और ‘तोड़’ टूट गई

मैं 3 महीने से उस आफिस का चक्कर लगा रहा था. इस बार इत्तेफाक से मेरे पेपर्स वाली फाइल मेज पर ही रखी दिख गई थी. मेरी आंखों में अजीब किस्म की चमक सी आ गई और मुन्नालालजी की आंखों में भी.

‘‘मान्यवर, मेरे ये ‘बिल’ तो सब तैयार रखे हैं. अब तो सिर्फ ‘चेक’ ही बनना है. कृपया आज बनवा दीजिए. मैं पूरे दिन रुकने के लिए तैयार हूं,’’ मैं ने बड़ी ही विनम्रता से निवेदन किया.

उन्होंने मंदमंद मुसकान के साथ पहले फाइल की तरफ देखा, फिर सिर पर नाच रहे पंखे की ओर और फिर मेरी ओर देख कर बोले, ‘‘आप खाली बिल तो देख रहे हैं पर यह नहीं देख रहे हैं कि पेपर्स उड़े जा रहे हैं. इन पर कुछ ‘वेट’ तो रखिए, नहीं तो ये उड़ कर मालूम नहीं कहां चले जाएं.’’

मैं ‘फोबोफोबिया’ का क्रौनिक पेशेंट ठहरा, इसलिए पास में रखे ‘पेपरवेट’ को उठा कर उन पेपर्स पर रख दिया. इस पर मुन्नालालजी के साथ वहां बैठे अन्य सभी 5 लोग ठहाका लगा कर हंस पड़े. मैं ने अपनी बेचारगी का साथ नहीं छोड़ा.

मुन्नालालजी एकाएक गंभीर हो कर बोले, ‘‘एक बार 3 बजे आ कर देख लीजिएगा. चेक तो मैं अभी बना दूंगा पर इन पर दस्तखत तो तभी हो पाएंगे जब बी.एम. साहब डिवीजन से लौट कर आएंगे.’’

मैं ने उसी आफिस में ढाई घंटे इधरउधर बैठ कर बिता डाले. मुन्नालालजी की सीट के पास से भी कई बार गुजरा पर, न ही मैं ने टोका और न ही उन्होंने कोई प्रतिक्रिया जाहिर की. ठीक 3 बजे मेरा धैर्य जवाब दे गया, ‘‘बी.एम. साहब आ गए क्या?’’

‘‘नहीं और आज आ भी नहीं पाएंगे. आप ऐसा करें, कल सुबह साढ़े 11 बजे आ कर देख लें,’’ उन्होंने दोटूक शब्दों में जवाब दिया.

वैसे तो मैं काफी झल्ला चुका था पर मरता क्या न करता, फिर खून का घूंट पी कर रह गया.

मैं ने वहां से चलते समय बड़े अदब से कहा, ‘‘अच्छा, मुन्नालालजी, सौरी फौर द ट्रबल, एंड थैंक यू.’’ पर मेरा मूड काफी अपसेट हो चुका था इसलिए एक और चाय पीने की गरज से फिर कैंटीन में जा पहुंचा. संयोग ही था कि उस समय कैंटीन में बिलकुल सन्नाटा था. उस का मालिक पैसे गिन रहा था. जैसे ही मैं ने चाय के लिए कहा, वह नौकर को एक चाय के लिए कह कर फिर पैसे गिनने लगा.

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मैं ने सुबह से 3 बार का पढ़ा हुआ अखबार फिर से उठा लिया. अभी इधरउधर पलट ही रहा था कि वह पैसों को गल्ले के हवाले करते हुए मेरे पास आ बैठा, ‘‘माफ कीजिएगा, मुझे आप से यह पूछना तो नहीं चाहिए, पर देख रहा हूं कि आप यहां काफी दिनों से चक्कर लगा रहे हैं, क्या मैं आप के किसी काम आ सकता हूं?’’ कहते हुए उस ने मेरी प्रतिक्रिया जाननी चाही.

‘‘भैया, यहां के एकाउंट सैक्शन से एक चेक बनना है. मुन्नालालजी 3 महीने से चक्कर लगा रहे हैं,’’ मैं ने कहा.

‘‘आप ने कुछ तोड़ नहीं की?’’ उस ने मेरी आंखों में झांका.

‘‘मैं बात समझा नहीं,’’ मैं ने कहा.

‘‘बसबस, मैं समझ गया कि क्या मामला है,’’ उस ने अनायास ही कह डाला.

‘‘क्या समझ गए? मुझे भी तो समझाइए न,’’ मैं ने सरलता से कहा.

‘‘माफ कीजिएगा, या तो आप जरूरत से ज्यादा सीधे हैं या फिर…’’ वह कुछ कहतेकहते रुक गया.

‘‘मैं आप का मतलब नहीं समझा,’’ मैं ने कहा.

‘‘अरे, ऐसे कामों में कुछ खर्चापानी लगता है जिस को कुछ लोग हक कहते हैं, कुछ लोग सुविधाशुल्क कहते हैं और कुछ लोग ‘डील’ करना कहते हैं. यहां दफ्तर की भाषा में उसे ‘तोड़’ कहा जाता है.’’

‘‘तो इन लोगों को यह बताना तो चाहिए था,’’ मैं ने उलझन भरे स्वर में कहा.

‘‘यह कहा नहीं जाता है, समझा जाता है,’’ उस ने रहस्यात्मक ढंग से बताया.

‘‘ओह, याद आया. आज मुन्नालालजी ने मुझ से पेपर्स पर ‘वेट’ रखने के लिए कहा था. शायद उन का मतलब उसी से रहा होगा,’’ मैं ने उन को बताया.

‘‘देखिए, किसी भी भौतिक वस्तु में जो महत्त्व ‘वेट’ यानी भार का है वही महत्त्व भार में गुरुत्वाकर्षण शक्ति का है. आप गुरुत्वाकर्षण का मतलब समझते हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘हां, बिलकुल, मैं ने बी.एससी. तक फिजिक्स पढ़ी है,’’ मैं ने कहा.

‘‘तो यह रिश्वत यानी वेट यानी डील यानी सुविधाशुल्क उसी गुरुत्वाकर्षण शक्ति के जैसा काम करता है. बिना इस के वेट नहीं और बिना वेट के पेपर्स उड़ेंगे ही. वैसे आप का कितने का बिल है?’’ वह गुरुत्वाकर्षण का नियम समझाते हुए पूछ बैठा.

‘‘60,400 रुपए का,’ मैं ने झट से बता दिया.

‘‘तो 6 हजार रुपए दे दीजिए, चेक हाथोंहाथ मिल जाएगा,’’ वह बोला.

‘‘पर यह दिए कैसे जाएं और किसे?’’

‘‘मुन्नालालजी को यहां चाय के बहाने लाएं. उन के हाथ में 6 हजार रुपए पकड़ाते हुए कहिए, ‘यह खर्चापानी है.’ फिर देखिए कि चेक 5 मिनट के अंदर मिल जाता है कि नहीं,’’ कहते हुए वह उठ खड़ा हुआ.

मैं ने उसी बिल्ंिडग में स्थित ए.टी.एम. से जा कर 7 हजार रुपए निकाले. उस में से 1 हजार अपने अंदर वाले पर्स में रखे और बाकी बाईं जेब में रख कर मुन्नालालजी के पास जा पहुंचा तथा जैसे मुझे चाय वाले ने बताया था मैं ने वैसा ही किया. मैं चेक भी पा गया था पर लौटते समय मैं ने उस कैंटीन वाले को शुक्रिया कहना चाहा.

उस ने मुझे देखते ही पूछा, ‘‘चेक मिला कि नहीं?’’

‘‘साले ने 6 हजार रुपए लिए थे. चेक कैसे न देता?’’ मेरे मुंह से निकल गया.

मैं वहां से बाहर आ कर गाड़ी स्टार्ट करने वाला ही था कि एक चपरासी ने आ कर कहा, ‘‘मांगेरामजी, आप को मुन्नालालजी बुला रहे हैं.’’

पहले मैं ने सोचा कि गाड़ी स्टार्ट कर के अब भाग ही चलूं, पर जब उस ने कहा कि चेक में कुछ कमी रह गई है तो मैं ने अपना फैसला बदल लिया.

जैसे ही मैं मुन्नालालजी के पास पहुंचा वे बोले, ‘‘अभी आप को फिर से चक्कर लगाना पड़ता. उस चेक में एक कमी रह गई है.’’

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मैं ने खुशीखुशी चेक निकाल कर उन को दिया. उन्होंने उसे फिर से दबोच लिया. फिर मेरे दिए हुए 6 हजार निकाल कर मेरी ओर बढ़ा कर बोले, ‘‘ये आप के पैसे आप के पास पहुंच गए और यह मेरा चेक मेरे पास आ गया. अब आप जहां और जिस के पास जाना चाहें जाएं, कोर्ट, कचहरी, विधानसभा, पार्लियामैंट, अखबारों के दफ्तर या अपने क्षेत्र के दादा के पास. तमाम जगहें हैं.’’

हाथ में आई मोटी रकम यों फिसल जाएगी यह सोच कर मैं ने मायूसी व लाचारगी से मुन्नालाल को देखा पर कुछ बोला नहीं. मेरे मन में तोड़ की टूटी कड़ी को फिर से जोड़ने की जुगत चल रही थी.

Short Story: सफाई और कोरोना

दोपहरबिस्तर पर लोटपोट होने के बाद सोच कर कि चल कर जरा हौल की सैर कर आऊं, दरवाजा खोल कर बाहर कदम रखा कि किसी चीज से पैर टकराया. मुंह से चीख निकली और मैं बम जैसे फटा, ‘‘यह क्या हाल बना रखा है, घर के आदमी के चलनेफिरने लायक जगह तो छोड़ा कम से कम?’’

उधर से भी जवाबी धमाका हुआ, ‘‘दिनभर सोने से फुरसत मिल गई हो तो थोड़ा काम खुद भी कर लो.’’

मैं भिनभिनाया, ‘‘अभी तो तुम भी दिनभर घर में ही क्यों नहीं थोड़ा साफसफाई पर ध्यान दे लेती.’’

वह तमतमाई, ‘‘आप भी तो दिनभर बिस्तर पर ही हैं, आप ही क्यों नहीं थोड़ी साफसफाई कर लेते?’’

मैं सीना फुलाया, ‘‘यह मेरा काम नहीं है, मैं मर्द हूं.’’

सुमि पास आ गई, ‘‘अच्छा, यह कौन सी किताब में लिखा है

कि यह काम मर्दों का नहीं है.’’

मैं ने तन कर कहा, ‘‘मेरी अपनी किताब में.’’

सुमि ने

कमर पर हाथ रखे, ‘‘तो कौन से काम मर्दों के करने के हैं, ये भी लिखा होगा तो बता दो जरा?’’

मैं ने बांहें फैला दीं, ‘‘हां, लिखा है न आओ, बताऊं?’’

