बन सकता है ‘हाउसफुल 3’ का सीक्वल

हाउसफुल 3 को मिली-जुली प्रतिक्रिया मिलने के बाद भी बॉक्स ऑफिस पर उसकी अच्छी कमाई को देखते हुए उसके निर्माता अब उसकी एक और कड़ी बनाने को इच्छुक हैं.

  

निर्माता साजिद नाडियाडवाला की यह कॉमेडी फिल्म तीन जून को बड़े पर्दे पर रिलीज हुई थी. फिल्म में अक्षय कुमार, रितेश देशमुख, अभिषेक बच्चन, जैकलिन फर्नांडिज और नरगिस फाखरी जैसे सितारें मुख्य भूमिका में हैं.   

‘हाउसफुल 4’ के निर्माण पर जब नाडियाडवाला से सवाल किया गया तो उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हाउसफुल एक अच्छी श्रृंखला है. यकीनन..हम जल्द ही ‘हाउसफुल 4’ बनाएंगे.’’

इस मौके पर अक्षय कुमार ने कहा कि ‘हाउसफुल 4’ की पटकथा लिखने में समय लगेगा क्योंकि यह आसान विषय नहीं है.

अक्षय ने कहा, ‘‘हम बैठ कर इस पर बात करेंगे. इसमें समय लगेगा. ‘हाउसफुल 2’ और ‘हाउसफुल 3’ के बीच ही चार साल का अंतराल था. पटकथा लिखने में बहुत समय लगता है. कई लोगों को एक छत के नीचे लाना आसान नहीं है इसमें काफी समय लगता है.’’

‘एयरलिफ्ट’ के अभिनेता ने कहा, ‘‘क्योंकि यह एक आसान विषय नहीं है इसलिए इसका निर्माण एक कठिन काम है. फिल्म शुरू होने में कम से कम एक डेढ़ साल लगेगा.’’

निर्देशक साजिद-फरहाद की जोड़ी की ‘इ्टस इंटरटेनमेंट’ के बाद अक्षय के साथ यह दूसरी फिल्म है.

विदेश से लौट सीधे विराट के घर पहुंची अनुष्का!

पिछले हफ्ते लव बर्ड्स अनुष्का शर्मा और विराट कोहली को एयरपोर्ट पर गाड़ी में कुछ सीरियस बातचीत करते हुए स्पॉट किया गया था. बता दें कि अनुष्का तब सलमान खान के साथ बुडापेस्ट में फिल्म ‘सुल्तान’ की शूटिंग के लिए जा रही थीं. अनुष्का ने बुडापेस्ट के कुछ फोटोज भी शेयर किए थे.

हाल ही में अनुष्का वहां से शूटिंग खत्म करके दिल्ली पहुंचीं और बिना समय गंवाए अपने ब्वॉयफ्रेंड विराट से मिलने पहुंच गईं.

खबर है कि अनुष्का यहां सिर्फ विराट से ही नहीं बल्कि उनके पेरेंट्स और फैमिली से भी मिलीं. विराट और अनुष्का दिल्ली एअरपोर्ट एक-दूजे के हाथों में हाथ डाले स्पॉट हुए थे. विराट और अनुष्का को देखकर तो यही लग रहा था जैसे उनका रिलेशन पहले से और ज्यादा स्ट्रांग हो गया है.

खबर है कि दोनों किसी वेकेशन पर जा रहे हैं, जिसकी प्लानिंग उन्होंने काफी पहले कर ली थी. माना जा रहा है कि दोनों चंडीगढ़ जाएंगे, जहां अनुष्का अपने को-स्टार दिलजीत दोसांझ के साथ फिल्म ‘फिल्लौरी’ की शूटिंग करेंगी.

रिलीज से पहले ही इस फिल्म ने कमाए 200 करोड़

बॉलीवुड में सलमान खान, शाहरुख खान और आमिर खान ऐसे हीरो हैं, जिनकी फिल्म तैयार होने से पहले ही वितरक खरीदने के लिए खड़े हो जाता हैं. साउथ फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा ही रजनीकांत की फिल्मों के साथ होता है. साउथ स्टार रजनीकांत की आने वाली फिल्म ‘कबाली’ रिलीज से पहले ही 200 करोड़ रुपए में बिक चुकी है.

ऐसा पहली बार होगा जब कोई भारतीय फिल्म दुनिया भर में 5000 स्क्रीन पर दिखाई जाएगी. यह फिल्म मलेशिया, चाइनीज और थाई में डब की जाएगी.

फिल्म के प्रोडयूसर कलाईपुली थानु के मुताबिक, फिल्म की 500 स्क्रीन केवल यूएस में होंगी जो कि अमूमन मुमकिन नहीं होता. कबाली का प्रमोशन भी बड़े लेवल पर होगा. एशिया के कुछ हवाई जहाजों को कबाली थीम से पेन्ट किया जाएगा. फ्लाइट में सफर कर रहे मुसाफिरों को कबाली स्पेशल मैन्यू सर्व किया जाएगा. 

‘कबाली’ का पहला टीजर 30 मई को लॉन्च किया गया था. करीब 67 सेकंड के इस टीजर में रजनीकांत को अलग अंदाज में दिखाया गया है. पीए रंजीत के निर्देशन में बनी ‘कबाली’ में बॉलीवुड एक्ट्रेस राधिका आप्टे भी हैं.

राधिका आप्टे इससे पहले बॉलीवुड की ‘बदलापुर’, ‘हंटर’ और ‘मांझी: द माउंटेन मैन’ जैसी फिल्मों में काम कर चुकी हैं. रंजीत निर्देशित ‘कबाली’ के अगले साल रिलीज होने की संभावना है.

लोग मुझे फर्नीचर कहते थे: अक्षय कुमार

अपनी हालिया फिल्मों में अभिनय के लिए फिल्म समीक्षकों से प्रशंसा पाने वाले अभिनेता अक्षय कुमार का कहना है कि किसी समय उन्हें उनके अभिनय को लेकर ‘फर्नीचर’ कहा जाता था.

हालिया रिलीज फिल्म ‘हाउसफुल 3’ की सक्सेस पार्टी के दौरान जब अक्षय कुमार से पूछा गया कि वे गंभीर भूमिकाओं और कॉमेडी में कैसे तालमेल बैठा लेते हैं तो उनका जवाब था, “जब मैं इंडस्ट्री में आया था, तो लोग मुझे फ़र्नीचर कहते थे. अब मैं भी एक्टिंग कर ले रहा हूं, तो कोई भी कर सकता है.”

