मुरगिन्स का योगर्ट

डेयरी आधारित खाद्य पदार्थों में अग्रणी ब्रैंड, मुरगिन्स ने भारत में रीयल फू्रट प्यूरी से युक्त प्रोबायोटिक योगर्ट की नई रेंज लौंच की है. यह योगर्ट ताजा फलों का असली स्वाद देने के साथ आप की पाचन क्षमता को प्राकृतिक रूप से बढ़ाएगा और आप को स्वस्थ बनाएगा. यह कई फ्लेवर्स जैसे स्ट्राबैरी, मैंगो, पीच और पाइनएप्पल में पेश किया गया है. इस के 125 एमएल के पैक की कीमत क्व25 है.

रेवलौन का कलरबस्ट क्रेयौन कलैक्शन

रेवलौन ने 16 कलर के रेवलौन कलरबस्ट क्रेयौन कलैक्शन की पेशकश की है, जिस में आरामदेह एवं आकर्षक होंठों के लिए ट्रिपल बटर कौंपलैक्स का समावेश किया गया है. चमकदार लुक के लिए इस में रेवलौन कलरबस्ट लैकर बाम है, तो वैलवैटी मैट फिनिश के लिए रेवलौन कलरबस्ट मैटे बाम.

मंडप के नीचे

बात मेरे भाई की शादी की है. वह उस वक्त कस्टम विभाग में सहायक कस्टम अधिकारी था. उस की शादी में मंडप के नीचे एक रस्म में सभी लोगों को नेग और खाना दिया जा रहा था, लेकिन मेरे भाई को न तो खाना परोसा गया था, न ही उसे कोई नेग दिया गया था. उस के आगे केवल चांदी की थाली व कटोरी रखी थी.

अचानक लड़की के पिता आए और उस के गले में चेन पहना गए और जातेजाते कह गए कि बेटा खाना शुरू करो.

लेकिन ऐसा होने के काफी देर के बाद भी उस की थाली खाली ही रही तो वह तेज आवाज में अपने एक दोस्त से बोला, ‘‘इन सभी लोगों को गिरफ्तार कर लो और कहां से ये सोनेचांदी का सामान लाए हैं उस की रसीद दिखाने के लिए कहो.’’

यह सुन कर वधू पक्ष के लोग घबरा गए तो उस ने कहा, ‘‘अगर मेरी थाली में आप लोग खाना परोस दोगे तो मैं किसी को गिरफ्तार नहीं करूंगा.’’

यह सुन कर सभी को अपनी गलती का एहसास हुआ. फिर माहौल हंसी का बना तो सभी हंसतेहंसते लोटपोट हो गए.

मोहिनी श्रीवास्तव

सर्वश्रेष्ठ संस्मरण  : बात मेरी छोटी बहन की शादी की है. तब मेरी बड़ी दीदी की शादी को कुछ ही दिन हुए थे. शादी में दीदी के सासससुर भी आए थे. बरात दीनानगर से यमुनानगर आनी थी, जिस का रास्ता लंबा होने के कारण बरात थोड़ी लेट हो गई थी. इस से सभी परेशान थे. फिर जब बरात पहुंची सभी उस के स्वागत में व्यस्त हो गए. ऐसे में दीदी के ससुर को लगा कि उन्हें अनदेखा किया जा रहा है. वे इसी बात को ले कर इतने नाराज हो गए कि उन्होंने जम कर हंगामा किया और वापस जाने की जिद करने लगे. फिर सब के समझाने और पापा द्वारा उन से माफी मांगने पर ही वे माने.

पूरी शादी में पापा का ध्यान बरातियों की ओर कम दीदी के ससुर की ओर ज्यादा था. हमें लग रहा था कि हमारा समाज कितना भी बदल जाए, लेकिन लड़के वाले और लड़की वाले में फर्क रहेगा ही.

बीनू सिंगला

बात मेरे भानजे रवि के विवाह की है. चूंकि विवाह अंतर्जातीय था, रवि ब्राह्मण है और रवि की होने वाली पत्नी सिक्ख परिवार से थी. विवाह समारोह सादा ही था. जयमाला होने ही वाली थी कि कुछ रिश्तेदार महिलाओं ने रवि को तानेउलाहने देने शुरू किए और कहा, ‘‘क्यों रवि, अपनी शादी में अपनी मां को भी कोई सोने का गहना बनवा कर दिया या नहीं?’’

एक तो आर्थिक मंदी से जूझते अपने जौब की कठिनाइयों से परेशान और दूसरे इस अंतर्जातीय विवाह की समस्याओं से दुखी मेरे भानजे ने शर्मिंदगी भरी नजरों से मेरी दीदी की तरफ देखा. दीदी ने तुरंत अपने हाथ में पहनी चूडि़यों को दिखाते हुए कहा, ‘‘ये चूडि़यां बनवाई हैं रवि ने मेरे लिए और इतनी अच्छी बहू आ रही है तो वह क्या किसी उपहार से कम है?’’

रवि ने उन्हें आदरपूर्ण नजरों से देखा तो मांबेटे के स्नेही भावों को महसूस कर के मेरा दिल खुश हो गया.      

पूनम अहमद

हरियाणा में छटियां खेलने की एक रस्म होती है, जिस में दुलहन जब विदा हो कर ससुराल जाती है, तो पेड़ों से लंबीपतली टहनियां तोड़ कर छटियां बनाई जाती हैं. उन छटियों से देवर नई भाभी को मारते हैं. ऐसा होने पर दुलहन जब लंबे घूंघट में इधरउधर भागती है तो सब को बड़ा आनंद आता है. फिर दुलहन के हाथ में छटी दी जाती है कि वह देवरों को मारे जब हमारे यहां यह रस्म हुई तो लंबे घूंघट के कारण भाभी देख नहीं पाईं कि आसपास कौन है. उन्होंने छटी से वार किया तो वह भैया (उन के पति) को लगी.

भैया चिल्लाए, ‘‘भागवान, अभी से यह कर रही हो, आगे तो पता नहीं किसकिस चीज से धुनाई करोगी.’’

