डॉक्टर से कभी न बोलें ये झूठ

कहा जाता है कि डॉक्टर और वकील से कुछ नहीं छिपाना चाहिए. क्योंकि इन्हें सच न बताना हमारे लिए खतरनाक साबित हो सकता है. ये दोनों ऐसे व्यक्ति होते हैं जो हमारे हित के लिए हमेशा काम करते हैं. लेकिन आज के समय में इनसे हर बात छिपाई जाती है या फिर झूठ बोली जाती है. वकील के बारें में तो कुछ नहीं कह सकते हैं, लेकिन डॉक्टर्स से भरपूर मात्रा में झूठ बोला जाता है.

आपके द्वारा बताई गई बातें जाने-अनजाने में आपके लिए फायदेमंद हो सकती है, लेकिन वह सब चीजें आपको मामूली लगती हैं. आमतौर में इन झूठ से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है. अगर पड़ता है तो सिर्फ आपकी हेल्थ पर. जानिए ऐसे कौन से झूठ हैं जो आमतौर पर लोग डॉक्टर्स से बोलते हैं.

मेरा खाना पीना नार्मल है, ऑयली चीजों का सेवन कभी-कभार करते हैं

आमतौर पर यह झूठ सबसे आम झूठ है. यह हमारे इरादे में तो नहीं होता है, लेकिन यह गलतफहमी के कारण बोला जाता है. लोगों को अपने खानपान को लेकर हमेशा कंफ्यूजन होता है कि वह सही खा रहे हैं कि गलत. इसीलिए इसे डाक्टर को ही तय करने दीजिए कि आपकी सेहत के लिए क्या ठीक हैं और क्या गलत.

यह बीमारी मेरी पीढ़ी में किसी को नहीं

आनुवांशिक रोगों को लेकर डॉक्टर आमतौर में यह बात पूछते हैं, तो बहुत ही विश्वास के साथ यह उत्तर देते हैं कि हमारी पीढ़ी में यह बीमारी किसी को नहीं हुई है. लेकिन यह बात सच है कि कई लोगों को तो अपनी दादी का नाम भी पता नहीं होता है, तो उनकी बीमारी के बारें में उन्हें कैसे पता होता है. इसलिए जब तक आपको अपने पीढ़ी के बारें में पूरी तरह से पता न हो. तब तक ऐसा न बोले. नहीं तो आपके लिए हानिकारक साबित हो सकता हैं.

सिगरेट-शराब की लत नहीं है

अगर आप सिगरेट या शरीब का सेवन करते हैं, तो डॉक्टर को खुलकर बताएं, क्योंकि आपके बोलना आपकी सेहत के लिए काफी फायदेमंद है. चाहे आपके लिए इसका मतलब दूसरा है लेकिन डॉक्टर्स के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण बात है. आपका दिनभर में दो सिगरेट पीना आपके फेफड़ो के लिए काफी खतरनाकर साबित हो सकता है. इसलिए हर लत के बारें में जरुर बताएं.

दवाओं का सेवन मैंने नहीं किया

यह झूठ एक आम झूठ है. जो अधिकतर हम अपने डॉक्टर से बोलते है. आज के समय में भी हम लोग वैकल्पिक दवाएं अपनाते है. जिसके कारण बीमारी सही होने के बजाय और बढ़ जाती है. लेकिन जब डॉक्टर के पास जाते है तो साफ मुकर जाते है. लेकिन आप जानते है कि आपका झूठ बोलना आपके शरीर के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. ध्यान रहें कि एलोपैथी हो या आयुर्वेद, कोई भी पद्धति साइढ इफेक्ट से रहित नहीं होती है. इसलिए किसी से भी इलाज कराएं. उसे आपके द्वारा सेवन की गई हर दवा के बारें में बता दें.

दिक्कत तो हाल में ही शुरु हुई है

हम ये बात अच्छी तरह से जानते हैं कि हमें कोई बीमारी होती है हम उसके लक्षणों को महीनों, सालों अनदेखी कर देते हैं और जब यह समस्या ज्यादा बढ़ जाती है तो डॉक्टर के पास जाते हैं. उसके द्वारा पूछे जाने पर हम यही जवाब देते हैं कि यह हाल में ही दिक्कत हुई हैं. अगर आप डॉक्टर को ठीक ढंग से नहीं बताएगे, तो वह उसकी गंभीरता को नहीं पहचान पाएंगा. जिसके कारण यह समस्या और बढ़ सकती है. साथ ही आपका समय भी बर्बाद हो सकता हैं.

