किंग खान की वजह से रो पड़े करण जौहर

बॉलीवुड फिल्म मेकर करण जौहर और शाहरुख खान की दोस्ती फिल्म इंडस्ट्री के खास दोस्तों में शुमार होती है. हाल ही में करण ने बताया कि जब शाहरुख खान ने उनकी आने वाली फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ के गानों की तारीफ की तो उनकी आंखें भीग गई थीं.

करण ने बताया कि वह इस फिल्म और उसके संगीत को लेकर काफी उत्सुक हैं और शाहरुख की राय उनके लिए काफी मायने रखती है. ऐसे में जब शाहरुख ने इसकी तारीफ की उनकी आंखों में आंसू आ गए.

गौरतलब है कि शाहरुख ने कहा था ‘मैंने तीन गाने सुने हैं और ये कमाल के हैं. मैंने टाइटल ट्रैक भी सुना जो अद्भुत है. ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में रणबीर कपूर, ऐश्वर्या राय बच्चन, अनुष्का शर्मा और फवाद खान की अहम भूमिका है.

करण ने शाहरुख को लेकर ‘कुछ कुछ होता है’, ‘कभी खुशी कभी गम’, ‘कभी अलविदा ना कहना’ और ‘माई नेम इज खान’ जैसी कामयाब फिल्में बनाई हैं.

पिता का घर छोड़ लिव-इन में रहेंगे हर्षवर्द्धन

हर्षवर्द्धन कपूर की पहली फिल्म ‘मिर्जिया’ अभी रिलीज भी नहीं हुई है कि उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा है. गौर करने वाली बात ये है, कि ये उनका अपना फैसला है. इसके पीछे एक खास वजह है. हर्षवर्धन ने फैसला किया है कि वो अब घर से दूर किसी दोस्त के साथ लिव-इन में रहेंगे.

अब आप सोच रहे होगे की फिर तो पापा अनिल कपूर को बेटे पर बहुत गुस्सा आया होगा? जी नही! बल्कि अनिल कपूर हर्षवर्धन के इस फैसले से खुश हो गये. चौंक गये ना आप?

दरअसल, घर छोड़ना हर्षवर्द्धन की अगली फिल्म के लिए तैयारियों का हिस्सा है. जिस तरह ‘मिर्जिया’ के लिए हर्ष ने कई महीनों तक घुड़सवारी और तलवारबाजी की प्रैक्टिस की, उसी तरह ‘भावेश जोशी’ के लिए वो किराए के घर में रहकर रोल की तैयारी कर रहे हैं.

हर्षवर्द्धन अपने पापा का बंगला छोड़कर अब जुहू में अलग अपार्टमेंट में रहने जाएंगे. उनके फ्लैट मेट होंगे को-एक्टर प्रियांशु पैन्यूली, जो ‘भावेश जोशी’ में हर्षवर्द्धन के दोस्त बने हैं. फिल्म में हर्षवर्द्धन मध्यम वर्ग के एक सोशल विजिलांटे का रोल निभा रहे हैं.

इस किरदार में खुद को ढालने के लिए हर्षवर्द्धन ने ऐशो-आराम की ज़िंदगी को अलविदा कहा है. अभिनय के प्रति हर्ष की इस लगन को देखकर पिता अनिल कपूर बेहद खुश हैं.

हर्षवर्धन की अगली फिल्म ’भावेश जोशी’ निर्देशक विक्रम आदित्य मोटवानी हैं. विक्रमादित्य मोटवाने निर्देशित ‘भावेश जोशी’ की शूटिंग हाल ही में शुरू हुई है.

‘भावेश जोशी’ एक मिडिल क्लास लड़के की कहानी है और उस माहौल को समझने के लिए हर्ष अपनी असल जिंदगी में भी वही किरदार जीना चाहते हैं ताकि फिल्म में अपने रोल के साथ वह इंसाफ कर सकें.

बता दें कि हर्षवर्धन से पहले ‘भावेश जोशी’ का किरदार इमरान खान और बाद मे सिद्धार्थ मल्होत्रा करने वाले थे. पर फाइनली हर्ष सलेक्ट हुए. इस किरदार के लिए हर्ष ने अपना घर तक छोड़ दिया तो ऐसे में उम्मीद है कि दर्शकों को भी उनकी एक्टिंग पसंद आए.

