प्यूर्टो रिको : मजा अमेरिका का आनंद गोवा का

फ्लोरिडा, कैलिफोर्निया जैसे कुछ राज्यों को छोड़ कर अमेरिका के ज्यादातर राज्यों में सर्दी का मौसम भारतीयों के लिए असहनीय हो जाता है. ऐसे में अमेरिका के वंडर्स देख पाने के बजाय भारतीय टूरिस्ट गरम होटलों, कमरों, आर्ट गैलरियों में या फिर म्यूजियमों आदि में अपना समय व्यतीत करते हैं, क्योंकि सर्दी के मौसम में यहां हर घर, दुकान, मौल, गैलरी, म्यूजियम, भवन, औफिस अंदर से गरम रखा जाता है. सर्दी में जबतब बर्फ गिरती है. हिम, पाला, तुषार के इस मौसम के लिए आप को छाता, गरम कपड़े, कोट, दस्ताने, कैप तो चाहिए ही, शायद स्नो शूज भी खरीदने पड़ें.

ऐसे मौसम में आप की अमेरिकी यात्रा के सिलसिले में एक खास सुझाव यह है कि इस यात्रा के बीच समय निकाल 1 हफ्ते के लिए प्यूर्टो रिको हो आएं. अमेरिका के इस सहदेश की राजधानी सैन जुआन है. यहां जा कर आप को अमेरिका की कड़ाके की सर्दी से न केवल राहत मिलेगी, बल्कि सागर के मध्य बसे इस देश में आप को गोवा जैसा आनंद भी मिलेगा. नारियल, केले, पपीते के मनोहारी वृक्ष, गोवा जैसी गरमाहट, सुंदर चौपाटियां, सागर की मादक हवा, स्विमिंग पूल, भरपूर हरियाली आदि आप का मन मोह लेंगे. यहां के लोग भी हमीं जैसे हैं. अंगरेजी भाषा से यहां काम चल जाएगा, यह भी लाभ है.

नया जोश नई ऊर्जा

प्यूर्टो रिको देखने के बाद मन में पहला विचार यही आया कि वहां के आनंदकारी अनुभव गृहशोभा के पाठकों से शेयर करूं. खास बात यह है कि अगर आप ने अमेरिका का वीजा प्राप्त कर लिया है तो प्यूर्टो रिको को देखने से आप को कोई नहीं रोक सकता. जी हां, अमेरिकी वीजा व करेंसी ही चलते हैं वहां. दिलचस्प तथ्य यह भी है कि मेजर महानगरों न्यूयौर्क, अटलांटा, शिकागो, लास एंजिल्स, मियामी आदि से प्यूर्टो रिको की सीधी उड़ानें हैं जोकि आप को जल्दी सैन जुआन पहुंचा देंगी. इन सुविधाओं के अलावा यहां खानापीना, घूमना वगैरह भी अमेरिका के मुकाबले सस्ता है.

वहां जा कर अमेरिका की कड़ाके की सर्दी से 1 सप्ताह राहत पा जश्न मनाएं, फिर अमेरिका देखने पहुंचें, नए जोश, नई ऊर्जा के साथ. मैं परिवार संग अमेरिका गई तो मैं ने भी यही किया. जी हां, 6 दिन का वह सुंदर ट्रिप मुझे भूलता नहीं. तो आइए, आप को भी प्यूर्टो रिको घुमा लाऊं…

प्यूर्टो रिको में कायदाकानून अमेरिका का ही चलता है. अत: इसे अमेरिका का 51वां राज्य भी बोला जाता है, पर आप यहां महसूस करेंगे कि यह आजाद देश जैसा ही है. यहां की प्रमुख भाषा स्पैनिश है, यद्यपि अंगरेजी बोलसमझ लेने वाले पर्यटकों को कोई दिक्कत नहीं. यहां साइनबोर्ड स्पैनिश में हैं, फिर भी हर साल यहां 40-45 लाख टूरिस्ट आते हैं. हमें कुछ लोग ऐसे भी मिले जोकि पूरी सर्दी यहीं बिता कर बाद में अमेरिका जाते हैं.

विशाल और भव्य दृश्य

मैं अपने पति, बेटे-बहू, पोतेपोती के संग न्यूयौर्क से निकली तो हम लोग 4 घंटों में ही सैन जुआन पहुंच गए. युनाइटेड की इस फ्लाइट में पानी और जूस तो मुफ्त सर्व हुआ, परंतु खाने का सामान खरीदना पड़ा. सैन जुआन में दुनिया के कई देशों से रोज फ्लाइटें आती हैं. अत: यह काफी बड़ा एअरपोर्ट है. खाने के स्थानीय व अमेरिकन जौइंट्स सभी एअरपोर्ट पर उपलब्ध हैं. यहां एअरपोर्ट पर थोड़ा खापी कर हम ने यहीं से किराए पर एक बड़ी कार ले ली, जिस ने 6 दिन का हम से 500 डौलर किराया लिया. इसे ड्राइव कर फिर अपने होटल विंढम पहुंचे, जहां 5 रातें ठहरने के लिए हम ने 3 कमरों का कोंडो किराए पर लिया. इस का टोटल किराया 1,500 डौलर था. कोंडो में बढि़या फर्नीचर, बरतन, फ्रिज, माइक्रोवेव जैसी सभी सुविधाएं थीं. थोड़ीबहुत खाद्यसामग्री हम बाजार से खरीद लाए. बाकी होटल से मंगाते थे.

2-3 घंटे आराम कर हम 4 बजे शहर देखने निकले. इस पहले दिन हमें पूरा माहौल खूब सुंदर दिखा मानो हम गोवा में हों. अलबत्ता गोवा के मुकाबले भीड़ व ट्रैफिक काफी कम था. खानेपीने और सामान खरीदने के लिए अमेरिकन रेस्तरां व दुकानों के साथसाथ स्थानीय रेस्तरां व दुकानें भी थीं. सड़क के किनारे हम ने केले, सेब, पपीते वगैरह भी खरीदे, न्यूयौर्क से आधे भाव में. फिर हम पहुंच गए पुराने सैन जुआन इलाके में एक सुंदर पुराना किला देखने. 1539 में इस किले का निर्माण स्पेनी लोगों ने शुरू किया था और जब पूरा बन गया तो इसे नाम दिया गया ‘कैस्टिलो सैन फैलिपे डेल मोरो.’ आज इस के अवशेष देखें तो भी मुंह से ये शब्द निकलेंगे कि विशाल, भव्य, रोमांचक. सागर से 140 फुट ऊंचा निर्मित यह किला पुराने सैन जुआन इलाके में है, जहां खूब रौनक है. असंख्य छोटीछोटी दुकानें हैं और हैं पुराने किस्म के सुंदर मकान. स्थानीय भोजन के अनेक रेस्तराओं में चुन कर एक में हम ने भोजन किया. रेस्तरां के बाहर स्ट्रीट डांसर व गायक टूरिस्टों के लिए परफौर्म कर रहे थे. लाइव डांस, म्यूजिक और पेट भर भोजन ने हमें करीबकरीब मदहोश कर दिया.

रोमांचक नजारे

एक और पुराना किला भी है सैन जुआन में जिस का नाम है ‘कैसिलो द सैन क्रिस्टोबल’ परंतु वह बंद हो चुका था. अत: देख नहीं पाए. पुराने सैन जुआन में हम ने एक ऐसी दुकान भी देखी जिस पर लिखा था, ‘आयुर्वेदिक मैडिसिन’ परंतु दुकान बंद थी. बहरहाल, हमारा पहला दिन संतुष्टि भरा गुजरा. रात को बढि़या नींद आई, मगर पंखा चला कर. लगा हम गोवा के किसी होटल में हैं अपनों के बीच.

अगले दिन नाश्ता कर स्विमिंग कौस्ट्यूम में स्विमिंग पूल पहुंच गए. होटल के ग्राउंड फ्लोर पर 4 पूल्स हैं. इन में एक छोटे बच्चों के लिए है. बड़े बच्चों के लिए पूल में कूदने के लिए टेढ़ीमेढ़ी मजेदार स्लाइड्स हैं. घंटों जी भर के नहाए. बीचबीच में पास बने रेस्तरां में खातेपीते भी रहे.

बाद में होटल की दीवार से सटे सागर तट पर खूब घूमे. सागर जल एकदम स्वच्छ था. कहीं कोई गंदगी नहीं. सागर जल सूर्य की किरणों को पकड़ कभी सुनहरा, कभी हरा तो कभी नीला रंग इख्तियार कर लेता. 3-4 बजे कमरे में आ कर सो गए, फिर शाम को अनोखे अनुभव के लिए बायो बे गए.

कहते हैं कि पूरी दुनिया में केवल 5 बायो बे स्थल हैं, जिन में से 3 प्यूर्टो रिको में हैं. इस नजरिए से प्यूर्टो रिको अनोखा है. हम ने इन में केवल एक ही बायो बे देखा और वह भी 2 किस्तों में, रात के वक्त. दूसरे और तीसरे दिन रात को 2-2 टिकट ही मिल पाए. रात 8 से 10 बजे के बीच देखे ये बायो बे वाकई रोमांचक थे.

