फलों के लजीज व्यंजन: औरेंज व्हीट मफिंस

सामग्री

– 150 ग्राम आटा

– 50 ग्राम मैदा

– 1/2 टिन मिल्कमेड

– 50 ग्राम मक्खन

– 100 एमएल औरेंज जूस

– 20 ग्राम बूरा

– 1 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर

– 1 चुटकी बेकिंग सोडा

– 1 छोटा चम्मच औरेंज जूस

– 1-2 बूंदें औरेंज कलर

– 1 छोटा चम्मच औरेंज ऐसेंस

– 10 ग्राम सिरका.

विधि

ओवन को 180 डिग्री सेल्सियस पर गरम करें. एक बाउल में आटा, मैदा, बेकिंग पाउडर और सोडा मिलाएं. एक दूसरे बाउल में मक्खन, मिल्कमेड और बूरा डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. इस में आटे का मिश्रण, औरेंज ऐसेंस, कलर, सिरका और औरेंज जूस डाल कर अच्छी तरह मफिंस में तेल लगा कर मिश्रण भर कर मिनट तक बेक करें.

रजस्वला होना कोई अभिशाप नहीं

हाल के दिनों में भूमाता बिग्रेड (एक गैरसरकारी संस्था) और उस की प्रमुख तृप्ति देसाई, अहमदनगर, पुणे (महाराष्ट्र) सुर्खियों में छाई रही. मसला था शिरडी स्थित शनि सिंगला मंदिर में शनि की मूर्ति को महिलाओं द्वारा पूजा जाना और मंदिर प्रांगण में वर्जित महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को ले कर विरोध प्रदर्शन.

इसी कड़ी में एक और मंदिर (सबरीमाला) भी जुड़ गया, जहां रजस्वला महिलाओं द्वारा मंदिर के गर्भगृह में पूजन को ले कर विरोध प्रदर्शन और होहल्ला हुआ. 2 अप्रैल, 2016 को मंदिर के बाहर भीड़ जमा हुई और मुंबई उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए तृप्ति देसाई ने मंदिर में जाने की जिद की.

कर्मकांड और ईश्वर का भय दिखा कर महिलाओं के साथ तरहतरह के भेदभाव लगातार होते रहे हैं, जिस के केंद्र में हमेशा से स्त्रीदेह रही है.

भारत में न जाने कितने ऐसे मंदिर हैं, जहां मासिकधर्म के दौरान महिलाओं का प्रवेश घोर पाप व एक तरह का अपराध माना जाता है. पोंगापंडितों ने पापपुण्य, धर्मअधर्म, कर्मकांड का भय दिखा कर हमेशा से अपना हित साधा और अपनी झोलियां भरते रहे हैं.

दरअसल, रजोधर्म एक बायोलौजिकल प्रक्रिया है, जो न केवल स्वस्थ शरीर का प्रतीक है, बल्कि मां बनने के नैचुरल प्रोसैस का एक सशक्त सिंबल भी है. एक तरह से शौच जाने और पेशाब करने जैसी प्रक्रिया है यह.

इस दौरान महिलाओं के मंदिर प्रवेश पर सख्त मनाही होती है. यहां तक कि मंदिर के आसपास फटकने और पूजन सामग्री आदि तक को हाथ लगाने पर भी पाबंदी होती है. लगभग सभी मंदिर प्रशासनों ने इस संबंध में एक जैसे ही नियम बना रखे हैं, जिन्हें न चाह कर भी महिलाओं को मानना पड़ता है. पाप चढ़ने का भय इतना हावी होता है कि महिलाएं (कुछ छिटपुट घटनाओं को छोड़ कर) इस के खिलाफ आवाज न उठा चुपचाप नियमों को ईश्वर व धर्माधिकारियों की आज्ञा समझ कर मानती हैं.

ये तथाकथित पंडेपुजारियों की प्रायोजित रणनीति का एक हिस्सा था ताकि महिलाओं को बराबरी के हक से महरूम रखा जाए. महिलाएं पुरुषों की सामंतवादी सोच को कहीं चुनौती न दे दें, इसलिए ये कर्मकांड बनाए गए, जिन का बिना सोचेसमझे पीढ़ीदरपीढ़ी पालन किया जाता रहा.

धर्मांध समाज में अकसर मासिकधर्म या रजोधर्म के बारे में परदे के पीछे से बात की जाती है. यह कभी भी घरपरिवार का खुला विषय नहीं बन पाया.

नामचीन मंदिरों के बेनाम फतवे

शनि सिंगला मंदिर, शिरडी, महाराष्ट्र: यहां महिलाएं मंदिर के प्रांगण में तो प्रवेश कर सकती हैं, पर शनि की मूर्ति पर तेलार्पण या पूजाअर्चना करना निषेध है. इस के पीछे शनि का प्रकोप बड़ा कारण है.

बाबा बालकनाथ मंदिर, धौलागिरि पहाड़ी, जिला हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश: एक मिथक के अनुसार, जो स्त्री मूर्ति का दर्शन करती है उसे आशीर्वाद नहीं, अभिशाप मिलता है.

ब्रह्मा मंदिर, पुष्कर, राजस्थान: स्थानीय मान्यता के अनुसार, जो भी स्त्री कार्तिकेय की मूर्ति का दर्शन करती है वह अभिशाप से ग्रस्त हो जाती है.

पटबौसी सत्रा मंदिर, असम: यहां रजस्वला औरतें अशुद्ध मानी जाती हैं, इसलिए उन के प्रवेश पर सख्त पाबंदी है. हालांकि 2014 में असम के राज्यपाल जेवी पटनायक ने इस नियम को तोड़ने का प्रयास किया और कुछ महिलाओं के साथ मंदिर में प्रवेश भी किया, पर कुछ दिनों बाद फिर महिलाओं का प्रवेश निषेध हो गया.

देश में ऐसे छोटेबड़े हजारों मंदिर है, जहां महिलाओं के प्रवेश पर रोक है पर कुछ बड़े और नामचीन मंदिर ही सुर्खियां बटोर पाते हैं.

पोंगापंथियों के खिलाफ मुहिम

हाल के दिनों में पुरानी पड़ चुकी परंपराओं के खिलाफ आवाज मुखर हुई है. इस की शुरुआत निकिता आजाद नाम की एक लड़की ने फेसबुक पेज ‘हैपी टु ब्लीड’ नामक कैंपेन से की. इस में देश भर की लड़कियों/महिलाओं से प्लेकार्ड/ सैनिट्री नैपकिन/चार्ट पेपर पर ‘हैपी टु ब्लीड’ लिखा स्लोगन पोस्ट करने की अपील की गई, जो पितृसत्तात्मक समाज के लिए एक कड़ी चुनौती थी. इस पोस्ट को लाखों लाइक्स मिले और यह कैंपेन दुनिया भर में छा गया.

भूमाता बिग्रेड की मुहिम

शिरडी के नजदीक शनि सिंगला मंदिर में भूमाता बिग्रेड की हैड तृप्ति देसाई ने हजारों महिलाओं के साथ मंदिर के प्रांगण में घुस कर शनि की पूजाअर्चना करने की कोशिश कर सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ने का प्रयास किया. हालांकि उन्हें स्थानीय प्रशासन द्वारा बीच में ही रोक दिया गया. पर इस मुहिम ने बदलाव की दस्तक दे दी है.