पालक स्वीट पोटैटो

सामग्री

– 250 ग्राम ताजा पालक

– 250 ग्राम शक्करकंद

– 2 बड़े चम्मच जैलपीनो कटा

– 2 बड़े चम्मच प्याज कटा

– 1 बड़ा चम्मच अदरक

– 1 बड़ा चम्मच लहसुन कटा

– 1 चुटकी गरममसाला

– 1 चुटकी भुना जीरा

– 1 नीबू का रस

– नमक स्वादानुसार

– तलने के लिए पर्याप्त तेल.

विधि

पालक को साफ व धो कर काट लें. शक्करकंदी को ओवन में बेक करें. फिर छील कर कद्दूकस कर लें. अब पालक को नमक मिले पानी में 45 सैकंड उबालें. फिर गरम पानी से निकाल कर ठंडा पानी डालें. पालक को निचोड़ लें. अब सारी सामग्री को मिला कर छोटेछोटे बौल्स बना कर हथेली से दबाते हुए टिक्की का आकार दें. फिर तेल गरम कर के धीमी आंच पर सुनहरा होने तक फ्राई कर इमली की चटनी के साथ परोसें.

-व्यंजन सहयोग: संजय चौधरी

शैफ ऐंड डायरैक्टर, वर्ल्ड आर्ट डाइनिंग,

पंजाबी बाग    

विकल्प ढूंढ़ना गलत नहीं

पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू और उन की पत्नी नवजोत कौर का भारतीय जनता पार्टी को छोड़ जाना एक आश्चर्य की बात है. अब तक तो ऐसा लग रहा था कि दलबदल का ट्रैफिक केवल वन वे है, भारतीय जनता पार्टी की ओर. नवजोत सिंह सिद्धू को कुछ अरसा पहले ही खुश करने के लिए राज्य सभा में मनोनीत किया गया था, जिसे उन्होंने स्वीकार भी कर लिया था पर 2014 का अनुभव शायद वे भूले नहीं थे, जिस में उन्हें 10 साल की सेवा के बावजूद अमृतसर की लोक सभा सीट से

हटा दिया गया था ताकि अरुण जेटली को चुनाव लड़वाया जा सके. यह बात दूसरी थी कि मोदी लहर में भी अरुण जेटली चुनाव हार गए थे. नवजोत सिंह सिद्धू अब शायद आम आदमी पार्टी में जाएंगे, जो पंजाब में मुख्यमंत्री पद के लिए एक अच्छा चेहरा ढूंढ़ रही है. अरविंद केजरीवाल को भगवा ब्रिगेड और सोशल मीडिया चाहे जितना बुराभला कहता रहे, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी भले ही कोसे, थोड़ी समझदार चाहे अनपढ़ व गरीब ही सही, लोगों में आम आदमी पार्टी एक ठीकठाक पर्याय है.

पंजाब से आम आदमी पार्टी ने 2014 में 3 सीटें लोक सभा चुनावों में जीती थीं और वहां की जनता कांग्रेस और अकाली भाजपा दोनों से तंग आ गई हो तो बड़ी बात नहीं. आम आदमी पार्टी की तरह नवजोत सिंह सिद्धू सदा आम आदमी ही रहे. क्रिकेटर के रूप में तो वे आम आदमी के लिए ही खेलते थे. कपिल शर्मा के टैलीविजन कौमेडी शो में भी वे आम आदमी से जुड़े रहे हैं और उन में इन दोनों पार्टियों की राजसी बू नहीं घुसी है.

भारतीय जनता पार्टी की लड़खड़ाहट अब साफ दिख रही है. महंगाई पर नियंत्रण नहीं है. देश का विकास कागजों और आंकड़ों में ही हो रहा है. साफसुथरी सड़कों का जाल है पर वह मनमोहन सिंह सरकार की ज्यादा देन है. इन सड़कों के किनारे गरीबी पसरी किसी को भी दिख जाएगी.