इससे पहले ‘एयरलिफ्ट’ में एक कारोबारी की भूमिका निभाने के लिए अक्षय की तारीफ हुई थी, जो हमले के बाद पैदा हुए संकट के समय कुवैत में रहने वाले भारतीयों को बाहर निकाल रहे थे. इसके बाद ‘बेबी’ के 48 वर्षीय अभिनेता ने हाल में रिलीज ‘हाउसफुल-3’ में एक हास्य भूमिका निभाई.

अक्षय कुमार की फिल्म ‘एयरलिफ्ट’ बाक्स ऑफिस पर 100 करोड़ रुपये का कारोबार करने में सफल रही है, जबकि ‘हाउसफुल-3’ भी कारोबार के मामले में 100 करोड़ रुपये का आंकड़ा छूने वाली है.

अक्षय की अगली फिल्म ‘रुस्तम’ है. और उम्मीद है कि वह बॉक्स ऑफिस पर लगातार सौ-सौ करोड़ रुपये का कारोबार करने वाली फिल्मों की ‘हैट्रिक’ लगाएंगे. अक्षय ने कहा कि उन्हें भी ऐसी ही उम्मीद है. हमने ‘रुस्तम’ एक अच्छी फिल्म बनाई है. उम्मीद है कि लोग इसे पसंद करेंगे.

बताया जाता है कि ‘रुस्तम’ की कहानी 1959 में नानावती मामले पर आधारित है, जिसमें एक नौसेना अधिकारी कावस मानेकशॉ नानावती पर अपने पत्नी के प्रेमी प्रेम आहूजा की हत्या करने का मुकदमा चलता है. अक्षय ने इस फिल्म में नौसेना अधिकारी का किरदार निभाया है. इसमें इलियाना डिक्रूज और ईशा गुप्ता भी काम कर रही हैं.

कॉमेडी, एक्शन और इमोशनल सभी तरह की भूमिकाएं अक्षय के खाते में दर्ज हैं. लेकिन अक्षय ने कहा, ”मुझे स्लैपस्टिक कॉमेडी पसंद है. सिचुएशनल कॉमेडी में आपके पास कुछ करने को नहीं होता है, जबकि स्लैपस्टिक कॉमेडी में आपको अपने बॉडी लैंग्वेज से काम लेना होता है.”

ब्राजील : साओ पावलो की कुछ अमिट यादें

‘‘हमें जरमनी में रहते 5 साल बीत गए,’’ मैं ने मधुकर से कहा, ‘‘मुझे घर की बहुत याद आ रही है.’’

इतने में दरवाजे की घंटी घनघना उठी. दरवाजा खोला तो एक आवश्यक डाक इन के नाम से आई थी. लिफाफा खोल कर देखा तो ब्राजील सरकार की ओर से अनुरोधपत्र था कि संसार के सब से बड़े पनबिजली योजना के संचालन में आप की आवश्यकता है.

पत्र पढ़ कर आश्चर्य हुआ. ब्राजील का नाम सुनते ही मन में आया काफी, सांबा डांस फुटबाल और अमेजन के जंगल.

अगले दिन जरमन दोस्तों से बात हुई. उन्होंने कहा, ‘‘ब्राजील की सड़कों पर सांप और जंगली जानवर चलते हैं और आप को पता नहीं आमजोना की जनजाति कितनी खतरनाक है.’’

कई सारे हां और ना में से निकलते- निकलते हम दोनों एक दिन साओ पावलो के कोंगोइयास हवाई अड्डे पर उतर गए.

जरमनी से कितना भिन्न है यह देश. चमकता हुआ सूरज हिंदुस्तान की याद दिला रहा था. हंसतेमुसकराते चेहरे, गोरे और श्यामरंगी, काले केश वाले अफ्रीकी मूल के लोग सब अपनेअपने काम से कदम बढ़ाते हुए नजर आ रहे थे. ऐसा बहुरंगी सड़क का दृश्य था.

दोना मरिया (मरिया दीदी) ने मुसकराते हुए हम दोनों से हाथ मिलाया फिर गले लगाया. ‘मोयतो प्राजेर, मोयतो प्राजेर’ से हमारा स्वागत किया, यानी बड़ी खुशी हुई, बड़ी खुशी हुई. सुर और ताल से भरी पोर्तगीज भाषा कानों में बड़ी सुरीली लगती है.

आज का भोजन दोना मरिया परिवार के साथ था. मेज स्वादिष्ठ पकवानों से सजी थी, सोपा (सूप), आरोज (चावल), फिजाऊं (राजमा), ओवो (अंडा), सलादा (सलाद), फ्रांगो (चिकन), सोब्रे मेजा (मीठा पकवान) और जूस, ये सब देख कर मन खुश हो गया. रोज का खानापीना ब्राजील में एक महोत्सव जैसा ही होता है.

दुनिया में सब से बड़ा क्रिश्चियन धर्म का देश है ब्राजील, रविवार को सुबह नहाधो कर, अच्छे कपड़े पहन कर बहुत से लोग चर्च में जा कर जीसस की प्रार्थना करते हैं. हर रविवार को चर्च में लड़कियों को सिलाई, बुनाई, पेंटिंग और अन्य कला मुफ्त में सिखाई जाती है. वृद्धावस्था में मांबाप अपनी बेटी के परिवार के साथ रहते हैं. बेटी तो अपनी होती है.

सांबा नृत्य यहां की संस्कृति का एक प्रमुख हिस्सा है. फरवरी में होने वाले कार्निवाल में लड़कियां और स्त्रियां रंगबिरंगे झिलमिलाते चुस्त कपड़े पहने, बड़ी अदा से अफ्रीकी ढोल की ताल पर झूमती हुई नृत्य करती दिखाई देती हैं.

आवाज कानों में पड़ते ही लोग अपनेअपने घरों से निकल कर सड़क पर खड़े हो जाते हैं. कितना सुंदर नजारा. रोमांस और शृंगार का यह मेला वसंत के मौसम में जनमानस को रासलीला में डुबो देता है.

फुटबाल का खेल तो इस देश का माहौल ही बदल देता है. दफ्तर और दुकानें बंद, करीब सभी लोग अपनाअपना कामकाज छोड़ कर टीवी पर चिपक जाते हैं. पड़ोसी और दोस्त सब इकट्ठे हो जाते हैं. गोल होने के इंतजार में बीयर, चीज और तरहतरह की नमकीन का भी स्वाद लेते रहते हैं. फुटबाल का खेल इन के लिए खुशी का मौका है, वैसे भी ‘खाओपियो और आराम करो’ इन के जीवन का अंग है.

ब्राजील के लोग भारतीय दर्शन में बहुत रुचि रखते हैं. महात्मा गांधी और भगवत गीता के बारे में जानने की उन की बड़ी जिज्ञासा रहती है.

साओ पावलो के मेन स्ट्रीट ‘आविनिदा पाऊलिस्ता’ पर महात्मा गांधी का एक बड़ा पुतला खड़ा है. उस के नीचे पोर्तगीज भाषा में अंकित है, ‘हिंसा कायरों का शस्त्र है.’

