Amitabh Bachchan: 82 साल की उम्र में दालचावल और आलू खाकर हैं फिट

Amitabh Bachchan: 82 वर्ष की उम्र में कई बीमारियां होने के बावजूद, बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन इतना फिट और ऊर्जा से भरपूर कैसे हैं? यह बात हर कोई जानना चाहता है कि बिग बी ऐसा क्या खाते हैं? उनकी इस एनर्जी का राज क्या है? राज से पर्दा हटाते हुए अमिताभ बच्चन ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनकी सेहत का राज कोई हेल्थ सप्लीमेंट या डाइट फूड नहीं बल्कि वह खाना हैं जो वे बचपन से खाते आए हैं.

अमित जी के अनुसार, “मैं बहुत ज्यादा फूडी नहीं हूं, सादा खाना ही पसंद है. मैं पूरी तरह से शाकाहारी हूं. मेरा फेवरेट फूड दाल चावल और आलू की सब्जी है, जो मैं कभी भी खाने के लिए तैयार रहता हूं. यह खाना मैंने बचपन से खाया है. दाल चावल और आलू की सब्जी खाने के बाद सिर्फ पेट हीं नहीं भरता, बल्कि आत्मा भी तृप्त हो जाती है.

मुझे रोजमर्रा की जिंदगी में भी ऐसा ही खाना पसंद है जो आराम से डाइजेस्ट हो जाए मजेदार भी हो. अब उम्र हो रही है इसलिए खाने में सावधानी बरतना भी जरूरी हो गया है. मैं खाने के साथ-साथ अपने जिम इंस्ट्रक्टर के साथ हल्की-फुल्की एक्सरसाइज और योग जरूर करता हूं.” सच बात तो ये है कि अगर आप हल्का-फुल्का खाना और योगा अगर नियमित रूप से करते हैं, तो आपका शरीर हमेशा स्वस्थ और तंदुरुस्त रह सकता है.

अमिताभ बच्चन का वर्कआउट रूटीन

अमिताभ बच्चन वर्कआउट रूटीन में जरा भी लापरवाही नहीं बरतते हैं. वह वेट ट्रेनिंग और जॉगिंग जैसी एक्सरसाइज करते हैं.  मेंटल हेल्थ सही रखने के लिए 8 घंटे की प्रॉपर नींद लेते हैं. सुबह जल्दी उठकर वर्कआउट करते हैं. इसके अलावा फिजिकल स्ट्रैंथ मसल ट्रेनिंग के अलावा स्ट्रेस मैनेजमेंट के लिए योग और मेडिटेशन का सहारा लेते हैं. खाने में शक्कर का इस्तेमाल वह बिल्कुल नहीं करते.

सुबह में खाली पेट दो गिलास गुनगुना पानी पीते हैं, एक कप आवले का जूस पीते हैं, वह चाय, कॉफी, सॉफ्ट ड्रिंक बिल्कुल नहीं लेते, बल्कि फ्रेश फ्रूट का जूस और हरी सब्जियों का सूप लेना पसंद करते हैं. अमित जी शराब का सेवन भी नहीं करते और 20 मिनट की वॉक जरूर करते हैं.

अमित जी के अनुसार उनके बाबूजी कहां करते थे, “अगर जीवन में स्वस्थ और खुश रहना है तो सादा जीवन उच्च विचार रखने की कोशिश करो, क्योंकि आपकी अच्छी और पॉजिटिव सोच आपकी जिंदगी को आसान बना देती है. चाहे कितनी ही मुसीबत आ जाए आपकी अच्छी सोच आपको कभी हारने नहीं देती, अपने बाबूजी की यह बात मैंने गांठ बांध ली है. उसी को फॉलो करते हुए मैंने अपनी अब तक की जिंदगी बिताई है और आगे भी अपने बाबूजी की दी हुई शिक्षा को हमेशा फॉलो करुंगा.

Amitabh Bachchan

Wife’s Extramarital Affair: पति, पत्नी के प्रेमी को सहज स्वीकार कर लें

Wife’s Extramarital Affair: पति और पत्नी का रिश्ता एक सामाजिक और कानूनी रूप से मान्य बंधन है, जबकि प्रेमी और प्रेमिका का रिश्ता भावनात्मक और व्यक्तिगत होता है. कई बार ऐसी स्थिति आ जाती है कि पति को पत्नी के प्रेमी को सहज में लेना पड़ता है.

दरअसल, आज पतिपत्नी दोनों कमा रहे हैं. पत्नी सरकारी स्कूल में टीचर है. वहां उस का किसी से अफेयर चल रहा है. पति बेचारा क्या करेगा. बच्चों के लिए साथ रहना भी जरूरी है इसलिए छोड़ भी नहीं पा रहा है. पत्नी कहती है कि तुम मुझे छोड़ना चाहते हो तो छोड़ दो. लेकिन तलाक ले कर तुम करोगे क्या? अब मैं तुम्हारा घर तो संभालती हूं न. तलाक दोगे तो एलिमनी भी देनी पड़ेगी. दूसरा, इस उम्र में अब कोई दोबारा तो तुम से शादी करेगी नहीं. मेरा तो प्रेमी है में उस के साथ घर बसा लूंगी, तुम कहां ढूंढ़ते रहोगे एक पार्टनर. तुम्हारे पास तो घर संभालने वाली औरत भी नहीं बचेगी.

यह स्थिति बिलकुल ऐसी ही है जैसे एक ऐक्सीडेंट में आप का हाथ काट जाए तो आप क्या करते हैं? उसी बौडी के साथ मैनेज करते हैं न. पूरी बौडी को तो नहीं फेक देते. इसी तरह पत्नी की यह बाहर की लाइफ है. आप पत्नी के साथ घर पर एक लाइफ अलग से जिएं. आइए, जानें कैसे जिएं ऐसी जिंदगी :

पत्नी आप की मिल्कियत नहीं

अगर आप को लगता है कि शादी कर के आप ने पत्नी को खरीद लिया है और जिंदगीभर के लिए अब उस पर आप का मालिकाना हक हो गया है तो भूल जाएं। पत्नी की अपनी मरजी है। उसे अगर लगता है कि अब वह आप से प्यार नहीं करती और किसी और के साथ उसे ज्यादा अच्छा लग रहा है, वह ज्यादा सुकून महसूस कर रही है तो आप ऐसे ऐसा न करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते क्योंकि आज की पत्नी आप पर आश्रित नहीं है। वह भी कमा रही है. किसी पर बोझ नहीं है. इसलिए वह जो चाहे कर सकती है.

मुश्किल है पर असंभव नहीं

इस बात को हजम करना वाकई बड़ा मुश्किल है कि अब आप के बच्चों की मां को किसी और से प्यार हो गया है और आप के लिए न उसे छोड़ते बन रहा है और न ही साथ रखते बन रहा है. लेकिन यह फैसला तो लेना ही होगा. पत्नी को देख हर वक्त के गुस्से से कुछ नहीं होने वाला. तलाक लेना ही कौन सा आसान है तो फिर साथ रहने का फैसला कर लिया है तो चीजों को उसी तरह से हैंडल करें. धीरेधीरे आप भी यूज टू हो जाएंगे. वैसे भी गुस्सा पत्नी पर आता है पर अब वह पत्नी कहां रही, अब तो वह केवल आप के बच्चों की मां है. उसे उसी नजर से देखें और बरदाश्त कर लें.

घर टूटने से बच जाएगा

अगर तलाक लिया तो घर टूट जाएगा. पत्नी के हाथ में तो उस का बौयफ्रैंड है. लेकिन आप का हाथ खाली है और तलाक के बाद एक अच्छी पत्नी की तलाश करना बहुत मुश्किल है. पता चला, पूरी जिंदगी अकेले काटनी पङ रही है या फिर कोई इस से भी बेकार पत्नी आ जाए तो जिंदगी बेकार है. बच्चे भी मुश्किल में पङ जाएंगे। इसलिए  ऐसा करने से पहले 100 बार सोचें.

बच्चों के लिए तो गुजारा करना ही पड़ता है

बच्चे अकेले आप के नहीं हैं, पत्नी के भी हैं और अब वह आप से प्यार नहीं करती. ऐसे में अफेयर होने के बाद भी आप के साथ रहने का फैसला करना उस के लिए भी उतना ही मुश्किल है जितना आप के लिए. लेकिन बच्चों के लिए सब करना पड़ता है. इसलिए स्थिति को समझें और साथ बैठ कर इस का कोई हल निकालें।

पत्नी भी समझे अपनी जिम्मेदारियां

पत्नी के प्रेमी को पति स्वीकार कर रहा है और उसे तलाक नहीं दे रहा. यह बहुत बड़ी बात है. जब वह इस रिश्ते को निभा रहा है तो आप को भी तो अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटना चाहिए. घर के काम आप पहले जैसे करती थीं वैसे ही करें. घर को संभालती थीं टाइम से, बच्चों और पति को खाना दे रही थीं, तो अभी भी दें. पति के बीमार होने पर उस की देखभाल भी करें क्योंकि न भूलें कि आप अभी भी उन के घर में रह रही हैं. अपनी किसी जिम्मेदारी से पल्ला न झाड़ें.

अपने रिश्ते के दायरे तय करें

अगर साथ रहने का सोच ही लिया है, तो उसे पहले जैसे ही अपना घर समझ कर रहें. आप को जो करना है घर के बाहर करें. घर में अपने बौयफ्रैंड को बुलाने की इजाजत आप को नहीं है. घर में हर वक्त उस से फोन पर बात करना भी गलत है. घर पर उस का जिक्र करना भी ठीक नहीं है. आप का जो भी रिश्ता है उसे बाहर निभाएं, वह घर तक नहीं आना चाहिए.

इसी तरह अगर पति भी किसी के साथ डेट कर रहा है तो उस का जिक्र भी घर में न करें. इस से बच्चों को इन्सिक्योरिटी होगी कि हमारे मांबाप अपनाअपना सोच रहे हैं, अब हमारा क्या होगा.

लड़ाईझगड़ा किसी समस्या का हल नहीं

जब यह सोच ही लिया है कि साथ रहना है, तलाक नहीं लेना तो हर वक्त एकदूसरे को ताने मारने से कुछ हासिल नहीं होगा. इस के बजाए सोचें कि इस तरह आगे का जीवन आप कैसे चलाने वाले हैं. जिन चीजों को बदल नहीं सकते उन पर अफसोस करना बेकार है. बल्कि बिना झगड़े एकदूसरे को कैसे बरदाश्त किया जाए इस के बारे में सोचें.

बच्चों पर गलत असर न पड़े

आखिर इस तरह इस रिश्ते में रहने का मकसद एक ही है कि बच्चे परेशान न हों. लेकिन अगर रोज आप बच्चों के सामने पत्नी को उस के अफेयर का ताना देंगे या पत्नी आप को बेकार बताएगी तो बच्चे और भी ज्यादा दुखी होंगे और गलत सीखेंगे. इसलिए जो भी बात करनी है घर से बहार जा कर करें या जब बच्चे न हों तब करें. बच्चों के सामने घर के माहौल को बिलकुल सही बनाए रखें, तभी फायदा है.

Wife’s Extramarital Affair

Life After Divorce: बिना बच्चों के जिंदगी समस्या नहीं, जानें ऐक्सपर्ट की राय

Life After Divorce: एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली सिमरन की शादी के केवल 2 साल ही हुए थे कि उसे अपने पति की नशे की आदत और डोमेस्टिक वायलेंस से तंग आ कर डिवोर्स लेना पड़ा. हालांकि यह डिवोर्स म्यूचुअली था, इसलिए 1 साल के अंदर उसे तलाक मिल गया. सिमरन को बच्चा नहीं है, जौब कर रही है और रोजरोज के झगड़े से निकल कर अकेले रहना पसंद कर रही है. परिवार वालों के प्रेशर पर भी वह दूसरी शादी नहीं करना चाहती, क्योंकि वह आत्मनिर्भर है और अपने फ्यूचर का प्लान खुद करना जानती है.

यह तो अच्छा हुआ कि शादी के बाद जब सिमरन ने पति की बुरी आदतों को देखा तो मन में निश्चय कर लिया था कि वह उसे तलाक देगी. इस में इतनी देर होने की वजह बारबार उस के पति का फिर से नशा न करने और मारपीट न करने का कसम खाना रहा.

हर बार उसे लगता था कि वह सुधर जाएगा या सुधरने की कोशिश कर रहा है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उस के व्यवहार में जरा सा भी परिवर्तन सिमरन को नहीं दिखा. सिमरन ने कई बार उस के पेरैंट्स से इस की शिकायत भी की. उन्होंने भी उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह कहां मानने वाला था. थोड़े दिनों तक ठीक रहने के बाद फिर से वही नशा और गालीगलौच करता रहता था. यह अच्छा हुआ कि सिमरन  पति की इन आदतों से डर कर प्रैगनैंट नहीं हुई, जिस से आज वह अपनी उन्मुक्त जिंदगी जी पा रही है.

असल में तलाक के बाद खासकर जब बच्चे न हों, तो जीवन को फिर से शुरू करना कई बार मुश्किल होता है, क्योंकि लोगों के ताने सुन कर खुद को दोषी मान लेना अधिकतर स्त्रियां करती हैं, लेकिन अगर आप आत्मनिर्भर हैं, तो निर्णय लेने में समस्या नहीं होती, जो इस हालात में सब से अधिक जरूरी होता है और आगे बढ़ना मुश्किल नहीं होता. इस में बच्चे की जिम्मेदारी का बोझ सिमरन को नहीं था, जिस से उसे किसी निर्णय पर पहुंचना आसान हुआ. उस के लिए अकेले रह कर तलाक लेना अच्छा साबित हुआ है, जबकि इस में उस के परिवार वालों ने भी उस का साथ दिया.

समझें ऐक्सपर्ट की राय

मनोवैज्ञानिक, राशिदा कपाडिया कहती हैं कि ऐसा कई बार देखा गया है कि तलाक के बाद अकेले जिंदगी गुजरना उन स्त्रियों के लिए भारी पड़ता है, जो आत्मनिर्भर नहीं. आज की लड़कियां और उन के परिवार डिवोर्स को अच्छी तरह से स्वीकार करती हैं, क्योंकि रोजरोज के कौन्फ्लिक्ट्स उन्हें पसंद नहीं.

इस में डिवोर्स के बाद अपने लिए एक नया जीवन जीने के लिए आप को अपनी भावनाओं को काबू करने की जरूरत होती है. साथ ही अपने लक्ष्यों को फिर से परिभाषित करने और अपने जीवन को फिर से व्यवस्थित करने की आवश्यकता होती है. इस में कुछ स्टैप्स निम्न हैं, जिस के द्वारा आप एक अच्छी और स्वस्थ जीवन बीता सकते हैं :

डिवोर्स को करें स्वीकार

पहले तलाक एक दर्दनाक अनुभव माना जाता रहा है, लेकिन आज इस में काफी परिवर्तन आया है, क्योंकि आज कई लड़कियां पढ़ीलिखी और आत्मनिर्भर होती हैं. यही वजह है कि आज डिवोर्स की संख्या लगातार बढ़ रही है, क्योंकि किसी भी गलत बात को वे सहन नहीं करतीं, बल्कि उस से निकल कर एक अच्छी जिंदगी जीना पसंद करती हैं. इस में अपनी भावनाओं को स्वीकार करना और उन्हें प्रोसेस्ड करना महत्त्वपूर्ण होता है, जिस में आप के दोस्त और परिवारजनों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है.

कुछ लड़कियां डिवोर्स को अच्छा नहीं मानतीं जबकि कुछ इसे मानसिक अशांति से नजात पाना समझती हैं. तलाक के बाद खुद को दुखी होने, गुस्सा करने या निराश होने की अब जरूरत नहीं होती.

प्रोफैशनल्स की लें सहायता

किसी दोस्त, परिवार के सदस्य, चिकित्सक या सहायता समूह से बात करना इस दौरान काफी आवश्यक होता है, ताकि आप को अकेलापन महसूस न हो, जिस के साथ अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और उन से निबटने के लिए अच्छी सुझाव मिल सके. इस दौरान किसी प्रकार की काउंसलिंग या थेरैपी कई बार अच्छी साबित होती है.

उन ग्रुप्स में शामिल हों, जिन्होंने डिवोर्स लिया हो और एक अच्छी जिंदगी जी रही हों, इस से आप के अंदर आत्मविश्वास जल्दी आ सकेगा.

बनाएं मजबूत सपोर्ट सिस्टम

डिवोर्स के बाद खुद को घर में बंद न कर लें, बल्कि बाहर निकलें और खुद की जिंदगी को अपनी तरह से जीने की कोशिश करें मसलन दोस्त बनाएं और कहीं घूमने जाएं. इस से आप का सपोर्ट सिस्टम मजबूत बनेगा और आप जब मन चाहे, उन से खुल कर अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकेंगी.

बनें आत्मनिर्भर

डिवोर्स के बाद कई बार लड़कियां आत्मनिर्भर नहीं होतीं. ऐसे में उन्हें अधिक ताने सुनने पड़ते हैं. ऐसी लड़कियों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रयास करना चाहिए. अगर पढ़ाई कम है, तो उसे पूरा करें. वोकेशनल ट्रेनिंग लें और काम पर लग जाएं, इस से आप जल्दी आत्मनिर्भर बन कर अपने फ्यूचर का प्लान कर सकती हैं.

अपनेआप को दें समय

तलाक के बाद नौर्मल होने में समय लगता है. अपनेआप पर कठोर न बनें और अपनेआप को ठीक होने के लिए पर्याप्त समय दें.

करें सेल्फ केयर

फिजिकल और मैंटल हैल्थ पर पूरा ध्यान दें, जिस में हैल्दी फूड, डेली वर्कआउट, मनोरंजन आदि पर ध्यान दें और अपनी नींद पूरी करें. समय मिलने पर खुद की हौबीज को आगे बढ़ाएं, दोस्तों और प्रियजनों के साथ समय बिताएं.

फाइनैंस को करें और्गेनाइज

अपने राइट्स को किसी कानून विशेषज्ञ से मिल कर जान लें. संपत्ति और उस के लाइबिलिटीज के अनुसार बजट की प्लानिंग करें.

रखें हैल्दी बाउंड्री

ऐक्स स्पाउस के साथ साफ और हैल्दी बाउंड्री रखें, ताकि किसी प्रकार की कौंफ्लिक्ट्स या इमोशनल संलिप्तता न हो. साथ ही खुद में आत्मविश्वास रखें, इस से आप इस परिस्थिति से आराम से निकल जाएंगी.

