसी है. आज मुझे सौरभ ने प्रपोज किया.’’

‘‘तुम ने क्या कहा?’’

‘‘मैं ने कहा मुझे अभी थोड़ा समय दो. मैं मम्मीपापा, दीदीजीजू से बात कर के बताऊंगी.’’

उस की बात सुन कर सीमा को बहुत तसल्ली हुई. आज सौरभ ने एक नहीं 2 घर बरबाद होने से बचा लिए थे. उसे लगा भावनाओं में बह कर कभी इंसान से भूल हो जाती है तो इस का मतलब यह नहीं कि उस की सजा वह जीवन भर भुगतता रहे.

रीमा जैसे ही अपने कमरे में आराम करने के लिए गयी सीमा ने पहली बार सौरभ को फोन मिलाया.

सीमा का फोन देख कर सौरभ चौंक गया. उस ने किसी तरह अपने को संयत

किया और बोला, ‘‘हैलो सीमा कैसी हो?’’

‘‘मैं बहुत खुश हूं. तुम ने आज रीमा को प्रपोज कर के मेरे दिल का बो?ा हलका कर दिया. सौरभ कभीकभी हम से अनजाने में कोई भूल हो जाती है तो उस का समय रहते सुधार कर लेना चाहिए.’’

‘‘सच में मेरे दिल में भी डर था कि मैं ने रीमा को प्रपोज कर तो दिया लेकिन इस पर आप की प्रतिक्रिया क्या होगी?

‘‘मैं एक आधुनिक महिला हूं. मेरे विचार संकीर्ण नहीं हैं. मेरे व्यवहार के खुलेपन का आप ने गलत मतलब निकाल लिया था. आज तुम ने अपनी गलती सुधार कर 2 परिवारों की इज्जत रख ली.’’

‘‘आप ने भी मेरे दिल से बड़ा बोझ उतार दिया. यह सब आप की समझदारी के कारण ही संभव हो सका है. मैं तो पता नहीं भावनाओं में बह कर आप से क्या कुछ कह गया? मैं ने आप की चुप्पी के भी गलत माने निकाल लिए थे.’’

‘‘सौरभ इस बात का जिक्र कभी भी रीमा से न करना और इस मजाक को यहीं खत्म कर देना.’’

‘‘मजाक,’’ सौरभ ने चौंक कर पूछा.

‘‘हां मजाक, अब आप मेरे बहनोई बनने वाले हो. इतने से मजाक का हक तो आप का भी बनता है,’’ सीमा बोली तो सौरभ जोर से हंस पड़ा. उस की हंसी में उन के बीच के रिश्ते पर पड़ी धूल भी छंट गई.

पार्किंग फीस बढ़ाओ, घरों को मुसीबत में डालो

दिल्ली जैसे शहरों के प्रदूषण से बचने के लिए राज्य सरकारें और म्यूनिसिपल बौडीज सिरफिरे उपाय ढूंढ़ती हैं. उन में डीजल सैटों को बंद करना, गाडि़यों को औडईवन चलाना, पार्किंग की जगह पर चार्ज हैवी करना, शहरों में वाहनों के घुसने पर टैक्स लेना शामिल हैं. ये सब उपाय वे हैं जो सरकारी बाबुओं द्वारा अपने सुरक्षित दफ्तरों की सुरक्षित सीटों पर बैठ कर सोचे जा सकते हैं.

शहरों में प्रदूषण बहुत सी वजह से होता है और कम से कम बदबू व टै्रफिक जाम सिर्फ और सिर्फ सरकारी बाबुओं के कारण है. हर शहर में सरकारी बाबू शहरों की गंदगी साफ करने पर लाखोंकरोड़ों के बजट पास करवाते हैं पर आधा उन की जेबों में जाता है. हर शहर, कसबा असल में सड़ता नजर आता है जिस की वजह से हवा का प्रदूषण बदबूदार भी हो जाता है.

डीजल जेनरेटरों से इतना धुआं नहीं निकलता जितना उन सरकारी वाहनों से निकलता है जो बेबात में घूमते हैं. हर जगह मुख्यमंत्री, मंत्री जाते हैं तो गाडि़यों का लंबा काफिला चलता है, सड़कें बंद कर दी जाती हैं. मुख्यमंत्री और मंत्री के काफिले प्रदूषण फैलाते हैं और सड़कें बंद करने से टै्रफिक जाम होता है जो प्रदूषण फैलाता है.

शहरों में पार्किंग फीस बढ़ाने से गाडि़यां कम हो जाएंगी यह भ्रम है. लोग और दूर जा कर वाहन खड़ा करेंगे. पैट्रोल, डीजल ज्यादा लगेगा. लोग अपनी गाडि़यां उन जगहों पर पार्क करना शुरू कर देंगे जहां फीस नहीं लगती और फिर घरों, दुकानदारों, दफ्तरों और पुलिस से रोज हाथापाई होने लगेगी.