सुमि के चेहरे पर ललाई दौड़ गई जिसे उस ने तमतमाहट में छिपा लिया, ‘‘क्वारंटाइन में हो डिस्टैंस मैंटेन करो.’’

मैं ने आहें भरी, ‘‘वही

तो कर रहा हूं और कितना

करूं? 24 घंटे का साथ फिर

भी दूरियां…’’

मैं सुमि की तरफ बढ़ा सुमि ने बीच में ही

रोक दिया.

‘‘ये फालतू काम करने के बजाय कुछ काम की बात करो.’’

‘‘ये भी काम का ही काम है.’’

‘‘नहीं अभी बरतन मांजना ज्यादा काम का काम है, आओ जरा बरतन मांज दो.’’

‘‘कहा न यह मेरा काम नहीं है…’’

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सुमि तिनक कर बोली, ‘‘यह मेरा काम नहीं वह मेरा काम नहीं कहने से काम नहीं चलेगा. चुपचाप बरतन मांज दो वरना पुलिस को फोन कर दूंगी कि यहां एक कोरोना का मरीज है.’’

मैं थोड़ा डरा पर ऊपर से बोला, ‘‘यह गीदड़ भभकियां किसी और देना. तुम फोन कर सकती हो तो क्या मैं फोन नहीं कर सकता? मैं भी फोन कर के बोल दूंगा कि यहां एक कोरोना की मरीज है.’’

सुमि इत्मीनान से बोली, ‘‘बोल दो, बढि़या है. वे मेरी जांच करेंगे जांच में कुछ निकलेगा

नहीं पर मुझे 14 दिन का आराम मिल जाएगा. यहां घर में सारे काम आप करना. अभी तो पकापकाया मिल रहा है. बड़े ठाठ हैं नवाब

साहब के फिर खुद पकाना, खुद खाना और बरतन भी मांजना.’’

अब मैं वाकई डर गया, ‘‘छोड़ो न यार मैं तो मजाक कर रहा था, देखो बरतनवरतन मांजना तो अपने बस का है नहीं, मैं सफाई का काम कर देता हूं.’’

मैं ने डब्बू, डिंगी को आवाज लगाई, ‘‘चलो बच्चो मम्मी की हैल्प करते हैं. थोड़ी सफाई कर लेते हैं आ जाओ…’’

सुमि ने टोका, ‘‘कोई जरूरत नहीं है, सफाईवफाई करने की जैसा पड़ा है पड़े रहने दो. आप से जो कह रही हूं वह करो बस.’’

मैं ने जिद की, ‘‘अरे यार सफाई करना

मेरे लिए ज्यादा इजी रहेगा. करने दो न देखो, कितनी गंदगी पड़ी है हर जगह कितना पसरा

पड़ा है.’’

सुमि ने जैसे अल्टीमेटम देते हुए कहा, ‘‘न सफाई करनी है न करवानी है… जैसे पड़ा है पड़ा रहने दो, आप अपनी मर्दानगी इन बरतनों पर दिखाओ इन्हें चमका कर.’’

मैं फिर चिनमिनाया, ‘‘देखो एक तो यह

सब मेरे काम नहीं हैं फिर भी मैं करने को तैयार हूं तो जो काम मैं कर सकता हूं वही करने दो न.’’

सुमि फिर तुनकी, ‘‘एक बार कह तो

दिया सफाई नहीं करनी तो नहीं करनी क्यों पीछे पड़े हैं…’’

मैं भी जोर से बोला, ‘‘क्यों नहीं करनी? इतनी गंदगी में तुम कैसे रह सकती हो. तुम्हें आदत होगी तो होगी इतनी गंदगी में रहने की पर मुझे नहीं है तो मैं तो सफाई ही करूंगा.’’

सुमि ने मुंह बिचकाया,‘‘आए बड़े मिस्टर क्लीन. जैसे पहले व्हाइट हाउस में ही रहते थे… मैं भी कोई पाइप में रहती नहीं आई हूं पर अभी मुझे सफाई में नहीं रहना बस.’’

मैं ने भौंहें चढ़ाई, ‘‘क्यों पर क्यों नहीं रहना, क्यों नहीं करनी सफाई? इतने गंदे पसरे वाले घर में मन लग जाएगा तुम्हारा? अभी तो 24 घंटे तुम भी घर में ही हो…’’

सुमि ने होंठ टेढ़े किए, ‘‘हां तो इसी घर में रहना चाहती हूं, कहीं और नहीं जाना चाहती और यह भी चाहती हूं कि आप और बच्चे भी इसी घर में रहें कहीं किसी के घर न जाए.’’

मेरा सिर चकराया, ‘‘कमाल है, सफाई

का इस घर या कहीं जाने से क्या संबंध है?

तुम भी न कुछ का कुछ कहीं का कहीं जोड़ती रहती हो.’’

सुमि बोली, ‘‘संबंध कैसे नहीं हैं,

बिलकुल संबंध हैं, सौलिड संबंध हैं, जबरदस्त संबंध हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘वही तो पूछ रहा हूं, क्या संबंध है? तुम्हारी डेढ़ अक्ल ने निकाला है तो बता भी दो…’’

सुमि ने कंधे उचकाए, ‘‘इस में डेढ़ अक्ल, ढाई अक्ल वाली कोई बात नहीं है, सीधीसीधी बात है, देखो जितनी गंदगी होगी उतना इम्युनिटी सिस्टम अच्छा होगा. इम्युनिटी सिस्टम अच्छा होगा तो कोरोना का प्रभाव कम होगा. हम ऐसी गंदगी में रहेंगे तो न कोरोना होगा न हम कहीं और जाएंगे.’’

मेरा दिमाग घूम गया, ‘‘ये क्या लौजिक है, किस ने कहा गंदगी में रहने से कोरोना

नहीं आएगा?’’

सुमि ने अत्यधिक विश्वास से कहा, ‘‘आप खुद देखो न, कोरोना के सब से ज्यादा मरीज कहां थे और कहां पर मरे?’’

मैं ने कहा, ‘‘स्पेन, इटली में…’’

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‘‘और?’’

‘‘यूएसए, फ्रांस, ब्रिटेन…’’

‘‘तो देखो ये सभी देश साफस्वच्छ देशों में आते हैं कि नहीं. जितने साफ सुथरे थे उतना कोरोना का प्रभाव बढ़ता गया, लोगों की सांसें घटती गई.

‘‘एशियाई देशों में देखो चीन को छोड़

कर, कोरोना के कितने मरीज हैं? हमारे यहां

भी देखो जो शहर साफसुथरे थे वहां कोरोना

छाती ताने घूमता फिर रहा है, पर जो देश

और शहर गंदगी को अहमियत देते रहे आज उतना ही कम कोरोना से जूझ रहे हैं. हमारे

यहां भी देखो, रोज ही तो लोकल न्यूज चैनल

पर दिखा रहे हैं कि शहर में कितनी गंदगी हो

रही है. अभी पूरा शहर खाली पड़ा है आराम

से सफाई हो सकती है पर कोई ध्यान दे रहा क्या?

‘‘नहीं न, वह इसलिए कोरोना गंदगी देख कर पलट जाए, तो आप घर की सफाई भी रहने दो, जितना हम गंदगी में रहेंगे हमारी इम्युनिटी पावर बढे़गी और कोरोना से लड़ने की शक्ति भी. बाद की बाद में देखेंगे. आप तो अभी बरतन मांजो बस.’’

मैं मुंह खोले बेवकूफ सा उस की बात सुनता रहा. समझ नहीं पा रहा था इस का क्या जवाब दूं? बेचारे हमारे नेता स्वच्छ भारत मिशन चला कर देश को साफसुथरा बनाने में जीजान से कोशिश कर रहे हैं. यहां इस का यह नया ही फंडा. क्या वाकई यह सही कह रही है? सफाई से कोरोना प्रभावशाली व शक्तिशाली हो जाता है? इस पर रिसर्च बाद में करूंगा, फिलहाल

तो सिंक के पास खड़ा सोच रहा हूं कि बरतन कैसे मांजू?

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Short Story: लॉकडाउन- बुआ के घर आखिर क्या हुआ अर्जुन के साथ?

”दिनेश, तुम बिलकुल चिंता मत करो, अर्जुन मेरा भी तो बेटा है. पिंकी, बबलू तो उस के पीछे ही लगे रहते हैं.घर में ही तो रह रहा है. यह मत सोचो कि लौकडाउन में उस का यहां रहना मेरे लिए कोई परेशानी की बात होगी. मेरे लिए तो जैसे पिंकी, बबलू हैं वैसे अर्जुन. उस से बात करवाऊं?”

किचन में बरतन धोते हुए अर्जुन के कानों में बुआ अंजू के शब्द पड़े तो उस का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. अब बुआ पापा से बात कराने के लिए उसे फोन न दे दें. नहीं करनी है उसे अपने पापा से बात.

पर बुआ ने फोन होल्ड पर रखा था. उसे पकड़ाते हुए बोलीं,” लो बेटा, अपने पापा से बात कर लो. उस के बाद थोड़ा आराम कर लेना.”

अर्जुन समझ गया कि यह सब पापा को सुनाने के लिए कहे गए हैं. उस ने हाथ धोपोंछ कर फोन बहुत बेदिली से पकड़ा. पापा उस का हालचाल ले रहे थे, उस ने बस हांहूं… में जवाब दे कर फोन रख दिया. वह बरतन धो कर चुपचाप बालकनी में रखी कुरसी पर बैठ गया.

आज मुंबई में लौकडाउन की वजह से फंसे उसे 2 महीने हो रहे थे. वह यहां वाशी में होस्टल में  रह कर इंजीनियरिंग के बाद एक कोर्स कर रहा था. अचानक कोरोना के प्रकोप के चलते होस्टल बंद हो गया और सारे स्टूडैंट्स अपनेअपने घर जाने लगे.

वह सहारनपुर से आया हुआ था. उस ने अपने पिता दिनेश को कहा कि वह भी घर आ रहा है. ट्रेन या कोई भी फ्लाइट मिलने पर वह फौरन आना चाहता है.

दिनेश ने कहा,” नहींनहीं… आने की कोई जरूरत नहीं है. यह तो कुछ दिनों की ही बात है. क्यों आओगे फिर जाओगे? वहीं अंजू बुआ के यहां चले जाओ.”

उस ने कहा था,” नहीं पापा, कुछ दिनों की बात नहीं है, मेरे सभी साथी फ्लाइट पकड़ कर घर चले गए हैं. मैं भी मुंबई से फौरन निकलना चाहता हूं.”

”नहीं, बुआ के पास चले जाओ. क्यों आनेजाने में फालतू खर्च करना. वह भो तो अपना घर है.”

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उस ने अपनी मम्मी रीना से बात की,”मम्मी, पापा मेरी बात क्यों नहीं समझ रहे? लौकडाउन लंबा चलेगा. यह 2 दिनों की बात नहीं है, मुझे घर आना है.”

