बॉलीवुड पर भारी पड़ती हॉलीवुड की फिल्में

हॉलीवुड फिल्में इस वर्ष बॉलीवुड फिल्मों को घरेलू बाजार में कड़ी टक्कर देती प्रतीत हो रही हैं और खास तौर पर पिछले छह महीनों से तो हिंदी फिल्मों पर भारी पड़ती दिखाई दे रही हैं.

इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण ‘द जंगल बुक’  है जिसने भारतीय बॉक्स ऑफिस में अपने जबरदस्त प्रदर्शन से इतिहास रच दिया है. आठ अप्रैल को रिलीज हुई ‘जंगल बुक’ ने इसके एक सप्ताह बाद रिलीज हुई बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरूख खान की फिल्म ‘फैन’ को कड़ी टक्कर दी.

हालांकि ‘फैन’’ को करीब 19 करोड़ रपए की ओपनिंग मिली जबकि ‘‘जंगल बुक’’ को 10 करोड़ रपए की ओपनिंग मिली लेकिन फैन 90 करोड़ रपए का आंकड़ा पार करने के लिए संघर्ष कर रही है जबकि डिजनी की यह एनिमेटिड फिल्म हॉलीवुड फिल्मों के पिछले सभी रिकॉर्डस तोड़कर 183 करोड़ रपए कमा चुकी है.

यह साल की अब तक की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म है जिसने अक्षय कुमार की ‘एयरलिफ्ट’ को भी पछाड़ दिया जो 127 करोड़ रुपए की कमाई के साथ बॉलीवुड की वर्ष 2016 की अब तक की सबसे सफल फिल्म है.

इसके अलावा 12 फरवरी को कैटरीना कैफ अभिनीत ‘फितूर’ के साथ जारी ‘डैडपूल’ ने भी अच्छा प्रदर्शन किया और करीब 29 करोड़ रुपये की कमाई की जबकि ‘फितूर’ ने 19 करोड़ रुपये की कमाई की.

‘बैटमैन वर्सेस सुपरमैन’ को मिली जुली प्रतिक्रिया मिली लेकिन फिल्म ने एक सप्ताह में 36 करोड़ रुपये की कमाई की और उसने जॉन अब्राहिम की ‘रॉकी हैंडसम’ को आसानी से पछाड़ दिया.

इसी तरह ‘कुंग फु पांडा 3’ ने भी ‘का एंड की’ से मिली टक्कर के बावजूद भारतीय बॉक्स ऑफिस पर 32 करोड़ रुपये कमा लिए जबकि करीना कपूर की फिल्म ने 51 करोड़ रुपये कमाए.

‘कैप्टन अमेरिका: सिविल वॉर’ ने कुल करीब 59 करोड़ रुपये की कमाई की. इस फिल्म के हिंदी संस्करण के लिए वरूण धवन ने कैप्टन अमेरिका के किरदार को आवाज दी है. फिल्म ने प्रियंका चोपड़ा की ‘जय गंगाजल’, इमरान हाशमी की ‘अजहर’ और अमिताभ बच्चन की ‘वजीर’ से भी अधिक कमाई की है.

इसी तरह हाल में जारी ‘एक्स मैन: एपाकलिप्स’ ने ‘सरबजीत’ को कड़ी टक्कर दी और पहले सप्ताह में 26 करोड़ रुपये की कमाई की जबकि ऐश्वर्या राय अभिनीत फिल्म को करीब 22 करोड़ रुपये की शुरूआत मिली.

‘द एंग्री बर्डस मूवी’ ने भी ‘फोबिया’, ‘वीरप्पन’ और ‘वेटिंग’ को पछाड़ दिया.

अभी ‘कैंजरिंग 2: द एनफील्ड पोल्टरगीस्ट’, ‘सुसाइड स्क्वैड’, ‘फैनटास्टिक बीस्ट्स एंड व्हेयर टू फाइंड देम’ रिलीज होनी है. अब देखना यह होगा कि ये फिल्में बॉलीवुड फिल्मों के कारोबार को कितना प्रभावित करेंगी.

Box Office: ‘हाउसफुल’ 3 ने बनाए नए रिकॉर्ड

अक्षय कुमार की फिल्म ‘हाउसफुल 3’ की बॉक्स ऑफिस पर ओपनिंग अच्‍छी रही. यदि यह सिलसिला जारी रहा तो सफल फिल्मों की लिस्ट में इस फिल्म का भी नाम होगा. फिल्म ने अपने पहले वीकेंड में कुछ नए रिकॉर्ड बनाए हैं.  

हाउसफुल 3 ने विदेश में ओपनिंग वीकेंड में 26.77 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया. यह किसी भी अक्षय कुमार की फिल्म का विदेश में सर्वाधिक ओपनिंग वीकेंड कलेक्शन है.

भारत में तीसरे दिन फिल्म ने 21.80 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया. यह अक्षय की किसी भी फिल्म के तीसरे दिन का सर्वाधिक कलेक्शन है. इसके पहले यह रिकॉर्ड ‘ब्रदर्स’ के नाम था जिसने तीसरे दिन 21.43 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया था. इतना ही नहीं तीसरे दिनका 21.80 करोड़ रुपये का कलेक्शन, अक्षय की किसी भी फिल्म का सर्वाधिक सिंगल डे कलेक्शन है.

हाउसफुल 3 का पहला वीकेंड कलेक्शन 53.31 करोड़ रुपये रहा. वर्ष 2016 में अब तक का यह सर्वाधिक ओपनिंग वीकेंड कलेक्शन है. इसके पहले यह रिकॉर्ड ‘फैन’ के नाम था, जिसने 52.35 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया था.

