बर्तन को रखना चाहती हैं चकाचक, तो किचन में लाएं डिशवाशर

महक की कामवाली हर 6 महीने में अपने गांव जाती है. 15 दिन का बोल कर 1 महीने बाद वापस आती है. पतिपत्नी दोनों कामकाजी हैं. दिनचर्या फिक्स है. दिनभर काम करने के बाद या सुबहसुबह रोज बर्तन साफ करने में ऊर्जा खर्च करना संभव नहीं था इसलिए डिशवाशर खरीद लिया.

आज के व्यस्त जीवन में महिलाएं और पुरुष दोनों ही अपने कामकाज और घरेलू जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश करते हैं और ऐसे में घर के बर्तन धोने जैसे कामों के लिए कामवाली पर निर्भर रहते हैं. जब वह अचानक छुट्टी पर चली जाती है, तो घर के सभी काम प्रभावित होते हैं. अगर महिला कामकाजी है तो फिर तो उस की आफत आ जाती है क्योंकि घर के काम को पूरा करने के लिए उसे ही छुट्टी लेनी पड़ती है.

ऐसे में डिशवाशर किसी वरदान से कम नहीं है. आप घर में मंदिर नहीं बनवाएं, मगर किचन में डिशवाशर को पूरी जगह दें. लेकिन किसी भी डिशवाशर को खरीदने से पहले आप को इन बातों का खयाल रखना चाहिए कि किस तरह का डिशवाशर आप के घर के लिए परफैक्ट है.

भारत में एलजी, वोल्टास, सैमसंग जैसे ब्रैंड के डिशवाशर ज्यादा डिमांड में हैं. ये डिशवाशर आजकल ज्यादातर घरों में देखने को मिल जाते हैं. इस मशीन के कारण बहुत सारा वक्त बचता है और बर्तन भी सही तरीके से धूल जाते हैं.

ये डिशवाशर बिलकुल वाशिंग मशीन के तरह काम करता है. बस, इस में कपड़े की जगह बर्तन साफ किए जाते हैं .

डिशवाशर कामकाजी महिलाओं के साथ, बैचलर्सशव बुजुर्गों के लिए भी कई तरह से फायदेमंद साबित होता है. डिशवाशर हमारी जिंदगी को आसान बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह एक ऐसी मशीन है जो बर्तन धोने के काम को आसान, तेज और कुशल बना देती है.

तो आइए, जानें किन तरीकों से डिशवाशर हमारी जिंदगी को आसान बनाता है.

समय की बचत

डिशवाशर का सब से बड़ा फायदा यह है कि इस से हमारा समय बचता है. जहां बर्तनों को हाथ से धोने में काफी समय लगता है, वहीं डिशवाशर में केवल बर्तन रखना, साबुन डालना और मशीन चालू करना होता है. इस से आप का समय और मेहनत दोनों बचते हैं.

स्वच्छता और हाइजीन

डिशवाशर बर्तनों को बहुत ही उच्च तापमान पर धोता है, जोकि हाथ से बर्तन धोने पर संभव नहीं होता. इस से बर्तन न केवल साफ होते हैं, बल्कि कीटाणुरहित भी हो जाते हैं. यह स्वास्थ्य के लिए भी बेहतर होता है, क्योंकि उच्च तापमान पर धुलाई से जर्म्स और बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं.

पानी की बचत

हाथ से बर्तन धोने में अकसर अधिक पानी का इस्तेमाल होता है, लेकिन डिशवाशर पानी का प्रभावी ढंग से उपयोग करता है. यह कम पानी में अधिक बर्तन धो सकता है, जिस से पानी की बचत होती है.

कम मेहनत

डिशवाशर का उपयोग शारीरिक मेहनत को काफी कम कर देता है. हाथ से बर्तन धोने में झुकने, रगड़ने और समय देने की जरूरत होती है जबकि डिशवाशर में बर्तन सैट करने के बाद आप को कुछ नहीं करना पड़ता.

पर्यावरण के अनुकूल

नए माडल के डिशवाशर ऊर्जा और पानी की खपत को कम करने के लिए डिजाइन किए गए हैं, जो पर्यावरण के लिए अनुकूल होते हैं. इस से बिजली और पानी दोनों की बचत होती है.

सुविधाजनक और कुशल

डिशवाशर में बर्तन सैट करना और धुलाई के बाद उन्हें निकालना काफी आसान और सुविधाजनक है. यह मशीन न केवल बड़े बल्कि छोटे और नाजुक बर्तनों को भी कुशलता से धोती है.

बड़े परिवारों के लिए उपयोगी

बड़े परिवारों में या जब घर में मेहमान आते हैं, तो बर्तनों की संख्या अधिक हो जाती है. ऐसे में हाथों से बर्तन धोना काफी समय और मेहनत वाला काम बन जाता है. डिशवाशर इस समस्या का समाधान करता है और बड़ी संख्या में बर्तनों को एकसाथ धोने में सक्षम होता है.

खरीदने से पहले कुछ बातें जान लें.

* डिशवाशर लेने से पहले यह तय कर लें कि कौन सा साइज आप के लिए बैस्ट होगा.
* किचन में किधर रखेंगे, बिजली, पानी का कनैक्शन कैसे होगा, आदि सोच लें.
* वही डिशवाशर लें जिस में मैमोरी फंक्शन हो, मतलब बिजली जाने के बाद वाश साइकल वहीं से शुरू हो जिधर रुकी थी.
* हाथों से बर्तन धोने की तुलना में इस में पानी बहुत कम लगता है.
* लकड़ी, अल्युमीनियम के बर्तन इस में नहीं धुलते, उन्हें हाथ से ही धोने पड़ेंगे. आगे से वही बर्तन खरीदें जो डिशवाशर सेफ हों.
* पुरुष भी इस में बर्तन रख सकते हैं.
* हाथ से धोने की तुलना में यह कहीं ज्यादा बेहतर सफाई करता है.शखासकर स्टील, सिरेमिक और कांच के बर्तन तो एकदम नए ही लगते हैं.
* बहुत ठंडे या बहुत गरम मौसम में बर्तन धोने की परेशानियों से छुटकारा मिलता है.
* इस में बर्तन जमाने में 5 मिनट लगते हैं, रात को लगा कर सो जाएं तो सुबह चमचमाते बर्तन मिलते हैं. कई महिलाओं को सुबह उठते ही पहली चिंता यही होती है कि कामवाली आएगी या नही, उस से छुटकारा मिलता है.

किचन के काम में हसबैंड भी करें मदद, घर का माहौल रहेगा खुशनुमा

अकसर यह देखा जाता है कि घर के काम, विशेषरूप से किचन का काम महिलाओं की जिम्मेदारी मान ली जाती है. हालांकि यह जरूरी नहीं है. जब पति और पत्नी दोनों कामकाजी होते हैं, तो घरेलू जिम्मेदारियों को साझा करना एक खुशहाल और संतुलित रिश्ते की कुंजी हो सकता है.

आज के समय में जब महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही हैं और अपनी प्रोफैशनल जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हैं, तो घर के कामों में भी साझेदारी की उम्मीद होना स्वाभाविक है.

एक संतुलित और स्वस्थ रिश्ते के लिए यह जरूरी है कि पतिपत्नी दोनों मिल कर घर की जिम्मेदारियों को बांटें. खासकर वर्किंग महिलाओं के लिए किचन का काम अकेले संभालना थकानभरा हो सकता है. ऐसे में, पति को किचन में मदद के लिए तैयार करना एक सकारात्मक कदम हो सकता है.

यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं, जो आप के पति को किचन के काम में हाथ बंटाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं :

खुले और ईमानदार संवाद से शुरुआत करें

सब से पहले अपने पति से इस मुद्दे पर खुल कर बात करें. अपने विचारों और भावनाओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त करें कि किचन का काम सिर्फ एक व्यक्ति की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह साझेदारी का काम है. उन्हें बताएं कि एक वर्किंग महिला के रूप में आप के पास समय और ऊर्जा की सीमाएं होती हैं, और उन की मदद से काम जल्दी और आसानी से निबट सकता है. यह बातचीत शिकायत या नाराजगी के बजाय एक समझदारी और सहयोग पर आधारित होनी चाहिए.

साझा जिम्मेदारी का महत्त्व बताएं

घर के काम केवल महिला की जिम्मेदारी नहीं होते. यह महत्त्वपूर्ण है कि आप का पति यह समझे कि घर और किचन का काम दोनों की जिम्मेदारी है. यह साझेदारी न केवल आप के काम को हलका करेगी, बल्कि आप दोनों को एक टीम की तरह काम करने में भी मदद मिलेगी. इस से आप दोनों को एकदूसरे के साथ अधिक समय बिताने का मौका मिलेगा, जो रिश्ते को भी मजबूत बनाएगा.

काम को बांटने की योजना बनाएं

अपने पति के साथ मिल कर किचन के कामों को बांटने का एक व्यवस्थित तरीका बनाएं. उदाहरण के लिए, आप दोनों इस बात पर सहमत हो सकते हैं कि एक दिन आप खाना बनाएंगी और दूसरे दिन आप का पति सब्जियां काटेगा या सफाई करेगा.

काम बांटने से किचन का बोझ एक व्यक्ति पर नहीं पड़ेगा और दोनों अपनीअपनी जिम्मेदारियों को संतुलित कर सकेंगे.

मदद को एक सहज और प्राकृतिक प्रक्रिया बनाएं

कभीकभी पति किचन में काम करने से घबराते हैं क्योंकि वे इसे मुश्किल या समय लेने वाला मानते हैं. इसलिए, शुरुआत में छोटे और सरल कामों से शुरू करें, जैसे बर्तन निकालना, सब्जियां धोना या टेबल लगाना. जब वे इन कामों में सहज हो जाएंगे, तो धीरेधीरे बड़े कामों में भी मदद करने के लिए तैयार हो सकते हैं.

प्रशंसा और प्रोत्साहन दें

जब भी आप का पति किचन में मदद करे, उन की सराहना जरूर करें. चाहे वे कितना ही छोटा काम क्यों न करें, उन की मदद की प्रशंसा करने से उन्हें और मदद करने की प्रेरणा मिलेगी.

उदाहरण के लिए, अगर उन्होंने कुछ अच्छा किया हो, तो उन्हें बताएं कि उनशकी मदद ने आप का काम कितना आसान कर दिया. सकारात्मक फीडबैक हमेशा प्रेरणा का काम करता है.

काम को मजेदार बनाएं

किचन के काम को उबाऊ न होने दें. आप इसे एक मजेदार गतिविधि बना सकती हैं, जिस में आप दोनों साथ में संगीत सुनते हुए या हंसीमजाक करते हुए काम करें.

इस से किचन का काम बोझिल नहीं लगेगा और आप का पति भी इसे बोझ की तरह नहीं लेगा, बल्कि एक अच्छा अनुभव मानेगा.

संतुलित जीवन का महत्त्व समझाएं

एक वर्किंग महिला के रूप में संतुलित जीवन जीना बहुत जरूरी है. यह बात अपने पति को भी समझाएं कि अगर दोनों मिल कर घर और किचन का काम करेंगे, तो आप के पास एकदूसरे के साथ समय बिताने और अपनी व्यक्तिगत जिंदगी को भी संतुलित रखने का मौका होगा. इस से न केवल घर का काम सुचारु रूप से चलेगा, बल्कि दोनों के बीच समझ और आपसी सहयोग भी बढ़ेगा.

जब पति को यह एहसास होता है कि किचन में मदद करना उन के परिवार की भलाई और सुखशांति के लिए है, तो वे इसे बिना किसी दबाव के करने को तैयार होते हैं.

रूटीन बनाएं

कभीकभी लोग किचन के काम से इसलिए बचते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यह बहुत समय लेने वाला और थकाऊ है. अगर आप अपने पति को यह दिखा सकें कि रूटीन और टाइम मैनेजमेंट से किचन का काम जल्दी और प्रभावी ढंग से किया जा सकता है, तो वे इसे करने के लिए अधिक इच्छुक हो सकते हैं.

