महिलाएं कब होंगी इस गुलामी से आजाद

जीवन  में आने वाले सुखदुख ही नहीं, बल्कि सफलता और असफलता भी हमारी सोच पर निर्भर करती है. अच्छी सोच जहां हमें ऊंचाइयों पर ले जाती है, वहीं संकीर्ण सोच हमारे कद को और भी छोटा कर देती है. लेकिन महिलाएं इस बात को समझना नहीं चाहतीं. इसीलिए आज भी वे संकुचित विचारों का दामन थामे हैं. उन के विचारों में स्वतंत्रता दिखाई नहीं देती. यदि महिलाएं सही माने में स्वतंत्र कहलाना चाहती हैं तो उन्हें अपने विचारों में स्वतंत्रता लानी होगी.

वंश के लिए ‘अंश’ जरूरी

इंदिरा गांधी जैसी मिसाल देश में होने के बावजूद महिलाएं यह मानने को तैयार नहीं हैं कि वंश चलाने के लिए उन के अंश (संतान) की जरूरत होती है, बेटे या बेटी की नहीं. लेकिन कानूनन अपराध होने के बावजूद आज भी कई महिलाएं लिंग परीक्षण के जरीए बेटा पाने की लालसा को पूरा करती हैं, जिस के लिए उन्हें अपने शरीर के साथ होने वाली चीरफाड़ से भी कोई परहेज नहीं यानी शारीरिक और मानसिक पीड़ा सहने के बावजूद महिलाएं अपनी सोच बदलने को तैयार नहीं हैं.

बात यहीं खत्म नहीं होती. अगर कोई महिला बेटाबेटी दोनों को जन्म देती है, तब भी वह अधिक ध्यान बेटे की परवरिश पर देती है, क्योंकि वह बेटे को अपना और बेटी को पराया समझती है. बेटे को जहां शुरुआत से ही आजादी दी जाती है, वहीं बेटी पर कई तरह की बंदिशें शुरू हो जाती हैं. दोनों की परवरिश में यह भेदभाव महिलाओं की सोच के कारण है.

कहने का तात्पर्य यह है कि महिलाएं अपनी सोच को बदल कर नया आयाम लिख सकती हैं. इस बात को ध्यान में रख कर कि बेटे की तरह बेटी की रगों में भी उन्हीं का खून है. जिस दिन महिलाएं यह सोचेंगी उस दिन से कन्या भू्रण हत्या के मामले खुदबखुद कम हो जाएंगे.

कुप्रथाओं को बढ़ावा

कहते हैं अगर कोई औरत कुछ करने की ठान ले, तो वह उसे कर के ही दम लेती है, मगर निराश करने वाली बात यह है कि ज्यादातर महिलाएं किसी को बरबाद करने की भले ठान लें, लेकिन कुछ अच्छा करने की नहीं ठानतीं. अगर वे ऐसा कुछ करतीं तो आज समाज में दहेज, बाल विवाह, परदा जैसी कुप्रथाएं अपने पांव न पसारतीं. असल में महिलाओं की सोच ने ही इन प्रथाओं को जीवित रखा है.

हाल ही में छपरा कोर्ट (बिहार) के सामने दहेज हत्या (सोनी देवी) का मामला आया.

सोनी देवी की शादी 2003 में हुई थी. ससुराल वाले उसे दहेज के लिए प्रताडि़त करते थे. उन की मांग पूरी न होने पर 24 अप्रैल, 2005 को उन लोगों ने सोनी की हत्या कर उस के शव को जला दिया. नतीजतन कोर्ट ने सोनी के पति और ससुर को 10 साल की और सास को 7 साल की सजा सुनाई. अगर सोनी की सास के विचार स्वतंत्र होते तो वह दहेज की मांग न करती और सोनी आज जीवित होती.