भारत और ब्राजील के आपसी संबंधों की असीम संभावनाएं हैं. आज दोनों देशों के बीच बढ़ते आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध बहुत उत्साहवर्धक हैं.

बनें न्यू इंडिया एश्योरेंस के एजेंट

अब लोग इस बात को समझने लगे हैं कि अनिश्चितताओं एवं जोखिम भरे इस दौर में केवल जीवन बीमा लेना काफी नहीं, क्योंकि आप का स्वास्थ्य, घर, गाड़ी, कीमती सामान व अन्य संपत्तियों की सुरक्षा भी उतनी ही जरूरी है. ऐसे में भारतीय बाजार में साधारण बीमा (गैर जीवन बीमा) की मांग तेजी से बढ़ रही है, जो कैरियर के क्षेत्र में कई सुनहरे अवसर ले कर आई है. खास तौर से वे लोग जो नौकरी से हट के अपने बलबूते पर कुछ करने का जज्बा रखते हैं उनके लिए इस क्षेत्र में बहुत अच्छे विकल्प हैं.

आजकल स्कूली पढ़ाई समाप्त होते ही नौजवान आत्मनिर्भर बनना चाहते हैं. पढ़ाई और खर्चों में तालमेल बैठाने के लिए वे ऐसे काम की तलाश में रहते हैं जिसमें उन्हें पैसा भी मिले और पढ़ाई करने के लिए समय भी. घरेलू महिलाएं भी अपनी कार्यकुशलता के दम पर घर बैठे अच्छी कमाई कर सकती हैं. ऐसे में न्यू इंडिया एश्योरेंस को अपने कैरियर की शुरुआत के लिए चुना जा सकता है. न्यू इंडिया एश्योरेंस एजेंट बन कर आप अच्छा पैसा कमा सकते हैं.

बीमा एजेंट किसी भी कंपनी एवं ग्राहक के बीच की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है, जिस का अंतिम उद्देश्य ग्राहकों को गुणवत्ता और संतुष्टि प्रदान करना एवं कंपनी को लाभपूर्ण स्थिति में पहुंचाना है. एक बार स्वयं को विश्वस्त एजेंट के रूप में स्थापित कर लेने पर आप के लिए तरक्की के द्वार खुल पड़ते हैं. तो आइए समझते हैं कि कैसे एक बीमा एजेंट बन कर आप न्यू इंडिया एश्योरेंस से जुड़ सकते हैं और अपने कैरियर में लगा सकते हैं चार चांद:

न्यू इंडिया एश्योरेंस ही क्यों

आज न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी भारत सरकार के अधीन अंतर्राष्ट्रीय साधारण बीमा कंपनी है जिस का प्रचलन 28 देशों में है और प्रधान कार्यालय, मुंबई भारत में है. इस की स्थापना सर दोराबजी टाटा ने 1919 में की थी. ये भारतीय व्यावसायिक मार्केट में 40 वर्षों से अधिक समय से गैर जीवन व्यवसाय के लीडर हैं. भारत में केवल ये ही ऐसे बीमाकर्ता हैं जिन्हें एएम बेस्ट द्वारा (ऐक्सीलेंट – स्टेबल आउटलुक) की रेटिंग दी गई है.

बेहतरीन प्रशिक्षण: न्यू इंडिया अपने एजेंट्स को विश्व स्तर की टे्रनिंग देता है. इस के लिए शाखा कार्यालय से ले कर प्रधान कार्यालय तक इन के एजेंट मैनेजर हर वक्त उपलब्ध हैं, जो अपने एजेंट्स को समयसमय पर ट्रेनिंग देते हैं और नई योजनाओं से उन्हें अवगत कराते रहते हैं. हर 15 दिन पर एजेंट्स की मीटिंग होती है जिस में एजेंट मैनेजर/काउंसलर उन की समस्याओं का समाधान करते हैं. न्यू इंडिया की सैल्स और मार्केटिंग टीम भी एजेंट्स को मार्केटिंग में बढि़या सहायता देती है.

आकर्षक कमीशन एवं पुरस्कार योजनाएं: आकर्षक कमीशन एवं विभिन्न प्राइज स्कीम के द्वारा न्यू इंडिया अपने एजेंट का खास खयाल रखती है. इन के नए स्पेशल एजेंट क्लब बैनिफिट स्कीम के अंदर आप जितना बेहतर काम करेंगे, उतना ही ज्यादा कमाएंगे. जहां साधारण एजेंट के रूप में आप को आप के अर्जित नए व्यवसाय/रिन्यूवल के लिए कमीशन मिलता है, वहीं निश्चित समय में कुछ शर्तें पूरी करने पर आप को अपनी उपलब्धि के अनुसार विभिन्न क्लबों का सदस्य बनने का भी सौभाग्य प्राप्त हो सकता है. इस के अलावा साल में एक बार क्लब सदस्य एजेंट सम्मेलन में आनेजाने का जेबखर्च एवं किराया भी दिया जाता है. प्राइज स्कीम के तहत वाहन, स्वास्थ्य व अन्य बीमा पौलिसी में तो हर पौलिसी पर अलग से एक निश्चित कमीशन दिया जाता है.

समर्पित एजेंट पोर्टल: देश भर में कार्यरत अपने एजेंट की सुविधा के लिए न्यू इंडिया की वैबसाइट पर खास रूप से 24/7 एजेंट पोर्टल की व्यवस्था है, जिससे आप बिना औफिस के चक्कर काटे न्यू इंडिया पोर्टल से ही किसी भी समय ग्राहकों को पौलिसी निर्गत कर सकते हैं.

कई वर्षों से नं. 1: बहुत वर्षों से प्रीमियम, संचय और लगभग सभी क्षेत्रों में न्यू इंडिया एश्योरेंस बाजार में सब से अग्रणी है. वर्ष 2016-17 में इस ने भारतीय व्यवसाय में 15000 करोड़ के आंकड़े को छुआ है एवं वैश्विक व्यवसाय ने 18000 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया है.

देश और विदेश में औफिसों का बड़ा नैटवर्क: भारत में इस का प्रचलन सभी प्रदेशों में 2320 कार्यालयों के माध्यम से है जिस में 1230 से अधिक माइक्रो कार्यालय शामिल हैं. इन के 19000 कर्मिक हैं और लगभग 50,000 संयुक्त एजेंट हैं, जो ग्राहकों को बीमा सेवाएं प्रदान कर रहे हैं. अन्य 28 देशों में भी इन के औफिस हैं.

