‘‘मैम,मुझे बहुत अच्छी इंग्लिश बोलनी है, बिलकुल आप की तरह,’’ उस पतलीदुबली प्यारी सी लड़की ने जब यह बात मुझ से कही तो मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘क्यों नहीं तुम मुझ से भी अच्छा बोलोगी, बस थोड़ा प्रैक्टिस की जरूरत है.’’
मैं एक शिक्षिका हूं और मेरी छोटी सी क्लास है जिस में मैं इंग्लिस सिखाती हूं. 28 साल का यह सफर बहुत ही रंगबिरंगा रहा है. इस में मु?ो कितना कुछ सीखने को मिला है, खासतौर पर आजकल के युवाओं से. इन का जीवट, आगे बढ़ने के लिए लगन, हमेशा नया सीखने और
कुछ कर गुजरने की जो चाह है वह बहुत ही प्रशंसनीय है.
यह कहानी है मेरी ही कक्षा की एक लड़की की. एक ऐसी लड़की जो विपरीत परिस्थितियों में भी कीचड़ में कमल की तरह खिली और जिस ने विषम परिस्थितियों पर जीत हासिल करी. लड़की का असली नाम तो कुछ और है पर पाठकों के लिए हम उस का नाम प्रेरणा रखते हैं. आखिर उस का जीवन भी इतना प्रेरणादायी जो है.
प्रेरणा का बचपन बहुत ही कठिनाइयों से भरा था. वे 6 भाईबहन थे. मां दूसरों के घर में काम करती थीं तथा उस के पिता फलों व सब्जियों की दुकान लगाते थे. घर में दादादादी भी थे. प्रेरणा की 2 बहनें थीं और 3 भाई. उस के पिता और मां में बहुत ?ागड़ा होता था क्योंकि पिता किसी भी लड़की को पढ़ाने के पक्ष में नहीं थे और मां अपने सभी बच्चों को पढ़ाना चाहती थीं. पिता के अनुसार उन की मेहनत की कमाई लड़कियों की पढ़ाई पर जाया हो रही है. लड़के पढ़ना नहीं चाहते थे तो भी उन्हें मजबूरन पढ़ाई करनी पड़ रही थी. तीनों बहनें पढ़ाई में बहुत होशियार थीं. जो एक बात उन के पक्ष में थी, वह थी उन के दादाजी का समर्थन. दादाजी को बहुत चाव था कि उन के सभी पोतेपोतियां खूब पढ़ेंलिखें. लड़कों से तो उन्हें कुछ खास उम्मीद नहीं थी पर लड़कियों की शिक्षा बंद करने के पक्ष में वे बिलकुल नहीं थे. इसी वजह से प्रेरणा के पिता ज्यादा कुछ नहीं कर पाते थे. सिर्फ लड़ाई?ागड़ा कर के ही अपना असंतोष जाहिर करते थे. दादाजी का बनवाया हुआ छोटा सा घर था जिस में ये सब रहते थे इसलिए उन का कहना प्रेरणा के पिता मजबूरी में मान लेते थे.
जब प्रेरणा का 10वीं का परिणाम आया तो वह भागती हुई रिजल्ट दिखाने को पिता के पास गई, ‘‘पापा, देखिए मैं फर्स्ट क्लास पास हो गई हूं, मेरे 70त्न नंबर आए हैं.’’
बेटी को शाबाशी देना तो दूर, पिता ने रिजल्ट को आंख उठा कर भी नहीं देखा और वहां से उठ गए. पर प्रेरणा के दादाजी और मां बहुत खुश हुए. दादाजी ने उसी समय सौ रुपए का एक नोट उस के हाथ में रखा.
‘‘प्रेरणा की पढ़ाई हो गई, वह अब आगे नहीं पढ़ेगी. मैं लड़के देख रहा हूं, यह अब शादी कर के जाए तो एक बला टले,’’ इतने अच्छे रिजल्ट के बाद पिता की यह प्रतिक्रिया सुन कर प्रेरणा तो हक्कीबक्की रह गई.
उस की दादी ने भी उस की मां से कहा, ‘‘इसे घर के कामकाज सिखाओ. हम लोग इतने अमीर नहीं हैं कि लड़की को आगे पढ़ा सकें. बहनों की भी पढ़ाई छुड़वाओ और घर के कामों में लगाओ.’’
