केशों को बचाएं ठंड से

सर्दी का मौसम आते ही केशों का खराब होना एक आम समस्या है. सर्द मौसम के प्रभाव से केशों की चमक खोने लगती है व केश रूखे हो कर बेजान से नजर आते हैं. इस मौसम में सिर की त्वचा शुष्क होने से पपड़ीदार हो जाती है, जिस से खारिश भी होने लगती है. लेकिन थोड़ी सी देखभाल से आप अपने केशों को स्वस्थ, मजबूत और चमकदार बनाए रख सकती हैं. इस के लिए यह जान लेना भी जरूरी है कि यह मौसम किस तरह हमारे केशों व त्वचा को प्रभावित करता है. सर्दी में चलने वाली ठंडी और शुष्क हवा हमारी त्वचा और केशों से नमी छीन लेती है और नमी का कम होना त्वचा के पपड़ीदार होने व रूसी होने का कारण बनता है. ऐसे में केशों के रोमकूप भी कमजोर होते हैं. जाड़े में सिर की त्वचा में रक्तसंचार भी कम हो जाता है. इस के मौसम में इस्तेमाल किए जाने वाले हीटर, ब्लोअर आदि भी वातावरण के साथसाथ केशों से भी नमी सोख लेते हैं, जिस से यह समस्या और बढ़ जाती है. सर्दियों में केशों की देखभाल का अर्थ यही है कि इन्हें ज्यादा से ज्यादा मौइश्चर और पोषण प्रदान किया जाए ताकि ये स्वस्थ व चमकदार बने रहें.

केश व सिर की त्वचा की साफसफाई

जाड़े में सामान्यत: केशों को स्कार्फ या कैप से कवर किया जाता है. इस से ठंड से तो बचाव हो जाता है, पर केशों को बांधे रखने से तेल ग्रंथियां अधिक सक्रिय हो जाती हैं, जिससे केश आयली व चिपचिपे हो जाते हैं. केशों को साफ रखने के लिए शैंपू करें लेकिन रोजरोज नहीं. आयली केशों को शैंपू किए बिना तत्काल अच्छा लुक देने के लिए बेबी पाउडर केशों पर छिड़कें व कंघा कर के केश बांध दें. यह एक इंस्टैंट कंडीशनर की तरह है, जिस से केश आयली व चिपचिपे नहीं लगेंगे. केश धोने से पहले या तो सिर पर जमा डैंड्रफ की पपड़ी को ब्रश से झाड़ दें या फिर इसे दूर करने के लिए किसी कठोर एंटी डैंड्रफ ट्रीटमैंट का प्रयोग करें.

केशों की कंडीशनिंग

केशों की सुरक्षा के लिए सर्दी के शुष्क मौसम में अच्छा कंडीशनर बेहद जरूरी है. केशों में चमक व मजबूती बढ़ाने के लिए सप्ताह में एक बार अच्छे कंडीशनर का प्रयोग करें. यदि आप के केश रूखे हैं तो ‘रिप्लेनिश’ कंडीशनर ट्राई करें. ये कंडीशनर जरूरी पोषक तत्त्वों से युक्त होते हैं, जिन से कमजोर केशों को भरपूर पोषण मिलता है. कंडीशनर का इस्तेमाल करने के बाद आखिर में ठंडे पानी से केश धोएं. यह नमी को केशों में ही सील कर देता है. जब केशों में हैट एअर ब्लो ड्रायर का इस्तेमाल करना हो तो लीव-इन कंडीशनर का प्रयोग करें.

कैसे सुखाएं केशों को

आमतौर पर देखा जाता है कि सर्दी के मौसम में लोग अपने केश सुखाने के लिए हेयर ड्रायर का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं जबकि होना इस के विपरीत चाहिए. पहले से ही रूखेसूखे केशों की ब्लो ड्राइंग करने से वे और भी खराब हो जाते हैं. ड्रायर करते समय हेयर ड्रायर को कूल सेटिंग पर रखें. हालांकि ठंड के मौसम में यह थोड़ा मुश्किल लगेगा, पर उस के बाद आप के केशों में जो चमक नजर आएगी वह सब भुला देगी.

कंघी करते समय

केशों को सुलझाने के लिए चौड़े दांतों वाले कंघे का इस्तेमाल करें और गीले केशों में कंघी न करें. रूखे केश अकसर इस मौसम में कंघी करते हुए आपस में चिपक जाते हैं. पतले बालों में भी यह समस्या आती है. इसे दूर करने का एक तरीका यह है कि कंघे पर थोड़ा सा हेयर स्प्रे डाल लें. साथ ही लकड़ी के कंघे से इस समस्या को दूर किया जाता है. प्लास्टिक के कंघे के साथ यह समस्या ज्यादा आती है.

केशों की सुरक्षा

स्कार्फ या कैप का इस्तेमाल करने से केश सुरक्षित तो रहते हैं, लेकिन इस से केश चिपचिपे व आयली होते हैं. सप्ताह में एक बार हेयर स्पा ट्रीटमैंट लें. इस से खासतौर पर केशों व सिर की त्वचा से जुड़ी समस्याओं, जैसे बाल झड़ना, डैंड्रफ, सिर की त्वचा का शुष्क हो जाना व दोमुंहे केशों का उपचार किया जाता है. इस से केश नई जान के साथ चमकदार हो जाते हैं. सामान्यत: इस में आयल मसाज, स्टीमिंग शैंपू, डीप कंडीशनिंग मास्क किया जाता है. स्पा ट्रीटमैंट से सिर की त्वचा में रक्त संचार भी बढ़ता है. ध्यान रखें कि बालों व सिर की मसाज के लिए मिनरल आयल के मुकाबले वेजीटेबल आयल ज्यादा बेहतर है. औलिव, जोजोबा, रोजमैरी सिर की त्वचा और केशों में प्राकृतिक पोषण की पूर्ति करते हैं.       