बारिश में करें ”न्यूड मेकअप”

बारिश के मौसम में खिली प्रकृति के साथ ही आपका सौंदर्य भी खिला, निखरा और ताजगी भरा नजर आए, इसके लिए आप सादगी भरा वॉटरप्रूफ ‘न्यूड मेकअप’ आजमा सकती हैं. यहां बारिश के मौसम के अनुसार सही मेकअप चुनने के लिए कुछ टिप्स दिए हैं, जिन्हें अपनाकर आप भी खूबसूरत बन सकती हैं.

– न्यूड मेकअप के लिए आपको हमेशा प्राइमर से शुरुआत करनी चाहिए. सबसे जरूरी यह है कि मस्कारे का प्रयोग मेकअप की शुरुआत और अंत में भी करना चाहिए.

– शेड्स का चुनाव अपनी त्वचा की रंगत के अनुसार करें. गोरी रंगत के लिए पीच शेड का चुनाव करें. यह आपके चेहरे को ताजगी प्रदान करेगा. गेहुंआ रंगत के लिए गुलाबी रंग चुनें, जबकि गहरी रंगत के लिए कारमल शेड का मेकअप उपयुक्त रहेगा.

– खूबसूरत और स्वाभाविक लुक के लिए अपनी त्वचा की प्राकृतिक रंगत के अनुसार फाउंडेशन का चुनाव करें. ज्यादा गहरा शेड न चुनें. अपनी त्वचा की रंगत से थोड़ा हल्का शेड चुनें और इसे अपने गालों, नाक के उभरे हिस्से, ठोढ़ी और माथे पर लगाएं.

– अगर आपकी त्वचा की रंगत गोरी है, तो बेहद हल्के रंग के शेड्स का चुनाव करें. यह आपको अधिक प्राकृतिक लुक देगा. गहरी रंगत के लिए पाउडर वाले फाउंडेशन का प्रयोग करें.

– आदर्श न्यूड मेकअप के लिए आंखों के मेकअप में गुलाबी, पीच और कारमल शेड्स का प्रयोग करें. यह आंखों को बेहद आकर्षक लुक देगा.

– होठों के लिए ग्लॉस या मैटिड लिपस्टिक का प्रयोग करें.

– बेहतर, ताजगी भरे और दीर्घकालिक प्रभाव के लिए आईब्रो पेंसिल की जगह, आईब्रो जेल का प्रयोग करें.

देखें रोमांस से भरपूर ‘मिर्जिया’ का ट्रेलर

हर्षवर्धन कपूर और सैयामी खेर स्टारर फिल्म ‘मिर्जिया’ का बेहतरनी ट्रेलर रिलीज हो गया है. फिल्म के 3 मिनट 33 सेकेंड के ट्रेलर में निर्देशक ओम प्रकाश मेहरा ने दिखा दिया कि उन्होंने म्यूजिक से लेकर लोकेशन तक पर बेहद बारीकी से काम किया है.

‘मिर्जिया’ की कहानी पंजाब की लोककथा ‘मिर्जा-साहिबां’ पर आधारित है. यह रोमांस से भरपूर एक एक्शन फिल्म है. इस विषय पर कई फिल्में पहले भी बन चुकी हैं. लेकिन ‘मिर्जिया’ उनसे कुछ अलग दिखाई दे रही है.

डायरेक्टर ने फिल्म की कहानी को अलग-अलग दौर में लेकर गए हैं. हर दौर में हर्षवर्धन का लुका अलग-अलग है, जो काफी प्रभावित करता है. उधर सैयामी खेर भी काफी प्रभावित कर रही हैं.

ओम प्रकाश मेहरा निर्देशित ‘मिर्जिया’ से गुलजार और दिलेर मेहंदी जैसे दिग्गजों को जोड़ा है. ट्रेलर की शुरुआत भी दिलेर मेहंदी के गाने से की गई है. बता दें कि हर्षवर्धन और सैयामी की ये डेब्यू फिल्म है. हालांकि ट्रेलर में उनका काम देख ऐसा लगता नहीं है.

ओम प्रकाश मेहरा ने फिल्म की ज्यादातर शूटिंग राजस्थान और लद्दाख में की है. ‘मिर्जिया’ 7 अक्टूबर को सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है.