शहरों के धुएं का प्रदूषण कम करना है तो पहली जरूरत है कि प्रौपर ट्रैफिक मैनेजमैंट हो पर उसे करवाने के लिए कोई तैयार नहीं है क्योंकि इस में काम सरकारी अफसरों और इंस्पैक्टरों को करना होगा जो ऊपरी कमाई में इंटरैस्टेड होते हैं, शहरों को चलाने में नहीं. अगर सड़कों पर दुकानें, खोमचे, फल वाले, खाना बेचने वाले न हों तो आधा ट्रैफिक अपनेआप ठीक हो जाएगा. ट्रैफिक जाम होने से जो बेकार का धुआं फैलता है वह जानलेवा है.

सरकारें, निकाय, पुलिस कहीं भी सफिशिऐंट नंबर में टैक्सियों, औटो, ई रिकशाओं को चलने नहीं देना चाहती क्योंकि कमी होगी तो ही मनमाने पैसे वसूले जा सकते हैं. वैसे भी इन सब के परमिट लेने में भारी घूस ली दी जाती है और यह भार जनता पर पड़ता है. पार्किंग फीस बढ़ाने से पहले अलटरनेटिव फैसिलिटी प्रोवाइड करने की सरकार सोच ही नहीं सकती.

मुंबई में पहले शेयर ए कैब का खास चलन था जो अब लगभग खत्म हो गया है. 2 सीटर, 3 सीटर औटो ने इन्हें खो दिया है जबकि शेयर कैब सब से सुलभ तरीका है गाडि़यों के रिप्लेस करने का. कौल ए शेयर कैब जैसी सुविधाएं बनाना भी मुश्किल नहीं है पर इस के लिए म्यूनिसिपल निकायों के अफसर माथापच्ची क्यों करें? वे पैसा उगाहना चाहते हैं, सेवा करना नहीं.

पार्किंग फीस बढ़ाने का मतलब है घरों के पैसों को चूसना. गाडि़यां कम करने का मतलब है औरतोंलड़कियों को समाज में फैले भेडि़यों के आगे परोसना. पब्लिक ट्रांसपोर्ट कहने में अच्छी हो पर औरतेंलड़कियां यहीं सब से ज्यादा परेशान की जाती हैं. पर सरकारी अमले को औरतों की, लड़कियों की सुविधाओं से क्या लेनादेना. वह तो ऐसी नीतियां बनाने में माहिर है जो जनता को परेशान करें खासतौर पर घरों को, लड़कियों को, औरतों को. पार्किंग फीस बढ़ाने का मतलब है शौपिंग या रेस्तरां में जाने पर एक अतिरिक्त बोझ डालना, बिना कोई ऐक्स्ट्रा फैसिलिटी दिए.

बदलते मौसम में मेरे बाल रफ और ड्राई हो जाते हैं, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

बचपन से ही मेरे बाल (Hair Care) बहुत ज्यादा कर्ली हैं. बदलते मौसम के कारण वे बहुत ज्यादा रफ और ड्राई हो गए हैं. बालों की केयर करने के लिए मुझे सही तरीका बताएं?

जवाब

कर्ली बाल मुड़े हुए रहते हैं जिस कारण स्ट्रेट बालों की तुलना में छोटे दिखाई देते हैं. आप बालों की रफनैस को दूर करने के लिए क्रीमी शैंपू व क्रीमी कंडीशनर का इस्तेमाल कीजिए. यदि फिर भी रफनैस न जाए तो लिवइन कंडीशनर की कुछ बूंदें भी बालों में लगा सकती हैं. आप एक केला लें और उस में 1/2 कप दूध, 1 चम्मच शहद डाल सब को मिक्सी में मिला कर पेस्ट बना लें और अपने बालों में लगाएं. आप के बालों के लिए बहुत अच्छा मौइस्चराइजर का काम करेगा. ऐसा हफ्ते में कम से कम 2 बार करने से बाल मुलायम होंगे.

सवाल

मेरी अंडरआर्म्स से बदबू आती है और यह बदबू कई बार सब के बीच में शर्मिंदा कर देती है? क्या इस बदबू का कारण जरूरत से ज्यादा पसीना है? क्या आप इस बदबू से छुटकारा पाने के लिए कोई नुसखे बता सकती हैं ?

