धनंजयजी का मन जाने का नहीं था, लेकिन सुप्रिया ने आग्रह के साथ कहा कि सुधांशु का नया मकान बना है और उस ने बहुत अनुरोध के साथ गृहप्रवेश के मौके पर हमें बुलाया है तो जाना चाहिए न. आखिर लड़के ने मेहनत कर के यह खुशी हासिल की है, अगर हम नहीं पहुंचे तो दीदी व जीजाजी को भी बुरा लगेगा...

‘‘पर तुम्हें तो पता ही है कि आजकल मेरी कमर में दर्द है, उस पर गरमी का मौसम है, ऐसे में घर से बाहर जाने का मन नहीं करता है.’’

‘‘हम ए.सी. डब्बे में चलेंगे...टिकट मंगवा लेते हैं,’’ सुप्रिया बोली.

‘‘ए.सी. में सफर करने से मेरी कमर का दर्द और बढ़ जाएगा.’’

‘‘तो तुम सेकंड स्लीपर में चलो, ...मैं अपने लिए ए.सी. का टिकट मंगवा लेती हूं,’’ सुप्रिया हंसते हुए बोली.

सुप्रिया की बहन का लड़का सुधांशु पहले सरकारी नौकरी में था, पर बहुत महत्त्वाकांक्षी होने के चलते वहां उस का मन नहीं लगा. जब सुधांशु ने नौकरी छोड़ी तो सब को बुरा लगा. उस के पिता तो इतने नाराज हुए कि उन्होंने बोलना ही बंद कर दिया. तब वह अपने मौसामौसी के पास आ कर बोला था, ‘मौसाजी, पापा को आप ही समझाएं...आज जमाना तेजी से आगे बढ़ रहा है, ठीक है मैं उद्योग विभाग में हूं...पर हूं तो निरीक्षक ही, रिटायर होने तक अधिक से अधिक मैं अफसर हो जाऊंगा...पर मैं यह जानता हूं कि जिन की लोन फाइल बना रहा हूं वे तो मुझ से अधिक काबिल नहीं हैं. यहां तक कि उन्हें यह भी नहीं पता होता कि क्या काम करना है और उन की बैंक की तमाम औपचारिकताएं भी मैं ही जा कर पूरी करवाता हूं. जब मैं उन के लिए इतना काम करता हूं, तब मुझे क्या मिलता है, कुछ रुपए, क्या यही मेरा मेहनताना है, दुनिया इसे ऊपरी कमाई मानती है. मेरा इस से जी भर गया है, मैं अपने लिए क्या नहीं कर सकता?’

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