फ्यूचर की करें प्लानिंग

अपने लिए स्मार्ट गोल्स बनाएं, जो वास्तविक हो और आप उस तक पहुंचने में कामयाब हो सकें. किसी भी अवसर या चुनौती को लेने से कभी न घबराएं, तभी आप सफल हो सकती हैं.

इस प्रकार डिवोर्स के बाद अगर बच्चे न हों, तो जिंदगी अकेली नहीं होती. इस में जरूरत होती है खुद को स्मार्ट तरीके से जीने और आगे बढ़ने की, जिस में आप का आत्मविश्वास, आत्मशक्ति और आत्मनिर्भरता ही आप को आगे ले जाने में समर्थ होती है और यह आज की किसी भी नारी के लिए असंभव नहीं है.

Life After Divorce

National Nutrition Week: महिलाओं के जीवन के हर चरण में कैसी हो आहार की भूमिका

Dr. Vinay Purohit, MBBS, MD- Pharmaceutical Physician & Head – Medical Affairs, Bayer Consumer Health, India

(डॉ. विनय पुरोहित, एमबीबीएस, एमडी – फ़ार्मास्यूटिकल फ़िज़ीशियन और हेड– मेडिकल अफेयर्स, बेयर कंज़्यूमर हेल्थ, इंडिया)

National Nutrition Week: किसी गर्भवती महिला को दी जाने वाली यह सलाह अक्सर सुनने को मिलती है कि— “अब तुम्हें दो लोगों के लिए खाना चाहिए !”

गर्भावस्था के दौरान बढ़ी हुई भूख या प्रेग्नेंसी क्रेविंग्स को पूरा करने के लिए आमतौर पर पारंपरिक भोजन की मात्रा बढ़ा दी जाती है. लेकिन असली सवाल यह है कि कितने लोग सच में जानते हैं कि इस समय शरीर को किन पोषक तत्वों की सबसे अधिक ज़रूरत होती है? सच तो यह है कि बहुत कम लोग इसकी सही जानकारी रखते हैं, और कई शोध भी इस बात की पुष्टि करते हैं. भारत में आधे से अधिक गर्भवती महिलाओं में कुछ माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी पाई जाती है. इस स्थिति को ही ‘हिडन हंगर’ यानी छिपी हुई भूख कहा जाता है.

सितंबर में राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जाता है और इस मौके पर यह समझना जरूरी है कि महिलाओं के जीवन में हर पड़ाव पर पोषण की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है.

महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान ही नहीं, पूरी जिंदगी कुछ खास पोषण संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था और महिलाओं की पोषण संबंधी जरूरतों को लेकर कम समझ इसका कारण है. ऐतिहासिक रूप से पोषण को लेकर किए जाने वाले विभिन्न शोध में भी महिलाओं की पोषण संबंधी जरूरतों की अनदेखी कर दी जाती है.  लैंसेट में हाल ही में ‘ग्लोबल एस्टिमेशन ऑफ डायटरी माइक्रोन्यूट्रिएंट इनएडिक्वेसीज: ए मॉडलिंग एनालिसिस’  शीर्षक से प्रकाशित अध्ययन में सामने आया कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को खराब पोषण का सामना करना पड़ता है. साथ ही इसमें महिलाओं में माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी को लेकर डाटा की कमी का उल्लेख भी किया गया.

पूरे जीवन में महिलाएं किशोरावस्था से लेकर मीनोपॉज तक कई तरह के फिजियोलॉजिकल, न्यूरोलॉजिकल और हार्मोनल बदलावों से गुजरती हैं, जिसमें बहुत सोच समझकर न्यूट्रिशनल सपोर्ट की जरूरत होती है.

महिलाओं के जीवन के हर चरण में पोषण संबंधी जरूरतों को समझना:

युवावस्था – जब विकास एवं सपनों को पंख देने के लिए पोषण की जरूरत होती है

किशोरावस्था एक ऐसे कैटरपिलर की तरह है जो अपने ककून में बंद होकर तितली बनने की तैयारी कर रहा हो. इस समय शरीर और मन भीतर ही भीतर खुद को युवावस्था के लिए तैयार कर रहे होते हैं. यौवनारंभ यानी प्यूबर्टी के दौरान कई तरह के शारीरिक, भावनात्मक एवं मानसिक बदलाव होते हैं और इस बदलाव में मदद के लिए पर्याप्त पोषण बहुत जरूरी होता है.  इन बदलावों से शारीरिक तौर पर ही नहीं, बल्कि भावनात्मक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है.

आयरन से भरपूर आहार जैसे पालक, दाल और फोर्टिफाइड अनाज से मासिक धर्म के दौरान होने वाले आयरन लॉस  की भरपाई करने में मदद मिलती है. वहीं, दूध, दही और बादाम जैसे कैल्शियम से भरपूर स्रोत हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए जरूरी हैं.  विटामिन बी से मेटाबॉलिज्म बेहतर होता है और एनर्जी लेवल सही रहता है.  साबुत अनाज, प्रोटीन और फलों से भरपूर बैलेंस्ड डाइट ये युवावस्था में महिलाओं को शरीर मजबूत बनाने और बड़े सपने देखने में मदद मिलती है. अगर आहार में कुछ कमी रह जाए तो मल्टीविटामिन सप्लीमेंट्स से भी इसकी भरपाई की जा सकती है.

मातृत्व – जब आपको दो लोगों के लिए पोषण की जरूरत होती है

मातृत्व जीवन का एक ऐसा पड़ाव है जहां मां और बच्चे, दोनों की सेहत के लिए अतिरिक्त पोषण की जरूरत होती है. हालांकि पीढ़ियों से बनी धारणा और जानकारी की कमी के कारण अक्सर ऐसा हो नहीं पाता है.

जागरूकता की इस कमी के कारण कई तरह की जटिलताएं आ सकती हैं. गर्भावस्था के दौरान एनीमिया सबसे आम समस्या है, जिससे प्रसव के समय मुश्किल आ सकती है.8 गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त पोषण से स्वस्थ रहने और प्रसव के बाद जल्दी रिकवर होने में मदद मिलती है. आयरन से भरपूर आहार लेने से गर्भ में पल रहे शिशु के विकास में मदद मिलती है, साथ ही मां के शरीर में रेड ब्लड सेल्स की सप्लाई बेहतर होती है.9 फोलिक एसिड भी एक महत्वपूर्ण सप्लीमेंट है, जो गर्भ में पल रहे शिशु के विकास में मदद करता है.  हालांकि इस दौरान सिर्फ आयरन और फोलिक एसिड ही नहीं, बल्कि विटामिन बी12, विटामिन बी6, जिंक और कॉपर जैसे कई अन्य माइक्रोन्यूट्रिएंट्स को भी आहार में शामिल करना चाहिए. विटामिन बी12  और बी6  से मां को जी मचलाने जैसी की समस्या से राहत मिलती है और बच्चे में न्यूरोजेनेसिस और साइनेप्टिक कनेक्टिविटी बनाने में मदद मिलती है. वहीं, जिंक और कॉपर बच्चे के मस्तिष्क के विकास के लिए जरूरी हैं और इनसे गर्भावस्था से जुड़े अन्य खतरे भी कम होते हैं.

कैल्शियम, विटामिन डी और मैग्नीशियम भी मां और बच्चे दोनों के विकास में मदद करते हुए गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य सही रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.  कैल्शियम बच्चे की हड्डियों एवं दांतों के विकास के लिए बहुत जरूरी है, वहीं विटामिन डी से शरीर में कैल्शियम का अवशोषण सही होता है और इम्यून मजबूत होता है.  मैग्नीशियम से मांसपेशियों को आराम मिलता है, ऐंठन की समस्या और समयपूर्व प्रसव का खतरा कम होता है. यह ब्लड प्रेशर को नियमित करने में भी मदद करता है.  ये न्यूट्रिएंट्स गर्भावस्था के दौरान होने वाली हाई बीपी की समस्या, जन्म के समय बच्चे का कम वजन और कमजोर विकास जैसी परेशानियों को कम करने में मदद करते हैं. इसलिए गर्भावस्था के दौरान इनके सप्लीमेंट को अपने आहार का हिस्सा बनाना चाहिए. विशेष रूप से ऐसे लोगों को, जिनके लिए डायटरी इनटेक अपर्याप्त है.  वैसे तो कैल्शियम, विटामिन डी और मैग्नीशियम पूरी गर्भावस्था के दौरान महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन दूसरी और तीसरी तिमाही के दौरान इनकी जरूरत सबसे ज्यादा रहती है.

गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद महिलाओं को संतुलित आहार लेना चाहिए, जिसमें पर्याप्त न्यूट्रिएंट्स हों. उन्हें अपने आहार में फलियों को शामिल करना चाहिए. हेल्दी फैट (नट्स एवं फिश से मिलने वाले ओमेगा-3 फैटी एसिड्स) भी जरूरी हैं. साथ ही ज्यादा चीनी एवं सैचुरेटेड फैट वाले प्रोसेस्ड फूड से बचना चाहिए.

दूध और दही कैल्शियम के बेहतरीन स्रोत हैं. इनसे हड्डियों के विकास में मदद मिलती है और मां का भी बोन लॉस नहीं होता है. विटामिन डी के लिए सैलमन जैसी फैटी फिश और फोर्टिफाइड मिल्क को आहार में शामिल कर सकते हैं. विटामिन डी से शरीर में कैल्शियम का अवशोषण बढ़ता है और इम्यून फंक्शन बेहतर होता है.  पालक, कद्दू के बीज और साबुत अनाज से मैग्नीशियम मिलता है.

मीनोपॉज और उसके बाद – फिर से मजबूती पाने के लिए होती है पोषण की जरूरत

महिलाओं में आमतौर पर 45 से 50 साल की उम्र के आसपास मीनोपॉज होता है. कुछ महिलाओं में यह पहले भी हो सकता है. इस दौरान कई तरह की मुश्किलें हो सकती है. अध्ययन बताते हैं कि 75 से 80 प्रतिशत महिलाओं में इस दौरान वैसोमोटर लक्षण, जैसे हॉट फ्लैश और रात में पसीना आना आदि दिखते हैं.  इनसे मानसिक स्वास्थ्य, भूख और नींद की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

हड्डियों को मजबूत बनाए रखने और हार्मोनल बदलाव के दौरान स्वास्थ्य को सही रखने के लिए कैल्शियम , विटामिन डी  और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर आहार की जरूरत होती है. इससे मीनोपॉज से जुड़ी कुछ परेशनियों को कम करने में मदद मिलती है. इसके अतिरिक्त, अपर्याप्त डाइट के कारण होने वाली कमी को सप्लीमेंट्स की मदद से पूरा करना भी महत्वपूर्ण है.

महिलाओं को जीवन के हर पड़ाव पर पर्याप्त पोषण की जरूरत होती है. पोषण से भरपूर आहार और उसके साथ जरूरी सप्लीमेंट्स को बढ़ावा देने की जरूरत है, जिससे न्यूट्रिएंट्स का संतुलन बने और सही पोषण सुनिश्चित हो. आहार से जुड़ी इन जरूरतों को जानने और समझने से महिलाओं में होने वाली पोषण संबंधी कमियों को दूर करने में मदद मिलेगी, जिनकी अक्सर अनदेखी हो जाती है. साथ मिलकर हम स्वास्थ्य एवं कल्याण को लेकर ज्यादा व्यापक दृष्टिकोण अपना सकते हैं.

National Nutrition Week

Drama Story: यादों के नश्तर- क्या मां से दूर हो पाई सियोना

Drama Story: सियोना का मोबाइल काफी देर से बज रहा था. वह  जानबूझ कर अपनी मां के फोन को इग्नोर कर रही थी. बारबार फोन कटता और फिर से उस की मां उसे कौल करतीं. लेकिन शायद वह फैसला कर चुकी थी कि आज फोन नहीं उठाएगी. मगर उस की मां थीं कि बारबार फोन मिलाए जा रही थीं. हार कर उस ने मोबाइल बंद कर दिया और लैपटौप औन कर अपने ब्लौग पर कुछ नया टाइप करने लगी.

डायरी से शुरू हुआ सफर अब ब्लौग का रूप ले चुका था. अपने फैंस के कमैंट पढ़ कर सियोना एक पल को मुसकरा उठती पर दूसरे ही पल उस की आंखें नम भी हो जातीं.

ऐसा आज पहली बार नहीं हुआ था. सियोना अकसर अपनी मां का फोन आते देख विचलित हो उठती. उस के मन में गुस्से का ज्वार अपने चरम पर होता और वह मां का फोन इग्नोर कर देती. यदि कभी फोन उठाती भी तो नपेतुले शब्दों में बात करती और फिर मैं बिजी हूं कह कर फोन काट देती.

सियोना की मां एकाकी जीवन जी रही थीं. पिताजी तो अपने दफ्तर के काम में अति व्यस्त रहते. कभीकभार अपनी बेटी के लिए समय निकाल कर उस से बात करते या यों कहें कि अपनी बेटी के बारे में जानकारी लेते.

सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाली सियोना चेहरे से आकर्षक, बोलने में बहुत सभ्य थी, लेकिन उस के व्यवहार में कुछ कमियां उसे दूसरों से कमतर ही रखतीं. न तो वह किसी से खुल कर बात कर पाती और न ही किसी को अपने करीब आने देती. अपनेआप को खुद में समेटे बहुत अकेली सी थी. बस ब्लौग ही उस का एकमात्र सहारा था जहां वह अपने दर्द को शब्दों में ढाल देती.

आज सुबह जब सियोना उठी तो व्हाट्सऐप पर मां का मैसेज था कि सियोना तुम्हें कितने फोन किए. उठाती क्यों नहीं? फिर फोन बंद आने लगा… क्या बात है बेटी?

संदेश पढ़ कर उस के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई. फिर धीरे से

बुदबुदाई कि अब तुम्हें मेरी याद सताने लगी मां जब मैं ने खुद को अपने अंदर समेट लिया है.

तभी उस के पिताजी का फोन आया. बोली, ‘‘जी पापा, कहिए कैसे हैं?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं बेटी पर तुम्हारी मां बहुत परेशान हो रही है… तुम से बात करना चाहती है. कहती है कि तुम फोन नहीं उठा रही सो मैं ने अपने फोन से तुम्हारा नंबर डायल कर के देखा… लो अपनी मां से बात कर लो.’’

मजबूरन सियोना को मां से बात करनी पड़ी, ‘‘हां, बोलो मां क्या बात है? कहो किसलिए फोन कर रही थीं?’’

‘‘किसलिए? क्या मैं अपनी बेटी को बिना कारण फोन नहीं कर सकती?’’

सियोना को अपनी मां द्वारा उस पर हक जताने पर उलझन सी महसूस होने लगी थी. मन का कसैलापन उस के चेहरे पर साफ दिखने लगा था. उस के नथुने फूल गए थे और आंखों से अंगारे बरस रहे थे. कुछ सोच कर बोली, ‘‘क्या बात है आज कहीं बाहर जाने को नहीं मिला क्या? वह तुम्हारा सत्संग गु्रप क्या बंद है आजकल?’’

‘‘हां, वह तो धीरेधीरे छूट ही गया. घुटने में दर्द जो हो रहा है… अब कहां बाहर आनाजाना होता है… सारा दिन घर में अकेली पड़ी रहती हूं… अपने पापा को तो तू जानती ही है. पहले तो अपने दफ्तर के काम में व्यस्त रहते हैं और फिर उस के बाद अपनी किताबों में आंखें गड़ाए रहते हैं.’’

‘‘अच्छा अब और कुछ कहना है? मुझे दफ्तर जाने को देर हो रही है. नईर् नौकरी है न बहुत सोच कर चलना पड़ता है,’’ सियोना बोली.

‘‘कहां बेटी तू दूसरे शहर चली गई… यहीं रहती हमारे पास तो अच्छा रहता… इतना बड़ा घर काटने को दौड़ता है… कामवाली सफाई कर देती है, कुक 3 समय का खाना एकसाथ ही नाश्ते के समय बना देती है. ठंडा खाना फ्रिज से निकाल कर माइक्रोवैव में गरम करती हूं, न कोई स्वाद न कोईर् नई रैसिपी. बस वही एक ही तरह की दाल रोज बना देती है. तड़के में प्याज नहीं डालती. बस दाल के साथ उबाल देती है. ऐसा लगता है अब जीवन यहीं समाप्त हो गया है… तू रहती तो कम से कम कामवाली से काम तो करवा लेती.’’

‘‘हां मां समझती हूं तुम्हें बेटी नहीं, अभी भी एक टाइमपास और जरूरत पूरा करने वाला जिन्न चाहिए जो जैसा तुम कहो करे, जहां तुम कहो तुम्हें ले जाए और जब तुम चाहो तुम्हारे सामने मुंह खोले,’’ कहतेकहते उस की आंखें नम हो आईं और फिर उस ने फोन काट दिया.

दफ्तर पहुंच अपने काम में जुट गई. हां, दफ्तर में उस के बौस उस से हमेशा खुश रहते. काम की कीड़ा जो है वह… जब तक पूरा न कर ले चैन की सांस नहीं लेती. कई बार तो टी ब्रेक और लंच टाइम में भी अपने लैपटौप में घुसी रहती है. आज भी उस की नजरें तो लैपटौप में ही गड़ी थीं, लेकिन दिमाग पुरानी स्मृतियों में खोया था. हर वाकेआ उस की निगाहों के आगे ऐसे तैर रहा था जैसे अभी की बात हो… कहां भूल पाती है वह एक पल को भी हर उलाहने, हर बेइज्जती को…

जब सियोना मात्र 10 साल की थी तो एक सहेली के जन्मदिन की पार्टी में गई. सब सहेलियां सजधज कर पहुंचीं. स्कूल में 2 चोटियां करने वाली सारा ने आज बाल धो कर खोले हुए थे. सभी कह रहे थे कि तुम्हारे बाल कितने सिल्की और शाइनी हैं… बिलकुल स्ट्रेट, सामने से कटी फ्रिज कितनी सुंदर लग रही है. ऊपर से तुम्हारा गुलाबी फ्रौक, तुम बेबी लग रही हो. सब के साथ सियोना को भी यही एहसास हुआ था. किंतु वह स्वयं तो अपने कपड़ों के बटन भी ठीक से नहीं लगा पाई थी.