कैसे दें बच्चों को संस्कार

आज के प्रतियोगिता के युग में बच्चों को सफल बनाने के लिए उन के मातापिता हर संभव प्रयास करते हैं. मगर अधिकांश मातापिता को चिंता रहती है कि पता नहीं वे अपने बच्चों को जीवनमूल्य सही तरह से सिखा रहे हैं या नहीं. उपलब्धियों के लिए प्रयास और सही जीवनमूल्यों के निर्माण के बीच बच्चे का जीवन होता है, जो उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है.

मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि मूल्यों को सिखाना असंभव है, क्योंकि अगर हम उन्हें ईमानदार, सहनशील बनना आदि सिखाने की कोशिश करते हैं, तो कई बार उन्हें ऐसी स्थितियों से गुजरना पड़ता है, जिन में वे अपने इन जीवनमूल्यों पर टिक नहीं पाते. जीवन के नैतिक मूल्य हर पल बदलते हैं और इन्हें बच्चा घर के माहौल से सीखता है.

इसी बात को ध्यान में रख कर ‘सर्फ ऐक्सेल’ ने ‘रैडी फौर लाइफ’ के ऊपर परिचर्चा की, जिस में बच्चों की देखभाल और पेरैंटिंग के क्षेत्र में विशेषज्ञों ने अपनीअपनी राय दी.

व्यक्तित्व विकास पर असर

इस बारे में दिल्ली के अपोलो हौस्पिटल के बाल रोग विशेषज्ञ डा. अप्रतिम गोयल कहते हैं, ‘‘बच्चा हमेशा बच्चा ही होता है. मातापिता का दायित्व होता है कि वे बच्चे को कैसे आगे ले जाएं. आज की पीढ़ी नई तकनीकों से लैस है. आईफोन, स्मार्टफोन आदि मातापिता बच्चे को कम उम्र में दे कर समझते हैं कि उन का बच्चा स्मार्ट किड बनेगा, जबकि ऐसा नहीं है. उस से कही गई 50 % बातों को वह नजरअंदाज करता है. ऐसा करतेकरते वह स्कूल से ले कर कालेज और कालेज से ले कर वर्कप्लेस तक सभी जगह कही गई बातों को नजरअंदाज करता है, जिस का असर उस के व्यक्तित्व के विकास पर पड़ता है.

‘‘आजकल ज्यादातर मातापिता वर्किंग हैं, इसलिए उन का स्टैंडर्ड औफ लिविंग काफी ऊंचा होता है. बच्चा जो मांगे उसे तुरंत ला कर दे देते हैं. मेरे हिसाब से अगर पैसा है तो स्टैंडर्ड औफ लिविंग को न बढ़ा कर स्टैंडर्ड औफ गिविंग को बढ़ाएं. बच्चे को जब जरूरत हो अपना समय उस के साथ बिताएं. उस की सुनें, तब राय दें. बच्चे आजकल भौतिकवादी हो रहे हैं, जो ठीक नहीं.

‘‘अगर आजकल बच्चे किसी पार्टी आदि में जमा होते हैं तो वहां वे आपस में बातचीत नहीं करते, बल्कि मोबाइल या स्मार्टफोन पर व्यस्त रहते हैं. इस से उन की बातचीत करने की क्षमता कम होती है. अगर वे बातचीत करते हैं तो उन में अग्रेशन अधिक होता है. उन के अग्रेशन को टोन करने की आवश्यकता है. अगर मैं अपने बच्चे को कुछ भी करने से मना करती हूं तो उस का कारण अवश्य बताती हूं. बच्चे में सही आदतें डालने के लिए मातापिता का भी जीवनमूल्यों को सीखना आवश्यक है,’’ यह कहना है अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे का.

प्रभावित होता है आत्मविश्वास

एचआर कालेज की डीन डा. इंदू शहानी बताती हैं, ‘‘हमारे कालेज में ऐसे कई बच्चे हैं, जो कालेज का बहाना बना कर घर छोड़ते हैं और कालेज नहीं आते. बीमारी का बहाना कर परीक्षा नहीं देते. इन की संख्या बढ़ती ही जा रही है. इसीलिए अब जब बच्चे ऐडमिशन के लिए आते हैं तो उन से इंटरव्यू के साथसाथ मातापिता से भी बात करती हूं. उन के बिहेवियर को मैं नोट करती हूं. वह कैसे आ कर बैठता है, कैसे बातें करता है, ये सारी बातें मैं 5-7 मिनट में देखती हूं. 75% बच्चों में सही जीवनमूल्यों का अभाव पाया जाता है, जिस से उन का आत्मविश्वास प्रभावित होता है.

