किसको किया परिणीति ने सबके सामने किस…?

परिणीति चोपड़ा का फिल्म ‘ढिशूम’ में किया गया आइटम नंबर चर्चा का विषय बना हुआ है. इस गाने के बोल हैं, ‘जानेमन आह….’ हालांकि अभी तो गाने का कुछ हिस्सा ही मेकर्स ने रिलीज किया है. लेकिन इसमें वरुण और परिणीति के बीच की केमिस्ट्री काफी अच्छी लग रही है. सुनने में आया है कि इस गाने में परिणीति ने वरुण को किस भी किया है.

फिल्म की यूनिट से जुड़े एक सूत्र ने बताया, ‘मुझे लगता है कि इस गाने में वरुण और परिणीति किस करते हुए भी नजर आएंगे. हालांकि ये किस लिप-टू-लिप नहीं होगा, लेकिन माहौल का गरम जरूर कर देगा.’

परिणीति और वरुण का गाने में किस देखने को मिले या नहीं, लेकिन इतना जरूर तय है कि जब ये गाने थिएटर्स में सुनाई देगा तो माहौल जरूर बन जाएगा. परिणीति वजन घटाने के बाद पहली बार इस गाने के जरिए बड़े पर्दे पर नजर आ रही हैं.

‘ढिशूम’ में परिणीति का सिर्फ एक आइटम सॉन्ग हैं, इसके अलावा फिल्म में वरुण धवन, जैकलीन फर्नांडिस और जॉन अब्राहम नजर आएंगे. फिल्म 29 जुलाई को सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है.

न्यूयॉर्क में अक्षय को मिला गिफ्ट

अपनी फिल्म ‘रुस्तम’ की रिलीज का इंतजार कर रहे अभिनेता अक्षय कुमार को यहां पारसी समुदाय ने एक ‘फरवहर’ (पारसी समुदाय का प्रतीक चिन्ह) उपहार में दिया है.

अक्षय फिलहाल अपने परिवार के साथ अमेरिका में छुट्टियां बिता रहे हैं. उन्होंने ट्विटर पर एक तस्वीर साझा की, जिसमें वह अपने हाथ में फरवहर थामे दिखाई दे रहे हैं.

तस्वीर के कैप्शन में उन्होंने लिखा, ‘न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी में पारसी समुदाय से फरवहर मिलने पर धन्य महसूस कर रहा हूं. ‘रुस्तम’ पर आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद.’

अभिनेता ने एक अन्य ट्वीट में अपने परिवार के साथ छुट्टियां खत्म होने का खुलासा भी किया. अक्षय ने एक तस्वीर शेयर की , जिसमें वह अपनी बेटी नितारा को बाहों में थामे नजर आ रहे हैं. तस्वीर के साथ उन्होंने लिखा, ‘सभी अच्छी चीजों की तरह ये छुट्टियां भी खत्म हो रही हैं. अगली बार तक के लिए नन्हीं बच्ची सहित न्यूयॉर्क को अलविदा कर रहा हूं.’

टीनू सुरेश देसाई निर्देशित फिल्म ‘रुस्तम’ में इलियाना डिक्रूज और ईशा गुप्ता भी हैं. फिल्म 12 अगस्त को रिलीज होगी.

 

रिटायरमेंट प्लानिंग के वक्त इन गलतियों से बचें

नौकरी के बाद अपने रिटायरमेंट को बेहतर बनाने का सबसे अच्छा तरीका है, आज ही से सोचना शुरू कर दें कि आप रिटायरमेंट के बाद कैसा जीवन गुजारना चाहते हैं और उसी के हिसाब से कुछ फैसले अभी से ही लेना शुरू कर दें.

एक सर्वे के मुताबिक 80 फीसदी लोग रिटायरमेंट की प्लानिंग नहीं कर पाते हैं. जो लोग प्लानिंग करते भी हैं वे कुछ सामान्य गलतियां कर देते हैं जिसका खामियाजा रिटायरमेंट के दौरान भुगतना पड़ता है, तो आइए जानते हैं उन गलतियों के बारे में जो अक्सर लोग करते है जिसे प्लानिंग के दौरान आपको ध्यान में रखना चाहिए.

1. अपने खर्चों का सही अंदाजा नहीं लगा पाना

सबसे जरूरी है इस बात का अनुमान लगाना कि रिटायरमेंट के बाद आपका खर्च कितना होगा. यानी अपनी जरूरतों का सही अनुमान लगाना बहुत जरूरी है अगर आंकलन सही नहीं किया गया तो आपका रिटायरमेंट फंड कम पड़ सकता है. इसलिए अंदाजे से काम चलाने के बजाय आप अपने पिछले कुछ महीनों के खर्चों की लिस्ट तैयार करें और एक एवरेज निकालकर फंड की राशि तैयार करें.

2. रुपये की घटती वैल्यू का ध्यान रखना

 हम सभी महंगाई से जूझ रहे हैं, इसके बावजूद रिटायरमेंट की प्लानिंग करते वक्त इसे भूल जाते हैं. नतीजा यह होता है कि महंगाई के प्रभाव के चलते आने वाले समय में आपका फंड कम पड़ जाता है. एक सिंपल सा फंडा है आज रुपये की जो वैल्यू है वो जीवनभर नहीं रहेगी यानी आज जो चीज आप 10 रुपये में खरीद पा रहे हैं 20 साल बाद उसकी कीमत दो से ढाई गुनी बढ़ जाएगी.