रोजाना केशों की देखभाल

  1. शैंपू, कंडीशनर और एंटी फ्रिज सीरम/लीव-इन कंडीशनर का रोजाना इस्तेमाल करें.
  2. ऐसे शैंपू का चयन करें जिस में अधिक कैमिकल्स न हों. केशों को चमकदार और मुलायम बनाए रखने के लिए कंडीशनर का इस्तेमाल करें.
  3. यदि घुंघराले केशों पर कंडीशनर ठीक काम न कर पा रहा हो तो शाइन सीरम का इस्तेमाल करें जिस से केश स्मूथ और शाइनी होते हैं.
  4. केशों से कैमिकल आदि का प्रभाव निकालने के लिए सप्ताह में एक बार क्लैरीफाइंग शैंपू का प्रयोग करें.
  5. यदि बालों में ज्यादा कर्लिंग या स्ट्रेटनिंग कराती हैं तो सप्ताह में एक बार आयल ट्रीटमैंट और फैटी अलकोहल वाले हेयर मास्क की सहायता से अपने केशों को नई जान दें. ये दोनों तरीके ही खराब केशों को रिहाईडे्रट करने के लिए अच्छे हैं. प्राकृतिक हेयर मास्क, जैसे मैश किए हुए एवोकैडो, केले, स्ट्राबेरी भी अच्छा पोषण करते हैं.
  6. धूप से बचाव के लिए लीव-इन कंडीशनर, हेयर क्रीम या एसपीएफ वाले सीरम का नियमित प्रयोग आवश्यक है. कई बीचकेयर ब्रांड्स सन प्रोटैक्टिव हेयर केयर प्रोडक्ट्स पेश कर रहे हैं. एसपीएफ वाले प्रोडक्ट्स खासतौर पर कलर्ड/स्ट्रीक्ड केशों के लिए हैं, क्योंकि एसपीएफ केवल केशों की सुरक्षा ही नहीं करता बल्कि कलर के फेड या खराब होने से बचाता है.

– विद्या टीकारी

सर्दियों में मसाज

जाड़े का मौसम ठंडे तापमान के साथसाथ ठंडी और सूखी हवाएं भी साथ लाता है. फलस्वरूप त्वचा में पानी और पोषक तत्त्वों की कमी होने लगती है. त्वचा बेजान दिखने लगती है. कई बार तो सूखी त्वचा की वजह से त्वचा पर बारीक धारियां और झुर्रियां भी नजर आने लगती हैं. लेकिन थोड़ी देखभाल और मसाज आप की त्वचा और शरीर दोनों को खुशनुमा बना सकती है. इस बारे में हैदराबाद के आनंदा स्पा इंस्ट्टियूट की अंजाना मुस्ताफी, जो पिछले 11 वर्षों से इस क्षेत्र में हैं और मसाज एक्सपर्ट हैं, कहती हैं कि आम भारतीय महिलाएं अपनी त्वचा की देखभाल कम करती हैं, लेकिन दक्षिण भारत के राज्यों में महिलाएं अपनी त्वचा और शरीर को फिट रखने के लिए समय और पैसे खर्च करना पसंद करती हैं.

सर्दियों में मसाज बहुत जरूरी होती है, क्योंकि इस मौसम में त्वचा रूखी हो जाती है और हड्डियों के जोड़ों में अकड़न हो जाती है. मांसपेशियां भी अकड़ जाती हैं. आयल मसाज से मांसपेशियों और हड्डियों के जोड़ों को गति मिलती है, जो शरीर के लिए लाभदायक होती है. मसाज के बाद ‘स्टीम’ लेना भी अच्छा रहता है. स्टीम से ‘ब्लड सरकुलेशन’ बढ़ता है. आक्सीजन और न्यूट्रीएंट्स कोशिकाओं के अंदर जा कर शरीर और त्वचा को पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं.

मसाज कई प्रकार की होती है, पर मुख्य 3 तरह की मसाज शरीर के लिए गुणकारी होती हैं-

आयल मसाज

इसे स्वीडिश मसाज भी कहा जाता है. इस में तिल और सनफ्लावर के तेल का प्रयोग कर मसाज की जाती है. इसे 60 मिनट तक किया जाता है.

हौट स्टोन मसाज

इस में लावा से निकले पत्थर का प्रयोग कर मसाज की जाती है. इस पत्थर में ‘हीट’ अधिक देर तक रहती है, जिस के प्रयोग से सर्दियों में मसाज करने पर जौइंट्स को काफी राहत मिलती है. इसे 90 मिनट तक किया जा सकता है.

अभ्यंगा मसाज

यह आयुर्वेदिक मसाज है. इस में अलगअलग तरीके के मेडिकेटेड तेलों को गरम कर मसाज की जाती है. इसे करने में 60 से 90 मिनट लगते हैं. इसे शरीर के अनुसार जांच कर प्रयोग किया जाता है, क्योंकि किसी के शरीर में वसा अधिक, तो किसी के शरीर में अधिक पित्त की शिकायत होती है. हर व्यक्ति का शरीर अलग होता है और उसी के अनुसार मसाज आयल का चुनाव किया जाता है. मसाज के बाद बौडी कांप्रैस से भी शरीर को काफी राहत मिलती है. अंजाना बताती हैं कि मसाज करने की कोई उम्र नहीं होती. हर उम्र में मसाज जरूरी है और आज की जीवनशैली में तो इस का खास उपयोग है, क्योंकि आजकल अधिकतर महिलाएं बाहर काम करती हैं, जहां उन्हें एक जगह बैठ कर अधिक समय तक काम करना पड़ता है. इसलिए सप्ताह में एक बार मसाज अवश्य करवाएं. मुंबई की ब्यूटी थेरैपिस्ट निर्मला शेट्टी बताती हैं कि तिल का तेल मसाज के लिए गुणकारी होता है. जाड़े में मसाज सभी के लिए जरूरी है, पर व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार मसाज करवानी चाहिए. रोजरोज मसाज पार्लर जाना संभव नहीं होता. इसलिए घर पर नहाने से पहले नियमित रूप से थोड़ी देर खुद ही मसाज करें. आधे घंटे बाद नहा लें या फिर नहाने के बाद मनपसंद महक वाले बौडी आयल का प्रयोग कर मसाज करें, जिस से त्वचा खिलीखिली दिखेगी.               

कुछ टिप्स सर्दियों के मौसम में

सनफ्लावर या तिल के तेल से अच्छी मसाज करें.

अगर शरीर में दर्द हो, तो पीड़ाहारी तेल को मिक्स कर उसे हलका गरम करें और शरीर की मालिश करें.

अगर त्वचा अधिक रुखी है, तो औलिव आयल की मालिश करना लाभदायक होता है.

ठंड में लोग पानी कम पीते हैं. रोज 2 लीटर पानी का सेवन अवश्य करें, जिस से शरीर के दूषित पदार्थ निकल जाएं.

सर्दियों में ‘ग्रीन टी’ अधिक पीएं.

खाने में प्रोटीन का अधिक प्रयोग करें. मछली, मांस, अंडे खाएं. जो शाकाहारी हैं वे अधिक सब्जियां, दालें, सोयाबीन आदि का सेवन करें.

मालिश करते वक्त जाड़े में स्टैप्स जोरदार होने चाहिए ताकि शरीर को गरमी मिले और शरीर की अकड़न कम हो. साधारणत: सप्ताह में एक बार और अगर बदन में दर्द हो, तो रोज मसाज करवानी चाहिए. अरोमा थेरैपी के बाद मत नहाएं.