‘‘इस की वजह आज के एकल परिवार हैं, जहां बच्चे को अपने नानानानी, दादादादी का साथ नहीं मिलता. जीवनमूल्य डाइनिंग टेबल से ही शुरू होते हैं. कालेज कैंटीन में बैठ कर जब बच्चे एकसाथ खाना खाते हैं, तो वह उन के टीमवर्क का परिचायक होता है. टीमवर्क आजकल बहुत आवश्यक है. मैं इस के लिए हमेशा बच्चों को बढ़ावा देती हूं.’’

मातापिता कितने हद तक जिम्मेदार

जीवनमूल्यों की सूची लंबी होती है, पर दैनिक जीवन में कितना किसे महत्त्व दिया

जाए, इसे ले कर बच्चे काफी परेशान रहते हैं. कुछ मूल्य जिन में खासकर शालीनता,

नम्रता, त्याग, सहानुभूति, उत्तरदायित्व, कर्त्तव्यपरायणता, ईमानदार आदि न जाने

कितने शब्द हैं, जिन का सही अर्थ मातापिता भी नहीं समझते. घर में रहते हुए भी बच्चे से बुलवाते हैं कि वे घर पर नहीं हैं. ऐसी बातें  उन्हें दुविधा में डालती हैं.

इस विषय पर बाल मनोवैज्ञानिक और पेरैंटिंग ऐक्सपर्ट डा. रूपल पटेल बताती हैं, ‘‘बच्चा बचपन से ही परिवार के बीच रह कर हर जीवनमूल्यों को सीखता है, इसलिए मातापिता को निम्न बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए :

द्य बच्चे के साथ 15 मिनट हर दिन बिताएं. इस दौरान उस की सुनें अपनी कम सुनाएं.

– बच्चे से जो कहें, उसे खुद भी पालन करने की कोशिश करें.

– बच्चे में सहानुभूति का विकास करें, इसे कहने से अधिक महसूस करवाएं.

– अपने जीवनमूल्यों के बारे में बताएं और वे क्यों जरूरी हैं, इस का वर्णन करें.

– आप ने अपने जीवनमूल्य क्यों बनाए हैं. इस के सभी पहलुओं को बताएं.

– बातें कहें, भाषण न दें. कुछ अच्छा किया है, तो हौसला बढ़ाएं.

– जीवन के मूल्य केवल कागजी न हों, इस पर ध्यान दें. अगर बच्चे ने उसे तोड़ा है, तो वजह पता करें, समाधान बताएं.

– जीवन के मूल्यों के साथसाथ पैसों की अहमियत भी समझाएं.         

लाइफ में चाहिए ह्यूमर का तड़का

जिंदगी का कुछ भरोसा नहीं, कब कहां गम के साए हमें घेर लें. तो क्यों न उस से पहले हम अपने आसपास हंसीमजाक भरे पलों की यादों का एक ऐसा मजबूत घेरा बना लें, जिन्हें एकाकी जीवन में याद कर के कुछ समय के लिए ही सही रिलैक्स फील तो कर सकें. चुपचाप, गुमसुम, खामोश, अपने में खोए लोग उपन्यासों और पिक्चरों में ही अच्छे लगते हैं. ऐसे लोगों का फ्रैंड सर्कल भी सीमित रहता है. आज का इनसान महत्त्वाकांक्षाओं के चलते उम्र के एक बडे़ भाग तक सुकून की सांस लेने को भी तरसता है. उस के पास हर तरह की सुखसुविधाएं होती हैं, नहीं होता है तो बस समय. किसी तरह से अपने व्यस्त जीवन में समय बचा कर यदि वह कहीं किसी दोस्त या रिश्तेदार से मिलने जाता है तो मनहूसियत भरे माहौल में रूबरू होने के लिए नहीं, बल्कि अपने को हलका और हंसीखुशी हासिल करने के लिए ही जाता है.