जेएनयू का सैनिटरी नैपकिन कैंपेन

कुछ दिन पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी सैनटरी पैड पर स्लोगन लिख कर जगहजगह पेड़ों और दीवारों पर चस्पा किए, जो इस दिशा में एक दूसरा बोल्ड स्टैप था. यह पहल काफी सकारात्मक रही.

माहवारी से जुड़े अंधविश्वास

पढ़ेलिखे होने के बावजूद आज हम माहवारी से जुड़े ऐसे कई मिथकों व अंधविश्वासों पर यकीन करते हैं, जिन का कोई सटीक

आधार नहीं होता. उन पर विश्वास करना अविश्वसनीय लगता है. देश के भिन्नभिन्न समुदायों में माहवारी से जुड़े कई अंधविश्वास चलन में हैं, जिन की आज कोई प्रासंगिकता नहीं. ये हमें सदियों पीछे आदिम युग में धकेलते हैं. मसलन:

– मासिकचक्र के दौरान स्त्रियों का रसोई में प्रवेश करना या खाना पकाना, अन्न आदि को हाथ लगाना वर्जित माना जाता है.

– पूजापाठ, आरती, भजनकीर्तन व मंदिर आदि के प्रवेश पर तो बिलकुल प्रतिबंध होता है.

– अंधविश्वास की पराकाष्ठा यह कि इस दौरान बाल धोने, कपड़े धोने, सिंदूर लगाने व साजशृंगार पर निषेध लगा दिया जाता है जो स्त्री अधिकारों के खिलाफ है.

– भारत के कई हिस्सों में तो माहवारी के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़े को फेंका नहीं जाता, बल्कि उसे ही बारबार धो कर इस्तेमाल किया जाता है. कपड़े को फेंकना या डिस्पोज करना अशुभ माना जाता है.

शुरुआत परिवार से हो

अगर माहवारी जैसे संवेदनशील मुद्दे पर खुल कर बात हो तो काफी हद तक इस से जुडे़ टैबू व भ्रांतियों को तोड़ने में मदद मिलेगी. परिवार से बेहतर शुरुआत कहीं और हो नहीं सकती. इस के लिए जरूरी है कि घर में मांएं किशोर बेटियों से मासिकधर्म के बारे में खुल कर चर्चा करें. बेझिझक इस विषय पर बात की जाए. शुरुआती दौर में आवश्यकता पड़ने पर सैनिटरी नैपकिन आदि की सहायता से डैमो भी दिखाएं.

इस उम्र में ज्यादातर जानकारी जिज्ञासावश या तो इधरउधर से इकट्ठी की जाती है या फिर सुनीसुनाई बातों को सच मान लिया जाता है, जो बेहद खतरनाक होता है. प्राय: पहली बार रक्तस्राव देख कर लड़कियां या तो बेहद डर जाती हैं या फिर शर्म की वजह से अपने पेरैंट्स से कुछ भी शेयर नहीं कर पातीं.

मासिकधर्म की शुरुआत अपने साथ कई मनोवैज्ञानिक व शारीरिक समस्याओं को भी लाती है. इस का बड़ा मनोवैज्ञानिक प्रभाव यह पड़ता है कि लड़कियां शुरुआती दौर में चुपचाप रहने लगती हैं. फ्रैंडसर्कल से कटीकटी रहने लगती हैं. उन दिनों स्कूलकालेज मिस करना एक बड़ी समस्या है.

हालांकि अब बहुत हद तक महिलाओं में माहवारी से जुड़ी धारणाओं में बदलाव आया है. वे सिरे से पुरानी मान्यताओं व अंधविश्वासों को नकार भी रही हैं. लेकिन अभी जागरूकता की लौ सर्वत्र फैलनी बाकी है. इसे दूर तक पहुंचाने में परिवार, सरकार व संस्थाएं अहम भूमिका निभाएं तभी जागरूक, शिक्षित व प्रगतिशील समाज की कल्पना साकार होगी.

सुरक्षा न घर में न बाहर

29 फरवरी, 2016 मास्को के एक मैट्रो स्टेशन, औक्याब्रस्कोर पोल के पास का एक दृश्य. करीब 40 वर्षीय बुरका पहनी एक महिला ने बेरहमी से 3-4 साल की बच्ची का कटा सिर बालों से पकड़ रखा था. वह बीचबीच में ‘अल्लाह हो अकबर’ चिल्लाते हुए कह रही थी कि अल्लाह ने उसे ऐसा करने को कहा है.

बाद में पुलिस ने महिला को गिरफ्तार कर लिया और बच्ची का सिर कटा शरीर पास के एक जलते फ्लैट से बरामद किया.

जी बोबोकुलोवा नामक इस हृदयविहीन महिला की उस बच्ची से कोई ज्यादती दुश्मनी नहीं थी. वह तो बच्ची की बेबीसिटर थी. दरअसल, वह अपने पति द्वारा की गई बेवफाई से क्षुब्ध थी.

रोंगटे खड़े करने वाली इस घटना से यह तो साफ है कि देश हो या विदेश, घर में भी अपनी बच्ची को अकेली या आया के पास छोड़ना खतरे से खाली नहीं.

11 अक्तूबर, 2015 को 4 साल की बच्ची दिल्ली के केशवपुरम में बलात्कार का शिकार बनी. दरिंदगी की हद यह कि उस मासूम के चेहरे पर ब्लेड से कई वार किए गए. यह वारदात बच्ची के घर से महज 50 मीटर की दूरी पर हुई.

इस घटना से कुछ दिन पूर्व, 11 अगस्त, 2015 को दिल्ली के ओखला इलाके में एक 8 साल की बच्ची से बलात्कार करने के बाद उसे मारने का प्रयास किया गया. सोचने वाली बात यह है कि यह कुकृत्य किसी अजनबी ने नहीं वरन स्वयं उस के रिश्तेदार ने किया.

मासूम, निरीह बच्चियां ही नहीं, पढ़ीलिखी, ऊंचे ओहदेदार, परिपक्व महिलाएं व लड़कियां भी सुरक्षित नहीं हैं. घर, बाहर, अकेले या भीड़ में, कहीं भी उन के साथ कुछ भी गलत हो सकता है.

मशहूर शौपिंग वैबसाइट स्नैपडील में सौफ्टवेयर इंजीनियर 24 वर्षीय दीप्ति सरना के साथ भी कुछ अरसा पहले ऐसा ही कुछ घटा. दीप्ति 10 फरवरी, 2016 की रात 8 बजे गुड़गांव स्थित औफिस से निकल कर वैशाली मैट्रो स्टेशन उतरती है और फिर हमेशा की तरह शेयरिंग औटो ले कर गाजियाबाद के बस स्टैंड की तरफ जाती है, जहां से पिता या भाई उसे रोज अपने साथ घर ले जाते थे.

मगर दीप्ति को कहां पता था कि शेयरिंग औटो में भी वह सुरक्षित नहीं. औटो में बैठने के बाद 4 लोगों ने उस का अपहरण कर लिया. उस औटो में एक लड़की भी बैठी थी, जिसे चाकू की नोक पर मेरठ तिराहे पर उतार दिया गया. चारों लड़कों ने दीप्ति की आंखों पर पट्टी बांध दी और फिर अपने साथ ले गए.