क्या करती मां तो घर पर थीं नहीं… हर संडे उन का किसी न किसी के घर भजनसत्संग जो होता है… और बाल तो उस ने भी सुबह धोए थे. लंबे बाल शाम तक उलझ गए थे, जिन्हें ठीक करना उसे नहीं आता था. सो वह एक रबड़बैंड बांध कर ऐसे ही पार्टी में आ गई थी. आज उसे पहली बार अपनी मां की अनदेखी का एहसास हुआ था और शर्मिंदगी भी.

जिस लड़की के जन्मदिन की पार्टी थी उस की मां ने पार्टी में थोड़ा खाना भी हाथ से बनाया था, केक भी स्वयं बेक किया था. केक इतना स्वादिष्ठ था कि देखते ही सभी उस पर जैसे लपक पड़े थे. उस की मां के हाथ के बनाए खाने की भी सब तारीफ कर रहे थे और केक से तो जैसे मन ही नहीं भर रहा था.

सियोना को अपने जन्मदिन की याद हो आई जब उस की मां ने सारी सहेलियों को बुला कर बाजार से लाया केक काटा और बाजार के बौक्स में पैक्ड खाना सब को हाथ में दिया और कहा घर जा कर खा लेना. इस बात को पहले तो वह समझ नहीं थी, किंतु अब उसे एहसास हुआ था कि उस की सहेली की मां ने कितने शौक से अपनी बेटी के जन्मदिन की तैयारी की थी. वह स्वयं भी उस की मां के बनाए खाने को खा कर उंगलियां चाटती रह गई थी और फिर पार्टी के अंत में अपनी सहेली की मां से बोली, ‘‘आंटी, क्या मैं घर के लिए भी खाना ले जा सकती हूं?’’

वह मासूम नहीं समझती थी कि यह समाज की नजर में एक व्यावहारिक दोष है, पेटभर खाना खाने के बाद भी वह मांग रही है. उस की सहेली की मां ने उसे घर के लिए खाना तो दिया, किंतु अगले दिन उस की सहेलियां उस की खिल्ली उड़ा रही थीं कि यह खाना मांग कर ले जाती है और वह जवाब में कुछ न बोल पाई. बस मन मसोस कर रह गई. कैसे बताती वह सब को कि उस के घर में तो कुक ही खाना बनाती है. सो वह स्वादिष्ठ खाने को देख अपनेआप को रोक न पाई.

उस की मां तो सहेलियों के साथ कभी इस तीर्थ पर जातीं, तो कभी उस तीर्थ पर. कभी उस पंडे की कथा सुनने 10 दिनों तक बनठन कर जाने का समय हमेशा रहता था जहां नाचना और भरपूर खाना होता था पर बेटी के लिए समय नहीं होता.

4-5 दिन पहले ही फिर उस की मां का फोन आया. उस ने न चाहते हुए भी फोन उठाया, क्योंकि वह जानती थी कि यदि उस ने मां से बात न की तो पिताजी जरूर फोन करेंगे.

फोन उठाते ही मां कहने लगीं, ‘‘मन नहीं लगता सारा दिन घर में पड़ेपड़े.’’

‘‘क्यों मां तुम्हारे पास तो स्मार्ट फोन है… अपनी सहेलियों से वीडियो कौल कर लिया करो… तुम्हें उन के दर्शन हो जाएंगे और उन्हें तुम्हारे या कभी उन्हें घर ही बुला लिया करो… अब तुम तो चलफिर नहीं सकतीं.’’

‘‘किसे कर लूं फोन? सब की सब अपने परिवारों में मस्त हैं. किसी के बेटीदामाद अमेरिका से आए हैं, तो कोई अपने पोते से मिलने बेटे के घर गई है. जो थोड़ी जवान औरतें हैं वे अपने बच्चों में व्यस्त हैं. किसी को फुरसत नहीं मेरे लिए… तेरे पापा भी अब तो दूरदूर रहते हैं. कुछ बोलती हूं तो कहते हैं भजन लगा देता हूं म्यूजिक सिस्टम में या फिर टीवी देख लो… कोई पास बैठ कर बात नहीं करना चाहता.’’

‘‘अच्छा मां मैं फोन रखती हूं हमारे बौस का तबादला दूसरे शहर में हो रहा है. सभी को मिल कर उन की फेयरवैल पार्टी की तैयारी करनी है,’’ कह उस ने फोन काट दिया और अपने बौस के लिए गिफ्ट लेने बाजार निकल गई.

रिकशे में बैठेबैठे उसे फिर अपने अतीत का एक नश्तर चुभ गया… जब वह 12 साल की थी. उस की एक सहेली के पिताजी का तबादला हुआ था और वह सपरिवार पुणे जा रही थी. सभी सहेलियों को मिल कर उस के लिए स्नैक्स लाने थे. उस सहेली को जो गिफ्ट देना चाहे वह गिफ्ट भी ले जा सकती थी.

शाम 5 बजे का समय तय कर सभी लौन में पहुंचने वाले थे कि अचानक मौसम बदला और बारिश आ गई. एक सहेली की मां ने सलाह दी कि उस के घर में पार्टी कर लो वरना तुम्हारा सारा मजा किरकिरा हो जाएगा. सारी सहेलियां उस के घर पहुंच अपनाअपना स्नैक्स एकदूसरे को दिखा रही थीं. जब सियोना की सहेली ने उस से पूछा कि तुम क्या लाई हो तो उस का जवाब था, ‘‘मेरे घर में कुछ था ही नहीं तो मैं क्या लाती?’’

तभी दूसरी सहेली आई और बोली, ‘‘मैं बाहर सुपर मार्केट से कुछ स्नैक्स ले कर आती हूं. सियोना तुम भी सुपर मार्केट से ले आओ स्नैक्स.’’

सियोना ने मां से फोन पर बात की तो मां ने कहा, ‘‘बिस्कुट रखे हैं घर में ले जाओ.’’

‘‘मां, जब घर में कुछ था तो मुझे खाली हाथ क्यों भेज दिया तुम ने? क्यों किसी न किसी तरह मुझे दूसरों के सामने नीचा दिखाती हो मां,’’ और गिफ्ट तो कुछ ले कर ही नहीं गई थी वह अपनी सहेली के लिए. जब फेयरवैल पार्टी कर सब ने उसे गिफ्ट दिया तो वह खाली हाथ थी. बस सब को गिफ्ट देते देखती रही.

सियोना की समझ में नहीं आता कि आखिर ऐसा क्यों करती थीं मां. वे गरीब तो नहीं थे… पिताजी की अच्छी आमदनी थी. घर में कुक और कामवाली तो तब भी आती थीं. मां स्वयं सोशल सर्किल मैंटेन करती थीं, लेकिन उस के बारे में कभी क्यों न सोचा? न जाने उस के रहनसहन और मूर्खताभरे व्यवहार के चलते लोग उस के बारे में क्या बातें बनाते होंगे… कभीकभी तो ऐसा लगता जैसे सारी सहेलियां उसे इग्नोर करने लगी हैं… सब एकसाथ खेलतीं पर कई बार उसे बताया भी न जाता कि सब किस के घर खेलेंगी. वह सब को इंटरकौम करती तब कहीं जा कर उसे कुछ मालूम होता.

अगली सुबह 6 बजे ही मां का फोन आया. सियोना ने नींद से जाग कर देखा और फिर से चादर ओढ़ कर सो गई. फिर जब वह जागी तो देखा मां का मैसेज था कि बेटी, मैं तुम से मिलने आ रही हूं. तुम्हारे पिताजी को बोला है कि मुझे सियोना के पास छोड़ आओ… कुछ दिन तुम्हारे साथ रहूंगी तो जी बहल जाएगा.

अब तो सियोना का गुस्सा 7वें आसमान पर था कि मां तुम मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़तीं… वह बड़बड़ाते हुए नहाधो कर दफ्तर पहुंची. लैपटौप औन किया और काम में लग गई. किंतु आज कहां काम में मन लगने वाला था. दिमाग में तो जैसे कोई हथौड़े मार रहा था. उस का सिर चकराने लगा था. उस ने बैग से सिरदर्द की दवा निकाली और पानी के साथ गटक ली.

अब मां को आने को तो मना नहीं कर सकती. कुछ दिन बाद मां उस के घर आ पहुंची थी. मां के आते ही उस का रूटीन बिगड़ गया. सियोना उन्हें समय पर नाश्ताखाना दे देती, किंतु बात कम ही करती. उस की मां उस के आगेपीछे घूमतीं तो वह कह देती, ‘‘मां क्यों हर वक्त मुझे डिस्टर्ब करती हो… लेट कर आराम करो वरना तुम्हारे घुटने का दर्द बढ़ जाएगा.’’

जैसे ही वह दफ्तर से आती उस की मां चाय की रट लगा देतीं. जब तक वह हाथमुंह धो कर आती तब तक तो उस की मां का स्वर तेज हो चुका होता, ‘‘अरे, पूरा दिन अकेली पड़ी रहती हूं बेटी… अब तो तू चाय बना कर मेरे पास आ जा 2 घड़ी के लिए.’’

‘‘मां तुम भी न बस क्या कहूं… तुम्हें तो चौबीसों घंटे की नौकरानी चाहिए… मुझ से कोई लेनादेना नहीं तुम्हें.’’

‘‘कैसी बातें करती है तू… भला मां को चाय बना कर देने से कोई

नौकरानी हो जाती है… तुम्हें पालपोस कर बड़ा किया है मैं ने तो क्या इतना भी हक नहीं कि तुम से चाय बनवा लूं?’’

‘‘हूं… तो मुझे हिसाब चुकता करना है तुम्हारा… तुम ने मुझे पैदा किया, लेकिन सही परवरिश नहीं दी मां.’’

‘‘अरे, कैसी बातें करती हो… सारा दिन अकेले पड़ेपड़े मेरी पीठ थक जाती है… जरा कुछ बोलती हूं तो तू काटने को दौड़ती है.’’

‘‘तो मां बाहर खुली जगह में थोड़ा टहल आया करो.’’

अगले दिन जब सियोना दफ्तर से आई तो टेबल पर चाय के कप लुढ़के पड़े थे. रसोई में स्लैब पर चायपत्ती व चीनी बिखरी थी और चींटियां घूम रही थीं. बिस्कुट का डब्बा भी खुला पड़ा था.

सियोना रसोई से ही चीखी, ‘‘मां, आज घर में कोई आया था क्या मेरे पीछे से?’’

‘‘चीखती क्यों है, यहीं बाहर एक सहेली बनी थी कल… मैं ने उसे आज घर बुला लिया. सारा दिन घर पर पड़े बोर होती हूं. तु?ो तो मेरे लिए फुरसत नहीं. किसी से थोड़ा बोलचाल लूं तो मन हलका हो जाता है.’’

‘‘मां अपना बोलनाचालना बाहर तक ही सीमित रखो. रसोई का कितना बुरा हाल किया है… घर में मिट्टी ही मिट्टी हो रही है. सहेली से बोल देतीं कि चप्पलें बाहर ही खोले.’’

‘‘उफ, तुम्हारे घर क्या आई तू तो बड़ा एहसान दिखा रही है मुझ पर जैसे मैं तो तेरी कुछ लगती ही नहीं… क्या तुम्हारी पहचान के लोग नहीं आते घर पर?’’

‘‘नहीं आते मां, मुझे आदत नहीं किसी को घर बुलाने की. तुम ने क्या कभी मुझे अपनी सहेलियों को घर बुलाने दिया था? तुम हमेशा कह देतीं कि घर गंदा हो जाता है जब तुम्हारी सहेलियां आती हैं. सारा सामान इधरउधर कर देती हैं. बारिश और गरमियों के दिनों में मैं अकेली घर पर पड़ी रहती थी. तुम तो सत्संग और मंदिरों के फेरे लगाने में व्यस्त रहीं और मैं सदा घर पर अकेली. बाहर तुम नहीं निकलने देतीं और यदि किसी को बुलाना चाहती तो तुम सदा ही टोक दिया करतीं.’’

‘‘हद हो गई… कब की बातें मन में लिए बैठी है… मुझे तो ये सब याद भी नहीं.’’

‘‘पर मैं भूलने वाली नहीं मां. तुम्हारा दिया हर दंश अच्छी तरह याद है मुझे. न भरने वाले नासूर दिए हैं तुम ने मुझे.’’

तभी पिताजी का फोन आया तो बोली, ‘‘पापा, मां का वापसी का टिकट बुक करा दीजिए… मां यहां बोर हो रही हैं… मुझे तो समय नहीं मिलता…’’

‘‘हां बेटी, मैं स्वयं ही आ कर ले जाता हूं. मैं तो पहले ही जानता था कि वह तुम से ज्यादा दिन नहीं निभा पाएगी.’’

‘‘जातेजाते मां ने भरे मन से सियोना से कह दिया, ‘‘अब मैं तभी आऊंगी जब तू बुलाएगी.

‘‘अलविदा मां, मैं तुम्हें कभी नहीं बुलाऊंगी. तुम से पीछा छुड़ाने के लिए ही मैं ने नौकरी के लिए दूसरा शहर चुना पर तुम तो यहां भी मुझे चैन से नहीं रहने देती,’’ उस के नथुने फूले हुए थे और मन ही मन सोच रही थी कि हो सका तो किसी दूसरे देश में नौकरी ढूंढ़ेगी मां ताकि तुम से छुटकारा मिल सके. तुम्हारे दिए घाव न जाने क्यों भरते ही नहीं मां. काश, तुम मुझे जन्म ही न देतीं और फिर भरे मन से दफ्तर रवाना हो गई.

आज लैपटौप खोलते ही सब से पहले उस ने मां को फेसबुक पर ब्लौक किया. उस के बाद फोन उठाया और व्हाट्सऐप पर भी ब्लौक कर दिया… एक गहरी सांस ले कर काम में जुट गई.

Drama Story

Suspense Story: गिरह- कौनसा हादसा हुआ था शेखर और रत्ना के साथ

लेखिका- प्रेमलता यदु

Suspense Story: धीमी आवाज ‌में बज रहा‌ इंस्ट्रुमैंटल सौंग और मद्धिममद्धिम जलती हाल की रोशनी में रत्ना‌ अपने घर के सोफे पर लगभग लेटी हुई, धुआं उड़ाती बीचबीच में व्हिस्की के घूंट लिए जा रही है. हर घूंट के साथ उसे अपने और शेखर के रिश्ते के बीच आई शोभना का खिलखिलाता, दमकता चेहरा जोरजोर से उस पर हंसता हुआ दिखाई दे रहा है. वह उस चेहरे को नोच लेना‌ चाहती‌ है, क्योंकि उसी चेहरे की वजह से ही उस का सबकुछ बरबाद हो गया. शेखर उस से‌ सदा के लिए दूर चला गया.

रत्ना ने घबरा कर अपनी आंखें मूंद लीं और दोनों हाथों से अपने कान बंद कर लिए ताकि वो शोभना को‌ देख, सुन न सकें. लेकिन ऐसा मुमकिन न था क्योंकि यह मायाजाल ‌रत्ना‌ ने खुद ही बुना था. रत्ना गुस्से और घबराहट में गिलास में रखी व्हिस्की एक ही घूंट में पी गई और लड़खड़ाते कदमों व कंपकंपाते हाथों से दूसरा पैक बनाने लगी. ‌दोबारा पैक‌ बना कर म्यूजिक सिस्टम का वौल्यूम थोड़ा बढ़ा वह‌ फिर सोफे ‌पर‌ पसर गई.

रत्ना ने सोचा भी न था कि हालात‌ इतने बिगड़ जाएंगे और उसे कभी ऐसा कदम भी उठाना पड़ेगा, पर न जाने कैसे हालात बनते चले गए और वह गिरह में फंसती चली गई.

आज भी उसे याद है वह दिन जब उसे पहली बार शोभना और शेखर के रिश्ते के बारे में पता चला था. वह बहुत रोई‌ थी. वही ‌दिन था जिस दिन से शेखर और उस के झगड़े की शुरुआत हुई. उस के बाद से तो जैसे शेखर और उस के बीच कभी कुछ सामान्य रहा ही नहीं. ‌एक ही छत में दोनों अजनबियों की तरह दिन गुजारने लगे. उन्हीं हालात के बीच रत्ना की मुलाकात रोहित से हुई जो फिटनैस सैंटर का नया ट्रेनर था.‌ रोहित से रत्ना की पहली मुलाकात फिटनैस सैंटर के चेंजिंगरूम के बाहर हुई थी.

“हाय ब्यूटीफूल,” रोहित का इस प्रकार रत्ना‌ से कहना उसे अजीब पर अच्छा भी लगा. रत्ना रोहित को झिड़क देना चाहती थी लेकिन अरसे बाद किसी पुरुष की आंखों में स्वयं के लिए आकर्षण देख वह चुप रही और वहां से मुसकरा कर चली गई.

धीरेधीरे रत्ना और रोहित के बीच दोस्ती हो गई. और फिर वे फिटनैस सैंटर से बाहर ‌भी मिलने लगे, साथ समय बिताने लगे. रत्ना की उम्र करीब 45 वर्ष है जबकि रोहित रत्ना से लगभग 10-15 साल छोटा. रोहित में वो सारी बातें हैं जो रत्ना शेखर में तलाशती आई है. हर बात पर रत्ना की तारीफ करना, उसे खूबसूरत होने का एहसास दिलाना, जो हर स्त्री‌ को पसंद ‌है, और सब से बड़ी बात जो रोहित में है वह रत्ना की हर छोटीबड़ी खुशी का ख़याल रखना. ये सारी बातें रत्ना को दिनप्रतिदिन रोहित के करीब ले जा रही थीं.

रोहित भी रत्ना को पाने के लिए मचल रहा था. वह रत्ना के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है. वह उस की सुंदरता के मोहपाश में कुछ इस तरह से बंध गया था कि उसे सहीग़लत की कोई सुध ही नहीं रह गई थी. रत्ना का गोरा बदन, नागिन की तरह बलखाते उस के काले घने बाल, गुलाब की पंखुड़ियों की तरह खिले हुए गुलाबी होंठों को देख रोहित पूरी तरह से रत्ना की आकर्षक देह में गिरफ्तार हो गया था.

लेकिन रत्ना आज भी शेखर से ही प्यार करती है. वह रोहित के संग केवल अपने स्त्री अहं के दर्द को शांत करना चाहती थी, जो उसे शेखर ने दिया है. वह यह जानती थी कि रोहित शेखर का विकल्प कभी‌ नहीं हो सकता, इसलिए जब रत्ना को इस बात का एहसास हुआ तो उस ने‌ एक दिन रोहित से कहा, ‘रोहित, मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं.’