यह सुन कर भाभी तो शर्म से पानीपानी हो गईं. आज भी भैया जब भाभी को छेड़ते हैं जो चाहे सजा दो पर छटी मत मारना, तो उस घटना की याद सब को गुदगुदा जाती है.

रेनू शांडिल्य

मैं अपनी सहेली आशा की शादी में दिल्ली से आगरा गई हुई थी. वहां मंडप सजाना था तो मैं आशा के चचेरे भाई मनु के साथ उसे फूलों से सजा रही थी. मनु फूलों की लडि़यों को मंडप पर लगाते हुए आगेआगे चल रहा था

तो मैं फूलों की टोकरी लिए उस के पीछेपीछे चल रही थी और फूलों की लडि़यां उस को दे रही थी. ऐसा करते हुए मंडप काफी अच्छा सज गया और हम आगेपीछे चलते रहे. अचानक एक लड़का जोर चिल्लाया, ‘‘मनु, बस 7 चक्कर हो गए. आशा के फेरे तो जब होंगे तब होंगे पर तुम दोनों के तो हो गए.’’

यह सुन कर सब तालियां बजाने लगे तो मैं शर्म से पानीपानी हो गई और फूलों की टोकरी वहीं रख कर वहां से भाग गई. ऐसा होने पर सभी लोग और जोरजोर से हंसने लगे.

आशा रानी भटनागर

सिमोन सिंह

‘सीहौक्स’ सीरियल से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री सिमोन सिंह की पहचान ‘हिना’ सीरियल से हुई. इस के बाद इन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. सीरियलों के अलावा सिमोन ने अपना जलवा फिल्मों में भी दिखाया, जिन में ‘रण’, ‘डेल्ही हाइट्स’, ‘कल हो न हो’, ‘बीइंग साइरस’, ‘कभी खुशी कभी गम’ आदि फिल्में हैं.

एक लंबे बे्रक के बाद सिमोन सिंह ने अब ‘एक हसीना थी’ धारावाहिक में अमीर और शक्तिशाली महिला साक्षी गोयनका की भूमिका में छोटे परदे पर वापसी की है.

यहां पेश हैं, सिमोन सिंह से हुई बातचीत के कुछ खास अंश:

सब से पहले आप अपनी खूबसूरती और ब्यूटीफुल स्माइल का राज बताइए?

यह सब कुदरत की देन है. जब इंसान अंदर से खुश होता है तो वह खुशी उस के चेहरे पर झलकती है और वही खुशी शायद मुझे खूबसूरत दिखाती है.

आप ने अपना आखिरी सीरियल 2010 में ‘लीप औफ फेथ’ किया था और आप की आखिरी फिल्म ‘रण’ 2009 में आई थी. तब से अब तक आप कहां थीं?

मैं अपने घरपरिवार पर ध्यान दे रही थी. पर ऐसा नहीं है कि मैं ने बे्रक ले लिया था. मैं ने ‘क्विज शो’, ‘टाक शो’ आदि किए, लेकिन फिक्शन कोई नहीं किया. इस की वजह यह थी कि मैं कोई दमदार रोल करना चाहती थी, जो मुझे नहीं मिला. वह रोल अब मिला.

थ्रिलर शो करने की क्या वजह है?

मैं लीक से कुछ अलग हट कर करना चाहती थी, क्योंकि एक ही ढर्रे वाले सीरियलों से मैं ही नहीं लोग भी बोर हो गए थे. इस में मेरा रोल बहुत ही दमदार है. यह एक ऐसी औरत का कैरेक्टर है, जो खुद पर बहुत विश्वास करती है, इसलिए बहुत ज्यादा पावरफुल महसूस करती है.

अब आप और किस तरह के रोल करना चाहती हैं?

मेरा कौमेडी करने का बहुत मन है. वाकई दूसरों को हंसाना सरल नहीं है, बहुत कठिन है.

आजकल नारी सशक्तीकरण की बात बहुत होती है. इस बारे में आप के क्या विचार हैं?

नारी सशक्तीकरण से सोसाइटी को आगे बढ़ाया जा सकता है. मेरे सीरियल ‘एक हसीना थी’ में ऐसी ही नारी की कहानी है, जो अतीत में हुए एक अपराध के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ रही है. उस ने इंसाफ पाने के लिए बहुत कुछ बदलने का बीड़ा उठाया है.

आप अपनी शौपिंग कहां से करती हैं?

मैं ज्यादातर अपनी शौपिंग न्यूयार्क व दिल्ली से करती हूं और कपड़े अच्छे ब्रैंड के ही लेती हूं.

अपनी ड्रैस किस डिजाइनर से डिजाइन करवाती हैं?

मैं वेलडेल रोड्रिक्स, अंशु अरोड़ा और राजेश प्रताप सेन की डिजाइन की हुई ड्रैसेज ही पहनती हूं. इस के अलावा मुझे हैंडलूम व चंदेरी साडि़यों का कलैक्शन करना बहुत पसंद है.

आप को मेकअप और ज्वैलरी का शौक है?

मेकअप मैं ज्यादा पसंद नहीं करती, लेकिन शूटिंग के समय मुझे करना पड़ता है. पर मुझे फंकी ज्वैलरी का बहुत शौक है.

आप को खाना बनाना आता है?

हां, मैं थाई फूड व इटैलियन फूड बहुत अच्छा बनाती हूं. जो नहीं बना पाती वह जापानी फूड है.

आप के पसंदीदा ऐक्ट्रैस और ऐक्टर?

ऐक्ट्रैस में मुझे आलिया भट्ट और ऐक्टर में रणबीर कपूर पसंद है. ये दोनों बहुत टैलेंटेड हैं. इस के अलावा हौलीवुड का रौबर्ट डस्टिन हाफमैन मुझे पसंद है.

आप की हौबीज क्या हैं?

मुझे ट्रैवलिंग, रीडिंग और आर्किटैक्चर का बहुत शौक है और हर नई जगह मुझे अच्छी लगती है.

किस तरह की बुक पढ़ती हैं?

मैं फिक्शन और नौन फिक्शन दोनों ही पढ़ती हूं. मुझे लगता है कि आप किताबों के सहारे एक ही समय में दूसरी दुनिया में पहुंच जाते हैं.

टै्रवलिंग के दौरान कौन सी जगहें अच्छी लगीं?