”हां, बेटा… मैं भी यही चाहती हूं कि तुम अपने घर ही आ जाओ. ऐसे समय मेरी आंखों के आगे रहो. पर तुम्हारे पापा बिलकुल सुन ही नहीं रहे.”

”और आप भी जानती हैं बुआ को. बस मीठी बोली बोल कर सामने वाले को बेवकूफ समझती हैं. जब भी उन से मिलने गया, इतना दिखावटी है उन के यहां सब. मुझे नहीं रहना उन के यहां. मम्मी, कुछ करो न.”

और जिद्दी पति के सामने रीना की एक न चली. सब बंद होता गया और उसे अंजू के घर ही आना पड़ा. बात 1-2 दिनों की थी नहीं. यह किसी को भी नहीं पता था कि कब हालात सामान्य होंगें?

अंजू, उस के पति विनय और दोनों बच्चों ने उस का स्वागत दिल खोल कर किया. अर्जुन स्वभाव से सरल था इसलिए शांत सा रहता. कुछ दिन तो उसे कोई दिक्कत नहीं हुई, पर जब अंजू की कामवाली भी छुट्टी पर चली गई तो अब घर के कामधाम कौन संभाले? अब इस का बंटवारा होने लगा.

अंजू ने पूछा,” पहले यह बताओ कि बरतन कौन धोएगा?”

20 साल की पिंकी ने कहा,”मैं तो बिलकुल भी नहीं. मेरे हाथ खराब हो जाएंगे.”

15 साल के बबलू ने कहा,” मेरी तो औनलाइन क्लासेज हो सकती हैं और आप के सिंक भरभर के बरतन धोने में तो आप की कामवाली ही रो देती है. सौरी मम्मी, यह तो अपने बस का नहीं.”

विनय ने सफाई दी,” बरतन धोने में तो मेरी कमर भी चली जाएगी.”

अंजू ने सब को घूरते हुए कहा,” तुम सब रहने दो, बस बहाने बना रहे हो. मैं तुम लोगों से कहूंगी ही नहीं. मेरा अर्जुन धो लेगा. यही मेरा बेटा है. क्यों अर्जुन?”

अर्जुन ने इतना ही कहा,”ठीक है बुआ धो लूंगा.”

अंजू ने फिर पूछा,” कुकिंग में हैल्प कौन करेगा?”

सब चुप रहे. तब अंजू ने कहा,” मुझे तो तुम लोगों से उम्मीद ही नहीं. तुम लोगों पर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है. ठीक है, मैं देख लूंगी. पिंकी तुम्हें साफसफाई करनी पड़ेगी और बबलू , सूखे कपङे तुम ही तह करोगे. मेरा अर्जुन मेरी हैल्प करेगा. बस, मुझे तुम लोगों को कुछ कहना ही नहीं.”

*लौकडाउन बढ़ता जा रहा था और इस के साथ ही अर्जुन मन ही मन टूटता भी जा रहा था. बुआ कहने को तो बहुत प्यार से पेश आतीं, पर वह उन की चालाकियों को समझ रहा था. पिंकी, बबलू उस के आगेपीछे घूमते. विनय उस के साथ बातें करते रहते. देखने में सब सामान्य लगता पर अर्जुन भी कोई बच्चा तो था नहीं, बुआ की मीठीमीठी बातों का मतलब इतने लंबे समय में अच्छी तरह समझ चुका था. उसे अपने पापा के लिए मन में बहुत नाराजगी थी. बेटा के आगे पिता ने पैसा को ज्यादा महत्त्व दिया था, बजाय इस के कि वह घर पहुंच जाए. उन्हें अपनी इस बहन का स्वभाव भी अच्छी तरह पता था.

पिता आर्थिक रूप से समृद्ध थे. ऐसा नहीं कि उस का इस समय जाने का खर्च वे सहन न कर पाते, पर बेकार की उन की सनक के कारण आज वह बुआ का एक ऐसा नौकर बन कर रह गया है, जो उन के किसी भी काम को मना नहीं कर पाता है. अब तो न कहीं जा ही सकता.

घर  से निकले लगभग 2 महीने हो गए थे. बाहर से आया सामान वही सैनिटाइज करता है. कोई उस सामान को तभी हाथ लगाता है जब वह साफ कर देता है. उस की लाइफ की ही कोई वैल्यू नहीं है.

बुआ का कहना है कि वही अच्छी तरह से सैनिटाइज करता है बाकि सब तो लापरवाह हैं. बुआ के उस से काम करवाने के स्टाइल पर अब अर्जुन को मन ही मन हंसी भी आ जाती है.

अर्जुन को अपनी मम्मी पर भी बहुत गुस्सा आता है कि क्यों उन्होंने अपने मन की बात पापा के सामने नहीं रखी? क्यों वे अपनी बात पापा से मनवा नहीं पातीं?

मम्मी जब भी उस से फोन पर बात करती हैं,  बुआ आसपास ही रहती हैं, फिर वह व्हाट्सऐप पर उन्हें अपनी हालत बताता है और फिर बाद में चैट डिलीट कर देता है, क्योंकि पिंकी, बबलू , कभी भी उस का फोन छेड़ते रहते हैं.

कभीकभी उसे लगता है कि पिंकी, बबलू को भी कहीं उस का फोन चेक करते रहने की ट्रैनिंग तो नहीं दे डाली बुआ ने?

उस ने एक बार मना भी किया था कि मेरा फोन मत छेड़ो, पर उस के इतना कहते ही बच्चों ने शोर मचा दिया था कि भैया ने डांटा. उसे फौरन बात संभालनी पड़ी थी.

अर्जुन अपने से 3 साल छोटी बहन अंजलि के टच में लगातार रहता. वह एक बार मुंबई घूमने आई थी. उसे बुआ के घर 4-5 दिन रहना पड़ा था. वापस घर लौट कर उस ने सब के सामने कान पकडे थे. कहा था,”मैं तो कभी बुआ के घर नहीं जाउंगी. मीठा बोल कर काम में ही जोत कर रखती हैं. क्या बताऊं, बैठने ही नहीं देतीं. मेरी बेटी, मेरी बेटी… कह कर कितना काम करवा लिया. पापा, आप की बहन है या कोई मीठी छुरी?”

इस नाम पर वह खूब हंसा था. जब से अर्जुन यहां फंसा है अंजलि उस से बुआ के हाल मीठी छुरी कह कर ही लेती है. वह उसे सब बताता है कि अंजलि भाई के लिए दुखी है. कहां उसे आदत है घर के काम करने की? कामचोर नहीं है अर्जुन, पर इतना भी समझ रहा है कि पिता और बुआ के बीच पिस गया है वह. पिता से तो वह अब कोई बात ही नहीं कर रहा है.

कभी वह भी देर से उठता है और इस बीच दिनेश का फोन आ जाए तो बुआ उन से ऐसे बात करती हैं कि जैसे वह इतना आराम कर रहा है और वे यही चाहती हैं कि बस वह यों ही उन के घर रहे. वह तो बाद में उसे अंजलि से पता चलता है जब पापा बताते हैं कि देखो, क्या ठाठ से रख रही है मेरी बहन उसे. आजकल के बच्चे तो यों ही उस के पीछे पड़े रहते हैं,”और वह यह सुन कर कुढ़ कर रह जाता है.

एक दिन तो उसे शरारत सूझी. उस ने बबलू से कहा,”मेरा वीडियो बनाओगे जब मैं बरतन धोऊंगा?”

बबलू ने पूछा,” क्यों भैया?”

”अपने दोस्तों को दिखाऊंगा. वे भी भेजते हैं मुझे ऐसे वीडियो.”

बबलू ने यह बात मम्मी यानी उस की बुआ को बता दी. और फिर वीडियो तो बनना ही नहीं था.

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यह लौकडाउन उसे बहुत भारी पड़ा है. उसे इस बात का हमेशा अफसोस रहेगा कि उस के पिता ने उस की बात नहीं मानी. उस की जमा हुई फीस खतरे में थी, इसलिए पापा ने उसे न बुला कर अपने कुछ पैसे बचा लिए?क्यों वे किसी की बात नहीं सुनते? कितना दर्द दिया है उन्होंने उसे? शरीर से भी थक चुका है वह और मन से भी. पता नहीं कितने दिन और ऐसे…

अर्जुन की आंखों से आंसू बह कर गालों तक आ गए, मगर उस ने झट से आंसू पोंछ लिए क्योंकि बुआ आवाज जो लगा रही थीं.

Mother’s Day 2020: मां-सुख की खातिर गुड्डी ममता का गला क्यों घोटना चाहती हैं?

रात के 10 बजे थे. सुमनलता पत्रकारों के साथ मीटिंग में व्यस्त थीं. तभी फोन की घंटी बज उठी…

‘‘मम्मीजी, पिंकू केक काटने के लिए कब से आप का इंतजार कर रहा है.’’

बहू दीप्ति का फोन था.

‘‘दीप्ति, ऐसा करो…तुम पिंकू से मेरी बात करा दो.’’

‘‘जी अच्छा,’’ उधर से आवाज सुनाई दी.

‘‘हैलो,’’ स्वर को थोड़ा धीमा रखते हुए सुमनलता बोलीं, ‘‘पिंकू बेटे, मैं अभी यहां व्यस्त हूं. तुम्हारे सारे दोस्त तो आ गए होंगे. तुम केक काट लो. कल का पूरा दिन तुम्हारे नाम है…अच्छे बच्चे जिद नहीं करते. अच्छा, हैप्पी बर्थ डे, खूब खुश रहो,’’ अपने पोते को बहलाते हुए सुमनलता ने फोन रख दिया.

दोनों पत्रकार ध्यान से उन की बातें सुन रहे थे.

‘‘बड़ा कठिन दायित्व है आप का. यहां ‘मानसायन’ की सारी जिम्मेदारी संभालें तो घर छूटता है…’’

‘‘और घर संभालें तो आफिस,’’ अखिलेश की बात दूसरे पत्रकार रमेश ने पूरी की.

‘‘हां, पर आप लोग कहां मेरी परेशानियां समझ पा रहे हैं. चलिए, पहले चाय पीजिए…’’ सुमनलता ने हंस कर कहा था.

नौकरानी जमुना तब तक चाय की ट्रे रख गई थी.

‘‘अब तो आप लोग समझ गए होंगे कि कल रात को उन दोनों बुजुर्गों को क्यों मैं ने यहां वृद्धाश्रम में रहने से मना किया था. मैं ने उन से सिर्फ यही कहा था कि बाबा, यहां हौल में बीड़ी पीने की मनाही है, क्योंकि दूसरे कई वृद्ध अस्थमा के रोगी हैं, उन्हें परेशानी होती है. अगर आप को  इतनी ही तलब है तो बाहर जा कर पिएं. बस, इसी बात पर वे दोनों यहां से चल दिए और आप लोगों से पता नहीं क्या कहा कि आप के अखबार ने छाप दिया कि आधी रात को कड़कती सर्दी में 2 वृद्धों को ‘मानसायन’ से बाहर निकाल दिया गया.’’