हालांकि 1 दिन बाद दीप्ति को नरेला मैट्रो स्टेशन के पास छोड़ दिया गया, क्योंकि यह काम देवेंद्र नामक लड़के ने एकतरफा प्यार की दीवानगी में किया था.

आज से 67 साल पहले फ्रांस की मशहूर नारीवादी लेखिका सिमोन डे ब्यूवोर ने अपनी किताब ‘द सैकंड सैक्स’ में एक सवाल उठाया था कि यह दुनिया हमेशा पुरुषों की रही, स्त्रियों को उन के अधीन ही रहना पड़ा, ऐसा क्यों?

अपनी पुस्तक में लेखिका ने स्त्रियों पर होने वाले अन्यायों का कच्चा चिट्ठा खोल कर रख दिया. उन्होंने बताया कि किस तरह लैंगिक अंतर समाज की रूढियों द्वारा गढ़े जाते हैं. स्त्रियां पैदा नहीं होतीं, बनाई जाती हैं. पुरुष ने समाज में महिला को दोयमदर्जा दिया है, स्त्रियों के चारों ओर झूठे नियमकानून बना कर उन्हें इस आश्वासन में रखा कि पुरुष श्रेष्ठ हैं.

लेखिका का यह प्रश्न और विचार काफी हद तक आज भी उतने ही समाचीन हैं, जितने तब थे. आज भी महिलाएं अपना वजूद तलाश रही हैं, आज भी एक औरत के लिए अपना आत्मसम्मान और इज्जत बचा कर जीना पहले जैसा ही कठिन है.

स्त्री सुरक्षा का मामला

इस संदर्भ में सदियों पहले ग्रीक विचारक अरस्तू ने कहा था, ‘‘पुरुष सक्रिय और स्त्री निष्क्रिय है. स्त्री शारीरिक रूप से निम्न है, उस की योग्यता, तर्क शक्ति व निर्णय लेने की क्षमता, सब कुछ पुरुष से कमतर है. इसलिए पुरुष का जन्म राज करने व स्त्री का आज्ञा मानने के लिए हुआ है.’’

आज भी लोगों के मन में वर्षों से जमी थोथी परंपरावादी सोच की काई नहीं मिटी, धर्म की बेडि़यों में जकड़ी मानसिकता नहीं बदली. कुछ महिलाएं भले ही हर क्षेत्र में सफलता के परचम लहरा रही हैं, पर स्त्री सुरक्षा का मामला सदैव संदिग्ध रहा है.

हर साल महिलाओं के साथ अपराध की घटनाएं बढ़ती जाती हैं. हर 5 मिनट में एक महिला हिंसा/आपराधिक कृत्य का शिकार होती है. नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, 2013 में महिलाओं के साथ 1,18,866 घरेलू हिंसा की, 33,707 बलात्कार की व 3,09,546 घटनाएं अन्य अपराधों की दर्ज हुईं.

वस्तुत: रोज कितनी ही निर्भया अपने सम्मान के लिए चीखतीतड़पती रह जाती हैं. लेकिन उन्हें बचाने वाला आसपास कोई नहीं होता.

कभी सोचा है आप ने कि स्त्री को वह सम्मान सुरक्षा भरा माहौल क्यों नहीं मिल पाता, जिस की वह हकदार है?

परंपरावादी सोच ही हावी

दरअसल, आज भी लड़कियों को बचपन से नम्रता, त्याग, सहनशीलता, परोपकार जैसे गुणों का पाठ तो पढ़ाया जाता है, पिता व भाइयों से दब कर रहने की बात भी समझाई जाती है, मगर यह नहीं बताया जाता कि कैसे वक्त पड़ने पर उन्हें अपने लिए लड़ना है, आवाज उठानी है, आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ना है. यही कारण है कि लड़कियां बचपन से ही स्वयं को दबी, बंधी, उपेक्षित सी महसूस करती हैं. वे अपने साथ हुए अत्याचार व दुर्व्यवहार को जीवनशैली का एक हिस्सा मान चुपचाप रह जाती हैं. उधर पुरुषप्रधान समाज नारी का शोषण करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझने लगता है. उसे भोग की वस्तु मानता है. नतीजा, हर मोड़ पर स्त्रियों को शोषण सहने को तैयार रहना पड़ता है.

आज भी बहुत कम परिवार हैं जहां बेटी के जन्म पर खुशियां मनाई जाती हैं. महिलाओं के लिए आजादी से घूमना, पढ़ाईलिखाई करना, अपने पैरों पर खड़े होना, अपनी मरजी से जीवनसाथी ढूंढ़ना जद्दोजेहद भरा बन जाता है. हर पल अपने परिवार व समाज से संघर्ष उस की नियति बन जाती है.

धर्म की दखलंदाजी

धार्मिक पुस्तकें हों या धार्मिक गुरू, धर्म ने सदैव महिलाओं को अपने निशाने पर रखा है. पति जिंदा है तो दासी बन कर रहो, उस के नाम का सिंदूर लगाओ, उस की उम्र बढ़ाने को व्रतउपवास करो, उस की इच्छाओं के आगे स्वयं का वजूद शून्य कर दो और जब पति मर जाए तो उस के नाम पर जल मरो या विधवा का जीवन जीओ, अपनी तमन्नाओं का गला घोंट दो. जीवन के हर मोड़ पर धर्म स्त्री की जिंदगी को पद्दलित करता रहा है. फिर भी लोगों की आस्था व विश्वास इन पाखंडियों के प्रति डिगती नहीं और इस का खमियाजा भुगतती रहती हैं महिलाएं.

खौफ नहीं हिम्मत पैदा करें

बचपन से ही एक बच्ची को अपने भाई से दब कर रहना सिखाया जाता है. वह अपनी मां को पिता के हाथों पिटता देख कर बड़ी होती है. जाहिर है, पारिवारिक हिंसा के प्रति समर्थन औरतों को विरासत में मिलता है. वहीं लड़के इसे अपना धर्मसिद्ध अधिकार समझने लगते हैं. स्त्री को बरदाश्त करने व शांत रहने का पाठ पढ़ाया जाता है. जैसेजैसे वह बड़ी होती जाती है, उस की यौन शुचिता को ले कर सारा परिवार आतंकित हो उठता है. बचपन से ही उसे यह स्पष्ट कर दिया जाता है कि यदि उस के पैर जरा भी डगमगाए, तो वह पूरे घर की मानमर्यादा ले डूबेगी. उस का जीवन कागज की नाव सा है. हलके थपेड़े भी उसे डुबोने के लिए काफी हैं. बदनामी का हलका सा धब्बा भी उस के आंचल को हमेशा के लिए कलंकित कर देगा आदि.

माना एक बच्ची पर घात लगाने वालों की कमी नहीं पर इस से डर कर घर में बैठ जाना तो कोई उपाय नहीं.

इस के विपरीत यदि बच्ची को जीवन में आने वाले तमाम संभावित खतरों से आगाह कराते हुए उसे बचने के व्यावहारिक उपाय समझाए जाएं, तो क्या ज्यादा बेहतर नहीं होगा? आजकल मोबाइल और नैट के समय में कनैक्टिविटी की कोई समस्या नहीं. बेटी के हाथों में मोबाइल है, तो वह लगातार आप के संपर्क में रह सकती है और किसी भी तरह की समस्या नजर आते ही आप को सूचित कर सकती है.