उत्पादों की व्यापक सीमा: न्यू इंडिया के 220 से अधिक उत्पाद साधारण बीमा व्यवसाय के लगभग सभी क्षेत्रों को सेवा प्रदान कर रहे हैं. इन के ग्रामीण, सामाजिक क्षेत्र और माईक्रो बीमा क्षेत्र में भी उत्पादों की कड़ी है. सरकार द्वारा चलाई जा रही समूहबीमा योजनाओं में भी इस की सार्थक सहभागिता है.

आसान पौलिसी रिन्यूवल सहायता: न्यू इंडिया द्वारा ग्राहकों को पौलिसी नवीनीकरण करते हुए बहुत से विकल्प उपलब्ध करवाए जाते हैं और एसएमएस, ईमेल अलर्ट और अन्य विभिन्न ट्रिगरों के द्वारा सूचना प्रदान की जाती है.

ग्राहक सेवा: न्यू इंडिया के सभी क्षेत्रीय कार्यालयों में ग्राहक सेवा विभाग स्थापित हैं. ग्राहकों की सहायता हेतु अच्छा प्रशिक्षण प्राप्त मानव संसाधन और उच्च तकनीक के प्रयोग से न्यू इंडिया एश्योरेंस और ग्राहकों का संबंध काफी सुदृढ़ है.

एजेंट बनने की पात्रता, आवेदन एवं व्यावहारिक प्रशिक्षण: कोई भी इच्छुक व्यक्ति न्यू इंडिया के एश्योरेंस एजेंट के रूप में काम कर सकता है अगर वह आई आर डी ए द्वारा निर्धारित निम्न शर्तों को पूरा करता है:

उम्र: 18 वर्ष (कम से कम).

न्यूनतम योग्यता: 10वीं पास.

प्रशिक्षण: कंपनी के द्वारा आप को कम से कम 8 घंटे का औनलाइन/औफलाइन प्रशिक्षण दिया जाएगा ताकि आप बीमा व्यवसाय को सही से समझ सकें. ये ट्रेनिंग न्यू इंडिया के मंडल कार्यालय में होने वाली मीटिंग (15 दिनों पर) में शामिल हो कर भी पूरी की जा सकती है. ट्रेनिंग पूरी होने पर आप को कंपनी द्वारा प्रमाणपत्र दिया जाएगा.

इंश्योरैंस परीक्षा: भारतीय बीमा संस्थान आईआरडीए द्वारा मान्यता प्राप्त संस्था 50 अंकों की बीमा परीक्षा लेती है जिसे पास करने पर आप न्यू इंडिया के एजेंट के रूप में काम शुरू कर सकते हैं.

आवेदन: न्यू इंडिया की साइट या नजदीकी कार्यालय से आवेदन पत्र प्राप्त किया जा सकता है.

विस्तृत जानकारी या सहायता के लिए न्यू इंडिया एश्योरेंस के नजदीकी कार्यालय/शाखा में संपर्क करें.

फलों के लजीज व्यंजन: औरेंज व्हीट मफिंस

सामग्री

– 150 ग्राम आटा

– 50 ग्राम मैदा

– 1/2 टिन मिल्कमेड

– 50 ग्राम मक्खन

– 100 एमएल औरेंज जूस

– 20 ग्राम बूरा

– 1 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर

– 1 चुटकी बेकिंग सोडा

– 1 छोटा चम्मच औरेंज जूस

– 1-2 बूंदें औरेंज कलर

– 1 छोटा चम्मच औरेंज ऐसेंस

– 10 ग्राम सिरका.

विधि

ओवन को 180 डिग्री सेल्सियस पर गरम करें. एक बाउल में आटा, मैदा, बेकिंग पाउडर और सोडा मिलाएं. एक दूसरे बाउल में मक्खन, मिल्कमेड और बूरा डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. इस में आटे का मिश्रण, औरेंज ऐसेंस, कलर, सिरका और औरेंज जूस डाल कर अच्छी तरह मफिंस में तेल लगा कर मिश्रण भर कर मिनट तक बेक करें.

रजस्वला होना कोई अभिशाप नहीं

हाल के दिनों में भूमाता बिग्रेड (एक गैरसरकारी संस्था) और उस की प्रमुख तृप्ति देसाई, अहमदनगर, पुणे (महाराष्ट्र) सुर्खियों में छाई रही. मसला था शिरडी स्थित शनि सिंगला मंदिर में शनि की मूर्ति को महिलाओं द्वारा पूजा जाना और मंदिर प्रांगण में वर्जित महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को ले कर विरोध प्रदर्शन.

इसी कड़ी में एक और मंदिर (सबरीमाला) भी जुड़ गया, जहां रजस्वला महिलाओं द्वारा मंदिर के गर्भगृह में पूजन को ले कर विरोध प्रदर्शन और होहल्ला हुआ. 2 अप्रैल, 2016 को मंदिर के बाहर भीड़ जमा हुई और मुंबई उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए तृप्ति देसाई ने मंदिर में जाने की जिद की.

कर्मकांड और ईश्वर का भय दिखा कर महिलाओं के साथ तरहतरह के भेदभाव लगातार होते रहे हैं, जिस के केंद्र में हमेशा से स्त्रीदेह रही है.

भारत में न जाने कितने ऐसे मंदिर हैं, जहां मासिकधर्म के दौरान महिलाओं का प्रवेश घोर पाप व एक तरह का अपराध माना जाता है. पोंगापंडितों ने पापपुण्य, धर्मअधर्म, कर्मकांड का भय दिखा कर हमेशा से अपना हित साधा और अपनी झोलियां भरते रहे हैं.

दरअसल, रजोधर्म एक बायोलौजिकल प्रक्रिया है, जो न केवल स्वस्थ शरीर का प्रतीक है, बल्कि मां बनने के नैचुरल प्रोसैस का एक सशक्त सिंबल भी है. एक तरह से शौच जाने और पेशाब करने जैसी प्रक्रिया है यह.

इस दौरान महिलाओं के मंदिर प्रवेश पर सख्त मनाही होती है. यहां तक कि मंदिर के आसपास फटकने और पूजन सामग्री आदि तक को हाथ लगाने पर भी पाबंदी होती है. लगभग सभी मंदिर प्रशासनों ने इस संबंध में एक जैसे ही नियम बना रखे हैं, जिन्हें न चाह कर भी महिलाओं को मानना पड़ता है. पाप चढ़ने का भय इतना हावी होता है कि महिलाएं (कुछ छिटपुट घटनाओं को छोड़ कर) इस के खिलाफ आवाज न उठा चुपचाप नियमों को ईश्वर व धर्माधिकारियों की आज्ञा समझ कर मानती हैं.

ये तथाकथित पंडेपुजारियों की प्रायोजित रणनीति का एक हिस्सा था ताकि महिलाओं को बराबरी के हक से महरूम रखा जाए. महिलाएं पुरुषों की सामंतवादी सोच को कहीं चुनौती न दे दें, इसलिए ये कर्मकांड बनाए गए, जिन का बिना सोचेसमझे पीढ़ीदरपीढ़ी पालन किया जाता रहा.