 यह हाउसफुल सीरिज का सर्वाधिक ओपनिंग वीकेंड कलेक्शन (53.31 करोड़ रुपये) है. हाउसफुल 2 ने अपने पहले वीकेंड पर 42.50 करोड़ रुपये और हाउसफुल ने 29.80 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया था. 

 यह अक्षय कुमार की किसी भी फिल्म का ओपनिंग वीकेंड पर दूसरे नंबर का कलेक्शन है. हाउसफुल 3 ने 53.31 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया जबकि ‘सिंह इज़ ब्लिंग’ 54.55 करोड़ रुपये के कलेक्शन के साथ पहले नंबर पर है.

पक्षियों में इश्क का जनून

प्यार, मनुहार और रूठनामनाना न केवल इंसानी आदत है, बल्कि पशुपक्षियों में भी यह गुण विद्यमान है. यह अलग बात है कि सभी पशुपक्षी ऐसी भावनाएं प्रकट नहीं करते. लेकिन कुछ पक्षी और पशु भी स्पष्ट तरीके से अपने प्रेम और समर्पण का इजहार करते हैं. पशुपक्षी भले इंसान की तरह रूठनेमनाने की कला में पारंगत न दिखते हों, मगर इन सब को ले कर जनून इन में भी इंसानों जैसा ही होता है.

इंसान ने प्रेम और निवेदन की तमाम कलाएं इन्हीं अबोलों से सीखी हैं. यह अलग बात है कि इंसान ने अपनी बुद्धि और कल्पनाशक्ति की बदौलत उन बेजबानों को भी मौलिक बना लिया है. प्रणय निवेदन की कला इंसान ने मूलत: पक्षियों से ही सीखी है. पक्षी धरती पर इश्क की कला के पुरखे माने जाते हैं. इंसान ने इश्क का जनून उन्हीं से उधार लिया है. भले ही वक्त के साथ इंसान पक्षियों से आगे निकल गया हो, लेकिन समागम, समर्पण और निवेदन की कला में उन का आज भी कोई सानी नहीं.

ग्लोबल वार्मिंग ने पूरे ईको सिस्टम को तहसनहस कर दिया है. पर्यावरण विनाश के कारण पक्षियों का कुदरती आवास छिन गया है, लेकिन पक्षियों का कलरव आज भी उतना ही मधुर है. वास्तव में यह कलरव या कोरस ही पक्षियों का प्रणय गीत है. एक समय गांवों में पक्षियों के इसी कलरव से सुबह की नींद खुलती थी. हालांकि पक्षियों के सामूहिक कलरव में यह पहचानना मुश्किल होता है कि इस में कौनकौन से पक्षियों का स्वर शामिल है, लेकिन कानों को शब्दरहित गीत बहुत भाता है. यों तो पक्षी हर मौसम में ही गुनगुनाते प्रतीत होते हैं, लेकिन गरमियों में खासकर बसंत पंचमी के बाद इन के स्वरों में कुछ ज्यादा ही मिठास घुल जाती है.

उत्तर भारत में जैसेजैसे अमराई की महक मादक होती जाती है, पक्षियों की कूक में दर्द, विरह और प्रणय निवेदन की कशिश बढ़ती जाती है और बरसात में अपने चरम पर होती है. वास्तव में यह समय पक्षियों के लिए घोंसले बनाने और अंडे देने का होता है, पक्षियों के कलरव का हमेशा एक सा अर्थ नहीं होता. पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि उन का सुबह का स्वर अपने होने का ऐलान होता है. साथ ही सुबह के इस कलरव से पक्षी मानो घोषणा करते हैं कि यह उन का इलाका है और वे अपने इलाके की बादशाहत संभालने के लिए मौजूद हैं. यह कलरव उन की मौजूदगी का शंखनाद भी होता है. इस का दूसरा उद्देश्य प्रणय के लिए साथी को अपनी ओर आकृष्ट करना भी होता है.

सुबह के कलरव की शुरुआत रात में पेड़ों की ऊंची शाखाओं पर डेरा जमाने वाले पक्षियों से होती है. शायद सूरज के प्रथम दर्शन करने की वे भरपाई कर रहे होते हैं. सुबह पौ फटने से पहले ही कई बार हम मोरों की आवाज सुनते हैं. रात को मोर बड़ेबड़े पेड़ों की ऊंची डालों पर सोते हैं, इसलिए सुबह सूरज की रोशनी से सब से पहले वे ही जगते हैं.

अधिकतर पक्षी अपने साथी को आकृष्ट करने के लिए गाने के साथसाथ नाचते भी हैं. मोर का आकर्षक नृत्य तो मुहावरा है. दरअसल, वह मोरनी को रिझाने के लिए ही नृत्य करता है. कई नर पक्षी मादा को रिझाने के लिए खतरनाक जोखिम उठाते हैं. ऐसा ही एक पक्षी है ‘खड़मोर.’ यह पारंपरिक मोर तो नहीं पर मोर की ही जाति का एक संकर पक्षी है. यह मादा को रिझाने के लिए खेतों में ऊंचीऊंची छलांगें लगाता है और फिर धम से गिर कर खेत में छिप जाने का नाटक करता है. यह मुंह से कई किस्म की आवाजें निकालता है. कई बार तो यह अपनी इस उछलकूद में अपने पैरों को लहूलुहान तक कर लेता है.

खड़मोर की ही तरह कोयल भी विरह गीत गाती है. बरसात के शुरुआती दिनों में कोयल का कूकना तब तक बेचैन करता है जब तक वह अंडे नहीं सेने लग जाती. दरअसल, डाल पर कूकती आवाज नर कोयल की होती है और वह उस समय जोड़ा बनाने के लिए साथी की तलाश कर रहा होता है. नर कोयल काला होता है, जबकि मादा भूरी या चितकबरी दिखती है. यही फर्क मोर और मोरनी में भी होता है.