उदाहरण के लिए, आप किचन में समय बचाने के लिए आसान और जल्दी बनने वाली रैसिपी आजमा सकते हैं या फिर एक दिन आपशका पति सब्जी काट सकता है और आप खाना बना सकती हैं. इस से न केवल काम जल्दी निबट जाएगा, बल्कि दोनों को यह भी महसूस होगा कि यह उनशकी साझा जिम्मेदारी है.

रोल माडल्स का उदाहरण दें

कभीकभी अपने आसपास के उदाहरण दिखाशकर भी आप अपने पति को प्रेरित कर सकती हैं. अगर आप के आसपास ऐसे कपल्स हैं जहां पति भी किचन के काम में मदद करता है, तो आप उन उदाहरणों को साझा कर सकती हैं. यह दिखाने से कि समाज में ऐसे भी परिवार हैं जो घर के कामों को साझा कर के एक खुशहाल जीवन जीते हैं, उन्हें प्रेरणा मिल सकती है.

धैर्य और समर्थन

अपने पति को किचन के काम में पूरी तरह शामिल करने में समय लग सकता है. हो सकता है कि शुरुआत में वे झिझकें या काम में कम रुचि दिखाएं, लेकिन धैर्य और लगातार समर्थन से वे धीरेधीरे इस जिम्मेदारी को अपनाने लगेंगे. उन्हें दोषी महसूस कराने के बजाय उन्हें सहयोग और समर्थन दें, ताकि वे इसे स्वाभाविक रूप से अपनाएं.

अपने पति को किचन में मदद करने के लिए तैयार करना एक सकारात्मक और संतुलित घरेलू जीवन की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है.

कई बार समाज और पारंपरिक सोच के कारण पुरुष किचन के काम में हाथ नहीं बंटाते, लेकिन बदलते समय के साथ यह धारणा भी बदल रही है. जब पतिपत्नी दोनों घर के कामों में मिलकर हाथ बंटाते हैं, तो न केवल घर का माहौल सुखद होता है, बल्कि रिश्ते में भी एक गहरी समझ और सहयोग का भाव विकसित होता है.

बालों में कराने जा रही हैं Rebonding और Smoothing, तो इन बातों का रखें ध्यान

आपके लुक को बदलने में बाल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ये सौंदर्य तो बढ़ाते ही हैं, साथ ही व्यक्तित्व को भी आकर्षक बनाते हैं.

 

रिबौंडिंग

सब से पहले बालों की क्वालिटी के बारे में जानकारी होनी चाहिए यानी बाल मोटे, पतले, मीडियम, रफ या फिर डैमेज हैं, क्योंकि जो स्ट्रेट थेरैपी क्रीम इस्तेमाल की जाती है वह बालों की क्वालिटी पर निर्भर करती है. यह जान लेने के बाद बालों में अच्छी तरह शैंपू करें और फिर ड्रायर से सुखा लें.

जब बाल सूख जाएं तो आयरनिंग करें. इस के बाद स्ट्रेट थेरैपी क्रीम सैक्शन बाई सैक्शन ऊपरी बालों की लटों से ले कर नीचे की लटों तक लगाएं. 15 से 20 मिनट बाद एक बाल को खींच कर देखें. यदि बाल स्प्रिंग की तरह घूम रहा हो तो समझ लें कि सल्फर बन्स टूट गए और अगर ऐसा नहीं हुआ तो 5-10 मिनट रुकें.

इस के बाद बालों को अच्छी तरह धो लें और मीडियम हीट पर ड्रायर कर लेयर बाई लेयर आयरनिंग करें. इस के तुरंत बाद न्यूट्रलाइजर सैक्शन बाई सैक्शन उसी प्रकार करें जिस प्रकार स्ट्रेट थेरैपीक्रीम अप्लाई की गई थी. इस दौरान बिलकुल भी न हिलें. 15-20 मिनट बाद बालों को अच्छी तरह धो लें. ठंडा ड्रायर करें. बाल सूख जाएं तो सीरम लगाएं और फिर मास्क.

स्मूदनिंग

पहले बालों को अच्छी तरह शैंपू से धो कर क्रीम अप्लाई करें. जब क्रीम सूख जाए तो बालों को धोए बिना ड्रायर करें. इस के बाद प्रैसिंग करें. इस के 3 दिन बाद अपनी हेयरड्रैसर की सलाह से सिर धो कर ड्रायर करें. अंत में सीरम लगा लें.

ध्यान रहे कि ऐक्चुअल स्मूदनिंग में आयरनिंग नहीं होती है. केवल बालों का टैक्सचर इंपू्रव होता है वैव 50-60% बना रहता है. कुछ लड़कियां स्मूदनिंग करवाती हैं. वे चाहती हैं कि बाल सीधे रहें, तो इस के लिए एक बार आयरनिंग करनी पड़ती है.

सावधानियां

रिबौंडिंग या स्मूदनिंग में इन बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है.

स्कूटी न चलाएं.

बाइक के पीछे न बैठें.

बालों को दबाएं या मोड़ें नहीं.

जूड़ा न बनाएं.

रबड़बैंड न लगाएं.

मसाज न करें.

बालों को टाइट न बांधें.

बालों को धोने के बाद रगड़ें नहीं.

कलर न करवाएं. अगर करवाना ही हो तो कम से कम 20 दिन बाद करवाएं.

प्राकृतिक तरीके से कैसे करें देखभाल

खानेपीने का ध्यान रखें.

प्रोटीनयुक्त चीजों का सेवन करें.

पानी अधिक पीएं.

हरी सब्जियां और मौसमी फल ज्यादा से ज्यादा खाएं.

बालों में हफ्ते में 3 बार तेल लगाएं.

बालों को धोने के बाद रगड़ें या झाड़ें नहीं.

टैंशन से बचें.

स्टीम करें (गरम पानी में तौलिया भिगो कर सिर में लपेट लें).

बालों को हमेशा साफ रखें.

लौटते हुए: क्या हुआ सुप्रिया को गलती का एहसास

धनंजयजी का मन जाने का नहीं था, लेकिन सुप्रिया ने आग्रह के साथ कहा कि सुधांशु का नया मकान बना है और उस ने बहुत अनुरोध के साथ गृहप्रवेश के मौके पर हमें बुलाया है तो जाना चाहिए न. आखिर लड़के ने मेहनत कर के यह खुशी हासिल की है, अगर हम नहीं पहुंचे तो दीदी व जीजाजी को भी बुरा लगेगा…

‘‘पर तुम्हें तो पता ही है कि आजकल मेरी कमर में दर्द है, उस पर गरमी का मौसम है, ऐसे में घर से बाहर जाने का मन नहीं करता है.’’

‘‘हम ए.सी. डब्बे में चलेंगे…टिकट मंगवा लेते हैं,’’ सुप्रिया बोली.

‘‘ए.सी. में सफर करने से मेरी कमर का दर्द और बढ़ जाएगा.’’

‘‘तो तुम सेकंड स्लीपर में चलो, …मैं अपने लिए ए.सी. का टिकट मंगवा लेती हूं,’’ सुप्रिया हंसते हुए बोली.

सुप्रिया की बहन का लड़का सुधांशु पहले सरकारी नौकरी में था, पर बहुत महत्त्वाकांक्षी होने के चलते वहां उस का मन नहीं लगा. जब सुधांशु ने नौकरी छोड़ी तो सब को बुरा लगा. उस के पिता तो इतने नाराज हुए कि उन्होंने बोलना ही बंद कर दिया. तब वह अपने मौसामौसी के पास आ कर बोला था, ‘मौसाजी, पापा को आप ही समझाएं…आज जमाना तेजी से आगे बढ़ रहा है, ठीक है मैं उद्योग विभाग में हूं…पर हूं तो निरीक्षक ही, रिटायर होने तक अधिक से अधिक मैं अफसर हो जाऊंगा…पर मैं यह जानता हूं कि जिन की लोन फाइल बना रहा हूं वे तो मुझ से अधिक काबिल नहीं हैं. यहां तक कि उन्हें यह भी नहीं पता होता कि क्या काम करना है और उन की बैंक की तमाम औपचारिकताएं भी मैं ही जा कर पूरी करवाता हूं. जब मैं उन के लिए इतना काम करता हूं, तब मुझे क्या मिलता है, कुछ रुपए, क्या यही मेरा मेहनताना है, दुनिया इसे ऊपरी कमाई मानती है. मेरा इस से जी भर गया है, मैं अपने लिए क्या नहीं कर सकता?’

‘हां, क्यों नहीं, पर तुम पूंजी कहां से लाओगे?’ उस के मौसाजी ने पूछा था.

‘कुछ रुपए मेरे पास हैं, कुछ बाजार से लूंगा. लोगों का मुझ में विश्वास है, बाकी बैंक से ऋण लूंगा.’

‘पर बेटा, बैंक तो अमानत के लिए संपत्ति मांगेगा.’

‘हां, मेरे जो दोस्त साथ काम करना चाहते हैं वे मेरी जमानत देंगे,’ सुधांशु बोला था, ‘पर मौसीजी, मैं पापा से कुछ नहीं लूंगा. हां, अभी मैं जो पैसे घर में दे रहा था, वह नहीं दे पाऊंगा.’

धनंजयजी ने उस के चेहरे पर आई दृढ़ता को देखा था. उस का इरादा मजबूत था. वह दिनभर उन के पास रहा, फिर भोपाल चला गया था. रात को उन्होंने उस के पिता से बात की थी. वह आश्वस्त नहीं थे. वह भी सरकारी नौकरी में रह चुके थे, कहा था, ‘व्यवसाय या उद्योग में सुरक्षा नहीं है या तो बहुत मिल जाएगा या डूब जाएगा.’

खैर, समय कब ठहरा है…सुधांशु ने अपना व्यवसाय शुरू किया तो उस में उस की तरक्की होती ही गई. उस के उद्योग विभाग के संबंध सब जगह उस के काम आए थे. 2-3 साल में ही उस का व्यवसाय जम गया था. पहले वह धागे के काम में लगा था. फैक्टरियों से धागा खरीदता था और उसे कपड़ा बनाने वाली फैक्टरियों को भेजता था. इस में उसे अच्छा मुनाफा मिला. फिर उस ने रेडीमेड गारमेंट में हाथ डाल लिया. यहां भी उस का बाजार का अनुभव उस के काम आया. अब उस ने एक बड़ा सा मकान भोपाल के टी.टी. नगर में बनवा लिया है और उस का गृहप्रवेश का कार्यक्रम था… बारबार सुधांशु का फोन आ रहा था कि मौसीजी, आप को आना ही होगा और धनंजयजी ना नहीं कर पा रहे थे.

‘‘सुनो, भोपाल जा रहे हैं तो इंदौर भी हो आते हैं,’’ सुप्रिया बोली.

‘‘क्यों?’’

‘‘अपनी बेटी रंजना के लिए वहां से भी तो एक प्रस्ताव आया हुआ है. शारदा की मां बता रही थीं…लड़का नगर निगम में सिविल इंजीनियर है, देख भी आएंगे.’’

‘‘रंजना से पूछ तो लिया है न?’’ धनंजय ने पूछा.

‘‘उस से क्या पूछना, हमारी जिम्मेदारी है, बेटी हमारी है. हम जानबूझ कर उसे गड्ढे में नहीं धकेल सकते.’’

‘‘इस में बेटी को गड्ढे में धकेलने की बात कहां से आ गई,’’ धनंजयजी बोले.

‘‘तुम बात को भूल जाते हो…याद है, हम विमल के घर गए थे तो क्या हुआ था. सब के लिए चाय आई. विमल के चाय के प्याले में चम्मच रखी हुई थी. मैं चौंक गई और पूछा, ‘चम्मच क्यों?’ तो विमल बोला, ‘आंटी, मैं शुगर फ्री की चाय लेता हूं…मुझे शुगर तो नहीं है, पर पापा को और बाबा को यह बीमारी थी इसलिए एहतियात के तौर पर…शुगर फ्री लेता हूं, व्यायाम भी करता हूं, आप को रंजना ने नहीं बताया,’ ऐसा उस ने कहा था.’’