अनोखा पर्यटक स्थल

सागर के कुछ ऐसे उथले अनोखे स्थल होते हैं जहां मैंग्रोट्ज के मध्य कुछ अद्भुत जीवाणु पनपते हैं, जो रात के समय जुगनुओं की तरह चमकते हैं. ये लाखोंकरोड़ों जीटाणु नीले, हरे प्रकाश से और ज्यादा चमकते हैं. इन्हीं स्थलों को बायो बे कहा जाता है,परंतु इन के पनपने के लिए खास कुदरती इकोलौजी चाहिए. इन स्थलों पर आप पैट्रोल, डीजल वाली मोटरबोट नहीं ले जा सकते, क्योंकि प्रदूषण इन जीवाणुओं को नष्ट कर देता है. इसीलिए हम लोग चप्पू चला कर साधारण बोटों से एक लीड बोट के पीछेपीछे बायो बे देखने गए. इस प्रकार की बोटिंग को कयाकिंग कहा जाता है. चढ़तेउतरते वक्त आप को कमर तक पानी में घुसना पड़ता है, परंतु प्रकृति की इस अद्भुत लीला का आनंद ही जुदा है. प्यूर्टो रिको की जो बायो बे हम ने देखी वह सैन जुआन में ही है. फ्जार्दो नामक स्थान पर बायो बे की बुकिंग बहुत पहले हो जाती है. अत: हमें वही टिकट मिल पाए थे जो कैंसल हुए थे. इसी कारण हम 2 किस्तों में गए थे.

2 अन्य बायो बे हैं- ला पार्गुयेरा और वियेक्स मैस्किटो बे. यद्यपि हम इन्हें देख नहीं पाए पर इन की भी तारीफ खूब सुनी. सैन जुआन में हमें स्थानीय लोगों ने बताया कि टूरिस्टों की अधिकता के कारण इन बे स्थलों पर प्रदूषण बढ़ रहा है और जीवाणुओं की संख्या कम हो रही है. हो सकता है कि कुछ वर्षों में ही ये बायो बे खत्म हो जाएं.

प्यूर्टो रिको में अमेरिकन मैक डोनाल्ड, सबवे, डंकिन डोनट्स वगैरह सभी हैं, पर हम ‘चिलीज’ में ज्यादा जाते रहे. यहां वैजिटेरियन फूड मिलता है. चायकौफी, दूध वगैरह का स्टाक तो कमरे में ही था, बाहर से लेने की जरूरत नहीं पड़ी. इस प्रकार 3 दिन आराम से गुजर गए. तीसरी रात भी जी भर कर सोए. होटल के कमरे में आप को अतिरिक्त सुविधाएं चाहिए हों तो पहले ही सूचित कर देना बेहतर रहता है. वैसे जब भी आप होटल स्टाफ से बात करेंगे, वे सेवा के लिए तत्पर दिखाई देंगे.

अद्भुत प्राकृतिक नजारे

चौथे दिन हम अमेजौन, इंडोनेशिया, कांगो आदि वर्षावनों को देखने गए. छातेवाते लिए और थोड़े सैंडविच वगैरह बांधे निकल पड़े रेन फौरैस्ट देखने. कुछ किलोमीटर ही हमारी कार चली होगी कि घने वृक्ष शुरू हो गए. अचानक एक सुंदर बड़ा झरना दिखा तो कार रोक उस का आनंद लिया. उसे ‘ला कोका’ फौल कहते हैं. आगे 1-2 किलोमीटर के बाद हम पहुंच गए ‘एल यंग’ रेन फौरैस्ट. वाह, क्या नजारा. अद्भुत वृक्षलताएं, स्थानीय तोते और कोकी मेढक (बहुत छोटा मेढक है यह मगर खास आवाजमें चिल्लानाटर्राना खूब जानते हैं), अन्यान्य लिजर्ड, रंगबिरंगे वृक्ष. टूरिस्टों के लिए जंगल में कैनोपियां बनी हैं ताकि अचानक बारिश शुरू होने पर उन में शरण ले सकें.

एक कैनोपी में बैठ कर सैंडविचचाय का आनंद लिया, फिर थोड़ा और घूमे. वापस आने का मन नहीं था. बीचबीच में वर्षा होती रही. 3-4 बजे भारी मन से कोंडो लौटे. थोड़ा आराम किया, खायापिया और फिर शाम ‘चिलीज’ रेस्तरां के नाम की. यहां खूब भीड़ थी. पेट भर खाया फिर कोंडो लौट आए.

दुनिया में हरी, नीली, पिंक और सफेद बालू वाले अनेक बीच हैं. 5वें दिन हम जल्दी जगे, बिना नहाए निकल पड़े कुलेब्रा आइलैंड के लिए जहां सफेद बालू वाले कई बीच हैं. इस के लिए पहले हम ने एक फैरी ली, जिस ने हमें कुलेब्रा पहुंचाया. फिर एक जीप किराए पर ले कर हम कुलेब्रा के सर्वाधक लोकप्रिय बीच फ्लेमेंको पहुंचे. यह बीच विश्व के सर्वाधिक प्रसिद्ध बीचेज में शामिल है. यहां कोई पर्यटक सनबाथ, कोई स्नान, कोई कैंप आउट, कोई बोटिंग, कोई कयाकिंग तो कोई अन्य स्नोर्कलिंग में व्यस्त था. इस बीच को ‘बीच औफ व्हाइट सैंड्स ऐंड क्लियर ब्लू वाटर्स’ यों ही नहीं कहते. जल वाकई नीला व स्वच्छ था. हम ने भारत में इतना सुंदर, स्वच्छ, बढि़या बीच पहले नहीं देखा. यहां तक कि अमेरिका का ऐटलांटिक सिटी बीच भी इतना सुंदर नहीं. बहरहाल, कुल मिला कर लगा हम अपने प्रिय गोवा में हैं. शाम तक होटल वापस आ गए. फिर स्विमिंग पूल में घुस जलक्रीड़ा में मग्न हो गए.

नियमों का पालन जरूरी

स्विमिंग पूल्स के पास एक छोटा बगीचा भी है जहां 10 इगुआना पाली हुई हैं. टूरिस्ट उन्हें पत्ते खिला कर उन से दोस्ती करते हैं. इगुआना यहां की प्रसिद्ध लिजर्ड है जोकि बेबी मगरमच्छ जैसी लगती है. हम ने पहले इगुआना किसी भी म्यूजियम में नहीं देखी थीं. पूल्स से निकल हम इगुआना देखने चले गए पर खेलखेल में जब इगुआना ने हमारे पोते को काट लिया तो हम टैंशन में आ गए. पर गार्ड ने आश्वस्त किया कि कटे स्थान को साबुनपानी से धो निश्चिंत हो जाएं.

अगले दिन होटल से चैकआउट कर एअरपोर्ट के लिए निकल पड़े. फ्लाइट पकड़ न्यूयौर्क आ गए. नई ऊर्जा और नए ज्ञान के साथ लोग जिस रेसिज्म की बातें करते हैं वह हम ने न अमेरिका में महसूस की और न ही प्यूर्टो रिको में. हम तो यही कहेंगे कि वसुधा वाकई एक कुटुंब है. खूब पर्यटन कीजिए और कुटुंबीजनों से मिलते रहिए. हां, कोई ऐसा काम वहां न करें जिस कारण लज्जित होना पड़े खासकर कचरा तो कचरा डब्बे में ही डालें. स्थानीय नियमों का पालन करें और पर्यटन का पूरापूरा लुत्फ उठाएं.

जीवन बीमा: बचत ही नहीं जरूरत भी

समय के साथ अब जीवन बीमा में भी बदलाव आ चुका है. अब यह जरूरत और बचत दोनों को पूरा करता है. यह एक ऐसी आर्थिक सुरक्षा देता है, जो व्यक्ति के आत्मविश्वास को बढ़ाने का काम करती है. जीवन बीमा पौलिसी जितनी कम आयु में ले ली जाए प्रीमियम उतना ही कम देना पड़ता है और लाभ अधिक से अधिक मिलता है. वैसे जीवन बीमा को बचत की जगह जरूरत ज्यादा मानना चाहिए, क्योंकि इस से बड़े होते बच्चों की शिक्षा, रोजगार व शादी सहित जीवन की और नई महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियों को उठाने में मदद मिलती है.

भारतीय जीवन बीमा निगम परिवार के हर सदस्य की जरूरत को समझते हुए उस के हिसाब से पौलिसी देता है. जिस से केवल घर के कमाऊ सदस्य को ही नहीं, दूसरे सदस्यों को भी पूरी सुरक्षा मिलती है. ऐसे में यह जरूरी है कि जीवन बीमा को बचत से अधिक जरूरत समझना चाहिए. भारत में जीवन बीमा पौलिसी की शुरुआत भारतीय जीवन बीमा निगम ने की थी.

बीमा यानी इंश्योरैंस एक प्रकार का अनुबंध होता है. 2 या अधिक व्यक्तियों, संस्थाओं में ऐसा समझौता जिसे कानूनी रूप से लागू किया जा सके, उसे अनुबंध कहते हैं. शुरूशुरू में भारत में सरकारी कंपनियां ही बीमा पौलिसियां बेचने का काम करती थीं. मगर अब बहुत सारी प्राइवेट कंपनियों को भी लाइफ इंश्योरैंस, हैल्थ इंश्योरैंस पौलिसियां बेचने की अनुमति मिल गई है. हाल के कुछ सालों में देश में बीमा कारोबार ने काफी तरक्की कर ली है. बीमा केवल करने और कराने वाले के लिए ही लाभप्रद नहीं है, बीमा कंपनियां देश में बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देने का काम भी कर रही हैं.

जैसी जरूरत वैसी पौलिसी

भारतीय जीवन बीमा निगम, लखनऊ मंडल के वरिष्ठ मंडल प्रबंधक, आदित्य गुप्ता कहते हैं, ‘‘आजीवन बीमा पौलिसी कितनी कीमत की ली जाए इस का सरल सा फार्मूला यह है कि व्यक्ति की सालाना आय जितनी हो, उस की 10 गुना बीमा राशि हो. कई तरह की बीमा पौलिसियां आने से किसी तरह का बोझ पौलिसीधारक पर नहीं पड़ता है. बीमा एजेंट सही बीमा पौलिसी का चुनाव करने में मदद करता है.’’