3. रिटायरमेंट फंड से पैसे निकालते रहना

अक्सर लोग ये सोचते है कि रिटायरमेंट बहुत दूर है ऐसे में जब भी जरूरत पड़ती है लोग इसी फंड में से पैसे निकाल लेते है. बच्चों की शादी, एडमिशन आदि के लिए तो फंड से पैसे निकालना ठीक भी है, लेकिन दिक्कत तो तब होती है जब लोग लक्जरी चीजों के लिए जैसे कार खरीदना, विदेश यात्रा आदि के लिए इसका इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं. इसलिए रिटायरमेंट फंड को हाथ लगाने से पहले यह जरूर सोच लें कि यह पैसा उस समय के लिए है जब आपके पास कमाई का कोई साधन नहीं होगा.

4. एक अलग मेडिकल फंड न रखना

रिटायरमेंट फंड में मेडिकल खर्चों के लिए अलग से कुछ व्यवस्था करनी जरूरी है क्योंकि बुढ़ापे में लोग ज्यादा बीमार पड़ते है. साथ ही अक्सर कई तरह की स्वास्थ संबंधी दिक्कतों से जूझते है. इसलिए रिटायरमेंट प्लानिंग के वक्त ही इस बारे में सोच लेना चाहिए.

5. पहले चुका दें लोन

एक बात जो आपको हमेशा ध्यान रखनी चाहिए वो यह कि रिटायरमेंट से पहले ज्यादा से ज्यादा कर्ज चुका दें. क्योंकि रिटायरमेंट के बाद आपकी कमाई का जरिया खत्म हो जाता है और जिंदगी केवल उन्हीं पैसों के दम पर चलानी होती है जो आपने जमा किए हैं. इसलिए फंड में से लोन न चुकाना पड़े इस बात का ध्यान जरूर रखें.

जरा सुनो! ये दीवारें कुछ कहती हैं…

रत में हर राज्‍य के महलों और किलों का अपना अलग ही आकर्षण है. अगर आप प्राचीन कला और धरोहर को देखने का शौक रखते हैं तो इन शानदार किलों को अपनी ट्रैवल लिस्‍ट में जरूर शामिल करें…

1. मेहरानगढ़ किला, राजस्थान

मेहरानगढ़ किला राजस्थान के जोधपुर शहर में है. यह 500 साल से भी ज्यादा पुराना और सबसे बड़ा किला है. यह किला काफी ऊंचाई पर बना है. इसे राव जोधा ने बनवाया था. इस किले में 7 फाटक (दरवाजे) हैं.

हर फाटक राजा के युद्ध में जीतने पर स्मारक के तौर पर बनवाया गया था. इस किले में जायापॉल फाटक राजा मानसिंह ने बनवाया था. किले के अंदर मोती महल, शीश महल जैसे भवनों को बहुत ही खूबसूरती से सजाया गया है. चामुंडा देवी का मंदिर और म्यूजियम इस किले के अंदर ही हैं.

2. आगरा का किला, उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश के आगरा में बने इस किले को यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल किया है. पहले यह किला राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान के पास था, बाद में इस पर महमूद गजनवी ने कब्जा कर लिया था. अपने वास्तुशिल्प, नक्काशी और सुंदर रंग-रोगन के कारण यह देश सभी किलों में से सबसे ज्‍यादा सुंदर माना जाता है. इस किले की चहारदीवारी के अंदर एक पूरा शहर बसा हुआ.

सफेद संगमरमर की मोती मस्जिद, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, मुसम्मन बुर्ज, जहांगीर पैलेस, खास महल और शीश महल उनमें से कुछ खास हैं. मुगल शासक बादशाह अकबर ने 1573 में आगरा के किले के निर्माण की शुरुआत की थी.

3. ग्वालियर का किला, मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में स्थित इस किले को राजा मानसिंह तोमर ने बनवाया था. यह उत्तर और मध्य भारत के सबसे सुरक्षित किलों में से एक है. सुंदर स्थापत्य कला, दीवारों और प्राचीरों पर बेहतरीन नक्काशी, रंग-रोगन और शिल्पकारी की वजह से यह किला बेहद खूबसूरत दिखाई देता है. यह गोपांचल पर्वत पर बना है. लाल बलुए पत्थर से बना. इस किले के भीतरी हिस्सों में मध्यकालीन स्थापत्य के अद्भुत नमूने मौजूद हैं.

4. चित्तौड़गढ़ का किला, राजस्थान

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित यह किला 700 एकड़ जमीन में फैला हुआ है. जमीन से 500 फुट की ऊंची पहाड़ी पर बना यह किला बेराच नदी के किनारे स्थि‍त है. 7वीं सदी से 16वीं सदी तक यह राजपूत वंश का महत्वतपूर्ण गढ़ था. इस किले की विशेषता इसके मजबूत प्रवेशद्वार, बुर्ज, महल, मंदिर, दुर्ग और जलाशय हैं जो राजपूत वास्‍तुकला के बेमिसाल नमूनों में शामिल हैं.

इस किले के सात प्रवेश द्वार हैं. पहला प्रवेश द्वार पैदल पोल के नाम से जाना जाता है जिसके बाद भैरव पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोली पोल, लक्ष्‍मण पोल और आखिर में राम पोल है जो 1459 में बनवाया गया था. किले की पूर्वी दिशा में स्‍थित प्रवेशद्वार को सूरज पोल कहा जाता है. यहां दो प्रसिद्ध जलाशय हैं, जो विजय स्तंभ और राणा कुंभा के नाम से प्रसिद्ध हैं.