चित्रांगदा बनाएंगी फिल्में

बौलीवुड में निर्माता बनते अदाकारों की तरह चित्रांगदा सिंह भी फिल्म निर्माता बन गई हैं. वे भी अब फिल्में बनाएंगी. खास बात यह है कि जो फिल्म वे बना रही हैं उस में काम भी खुद कर रही हैं. उन्होंने सी.एस. फिल्म नाम से एक कंपनी बनाई है जो फिल्म निर्माण करेगी. वे इस बैनर तले एक नहीं 2 फिल्में बनाएंगी. चर्चा है कि चित्रांगदा की पहली फिल्म का निर्देशन नवनीत सिंह करेंगे और चित्रांगदा ही इस फिल्म में मुख्य भूमिका में होंगी. वहीं उन के अपोजिट हीरो की तलाश की जा रही है. चित्रांगदा अपनी दूसरी फिल्म एक हौकी खिलाड़ी संदीप सिंह पर बनाएंगी, जिस के लिए अभी अभिनेता की तलाश जारी है. उन्होंने इस फिल्म के अधिकार खरीद लिए हैं और कुछ समय बाद शूटिंग शुरू करने वाली हैं.

जिम्मेदारी के साथ कोई समझौता नहीं -मंदिरा बेदी

आज भी जवां और कमसिन दिखने वाली मंदिरा कहीं से भी नहीं लगतीं कि वे उम्र के 40 सावन देख चुकी हैं. दूरदर्शन से क्रिकेट की पिच तक का सफर तय करने वाली मंदिरा ने अपने ग्लैमर का तड़का लगा कर बोरिंग क्रिकेट कमैंट्री को हौट बनाया. और अब जी के नए शो ‘आई कैन डू दैट’ में प्रतिभागी बन कर आ रही हैं. मंदिरा ने एक मुलाकात के दौरान कुछ बातें हमारे साथ शेयर कीं जिन के कुछ खास अंश यहां पेश हैं:

स्क्रीन पर इतने लंबे गैप का कारण क्या है, चूजी हो गई हैं या काम नहीं मिल रहा?

काम के औफर तो मेरे पास कई तरह के आए पर उन्हें रिजैक्ट करने का कारण यह था कि मैं शो के लिए समय नहीं दे पा रही थी, क्योंकि मैं एक बच्चे की मां भी हूं. उस की परवरिश में भी समय देना बहुत जरूरी था. वैसे मेरे पास बहुत निगेटिव रोल के औफर आए, जो मैं करना नहीं चाहती थी. ऐसे रोल शायद मेरे छोटे बालों की वजह से लोग मेरे पास ले कर आए होंगे. डेली सोप करने के लिए मैं ने पहले ही हाथ जोड़ लिए हैं, क्योंकि अच्छे शो के लिए चूजी होना कोई बुरी बात नहीं है.

मदर बनने के बाद भी आप की फिगर में कोई चेंज नहीं आया है. आप इतनी फिट कैसे रहती हैं?

बच्चे के जन्म के कुछ दिन बाद ही मैं ने हाफ मैराथन की थी और मैं आज भी सुबह उठ कर बच्चे को स्कूल छोड़ कर आने के बाद जिम जाती हूं. वहां कार्डियो और वेट लिफ्टिंग रैग्युलर करती हूं. फैटी डाइट को अवौइड करती हूं. फाइबर और हैल्दी डाइट रैग्युलर लेती हूं. और सब से बड़ी बात टैंशन नहीं लेती.

बच्चे और शूटिंग के बीच तालमेल कैसे बैठाती हैं?

इतना आसान नहीं एकसाथ दोनों को मैनेज करना, इसलिए जब तक बेटा बड़ा नहीं हो गया तब तक मैं शूटिंग से दूर ही रही. अगर मैं ने कुछ शोज किए भी हैं तो हफ्ते में सिर्फ 2 दिन ही शूटिंग की है. यह बात मैं शो के निर्देशक से पहले ही खुल कर बता देती थी कि अगर मुझे साइन करना है तो 1 महीने की शूटिंग मैं 2 महीने में पूरी कर पाऊंगी.

बौडी को रिचार्ज करता है स्पा ट्रीटमैंट

ट्रीटमैंट अब केवल गरमियों तक ही सीमित नहीं रहा, सर्दियों में भी अब लोग स्किनकेयर और रिलैक्स महसूस करने के लिए स्पा ट्रीटमैंट लेने लगे हैं. स्पा ट्रीटमैंट मैट्रो सिटीज के अलावा छोटे शहरों में भी प्रचलन में आने लगा है. अलगअलग तरह के स्पा ट्रीटमैंट की कीमत अलगअलग होती है, इसलिए इस पर औसतन 3 से ले कर 5 हजार रुपए के बीच खर्चा आता है. गरमियों में जहां कूल लगने वाले स्पा ट्रीटमैंट ज्यादा कराए जाते हैं, वहीं सर्दियों में बौडी को वार्मअप करने वाले स्पा ट्रीटमैंट लिए जाते हैं.

स्पा ट्रीटमैंट के बारे में लखनऊ के अलकैमिस्ट ब्यूटी फिटनैस सैंटर की मैनेजर भारती शर्मा से लंबी बातचीत हुई. पेश हैं, बातचीत के खास अंश:

स्पा ट्रीटमैंट की जरूरत क्यों होती है?

स्पा ट्रीटमैंट के जरीए डैड स्किन को भी हटाया जाता है. इस से झुर्रियां खत्म होती हैं. स्पा ट्रीटमैंट में बौडी के साथसाथ माइंड को भी रिलैक्स करने की कोशिश की जाती है. आज काम के घंटे लगातार बढ़ रहे हैं. इस से पूरे शरीर के साथ माइंड को भी रिलैक्स की जरूरत होती है. बड़ीबड़ी कंपनियों के कर्मचारी जब काम कर के थक जाते हैं, तो स्पा ट्रीटमैंट के जरीए वे अपनेआप को दोबारा रिचार्ज करते हैं, जिस से काम को एक बार फिर पूरी ताकत से कर सकें. इसी के चलते हर बड़े होटल में बौडी स्पा की व्यवस्था होती है. स्पा में अलगअलग तरह के ट्रीटमैंट होते हैं, जिन के जरीए कुछ बीमारियों का इलाज भी किया जाता है.

स्पा ट्रीटमैंट में क्या होता है?