बरसात के मौसम में हमें एक और पक्षी की आवाज बारबार सुनाई देती है, वह है पपीहा. फिल्मी गीतों का लोकप्रिय पपीहा. पपीहे के मुंह में शब्द भले ही हम अपनी कल्पना के डाल देते हों मगर यह अपनी प्रिय को ही देख रहा होता है.

पक्षियों की विस्तृत दुनिया में झांकने के लिए सब से पहले हमें अपने इर्दगिर्द के पक्षी जगत पर नजर दौड़ानी चाहिए. यदि हम अपनी खिड़की से बाहर झांकते हैं तो हमें जो बहुत से परिचित घरेलू पक्षी दिखाई पड़ेंगे उन में दिनदोपहरी कांवकांव करता कौआ, दहलीज पर दाना चुगती गौरैया, छज्जे पर गुटरगूं करता कबूतर और पंखों से आवाज निकालती मैना.

वास्तव में समय के साथ ये सारे पक्षी हमारे आसपास जीनारहना सीख गए हैं. हजारों साल पहले शायद ये भी पूर्णतया जंगल के वासी रहे होंगे, लेकिन भोजन की तलाश इन्हें धीरेधीरे बस्तियों के करीब ले आई. अब इन्होंने शहरी भीड़भाड़ में रहने के लिए सुकून और आवास तलाश लिया है. यहीं ये अपना भोजन तलाशते हैं, घोंसले बनाते हैं और रात यहीं किसी ऊंचे सुरक्षित ठौर पर सो भी जाते हैं.

यों तो इंसान के अलावा किसी अन्य प्रजाति में पारिवारिक जीवन की प्रतिबद्धता नहीं होती, न ही उन में इस की चाहत दिखती है. लेकिन लगाव और भावनात्मक आकर्षण सभी प्रजातियों में पाया जाता है. पक्षियों में प्रणय निवेदन की कला इसी लगाव से निकलती है.

यहां है मादा की हुकूमत

मजेदार बात यह है कि दिखने में सुंदर ज्यादातर नर पक्षी ही होते हैं, लेकिन पक्षियों की दुनिया में भी चलती मादाओं की ही है. इन के प्रणय निवेदन की जद्दोजेहद में भी यह साफ झलकता है. नर को ही मादा को मनाने के लिए दिनरात एक करना पड़ता है. मसलन, सब से सुंदर पक्षी मोर को ही लें. जब जोड़ा बनाने का समय आता है तो इतने खूबसूरत नर मोर को बेहद खूबसूरत मोरनी के सामने अपने सुंदर पंखों को फैलाए घंटों नाचना पड़ता है. मोरनी को खुश करने के लिए इठलाते रहना पड़ता है, तब जा कर मोरनी का दिल पसीजता है.

यही बात बया पक्षी में भी देखने को मिलती है. इसे पक्षियों का इंजीनियर कहते हैं. बया के बनाए घोंसले देख कर इंसान दांतों तले उंगली दबा लेता है. वर्षाऋतु के समय बया पक्षी घोंसला बनाता है. इस कलात्मक काम में वह पूरी तरह डूब जाता है. इतना प्यारा साफसुथरा और सुरक्षित घर बनाने के बावजूद नखरीली मादा को घर जल्दी पसंद नहीं आता. जब तक मादा बया इसे पसंद नहीं कर लेती तब तक घर को और बेहतर बनाने के लिए नर बया जुटा रहता है. इस घोंसले में अलगअलग कक्ष होते हैं. यहां तक कि कई बार तो रोशनी के लिए जुगनुओं को भी काम में लाया जाता है.

अब नीलकंठ को ही देखिए. वह जितना सुंदर उतना ही पवित्र भी माना जाता है. हालांकि यहां नर और मादा करीबकरीब एकजैसे ही होते हैं. फिर भी नर मादा नीलकंठ को खुश करने के लिए हवा में उड़ कर तरहतरह के करतब दिखाता है. कई बार तो वह ऊपर से पत्थर की तरह ऐसे नीचे गिरता है जैसे उस की जान ही निकल गई हो, पर जमीन के पास आते ही वह फिर ऊपर उड़ जाता है. ऐसा कब तक? जब तक नीलू मान न जाए. है न कठिन परीक्षा?

अब कबूतरों के बारे में भी जान लेते हैं. यह सब से प्रेमिल पक्षी है. अपनी मादा को रिझाने के लिए यह अपने पंख फैलाए उस के चारों ओर गुटरगूं करता चक्कर लगाता रहता है. यही नहीं कबूतर के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह एक बार जिस से जोड़ा बना लेता है उस का साथ जीवन भर नहीं छोड़ता. इसीलिए कबूतर सदा जोड़े में ही दिखाई पड़ता है, लेकिन उसे भी कबूतरनी के नखरे उठाने पड़ते हैं.

दुनियाभर में सारस जैसा कोई दूसरा प्रेमी पक्षी नहीं है. यह अपने प्रेम के लिए विश्वप्रसिद्ध है. नर और मादा एकदूसरे के लिए सदा समर्पित रहते हैं. यदि इन में से किसी एक की भी मृत्यु हो जाए तो दूसरा भी अन्नजल त्याग कर अपनी जान दे देता है. मगर प्रणय निवेदन में मादा सारस भी खूब नाकों चने चबवाती है.

सारस के ठीक विपरीत जीवनशैली है हंस की. यह निडर पर नाजुक पक्षी बहुपत्नी प्रथा को मानने वाला है. अपने सौंदर्य और मनलुभावनी चाल के कारण लोकप्रिय हंस की बहुत सारी पत्नियां होती हैं.                      