स्कौटलैंड बहुत खूबसूरत है. गोवा के बीचेज पर घूमते हुए ऐनर्जी मिलती है, जिस से बहुत सुकून मिलता है. न्यूयार्क में मुझे मनहट्टन पसंद है.

ऐड और फिल्मी ऐक्टिंग में आप को क्या पसंद है?

मुझे दोनों ही पसंद हैं. ऐड में आप को  25 से 30 सैकंड यानी एक निश्चित समय में अभिनय करना होता है और उस में कम समय में ज्यादा पैसा भी मिलता है. पर मुझे फिल्मी ऐक्टिंग ज्यादा पसंद है, क्योंकि वह ज्यादा रोचक होती है.

दिल्ली में आप कहां पर रहीं?

मैं ग्रेटर कैलाश में रही. दिल्ली बहुत अच्छी है. 

होम्योपैथी सुरक्षित भी प्रभावी भी

जब डाक्टर सैमुएल हैनीमैन ने होम्योपैथी को दवा के रूप में विकसित किया, तो उन्होंने इस बात पर ज्यादा जोर दिया कि इस के सिद्धांत भी मानवीय सिद्धांतों की तरह ही हों. उधर बोएनिंगहासेन ने पशुओं के लिए होम्योपैथिक दवाओं पर काम जारी रखा. यूके में जौर्ज मैकलौयड होम्योपैथिक पशु चिकित्सक थे. साल 1982 में ‘ब्रिटिश ऐसोसिएशन औफ होम्योपैथिक वैटरिनरी सर्जंस’ की नींव रखी गई, जो होम्योपैथिक पशु चिकित्सकों और विद्यार्थियों के लिए केंद्र बन गया.

होम्यो पशुचिकित्सा का इतिहास

होम्योपैथी में पशु चिकित्सा के कोर्सों की शुरुआत रौयल लंदन होम्योपैथिक अस्पताल से हुई. अप्रैल, 1986 में ‘इंटरनैशनल ऐसोसिएशन फौर वैटरिनरी होम्योपैथी’ का गठन लक्जेमबर्ग में किया गया. क्रिस्टोफर डे इस ऐसोसिएशन के पहले अध्यक्ष बने. इस क्षेत्र में अन्य काम करने के साथसाथ ऐसोसिएशन ने वैटरिनरी मैटेरिया मेडिका (लिखित मैडिकल मैटेरियल) भी बनाई.

संस्था ने 1988 में वैटरिनरी डीन के पद का गठन किया ताकि वैटरिनरी होम्योपैथी शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रम की देखरेख की जा सके. साल 1991 में पहले वैटरिनरी फैलोफैकैल्टी का चुनाव भी किया गया. साल 2001 में वैटरिनरी होम्योपैथी के पहले प्रशिक्षण और योग्यता पाठ्यक्रम [एलएफ होम (वेट)] का गठन किया गया. इन सब के फलस्वरूप आज फलतीफूलती होम्योपैथिक वैट कम्यूनिटी को देखा जा सकता है. होम्योपैथिक दवाओं की सूचियां सभी होम्योपैथिक पशु चिकित्सकों के पास उपलब्ध हैं.

पशुओं पर इस्तेमाल

घरेलू जानवरों से ले कर फार्मिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पशुओं, घोड़ों, जंगली जानवरों, पक्षियों और मछलियों पर भी होम्योपैथी का इस्तेमाल किया जाता रहा है. और्गेनिक खेती करने वाले किसान होम्योपैथी को प्रभावी और सुरक्षित मानते हैं, क्योंकि यह मवेशियों के मीट, दूध और अंडों में मौजूद तत्त्वों को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाती.

कठिन रोगों का इलाज

बारबार होने वाला औपथैलमिया (नेत्रशोथ), सिर घूमना, हिप डिस्प्लेसिया (कूल्हे का खिसकना), बोन सिस्ट (हड्डी में गांठ), पाश्चुरैला, क्लामाइडिया, निमोनिया, मैनिनजाइटिस, मासटाइटिस, रिंगवर्म, इपिलिप्सी, योडर्मा, एग्जिमा, चर्म रोग, स्नोफिलिक मायोसाइटिस, स्नोफिलिक ग्रैन्यूलोमा, चूहों के कारण हुआ अल्सर, मिलिअरी एग्जिमा, किडनी और लिवर के रोग, सिस्टाइटिस, आर्थ्राइटिस (जोड़ों का दर्द), आटोइम्यून डिसऔर्डर, पाचन रोग, दिमागी रोग, हृदय रोग और व्यवहार संबंधी परेशानियों से जूझने वाले लोग होम्योपैथिक पशु चिकित्सक से ज्यादा संपर्क करते हैं.

होम्योपैथी शरीर में रोगों से लड़ने की प्रणाली को संतुलित बनाती है ताकि पशु रोगी का रोग खुदबखुद दूर हो जाए. यह होम्योपैथी निदान गाइड आमतौर पर प्रचलित निदानों के बारे में आप को बताएगी. लेकिन बेहतर होगा कि इस लिस्ट का इस्तेमाल केवल जानकारी के तौर पर करें और सभी निदानों को सावधानी से पढें़, क्योंकि होम्योपैथी तभी कारगर साबित होगी जब विकार पूरी तरह निदान से मिले.

गंभीर विकारों को खुद ही ठीक करने की कोशिश बिलकुल न करें. किसी होम्योपैथिक चिकित्सक या पशु चिकित्सक से एक बार सलाह जरूर लें ताकि पशुओं को किसी तरह का नुकसान न पहुंचे. डाक्टर को सही जानकारी देने में आप चूक जाएंगे तो वह भी कुछ नहीं कर पाएगा.

अगर 4 बार लेने के बाद भी होम्योपैथिक दवा का कोई असर नहीं दिख रहा हो तो तुरंत होम्योपैथिक चिकित्सक से संपर्क करें. हो सकता है कि आप सही निदान न ले रहे हों या दवा सही मात्रा में न ले रहे हों. निदान दिए जाने के बाद लक्षणों में सुधार भी आ सकता है और कभीकभी स्थिति बिगड़ भी सकती है. ऐसे में पहले होम्योपैथिक चिकित्सक की सलाह जरूर लें.