‘‘नहीं, नहीं…अब हम आप की परेशानी समझ गए हैं,’’ अखिलेशजी यह कहते हुए उठ खडे़ हुए.

‘‘मैडम, अब आप भी घर जाइए, घर पर आप का इंतजार हो रहा है,’’ राकेश ने कहा.

सुमनलता उठ खड़ी हुईं और जमुना से बोलीं, ‘‘ये फाइलें अब मैं कल देखूंगी, इन्हें अलमारी में रखवा देना और हां, ड्राइवर से गाड़ी निकालने को कहना…’’

तभी चौकीदार ने दरवाजा खटखटाया था.

‘‘मम्मीजी, बाहर गेट पर कोई औरत आप से मिलने को खड़ी है…’’

‘‘जमुना, देख तो कौन है,’’ यह कहते हुए सुमनलता बाहर जाने को निकलीं.

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गेट पर कोई 24-25 साल की युवती खड़ी थी. मलिन कपडे़ और बिखरे बालों से उस की गरीबी झांक रही थी. उस के साथ एक ढाई साल की बच्ची थी, जिस का हाथ उस ने थाम रखा था और दूसरा छोटा बच्चा गोदी में था.

सुमनलता को देखते ही वह औरत रोती हुई बोली, ‘‘मम्मीजी, मैं गुड्डी हूं, गरीब और बेसहारा, मेरी खुद की रोटी का जुगाड़ नहीं तो बच्चों को क्या खिलाऊं. दया कर के आप इन दोनों बच्चों को अपने आश्रम में रख लो मम्मीजी, इतना रहम कर दो मुझ पर.’’

बच्चों को थामे ही गुड्डी, सुमनलता के पैर पकड़ने के लिए आगे बढ़ी थी तो यह कहते हुए सुमनलता ने उसे रोका, ‘‘अरे, क्या कर रही है, बच्चों को संभाल, गिर जाएंगे…’’

‘‘मम्मीजी, इन बच्चों का बाप तो चोरी के आरोप में जेल में है, घर में अब दानापानी का जुगाड़ नहीं, मैं अबला औरत…’’

उस की बात बीच में काटते हुए सुमनलता बोलीं, ‘‘कोई अबला नहीं हो तुम, काम कर सकती हो, मेहनत करो, बच्चोें को पालो…समझीं…’’ और सुमनलता बाहर जाने के लिए आगे बढ़ी थीं.

‘‘नहीं…नहीं, मम्मीजी, आप रहम कर देंगी तो कई जिंदगियां संवर जाएंगी, आप इन बच्चों को रख लो, एक ट्रक ड्राइवर मुझ से शादी करने को तैयार है, पर बच्चों को नहीं रखना चाहता.’’

‘‘कैसी मां है तू…अपने सुख की खातिर बच्चों को छोड़ रही है,’’ सुमनलता हैरान हो कर बोलीं.

‘‘नहीं, मम्मीजी, अपने सुख की खातिर नहीं, इन बच्चों के भविष्य की खातिर मैं इन्हें यहां छोड़ रही हूं. आप के पास पढ़लिख जाएंगे, नहीं तो अपने बाप की तरह चोरीचकारी करेंगे. मुझ अबला की अगर उस ड्राइवर से शादी हो गई तो मैं इज्जत के साथ किसी के घर में महफूज रहूंगी…मम्मीजी, आप तो खुद औरत हैं, औरत का दर्द जानती हैं…’’ इतना कह गुड्डी जोरजोर से रोने लगी थी.

‘‘क्यों नाटक किए जा रही है, जाने दे मम्मीजी को, देर हो रही है…’’ जमुना ने आगे बढ़ कर उसे फटकार लगाई.

‘‘ऐसा कर, बच्चों के साथ तू भी यहां रह ले. तुझे भी काम मिल जाएगा और बच्चे भी पल जाएंगे,’’ सुमनलता ने कहा.

‘‘मैं कहां आप लोगों पर बोझ बन कर रहूं, मम्मीजी. काम भी जानती नहीं और मुझ अकेली का क्या, कहीं भी दो रोटी का जुगाड़ हो जाएगा. अब आप तो इन बच्चों का भविष्य बना दो.’’

‘‘अच्छा, तो तू उस ट्रक ड्राइवर से शादी करने के लिए अपने बच्चों से पीछा छुड़ाना चाह रही है,’’ सुमनलता की आवाज तेज हो गई, ‘‘देख, या तो तू इन बच्चोें के साथ यहां पर रह, तुझे मैं नौकरी दे दूंगी या बच्चों को छोड़ जा पर शर्त यह है कि तू फिर कभी इन बच्चों से मिलने नहीं आएगी.’’

सुमनलता ने सोचा कि यह शर्त एक मां कभी नहीं मानेगी पर आशा के विपरीत गुड्डी बोली, ‘‘ठीक है, मम्मीजी, आप की शरण में हैं तो मुझे क्या फिक्र, आप ने तो मुझ पर एहसान कर दिया…’’

आंसू पोंछती हुई वह जमुना को दोनों बच्चे थमा कर तेजी से अंधेरे में विलीन हो गई थी.

‘‘अब मैं कैसे संभालूं इतने छोटे बच्चों को,’’ हैरान जमुना बोली.

गोदी का बच्चा तो अब जोरजोर से रोने लगा था और बच्ची कोने में सहमी खड़ी थी.

कुछ देर सोच में पड़ी रहीं सुमनलता फिर बोलीं, ‘‘देखो, ऐसा है, अंदर थोड़ा दूध होगा. छोटे बच्चे को दूध पिला कर पालने में सुला देना. बच्ची को भी कुछ खिलापिला देना. बाकी सुबह आ कर देखूंगी.’’

‘‘ठीक है, मम्मीजी,’’ कह कर जमुना बच्चों को ले कर अंदर चली गई. सुमनलता बाहर खड़ी गाड़ी में बैठ गईं. उन के मन में एक अजीब अंतर्द्वंद्व शुरू हो गया कि क्या ऐसी भी मां होती है जो जानबूझ कर दूध पीते बच्चों को छोड़ गई.

‘‘अरे, इतनी देर कैसे लग गई, पता है तुम्हारा इंतजार करतेकरते पिंकू सो भी गया,’’ कहते हुए पति सुबोध ने दरवाजा खोला था.

‘‘हां, पता है पर क्या करूं, कभीकभी काम ही ऐसा आ जाता है कि मजबूर हो जाती हूं.’’

तब तक बहू दीप्ति भी अंदर से उठ कर आ गई.

‘‘मां, खाना लगा दूं.’’

‘‘नहीं, तुम भी आराम करो, मैं कुछ थोड़ाबहुत खुद ही निकाल कर खा लूंगी.’’

ड्राइंगरूम में गुब्बारे, खिलौने सब बिखरे पडे़ थे. उन्हें देख कर सुमनलता का मन भर आया कि पोते ने उन का कितना इंतजार किया होगा.

सुमनलता ने थोड़ाबहुत खाया पर मन का अंतर्द्वंद्व अभी भी खत्म नहीं हुआ था, इसलिए उन्हें देर रात तक नींद नहीं आई थी.

सुमनलता बारबार गुड्डी के ही व्यवहार के बारे में सोच रही थीं जिस ने मन को झकझोर दिया था.

मां की ममता…मां का त्याग आदि कितने ही नाम से जानी जाती है मां…पर क्या यह सब झूठ है? क्या एक स्वार्थ की खातिर मां कहलाना भी छोड़ देती है मां…शायद….

सुबोध को तो सुबह ही कहीं जाना था सो उठते ही जाने की तैयारी में लग गए.

पिंकू अभी भी अपनी दादी से नाराज था. सुमनलता ने अपने हाथ से उसे मिठाई खिला कर प्रसन्न किया, फिर मनपसंद खिलौना दिलाने का वादा भी किया. पिंकू अपने जन्मदिन की पार्टी की बातें करता रहा था.

दोपहर 12 बजे वह आश्रम गईं, तो आते ही सारे कमरों का मुआयना शुरू कर दिया.

शिशु गृह में छोटे बच्चे थे, उन के लिए 2 आया नियुक्त थीं. एक दिन में रहती थी तो दूसरी रात में. पर कल रात तो जमुना भी रुकी थी. उस ने दोनों बच्चों को नहलाधुला कर साफ कपडे़ पहना दिए थे. छोटा पालने में सो रहा था और जमुना बच्ची के बालों में कंघी कर रही थी.

‘‘मम्मीजी, मैं ने इन दोनों बच्चों के नाम भी रख दिए हैं. इस छोटे बच्चे का नाम रघु और बच्ची का नाम राधा…हैं न दोनों प्यारे नाम,’’ जमुना ने अब तक अपना अपनत्व भी उन बच्चों पर उडे़ल दिया था.

सुमनलता ने अब बच्चों को ध्यान से देखा. सचमुच दोनों बच्चे गोरे और सुंदर थे. बच्ची की आंखें नीली और बाल भूरे थे.

अब तक दूसरे छोटे बच्चे भी मम्मीजीमम्मीजी कहते हुए सुमनलता के इर्दगिर्द जमा हो गए थे.

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सब बच्चों के लिए आज वह पिंकू के जन्मदिन की टाफियां लाई थीं, वही थमा दीं. फिर आगे जहां कुछ बडे़ बच्चे थे उन के कमरे में जा कर उन की पढ़ाईलिखाई व पुस्तकों की बाबत बात की.

इस तरह आश्रम में आते ही बस, कामों का अंबार लगना शुरू हो जाता था. कार्यों के प्रति सुमनलता के उत्साह और लगन के कारण ही आश्रम के काम सुचारु रूप से चल रहे थे.

3 माह बाद एक दिन चौकीदार ने आ कर खबर दी, ‘‘मम्मीजी, वह औरत जो उस रात बच्चों को छोड़ गई थी, आई है और आप से मिलना चाहती है.’’

‘‘कौन, वह गुड्डी? अब क्या करने आई है? ठीक है, भेज दो.’’

मेज की फाइलें एक ओर सरका कर सुमनलता ने अखबार उठाया.

‘‘मम्मीजी…’’ आवाज की तरफ नजर उठी तो दरवाजे पर खड़ी गुड्डी को देखते ही वह चौंक गईं. आज तो जैसे वह पहचान में ही नहीं आ रही है. 3 महीने में ही शरीर भर गया था, रंगरूप और निखर गया था. कानोें में लंबेलंबे चांदी के झुमके, शरीर पर काला चमकीला सूट, गले में बड़ी सी मोतियों की माला…होंठों पर गहरी लिपस्टिक लगाई थी. और किसी सस्ते परफ्यूम की महक भी वातावरण में फैल रही थी.

‘‘मम्मीजी, बच्चों को देखने आई हूं.’’

‘‘बच्चों को…’’ यह कहते हुए सुमनलता की त्योरियां चढ़ गईं, ‘‘मैं ने तुम से कहा तो था कि तुम अब बच्चों से कभी नहीं मिलोगी और तुम ने मान भी लिया था.’’