सोशल मीडिया: विचारों का सुलभ मंच

सोशल मीडिया यानी अपने विचार व्यक्त करने का वह माध्यम जो सब की पहुंच में है. सोशल मीडिया ने बहुत कम समय में देश और दुनिया की दूरी मिटाने में जो सफलता हासिल की है वह अपने में अद्वितीय है. सोशल मीडिया के अलगअलग माध्यम हैं, इन में सब से लोकप्रिय माध्यम फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्विटर, हाइक, लिंकडेन और इंस्टाग्राम हैं. सोशल मीडिया की लोकप्रियता की सब से बड़ी विशेषता है कि आज इसे हर तरह की योजना में शामिल करने की प्लानिंग की जा रही है. सोशल मीडिया को स्मार्टफोन ने प्रभावी बना दिया है.

स्मार्टफोन के जरिए सोशल मीडिया के सभी टूल्स प्रयोग करने में बहुत सरल हो गए हैं. इंटरनैट कंपनियों ने किफायती डेटा प्लान दे कर स्मार्टफोन पर इंटरनैट के प्रयोग को सरल बना दिया है. अब जरूरत के मुताबिक इंटरनैट प्लान लेना सरल हो गया है.

सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफौर्म बन गया है जो न केवल विचारों को व्यक्त करने का सुलभ साधन है बल्कि इस के जरिए एकदूसरे तक पहुंच भी आसान हो गई है. अब पूरा समाज एक संयुक्त परिवार की तरह नजर आने लगा है. अब एकदूसरे की मदद करना, किसी समस्या का समाधान खोजना और अपनी बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना आसान हो गया है. इस से लोगों को अकेलेपन का एहसास नहीं होता.

सोशल मीडिया के जरिए बिजनैस और औफिस के संदेश एकदूसरे तक पहुंचाना सरल हो गया है. सब से बड़ी बात यह है कि इस में अलग से कुछ खर्च नहीं करना पड़ता.

फोटो और वीडियो भी एकदूसरे को भेजना आसान हो गया है. प्रचारप्रसार की सुविधा ने सोशल मीडिया को सोशल टूल्स जैसा बना दिया है. केवल प्रोडक्ट्स के प्रचार का ही नहीं बल्कि राजनीतिक विचारों को आम लोगों तक पहुंचाने का भी सोशल मीडिया बड़ा माध्यम बन गया है.

मशीनीकरण ने भरी संबंधों में ऊर्जा

सोशल मीडिया पूरी तरह मशीन पर चलने वाला माध्यम है. इस को चलाने के लिए कंप्यूटर, लैपटौप, टैब्स और स्मार्टफोन की जरूरत होती है. यह इंटरनैट के डेटा प्लान पर चलता है. इंटरनैट एक तरह से इस की सांस है. लखनऊ निवासी कीर्ति पंत कहती हैं, ‘‘मशीनीकरण से चलने वाले सोशल मीडिया ने संबंधों में नई ऊर्जा भर दी है. हम एक शहर में और कई बार तो एक ही सोसायटी में रहने के बाद भी एकदूसरे से नहीं मिल पाते थे. किसी की जिंदगी में हंसीखुशी के पल का पता नहीं चलता था और किसी की दुखबीमारी भी मालूम नहीं होती थी. लेकिन अब फेसबुक ने लाइफ के हर पल को आपस में शेयर करने का सब से सरल रास्ता दे दिया है. अब हमें बिना एकदूसरे से मिले भी उस के बारे में जानकारी मिलती रहती है.’’

अपने शहर में ही नहीं देश और दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाले से हम जुड़ गए हैं. हम केवल उस की बातों को देख या पढ़ ही नहीं सकते, उस पर अपने कमैंट्स भी दे सकते हैं. कोई भी फोटो या वीडियो भेज सकते हैं. हम एकदूसरे से चैटिंग के जरिए ऐसे बात कर सकते हैं जैसे आमनेसामने बैठ कर बात कर रहे हों. कहते हैं कि मशीन में कोई भाव नहीं होता पर मशीन के सहारे चलने वाला सोशल मीडिया हमारे हर भाव को हमारे जाननेपहचानने वालों तक और अनजान लोगों तक पहुंचाने में मदद करता है.

यूथ का टूल बन गया सोशल मीडिया

सोशल मीडिया का प्रभाव हर पीढ़ी पर है. लेकिन इस से सब से अधिक लाभान्वित युवावर्ग हो रहा है. उन्हें दोस्त बनाने, उन तक अपनी बातें पहुंचाने, पढ़ाईलिखाई और सूचनाओं का आदानप्रदान करने के लिए यह सब से प्रमुख जरिया बन गया है. लखनऊ की श्वेता भारद्वाज कहती हैं, ‘‘छोटेबड़े हर वर्ग के लिए यह माध्यम सब से अधिक उपयोगी होने लगा है. मान लीजिए कोई बच्चा बीमार पड़ जाए और उस को स्कूल से अवकाश लेना पड़े. उसे यह पता करने के लिए कि अवकाश के दौरान स्कूल में क्या पढ़ाई हुई, पहले अपने साथी के घर जा कर उस की नोटबुक देखनी पड़ती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है. बच्चा मोबाइल फोन से क्लास वर्क का फोटो क्लिक कर के व्हाट्सऐप से अपने साथी को भेज सकता है, जिस से वह अपना काम आसानी से कर सकता है. आजकल पेपर स्कैन कर के रखना और एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजना सरल और सहज हो गया है.’’