बच्ची को न सिर्फ मानसिक तौर पर, बल्कि शारीरिक तौर पर भी मजबूत बनाएं. कराटे, कुंगफू से ले कर शरीर को मजबूत बनाने वाले हर तरह के खेल खेलने को प्रोत्साहित करें, उसे छुईमुई न बनाएं. उस के अंदर सदैव परजीविता के बजाय आत्मनिर्भरता के बीज बोएं. उसे बताएं कि आगे जा कर उसे ही परिवार का नाम ऊंचा करना है. आप जब तक उस पर विश्वास नहीं दिखाएंगी, समाज में वह अपना स्वतंत्र वजूद स्थापित नहीं कर सकेगी.

बच्चे होते हैं आसान शिकार

बच्चे आसान लक्ष्य होते हैं, क्योंकि वे कमजोर होते हैं. बड़ों के मुकाबले उन्हें आसानी से अपने नियंत्रण में लिया जा सकता है. अजनबी लोगों से भी बच्चे जल्दी घुलमिल जाते हैं. वे आसानी से किसी पर भी भरोसा कर लेते हैं. आश्चर्य की बात तो यह है कि 98% अपराधी घर, या पासपड़ोस या जानने वाले लोग ही होते हैं, जो अपनेपन के आवरण में छिप कर ऐसे कृत्यों को अंजाम देते हैं.

आप की बच्ची इस तरह के भंवर में न फंसे या उस के साथ ऐसा कुछ न हो, इस के लिए जरूरी है हम बचपन से ही बच्चियों को व्यावहारिक ज्ञान दें:

द्य बच्चियों को शुरू से ही यह शिक्षा दी जानी चाहिए कि वे अजनबियों से दोस्ती न करें या उन के द्वारा बुलाए जाने पर एकदम से उन के पास न जाएं.

– अजनबियों द्वारा कुछ दिए जाने पर लालच में आ कर न लें.

– अजनबी ही नहीं, अपने अंकल, पड़ोसी, रिश्तेदार वगैरह के साथ भी बच्चियों में अकेले न जाने की आदत डलवाएं.

– बच्चियों को सहीगलत स्पर्श का मतलब समझाएं. उन्हें बताएं कि यदि कोई स्पर्श करने लगे तो उस के पास से हट जाएं.

– छोटी बच्चियों को नहलाते वक्त मांएं उन के शारीरिक अंगों के बारे में समझाएं कि शरीर के किनकिन हिस्सों को मां के सिवा कोई और नहीं छू सकता.

संवाद जरूरी

कई दफा संकोचवश लड़कियां अपने साथ घटी किसी बुरी घटना का जिक्र भी मांबाप से नहीं करतीं. जरूरी है कि आप अपने और बच्ची के बीच संकोच की दीवार हटाएं, उस के साथ दोस्ताना व्यवहार करें. कम से कम रोज शाम 1 घंटा बच्ची के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं. बातचीत कर दिन भर की घटनाएं सुनाने को प्रोत्साहित करें. इस तरह जब बच्ची में रोज सब कुछ बताने की आदत विकसित हो जाएगी, तो वह किसी अनचाही घटना के बारे में भी बताने में हिचकेगी नहीं.                

‘‘समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो मासूम बच्चों को अपना शिकार बनाते हैं. इस तरह की प्रवृत्ति को पैडोफिलिक डिसऔर्डर कहते हैं. यह एक तरह का मानसिक डिसऔर्डर है, जिस में व्यक्ति को कम उम्र के बच्चों, आमतौर पर 11 वर्ष से भी कम आयु के प्रति सैक्सुअल अट्रैक्शन रहता है. इन्हें ही खासतौर पर ये अपना शिकार बनाने का प्रयास करते हैं. इन में छोटी 2-4 साल की बच्चियों से ले कर किशोरियां भी शामिल होती हैं.’’

अनुजा कपूर, क्रिमिनल साइकोलौजिस्ट

सुरक्षा और कानून

किसी महिला/लड़की की जिंदगी में ऐसी कई समस्याएं आती हैं, जिन का उसे पहले से कोई अंदाजा नहीं होता और न ही उसे यह मालूम होता है कि ऐसी स्थिति से निबटने के लिए कानून ने उस के लिए क्या प्रावधान कर रखे हैं. आइए, जानते हैं इस बारे में सीनियर एडवोकेट विपुल माहेश्वरी से-

औनलाइन शिकायत दर्ज कराने का अधिकार: अगर आप खुद पुलिस स्टेशन जा कर शिकायत दर्ज कराने की स्थिति में नहीं हैं, तो कानून आप को ईमेल या रजिस्टर्ड डाक से पुलिस स्टेशन तक अपनी शिकायत पहुंचाने का हक देता है. शिकायत मिल जाने के बाद संबंधित एसएचओ को बयान दर्ज करने के लिए पुलिस अफसर को महिला के पास भेजना पड़ता है.

रेल में सफर कर रही महिलाओं के लिए महिला हैल्पलाइन: ट्रेन में सफर के दौरान महिलाओं के उत्पीड़न और उन की परेशानियों का खयाल रखने के लिए ऐसी व्यवस्था की गई है कि वे तुरंत शिकायत दर्ज करा सकें. 24×7 काम करने वाली रेलवे सिक्योरिटी हैल्पलाइन, 1800-111-322 पर आई शिकायतों के आधार पर पुलिस मामला दर्ज करती है और काररवाई करती है.

कब हो जाएं सावधान

डा. विपुल रस्तोगी के मुताबिक मांबाप को निम्न स्थितियों में सावधान हो

जाना चाहिए:

– बच्ची के व्यवहार व स्वभाव में अचानक बदलाव.

– बच्ची द्वारा अचानक स्कूल न जाने या स्कूल बस में बैठने से इनकार करना.

– किसी खास व्यक्ति के पास जाने से इनकार करना.

– बच्ची का चिड़चिड़ा हो जाना.

– पढ़ाई में पिछड़ना, एकाग्रता की कमी आना आदि.

स्पैशल बच्चों के मामले में ज्यादा सावधानी जरूरी

‘‘जो बच्चे शारीरकि व मानसिक तौर पर पूरी तरह से विकसित नहीं होते, औटिज्म या इस तरह के दूसरे विकारों से पीडि़त होते हैं, उन के मामले में ज्यादा सावधानी आवश्यक है. इन बच्चों का दिमाग ज्यादा चुस्त नहीं होता. इसलिए उन्हें तसवीरों के जरीए शरीर के विभिन्न अंगों से परिचित कराना और समझाना जरूरी है कि वे कौन सी जगहें हैं जहां सिर्फ मांबाप ही छू सकते हैं. किसी अजनबी द्वारा ऐसा किया जाना सर्वथा वर्जित है. यदि कोई अजनबी ऐसा करता है तो कैसे चिल्ला कर या वहां से भाग कर अपनी रक्षा करनी है.’’