धर्म पर कर्म से ज्यादा यकीन

कहते हैं मानव के कर्म ही उस के विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है, लेकिन महिलाएं हमेशा कर्म के बजाय धर्म को अधिक अहमियत देती हैं. वे चाहें तो तीजत्योहार के मौके पर अनाथालय जा कर बेसहारा बच्चों को खुशी दे सकती हैं, लेकिन धनसंपत्ति, खुशहाली तो कभी पति की दीर्घ आयु आदि की प्राप्ति के लिए वे धर्म स्थलों के द्वार खड़ी हो जाती हैं. भले वे किसी गरीब या दीनदुखी की सहायता न करें, मगर धर्म के नाम पर धार्मिक स्थलों पर दान देने से पीछे नहीं हटतीं. ढोंगी साधूबाबाओं में भी उन का गहरा विश्वास होता है. घर में कलह से ले कर बांझपन आदि समस्याओं के लिए समाधान निकालने के बजाय वे बाबाओं के तावीजों का सहारा लेती हैं. यही वजह है कि आए दिन बाबाओं द्वारा महिला भक्त पर रेप के मामले बढ़ रहे हैं. आज यदि महिलाओं के विचार स्वतंत्र होते, तो बाबाओं की दुकानें न चलतीं.

जिम्मेदारी पति के कंधों पर ही क्यों

वे दिन गए जब महिलाएं हाउसवाइफ हुआ करती थीं. आज मैट्रो सिटीज की कई महिलाएं वर्किंग हैं, लेकिन बात जब भी आर्थिक जिम्मेदारी को संभालने की आती है, तो महिलाएं अपना पल्ला झाड़ लेती हैं. उन्हें लगता है कि पैसों से जुड़ा मसला पुरुषों को संभालना चाहिए. घर के राशन से ले कर खुद की शौपिंग तक वे पति के पैसों से करना चाहती हैं. आज भी होटल में लंच या डिनर पार्टी के बाद महिलाएं बिल भरने के लिए पुरुषों का मुंह ताकती हैं. कभी खुद से पहल नहीं करती हैं. पैसा खर्च करने की जिम्मेदारी सिर्फ पुरुषों की है, महिलाओं को अपनी यह सोच बदलनी चाहिए, क्योंकि जब वे बाकी मामलों में पुरुषों की बराबरी कर सकती हैं, तो उन्हें आर्थिक जिम्मेदारी को भी बराबर बांटना चाहिए.

मनोचिकित्सक डा. निमिषा के अनुसार, महिलाओं को अपने विचारों में स्वतंत्रता लाने के लिए अपनी सोच को बदलना चाहिए. उन्हें कुछ इस तरह सोचना चाहिए:

शिक्षित सोच: महिलाओं का शिक्षित होना बेहद जरूरी है. शिक्षा से उन का आत्मविश्वास बढ़ता है. निर्भयता आती है और उन्हें बहुत जानकारी मिलती है.

संतुलित सोच: महिलाओं को खुद के विषय में संतुलित सोच रखनी चाहिए. उन्हें भावनाओं में बह कर नहीं सोचना चाहिए और न ही भावनाओं में आ कर कोई फैसला करना चाहिए.

सामाजिक सोच: किसी भी सामाजिक सोच को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए, क्योंकि समाज द्वारा थोपा गया कोई भी निर्णय आप की खुशी और शांति से बढ़ कर नहीं है. एक खुश और शांत महिला समाज को बहुत कुछ दे सकती है.

निर्णय लेने की सोच: महिलाओं को अपने निर्णय खुद लेने चाहिए. इस से वे ज्यादा सफल साबित होंगी.

शिकार पढ़ीलिखी महिलाएं भी

मई, 2016 को एक एनआरआई महिला ने पंजाब के एक बाबा पर रेप करने का मामला दर्ज करवाया. महिला का आरोप है कि एक पाखंडी बाबा ने उसे बुरी आत्माओं से बचाने के नाम पर उस के साथ रेप किया. बाबा का कहना था कि वह उसे बुरी आत्माओं से आजाद करा देगा. आरोपी बाबा ने महिला के साथ गलत हरकतें कीं. महिला द्वारा आपत्ति जताने पर वह कहता कि वह उस के साथ नहीं, बल्कि बुरी आत्माओं के साथ ऐसा बरताव कर रहा है. आश्चर्य तो इस बात का है कि पढ़ीलिखी महिलाएं भी ऐसे बाबाओं के झांसे में आ जाती हैं.