आम निदान

आर्निका: बिजली से लगने वाले शौक को छोड़ दें तो सिर की चोट, खरोंच या अन्य किसी तरह की चोट में दी जाने वाली यह पहली दवा है. खासतौर पर सिर की अंदरूनी चोट में यह खून का थक्का नहीं बनने देती जिस से स्ट्रोक आने का खतरा कम हो जाता है.

एकोनाइट: जलन या सूजन महसूस होने पर, उत्तेजित या उलझन महसूस करने पर और मुंह सूखने पर. निदान से पहले कानों को ताप या ठंड के लिए चैक करें.

एपिस मेलिफिसा: ऐलर्जी हो जाने पर, दवाओं के रिएक्शन से त्वचा पर खुजली होने पर, ऐलर्जी के कारण गले में सूजन होने पर यह निदान दिया जाता है.

आर्सिनिकम एलबम: उलटीदस्त के कारण पेट दर्द, फूड पौइजनिंग, सेपसिस (पस पड़ना), उत्तेजना, उलझन खासतौर पर रात में और बारबार थोड़ीथोड़ी प्यास लगने पर यह दवा इस्तेमाल में आती है.

ब्रायोनिया: पेचिस के बाद पेट दर्द या अन्य तरह की परेशानी, ज्यादा प्यास लगना, खाना खाने के बाद उलटी आना और कब्ज में कारगर निदान.

कैल्केरिया कार्बोनिका: पुरानी चोटों को ठीक करने के लिए, पर रसटौक्स भी कुछ समय तक दिया गया हो. मसल्स के लिए यह टौनिक है. शरीर में कैल्सियम की मात्रा का संतुलन. इस के बारे में कुछ और जानकारी जुटाने के बाद प्रयोग करें.

कैलेंडुला क्रीम: घावों को जल्दी भरने के लिए. लेकिन अगर घावों का बहना जरूरी हो तो इस का इस्तेमाल न करें. कैलेंडुला घाव भर देती है जिस से संक्रमण वाले तत्त्व बह जाने के बजाय अंदर रह सकते हैं. संक्रमण समाप्त हो जाने तक रुकें.

कैमोमिला: दांत निकलते समय और चिड़चिड़ापन, पेट दर्द और अस्थिरता महसूस होने पर.

हीपर सल्फर: संक्रमण के लिए यह उपयुक्त निदान है. सांस संबंधी संक्रमण, साइनोसाइटिस और फोड़े में कारगर. यह दवा आंख, कान, फेफड़ों या त्वचा संबंधी संक्रमणों को बेहतर तरीके से दूर करती है. बिगड़े हुए जुकाम, कफ और खराश का उपयुक्त निदान. मुंह के छालों को ठीक करने के लिए इस का ज्यादातर इस्तेमाल किया जाता है.

हाईपेरिकम (सैट जौंस वर्ट): ऐसे घावों में कारगर जिन में नसों के छोर नष्ट हो गए हों. खासतौर पर गरदन, पीठ और रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में हुए घाव, जिन में नसों का छोर नष्ट हुआ हो.

मैगफौस (6 ऐक्स टिशू साल्ट): मरोड़ व ऐंठन के साथ दर्द, पेट का फूलना और गैस के साथ दर्द (पेट का). नक्सबाम और मैगफौस को तब एकसाथ लें जब कब्ज, पेट के निचले हिस्से में सूजन, गैस और ऐंठन व मरोड़ ज्यादा हो.

नक्सवोमिका: रहरह कर पेट दर्द और कब्ज, साइनस इन्फैक्शन, मरोड़, ज्यादा खा लेने पर या उलटासीधा खा लेने पर यह निदान लें.

पलसैटिला: कान से मवाद आने पर और पेट दर्द के लिए निदान.

रसटक्स: बारिश के मौसम में जोड़ों, मांसपेशियों में दर्द, कमजोरी होने पर या उठनेबैठने पर इन में ज्यादा दर्द होने पर यह निदान दिया जाता है. आर्थ्राइटिस के लक्षण दिखने पर यह निदान कारगर है.

रूटा: मांसपेशियों में खिंचाव से ले कर हड्डियों के विकार तक, कार्टिलेज, तंतुओं में तनाव इत्यादि में कारगर.

सीपिया: गंभीर सिसटाइटिस, हारमोन बदलाव के कारण मूड स्विंग्स, गर्भाशय संबंधी समस्या या उन मांओं के लिए जो बच्चे के पास नहीं फटकतीं.

सिमफाइटम/कौमफ्रे: हड्डियां टूटने पर.

टीट्री: यह ऐंटीसैप्टिक, ऐंटीबैक्टीरियल और ऐंटीफंगल है. इस से घावों को साफ किया जा सकता है. टीट्री के इस्तेमाल का इतिहास पुराना है. आस्ट्रेलिया के आदिवासी त्वचा कट जाने पर, जल जाने पर या संक्रमण हो जाने पर इस की पत्तियों को मसल कर लगाते थे.

तो अब आप अपने मवेशियों का इलाज होम्योपैथी से भी कर सकते हैं, पर चिकित्सक से सलाह जरूर लें.

‘जंगल मेरा घर है और पशुपक्षी मेरे दोस्त’

वन्यजीव फोटोग्राफी में आमतौर पर कैरियर बनाने को ले कर महिलाएं हिचकती हैं पर अपर्णा पुरुषोत्तमन ने न सिर्फ वन्यजीव फोटोग्राफी में अपनी अलग पहचान बनाई है, इस क्षेत्र के लिए वे एक जानामाना नाम भी बन गई हैं.

केरल की अपर्णा पुरुषोत्तमन की वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बनने की कहानी काफी दिलचस्प है. इस प्रोफैशन में कम समय में ही अपर्णा ने एक अलग ही पहचान बना ली है.

अपर्णा का यह पैशन जान कर पति अशोक ने उन्हें खूब प्रोत्साहित किया है. रैड लिस्ट में शामिल संकटग्रस्त वन्यजीव को अपने कैमरे में उतार कर इस वन्य जीव फोटोग्राफर ने बायोलौजिस्ट एवं शोध करने वाले वैज्ञानिकों को सचमुच ही चौंका दिया है. अध्यापक, रिसर्च स्कौलर व ऐक्टीविस्ट अपर्णा के साथ वन की यात्रा करते हैं. उन के कैमरे के फ्रेम में कैद चित्र जंगल के दृश्य से भी ज्यादा खूबसूरत दिखाई पड़ते हैं.