काले धन को वापस लाने की बात को चुनावी जुमला कह कर उड़ा दिया गया है और यदि वह आ भी जाता तो कौन सा आम आदमी के पास जाता? यहां तो गैस की सब्सिडी भी समाप्त हो गई. टैक्स बढ़ गए हैं. ऐसे में लोगों का पर्याय ढूंढ़ना कोई बड़ी बात नहीं है. जो लोग एक के बाद एक कतार लगा कर भारतीय जनता पार्टी से जुड़े थे,

वे सत्ता की मलाई के लिए गए थे, जनता की भलाई के लिए नहीं. अब अगर सारी सत्ता 1-2 हाथों में हो तो कहीं और जाने में हरज क्या है. वैसे भी पिछले राज्यों के चुनावों में असम के अलावा भाजपा कहीं और जीत भी नहीं पाई थी, इसलिए नवजोत सिंह सिद्धू का आईपीएल -इंडियन पौलिटिकल लीग में कंपनी बदल लेना गलत कैसे कहा जा सकता है?

शक्ति को जैंडर से न जोड़ें

जो यह सोच रहे थे कि सोनिया गांधी का युग समाप्त हो गया है, उन्हें निराशा हो रही होगी कि पश्चिम बंगाल व बिहार में कुछ सीटें जीतने के बाद सोनिया ने भारतीय जनता पार्टी की सरकारें गिराने की हर संभव कोशिशों के बावजूद उत्तराखंड और अरुणाचल में अपनी सरकारें बचा लीं. बिहार, बंगाल और इन 2 पहाड़ी राज्यों में कांग्रेस का अंत लगभग लिखा जा चुका था पर सोनिया गांधी ने हिम्मत नहीं हारी. यही हिम्मत उन्होंने 1997 में दिखाई थी, जब सीताराम केसरी से कांग्रेस अध्यक्ष पद छीना और यही हिम्मत 2004 में भी दिखाई जब लोकप्रिय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मुकाबला किया.

सोनिया ही नहीं, ममता बनर्जी, मायावती, जयललिता भी ऐसी विकट स्थितियों से निकली हैं, बिना किसी खास पुरुष संरक्षण के. जो औरतों को कमजोर समझते हैं उन के लिए ये 4-5 महिला नेता एक सबक हैं कि शक्ति को जैंडर से न जोड़ो, यह व्यक्तित्व का हिस्सा है, यह काफी कुछ गंवा देने के बाद भी हिम्मत न हारना है.

हमारा समाज हमारी औरतों को परतंत्र रहने का पाठ पहले दिन से सिखाता है. यौन रक्षा के नाम पर इस पर हजार बंधन लगा देता है, जो उस के पूरे व्यक्तित्व पर छा जाते हैं. वह अपनेआप में सिकुड़ जाती है, दया की भीख मांगने को मजबूर की जाती है. विफल होना उस का दोष नहीं है पर सजा उसे ही दी जाती है. विवाह न हो तो अपशकुनी मानी जाती है. बच्चे न हों तो पति को नहीं उसे दोषी माना जाता है. ऐसे समय सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, जयललिता, मायावती, हिलेरी क्लिंटन, ऐंजेला मार्केल एक नई ऊर्जा दे रही हैं कि शारीरिक बनावट का व्यक्तित्व से कुछ भी लेनादेना नहीं है.

जिन घरों में पत्नी की भी चलती है, वहां अनुशासन रहता है. वहां नए मंसूबे बनते हैं. वहां पतिपत्नी मिल कर जोखिम भरे फैसले ले सकते हैं. विवाह, प्रेम, सैक्स व बच्चों से जुड़े पतिपत्नी एकदूसरे के पूरक हैं, पर केवल तभी जब औरत को हाड़मांस की गुडि़या न समझा जाए.

अरुणाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री से नाराज चल रहे विधायकों को मुख्यमंत्री बदल कर सोनिया गांधी ने ऐसा पलटा मारा कि भारतीय जनता पार्टी, जिस ने राज्यपाल के पद का भरपूर दुरुपयोग किया और जिसे सुप्रीम कोर्ट से फटकार भी पड़ी, और भाजपा कानूनी, व्यावहारिक व राजनीतिक मामलों में सोनिया गांधी से बुरी तरह हार गई. सोनिया गांधी ने विद्रोही विधायकों में से एक को मुख्यमंत्री मान लिया.