सुरभि वर्मा, फाउंडर, स्पर्श फौर चिल्ड्रेन  

VIDEO: अनिल के सीरियल ’24: सीजन 2′ का ट्रेलर रिलीज

अनिल कपूर का चर्चित टीवी सीरीज ’24’ एक बार फिर आपके टीवी पर दस्तक देने जा रही है.अनिल कपूर के टीवी सीरियल ’24: सीजन 2′  का ट्रेलर जारी किया गया. ट्रेलर में अनिल कपूर एक बार फिर एंटी टेररिस्ट स्क्वॉड के एजेंट जय सिंह राठौड़ के किरदार में एक नए और मुश्किल चैलेंज का सामना करते नजर आएंगे.

’24: सीजन 2′ अपने पहले सीजन से भी ज्यादा रोमांचित नजर आ रहा है. इस सीजन के लॉन्च पर अनिल ने इस मौके पर कहा, ‘हमें इस शो का दूसरा सीजन पेश करने में कुछ समय लगा. मैं फिल्मों में भी काम करता हूं, इसलिए मेरे लिए यह मुश्किल है.

मुझे ‘दिल धड़कने दो’ और ‘वेलकम बैक’ भी पूरी करनी थी. साथ ही हमें काफी तैयारियां भी करनी थीं.’ एक्टर ने कहा, ‘स्क्रि‍प्टिंग में समय लगता है. उम्मीद है कि अगली बार इतना समय नहीं लगेगा.’ टीवी के इस जाने माने टीवी शो ’24’ के भारतीय संस्करण का पहला सीजन भारत में 2013 में टेलिकास्ट हुआ था.

इस शो के तीसरे सीजन के बारे में कलर्स चैनल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) राज नायक ने कहा, ‘हम पहले दूसरे संस्करण का फीडबैक देखना चाहते हैं.’ इस मौके पर अनिल के अलावा उनकी एक्ट्रेस बेटी सोनम कपूर और सुपरस्टार आमिर खान मौजूद थे. ’24: सीजन 2′ कलर्स चैनल पर 17 जुलाई से टेलिकास्ट होने जा रहा है.

 

पांच बच्चों की मां हूं: करीना

करीना पांच बच्चों की मां है और उन्होंने अपने इन बच्चों को लंदन में छिपाकर रखा है….यह पढ़ कर चौंक गए ना आप. करीना ने खुद ये खुलासा अपनी प्रेग्नेंसी की खबरों पर चुप्पी तोड़ते हुए किया है.

दरअसल करीना ने अपनी प्रेग्नेंसी की अफवाहों पर चुप्पी तोड़ते हुए एक इंटरव्यू में कहा, मैं भी एक महिला हूं, भगवान की दया से मैं भी यही चाहती हूं, लेकिन फिलहाल मेरे पास इस बारे में बोलने के लिए कुछ नहीं हैं.’

उनकी प्रेग्नेंसी को लेकर लगातार आ रही खबरों के सवाल पर करीना कुछ इस अंदाज में बोलीं, ‘जिस तरह से मेरी प्रेग्नेंसी की खबरें सुर्ख‍ियों में है तो यह देखकर मैं भी काफी एक्साइटिड हो गई हूं. यह सब जानकर मुझे ऐसा लग रहा है जैसा कि मैं पांच बच्चों की मां हूं जिन्हें मैंने लंदन में छिपाकर रखा है.’

आपको बता दें कि करीना की प्रेग्नेंसी खबरें तब चर्चा में आईं थी जब वह हाल ही में लंदन में पति सैफ अली खान संग छुट्ट‍ियां बिताने पहुंची. करीना का इस दौरान कुछ वजन भी बढ़ा नजर आया जिसे गॉसिप ब्रिगेड ने उनकी प्रेग्नेंसी से जोड़ दिया. लेकिन अब जब सब साफ हो गया है तो करीना ने इन अफवाहों का अपने ही अंदाज में जवाब देकर भी सुर्खि‍यां बंटोर ली हैं.

जिम्मी शेरगिल भी अनुराग के साथ नहीं..!

अनुराग कश्यप अपनी फिल्म ‘‘उड़ता पंजाब’’ को पंजाब के लिए आन बान शान के साथ साथ अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात का मुद्दा उठाते हुए पंजाब के कलाकारों का समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन इस मसले पर जिम्मी शेरगिल, अनुराग कश्यप के साथ नजर नहीं आते.

इस सारे विवाद पर जब हमने जिम्मी शेरगिल से बात की, तो जिम्मी शेरगिल ने कहा-‘‘पंजाब से मेरा गहरा नाता है. 2004 से मैं हर साल एक पंजाबी फिल्म में अभिनय करता आ रहा हूं. 2011 से 2013 के बीच मैंने खुद चार पंजाबी भाषा की फिल्मों का निर्माण भी किया है.

मुझे पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री के साथ साथ पंजाब की भी समझ है. मैं मानता हूं कि पंजाब में मादक दृव्य/ड्रग्स एक बड़ी समस्या है. पर यह समस्या ऐसी नहीं है कि आप चंडीगढ़ या अमृतसर जाएं, तो आपको सड़क पर लोग ड्रग्स के नशे में झूमते या ड्रग्स के नशे में चूर इंसान सड़क पर गिरे नजर आएंगे. हां! पंजाब के अंदरूनी हिस्से यानी कि गांव के अंदर इस तरह की समस्याएं हैं, जिसकी कई वजह हैं.

फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ के निर्माताओं के अलावा कुछ चैनलों ने भी मुझसे कहा कि मैं चैनल पर आकर इस फिल्म को लेकर बात करुं. लेकिन मैंने इंकार कर दिया. इसकी वजह यह है कि मैं पंजाब की हकीकत से परिचित हूं. वहां क्या हो रहा है, उससे भी वाकिफ हूं.

मगर फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ में क्या और कैसे चित्रित किया गया है, इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है. ऐसे में मैं फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ के पक्ष या विपक्ष में कैसे बात कर सकता हूं. मैं तो चाहता हूं कि लोग मुझे ‘उड़ता पंजाब’ दिखा दें. उसके बाद मैं खुलकर इस विषय पर अपनी राय रख सकता हूं.’’

जब जिम्मी शेरगिल से हमने पूछा कि क्या फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ के निर्माता बेवजह विवाद पैदा कर रहे है? क्या इससे फिल्म को नुकसान नहीं होगा? तो उन्होंने कहा ‘‘हर निर्माता अपनी फिल्म से पैसा कमाना चाहता है. इसी के चलते निर्माता अपनी फिल्म को सुर्खियों/चर्चा में लाने के लिए एक स्ट्रेटजी बनाकर फिल्म का प्रमोशन करता है. कई बार वह स्ट्रेटजी उसके लिए ही बला बन जाती है.”

मसलन, मेरी जल्द रिलीज होने वाली फिल्म ‘शोरगुल’ को ले लीजिए. यह फिल्म एक प्रेम कहानी है. इस प्रेम कहानी की पृष्ठभूमि में उत्तर प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों में भी होने वाले दंगे हैं. फिल्म पूरी तरह से उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि पर बनी है. यदि निर्माता इस फिल्म को एक प्रेम कहानी के रूप में प्रचारित करता, तो दर्शकों में इस फिल्म को लेकर उत्सुकता पैदा ना होती.

तो निर्माताओं ने दंगों पर बनी फिल्म के रूप में इसे प्रचारित किया. परिणामतः देखते ही देखते यह फिल्म सोशल मीडिया के साथ ही पूरे देश में चर्चा का विषय बन गयी. पर इससे लोगों के बीच एक ऐसा संदेश गया कि इस फिल्म में मुजफ्फरनगर के दंगें को यथार्थ रूप में चित्रित किया गया है.