मगर प्रेरणा के दादाजी अड़ गए कि सभी बच्चे पढ़ेंगे. दादी और पिता उस दिन दादाजी से खूब ?ागड़े. बाकी भाई तो मौका मिलते ही घर से निकल कर यह जा और वह जा हो गए. लड़कियां बेचारी सुबकती, सहमती मां के साथ दूसरे कमरे और रसोईघर में खड़ी रहीं.
प्रेरणा अब तक मु?ा से काफी खुल चुकी थी. पता नहीं उसे मु?ा में क्या दिखता था पर यह सब उस ने ही एक दिन बताया. शायद उसे मु?ा में एक हमदर्द दिखाई देने लगा था.
मैं ने एक दिन कहा, ‘‘मेरी तुम्हारी मां से मिलने की बड़ी इच्छा है. बहुत ही जीवट वाली होंगी जो सबकुछ सह कर भी तुम्हारे साथ खड़ी हैं.’’
अगले ही दिन वह अपनी मां को ले कर क्लास आ गई. एकदम सीधीसरल घरेलू महिला थीं वे. मु?ो हाथ जोड़ कर बस इतना ही बोलीं, ‘‘मैडम, इसे आप का बहुत सहारा है. आप बस इस की इंग्लिश इतनी अच्छी कर दो कि यह बैंक की परीक्षा दे सके.’’
मैं ने कहा, ‘‘क्यों नहीं, यह तो खुद ही
बहुत होशियार बच्ची है. बैंक परीक्षा जरूर क्लीयर करेगी.’’
इस पर मांबेटी दोनों मुसकराने लगे. इस के बाद तो प्रेरणा मुझ से पूरी तरह खुल गई. अब हर छोटी बात पर वह मुझ से सलाह अवश्य लेती.
उन दोनों के कहने पर मैं 2-3 बार प्रेरणा के घर भी हो आई थी. हां, पर मैं शाम को ही उस के घर गई थी क्योंकि प्रेरणा ने कहा था उस टाइम पर उस के पापा घर पर नहीं होते. उन्हें नहीं पता था कि उस ने इंग्लिश की क्लास जौइन की हुई है. कुछ दिन बाद उस ने 10वीं के बाद के संघर्ष और अपने वर्तमान की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस तरह थी…
2 कमरों के छोटे से घर में सभी लड़ते?ागड़ते अपने को कोसते, तो कुछ ऊपर उठने का प्रयास करते, एकसाथ रह रहे थे. पर चूंकि यह किसी फिल्म की कहानी नहीं थी तो प्रेरणा के घर या घर वालों के स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया. पिता गरजतेबरसते रहते, दादी लड़कियों व उन की मां को कोसती रहतीं. भाई सब आवारा हो गए थे और कोई टोकने वाला नहीं था. दादाजी का कहा वे एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल देते थे पर प्रेरणा के पिता उन्हें ले कर निश्चिंत थे. पिता के अनुसार वे मर्द बनना सीख रहे थे. सिगरेट फूंकना, घर के बाहर घूमना, दोस्तों की टोली के साथ जुआ खेलना और पिता व दादाजी से छिपा कर स्कूल न जाना उन के काम थे. बहनों और मां को सब पता होते हुए भी कोई कुछ नहीं कर पा रहा था. तीनों भाई घर में शेर थे और पिता के साथ उन के सुर में बोलने लगे थे, हालांकि तीनों बहनों से छोटे थे.
बस, यही प्रेरणा का जीवन था. उस के पास न टेलीविजन था और न कोई और मनोरंजन का साधन. दुकान से बस किसी तरह घर का खर्च चल रहा था. प्रेरणा दादाजी की पैंशन की मदद के सहारे ग्रैजुएशन कर चुकी थी. उस की व अन्य बहनों की शादी भी वे अब तक टलवाने में सक्षम रहे थे. फिर एक दिन वे चल बसे. अब तो पिता और दादी को खुली छूट मिल गई, लड़कियों को बेमतलब तंग करने व ताने मारने की. पत्नी के साथ मारपीट का सिलसिला भी दादाजी के जाने के बाद शुरू हो गया था. लड़कियां अभी तक मारपीट से बची हुई थीं.