हर औरत को इस तरह की हिम्मत दिखाने की जरूरत है. आज के बदलते परिवेश में औरत को अकेले घर भी चलाना है, काम भी करना है, छोटाबड़ा व्यवसाय भी चलाना है, नापसंद पति से छुटकारा भी पाना है, तो सौतनों से भी निबटना है. अगर उस में आत्मविश्वास होगा तो सब उस के साथ रहेंगे, उसे आदर देंगे. दया नहीं, भीख नहीं, हक मिलेगा. शास्त्र चाहे कुछ भी कहते रहें, चलेगी तो हिम्मत की. भाजपा और कांग्रेस की लड़ाई ने देश की औरतों को बहुत बड़ा संदेश दिया है.

एक नहीं तो दूजा सही

कभी-कभी मेकअप किट अपडेट रखने के बावजूद भी ड्रैसिंगटेबल के दराज से मेकअप किट निकालने पर फाउंडेशन सूख चुका होता है, तो लिपस्टिक गरमी में पिघल चुकी होती है. सारी मेकअप किट अस्तव्यस्त. ऐसे में गुस्सा आता है और पार्टी में जाने का मूड ही नहीं रहता. मगर ऐसी स्थिति में परेशान होने के बजाय खराब हुए कौस्मैटिक प्रोडक्ट्स के विकल्प इस्तेमाल कर सकती हैं.

मसकारा: मसकारा न होने पर पैट्रोलियम जैली का प्रयोग किया जा सकता है. पलकों पर पैट्रोलियम जैली लगाएं. ऐसा करने से मसकारे के बिना भी आईलैशेज घनी व चमकदार नजर आती हैं.

ब्लशर: ब्लशर की जगह लिपस्टिक का प्रयोग किया जा सकता है. ध्यान रहे कि लिपस्टिक अधिक क्रीमी होती है. ऐसे में लिपस्टिक गालों पर उंगली से लगाने के बाद अच्छी तरह फैलाएं. फाइनल टच के लिए टिशू पेपर से अतिरिक्त शाइन व औयल पोंछ लें.

लिपस्टिक: होंठों पर ब्लशर के इस्तेमाल से लिपस्टिक की कमी नहीं खलती. सब से पहले क्रीम या मौइश्चराइजर लगा कर होंठों को सौफ्ट करें. अब ब्रौंज ब्लशर को उंगली से होंठों पर लगाएं और होंठों पर अच्छी तरह फैलाएं.

फाउंडेशन: यदि फाउंडेशन नहीं है, तो उस की जगह लूज पाउडर का इस्तेमाल किया जा सकता है. अगर वह भी न हो तो कंसीलर का प्रयोग करें. दोनों को मौइश्चराइजर में मिला कर इस्तेमाल करना चाहिए.

आईशैडो: आईशैडो न होने पर ब्लशर का इस्तेमाल किया जा सकता है. कौटन बौल पर ब्लशर लगा कर दोनों आंखों पर लगाएं.

आईलाइनर: आईलाइनर की जगह आईशैडो का प्रयोग किया जा सकता है. इसे आईलाइनर की तरह इस्तेमाल करने के लिए आईशैडो ब्रश को थोड़े से पानी से नम करें. अब इस ब्रश पर आईशैडो (ब्लैक ग्रे या नेवी ब्लू) लगाएं और इसे हलके हाथों से अपर आईलिड पर लगाएं.

कंसीलर: अगर कंसीलर सूख चुका है, तो लिक्विड फाउंडेशन की बोतल के बाहर चिपकी फाउंडेशन की अधसूखी परतों का इस्तेमाल किया जा सकता है.