लोगों ने कहना शुरू किया कि इस फिल्म में अखिलेश यादव, आजम खान व संगीत सोम को पेश किया गया है. जबकि यह फिल्म किसी भी किरदार की बायोपिक फिल्म नहीं है. यह एक काल्पनिक प्रेम कहानी है. पर लोगो ने पीआईएल दाखिल कर दिया. फिर हमें लोगों को समझाना पड़ा फिल्म ‘शोरगुल’ एक प्रेम कहानी है और जिसे यकीन न हो वह फिल्म देख सकता है. तब कहीं हमारे खिलाफ दायर पीआईएल वापस ली गयी.

पर इस फिल्म के प्रचार का मामला ऐसा उल्टा पड़ गया कि कलाकार के तौर पर मुझे काफी कुछ झेलना पड़ा. इसी तरह फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ में क्या है, मुझे नहीं पता. पर जिस तरह से विवाद पैदा हुआ है, उससे फिल्म ट्विटर व सोशल मीडिया पर चर्चा में हैं. हर अखबार व चैनल इस बारे में चर्चा कर रहा है. तो इसका फायदा कहीं न कहीं फिल्म को बॉक्स आफिस पर मिलेगा. यदि मैं यह कहूं कि कई बार निर्माता बॉक्स आफिस पर फायदा उठाने के लिए भी इस तरह के विवादों को गर्माते हैं, तो पूरी तरह से गलत नहीं होगा.’’

आमिर के साथ काम करना चाहती हैं संगीता चौहाण

कई विज्ञापन फिल्मों में काम कर चुकी मॉडल व अभिनेत्री संगीता चौहान की बतौर हीरोईन पहली फिल्म ‘‘लव यू आलिया’’ रिलीज होने जा रही है. इंद्रजीत लंकेश निर्देशित फिल्म ‘‘लव यू आलिया’’ में पीढ़ियों के बीच टकराव की कहानी के साथ प्रेम कहानी है, जिसमें संगीता चौहान ने आलिया की शीर्ष भूमिका निभायी है. आलिया को विवाह संस्था में यकीन नहीं है.

संगीता चौहान ने अपनी इस पहली ही फिल्म में जमकर किसिंग सीन वगैरह भी किए हैं. वह कहती हैं ‘‘मुझे लिप लाक किसिंग सीन करने से कोई परहेज नहीं है. पर निर्देशक ने मुझे इसके बारे में बैंकाक में शूटिंग के दौरान ऐन वक्त पर बताया, यह बात मुझे पसंद नहीं आयी थी. पर मैने शूटिंग की.

वैसे मैंने अभिनेता नीरज काबी से अभिनय की बारीकियां सीखी हैं. मैं विद्या बालन व आर माधवन की फैन हूं. मेरी तमन्ना है कि मुझे आमिर खान के साथ फिल्म करने का मौका मिले. मेरी दूसरी फिल्म ‘शार्प शूटर’ भी तैयार है.’’

फलों के लजीज व्यंजन: ग्रिल्ड फ्रूट सलाद

सामग्री

– 2 अनन्नास के टुकड़े

– 2 तरबूज के टुकड़े

– 1 सेब कटा

– 1 केला कटा

– 1 आड़ू कटा

– 2 पपीते के टुकड़े

– 2 बड़े चम्मच नीबू का रस

– 2 छोटे चम्मच चीनी

– 1 बड़ा चम्मच शहद

– 1/2 छोटा चम्मच कालीमिर्च

– 1 बड़ा चम्मच तेल

– चाटमसाला आवश्यकतानुसार

– नमक स्वादानुसार.

विधि

एक बाउल में नीबू का रस, चीनी, कालीमिर्च, नमक, शहद और तेल डाल कर मिलाएं. इस में फलों के टुकड़े डाल कर अच्छी तरह मिला कर 10 मिनट रखें. एक ग्रिल प्लेट में फलों को दोनों तरफ से सुनहरा होने तक ग्रिल करें. सर्विंग प्लेट में निकाल कर चाटमसाला बुरक कर गरमगरम सर्व करें.

 

क्यों होता पुरुषों में स्पर्म काउंट कम

भारत में यदि संतान के इच्छुक किसी दंपती को साल 2 साल में बच्चा नहीं होता, तो इस का जिम्मेदार केवल महिला को ठहराया जाता है, जबकि महिला को मां बनाने में नाकाम होना पुरुष की मर्दानगी पर सवाल होता है. पुरुष भी इस के लिए कम जिम्मेदार नहीं और दोनों ही स्थितियों के स्पष्ट शारीरिक कारण हैं. पर अब लोगों में जागरूकता बढ़ी है.

आज बच्चा पैदा करने में अपनी नाकामी की बात स्वीकार करने का साहस पुरुष भी दिखा रहे हैं. वे इस की जिम्मेदारी ले रहे हैं और इलाज के लिए आगे आ रहे हैं.

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार बच्चा पैदा करने की अक्षमता के लगभग एकतिहाई मामलों की जड़ पुरुषों की प्रजनन क्षमता में कमी है, जबकि अन्य एकतिहाई के लिए महिलाओं की प्रजनन को जिम्मेदार माना जाता है. बाकी मामलों के कारण अभी ज्ञात नहीं हैं.

कारण

पुरुषों की प्रजनन अक्षमता के मुख्य कारण हैं- शुक्राणुओं की संख्या में कमी, उन की गति में कमी और टेस्टोस्टेरौन की कमी. शुक्राणुओं की संख्या में कमी से फर्टिलाइजेशन (निशेचन) की संभावना में बहुत कमी आती है, जबकि उन की गति धीमी पड़ने से शुक्राणु तेजी से तैर कर एग (अंडाणु) तक पहुंच कर उसे फर्टिलाइज करने में नाकाम रहता है. टेस्टोस्टेरौन एक हारमोन है, जिस की शुक्राणु पैदा करने में बड़ी भूमिका होती है. समस्या के ये कारण बदलते रहते हैं और इन में 1 या अधिक की मौजूदगी से पुरुष की प्रजनन क्षमता छिन सकती है.

शुक्राणुओं की संख्या या गुणवत्ता में कमी के कई कारण हो सकते हैं जैसे आनुवंशिक कारण, टेस्टिक्युलर (अंडकोश) की समस्या, क्रोनिक प्रौस्टेट का संक्रमण, स्क्रोटम की नसों का फूला होना और अंडकोश का सही से नीचे नहीं आना.

शुक्राणु बनने में बाधक कुछ अन्य कारण हैं कुछ खास रसायनों, धातुओं व विषैले तत्त्वों का अधिक प्रकोप और कैंसर का इलाज, जिस में रेडिएशन या कीमोथेरैपी शामिल है.

कुछ आम जोखिम भी हैं जैसे तंबाकू का सेवन, शराब पीना, जिस से पुरुषों के लिंग में पर्याप्त उत्तेजना नहीं होती और शुक्राणुओं की संख्या घट जाती है.

मोटापा भी एक कारण है, जिस के परिणामस्वरूप शुक्राणुओं की संख्या और टेस्टोस्टेरौन का स्तर गिर जाता है. इन सब के अलावा व्यायाम न करना या कम करना भी एक बड़ा कारण है.