‘‘अरे, वाह…एक मां से आप यह कैसे कह सकती हैं कि वह बच्चों से नहीं मिले. मेरा हक है यह तो, बुलवाइए बच्चों को,’’ गुड्डी अकड़ कर बोली.

‘‘ठीक है, अधिकार है तो ले जाओ अपने बच्चों को. उन्हें यहां क्यों छोड़ गई थीं तुम,’’ सुमनलता को भी अब गुस्सा आ गया था.

‘‘हां, छोड़ रखा है क्योंकि आप का यह आश्रम है ही गरीब और निराश्रित बच्चों के लिए.’’

‘‘नहीं, यह तुम जैसों के बच्चों के लिए नहीं है, समझीं. अब या तो बच्चों को ले जाओ या वापस जाओ,’’ सुमनलता ने भन्ना कर कहा था.

‘‘अरे वाह, इतनी हेकड़ी, आप सीधे से मेरे बच्चों को दिखाइए, उन्हें देखे बिना मैं यहां से नहीं जाने वाली. चौकीदार, मेरे बच्चों को लाओ.’’

‘‘कहा न, बच्चे यहां नहीं आएंगे. चौकीदार, बाहर करो इसे,’’ सुमनलता का तेज स्वर सुन कर गुड्डी और भड़क गई.

‘‘अच्छा, तो आप मुझे धमकी दे रही हैं. देख लूंगी, अखबार में छपवा दूंगी कि आप ने मेरे बच्चे छीन लिए, क्या दादागीरी मचा रखी है, आश्रम बंद करा दूंगी.’’

चौकीदार ने गुड्डी को धमकाया और गेट के बाहर कर दिया.

सुमनलता का और खून खौल गया था. क्याक्या रूप बदल लेती हैं ये औरतें. उधर होहल्ला सुन कर जमुना भी आ गई थी.

‘‘मम्मीजी, आप को इस औरत को उसी दिन भगा देना था. आप ने इस के बच्चे रखे ही क्यों…अब कहीं अखबार में…’’

‘‘अरे, कुछ नहीं होगा, तुम लोग भी अपनाअपना काम करो.’’

सुमनलता ने जैसेतैसे बात खत्म की, पर उन का सिरदर्द शुरू हो गया था.

पिछली घटना को अभी महीना भर भी नहीं बीता होगा कि गुड्डी फिर आ गई. इस बार पहले की अपेक्षा कुछ शांत थी. चौकीदार से ही धीरे से पूछा था उस ने कि मम्मीजी के पास कौन है.

‘‘पापाजी आए हुए हैं,’’ चौकीदार ने दूर से ही सुबोध को देख कर कहा था.

गुड्डी कुछ देर तो चुप रही फिर कुछ अनुनय भरे स्वर में बोली, ‘‘चौकीदार, मुझे बच्चे देखने हैं.’’

‘‘कहा था कि तू मम्मीजी से बिना पूछे नहीं देख सकती बच्चे, फिर क्यों आ गई.’’

‘‘तुम मुझे मम्मीजी के पास ही ले चलो या जा कर उन से कह दो कि गुड्डी आई है…’’

कुछ सोच कर चौकीदार ने सुमनलता के पास जा कर धीरे से कहा, ‘‘मम्मीजी, गुड्डी फिर आ गई है. कह रही है कि बच्चे देखने हैं.’’

‘‘तुम ने उसे गेट के अंदर आने क्यों दिया…’’ सुमनलता ने तेज स्वर में कहा.

‘‘क्या हुआ? कौन है?’’ सुबोध भी चौंक  कर बोले.

‘‘अरे, एक पागल औरत है. पहले अपने बच्चे यहां छोड़ गई, अब कहती है कि बच्चों को दिखाओ मुझे.’’

‘‘तो दिखा दो, हर्ज क्या है…’’

‘‘नहीं…’’ सुमनलता ने दृढ़ स्वर में कहा फिर चौकीदार से बोलीं, ‘‘उसे बाहर कर दो.’’

सुबोध फिर चुप रह गए थे.

इधर, आश्रम में रहने वाली कुछ युवतियों के लिए एक सामाजिक संस्था कार्य कर रही थी, उसी के अधिकारी आए हुए थे. 3 युवतियों का विवाह संबंध तय हुआ और एक सादे समारोह में विवाह सम्पन्न भी हो गया.

सुमनलता को फिर किसी कार्य के सिलसिले में डेढ़ माह के लिए बाहर जाना पड़ गया था.

लौटीं तो उस दिन सुबोध ही उन्हें छोड़ने आश्रम तक आए हुए थे. अंदर आते ही चौकीदार ने खबर दी.

‘‘मम्मीजी, पिछले 3 दिनों से गुड्डी रोज यहां आ रही है कि बच्चे देखने हैं. आज तो अंदर घुस कर सुबह से ही धरना दिए बैठी है…कि बच्चे देख कर ही जाऊंगी.’’

‘‘अरे, तो तुम लोग हो किसलिए, आने क्यों दिया उसे अंदर,’’ सुमनलता की तेज आवाज सुन कर सुबोध भी पीछेपीछे आए.

बाहर बरामदे में गुड्डी बैठी थी. सुमनलता को देखते ही बोली, ‘‘मम्मीजी, मुझे अपने बच्चे देखने हैं.’’

उस की आवाज को अनसुना करते हुए सुमन तेजी से शिशुगृह में चली गई थीं.

रघु खिलौने से खेल रहा था, राधा एक किताब देख रही थी. सुमनलता ने दोनों बच्चों को दुलराया.

‘‘मम्मीजी, आज तो आप बच्चों को उसे दिखा ही दो,’’ कहते हुए जमुना और चौकीदार भी अंदर आ गए थे, ‘‘ताकि उस का भी मन शांत हो. हम ने उस से कह दिया था कि जब मम्मीजी आएं तब उन से प्रार्थना करना…’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं, बाहर करो उसे,’’ सुमनलता बोलीं.

सहम कर चौकीदार बाहर चला गया और पीछेपीछे जमुना भी. बाहर से गुड्डी के रोने और चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं. चौकीदार उसे डपट कर फाटक बंद करने में लगा था.

‘‘सुम्मी, बच्चों को दिखा दो न, दिखाने भर को ही तो कह रही है, फिर वह भी एक मां है और एक मां की ममता को तुम से अधिक कौन समझ सकता है…’’

सुबोध कुछ और कहते कि सुमनलता ने ही बात काट दी थी.

‘‘नहीं, उस औरत को बच्चे बिलकुल नहीं दिखाने हैं.’’

आज पहली बार सुबोध ने सुमनलता का इतना कड़ा रुख देखा था. फिर जब सुमनलता की भरी आंखें और उन्हें धीरे से रूमाल निकालते देखा तो सुबोध को और भी विस्मय हुआ.

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‘‘अच्छा चलूं, मैं तो बस, तुम्हें छोड़ने ही आया था,’’ कहते हुए सुबोध चले गए.

सुमनलता उसी तरह कुछ देर सोच में डूबी रहीं फिर मुड़ीं और दूसरे कमरों का मुआयना करने चल दीं.

2 दिन बाद एक दंपती किसी बच्चे को गोद लेने आए थे. उन्हें शिशुगृह में घुमाया जा रहा था. सुमन दूसरे कमरे में एक बीमार महिला का हाल पूछ रही थीं.

तभी गुड्डी एकदम बदहवास सी बरामदे में आई. आज बाहर चौकीदार नहीं था और फाटक खुला था तो सीधी अंदर ही आ गई. जमुना को वहां खड़ा देख कर गिड़गिड़ाते स्वर में बोली थी, ‘‘बाई, मुझे बच्चे देखने हैं…’’

उस की हालत देख कर जमुना को भी कुछ दया आ गई. वह धीरे से बोली, ‘‘देख, अभी मम्मीजी अंदर हैं, तू उस खिड़की के पास खड़ी हो कर बाहर से ही अपने बच्चों को देख ले. बिटिया तो स्लेट पर कुछ लिख रही है और बेटा पालने में सो रहा है.’’

‘‘पर, वहां ये लोग कौन हैं जो मेरे बच्चे के पालने के पास आ कर खडे़ हो गए हैं और कुछ कह रहे हैं?’’

जमुना ने अंदर झांक कर कहा, ‘‘ये बच्चे को गोद लेने आए हैं. शायद तेरा बेटा पसंद आ गया है इन्हें तभी तो उसे उठा रही है वह महिला.’’

‘‘क्या?’’ गुड्डी तो जैसे चीख पड़ी थी, ‘‘मेरा बच्चा…नहीं मैं अपना बेटा किसी को नहीं दूंगी,’’ रोती हुई पागल सी वह जमुना को पीछे धकेलती सीधे अंदर कमरे में घुस गई थी.

सभी अवाक् थे. होहल्ला सुन कर सुमनलता भी उधर आ गईं कि हुआ क्या है.

उधर गुड्डी जोरजोर से चिल्ला रही थी कि यह मेरा बेटा है…मैं इसे किसी को नहीं दूंगी.

झपट कर गुड्डी ने बच्चे को पालने से उठा लिया था. बच्चा रो रहा था. बच्ची भी पास सहमी सी खड़ी थी. गुड्डी ने उसे भी और पास खींच लिया.

‘‘मेरे बच्चे कहीं नहीं जाएंगे. मैं पालूंगी इन्हें…मैं…मैं मां हूं इन की.’’

‘‘मम्मीजी…’’ सुमनलता को देख कर जमुना डर गई.

‘‘कोई बात नहीं, बच्चे दे दो इसे,’’ सुमनलता ने धीरे से कहा था और उन की आंखें नम हो आई थीं, गला भी कुछ भर्रा गया था.

जमुना चकित थी, एक मां ने शायद आज एक दूसरी मां की सोई हुई ममता को जगा दिया था.

Romantic Story In Hindi: प्रेम लहर की मौत- भाग 4

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लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह 

असीम ने तो स्माइल की, पर मेरी आंखों से आंसू टपक पड़े. आंसू गिरते देख उस ने कहा, ‘‘प्लीज अनु, रोना मत.’’

  ‘‘नहीं, मैं बिलकुल नहीं रोऊंगी.’’ मैं ने कहा.

  ‘‘तुम्हें तो पता है अनु, तुम मेरे सामने बिलकुल झूठ नहीं बोल सकती, तो फिर क्यों बेकार की कोशिश कर रही हो. मैं तुम्हें अच्छी तरह से जानता हूं अनु. मुझे पता है कि तुम रोओगी, खूब रोओगी और मुझे यह हर्ट करेगा. जबकि मैं नहीं चाहता कि तुम मेरी वजह से रोओ, जी जलाओ.’’

तभी निकी का फोन आ गया कि ट्रेन के आने का एनाउंसमेंट हो गया है. हम दोनों एकदूसरे को देखते रहे. थोड़ी देर तक हमारे बीच मौन छाया रहा. अचानक असीम ने पूछा, ‘‘अनु, तुम कम से कम यह तो बता दो कि तुम जा कहां रही हो?’’