स्पा ट्रीटमैंट में हैड टू टो ट्रीटमैंट किया जाता है. इस की शुरुआत हैड से करते हैं. सिर पर तेल डाल कर मसाज करते हुए रिलैक्स कराने की कोशिश की जाती है. मसाज के लिए ऐंटीओक्सीडैंट तेल का प्रयोग किया जाता है. बौडी के प्रैशर पौइंट पर दबाव डाल कर मसाज की जाती है. स्पा ट्रीटमैंट में सब से पहले बौडी को क्लीन किया जाता है. इस के बाद स्क्रबिंग की जाती है. इस में स्क्रबर लगा कर स्किन को रगड़ा जाता है, जिस से शरीर के ऊपर की मृत त्वचा को हटाया जा सके. तीसरी स्टेज बौडी मसाज की होती है. मसाज करने के लिए अपवर्ड स्ट्रोक, जिकजैक मसाज और सरकुलर मसाज का सहारा लिया जाता है. सब से बाद में बौडी पैक लगाया जाता है. इस के बाद बौडी को स्टीम बाथ दिया जाता है. अगर स्टीम बाथ की सुविधा नहीं है, तो टौवेल को गरम कर के उस से भी काम चलाया जा सकता है. इस में 2 से 3 घंटे का समय लगता है. स्पा टेबल बहुत ही कूल और शांत जगह पर होती है. यहां पर अरोमा आयल की खुशबू वाला दीया जलता है. कुछ लोगों को इस दौरान हलका म्यूजिक पसंद होता है, तो कुछ लोग पूरी तरह से बिना किसी आवाज के स्पा ट्रीटमैंट लेना पसंद करते हैं.

बौडी स्पा कितने तरह का होता है?

स्पा के कई तरीके हैं, जिस में सब से ज्यादा अरोमा स्पा प्रचलित है. इस के अलावा स्टोन थेरैपी, हाइड्रा स्पा, मडपैक थेरैपी और समुद्री नमक स्पा भी होते हैं. स्पा थेरैपी के दौरान शरीर के एक्यूप्रैशर पौइंट्स पर दबाव डाल कर बौडी को रिलैक्स करने की कोशिश की जाती है. हाइड्रा स्पा में बाथटब में पानी के प्रैशर का प्रयोग किया जाता है. समुद्री नमक स्पा में समुद्र से निकाले गए नमक से शरीर की मालिश की जाती है. कई तरह का मडपैक कई बीमारियों को दूर रखने में सहायक होता है. इसलिए कुछ लोग मडपैक स्पा के जरीए अपना ट्रीटमैंट कराते हैं. सीजन के अनुसार स्पा अलगअलग तरह का लिया जाता है. विंटर में चौकलेट स्पा और मिल्क क्रीम रोज स्पा का प्रयोग ज्यादा होता है. स्पाइस पोटली स्पा भी विंटर में कराया जाता है. इस में स्टोन आयल के साथ स्पा किया जाता है.

क्या स्पा ट्रीटमैंट भी स्किन के नेचर के हिसाब से कराया जाना चाहिए?

बिलकुल. अलगअलग तरह की स्किन के लिए अलगअलग तरह का स्पा ट्रीटमैंट किया जाता है. सामान्य तौर पर हमारी स्किन 4 तरह की होती है- आयली, ड्राई, नौर्मल और मिक्स. सब से ज्यादा देखभाल की जरूरत ड्राई स्किन को होती है. स्पा ट्रीटमैंट कराते समय यह जरूर देखना चाहिए कि यह किसी अच्छी जगह और जानकार हाथों के जरीए ही कराया जाए. वरना कई बार यह कई बीमारियां भी ले आता है.

किस ऐजग्रुप के लोग ज्यादा स्पा ट्रीटमैंट कराते हैं?

मिडिल ऐज के लोग ज्यादा स्पा ट्रीटमैंट कराते हैं. थोड़ा महंगा होने के कारण इस को कराने में लोग हिचकते हैं. हर 15 दिनों बाद या 1 माह में 1 बार स्पा ट्रीटमैंट लेना लाभदायक होता है. आज के समय में काम करने के तौरतरीके बदल गए हैं. इस का प्रभाव व्यक्ति की पूरी बौडी पर पड़ता है. इस से बौडी की नैचुरल नमी और चमक खो जाती है. स्पा ट्रीटमैंट के द्वारा इस को दोबारा पाया जा सकता है. स्पा ट्रीटमैंट कराने वाले को बौडी पौलिशिंग की जरूरत नहीं रह जाती है. समय के साथ इस का क्रेज बढ़ रहा है. 25 से 45 साल के बीच वाली उम्र की महिलाएं बौडी स्पा और बौडी ट्रीटमैंट के लिए ज्यादा आती हैं. उन को लगता है कि पार्टी और दूसरी जगहों में जाने पर उन की स्किन सब से चमकदार और टोनअप दिखे. वे बौडी पौलिशिंग कराने के बाद बहुत खुश हो कर जाती हैं. जब से प्राइवेट कंपनियों में नौकरी का चलन बढ़ा है, महिलाओं को ज्यादा नौकरियां मिलने लगी हैं. इस से एक कारपोरेट कल्चर आया है और बौडी पौलिशिंग जरूरत सी बन गई है. इस से कई बार स्किन संबंधी कई तरह की बीमारियां भी दूर हो जाती हैं.

सर्दियों का बिंदास ट्रैंड

हर बदलता मौसम अपने साथ अनेक खूबसूरत रंग और दिलकश फैशन जरूर ले कर आता है, फिर चाहे बात गरमियों की हो या सर्दियों की. यह बात अलग है कि सर्दियों के मौसम में अदा से बहने वाली सर्द हवाएं लोगों के दिल को कुछ ज्यादा ही लुभा लेती हैं, तो मन मोह लेता है सर्दियों का बिंदास फैशनेबल अंदाज, जिस में लोग रोजमर्रा के शाल, स्वैटर के दायरे से बाहर निकल कर नए अंदाज के वूलन टौप, जैकेट्स, कैप और स्टाइलिश सौक्स के दीवाने बने नजर आते हैं. कुछ ऐसे ही ट्रैंडी फैशन की बहार ने एक बार फिर अपने नरम कदम इस सर्द ऋतु में बढ़ा लिए हैं. मार्केट में डिजाइनर्स द्वारा डिजाइन किए गए स्टाइलिश कपड़ों को देख कर आप को भी सर्दियां बिंदास लगेंगी. आज फैशन इंडस्ट्री इतना गू्रम कर चुकी है कि हर मौसम के अनुसार यह एक नया फैशन स्टेटस स्थापित करने में पूरी तरह कुशल है. इन सर्दियों में भी मार्केट में कुछ ऐसा ही ट्रैंड छाया हुआ है.