रोहित रत्ना के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए बोला, ‘कहिए न रत्नाजी, आप के लिए तो जान हाजिर है.’

रत्ना हंसती हुई बोली, ‘नहींनहीं, मुझे तुम्हारी जान नहीं चाहिए. मैं तो, बस, इतना चाहती हूं कि मेरी जान मेरे पास वापस आ जाए.’

रोहित आश्चर्य से रत्ना की ओर देखते हुए बोला, ‘मैं समझा‌ नहीं, आप क्या कह रही हैं?’.

‘रोहित, तुम तो जानते ही ‌हो, मैं शादीशुदा हूं ‌पर यह नहीं जानते कि मैं अपने पति ‌से बहुत ‌प्यार करती‌ हूं लेकिन वह किसी और के ‌लिए पागल है. मैं उन्हें अपनी जिंदगी में वापस‌ पाना‌ चाहती ‌हूं,’ रत्ना अपना‌ हाथ रोहित‌ के हाथों से ‌हटाती हुई‌ बोली.

रोहित दोबारा रत्ना के हाथों को कस कर पकड़ते हुए बोला, ‘रत्नाजी, शेखर आप से प्यार नहीं करता, तो क्या हुआ, मैं तो आप से बेइंतहा मोहब्बत करता हूं. आप मेरे साथ एक नई शुरुआत तो कीजिए.’

रोहित का इतना कहना था कि रत्ना रोहित से लिपटती हु‌ई बोली, ‘हम एक नई शुरुआत जरूर करेंगे लेकिन शेखर को उस की गलती का एहसास करवाने और उसे सबक सिखाने के बाद.’

‘ऐसी बात है तो‌ कहिए‌ मेरे लिए क्या हुक्म है,’ रोहित रत्ना के माथे को चूमते हुए बोला.

‘फिलहाल तो कुछ नहीं.’

‘फिर ठीक है, ‌जब भी ‌जरूरत पड़े तो याद कीजिएगा, बंदा हाजिर हो जाएगा.’

उस दिन के बाद से रोहित और रत्ना पहले से भी ज्यादा करीब आ गए और रोहित उस वक्त का इंतजार करने लगा जब रत्ना शेखर को छोड़ उस की बांहों में समा जाएगी.

22 मार्च‌, 2020, दिन रविवार. कोविड की वजह से पूरे देश में एक दिन का जनता कर्फ्यू लगा हुआ है. माननीय प्रधानमंत्रीजी ने आज शाम सभी देशवासियों को 5 बजे से 5 मिनट तक ताली, थाली, घंटी बजा कर ‌उन सभी लोगों को धन्यवाद देने को‌ कहा है जो दिनरात कोविड को हराने के लिए काम कर रहे हैं.

शेखर भी आज घर पर ही है और खुश भी लग रहा है. रत्ना पूरा‌‌ खाना‌ शेखर की ‌पंसद का‌ बना, नेट की साड़ी ‌पहन न्यूज देख रहे शेखर के एकदम‌ करीब सट कर जा बैठी. रत्ना को अपने ‌इतने पास आया देख शेखर वहां से जाने लगा. तभी रत्ना ने शेखर को अपनी ओर खींच लिया. रत्ना की खूबसूरती और ‌नेट की साड़ी से झांकते‌ उस के गोरे बदन के आगे शेखर ज्यादा देर टिक न सका. एक उन्माद सा ‌उठा और दोनों की गरम सांसें चर्मसीमा पर जा कर ही शीतल हुईं.

शाम के 5 बजने ही ‌वाले थे. शेखर के स्पर्श ने रत्ना को न‌ई तरंगों से भर दिया था. रत्ना अपने कपड़े ‌बदल हाल में पहुंची तो उस ने देखा शेखर ‌कहीं जाने की तैयारी में है. रत्ना‌ तमतमाती हुई बोली, ‘कहां जा‌ रहे‌ हो?’

‘तुम जानती हो…’

‘मतलब, तुम उस चुड़ैल के पास जा ‌रहे हो. मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगी. तुम्हें आज ‌यह बताना ही होगा ‌कि उस‌ में ऐसा क्या है जो मुझ में नहीं?’

रत्ना‌ को धक्का दे कर शेखर जाने लगा, तभी रत्ना ने तैश में आ कर ड्रौअर में रखा पिस्टल निकाल लिया. रत्ना के हाथों में पिस्टल देख शेखर रत्ना से पिस्टल छीनने की कोशिश करने लगा और इसी छीनाझपटी में गोली चल गई व शेखर की मौत हो गई. रत्ना‌ घबरा गई. उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा कि वह क्या‌ करे. कभी‌ वह 108‌ पर फोन लगाने के ‌लिए मोबाइल उठा लेती तो कभी पुलिस को ‌फोन करने का मन बनाती है.

तकरीबन एक घंटे शेखर की ‌लाश के करीब बैठी रत्ना धुंआ फूंकती इस ऊहापोह में रही कि वह क्या करे? यदि किसी ने गोली चलने की आवाज़ सुन ली होगी तो…क्या होगा? उस की बेचैनी और घबराहट बढ़ने लगी. अचानक रत्ना को खयाल आया कि गोली चलने ‌की आवाज तो किसी ने भी न सुनी होगी क्योंकि उस‌ वक्त सभी 5 बजे थाली, ताली और शंखनाद करने में व्यस्त थे तो क्यों न लाश को ठिकाने लगा दिया जाए.

रत्ना कुछ सोच अपने सर्वेंट क्वाटर की ओर दौड़ी क्योंकि माली गार्डन में उपयोग होने वाले सारे सामान वहीं रखता है जिन में गड्ढे खोदने के लिए फावड़ा ‌भी है जो उस के काम आ‌ सकता है ‌और वह अपने गार्डन में ही शेखर को दफ़ना सकती है. नौकर बीजू छुट्टी ले कर अपने परिवार के ‌संग गांव गया हुआ है. रत्ना बीजू के कमरे में ‌पहुंच उस का सामान उलटपुलट करती हुई फावड़ा ढूंढने लगी. सारा कमरा बिखर गया, ‌तब जा कर फावड़ा मिला.

फावड़ा मिलते‌ ही रत्ना गार्डन में गड्ढा खोदने लगी. वह पसीने से लथपथ हो गई और उस की सांस फूलने लगी. ‌इतना‌ बड़ा गड्ढा खोदना उस के लिए मुमकिन न था. तभी उस के ज़ेहन में रोहित का ख़याल आया और उस ने फौरन रोहित को फोन पर सारे घटनाक्रम की सूचना ‌देते हुए मदद के लिए आने ‌को कहा. रोहित सारी‌ परिस्थिति को जाननेसमझने के ‌बाद‌ रत्ना को धैर्य रखने और 9 बजे के बाद कर्फ़्यू हटने के पश्चात आने को कह कर फोन रख दिया.

रत्ना‌ सारी रात धुआं उड़ाती, हाल में ‌चलहकदमी करती हुई ‌रोहित का इंतजार करती रही पर वह नहीं आया. क़रीब‌ 4:30 बजे डोरबैल बजी. रत्ना ने घबरा कर पी होल से झांका, तो सामने रोहित खड़ा था. ‌रत्ना ने फौरन दरवाजा खोल दिया. रोहित के अंदर आते ही रत्ना उस से लिपट गई. रत्ना को अपनी आगोश में पा रोहित उस के बदन की खुशबू से मदहोश होने लगा और देखते ही देखते दोनों एकदूजे में खो गए. जब होश आया तब तक ‌सुबह के 5:30 बज‌ चुके थे.

रोहित जल्दी से ‌तैयार हो रत्ना को जगाते हुए बोला, “रत्नाजी, आई एम सौरी, मैं अपनेआप को रोक नहीं पाया, जल्दी तैयार हो‌ जाइए, हमें ‌निकलना होगा.”

रत्ना अपने कपड़े पहनती हुई बोली, “मैं अभी रेडी होती हूं पर हमें जाना कहां है?”

“सुबह ‌हो चुकी है, अब लाश को यहां गार्डन में दफ़नाना संभव नहीं. लाश का हमें कुछ और ही करना होगा. मैं ने सब सोच लिया. बस, आप जल्दी से ‌तैयार हो जाइए. मैं आप को रास्ते में ‌सब समझा‌ दूंगा. आप अपना मोबाइल घर पर ही छोड़ दो और शेखर का मोबाइल रखना मत भूलना.”

रत्ना ने आश्चर्य से कहा, “ऐसा क्यों, तो…”

“ताकि कभी भी इंक्वायरी हो तो आप की लोकेशन घर पर ही मिले.”

सारी तैयारियों के बाद जब रत्ना कार में बैठने लगी, पड़ोस की चंद्रा जो अपने लौन में मौर्निंग वाक कर रही ‌थी, रोहित की‌ ओर मुसकरा कर देखती हुई बोली, “क्यों रत्ना, कहीं बाहर जा रही हो क्या? भाईसाहब नहीं हैं घर पर?”

रत्ना कार में बैठती हुई ‌बोली, “शेखर बाहर ग‌ए हुए हैं, कल जनता कर्फ्यू की वजह से वे घर नहीं ‌आ पाए.”

रत्ना के कार में बैठते ही रोहित कार दौड़ाने लगा. लेकिन यह क्या… शहर के चप्पेचप्पे पर पुलिस का पहरा. हर आने‌जाने वाले को रोक पुलिस पूछताछ कर रही है. किसी तरह यदि दोनों एक चौक चौराहे से बच भी निकले‌ तो शहर से बाहर निकलना सभंव नहीं. तभी सहसा पुलिस के एक जत्थे ने उन्हें चौराहे पर रोक लिया और घर से बाहर निकलने का कारण पूछने लगे. पुलिसकर्मियों को देख रत्ना के पसीने छूटने लगे और उस का गला सूख गया. रोहित लड़खड़ाती ज़बान से बोला, “सर, इन के पति की तबीयत खराब हो गई है, हम अस्पताल जा रहे है.” अस्पताल के नाम से पुलिस ने उन्हें आगे जाने की अनुमति दे दी.

कुछ दूर निकलते ही रत्ना तुनक कर बोली, “क्या जरूरत थी तुम्हें यह कहने की कि इन के पति की तबीयत खराब हो गई है?”

“तो क्या कहता, इन्होंने‌ अपने पति का खून कर दिया है और हम लाश ठिकाने लगाने निकले हैं या यह कहता कि हम घर से बाहर धारा 144 का मज़ा लेने निकले हैं?”

“बकवास बंद करो, मैं ने कहा न, मैं ने शेखर को नहीं मारा.”

“हां, हां, मुझे मालूम है तुम ने शेखर को नहीं‌ मारा. फिलहाल तुम्हारे पास कुछ रुपए हैं? जल्दीजल्दी में मैं अपना वालेट रखना भूल गया. हमें आगे हाईवे पर पैट्रोल भरवाना होगा और तुम अपना‌ मुंह बंद रखना.”

“तुम पैट्रोल भरवा कर नहीं ‌आ सकते थे और यह जल्दीजल्दी में क्या कह रहे हो. मेरे फ़ोन करने के पूरे 7 घंटे बाद तुम आए थे.”

“तो क्या करता, तुम्हारा फोन आते ही सिर के बल दौड़ा चला आता. क्या जरूरत थी तुम्हें पिस्टल निकालने की.”

“हां, मैं ने पिस्टल निकाला जरूर था, लेकिन मैं ने शेखर को जानबूझ कर नहीं मारा है रोहित. मेरा यकीन मानो और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है. तुम यह तो बताओगे की हम जा कहां रहे हैं?”

“अमरकंटक.”

“अमरकंटक,” रत्ना ने आश्चर्य से कहा.

“हां, क्योंकि अमरकंटक बिलासपुर से 110 किलोमीटर दूर है और छत्तीसगढ़ राज्य की सीमा‌ से बाहर मध्य प्रदेश राज्य की सीमा में आता है. और दूसरी बात, अमरकंटक में इतनी ऊंचीऊंची घाटियां हैं, उन घाटियों से एक‌ बार किसी को‌ नीचे फेंक दिया जाए तो उस का‌ मिलना मुश्किल है. यदि लाश मिल भी गई तो मध्य प्रदेश राज्य की पुलिस उसे अपनी सीमा का केस समझ उस पर कार्यवाही करती रहेगी और उसे कोई सुराग‌ नहीं मिल पाएगा.”

शहर से बाहर निकलते ही रोहित ने रत्ना से कहा, “तुम शेखर के नंबर से अपने नंबर पर कौल करो.”

रत्ना ने फिर सवाल किया, “लेकिन क्यों?”

“इसलिए क्योंकि इस से यह सिद्ध हो जाएगा कि शेखर ने घर पहुंचने से पहले तुम्हें फोन किया था लेकिन काम में व्यस्त होने की वजह से तुम फोन नहीं उठा पाईं.”

यहां अमरकंटक में भी वही हाल था. हर चौक चौराहे पर पुलिस का पहरा. हर व्यक्ति पर पुलिस ‌की नज़र. यहां भी काम को अंजाम देना आसान न था. इधर शाम होने को थी, उधर रत्ना और रोहित शेखर की लाश लिए अमरकंटक की घाटियों में ‌भटक रहे थे. जिधर देखो, उधर पुलिस का जत्था गश्त लगाता घूम ‌रहा था.

अंधेरा होते और मौका पाते ही रत्ना और रोहित ने शेखर की लाश को घाटियों के नीचे फेंक दिया और शेखर के मोबाइल का सिम कार्ड तोड़ कर अमरकंटक के जलप्रपात दूधधारा में प्रवाहित कर दिया ताकि कभी भी वह सिम कार्ड ट्रेस न हो सके. उस के बाद दोनों शहर लौट आए. उस दिन के बाद से रोहित और रत्ना ने फिर कभी एकदूसरे से बात नहीं की, वही उन दोनों की आखिरी मुलाकात थी.

शेखर की मौत की वजह से रत्ना सदमे में चली गई थी. उस ने स्वयं को नशे में डुबो लिया था और वह लोगों से मिलना जुलना भी बंद कर चुकी थी.

अचानक रत्ना का मोबाइल बजा. नशे में धुत, डगमगाती हुई रत्ना ने फोन रिसीव किया. उधर रोहित था.

रोहित की आवाज सुनते ही रत्ना अधीर होते हुए बोली, “रोहित, अच्छा हुआ जो तुम ने मुझे फोन किया. देखो न, शेखर अब तक शोभना के पास से लौटा नहीं है और यह शोभना मुझ पर हंस रही है. तुम तो जानते हो न, रोहित, मैं शेखर से कितना प्यार करती हूं. शेखर मेरा फोन भी नहीं उठा‌ रहा.”

“पागल हो गई हो क्या, होश में तो हो, शेखर मर चुका है और उस की लाश तुम ने अपने हाथों से घाटियों से नीचे फेंका है,” कहते हुए रोहित ने फोन रख दिया.

नशे की हालत में यह रत्ना की कोरी कल्पना थी, न रोहित ने उसे फोन किया था, न शोभना उस पर हंस रही थी. हां, रत्ना शेखर के नंबर पर बारबार कौल अवश्य कर रही थी जिस फोन के सिम कार्ड को वह स्वयं अमरकंटक के जलप्रपात दूधधारा में फेंक आई थी.

रत्ना ने फिर सिगरेट सुलगाई, पैक बनाया और दोबारा म्यूजिक सिस्टम का वौल्यूम बढ़ा सोफे पर लेट गई.

‌ अमरकंटक से लौटने के बाद से रत्ना ने अपनेआप को घर में कैद कर लिया था. लौकडाउन का आज 10वां दिन था और घर पर अकेले रहते हुए रत्ना अपना मानसिक संतुलन खो चुकी थी.

पिछले 3 दिनों से मिसेज चंद्रा ने रत्ना को नहीं देखा, अकसर सुबह के वक्त जब मिसेज चंद्रा अपने लौन में मौर्निंग वाक कर रही होतीं, रत्ना उस वक्त अपने पौधों को पानी दिया करती. कहीं रत्ना की तबीयत खराब तो नहीं, यह जानने के लिए जब मिसेज चंद्रा, रत्ना के घर पहुंचीं तो दरवाजा अंदर से बंद था और घर से बहुत अजीब सी बदबू आ रही थी. मिसेज चंद्रा ने अनहोनी के भय से स्थानीय पुलिस को इस की सूचना दी.

पुलिस के आते ही जब दरवाजा खोला गया तो पूरा कमरा फैला हुआ था. जले हुए सिगरेट के पैकेट, शराब की बौटल्स, फलों के छिलके, चिप्स के पैकेट, बिस्कुट्स के रेपर और रत्ना सोफे पर मृत पड़ी थी. शायद इन 10 दिनों में रत्ना ने खाना ही नहीं बनाया और न ही खाया. रत्ना शायद यही सब खाती रही, अत्यधिक शराब पीने और नींद की अधिक गोलियां लेने की वजह से रत्ना की मौत हो चुकी थी और लास्ट कौल रत्ना ने शेखर को की थी जिस की वजह से पुलिस शेखर को तलाश कर रही थी.

एक महीने तक खोजबीन और तलाश करने के बाद भी शेखर का कोई सुराग न मिला और न ही उस का मोबाइल ट्रेस हो पाया. रत्ना मर चुकी थी, इसलिए पुलिस ने शेखर और रत्ना की फाइल बंद कर दी.

Suspense Story

Emotional Story: मां बेटी- क्यों गांव लौटने को मजबूर हो गई मालती

Emotional Story: मालती काम से लौटी थी… थकीमांदी. कुछ देर लेट कर आराम करने का मन कर रहा था, पर उस की जिंदगी में आराम नाम का शब्द नहीं था. छोटा वाला बेटा भूखाप्यासा था. वह 2 साल का हो गया था, पर अभी तक उस का दूध पीता था.

मालती के खोली में घुसते ही वह उस के पैरों से लिपट गया. उस ने उसे अपनी गोद में उठा कर खड़ेखड़े ही छाती से लगा लिया. फिर बैठ कर वह उसे दूध पिलाने लगी थी.

सुबह मालती उसे खोली में छोड़ कर जाती थी. अपने 2 बड़े भाइयों के साथ खोली के अंदर या बाहर खेलता रहता था. तब भाइयों के साथ खेल में मस्त रहने से न तो उसे भूख लगती थी, न मां की याद आती थी.