जवाब

दरअसल अंडरआर्म्स बदबूदार भले ही एक आम समस्या हो लेकिन यह आप के आत्मविश्वास को कम कर देती है. भले ही डियोड्रैंट या रोलऔन गरमियों में बदबूदार अंडरआर्म्स के लिए एक त्वरित समाधान क्यों न हो लेकिन इस का असर खत्म होते ही यह समस्या फिर से होने लगती है. जब शरीर से पसीना निकलता है तो हमारी त्वचा की सतह पर रहने वाले बैक्टीरिया प्रोटीन को तोड़ देते हैं और कुछ खास ऐसिड यौगिक निकलते हैं जिस से शरीर के कुछ हिस्सों से तीखी गंध आने लगती है. यह एक ऐसी समस्या है जो आसानी से कुछ घरेलू नुसखों द्वारा दूर की जा सकती है. आप भले ही इस समस्या से कई सालों से परेशान हों लेकिन इन नुसखों से आप कुछ ही दिनों में अंडरआर्म्स से बदबू की समस्या को दूर कर सकती हैं. अंडरआर्म्स की बदबू से छुटकारा पाने के लिए बेकिंग सोडा प्रभावी रूप से काम करता है. इस के लिए 2 बड़े चम्मच बेकिंग सोडा लें और उस में 1 चम्मच नीबू का रस मिलाएं. दोनों को मिला कर पेस्ट तैयार करें. इस पेस्ट को अंडरआर्म्स पर 10 मिनट तक सर्कुलर मोशन में घुमाते हुए मसाज करें. इसे अंडरआर्म्स में थोड़ी देर के लिए लगाए रखें और हलका सूखने पर पानी से धो लें.

1 कप ऐप्पल साइडर विनेगर लें और उस में 1/2 कप पानी मिलाएं. इसे एक स्प्रे बोतल में भर कर रोज रात को सोने से पहले अपनी अंडरआर्म्स पर लगाएं. सुबह इसे कुनकुने पानी से धो लें. इस प्रक्रिया को 15 दिन तक नियमित रूप से दोहराएं. ऐसा करने से अंडरआर्म्स की बदबू पूरी तरह से दूर हो जाएगी.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Married Life को बनाना चाहते हैं खुशहाल, तो फौलो करें ये टिप्स

वैवाहिक जीवन (Married Life) को खुशहाल बनाने के लिए जरूरी है कि आप का रिलेशन विश्वास, अंडरस्टैंडिंग, केयरिंग की नींव पर टिका हो। फिर चाहे आप ने परिवार की सहमति से शादी की हो या अपनी पसंद के पार्टनर को अपना जीवनसाथी चुना हो.

हालांकि जिस तरह सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी तरह शादीशुदा जीवन के भी दो पहलू होते हैं। कभी प्यार होता है तो कभी टकराव। जो रिश्ते को मजबूती भी देता है लेकिन लंबा चलने वाला टकराव रिश्ते में दरार डाल देता है तो भूल कर भी कलह को ज्यादा लंबा न चलने दें जिस से आप के रिश्ते का स्पार्क कम नहीं होगा.

इस के लिए जरूरी है कि कुछ बातों का ध्यान रखें :

अनदेखा करना

साथ होते हुए भी एकदूसरे को नजरंदाज करना, कौल मैसेज का रिप्लाई करने की जरूरत न समझना, किसी भी काम में एकदूसरे की सहमति लेने की कोशिश तक न करना इशारा करते हैं कि दोनों के बीच में दूरी गहरा गई है. इसलिए समय पर ही बात को समझें और दूरियों को नजदीकियों में बदलने की कोशिश करें.

भावनात्मक जुड़ाव न होना

किसी भी परेशानी या खुशी को एकदूसरे से साझा न करना, पता होने पर भी एकदूसरे के प्रति कोई रिएक्शन न दिखाना, बिना लड़ाईझगड़े के ऐसी बेरुखी इशारा करता है कि रिश्ते में दूरियां आ चुकी हैं.

फिजिकल इंटिमेसी से दूरी बनाना

एक घर में, एक कमरे में रहते हुए भी दोनों के बीच में फिजिकल इंटिमेसी की कमी होना रिश्ते को खत्म होने की कगार पर ले आता है क्योंकि दांपत्य जीवन में भावनात्मक व फिजिकल रिलेशन होना पहचान होता है एक स्वस्थ रिश्ते की क्योंकि किसी भी रिश्ते में हर तरह से एकदूसरे की जरूरत को समझना और उन उम्मीदों पर खरा उतरना आवश्यक होता है. जरूरतें फिजिकल भी हो सकती हैं और इमोशनल भी.

बड़े काम के टिप्स

  • किसी हैल्दी रिलेशनशिप के लिए कम्युनिकेशन बेहद जरूरी होता है। जरूरी है कि आप एकदूसरे के लिए एक गहरी समझ विकसित करें। जितना अधिक आप एकदूसरे को समझते हैं, आप उतने ही करीब होते जाते हैं.
  • किसी भी बात के लिए लंबे समय तक एकदूसरे से दूरी न बनाएं. रिश्ते में अहंकार को जगह बिलकुल न दें. यह न सोचें कि आप का पार्टनर ही पहल करेगा बल्कि उस का हाथ अपने हाथों में लें और अपने इमोशंस उन्हें जाहिर करें.
  • किसी भी रिश्ते में भरोसे का होना बेहद जरूरी होता है. इस के बिना किसी भी रिश्ते की नींव रख पाना संभव नहीं है.
  • किसी भी काम को करने से पहले एकदूसरे कि सलाह जरूर लें. इस से रिश्ते में मजबूती आती है.
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