हर बीमा योजना को चलाने के लिए एक पौलिसी का सहारा लिया जाता है. इस पौलिसी में ही अनुबंध की शर्तें लिखी होती हैं. बीमा कंपनियों का प्रयास होता है कि वे इस तरह की पौलिसियां बनाएं जिन में हर आदमी की जरूरत के हिसाब से पौलिसी चुनने की सुविधा मिल सके. बीमा पौलिसियां कई तरह की होती हैं. बीमा को लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए बचत योजना को भी बीमा पौलिसी में जोड़ा गया. बीमा का पैसा ली गई पौलिसी की तय समय अवधि पूरी होने के बाद मिलता है. बीमा कराने वाले को उस की जरूरत के हिसाब से समयसमय पर कुछ पैसा मिलता रहे, इस के लिए मनी बैक पौलिसी का विकल्प भी उपलब्ध है. मनी बैक पौलिसी जीवन बीमा की सब से अधिक बिकने वाली पौलिसियों में आती है. यही नहीं, बीमा कंपनियां गारंटीशुदा पैसा देने वाली पौलिसी भी ले कर आ चुकी हैं.

रोजगार भी

बीमा से केवल जीवन की सुरक्षा ही नहीं मिलती है, यह रोजगार का भी एक बड़ा साधन है. जीवन बीमा एजेंट बन कर लाखों लोग अपनी रोजीरोटी चला रहे हैं. इस से आर्थिक लाभ मिलता है. बीमा रकम बीमाधारक के मरने के बाद भी और जिंदा रहते हुए भी काम आती है. रूढि़यों में जीने वाले हमारे देशवासी अपने मरने की कल्पना भी नहीं करना चाहता. इसी वजह से जीवन बीमा कंपनियों को अपने प्रचार में कहना पड़ता है कि जिंदगी के बाद भी और जिंदगी के साथ भी. बीमा कंपनियां पौलिसियां बनाते समय इस बात का पूरा ध्यान रखती हैं कि बीमाधारक की जरूरत के अनुसार बीमा पौलिसी बनाई जाए. अभी भी हमारे देश में प्रति व्यक्ति आय दूसरे विकसित देशों के मुकाबले काफी कम है. इसी वजह से यहां बीमा की तरफ कम ध्यान दिया जाता है. बीमा के साथसाथ बचत योजनाओं को चलाने से ही बीमा की तरफ लोगों को ज्यादा से ज्यादा जोड़ा जा सकता है.

प्रबंधक कार्यालय सेवा, मोनिका विकास जगधारी कहती हैं, ‘‘आज के दौर में महिलाएं नौकरी और रोजगार के अन्य क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं. ऐसे में महिला बीमा एजेंटों की जरूरत भी तेजी से बढ़ रही है. बीमा एजेंट बन कर महिलाएं रोजगार कर सकती हैं. किसी महिला को बीमे की जरूरत के बारे में महिला एजेंट ज्यादा अच्छी तरह समझा सकती है. महिला के लिए बीमा एजेंट बन कर अपना कैरियर चलाना सरल काम है.’’ बीमा देश के विकास में अपना अहम रोल अदा कर रहा है. भारत में अभी भी बीमा कारोबार की बड़ी संभावनाएं हैं. ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इस को पहुंचाने से देश का लाभ होगा. बीमा एजेंट बन कर बेरोजगारी की समस्या को भी काफी हद तक दूर किया जा सकता है.

एसआईपी : छोटी बचत को बनाए बड़ा

हर महीने आप खुद से एक वादा करती हैं अपने जरूरी खर्चों से कुछ पैसे बचा कर बचत करने का. लेकिन महीने गुजरते जाते हैं और आप का वादा अधूरा ही रह जाता है. इस के अतिरिक्त कामकाजी महिलाएं जो अपने वेतन में से कुछ पैसे बचा कर बचत करती भी हैं, तो उन का तरीका बहुत प्रभावशाली नहीं होता यानी बचत के लिए वे आवर्ती जमा खाता (आरडी) चुनती हैं, जो उन्हें उन के लक्ष्य को पूरा करने हेतु जरूरी धनराशि जुटा पाने की सुविधा नहीं देता.

मसलन, बच्चे की उच्च शिक्षा हेतु या फिर बेटी के विवाह के लिए जितने धन की आवश्यकता भविष्य में पड़ सकती है, उसे आवर्ती जमा खाते के लाभ से पूरा नहीं किया जा सकता.

एसआईपी क्यों जरूरी

मान लीजिए आप का लक्ष्य अपनी बेटी की उच्च शिक्षा के लिए पैसे की बचत करना है. पहले से ही महंगी उच्च शिक्षा हर वर्ष 10-12% की दर से और भी महंगी होती जा रही है. ऐसे में यदि आप अपनी 2 वर्ष की बेटी को 18 वर्ष बाद एमबीए कराना चाहती हैं तो आप को फीस के लिए उस वक्त क्व80 लाख की आवश्यकता पड़ सकती है जबकि वर्तमान में इस कोर्स की फीस लगभग क्व15 लाख ही है. व्यावहारिक रूप से इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सिर्फ बैंक खाते में पैसे की बचत या आवर्ती जमा खाते के माध्यम से 8-9% का लाभ पाने के लिए निवेश काफी नहीं है, बल्कि इस के लिए आप को 12% या इस से भी अधिक ब्याज दर से रिटर्न प्रदान करने वाले निवेश की आवश्यकता है. यहां म्यूचुअल फंड लक्ष्य को प्राप्त करने में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं.

हो सकता है कि गृहिणियों और कामकाजी महिलाओं को म्यूचुअल फंड में निवेश करना थोड़ा जोखिम भरा लगेगा, लेकिन सिप (सिस्टमैटिक इनवैस्टमैंट प्लानिंग) के माध्यम से म्यूचुअल फंड में निवेश करने में जोखिम की संभावना कम होती है. एसआईपी निवेश का एक ऐसा विकल्प है, जो एक समय अवधि में केवल प्रति माह क्व1000 की राशि निवेश कर के धन बढ़ाने में मदद करता है.

कैसे तय करें वित्तीय लक्ष्य

आप इन 5 सिद्धांतों पर अमल कर के अपने वित्तीय लक्ष्य तय कर सकती हैं:

  1. जिस दिन से आप अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास शुरू करने जा रही हैं, वह दिन तय कर लें.
  2. अपने वित्तीय लक्ष्यों की वर्तमान लागत का मूल्यांकन करें.
  3. मुद्रास्फीति सहित अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए तय की गई धनराशि का मूल्यांकन करें.
  4. निवेश के विकल्प का चुनाव और उस से मिलने वाले रिटर्न का मूल्यांकन करें.
  5. निवेश की अपनी मासिक किस्त तय करें.

एसआईपी की शुरुआत

निवेश हमारे लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करता है. हर किसी के अपनेअपने लक्ष्य मसलन रिटायरमैंट, बच्चों की शादी, शिक्षा, नई कार खरीदना, छुट्टियां बिताने विदेश जाना आदि होते हैं. सही रिटर्न पाने के लिए निवेश के सही उद्देश्य का पता लगाना जरूरी है. आप म्यूचुअल फंड की विभिन्न योजनाओं में से किसी का भी चयन कर सकती हैं. लार्ज कैप, स्मौल कैप, मिड कैप, फ्लैक्सी कैप आदि ऐसी ही कुछ योजनाएं हैं.

म्यूचुअल फंड खरीदने के लिए आप औनलाइन आवेदन करने के साथसाथ यह सुविधा देने वाले बैंक इत्यादि से भी संपर्क कर सकती हैं.

एसआईपी की मासिक किस्त जमा करने के लिए कोई भी विभिन्न तारीखों का चयन कर सकती हैं. हर म्यूचुअल फंड कंपनी की अपनी तारीखें होती हैं. ज्यादातर कंपनियों में हर माह 1 से 5 तारीख किस्त जमा करने के लिए तय होती हैं. दूसरे निवेशों की तुलना में एसआईपी की सब से अच्छी बात यह होती है कि आप म्यूचुअल फंड की किस्त के भुगतान को अपने बचत खाते से ईसीएस द्वारा कटवा सकती हैं.

एसआईपी में निवेश के समय क्या करें

अपने लक्ष्यों की योजना पहले से बनाएं और उसी के आधार पर एसआईपी लें.

आप को अपने पेशे में जैसेजैसे प्रोमोशन मिलती जाए वैसेवैसे आप एसआईपी की राशि को अपने वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बढ़ा सकती हैं.

जैसेजैसे आप अपने वित्तीय लक्ष्यों के करीब आती जाएं, वैसेवैसे अपने पैसे को सुरक्षित निवेश विकल्पों में हस्तांतरित करती जाएं.

क्या न करें

सारे पैसे एक ही म्युचूअल फंड में निवेश न करें, बल्कि 3-4 स्कीमों में मसलन लार्ज कैप, मिड कैप, स्मौल कैप, फ्लैक्सी कैप में लगाएं.

 अपनी एसआईपी स्कीम की रोज निगरानी न करें, बल्कि निवेश के बाद जब तक आप अपने वित्तीय लक्ष्य के नजदीक न पहुंचें तब तक के लिए अपने निवेश को भूल जाएं.

 बाजार के उतारचढ़ावों से परेशान न हों. अपने वित्तीय सलाहकार से परामर्श लेने के बाद ही कोई फैसला लें.           