दोपहर के बाद जब मालती काम से थकीमांदी घर लौटती, तो छोटे को अचानक ही भूख लग जाती थी और वह भी अपनी भूखप्यास की परवाह किए बिना या किसी और काम को हाथ लगाए बेटे को अपनी छाती का दूध पिलाने लगती थी.

तभी मालती की बड़ी लड़की पूजा काम से लौट कर घर आई. पूजा सहमते कदमों से खोली के अंदर घुसी थी. मां ने तब भी ध्यान नहीं दिया था. पूजा जैसे कोई चोरी कर रही थी. खोली के एक किनारे गई और हाथ में पकड़ी पोटली को कोने में रखी अलमारी के पीछे छिपा दिया.

मां ने छोटू को अपनी छाती से अलग किया और उठने को हुई, तभी उस की नजर बेटी की तरफ उठी और उसे ने पूजा को अलमारी के पीछे थैली रखते हुए देख लिया.

मालती ने सहज भाव से पूछा, ‘‘क्या छिपा रही है तू वहां?’’

पूजा चौंक गई और असहज आवाज में बोली, ‘‘कुछ नहीं मां.’’

मालती को लगा कि कुछ तो गड़बड़ है वरना पूजा इस तरह क्यों घबराती.

मालती अपनी बेटी के पास गई और उस की आंखों में आंखें डाल कर बोली, ‘‘क्या है? तू इतनी घबराई हुई क्यों है? और यहां क्या छिपाया है?’’

‘‘कुछ नहीं मां, कुछ नहीं…’’ पूजा की घबराहट और ज्यादा तेज हो गई. वह अलमारी से सट कर इस तरह खड़ी हो गई कि मालती पीछे न देख सके.

मालती ने जोर से पकड़ कर उसे परे धकेला और तेजी से अलमारी के पीछे रखी पोटली उठा ली.

हड़बड़ाहट में मालती ने पोटली को खोला. पोटली का सामान अंदर से सांप की तरह फन काढ़े उसे डरा रहे थे… ब्रा, पैंटी, लिपस्टिक, क्रीम, पाउडर और तेल की शीशी…

मालती ने फिर अचकचा कर अपनी बेटी पूजा को गौर से देखा… उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. उस की बेटी जवान तो नहीं हुई थी, पर जवानी की दहलीज पर कदम रखने के लिए बेचैन हो रही थी.

मालती का दिल बेचैन हो गया. गरीबी में एक और मुसीबत… बेटी की जवानी सचमुच मांबाप के लिए एक मुसीबत बन कर ही आती है खासकर उस गरीब की बेटी की, जिस का बाप जिंदा न हो. मालती की सांसें कुछ ठीक हुईं, तो बेटी से पूछा, ‘‘किस ने दिया यह सामान तुझे?’’

मां की आवाज में कोई गुस्सा नहीं था, बल्कि एक हताशा और बेचारगी भरी हुई थी.

पूजा को अपनी मां के ऊपर तरस आ गया. वह बहुत छोटी थी और अभी इतनी बड़ी या जवान नहीं हुई थी कि दुनिया की सारी तकलीफों के बारे में जान सके. फिर भी वह इतना समझ गई थी कि उस ने कुछ गलत किया था, जिस के चलते मां को इस तरह रोना पड़ रहा था. वह भी रोने लगी और मां के पास बैठ गई.

बेटी की रुलाई पर मालती थोड़ा संभली और उस ने अपने ममता भरे हाथ बेटी के सिर पर रख दिए.

दोनों का दर्द एक था, दोनों ही औरतें थीं और औरतों का दुख साझा होता है. भले ही, दोनों आपस में मांबेटी थीं, पर वे दोनों एकदूसरे के दर्द से न केवल वाकिफ थीं, बल्कि उसे महसूस भी कर रही थीं.

पूजा की सिसकियां कुछ थमीं, तो उस ने बताया, ‘‘मां, मैं ले नहीं रही थी, पर उस ने मुझे जबरदस्ती दिया.’’

‘‘किस ने…?’’ मालती ने बेचैनी से पूछा.

‘‘गोकुल सोसाइटी के 401 नंबर वाले साहब ने…’’

‘‘कांबले ने?’’ मालती ने हैरानी से पूछा.

‘‘हां… मां, वह मुझ से रोज गंदीगंदी बातें करता है. मैं कुछ नहीं बोलती तो मुझे पकड़ कर चूम लेता है,’’ पूजा जैसे अपनी सफाई दे रही थी.

मालती ने गौर से पूजा को देखा. वह दुबलेपतले बदन की सांवले रंग की लड़की थी, कुल जमा 13 साल की… बदन में ऐसे अभी कोई उभार नहीं आए थे कि किसी मर्द की नजरें उस पर गड़ जाएं.

हाय रे जमाना… छोटीछोटी बच्चियां भी मर्दों की नजरों से महफूज नहीं हैं. पलक झपकते ही उन की हैवानियत और हवस की भूख का शिकार हो जाती हैं.

मालती को अपने दिन याद आ गए… बहुत कड़वे दिन. वह भी तब कितनी छोटी और भोली थी. उस के इसी भोलेपन का फायदा तो एक मर्द ने उठाया था और वह समझ नहीं पाई थी कि वह लुट रही थी, प्यार के नाम पर… पर प्यार कहां था वह… वह तो वासना का एक गंदा खेल था.

इस खेल में मालती अपनी पूरी मासूमियत के साथ शामिल हो गई थी. नासमझ उम्र का वह ऐसा खेल था, जिस में एक मर्द उस के अधपके बदन को लूट रहा था और वह समझ रही थी कि वह मर्दऔरत का प्यार था.

वह एक ऐसे मर्द द्वारा लुट रही थी, जो उस से उम्र में दोगुनातिगुना ही नहीं, बाप की उम्र से भी बड़ा था, पर औरतमर्द के रिश्ते में उम्र बेमानी हो जाती है और कभीकभी तो रिश्ते भी बदनाम हो जाते हैं.

तब मालती भी अपनी बेटी की तरह दुबलीपतली सांवली सी थी. आज जब वह पूजा को गौर से देखती है, तो लगता है जैसे वही पूजा के रूप में खड़ी है.

मालती बिलकुल उस का ही दूसरा रूप थी. जब वह अपनी बेटी की उम्र की थी, तब चोगले साहब के घर में काम करती थी. वह शादीशुदा था, 2 बच्चों का बाप, पर एक नंबर का लंपट… उस की नजरें हमेशा मालती के इर्दगिर्द नाचती रहती थीं.

चोगले की बीवी किसी स्कूल में पढ़ाती थी, सो वह सुबह जल्दी निकल जाती थी. साथ में उस के बच्चे भी चले जाते थे. बीवी और बच्चों के जाने के बाद मालती उस घर में काम करने जाती थी.

चोगले तब घर में अकेला होता था. पहले तो काफी दिनों तक उस ने मालती की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और कभी कोई ऐसी बात नहीं कही, जिस से लगे कि वह उस के बदन का भूखा था.

शायद वह उसे बच्ची समझता था. वह काम करती रहती थी और काम खत्म होने के बाद चुपचाप घर चली आती थी.

पर जब उस ने 13वें साल में कदम रखा और उस के सीने में कुछ नुकीला सा उभार आने लगा, तो अचानक ही एक दिन चोगले की नजर उस के शरीर पर पड़ गई. वह मैलेकुचैले कपड़ों में रहती थी.

झाड़ूपोंछा करने वाली लड़की और कैसे रह सकती थी. कपड़े धोने के बाद तो वह खुद गीली हो जाती थी और तब बिना अंदरूनी कपड़ों के उस के बदन के अंग शीशे की तरह चमकने लगते थे.

ऐसे मौके पर चोगले की नजरों में एक प्यास उभर आती और उस के पास आ कर पूछता था, ‘‘मालती, तुम तो गीली हो गई हो, भीग गई हो. पंखे के नीचे बैठ कर कपड़े सुखा लो,’’ और वह पंखा चला देता.

मालती बैठती नहीं खड़ेखड़े ही अपने कपड़े सुखाती. चोगले उस के बिलकुल पास आ कर सट कर खड़ा हो जाता और अपने बदन से उसे ढकता हुआ कहता, ‘‘तुम्हारे कपड़े तो बिलकुल पुराने हो गए हैं.’’

‘‘जी…’’ वह संकोच से कहती.

‘‘अब तो तुम्हें कुछ और कपड़ों की भी जरूरत पड़ती होगी?’’ मालती उस का मतलब नहीं समझती. बस, वह उस को देखती रहती.

वह एक कुटिल हंसी हंस कर कहता, ‘‘संकोच मत करना, मैं तुम्हारे लिए नए कपड़े ला दूंगा. वे वाले भी…’’

मालती की समझ में फिर भी नहीं आता. वह अबोध भाव से पूछती, ‘‘कौन से कपड़े…’’

चोगले उस के कंधे पर हाथ रख कर कहता, ‘‘देखो, अब तुम छोटी नहीं रही, बड़ी और समझदार हो रही हो. ये जो कपड़े तुम ने ऊपर से पहन रखे हैं, इन के नीचे पहनने के लिए भी तुम्हें कुछ और कपड़ों की जरूरत पड़ेगी, शायद जल्दी ही…’’ कहतेकहते उस का हाथ उस की गरदन से हो कर मालती के सीने की तरफ बढ़ता और वह शर्म और संकोच से सिमट जाती. इतनी समझदार तो वह हो ही गई थी.

चोगले की मेहनत रंग लाई. धीरेधीरे उस ने मालती को अपने रंग में रंगना शुरू कर दिया.चोगले की मीठीमीठी बातों और लालच में मालती बहुत जल्दी फंस गई. घर का सूनापन भी चोगले की मदद कर रहा था और मालती की चढ़ती हुई जवानी. उस की मासूमियत और भोलेपन ने ऐसा गुल खिलाया कि मालती जवानी के पहले ही प्यार के सारे रंगों से वाकिफ हो गई थी.

तब मालती की मां ने उस में होने वाले बदलाव के प्रति उसे सावधान नहीं किया था, न उसे दुनियादारी समझाई थी, न मर्द के वेष में छिपे भेडि़यों के बारे में उसे किसी ने कुछ बताया था.

भेद तब खुला था जब उस का पेट बढ़ने लगा. सब से पहले उस की मां को पता चला था. वह उलटियां करती तो मां को शक होता, पर वह इतनी छोटी थी कि मां को अपने शक पर भी यकीन नहीं होता था. यकीन तो तब हुआ जब उस का पेट तन कर बड़ा हो गया.

मां ने मारपीट कर पूछा, तब बड़ी मुश्किल से उस ने चोगले का नाम बताया. बड़े लोगों की करतूत सामने आई, पर तब चोगले ने भी उस की मदद नहीं की थी और दुत्कार कर उसे अपने घर से भगा दिया था. बाद में एक नर्सिंगहोम में ले जा कर मां ने उस का पेट गिरवाया था.

अपना बुरा समय याद कर के मालती रो पड़ी. डर से उस का दिल कांप उठा. क्या समय उस की बेटी के साथ भी वही खिलवाड़ करने जा रहा था, जो उस के साथ हुआ था? गरीब लड़कियों के साथ ही ऐसा क्यों होता है कि वे अपना बचपन भी ठीक से नहीं बिता पातीं और जवानी के तमाम कहर उन के ऊपर टूट पड़ते हैं?

मालती ने अपनी बेटी पूजा को गले से लगा लिया. जोकुछ उस के साथ हुआ था, वह अपनी बेटी के साथ नहीं होने देगी. अपनी जवानी में तो उस ने बदनामी का दाग झेला था, मांबाप को परेशानियां दी थीं. यह तो केवल वह या उस के मांबाप ही जानते थे कि किस तरह उस का पेट गिरवाया गया था. किस तरह गांव जा कर उस की शादी की गई थी.  फिर कई साल बाद कैसे वह अपने मर्द के साथ वापस मुंबई आई थी और अपने मांबाप के बगल की खोली में किराए पर रहने लगी थी.

आज उस का मर्द इस दुनिया में नहीं था. 4 बच्चे उस की और उस की बड़ी बेटी की कमाई पर जिंदा थे. पूजा के बाद 3 बेटे हुए थे, पर तीनों अभी बहुत छोटे थे. पिछले साल तक उस का मर्द फैक्टरी में हुए एक हादसे में जाता रहा.

पति की मौत के बाद ही मालती ने अपनी बेटी को घरों में काम करने के लिए भेजना शुरू किया था. उसे क्या पता था कि जो कुछ उस के साथ हुआ था, एक दिन उस की बेटी के साथ भी होगा.

जमाना बदल जाता है, लोग बदल जाते हैं, पर उन के चेहरे और चरित्र कभी नहीं बदलते. कल चोगले था, तो आज कांबले… कल कोई और आ जाएगा. औरत के जिस्म के भूखे भेडि़यों की इस दुनिया में कहां कमी थी. असली शेर और भेडि़ए धीरेधीरे इस दुनिया से खत्म होते जा रहे थे, पर इनसानी शेर और भेडि़ए दोगुनी तादाद में पैदा होते जा रहे थे.

मालती के पास आमदनी का कोई और जरीया नहीं था. मांबेटी की कमाई से 5 लोगों का पेट भरता था. क्या करे वह? पूजा का काम करना छुड़वा दे, तो आमदनी आधी रह जाएगी. एक अकेली औरत की कमाई से किस तरह 5 पेट पल सकते थे?

मालती अच्छी तरह जानती थी कि वह अपनी बेटी की जवानी को किसी तरह भी इनसानी भेडि़यों के जबड़ों से नहीं बचा सकती थी. न घर में, न बाहर… फिर भी उस ने पूजा को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटी, अगर तू मेरी बात समझ सकती है तो ठीक से सुन… हम गरीब लोग हैं, हमारे जिस्म को भोगने के लिए यह अमीर लोग हमेशा घात लगाए रहते हैं. इस के लिए वे तमाम तरह के लालच देते हैं. हम लालच में आ कर फंस जाते हैं और उन को अपना बदन सौंप देते हैं.

‘‘गरीबी हमारी मजबूरी है तो लालच हमारा शाप. इस की वजह से हम दुख और तकलीफें उठाते हैं.

‘‘हम गरीबों के पास इज्जत के नाम पर कुछ नहीं होता. अगर मैं तुझे काम पर न भेजूं और घर पर ही रखूं तब भी तो खतरा टल नहीं सकता. चाल में भी तो आवाराटपोरी लड़के घूमते रहते हैं.

‘‘अमीरों से तो मैं तुझे बचा लूंगी. पर इस खोली में रह कर इन गली के आवारा कुत्तों से तू नहीं बच पाएगी. खतरा सब जगह है. बता, तुझे दुनिया की गंदी नजरों से बचाने के लिए मैं क्या करूं?’’ और वह जोर से रोने लगी.

पूजा ने अपने आंसुओं को पोंछ लिया और मां का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मां, तुम चिंता मत करो. अब मैं किसी की बातों में नहीं आऊंगी. किसी का दिया हुआ कुछ नहीं लूंगी. केवल अपने काम से काम रखूंगी.

‘‘हां, कल से मैं कांबले के घर काम करने नहीं जाऊंगी. कोई और घर पकड़ लूंगी.’’

‘‘देख, हमारे पास कुछ नहीं है, पर समझदारी ही हमारी तकलीफों को कुछ हद तक कम कर सकती है. अब तू सयानी हो रही है. मेरी बात समझ गई है. मुझे यकीन है कि अब तू किसी के बहकावे में नहीं आएगी.’’

पूजा ने मन ही मन सोचा, ‘हां, मैं अब समझदार हो गई हूं.’

मालती अच्छी तरह जानती थी कि ये केवल दिलासा देने वाली बातें थीं और पूजा भी इतना तो जानती थी कि अभी तो वह जवानी की तरफ कदम बढ़ा रही थी. पता नहीं, आगे क्या होगा? बरसात का पानी और लड़की की जवानी कब बहक जाए और कब किधर से किधर निकल जाए, किसी को पता नहीं चलता.

पूजा अभी छोटी थी. जवानी तक आतेआते न जाने कितने रास्तों से उसे गुजरना पड़ेगा… ऐसे रास्तों से जहां बाढ़ का पानी भरा हुआ है और वह अपनी पूरी होशियारी और सावधानी के साथ भी न जाने कब किस गड्ढे में गिर जाए.

वे दोनों ही जानती थीं कि जो वे सोच रही थीं, वही सच नहीं था या जैसा वे चाह रही हैं, उसी के मुताबिक जिंदगी चलती रहेगी, ऐसा भी नहीं होने वाला था.

दिन बीतते रहे. मालती अपनी बेटी की तरफ से होशियार थी, उस की एकएक हरकत पर नजर रखती. उन दोनों के बीच में बात करने का सिलसिला कम था, पर बिना बोले ही वे दोनों एकदूसरे की भावनाओं को जानने और समझने की कोशिश करतीं.

पर जैसेजैसे बेटी बड़ी हो रही थी, वह और ज्यादा समझदार होती जा रही थी. अब वह बड़े सलीके से रहने लगी थी और उसे अपने भावों को छिपाना भी आ गया था.

इधर काफी दिनों से पूजा के रंगढंग में काफी बदलाव आ गया था. वह अपने बननेसंवरने में ज्यादा ध्यान देती, पर इस के साथ ही उस में एक अजीब गंभीरता भी आ गई थी. ऐसा लगता था, जैसे वह किन्हीं विचारों में खोई रहती हो. घर के काम में मन नहीं लगता था.

मालती ने एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘बेटी, मुझे डर लग रहा है. कहीं तेरे साथ कुछ हो तो नहीं गया?’’

पूजा जैसे सोते हुए चौंक गई हो, ‘‘क्या… क्या… नहीं तो…’’

‘‘मतलब, कुछ न कुछ तो है,’’ उस ने बेटी के सिर पर हाथ रख कर कहा.

पूजा के मुंह से बोल न फूटे. उस ने अपना सिर झुका लिया. मालती समझ गई, ‘‘अब कुछ बताने की जरूरत नहीं है. मैं सब समझ गई हूं, पर एक बात तू बता, जिस से तू प्यार करती है, वह तेरे साथ शादी करेगा?’’

पूजा की आंखों में एक अनजाना सा डर तैर गया. उस ने फटी आंखों से अपनी मां को देखा. मालती उस की आंखों में फैले डर को देख कर खुद सहम गई. उसे लगा, कहीं न कहीं कोई बड़ी गड़बड़ है.