सीरम: सीरम लगाने से बालों को चमक व घनापन मिलता है. सीरम की जगह हैंड लोशन या बौडी लोशन अथवा फेस मौइश्चराइजर का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसे बालों में लगाने के लिए दोनों हाथों में मौइश्चराइजर लगाएं. फिर बालों में लगाएं. ध्यान रहे मौइश्चराइजर की मात्रा कम होनी चाहिए वरना बाल औयली नजर आएंगे. 

जीएसटी बिल पारित, डेवेलेपर्स में ख़ुशी

पिछले सत्र में रियल एस्टेट बिल के पारित होने के बाद उम्मीद थी कि इस सत्र में जीएसटी बिल पर सदन सकारात्मक कदम उठाएगी. बुधवार को राज्यसभा में जीएसटी बिल पारित हो ही गया. इससे देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह बदल जाएगी. हालांकि अभी लोकसभा से पारित होकर बिल राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए जाएगा पर वह राह अब आसान नज़र आ रही है. जीएसटी के पारित होने से रियल एस्टेट सेक्टर पर कैसा असर पड़ेगा, जानिए क्या कहना है डेवलपर्स का-

1. अशोक गुप्ता, सीएमडी, अजनरा इंडिया लिमिटेड

पुरे देश में एकल कर प्रणाली हो जाएगी जिससे न केवल कीमते समान रहेगी बल्कि पारदर्शिता भी बढ़ेगी जो निष्पक्ष व्यापर में सहायक होगी. जीएसटी लागू होने से रियल्टी सेक्टर को प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा.

2. कुशाग्र अंसल, निदेशक, अंसल हाउसिंग

आज कल कुछ डेवलपर अलग-अलग राज्यों में प्रोजेक्ट का निर्माण करते है जिससे विभिन्न वैट होने से कीमतों में अंतर आता है | अब जीएसटी के आ जाने से सरल कर प्रणाली होगी जिससे टियर 1 व 2 शहरों में भी सस्ते दाम पर अच्छा निर्माण हो सकेगा.

3. दीपक कपूर, अध्यक्ष, क्रेडाई-पश्चिम उ.प्र. व निदेशक गुलशन होम्ज़

जीएसटी के लागू होने से रियल्टी सेक्टर में आसान कर प्राणाली आ जाएगी, निर्माण लागत कम हो जाएगी और पारदर्शिता बढ़ेगी. वर्तमान हालत को देखें तो कीमतों में 15% से 20% तक की कमी आने की उम्मीद है जिससे आने वाले 5-7 सालों में रियल्टी सेक्टर ही नहीं पूरे भारतीय बाज़ार पर बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा.

4. विकास भसीन, एमडी, साया ग्रुप

गौरतलब है कि निर्माणाधीन संपत्ति खरीदने पर ग्राहक को सेवा कर व वैट दोनों भरना पड़ता है पर जीएसटी के आ जाने से डेवलपर को नॉन क्रेडिबल टैक्स जैसे एंट्री टैक्स, सीएसटी, कस्टम ड्यूटी आदि कम भरने पड़ेंगे जिससे कीमत सीधे तौर पर कम हो जाएगी.

5. मनोज गौड़, अध्यक्ष, क्रेडाई एनसीआर व एमडी, गौड़संस इंडिया लिमिटेड

सरकार द्वारा एक ऐसा सराहनीय जीएसटी बिल पारित किया गया है जो निश्चित तौर पर रियल्टी सेक्टर व उसके खरीदारों के लिए लाभदायक साबित होगा. कर की सरल प्रणाली सेक्टर में पारदर्शिता और कीमतों में कटौती लाने में सहायक होगी जो डेवलपरों व ग्राहकों दोनों के लिए अच्छा होगा.

ये हैं बॉलीवुड के नए ‘शहंशाह’

रितिक रोशन फिल्मी पर्दे पर जल्द ही अमिताभ बच्चन का मशहूर डायलॉग ‘रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप लगते है, नाम है शहंशाह’ बोलते नजर आ सकते हैं. रितिक रोशन अगर शहंशाह का किरदार निभाएंगे तो वो दिलचस्प भी होगा और चैलंजिंग भी क्योंकि अमिताभ के चाहनेवालों को आज भी वो किरदार बेहद पसंद आता है. हालांकि रितिक के लिए अच्छी बात ये है कि वो पहले भी अमिताभ की फिल्म ‘अग्निपथ’ के रीमेक में काम कर चुके हैं और उनकी ‘अग्निपथ’ हिट भी थी. जबकि अमिताभ की ‘अग्निपथ’ बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हो गई थी, लेकिन अमिताभ को बेस्ट एक्टर कैटेगरी में 1990 में नेशनल अवॉर्ड मिला था.