– अनिल चोपड़ा, ग्रुप सीईओ व डायरैक्टर, बजाज कैपिटल

ऐसे करें नए पड़ोसी का स्वागत

कई महीनों से आप अपने सामने के फ्लैट पर ‘फौर सेल’ का बोर्ड देख रही थीं और आज अचानक उस पर ‘सोल्ड’ का बोर्ड देखा, तो सब से पहले मन में यही खयाल आया होगा कि इसे किस ने खरीदा और कौन हमारा पड़ोसी बनने आ रहा है? नए पड़ोसी के आने से मन में वैसी ही खुशी होती है जैसी मनपसंद कार गिफ्ट में मिलने पर. पड़ोसियों से मधुर संबंध सभ्य समाज की निशानी होता है. हम दोस्त तो नए बना सकते हैं, मगर पड़ोसी बदलना हमारे बस में नहीं होता. प्रधानमंत्री की कुरसी संभालने के बाद से नरेंद्र मोदी भी पड़ोसियों से संबंध बेहतर करने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं. दुनिया भर के देशों में दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं. फिर हमें अपनी यानी भारतीय संस्कृति भी यही सिखाती है कि हमें अपने पड़ोसियों से अच्छे रिश्ते बना कर रखने चाहिए, क्योंकि एक अच्छा पड़ोसी 10 रिश्तेदारों के बराबर होता है.

आइए, जानते हैं नए पड़ोसियों से संबंधों की शुरुआत की कहानी कहां से लिखी जा सकती है:

कौन है नया पड़ोसी

सब से पहले यह जानकारी हासिल करें कि आप का नया पड़ोसी कौन है? कोई बच्चों वाली फैमिली है, वृद्ध दंपती हैं, सिंगल पर्सन है या फिर नयानवेला जोड़ा है. इस बात की जानकारी लेने से आप को यह समझने में आसानी होगी कि आप के नए पड़ोसी को नए घर में शिफ्ट होने पर सब से पहले किस चीज की जरूरत पड़ सकती है. नए पड़ोसी को वैल्कम करने को ले कर टीवी पर आप ने एक ऐड जरूर देखा होगा, जिस में एक वृद्ध दंपती अपनी गाड़ी में सामान ले कर आते हैं और बिल्डिंग के सारे लोग एकदूसरे को उन के फोटो मैसेज कर सामान शिफ्ट करने में उन की मदद करते हैं. अगर यह सच हो तो उस वृद्ध दंपती के लिए नए घर का अनुभव कितना सुखद हो सकता है, यह आप सोच भी नहीं सकते हैं.

चायकौफी औफर करें

यदि आप ने कभी नए घर में सामान शिफ्ट किया हो तो आप को अवश्य पता होगा कि नए घर में जाना और सैटल होना कितना थका देने वाला काम होता है. नए घर में पहुंच कर अकसर ऐसा होता है कि 1 कप चाय या कौफी बनाने का इंतजाम भी एकदम से नहीं हो पाता है. ऐसे में आप के नए पड़ोसी के आने पर आप उन्हें 1 कप गरमगरम चाय या कौफी औफर कर जानपहचान शुरू कर सकती हैं. आप चाहें तो उन के लिए दोपहर या रात का खाना भी बना कर दे सकती हैं. खाना देते समय एक बात का ध्यान जरूर रखें कि पैक खाने के साथ डिस्पोजेबल प्लेट्स और गिलास भेजें ताकि अगर वे अपने बरतन न निकाल पाएं, तो खाना खाने में असुविधा न हो.

वैल्कम बास्केट

आप अपने पड़ोसी के लिए एक वैल्कम बास्केट बना कर भी उन का स्वागत कर सकती हैं. आप बाजार से एक प्यारी सी बास्केट खरीदें, उस में कुछ शोपीस सजा कर एक वैल्कम कार्ड रखें और नए पड़ोसी को औफर करें. आप इसे पड़ोसी के आने के फौरन बाद दे सकती हैं. लेकिन जिस दिन वे आएं हो सकता है शिफ्टिंग के कारण बहुत व्यस्त हों, तो आप दूसरे दिन इसे दे सकती हैं.

कोई पौधा या डायरैक्टरी भेंट करें

आप अपने पड़ोसी को कोई पौधा भी भेंट कर सकती हैं. कोई शोपीस या फूल का प्लांट एक पौट के साथ दे कर आप उन्हें अपना गार्डन बनाने में मदद कर सकती हैं. अगर वे किसी दूसरे शहर से आए हैं, तो आप उन्हें अपने शहर का मैप या अन्य जानकारी जैसे सोसाइटी में रहने वाले लोगों के फोन नंबर व पते से संबंधित डायरैक्टरी, बुक या सामान भेंट कर सकती हैं. हो सके तो पहली बार अपने पड़ोसी के साथ वहां की मार्केट या शौपिंग कौंप्लैक्स में जाएं. ऐसा करने से आप के पड़ोसी को अच्छा लगेगा और उसे सुविधा भी होगी.

व्यक्तिगत रूप से मिलें

अपने नए पड़ोसी के सैटल हो जाने के बाद जब आप उन से व्यक्तिगत रूप से मिलें तो उन के परिवार के बारे में पूछें. यदि आप घर में खिलौने देख रही हैं, तो बच्चों के बारे में पूछ सकती हैं और अपने बारे में बता सकती हैं. आप वहां टंगी किसी तसवीर के व्यक्ति के बारे में भी पूछ सकती हैं. उन के गार्डन में उगने वाले पौधों के बारे में बात कर सकती हैं और यह बता सकती हैं कि गार्डनिंग का शौक आप भी रखती हैं. अगर उन के घर में हौबी इक्यूपमैंट देख रही हैं, तो उस के बारे में जानकारी ले सकती हैं या कोई पैट हो तो उस के बारे में चर्चा कर सकती हैं. बस यह ध्यान रहे कि उन की निजी जिंदगी में दखल की जो सीमा होती है उस के भीतर ही चर्चा हो.

वैल्कम डिनर

आप अपने नए पड़ोसी को अपने घर बुला कर एक वैल्कम डिनर भी दे सकती हैं. अगर आप को उन की डाइट की चिंता है, तो आप पहले से ही उन की पसंदनापसंद पूछ कर उन के मुताबिक खाना बना सकती हैं. उन को पहले से ही आश्वस्त करें कि यह डिनर कैजुअल है. उन्हें कुछ भी गिफ्ट लाने की कोई आवश्यकता नहीं है. इन टिप्स पर गौर कर आप जल्द ही पाएंगी कि अपने पड़ोसी से आप ने अच्छी दोस्ती कर ली है और किसी जरूरत के वक्त आप अकेली नहीं हैं.

होम लोन से जुड़ी ये हैं 5 जरूरी बातें

मिडिल क्लास के घर खरीदने के सपने को सच करने में होम लोन ने बड़ी भूमिका अदा की है. लेकिन आज भी ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि होम लोन की सुविधा लेने में बहुत पेचीदगियां हैं. जबकि ऐसा है नहीं. यदि होम लोन के लिए आवेदन करने से पहले इस की कुछ बारीकियों को जांच लें, तो यह आप के लिए फायदे का सौदा साबित होगा.

कब बनाएं योजना

बजाज कैपिटल में फाइनैंस प्लानिंग और क्लाइंट सर्विसेज के ग्रुप हैड सुशील जैन का कहना है कि पिछले 10 सालों में लोगों के घर खरीदने के फैसले में बदलाव देखने को मिले हैं. इनकम टैक्स ऐक्ट में सैक्शन 24 के जुड़ने के बाद अब घर के खरीदार घर की खरीद के लिए उम्र से ज्यादा अपनी आय को प्राथमिकता देते हैं. सैक्शन 24 घर खरीदार को होम लोन पर आयकर में छूट पाने के योग्य बनाता है. ऐसे में युवा जितनी जल्दी प्रौपर्टी में निवेश करते हैं, उतनी ही जल्दी वे इस छूट के हकदार बन जाते हैं.

सुशील जैन के अनुसार, युवाओं को नौकरी मिलने के 3-4 सालों के भीतर घर खरीदने की योजना बना लेनी चाहिए, क्योंकि आजकल बिल्डर्स ऐसी योजनाएं ले कर आ रहे हैं जिन में घर की बुकिंग राशि मिडिल क्लास के वहन करने योग्य होती है. इस के साथसाथ युवाओं को आयकर में छूट के अलावा लोन की किस्तें चुकाने का अच्छा समय भी मिल जाता है.

होम लोन की योग्यता

इस बारे में सुशील बताते हैं, ‘‘कोई भी वेतनभोगी, प्राइवेट कर्मचारी या अपना व्यवसाय करने वाला होम लोन के लिए योग्य है. होम लोन का आवेदन करने के लिए इन तीनों श्रेणियों के लोगों के जरूरी डौक्यूमैंट्स में थोड़ा सा अंतर है. अपनी आय का ब्योरा दिखाने वाले डौक्यूमैंट्स में वेतनभोगियों और प्राइवेट कर्मचारियों को अपनी 3 महीने की सैलरी स्लिप, 6 माह की बैंक स्टेटमैंट और फार्म 16 भर कर देना होता है, तो व्यवसाय करने वालों को 2 साल के आयकर भुगतान का चार्टर्ड अकाउंटैंट का प्रमाणपत्र भी देना होता है.’’

क्या ध्यान रखें

होम लोन का सही फायदा भी आप को मिले और इस की किस्तों का भुगतान आप पर बोझ न बने, इस के लिए निम्न बातों का ध्यान रखें: द्य होम लोन के लिए आवेदन करने से पहले यह जरूर पता कर लें कि वित्तीय तौर पर आप इस के योग्य हैं भी या नहीं. क्रैडिट इनफौर्मेशन ब्यूरो इंडिया लिमिटेड (सिबिल) की वैबसाइट के द्वारा आप अपना क्रैडिट स्कोर जान सकते हैं. 300 से 900 पौइंट्स के स्केल पर आप का क्रैडिट स्कोर आंका जाता है. यदि आप का क्रैडिट स्कोर मानकों के अनुरूप न हो तो उसे सही करने का तरीका भी आप को सिबिल की वैबसाइट पर मिल जाएगा.