कुछ दिनों पहले ही बाराबांकी में महिलाओं की गोद भरने के नाम पर 100 से भी अधिक महिलाओं का यौन शोषण करने वाले स्वयंभू बाबा परमानंद को गिरफ्तार किया गया. यह बाबा महिलाओं का यौन शोषण करने के साथसाथ उन का अश्लील वीडियो भी बनाता था. बाबा बेटा पैदा होने के लिए आशीर्वाद देने के बहाने महिलाओं को फंसाता था और उन का अश्लील वीडियो बना कर उन्हें अपने जाल में उलझा

लेता था.

क्या आप जानती हैं

अंडरस्टैंडिंग जैंडर इक्वैलिटी इन इंडिया 2012 के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा जैसे आर्थिक रूप से संपन्न राज्यों में लिंगानुपात की स्थिति पांडिचेरी, छत्तीसगढ़, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा, केरल और ओडिशा जैसे राज्यों की तुलना में बेहद कम है? दिल्ली, चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा में प्रति हजार लड़कों पर लड़कियों की संख्या क्रमश: 866, 818, 813 और 877 है.

बदलनी होगी मानसिकता

‘‘सदियों से महिलाओं को आश्रित, परतंत्र या कमजोर देखा और माना गया है, जिस का काफी हद तक प्रभाव महिलाओं की खुद की मानसिकता पर होता है. उदाहरण के तौर पर अकसर महिलाएं जहां स्वतंत्रता से स्वयं का विकास कर सकती हैं, वहां भी इस मानसिकता और तमाम भूमिका निभाने के दबाव में वे अपना ध्यान नहीं रख पाती हैं. उन की मानसिकता उन्हें सिर्फ दूसरों का ध्यान रखने, त्याग करने या दूसरों के लिए जीने को प्रेरित करती है.’’

-डा. निमिषा, मनोचिकित्सक, इंटरनैशनल सर्टिफाइड लाइफ कोच, गुजरात

 

विचारों में स्वतंत्रता जरूरी

‘‘महानगरों की बात करें या कसबों की, महिलाएं पूर्णरूप से स्वतंत्र होने के बाद भी कोई निर्णय लेने से पहले अपने पति या सहयोगी की राय जरूर लेती हैं. किचन क्वीन होने के बाद भी खाने में क्या बनाऊं जैसा छोटा सवाल वे परिवार वालों से करती हैं. वे अपने कमाए पैसों का निवेश भी खुद नहीं कर पातीं. स्वतंत्र होते हुए भी महिलाओं ने खुद को सीमाओं में जकड़ रखा है, जिसे देख कर तो कतई नहीं लगता कि स्वतंत्र देश की स्वतंत्र महिलाएं विचारों से स्वतंत्र हैं.’’    

– डा. जयश्री सिंह, हिंदी प्राध्यापक, मुंबई

 

दहेज की बलि

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2007 से 2011 के बीच देश में दहेज हत्याओं के मामलों में तेजी आई है. 2007 में ऐसे 1,093 मामले दर्ज हुए, लेकिन 2008 और 2009 में यह आंकड़ा क्रमश: 8,172 और 8,383 था. 2010 में इस प्रकार की 8,399 मौतें दर्ज की गईं और 2012 में भारत भर से दहेज हत्या के 8233 मामले सामने आए. आंकड़ों के औसत की मानें तो प्रत्येक घंटे 1 महिला दहेज की बलि चढ़ रही है.

 

खुद को मजबूत बनाएं

‘‘अफसोस कि विचारों से महिलाएं आज भी स्वतंत्र नहीं हैं. वे आज भी वही बोलती हैं, जो लोगों को सुनने में अच्छा लगता है. शादी और रिश्तों की मर्यादा संभालतेसंभालते उन की आवाज भी दब गई है और उन की आवाज तब तक दबी रहेगी जब तक वे खुद के लिए बोलेंगी नहीं. जब तक महिलाओं को इस बात की परवाह रहेगी कि लोग क्या सोचेंगे तब तक वे मजबूत हो कर भी कमजोर ही रहेंगी.’’

-काम्या पंजाबी, टीवी कलाकार

 

प्रभावशाली बनें महिलाएं

‘‘बेशक आज की महिलाएं पावरफुल हैं, उन्हें किसी की जरूरत नहीं है, वे पूरी तरह से स्वतंत्र हैं और अपने और अपनों से जुड़े लोगों के जीवन की बागड़ोर संभालने में सक्षम भी, लेकिन बात जब विचारों की आती है तो उन के विचार आज भी उतने प्रभावशाली नहीं हैं, जितने कि होने चाहिए. तो भला कोई कैसे कह सकता है कि महिलाएं विचारों से स्वतंत्र हैं?’’