धर्मांध समाज में अकसर मासिकधर्म या रजोधर्म के बारे में परदे के पीछे से बात की जाती है. यह कभी भी घरपरिवार का खुला विषय नहीं बन पाया.

नामचीन मंदिरों के बेनाम फतवे

शनि सिंगला मंदिर, शिरडी, महाराष्ट्र: यहां महिलाएं मंदिर के प्रांगण में तो प्रवेश कर सकती हैं, पर शनि की मूर्ति पर तेलार्पण या पूजाअर्चना करना निषेध है. इस के पीछे शनि का प्रकोप बड़ा कारण है.

बाबा बालकनाथ मंदिर, धौलागिरि पहाड़ी, जिला हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश: एक मिथक के अनुसार, जो स्त्री मूर्ति का दर्शन करती है उसे आशीर्वाद नहीं, अभिशाप मिलता है.

ब्रह्मा मंदिर, पुष्कर, राजस्थान: स्थानीय मान्यता के अनुसार, जो भी स्त्री कार्तिकेय की मूर्ति का दर्शन करती है वह अभिशाप से ग्रस्त हो जाती है.

पटबौसी सत्रा मंदिर, असम: यहां रजस्वला औरतें अशुद्ध मानी जाती हैं, इसलिए उन के प्रवेश पर सख्त पाबंदी है. हालांकि 2014 में असम के राज्यपाल जेवी पटनायक ने इस नियम को तोड़ने का प्रयास किया और कुछ महिलाओं के साथ मंदिर में प्रवेश भी किया, पर कुछ दिनों बाद फिर महिलाओं का प्रवेश निषेध हो गया.

देश में ऐसे छोटेबड़े हजारों मंदिर है, जहां महिलाओं के प्रवेश पर रोक है पर कुछ बड़े और नामचीन मंदिर ही सुर्खियां बटोर पाते हैं.

पोंगापंथियों के खिलाफ मुहिम

हाल के दिनों में पुरानी पड़ चुकी परंपराओं के खिलाफ आवाज मुखर हुई है. इस की शुरुआत निकिता आजाद नाम की एक लड़की ने फेसबुक पेज ‘हैपी टु ब्लीड’ नामक कैंपेन से की. इस में देश भर की लड़कियों/महिलाओं से प्लेकार्ड/ सैनिट्री नैपकिन/चार्ट पेपर पर ‘हैपी टु ब्लीड’ लिखा स्लोगन पोस्ट करने की अपील की गई, जो पितृसत्तात्मक समाज के लिए एक कड़ी चुनौती थी. इस पोस्ट को लाखों लाइक्स मिले और यह कैंपेन दुनिया भर में छा गया.

भूमाता बिग्रेड की मुहिम

शिरडी के नजदीक शनि सिंगला मंदिर में भूमाता बिग्रेड की हैड तृप्ति देसाई ने हजारों महिलाओं के साथ मंदिर के प्रांगण में घुस कर शनि की पूजाअर्चना करने की कोशिश कर सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ने का प्रयास किया. हालांकि उन्हें स्थानीय प्रशासन द्वारा बीच में ही रोक दिया गया. पर इस मुहिम ने बदलाव की दस्तक दे दी है.

जेएनयू का सैनिटरी नैपकिन कैंपेन

कुछ दिन पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी सैनटरी पैड पर स्लोगन लिख कर जगहजगह पेड़ों और दीवारों पर चस्पा किए, जो इस दिशा में एक दूसरा बोल्ड स्टैप था. यह पहल काफी सकारात्मक रही.

माहवारी से जुड़े अंधविश्वास

पढ़ेलिखे होने के बावजूद आज हम माहवारी से जुड़े ऐसे कई मिथकों व अंधविश्वासों पर यकीन करते हैं, जिन का कोई सटीक

आधार नहीं होता. उन पर विश्वास करना अविश्वसनीय लगता है. देश के भिन्नभिन्न समुदायों में माहवारी से जुड़े कई अंधविश्वास चलन में हैं, जिन की आज कोई प्रासंगिकता नहीं. ये हमें सदियों पीछे आदिम युग में धकेलते हैं. मसलन:

– मासिकचक्र के दौरान स्त्रियों का रसोई में प्रवेश करना या खाना पकाना, अन्न आदि को हाथ लगाना वर्जित माना जाता है.

– पूजापाठ, आरती, भजनकीर्तन व मंदिर आदि के प्रवेश पर तो बिलकुल प्रतिबंध होता है.

– अंधविश्वास की पराकाष्ठा यह कि इस दौरान बाल धोने, कपड़े धोने, सिंदूर लगाने व साजशृंगार पर निषेध लगा दिया जाता है जो स्त्री अधिकारों के खिलाफ है.

– भारत के कई हिस्सों में तो माहवारी के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़े को फेंका नहीं जाता, बल्कि उसे ही बारबार धो कर इस्तेमाल किया जाता है. कपड़े को फेंकना या डिस्पोज करना अशुभ माना जाता है.

शुरुआत परिवार से हो

अगर माहवारी जैसे संवेदनशील मुद्दे पर खुल कर बात हो तो काफी हद तक इस से जुडे़ टैबू व भ्रांतियों को तोड़ने में मदद मिलेगी. परिवार से बेहतर शुरुआत कहीं और हो नहीं सकती. इस के लिए जरूरी है कि घर में मांएं किशोर बेटियों से मासिकधर्म के बारे में खुल कर चर्चा करें. बेझिझक इस विषय पर बात की जाए. शुरुआती दौर में आवश्यकता पड़ने पर सैनिटरी नैपकिन आदि की सहायता से डैमो भी दिखाएं.

इस उम्र में ज्यादातर जानकारी जिज्ञासावश या तो इधरउधर से इकट्ठी की जाती है या फिर सुनीसुनाई बातों को सच मान लिया जाता है, जो बेहद खतरनाक होता है. प्राय: पहली बार रक्तस्राव देख कर लड़कियां या तो बेहद डर जाती हैं या फिर शर्म की वजह से अपने पेरैंट्स से कुछ भी शेयर नहीं कर पातीं.

मासिकधर्म की शुरुआत अपने साथ कई मनोवैज्ञानिक व शारीरिक समस्याओं को भी लाती है. इस का बड़ा मनोवैज्ञानिक प्रभाव यह पड़ता है कि लड़कियां शुरुआती दौर में चुपचाप रहने लगती हैं. फ्रैंडसर्कल से कटीकटी रहने लगती हैं. उन दिनों स्कूलकालेज मिस करना एक बड़ी समस्या है.