होम लोन में 2 प्रकार की ब्याज दरों का विकल्प है- फिक्स्ड और फ्लोटिंग. किस्तों का भुगतान करते समय फिक्स्ड ब्याज दर पर लिए गए लोन की ईएमआई में बदलाव नहीं आता. बाद में ब्याज दर में बदलाव आए तो इस में थोड़ा बदलाव संभव है. ऐसे में सुशील जैन का सुझाव है कि फ्लोटिंग ब्याज दर का विकल्प चुनें. यदि आप के फाइनैंस सलाहकार के अनुसार ब्याज दरों में कटौती की संभावना हो तो.

लोन की रकम के अतिरिक्त प्रोसैसिंग चार्ज, सर्विस चार्ज, भुगतान की तय समयसीमा से पहले लोन चुकाने का चार्ज इत्यादि की जानकारी पहले से ले लें. ये सभी अतिरिक्त चार्ज आप को दिए जा रहे लोन का ही हिस्सा होते हैं न कि उस रकम का जो आप ने घर खरीदने के लिए बैंक से ली है.

यदि आप ने निर्माणाधीन घर खरीदने के लिए लोन लिया है, तो आयकर में छूट पाने के लिए आप तभी योग्य होंगे जब घर का निर्माण कार्य पूरा हो जाए.

होम लोन के फायदे

होम लोन लेने वाले को निम्न फायदे होते हैं:

  1. यदि लोन के डौक्यूमैंट्स में आप घर मालिक या सहमालिक हैं तो ईएमआई पर लगने वाले ब्याज पर आप को आयकर छूट मिलेगी.
  2. ब्याज के अलावा आप की किस्त का जो हिस्सा लोन की मूल रकम में जाता है, उस पर आप इनकम टैक्स ऐक्ट 80सी के अंतर्गत आयकर छूट पा सकते हैं. इस के अंतर्गत 1 वित्तीय साल में आप लगभग क्व1.5 लाख की आयकर छूट पा सकते हैं.
  3. लोन की रकम और किस्तों पर आयकर छूट पाने के अलावा स्टांप ड्यूटी और रजिस्टे्रशन फीस पर भी आप आयकर छूट पा सकते हैं. इनकम टैक्स ऐक्ट 80सी के अंतर्गत मिलने वाली इस छूट का फायदा आप को उसी साल मिलेगा जिस साल में आप ने इन का भुगतान किया हो.

महिलाओं के लिए फायदे

भारत के कई राज्यों में मकान की रजिस्ट्रेशन फीस पर महिलाओं के लिए छूट का प्रावधान है. इस का फायदा उठाने के लिए महिला के नाम पर मकान की रजिस्ट्री होनी जरूरी है.

सुशील जैन ने महिलाओं के लिए होम लोन के अन्य फायदे भी बताए, जो निम्न प्रकार हैं:

  1. पतिपत्नी यदि जौइंट होम लोन लें, तो वे ज्यादा लोन पाने के योग्य होने के साथसाथ आयकर में ज्यादा छूट पाने के भी योग्य होंगे.
  2. जौइंट लोन में दोनों आवेदन करने वालों को मिलने वाली आयकर छूट में अंतर संभव है.
  3. प्रौपर्टी पतिपत्नी दोनों के नाम होने से उत्तराधिकारी की समस्या से छुटकारा मिल जाता है.
  4. होम लोन का पूरा लाभ उठाने के लिए अपनी किस्तों का समय पर भुगतान करें. यों तो 1 भी किस्त छूटनी नहीं चाहिए, लेकिन लगातार 2 किस्तें छूटने पर आप बैंक की कार्यवाही के दायरे में तो आ ही जाएंगे, आप का क्रैडिट स्कोर भी खराब हो जाएगा.

बड़े शहरों में अपनापन नहीं : छवि पांडेय

बिहार के पटना शहर की छवि पांडेय मध्यवर्गीय परिवार में पलीबढ़ी थीं. ऐसे परिवारों में लोग लड़कियों से केवल इतनी ही चाहत रखते हैं कि वे पढ़लिख कर नौकरी कर लें. इस के बाद उन की शादी हो जाए. कई बार तो 18-19 साल की उम्र में ही शादी कर दी जाती है. ऐसे में लड़कियां अपने सपने पूरे करने की तो सोच भी नहीं सकती हैं.

छवि पांडेय भी ऐसे ही परिवार की थीं. उन की बड़ी बहन की शादी 18-19 साल की उम्र में हो गई थी. छवि को गाने गाने का शौक था. उन के गानों से खुश हो कर उस समय के रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उन्हें रेलवे में नौकरी दे दी थी. उस समय उन की उम्र 18 साल के करीब थी. मगर छवि को तो अपने सपने पूरे करने थे, इसलिए नौकरी छोड़ कर उन्होंने रिऐलिटी शो ‘इंडियाज गौट टेलैंट’ में हिस्सा लिया. यहां उन के हुनर को देख कर अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे ने कहा कि उन्हें ऐक्टिंग में ध्यान देना चाहिए. तब छवि ने ऐक्टिंग की तरफ कदम बढ़ाए और कम समय में ही उन के हिस्से बड़ी सफलता आई.

छवि से बातचीत में पता चला कि कैसे छोटे शहरों की लड़कियां अपने हुनर के बल पर अपना मुकाम हासिल कर सकती हैं.

सीरियल ‘सिलसिला प्यार’ में आप इंदौर की रहने वाली गरीब परिवार की लड़की बनी हैं. कैसा अनुभव है यह?

सीरियल ‘सिलसिला प्यार का’ की कहानी में मां अपने बेटे को बहुत प्यार करती है. बेटा गरीब परिवार की लड़की से प्यार करता है. उस से शादी करना चाहता है. मां उस लड़की की शादी किसी और लड़के से करा देती है. इस कहानी में मां बेटे के प्यार में ओवर पजैसिव है. मैं गरीब परिवार की लड़की काजल का किरदार निभा रही हूं, जो सीरियल का मुख्य किरदार है. इस के आसपास पूरी कहानी घूमती है. इस में प्यार और रिश्ते से जुड़े गहरे भावों को दिखाने का प्रयास किया गया है. इस शो में शिल्पा शिरोडकर जैसी सीनियर आर्टिस्ट भी हैं, जिन से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा.

पटना से मुंबई तक का सफर कैसे तय किया?

आज सोचती हूं तो सब कुछ सरल दिखता है. सही मानों में कठिन सफर था. मन पर बड़ा बोझ था कि सफल नहीं हुई तो क्या होगा? मुझे गाने गाने का शौक था. इलाहाबाद की प्रयाग संगीत समिति से गायन की शिक्षा ली थी. इसी बीच एक रिऐलिटी शो में गाने का मौका मिला. वहां जा कर लगा कि मैं गायन के साथसाथ ऐक्टिंग भी कर सकती हूं. गायन के जरीए ही मुझे रेलवे में नौकरी मिली, पर मुझे नौकरी रास नहीं आ रही थी. मैं ने घर पर जब यह बताया कि नौकरी छोड़ कर मुंबई में रह कर अपने फिल्मी कैरियर को आगे बढ़ाना चाहती हूं, तो पिताजी राजी नहीं हो रहे थे. मुझे अपनी मां के जरीए उन्हें राजी कराना पड़ा. मेरे बहुत गिड़गिड़ाने के बाद वे इस शर्त पर राजी हुए कि वे 1 साल का समय दे सकते हैं. अगर इस दौरान कुछ नहीं हुआ तो वापस पटना आना पड़ेगा.

2008 में आप ने सिंगिंग का रिऐलिटी शो किया. तब से आगे का सफर कैसा रहा?

ऐक्टिंग में कैरियर बनाने के लिए मैं मुंबई पहुंची, तो रिऐलिटी शो में मिली पहचान काम आई और 1 साल के अंदर ही टैली फिल्म ‘तेरीमेरी लव स्टोरी’ में काम करने का मौका मिल गया. इस के बाद मैं ने ‘एक बूंद इश्क’, ‘ये है आशिकी’, ‘बंधन सारी उम्र हमें संग रहना है’ और भोजपुरी फिल्म ‘बिदेसिया’

में काम किया. इस से घर वालों को यकीन हो गया कि मैं कुछ कर सकती हूं. अब मुंबई रह कर ही अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ना था. 2008 से अब तक मैं अपने सफर को सही राह पर देख रही हूं.

मुंबई जैसे बड़े शहर में जा कर छोटे शहरों की लड़कियां क्या याद करती हैं?

मैं अपनी बात करूं तो मुझे आज भी अपना शहर बहुत याद आता है. वहां जिस तरह से हम शौपिंग करते थे, सड़क पर खड़े हो कर पानीपूरी खाते थे, उस से हर किसी में अपनापन महसूस होता था. मगर ऐसा बड़े शहरों में नहीं. अपने शहर में शौपिंग करते समय हम हर सामान को खरीदने में बहुत तोलमोल करते थे. यह मुंबई में नहीं हो पाता. मुझे आज भी याद है कि क्व500 सौ की चीज को हम क्व2 सौ में खरीद कर ऐसे खुश होते थे जैसे बहुत बड़ा काम कर लिया. यह खुशी बड़े शहरों में नहीं मिलती.

सीरियलों में काम करने वाली लड़कियां ज्यादातर अपने कोआर्टिस्ट से शादी कर घर बसा लेती हैं?