खूब मुसकराएं, ठहाके लगाएं

हंसनामुसकराना जीवन में ऊर्जा भरने का सहजसुलभ साधन है, जिस का आदानप्रदान बिना किसी खर्च के किसी भी समय और किसी के भी साथ किया जा सकता है, इसलिए जब भी मौका मिले खुल कर हंसें, खूब ठहाके लगाएं. बुरा वक्त सभी की जिंदगी में आता है. उसे ही हर समय याद कर के अपनेआप पर जुल्म न करें. माना कि अपमान, बुरा बरताव भुलाना आसान नहीं होता, पर जब भी ऐसी यादें आप पर हावी होने लगें तो सारे जरूरी काम बंद कर खुली हवा में प्रकृति के साथ कुछ पल बिताएं, गहरी सांसें लें. पार्क, सार्वजनिक स्थान पर लोगों की बातों में शामिल हों. अपनी गलतियों, नादानियों पर रोने की जगह मुसकराएं. अपने सैंस औफ ह्यूमर से हंसी के कुछ पल चुराएं. चुटकुले या कोई गुदगुदाने वाली घटना सुनाएं. खुद भी हंसे और सामने वाले को भी ठहाके लगाने पर विवश कर दें. आप देखेंगी कि सारा तनाव चुटकियों में काफूर हो जाएगा और आप एकदम हलका महसूस करेंगी.

डैवलप करें ह्यूमरस ऐटिट्यूड

बहुत ही गजब की चीज है सैंस औफ ह्यूमर. इस का जादू पलक झपकते सामने वाले पर हो कर ही रहता है. कितना भी रूखा इनसान हो एक पल रुक कर आप की बात पर जरूर गौर करेगा. विचारों को कड़क, सीधेसपाट शब्दों में रखने से कई तरह की कंट्रोवर्सी क्रिएट हो जाती है. अत: अपनी बात को मजाकिया अंदाज में प्रस्तुत करें, फिर देखें उस का असर और स्वयं ही तुलना करें कि कौन सा ऐटिट्यूड ज्यादा बेहतर परिणाम देता है.

अब सवाल उठता है कि खुद को कैसे मजाकिया बनाया जाए. अपनी पर्सनैलिटी को बदलने के लिए पक्का इरादा बनाएं. कुछ लोग बदलाव से कतराते हैं, यह जानते हुए भी कि खुद को बदल कर काफी अचीव कर सकते हैं.

किसी भी बात को कहने या देखने के 2 तरीके होते हैं- हैप्पी या सैड. इन में से आप को अपने लिए चुनना है मजाकिया और पौजिटिव ऐटिट्यूड. अपनी बात को मजाकिया लहजे में कहने का प्रयास करें. कुछ जोक्स याद करें. समय और लोकेशन के साथ शब्दों का पहले से ही चयन कर के रखें, फिर बोलें.

प्रैक्टिस से आती है परफैक्शन

आप लोगों के बीच अपनेआप को एक हंसने वाली पर्सनैलिटी बनाना चाहती हैं, तो ह्यूमरस बातों को औब्जर्व करें. टीवी पर कार्टून प्रोग्राम्स जरूर देखें. किसी भी मजाकिया पर्सन से मिलें तो सकारात्मक रूप से उस से कुछ न कुछ सीखें. मजाकिया किस्सों को याद कर सुनाएं. पर समय देख कर ही मजाक करें. मजाकिया दोस्तों के साथ ज्यादा रहें. सब से जरूरी बात अपने को पौजिटिव रखें. लगातार प्रयास करती रहें और अपने को चेंज करती रहें. जल्द ही आप एक ह्यूमरस पर्सन के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो जाएंगी.

मन और तन सदा रहेंगे सेहतमंद

ह्यूमरस ऐटीट्यूड का संबंध हमारी अंदरूनी पौजिटिविटी से सीधे तौर पर जुड़ा है. नकारात्मक स्वभाव का व्यक्ति हंसने में बहुत कंजूसी करता है. जिंदगी में बहुत से सवाल हम नैगेटिव सोच से अपने आगे खड़े कर लेते हैं. आप दूसरों को तभी हंसा सकते हैं जब आप खुद हंसना जानते हों. अच्छे सैंस औफ ह्यूमर वाले लोगों की इम्युनिटी पावर अच्छी होती है. आज के माहौल में बीमारियों से तो कोई हमेशा बच नहीं सकता, परंतु इम्यूनिटी अच्छी होने से बीमारी नहीं चलती. सेहत नियामतों के बराबर होती है. स्ट्रैस हंसमुख लोगों को कम सताता है. उन के दोस्तों की संख्या काफी होती है. उन्हें अकेलापन नहीं सताता. अच्छे दोस्तों का साथ रहता है तो बुरे वक्त में भी उन का आत्मविश्वास बना रहता है. सेहत सही तो सब कुछ सही.