5. लाल किला, दिल्ली

लाल किला दिल्ली का एक विश्व प्रसिद्ध किला है. इसका निर्माण तोमर राजा अनंगपाल ने 1060 में करवाया था. बाद में पृथ्वीराज चौहान ने इसे फिर से बनवाया और शाहजहां ने इसे तुर्क शैली में ढलवाया था. लाल बलुआ पत्थरों और प्राचीर के कारण इसे लाल किला कहा जाता है. भारत के लिए यह किला ऐतिहासिक महत्व रखता है.

मुगल शासक, शाहजहां ने 11 वर्ष तक आगरा से शासन करने के बाद तय किया कि राजधानी को दिल्‍ली लाया जाए और यहां 1618 में लाल किले की नींव रखी गई. वर्ष 1647 में इसका उद्घाटन हुआ. करीब डेढ़ मील में फैले इस किले के लाहौर और दिल्‍ली गेट दो प्रवेश द्वार हैं.

6. सोनार का किला, राजस्थान

सोनार का किला राजस्थान के जैसलमेर में स्थित है. इस किले की खासियत यह है कि इस पर जैसे ही सुबह सूरज की किरणें पड़ती हैं. यह सोने की तरह दमकता है. इसलिए इसे सोनार का किला कहते हैं. वैसे रेगिस्तान के बीच में स्थित होने से इसे रेगिस्तान का दुर्ग भी कहा जाता है. यह दुनिया के बड़े किलों में से एक है और इसमें चारों ओर 99 गढ़ बने हुए हैं. इनमें से 92 गढ़ों का निर्माण 1633 से 1647 के बीच हुआ था.

जैसलमेर के किले का मुख्य आकर्षण गोपा चौक स्थित किले का पहला प्रवेश द्वार है. यह विशाल और भव्य द्वार पत्थर पर की गई नक्काशी का शानदार नमूना है. दूसरा आकर्षण दुर्ग के अंतिम द्वार हावड़पोल के पास स्थित दशहरा चौक है जो इस दुर्ग का खास दर्शनीय स्थल है. यहां टूरिस्ट खरीददारी कर सकते हैं.

जैसलमेर किले में एक अन्य आकर्षण है राजमहल. यह किले के अंदरूनी हिस्से में बना हुआ है. किसी समय यह महल राजा महाराजाओं के रहने की मुख्य जगह हुआ करती थी. इस वजह से यह दुर्ग का सबसे खूबसूरत हिस्सा भी है.

7. कांगड़ा किला, हिमाचल प्रदेश

यह किला हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में है. इसे कांगड़ा के शाही परिवार ने बनवाया था. यह दुनिया के सबसे पुराने किलों में से एक है और इसे देश के सबसे पुराने किलों में गिना जाता है. इसे नगरकोट या कोट कांगड़ा के नाम से भी जाना जाता है. बाणगंगा और मांझी नदियों के ऊपर स्थित कांगड़ा किला, 500 राजाओं की वंशावली के पूर्वज राजा भूमचंद की ‘त्रिगतरा’ भूमि की राजधानी थी. यह किला धन-संपति के भंडार के लिए इतना प्रसिद्ध था कि मोहम्मद गजनी ने भारत में अपने चौथे अभियान के दौरान पंजाब को हराकर सीधे 1009 ईसवी में कांगड़ा पहुंचा था.

8. गोलकोंडा का किला, हैदराबाद

आंध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद से 11 किलोमीटर की दूरी पर बने इस किले का निर्माण काकतिया शासकों ने करवाया था. इसे भव्यता और सुंदर संरचना के कारण जाना जाता है. आज भी हजारों की संख्या में पर्यटकों का यहां जमावड़ा देखा जा सकता है.

इस दुर्ग का निर्माण वारंगल के राजा ने 14वीं शताब्दी में कराया था. बाद में यह बहमनी राजाओं के हाथ में चला गया और मुहम्मदनगर कहलाने लगा. 1512 ई. में यह कुतुबशाही राजाओं के अधिकार में आया. फिर 1687 ई. में इसे औरंगजेब ने जीत लिया. ग्रेनाइट की एक पहाड़ी पर बने इस किले में कुल आठ दरवाजे हैं. यह पत्थर की तीन मील लंबी मजबूत दीवार से घिरा है. मूसी नदी इसके दक्षिण में बहती है. दुर्ग से लगभग आधा मील दूर उत्तर में कुतबशाही राजाओं के ग्रेनाइट पत्थर के मकबरे हैं जो टूटी-फूटी अवस्था में अब भी मौजूद हैं.

9. सिंधुदुर्ग का किला, महाराष्ट्र

यह किला मुंबई से 400 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र के बीच में बनाया गया था. किले का निर्माण शिवाजी ने 1664 से 1667 के बीच किया था. सिंधुदुर्ग अपनी खूबसूरती की वजह से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है. यह मुंबई के दक्षिण में महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में स्थित है. सिंधुदुर्ग समुद्र के बीच एक छोटे टापू पर बना है.

10. कुम्भलगढ़ का किला, राजस्थान

राजस्थान के राजसमंद में स्तिथ कुम्भलगढ़ फोर्ट का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था. इस फोर्ट की दो खासियत हैं – पहली इस फोर्ट की दीवार विश्व की दूसरी सबसे बड़ी दीवार है जो की 36 किलो मीटर लम्बी है तथा 15 फीट चौड़ी है, इतनी चौड़ी की इस पर एक साथ पांच घोड़े दौड़ सकते है.