डरतेडरते मालती ने पूछा, ‘‘कहीं तू पेट से तो नहीं है?’’

पूजा ने ऐसे सिर हिलाया, जैसे जबरदस्ती कोई पकड़ कर उस का सिर हिला रहा हो. अब आगे कहने के लिए क्या बचा था.

मालती ने अपना माथा पीट लिया. न वह चीख सकती थी, न रो सकती थी, न बेटी को मार सकती थी. उस की बेबसी ऐसी थी, जिसे वह किसी से कह भी नहीं सकती थी.

जो मालती नहीं चाहती थी, वही हुआ. उस की जिंदगी में जो हो चुका था उसी से बेटी को आगाह किया था. ध्यान रखती थी कि बेटी नरक में न गिर जाए. बेटी ने भी उसे भरोसा दिया था कि वह कोई गलत कदम नहीं उठाएगी, पर जवानी की आग को दबा कर रख पाना शायद उस के लिए मुमकिन नहीं था.

मरी हुई आवाज में उस ने बस इतना ही पूछा, ‘‘किस का है यह पाप…?’’

पूजा ने पहले तो नहीं बताया, जैसा कि आमतौर पर लड़कियों के साथ होता है. जवानी में किए गए पाप को वे छिपा नहीं पातीं, पर अपने प्रेमी का नाम छिपाने की कोशिश जरूर करती हैं. हालांकि इस में भी वे कामयाब नहीं होती हैं, मांबाप किसी न किसी तरीके से पूछ ही लेते हैं.

पूजा ने जब उस का नाम बताया, तो मालती को यकीन नहीं हुआ. उस ने चीख कर पूछा, ‘‘तू तो कह रही थी कि कांबले के यहां काम छोड़ देगी?’’

‘‘मां, मैं ने तुम से झूठ बोला था. मैं ने उस के यहां काम करना नहीं छोड़ा था. मैं उस की मीठीमीठी और प्यारी बातों में पूरी तरह भटक गई थी. मैं किसी और घर में भी काम नहीं करती थी, केवल उसी के घर जाती थी.

‘‘वह मुझे खूब पैसे देता था, जो मैं तुम्हें ला कर देती थी कि मैं दूसरे घरों में काम कर के ला रही हूं, ताकि तुम्हें शक न हो.’’

‘‘फिर तू सारा दिन उस के साथ रहती थी?’’

पूजा ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. ‘‘मरी, हैजा हो आए, तू जवानी की आग बुझाने के लिए इतना गिर गई. अरे, मेरी बात समझ जाती और तू उस के यहां काम छोड़ कर दूसरों के घरों में काम करती रहती, तो शायद किसी को ऐसा मौका नहीं मिलता कि कोई तेरे बदन से खिलवाड़ कर के तुझे लूट ले जाता. काम में मन लगा रहता है, तो इस काम की तरफ लड़की का ध्यान कम जाता है. पर तू तो बड़ी शातिर निकली… मुझ से ही झूठ बोल गई.’’

पूजा अपनी मां के पैरों पर गिर पड़ी और सिसकसिसक कर रोने लगी, ‘‘मां, मैं तुम्हारी गुनाहगार हूं, मुझे माफ कर दो. एक बार, बस एक बार… मुझे इस पाप से बचा लो.’’

मालती गुस्से में बोली, ‘‘जा न उसी के पास, वह कुछ न कुछ करेगा. उस को ले कर डाक्टर के पास जा और अपने पेट के पाप को गिरवा कर आ…’’

‘‘मां, उस ने मना कर दिया है. उस ने कहा है कि वह पैसे दे देगा, पर डाक्टर के पास नहीं जाएगा. समाज में उस की इज्जत है, कहीं किसी को पता चल गया तो क्या होगा, इस बात से वह डरता है.’’

‘‘वाह री इज्जत… एक कुंआरी लड़की की इज्जत से खेलते हुए इन की इज्जत कहां चली जाती है? मैं क्या करूं, कहां मर जाऊं, कुछ समझ में नहीं आता,’’ मालती बोली.

मालती ने गुस्से और नफरत के बावजूद भी पूजा को परे नहीं किया, उसे दुत्कारा नहीं. बस, गले से लगा लिया और रोने लगी. पूजा भी रोती जा रही थी.

दोनों के दर्द को समझने वाला वहां कोई नहीं था… उन्हें खुद ही हालात से निबटना था और उस के नतीजों को झेलना था.

मन थोड़ा शांत हुआ, तो मालती उठी और कपड़ेलत्ते व दूसरा जरूरी सामान समेट कर फटेपुराने बैग में भरने लगी. बेटी ने उसे हैरानी से देखा. मां ने उस की तरफ देखे बिना कहा, ‘‘तू भी तैयार हो जा और बच्चों को तैयार कर ले. गांव चलना है. यहां तो तेरा कुछ हो नहीं सकता. इस पाप से छुटकारा पाना है. इस के बाद गांव में रह कर ही किसी लड़के से तेरा ब्याह कर देंगे.’’

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Hindi Fiction Stories : दूसरा पत्र – क्या था पत्र में खास?

Hindi Fiction Stories : विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में, दिन का अंतिम पीरियड प्रारंभ होने ही वाला था कि अचानक माहौल में तनाव छा गया. स्पीड पोस्ट से डाकिया सभी 58 छात्रछात्राओं व प्रोफैसरों के नाम एक पत्र ले कर आया था. तनाव की वजह पत्र का मजमून था. कुछ छात्रों ने वह लिफाफा खोल कर अभी पढ़ा ही था कि प्रोफैसर मजूमदार ने धड़धड़ाते हुए कक्षा में प्रवेश किया. उन के हाथ में भी उसी प्रकार का एक लिफाफा था. आते ही उन्होंने घोषणा की, ‘‘प्लीज, डोंट ओपन द ऐनवलप.’’

अफरातफरी में उन्होंने छात्रछात्राओं से वे लिफाफे लगभग छीनने की मुद्रा में लेने शुरू कर दिए, ‘‘प्लीज, रिटर्न मी दिस नौनसैंस.’’ वे अत्यधिक तनाव में नजर आ रहे थे, लेकिन तब तक 8-10 छात्र उस  पत्र को पढ़ चुके थे.

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अत्यंत परिष्कृत अंगरेजी में लिखे गए उस पत्र में बेहद घृणात्मक टिप्पणियां छात्रछात्राओं के आपसी संबंधों पर की गई थीं और कुछ छात्राओं के विभागाध्यक्ष डाक्टर अमितोज प्रसाद, कुलपति डाक्टर माधवविष्णु प्रभाकर और प्रोफैसर मजूमदार से सीधेसीधे जोड़ कर उन के अवैध संबंधों का दावा किया गया था. पत्र लेखक ने अपनी कल्पनाओं के सहारे कुछ सुनीसुनाई अफवाहों के आधार पर सभी के चरित्र पर कीचड़ उछालने की भरपूर कोशिश की थी. हिंदी साहित्य की स्नातकोत्तर कक्षा में इस समय 50 छात्रछात्राओं के साथ कुल 6 प्राध्यापकों सहित विभागाध्यक्ष व कुलपति को सम्मिलित करते हुए 58 पत्र बांटे गए थे. 7 छात्र व 5 छात्राएं आज अनुपस्थित थे जिन के नाम के पत्र उन के साथियों के पास थे.

सभी पत्र ले कर प्रोफैसर मजूमदार कुलपति के कक्ष में चले गए जहां अन्य सभी प्रोफैसर्स पहले से ही उपस्थित थे. इधर छात्रछात्राओं में अटकलबाजी का दौर चल रहा था. प्रोफैसर मजूमदार के जाते ही परिमल ने एक लिफाफा हवा में लहराया, ‘‘कम औन बौयज ऐंड गर्ल्स, आई गौट इट,’’ उस ने अनुपस्थित छात्रों के नाम आए पत्रों में से एक लिफाफा छिपा लिया था. सभी छात्रछात्राएं उस के चारों ओर घेरा बना कर खड़े हो गए. वह छात्र यूनियन का अध्यक्ष था, अत: भाषण देने वाली शैली में उस ने पत्र पढ़ना शुरू किया, ‘‘विश्वविद्यालय में इन दिनों इश्क की पढ़ाई भी चल रही है…’’ इतना पढ़ कर वह चुप हो गया क्योंकि आगे की भाषा अत्यंत अशोभनीय थी.

एक हाथ से दूसरे हाथ में पहुंचता हुआ वह पत्र सभी ने पढ़ा. कुछ छात्राओं के नाम कुलपति, विभागाध्यक्ष और प्राध्यापकों से जोड़े गए थे. तो कुछ छात्रछात्राओं के आपसी संबंधों पर भद्दी भाषा में छींटाकशी की गई थी. इन में से कुछ छात्रछात्राएं ऐसे थे जिन के बारे में पहले से ही अफवाहें गरम थीं जबकि कुछ ऐसे जोड़े बनाए गए थे जिन पर सहज विश्वास नहीं होता था, लेकिन पत्र में उन के अवैध संबंधों का सिलसिलेवार ब्यौरा था.

पत्र ऐसी अंगरेजी में लिखा गया था जिसे पूर्णत: समझना हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों के लिए मुश्किल था परंतु पत्र का मुख्य मुद्दा सभी समझ चुके थे. कुछ छात्रछात्राएं, जिन के नाम इस पत्र में छींटाकशी में शामिल नहीं थे, वे प्रसन्न हो कर इस के मजे ले रहे थे तो कुछ छात्राएं अपना नाम जोड़े जाने को ले कर बेहद नाराज थीं. जिन छात्रों के साथ उन के नाम अवैध संबंधों को ले कर उछाले गए थे वे भी उत्तेजित थे क्योंकि पत्र के लेखक ने उन की भावी संभावनाओं को खत्म कर दिया था. सभी एकदूसरे को शक की नजरों से देखने लगे थे.

कुछ छात्राएं जिन्होंने पिछले माह हुए सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया था उन का नाम विभागाध्यक्ष अमिजोत प्रसाद के साथ जोड़ा गया था क्योंकि उन के कैबिन

में ही उस कार्यक्रम के संबंध में जरूरी बैठकें होती थीं और वे सीधे तौर पर कार्यक्रम के आयोजन से जुड़े थे. यह कार्यक्रम अत्यंत सफल रहा था और उन छात्राओं ने साफसाफ उन लोगों पर इस दुष्प्रचार का आरोप लगाया जिन्हें इस कार्यक्रम के आयोजन से दूर रखा गया था.

छात्र राजनीति करने वाले परिमल और नवीन पर ऐसा पत्र लिखने के सीधे आरोप लगाए गए. इस से माहौल में अत्यंत तनाव फैल गया. परिमल और नवीन का तर्क था कि यदि यह पत्र उन्होंने लिखा होता तो उन का नाम इस पत्र में शामिल नहीं होता, जबकि उन छात्राओं का कहना था कि ऐसा एक साजिश के तहत किया गया है ताकि उन पर इस का शक नहीं किया जा सके. एकदूसरे पर छींटाकशी, आरोप और प्रत्यारोप का दौर इस से पहले कि झगड़े का रूप लेता यह तय किया गया कि कुलपति और विभागाध्यक्ष से अपील की जाए कि मामले की जांच पुलिस से करवाई जाए. पुलिस जब अपने हथकंडों का इस्तेमाल करेगी तो सचाई खुद ही सामने आ जाएगी.

कुलपति के कमरे का माहौल पहले ही तनावपूर्ण था. उन का और विभागाध्यक्ष का नाम भी छात्राओं के यौन शोषण में शामिल किया गया था. पत्र लिखने वाले ने दावा किया था कि पत्र की प्रतिलिपि राज्यपाल और यूजीसी के सभी सदस्यों को भेजी गई है. सब से शर्मनाक था कुलपति डाक्टर  माधवविष्णु पर छात्राओं से अवैध संबंधों का आरोप. वे राज्य के ही नहीं, देश के भी एक प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी, सम्मानित साहित्यकार और समाजसेवी थे. उन की उपलब्धियों पर पूरे विश्वविद्यालय को गर्व था.

जिन छात्राओं के साथ उन का नाम जोड़ा गया था वे उम्र में उन की अपनी बेटियों जैसी थीं. आरोप इतने गंभीर और चरित्रहनन वाले थे कि उन्हें महज किसी का घटिया मजाक समझ कर ठंडे बस्ते में नहीं डाला जा सकता था. छात्राएं इतनी उत्तेजित थीं कि यदि पत्र लिखने वाले का पता चल जाता तो संभवत: उस का बचना मुश्किल था.

आरोपप्रत्यारोप का यह दौर कुलपति के कमरे में भी जारी रहा. विरोधी गुट के छात्र नेता परिमल पर प्रत्यक्ष आरोप लगा रहे थे कि वे सीधे तौर पर यदि इस में शामिल नहीं है तो कम से कम यह हुआ उसे के इशारे पर है. सब से ज्यादा गुस्से में संध्या थी. वह छात्र राजनीति में विरोधी गुट के मदन की समर्थक थी और उस का नाम दूसरी बार इस तरह के अवैध संबंधों की सूची में शामिल किया गया था.

दरअसल, एक माह पहले भी एक पत्र कुलपति के कार्यालय में प्राप्त हुआ था, जिस में संध्या का नाम विभागाध्यक्ष अमितोज के साथ जोड़ा गया था. तब कुलपति ने पत्र लिखने वाले का पता न चलने पर इसे एक घटिया आरोप मान कर ठंडे बस्ते में डाल दिया था. और अब यह दूसरा पत्र था. इस बार पत्र लेखक ने कई और नामों को भी इस में शामिल कर लिया था.

स्पष्ट था कि पहले पत्र में उस ने जो आरोप लगाए थे उन्हें पूरा प्रचार न मिल पाने से वह असंतुष्ट था और इस बार ज्यादा छात्रछात्राओं के नामों को सम्मिलित करने के पीछे उस का उद्देश्य यही था कि मामले को दबाया न जा सके और इसे भरपूर प्रचार मिले.

वह अपने उद्देश्य में इस बार पूरी तरह सफल रहा था क्योंकि हिंदी विभाग से उस पत्र की प्रतिलिपियां अन्य विभागों में भी जल्दी ही पहुंच गईं. शरारती छात्रों ने सूचनापट्ट पर भी उस की एक प्रतिलिपि लगवा दी.

कुलपति महोदय ने बड़ी मुश्किल से दोनों पक्षों को चुप कराया और आश्वासन दिया कि वे दोषी को ढूंढ़ने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे. यदि पता चल गया तो उस का मुंह काला कर उसे पूरे शहर में घुमाएंगे. सभी छात्राओं ने तैश में कहा, ‘‘आप पुलिस को या सीबीआई को यह मामला क्यों नहीं सौंप देते, वे खुद पता कर लेंगे.’’

संध्या को डर था कि कहीं यह पत्र भी पहले पत्र की तरह ठंडे बस्ते में ही न डाल दिया जाए. विभागाध्यक्ष व कुलपति इस प्रस्ताव से सहमत नहीं थे. कुलपति महोदय ने ही कहा, ‘‘हम ने इस बात पर भी विचार किया है, लेकिन इस से एक तो यह बात मीडिया में फैल जाएगी और विश्वविद्यालय की बदनामी होगी. दूसरा पुलिस छात्राओं को पूछताछ के बहाने परेशान करेगी और यह बात उन के घर वालों तक भी पहुंच जाएगी जो कि उचित नहीं होगा.’’

‘‘फिर पता कैसे चलेगा कि यह गंदी हरकत की किस ने है?’’ मदन ने तैश में आ कर कहा, ‘‘पहले भी एक पत्र आया था, जिस में 2 छात्राओं का नाम डाक्टर अमितोज से जोड़ा गया था. तब भी आप ने यही कहा था कि हम पता लगाएंगे, लेकिन आज तक कुछ पता नहीं चला.’’

‘‘उसे रोका नहीं गया तो अगली बार हो सकता है वह इस से भी आगे बढ़ जाए,’’ सोनाली ने लगभग चीखते हुए कहा. उस का अगले माह विवाह तय था और उस का नाम आनंद से जोड़ते हुए लिखा गया था कि अकसर वह शहर के पिकनिक स्पौटों पर उस के साथ देखी गई है.

डाक्टर अमितोज ने उसे मुश्किल से शांत कराया तो वह फफकफफक कर रो पड़ी, ‘‘आनंद के साथ कभी मैं यूनिवर्सिटी के बाहर भी नहीं गई.’’

‘‘तो इस में रोने की क्या बात है, अब चली जा. अभी तो 1 महीना पड़ा है शादी में,’’ कमल जिस का नाम इस पत्र में शामिल नहीं था, मदन के कान में फुसफुसाया.

‘‘चुप रह, मरवाएगा क्या’’ उस ने एक चपत उस के सिर पर जमा दी,‘‘ अगर झूठा शक भी पड़ गया न तो अभी तेरी हड्डीपसली एक हो जाएगी, बेवकूफ.’’

‘‘गुरु, कितनी बेइज्ज्ती की बात है, मेरा नाम किसी के साथ नहीं जोड़ा गया. कम से कम उस काली कांता के साथ ही जोड़ देते.’’

‘‘अबे, जिस का नाम उस के साथ जुड़ा था उस ने भी उस की खूबसूरती से तंग आ कर तलाक ले लिया.

‘‘शुक्र है, आत्महत्या नहीं की,’’ और फिर ठहाका मार कर दोनों देर तक उस का मजाक उड़ाते रहे.

कांता एक 25 वर्षीय युवा तलाकशुदा छात्रा थी जो उन्हीं के साथ हिंदी साहित्य में एमए कर रही थी. सभी के लिए उस की पहचान सिर्फ काली कांता थी. अपनी शक्लसूरत को ले कर उस में काफी हीनभावना थी. इसलिए वह सब से कटीकटी रहती थी. किसी ने न तो इस मुद्दे पर उस की सलाह ली और न ही वह बाकी लड़कियों की तरह खुद इस में शरीक हुई. अगर होती तो ऐसे ही व्यंग्यबाणों की शिकार बनती रहती.

‘‘इस बार ऐसा नहीं होगा,‘‘ डाक्टर अमितोज ने खड़े होते हुए कहा, ‘‘पुलिस और सीबीआई की सहायता के बिना भी दोषी का पता लगाया जा सकता है. आप लोग कुछ वक्त दीजिए हमें. बजाय आपस में लड़नेझगड़ने के आप भी अपनी आंखें और कान खुले रखिए. दोषी आप लोगों के बीच में ही है.’’