ममता कांडपाल कहती हैं, ‘‘सोशल मीडिया संचार का सब से बेहतर माध्यम होने के साथसाथ ऐसे लोगों का भी टूल बन गया है जो अफवाह फैला कर एकदूसरे को आपस में लड़ाना चाहते हैं. सोशल मीडिया खासकर व्हाट्सऐप के जरिए हम महत्त्वपूर्ण पेपर्स एकदूसरे तक जल्दी पहुंचा सकते हैं. ये कागजात हमेशा के लिए सुरक्षित भी हो जाते हैं. ऐसे में इन के खोने या नष्ट होने का खतरा भी कम हो गया है. इन पेपर्स को रखने के लिए किसी और चीज की जरूरत नहीं होती. इसी तरह हम अपने लिखे विचार और फोटो भी तमाम लोगों तक आसानी से पहुंचा सकते हैं. इस तरह हमारे विचार जस के तस दूसरों तक पहुंच जाते हैं. किसी किताब के अंश, कहानी का हिस्सा ऐसे ही एकदूसरे तक पहुंचाए जा सकते हैं.’’

हर काम के विचार

विचार केवल वे ही नहीं होते, जो आदर्शवादी बातें हों. फैशन, लाइफ स्टाइल, नए ट्रैंड भी विचारों की श्रेणी में आते हैं. टीचिंग प्रोफैशन से जुड़ी सुनीता राय कहती हैं, ‘‘सोशल मीडिया का प्रयोग हर क्षेत्र में होने लगा है. इस के चलते जिंदगी के बहुत से काम आसान हो गए हैं. अब जानकारी हासिल करना आसान हो गया है. स्कूल और पढ़ाई में भी सोशल मीडिया का प्रयोग होने लगा है. स्कूलों में सभी टीचर्स के नंबर्स को ले कर व्हाट्सऐप पर एक ग्रुप बना दिया जाता है, जिस में कोई भी जानकारी एक टीचर से दूसरे टीचर तक पहुंचने में सैकंड से भी कम समय लगता है. स्कूल प्रबंधन के लिए भी यह बहुत सरल और सुविधाजनक हो गया है. पहले इस के लिए नोटिस लगाना पड़ता था. आसानी से यह देखा भी जा सकता है कि किसकिस ने सूचना पढ़ ली है और किसकिस को सूचना मिल गई है.’’

बुटिक चलाने वाली रेनू अग्रवाल कहती हैं, ‘‘यूथ अब अपने ट्रैंडी फैशनवियर के डिजाइन एकदूसरे को शेयर कर सकते हैं. किसी को जो डिजाइन अपने लिए पसंद होते हैं उन को वे एकदूसरे से ले सकते हैं. कहते हैं कि ड्रैस दूसरों की पसंद से लेनी चाहिए. ऐसे में सोशल मीडिया के जरिए अपने दोस्तों से राय ले कर ड्रैस पसंद की जा सकती है.’’

कानपुर की रहने वाली दीक्षा शर्मा कहती हैं, ‘‘हर किसी तक अपने विचारों को पहुंचाना अब सरल हो गया है. आप की लिखी एक बात को सैकडों में हजारों लोग पढ़ते और देखते हैं. वे उस विचार को वहां से ले कर कहीं और भी पोस्ट कर सकते हैं, जिस से उन विचारों का लाभ तमाम लोगों तक एकसाथ पहुंच जाता है. वे उन विचारों को अपना समर्थन और विरोध दोनों दे सकते हैं. फेसबुक पर अब ऐसी सुविधा भी दे दी गई है कि आप लाइक के जरिए एक सिंबल से ही अपने भाव को प्रकट कर सकते हैं कि आप को खुशी है कि नाराजगी.’’

वैचारिक क्रांति का सूत्रपात

सोशल मीडिया एक तरह से वैचारिक क्रांति का सूत्रपात सा है. हैदराबाद के रोहित वेमुला का मामला हो या दिल्ली के जेएनयू के कन्हैया कुमार का. अन्ना की क्रांति हो या केजरीवाल की सफलता. हर कहीं सोशल मीडिया की ताकत को परखा जा चुका है. सोशल मीडिया पर विचारों को व्यक्त करने की आजादी मिलती है जो कहीं और नहीं मिलती.

अभिनेत्री और लेखिका सिम्मी भाटिया कहती हैं, ‘‘सोशल मीडिया वैचारिक क्रांति का सब से बड़ा सूत्रधार बन गया है. अपने विचारों को तेजी से एक से दूसरे तक पहुंचाया जा सकता है, जो समाचार पहले कई दिन और घंटों के बाद एक से दूसरे तक पहुंचता था, अब वह कुछ ही क्षणों में एकदूसरे तक पहुंचने लगा है और उस के समर्थन और विरोध में भी तत्काल बहस चलने लगती है. कई बार इस से सरकारें तक दबाव में आ जाती हैं व जनता के हित वाला फैसला लेने पर विवश हो जाती हैं. ट्विटर के जरिए मंत्रीअफसर तक जनता से जुडे़ होते हैं. कई बार सोशल मीडिया के माध्यम से प्रकाश में आए समाचारों को संज्ञान में ले कर काम किया जाता है.’’

लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में कार्यरत चंद्रप्रभा कहती हैं, ‘‘सोशल मीडिया ने जनता के हाथों में एक पावर दे दी है, जिस के माध्यम से जनता अपनी बात तमाम लोगों तक पहुंचाने में सफल होती है. पहले अखबार और चैनल हर बात को जस का तस प्रस्तुत नहीं करते थे. इस के अपने लाभ और नुकसान दोनों होते थे. अब जनता अपनी बात को अपनी तरह से कहने के लिए आजाद है. किसी बड़े नेता या अफसर के संदेश में वह विरोध और समर्थन करने को आजाद है. उस की सही बात का समर्थन करने वाले भी बहुत लोग मिल सकते हैं, जिस से उस का हौसला बढ़ जाता है.’’