दूसरी विशेषता है कि इस दुर्ग के अंदर 360 से ज्यादा मंदिर हैं जिनमे से 300 प्राचीन जैन मंदिर और बाकि हिंदू मंदिर हैं. यह एक अभेध किला है जिसे दुश्मन कभी अपने बल पर नहीं जीत पाया. इस किले की ऊंचे जगहों पर महल, मंदिर और रहने के लिए इमारते बनाई गईं. यहां समतल भूमि का उपयोग कृषि के लिए किया गया वही ढलान वाले भागों का इस्तेमाल जलाशयों के लिए करके इस दुर्ग को पूरी तरह सक्षम बनाया गया.

आंखों को दें स्‍मोकी लुक

पार्टी से लेकर कैजुअल लुक तक स्‍मोकी आई लुक कभी भी अपनाया जा सकता है. मानूसन दस्तक दे चुका है और इसी के साथ मेकअप के नए ट्रेंड और स्टाइल जगह बनाने लगेंगे. ऐसे में ट्रेंडी और ब्यूटीफुल लुक के लिए आप  स्‍मोकी आई मेकअप को ट्राई कर सकती हैं.

जानिए, कैसे करें स्मोकी आई मेकअप…

1. स्‍मोकी आई मेकअप आंखों पर ज्‍यादा समय तक टिका रहें इसके लिए सबसे पहले आंखों पर हल्‍का प्राइमर लगाएं. इसे लगाने के बाद आंखों के ऊपर और आईब्रो तक फैलाएं.

2. स्मोकी आई मेकअप के लिए हमेशा लाइट कलर के आई शैडो बेस को डार्क कलर के साथ लगाएं. इसे ब्रश की सहायता से आंखों के कोनों और नीचे की पलकों के बीच में लगाएं. पलकों पर आईशैडो को लगाने के बाद उसको अच्‍छे से फैलाएं.

3. आंखों को आकर्षक दिखाने के लिए डार्क आई लाइनर पलकों के बीच में लगाएं और नीचे की पलक के लिए आई लाइनर पैंसिल का इस्तेमाल करें. स्मोकी लुक को और बेहतर बनाने के लिए आंखों के किनारे से लाइट स्ट्रोक्स निकालना न भूलें.

4. स्मोकी लुक को फाइनल टच देने के लिए पलकों पर मस्कारा लगाना न भूलें और इसे पलकों पर घुमाव देते हुए लगाएं.

कैल्शियम की कमी को न करें इग्नोर

कैल्शियम हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी है. यह रक्त के थक्के जमने (ब्लड क्लॉटिंग) में भी मदद करता है. यह शरीर के विकास और मसल बनाने में भी सहायक होता है.

हरी सब्जियां, दही, बादाम और पनीर इसके मुख्य स्रोत हैं. हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मानद सचिव डॉ. के.के. अग्रवाल ने बताया कि कैल्शियम की कमी को हायपोकैल्शिमिया भी कहा जाता है. यह तब होता है, जब आपके शरीर को पूरी मात्रा में कैल्शियम नहीं मिलता.

उन्होंने कहा कि लोगों को अच्छी सेहत के लिए कैल्शियम के महत्व के बारे में पता होना चाहिए. जिनके शरीर में कैल्शियम की कमी हो, उन्हें अपने आप दवा नहीं लेनी चाहिए और ज्यादा मात्रा में फूड सप्लीमेंट भी नहीं लेने चाहिए. डॉक्टर से सलाह लें और सेहतमंद खानपान के साथ ही सप्लीमेंट लें.

डॉ. अग्रवाल ने बताया कि उम्र बढ़ने के साथ कैल्शियम की कमी आम बात है. शरीर का ज्यादातर कैल्शियम हड्डियों में संचित होता है. उम्र बढ़ने के साथ हड्डियां पतली और कम सघन हो जाती हैं. ऐसे में शरीर को कैल्शियम की जरूरत पड़ती है. कैल्शियम के स्रोत वाली वस्तुएं खाते रहने से इसकी कमी पूरी की जा सकती है.

उन्होंने कहा कि भूखे रहने और कुपोषण, हार्मोन की गड़बड़ी, प्रिमैच्योर डिलीवरी और मैलएब्जरेब्शन की वजह से भी कैल्शियम की कमी हो सकती है. मैलएब्जरेब्शन उस स्थिति को कहते हैं, जब हमारा शरीर उचित खुराक लेने पर भी विटामिन और मिनरल को सोख नहीं पाता.

कैल्शियम की कमी के कुछ लक्षण

मसल क्रैम्प: शरीर में होमोग्लोबिन की पर्याप्त मात्रा रहने और पानी की उचित मात्रा लेने के बावजूद अगर आप नियमित रूप से मसल क्रैम्प (मांस में खिंचाव या ऐंठन) का सामना कर रहे हैं तो यह कैल्शियम की कमी का संकेत है.

लो बोन डेनस्टिी: जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, कैल्शियम हड्डियों की मिनरलेजाइशन के लिए जरूरी होता है. कैल्शियम की कमी सीधे हमारी हड्डियों की सेहत पर असर करती है और ऑस्टियोपोरोसिस व फ्रैक्चर का खतरा बढ़ सकता है.

कमजोर नाखून: नाखून के मजबूत बने रहने के लिए कैल्शियम की जरूरत होती है, उसकी कमी से वह भुरभुरे और कमजोर हो सकते हैं.

दांत में दर्द: हमारे शरीर का 90 प्रतिशत कैल्शियम दांतों और हड्डियों में जमा होता है उसकी कमी से दातों और हड्डियों का नुकसान हो सकता है.