‘‘हां, जिस तरह से उस ने नाम जोड़े हैं उस से पता चलता है कि वह काफी कुछ जानता है,’’ अभी तक चुपचाप बैठे साहिल  ने कहा तो कुछ उस की तरफ गुस्से में देखने लगे और कुछ बरबस होठों पर आ गई हंसी को रोकने की चेष्टा करने लगे.

‘‘मेरा मतलब था वह हम सभी लोगों से पूरी तरह परिचित है,’’ साहिल ने अपनी सफाई दी. उस का नाम इस सूची में तो शामिल नहीं था परंतु सभी जानते थे कि वह हर किसी लड़की से दोस्ती करने को हमेशा लालायित रहता था.

‘‘कहीं, यही तो नहीं है?’’ कमल फिर मदन के कान में फुसफुसाया.

‘‘अबे, यह ढंग से हिंदी नहीं लिख पाता, ऐसी अंगरेजी कहां से लिखेगा,’’ मदन बोला.

‘‘गुरु, अंगरेजी तो किसी से भी लिखवाई जा सकती है और मुझे तो लगता है इंटरनैट की किसी गौसिप वैबसाइट से चुराई गई है यह भाषा,’’ कमल ने सफाई दी.

‘‘अबे, उसे माउस पकड़ना भी नहीं आता अभी तक और इंटरनैट देखना तो दूर की बात है,’’ मदन ने उसे चुप रहने का इशारा किया, ‘‘पर गुरु…’’  कमल के पास अभी और भी तर्क थे साहिल को दोषी साबित करने के.

‘‘अच्छा आप लोग अपनी कक्षाओं में चलिए,’’ कुलपति महोदय ने आदेश दिया तो सभी बाहर निकल आए.

बाहर आ कर भी तनाव खत्म नहीं हुआ. सभी छात्रों ने कैंटीन में अपनी एक हंगामी मीटिंग की. सभी का मत था कि दोषी हमारे बीच का ही कोई छात्र है, लेकिन है कौन? इस बारे में एकएक कर सभी नामों पर विचार हुआ लेकिन नतीजा कुछ न निकला. अंत में तय हुआ कि कल से सभी कक्षाओं का तब तक बहिष्कार किया जाए जब तक कि दोषी को पकड़ा नहीं जाता. दूसरे विभाग के छात्रछात्राएं भी अब इस खोज में शामिल हो गए थे.

उन में से कुछ को वाकई में छात्राओं से सहानुभूति थी तो कुछ यों ही मजे ले रहे थे, लेकिन इतना स्पष्ट था कि यह मामला अब जल्दी शांत होने वाला नहीं था. सब से पहले यह तय हुआ कि मुख्य डाकघर से पता किया जाए कि वे पत्र किस ने स्पीड पोस्ट कराए हैं. परिमल, कमल व मदन ने यह जिम्मेदारी ली कि वे मुख्य डाकघर जा कर यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि दोषी कौन है.

अगले दिन जब वे मुख्य डाकघर पहुंचे तो पता चला कि इस बाबत पूछने के लिए दो लड़कियां पहले ही आ चुकी हैं.

‘‘वही होगी संध्या,’’ मदन फुसफुसाया.

‘‘अबे, उसी की तो सारी शरारत है, सबकुछ उस की जानकारी में ही हुआ है.’’

‘‘वह कैसे हो सकती है?’’ परिमल  बोला, ‘‘वह जो इतना तैश खा रही थी न… वह सब दिखावा था.’’

‘‘लेकिन गुरु, उस का तो नाम खुद ही सूची में है,’’ मदन बोला.

‘‘यही तो तरीके होते हैं डबल क्रौस करने के,’’ परिमल बोला, ‘‘एक तरफ अपना नाम डाक्टर अमितोज से जोड़ कर अपनी दबीढकी भावनाएं जाहिर कर दीं, दूसरी तरफ दूसरों को बदनाम भी कर दिया.’’

डाकघर की काउंटर क्लर्क ने जब यह बताया कि उन दोनों लड़कियों में से एक ने नजर का चश्मा लगाया हुआ था और दूसरी के बाल कटे हुए थे तो तीनों को अति प्रसन्नता हुई, क्योंकि संध्या के न तो बाल कटे हुए थे और न ही वह नजर का चश्मा लगाती थी.

‘‘देखा मैं ने कहा था न कि संध्या नहीं हो सकती, वह क्यों पूछने आएगी. वे जरूर सोनाली और दीपिका होंगी क्योंकि वे दोनों ही इस में सब से ज्यादा इनोसैंट हैं. दीपिका तो बेचारी किताबों के अलावा किसी को देखती तक नहीं और सोनाली की अगले माह ही शादी है.’’

‘‘हां, मुझे अच्छी तरह उन लड़कों के चेहरे याद हैं,’’ काउंटर क्लर्क बोली, ‘‘चूंकि वे सभी लिफाफे महाविद्यालय में एक ही पते पर जाने थे अत: मैं ने ही उन्हें सलाह दी थी कि इन सभी को अलगअलग लिफाफों में पोस्ट करने के बजाय इस का सिर्फ एक लिफाफा बनाने से डाक व्यय कम लगेगा. इस पर उन में से एक लड़का जो थोड़ा सांवले रंग का था, भड़क उठा. कहने लगा, ‘‘आप को पता है ये कितने गोपनीय पत्र हैं, हम पैसे चुका रहे हैं इसलिए आप अपनी सलाह अपने पास रखिए.’’

मुझे उस का बोलने का लहजा बहुत अखरा, मैं उस की मां की उम्र की हूं परंतु वह बहुत ही बदतमीज किस्म का लड़का था, जबकि उस के साथ आया गोरा लड़का जिस ने नजर का चश्मा लगाया हुआ था बहुत शालीन था. उस ने मुझ से माफी मांगते हुए जल्दी काम करने की प्रार्थना की. गुस्से में वह सांवला लड़का बाहर दरवाजे पर चला गया जहां उन का तीसरा साथी खड़ा था. उस का चेहरा मैं देख नहीं सकी क्योंकि काउंटर की तरफ उस की पीठ थी, लेकिन मैं इतना विश्वास के साथ कह सकती हूं कि वे 3 थे, जिन में से 2 को मैं अब भी पहचान सकती हूं.’’

यह जानकारी एक बहुत बड़ी सफलता थी क्योंकि इस से जांच का दायरा मात्र उन छात्रों तक सीमित हो गया जो नजर का चश्मा लगाते थे और सांवले रंग के थे. परिमल स्वयं नजर का चश्मा लगाता था लेकिन वह नहीं हो सकता था क्योंकि डाकखाने की क्लर्क से उस ने खुद बात की थी. विपक्ष का नेता मदन भी सांवले रंग का था, लेकिन वह भी साथ था. महाविद्यालय

के हिंदी विभाग में 50 छात्रछात्राओं में से 32 छात्र और 18 छात्राएं थीं और मात्र 12 छात्र नजर का चश्मा लगाते थे. परिमल को अगर छोड़ दिया जाए तो मात्र 11 छात्र बचते थे.

जब यह जानकारी हिंदी विभाग  में पहुंची तो नजर का चश्मा लगाने वाले सभी छात्र संदेहास्पद हो गए. आरोपप्रत्यारोप का माहौल फिर गरम हो गया. नजर का चश्मा लगाने वालों की पहचान परेड उस क्लर्क के सामने कराई जाए. संध्या और सभी छात्राएं इस सूची को लिए फिर विभागाध्यक्ष डाक्टर अमितोज के कमरे में विरोध प्रदर्शन के लिए पहुंच गईं, ‘‘सर, अब यह साफ हो चुका है कि इन 11 में से ही कोई है जिस ने यह गंदी हरकत की है. आप इन सभी को निर्देश दें कि वे पहचान परेड में शामिल हों.’’

डाक्टर अमिजोत ने मुश्किल से उन्हें शांत कराया और आश्वासन दिया कि वे इन सभी को ऐसा करने के लिए कहेंगे हालांकि उन्होंने साथसाथ यह मत भी जाहिर कर दिया कि यह सारा काम किसी शातिर दिमाग की उपज है और वे खुद इन पत्रों को डाकखाने जा कर पोस्ट करने की बेवकूफी नहीं कर सकता.

आनंद, जिस का नाम सोनाली से जोड़ा गया था और जो नजर का चश्मा लगाता था, ने इस पहचान परेड में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया, ‘‘मैं कोई अपराधी हूं जो इस तरह पहचान परेड कराऊं.’’

उस के इस इनकार ने फिर माहौल गरमा दिया. संध्या इस बात पर उस से उलझ पड़ी और तूतड़ाक से नौबत हाथापाई तक आ गई. आनंद ने सीधेसीधे संध्या पर आरोप जड़ दिया, ‘‘सारा तेरा किया धरा है. डाक्टर अमितोज के साथ तेरे जो संबंध हैं न, उन्हें कौन नहीं जानता. उसी मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए तू ने औरों को भी बदनाम किया है ताकि वे लोग तुझ पर छींटाकशी न कर सकें. तू सोनाली की हितैषी नहीं है बल्कि उसे भी अपनी श्रेणी में ला कर अपने मुद्दे से सभी का ध्यान हटाना चाहती है.’’

परिमल ने उस समय तो बीचबचाव कर मामला सुलझा दिया, परंतु सरेआम की गई इस टिप्पणी ने संध्या को अंदर तक आहत कर दिया. कुछ छात्रों का मानना था कि आनंद के आरोप में सचाई भी हो सकती है.

‘‘यार, तेरी बात में दम है. सब जानते हैं कि जब से यह पत्र आया है सब से ज्यादा यही फुदक रही है,’’ संध्या के जाते ही परिमल ने आनंद को गले लगा लिया और कहने लगा कि पहला पत्र जिस में केवल संध्या और डाक्टर अमितोज का नाम था वह किसी और ने लिखा था. उस से इस की जो बदनामी हुई उसी से ध्यान बंटाने के लिए इस ने इस पत्र में औरों को घसीटा है ताकि लगे कि हमाम में सभी नंगे हैं. परिमल ने संध्या को बदनाम करने के लिए इस जलते अलाव या की वजह से उस के छात्राओं के काफी वोट जो कट जाते थे.

जो छात्र पहचान परेड कराने के लिए तैयार थे वे जब डाकखाने पहुंचे तो डाकखाने का स्टाफ इस समूह को देख कर आशंकित हो गया. उन्होंने उस महिलाकर्मी को इस पहचान परेड के लिए मना कर दिया. वह महिलाकर्मी खुद भी बहुत डरीसहमी थी, उसे नहीं पता था कि मुद्दा क्या है. उस ने तो अपनी तरफ से साधारण सी बात समझ कर जानकारी दी थी.

काफी देर तक डाकखाने के कर्मियों और छात्रों में बहस होती रही. उन का तर्क था कि वे इस झगड़े में क्यों पड़ें. वह महिलाकर्मी यदि किसी की पहचान कर लेती है तो वह छात्र उसे नुकसान भी तो पहुंचा सकता है. छात्रों ने जब दबाव बनाया तो उस ने सहकर्मियों की सलाह मान कर सरसरी निगाह छात्रों पर डालते हुए सभी को क्लीन चिट दे दी. स्पष्ट था वह इस झगड़े में नहीं पड़ना चाहती थी. वह सच बोल रही है या झूठ इस का फैसला नहीं किया जा सकता था.

बात जहां से शुरू हुई थी फिर से वहीं पहुंच गई थी. अटकलों का बाजार पुन: गरम हो चुका था. यह मांग फिर उठने लगी थी कि इस मामले में कुलपति हस्तक्षेप करें और मामला पुलिस या सीबीआई को दे दिया जाए. सभी जानते थे कि हर अपराध के पीछे एक मोटिव होता है.

हिंदी विभाग से बाहर का कोई छात्र ऐसा नहीं कर सकता था क्योंकि एक तो इतने सारे छात्रछात्राओं को बदनाम करने के पीछे उस का कोई उद्देश्य नहीं हो सकता था. दूसरे जो जोड़े बनाए गए थे वे बहुत ही गोपनीय जानकारी पर आधारित थे और कइयों के बारे में ऊपरी सतह पर कुछ भी दिखाई नहीं देता था, लेकिन उन में से अधिकांश के तल में कुछ न कुछ सुगबुगाहट चल रही थी.

अब तो अन्य विभागों के छात्रछात्राएं भी इस में रुचि लेने लगे थे, लेकिन यह निश्चित था कि ‘मास्टर माइंड’ इन्हीं 50 छात्रछात्राओं में से कोई एक था. 6 प्रोफैसर्स में से भी कोई हो सकता था परंतु इस की संभावना कम ही थी क्योंकि सभी प्रोफैसर्स अपनीअपनी फेवरेट छात्राओं के साथ अपने गुरुशिष्या के संबंधों पर परम संतुष्ट थे.

अचानक एक तीसरा पत्र डाक्टर अमितोज के नाम साधारण डाक से प्राप्त हुआ. यह पत्र भी अंगरेजी में था और इस में सारे घटनाक्रम पर क्षमा मांगते हुए इस का पटाक्षेप करने की प्रार्थना की गई थी. पत्र कंप्यूटर पर टाइप किया हुआ था और उस में फौंट, स्याही और कागज वही इस्तेमाल हुए थे जो दूसरे पत्र के लिए हुए थे.

डाक्टर अमितोज ने ध्यान से वह पत्र कई बार पढ़ा. अचानक उन के मस्तिष्क में एक विचार तीव्रता से कौंधा. वे तेजी से हिंदी विभाग के कार्यालय में पहुंचे और सभी छात्रछात्राओं के आवेदनपत्र की फाइल लिपिक से कह कर अपने कार्यालय में मंगवा ली. तेजी से उन की निगाहें उन आवेदनपत्रों में पूर्व शैक्षणिक योग्यता के कौलम में कुछ खोज करती दौड़ने लगीं. अचानक उन्हें वह मिल गया जिस की उन्हें तलाश थी. उन्होंने पता देखा तो वह हौस्टल का था.

तीसरा पत्र उन के हाथ में था जब उन्होंने हौस्टल के उस कमरे का दरवाजा खटखटाया. दरवाजा खुलते ही उन की निगाह सामने रखे पीसी पर पड़ी. वे समझ गए कि उन की तलाश पूरी हो चुकी है. वह कमरा युवा तलाकशुदा छात्रा कांता का था जो पूर्व में अंगरेजी साहित्य में स्नातकोत्तर थी, उस की बदसूरती और गहरे काले रंग को ले कर सभी छात्रछात्राएं मजाक उड़ाया करते थे.

उन के सामने अब इस अपराध का मोटिव स्पष्ट था और इस पर किसी तर्क की गुंजाइश नहीं थी. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस अपराध के लिए वे उस पर नाराज हों या तरस खाएं.

‘‘मैं नहीं पूछूंगा कि दूसरे पत्र को पोस्ट करवाने में जिन तीन लड़कों का तुम ने सहयोग लिया वे कौन थे क्योंकि उन्हें पता भी नहीं होगा कि वे क्या करने जा रहे हैं. लेकिन तुम्हारा गुरु होने के नाते एक सीख तुम्हें जरूर दूंगा. जो कमी तुम्हें अपने में नजर आती है और जिस में तुम्हारा अपना कोई दोष नहीं है उस के लिए स्वयं पर शर्मिंदा हो कर दूसरों से उस का बदला लेना अपनेआप में एक अपराध है, जो तुम ने किया है.

तुम ने इस अपराध के लिए क्षमा प्रार्थना की है. एक शर्त पर मैं तुम्हें क्षमा कर सकता हूं यदि तुम यह वादा करो कि कभी अपने रंगरूप पर शर्मिंदगी महसूस नहीं करोगी. अपनेआप से प्यार करना सीखो, तभी दूसरे भी तुम्हें प्यार करेंगे.’’ उन्होंने वह पत्र फाड़ा और आंसू बहाती कांता के सिर को सहला कर चुपचाप वहां से बाहर निकल आए.

लेखिका- मनजीत शर्मा ‘मीरा’

Kahaniyan : ऐसे हुई पूजा

Kahaniyan :  अंशु के अच्छे अंकों से पास होने की खुशी में मां ने घर में पूजा रखवाई थी. प्रसाद के रूप में तरहतरह के फल, दूध, दही, घी, मधु, गंगाजल वगैरा काफी सारा सामान एकत्रित किया गया था. सारी तैयारियां हो चुकी थीं लेकिन अभी तक पंडितजी नहीं आए थे. मां ने अंशु को बुला कर कहा, ‘‘अंशु, एक बार फिर लखन पंडितजी के घर चले जाओ. शायद वे लौट आए हों… उन्हें जल्दी से बुला लाओ.’’

‘‘लेकिन मां, अब और कितनी बार जाऊं? 3 बार तो उन के घर के चक्कर काट आया हूं. हर बार यही जवाब मिलता है कि पंडितजी अभी तक घर नहीं आए हैं?’’

अंशु ने टका जा जवाब दिया, तो मां सहजता से बोलीं, ‘‘तो क्या हुआ… एक बार और सही. जाओ, उन्हें बुला लाओ.’’

‘‘उन्हें ही बुलाना जरूरी है क्या? किसी दूसरे पंडित को नहीं बुला सकते क्या?’’ अंशु ने खीजते हुए कहा.

‘‘ये कैसी बातें करता है तू? जानता नहीं, वे हमारे पुराने पुरोहित हैं. उन के बिना हमारे घर में कोई भी कार्य संपन्न नहीं होता?’’

‘‘क्यों, उन में क्या हीरेमोती जड़े हैं? दक्षिणा लेना तो वे कभी भूलते नहीं. 501 रुपए, धोती, कुरता और बनियान लिए बगैर तो वे टलते नहीं हैं. जब इतना कुछ दे कर ही पूजा करवानी है तो फिर किसी भी पंडित को बुला कर पूजा क्यों नहीं करवा लेते? बेवजह उन के चक्कर में इतनी देर हो रही है. इतने सारे लोग घर में आ चुके हैं और अभी तक पंडितजी का कोई अतापता ही नहीं है,’’ अंशु ने खरी बात कही.

‘‘बेटे, आजकल शादीब्याह का मौसम चल रहा है. हो सकता है वे कहीं फंस गए हों, इसी वजह से उन्हें यहां आने में देर हो रही हो.’’