शौर्ट जैकेट्स

सर्दियों में शौर्ट जैकेट्स पहनने का आजकल बहुत ट्रैंड है. युवाओं के लिए तो ये जैकेट्स स्टेटस सिंबल बन गए हैं. इन जैकेट्स की खास बात यह है कि इन्हें किसी भी डै्रस, चाहे जींस हो या कुरता, के साथ पहन सकती हैं. ये आप को एक स्टाइलिश लुक देंगी.

स्कर्ट विद लैगिंग स्टाइल

स्कर्ट का क्रेज तो हमेशा से ही गर्ल्स के बीच रहा है. लेकिन इन सर्दियों में स्कर्ट को एक नया लुक देने के लिए स्कर्ट विद लैगिंग स्टाइल मार्केट में बहुत फेमस है. इस के साथ ही स्कर्ट के अनेक डिजाइन भी उपलब्ध हैं, जैसे फ्रिल स्कर्ट, फिश कट स्कर्ट, शौर्ट स्कर्ट, रैप राउंड. मनचाही स्कर्ट के साथ आप उसी से मैचिंग लैगिंग पहन सकती हैं और लग सकती हैं सब से जुदा.

हुड जैकेट्स व टौप

इन सर्दियों में युवा हुड जैकेट्स व टौप के  दीवाने हो चले हैं और ऐसा हो भी क्यों न, यह स्टाइल है ही कुछ निराला. जैकेट्स को और आकर्षक बनाने के लिए उन की बैक में दिया गया कैप स्टाइल वाकई युवाओं को फंकी लुक देता है, साथ ही सर्दियों में अलग से कैप खरीदने का झंझट भी खत्म. इन जैकेट्स को लड़के व लड़कियों दोनों के लिए डिजाइन किया गया है.

मिक्स ऐंड मैच स्टाइल

भीड़ से कुछ अलग दिखना चाहती हैं तो इन सर्दियों में छाया मिक्स ऐंड मैच का फैशन केवल आप ही के लिए है. इस की खास बात है कि आप का जो मन चाहे खरीदें और जैसे भी, जिस भी कलर के साथ चाहे मैच कर के पहनें.

बूट्स हौट ट्रैंड

फैशन के इस सर्द मौसम में फुटवियर की खूबसूरत वैराइटी हो तो कहने ही क्या? आजकल मार्केट में बूट्स की अनेक वैराइटियां उपलब्ध हैं, जिन में लौंग बूट्स, हील बूट्स, लैदर बूट्स आदि हैं और इन के डिजाइन भी बेहद खूबसूरत हैं.

नी वार्म सौक्स

सर्दियों में सौक्स न पहनें तो सर्दियां आने का एहसास नहीं होता. लेकिन सोचिए, यदि सौक्स में भी फैशन के रंग छा जाएं तो बात ही क्या हो. आजकल कुछ ऐसी ही डिजाइनर सौक्स मार्केट में छाई हुई हैं. इन में से कुछ स्टाइल तो ऐसे हैं, जिन्हें आप जींस के ऊपर भी पहन सकती हैं. इन्हें नी वार्मर सौक्स कहा जाता है. इस तरह सर्दियों में छाया स्टाइल का यह दौर सही में एक ट्रैंड को सैट करने में सहायक होगा. इस ट्रैंड को अपना कर हम समय से पिछड़ते नजर नहीं आएंगे, क्योंकि देश के साथ वेश बदलने की बात पुरानी हो चुकी है. अब तो समय के साथ वेश बदलना जरूरी हो गया है. दिल्ली के आई.आई.एफ.टी. इंस्टिट्यूट से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर चुकीं हिना अग्रवाल, जो अब मुंबई की एक टैक्सटाइल फर्म में बतौर डिजाइनर काम कर रही हैं, इस बारे में कहती हैं कि सर्दियों में फैशन की तो बात ही कुछ और है. इस मौसम में ही फैशन के अलगअलग रंग देखने को मिलते हैं. स्टाइलिश शर्ट, फैंसी लुक स्वैटर, ट्रैंडी शूज, जैकेट्स. सचमुच यह बड़ा ही सुहाना मौसम होता है. सर्दियों में फैशन के साथ बढि़या इनोवेशन कर के निकाले गए डिजाइन युवाओं के साथसाथ हर उम्र के लोगों को आकर्षित करते हैं और लोगों के पास चुनिंदा औप्शन होने की शिकायत को भी दूर करते हैं. यह फैशन का ही जादू है, जो हर किसी के सिर चढ़ कर बोलता है.

सर्दियों में फैशन ट्रैंड को सैट करते हुए एक डिजाइनर क्याक्या ध्यान रखता है, इस बारे में फैशन जगत में खूब नाम कमा चुकी डिजाइनर रितु बेरी के साथ काम कर रहे डिजाइनर अंशुल भारद्वाज कहते हैं कि फैशन अपनेआप में नायाब है. इस की कोई परिभाषा नहीं होती. जो आप के ऊपर फबे बस, वही फैशन है. लेकिन यदि कुछ नया लुक चाहती हैं तो कुछ क्रिएटिव व इनोवेटिव ऐफर्ट्स करने ही पड़ेंगे. मार्केट में कोई भी नया डिजाइन निकालने से पहले एक डिजाइनर का सब से पहला काम होता है मार्केट रिसर्च करना. इस से उसे लोगों की सोच और उन की डिमांड को जानने में आसानी होती है. इस के साथ ही आज के समय में सब से जरूरी है यूथ की सोच को समझना, क्योंकि यूथ ही किसी ट्रैंड को इस्टैब्लिश करने में सब से पावरफुल फैक्टर होता है. वैसे फैशन वही सब से कूल होता है जो ऐक्सपैरिमैंटल हो, क्योंकि हर मौसम के साथ बदलाव तो सभी को भाता है. तो इस तरह जब डिजाइनर्स आप के लिए नएनए फैशन ऐक्सपैरिमैंट करने को बेताब रहते हैं, तो क्यों न आप खुद को दें एक स्टाइलिश लुक. आखिर यह दौर है फैशन का और ये सर्दियां भी वाकई फैशनेबल हैं. तो दिखाइए अपने फैशन का जलवा और बना दीजिए इन सर्दियों को हौट.d

बच्चों को बनाएं अंदर से फिट

रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो तो हम आसानी से विभिन्न बीमारियों की गिरफ्त में आ सकते हैं. आवश्यक है कि हमारा शरीर अंदरूनी तौर पर इतना मजबूत हो कि इन बीमारियों का स्वयं मुकाबला कर सके. बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता थोड़ी कमजोर होती है. मां के गर्भ में ये मां की रोग प्रतिरोधक क्षमता के सहारे जीवित रहते हैं. जन्म के बाद इन के शरीर में गुड इंटैस्टिनल बैक्टीरिया की संख्या काफी कम होती है. जो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु बेहद आवश्यक है. विटामिन ए.सी.ई, किरैटोनौएड्स, बायोफ्लेवोनौएड्स, ओमेगा फैटी ऐसिड्स आदि से भरपूर खाद्यपदार्थ हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मददगार होते हैं.