‘‘लड़की को बीमार लड़के को दे दो. अरे, अभी तो जवानी है, बाद में क्या होगा? यह बीमारी तो मौत के साथ ही जाती है. मैं ने रंजना को कह दिया था…भले ही विमल बहुत अच्छा है,    तेरे साथ पढ़ालिखा है पर मैं जानबूझ कर यह जिंदा मक्खी नहीं निगल सकती.’’

पत्नी की बात को ‘हूं’ के साथ खत्म कर के धनंजयजी सोचने लगे, तभी यह भोपाल जाने को उत्सुक है, ताकि वहां से इंदौर जा कर रिश्ता पक्का कर सके. अचानक उन्हें अपनी बेटी रंजना के कहे शब्द याद आए, ‘पापा, चलो यह तो विमल ने पहले ही बता दिया…वह ईमानदार है, और वास्तव में उसे कोई बीमारी भी नहीं है, पर मान लें, आप ने कहीं और मेरी शादी कर दी और उस का एक्सीडेंट हो गया, उस का हाथ कट गया…तो आप मुझे तलाक दिलवाएंगे?’

तब वह बेटी का चेहरा देखते ही रह गए थे. उन्हें लगा सवाल वही है, जिस से सब बचना चाहते हैं. हम आने वाले समय को सदा ही रमणीय व अच्छाअच्छा ही देखना चाहते हैं, पर क्या सदा समय ऐसा ही होता है.

‘पापा…फिर तो जो मोर्चे पर जाते हैं, उन का तो विवाह ही नहीं होना चाहिए…उन के जीवन में तो सुरक्षा है ही नहीं,’ उस ने पूछा था.

‘पापा, मान लें, अभी तो कोई बीमारी नहीं है, लेकिन शादी के बाद पता लगता है कि कोई गंभीर बीमारी हो गई है, तो फिर आप क्या करेंगे?’

धनंजयजी ने तब बेटी के सवालों को बड़ी मुश्किल से रोका था. अंतिम सवाल बंदूक की गोली की तरह छूता उन के मन और मस्तिष्क को झकझोर गया था.

पर, सुप्रिया के पास तो एक ही उत्तर था. उसे नहीं करनी, नहीं करनी…वह अपनी जिद पर अडिग थी.

रंजना ने भोपाल जाने में कोई उत्सुकता नहीं दिखाई. वह जानती थी, मां वहां से इंदौर जाएंगी…वहां शारदा की मां का कोई दूर का भतीजा है, उस से बात चल रही है.

स्टेशन पर ही सुधांशु उन्हें लेने आ गया था.

‘‘अरे, बेटा तुम, हम तो टैक्सी में ही आ जाते,’’ धनंजयजी ने कहा.

‘‘नहीं, मौसाजी, मेरे होते आप टैक्सी से क्यों आएंगे और यह सबकुछ आप का ही है…आप नहीं आते तो कार्यक्रम का सारा मजा किरकिरा हो जाता,’’ सुधांशु बोला.

‘‘और मेहमान सब आ गए?’’ सुप्रिया ने पूछा.

‘‘हां, मौसी, मामा भी कल रात को आ गए. उदयपुर से ताऊजी, ताईजी भी आ गए हैं. घर में बहुत रौनक है.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं, तुम सभी के लाड़ले हो और इतना बड़ा काम तुम ने शुरू किया है, सभी को तुम्हारी कामयाबी पर खुशी है, इसीलिए सभी आए हैं,’’ सुप्रिया ने चहकते हुए कहा.

‘‘हां, मौसी, बस आप का ही इंतजार था, आप भी आ गईं.’’

सुधांशु का मकान बहुत बड़ा था. उस ने 4 बेडरूम का बड़ा मकान बनवाया था. उस की पत्नी माधवी सजीधजी सब की खातिर कर रही थी. चारों ओर नौकर लगे हुए थे. बाहर जाने के लिए गाडि़यां थीं. शाम को उस की फैक्टरी पर जाने का कार्यक्रम था.

गृहप्रवेश का कार्यक्रम पूरा हुआ, मकान के लौन में तरहतरह की मिठाइयां, नमकीन, शीतल पेय सामने मेज पर रखे हुए थे पर सुधांशु के हाथ में बस, पानी का गिलास था.

‘‘अरे, सुधांशु, मुंह तो मीठा करो,’’ सुप्रिया बर्फी का एक टुकड़ा लेते हुए उस की तरफ बढ़ी.

‘‘नहीं, मौसी नहीं,’’ उस की पत्नी माधवी पीछे से बोली, ‘‘इन की शुगर फ्री की मिठाई मैं ला रही हूं.’’

‘‘क्या इसे भी…’’

‘‘हां,’’ सुधांशु बोला, ‘‘मौसी रातदिन की भागदौड़ में पता ही नहीं लगा कब बीमारी आ गई. एक दिन कुछ थकान सी लगी. तब जांच करवाई तो पता लगा शुगर की शुरुआत है, तभी से परहेज कर लिया है…दवा भी चलती है, पर मौसी, काम नहीं रुकता, जैसे मशीन चलती है, उस में टूटफूट होती रहती है, तेल, पानी देना पड़ता है, कभी पार्ट्स भी बदलते हैं, वही शरीर का हाल है, पर काम करते रहो तो बीमारी की याद भी नहीं आती है.’’

इतना कह कर सुधांशु खिलखिला कर हंस रहा था और तो और माधवी भी उस के साथ हंस रही थी. उस ने खाना खातेखाते पल्लवी से पूछा, ‘‘जीजी, सुधांशु को डायबिटीज हो गई, आप ने बताया ही नहीं.’’

‘‘सुप्रिया, इस को क्या बताना, क्या छिपाना…बच्चे दिनरात काम करते हैं. शरीर का ध्यान नहीं रखते…बीमारी हो जाती है. हां, दवा लो, परहेज करो. सब यथावत चलता रहता है. तुम तो मिठाई खाओ…खाना तो अच्छा बना है?’’

‘‘हां, जीजी.’’

‘‘हलवाई सुधांशु ने ही बुलवाया है. रतलाम से आया है. बहुत काम करता है. सुप्रिया, हम धनंजयजी के आभारी हैं. सुना है कि उन्होंने ही सुधांशु की सहायता की थी. आज इस ने पूरे घर को इज्जत दिलाई है. पचासों आदमी इस के यहां काम करते हैं…सरकारी नौकरी में तो यह एक साधारण इंस्पेक्टर रह जाता.’’

‘‘नहीं जीजी,…हमारा सुधांशु तो बहुत मेहनती है,’’ सुप्रिया ने टोका.

‘‘हां, पर…हिम्मत बढ़ाने वाला भी साथ होना चाहिए. तुम्हारे जीजा तो इस के नौकरी छोड़ने के पूरे विरोध में थे,’’ पल्लवी बोली.

‘‘अब…’’ सुप्रिया ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘वह सामने देखो, कैसे सेठ की तरह सजेधजे बैठे हैं. सुबह होते ही तैयार हो कर सब से पहले फैक्टरी चले जाते हैं. सुधांशु तो यही कहता है कि अब काम करने से पापा की उम्र भी 10 साल कम हो गई है. दिन में 3 चक्कर लगाते हैं, वरना पहले कमरे से भी बाहर नहीं जाते थे.’’

रात का भोजन भी फैक्टरी के मैदान में बहुत जोरशोर से हुआ था. पूरी फैक्टरी को सजाया गया था. बहुत तेज रोशनी थी. शहर से म्यूजिक पार्टी भी आई थी.

धनंजयजी को बारबार अपनी बेटी रंजना की याद आ जाती कि वह भी साथ आ जाती तो कितना अच्छा रहता, पर सुप्रिया की जिद ने उसे भीतर से तोड़ दिया था.

सुबह इंदौर जाने का कार्यक्रम पूर्व में ही निर्धारित हुआ था. पर सुबह होते ही, धनंजयजी ने देखा कि सुप्रिया में इंदौर जाने की कोई उत्सुकता ही नहीं है, वह तो बस, अधिक से अधिक सुधांशु और माधवी के साथ रहना चाह रही थी.

आखिर जब उन से रहा नहीं गया तो शाम को पूछ ही लिया, ‘‘क्यों, इंदौर नहीं चलना क्या? वहां से फोन आया था और कार्यक्रम पूछ रहे थे.’’

सुप्रिया ने उन की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया, वह यथावत अपने रिश्तेदारों से बातचीत में लगी रही.

सुबह ही सुप्रिया ने कहा था, ‘‘इंदौर फोन कर के उन्हें बता दो कि हम अभी नहीं आ पाएंगे.’’

‘‘क्यों?’’ धनंजयजी ने पूछा.

सुप्रिया ने सवाल को टालते हुए कहा, ‘‘शाम को सुधांशु की कार जबलपुर जा रही है. वहां से उस की फैक्टरी में जो नई मशीनें आई हैं, उस के इंजीनियर आएंगे. वह कह रहा था, आप उस से निकल जाएं, मौसाजी को आराम मिल जाएगा. पर कार में ए.सी. है.’’

‘‘तो?’’

‘‘तो तुम्हारी कमर में दर्द हो जाएगा,’’ उस ने हंसते हुए कहा.

धनंजयजी, पत्नी के इस बदले हुए मिजाज को समझ नहीं पा रहे थे.

रास्ते में उन्होंने पूछा, ‘‘इंदौर वालों को क्या कहना है, फिर फोन आया था.’’

‘‘सुनो, सुधांशु को पहले तो डायबिटीज नहीं थी.’’

‘‘हां.’’

‘‘अब देखो, शादी के बाद हो गई है, पर माधवी बिलकुल निश्चिंत है. उसे तो इस की तनिक भी चिंता नहीं है. बस, सुधांशु के खाने और दवा का ध्यान दिन भर रखती है और रहती भी कितनी खुश है…उस ने सभी का इतना ध्यान रखा कि हम सोच भी नहीं सकते थे.’’

धनंजयजी मूकदर्शक की तरह पत्नी का चेहरा देखते रहे, तो वह फिर बोली, ‘‘सुनो, अपना विमल कौन सा बुरा है?’’

‘‘अपना विमल?’’ धनंजयजी ने टोका.

‘‘हां, रंजना ने जिस को शादी के लिए देखा है, गलती हमारी है जो हमारे सामने ईमानदारी से अपने परिवार का परिचय दे रहा है, बीमारी के खतरे से सचेत है, पूरा ध्यान रख रहा है. अरे, बीमारी बाद में हो जाती तो हम क्या कर पाते, वह तो…’’

‘‘यह तुम कह रही हो,’’ धनंजयजी ने बात काटते हुए कहा.

‘‘हां, गलती सब से होती है, मुझ से भी हुई है. यहां आ कर मुझे लगा, बच्चे हम से अधिक सही सोचते हैं,’’…पत्नी की इस सही सोच पर खुशी से उन्होंने पत्नी का हाथ अपने हाथ में ले कर धीरे से दबा दिया.

लड़की के इनकार के डर से मैं प्यार का इजहार नहीं कर पा रहा, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 18 वर्षीय युवक हूं. मैं अभी तक काफी अंतर्मुखी रहा हूं. चूंकि शुरू से लड़कों के स्कूल में पढ़ा हूं, इसलिए लड़कियों के साथ बात करने से घबराता हूं. साल भर से एक लड़की से प्यार करता हूं. लड़की की गली से जब कभी गुजरना होता है तो वह दिखाई पड़ जाती है. मेरे देखने पर वह मुसकराने लगती है. मुझे लगता है वह भी मुझ से प्यार करती है. एकाध बार राह चलते भी उस से मुलाकात हुई है. पर मैं प्यार का इजहार नहीं कर पाया. डरता हूं कि कहीं वह इनकार या कोई बवाल न कर दे. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

इस उम्र में अपोजिट सैक्स के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक है. पर सिर्फ देखने भर से उसे प्यार समझ लेना उचित नहीं है. यों तो आप की उम्र अपने कैरियर पर ध्यान देने की है, पर आप उक्त लड़की से फ्रैंडशिप करना चाहते हैं, तो इस के लिए आप को स्वयं पहल करनी होगी. उस के बाद ही मालूम चलेगा कि उस की आप में दिलचस्पी है या नहीं.