अत: अपनी लाइफ में थोड़ा सैंस औफ ह्यूमर का तड़का लगाएं. हमेशा जीवन को गर्मजोशी से जीएं. खुद भी हंसते रहें और दूसरों को भी हंसाते रहें.     

जब सलमान को उनकी भाभी ने कहा- Be Human Please

सलमान खान और विवादों का पुराना नाता रहा है. सलमान ने ‘सुल्तान’ की शूटिंग के दौरान बेतुका बयान देकर एक फिर सुर्ख‍ियों में आ गए हैं. सलमान के इस बयान को लेकर बॉलीवुड में खलबली सी मच गई है. कुछ सलमान के साथ हैं तो कुछ विरोध में उतर गए हैं.

जानिए ‘हम आपके हैं कौन’ में सलमान की भाभी बनीं रेणुका शहाणे ने सलमान खान को क्या कहा.

रेणुका शाहणे

रेणुका शहाणे ने सलमान खान को इंसानियत दिखाने की सलाह दी है. उन्होंने लिखा कि एक रेप पीड़िता जीवन भर उस दर्द को सहती है. Be human please!

कौन कर रहा है सलमान का बचाव और किसने तोड़ी है चुप्पी…

सोनाली बेंद्रे

काले हिरण श‍किर में सलमान के साथ सोनाली का नाम भी सामने आया था. सलमान की निंदा करते हुए सोनाली ने ट्वीट किया कि रेप पर ऐसा बयान देना सही नही है, हैशटैग रिस्पेक्ट वूमैन.

सिंगर सोना महापात्रा

सिंगर सोना महापात्रा ने सलमान खान पर निशाना साधते हुए एक ट्वीट किया. इस ट्वीट को लेकर सल्लू भाई के फैन्स सोनम को भद्दी ट्वीट्स करने लगे. सोना महापात्रा ने ट्वीट किया, ‘महिला को पीटा, लोगों पर गाड़ी चढ़ाई, जानवर मारा और उसके बावजूद देश के हीरो. ये गलत है. भारत ऐसे फैन्स से भरा पड़ा है.’

पूजा बेदी

पूजा ने एक के बाद एक चार ट्वीट किए हैं जिसमें उन्होंने इस पर हाथी का ही उदाहरण दे डाला. पूजा ने ट्वीट कर कहा, ‘अगर मैं कहूं की मैं हाथी की तरह मोटी हो गई हूं तो क्या PETA वाले मुझपर केस कर देंगे.’ और तो और पूजा ने कहा कि ऐसे वाकयों से लगता है कि ‘भारत अब संवेदनशील हो गया है.’

लिसा रे

सलमान के विवादित बयान पर लिसा रे ने ट्वीट किया कि सलमान का ये बयान बेतुका है इसकी चर्चा विदेश तक है.

कंगना रनोट

सलमान के बयान पर कंगना ने कहा यह बेहद संवेदनहीन टिप्पणी है, लेकिन मैं कहना चाहती हूं कि हमें एक-दूसरे पर ऊंगली उठाने वाली मानसिकता को बढ़ावा नहीं देना चाहिए.

कंगना ने कहा कि समाज के तौर पर हमें इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए और एकजुट रहना चाहिए. यह समाज के लिए अपमानजनक है, किसी व्यक्ति के लिए नहीं. कंगना ने कहा कि उस सोच के लिए हम सब मिलकर माफी मांगते हैं.

सेंसर बोर्ड से बाहर निकलें बच्चे: अनुराग कश्यप

फिल्मकार अनुराग कश्यप ने कहा है कि भारतीय सेंसर बोर्ड से ‘बच्चों’ को बाहर निकालने का समय आ गया है. कश्यप ने ट्विटर पर लिखा, “अभी सुना..एक और फिल्म, नीरज पांडे की ‘सात उचक्के’ को सर्टिफिकेट देने से इंकार कर दिया गया है. क्या हम समय बचाने के लिए सीधे न्यायाधिकरण के पास जा सकते हैं?”