अंश वैलफेयर फाउंडेशन की अध्यक्ष श्रद्धा सक्सेना कहती हैं, ‘‘सोशल मीडिया के रूप में एक ऐसी ताकत हाथ लगी है जिस के जरिए परिवार, दोस्त, नातेरिश्तेदार सब एक मंच पर अपने विचारों को कहने और सुनने को पूरी तरह से आजाद रहते हैं. कई बार दबाव में आमनेसामने अपनी बात को कहने में लोग संकोच करते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं होता. मन की बात कहने को हर कोई आजाद है. जरूरत इस बात की है कि लोग अपने विचार व्यक्त करें, पर यह जरूर ध्यान रहे कि आप के विचारों से दूसरे आहत न हों. इस से सोशल मीडिया के प्रति जिम्मेदारी का भाव बढ़ेगा और सभी इस को पूरी गंभीरता से लेंगे.’’

पत्रकार की भूमिका में नज़र आएंगी सोनाक्षी सिन्हा

बॉलीवुड अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा पाकिस्तानी उपन्यास ‘कराची, यू आर किलिंग मी’ पर बन रही बॉलीवुड फिल्म में पत्रकार की भूमिका में नजर आयेंगी. वर्ष 2014 में प्रकाशित पत्रकार-लेखक सबा इम्तियाज की कॉमेडी और क्राइम-थ्रिलर पुस्तक के केंद्र में कराची में रहने वाली 20 वर्षीय रिपोर्टर आयशा खान और उसकी कहानी है.

इस उपन्यास पर आधरित फिल्म को नाम ‘नूर’ दिया गया है. सबा ने ट्विटर पर एक पोस्ट के जरिये अपनी खुशी जाहिर की. उन्होंने इस फिल्म से जुड़ी सोनाक्षी सिन्हा की कई तस्वीरों को भी पोस्ट किया. इस फिल्म का निर्माण भूषण कुमार और विक्रम मल्होत्रा कर रहे हैं.

साथ ही ट्रेड ऐनालिस्‍ट तरण आदर्श ने भी सोनाक्षी के पहले लुक को अपने ट्विटर हैंडल पर शेयर किया है. फर्स्‍टलुक में सोनाक्षी पहली तस्‍वीर में सलवार-कमीज में और दूसरी तस्‍वीर में व्‍हाइट टी के साथ कैप में नजर आ रही है.

सीक्वल किंग बन गए हैं ‘खिलाड़ी’

बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार इन दिनों अपनी आगामी फिल्‍म ‘हाउसफुल 3’ को लेकर खासा व्‍यस्‍त हैं. यह फिल्‍म ‘हाउसफुल’ की तीसरी सीरीज है. अक्षय कुमार पिछली दोनों सीरीज में भी नजर आये थे. अक्षय इसके अलावा भी कई सीक्‍वल फिल्‍मों में नजर आ चुके हैं. उन्‍होंने एक्‍शन से लेकर कॉमेडी तक कई भूमिकाओं से दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बनाई है. अक्षय ‘खिलाड़ी’ के नाम से फेमस हैं.

जानें कौन सी है उनकी सीक्वल फिल्‍में….

खिलाड़ी

अक्षय ने वर्ष 1992 में रिलीज हुई फिल्‍म ‘खिलाड़ी’ में अपने एक्‍शन अवतार से दर्शकों को हैरान कर दिया था. फिल्‍म सुपरहिट हुई और वे इंडस्‍ट्री में ‘खिलाड़ी’ बन गये. इसके बाद वे वर्ष 1994 में ‘मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी’, वर्ष 1996 में ‘खिलाडियों का खिलाड़ी’, वर्ष 1997 में ‘मिस्टर एंड मिसेज खिलाड़ी’, वर्ष 1999 में ‘इंटरनेशनल खिलाड़ी’, 2000 में ‘खिलाड़ी 420’ और वर्ष 2012 में ‘खिलाड़ी 786’ जैसी फिल्‍मों में काम किया. दर्शकों ने इन फिल्‍मों में उन्‍हें खासा पसंद किया.

हेरा फेरी

वर्ष 2000 में रिलीज हुई फिल्‍म ‘हेरा फेरी’ में अक्षय दर्शकों को हंसाने में कामयाब रहे. उन्‍होंने अपने कॉमेडी टाइमिंग से दर्शकों से वाहवाही लूटी. यह उस साल की सबसे बड़ी हिट फिल्‍म रही. इसके बाद वर्ष 2006 में फिल्‍म ‘फिर हेरा फेरी’ रिलीज हुई. इस फिल्‍म को भी दर्शकों ने खासा पसंद किया. अक्षय, सुनील शेट्टी और परेश रावल की तिकड़ी ने अपनी जुगलबंदी से दर्शकों को खूब हंसाया.

सिहं इज किंग

‘हैप्‍पी सिंह’ का किरदार तो आपको याद ही होगा. वर्ष 2008 में रिलीज हुई फिल्‍म ‘सिंह इज किंग’ में अपने एक्शन-कॉमेडी से अक्षय ने फिर एकबार दर्शकों का मन मोहा. इसके बाद वे वर्ष 2015 में फिल्‍म ‘सिंह इज ब्लिंग’ में दिखाई दिये. इस फिल्‍म को भी दर्शकों ने पसंद किया.

हाउसफुल

अक्षय ‘हाउसफुल 3’ की पिछली दोनों सीरीज में नजर आ चुके हैं. वर्ष 2010 में रिलीज हुई फिल्‍म ‘हाउसफुल’ जबरदस्‍त हिट साबित हुई थी. इसके बाद वर्ष 2012 में रिलीज हुई फिल्‍म ‘हाउसफुल 2’ भी हिट साबित हुई थी. फिलहाल ‘हाउसफुल 3’ रिलीज हुई है. फिल्‍म में अभिषेक बच्‍चन, रितेश देशमुख, जैकलीन फर्नाडीज, लीसा हेडन, नरगिस फाखरी मुख्‍य भूमिका में हैं.