अपर्णा कहती हैं, ‘‘मैं सचमुच प्रकृतिप्रेमी हूं, शायद इसलिए ये तसवीरें भी खूबसूरत दिखती होंगी. मैं इस सोच के साथ वन नहीं जाती कि किन्हीं खास दृश्यों को कैमरे में कैद करना है. पक्षी एवं जानवरों को आमनेसामने देखने का मौका मिलता है, तो उन्हें पहले जिज्ञासा से कुछ देर देखती हूं फिर चुपचाप उन की फोटो खींच लेती हूं. क्योंकि हम उन के घर में जबरदस्ती घुसते हैं, इसलिए मैं उन्हें बिना सताए काम करना अपना फर्ज समझती हूं.’’

कैसे आईं इस क्षेत्र में

वन्यजीव फोटोग्राफी के क्षेत्र में कैसे आईं? इस सवाल के जवाब में अपर्णा बताती हैं कि शादी के बाद ही इसे प्रोफैशन बनाया. कुछ साल पहले विदेश से एक मित्र घर आए तो उन के कैमरे से मैं ने कुछ पंछियों के फोटो खींचे. यह मैं ने कुतूहलतावश किया था. पर उन्होंने इन फोटो की बहुत प्रशंसा की. इतना ही नहीं, उन्होंने वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी के बारे में बहुत कुछ बताया. उन्होंने प्रमुख वन्यजीव फोटोग्राफर राधिका रामास्वामी का एक लिंक भी मुझे भेज दिया. इस में अधिकतर विभिन्न प्रकार के पक्षियों की तसवीरें थीं. फिर मैं ने इन से संबंधित लेख ढूंढ़ कर पढ़े और फिर नौकरी छोड़ कर वन्यजीव फोटोग्राफर बन गई. बचपन से ही जीवजंतु मुझे बहुत अच्छे लगते हैं. इन्हें घायल देख कर मेरा मन बेहद दुखी होता था. दुर्घटना से घायल जानवरों को मैं अस्पताल तक ले जाने में जरा भी वक्त जाया नहीं करती थी.

पति का सपोर्ट

मुझे कभी भी अपने पति से कुछ मांगने की आदत नहीं रही. एक दिन मेरे पति मुझ से बोले कि तुम कभी भी कुछ नहीं मांगती हो. मैं तुम्हारे लिए क्या लाऊं? तो मैं ने हिचकते हुए उन से कहा कि एक छोटा सा कैमरा मिल जाता तो अच्छा होता.

फिर कुछ दिन बाद शादी की सालगिरह पर उन्होंने मुझे एक कैमरा गिफ्ट में दिया. उस कैमरे से मैं ने जिस पंछी के फोटो खींचे उन्हें देख कर हैरान हो कर उन्होंने कहा, ‘‘कितने खूबसूरत फोटो हैं. तुम ने यह बात पहले मुझ से क्यों नहीं बताई?’’

फिर उन्होंने मुझे खूब प्रोत्साहन दिया. मैं सब से पहले पति के साथ ही शोलयार वन की सैर पर गई थी. पति वहां के एस.इ.बी. में इंजीनियर का काम कर रहे थे. सचमुच वह एक यादगार अनुभव था. वहां की पशु विविधता ने मुझे बेहद प्रभावित किया. वन की पगडंडियों की सैर, पक्षियों का कलरव, प्रकृति का अद्भुत दृश्य सभी अविस्मरणीय थे.

यह पूछने पर कि जंगल में जाते समय महिला फोटोग्राफर होने की वजह से कौनकौन सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? अपर्णा कहती हैं, ‘‘जंगल में सुरक्षा एक अहम बात है. जंगल में पशुपक्षियों या वन्यजीवों से नहीं, बल्कि मनुष्य से डरना पड़ता है. लेकिन यात्रा के दौरान मुझे कोई खराब अनुभव अब तक नहीं हुआ. हां 2 से 3 लोगों का छोटा ग्रुप बना कर जंगल जाना ठीक रहता है. मेरा वन्यजीवों के घर को हानि पहुंचाए बिना जंगल जाना होता है. जंगल मेरे घर की तरह है जिस से मुझे प्यार है.’’

कैरियर की यादगार घटना

शोलयार वन के जीवजंतुओं के बारे में जानकारी देने वाला एक व्यक्ति है माणिक्यन. माणिक्यन ने एक जीव नीलगिरि मार्टेन के बारे में जिक्र किया था. उस ने इस जीव को वेंगपुली नाम दिया था. नेचरलिस्टों ने इन की बात नहीं मानी थी.

एक बार वालप्पारा अड़यार डाम से वन यात्रा करते समय मैं ने एक पेड़ पर एक जीव को देखा. उस के गले में लाल रिबन वाली पट्टी बंधी थी. मैं ने उस की कई तसवीरें उतारीं. इस से पहले किसी ने उस जीव की तसवीर उतारी ही नहीं थी. फिर मैं जान गई कि यह रैड लिस्ट में शामिल कोई संकटग्रस्त जीव है. जब मैं ने उस जीव की तसवीरें माणिक्यन को दिखाईं तो माणिक्यन ने कहा कि यह वही जीव है जिस का मैं हमेशा जिक्र किया करता था. उन तसवीरों  को देख कर बहुत से लोगों ने मेरी प्रशंसा की थी और तभी यह घटना मेरी जिंदगी का टर्निंग पौइंट बन गया.

कैरियर की शुरुआत में भी एक घटना घटी थी. बिलकुल शांत दिखने वाले जंगली कुत्तों के ग्रुप ने धीमी चाल में चलते हुए एक सांभर का अचानक पीछा कर के उसे पास के तालाब में धकेल दिया. इसी तरह जमीन पर चलने वाले हिरन को जंगली कुत्तों के ग्रुप ने कच्चा ही चबा डाला. इस दृश्य को देख कर मैं सचमुच ही डर गई थी. लेकिन मैं जानती हूं कि यह एक प्राकृतिक नियम है कि ये एकदूसरे का अन्न हैं. दरअसल, जंगल का भी अपना एक नियम होता है.