-सारा खान, टीवी कलाकार

आकर्षण का केंद्र बनता बस्तर दशहरा

बस्तरमें आयोजित होने वाले पारंपरिक पर्वों में बस्तर दशहरा सर्वश्रेष्ठ है. बस्तर के आदिवासियों की अभूतपूर्व भागीदारी का ही प्रतिफल है कि बस्तर दशहरे की पहचान अब राष्ट्रीय स्तर तक ही सीमित नहीं है वरन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी स्थापित हो चुकी है. देशी एवं विदेशी पर्यटकों के लिए बस्तर दशहरा अब मुख्य आकर्षण का केंद्र बन चुका है.

रथ चलाने की प्रथा

यह मुख्यरूप से दंतेश्वरी देवी पर केंद्रित होता है. यह त्योहार संपूर्ण रूप से स्थानीय मान्यताओं एवं आदिवासी प्रथाओं का मिश्रण है. अनेक पारंपरिक जनजातीय, स्थानीय एवं हिंदू धर्म के देवीदेवता दंतेश्वरी देवी के मंदिर में एकत्रित होते हैं, जोकि पर्व का केंद्र बिंदु होता है.

कहते हैं कि राजा पुरुषोत्तम देव जब पुरी धाम से बस्तर लौटे तभी से गोंचा और दशहरा पर्वों में रथ चलाने की प्रथा चली.

मजबूत बुनियाद

75 दिवसीय सुप्रसिद्ध बस्तर दशहरे की शुरुआत श्रावण की हरेली अमावस्या से होती है एवं समापन अश्विन महीने की पूर्णिमा की 13वीं तिथि को होता है. इस पर्व पर आदिवासी समुदाय ही नहीं, बल्कि समस्त छत्तीसगढ़ी गर्व करते हैं. इस पर्व में अन्नदान एवं श्रमदान की जो परंपरा विकसित हुई

उस से साबित होता है कि हमारे समाज में सामुदायिक भावना की बुनियाद बेहद

मजबूत है.

सांस्कृतिक परंपरा

बस्तर दशहरे में होने वाली रस्में बेहद रोचक एवं अनूठी हैं जैसे पाट जात्रा, काछिन गादी, नवरात: जोगी बिठाई, रथपरिक्रमा, दुर्गाष्टमी निशाजात्रा, जोगी उठाई, मावली परघाव, विजयादशमी भीतर रैनी, बाहिर रैनी, मुरिया दरबार, ओहाड़ी आदि.

बस्तर दशहरा बहुआयामी है. धर्म, संस्कृति, कला, इतिहास और राजनीति से तो इस का प्रत्यक्ष संबंध जुड़ता ही है, साथ ही साथ परोक्षरूप से भी बस्तर दशहरा समाज की उच्च एवं परिष्कृत सांस्कृतिक परंपरा का गवाह बनता है. आज का बस्तर दशहरा पूर्णतया दंतेश्वरी का दशहरा है.  

घर बैठे ऐसे कमाएं पैसे

हर कोई पैसा कमाना चाहता है. लेकिन नौकरी पाना इतना आसान नहीं. कुछ लोग ऐसे भी हैं जो नौकरी करना ही नहीं चाहते. लेकिन पैसा तो इंसान की जरुरत है इसलिए यहां हम बता रहे हैं कुछ ऐसे तरीके जिससे आप घर बैठे भी पैसे कमा सकती हैं.

टिफिन सिस्टम

अगर आपको खाना बनाने का शौक है, तो आप इस हुनर को अपने प्रोफेशन में बदल सकती हैं. इसकी शुरुआत आप पांच टिफिन से भी कर सकती हैं. धीरे-धीरे टिफिन के साथ-साथ पैसे में भी इजाफा होगा.

ऑनलाइन राइटिंग

लिखना एक कला है. अगर आप भी इस कला में पारंगत हैं तो आप अपनी सर्विस किसी कंपनी को दे सकती हैं. कंटेन्ट राइटिंग, ब्लॉग, ऑनलाइन रिव्यू और आर्टिकल जैसे कई ऑप्शन हैं जिसके बदले आपको अच्छे पैसे कमाने का मौका मिलता है.