‘‘वह तो ठीक है पर उन्होंने कहा था कि बेफिक्र रहो, मैं अवश्य ही समय पर चला आऊंगा, लेकिन फिर भी उन की यह धोखेबाजी. मैं तो इसे कतई बरदाश्त नहीं करूंगा. मेरी तो भूख के मारे हालत खराब हो रही है. आखिर मुझे तब तक तो भूखा ही रहना पड़ेगा न, जब तक पूजा समाप्त नहीं हो जाती. जब अभी तक पंडितजी आए ही नहीं हैं तो फिर पूजा शुरू कब होगी और फिर खत्म कब होगी पता नहीं… तब तक तो भूख के मारे मैं मर ही जाऊंगा.’’

‘‘बेटे, जब इतनी देर तक सब्र किया है तो थोड़ी देर और सही. अब पंडितजी आने ही वाले होंगे.’’

तभी पंडितजी का आगमन हुआ. मां तो उन के चरणों में ही लोट गईं.

पंडितजी मुसकराते हुए बोले, ‘‘क्या करूं, थोड़ी देर हो गई आने में. यजमानों को कितना भी समझाओ मानते ही नहीं. बिना खाए उठने ही नहीं देते. खैर, कोई बात नहीं. पूजा की सामग्री तैयार है न?’’

‘‘हां महाराज, बस आप का ही इंतजार था. सबकुछ तैयार है,’’ मां ने उल्लास भरे स्वर में कहा.

तभी अंशु का छोटा भाई सोनू भी वहां आ कर बैठ गया. पूजा की सामग्री के बीच रखे पेड़ों को देख कर उस का मन ललचा गया. वह अपनेआप को रोक नहीं पाया और 2 पेड़े उठा कर वहीं पर खाने लगा. पंडितजी की नजर पेड़े खाते हुए सोनू पर पड़ी तो वे बिजली की तरह कड़क उठे, ‘‘अरे… सत्यानाश हो गया. भगवान का भोग जूठा कर दिया इस दुष्ट बालक ने. हटाओ सारी सामग्री यहां से. क्या जूठी सामग्री से पूजा की जाएगी?’’

मां तो एकदम से परेशान हो गईं. गलती तो हो ही चुकी थी. पंडितजी अनापशनाप बोलते ही चले जा रहे थे. जैसेतैसे जल्दीजल्दी सारी सामग्री फिर से जुटाई गई और पंडितजी मिट्टी की एक हंडि़या में शीतल प्रसाद बनाने लगे.

अंशु हड़बड़ा कर बोल उठा, ‘‘अरे…अरे पंडितजी, आप यह क्या कर रहे हैं?’’

‘‘भई, शीतल प्रसाद और चरणामृत बनाने के लिए हंडि़या में दूध डाल रहा हूं.’’

‘‘मगर यह दूध तो जूठा है?’’

‘‘जूठा है. वह कैसे? यह तो मैं ने अलग से मंगवाया है.’’

‘‘लेकिन जूठा तो है ही… आप मानें चाहे न मानें, यह जिस गाय का दूध है, उसे दुहने से पहले उस के बछड़े ने तो दूध अवश्य ही पिया होगा, तो क्या आप बछड़े के जूठे दूध से प्रसाद बनाएंगे? यह तो बड़ी गलत बात है.’’

पंडितजी के चेहरे की रंगत उतर गई. वे कुछ भी बोल नहीं पाए. चुपचाप हंडि़या में दही डालने लगे.

अंशु ने फिर टोका, ‘‘पंडितजी, यह दही तो दूध से भी गयागुजरा है. मालूम है, दूध फट कर दही बनता है. दूध तो जूठा होता ही है और इस दही में तो सूक्ष्म जीव होते हैं. भगवान को भोग क्या इस जीवाणुओं वाले प्रसाद से लगाएंगे?’’ पंडितजी का चेहरा तमतमा गया. भन्नाते हुए शीतल प्रसाद में मधु डालने लगे.

‘‘पंडितजी, आप यह क्या कर रहे हैं? यह मधु तो उन मधुमक्खियों की ग्रंथियों से निकला हुआ है जो फूलों से पराग चूस कर अपने छत्तों में जमा करती हैं. भूख लगने पर सभी मधुमक्खियां मधु खाती हैं. यह तो एकदम जूठा है,’’ अंशु ने फिर बाल की खाल निकाली. पंडितजी ने हंडि़या में गंगाजल डाला ही था कि अंशु फिर बोल पड़ा, ‘‘अरे पंडितजी, गंगाजल तो और भी दूषित है. गंगा नदी में न जाने कितनी मछलियां रहती हैं, जीवजंतु रहते हैं. आखिर यह जल भी तो जूठा ही है और ये सारे फल भी तोतों, गिलहरियों, चींटियों आदि के जूठे हैं. आप व्यर्थ ही भगवान को नाराज करने पर तुले हैं. जूठे प्रसाद का भोग लगा कर आप भगवान के कोप का भाजन बन जाएंगे और हम सब को भी पाप लगेगा.‘‘

‘‘तो फिर मैं चलता हूं… मत कराओ पूजा,’’ पंडितजी नाराज हो कर अपने आसन से उठने लगे.

‘‘पंडितजी, पूजा तो आप को करवानी ही है लेकिन जूठे प्रसाद से नहीं. किसी ऐसी पवित्र चीज से पूजा करवाइए जो बिलकुल शुद्ध हो, जूठी न हो और वह है मन, जो बिलकुल पवित्र है?’’

‘‘हां बेटे, ठीक कहा तुम ने मन ही सब से पवित्र होता है. पवित्र मन से ही सच्ची पूजा हो सकती है. सचमुच, तुम ने आज मेरी आंखें खोल दीं. मेरी आंखों के सामने ढोंग और पाखंड का परदा पड़ा हुआ था. मुझ से बड़ी भूल हुई. मुझे माफ कर दो,’’ उस के बाद पंडितजी ने उसी सामग्री से पूजा करवा दी लेकिन पंडितजी के चेहरे पर पश्चात्ताप के भाव थे.

Oral Care: हर रोज ब्रश के बाद भी आती है मुंह से बदबू, ऐसे में क्या करें

Oral Care: राखी 10वीं कक्षा की स्टूडैंट है और इन दिनों अपने मुंह से आती फाउल स्मेल से वह काफी परेशान रहती है. एक वक्त हर ऐक्टिविटी में सब से आगे रहने वाली लड़की अब शरमाई सब से अलग खड़ी रहती है और कम बोलती है. इस का रीजन है उस के मुंह से आती गंदी बदबू. वह जब भी अपने दोस्तों के साथ बैठती तो ठिठोली की वजह बन जाती है.

पिछले कुछ हफ्तों से उस के मुंह से काफी बदबू आ रही है, हालांकि वह दिन में 2 बार ब्रश करती है, खाने के बाद पानी से कुल्ला भी करती है, प्याज, लहसुन जैसी तेज स्मेल वाली चीजों से भी उस ने दूरी बना ली है लेकिन यह मुंह की दुर्गंध है कि उस का पीछा नहीं छोड़ रही है और अब इस की वजह से वह फुल कौन्फिडेंट भी नहीं रह पाती और साथ ही इनफीरियोरिटी कौंप्लेक्स की शिकार बनती जा रही है.

जब राखी डैंटिस्ट के पास पहुंची तो उसे अपने मुंह से आती दुर्गंध का कारण पता चला. दरअसल, उस की बेड ब्रेथ की वजह उस का खानपान नहीं बल्कि ड्राई माउथ था. जिस का सही इलाज करने पर अब वह बेड ब्रेथ से छुटकारा पा चुकी है.

राखी की तरह बहुत से लोग हैं जो दिन में 2 बार ब्रश करते हैं, फिर भी उन्हें मुंह से दुर्गंध (bad breath) की शिकायत रहती है. यह न सिर्फ एक असहज स्थिति बनाता है, बल्कि सामाजिक तौर पर भी आत्मविश्वास को कम करता है. ऐक्सपर्ट बताते हैं कि बेड ब्रेथ की वजह बहुत सी हैं. इस स्थिति को मैडिकल भाषा में हैलिटोसिस (Halitosis) कहा जाता है. यह एक मैडिकल टर्म है जो ऐसे मामलों के लिए इस्तेमाल होता है जब किसी व्यक्ति की सांसों से हमेशा बदबू आती है, चाहे वह ब्रश करे या माउथवाश इस्तेमाल करे.

डा. वंदना लकड़ा, बीडीएस, एमडीएस-इंडोडौंटिक्स बताती हैं कि मुंह से बदबू आना सिर्फ दातों की सफाई न करने से नहीं, बल्कि कई अन्य कारणों से भी हो सकता है.

जीभ को साफ न करना : बदबू की सब से बड़ी वजह

अकसर लोग केवल दांत ब्रश करते हैं, लेकिन जीभ की सफाई भूल जाते हैं जिस से जीभ पर एक सफेद परत बन जाती है जिस में बैक्टीरिया, मरे हुए सेल्स और भोजन के कण जमा रहते हैं. इन्हें अगर हटाया न जाए तो यही बदबू का बड़ा कारण बनते हैं. इस के लिए जरूरी है कि आप  रोज सुबह और रात ब्रश के साथसाथ टंग क्लीनर से जीभ भी साफ करें जिस से गंदगी जीभ से हट जाए और आप को बेड ब्रेथ की शर्मिंदगी न उठानी पडे.

मसूड़ों की बीमारी (Periodontitis) : गंभीर समस्या की शुरुआत

अगर आप के मसूड़े लाल हो रहे हैं, सूजन है या ब्रश करने पर खून आता है, तो यह जिंजिवाइटिस (Gingivitis) का लक्षण हो सकता है. यह मसूड़ों की बीमारी का शुरुआती रूप होता है. अगर इस पर ध्यान न दिया गया, तो यह पेरियोडौंटाइटिस में बदल सकता है, जिस में मसूड़े दांतों से अलग हो जाते हैं यानी मसूङे ढीले पड़ जाते हैं और दातों और मसूडों के बीच में गैप आ जाता है. दांतों की जड़ें खुल जाती हैं, जिस से संक्रमण और बदबू बढ़ जाती है.

ऐसे में जब आप खाना खाते हैं या सेब, नाशपाती जैसा फल खाते हैं तो भी आप के दातों से खून निकलने की समस्या शुरू हो जाती है. कई बार लोग ब्रश के वक्त दातों से खून आने के कारण ब्रश करना ही बंद कर देते हैं लेकिन यह इस समस्या का हल नहीं है. मसूड़ों से खून आने पर ब्रश करना बंद न करें, बल्कि और सावधानी से दातों की सफाई करें. नियमित डैंटल चेकअप करवाएं.

दांतों में सड़न (Cavities) : छिपी हुई बदबू का कारण

कभीकभी दांतों में गहरा छेद हो जाता है, जिस में खाना फंस जाता है. अगर इसे साफ न किया जाए, तो वही खाना सड़ कर बदबू पैदा करता है. इसलिए जरूरी है कि  समयसमय पर दांतों की जांच कराई जाए और कैविटी हो तो उस का इलाज (फिलिंग या RCT) करवाएं.

पाचन और लीवर की समस्याएं : अंदरूनी बीमारी के संकेत

मुंह से आती बदबू का कारण केवल मुंह की सफाई नहीं करना नहीं है. अगर किसी को लंबे समय से गैस, एसिडिटी, गैस्ट्रिक रिफ्लैक्स या फैटी लिवर जैसी समस्याएं हैं, तो यह भी मुंह से आने वाली दुर्गंध का कारण हो सकता है.यह शरीर की आंतरिक गड़बड़ियों के संकेत होते हैं. पेट की तकलीफों को नजरअंदाज न करें, डाक्टर से सलाह लें और हैल्दी डाइट लें. ज्यादा तलाभुना या जंक फूड आप की इस समस्या को और बढ़ा सकता है.

टौंसिल या साइनस की दिक्कत : गले की वजह से बदबू

गले में टौंसिल स्टोन (सफेद बिंदु) या बारबार होने वाला संक्रमण मुंह की दुर्गंध का बड़ा कारण होता है.

कभीकभी नाक साइनस का मवाद  भी बदबूदार सांस पैदा करता है. ऐसे में ईएनटी विशेषज्ञ से जांच करवाएं.

शुष्क मुंह (Dry Mouth / Xerostomia)

हमारे मुंह में खुदबखुद बनने वाली लार मुंह को साफ रखने और बैक्टीरिया हटाने का प्राकृतिक तरीका है. अगर किसी कारण से हमारे मुंह में लार या सलाइवा बनना कम हो जाए, तो बैक्टीरिया बढ़ जाते हैं और बदबू शुरू हो जाती है. इस के कई कारण है जैसे पानी कम पीना, कुछ दवाइयां (ब्लड प्रेशर, डिप्रैशन आदि), उम्र बढ़ना, मुंह खुला रखना या मुंह खुला रख कर सोना. इस परेशानी से बचने के लिए आप को खूब पानी पीना चाहिए, शुगरफ्री च्युइंगम लें क्योंकि आप का मुंह ऐक्सट्रा सलाइवा बनाता है जिस से आप को ड्राई माउथ नहीं होता. ऐसी समस्या होने पर डाक्टर से सलाह अवश्य लें.

जबड़े की बनावट (Open Bite)

कुछ लोगों के जबड़े की बनावट ऐसी होती है कि वे मुंह पूरी तरह बंद नहीं कर पाते. ऐसे में लगातार मुंह के खुले रहने से मुंह सूखता है और लार की कमी के कारण बदबू आती है.  डैंटल/और्थोडौंटिक ट्रीटमैंट से इसे ठीक किया जा सकता है.

धूम्रपान, हुक्का और शराब : बैक्टीरिया का पसंदीदा माहौल

तंबाकू, गुटखा, हुक्का और शराब आदि मुंह की स्वाभाविक सफाई को बिगाड़ देते हैं. इन से बैक्टीरिया अधिक पनपते हैं और मसूड़े भी कमजोर होते हैं. इन आदतों को धीरेधीरे बंद करें और मुंह की सफाई पर खास ध्यान दें.

दवाइयों का साइड इफैक्ट्स

कुछ दवाइयां जैसे ऐंटीहिस्टेमीन, ब्लड प्रेशर की दवा, ऐंटीडिप्रेसेंट आदि मुंह सूखा देती हैं, जिस से बैक्टीरिया बढ़ते हैं और बदबू आती है. डाक्टर से सलाह ले कर वैकल्पिक दवा के बारे में पूछ सकते हैं. पानी खूब पिएं.

मुंह की प्राकृतिक फ्लोरा या आइएट्रोजेनिक हैलिटोसिस

जब सब ठीक हो फिर भी बदबू क्यों?

  • कभीकभी किसी व्यक्ति के मुंह में बैक्टीरिया की मात्रा और प्रकार ऐसे होते हैं कि वे स्वतः बदबू पैदा करते हैं जिन्हें बदला नहीं जा सकता है. यह बहुत दुर्लभ स्थिति होती है. ओरल हैल्थ में जब बात मुंह से दुर्गंध आती हो, तो यह किसी डैंटल ट्रीटमैंट, दवा या चिकित्सा प्रक्रिया के बाद उत्पन्न हुई हो.
  • जैसे किसी ट्रीटमैंट के बाद डाक्टर की सुझाई दवा आप को सूट न करे और उस के साइड इफैक्ट से मुंह सूख जाना, जिस से बदबू होने लगे.
  • दांत निकालने के बाद अगर घाव साफ न किया जाए तो वहां बैक्टीरिया जमा हो कर बदबू पैदा कर सकते हैं
  • कोई डैंटल रिस्टोरेशन (जैसे क्राउन या ब्रिज) अगर ठीक से फिट न हुआ हो और उस में खाना फंसे तो वहां से बदबू आ सकती है.

अब आप को पता कैसे चलेगा कि आप आइएट्रोजेनिक हैलिटोसिस के शिकार हैं और यह मुंह से आती  फाउल स्मेल आइएट्रोजेनिक है? तो अगर आप ने कोई नया डैंटल ट्रीटमैंट करवाया है या कोई नई दवा शुरू की है और उस के बाद से लगातार बदबू आ रही है तो संभव है आइएट्रोजेनिक हैलिटोसिस हो.

इस से बचने के लिए आप अपने डैंटिस्ट से फालोअप चेकअप लें.  अगर दवा की वजह से मुंह सूख रहा है, तो डाक्टर से विकल्प पूछें. जहां से बदबू आ रही है, वहां विशेष सफाई या ट्रीटमैंट करवाएं. अधिक पानी पिएं और जीभ की सफाई पर ध्यान दें.

सही ओरल हाइजीन कैसे रखें

डा. वंदना लकड़ा के अनुसार कुछ जरूरी आदतें अपनाएं :

 

  • दिन में 2 बार ब्रश करें, सुबह और रात को सोने से पहले.

 

  • हर बार कम से कम 2 मिनट तक ब्रश करें.

 

  • टंग क्लीनर से जीभ की सफाई करें.

 

*माउथवाश का सीमित समय तक इस्तेमाल करें (ब्रश के तुरंत बाद नहीं)

 

  • फ्लौस या इंटरडैंटल ब्रश से दांतों के बीच की सफाई करें.

 

  • हर 6 महीने में डैंटिस्ट से मिलें.

 

  • ब्रश के बाद कुल्ला न करें ताकि टूथपेस्ट का फ्लोराइड बना रहे.

 

  • मध्यम सख्त ब्रश चुनें और हर 3 महीने में बदलें.

 

ब्रशिंग की सही तकनीक क्या है

 

  • ब्रश को 45 डिग्री ऐंगल पर मसूड़ों की ओर झुका कर चलाएं

 

  • ऊपरी दांतों पर ब्रश ऊपर से नीचे और निचले दांतों पर नीचे से ऊपर करें.

 

  • ज्यादा जोर लगा कर ब्रश न करें, सौफ्ट हैंड से ब्रश करें वरना मसूड़ों को नुकसान हो सकता है.

 

  • एक ही हिस्से पर ज्यादा समय और दूसरे हिस्से पर कम ध्यान न दें. कई लोग मुंह के एक साइड तो अच्छे से ब्रश करते हैं और दूसरे साइड को नैगलेक्ट कर देते हैं. ऐसा न करें. दोनों साइड के दातों की सफाई अच्छे से करें.

मुंह की बदबू से छुटकारा पाने लिए जरूरी है, सही जानकारी, नियमित देखभाल और समयसमय पर जांच. ओरल हाइजीन का ध्यान रखने से इस समस्या को पूरी तरह से रोका जा सकता है.

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