उड़ता पंजाब से हटाया जा सकता है ‘पंजाब’ शब्द

अगर हम यह कहें कि उड़ता पंजाब साल 2016 की सबसे बड़ी विवादित फिल्म है, तो यह गलत नहीं होगा. शाहिद, करीना, आलिया और दिलजीत की फिल्म के लिए मुसीबतें खत्म होने का नाम नहीं ले रहीं. फिल्म में CBFC द्वारा 40 कटौतियां करने के बाद, फिल्म के को-प्रोड्यूसर अनुराग कश्यप ने न्यायाधिकरण और सूचना एवं प्रसारण मंत्री से इस मामले में दखल करने का निवेदन किया था.

एक रिपोर्ट के अनुसार, ट्राइब्यूनल ने फिल्ममेकर्स से मांग की है कि फिल्म के नाम ‘उड़ता पंजाब’ में से ‘पंजाब’ शब्द को निकाल दिया जाए. प्रॉडक्शन हाउस के एक सूत्र के अनुसार, ट्राइब्यूनल के लिए फिल्म की स्क्रीनिंग रखी गई थी.

उन्होंने फिल्म देखने के बाद कहा था कि वे इस फिल्म के लिए अपनी सिफारिश भेज देंगे लेकिन उन्होंने डायरेक्टर से कहा कि फिल्म के नाम में से ‘पंजाब’ शब्द हटा लिया जाए. इतना ही नहीं वे यह भी चाहते थे कि फिल्म में पंजाब से जुड़ा कोई भी रेफरेंस हटा दिया जाए.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ड्रग्स और गालियों के अंधाधुंध प्रयोग की वजह से ‘उड़ता पंजाब’ को सेंसर बोर्ड का अप्रूवल नहीं मिल पा रहा है. फिल्म की रिलीज़ डेट आने ही वाली है और विवाद है कि बढ़ते ही जा रहे हैं. ठीक इसी तरह संजय लीला भंसाली की फिल्म गोलियों की रासलीला-राम लीला के लिए भी विवाद पैदा हो गए थे, जिसके बाद फिल्म रिलीज़ के तय समय के 48 घंटे पहले फिल्म का टाइटल चेंज किया गया था.

ये बॉलीवुड एक्ट्रेस बनेंगी ‘Miss Universe India 2016’ की मेंटर

पूर्व मिस यूनिवर्स व बॉलीवुड एक्ट्रेस लारा दत्ता ‘यामाहा फसीनो मिस दीवा-मिस यूनिवर्स इंडिया 2016’ का चेहरा व मेंटर होंगी. लारा ने बॉलीवुड क्वीन कंगना रनौत संग इस सौंदर्य प्रतिस्पर्धा के चौथे संस्करण का आगाज किया.

‘यामाहा फसीनो मिस दीवा-मिस यूनिवर्स इंडिया 2016’ का प्रसारण कलर्स इन्फिनिटी चैनल पर सात हिस्सों वाली रियालिटी टेली-सीरीज के रूप में होगा, जिसका उद्देश्य एक ऐसी विजेता को ढूंढना है, जो मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में देश का प्रतिनिधित्व करे.

लारा ने प्रतियोगिता से जुड़ने के बारे में कहा, ‘मैं यामाहा फसीनो मिस दीवा 2016 के नए संस्करण के साथ वापसी कर बहुत उत्साहित हूं, जिसका लुक इस साल एकदम नया है.’

भारत की ओर से पिछली बार ‘मिस यूनिवर्स’ का खिताब वर्ष 2000 में लारा ने जीता था. उसके बाद से भारत की किसी प्रतिभागी के सिर यह ताज नहीं सजा.

सौंदर्य प्रतियोगिता के लिए लखनऊ, इंदौर, अहमदाबाद, कोलकाता, चंडीगढ़, पुणे, हैदराबाद, दिल्ली व बंगलुरू जैसे शहरों में 17 जून से ऑडिशन शुरू हो रहे हैं और मुंबई में ऑडिशन का अंतिम चरण संपन्न होंगे.

सौंदर्य प्रतियोगिता के मुख्य प्रायोजक ‘यामाहा मोटर इंडिया सेल्स प्राइवेट लिमिटेड’ में बिक्री एवं विपणन के उपाध्यक्ष रॉय कुरियन ने कहा, ‘यामाहा फसीनो मिस दीवा-मिस यूनिवर्स इंडिया 2016 आधुनिक भारतीय महिलाओं के लिए अपने जुनून व आकांक्षाओं को पहचान दिलाने का उपयुक्त मंच है.’

पर्यटन और आस्था का संगम देखना हो, तो घूमकर आएं मेनाल

राजस्थान का पर्यटन स्थल मेनाल अपने अलौकिक, नैसर्गिक वैभव, वाटर फॉल और मंदिर के कारण सालों से देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है. चारों ओर घने वनों से आच्छादित मेनाल इतिहास, पुरातत्व, पर्यटन और धार्मिक आस्था का संगम स्थल है.

चित्तौड़ राजमार्ग पर बूंदी से करीब सौ किलोमीटर और चित्तौड़ से सत्तर किलोमीटर की दूरी पर स्थित मेनाल यूं तो एक छोटा सा स्थान है पर अपने प्राकृतिक सौन्दर्य और ऐतिहासिक महानाल मंदिर परिसर के कारण पर्यटन के नक्शे में विशेष स्थान रखता है. इस स्थान पर मेनाल नदी एक जल प्रपात के रूप में सौ फीट गहरे गिरकर एक घाटी का निर्माण करती है. ग्रेनाइट की सख्त चट्टानों पर बहता मेनाल का निर्मल-साफ पानी जिस स्थान पर गिरता है, ठीक उसी स्थान पर नदी के पाट के दाहिनी ओर महानाल मठ और शिवालय है.