ब्याज का पैसा

अगर आपने भी अच्छे-खासे पैसे जमा कर लिए हैं तो आप इस पैसे को बैंक में या फिर म्यूचुअल फंड्स आदि में लगा सकती हैं. ऐसा करके आप घर बैठे ही पैसे कमा लेंगी. इसके अलावा जरूरतमंदों को पैसे उधार देकर भी आप चाहें तो ब्याज कमा सकती हैं.

किराए पर चीजें देना

अगर आपके घर में कमरे खाली हैं तो आप इन्हें किराए पर देकर भी अच्छे पैसे कमा सकती हैं. इसी तरह और कोई चीज जैसे अगर आप अपनी कार का इस्तेमाल रोज नहीं करती हैं तो आप इसे प्रति दिन के हिसाब से रेंट पर दे सकती हैं.

ऑनलाइन कोचिंग

आज कल ऑनलाइन पढ़ाने का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है. इसलिए अगर आप पढ़ाई में अच्छी हैं तो आप ऑनलाइन क्लासेज के जरिए स्टूडेंट को पढ़ा सकती हैं और पैसे कमा सकती हैं. इसके लिए जरूरी नहीं है कि आपकी हर विषय में पकड़ हो. आप किसी एक विषय की भी कोचिंग दे सकती हैं.

कौर्न ब्लैक बींस ऐंड ट्राई पेपर बुरीतो

सामग्री

– 4 टोरटिला 9-10 इंच के

– 3/4 कप प्याज कटा

– 1/2 छोटा चम्मच जीरा

– 1/2 छोटा चम्मच मिर्च पाउडर

– 1 कप लाल शिमलामिर्च

– 2/3 कप फ्रिजर में रखे कौर्न

– 1 गाजर कसी हुई

– 1 कप भिगोई व सूखी बींस

– 2 छोटे चम्मच जैलपीनो चिली

– 8 बड़े चम्मच ग्रेटेड मोंटेरी जैक चीज

– 4 बड़े चम्मच वसारहित खट्टी क्रीम

– 4 बड़े चम्मच धनिया

– 2 छोटे चम्मच तेल

– नमक स्वादानुसार

विधि

ओवन को 350 डिग्री तापमान पर गरम करें. टोरटिला को एक फौइल पेपर में रैप करें. फिर 15 मिनट तक ओवन में गरम करें. नौनस्टिक कड़ाई में तेल गरम कर प्याज को धीमी आंच पर हलका सुनहरा होने तक भूनें. फिर इस में जीरा और मिर्च पाउडर डालें औैर 20 सैकंड तक सामग्री को हिलाएं. इस के बाद मिश्रण में शिमलामिर्च, कौर्न और गाजर डालें और तब तक हिलाती रहें जब तक सब्जियां न पक जाएं. फिर इस मिश्रण में बींस, टमाटर और जैलपीनो मिलाएं और आंच को धीमी कर दें. फिर नमक और कालीमिर्च डालें और आंच से उतार लें. अब गरम टोरटिला पर इस मिश्रण को बराबर हिस्सों में रखें और ऊपर से चीज, क्रीम और धनिया डाल टोरटिला के किनारों को फोल्ड कर प्लेट में रख कर परोसें.

-व्यंजन सहयोग:

शैफ जैर्सन फर्नांडिस

कौरपोरैट शैफ, बर्गुइन होटल, मुंबई          

वायरल फीवर को दें मात

वायरल एक तरह का मौसमी बुखार होता है जो मौसम में बदलाव होने की वजह से होता है. वायरल का फीवर हमारे इम्यून सिस्टम को कमजोर कर देता है जिसकी वजह से शरीर में इंफेक्शन बहुत तेजी से बढ़ता है. वायरल के संक्रमण बहुत तेजी से एक इंसान से दूसरे इंसान तक पहुंच जाता है.

वायरल फीवर के मुख्य लक्षण

वायरल होने से वाले शरीर में कुछ इस तरह के लक्षण दिखते हैं जैसे, गले में दर्द, खांसी, सिर दर्द थकान, जोड़ों में दर्द के साथ ही उल्टी और दस्त होना, आंखों का लाल होना और माथे का बहुत तेज गर्म होना आदि. बड़ों के साथ यह वायरल फीवर बच्चों में भी तेजी से फैलता है.