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साल 1993 में शाहरुख खान की मशहूर थ्रिलर फिल्म ‘बाजीगर’ आई थी. इस फिल्म के नायक और खलनायक शाहरुख ही बने थे. फिल्म ब्लौकबस्टर साबित हुई और शाहरुख खान रातोंरात सुपरस्टार बन गए, जिस के बाद उन के पांव कभी थमे नहीं. इस फिल्म का जिक्र करने का मकसद शाहरुख की बुलंदियों को बताने का नहीं है, बल्कि फिल्म के एक खूबसूरत गाने, ‘छिपाना भी नहीं आता, जताना भी नहीं आता…’ से है जो एक पार्टी में बज रहा होता है. यह गाना आशिकों की साइकोलौजी को दर्शाता है. अब इस गाने के बोल और उस में दिखाए कैरेक्टर हैं ही इतने दिलचस्प कि बात बननी लाजिमी है.
मामला यह है कि इस फिल्म में इंस्पैक्टर करण की भूमिका निभा रहे सिद्धार्थ रे कालेज के दिनों से ही प्रिया (काजोल) से प्यार करते थे. अपनी हथेलियों में प्रिया का नाम गुदवाए जहांतहां घूमा करते थे, चोरीचुपके उसे देखा करते थे, अंदर ही अंदर उसे अपनी प्रियतमा बना चुके थे, लेकिन जनाब कभी समय पर हाल ए दिल का इजहार ही नहीं कर पाए. फिर क्या, अजय शर्मा (शाहरुख) इतने में एंट्री मारते हैं और प्रिया के प्रेम की बाजी मार ले जाते हैं. अब ये करण जनाब पछताते हुए पूरी पार्टी में यही गाना गाते फिर रहे हैं. अजय के हाथों में प्रिया का हाथ देख रहे हैं तो खुद पर अफसोस जताते रह जाते हैं. यह तो है कि अगर करण साहब समय पर प्रिया से प्रेम का इजहार कर देते तो शायद पार्टी में अपना दुखड़ा न सुना रहे होते. हो सकता था इंस्पैक्टर करण ही बाजीगर कहलाए जाते.

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शिकार: क्यों रंजन से नफरत करने लगी काव्या

वह एक बार फिर उस के सामने खड़ा था. लंबाचौड़ा काला भुजंग. आंखों से झांकती भूख. एक ऐसी भूख जिसे कोई भी औरत चुटकियों में ताड़ जाती है. उस आदमी के लंबेचौड़े डीलडौल से उस की सही उम्र का पता नहीं लगता था, पर उस की उम्र 30 से 40 साल के बीच कुछ भी हो सकती थी.

वहीं दूसरी ओर काव्या गोरीचिट्टी, छरहरे बदन की गुडि़या सी दिखने वाली एक भोलीभाली, मासूम सी लड़की थी. मुश्किल से अभी उस ने 20वां वसंत पार किया होगा. कुछ महीने पहले दुख क्या होता है, तकलीफ कैसी होती है, वह जानती तक न थी.

मांबाप के प्यार और स्नेह की शीतल छाया में काव्या बढि़या जिंदगी गुजार रही थी, पर दुख की एक तेज आंधी आई और उस के परिवार के सिर से प्यार, स्नेह और सुरक्षा की वह पिता रूपी शीतल छाया छिन गई.

अभी काव्या दुखों की इस आंधी से अपने और अपने परिवार को निकालने के लिए जद्दोजेहद कर ही रही थी कि एक नई समस्या उस के सामने आ खड़ी हुई.

उस दिन काव्या अपनी नईनई लगी नौकरी पर पहुंचने के लिए घर से थोड़ी दूर ही आई थी कि उस आदमी ने उस का रास्ता रोक लिया था.

एकबारगी तो काव्या घबरा उठी थी, फिर संभलते हुए बोली थी, ‘‘क्या है?’’

वह उसे भूखी नजरों से घूर रहा था, फिर बोला था, ‘‘तू बहुत ही खूबसूरत है.’’

‘‘क्या मतलब…?’’ उस की आंखों से झांकती भूख से डरी काव्या कांपती आवाज में बोली.

‘‘रंजन नाम है मेरा और खूबसूरत चीजें मेरी कमजोरी हैं…’’ उस की हवस भरी नजरें काव्या के खूबसूरत चेहरे और भरे जिस्म पर फिसल रही थीं, ‘‘खासकर खूबसूरत लड़कियां… मैं जब भी उन्हें देखता हूं, मेरा दिल उन्हें पाने को मचल उठता है.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हो…’’ अपने अंदर के डर से लड़ती काव्या कठोर आवाज में बोली, ‘‘मेरे सामने से हटो. मुझे अपने काम पर जाना है.’’

‘‘चली जाना, पर मेरे दिल की प्यास तो बुझा दो.’’

काव्या ने अपने चारों ओर निगाह डाली. इक्कादुक्का लोग आजा रहे थे. लोगों को देख कर उस के डरे हुए दिल को थोड़ी राहत मिली. उस ने हिम्मत कर के अपना रास्ता बदला और रंजन से बच कर आगे निकल गई.

आगे बढ़ते हुए भी उस का दिल बुरी तरह धड़क रहा था. ऐसा लगता था जैसे रंजन आगे बढ़ कर उसे पकड़ लेगा.

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. उस ने कुछ दूरी तय करने के बाद पीछे मुड़ कर देखा. रंजन को अपने पीछे न पा कर उस ने राहत की सांस ली.

काव्या लोकल ट्रेन पकड़ कर अपने काम पर पहुंची, पर उस दिन उस का मन पूरे दिन अपने काम में नहीं लगा. वह दिनभर रंजन के बारे में ही सोचती रही. जिस अंदाज से उस ने उस का रास्ता रोका था, उस से बातें की थीं, उस से इस बात का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता था कि रंजन की नीयत ठीक नहीं थी.

शाम को घर पहुंचने के बाद भी काव्या थोड़ी डरी हुई थी, लेकिन फिर उस ने यह सोच कर अपने दिल को हिम्मत बंधाई कि रंजन कोई सड़कछाप बदमाश था और वक्ती तौर पर उस ने उस का रास्ता रोक लिया था.

आगे से ऐसा कुछ नहीं होने वाला. लेकिन काव्या की यह सोच गलत साबित हुई. रंजन ने आगे भी उस का रास्ता बारबार रोका. कई बार उस की इस हरकत से काव्या इतनी परेशान हुई कि उस का जी चाहा कि वह सबकुछ अपनी मां को बता दे, लेकिन यह सोच कर खामोश रही कि इस से पहले से ही दुखी उस की मां और ज्यादा परेशान हो जाएंगी. काश, आज उस के पापा जिंदा होते तो उसे इतना न सोचना पड़ता.

पापा की याद आते ही काव्या की आंखें नम हो उठीं. उन के रहते उस का परिवार कितना खुश था. मम्मीपापा और उस का एक छोटा भाई. कुल 4 सदस्यों का परिवार था उस का.

उस के पापा एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करते थे और उन्हें जो पैसे मिलते थे, उस से उन का परिवार मजे में चल रहा था. जहां काव्या अपने पापा की दुलारी थी, वहीं उस की मां उस से बेहद प्यार करती थीं.

उस दिन काव्या के पापा अपनी कंपनी के काम के चलते मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे कि पीछे से एक कार वाले ने उन की मोटरसाइकिल को तेज टक्कर मार दी.

वे मोटरसाइकिल से उछले, फिर सिर के बल सड़क पर जा गिरे. उस से उन के सिर के पिछले हिस्से में बेहद गंभीर चोट लगी थी.

टक्कर लगने के बाद लोगों की भीड़ जमा हो गई. भीड़ के दबाव के चलते कार वाले ने उस के घायल पापा को उठा कर नजदीक के एक निजी अस्पताल में भरती कराया, फिर फरार हो गया.

पापा की जेब से मिले आईकार्ड पर लिखे मोबाइल से अस्पताल वालों ने जब उन्हें फोन किया तो वे बदहवास अस्पताल पहुंचे, पर वहां पहुंच कर उन्होंने जिस हालत में उन्हें पाया, उसे देख कर उन का कलेजा मुंह को आ गया.

उस के पापा कोमा में जा चुके थे. उन की आंखें तो खुली थीं, पर वे किसी को पहचान नहीं पा रहे थे.

फिर शुरू हुआ मुश्किलों का न थमने वाला एक सिलसिला. डाक्टरों ने बताया कि पापा के सिर का आपरेशन करना होगा. इस का खर्च उन्होंने ढाई लाख रुपए बताया.

किसी तरह रुपयों का इंतजाम किया गया. पापा का आपरेशन हुआ, पर इस से कोई खास फायदा न हुआ. उन्हें विभिन्न यंत्रों के सहारे एसी वार्ड में रखा गया था, जिस की एक दिन की फीस 10,000 रुपए थी.

धीरेधीरे घर का सारा पैसा खत्म होने लगा. काव्या की मां के गहने तक बिक गए, फिर नौबत यहां तक आई कि उन के पास के सारे पैसे खत्म हो गए.

बुरी तरह टूट चुकी काव्या की मां जब अपने बच्चों को यों बिलखते देखतीं तो उन का कलेजा मुंह को आ जाता, पर अपने बच्चों के लिए वे अपनेआप को किसी तरह संभाले हुए थीं. कभीकभी उन्हें लगता कि पापा की हालत में सुधार हो रहा है तो उन के दिल में उम्मीद की किरण जागती, पर अगले ही दिन उन की हालत बिगड़ने लगती तो यह आस टूट जाती.

डेढ़ महीना बीत गया और अब ऐसी हालत हो गई कि वे अस्पताल के एकएक दिन की फीस चुकाने में नाकाम होने लगे. आपस में रायमशवरा कर उन्होंने पापा को सरकारी अस्पताल में भरती कराने का फैसला किया.

पापा को ले कर सरकारी अस्पताल गए, पर वहां बैड न होने के चलते उन्हें एक रात बरामदे में गुजारनी पड़ी. वही रात पापा के लिए कयामत की रात साबित हुई. काव्या के पापा की सांसों की डोर टूट गई और उस के साथ ही उम्मीद की किरण हमेशा के लिए बुझ गई.

फिर तो उन की जिंदगी दुख, पीड़ा और निराशा के अंधकार में डूबती चली गई. तब तक काव्या एमबीए का फाइनल इम्तिहान दे चुकी थी.

बुरे हालात को देखते हुए और अपने परिवार को दुख के इस भंवर से निकालने के लिए काव्या नौकरी की तलाश में निकल पड़ी. उसे एक प्राइवेट बैंक में 20,000 रुपए की नौकरी मिल गई और उस के परिवार की गाड़ी खिसकने लगी. तब उस के छोटे भाई की पढ़ाई का आखिरी साल था. उस ने कहा कि वह भी कोई छोटीमोटी नौकरी पकड़ लेगा, पर काव्या ने उसे सख्ती से मना कर दिया और उस से अपनी पढ़ाई पूरी करने को कहा.

20 साल की उम्र में काव्या ने अपने नाजुक कंधों पर परिवार की सारी जिम्मेदारी ले ली थी, पर इसे संभालते हुए कभीकभी वह बुरी तरह परेशान हो उठती और तब वह रोते हुए अपनी मां से कहती, ‘‘मम्मी, आखिर पापा हमें छोड़ कर इतनी दूर क्यों चले गए जहां से कोई वापस नहीं लौटता,’’ और तब उस की मां उसे बांहों में समेटते हुए खुद रो पड़तीं.