  ‘‘नहीं, अब मैं कुछ नहीं बताऊंगी. मेरा यह मोबाइल नंबर भी कल सुबह से बंद हो जाएगा. जहां भी जाऊंगी, नया नंबर ले लूंगी. अब अंत में सिर्फ इतना ही कहूंगी कि तुम खुश रहना, सुखी रहना और प्रियम को भी खुश और सुखी रखना, उसे खूब प्रेम करना और हमारी मुलाकात को एक सुंदर सपना समझ कर भूल जाना. इस के बाद हम स्टेशन पर आ गए. हमारे स्टेशन आतेआते टे्रन आ गई थी. उस के बाद जो हुआ, उसे आप ने देखा ही है.’’ कह कर अनु चुप हो गई.

मैं मन ही मन अनु के प्रेम, उस की संवेदनशीलता, उस की समर्पण भावना को सलाम करते हुए सोच रहा था कि काश! इसी तरह प्रेम करने वाली सुंदर लड़की मुझे भी मिल जाती तो मेरे लिए स्वर्ग इसी धरती पर उतर आता. सच बात तो यह थी कि अनु से मुझे प्यार हो गया था. मन कर रहा था, क्यों न मैं उस से अपने दिल की बात कह कर देखूं.

मैं मन की बात कहने का विचार कर ही रहा था कि उस ने एक ऐसी बात कह दी, जिस से मेरे मन में जो प्रेम पैदा हुआ था, उस की अकाल मौत हो गई थी. एक तरह से मेरा प्रेम पैदा होते ही मर गया था. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं यह नौकरी छोड़ने की जो बात कर रही हूं, यह सब नाटक है. मैं ने न नौकरी छोड़ी है और न यह शहर छोड़ कर जा रही हूं.’’

  ‘‘क्या?’’ मैं एकदम से चौंका, ‘‘आप ने यह नाटक क्यों किया, आप ने इतना बड़ा झूठ क्यों बोला?’’

  ‘‘क्योंकि असीम और निकी ने सलाह कर के प्रियम नाम के झूठे करेक्टर को खड़ा कर के मेरे साथ नाटक किया, शायद उन्हें पता नहीं कि मैं उन दोनों से बड़ी नाटकबाज हूं.

  ‘‘अगर असीम मेरे बारे में सब जानता है, तो मैं भी बेवकूफ नहीं हूं कि उस के बारे में सब कुछ न जानती. मैं उस से प्रेम करने लगी थी तो उस के बारे में एकएक चीज का पता लगा कर ही प्रेम किया था. जिस दिन निकी ने मेरे सामने प्रियम का नाम ले कर मुझे चिढ़ाने और परेशान करने के लिए नाटक शुरू किया, उसी के अगले दिन ही मैं ने सच्चाई का पता लगा लिया था, क्योंकि मुझे तुरंत शक हो गया था.’’

  ‘‘कैसे?’’ मैं ने पूछा.

क्योंकि अगर प्रियम से असीम का प्यार चल रहा होता तो निकी इतने दिनों तक इंतजर न करती. क्योंकि उसे मेरे और असीम के प्रेम संबंध की एकएक बात पता थी. अगर असीम के जीवन में कोई प्रियम होती तो वह मुझे पहले ही बता कर असीम के साथ इतना आगे न बढ़ने देती.

अगले दिन मुझे इस का सबूत भी मिल गया था. निकी सुबह नहा रही थी तो उस का मोबाइल मेरे हाथ लग गया, उस में कुछ मैसेज थे, जिस से मेरा शक यकीन में बदल गया. बस, फिर मैं ने भी नाटक शुरू कर दिया.

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मैं ने ऐसा नाटक किया कि उन्हें लगा मैं सचमुच बहुत दुखी हूं. मुझे तो सच्चाई पता थी. पर उन्हें पता नहीं था कि मैं भी नाटक कर रही हूं. इस खेल में मैं उन से ज्यादा होशियार निकली. क्योंकि वे दोनों मेरे आते वक्त तक सच्चाई उजागर नहीं कर पाए. अब उन्हें डर सता रहा है कि सच्चाई उजागर करने पर मैं उन पर खफा हो जाऊंगी?’

मैं ने अनु को बीच में रोक कर पूछा, ‘‘इस का मतलब आप ने नौकरी छोड़ी नहीं है, सिर्फ उन लोगों से कहा कि नौकरी छोड़ कर जा रही हो.’’

  ‘‘पागल हूं, जो नौकरी छोड़ देती. केवल एक सप्ताह की छुट्टी ले कर घर जा रही हूं. घर पहुंच कर फोन का सिम निकाल दूंगी. औफिस वालों को दूसरा नंबर दे आई हूं्. असीम मुझे परेशान करना चाहता था. बदले में मैं ने उसे सबक सिखाया. मैं उसे इतना प्यार करती हूं कि उस के बिना जी नहीं सकती. अगर सचमुच में प्रियम होती तो मैं आप को अपनी यह कहानी बताने के लिए न होती. किसी मानसिक रोगी अस्पताल में अपना इलाज करा रही होती.’’

  ‘‘सलाम है आप के प्रेम को, जब लौट कर  आओगी तो…’’

मेरी बात बीच में ही काट कर अनु ने कहा, ‘‘यही तो सरप्राइज होगा असीम के लिए.’’

अनु के बारे में सोचते हुए कब आंख लग गई, मुझे पता ही नहीं चला. मुझे असीम से ईर्ष्या हो रही थी. ट्रेन स्टेशन पर रुकी तो मेरी आंख खुली. पता चला ट्रेन कानपुर में खड़ी थी. अनु खड़ी हुई, अपना बैग और पर्स लिया और उतर कर निकास गेट की ओर बढ़ गई. वह जैसेजैसे दूर जा रही थी, मैं यही सोच रहा था, काश! सचमुच प्रियम होती, तो आज मेरे प्यार की अकाल बाल मौत न होती.

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लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह 

  ‘‘ऐसा क्यों?’’

  ‘‘बिकाज…बिकाज… आई लव यू. अनु एंड आई नो दैट यू आलसो लव मी. इसी बात से डर लग रहा था कि प्रियम के बारे में पता चलने पर कहीं तुम्हें खो न दूं.’’

असीम की बात सुन कर मैं फफकफफक कर रो पड़ी. रोते हुए मैं ने कहा, ‘‘असीम तुम्हें पता है कि प्रियम तुम्हें कितना चाहती है और तुम भी उसे कितना चाहते हो. मात्र 4 महीने के अपने इस संबंध में तुम अपने और प्रियम के 4 सालों के प्यार को कैसे भुला सकोगे? और हमारे बीच संबंध ही क्या है?

  ‘‘असीम, आज भी तुम मात्र प्रियम को ही प्यार करते हो. जितना पहले करते थे, उतना ही, शायद उस से भी ज्यादा. वह अभी तुम्हारे पास यानी तुम्हारे साथ नहीं है. तुम उसे खूब मिस कर रहे हो.

  ‘‘ऐसे में मेरे प्रेम की वजह से तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम मुझे प्रेम करते हो. जबकि सच्चाई यह है कि तुम ने मुझे कभी प्रेम किया ही नहीं. तुम मुझ में प्रियम को खोजते हो. मेरा तुम्हारा केयर करना, तुम्हारी छोटीछोटी बातों का ध्यान रखना, तुम्हें लगता है तुम्हारे लिए यह सब प्रियम कर रही है. तुम्हें ऐसा लगा, इसीलिए तुम मेरे प्रति आकर्षित हुए. बट इट्स नाट लव. असीम, यू नाट लव मी.’’

  ‘‘पर अनु तुम…’’

  ‘‘मैं… यस औफकोर्स आई लव यू. आई लव यू सो मच.’’

  ‘‘तो क्या यह काफी नहीं है.’’

  ‘‘नहीं असीम, यह काफी नहीं है. प्रियम और तुम एकदूसरे को बहुत प्यार करते हो. हां, यह बात भी सच है कि मैं भी तुम्हें बहुत प्यार करती हूं. पर मैं इतनी स्वार्थी नहीं हूं कि अपने प्यार के लिए प्रियम के साथ धोखा करूं या धोखा होने दूं. नहीं असीम, मैं अपने सपनों का महल प्रियम की हाय पर नहीं खड़ा करना चाहती. इसीलिए मैं ने तय किया है कि मैं यहां से दूर चली जाऊंगी, तुम से बहुत ही दूर.’’

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  ‘‘अरे, तुम कहां और क्यों जाओगी? जरूरत ही क्या है यहां से कहीं जाने की?’’

  ‘‘क्यों जाऊंगी, कहां जाऊंगी, यह तय नहीं है. पर जाऊंगी जरूर, यह तय है.’’

  ‘‘प्लीज अनु, डोंट डू दिस यू मी. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’

  ‘‘असीम, मैं भी तुम से यही कहती हूं, डोंट डू दिस टू प्रियम, मात्र 4 महीने के प्रेम के लिए तुम 4 साल के प्रियम के प्रेम को कैसे भूल सकते हो. उस के प्रेम की कुर्बानी मत लो असीम.’’

  ‘‘अनु, तुम ने जो निर्णय लिया है, बहुत सही लिया है.’’ निकी ने कहा.

मैं निकी के गले लग कर खूब रोई. उस ने भी मुझे रोने दिया. रोने से दिल हलका हो गया. उस रात मैं ने कुछ नहीं खाया. निकी ने मुझे बहुत समझाया, पर कौर गले के नीचे नहीं उतरा. मैं सो गई. सुबह उठी तो काफी ठीक थी. फ्रैश हो कर मैं औफिस गई.

मैं ने व्यक्तिगत कारणों से नौकरी छोड़ने की बात लिख कर एक महीने का नोटिस दे कर नौकरी से इस्तीफा दे दिया. बौस और सहकर्मियों ने पूछा कि बात क्या है, बताओ तो सही, सब मिल कर उस का हल निकालेंगे, पर मैं अपने निर्णय पर अडिग रही.

उस के बाद मैं कैसे जी रही हूं, मैं ही जानती हूं. जीवन जैसे यंत्रवत हो गया है. हंसना बोलना तो जैसे भूल ही गई हूं. कलेजा अंदर ही अंदर फटता है. मेरी व्यथा या तो मैं जानती हूं या फिर निकी, हां कुछ हद तक असीम भी. किसी तरह 20 दिन बीत गए. इस बीच मैं ने न तो असीम को फोन किया और न मैसेज.

उस के फोन भी आ रहे थे अैर मैसेज भी. पर मैं न फोन उठा रही थी और न मैसेज के जवाब दे रही थी. मैं जानती थी कि उस की भी मेरी जैसी ही व्यथा है. इसलिए मैं ने निकी से कहा कि वह उस के कांटैक्ट में रहे. मेरे साथ तो निकी थी. लेकिन वह तो एकदम अकेला था.