इन घरेलू उपचार से आप इस इंफेक्शन से राहत पा सकते हैं…

1. हल्दी और सौंठ का पाउडर

अदरक में एंटी आक्सिडेंट गुण बुखार को ठीक करते हैं. एक चम्मच काली मिर्च का चूर्ण, एक छोटी चम्मच हल्दी का चूर्ण और एक चम्मच सौंठ यानी अदरक के पाउडर को एक कप पानी और हल्की सी चीनी डालकर गर्म कर लें. जब यह पानी उबलने के बाद आधा रह जाए तो इसे ठंडा करके पिएं. इससे वायरल फीवर से आराम मिलता है.

2. तुलसी का इस्तेमाल

तुलसी में एंटीबायोटिक गुण होते हैं जिससे शरीर के अंदर के वायरस खत्म होते हैं. एक चम्मच लौंग के चूर्ण और दस से पंद्रह तुलसी के ताजे पत्तों को एक लीटर पानी में डालकर इतना उबालें जब तक यह सूखकर आधा न रह जाए. इसके बाद इसे छानें और ठंडा करके हर एक घंटे में पिएं. आपको वायरल से जल्द ही आराम मिलेगा.

3. धनिया की चाय

धनिया सेहत का धनी होता है इसलिए यह वायरल बुखार जैसे कई रोगों को खत्म करता है. वायरल के बुखार को खत्म करने के लिए धनिया चाय बहुत ही असरदार औषधि का काम करती है.

4. मेथी का पानी

आपके किचन में मेथी तो होती ही है. मेथी के दानों को एक कप में भरकर इसे रात भर के लिए भिगों लें और सुबह के समय इसे छानकर हर एक घंटे में पिएं. जल्द ही आराम मिलेगा.

5. नींबू और शहद

नींबू का रस और शहद भी वायरल फीवर के असर को कम करते हैं. आप शहद और नींबू का रस का सेवन भी कर सकते हैं.

खूबसूरत त्वचा पाने के आसान उपाय

ग्लोइंग स्किन पाना किसकी ख्वाहिश नहीं होती, लेकिन हममें से ज्‍यादातर लोग अपनी स्किन का ठीक से ध्‍यान नहीं रखते हैं. ऐसे में होता ये है कि इतनी देर हो जाती है कि स्क‍िन पूरी तरह से डैमेज हो जाती है. यूं तो स्क‍िन डैमेज होने के बहुत से कारण होते हैं लेकिन धूल, धुंआ और प्रदूषण हमारी स्क‍िन पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालते हैं. ऐसे में स्क‍िन को नियमित देखभाल और पोषण की जरूरत होती है.

थोड़ी सी सावधानी अपनाकर आप पिग्मेंटेशन, सेंसिटिविटी और एंटी एजिंग जैसी समस्याओं से बच सकते हैं. ज्यादातर मामलों में होता ये है कि लोग समय रहते अपनी स्क‍िन पर ध्यान नहीं देते और तब तक प्रॉब्लम इतनी बढ़ जाती है कि उसका असर नजर आने लगता है.

ऐसे में देर करने से बेहतर है कि आप अभी से अपनी त्वचा पर ध्यान देना शुरू कर दीजिए.

1. क्‍लींजिंग: अपना चेहरा साफ करने के लिए नारियल पानी का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. क्‍लींजिंग के बाद स्किन के पोर्स बंद करने के लिए अल्कोहल फ्री टोनर का इस्तेमाल करना चाहिए.

2. मॉइश्चराइजर: मॉइश्चराइजर का इस्तेमाल सर्दियों और गर्मियों दोनों में करना चाहिए. अगर आपकी ऑयली स्किन है तो आपको वॉटर बेस्ड जेल और मॉइश्चराइजर का इस्तेमाल करना चाहिए. चेहरे को ठंडे पानी से धोएं. इससे आपके चेहरे का तापमान सही रहेगा, चेहरे पर ऑयल कम आएगा और मुहांसे भी नहीं होंगे.