धीरेधीरे दुख का आवेग कम हुआ और फिर काव्या का परिवार जिंदगी की जद्दोजेहद में जुट गया.

समय बीतने लगा और बीतते समय के साथ सबकुछ एक ढर्रे पर चलने लगा तभी यह एक नई समस्या काव्या के सामने आ खड़ी हुई.

काव्या जानती थी कि बड़ी मुश्किल से उस की मां और छोटे भाई ने उस के पापा की मौत का गम सहा है. अगर उस के साथ कुछ हो गया तो वे यह सदमा सहन नहीं कर पाएंगे और उस का परिवार, जिसे संभालने की वह भरपूर कोशिश कर रही है, टूट कर बिखर जाएगा.

काव्या ने इस बारे में काफी सोचा, फिर इस निश्चय पर पहुंची कि उसे एक बार रंजन से गंभीरता से बात करनी होगी. उसे अपनी जिंदगी की परेशानियां बता कर उस से गुजारिश करनी होगी

कि वह उसे बख्श दे. उम्मीद तो कम थी कि वह उस की बात समझेगा, पर फिर भी उस ने एक कोशिश करने का मन बना लिया.

अगली बार जब रंजन ने काव्या का रास्ता रोका तो वह बोली, ‘‘आखिर तुम मुझ से चाहते क्या हो? क्यों बारबार मेरा रास्ता रोकते हो?’’

‘‘मैं तुम्हें चाहता हूं,’’ रंजन उस के खूबसूरत चेहरे को देखता हुआ बोला, ‘‘मेरा यकीन करो. मैं ने जब से तुम्हें देखा है, मेरी रातों की नींद उड़ गई है. आंखें बंद करता हूं तो तुम्हारा खूबसूरत चेहरा सामने आ जाता है.’’

‘‘सड़क पर बात करने से क्या यह बेहतर नहीं होगा कि हम किसी रैस्टोरैंट में चल कर बात करें.’’

काव्या के इस प्रस्ताव पर पहले तो रंजन चौंका, फिर उस की आंखों में एक अनोखी चमक जाग उठी. वह जल्दी से बोला, ‘‘हांहां, क्यों नहीं.’’

रंजन काव्या को ले कर सड़क के किनारे बने एक रैस्टोरैंट में पहुंचा, फिर बोला, ‘‘क्या लोगी?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘कुछ तो लेना होगा.’’

‘‘तुम्हारी जो मरजी मंगवा लो.’’

रंजन ने काव्या और अपने लिए कौफी मंगवाईं और जब वे कौफी पी चुके तो वह बोला, ‘‘हां, अब कहो, तुम क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘देखो, मैं उस तरह की लड़की नहीं हूं जैसा तुम समझते हो,’’ काव्या ने गंभीर लहजे में कहना शुरू किया, ‘‘मैं एक मध्यम और इज्जतदार परिवार से हूं, जहां लड़की की इज्जत को काफी अहमियत दी जाती है. अगर उस की इज्जत पर कोई आंच आई तो उस का और उस के परिवार का जीना मुश्किल हो जाता है.

‘‘वैसे भी आजकल मेरा परिवार जिस मुश्किल दौर से गुजर रहा है, उस में ऐसी कोई बात मेरे परिवार की बरबादी का कारण बन सकती है.’’

‘‘कैसी मुश्किलों का दौर?’’ रंजन ने जोर दे कर पूछा.

काव्या ने उसे सबकुछ बताया, फिर अपनी बात खत्म करते हुए बोली, ‘‘मेरी मां और भाई बड़ी मुश्किल से पापा की मौत के गम को बरदाश्त कर पाए हैं, ऐसे में अगर मेरे साथ कुछ हुआ तो मेरा परिवार टूट कर बिखर जाएगा…’’ कहतेकहते काव्या की आंखों में आंसू आ गए और उस ने उस के आगे हाथ जोड़ दिए, ‘‘इसलिए मेरी तुम से विनती है कि तुम मेरा पीछा करना छोड़ दो.’’

पलभर के लिए रंजन की आंखों में दया और हमदर्दी के भाव उभरे, फिर उस के होंठों पर एक मक्कारी भरी मुसकान फैल गई.

रंजन काव्या के जुड़े हाथ थामता हुआ बोला, ‘‘मेरी बात मान लो, तुम्हारी सारी परेशानियों का खात्मा हो जाएगा. मैं तुम्हें पैसे भी दूंगा और प्यार भी. तू रानी बन कर राज करेगी.’’

काव्या को समझते देर न लगी कि उस के सामने बैठा आदमी इनसान नहीं, बल्कि भेडि़या है. उस के सामने रोने, गिड़गिड़ाने और दया की भीख मांगने का कोई फायदा नहीं. उसे तो उसी की भाषा में समझाना होगा. वह मजबूरी भरी भाषा में बोली, ‘‘अगर मैं ने तुम्हारी बात मान ली तो क्या तुम मुझे बख्श दोगे?’’

‘‘बिलकुल,’’ रंजन की आंखों में तेज चमक जागी, ‘‘बस, एक बार मुझे अपने हुस्न के दरिया में उतरने का मौका दे दो.’’

‘‘बस, एक बार?’’

‘‘हां.’’

‘‘ठीक है,’’ काव्या ने धीरे से अपना हाथ उस के हाथ से छुड़ाया, ‘‘मैं तुम्हें यह मौका दूंगी.’’

‘‘कब?’’

‘‘बहुत जल्द…’’ काव्या बोली, ‘‘पर, याद रखो सिर्फ एक बार,’’ कहने के बाद काव्या उठी, फिर रैस्टोरैंट के दरवाजे की ओर चल पड़ी.

‘तुम एक बार मेरे जाल में फंसो तो सही, फिर तुम्हारे पंख ऐसे काटूंगा कि तुम उड़ने लायक ही न रहोगी,’ रंजन बुदबुदाया.

रात के 12 बजे थे. काव्या महानगर से तकरीबन 3 किलोमीटर दूर एक सुनसान जगह पर एक नई बन रही इमारत की 10वीं मंजिल की छत पर खड़ी थी. छत के चारों तरफ अभी रेलिंग नहीं बनी थी और थोड़ी सी लापरवाही बरतने के चलते छत पर खड़ा कोई शख्स छत से नीचे गिर सकता था.

काव्या ने इस समय बहुत ही भड़कीले कपड़े पहन रखे थे जिस से उस की जवानी छलक रही थी. इस समय उस की आंखों में एक हिंसक चमक उभरी हुई थी और वह जंगल में शिकार के लिए निकले किसी चीते की तरह चौकन्नी थी.

अचानक काव्या को किसी के सीढि़यों पर चढ़ने की आवाज सुनाई पड़ी. उस की आंखें सीढि़यों की ओर लग गईं.

आने वाला रंजन ही था. उस की नजर जब कयामत बनी काव्या पर पड़ी, तो उस की आंखों में हवस की तेज चमक उभरी. वह तेजी से काव्या की ओर लपका. पर उस के पहले कि वह काव्या के करीब पहुंचे, काव्या के होंठों पर एक कातिलाना मुसकान उभरी और वह उस से दूर भागी.

‘‘काव्या, मेरी बांहों में आओ,’’ रंजन उस के पीछे भागता हुआ बोला.

‘‘दम है तो पकड़ लो,’’ काव्या हंसते हुए बोली.

काव्या की इस कातिल हंसी ने रंजन की पहले से ही भड़की हुई हवस को और भड़का दिया. उस ने अपनी रफ्तार तेज की, पर काव्या की रफ्तार उस से कहीं तेज थी.

थोड़ी देर बाद हालात ये थे कि काव्या छत के किनारेकिनारे तेजी से भाग रही थी और रंजन उस का पीछा कर रहा था. पर हिरनी की तरह चंचल काव्या को रंजन पकड़ नहीं पा रहा था.

रंजन की सांसें उखड़ने लगी थीं और फिर वह एक जगह रुक कर हांफने लगा.

इस समय रंजन छत के बिलकुल किनारे खड़ा था, जबकि काव्या ठीक उस के सामने खड़ी हिंसक नजरों से उसे घूर रही थी.

अचानक काव्या तेजी से रंजन की ओर दौड़ी. इस से पहले कि रंजन कुछ समझ सके, उछल कर अपने दोनों पैरों की ठोकर रंजन की छाती पर मारी.

ठोकर लगते ही रंजन के पैर उखड़े और वह छत से नीचे जा गिरा. उस की लहराती हुई चीख उस सुनसान इलाके में गूंजी, फिर ‘धड़ाम’ की एक तेज आवाज हुई. दूसरी ओर काव्या विपरीत दिशा में छत पर गिरी थी.

काव्या कई पलों तक यों ही पड़ी रही, फिर उठ कर सीढि़यों की ओर दौड़ी. जब वह नीचे पहुंची तो रंजन को अपने ही खून में नहाया जमीन पर पड़ा पाया. उस की आंखें खुली हुई थीं और उस में खौफ और हैरानी के भाव ठहर कर रह गए थे. शायद उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की मौत इतनी भयानक होगी.

काव्या ने नफरत भरी एक नजर रंजन की लाश पर डाली, फिर अंधेरे में गुम होती चली गई.

आलिया ही नहीं ये ऐक्ट्रैसेस भी हुई ऊप्स मोमेंट का शिकार, रिवीलिंग ड्रैस पहनने से पहले जानें ये टिप्स

बौलीवुड ऐक्ट्रैसेस खूबसूरत दिखने के लिए अपनी फैन फौलोइंग बढ़ाने के लिए क्याक्या नहीं करती. ऐक्टिंग से लेकर ड्रैसिंग तक, हर एक चीज का उन्हें ध्यान रखना पड़ता है. इसके अलावा ऐक्ट्रैसेस  कोई भी ड्रैसेज कैरी करती हैं, तो वो फैशन बन जाता है.

फैशनेबल दिखने के लिए बौलीवुड ऐक्ट्रैसेस पहनती हैंं अजीबोगरीब कपड़े

फैशन और लाइमलाइट में बने रहने के लिए बौलीवुड डीवाज अजीबोगरीब कपड़े पहनती हैं. कई बार ये फैशन उन पर भारी भी पड़ जाता है और उन्हें पब्लिकली शर्मिंदा भी होना पड़ता है. कई ऐक्ट्रैसेस हैं, जो अपनी आउटफिट की वजह से ही ऊप्स मोमेंट का शिकार होती है. हाल ही में आलिया भट्ट का एक वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया है. जिसमें ब्लैक कलर की लेदर ड्रैस में नजर आ रही हैं. ऐक्ट्रैस ने रुककर कैमरे के लिए पोज भी दिया है. हौल्टर नेक की आलिया ने जो ड्रैस पहनी हुई थी, उस पर एक स्लिक बन भी बना हुआ था. आलिया अपने लुक को कम्पलीट करने के लिए मिनमल मेकअप भी किया था. ऐक्ट्रैस इस ड्रैस में बेहद खूबसूरत नजर आ रही थी, लेकिन गाड़ी से उतरते समय आलिया ऊप्स मोमैंट का शिकार हुई, जो कैमरे में साफ दिखाई दे रहा है.

सोशल मीडिया पर फैंस को आलिया का ये रूप जरा भी पसंद नहीं आया और वो कमेंट करने लगे. हालांकि कुछ यूजर्स ने ऐक्ट्रैस की तारिफ भी की तो वहीं कुछ लोगों ने आलिया की ड्रैस को खराब बताया.