मैं इस पक्ष में नहीं हूं. मैं किसी कलाकार के साथ शादी नहीं करना चाहती. मेरे परिवार में अब मेरी शादी को ले कर बातचीत होती है. पर मुझे अभी शादी नहीं करनी. अभी मैं जिस मुकाम पर हूं वहां से बहुत आगे जा कर अपनी जगह बनानी है. शादी समय पर जरूर होगी. अभी कोई जल्दी नहीं है.

आप ने ‘गृहशोभा’ और ‘सरस सलिल’ जैसी पत्रिकाएं पढ़ी हैं?

छोटे शहरों के मध्यवर्गीय परिवारों में मनोरंजन और जानकारी के लिए आज भी पत्रिकाएं ही सब से बड़ा साधन हैं. ‘गृहशोभा’ और ‘सरस सलिल’ दोनों ही पत्रिकाएं मैं ने पढ़ी हैं. मुझे इन्हें पढ़ने का अभी भी शौक है. समय मिलने पर इन्हें जरूर पढ़ती हूं. पत्रिकाएं आज भी हमारी सब से बड़ी साथी हैं.

नहीं आप खूबसूरत हैं

जिस ऐक्ट्रैस की एक झलक पाने को उस के फैंस बेताब रहते थे वही फैंस अब उस ऐक्ट्रैस के मां बनने के बाद उस के फूले गालों, थुलथुल शरीर को देख भौंहें सिकोड़ने लगे यानी ऐक्ट्रैस की बदली शारीरिक बनावट उन्हें सुहा नहीं रही. अपनी फेवरेट ऐक्ट्रैस की बिगड़ी फिगर को ले कर वे उस की इतनी आलोचना कर रहे हैं मानो मां बन कर उस ने कोई अपराध कर दिया हो. फैंस के इस आलोचनात्मक व्यवहार ने उस ऐक्ट्रैस को इतना डिप्रैस कर दिया है कि वह तमिल अदाकारा अब इंडस्ट्री में दोबारा कैमरे को फेस करने तक का आत्मविश्वास खो चुकी है.

हर महिला की यही कहानी

यह कहानी इस महिला कलाकार की ही नहीं वरन हर आम महिला की भी है. दरअसल, महिलाओं को प्रकृति की सब से खूबसूरत रचना का खिताब प्राप्त है. उन की खूबसूरती का आकलन उन की शारीरिक बनावट और रूपसौंदर्य से किया जाता है. लेकिन मां बनने के बाद उन की बदली शारीरिक बनावट  उन से खूबसूरत होने का यह खिताब छीन लेती है

इस बात का और भी अधिक एहसास उन के घर वालों और रिश्तेदारों की तीखी नजरें और उन की फिगर को ले कर दी गई हिदायतें कराती हैं. ऐसे में वे खुद को साधारण महिला महसूस करने लगती हैं. इस से सब से ज्यादा नुकसान उन के आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को होता है. उन्हें खुद में कमियां नजर आने लगती हैं. वे खुद को शर्मसार सा महसूस करने लगती हैं खासतौर पर तब जब सार्वजनिक स्थल पर अपने शिशु को स्तनपान कराना पड़ता है. हालांकि इस स्थिति का सामना हर महिला को मां बनने के बाद करना पड़ता है, लेकिन उन्हें ऐसा करने में झिझक महसूस होती है. झिझक होना जाहिर भी है, क्योंकि हर महिला को इस बात का डर सताने लगता है कि कहीं कोई उसे स्तनपान कराते हुए देख तो नहीं रहा.

नहीं बदली सोच

दरअसल, सामाजिक रीतिरिवाजों की बेडि़यों मेें जकड़ी महिला को आज भी सार्वजनिक स्थल पर स्तनपान कराते कोई पराया मर्द देख ले तो वह आत्मग्लानि से भर जाती है. उस का मन उसे कचोटने लगता है कि उफ, उसे पराए मर्द ने स्तनपान कराते देख लिया. वैसे आधुनिक युग में पुरुषों में भी कोई खास बदलाव नहीं आया. आधुनिक युग में भी पुरुषों की सोच पुरातन ही है. आज भी महिला की ब्रैस्ट उन्हें  सैक्स्युलाइज मैटीरियल लगती है और यदि कोई स्तनपान कराती महिला दिख जाए तो उसे ऐसे टकटकी लगाए देखते हैं मानो पोर्न फिल्म देख रहे हों.

पुरुष ही नहीं, यदि दिल्ली मैट्रो के महिला कोच की बात की जाए तो आप को यह जान कर हैरानी होगी कि इस कोच में भी यदि कोई महिला अपने शिशु को स्तनपान करा रही होती है, तो कोच में मौजूद लड़कियों और महिलाओं की नजरें उसे घूर रही होती हैं. ये घूरती नजरें ही स्तनपान कराने वाली महिला को अपमानित महसूस कराती हैं. उस के मन में यह डर बैठ जाता है कि पब्लिक प्लेस में ब्रैस्टफीडिंग कराने पर सब उसे ही देखेंगे. ब्रैस्टफीडिंग मां के लिए अपने प्राइवेट बौडी पार्ट्स को पब्लिकली ऐक्सपोज करने की मजबूरी होती है. मगर लोगों की तीखी नजरें उस के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाती हैं. अब यहां यह तय कर पाना मुश्किल नहीं कि बदसूरती लोगों की सोच में है या एक मां की शारीरिक बनावट में. मां बनना किसी भी महिला के लिए संपूर्ण होने का अनुभव है और अपने शिशु को स्तनपान कराना उस का हक. गर्भधारण करने के बाद से ही महिला के शरीर में बदलाव शुरू हो जाते हैं और शिशु के जन्म के बाद तक  सिलसिला जारी रहता है.

मां बनने पर अपने शिशु की देखभाल में वह इतनी खो जाती है कि अपने स्वास्थ्य पर ध्यान न दे पाना, नींद पूरी न होना और अपनी सोशल लाइफ से मुंह फेर लेना उसे मानसिक और शारीरिक तौर पर पूरी तरह बदल देता है. लेकिन समाज इस बात के लिए मां की सराहना करने की जगह उस की शारीरिक बनावट का मखौल उड़ाता है. उसे बदसूरत होने का एहसास कराता है. इन्हीं कारणों से आज ब्रैस्टफीडिंग महिलाओं के लिए हौआ बन चुकी है.

कस्तूरी का साहसी कदम

इतना ही नहीं कुछ महिलाएं तो कभी गर्भधारण न करने तक का मन बना लेती हैं ताकि उन की फिगर न बिगड़े. लेकिन महिलाओं की इस मानसिकता को गलत साबित किया पिछले दिनों इंटरनैट पर वायरल हुए साउथ इंडियन ऐक्ट्रैस कस्तूरी के सेमीन्यूड फोटोशूट ने. इस फोटोशूट में कस्तूरी अपने बच्चे को ब्रैस्टफीडिंग कराते दिख रही हैं. यह फोटोशूट कुछ समय पहले विश्वप्रसिद्ध फोटोग्राफर जेड बैल द्वारा अपनी बुक सीरीज ‘ए ब्यूटीफुल बौडी प्रोजैक्ट: द बौडीज औफ मदर्स’ के लिए किया गया था. इस बुक सीरीज में विश्व भर से चुनी गईं 80 मांओं की गर्भधारण के समय और उस के बाद की शारीरिक खूबसूरती पर चर्चा की गई है.

फोटोशूट को सोशल मीडिया में अपलोड करने और उस के वायरल होने के बाद लोगों की मिल रही प्रतिक्रियाओं से हैरान कस्तूरी कहती हैं, ‘‘मुझे आश्चर्य है कि लोगों ने मेरे इस फोटोशूट को इतना पसंद किया और अच्छी प्रतिक्रियाएं दीं. वाकई मां बनना एक खूबसूरत एहसास है. इस से भी ज्यादा गर्व की बात एक मां के लिए अपने शिशु को ब्रैस्टफीड कराना है. लेकिन आज भी गर्भधारण और मां बनने के बाद महिलाओं को ब्रैस्टफीडिंग को ले कर हिचक महसूस होती है खासतौर पर किसी के सामने ब्रैस्टफीडिंग कराना उन्हें अपमानजनक लगता है. लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है. एक मां अपने शिशु को कहीं भी, कभी भी ब्रैस्टफीडिंग करा सकती है और मेरा फोटोशूट भी मांओं को इस के लिए प्रोत्साहित करता है.’’

मानसिकता बदलना जरूरी

कस्तूरी के इस कदम को लोगों ने भले ही प्रोत्साहित किया हो, लेकिन प्रोत्साहन के साथ ही लोगों को अब पब्लिक प्लेस पर ब्रैस्टफीडिंग को ले कर अपनी मानसिकता बदलने की भी जरूरत है ताकि सार्वजनिक स्थलों पर जरूरत पड़ने पर यदि किसी मां को अपने शिशु की भूख शांत करने के लिए स्तनपान कराना पड़े, तो उसे झिझक महसूस न हो. इस के अतिरिक्त इस फोटोशूट को देखने के बाद लोगों के लिए यह समझ पाना और आसान होगा कि एक स्त्री को जिंदगी के कई मोड़ों पर चुनौतियों का सामना कर नए रिश्तों को निभाना पड़ता है. इन चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करने में शारीरिक और मानसिक तौर पर स्त्री में कई बदलाव भी आते हैं. कस्तूरी अकेली नहीं हैं, जिन्होंने अपनी झिझक को दूर कर इस फोटोशूट में भाग लिया, उन की ही तरह विश्व भर के अलगअलग देशों से 80 मांएं और हैं, जो ओपनली ब्रैस्टफीडिंग और प्रैगनैंसी के बाद अपनी शारीरिक बनावट में आए बदलाव को कोसती नहीं, बल्कि उन्होंने इस खूबसूरत बदलाव को स्वीकार किया है.