पीरियड के समय दर्द: कैल्शियम की कमी वाली महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान काफी तीव्र दर्द हो सकता है, क्योंकि मांसपेशियों के काम करने में कैल्शियम अहम भूमिका निभाता है.

एम्युनिटी में कमी: कैल्शियम शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखता है. कैल्शियम की कमी होने पर शरीर में पैथगॉन अटैक से जूझने की क्षमता कम हो जाती है.

नाड़ी की समस्याएं: कैल्शियम की कमी से न्यूरोलॉजिक्ल समस्याएं, जैसे कि सिर पर दबाव की वजह से सीजर और सिरदर्द हो सकता है. कैल्शियम की कमी से डिप्रेशन, इनसोमेनिया, पर्सनैल्टिी में बदलाव और डेम्निशिया भी हो सकता है.

धड़कन: कैल्शियम दिल के बेहतर काम करने के लिए आवश्यक है और कमी होने पर हमारे दिल की धड़कन बढ़ सकती है और बेचैनी हो सकती है. कैल्शियम दिल को रक्त पम्प करने में मदद करता है.

अगर आप इनमें से किसी लक्षण का सामना कर रहे हैं तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें, वह रक्त जांच की सलाह देगा. इसका इलाज कैल्शियम युक्त भोजन खाना और पौष्टिक सप्लीमेंट लेना है.

ऐसे बनाएं टेस्टी कश्‍मीरी चमन

स्वाद की बात को और कश्मीर के खाने की बात न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता हैं. कश्मीर के खाने का नाम लेते ही मुंह में पानी आ जाता है. कश्मीर को स्वर्ग तो माना ही जाता है, लेकिन वहां का स्वाद भी किसी से कम नहीं है. वहां के खाने की खूशबू और स्‍वाद दोनों ही बहुत लाजवाब होता है. आज हम आपको कश्मीर की एक रेसिपी के बारे में बता रहे है. जिसका नाम कश्मीरी चमन है. जानिए इसे बनाने की विधि के बारें में.

सामग्री

1. दो कप पनीर टुकड़ों में कटे हुए

2. एक चम्‍मच गरम मसाला पाउडर

3. आधा चम्‍मच लाल मिर्च पाउडर

4. आधा चम्‍मच अदरक का पेस्‍ट

5.  आधा चम्‍मच धनिया पाउडर

6.  एक चौथाई चम्‍मच हल्‍दी पाउडर

7. एक चम्‍मच कटा हरा धनिया

8.  आधा चम्‍मच जीरा

9. दो चम्‍मच तेल

10. चुटकीभर हींग

11. स्‍वादानुसार नमक

ऐसे बनाएं कश्मीरी चमन

सबसे पहले एक पैन में तेल डालकर गर्म करें. जब ये गर्म हो जाएं तो इसमें पनीर के टुकड़े डालकर सुनहरा भूरा होने तक भून लें. इसके बाद एक बाउल में इन्हें निकाल लें. और इसमें लाल मिर्च पाउडर, अदरक का पेस्‍ट, हींग, धनिया पाउडर, हल्‍दी पाउडर और नमक मिलाकर 10 मिनट के लिए अलग रख दें.

10 मिनट बाद पैन में तेल डालकर उसमें पनीर के टुकड़े और कम से कम 4 कप पानी डालकर अच्छी तरह मिलाएं और गैस की आंच धीमी कर दें. इसे ऐसे ही कम से कम 10 मिनट पकने दें. आपकी कश्मीरी चमन बनकर तैयार हैं. इसे आप सर्विंग बाउल में निकाल लें. इसे गार्निश करने के लिए इसके ऊपर हरा धनिया डालें और सर्व करें.

नैरोबी जहां पर्यटक वन्य जीवों को देखने जाते हैं

मुंबई हवाई अड्डे से केन्या की राजधानी नैरोबी की यात्रा में केवल 7 घंटे लगते हैं. नैरोबी एक सुंदर शहर ही नहीं है, बल्कि इस की कुछ अपनी विशेषताएं भी हैं, जो इसे अन्य नगरों से अलग करती हैं. अफ्रीकी शहरों के बारे में आम धारणा के विपरीत नैरोबी गरम नहीं है. समुद्रतल से लगभग 1,500 मीटर ऊपर स्थित होने के कारण यहां साल भर शिमला या मसूरी जैसा मौसम बना रहता है. यहां तक कि लोगों के घरों में पंखे तक नहीं हैं.

नैरोबी की दूसरी विशेषता यह है कि यहां पर केवल 4 पहिए के वाहन ही दिखते हैं, जो शानदार विदेशी कार के रूप में हैं. उन वाहनों को चलाने वाले या तो अफ्रीकी टैक्सी ड्राइवर होते हैं या फिर भारतीय मूल के नागरिक, जो उन विशाल कारों के स्वयं मालिक भी होते हैं. अपने एक सप्ताह के प्रवास में मुझे एक भी स्कूटर वहां नहीं दिखा.

भारतीय नागरिकों का जहां तक प्रश्न है, तो वहां लगभग हर दूसरी तीसरी दुकान भारतीय या पाकिस्तानी द्वारा संचालित होती है. हिंदी तथा गुजराती तो वहां गली-गली में सुनाई पड़ती है और भारतीय साड़ी, लहंगा आदि वहां एक आम पहनावा है.