एक दिन अचानक प्रेरणा पिता ने कहा कि उन्होंने एक बहुत अच्छा लड़का उस के लिए देखा है. इस समय तक प्रेरणा बराबर क्लास आ रही थी व काफी अच्छी इंग्लिश बोलने लगी थी. उसी ने अगले दिन मु?ो कहा कि उस के पिता ने फिर उस की शादी की बात छेड़ी है. उस के घर में जब उस की मां ने पूछा कि वह लड़का क्या करता है, तो उस के पिता ने कहा कि वह प्रेरणा के कालेज के बिलकुल सामने काम करता है. सब बड़े हैरान हुए क्योंकि लड़कियों और उन की मां को प्रेरणा के पिता पर बिलकुल भरोसा नहीं था.
जब प्रेरणा ने ही जोर दे कर पूछा कि पापा, मगर लड़का करता क्या है? तो प्रेरणा के पिता बोले, ‘‘उस का खुद का सैंडविच स्टौल है, तू चाहे तो उसे मिल सकती है.’’
जब प्रेरणा ने लड़के की शिक्षा के बारे में पूछा तो पता चला कि वह तो 10वीं फेल है. इधर प्रेरणा एमकौम में एडमिशन ले कर बैंक परीक्षा की तैयारी कर रही थी. मां उस की फीस के पैसे भर देती थीं. इंग्लिश क्लास के लिए तो उस की मां ने छिपा कर रखे हुए पैसे दे दिए थे.
मेरी क्लास के एक लड़के अनुभव ने ही उस से क्लास में बोला, ‘‘अरे, अगर पापा शादी सैंडविच वाले से करना चाहते हैं तो मिल क्यों नहीं लेती? क्या बुराई है? तेरे पिताजी भी तो अपने स्टैंडर्ड का ही लड़का ढूंढ़ेंगे न? हर बार उन को गलत ठहराना उचित है क्या?’’
इस पर प्रेरणा की बड़ीबड़ी आंखों में आंसू भर आए. बोली, ‘‘सैंडविच स्टौल में कोई बुराई नहीं है, मगर मैं एमकौम के साथसाथ बैंक परीक्षा दूंगी और लड़का 2 बार 10वीं फेल. ऐसे में मन का मेल कैसे होगा?’’
अनुभव फिर बोला, ‘‘शादी करनी है तो अभी क्यों नहीं?’’
इस पर प्रेरणा बोली, ‘‘अभी मेरे कैरियर का सवाल है. मेरे दादाजी पिछले साल गुजर गए इसलिए पिताजी अपनी मनमानी कर रहे हैं. लेकिन उन की सब्जी की दुकान भी उस स्टौल से बड़ी है. उन्हें न लड़के में कोई गुण दिखाई देता है न ही मु?ा में. बस किसी तरह से मेरी शादी कर के मु?ो घर से बाहर निकालना है.’’
हम लोग उस की बातें सुन कर चौंक गए थे. अनुभव से मैं ने चुप रहने को कहा और पूछा, ‘‘अब तुम क्या करोगी प्रेरणा?’’
‘‘कुछ नहीं मैम. जैसे अब तक लड़ती आई हूं वैसे ही आगे भी अपना रास्ता खुद ही बनाऊंगी.’’
मैं ने पूछा, ‘‘मगर कैसे? अब तो दादाजी भी नहीं हैं.’’
‘‘दादाजी नहीं हैं तो क्या हुआ? मेरी मां तो अभी भी मेरे साथ हैं. मु?ो आप की क्लास में जितने कोर्स हैं, सब करने हैं ताकि मैं अपनी मंजिल को पा सकूं.’’
मैं ने फिर भी कहा कि मैं उस के पिता को सम?ा सकती हूं, तो वह बोली, ‘‘मैम, मैं आप की बहुत इज्जत करती हूं. अगर मेरे पापा ने या भाइयों ने आप के साथ कुछ बदतमीजी की या कोई भी उलटीसीधी हरकत की तो मैं सहन नहीं कर पाऊंगी. आप बस मु?ो हमेशा इसी तरह संबल और हिम्मत देती रहें.’’
उस की बातें सुन कर मैं मुसकरा उठी. इस घटना के 2-3 दिन बाद मैं ने ध्यान दिया कि अनुभव चुपचाप प्रेरणा को देखता रहता था. जब मैं कुछ सम?ाती तो उस की नजरें सिर्फ प्रेरणा पर टिकी होती थीं. मेरे द्वारा उसे 1-2 बार ऐसा करते हुए पकड़े जाने पर वह सकपका गया. अब वह प्रेरणा की क्लास में मदद कर देता था व उस को नोट्स भी सम?ा देता था. वे लोग आपस में हंसनेबोलने भी लगे थे और उन की काफी दोस्ती भी हो गई थी क्योंकि इस तरह की बातें इस उम्र में आम होती हैं.