एक दिन उस ने निकी से बहुत रिक्वेस्ट की तो निकी ने मुझ से कहा कि असीम से बात कर लो. मैं ने बात की तो असीम ने कहा, ‘‘अनु, मैं ने जब गंभीरता से विचार किया तो तुम्हारी बात सच निकली, सचमुच मैं आज भी प्रियम को उतना ही प्यारर करता हूं. उस की कमी मुझे खूब खलती है. पर अनु तुम…? हमने इतना समय साथ बिताया, तुम मुझ से काफी जुड़ गई थीं, मुझे तुम्हारी बहुत चिंता हो रही है.’’

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  ‘‘इट्स ओके असीम, आई एम फाइन. तुम मेरी जरा भी चिंता मत करो. मैं इतनी डरपोक या कमजोर नहीं कि खुद को किसी तरह का नुकसान पहुंचाऊं या आत्महत्या जैसी कायराना हरकत के बारे में सोचूं. असीम, मुझे मरना नहीं जीना है, तुम्हारे प्रेम में. और मैं जीऊंगी भी. मैं जानती हूं कि ऐसी स्थिति में मरना बहुत आसान है, जीना बहुत मुश्किल. पर तुम्हारी चाहत और प्रेम को मैं अपने हृदय में संभाल कर जीऊंगी. मैं भले ही तुम्हारा प्रेम नहीं पा सकी, पर तुम्हें, मात्र तुम्हें प्रेम करती हूं और इसी प्रेम के साथ जी सकती हूं.’’ कह कर मैं ने फोन काट दिया.

नोटिस के दौरान मैं ने अपने लिए दूसरे शहर में नौकरी तलाश ली थी. रहने के लिए जगह की भी व्यवस्था कर ली थी. दो दिन पहले असीम का फोन फिर आया. उस ने मुझ से मिलने की इच्छा प्रकट की. मैं मना नहीं कर सकी. मैं ने कहा कि हम स्टेशन पर मिलेंगे. उस की ट्रेन साढ़े 10 बजे आती थी और मेरी टे्रन साढ़े 12 बजे की थी. हमारे पास 2 घंटे का समय था. अंतिम मुलाकात के लिए इतना समय पर्याप्त था.

अनु ये बातें कर रही थी, तभी न जाने क्यों मुझे लगा कि मैं उस के प्रेम, उस की संवेदनशीलता की ओर आकर्षित होने लगा हूं. शायद उसे प्रेम करने लगा हूं. पर उस समय चुपचाप उस की बातें सुनने के अलावा मैं कुछ नहीं कर सकता था. मेरा मूक श्रोता बने रहना ही उचित था. मैं सिर्फ उस की बातें सुनता रहा. उस ने अपनी और असीम की अंतिम मुलाकात की बातें बतानी शुरू कीं.

असीम की ट्रेन 15 मिनट लेट थी. इसलिए उस की ट्रेन पौने 11 बजे आई. मैं अपना सामान ले कर निकी के साथ 10 बजे ही स्टेशन पर पहुंच गई थी. असीम आया, मैं ने उस से हाथ मिलाया. हम स्टेशन के सामने वाले रेस्टोरेंट में कोने की मेज पर आमनेसामने बैठे. सुबह का समय था इसलिए ज्यादा चहलपहल नहीं थी.

हम दोनों की स्थिति ऐसी थी कि दोनों एक शब्द भी नहीं बोल पा रहे थे. फिर भी बात शुरू हुई. उस ने मेरा हाथ हलके से हथेली में ले कर कहा, ‘‘अनु, आई एम वेरी सौरी, मेरी वजह से तुम्हें यह तकलीफ सहन करनी पड़ रही है.’’

  ‘‘प्लीज असीम, डू नाट से सौरी. मेरे नसीब में तुम्हारा बस इतना ही प्यार था. और हां, हम ने साथ बिताए समय के दौरान अगर कभी तुम्हें मेरे लिए, मात्र मेरे लिए सहज भी प्रेम महसूस हुआ हो तो उसी प्रेम की कसम, तुम कभी भी मेरे लिए गिल्टी कांसेस फील मत करना. प्रियम को खूब प्रेम करना. प्रियम को खुश होते देख, समझना मैं खुश हो रही हूं. मुझे पूरा विश्वास है कि तुम मेरी कसम नहीं तोड़ोगे. अब एक बढि़या सी स्माइल कर दो.’’

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Romantic Story In Hindi: प्रेम लहर की मौत- भाग 2

पिछला भाग पढ़ने के लिए- प्रेम लहर की मौत: भाग-1

लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह 

  ‘‘शायद जरूरत ही महसूस नहीं हुई. या फिर दोनों में से कोई हिम्मत नहीं कर सका. हम दोनों के इस प्यार की मूक साक्षी थी निकी. पर पता नहीं क्यों उस ने भी हमारे प्रेम को एकदूसरे के सामने व्यक्त नहीं किया.’’

  ‘‘तुम और असीम, कभी मिले नहीं?’’ मैं ने अनु को रोक कर पूछा.

  ‘‘नहीं, कभी जरूरत ही महसूस नहीं हुई.’’ उस ने कहा.

  ‘‘तुम लोगों की मिलने की इच्छा भी नहीं हुई? एकदूसरे को देखने का भी मन नहीं हुआ?’’ मैं ने पूछा.

  ‘‘क्यों नहीं हुआ? इच्छा तो होती ही है, लेकिन आधुनिक टेक्नोलौजी थी न जोड़े रखने के लिए हम हर रविवार को वीडियो चैट करते थे. यह मिलने जैसा ही था. आज हमारी पहली और अंतिम रूबरू मुलाकात थी.’’ कह कर वह सहज हंसी हंस पड़ी.

  ‘‘जब तुम दोनों के बीच इतनी अच्छी ट्यूनिंग थी तो फिर इस में तुम दोनों के अलग होने की बात कहां से आ गई?’’ मैं ने पूछा.

उस ने अपनी बात आगे बढ़ाई.

हम दोनों का एकदूसरे के प्रति प्रेम चरम पर था. अब तक असीम मुझे मुझ से ज्यादा जाननेपहचानने और समझने लगा था. मेरी छोटी से छोटी तकलीफ को बिना बताए ही जान जाता था. कई बार छोटीछोटी बात में मेरा मूड औफ हो जाता था. पर मुझे मनाने में उस का जवाब नहीं था. मुझे हंसा कर ही रहता था. मैं कभी भी उस से झूठ नहीं बोल पाती थी. वह तुरंत पकड़ लेता था कि मैं कुछ छुपा रही हूं. सच्चाई जान कर ही रहता था.

उस का ध्यान रखना, उस की देखभाल करना मुझे अच्छा लगता था. उस की मीटिंग हो या उसे कहीं बाहर जाना हो, मैं उसे सभी चीजों की याद दिलाती. उस के खाने, सोने और उठने, लगभग सभी बातों का मैं खयाल रखती थी.

सब ठीक चल रहा था कि एक दिन निकी ने मुझ से कहा, ‘‘अनु, असीम और तुम पिछले 4 महीने से एकदूसरे को जानते हो और जहां तक मैं समझा हूं 3 महीने से तुम दोनों एकदूसरे को प्रेम करते हो. इस बीच असीम ने तुम से कभी प्रियम के बारे में कोई बात की?’’

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  ‘‘प्रियम…? प्रियम कौन है?’’

  ‘‘सौरी टू से यू बट… मुझे लगा कि तुम्हें प्रियम के बारे में पता नहीं है. अगर पता होता तो तुम इस संबंध में इतना आगे न बढ़ती.’’ निकी ने कहा.

  ‘‘यार निकी प्लीज, अब तू इस तरह पहेली मत बुझा, जो भी बात है सीधेसीधे बता दे. कौन है यह प्रियम और असीम से उस का क्या संबंध है?’’ मैं ने झल्ला कर कहा.

  ‘‘अनु, असीम और प्रियम ने एक साथ एमबीए किया था और पिछले 4 सालों से दोनों एक साथ प्रणयफाग खेल रहे हैं. 6 महीने पहले प्रियम फ्यूचर स्टडीज के लिए यूएसए चली गई है.’’

  ‘‘निकी इतने दिनों तक तुम ने मुझ से यह बात छुपाए क्यों रखी, तुम्हें पहले ही बता देना चाहिए था.’’

  ‘‘अनु, मैं सोच रही थी कि यह बात तुम से असीम खुद कहे तो ज्यादा अच्छा होगा. पर जब मुझे लगा कि शायद असीम भी तुम्हें प्यार करने लगा है तो अब वह तुम से यह बात नहीं कह सकता. तब मुझे यह बात कहनी पड़ी. अनु असीम प्रियम को बहुत प्यार करता है, इसलिए अब तुम्हें इस संबंध में और अधिक गहरे जाने की जरूरत नहीं है. क्योंकि बाद में जब सहन करने की बात आएगी तो वह तुम्हारे हिस्से में ही आएगी.’’ निकी ने कहा.

  ‘‘सहन करने वाली बात मेरे ही हिस्से में क्यों आएगी?’’ निकी की बात मेरी समझ में नहीं आई, इसलिए मैं ने पूछा.

  ‘‘अगर प्रियम को अंधेरे में रख कर यानी उसे धोखा दे कर असीम तुम से शादी कर लेता है और भविष्य में कभी तुम्हें प्रियम और असीम के पुराने संबंध के बारे में पता चलता तो मन में अपराध बोध की जो भावना पैदा होगी वह तुम्हें.

  ‘‘अनु, तुम मेरी बात पर गहराई से विचार करो. उस के बाद खूब सोचसमझ कर आगे बढ़ो. मेरे कहने का मतलब यह है कि इस मामले में पूरी परिपक्वता दिखा कर ही निर्णय लो. मुझे तुम पर पूरा विश्वास है कि तुम जो भी निर्णय लोगी, सोचसमझ कर ही लोगी. तुम्हारा जो भी निर्णय होगा, उस में मैं तुम्हारे साथ हूं.’’ निकी ने कहा.

निकी की बात सुन कर मेरे मन में भूकंप सा आ गया था. उस की इन बातों से मेरे दिल पर क्या बीती, यह सिर्फ मैं ही जानती हूं. मैं पूरे दिन रोती रही. मैं ने न तो असीम को फोन किया और न ही मैसेज भेजा. उस के मैसेज के जवाब भी नहीं दिए. सच बात तो यह थी कि मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. मैं बिजी होऊंगी. यह सोच कर असीम ने भी कोई रिएक्ट नहीं किया.

पर शाम को जब उस ने फोन किया तो मेरी बातों से ही उसे लग गया कि कुछ गड़बड़ है. तब उस ने पूछा, ‘‘अनु बात क्या है, आज तुम्हारी आवाज अलग क्यों लग रही है? ऐसा लगता है आज तुम खूब रोई हो, शायद अभी भी रो रही हो?’’

  ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ मैं ने कहा.