अमिताभ की फिल्मों के रीमेक की लिस्ट में रितिक अकेले स्टार नहीं हैं, उनसे पहले शाहरुख खान ‘डॉन’ की रीमेक में नजर आ चुके हैं. वैसे अमिताभ की फिल्मों के रीमेक में सबसे ज्यादा अभिनय साउथ के सुपर स्टार रजनीकांत ने किया है.

‘डॉन’, ‘खुद्दार’, ‘नमक हलाल’, ‘मर्द’, ‘मजबूर’, ‘खून पसीना’, ‘लावारिस’, ‘अमर अकबर एंथोनी’ और ‘त्रिशूल’ जैसी फिल्मों से रजनीकांत ने भी साउथ में लोकप्रियता हासिल की, तो ये कहना गलत ना होगा कि चाहे रजनीकांत हों या शाहरुख खान या रितिक रोशन इन सबकी सफलता में अंजाने में ही सही बिग बी का योगदान भी माना जाएगा.

67 का हीरो, 28 की हीरोइन!

सुभाष घई की फिल्म ‘कांची’ से बॉलीवुड में डेब्यू करने वालीं और हाल ही में ‘ग्रेट ग्रैंड मस्ती’ में नजर आईं बंगाली अभिनेत्री मिष्ठी फिर परदे पर दिखाई देंगी. महेश भट्‌ट की फिल्म ‘बेगम जान’ में 28 साल की मिष्ठी 67 साल के नसीरुद्दीन शाह के साथ रोमांस लड़ाती दिखेंगी. इसमें विद्या बालन मुख्य भूमिका निभा रही हैं. इस फिल्म की शूटिंग झारखंड में हुई है. अपने रोल के बारे में बताते हुए मिष्ठी कहती हैं, ‘हम फिल्म की शूटिंग पूरी कर चुके हैं. इसमें मेरे प्रमुख सीन विद्या बालन और नसीरुद्दीन शाह के साथ हैं. मेरा फिल्म में डिफरेंट रोल है, जो कि कहानी को अलग एंगल देता है.’

मुझे पढ़ाने के लिए मां ने मकान तक गिरवी रख दिया: राखी बिड़लान

दिल्ली के मंगोलपुरी में एक छोटी सी गली में 25 गज में बने छोटे से मकान में परिवार के साथ रहने वाले भूपेंद्र  बिड़लान व शीला देवी ने सपने में भी न सोचा होगा कि उन की बेटी राखी बिड़लान एक दिन दिल्ली सरकार में डिप्टी स्पीकर बन कर इतिहास रच देंगी.

ऐसी मां को सलाम

सरकारी स्कूल की चतुर्थ वर्ग की कर्मचारी राखी की मां की चाहत थी कि उन की बेटी पढ़लिख कर अफसर बने और यह तभी संभव था जब बेटी उच्च शिक्षित हो. मां का यह सपना  बेकार नहीं गया. बेटी राखी भले ही सरकारी औफिसर न बन पाई हो पर राजनीति के उस शिखर पर जरूर जा बैठी, जहां पहुंचना आसान नहीं होता.

दलित परिवार में पैदा हुईं राखी आज जिस मुकाम पर हैं उस का श्रेय वे मां को देती हैं. राखी कहती हैं, ‘‘एक सरकारी स्कूल में बतौर चपरासी  काम करने वाली मेरी मां शिक्षा के महत्त्व को जानती थीं. मां मानती हैं कि एक शिक्षित लड़की न सिर्फ अपने परिवार, बल्कि देश की तरक्की में भी अहम योगदान दे सकती है.