मैंने अनुभव को तो कुछ नहीं कहा मगर प्रेरणा से बात करने की जरूर ठान ली. हालांकि अगले दिन प्रेरणा ने खुद ही अनुभव का जिक्र कर के मु?ो हैरान कर दिया. वह बोली, ‘‘मैम, कल अनुभव ने मुझसे कहा है कि वह अपनी जिंदगी मेरे साथ बिताना चाहता है.’’
मैं यह सुन कर अचरज में पड़ गई. आजकल की जैनरेशन समय बरबाद करने में बिलकुल विश्वास नहीं करती है. इसलिए इसे फास्ट ट्रैक जैनरेशन कहते हैं. मैं ने पूछा, ‘‘और तुम ने उसे क्या कहा?’’
वह बोली, ‘‘मैम, मेरा तो एक ही लक्ष्य है कि मु?ो बैंक परीक्षा पास कर के एक अच्छी सी नौकरी करनी है बस.’’
मैं ने प्यार से उस का गाल सहला दिया. मगर दोनों की इस इस कहानी को न यहां थमना था और न ही खत्म होना. अनुभव ने प्रेरणा से कहा कि वह भी उस के साथ बैंक की परीक्षा देगा और भविष्य में कुछ बन जाने पर ही वे अपने कल के बारे में कुछ सोचेंगे. हां, उस ने प्रेरणा के साथ पढ़ाई करने की इच्छा जताई तो प्रेरणा ने सहर्ष हामी भर दी.
प्रेरणा ने 1 महीने बाद मां के दिए हुए पैसों से बैंक परीक्षा की कोचिंग शुरू की और मेरी क्लास में भी एडवांस्ड इंग्लिश कोर्स करने लगी. अनुभव ने भी एडवांस्ड कोर्स में एडमिशन ले कर उसी की कोचिंग क्लास जौइन कर ली. उन दोनों का उत्साह देखते ही बनता था पर दोनों की एक खूबी यह भी थी कि पढ़ाई के अलावा मेरी क्लास में वे लोग कोई बेसिरपैर की बात नहीं करते थे. अब तक अनुभव को पता चल चुका था कि प्रेरणा अपनी सभी बातें सिर्फ मुझ से और अपनी मां से शेयर करती है. यह सब सुन कर वह भी मुझ से खुलने लगा था. उस ने अपने बारे में बताया कि वह बहुत ही लाड़प्यार से पला हुआ, अपने मातापिता का इकलौता लड़का था, इसलिए प्रेरणा का नजरिया नहीं सम?ा पाया था. पर अब उस के संघर्ष में वह हर कदम पर उस का साथ देना चाहता है.
दोनों का क्या गजब का जज्बा था. उधर कुछ दिन बाद घर में प्रेरणा ने उस सैंडविच स्टौल वाले से शादी के लिए मना कर दिया. नौबत हाथापाई तक आ पहुंची तो प्रेरणा ने फोन कर के मु?ो भी बुला लिया. उस से पूछ कर मैं ने पुलिस को भी सूचित कर दिया. पुलिस तुरंत उस के घर पर आ पहुंची. मैं ने व उस के पड़ोसियों ने मिल कर उस के पिता को सम?ाने की कोशिश की पर उन्होंने मु?ा से कहा, ‘‘मैडम, मेरी और भी लड़कियां हैं और मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि मैं इन सब को पढ़ा सकूं. इन की शादी हो जाए तो मेरा सिरदर्द खत्म हो.’’
मैं ने कहा, ‘‘तो उस के लिए क्या आप इन सब को मारेंगे पीटेंगे?’’
डोमैस्टिक वायलैंस के केस में वहां खड़े पुलिस औफिसर ने जब प्रेरणा के पिता को जेल में डालने की बात की तो मां ने भी अपनी बेटी का ही साथ दिया. यह देख कर प्रेरणा के पिता पुलिस के आगे घिघियाने लगे. तब प्रेरणा ने अपनी शिकायत वापस ले ली और पिता को जेल जाने से बचा लिया. उस के बाद उन की मारपीट का सिलसिला थोड़े दिनों के लिए रुक गया.
फिर एक दिन वह भी आया जब प्रेरणा मुसकराती हुई मेरे सामने मिठाई का डब्बा लिए खड़ी थी, ‘‘मैं ने परीक्षा क्लीयर कर के एक बैंक में अप्लाई किया था मैम. मुझे जौब औफर मिल गया है.’’