क्या खाएं

सर्दियों के मौसम में कई सब्जियां आसानी से मिल जाती हैं, जो एंटीऔक्सीडेंट्स से भरपूर होती हैं जैसे ब्रोकोली, गाजर, आंवला आदि. ये हमारे इम्यून सिस्टम को सुदृढ़ बनाती हैं.

हट जाता है बैन

सर्दियों में शहद, दालचीनी, मछली, अंडे आदि लें. मछली में भरपूर प्रोटीन के साथसाथ भरपूर विटामिन डी होता है. बच्चों को सप्ताह में 4-5 अंडे खिलाने चाहिए. ओमेगा-3 फैटी ऐसिड्स से भरपूर अखरोट को चाहे बच्चों को ऐसे ही खिलाएं या फिर किसी हैल्दी स्नैक या डैजर्ट के ऊपर टौपिंग के रूप में. विटामिन सी युक्त फल जैसे संतरा, मौसमी, अनन्नास, कीवी आदि नियमित खाने से आप का बच्चा कम बीमार पड़ेगा. बच्चों को औरेंज जूस में गाजर, चुकंदर अनन्नास या सेब का जूस मिला कर पिलाएं, क्योंकि उन्हें गाजर व चुकंदर का स्वाद कम भाता है. मसालों में विशेष रूप से दालचीनी व कालीमिर्च इम्यून सिस्टम को दृढ़ करते हैं. इन्हें किसी सलाद, जूस, दही आदि पर टौपिंग के रूप में इस्तेमाल करें. विटामिन बी के लिए गेहूं से बनी ब्रेड घर में लाएं. इन के अलावा ओट्स, ब्राउन राइस, स्वीट कौर्न आदि भी बच्चों को पसंद आ सकते हैं.  यदि किसी कारण बच्चों को एंटीबायोटिक दवा देनी पड़ी हो तो उस का विशेष ध्यान रखें, क्योंकि ऐसी दवाओं से शरीर में मौजूद गुड बैक्टीरिया नष्ट होते हैं. बाजार में मौजूद किसी भी हैल्थ ड्रिंक या फूड सप्लीमैंट की न्यूट्रिशनल वैल्यू व उस में मौजूद तत्त्वों के बारे में पता करें. जिस में अधिक से अधिक एंटीऔक्सीडेंट्स मौजूद हों, वही सप्लीमैंट खरीदें. ताकि  आप का बच्चा बने अंदर से मजबूत.

  • और एक बात, बचपन का मतलब है मस्ती और हुड़दंग. अत: बच्चे को खुल कर खुली हवा में खेलने दें, क्योंकि जबजब आप का बच्चा भागता दौड़ता है तो उस के फेफड़े सक्रिय होते हैं और उन में विकसित होने की प्रक्रिया शुरू होती है

गोल्ड मानेटाइजेशन स्कीम

बीती 28 सितंबर को भोपाल की प्रशासन अकादमी में काफी गहमागहमी थी. इस दिन प्रदेश भर के आईएएस अधिकारी यहां जमा थे. मौका था अपनी संपत्ति का ब्योरा देने का. इस बाबत दिल्ली से आए डीओपीटी के आला अफसर इन अफसरों से कह रहे थे कि हर हाल में 15 अक्तूबर, 2015 तक सभी आईएएस अधिकारियों को अपनी व अपने परिजनों की चलअचल संपत्ति का विवरण देना अनिवार्य है. संपत्ति का ब्योरा न देने वाले अफसरों पर लोकपाल लोकायुक्त कानून, 2013 के तहत काररवाई करते हुए उन्हें पदोन्नति से वंचित किया जा  सकता है. केंद्रीय प्रतिनियुक्ति तक का मौका उन से छिन जाएगा. इस मीटिंग में राज्य के आईएएस अधिकारियों ने कई उलझे पर दिलचस्प सवाल डीओपीटी अफसरों से किए. सब से दिलचस्प सवाल राज्य के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और वाणिज्यिक कर विभाग के प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव ने किया, ‘‘मेरी पत्नी अपने गहनों का ब्योरा नहीं देना चाह रही. उसे ऐसा करने का हक भी है. मैं उसे इस बाबत मजबूर नहीं कर सकता. ऐसे में आप बताएं मैं अपने पूरे परिवार की संपत्ति का ब्योरा कैसे दूं?’’ जायदाद से संबंध रखते हुए दूसरे कई सवालों की तरह डीओपीटी के अधिकारी मनोज श्रीवास्तव के सवाल का भी संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए. लेकिन जल्दी ही यह चर्चा जरूर होने लगी कि गहने पत्नी की जायदाद हैं. उन पर उस का मौलिक अधिकार है. हम किसी कानून के तहत क्यों उस की प्राइवेसी उजागर करें? सरकार को इस कानून में बदलाव करना चाहिए.

इन आईएएस अधिकारियों की मंशा भले ही हर साल की तरह अपनी जायदाद का ब्योरा देने से बचने की रही हो, पर पत्नी के गहनों व जायदाद के मसले पर बहस की बहुत गुंजाइश है. डीओपीटी के अफसरों को उलझाने में कामयाब रहे मनोज श्रीवास्तव का पत्नी की जायदाद और गहनों से तअल्लुक रखने वाला सवाल जल्द ही बड़े पैमाने पर तूल पकड़ने वाला है, पर इस बार मौका सरकार को अपनी जायदाद का ब्योरा देने का नहीं, बल्कि बीती 9 सितंबर को सरकार द्वारा जारी की गई गोल्ड मानेटाइजेशन स्कीम (जीएमएस) का है. वित्तमंत्री अरुण जेटली के मुताबिक इस योजना को केंद्रीय कैबिनेट बीती 9 सितंबर को मंजूरी देते हुए इस का ब्योरा जारी कर चुकी है. इस योजना से कैसे महिलाओं को नुकसान होंगे, यह जानने से पहले जीएमएस पर एक सरसरी नजर डालना जरूरी है.