‘‘शायद यही वजह थी कि जब मैं ने मास कम्यूनिकेशन से एम.ए. करना चाहा, तो मुझे पढ़ाने के लिए मेरे मातापिता ने उस छोटे से घर को भी गिरवी रख दिया. उस वक्त मेरी आंखों में आंसू आ गए थे. एक तरफ जहां समाज में कुछ लोग बेटियों की हत्या जन्म लेने से पूर्व ही गर्भ में कर देते हैं, वहीं मेरे भी मातापिता हैं, जिन्होंने बेटेबेटी में कभी फर्क महसूस नहीं किया.’’

राजनीति में आना दिलचस्प रहा

जिस भारतीय समाज की संरचना धार्मिक अंधविश्वास, जातपांत, छुआछूत के तानेबाने में उलझी हो, वहां एक कम उम्र की दलित लड़की का राजनीति में आना भी कम दिलचस्प नहीं है.

राखी बताती हैं, ‘‘मास कम्यूनिकेशन से एम.ए. करने के बाद मेरी इच्छा थी कि मैं नौकरी करूं और घर की आर्थिक स्थिति सही करने में अपना योगदान दूं और जो मकान मातापिता ने मेरी पढ़ाई के लिए गिरवी रखा था उसे छुड़ाऊं. पर उसी बीच देश में अन्ना आंदोलन की लहर चली. लोग कुशासन और भ्रष्टाचार से त्रस्त थे. मेरे दादाजी, जो स्वतंत्रता सैनानी थे, मेरे प्रेरणास्रोत रहे. मुझे लगा कि इस आंदोलन से जुड़ कर कुछ तो देशहित में काम कर ही सकती हूं.

 ‘‘बाद में जब अरविंद केजरीवालजी के नेतृत्व में ‘आम आदमी पार्टी’ का गठन हुआ, तो मुझे मंगोलपुरी विधान सभा से पार्टी ने टिकट दिया. उस वक्त मेरे हाथपांव फूल गए थे. पर मुझे लक्ष्य पता था. मैं चुनाव जीत गई. यह सरकार

49 दिनों तक चली पर दोबारा चुनाव होने पर भी मैं भारी मतों से जीती. पार्टी ने मुझे लोक सभा उम्मीदवार भी बनाया, जिस में मुझे विशाल जनाधार मिला. यह अलग बात है कि यह चुनाव मैं मामूली अंतर से हार गई.’’

बड़ी जिम्मेदारी

डिप्टी स्पीकर बन कर कैसा महसूस कर रही हैं? क्या पार्टी के नेता आप के निर्देशों का सम्मान करते हैं? प्रश्न पर राखी कहती हैं, ‘‘दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने इस पद के लिए एक दलित व कमउम्र लड़की को चुना.  मैं इस के लिए उन की शुक्रगुजार हूं. विधान सभा में साथी नेता मुझ से स्नेह और मेरी इज्जत करते हैं, मेरे हर निर्देश का पालन करते हैं. डिप्टी स्पीकर का पद एक बड़ी जिम्मेदारी है. मुझे यह जिम्मेदारी सौंप कर हमारी पार्टी ने जता दिया कि वह सही माने में महिलाओं की हिमायती है. सदन में मैं खुद से और साथी नेताओं से सही तालमेल बैठाने की पूरीपूरी कोशिश करती हूं.’’

राजनीति में महिलाएं

राजनीति में दलित महिलाओं की हिस्सेदारी चाहती हैं या फिर अधिक से अधिक महिलाओं के राजनीति में आने की पक्षधर हैं? राखी इस सवाल पर कहती हैं, ‘‘देखिए, यह सही है कि भारत में दलितों का उत्थान जरूरी है पर देश की आधी आबादी कहलाने वाली महिलाएं चाहे वे किसी भी वर्ग से आती हों, उन का राजनीति में स्वागत है यानी मैं सभी वर्गों की महिलाओं के राजनीति में समान हिस्सेदारी की पक्षधर हूं.’’