फेसबुक में फौलोवर्स

मैं एफबी में तसवीर पोस्ट करने से पहले उस जीव के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करती हूं. एक बार राधिका रामास्वामी ने मेरी खिंची तसवीरें देख कर मैसेज द्वारा प्रशंसा की थी. यह मेरे लिए बेहद खुशी की बात थी. मेरा पसंदीदा पक्षी उल्लू है, क्योंकि यह साल में एक अंडा ही देता है. यह पक्षी अंधविश्वास के नाम पर बहुत ही सताया जाता है. ऐसा जागरूकता के अभाव की वजह से होता है.

संजीव कपूर

‘खाना खजाना’ से चर्चित हुए सैलिब्रिटी शैफ संजीव कपूर ने लगातार पाक कला को विकसित कर हर घर में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. स्वभाव से नम्र, धैर्यवान संजीव कपूर की हमेशा कुछ नया और अलग करने की चाहत रहती है.

हरियाणा में जन्में संजीव कपूर का बचपन दिल्ली में बीता. होटल मैनेजमैंट की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कई बड़े होटलों में काम किया और ऐग्जीक्यूटिव शैफ बने. बेहतरीन भारतीय व्यंजन बनाने में माहिर संजीव कपूर को कई पुरस्कार भी मिले. उन का चैनल ‘फूड फूड’ भी काफी लोकप्रिय है, जिस का सपना उन्होंने सालों देखा था. इन दिनों वे एक शैफ कुकबुक के लेखक और रेस्तरां कंसलटैंट भी हैं. इस के अलावा वे सोनी टीवी के शो ‘संजीव कपूर के किचन के खिलाड़ी’ के जज भी हैं.

यहां पेश हैं मड आईलैंड पर उन से हुई बातचीत के खास अंश:

इस क्षेत्र में कैसे आए?

खाना बनाने का शौक मुझ में बचपन से ही था, लेकिन उस वक्त यह नहीं सोचा था कि मैं शैफ बनूंगा. फिर होटल मैनेजमैंट कोर्स किया तो रुचि बढ़ती गई और मैं इस क्षेत्र में आ गया.

परिवार का कितना सहयोग था?

किसी ने कभी मना नहीं किया. मेरे पिताजी को भी खाना बनाने का शौक था. वे बैंक में काम करते थे पर कभीकभी खाना भी बनाया करते थे. मेरे घर में ऐसा कुछ नहीं था कि पुरुष हैं तो खाना नहीं बना सकते.

रोजमर्रा का खाना जल्दी बनाने के तरीके क्या हैं?

जल्दी खाना बनाने के लिए स्मार्ट कुकिंग करनी पड़ती है. ऐसे में कुछ चीजें पहले से तैयार कर के एकसाथ रखनी पड़ती हैं. खरीदारी हो या मेन्यू प्लानिंग, पहले से कर के रखें. मसाले हमेशा थोक में रखें. खाना बनाते समय अगर आप ये सब तैयारी करेंगे, तो समय व्यर्थ जाएगा. इसलिए ये काम आप तब करें, जब आप के पास समय हो. अधिकतर महिलाएं समय रहते काम नहीं करतीं और बाद में काम को कोसती रहती हैं.

हैल्दी खाना बनाने के तरीके क्या हैं?

हैल्दी खाना बनाने के लिए हैल्दी सिद्धांत रखने पड़ते हैं. परिवार में हर व्यक्ति की अलगअलग स्वास्थ्य समस्या होती है, इसलिए खाने में कभी किसी चीज की अति न करें. तली हुई चीजें, मीठा या सैलेड अधिक कभी भी न खाएं. वजन तभी बढ़ता है जब आप ऐक्स्ट्रा खाते हैं. अपनेआप को कंट्रोल में रखें. दिमाग की अवश्य सुनें. वर्कआउट नियमित करें. इस से आप ने अगर कुछ चीजें अधिक खाई हैं, तो उन का सामंजस्य हो जाता है.

हर घर में मीठा पसंद किया जाता है, लेकिन कई घरों में कुछकुछ बीमारियां होती हैं. ऐसे में खाने में क्या शामिल करें, ताकि एक अच्छी मिठाई परिवार वालों को मिले?

महिलाएं सभी तरह का खाना बनाती हैं पर मिठाई को ले कर वाकई समस्या होती है. ऐसे में डाक्टरी सलाह अवश्य मानें. इस के अलावा तली हुई या मैदे से बनी मिठाई अवौइड करें. मिठाई में फलों का प्रयोग अधिक करें.

मौडर्न कुकिंग में कौनकौन से ऐप्लाएंसिस खरीदने जरूरी हैं, जो किचन में खूबसूरत लगने के अलावा बजट में हों?

आजकल बाजार में कई तरह के ऐप्लाएंसिस उपलब्ध हैं. अगर फैमिली छोटी हो तो ग्राइंडर, मिक्सर, मिनी चौपर लें और एक इंडक्शन कुकर लें, जिस से गैस की बचत होती है और किचन भी साफ रहता है. इस के अलावा बरतन व पतीले अच्छी क्वालिटी के खरीदें, जिन में तेल कम लगता हो.

ग्रीन हाउस के उत्पाद का प्रयोग कहां तक सही होता है?

मेरे हिसाब से सीजन वाली चीजें अधिक खाएं. जो सीजन वाली नहीं हैं उन्हें कम खाएं, क्योंकि एक तो वे महंगी होंगी और टेस्टी भी कम होंगी, जबकि सीजन की फलसब्जियां अच्छी और हैल्दी भी रहेंगी.

प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी ब्रैस्ट कैंसर का निदान

अभी हाल ही में सोशल नैटवर्किंग साइट में हौलीवुड अभिनेत्री एंजेलिना जोली के एक पोस्ट ने उन के चाहने वालों के बीच हलचल मचा दी. अपने पोस्ट में एंजेलिना ने अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए स्वेच्छा से अपने स्तन को निकलवा देने यानी मैस्टेकटोमी करवा लेने का एलान किया.