वैसे नैरोबी के बारे में थोड़ी बहुत सावधानी बरतने की भी सलाह दी जाती है. इस स्थान पर चोरी, छीनाझपटी, धोखाधड़ी तथा लूट-पाट आदि की अनेक घटनाएं होती रहती हैं. अत: पर्यटकों को अकेले कहीं अनजाने स्थान पर आनेजाने से बचना चाहिए.

नैरोबी की सब से बड़ी विशेषता वहां का राष्ट्रीय पार्क है, जो लगभग नगर के दक्षिण में केवल 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. वास्तव में जब नैरोबी एअरपोर्ट पर विमान उतरता है तो यदि यात्री खिड़की से बाहर देखें तो हो सकता कि उन्हें कोई जिराफ सर उठाए भागता दिख जाए.

मेरी टैक्सी हवाई अड्डे से चल कर जब शहर की ओर आ रही थी तो रास्ते में चौड़ी, साफसुथरी सड़कें और उन के दोनों ओर बनी आधुनिक बहुमंजिली इमारतें, कारखाने और दुकानें आदि दिख रही थीं. किंतु उस समय मुझे सपने में भी यह खयाल नहीं था इन्हीं आधुनिकताओं के पीछे केवल कुछ किलोमीटर की दूरी पर शेरों का झुंड अपना शिकार ढूंढ़ रहा होगा या फिर शुतुरमुर्ग घास चर रहे होंगे. इस का एहसास मुझे तब हुआ जब राष्ट्रीय पार्क के अंदर प्रवेश करने पर आधुनिक नैरोबी की विशाल इमारतें लगभग पार्क के अंदर घुसी सी दिखाई दीं.

केन्या का प्रमुख उद्योग पर्यटन है, जो इन्हीं अनोखे पशुओं पर निर्भर करता है और ये पशु ऐसे हैं जो केवल अफ्रीका में ही पाए जाते हैं. उदाहरण के लिए अफ्रीकी जेब्रा, जिराफ, शुतुरमुर्ग, इंपाला, चीता, शेर, हाथी, गैंडा आदि के नाम गिनाए जा सकते हैं. इन्हें देखने के लिए यूरोप, अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया के पर्यटक टूट से पड़ते हैं.

केन्या के अधिकतर पार्क आशा के विपरीत घने जंगल न हो कर विशाल घास के मैदान (सवाना) हैं, जहां दूरदूर तक एक से डेढ़ मीटर ऊंची घास अथवा झाडि़यां नजर आ जाती हैं. इन में छोटेबड़े पशुपक्षी अपनाअपना निवास बना कर रखते हैं. जेब्रा, जिराफ, शेर (सिंह), गैंडा, दरियाई घोड़ा, जंगली सूअर, शुतुरमुर्ग आदि यहां देखे जा सकते हैं. इस प्रकार केन्या के लगभग किसी भी स्थान से 50-100 किलोमीटर की दूरी पर कोई न कोई राष्ट्रीय पशु उद्यान अवश्य मिल जाएगा जिसे देखने पर्यटक जा सकते हैं. इन पर्यटन स्थलों पर ठहरने व भोजन आदि की सुविधाएं भी हैं.

वैसे नैरोबी में आम पर्यटक के लिए सब से सहज स्थान नैरोबी राष्ट्रीय उद्यान है, जहां वे लगभग 4-5 घंटे के अंदर ही विभिन्न प्रकार के पशुओं से ‘जाम्बों’ (हैलो या स्वागत के लिए स्वाहिली शब्द) कर सकते हैं.

नैरोबी में स्थानस्थान पर सैकड़ों ट्रैवल एजेंसियां हैं जहां इस के लिए टिकट बुक कराया जा सकता है. टूर टिकट के रेट 80-100 अमेरिकी डालर (लगभग 3,500 से 5 हजार रुपए) तक है. इस में पार्क में प्रवेश का शुल्क 40 डालर भी सम्मिलित है.

जब हम ने इस सफारी का टिकट बुक किया तो प्रात: साढ़े 7 बजे एक सुंदर तथा आरामदायक वैन हमारे होटल में आई. इस का ड्राइवर एक मृदुभाषी अफ्रीकी था, जो हमारा गाइड भी था. गाड़ी की छत ऊपर से खुल जाती थी, जिस में खड़े हो कर वन्य जीवों को निकट से देखा जा सकता है.

होटल से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी तय करने पर हमें राष्ट्रीय पार्क का प्रमुख फाटक नजर आया. ड्राइवर ने यहां पर प्रवेश टिकट आदि खरीदा तथा अन्य औपचारिकताएं पूरी कीं और फिर गाड़ी ने राष्ट्रीय पार्क में प्रवेश किया.

सब से पहले तो एक वृक्ष पर बड़ा पक्षी (गिद्ध जैसा) दिखा. गाइड ने बताया कि वह ‘मार्शल ईगल’ है जो छोटे-मोटे, पशु-पक्षियों को अपने पंजों में दबोच कर उड़ जाता है.

आगे बढ़ने पर वृक्ष समाप्त हो गए तथा विशाल घास का मैदान दिखने लगा. एक स्थान पर एक स्मारक दिखा. गाइड ने बताया कि उस स्थान पर हाथीदांत के विशाल भंडार को जला कर नष्ट किया गया था. अनेक विदेशी पर्यटक वहां का फोटो ले रहे थे.

मैदान में दूर-दूर पर छितराए वृक्षों में कुछ वृक्ष सामान्य ऊंचाई से अधिक नजर आ रहे थे. ध्यान से देखने पर मालूम पड़ा कि वे लंबे वृक्ष नहीं, मैदान में गरदन ऊंची किए हुए जिराफ खड़े थे.