अब निडर हो जाएं महिलाएं

एक महिला के लिए राजनीति में आना आज के समय में कितना सुरक्षित है? यह पूछने पर राखी बताती हैं, ‘‘समाज में परिवर्तन के लिए महिलाओं को आगे आना होगा. देश की राजनीति में महिलाएं अपनी काबिलीयत दिखा रही हैं. हां, यह अलग बात है कि पुरुष मानसिकता अब भी महिलाओं को आगे देखना पसंद नहीं करती पर महिलाओं को निडर हो कर काम करने की जरूरत है.

‘‘कम उम्र की युवती व दलित वर्ग से होने के चलते मैं भी कइयों की आंखों की किरकिरी बनी. मुझ पर हमले भी हुए. एक बार तो रात में मेरी गाड़ी के शीशे तक तोड़ डाले पर मैं डरी नहीं. अगर मैं समाज की ओछी सोच से डरती, शिक्षित न होती, तो यहां तक पहुंचना मुझ जैसी साधारण लड़की के लिए संभव ही न था.’’

महिला सुरक्षा सब की जिम्मेदारी

दिल्ली महिलाओं के लिए असुरक्षित बनती जा रही है. 3 साल की मासूम बच्ची से ले कर बुजुर्ग महिलाएं तक यौन शोषण, बलात्कार की शिकार हो रही हैं. क्या कहेंगी आप? प्रश्न के उत्तर में राखी कहती हैं, ‘‘मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि दिल्ली देश की क्राइम कैपिटल है. केंद्र की सरकार पुलिस से मनमानी कराती है. दिल्ली की जनता की सुरक्षा राम भरोसे है.

‘‘हमारी सरकार महल्ला सुरक्षा दल, बसों में मार्शल, जगहजगह सीसीटीवी कैमरे लगवाने के लिए प्रयासरत है. दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालिवाल भी महिला हितों की रक्षा के लिए लगातार काम कर रही हैं. पर केंद्र सरकार को चाहिए कि दिल्ली पुलिस का इस्तेमाल आम आदमी पार्टी के नेताओं को परेशान करने के बजाय जनता व महिला सुरक्षा के लिए करना चाहिए.’’

खाली पलों में

विधायक व डिप्टी स्पीकर बनने के बाद भी राखी मंगोलपुरी के अपने उसी 25 गज के छोटे से घर में रहती हैं. मां अब भी ड्यूटी पर जाती हैं. आम भाईबहनों की तरह राखी की अब भी अपने भाईबहनों से लड़ाई होती है. उन्हें मां के हाथ का खाना पसंद है. पर वे खाना बनाना और खिलाना बेहद पसंद करती हैं. राखी को दुख है कि चुनाव प्रचार में उन के भाइयों की नौकरी छूट गई. वे अब तक बेरोजगार हैं.

‘दिल तो पागल है’ राखी की पसंदीदा फिल्म है पर हालिया फिल्म ‘मांझी: द माउंटेन मैन’ देख कर वे और भी स्ट्रौंग हो गईं. राखी कहती हैं कि यह फिल्म कठिन हालात से लड़ना सिखाती है.

राखी से उन के जानने वाले व रिश्तेदार जब भी मिलते हैं, तो यह पूछना नहीं भूलते कि शादी कब कर रही हैं? इस पर राखी मुसकराते हुए कहती हैं, ‘‘फिलहाल तो जनता की समस्याओं को सुनने और सुलझाने में ही समय बीत जाता है. शादी के बारे में सोच ही नहीं पाती. मगर जब करूंगी तो जरूरी बताऊंगी.’’

गृहशोभा का जवाब नहीं

राखी को महिलाओं की चहेती पत्रिका गृहशोभा बेहद पसंद है. वे कहती हैं, ‘‘गृहशोभा महिलाओं की संपूर्ण पत्रिका है. मैं गृहशोभा को शुरू से ही पढ़ती आ रही हूं. इस में प्रकाशित लेख महिलाओं के लिए बेहद उपयोगी होते हैं. इस पत्रिका के माध्यम से मैं यह कहना चाहूंगी कि कन्या भ्रूण हत्या सभ्य समाज के मुंह पर एक तमाचा है. कौन कहता है कि बेटी पराई होती है. एक बेटी जितना प्यार अपने मांबाप को करती है, उतना बेटा कर ही नहीं सकता.’’           

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