3. सनस्क्रीन: सनस्‍क्रीन लोशन लगाना कभी ना भूलें. भारतीय स्किन के हिसाब से SPF 20 सबसे अच्छा रहता है. UVA प्रोटेक्शन वाला सनस्क्रीन नॉर्मल स्किन के लिए बहुत फायदेमंद है. अगर आपकी सेंसिटिव स्किन है तो सनब्लॉक UVB प्रोटेक्शन वाला सनस्क्रीन इस्तेमाल कर सकते हैं.

4. नाइट क्रीम: रात को सोने से पहले चेहरा धोकर नाइट क्रीम जरूर लगाएं.

एक बार फिर टीचर बने आमिर

बॉलीवुड के मिस्टर प्रफेक्शनिस्ट आमिर खान ने अपनी फिल्म ‘दंगल’ के रिलीज होने से पहले ही अगली फिल्म की शूटिंग शुरू कर दी है.

सूत्रों की मानें तो आमिर ने अपने पूर्व मैनेजर अद्वैत चंदन के निर्देशन में बनी फिल्म ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ की शूटिंग शुरू कर दी है. फिल्म में वो एक म्यूजिक टीचर के रोल में नजर आएंगे.

आपको बता दें कि इस फिल्म का नाम पहले ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’ रखा गया था, लेकिन अब इसका नाम ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ कर दिया गया है.

आपको बता दें कि ये फिल्म ‘तारे जमीन पर’ के बाद आमिर की दूसरी फिल्म है जिसमें वो एक म्यूजिक टीचर का रोल करते नजर आएंगे. फिल्म की कहानी एक बच्चे और मां के ईद-गिर्द घूमती नजर आएगी.

फिल्म का संगीत अमित त्रिवेदी दे रहे हैं, जबकि गानों के बोल कौसर मुनीर लिखेंगे. अद्वैत चंदन के निर्देशन में बनी इस फिल्म को आमिर खान खुद प्रोड्यूस कर रहे हैं. फिल्म के अन्य कलाकारों की तलाश अभी चल रही है.

आंखों का ऐसे करें श्रृंगार

अगर किसी लड़की की आंखें बड़ी-बड़ी हैं तो उसकी सुंदरता में अपने आप ही चार चांद लग जाते हैं. आइए जानते हैं बड़ी आंखों के आईमेकअप टिप्‍स के बारे में:

1. शिमरी आईशैडो- चमकने वाला आईशैडो, आंखों को स्‍टैंड आउट बना देता है. इससे आंखों में जीवंतता आ जाती है. आप बड़ी आंखों में हमेशा ऊपर की ओर ही शिमर का इस्‍तेमाल करें.

2. नीचे की पलकों पर मस्‍कारा- बड़ी आंखों में हमेशा नीचे की पलक पर मस्‍कारा लगाएं. इससे आंखों में भारीपन आएगा और वो खूबसूरत दिखेगी.

3. व्‍हाइट आईशैडो- आंखों में हमेशा व्‍हाइट आईशैडो को लगाएं. ऐसा करने से आंखों में अनोखापन आ जाता है और आंखें बड़ी भी दिखती हैं.

4. आईब्रो को उठाएं- आप चाहें तो आंखों पर व्‍हाइट आईशैडो से मेकअप करने के अलावा, आईब्रो को उठाने का लुक भी दे सकती हैं. इससे चेहरे पर ताजगी साफ झलकती है.

5. अच्‍छी तरह से बनाई हुई आईब्रो- अगर आपकी आंखें बड़ी हैं तो आईब्रो को पतला न बनवाएं. उन्‍हें अच्‍छे से बढ़ा होने दें और मोटा सेट करवाएं. आप चाहें तो आईब्रो मोटी करने के लिए आईब्रो पेंसिल का इस्‍तेमाल भी कर सकती हैं.

6. प्राइमर जरूरी- बड़ी आंखों में अपर लिड भी बड़ी होती हैं. मेकअप को करने से पहले प्राइमर का इस्‍तेमाल करना बिल्‍कुल न भूलें. आप अपनी पलकों पर प्राइमर का इस्‍तेमाल अवश्‍य करें.

7. डार्क टोन आईशैडो- आंखों पर डार्क टोन आईशैडो, बेहद कमाल का दिखता है. इससे आंखों में चमक दिखती है और वो परफेक्‍ट दिखती हैं. 

