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रात का लगभग 8 बजे का समय था. मैं औफिस से आ कर खाना बना रही थी और राकेश अपने लैपटौप पर अभी भी औफिस के ही काम में उलझे हुए थे. तभी फोन की घंटी बजी. किस का फोन है, यह उत्सुकता मुझे किचन से खींच लाई. मैं ने देखा राकेश फोन पर बात करते हुए बहुत परेशान हो उठे हैं.

‘प्लीज, आप उन्हें अस्पताल पहुंचा दीजिए. मैं फौरन निकल रहा हूं, फिर भी मुझे पहुंचने में 2-3  घंटे तो लग ही जाएंगे,’ इतना कहते हुए उन्होंने फोन रख दिया. इस से पहले कि मैं कुछ पूछती उन्होंने हड़बड़ी में मुझे पूरी बात बताते हुए अपने कुछ कपड़े और जरूरी सामान बैग में रखना शुरू कर दिया.

राकेश की चाचीजी, जो मथुरा में रहती हैं अचानक बहुत बीमार हो गई थीं. उन की हालत को देखते हुए किसी पड़ोसी ने हमें फोन किया था. चाचीजी का हमारे सिवा इस दुनिया में और है ही कौन? उन की अपनी औलाद तो है नहीं और चाचाजी का कुछ वर्ष हुए देहांत हो चुका है.

हमारी शादी में चाचीजी ने ही मेरी सास की सारी रस्में की थीं. राकेश के मातापिता तो बहुत पहले एक कार ऐक्सीडैंट में मारे गए थे. तब राकेश की दीदी गरिमा तो अपनी पढ़ाई पूरी कर नौकरी की तलाश कर रही थीं, लेकिन राकेश स्कूल में पढ़ रहे थे. अपनी दीदी से 8 साल छोटे जो हैं. तब चाचाचाची ने ही दीदी की शादी की थी और राकेश को स्कूल के बाद आगे की पढ़ाई के लिए होस्टल भेज दिया था. चाचाचाची ने दीदी को और मुझे अपनी औलाद की तरह प्यार दिया है, यह बात इन 2 वर्षों में राकेश मुझे कई बार बता चुके हैं.

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