आलिया के अलावा ये ऐक्ट्रैसेस भी हुईं ऊप्स मोमेंट का शिकार

दिशा पटानी

दिशा पटानी अपनी क्यूट अंदाज के कारण फैंस के दिल पर राज करती हैं. वह अपनी दमदार ऐक्टिंग के लिए भी जानी जाती है, लेकिन वह कई बार उप्स मोमेंट का शिकार हो चुकी हैं. उनका एक वीडियो सामने आया था जिसमें दिशा पैपराजी को पोज दे रही होती हैं कि तभी तेज हवा चलने के कारण उनका टौप उड़ने लगता है, ऐसे में दिशा अनकम्फर्टेबल हो जाती है, वो अपने टौप को संभालते हुए गाड़ी में जाकर बैठ जाती है. ये वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था, लोगों ने भद्दे कमेंट्स भी किए थे.

अंकिता लोखंडे

पौपुलर ऐक्ट्रैस अंकिता लोखंडे भी इस लिस्ट में शामिल है. वो भी अपनी ड्रैस की वजह से ऊप्स मोमेंट का शिकार हो चुकी हैं. दरअसल, एक अवार्ड शो में अंकिता लोखंडे अपने पति के साथ पहुंची थी. उन्होंने बहुत ही डीपनेक ड्रैस पहनी थी, जिसकी वजह से झुकते समय अंकिता को ऊप्स मोमेंट का सामना करना पड़ा.

नोरा फतेही 

नोरा फतेही हर ड्रैसेज में ग्लैमरस नजर आती हैं, लेकिन कई बार ऐक्ट्रैस ऐसी ड्रैस पहन लेती हैं, जिससे उन्हें ऊप्स मोमेंट का सामना करना पड़ता है. जब वह अपने गाने बड़ा पछताओंगे के  सक्सेस पार्टी में  पहुंची थी, जहां नोरा उप्स मोमेंट का शिकार हुई थीं.

ऐक्ट्रैसेज कुछ भी पहनती हैं, आम लड़कियां भी उनकी कौपी करने की कोशिश करती हैं. अगर ऐक्ट्रैस की तरह उनको ड्रैसेज मिल गया तो उन्हें लगता है कि वो सबसे फैशनेबल दिखेंगी, लेकिन आप उस तरह का ड्रैस पहनें जो आपके बौडी पर सूट करे. कम्फर्टेबल  ड्रैस पहनने आप कौन्फिडैंट नजर आएंगी और आपकी खूबसूरती भी बढ़ेगी.

जानें ऊप्स मोमेंट से कैसे बचें 

  • छोटी ड्रैस या डीपनेक ड्रैस सही तरीके से पहना जाए तो किसी भी तरीके के ऊप्स मोमेंट से बचा जा सकता है.
  • अगर आप शौर्ट ड्रैस पहनने जा रही हैं, तो हमेशा अंडरगार्मेट्स का ख्याल रखें.
  • शौर्ट ड्रेस के साथ न्यूड शेड या फिर स्किन कलर की अंडर गार्मेट्स जरूर कैरी करें.
  • अगर आपका ड्रैस उठनेबैठने के दौरान स्ट्रैच भी होती है, तो किसी भी तरह के ऊप्स मोमेंट से बच सकती हैं.
  • छोटी और टाइट फिटिंग ड्रेस पहनने के दौरान लेजर कट, थौन्ग्स, लैस वाली अंडरवियर और स्ट्रैपलेस बौडीसूट कैरी कर सकती हैं.
  • अगर आप ट्रांसपैरेंट टौपवियर या डीपनेक ड्रैस पहन रही हैं, तो स्ट्रैपलेस ब्रा पहन सकती हैं.

सामाजिक मुद्दों पर बनी फिल्मों के जरिए बौलीवुड कलाकारों ने दिया बड़ा संदेश

फिल्में समाज का आईना होती है, लिहाजा फिल्म में वही दिखाया जाता है जो कहीं ना कहीं समाज में चल रहा होता है और कई बार कई फिल्में दर्शकों को जागरूक करने वाले शिक्षाप्रद संदेश भी देते हैं . जिससे दर्शक सीख लेकर अपनी जिंदगी में भी लागू करते हैं. फिर चाहे वह अमिताभ बच्चन अभिनीत पारिवारिक फिल्म बागबान हो, जिसमें बूढ़े मांबाप को बच्चे अपने स्वार्थ के चलते तकलीफ देते हैं. बूढ़े मांबाप को घर से बेघर कर देते हैं या सुनील दत्त नरगिस अभिनीत फिल्म मदर इंडिया ही क्यों ना हो जिसमें एक मां एक औरत की इज्जत की रक्षा करने के लिए अपने बेटे को भी गोली मार देती है. गौरतलब है पुराने जमाने में ज्यादातर सामाजिक फिल्में ही बनती थी. जो न सिर्फ परिवार के साथ देखने वाली पारिवारिक फिल्में होती थी बल्कि उन फिल्मों के जरिए आम इंसान बहुत सारी अच्छी बातें भी सीखता था.

लेकिन बाद में एक समय ऐसा भी आया जब सिर्फ पैसा कमाने के उद्देश्य से फिल्मों का निर्माण होने लगा. और कई तरह की फिल्में बनने लगी. फिर चाहे वह आक्रामक हिंसा से भरपूर फिल्में हो या सेक्स पर आधारित अश्लील फिल्में ही क्यों ना हो. जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना और बौक्स औफिस पर अच्छा कलेक्शन करना होता था. लेकिन फिर से एक बार समय का चक्र घुमा और एक बार फिर सामाजिक फिल्मों का दौर शुरू हुआ. जिसमें नामी गिरामी एक्टरों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया. फिर चाहे वह अक्षय कुमार हूं अमिताभ बच्चन हो या तापसी पन्नू और दीपिका पादुकोण ही क्यों ना हो.

बौलीवुड के कई कलाकारों का सामाजिक फिल्मों की तरफ रुझान बढ़ा. जिसके बाद कई सामाजिक फिल्में प्रदर्शित हुई. जिन फिल्मो ने सफलता भी हासिल की. जैसे टौयलेट एक प्रेम कथा, बधाई हो, पैडमैन, थप्पड़ आदि. कई सारी सामाजिक फिल्मों ने न सिर्फ देश के लोंगो को जागरूक किया. बल्कि बड़ा संदेश और शिक्षा भी प्रदान की. इसी सिलसिले पर एक नजर….

वह सामाजिक फिल्में जिन्होंने खासतौर पर नारी जाति को जागरूक किया…

सामाजिक फिल्मों की बात हो और अक्षय कुमार का जिक्र ना हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता. क्योंकि अक्षय कुमार उन एक्टरों में से हैं जिन्होंने नारी जाति को जागरूक करने के लिए कई सारी सामाजिक फिल्में की है. फिर चाहे वह भाई बहन पर आधारित फिल्म रक्षाबंधन हो, टौयलेट एक प्रेम कथा हो, या औरतों के लिए पीरियड के दौरान सैनिटरी पेड कितना जरूरी है जैसे विषय पर आधारित फिल्म पैडमैन ही क्यों ना हो. अक्षय कुमार ने औरतों के सम्मान और हक के लिए सिर्फ फिल्में ही नहीं की बल्कि सैनिटरी पेड के विज्ञापन में भी काम किया है. अक्षय कुमार की हमेशा कोशिश रही है कि वह औरतों की सेहत और सुरक्षा के लिए ऐसे कार्य करें. जिससे सीख लेकर औरतें जागरूक हो.

अक्षय कुमार के अनुसार मैं नारी जाति का सम्मान करता हूं और चाहता हूं कि औरतें भी अपने हक के लिए आवाज उठाएं. जागरूक और शिक्षित हो ताकि महामारी के दौरान हुई बीमारियों की वजह से उनकी बेवजह मौत ना हो . मैंने हमेशा अपनी फिल्मों के जरिए नारी जाति को सही राह दिखाने की कोशिश की है.इतना ही नहीं मैंने अपने मार्शल आर्ट ट्रेनिंग सेंटर में औरतों को अपनी सुरक्षा के लिए स्पेशल ट्रेनिंग भी देनी शुरू की है. जिससे वह राह चलते आवारा लड़कों से अपनी रक्षा कर सके.

अक्षय कुमार की तरह तापसी पन्नू भी उन हीरोइनों में से एक है जो थप्पड़ और नाम शबाना जैसी सामाजिक फिल्मों के जरिये औरतों को यह संदेश देना चाहती हैं की औरतें कमजोर नहीं है उन्हें जागरूक और हिम्मत होने की जरूरत है. अपनी फिल्मों के जरिए औरतों को सम्मान से कैसे जीना है ये पाठ पढ़ा चुकी है. जाति तौर पर भी तापसी पन्नू काफी दबंग है. उनका कहना है कि औरतों को अपनी रक्षा खुद ही करनी होगी. कोई और उनको बचाने नहीं आएगा. माना की मर्दों के मुकाबले शारीरिक तौर पर औरतें कमजोर होती है. लेकिन वह दिमाग का इस्तेमाल करके अपनी रक्षा कर सकती हैं. मैंने अब तक अपनी जिंदगी हमेशा सम्मान के साथ जी है.

मैं ऐसी फिल्में करना पसंद करती हूं जो नारी सुधार के लिए संदेश देती हो.जैसे थप्पड़ फिल्म में मैंने पत्नी के सम्मान के हक के लिए आवाज उठाई है , इसी तरह नाम शबाना में भी मैंने औरत की छिपी हुई ताकत को उजागर किया है. मैंने अपनी हर फिल्म में यह साबित किया है कि औरत किसी से कहीं भी कम नहीं है. बस उसे अपनी काबिलियत और अंदरुनी ताकत पहचानने की जरूरत है. कहने का मतलब यह है कि सामाजिक फिल्मों में कलाकारों के द्वारा दी गई शिक्षा कहीं ना कहीं हमारी जिंदगी में लागू होती है. जिसे सभी को गंभीरतापूर्वक लेने की जरूरत है.

Anupamaa : शाह हाउस से गायब होगी काव्या की बेटी, क्या आशा भवन को खरीदेगा वनराज ?

Anupama Upcoming Twist: टीवी सीरियल अनुपमा में लगातार ट्विस्ट एंड टर्न देखने को मिल रहा है. शो में आपने अब तक देखा कि अनुज अंकुश को धमकी देता है. वह सारे रिश्तेनाते भुलाकर अपने हक की लड़ाई का ऐलान करता है. तो दूसरी तरफ तोषु और बा में जमकर टक्कर होती है, बा हथौड़े से तोषु का कौन्ट्रिब्यूशन बौक्स तोड़ देती है और अपनी हुकुम चलाती है.

दूसरी तरफ आद्या चाहती है कि उसके मम्मी पापा दोबारा शादी कर लें. बापूजी भी अपनी ये इच्छा जाहिर करते हैं. आइए जानते हैं आज के एपिसोड में क्या दिखाया जाएगा.

क्या वनराज शाह की होगी वापसी

शो में आप देख रहे हैं कि अनुज-अनुपमा साथ है. लेकिन उनकी परेशानियां कम नहीं हो रही हैं. एक तरफ अनुज की कंपनी डूबने की कगार पर हैं, तो दूसरी तरफ आशा भवन को बचाने के लिए अनुपमा पैसे इकट्ठा कर रही है. इन सबके बीच शो से वनराज शाह गायब है. रिपोर्ट के अनुसार शो में फिर से वनराज शाह की धमाकेदार एंट्री होगी. वह अनुज-अनपमा के लिए नई मुसीबत खड़ा करेगा.

आशा भवन का मालिक बनेगा वनराज शाह?

जी हां, शो में आपको हाईवोल्टेज ड्रामा देखने को मिलेगा. बताया जा रहा है कि मेकर्स इस शो के लिए नए वनराज की तलाश में जुट गए हैं . दावा किया जा रहा है कि शो में वनराज शाह की नए अंदाज में एंट्री होगी. दरअसल सीरियल में दिखाया गया था कि वनराज शाह करोड़ों रुपये लेकर फरार हो गया है.तो दूसरी तरफ आशा भवन को का केयर टेकर उसे बेचना चाहता है. सीरियल गौसिप के अनुसार, अब वनराज खुद ही आशा भवन को खरीद लेगा. इस बात में कोई शक नहीं है कि शो में वनराज शाह वापस आता है, तो वह इनकी अकल ठिकाने लगाएगा.