फिर तरह-तरह के पशु दिखने लगे. पहले तो एक विशेष प्रकार के हिरण का झुंड घास चरते दिखा जिन का नाम ग्नू था. थोड़ी देर बाद ड्राइवर की लगातार मेहनत के बाद शेर दिखे, उन में 2 मादा तथा 1 नर था. शेरों के बिलकुल निकट हमारी गाड़ी पहुंच गई. आसपास 3-4 और टूरिस्ट गाडि़यां खड़ी थीं, जिन में अनेक विदेशी युवक युवतियां शेरों के फोटो लेते जा रहे थे. शेर आराम से बैठे बीचबीच में दुम तथा कान खड़े कर पास चर रहे हिरणों को देख लेते, फिर बैठ जाते थे. सब लोग इसी इंतजार में थे कि वे उन हिरणों पर आक्रमण करें. पर शायद वे भूखे नहीं थे.

शेरों को छोड़ फिर हम लोग आगे चले. रास्ते में एक मादा जिराफ सड़क पर खड़ी थी. जब हमारी वैन उस के इतना निकट पहुंच गई कि दरवाजा खोल कर उसे अंदर बुला सकें तब वह वहां से हटी. वहां से आगे बढ़ने पर शुतुरमुर्ग दिखे. गाइड ने बताया कि मादाएं मटमैले भूरे रंग की हैं और बीच में जो बड़ा तथा काला सा है वह नर है. उस के आगे जेब्रा का विशाल झुंड दिखा.

इस के बाद तो जेब्रा, जंगली भैंसे, हिरण आदि एक आम दृश्य की तरह दिखने लगे और उन्हीं के बीच कहींकहीं पर हमें कुछ भैंसे भी चरते हुए दिखे. वहां के गाइड ने हमें बताया कि अफ्रीका के 5 बड़े पशुओं में शेर, तेंदुआ, हाथी, गैंडा, भैंसे का नाम आता है. ये सारे पशु मात्र आकार के कारण बड़े नहीं कहलाते हैं बल्कि इसलिए बड़े कहलाते हैं क्योंकि ये अत्यंत खतरनाक होते हैं. और यदि ये किसी के पीछे पड़ जाएं तो उस का बच पाना बहुत मुश्किल होता है. आरंभ के दिनों में जब शिकारी लोग अफ्रीका में शिकार के उद्देश्य से आते थे तो जो शिकारी इन बड़े पशुओं का शिकार कर लेता था उसे बहुत बहादुर माना जाता था. इन 5 बड़े पशुओं में सब से अधिक खतरनाक भैंसे व भैंस होते हैं.

यह जान कर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ. जब मैं ने गाइड को बताया कि भारत में तो इन भैंसों को लोग पालते हैं और उन का दूध भी पीते हैं, तो गाइड ने फौरन टोका कि भारत की पालतू भैंसें वाटर बफैलो हैं. किंतु ये तो किंग बफैलो हैं, जो कभी पालतू नहीं बनाई जा सकती हैं और बहुत ही खतरनाक होती हैं. मौका पड़ने पर ये शेर को भी पछाड़ देती हैं.

रास्ते में एक बनैला सूअर दिखा जिस के 2 बड़ेबड़े दांत बाहर को निकले हुए थे. और आगे चलने पर एक छोटे टीले पर 2 चीते बैठे दिखे. ड्राइवर ने गाड़ी घुमा कर बिलकुल उन के पास ला कर रोकी और बताया कि चीता दुनिया का सब से तेज दौड़ने वाला प्राणी है. हमें देख कर एक विदेशी महिला, जो अपनी गाड़ी अकेले ही चला रही थी, भी पास आ गई और चीतों की फिल्म लेने लगी.

इसी प्रकार चलतेचलते हम पार्क के पूर्वी फाटक के पास से बाहर निकले जो नैरोबी एअरपोर्ट के बिलकुल पास है. हमें पार्क घूमने में लगभग साढ़े 4 घंटे का समय लगा था. दोपहर के भोजन से पूर्व हम होटल वापस आ गए थे.

नैरोबी का यह राष्ट्रीय पार्क नगर के लैंगाटा क्षेत्र में स्थित है जिस का क्षेत्रफल करीब 117 वर्ग किलोमीटर है. यहां पर लगभग 100 जातियों के पशु तथा 400 प्रजातियों के पक्षी देखे जा सकते हैं. पूरे पार्क में 5 प्रवेशद्वार हैं, किंतु मुख्यद्वार लैंगार मार्ग पर स्थित है. पार्क को चारों ओर से तार की बाड़ से घेरा गया है जिस में उच्च शक्ति का विद्युत प्रवाह होता रहता है ताकि पशु बाहर न जा सकें. नैरोबी नगर के अत्यंत निकट होने के कारण यह पार्क पर्यटकों को बहुत भाता है. नैरोबी नेशनल पार्क जहां शेर, जिराफ, चीता आदि जानवरों को देखने विदेशी पर्यटकों का तांता लगा रहता है. नैरोबी नेशनल पार्क में शुतुरमुर्ग, जंगली भैंसे, जेब्रा जिराफ, हाथी आदि जानवरों के झुंड आम देखने को मिलते हैं. शहर के अत्यंत निकट नैरोबी नेशनल पार्क घूमने फिरने के लिए पर्यटकों की पहली पसंद है.