बहरहाल, सोशल नैटवर्किंग साइट में इस एलान के कुछ दिनों बाद उन्होंने न्यूयार्क टाइम्स में ‘माई मैडिकल चौइस’ शीर्षक से एक लेख में लिखा कि उन्होंने हाल ही में खून में बीआरसीए-1 जिन, जो स्तन कैंसर के लिए जिम्मेदार माना जाता है, की उपस्थिति की जांच करवाई थी. इस जांच से पता चला कि इस जिन की उपस्थिति उन के खून में है. जांच रिपोर्ट में कयास लगाया गया था कि निकट भविष्य में स्तन और बच्चेदानी में कैंसर की आशंका है.

हालांकि जांच में 87% स्तन कैंसर की और 50% बच्चेदानी में कैंसर की आशंका व्यक्त की थी, लेकिन स्तन कैंसर की आशंका 87% थी, इसीलिए उन्होंने सब से पहले प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी का रास्ता चुना और इस के तहत उन्होंने अपने दोनों स्तन सर्जरी के माध्यम से कटवा कर निकलवा दिया.

इतना कठिन फैसला लेने के बावजूद एंजेलिना जोली के आत्मविश्वास में जरा भी कमी नहीं आई. उलटे उन्होंने लिखा है कि इस से नारीत्व पर जरा भी असर नहीं पड़ेगा. हालांकि लेख में उन्होंने यह भी लिखा है कि जांच में कैंसर की संभावना ने उन्हें बहुत विचलित कर दिया था, क्योंकि 2007 में स्तन कैंसर ने महज 56 साल की उम्र में उन की मां को छीन लिया था. अपनी मां को उन्होंने तड़पते हुए देखा था. वे खुद उस दौर से गुजरने को कतई तैयार नहीं थीं, इसीलिए उन्होंने मैस्टेकटोमी का फैसला लेना कहीं बेहतर समझा.

और भी हैं इस राह के राही

पर तथ्य बताते हैं कि प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी का रास्ता अकेले एंजेलिना जोली ने नहीं अपनाया है, बल्कि अमेरिका में ऐसे बहुत सारे मामले देखने को मिल जाएंगे. खून में बीआरसीए-1 जिन जांच का नतीजा पौजिटिव पाए जाने के बाद अमेरिका में कैंसर पीडि़त होने की संभावना वाली 30% महिलाएं मैस्टेकटोमी का रुख अपनाती हैं.

डाक्टरी परिभाषा में इसे प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी का नाम दिया गया है और अमेरिका सहित यूरोप में इस की बहुत सारी मिसालें मिल जाएंगी. जाहिर है इस तरह के फैसले की घोषणा करने वाली अकेली एंजेलिना नहीं हैं.

1974 में अमेरिका की फर्स्ट लेडी बेट्टी फोर्ड ने भी यही किया था. बेट्टी फोर्ड अमेरिका के राष्ट्रपति रहे जेराल्ड फोर्ड की पत्नी हैं.

2007 में लास एंजिल्स टाइम्स की एक महिला पत्रकार ऐन गरमैन ने भी अपने कौलम ‘फर्स्ट पर्सन अकाउंट’ में अपने मैस्टेकटोमी की खबर को आम किया था.

कैंसर का प्रकोप

आजकल दुनिया भर में स्तन कैंसर का प्रकोप दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. आंकड़े बताते हैं कि इस समय हमारे देश में स्तन कैंसर पीडि़त महिलाओं की संख्या 4 लाख से भी अधिक है. अकेले प. बंगाल में इस समय लगभग 50 हजार महिलाएं इस की शिकार हैं. चिंता का विषय यह है कि पूरे देश में हर साल कम से कम डेढ़ लाख महिलाएं स्तन कैंसर की शिकार होती हैं.

कोलकाता में विजया मुखर्जी नाम की एक महिला, जो लगभग 30 साल पहले 44 साल की उम्र में स्तन कैंसर की शिकार हो गई थीं, बताती हैं कि कैंसर से पीडि़त होने की बात मेरे लिए पहला झटका थी. सुनते ही मेरे मन में पति और अपने दोनों बच्चों का खयाल आया. दूसरा झटका तब लगा कि जब डाक्टर ने कैंसर की भयावहता के बारे में बताया.

मुझ से कहा गया कि जल्द ही कैंसर शरीर के अन्य हिस्सों को भी प्रभावित करने जा रहा है और इसे रोकने के लिए मैस्टेकटोमी ही एकमात्र रास्ता है. फिर मेरा औपरेशन हुआ. मैं बहुत मायूस थी, लेकिन शारीरिक तौर पर कुछ खास फर्क का पता नहीं चला. लेकिन कुछ दिनों के बाद जब घर लौटने लगी तब लगा सैकड़ों नजरें मुझे भीतर तक बींध रही हैं. मुझे लगा कि लोगों की नजरों से बचने के लिए मैं अपनेआप को कहीं छिपा लूं. मैं ने पूरी दुनिया से अपनेआप को अलग कर लिया.

आज विजया मुखर्जी ‘हितैषणी’ नामक एक एनजीओ चलाती हैं. इस के बारे में वे कहती हैं कि 1995 में स्तन कैंसर से पीडि़त और मैस्टेकटोमी करवाने वाली महिलाओं का एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था. इस सम्मेलन में वे भी शामिल हुई थीं. सम्मेलन के अनुभव को काम में लगा कर उन्होंने ‘हितैषणी’ संस्था की स्थापना की, जिस का मकसद स्तन कैंसर से पीडि़त महिलाओं को मानसिक तौर पर मजबूती देना है. शुरूशुरू में संस्था के सदस्यों की संख्या महज 5-6 थी, लेकिन आज 57 सदस्य हैं. विजया मुखर्जी की संस्था स्तन कैंसर पीडि़तों का हर तरह से सहयोग करती है.