हालांकि अब बहुत हद तक महिलाओं में माहवारी से जुड़ी धारणाओं में बदलाव आया है. वे सिरे से पुरानी मान्यताओं व अंधविश्वासों को नकार भी रही हैं. लेकिन अभी जागरूकता की लौ सर्वत्र फैलनी बाकी है. इसे दूर तक पहुंचाने में परिवार, सरकार व संस्थाएं अहम भूमिका निभाएं तभी जागरूक, शिक्षित व प्रगतिशील समाज की कल्पना साकार होगी.

सुरक्षा न घर में न बाहर

29 फरवरी, 2016 मास्को के एक मैट्रो स्टेशन, औक्याब्रस्कोर पोल के पास का एक दृश्य. करीब 40 वर्षीय बुरका पहनी एक महिला ने बेरहमी से 3-4 साल की बच्ची का कटा सिर बालों से पकड़ रखा था. वह बीचबीच में ‘अल्लाह हो अकबर’ चिल्लाते हुए कह रही थी कि अल्लाह ने उसे ऐसा करने को कहा है.

बाद में पुलिस ने महिला को गिरफ्तार कर लिया और बच्ची का सिर कटा शरीर पास के एक जलते फ्लैट से बरामद किया.

जी बोबोकुलोवा नामक इस हृदयविहीन महिला की उस बच्ची से कोई ज्यादती दुश्मनी नहीं थी. वह तो बच्ची की बेबीसिटर थी. दरअसल, वह अपने पति द्वारा की गई बेवफाई से क्षुब्ध थी.

रोंगटे खड़े करने वाली इस घटना से यह तो साफ है कि देश हो या विदेश, घर में भी अपनी बच्ची को अकेली या आया के पास छोड़ना खतरे से खाली नहीं.

11 अक्तूबर, 2015 को 4 साल की बच्ची दिल्ली के केशवपुरम में बलात्कार का शिकार बनी. दरिंदगी की हद यह कि उस मासूम के चेहरे पर ब्लेड से कई वार किए गए. यह वारदात बच्ची के घर से महज 50 मीटर की दूरी पर हुई.

इस घटना से कुछ दिन पूर्व, 11 अगस्त, 2015 को दिल्ली के ओखला इलाके में एक 8 साल की बच्ची से बलात्कार करने के बाद उसे मारने का प्रयास किया गया. सोचने वाली बात यह है कि यह कुकृत्य किसी अजनबी ने नहीं वरन स्वयं उस के रिश्तेदार ने किया.

मासूम, निरीह बच्चियां ही नहीं, पढ़ीलिखी, ऊंचे ओहदेदार, परिपक्व महिलाएं व लड़कियां भी सुरक्षित नहीं हैं. घर, बाहर, अकेले या भीड़ में, कहीं भी उन के साथ कुछ भी गलत हो सकता है.

मशहूर शौपिंग वैबसाइट स्नैपडील में सौफ्टवेयर इंजीनियर 24 वर्षीय दीप्ति सरना के साथ भी कुछ अरसा पहले ऐसा ही कुछ घटा. दीप्ति 10 फरवरी, 2016 की रात 8 बजे गुड़गांव स्थित औफिस से निकल कर वैशाली मैट्रो स्टेशन उतरती है और फिर हमेशा की तरह शेयरिंग औटो ले कर गाजियाबाद के बस स्टैंड की तरफ जाती है, जहां से पिता या भाई उसे रोज अपने साथ घर ले जाते थे.

मगर दीप्ति को कहां पता था कि शेयरिंग औटो में भी वह सुरक्षित नहीं. औटो में बैठने के बाद 4 लोगों ने उस का अपहरण कर लिया. उस औटो में एक लड़की भी बैठी थी, जिसे चाकू की नोक पर मेरठ तिराहे पर उतार दिया गया. चारों लड़कों ने दीप्ति की आंखों पर पट्टी बांध दी और फिर अपने साथ ले गए.

हालांकि 1 दिन बाद दीप्ति को नरेला मैट्रो स्टेशन के पास छोड़ दिया गया, क्योंकि यह काम देवेंद्र नामक लड़के ने एकतरफा प्यार की दीवानगी में किया था.

आज से 67 साल पहले फ्रांस की मशहूर नारीवादी लेखिका सिमोन डे ब्यूवोर ने अपनी किताब ‘द सैकंड सैक्स’ में एक सवाल उठाया था कि यह दुनिया हमेशा पुरुषों की रही, स्त्रियों को उन के अधीन ही रहना पड़ा, ऐसा क्यों?

अपनी पुस्तक में लेखिका ने स्त्रियों पर होने वाले अन्यायों का कच्चा चिट्ठा खोल कर रख दिया. उन्होंने बताया कि किस तरह लैंगिक अंतर समाज की रूढियों द्वारा गढ़े जाते हैं. स्त्रियां पैदा नहीं होतीं, बनाई जाती हैं. पुरुष ने समाज में महिला को दोयमदर्जा दिया है, स्त्रियों के चारों ओर झूठे नियमकानून बना कर उन्हें इस आश्वासन में रखा कि पुरुष श्रेष्ठ हैं.

लेखिका का यह प्रश्न और विचार काफी हद तक आज भी उतने ही समाचीन हैं, जितने तब थे. आज भी महिलाएं अपना वजूद तलाश रही हैं, आज भी एक औरत के लिए अपना आत्मसम्मान और इज्जत बचा कर जीना पहले जैसा ही कठिन है.

स्त्री सुरक्षा का मामला

इस संदर्भ में सदियों पहले ग्रीक विचारक अरस्तू ने कहा था, ‘‘पुरुष सक्रिय और स्त्री निष्क्रिय है. स्त्री शारीरिक रूप से निम्न है, उस की योग्यता, तर्क शक्ति व निर्णय लेने की क्षमता, सब कुछ पुरुष से कमतर है. इसलिए पुरुष का जन्म राज करने व स्त्री का आज्ञा मानने के लिए हुआ है.’’

आज भी लोगों के मन में वर्षों से जमी थोथी परंपरावादी सोच की काई नहीं मिटी, धर्म की बेडि़यों में जकड़ी मानसिकता नहीं बदली. कुछ महिलाएं भले ही हर क्षेत्र में सफलता के परचम लहरा रही हैं, पर स्त्री सुरक्षा का मामला सदैव संदिग्ध रहा है.

हर साल महिलाओं के साथ अपराध की घटनाएं बढ़ती जाती हैं. हर 5 मिनट में एक महिला हिंसा/आपराधिक कृत्य का शिकार होती है. नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, 2013 में महिलाओं के साथ 1,18,866 घरेलू हिंसा की, 33,707 बलात्कार की व 3,09,546 घटनाएं अन्य अपराधों की दर्ज हुईं.