घोड़े की नाल की आकृति लिए झरने के ठीक बराबर बने महानाल मंदिर परिसर में कई अन्य मंदिर बने हैं. इन मंदिरों का निर्माण अजमेर और दिल्ली के चौहान वंशी राजाओं ने करवाया था. दसवीं-ग्याहरवीं शताब्दी में महानाल शैव संप्रदाय का बड़ा तीर्थ स्थान रहा है. राजस्थान में स्थान-स्थान पर बने शिवालयों से यही प्रकट होता है कि ग्यारहवीं- बारहवीं शताब्दी तक राजस्थान में शैव मत की ही प्रधानता रही है. समूह का प्रमुख और सबसे सुंदर महानालेश्वर मंदिर शिव को समर्पित है.

मंदिर के सामने एक छतरी के नीचे नंदी की बड़ी सी मूर्ति बनी है. मंदिर भूमिज शैली में बना है. मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं, अप्सराओं, हाथियों, शेरों आदि की जीवंत कलात्मक मूर्तियां लगाई गई हैं. इनके आस-पास के पत्थरों पर बेल-बूटे बनाए गए हैं. मंदिर शिखर के कुछ नीचे एक शेर की मूर्ति है तथा मंडप के ऊपर एक शेर अपनी सुरक्षा में एक हाथी-शावक लिए बना है.

मेनाल के साथ आप बूंदी और चितौड़ गढ़ का पैकेज टूर भी बना सकते हैं. बूंदी में कई पर्यटन स्थल हैं जिसमें से तारागढ़ किला, बूंदी महल, रानीजी-की-बावड़ी आदि बहुत मशहूर हैं. इसके अलावा यहां पर चित्रशाला या उम्मेद महल भी देखने लायक हैं. चित्रशाला की दीवारों पर रासलीला की कहानियों के दृश्यों को दर्शाते चित्र हैं.चित्तौड़गढ़ शहर अपने शानदार किलों, मंदिरों, दुर्ग और महलों के लिए जाना जाता है.

मेनाल मुख्य सड़क से पांच सौ मीटर अंदर है. भीलवाड़ा यहां से सिर्फ 65 किलोमीटर दूरी पर है. रुकने के लिए मेनाल में भी बढ़िया होटल हैं.मेनाल में वैसे तो पूरे साल पर्यटकों की आवाजाही रहती है, लेकिन यहां आने का सबसे बढ़िया समय बरसात का मौसम है. तब चारों तरफ गहरी हरियाली के बीच मेनाल का झरना तेज आवाज के साथ गिरता है तथा उसकी जलराशि पर अनेकों इंद्रधनुष सजते हैं.

क्रिकेट का शौक औरतों के लिए बुरा नहीं

इंडियन मौडल आरशी खान ने अपने कपड़े उतारे, वीडियो बनवाया और सप्रेम पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कप्तान शाहिद अफरीदी व भारतीय क्रिकेट टीम को अर्पित भी कर दिया पर चाहे वीडियो को खूब देखा गया, जीत न गोरों को मिली, न भूरों को, जीत मिली वैस्टइंडीज के अश्वेत खिलाडि़यों को, जिन्होंने इंगलैंड को आखिरी ओवर तक उम्मीद में रख कर आखिर की 4 बौलों से टी-20 विश्व कप जीत लिया. टी-20 वैसे खेल कम सर्कस ज्यादा है पर भारतपाकिस्तान और बंगलादेश में तो यह हिंदू व इसलाम धर्म के बाद का धर्म है. क्रिकेट के खिलाफ बोलने वाले क्रिकेटद्रोही ही नहीं देशद्रोही भी हैं और तीनों देश कोई भी सीरीज जीतने पर खिलाडि़यों को मालामाल भी करते हैं, उन्हें ऊंचे सम्मानों से भी  नवाजते हैं. एक सम्मान आरशी खान ने भी दिया पर दोनों टीमें हार गईं.

टी-20 से क्रिकेट रोमांचक हो गया है और 5 दिन चलने वाले उबाऊ टिपटिप की जगह यहां रनों की झड़ी ही अच्छी लगती है. भारत ने इस बार वैसे देश प्रेम की तरह की क्रिकेट में कप जीतना ही है का प्रचार कम किया था पर फिर भी मैदान दर्शकों से भरे थे और आंखें टीवी सैटों से चिपकी थीं. अब क्रिकेट दमखम का खेल होने लगा है और मंझोले से कद वाले भारतीयों की आस्टे्रलिया पर जीत काफी सुखद लगी थी पर फिर सेमीफाइनल में वैस्टइंडीज ने उस सुख की नली को बंद कर के ठंडी हवा बंद कर दी. अब यह खेल औरतों में भी पौपुलर होने लगा है और जिस शाम वैस्टइंडीज की पुरुष टीम जीती उसी दिन वैस्टइंडीज की महिला टीम भी जीती.

क्रिकेट का शौक औरतों के लिए बुरा नहीं है. इस में भागदौड़ कम है. फुटबौलहौकी की तरह पूरे मैदान का चक्कर नहीं है. इस में खिलाडि़यों की टक्कर भी नहीं होती. बौल से हाथपैर में मामूली ही चोट लगती है और इसीलिए इसे यहां गलीगली में अपनाया जाना चाहिए. अब तो लड़कियां हर जगह टीशर्ट और पैंट पहनने लगी हैं, इसलिए पोशाक का भी चक्कर नहीं. यह टी-20 खत्म हो गया हो तो क्या तंबोला की जगह इसे खेलने का प्लान बनाइए. मजा आएगा. बाहर की हवा मिलेगी. पार्क, गली, सड़क, मैदान जहां संभव हो वहां पैंट टौप पहनिए और बल्ला पकडि़ए. राजकुमारी केट विंसलैट ने भारत में आ कर स्कर्ट में ही बल्ला घुमा डाला था.

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