डाक्टर की राय

आइए जानें कि प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी के मुद्दे पर डाक्टर क्या कहते हैं. कोलकाता के जानेमाने एंकोलौजिस्ट डा. गौतम मुखर्जी का कहना है कि एंजेलिना जोली ने साहस भरा कदम उठाया है, यह कहना ही पड़ेगा. लेकिन एक कैंसर विशेषज्ञ के रूप में मैं एंजेलिना जोली के इस कदम का समर्थन नहीं करता, क्योंकि कैंसर के मरीज के लिए यह सब से आखिरी विकल्प होता है. जबकि एंजेलिना जोली ने इस विकल्प का इस्तेमाल तब किया, जब जांच में सिर्फ ऐसी संभावना जताई गई थी.

वैसे भी विदेश में प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी का केवल चलन ही नहीं है, बल्कि यह चलन मास हिस्टीरिया का रूप ले चुका है. इस से दुनिया के अन्य देशों में भी इस चलन के बढ़ने की आशंका प्रबल होती जाएगी.

एंजेलिना जोली का फौर्मूला मान कर चलें तो गाल ब्लैडर में पथरी की आशंका होते ही गाल ब्लैडर काट कर फेंक दिया जाना चाहिए. इसी तरह एपेंडिसाइटिस की आशंका होते ही एपेंडिक्स निकलवा दिया जाना चाहिए. बीआरएसी-1 और बीआरएसी-2 नामक जांचों का प्रचार इसलिए किया जा रहा है ताकि कैंसर होने की संभावना का पता चल सके. लेकिन इन की रिपोर्ट पौजिटिव आने का अर्थ यह कतई नहीं कि देरसवेर कैंसर का शिकार होना ही है. इन दोनों जिन की उपस्थिति से सिर्फ कैंसर की आशंका की जा सकती है. डाक्टर तो फैमिली हिस्ट्री, लाइफस्टाइल के अलावा अन्य किसी बीमारी से पीडि़त होने जैसे कई फैक्टर्स पर विचार करने के बाद ही खून की बहुत ही महंगी जांच करवाने की सलाह देते हैं.

देह सौंदर्य बनाम जीवन

स्तन कैंसर के प्रति जागरूकता अच्छी बात है. इस आधार पर महिलाओं को खुद अपनी जांच करनी चाहिए या 40 की उम्र के बाद साल में एक बार डाक्टर की सलाह पर मेमोग्राफी, सीटी स्कैन, बायोप्सी जैसी कुछ जांचें नियमित रूप से करवानी चाहिए. अगर कैंसर हो भी गया है तो रेडियोथेरैपी, कीमोथेरैपी, हारमोन थेरैपी के बाद ही मैस्टेकटोमी आखिरी विकल्प है. हालांकि डा. गौतम मुखर्जी का यह भी कहना है कि स्तन कैंसर के 90% मामलों में मैस्टेकटोमी का सहारा लिया जाता है, केवल 10% मामलों में ब्रैस्ट कंजरवेटिव सर्जरी काम आती है. इस के लिए सरकारी अस्पताल में खर्च क्व10 हजार आता है तो निजी अस्पतालों में क्व30-50 हजार और यह सर्जरी कोई भी सर्जन कर सकता है.

पर इस से भी बड़ी बात यह है कि केवल आशंका भर से इतना बड़ा कदम उठाए जाने का समर्थन नहीं किया जा सकता है. डा. गौतम मुखर्जी कहते हैं कि स्तन सर्जरी के बाद हारमोन थेरैपी की जरूरत पड़ती है, ताकि विशेष तरह के हारमोन की कमी का असर शरीर पर न पड़े. साथ ही वे यह भी कहते हैं कि मैस्टेकटोमी के बाद गर्भधारण में कोई समस्या नहीं आती है. पर हां, स्तनपान संभव नहीं है. इसलिए बच्चा स्तनपान से वंचित रहेगा, क्योंकि स्तन के अभाव में दूध नहीं बनेगा.

नारी सौंदर्य का सवाल

पर जहां तक नारी सौंदर्य का सवाल है तो इस के लिए ब्रैस्ट रिकंस्ट्रक्शन तकनीक यानी कृत्रित स्तन का विकल्प है और यह काम कौस्मैटिक सर्जन बखूबी कर सकता है. इस बारे में जानेमाने कौस्मैटिक सर्जन मनोज खन्ना का कहना है कि जहां तक ब्रैस्ट रिकंस्ट्रक्शन तकनीक की सफलता का सवाल है, तो यह बहुत कुछ इंप्लांट मैटीरियल पर निर्भर करता है. दरअसल, ब्रैस्ट रिकंस्ट्रक्शन के लिए सिलिकौन इंप्लांट, जैल इंप्लांट और स्लाइन इंप्लांट औल्टरनेटिव कंपोजिशन इंप्लांट तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इस का खर्च भी मैटीरियल के आधार पर आता है.

बहरहाल, जहां तक नारी देह के सौंदर्य का सवाल है तो कैंसर पीडि़त स्तन को काट कर अलग कर देना किसी खूबसूरत ढांचे को ढहा देने जैसा हो सकता है. और अगर कैंसर की संभावना के आधार पर मैस्टेकटोमी का रास्ता अपनाया जाए तो भारतीय दर्शन में इसे देह वैराग्य से जोड़ कर देखा जा सकता है.

लेकिन एंजेलिना जोली का मामला तसलीमा नसरीन के नजरिए में नारी का अपने शरीर पर अपना नियंत्रण जैसा है. उन का कहना है कि हरेक महिला को एंजेलिना जोली की तरह खून में कैंसर पैदा करने वाले जिन की जांच करवा कर मैस्टेकटोमी के जरीए अपने शरीर का नियंत्रण अपने हाथों में रखना चाहिए, क्योंकि नारी सौंदर्य की तुलना में जीवन कहीं अधिक बड़ा और महत्त्वपूर्ण है. 

लाठी के हिमायती

भारतीय मूल के लोगों ने विदेशों में, खासतौर पर अमेरिका में खासी जगह बना ली है और उन में बौबी जिंदल भी हैं जो कट्टरवादी धर्मांध रिपब्लिक पार्टी में घुसे हैं. वे दूसरे रिपब्लिकों की तरह हर हाथ में बंदूक देने के हिमायती हैं, चाहे कितने भी निहत्थे निर्दोष मरें. उन्होंने भारत से सीखा है कि हर हाथ में लाठी हो तो बहुत कुछ हो सकता है.

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