यह है योजना

गोल्ड मानेटाइजेशन योजना में अब ग्राहक पैसे की तरह सोना भी जमा कर सकेंगे. यह सोना सिक्के, बिस्कुट और ज्वैलरी की शक्ल में हो सकता है. सोना जमा करने के लिए बैंक में गोल्ड सेविंग खाता खुलवाना जरूरी है. मोटे तौर पर इस के 2 बड़े फायदे अरुण जेटली अभी गिना रहे हैं कि एक निश्चित अवधि के बाद जमा सोने के बाजार मूल्य पर ब्याज खाता धारक को मिलेगा और इस ब्याज पर आयकर नहीं लगेगा. यह ब्याज कितने फीसदी होगा यह सरकार ने अभी उजागर नहीं किया है पर उम्मीद है कि यह बहुत ज्यादा नहीं होगा. फिक्स डिपौजिट के ब्याज के बराबर ही होगा.

गोल्ड सेविंग अकाउंट में ग्राहक 1 से ले कर 15 साल तक जितना चाहे सोना जमा कर सकता है. लेकिन 3 साल बाद ही इस पर ब्याज मिलेगा. अगर परिपक्वता से पहले सोना निकाला जाता है तो उस पर एफडी की तरह पैनल्टी लगेगी. सोना जमा करते वक्त ग्राहक को यह बताना जरूरी होगा कि वह परिपक्वता के वक्त सोना ही चाहेगा या पैसा. अगर पैसा चाहेगा तो उस समय के सोने के भाव के अनुसार उसे राशि दे दी जाएगी. साफ दिख रहा है कि सारे नुकसान और जोखिम ग्राहक के हिस्से में सरकार डाल चुकी है. जमा किए गए सोने की शुद्धता की जांच साहूकार या स्वर्णकार की तरह बैंक भी कराएगा यानी खोट होगी तो उस के पैसे कट जाएंगे. तय है ज्वैलरी इस की लपेट में ज्यादा आएगी जो आमतौर पर 20 या 22 कैरेट की होती है.साफ यह भी दिख रहा है कि योजना में खोट ज्यादा हैं, खूबियां कम. एक तरह से बैंक और सरकार अब सोना गिरवी रखने का काम करेंगे, जिस का मकसद घरों में पड़ा सोना निकलवाना है ताकि सरकार ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सके. योजना में साफतौर पर यह भी कहा गया है कि सरकार या बैंक चाहें तो जमा सोने के सिक्के भी बना सकते हैं और ज्वैलर्स को बेच भी सकते हैं. रिजर्व बैंक औफ इंडिया अपना स्वर्ण भंडार भी जमा सोने से बढ़ा सकता है.

महिलाओं के हक पर डाका

महिलाओं का स्वर्णप्रेम किसी सुबूत का मुहताज कभी नहीं रहा. तमाम सर्वे, आंकड़े और अंदाजे बताते हैं कि देश में पड़े सोने का 70 फीसदी हिस्सा गहनों की शक्ल में है, जो मूलतया महिलाओं की संपत्ति है. शादी के वक्त उन्हें मायके व ससुराल दोनों पक्षों से सोना उपहार में मिलता है. कानून भी इसे स्त्रीधन मानता है यानी सोने की मालकिन महिला होती है. पर यह कहने और महिलाओं को बहलाने भर की ही बात है. सोना भी दरअसल पुरुषों का ही होता है. महिला तो उस की चौकीदार होती है. उस का शरीर और अलमारी सोने को सुरक्षित रखने के उपाय हैं, जो सदियों से चलन में हैं. सामाजिक और पारिवारिक समारोहों में उसे सोना पहना कर यह जता दिया जाता है कि देखो हमारी बहू के पास इतने गहने हैं और उसी के आधिपत्य में हैं. पर हकीकत कुछ और है. अधिकांश घरों में ज्वैलरी की या तो सतत निगरानी की जाती है या फिर सासससुर इसे रख लेते हैं और किसी फंक्शन, पार्टी के वक्त बहू को पहनने को दे देते हैं, फिर वापस ले लेते हैं.

भोपाल की एक समाज सेविका माधुरी की मानें तो उन्हें शादी के वक्त उपहार में करीब 400 ग्राम सोना दोनों पक्षों से उपहार में मिला था जो धीरेधीरे कब सास ने अपने कब्जे में ले लिया, उन्हें पता ही नहीं चला. माधुरी ने भी इसे अन्यथा नहीं लिया न ही ऐतराज जताया क्योंकि समारोहों में जाने से पहले गहने उन्हें पहनने को दे दिए जाते थे. व्यवसायी ससुर को एक बार घाटा हुआ तो यह सारा सोना बेच डाला गया. इस पर माधुरी स्वाभाविक रूप से आहत हुईं. वे कहती हैं,  ‘‘अगर घर में जरूरत थी तो बेचने में मैं कोई ऐतराज नहीं जताती पर मेरे सोने को बेचने से पहले मेरी मंजूरी ली जानी चाहिए थी जो नहीं ली गई. अब मेरे पास क्या रह गया? बदले में आर्टिफिशियल ज्वैलरी दे दी गई. पति से शिकायत की तो उन्होंने घर की जरूरत और प्रतिष्ठा का हवाला देते हुए कहा कि जैसे ही पैसे आएंगे फिर बनवा देंगे. बेकार हल्ला मचाने से क्या फायदा? इस से घर की बदनामी ही होगी.

यानी सोना महिलाओं का होते हुए भी उन का नहीं होता. इस की एक बेहतर मिसाल इन दिनों स्टार प्लस चैनल पर प्रसारित हो रहे धारावाहिक ‘मेरे अंगने में…’ दिखती है. यह कहानी मुगलसराय के मध्यवर्गीय कायस्थ परिवार की है, जिस में चालाक बूढ़ी सास की निगाहें बहू के सोने पर रहती हैं और वे इसे अपनी बेटी को दिलाने की साजिश रचती रहती हैं. दरअसल, यह कहानी हर दूसरे घर की है, जो आमतौर पर सामने नहीं आ पाती और आती भी है तो विवाद या विपत्ति के वक्त, जिस में सोने की असल मालकिन महिला के अपना ही सोना हासिल करने में पसीने छूट जाते हैं. भोपाल के एन.एच. 12 क्लब की अध्यक्षा अंशु गुप्ता बताती हैं कि सामाजिक चमकदमक और वास्तविकता में काफी फर्क है. महिलाएं ज्वैलरी की शौकीन होती हैं, यह सच है लेकिन इस पर हक उन का नहीं होता. घर के पुरुष जब चाहें इसे बेच देते हैं या गिरवी रख देते हैं. फिर ऐसे में यह महिलाओं की मिल्कीयत कहां रही?इशारा साफ है कि महिलाओं की आर्थिक स्थिति और हैसियत दोनों ठीक नहीं हैं. विपत्ति में खासतौर से पति की असमय मौत के बाद गुजरबसर के लिए सोना ही किसी महिला का बड़ा सहारा होता है. लेकिन इसे अगर पहले ही ठिकाने लगा दिया गया हो या हड़प लिया गया हो तो विधवा के पास पैसों के नाम पर कुछ नहीं रह जाता. इसलिए वह खुद को असहाय और निर्बल महसूस करती है.