उन्होंने कहा, “शायद सीबीएफसी (केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड) से ‘बच्चों’ को बाहर निकालने और उन्हें ‘सात उचक्के’ और ‘हरामखोर’ जैसी वयस्क फिल्मों पर फैसला करने से रोकने का समय आ गया है.”

फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ के सह-निर्माता कश्यप ने फिल्म में 89 कट लगाने के सेंसर बोर्ड के फैसले के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी थी. सेंसर बोर्ड की सुधार समिति ने 13 कट के साथ फिल्म रिलीज की अनुमति दी थी.

निर्माताओं ने फैसले के खिलाफ बम्बई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसने सीबीएफसी के फैसले को रद्द करते हुए केवल एक कट के साथ फिल्म रिलीज की मंजूरी दे दी थी.

‘उड़ता पंजाब’ के बाद कश्यप की एक अन्य फिल्म ‘हरामखोर’ को भी सीबीएफसी की आपत्तियों का सामना करना पड़ा था. सेंसर बोर्ड ने शिक्षक और छात्र की प्रेम कहानी पर आधारित फिल्म की कहानी पर आपत्ति जताई थी.

अब ‘सात उचक्के’ को भी सेंसर बोर्ड की आपत्तियों का सामना करना पड़ रहा है.

‘सैराट’ कर वापस स्कूल लौटी रिंकू

सुपरहिट मराठी फिल्म ‘सैराट’ से अपने फिल्म करियर की शुरुआत करने वाली रिंकू राजगुरु रातों-रात एक आम लड़की से लोकप्रिय अदाकारा बन चुकी हैं. 14 साल की रिंकू को उनकी इस फिल्म के कारण राष्ट्रीय प्रसिद्धि हासिल हो चुकी है.

अपनी फिल्म की सफलता का लुत्फ उठा रही रिंकू के बार में हाल ही में खबर आई है कि अब वह अपने स्कूल वापस जा चुकी हैं. रिंकू राजगुरु ने सोलापुर जिले के अकलुज स्कूल में अपनी 10वीं कक्षा के मित्रों के साथ विद्यालय में वापसी की.

रिंकू, अकलुज से दूर स्वागत, प्रचार एवं उत्सवों में भाग लेने के बाद लोकप्रिय टीवी शो और फिल्म में काम करके लौटी है. यहां उसका गर्मजोशी से स्वागत हुआ ‘सैराट’ मराठी सिनेमा के इतिहास में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई है और 100 करोड़ रूपए के मील के पत्थर के करीब है.

जब वह एक सम्मान समारोह के आयोजन में अकलुज आई, तो हजारों की संख्या में प्रशसंक एकत्रित हो गए. फिल्म की सफलता के बाद अब महाराष्ट्र में रिंकू घरेलू नाम बन गई हैं.

नए शैक्षणिक वर्ष के पहले दिन वह नहीं आ पाईं. रिंकू ने कक्षा-9वीं में 81 फीसदी अंक अर्जित किए थे. उसका अगला दिन और उल्लेखनीय साबित हुआ, जब राष्ट्रीय पुरस्कारों की घोषणा हुई.

उसके सहपाठियों का भी कहना है कि अपनी फिल्म की सफलता के बाद वह पहुंच से बाहर हो गई है. स्कूल की प्रधानाचार्य मंजुश्री जैन ने बताया कि, “हम रिंकू के पहले दिन ही आने की उम्मीद कर रहे थे लेकिन वह पहले दिन उपस्थिति होने में असफल रहीं.”

फिर आ रहा है शक्तिमान

नब्बे के दशक का लोकप्रिय सुपरहीरो ‘शक्तिमान’ टीवी पर वापसी करने जा रहा है. अभिनेता मुकेश खन्ना का कहना है कि नये सीजन में इस किरदार के असाधारण शक्तियां हासिल करने का सफर दिखाया जाएगा.

खन्ना ने धारावाहिक में शक्तिमान और उसके करीबी मित्र गंगाधर विद्याधर मायाधर ओंकारनाथ शास्त्री की दोहरी भूमिकाएं निभायी थी.