मैं हैरान हो कर उसे देखती रह गई. एक मामूली सी दिखने वाली दुबलीपतली लड़की और इतनी मुश्किल लड़ाई. लेकिन आज वह जीत कर स्वाभिमान और गर्व से दपदपाता मुखमंडल लिए, आत्मविश्वास से परिपूर्ण मेरे सामने खड़ी थी. प्रेरणा आज सचमुच कइयों के लिए एक उदाहरण बन, अपनी पहली उड़ान भरने को तैयार थी.
‘‘और अनुभव का क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा तो वह बोली, ‘‘उस ने भी परीक्षा क्लीयर कर के एक इंटरनैशनल बैंक में अप्लाई किया था जहां उसे भी जौब मिल गई है,’’ कहतेकहते वह शरमा गई. उस की आंखों में अपने नए जीवन के सपनों ने जन्म लेना शुरू कर दिया था.
‘‘अब कोई फिक्र नहीं है. अगर पापा ने ?ागड़ा किया या कुछ भलाबुरा कहा तो मैं कुछ दिनों में अलग घर किराए पर ले कर अपनी मां व बहनों के साथ चली जाऊंगी. तब देखते हैं इन का क्या होगा,’’ प्रेरणा बोली.
मेरा उस के घर अब जाना नहीं हो पाता था क्योंकि वह अपनी जौब में बिजी हो गई थी. अनुभव भी दूसरे शहर में जौब कर रहा था पर इस दौरान पूरे समय प्रेरणा की हिम्मत बंधाने के लिए बीचबीच में छुट्टी ले कर उस से मिलने आता रहता था. मैं फोन पर ही दोनों के साथ बात कर के उन के हालचाल ले लेती थी. प्रेरणा ने ही फोन पर एक दिन मु?ो बताया कि अनुभव बाकायदा उस के लिए रिश्ता लेकर उस के घर पहुंचा था और उस के मांपापा से उस का हाथ मांगा था. हालांकि दोनों ने ही अपने घर वालों से यह बात छिपा रखी थी. अनुभव ने परिवार वालों को जौब लगने के बाद ही उस के बारे में बताया था. प्रेरणा के घर वालों को लगा कि उस का रिश्ता उस की अच्छी जौब की वजह से आया है. घर में सब की हां हो जाने पर प्रेरणा ने अपनी मां को सचाई बता दी. उस की मां ने भी प्यार से उस की पीठ थपथपा कर अपनी सहमति दे दी.
फिर एक दिन ठीक 6 महीने बाद प्रेरणा और अनुभव दोनों मेरे सामने अपनी शादी के
कार्ड ले कर खड़े थे. प्रेरणा तो एक किलोग्राम का कलाकंद का डब्बा भी लाई थी, ‘‘मैम, आप न होतीं तो इस जु?ारू लड़की से मैं कभी न मिल पाता,’’ अनुभव बोला.
फिर दोनों इकट्ठे बोले, ‘‘आप को आशीर्वाद देने के लिए हर फंक्शन में आना होगा मैम.’’
मेरी आंखें इतना प्यार देख कर डबडबा उठीं. दोनों को कलाकंद का 1-1 पीस खिलाते हुए मैं ने दोनों की खुशी की ढेरों मंगल कामनाएं कीं.
अब आप यह भी जरूर जानना चाहेंगे कि प्रेरणा के घर में आगे क्या हुआ? प्रेरणा शादी से पहले ही तीनों भाइयों को छोटीमोटी नौकरी पर लगवा चुकी थी. उन का जीवन भी एक ढर्रे पर आ गया था. आखिरकार उस के पिता ने हार स्वीकार कर उस की बहनों को आगे पढ़ाई की अनुमति दे दी. बेटी को कमाता देख शायद उन्हें भी अक्ल आ गई थी.
जो भी हो, प्रेरणा के अनुसार, अब उन के घर से लड़ाईझगड़े की आवाजें आनी बिलकुल बंद हो गई थीं. दुख भी अपने घुटने टेक कर हार मान चुका था. वह और अनुभव अपने नए जीवन में बहुत सुखी थे. यही सब बताने के लिए उस ने हनीमून से लौटते ही मुझे फोन किया था.
मैं ने यह सुन कर मुसकराते हुए एक राहत की सास ली और एक नई ऊर्जा से भर क्लास को सिखाने में लग गई.