वस्तुत: रोज कितनी ही निर्भया अपने सम्मान के लिए चीखतीतड़पती रह जाती हैं. लेकिन उन्हें बचाने वाला आसपास कोई नहीं होता.

कभी सोचा है आप ने कि स्त्री को वह सम्मान सुरक्षा भरा माहौल क्यों नहीं मिल पाता, जिस की वह हकदार है?

परंपरावादी सोच ही हावी

दरअसल, आज भी लड़कियों को बचपन से नम्रता, त्याग, सहनशीलता, परोपकार जैसे गुणों का पाठ तो पढ़ाया जाता है, पिता व भाइयों से दब कर रहने की बात भी समझाई जाती है, मगर यह नहीं बताया जाता कि कैसे वक्त पड़ने पर उन्हें अपने लिए लड़ना है, आवाज उठानी है, आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ना है. यही कारण है कि लड़कियां बचपन से ही स्वयं को दबी, बंधी, उपेक्षित सी महसूस करती हैं. वे अपने साथ हुए अत्याचार व दुर्व्यवहार को जीवनशैली का एक हिस्सा मान चुपचाप रह जाती हैं. उधर पुरुषप्रधान समाज नारी का शोषण करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझने लगता है. उसे भोग की वस्तु मानता है. नतीजा, हर मोड़ पर स्त्रियों को शोषण सहने को तैयार रहना पड़ता है.

आज भी बहुत कम परिवार हैं जहां बेटी के जन्म पर खुशियां मनाई जाती हैं. महिलाओं के लिए आजादी से घूमना, पढ़ाईलिखाई करना, अपने पैरों पर खड़े होना, अपनी मरजी से जीवनसाथी ढूंढ़ना जद्दोजेहद भरा बन जाता है. हर पल अपने परिवार व समाज से संघर्ष उस की नियति बन जाती है.

धर्म की दखलंदाजी

धार्मिक पुस्तकें हों या धार्मिक गुरू, धर्म ने सदैव महिलाओं को अपने निशाने पर रखा है. पति जिंदा है तो दासी बन कर रहो, उस के नाम का सिंदूर लगाओ, उस की उम्र बढ़ाने को व्रतउपवास करो, उस की इच्छाओं के आगे स्वयं का वजूद शून्य कर दो और जब पति मर जाए तो उस के नाम पर जल मरो या विधवा का जीवन जीओ, अपनी तमन्नाओं का गला घोंट दो. जीवन के हर मोड़ पर धर्म स्त्री की जिंदगी को पद्दलित करता रहा है. फिर भी लोगों की आस्था व विश्वास इन पाखंडियों के प्रति डिगती नहीं और इस का खमियाजा भुगतती रहती हैं महिलाएं.

खौफ नहीं हिम्मत पैदा करें

बचपन से ही एक बच्ची को अपने भाई से दब कर रहना सिखाया जाता है. वह अपनी मां को पिता के हाथों पिटता देख कर बड़ी होती है. जाहिर है, पारिवारिक हिंसा के प्रति समर्थन औरतों को विरासत में मिलता है. वहीं लड़के इसे अपना धर्मसिद्ध अधिकार समझने लगते हैं. स्त्री को बरदाश्त करने व शांत रहने का पाठ पढ़ाया जाता है. जैसेजैसे वह बड़ी होती जाती है, उस की यौन शुचिता को ले कर सारा परिवार आतंकित हो उठता है. बचपन से ही उसे यह स्पष्ट कर दिया जाता है कि यदि उस के पैर जरा भी डगमगाए, तो वह पूरे घर की मानमर्यादा ले डूबेगी. उस का जीवन कागज की नाव सा है. हलके थपेड़े भी उसे डुबोने के लिए काफी हैं. बदनामी का हलका सा धब्बा भी उस के आंचल को हमेशा के लिए कलंकित कर देगा आदि.

माना एक बच्ची पर घात लगाने वालों की कमी नहीं पर इस से डर कर घर में बैठ जाना तो कोई उपाय नहीं.

इस के विपरीत यदि बच्ची को जीवन में आने वाले तमाम संभावित खतरों से आगाह कराते हुए उसे बचने के व्यावहारिक उपाय समझाए जाएं, तो क्या ज्यादा बेहतर नहीं होगा? आजकल मोबाइल और नैट के समय में कनैक्टिविटी की कोई समस्या नहीं. बेटी के हाथों में मोबाइल है, तो वह लगातार आप के संपर्क में रह सकती है और किसी भी तरह की समस्या नजर आते ही आप को सूचित कर सकती है.

बच्ची को न सिर्फ मानसिक तौर पर, बल्कि शारीरिक तौर पर भी मजबूत बनाएं. कराटे, कुंगफू से ले कर शरीर को मजबूत बनाने वाले हर तरह के खेल खेलने को प्रोत्साहित करें, उसे छुईमुई न बनाएं. उस के अंदर सदैव परजीविता के बजाय आत्मनिर्भरता के बीज बोएं. उसे बताएं कि आगे जा कर उसे ही परिवार का नाम ऊंचा करना है. आप जब तक उस पर विश्वास नहीं दिखाएंगी, समाज में वह अपना स्वतंत्र वजूद स्थापित नहीं कर सकेगी.

बच्चे होते हैं आसान शिकार

बच्चे आसान लक्ष्य होते हैं, क्योंकि वे कमजोर होते हैं. बड़ों के मुकाबले उन्हें आसानी से अपने नियंत्रण में लिया जा सकता है. अजनबी लोगों से भी बच्चे जल्दी घुलमिल जाते हैं. वे आसानी से किसी पर भी भरोसा कर लेते हैं. आश्चर्य की बात तो यह है कि 98% अपराधी घर, या पासपड़ोस या जानने वाले लोग ही होते हैं, जो अपनेपन के आवरण में छिप कर ऐसे कृत्यों को अंजाम देते हैं.

आप की बच्ची इस तरह के भंवर में न फंसे या उस के साथ ऐसा कुछ न हो, इस के लिए जरूरी है हम बचपन से ही बच्चियों को व्यावहारिक ज्ञान दें:

द्य बच्चियों को शुरू से ही यह शिक्षा दी जानी चाहिए कि वे अजनबियों से दोस्ती न करें या उन के द्वारा बुलाए जाने पर एकदम से उन के पास न जाएं.

– अजनबियों द्वारा कुछ दिए जाने पर लालच में आ कर न लें.

– अजनबी ही नहीं, अपने अंकल, पड़ोसी, रिश्तेदार वगैरह के साथ भी बच्चियों में अकेले न जाने की आदत डलवाएं.

– बच्चियों को सहीगलत स्पर्श का मतलब समझाएं. उन्हें बताएं कि यदि कोई स्पर्श करने लगे तो उस के पास से हट जाएं.