अभिनेता ने कहा कि नए सीजन में लोकप्रिय नायक का बचपन दिखाया जाएगा और दर्शकों को शक्तिमान बनने के उसके सफर से वाकिफ कराया जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘‘नया सीजन वहीं से शुरू होगा जहां पिछला सीजन खत्म हुआ था. लेकिन इसमें शक्तिमान का बचपन दिखाया जाएगा. इसमें उसके अपने सात गुरूओं से कड़ी प्रशिक्षण लेकर सुपरहीरो बनने की पूरी प्रक्रिया दिखायी जाएगी.’’

उन्होंने कहा कि धारावाहिक में पिछले सीजन के अधिकतर लोकप्रिय किरदार जैसे गीता विश्वास, तमराज किलविश और डॉ जैकाल वापस आएंगे. उन्होंने इसके लिए करीब आठ किलो वजन घटाया है.

58 साल के अभिनेता कार्यक्रम के प्रसारण के लिए दूरदर्शन से बातचीत कर रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह चाहते हैं कि दूसरे चैनल जैसे कलर्स, सोनी या अन्य भी चैनल इसका प्रसारण करें ताकि यह ज्यादा से ज्यादा दर्शकों तक पहुंचे.

रॅायल अनुभव के लिए, इन ट्रेनों में करें ट्रेवल

इंडिया ट्यूरिज़्म ने एक अच्छे और आरामदायक ट्रीप के लिए बहुत सारी सुविधाएं दी हैं. रॅायल ट्रेन उनमें से एक है. इंडियन रेलवे ने कुछ बहुत ही बेहतरीन रॅायल ट्रेन दिए हैं, जो आपको एक रॅायल फिलींग देगें. यह ट्रेने ज़्यादातर इंडिया ट्रैवल को प्रोमोट करते हैं.

पैलेस ऑन विल्स

पैलेस ऑन विल्स की शुरूआत 1983 में हुई थी. यह इंडिया के बहुत पुराने रॅायल ट्रेनों में से एक है. इस ट्रेन को शुरूआत करने का खास उद्देश्य राजपूत वंश और राजस्थान को दर्शाना था. इस ट्रेन में लगभग 14 कोच बने हुए हैं, जो आपको रॅायल महसूस कराएगी. इस ट्रेन में आपको दो बहुत ही बेहतरीन रेस्ट्रौन्ट मिलेंगे “द महाराजा” और “द महारानी” जो बिल्कुल राजस्थानी लुक देते हैं.

यह ट्रेन दिल्ली से शुरू होकर जयपुर, सवाई माधवगढ़, चित्तौरगढ़, उदयपुर, जैसलमेर, जोधपुर, भरतपुक और आगरा तक जाती है.

रॅायल राजस्थान ऑन विल्स

इंडियन रेलवे ने रॅायल राजस्थान ऑन विल्स टूरिस्ट के आराम के लिए बनाया है. इसे 2009 में शुरू किया गया था और यह बिल्कुल पैलेस ऑन विल्स जैसी है. स्वर्ण महल और शीश महल दो बेहतरीन डाइनिंग कार है.

यह ट्रेन दिल्ली से शुरू होकर जयपुर, सवई माधोपुर, चित्तौरगढ़, उदयपुर, जैसलमेर, जोधपुर, भरतपुर और आगरा तक जाती है.

द गोल्डन चैरिओट

द गोल्डन चैरिओट एक लक्ज़री ट्रेन है जो साउथ इंडिया के कुछ जगहों को कवर करती है. पैलेस ऑन विल्स के सफलता के बाद इसकी शुरूआत की गई थी. इसमें लगभग 11 कोच है जो बहुत ही रॅायल लुक देती है. इस ट्रेन की देखभाल कर्नाटक स्टेट टूरिज़्म और डेवलपमेंट द्वारा की जाती है. अक्टूबर- मार्च के बीच ये चलती है. इस ट्रेन की दो रूट हैं:

रूट 1: बैंगलोर, मैसूर, नागरहोले नेशनल पार्क, हसन, होसपेट, हम्पी, चेन्नई, बादामी और गोवा.

रूट 2: बैंगलोर, चेन्नई, पॅान्डीचेरी, थन्जावूर, मदूरई और कोची.

महाराजा एक्सप्रेस

महाराजा एक्सप्रेस की शुरूआत 2010 में हुई थी. यह सेंट्रल और नार्थ- वेस्ट इंडिया को कवर करती है. महाराजा एक्सप्रेस को अक्टूबर-अप्रैल तक ऑपरेट किया जाता है और इसका मेजर लोकेशन राजस्थान है.

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