इस फोटोशूट को अंजाम देने वाली फोटोग्राफर जेड बैल, जो खुद भी एक मां हैं, कहती हैं, ‘‘मां बनने के बाद अपनी बिगड़ी शारीरिक बनावट को देख मैं डर गई थी. मुझे अवसाद ने घेर लिया था. लेकिन मैं खुद को किसी तरह से स्टूडियो तक लाई और अपनी कुछ तसवीरें खिंचवाईं. कुछ समय बाद मुझे ऐसी महिलाओं के फोन आने लगे, जो प्रैगनैंसी के बाद अपनी खराब हो चुकी फिगर की तसवीरें खिंचवाने के लिए उत्सुक थीं. इस घटना के बाद ही मुझे इस प्रोजैक्ट का खयाल आया.’’

फोटोग्राफर अरुण पुनालुर का कहना है, ‘‘जेड बैल के लिए शूट करने वाली कस्तूरी पहली भारतीय महिला हैं. उन के इस कार्य की बहुत लोगों ने आलोचना की, लेकिन यह एक शूट है और वे एक मौडल. कस्तूरी ने जो किया वह उन का हक है. वैसे भी कौन सी महिला ऐसा करने के लिए तैयार होगी, जो कस्तूरी ने किया. बौडी ऐक्सपोज तो छोडि़ए कुछ लोग तो सार्वजनिक तौर पर किसी सामाजिक मुद्दे पर अपनी राय तक देने से कतराते हैं. ऐसे में एक महिला हो कर कस्तूरी ने जो फोटोशूट कराया वह सराहनीय है.’’

प्रैगनैंसी के बाद शारीरिक बदलाव

महिलाओं की प्रैगनैंसी के बाद शारीरिक बनावट बिगड़ना आम है. लेकिन बहुत सी महिलाएं इस बदलाव को स्वीकार नहीं कर पातीं. मसलन, वजन का बढ़ना, नींद पूरी न हो पाना, अपने लिए समय न निकाल पाना उन्हें अवसाद से ग्रस्त करता है. इन बातों को अकसर नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि इन पर जागरूकता महिलाओं को सही वक्त पर मदद के लिए आवाज उठाने के लिए प्रेरित करती है. इस बाबत ट्रैवल ब्लौगर इंद्रा थुरावुर कहती हैं, ‘‘यह फोटो एलबम मातृत्व एवं मां द्वारा अपने शिशु की भूख को शांत करने के लिए स्तनपान कराए जाने की महानता का प्रदर्शन करता है. लेकिन सोशल मीडिया में यह आज भी एक संवेदनशील मुद्दा है. लोगों को पता ही नहीं कि इस मुद्दे पर कैसे बात की जानी चाहिए. स्तनपान मां और शिशु के रिश्ते का सब से अहम पहलू है. फिर भी कुछ महिलाएं अपने शिशु को सिर्फ स्तन का आकार खराब हो जाने के डर से स्तनपान नहीं करातीं. लेकिन कभी उन मांओं के बारे में सोचा है, जो खराब जीवनशैली की वजह से अपने शिशु को स्तनपान नहीं करा पातीं और तड़पती रह जाती हैं. मां के दूध से अच्छा एक शिशु के लिए और कुछ भी नहीं है.

करें नई शुरुआत

शिशु के जन्म के बाद मां के लिए उस का बच्चा पहली प्राथमिकता बन जाता है. ऐसे में खुद पर ध्यान देना एक मां के लिए मुमकिन नहीं हो पाता. निम्न टिप्स को अपनाकर आप अपनी खोई हुई खूबसूरती को फिर से हासिल कर सकती हैं: द्य शिशु के पालनपोषण की बड़ी जिम्मेदारी मां को ही निभानी पड़ती है. लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि पिता का शिशु की देखभाल में हाथ बंटाना मना है. शिशु के छोटेमोटे काम कराने के लिए पति की मदद लें. इस से आप को अपने लिए अतिरिक्त समय मिलेगा.

मां बनने से पहले जिस तरह आप सजीसंवरी रहती थीं उसी तरह अब भी अपने रूपसौंदर्य को संवारने के लिए समय निकालें. अपने बालों और चेहरे को साफसुथरे तरीके से संवारें. खुद को सजासंवरा देख कर आप का खोया आत्मविश्वास फिर से लौट आएगा.

शरीर को फिट रखने के लिए व्यायाम करना बहुत जरूरी है. लेकिन व्यायाम करने से पहले एक बार डाक्टर की सलाह जरूर लें.

शिशु के कामकाज को सफलतापूर्वक अंजाम देतेदेते मां के पास इतना समय नहीं होता की वह चैन की नींद ले सके, इसलिए जब भी मौका मिले सो जाना चाहिए.

अपने खानेपीने का विशेष ध्यान रखें. पतला होने के चक्कर में खानेपीने में कमी न करें, क्योंकि इस का असर आप के स्वास्थ्य के साथसाथ ब्रैस्टफीडिंग पर भी पड़ेगा.

अपने ड्रैसिंग सैंस पर भी ध्यान दें. आउटफिट बहुत हद तक शारीरिक बनावट को संवार देते हैं, इसलिए न तो बहुत अधिक चुस्त और न ही बहुत अधिक ढीले कपड़े पहनें.

खुद को पैंपर करें. जाहिर है मां बनने के बाद आप की जिंदगी बदल जाती है. ऐसे में अपने लुक्स में भी आप बदलाव कर सकती हैं. इस के लिए नया हेयरकट एक अच्छा विकल्प है. साथ ही मेकअप का अंदाज बदल कर भी खुद को नया लुक दे सकती हैं.

स्टफ्ड शिमलामिर्च

सामग्री

4 शिमलामिर्च मीडियम आकार की

250 ग्राम आलू उबले

1 बड़ा चम्मच सफेद तिल

चुटकी भर हींग पाउडर

1 छोटा चम्मच जीरा

1 छोटा चम्मच अदरक बारीक कटा

2 छोटे चम्मच हरीमिर्च कटी

1 छोटा चम्मच चाटमसाला

1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर 

1/2 छोटा चम्मच अमचूर पाउडर

1 बड़ा चम्मच कौर्नफ्लोर

2 बड़े चम्मच रिफाइंड औयल

नमक स्वादानुसार.

विधि

आलुओं को छील कर हाथ से मोटामोटा फोड़ लें. शिमलामिर्च को डंडी की तरफ से चाकू से गोला बनाएं और डंडी सहित अंदर से खोखला कर लें. अब एक नौनस्टिक कड़ाही में 1 बड़ा चम्मच तेल गरम कर हींग व जीरा डालें, फिर तिल. जब ये सभी फूल जाएं तब हलदी पाउडर व आलू डालें. 2 मिनट उलटेंपलटें व सभी मसाले डाल दें. मिश्रण के ठंडा होने पर शिमलामिर्च में ठूंसठूंस कर भर दें. कौर्नफ्लोर में बहुत थोड़ा पानी मिला कर गाढ़ा लेप बना कर आलू भरे गप्पे ऊपर की जगह लगा दें ताकि आलू बाहर निकले नहीं. प्रत्येक मिर्च को ऊपर से तेल से चिकना करें और माइक्रोवेव में करीब 7 मिनट हाई पर रखें. शिमलामिर्च गल जाएगी. ऐसे ही सर्व करें. यदि माइक्रोवेव नहीं हो तो नौनस्टिक कड़ाही में थोड़ा सा तेल डाल कर धीमी आंच पर उलटपुलट कर मिर्च गला लें. चाहें तो साबूत मिर्च सर्व करें अथवा बीच से आधी कर के.

औनलाइन मायाजाल

जब आप पूरी लगन से अपना फोन या लैपटौप खोलते हैं और औफिशियल मेल का जवाब देने की तैयारी में होते हैं तो स्क्रीन पर पहली चीज नजर आती है, ‘‘सेल…सेल…सेल…दीवाली की बंपर सेल… औनलाइन एक फ्रिज खरीदें और साथ में एक टोस्टर फ्री पाएं… आज का जबरदस्त औफर… लिपस्टिक खरीदें और एक पाउच मुफ्त पाएं… ये औफर सिर्फ आज के लिए.’’

औनलाइन ऐडवर्टाइजिंग इतना सशक्त माध्यम बन चुकी है कि आप सब काम छोड़ कर इसे ही देखने लग जाते हैं, उस ‘डिफरैंट’ सादे कुरते को, जिस के साथ मैचिंग ईयररिंग्स भी हैं और साथ में शूज भी. इस के लिए अपने बौस को मेल का जवाब देना रुक सकता है. इस समय यह जरूरी लगने लगता है कि मैं 1 मिनट निकाल कर पहले वह कुरता अपनी शौपिंग बास्केट में डाल लूं. 2 मिनट लगा कर शायद इसे खरीद ही लूं. दफ्तर में काम तो? होते रहेंगे. यदि यह कुरता हाथ से निकल गया तो दोस्तों में शो औफ करने का एक मौका जाया कैसे जाने दिया जाए और फिर यह जबरदस्त औफर तो सिर्फ आज ही के लिए है. आप का भी कुसूर नहीं. औनलाइन कैंपेनियन आप को चीखचीख कर कह रही होती है कि यह आखिरी पीस है. अब आप को पता है कि वह आखिरी पीस आप के पास नहीं आया तो आप की जिंदगी बरबाद हो जाएगी.