वनराज और काव्या को कोसेगा तोषु

शो में आज आप ये भी देखेंगे कि शाह हाउस में माही किसी को मिलती नहीं है और सभी लोग परेशान हो जाते हैं. तो दूसरी तरफ माही आशा भवन से वापिस आ रही होती है. तब तोषू माही को खूब सुनाता है. इतना ही नहीं वह वनराज और काव्या को भी कोसता है. शो में ये भी दिखाया जाएगा कि आशा बेन का बेटा अनुपमा और बाकी लोगों से मिलने आता है. जो टैक्स भरने की बात बताता है. वह ये भी कहता है कि अगर टैक्स नहीं भरा गया तो आशा भवन खाली करना पड़ेगा. लेकिन अनुपमा आशा भवन के बेटे को संभाल लेती है.

अनुज-अनुपमा लोगों को देंगे दिलासा

इसके बाद आशा भवन में रहने वाले सभी लोगों के बीच डर फैल जाता है कि भवन बंद हो जाएगा, लेकिन अनुज-अनुपमा सबको शांत करवाते हैं. अब शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि अनुज-अनुपमा आशा भवन को कैसे बचाएंगे.

प्यार का विसर्जन : क्यों दीपक से रिश्ता तोड़ना चाहती थी स्वाति

अलसाई आंखों से मोबाइल चैक किया तो देखा 17 मिस्ड कौल्स हैं. सुबह की लाली आंगन में छाई हुई थी. सूरज नारंगी बला पहने खिड़की के अधखुले परदे के बीच से झंक रहा था. मैं ने जल्दी से खिड़कियों के परदे हटा दिए. मेरे पूरे कमरे में नारंगी छटा बिखर गई थी. सामने शीशे पर सूरज की किरण पड़ने से मेरी आंखें चौंधिया सी गई थीं. मिचमिचाई आंखों से मोबाइल दोबारा चैक किया. फिर व्हाट्सऐप मैसेज देखे पर अनरीड ही छोड़ कर बाथरूम में चली गई. फिर फै्रश हो कर किचन में जा कर गरमागरम अदरक वाली चाय बनाई और मोबाइल ले कर चाय पीने बैठ गई.

ओह, ये 17 मिस्ड कौल्स. किस की हैं? कौंटैक्ट लिस्ट में मेरे पास इस का नाम भी नहीं. सोचा कि कोई जानने वाला होगा वरना थोड़े ही इतनी बार फोन करता. मैं ने उस नंबर पर कौलबैक किया और उत्सुकतावश सोचने लगी कि शायद मेरी किसी फ्रैंड का होगा.

तभी वहां से बड़ी तेज डांटने की आवाज आई, ‘‘क्या लगा रखा है साक्षी, सारी रात मैं ने तुम को कितना फोन किया, तुम ने फोन क्यों नहीं उठाया? हम सब कितना परेशान थे. मम्मीपापा तुम्हारी चिंता में रातभर सोए भी नहीं. तुम इतनी बेपरवाह कैसे हो सकती हो?’’

‘‘हैलो, हैलो, आप कौन, मैं साक्षी नहीं, स्वाति हूं. शायद रौंग नंबर है,’’ कह कर मैं ने फोन काट दिया और कालेज जाने के लिए तैयार होने चली गई.

आज कालेज जल्दी जाना था. कुछ प्रोजैक्ट भी सब्मिट करने थे, सो, मैं ने फोन का ज्यादा सिरदर्द लेना ठीक नहीं समझ. बहरहाल, उस दिन से अजीब सी बातें होने लगीं. उस नंबर की मिस्ड कौल अकसर मेरे मोबाइल पर आ जाती. शायद लास्ट डिजिट में एकदो नंबर चेंज होने से यह फोन मुझे लग जाता था. कभीकभी गुस्सा भी आता, मगर दूसरी तरफ जो भी था, बड़ी शिष्टता से बात करता, तो मैं नौर्मल हो जाती. अब हम लोगों के बीच हाय और हैलो भी शुरू हो गई. कभीकभी हम लोग उत्सुकतावश एकदूसरे के बारे में जानकारी भी बटोरने लगते.

एक दिन मैं क्लास से बाहर आ रही थी. तभी वही मिस्ड कौल वाले का फोन आया. साथ में मेरी फ्रैंड थी, तो मैं ने फोन उठाना उचित न समझ. जल्दी से गार्डन में जा कर बैठ कर फोन देखने लगी कि कहीं फिर दोबारा कौल न आ जाए. मगर अनायास उंगलियां कीबोर्ड पर नंबर डायल करने लगीं. जैसे ही रिंग गई, दिल को अजीब सा सुकून मिला. पता नहीं क्यों हम दोनों के बीच एक रिश्ता सा कायम होता जा रहा था. शायद वह भी इसलिए बारबार यह गलती दोहरा रहा था. तभी गार्डन में सामने बैठे एक लड़के का भी मोबाइल बजने लगा.

जैसे मैं ने हैलो कहा तो उस ने भी हैलो कहा. मैं ने उस से कहा, ‘‘क्या कर रहे हो?’’ तो उस ने जवाब दिया, ‘‘गार्डन में खड़ा हूं और तुम से बात कर रहा हूं और मेरे सामने एक लड़की भी किसी से बात कर रही है.’’ दोनों एकसाथ खुशी से चीख पड़े, ‘‘स्वाति, तुम?’’ ‘‘दीपक, तुम?’’

‘‘अरे, हम दोनों एक ही कालेज में पढ़ते हैं. क्या बात है, हमारा मिलना एकदम फिल्मी स्टाइल में हुआ. मैं ने तुम को बहुत बार देखा है.’’

‘‘पर मैं ने तो तुम्हें फर्स्ट टाइम देखा है. क्या रोज कालेज नहीं आती हो?’’

‘‘अरे, ऐसा नहीं. मैं तो रोज कालेज आती हूं. मैं बीए फर्स्ट ईयर की स्टूडैंट हूं.’’

‘‘और मैं यहां फाइन आर्ट्स में एमए फाइनल ईयर का स्टूडैंट हूं.’’

‘‘ओह, तब तो मुझे आप को सर कहना होगा,’’ और दोनों हंसने लगे.

‘‘अरे यार, सर नहीं, दीपक ही बोलो.’’

‘‘तो आप को पेंटिंग का शौक है.’’

‘‘हां, एक दिन तुम मेरे घर आना, मैं तुम्हें अपनी सारी पेंटिंग्स दिखाऊंगा. कई बार मेरी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी भी लग चुकी है.’’

‘‘कोई पेंटिंग बिकी या लोग देख कर ही भाग गए.’’

‘‘अभी बताता हूं.’’ और दीपक मेरी तरफ बढ़ा तो मैं उधर से भाग गई.

कुछ ही दिनों में हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए. कभीकभी दीपक मुझे पेंटिंग दिखाने घर भी ले जाया करता. मेरे मांबाप तो गांव में थे और मेरा दीपक से यों दोस्ती करना अच्छा भी न लगता. कभी हम दोनों साथ फिल्म देखने जाते तो कभी गार्डन में पेड़ों के झरमुट के बीच बैठ कर घंटों बतियाते रहते और जब अंधेरा घिरने लगता तो अपनेअपने घोंसलों में लौट जाते.

एक जमाना था कि प्रेम की अभिव्यक्ति बहुत मुश्किल हुआ करती थी. ज्यादातर बातें इशारों या मौन संवादों से ही समझ जाती थीं. तब प्रेम में लज्जा और शालीनता एक मूल्य माना जाता था. बदलते वक्त के साथ प्रेम की परिभाषा मुखर हुई. और अब तो रिश्तों में भी कई रंग निखरने लगे हैं. अब तो प्रेम व्यक्त करना सरल, सहज और सुगम भी हो गया है. यहां तक कि फरवरी का महीना प्रेम के नाम हो गया है.

इस मौसम में प्रकृति भी सौंदर्य बिखेरने लगती है. आम की मजरिया, अशोक के फल, लाल कमल, नव मल्लिका और नीलकमल खिल उठते हैं. प्रेम का उत्सव चरम पर होता है. कुछ ही दिनों में वैलेंटाइन डे आने वाला था और मैं ने सोच लिया था कि दीपक को इस दिन सब से अच्छा तोहफा दूंगी. इस दोस्ती को प्यार में बदलने के लिए इस से अच्छा कोई और दिन नहीं हो सकता.

आखिर वह दिन भी आ गया जब प्रकृति की फिजाओं के रोमरोम से प्यार बरस रहा था और हम दोनों ने भी प्यार का इजहार कर दिया. उस दिन दीपक ने मुझसे कहा कि आज ही के दिन मैं तुम से सगाई भी करना चाहता था. मेरे प्यार को इतनी जल्दी यह मुकाम भी मिल जाएगा, सोचा न था.

दीपक ने मेरे मांबाप को भी राजी कर लिया. न जैसा कहने को कुछ भी न था. दीपक एक अमीर, सुंदर और नौजवान था जो दिनरात तरक्की कर रहा था. आखिर अगले ही महीने हम दोनों की शादी भी हो गई. अपनी शादीशुदा जिंदगी से मैं बहुत खुश थी.

तभी 4 वर्षों के लिए आर्ट में पीएचडी के लिए लंदन से दीपक को स्कौलरशिप मिल गई. परिवार में सभी इस का विरोध कर रहे थे, मगर मैं ने किसी तरह सब को राजी कर लिया. दिल में एक डर भी था कि कहीं दीपक अपनी शोहरत और पैसे में मुझे भूल न जाए. पर वहां जाने में दीपक का भला था.

पूरे इंडिया में केवल 4 लड़के ही सलैक्ट हुए थे. सो, अपने दिल पर पत्थर रख कर दीपक  को भी राजी कर लिया. बेचारा बहुत दुखी था. मुझे छोड़ कर जाने का उस का बिलकुल ही मन नहीं था. पर ऐसा मौका भी तो बहुत कम लोगों को मिलता है. भीगी आंखों से उसे एयरपोर्ट तक छोड़ने गई. दीपक की आंखों में भी आंसू दिख रहे थे, वह बारबार कहता, ‘स्वाति, प्लीज एक बार मना कर दो, मैं खुशीखुशी मान जाऊंगा. पता नहीं तुम्हारे बिना कैसे कटेंगे ये 4 साल. मैं ने अगले वैलेंटाइन डे पर कितना कुछ सोच रखा था. अब तो फरवरी में आ भी नहीं सकूंगा.’मैं उसे बारबार समझती कि पता नहीं हम लोग कितने वैलेंटाइन डे साथसाथ मनाएंगे. अगर एक बार नहीं मिल सके तो क्या हुआ. खैर, जब तक दीपक आंखों से ओझल नहीं हो गया, मैं वहीं खड़ी रही.

अब असली परीक्षा की घड़ी थी. दीपक के बिना न रात कटती न दिन. दिन में उस से 4-5 बार फोन पर बात हो जाती. पर जैसे महीने बीतते गए, फोन में कमी आने लगी. जब भी फोन करो, हमेशा बिजी ही मिलता. अब तो बात करने तक की फुरसत नहीं थी उस के पास.

कभी भूलेभटके फोन आ भी जाता तो कहता कि तुम लोग क्यों परेशान करते हो. यहां बहुत काम है. सिर उठाने तक की फुरसत नहीं है. घर में सभी समझते कि उस के पास काम का बोझ ज्यादा है. पर मेरा दिल कहीं न कहीं आशंकाओं से घिर जाता.