काम की जगह जैसे फैक्टरी में अत्यधिक तापमान होना भी इस समस्या को जन्म देता है. इस से अंडकोश का तापमान बढ़ जाता है और शुक्राणु बनने की प्रक्रिया बाधित होती है.

बहुत से पुरुषों को उन के नपुंसक होने का तब तक सच नहीं पता चलता जब तक दोनों पतिपत्नी संतान का सपना सच करने का प्रयास शुरू नहीं करते. ऐसे में पतिपत्नी को चाहिए कि स्वाभाविक रूप से गर्भधारण के लिए 1 साल का समय दें और उस के बाद चिकित्सक से सलाह लें. यदि पत्नी 35 वर्ष से अधिक की हो तो 6 माह के प्रयास के बाद ही उस की उर्वरता की जांच जरूरी है. पुरुषों की प्रजनन क्षमता की जांच में शामिल है वीर्य का विश्लेषण, खून जांच, अल्ट्रासाउंड और जेनेटिक टैस्ट. समस्या की जड़ तक पहुंचने के लिए चिकित्सक 1 या अधिक जांचें करवा सकते हैं.

इलाज

आज इलाज के कई विकल्प मौजूद हैं. इन में एक कृत्रिम निशेचन है, जिस में उपचारित शुक्राणु को सीधे गर्भाशय में डाल दिया जाता है. दूसरा, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) है, जिस में महिला का अंडाणु बाहर निकाल कर उसे एक लैब में पुरुष से प्राप्त शुक्राणु से निशेचित कर वापस गर्भाशय में डाल दिया जाता है. एक अन्य इलाज है इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजैक्शन (आईसीएसआई) जो शुक्राणुओं की संख्या नगण्य (या शून्य) या शुक्राणु के विकृत आकार में होने पर प्रभावी है. इस में केवल एक शुक्राणु को ले कर लैब के अंदर सीधे अंडाणु में डाल दिया जाता है ताकि भ्रूण बन जाए. इस का अर्थ यह है कि प्रचलित आईवीएफ से अलग इस में शुक्राणु को तैर कर अंडाणु तक जाने या अंडाणु की बाहरी परत को तोड़ कर अंदर घुसने की जरूरत नहीं रहती. परिणामस्वरूप निशेचन आसान हो जाता है. इन तकनीकों की मदद से नपुंसकता की समस्या होने के बावजूद पुरुष जैविक रूप से अपनी संतान का पिता बन सकता है.

कुछ मामलों में पतिपत्नी दोनों बच्चा पैदा करने में अक्षम होते हैं या उन में कुछ आनुवंशिक बीमारियों का पता चलता है, जो वे चाहते हैं कि उन की संतान तक नहीं पहुंचें. शुक्राणुओं की गुणवत्ता में अत्यधिक कमी के ऐसे मामलों में डोनर शुक्राणु का लाभ लिया जा सकता है. इस के अलावा, आज डोनर इंब्रायो का भी विकल्प है जो ऐसे दंपती दे सकते हैं, जिन्हें गर्भधारण में सफलता मिल गई है और उन के बचे निशेचित अंडाणु अब उन के किसी काम के नहीं हैं.

आज सैरोगेसी भी एक विकल्प है. इस में सैरोगेट महिला कृत्रिम रूप से निशेचित भ्रूण को स्वीकार कर संतान के इच्छुक दंपती के लिए गर्भधारण करती है.

भारत में अब अनुर्वरता के लिए विश्वस्तरीय उपचार केंद्र हैं. कुशल चिकित्सकों की मदद से हजारों नि:संतान दंपतियों के घर किलकारियों से गूंज रहे हैं. अनुर्वरता के उपचार के लिए आने वाले युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है. इसलिए अब यह झुंझलाहट छोड़ें कि अनुर्वर कौन पति या पत्नी? बेहतर होगा, सीधे योग्य चिकित्सक से संपर्क कर अनुर्वरता के उपचार की आधुनिक तकनीकों का लाभ लें.

वीर्यपात में शुक्राणु नहीं होने पर इस समस्या को ऐजुस्पर्मिया कहते हैं. यह 2 प्रकार

की होती है:

औब्स्ट्रक्टिव ऐजुस्पर्मिया: टेस्टिस में शुक्राणु बनता तो है पर इसे ले जाने वाली नली के बंद रहने से यह वीर्य के साथ नहीं निकलता. ऐसे मरीज के टेस्टिस की सर्जरी कर शुक्राणु निकाल फिर आईवीएफ का उपचार किया जा सकता है.

नौनऔब्स्ट्रक्टिव ऐजुस्पर्मिया: टेस्टिस में शुक्राणु नहीं बनता है. चिकित्सा और आधुनिक उपचार से गर्भधारण हो सकता है पर इस की संभावना कम होती है.

पुरुष नपुंसकता के संभावित कारण

– हारमोन असंतुलन.

– संक्रमण जैसे कि ऐपिडिडिमिस या टेस्टिकल्स में सूजन अथवा यौन संबंध में कुछ संक्रमण.

– इम्यूनिटी की समस्याएं या बीमारियां.

– वीर्यपात की समस्याएं.

– सैलियक डिजीज जो ग्लूटेन के प्रति हाइपर सैंसिटिव है. ग्लूटेन फ्री आहार अपनाने से सुधार हो सकता है.

– वैरिकोसेले जो स्क्रोटम में नसों का बड़ा होना है. सर्जरी से सही हो सकता है.

– कैंसर और नौनमैलिग्नैंट ट्यूमर.

दवा से उपचार: टेस्टोस्टेरौन बदलने का उपचार, लंबे समय तक ऐनाबोलिक स्टेराइड का प्रयोग, कैंसर की दवाओं, ऐंटीफंगल दवाओं और अल्सर की दवाओं का प्रयोग.

गलत शीजवनशैली: मोटापा, पर्यावरण की विषाक्तता, औद्योगिक रसायन, हवा की गुणवत्ता में गिरावट, सिगरेट पीने, लंबे समय तक तनाव से पुरुषों में नपुंसकता की समस्या बढ़ती है.

नपुंसकता की जांच

– चिकित्सा का इतिहास: पारिवारिक इतिहास ताकि मरीज की चिकित्सा समस्या, पहले हुई सर्जरी और दवाइयों का रिकौर्ड रखा जा सके.

– शारीरिक परीक्षण: शारीरिक विषंगतियों की जांच.

– खून जांच: टेस्टोस्टेरौन और फौलिकल स्टिम्यूलेटिंग हारमोन (एफएसएच) के स्तर की जांच.

मानक वीर्य विश्लेषण: निम्नलिखित मूल्यांकन के लिए:

– गाढ़ापन वीर्य के प्राप्त नमूने में स्पर्माटाजोआ की संख्या.

– गतिशीलता: स्पर्माटाजोआ के चलने की गति

– संरचना: शुक्राणु की संरचनात्मक विकृति का आकलन.

यदि शुक्राणु बिलकुल नहीं हों तो वीर्य की अतिरिक्त जांच होती है, जिसे पैलेट ऐनालिसिस कहते हैं.