– छोटी बच्चियों को नहलाते वक्त मांएं उन के शारीरिक अंगों के बारे में समझाएं कि शरीर के किनकिन हिस्सों को मां के सिवा कोई और नहीं छू सकता.

संवाद जरूरी

कई दफा संकोचवश लड़कियां अपने साथ घटी किसी बुरी घटना का जिक्र भी मांबाप से नहीं करतीं. जरूरी है कि आप अपने और बच्ची के बीच संकोच की दीवार हटाएं, उस के साथ दोस्ताना व्यवहार करें. कम से कम रोज शाम 1 घंटा बच्ची के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं. बातचीत कर दिन भर की घटनाएं सुनाने को प्रोत्साहित करें. इस तरह जब बच्ची में रोज सब कुछ बताने की आदत विकसित हो जाएगी, तो वह किसी अनचाही घटना के बारे में भी बताने में हिचकेगी नहीं.                

‘‘समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो मासूम बच्चों को अपना शिकार बनाते हैं. इस तरह की प्रवृत्ति को पैडोफिलिक डिसऔर्डर कहते हैं. यह एक तरह का मानसिक डिसऔर्डर है, जिस में व्यक्ति को कम उम्र के बच्चों, आमतौर पर 11 वर्ष से भी कम आयु के प्रति सैक्सुअल अट्रैक्शन रहता है. इन्हें ही खासतौर पर ये अपना शिकार बनाने का प्रयास करते हैं. इन में छोटी 2-4 साल की बच्चियों से ले कर किशोरियां भी शामिल होती हैं.’’

अनुजा कपूर, क्रिमिनल साइकोलौजिस्ट

सुरक्षा और कानून

किसी महिला/लड़की की जिंदगी में ऐसी कई समस्याएं आती हैं, जिन का उसे पहले से कोई अंदाजा नहीं होता और न ही उसे यह मालूम होता है कि ऐसी स्थिति से निबटने के लिए कानून ने उस के लिए क्या प्रावधान कर रखे हैं. आइए, जानते हैं इस बारे में सीनियर एडवोकेट विपुल माहेश्वरी से-

औनलाइन शिकायत दर्ज कराने का अधिकार: अगर आप खुद पुलिस स्टेशन जा कर शिकायत दर्ज कराने की स्थिति में नहीं हैं, तो कानून आप को ईमेल या रजिस्टर्ड डाक से पुलिस स्टेशन तक अपनी शिकायत पहुंचाने का हक देता है. शिकायत मिल जाने के बाद संबंधित एसएचओ को बयान दर्ज करने के लिए पुलिस अफसर को महिला के पास भेजना पड़ता है.

रेल में सफर कर रही महिलाओं के लिए महिला हैल्पलाइन: ट्रेन में सफर के दौरान महिलाओं के उत्पीड़न और उन की परेशानियों का खयाल रखने के लिए ऐसी व्यवस्था की गई है कि वे तुरंत शिकायत दर्ज करा सकें. 24×7 काम करने वाली रेलवे सिक्योरिटी हैल्पलाइन, 1800-111-322 पर आई शिकायतों के आधार पर पुलिस मामला दर्ज करती है और काररवाई करती है.

कब हो जाएं सावधान

डा. विपुल रस्तोगी के मुताबिक मांबाप को निम्न स्थितियों में सावधान हो

जाना चाहिए:

– बच्ची के व्यवहार व स्वभाव में अचानक बदलाव.

– बच्ची द्वारा अचानक स्कूल न जाने या स्कूल बस में बैठने से इनकार करना.

– किसी खास व्यक्ति के पास जाने से इनकार करना.

– बच्ची का चिड़चिड़ा हो जाना.

– पढ़ाई में पिछड़ना, एकाग्रता की कमी आना आदि.

स्पैशल बच्चों के मामले में ज्यादा सावधानी जरूरी

‘‘जो बच्चे शारीरकि व मानसिक तौर पर पूरी तरह से विकसित नहीं होते, औटिज्म या इस तरह के दूसरे विकारों से पीडि़त होते हैं, उन के मामले में ज्यादा सावधानी आवश्यक है. इन बच्चों का दिमाग ज्यादा चुस्त नहीं होता. इसलिए उन्हें तसवीरों के जरीए शरीर के विभिन्न अंगों से परिचित कराना और समझाना जरूरी है कि वे कौन सी जगहें हैं जहां सिर्फ मांबाप ही छू सकते हैं. किसी अजनबी द्वारा ऐसा किया जाना सर्वथा वर्जित है. यदि कोई अजनबी ऐसा करता है तो कैसे चिल्ला कर या वहां से भाग कर अपनी रक्षा करनी है.’’

सुरभि वर्मा, फाउंडर, स्पर्श फौर चिल्ड्रेन  

VIDEO: अनिल के सीरियल ’24: सीजन 2′ का ट्रेलर रिलीज

अनिल कपूर का चर्चित टीवी सीरीज ’24’ एक बार फिर आपके टीवी पर दस्तक देने जा रही है.अनिल कपूर के टीवी सीरियल ’24: सीजन 2′  का ट्रेलर जारी किया गया. ट्रेलर में अनिल कपूर एक बार फिर एंटी टेररिस्ट स्क्वॉड के एजेंट जय सिंह राठौड़ के किरदार में एक नए और मुश्किल चैलेंज का सामना करते नजर आएंगे.

’24: सीजन 2′ अपने पहले सीजन से भी ज्यादा रोमांचित नजर आ रहा है. इस सीजन के लॉन्च पर अनिल ने इस मौके पर कहा, ‘हमें इस शो का दूसरा सीजन पेश करने में कुछ समय लगा. मैं फिल्मों में भी काम करता हूं, इसलिए मेरे लिए यह मुश्किल है.

मुझे ‘दिल धड़कने दो’ और ‘वेलकम बैक’ भी पूरी करनी थी. साथ ही हमें काफी तैयारियां भी करनी थीं.’ एक्टर ने कहा, ‘स्क्रि‍प्टिंग में समय लगता है. उम्मीद है कि अगली बार इतना समय नहीं लगेगा.’ टीवी के इस जाने माने टीवी शो ’24’ के भारतीय संस्करण का पहला सीजन भारत में 2013 में टेलिकास्ट हुआ था.

इस शो के तीसरे सीजन के बारे में कलर्स चैनल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) राज नायक ने कहा, ‘हम पहले दूसरे संस्करण का फीडबैक देखना चाहते हैं.’ इस मौके पर अनिल के अलावा उनकी एक्ट्रेस बेटी सोनम कपूर और सुपरस्टार आमिर खान मौजूद थे. ’24: सीजन 2′ कलर्स चैनल पर 17 जुलाई से टेलिकास्ट होने जा रहा है.

 

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