बहरहाल, महीने बीतते गए. अगले महीने वैलेंटाइन डे था. मैं ने सोचा, लंदन पहुंच कर दीपक को सरप्राइज दूं. पापा ने मेरे जाने का इंतजाम भी कर दिया. मैं ने पापा से कहा कि कोईर् भी दीपक को कुछ न बताए. जब मैं लंदन पहुंची तो दीपक को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था. मैं पापा (ससुर) के दोस्त के घर पर रुकी थी. वहां मु?ो कोई परेशानी न हो, इसलिए अंकलआंटी मेरा बहुत ही ध्यान रखते थे.

वैसे भी उन की कोई संतान नहीं थी. शायद इसलिए भी उन्हें मेरा रुकना अच्छा लगा. उन का मकान लंदन में एक सामान्य इलाके में था. ऊपर एक कमरे में बैठी मैं सोच रही थी कि अभी मैं दीपक को दूर से ही देख कर आ जाऊंगी और वैलेंटाइन डे पर सजधज कर उस के सामने अचानक खड़ी हो जाऊंगी. उस समय दीपक कैसे रिऐक्ट करेगा, यह सोच कर शर्म से गाल गुलाबी हो गए और सामने लगे शीशे में अपना चेहरा देख कर मैं मन ही मन मुसकरा दी.

किसी तरह रात काटी और सुबहसुबह तैयार हो कर दीपक को देखने पहुंची. दीपक का घर यहां से पास में ही था. सो, मुझे ज्यादा परेशानी नहीं उठानी पड़ी.

सामने से दीपक को मैं ने देखा कि वह बड़ी सी बिल्ंडिंग से बाहर निकला और अपनी छोटी सी गाड़ी में बैठ कर चला गया. उस समय मेरा मन कितना व्याकुल था, एक बार तो जी में आया कि दौड़ कर गले लग जाऊं और पूछूं कि दीपक, तुम इतना क्यों बदल गए. आते समय किए बड़ेबड़े वादे चंद महीनों में भुला दिए. पर बड़ी मुश्किल से अपने को रोका.

तब से मुझ पर मानो नशा सा छा गया. पूरा दिन बेचैनी से कटा. शाम को मैं फिर दीपक के लौटने के समय, उसी जगह पहुंच गई. मेरी आंखें हर रुकने वाली गाड़ी में दीपक को ढूं़ढ़तीं. सहसा दीपक की कार पार्किंग में आ कर रुकी तो मैं भौचक्की सी दीपक को देखने लगी. तभी दूसरी तरफ से एक लड़की उतरी. वे दोनों एकदूसरे का हाथ पकड़े मंदमंद मुसकराते, एकदूसरे से बातें करते चले जा रहे थे. मैं तेजी से दीपक की तरफ भागी कि आखिर यह लड़की कौन है. देखने में तो इंडियन ही है. पांव इतनी तेजी से उठ रहे थे कि लगा मैं दौड़ रही हूं. मगर जब तक वहां पहुंची, वे दोनों आंखों से ओल हो गए थे.

मैं पागलों सी सड़क पर जा पहुंची. चारों तरफ जगमगाते ढेर सारे मौल्स और दुकानें थीं. आते समय ये सब कितने अच्छे लग रहे थे, लेकिन अब लग रहा था कि ये सब जहरीले सांपबिच्छू बन कर काटने को दौड़ रहे हों. पागलों की तरह भागती हुई घर वापस आ गई और दरवाजा बंद कर के बहुत देर तक रोती रही. तो यह था फोन न आने का कारण.

मेरे प्यार में ऐसी कौन सी कमी रह गई कि दीपक ने इतना बड़ा धोखा दिया. मैं भी एक होनहार स्टूडैंट थी. मगर दीपक के लिए अपना कैरियर अधूरा ही छोड़ दिया. मैं ने अपनेआप को संभाला. दूसरे दिन दीपक के जाने के बाद मैं ने उस बिल्ंिडग और कालेज में खोजबीन शुरू की. इतना तो मैं तुरंत समझ गई कि ये दोनों साथ में रहते हैं. इन की शादी हो गई या रिलेशनशिप में हैं, यह पता लगाना था. कालेज में जा कर पता चला कि यह लड़की दीपक की पेंटिंग्स में काफी हैल्प करती है और इसी की वजह से दीपक की पेंटिंग्स इंटरनैशनल लैवल में सलैक्ट हुई हैं. दीपक की प्रदर्शनी अगले महीने फ्रांस में है. उस के पहले ये दोनों शादी कर लेंगे क्योंकि बिना शादी के यह लड़की उस के साथ फ्रांस नहीं जा सकती.

तभी एक प्यारी सी आवाज आई, लगा जैसे हजारों सितार एकसाथ बज उठे हों. मेरी तंद्रा भंग हुई तो देखा, एक लड़की सामने खड़ी थी.

‘‘आप को कई दिनों से यहां भटकते हुए देख रही हूं. क्या मैं आप की कुछ मदद कर सकती हूं.’’  मैं ने सिर उठा कर देखा तो उस की मीठी आवाज के सामने मेरी सुंदरता फीकी थी. मैं ने देखा सांवली, मोटी और सामान्य सी दिखने वाली लड़की थी. पता नहीं दीपक को इस में क्या अच्छा लगा. जरूर दीपक इस से अपना काम ही निकलवा रहा होगा.

‘‘नो थैंक्स,’’ मैं ने बड़ी शालीनता से कहा.

मगर वह तो पीछे ही पड़ गई, ‘‘चलो, चाय पीते हैं. सामने ही कैंटीन है.’’ उस ने प्यार से कहा तो मुझ से रहा नहीं गया. मैं चुपचाप उस के पीछेपीछे चल दी. उस ने अपना नाम नीलम बताया. मु?ो बड़ी भली लगी. इस थोड़ी देर की मुलाकात में उस ने अपने बारे में सबकुछ बता दिया और अपने होने वाले पति का फोटो भी दिखाया. पर उस समय मेरे दिल का क्या हाल था, कोई नहीं समझ सकता था. मानो जिस्म में खून की एक बूंद भी न बची हो. पासपास घर होने की वजह से हम अकसर मिल जाते. वह पता नहीं क्यों मुझ से दोस्ती करने पर तुली हुई थी. शायद, यहां विदेश में मुझ जैसे इंडियंस में अपनापन पा कर वह सारी खुशियां समेटना चाहती थी.

एक दिन मैं दोपहर को अपने कमरे में आराम कर रही थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने ही दरवाजा खोला. सामने वह लड़की दीपक के साथ खड़ी थी. ‘‘स्वाति, मैं अपने होने वाले पति से आप को मिलाने लाई हूं. मैं ने आप की इतनी बातें और तारीफ की तो इन्होंने कहा कि अब तो मु?ो तुम्हारी इस फ्रैंड से मिलना ही पड़ेगा. हम दोनों वैलेंटाइन डे के दिन शादी करने जा रहे हैं. आप को इनवाइट करने भी आए हैं. आप को हमारी शादी में जरूर आना है.’’

दीपक ने जैसे ही मुझे देखा, छिटक कर पीछे हट गया. मानो पांव जल से गए हों. मगर मैं वैसे ही शांत और निश्च्छल खड़ी रही. फिर हाथ का इशारा कर बोली, ‘‘अच्छा, ये मिस्टर दीपक हैं.’’ जैसे वह मेरे लिए अपरिचित हो. मैं ने दीपक को इतनी इंटैलिजैंट और सुंदर बीवी पाने की बधाई दी.

दीपक के मुंह पर हवाइयां उड़ रही थीं. लज्जा और ग्लानि से उस के चेहरे पर कईर् रंग आजा रहे थे. यह बात वह जानता था कि एक दिन सारी बातें स्वाति को बतानी पड़ेंगी. मगर वह इस तरह अचानक मिल जाएगी, उस का उसे सपने में भी गुमान न था. उस ने सब सोच रखा था कि स्वाति से कैसेकैसे बात करनी है. आरोपों का उत्तर भी सोच रखा था. पर सारी तैयारी धरी की धरी रह गईर्.

नीलम ने बड़ी शालीनता से मेरा परिचय दीपक से कराया, बोली, ‘‘दीपक, ये हैं स्वाति. इन का पति इन्हें छोड़ कर कहीं चला गया है. बेचारी उसी को ढूंढ़ती हुई यहां आ पहुंची. दीपक, मैं तुम्हें इसलिए भी यहां लाई हूं ताकि तुम इन की कुछ मदद कर सको.’’ दीपक तो वहां ज्यादा देर रुक न पाया और वापस घर चला गया. मगर नींद तो उस से कोसों दूर थी. उधर, नीलम कपड़े चेंज कर के सोने चली गई. दीपक को बहुत बेचैनी हो रही थी. उसे लगा था कि स्वाति अपने प्यार की दुहाई देगी, उसे मनाएगी, अपने बिगड़ते हुए रिश्ते को बनाने की कोशिश करेगी. मगर उस ने ऐसा कुछ नहीं किया. मगर क्यों…?

स्वाति इतनी समझदार कब से हो गई. उसे बारबार उस का शांत चेहरा याद आ रहा था. जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. आज उसे स्वाति पर बहुत प्यार आ रहा था. और अपने किए पर पछता रहा था. उस ने पास सो रही नीलम को देखा, फिर सोचने लगा कि क्यों मैं बेकार प्यारमोहब्बत के जज्बातों में बह रहा हूं. जिस मुकाम पर मु?ो नीलम पहुंचा सकती है वहां स्वाति कहां. फिर तेजी से उठा और एक चादर ले कर ड्राइंगरूम में जा कर लेट गया.

दिन में 12 बजे के आसपास नीलम ने उसे जगाया. ‘‘क्या बात है दीपक, तबीयत तो ठीक है? तुम कभी इतनी देर तक सोते नहीं हो.’’ दीपक ने उठते ही घड़ी की तरफ देखा. घड़ी 12 बजा रही थी. वह तुरंत उठा और जूते पहन कर बाहर निकल पड़ा. नीलम बोली, ‘‘अरे, कहां जा रहे हो?’’

‘‘प्रोफैसर साहब का रात में फोन आया था. उन्हीं से मिलने जा रहा हूं.’’

दीपक सारे दिन बेचैन रहा. स्वाति उस की आंखों के आगे घूमती रही. उस की बातें कानों में गूंजती रहीं. उसी के प्यार में वह यहां आई थी. स्वाति ने यहां पर कितनी तकलीफें ?ोली होंगी. मु?ो कोई परेशानी न हो, इसलिए उस ने अपने आने तक का मैसेज भी नहीं दिया. क्या वह मु?ो कभी माफ कर पाएगी.

मन में उठते सवालों के साथ दीपक स्वाति के घर पहुंचा. मगर दरवाजा आंटी ने खोला. दीपक ने डरते हुए पूछा, ‘‘स्वाति कहां है?’’

आंटी बोलीं, ‘‘वह तो कल रात 8 बजे की फ्लाइट से इंडिया वापस चली गई. तुम कौन हो?’’

‘‘मैं दीपक हूं, नीलम का होने वाला पति.’’

‘‘स्वाति नीलम के लिए एक पैकेट छोड़ गई है. कह रही थी कि जब भी नीलम आए, उसे दे देना.’’

दीपक ने कहा, ‘‘वह पैकेट मुझे दे दीजिए, मैं नीलम को जरूर दे दूंगा.’’

दीपक ने वह पैकेट लिया और सामने बने पार्क में बैठ कर कांपते हाथों से पैकेट खोला. उस में उस के और स्वाति के प्यार की निशानियां थीं. उन दोनों की शादी की तसवीरें. वह फोन जिस ने उन दोनों को मिलाया था. सिंदूर की डब्बी और एक पीली साड़ी थी. उस में एक छोटा सा पत्र भी था, जिस में लिखा था कि 2 दिनों बाद वैलेंटाइन डे है. ये मेरे प्यार की निशानियां हैं जिन के अब मेरे लिए कोई माने नहीं हैं. तुम दोनों वैलेंटाइन डे के दिन ही थेम्स नदी में जा कर मेरे प्यार का विसर्जन कर देना…स्वाति.

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