(डा. सुजाता रामकृष्णन, आईवीएफ स्पैशलिस्ट, क्लाउडनाइन हौस्पिटल)

पिक्चर परफैक्ट वैडिंग मेकअप

हर दुल्हन चाहती है कि उस का मेकअप व हेयरस्टाइल ऐसी हो, जिस में खींची गई तसवीरें हमेशा दिलोदिमाग पर छाई रहें.

दिल्ली प्रैस भवन में आयोजित फेब मीटिंग में कौस्मेटौलौजिस्ट, मेकअप आर्टिस्ट व हेयरस्टाइलिस्ट अवलीन खोखर ने ब्राइडल मेकअप, हेयरस्टाइल व इंस्टैंट ग्लैम के कुछ खास अंदाज बताए.

ब्राइडल मेकअप

दुल्हन  का मेकअप ऐसा होना चाहिए जो 8-10 घंटे टिका रहे. मेकअप के लिए वह बेस प्रयोग करें जिस से स्किन के पोर्स बंद न हों. मेकअप करने से पहले त्वचा को अच्छी तरह जांचें कि वह औयली है, ड्राई है, कौंबिनेशन है, ऐक्ने वाली है या अनइवन टोन है.

अगर त्वचा औयली है तो उस क्लींजर का प्रयोग करें जो त्वचा से सारा औयल निकाल दे. औयली स्किन पर ओवर मसाज न करें. इस से औयल ग्लैंड्स ऐक्टिवेट हो जाते हैं. ब्राइडल मेकअप के लिए पहले त्वचा को तैयार करें. फिर न्यूट्रालाइज करें. उस के बाद कंसीलिंग करें. अगर चेहरे की त्वचा को 100% कवरेज देना चाहती हैं तो डर्मा का प्रयोग करें. यह हैवी होता है.

50-60% कवरेज हर त्वचा को चाहिए होती है, इस के लिए सुप्रा या अल्ट्रा बेस का प्रयोग करें.

अगर त्वचा ड्राई है और सर्दियां हैं, तो सुप्रा बेस का प्रयोग करें. बेस को कभी भी आपस में मिक्स न करें. बेस लगाने के बाद रंग का चुनाव करें. प्राइमर सिलिकौन बेस यूज करें. यह स्किन को न्यूट्रीलाइज करने का काम करता है. त्वचा की कंसीलिंग हमेशा डैबिंग करते हुए करें. पौलिशिंग करें. इस से त्वचा पर नीट लुक आता है. चेहरे पर लाइंस न दिखें, इस के लिए ट्रांसल्यूसैंट पाउडर लगाएं. इस से फाउंडेशन या बेस फिक्स हो जाता है.

ध्यान रखें कि कंसीलिंग अगर डर्मा बेस से कर रही हों तो बाकी बेस के लिए सुप्रा बेस का प्रयोग करें. अगर चेहरा पिगमैंटेड है तो रैड कंसीलर यूज करें. गालों पर चमक लाने के लिए शिमरी ब्लशर लगाएं व ऐक्स्ट्रा शाइन के लिए बफिंग करें. मेकअप उतना ही लगाएं जितना कैरी कर सकें.

आई मेकअप

दुल्हन  की आंखें खूबसूरत दिखें, इस के लिए मेकअप की शुरुआत से पहले आईगार्ड लगाएं ताकि मेकअप न गिरे. अगर  दुल्हन  का लहंगा पिंक है तो आंखों पर पिंक, ब्लू, सिल्वर आईशैडो यूज करें. आंखों पर भी पहले बेस बनाएं. हाईलाइटिंग सिर्फ 1 पौइंट पर करें. फिर ब्लैडिंग ब्रश द्वारा ब्लैडिंग करें. आईब्रोज को शेप देने के लिए काली पैंसिल का प्रयोग करने के बजाय आईशैडो का ब्राउन कलर यूज करें. गालों को उभार देने व हाईलाइट करने के लिए पीच पिंक ब्लशर लगाएं. रौयल टच लिया हुआ यह ब्राइडल मेकअप आप को देगा खास अंदाज.

स्टाइलिश हेयरस्टाइल

हेयरस्टाइल बनाने की शुरूआत इयर टू इयर पोनीटेल बनाने से करें. आगे के बालों के सी सैक्शन को उठा कर लाइट बैक कौंबिंग करें. आगे के बालों से एक फ्लिक छोड़ कर बाकी बालों को पीछे ले जा कर पोनी टेल को कवर करें. आगे की फ्लिक को बैक कौंब कर के मांगटीके को कवर करें व साइड में फोरहैड पर छोड़ दें. पीछे के सारे बालों को उठा कर डोनट लगाएं. इस से बालों को हाइट मिलेगी. पीछे के बचे बालों से रोल बनाएं व फूलों से सजाएं. माथे पर बड़ी लाल बिंदी लगाएं, जो आप की खूबसूरती को और उभार देगी.

स्मोकी आईज विद परफैक्ट वैस्टर्न लुक

अगर आप यंग हैं, तो लाइट बेस यूज करें. डर्मा बेस का प्रयोग करें. अच्छी तरह पौलिशिंग करें. पिंक कलर के ब्लशर से गालों को हाईलाइट करें. सौफ्टर स्मोकी आई मेकअप के लिए ब्लैक काजल लगाएं. यंग लड़कियां ट्रैंडी और स्टाइलिश नजर आने के लिए लाइनर, आईशैडो और काजल को लगाने के बाद अच्छी तरह मिक्स कर के ठीक से फैलाएं.

स्मोकी आईज लुक के लिए सब से पहले पलकों को औयल फ्री बनाने के लिए बेस या प्राइमर लगाएं व थोड़ी देर लगा रहने दें. ब्लैक, ग्रे या ब्राउन जिस भी कलर की आंखें चाहती हैं उस कलर का गाढ़ा आईलाइनर ऊपर की पलकों पर बीच में लगाएं.

यदि आप ज्वैल टोंड स्मोकी आईज चाहती हैं तो ब्लू, पर्पल व डीप ग्रीन कलर का चुनाव करें. नीचे की पलक पर काजल लगाने के बाद उसे अच्छी तरह फैला लें. स्मोकी आई मेकअप के लिए हमेशा लाइट कलर के आईशैडो बेस को डार्क कलर के साथ लगाएं. आईशैडो ब्रश से आईशैडो लगाने के बाद अच्छी तरह फैला लें ताकि आईलाइनर छिप जाए. गर्ल्स पर्पल, टरकौइश व ग्रीन कलर का यूज ड्रामैटिक लुक के लिए करें. अंत में मसकारा लगाएं. गालों पर सिल्वर हाईलाइटर लगाएं.

वैस्टर्न यंग लुकिंग हेयरस्टाइल

यह हेयरस्टाइल यंग गर्ल्स पर खूब फबता है और स्टाइलिश वैस्टर्न लुक देता है. इस हेयरस्टाइल को बनाने के लिए सिर के ऊपर से बालों का राउंड सैक्शन लें व डोनट लगाएं और उसे बालों से कवर करें. आगे के बालों को फोरहैड के एक साइड ले जाते हुए पिनअप करें. दूसरी साइड के बालों को बैक कौंबिंग करें. साइड के बालों को उठाउठा कर डोनट के ऊपर पिन से लगाती जाएं व डोनट को पूरी तरह कवर कर दें. बचे बालों को ऊपर ले जा कर रोज के फूल का आकार देते हुए पिन से फिक्स करें.

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