उलझे कि फंसे

कोई और तो सिर्फ आप को आप के जन्मदिन पर ही तोहफा देगा. औनलाइन शौपिंग से आप हर समय अपनेआप को तोहफा देते रहते हैं और खुश रहते हैं. यह अलग बात है कि उस के बाद के्रडिट कार्ड का बिल देख कर आप को दिल का दौरा भी पड़ सकता है.

औनलाइन कंपनियां जबौंग, फ्लीपकार्ट, स्नैपडील ने 2010 से ले कर अब तक इतनी जबरदस्त छलांग मारी है कि यूएस फाइनैंशियल मार्केट में भी इन के चर्चे हैं. साल 2013 में अमेरिकी रिटेलर अमेजौन ने भारत में भी अपना कदम रख दिया. आने वाले समय में ये सारी कंपनियां हजारों वर्कर्स रखने का प्लान कर रही हैं, क्योंकि आप का खरीदा आइटम आप के घर पहुंचाने के लिए ये कंपनियां बहुत डिपार्टमैंट्स के साथ समझौता करती हैं.

ये तो कामयाब हैं पर हम तो मायाजाल में फंस गए न. पहले जहां कोई ड्रैस मांगने पर मम्मीडैडी से डांटफटकार मिलती थी, वहीं अब आप चुपचाप वही ड्रैस औनलाइन और्डर कर लेते हैं. अब हर चीज अपनी पहुंच में लगती है. इस औनलाइन मायाजाल ने हमारी प्लानिंग बहुत अच्छी कर दी है. अब हम प्लान करने लग गए हैं कि इस महीने की सैलरी में कुछ पैसे तो उस लाल लिपस्टिक के लिए निकाल ही लूंगी. जब लाल लिपस्टिक ले ली तो अब लाल जैकेट की बारी है. लाल जैकेट के साथ लाल जूते न पहनो तो सहेलियां आप के फैशन सैंस की खिल्ली उड़ाएंगी. बस यह मान लें कि एक बार यह सिलसिला शुरू हो गया तो खत्म लेने का नाम नहीं लेता, क्योंकि अगर आप ने फौर्मल सलवारकमीज ले ली तो कैजुअल ड्रैस भी तो चाहिए, अगर हाई हील्स ले लीं तो फ्लैट चप्पलें भी तो चाहिए, अगर लाल झुमकियां ले लीं तो टौप्स भी तो चाहिए. इस तरह आप शौपिंग की बारिश में भीगते ही चले जाते हैं.

भगवान भी औनलाइन

हमारे मजहब में परमात्मा का नाम जपने को बहुत मान्यता दी गई है. पर हमें मायानगरी से फुरसत ही कहां कि हम परमात्मा को याद करें. शायद कोई औनलाइन कंपनी यह कह दे कि आप को पूजापाठ की कैसेट के साथसाथ पीवीआर की टिकिट्स फ्री मिलेंगी, तो शायद हम जाग जाएंगे. वे दिन दूर नहीं कि जब मंदिर या गुरुद्वारे में सैल्फी खींच कर औनलाइन पोस्ट करने पर आप को कोई सरप्राइज गिफ्ट भी मिल जाए.

बहाना तो अच्छा है

औरतें वैसे ही शौपिंग करने के लिए बदनाम हैं. एक शौपिंग मौल के पेमैंट काउंटर पर एक औरत पेमैंट करने लगी तो काउंटर वाली लड़की ने दिखाया कि दूसरी औरत के पर्स में टीवी का रिमोट पड़ा था. उस ने पूछा, ‘‘आप हमेशा अपने टीवी का रिमोट अपने साथ रखती हैं?’’ शौपिंग वाली औरत कहने लगी, ‘‘नहीं मेरे पति मेरे साथ शौपिंग करने नहीं आते, तो मैं कैसे उन को घर में अकेले खुश रहने दे सकती हूं?’’

वैसे घर में रह कर पतिदेव भी आजकल पत्नी को औनलाइन शौपिंग में पीछे छोड़े हुए हैं. मोबाइल, लैपटौप, आईपैड, टीवी अब सब उंगली दबाने पर आप के घर आ जाते हैं, पर शायद फिर कुछ चीजें ऐसी रह जाएंगी जिन को हम कभी औनलाइन नहीं मंगा पाएंगे. ऐसा ही एक व्हाट्सऐप मैसेज कुछ पुरुषों को मिला:

‘जितनी मरजी औनलाइन शौपिंग करेंगे, पर आप को मेरे पास खुद चल के आना ही पड़ेगा, क्योंकि इंटरनैट पर बाल नहीं काटे जाते.’ 

   -सविता भट्टी

त्वचा मुसकराए सर्दियों में भी

सर्दी का प्रकोप अपने उफान पर है. इस मौसम में त्वचा संबंधी कई समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं. द नैशनल स्किन सैंटर के निदेशक डा. नवीन तनेजा के अनुसार, यदि त्वचा में नमी बननी रुक जाए और उस की भरपाई न हो, तो त्वचा की बाहरी परत पर हलकी दरारें दिखनी शुरू हो जाती हैं. लेकिन कुछ उपाय सर्दियों में त्वचा को साफ और सेहतमंद बनाए रखने में मदद कर सकते हैं:

डैंड्रफ

डैंड्रफ की समस्या सर्दियों में ज्यादा बढ़ जाती है, इसलिए बालों को ऐंटीडैंड्रफ शैंपू से ही धोएं. शैंपू को 5 मिनट तक बालों में लगाए रखने के बाद सादे पानी से अच्छी तरह धो लें.

सिर में तेल न लगाएं.

बालों को सुखाने के लिए ब्लोअर का इस्तेमाल न करें.

सर्दियों में बालों को चमकहीन होने से बचाने के लिए उन्हें हमेशा ढक कर रखें. सर्दियों में सिर को अकसर नहीं ढका जाता है. इसी कारण सर्द हवाओं से बालों की नमी सूख जाती है. इसलिए बाहर आतेजाते समय सिर को स्कार्फ या टोपी से जरूर ढकें.

गरम पानी से न नहाएं, इस से बाल रूखे और बेजान हो जाते हैं.

सर्दियों में बालों को स्वस्थ रखने के लिए शरीर में पानी का स्तर संतुलित रहना चाहिए. अत: खूब पानी पीएं.

हाथपैर

गरम पानी का इस्तेमाल न करें. हम दिन में कई बार गरम पानी से हाथ धोते हैं. गरम पानी त्वचा को शुष्क बनाता है और उस की प्राकृतिक नमी छीन लेता है, इसलिए हाथपैरों को सादे पानी से ही धोएं.

साबुन का इस्तेमाल त्वचा को तुरंत सूखा बना देता है, जिस से उस पर पपड़ी सी दिखने लगती है, इसलिए हलके या संतुलित साबुन का ही इस्तेमाल करें.

त्वचा को सुखाने के लिए उसे धीरेधीरे तौलिए से पोंछें.

त्वचा की नमी बनाए रखने के लिए उस पर लोशन या ग्लिसरीन का इस्तेमाल करें. रसोई का, टौयलेट का या कोई और काम करने के बाद त्वचा पर मौइश्चराइजर जरूर लगाएं. रात को सोने से पहले पैरों पर मौइश्चराइजर लगाना न भूलें.

मौसम सर्दी का हो या गरमी का पानी शरीर के लिए बेहद जरूरी होता है. सर्दियों में बेशक ज्यादा प्यास महसूस नहीं होती, लेकिन त्वचा की नमी बनाए रखने के लिए शरीर में पानी की मात्रा उचित बनी रहनी चाहिए. त्वचा को अंदर से नमी देनी चाहिए ताकि वह बाहर से स्वस्थ दिखे.

ठंड से बचाव के लिए गरम कपड़ों का इस्तेमाल करें. हीटर से दूर रहें, क्योंकि यह नमी को तुरंत सोख लेता है, जिस से त्वचा रूखी हो जाती है. यदि ठंड बहुत ज्यादा हो और हीटर का इस्तेमाल जरूरी हो जाए, तो उस से उचित दूरी पर ही बैठें.

सूखे पपड़ीदार होंठ

होंठों पर बिना ऐक्सफौलिएटिव वाली क्रीम का इस्तेमाल करें. सफेद पैट्रोलियम जैली भी कारगर होती है. सब से बेहतर होगा कि पहले होंठों पर पानी लगाया जाए यानी उन्हें गीला करने के बाद ही पैट्रोलियम जैली का इस्तेमाल करें.

सनबर्न का खतरा

तापमान के गिरने के कारण महिलाओं को खुली धूप में लेटना पसंद आता है. लेकिन वे इस बात से अनजान होती हैं कि ऐसा करने पर उन पर सूर्य की पराबैगनी किरणों का सीधा असर होता है, जिस कारण त्वचा पर धब्बे और सनबर्न के निशान रह सकते हैं. यदि धूप सेंकने का मन हो तो उस से आधा घंटा पहले कम से कम 30-50 एसपीएफ वाले सनब्लौक का इस्तेमाल करें और उस के बाद हर 3 घंटों में इस का पुन: इस्तेमाल करें.

यदि आंखों के चारों ओर सूखापन बना रहे तो त्वचा को हलके क्लींजर से साफ करें और त्वचा की नमी को बनाए रखें.

नाखूनों की देखभाल

द्य हाथों को अकसर गरम पानी से धोने पर नाखूनों पर असर पड़ता है. इसलिए सप्ताह में 1 बार नाखूनों पर क्यूटिकल तेल का इस्तेमाल करें ताकि उन की नमी कायम रहे. साथ ही नाखूनों की त्वचा और नाखूनों पर मौइश्चराइजर का भी नियमित इस्तेमाल करती रहें. नाखूनों पर नेल हार्डनर के सख्त इस्तेमाल से उन की मजबूती बनी रहती है.  

-डा. नवीन तनेजा स्किन स्पैशलिस्

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