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पर असीम कहां मानने वाला था. उस ने कहा, ‘‘अनु, तुम्हें तो पता है कि तुम मेरे सामने झूठ नहीं बोल पातीं. इसलिए बेकार की कोशिश मत करो. सचसच बताओ, क्या बात है? तुम्हें मेरी कसम, बताओ तुम डिस्टर्ब क्यों हो? औफिस में कुछ हुआ है? किसी ने कुछ कहा है? प्लीज अनु, आइ एम वरीड यार…’’

  ‘‘मैं आज औफिस गई ही नहीं थी.’’ मैं ने कहा.

  ‘‘ क्यों? जब तुम औफिस नहीं गई थीं तो फोन क्यों नहीं किया, मैसेज करने की कौन कहे, जवाब भी नहीं दिया? क्यों अनु?’’ असीम को मेरी बात पर आश्चर्य हुआ.

  ‘‘असीम, यह प्रियम कौन है?’’ मैं ने असीम से सीधे पूछा.

मेरे इस सवाल पर पहले वह थोड़ा हिचकिचाया, फिर बोला, ‘‘…तो यह बात है. आखिर निकी ने बता ही दिया.’’

  ‘‘हां, उसी ने बताया है मुझे.’’ मैं ने बेरुखी से कहा, ‘‘पिछले 4 महीने में तुम ने कभी भी नहीं बताया, तुम्हें कभी नहीं लगा कि तुम्हें प्रियम के बारे में मुझे बताना चाहिए?’’

  ‘‘लगा था मुझे, कई बार लगा था, कई बार सोचा भी कि तुम से प्रियम के बारे में बता दूं. पर जुबान ही नहीं खुलती थी.’’

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बहार: भाग 3- क्या पति की शराब की लत छुड़ाने में कामयाब हो पाई संगीता

लेखिका- रिचा बर्नवाल

पार्क में आरती ने संगीता को कुछ ऐक्सरसाइजें सिखाईं. लौटने के समय संगीता बहुत खुश थी.

‘‘मम्मी, शादी के बाद से मेरा वजन लगातार बढ़ता जा रहा है. क्या व्यायाम से मैं पतली हो जाऊंगी,’’ आंखों में आशा की चमक ला कर संगीता ने अपनी सास से पूछा.

‘‘इन के अलावा वजन कम करने का और क्या तरीका होगा? पर एक समस्या है,’’ आरती की आंखों में उलझन  के भाव पैदा हुए.

‘‘कैसी समस्या?’’

‘‘सुबह पार्क में आने की.’’

‘‘मैं जल्दी उठ जाया करूंगी.’’

अचानक आरती ताली बजाती हुई बोलीं, ‘‘मैं तुम्हारे ससुर को जोश दिलाती हूं कि वे

रवि को नाश्ते की चीजें बनाना सिखाएं. उन दोनों को रसोई में उलझ कर हम पार्क चली आया करेंगी.’’

‘‘बिलकुल ऐसा ही करेंगे, मम्मी. आम के आम और गुठलियों के दाम. मेरा वजन भी कम होने लगेगा और नाश्ता भी बनाबनाया मिल जाएगा,’’ संगीता प्रसन्न नजर आने लगी.

उधर रसोई में रमाकांत अपने बेटे को समझ रहे थे, ‘‘रवि, मैं ने कुछ चीजें तेरी मां

से बनानी सीखीं क्योंकि अब उस की तबीयत ज्यादा ठीक नहीं रहती. मैं ने देखा है कि तू भी अधिकतर डबलरोटी मक्खन खा कर औफिस जाता है. मैं तुझे ये 5-7 चीजें बनानी सिखा देता हूं. ढंग का नाश्ता घर में बनने लगेगा, तो तेरा और बहू दोनों का फायदा होगा.’’

‘‘पोहा बनाने में आप की सहायता करना मुझे अच्छा लगा, पापा. आप मुझे बाकी की चीजें भी जरूर सिखाना,’’ रवि खुश नजर आ रहा था.

‘‘अब ब्रश कर के आ. फिर हम दोनों साथ बैठ कर नाश्ता करेंगे.’’

‘‘मम्मी और संगीता के आने का इंतजार नहीं करेंगे क्या?’’

‘‘अरे, तेरी बहू जितनी ज्यादा देर घूमे अच्छा है. अपनी मां के साथ उसे रोज पार्क भेज दिया कर. उस का बढ़ता मोटापा उस की सेहत के लिए ठीक नहीं है.’’

रमाकांत की यह सलाह रवि के मन में बैठ गई. उस दिन ही नहीं बल्कि रोज उस ने सुबह उठ कर अपने पिता के मार्गदर्शन में कई नईर् चीजें नाश्ते में बनानी सीखीं.

आरती और संगीता रसोई में आतीं, तो बापबेटा उन्हें फौरन बाहर कर देते. तब आरती अपनी बहू को पार्क में ले जाती.

वहां से सैर और व्यायाम कर के दोनों लौटतीं, तो उन्हें नाश्ता तैयार मिलता. सब बैठ कर नाश्ते की खूबियों व कमियों पर बड़े उत्साह से चर्चा करते. सुबह की शुरुआत अच्छी होने से बाकी का दिन अच्छा गुजरने की संभावना बढ़ जाती.

संगीता अपने सासससुर के आने से अब सचमुच बड़ी प्रसन्न थी. सास के द्वारा काम में मदद करने से उसे बड़ी राहत मिलती. बहुत कुछ नया सीखने को मिला उसे आरती से.

रवि का मन बहुत होता अपने दोस्तों के साथ शराब पीने का, पर हिम्मत नहीं पड़ती. अपनी खराब लत के कारण वह अपने मातापिता को लड़तेझगड़ते नहीं देखना चाहता था.

धीरेधीरे शराब पीने की तलब उठनी बंद हो

गई उस के मन में. उस में आए इस बदलाव के कारण संगीता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

सप्ताहभर तक नियमित रूप से पार्क जाने का परिणाम यह निकला कि संगीता के पेट का माप पूरा 1 इंच कम हो गया. उस ने यह खबर बड़े खुश अंदाज में सब को सुनाई.

‘‘आज पार्टी होगी मेरी बहू की इस सफलता की खुशी में और सारी चीजें संगीता और मैं घर में बनाएंगे,’’ आरती की इस घोषणा का बाकी तीनों ने तालियां बजा कर स्वागत किया.

उस रविवार के दिन के भोजन में मटरपनीर, दहीभल्ले, बैगन का भरता, सलाद, परांठे और मेवों से भरी खीर सबकुछ संगीता और आरती ने मिल कर तैयार किया.

खाना इतना स्वादिष्ठ बना था कि सभी उंगलियां चाटते रह गए. आरती ने इस का बड़ा श्रेय संगीता को दिया, तो वह फूली न समाई.

‘‘मैं कहता हूं कि किसी होटल में क्व2 हजार रुपए खर्च कर के भी ऐसा शानदार खाना नसीब नहीं हो सकता,’’ रवि ने संतुष्टि भरी डकार लेने के बाद घोषणा करी.

‘‘चाहे वह स्वादिष्ठ खाना हो या दिल को गुदगुदाने वाली खुशियां, इन्हें घर से बाहर ढूंढ़ना मूर्खता है,’’ बोलते

हुए आरती की आंखों में अचानक आंसू छलक आए.

‘‘मम्मी, आप की आंखों में आंसू क्यों आए हैं?’’ रवि

ने अपनी मां का कंधा छू कर भावुक लहजे में पूछा.

‘‘हम से कोई गलती हो गई क्या?’’ संगीता एकदम घबरा उठी.

‘‘नहीं, बहू,’’ आरती ने उस का गाल प्यार से थपथपाया, ‘‘सब को एकसाथ इतना खुश देख कर आंखें भर आईं.’’

‘‘यह तो आप दोनों के आने का आशीर्वाद है मम्मी,’’ संगीता ने उन का हाथ पकड़ कर प्यार से अपने गाल पर रख लिया.

रमाकांत ने गहरी सांस छोड़ कर कहा, ‘‘आज शाम को हम वापस जा रहे हैं. शायद इसीलिए पलकें नम हो उठीं.’’

‘‘यों अचानक जाने का फैसला क्यों कर लिया आप ने?’’ रवि ने उलझन भरे स्वर में पूछा.

‘‘नहीं, आप दोनों को मैं बिलकुल नहीं जाने दूंगी,’’ संगीता ने भरे गले से अपने दिल की इच्छा जाहिर करी.

‘‘हम दोनों तो आज के दिन ही लौटने का कार्यक्रम बना कर आए थे, बहू. तेरे जेठजेठानी व दोनों भतीजे बड़ी बेसब्री से हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं,’’ आरती ने मुसकराने की कोशिश करी, पर जब सफल नहीं हुईं तो उन्होंने संगीता को गले लगा लिया.

संगीता एकाएक सुबकने लगी. रवि की आंखों में भी आंसू ?िलमिलाने लगे.

‘‘मम्मीपापा, आप दोनों अभी मत जाइए. मेरे घर में आई खुशियों की बहार कहीं आप

दोनों के जाने से खो न जाए,’’ रवि उदास नजर आने लगा.

रमाकांत ने उस का माथा चूम कर समझया, ‘‘बेटा, अपने घर की

खुशियों, सुखशांति और मन के संतोष के लिए किसी पर भी निर्भर मत रहना. तुम दोनों समझदारी से काम लोगे, तो यह घर हमारे जाने के बाद भी खुशियों से महकता रहेगा.’’

‘‘बस, सदा हमारी एक ही बात याद रखो तुम दोनों,’’ आरती उन दोनों से प्यारभरे स्वर में बोलीं.

‘‘आपसी मनमुटाव से दिलोदिमाग पर बहुत सा कूड़ाकचड़ा जमा हो जाता है. इंसान को प्यार करने व लड़नेझगड़ने दोनों के लिए ऊर्जा खर्चनी पड़ती है. तुम दोनों चाहे लड़ो चाहे प्यार करो, पर सदा ध्यान रखना कि ऊर्जा के बहाव में दिलोदिमाग पर जमा वह कूड़ाकचरा जरूर बह जाए. बीते पलों की यादों को फालतू ढोने से इंसान कभी भी नए और ताजे जीवन का आनंद नहीं ले पाता.’’

रवि और संगीता ने उन की बात बड़े ध्यान से सुनी. जब उन दोनों की नजरें आपस में मिलीं, तो दोनों के दिलों में एकदूसरे के लिए प्र्रेम की ऊंची लहर उठी.

‘‘आप अगली बार आएंगे, तो मुझे पूरी तरह बदला हुआ पाएंगे,’’ संगीता ने फौरन अपने सासससुर से मजबूत स्वर में वादा किया

‘‘हमारी आंखें खोलने के लिए आप दोनों को धन्यवाद,’’ कह रवि ने अपने मातापिता के हाथों को चूमा.

‘‘मिल कर अपने बच्चों का शुभ सोचना हमारी एकमात्र इच्छा है. हमारे लड़नेझगड़ने को तो तुम दोनों नाटक समझना,’’ आरती बोलीं.

आरती के इस बचन को सुना कर रमाकांत रहस्यमयी अंदाज में मुसकराने लगे.

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