चुनें बेहतर स्वास्थ्य बीमा योजना

जीवन और सामान्य बीमा कंपनियां स्वास्थ्य बीमा योजनाओं की पेशकश करती हैं. संभावित पॉलिसीधारक अक्सर यह नहीं समझ पाते कि स्वास्थ्य पॉलिसी कहां से खरीदी जाए. इसके परिणामस्वरूप जहां कुछ लोग इसे स्वास्थ्य बीमा कंपनी से खरीदते हैं जबकि अन्य लोग जीवन बीमा कंपनी से. इसके अलावा जीवन बीमा एजेंट भी लोगों को स्वास्थ्य योजनाओं के बारे में सलाह देते हैं या फिर उन्हें विभिन्न उत्पादों की पेशकश की जाती है. इस वजह से जरूरत के हिसाब से कई उत्पादों में से उपयुक्त उत्पाद का चयन करना कठिन हो जाता है.

बीमा विश्लेषक पहली बार स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी खरीदने वाले ग्राहकों को सामान्य बीमा कंपनी द्वारा जारी हेल्थ कवर की सलाह देते हैं. बीमा योजनाओं की तुलना से संबंधित आईआरडीए स्वीकृत वेबसाइट माईइंश्योरेंसक्लब डॉटकॉम के मुख्य कार्याधिकारी दीपक योहानन कहते हैं, ‘ग्राहक को सबसे पहले सामान्य बीमा कंपनी के उत्पाद पर ध्यान देना चाहिए और फिर जीवन बीमा कवर पर विचार किया जा सकता है.’

सामान्य और जीवन बीमा कंपनियों के हेल्थ कवर के बीच मुख्य अंतर यह है कि स्वास्थ्य बीमा कंपनियां क्षतिपूर्ति योजनाओं की पेशकश करती हैं, जिसमें अस्पताल में भर्ती होने का खर्च मिल जाता है. वहीं दूसरी तरफ जीवन बीमा कंपनियां मुख्य रूप से स्वास्थ्य योजनाओं के तहत लाभ मुहैया कराती हैं जो किसी खास बीमारी की जांच पर होने वाले खर्च के रूप में दिया जाता है. हालांकि आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस और बजाज आलियांज लाइफ इंश्योरेंस अब क्षतिपूर्ति स्वास्थ्य योजनाओं की भी पेशकश कर रही हैं.

भारती ऐक्सा जनरल इंश्योरेंस के मुख्य कार्याधिकारी अमरनाथ अनंतनारायणन कहते हैं, ‘सामान्य बीमा कंपनियां अस्पताल में भर्ती होने पर आए वास्तविक खर्च का भुगतान करती हैं. तुलनात्मक रूप से जीवन बीमा कंपनियां अस्पताल के खर्च या फिर किसी खास बीमारी की जांच पर होने वाले खर्च पर कुछ निर्धारित रकम का भुगतान करती हैं. परिणामस्वरूप जीवन बीमा कंपनियों के मामले में आप पूरे खर्च की भरपाई नहीं कर सकते हैं. वहीं सामान्य बीमा कंपनी से आपको कैशलेस कवर भी मिल सकता है जबकि जीवन बीमा कंपनियां इसकी पेशकश नहीं करती हैं.’

क्या होगा रोहित शेट्टी के ‘गोलमान 4’ का?

‘दिलवाले’ की असफलता रोहित शेट्टी का पीछा नहीं छोड़ रही है. रोहित शेट्टी जितने दरवाजे खोलने की कोशिश करते हैं, उतने ही बंद होते जाते हैं. उन्होंने कई तरह के समझौते करते हुए अपनी पुरानी सफल फ्रेंचाइजी ‘गोलमाल’ का चौथा सिक्वअल ‘गोलमाल 4’ को अजय देवगन और करीना कपूर के साथ शुरू करने की घोषणा की.

रोहित शेट्टी ने इधर इस फिल्म पर काम शुरू किया, उधर खबर आ गयी कि करीना कपूर गभर्वती हैं. अब तो करीना कपूर ने ऐलान कर दिया है कि वह गोलमाल 4 नहीं कर रही हैं. यूं तो रोहित शेट्टी ने करीना कपूर के हटने के बाद दूसरी हीरोइन की तलाश शुरू कर दी है. वह दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा, आलिया भट्ट से बात कर रहे हैं.

वहीं दूसरी तरफ उन्होंने तमिल की ब्लैक कॉमेडी फिल्म ‘सुधू कावुम’ के राइट्स खरीद कर इसमें कुछ बदलाव के बाद गोलमाल 4 की कहानी को अंतिम रूप देने के बारे में सोचा. लोगों को भी यकीन हो गया कि वह ऐसा कर सकते हैं. क्योंकि इससे पहले उनकी फिल्म ‘गोलमाल 3’ की कहानी भी फिल्म ‘खट्टा मीठा’ से प्रेरित थी. बॉलीवुड में इस खबर के गर्म होने के बाद प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गयी. तमाम लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि रोहित शेट्टी सिर्फ रीमेक ही बना सकते हैं.

मगर अब रोहित शेट्टी ने मीडिया से कहा है, ‘मीडिया में चर्चाएं हैं कि मैं तमिल फिल्म सुधु कावुम को गोलमाल 4 के रूप में बना रहा हूं. यह गलत हैं. हम गोलमाल 4 के लिए मौलिक कहानी लिख रहे हैं. पर यह सच है कि हमने तमिल फिल्म सुधू कावुम के अधिकार खरीदे हैं. गोलमाल 4 का निर्माण करने के बाद हम सुधू कावुम का हिंदी रीमेक बनाएंगे.’

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