8. विंग्‍ड आईलाइनर- अगर आंखों को शॉर्प लुक देना है तो आपको विंग्‍ड आईलाइनर का इस्‍तेमाल करना चाहिए. इसके लिए, आप चाहें तो आंखों को वॉटरलाइन भी कर सकती हैं.

..और तीन बच्चों की मां बन गईं ये अभिनेत्री

पिछले कई सालों से इक्का-दुक्का फिल्मो में छोटे-मोटे रोल कर रही सोहा अली खान लंबे समय के बाद अब एक मजबूत भूमिका में फिल्म ’31अक्टूबर’ में नजर आएंगीं. और साथ ही बड़े परदे पर वो पहली बार तीन बच्चों की मां भी बन गई हैं.

फिल्म ’31 अक्टूबर’ में सोहा का किरदार एक सिख महिला का है. सोहा कहती है “फिल्म में मेरे तीन बच्चें हैं और रियल में अम्मा (शर्मीला टैगोर) के तीन बच्चे हैं. फिल्म में जब मैंने एक सीन में बिंदी लगाई तो सबने कहा तुम अम्मा जैसी दिख रही हो.”

सोहा आगे बताती हैं कि फिल्म में वो एक पॉवरफुल सिख महिला का किरदार निभा रही हैं और परदे पर पहली बार तीन बच्चों की माँ बनी है. पूर्व प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी की ह्त्या के बाद के पंजाब के एक सिख परिवार पर गुजरीं घटनाओं की इस कहानी को लेकर काफी हो-हल्ला हो चुका है.

बेहद विवादित और सेंसिटव विषय होने की वजह से फिल्म बनाने से लेकर सेंसर से पास करवाने तक फिल्म के निर्देशक शिवाजी लोटन पाटिल और निर्माता हैरी सचदेव का दम निकल गया था.

वे बताते हैं कि उन्होंने पूरे 9 महीने सेंसर बोर्ड ऑफिस के चक्कर लगाएं. शुरू में सेंसर बोर्ड फिल्म में 40 कट देने के बाद सर्टिफिकेट देने को तैयार हुआ था लेकिन बाद में सिर्फ 9 कट में फिल्म पास हुई.

एक्टिंग छोड़ डायरेक्शन में क्यों गए सोहेल!

अभिनेता से निर्देशक बने सलमान खान और अरजाब खान के भाई सोहेल खान ने कहा कि वह फिल्मों के निर्देशन और निर्माण पर ज्यादा ध्यान देना चाहते हैं क्योंकि अभिनेता के तौर पर उन्हें जिस तरह की भूमिकाएं मिल रही थीं, उससे वह खुश नहीं थे.

सोहेल ने कहा, ‘अभिनेता के तौर पर मुझे अच्छा काम नहीं मिल रहा था और मैं सिर्फ नाममात्र के लिए अभिनय नहीं करना चाहता हूं. इस कारण मैं काफी दुखी था. उन्होंने कहा कि पहले मेरे पास कई फिल्में थीं लेकिन मुझे अहसास हुआ कि मेरे पास उपयोग करने के लिए एक अच्छा प्रोडक्शन हाउस है. मैंने सोचा कि मुझे निर्देशन करना चाहिए, निर्माण करना चाहिए.’

46 वर्षीय अभिनेता ने कहा कि अगर उन्हें अच्छे किरदार मिलेंगे तो ही वह अभिनय करेंगे, अन्यथा वह फिल्मों के निर्देशन और निर्माण के काम से जुड़े रहेंगे क्योंकि उन्हें लगता है कि ये उनके पास प्राकृतिक रूप से आती हैं.

1997 में ‘‘औजार’’ से निर्देशन में करियर की शुरूआत करने वाले सोहेल ने नवाजुद्दीन सिद्दीकी अभिनीत फिल्म ‘फ्रीकी अली’ का निर्देशन किया है. उन्होंने कहा, ‘मुझे अब भी निर्देशन के क्षेत्र में कई चीजें सीखनी हैं.’

जब उनसे ‘फ्रीकी अली’ के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘मैं लंबे वक्त से खेल पर कोई फिल्म बनाना चाहता था क्योंकि इसमें मेरी जबर्दस्त दिलचस्पी है. मुझे गोल्फ का विचार आया और फिल्म के लेखक राज शानदिलया की मदद से इसे असलियत में तब्दील किया.’

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