तलाक के अधिकांश मामलों में सोना विवाद की एक बड़ी वजह बनता है. लेकिन कानूनी दबाव के चलते वर पक्ष इसे वधू को लौटाने को बाध्य रहता है. इस में भी पत्नी को यह साबित करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है कि उसे कितना सोना विवाह के समय उपहार में मिला था.

बढ़ेगी विपत्ति

दरअसल, महिलाओं के स्वर्णप्रेम के पीछे शौक कम असुरक्षा की भावना ज्यादा रहती है. पति अगर बेवक्त चल बसे तो पास रखा सोना ही उस के काम आता है. पति या पुरुषों की नजर में यह सोना एक तरह की पारिवारिक जमा पूंजी होता है. 46 वर्षीय रश्मि जैन की मानें तो करीब 10 साल पहले उन के दुकानदार पति का देहांत हुआ तो उन की जिंदगी में अंधेरा छा गया. हमदर्दी सभी ने दिखाई, पर जल्द ही असलियत सामने आ गई. आर्थिक मदद किसी ने नहीं की. ऐसे में उन का लगभग 1 किलोग्राम सोना काम आया जिसे बेच कर उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू किया. आज दोनों बच्चों की परवरिश करते हुए वे उन्हें बेहतर तालीम दिला रही हैं और खुद भी आत्मविश्वास से लबरेज हैं. ऐसा इसलिए कि सोना उन के पास था. ससुराल वालों ने चालाकी दिखाते हुए जायदाद में से रश्मि को हिस्सा नहीं दिया. रश्मि बताती हैं, ‘‘घर से अलग नहीं किया यही एहसान काफी था वरना ससुर की क्व3 करोड़ की जायदाद में मेरा तो लगभग क्व50 लाख का हिस्सा बनता है.’’जाहिर है कोई भी विधवा ससुराल वालों से विवाद नहीं चाहती, क्योंकि इस का खमियाजा भी उसे ही भुगतना पड़ता है. होशंगाबाद की एक विधवा सुषमा सक्सेना कहती हैं, ‘‘पति की मौत के बाद ससुराल वालों ने सारा सोना हड़प लिया, जिस की कीमत क्व15 लाख के करीब थी. पति की मौत से मैं टूट गई थी, इसलिए अपना यह हक नहीं ले सकी.’’

जीएमएस का इन सामाजिक हालात से गहरा तअल्लुक है. अब होगा यह कि महिलाओं से सीधे सोना छीनने की हिम्मत न कर पाने वाले पुरुष उसे गोल्ड सेविंग अकाउंट में रखेंगे यानी स्वीकृत और आभिजात्य तरीके से छीन कर बेचेंगे, क्योंकि गहनों को पोटली में दबाए सुनार या साहूकार के पास जाने की उन की झिझक खत्म हो जाएगी. मसौदे में कहीं इस बात का उल्लेख सरकार ने नहीं किया है कि अगर जमा किया जा रहा सोना महिला का है, तो खाता उसी के नाम से खोला जाए या उस से सहमति पत्र लिया जाए. जिस से उस का आर्थिक हित प्रभावित न हो. बारीकी से देखा जाए तो इस योजना ने सोने का मालिक पुरुषों को बना दिया है. विपत्ति और जरूरत के वक्त जो सोना महिला के काम आना चाहिए वह बैंक में पड़ा होगा और पुरुष के नाम हुआ तो बैंक या सरकार उसे थाल में सजा कर वापस नहीं कर देगी. तमाम कठिन औपचारिकताएं महिला को पूरी करनी होंगी. उस के बाद भी वह अपना सोना हासिल कर पाएगी इस की गारंटी नहीं. कोई वजह नहीं कि जीएमएस को सूदखोरी का सरकारी संस्करण न कहा जाए.

अभी भी महिलाओं के पास या उन के नाम संपत्ति न के बराबर होती है. उन का जो कुछ भी होता है वह उन के पास रखा सोना होता है. यह भी इस योजना के नाम पर छिनेगा तो हालात क्या होंगे, सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. पुरुषप्रधान भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति नाममात्र की सुधरी है. हालत तो यह है कि नौकरीपेशा महिलाओं का अपनी ही सैलरी पर पूरा हक नहीं होता. वे कौस्मैटिक, मोबाइल, पैट्रोल और दूसरी जरूरत पर ही खर्च कर पाती हैं. फिर भी चुप रहती हैं, क्योंकि जिंदगी आखिरकार सुकून से कट रही होती है. मगर अब यह सुकून कभी भी छिन सकता है. ऐसे में उन्हें सोना अपने कब्जे में ही रखना चाहिए, जिस से भविष्य आर्थिक तौर पर सुरक्षित रहे. उपहार में मिला सोना उन की संपत्ति है. जब एक आईएएस अफसर को उस की पत्नी अपने गहनों की बाबत नहीं बता रही है तो तय है वह अपने आर्थिक अधिकारों के प्रति जागरूक है. यह समझदारी हर महिला को दिखानी होगी नहीं तो यह स्कीम उन के हक पर डाका डालने के लिए डाकू बन कर लागू हो चुकी होगी, जिस का फायदा उठाते हुए पुरुष उन्हें बहलाएंगेफुसलाएंगे और इस पर भी न मानीं तो प्रताडि़त भी कर सकते हैं.

बेहतरीन अदाकारा हैं वे

कंगना के इस साल के खाते में पहली फ्लौप फिल्म ‘कट्टीबट्टी’ आई है, लेकिन उन की इमेज पर इस का कोई असर नहीं पड़ने वाला, क्योंकि उन की तारीफ करने वालों में फैंस के अलावा अब निर्देशकों का नाम भी जुड़ गया है. आजकल निर्मातानिर्देशक विशाल भारद्वाज कंगना की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं. कंगना विशाल की फिल्म ‘रंगून’ कर रही हैं.

 

दिमागी शक्ति बढ़ाता आहार

हमारे मस्तिष्क का अनगिनत तंत्रतंत्रिकाओं का विस्तृत नैटवर्क एक कंप्यूटर के समान है, जो हमें निर्देश देता है कि किस प्रकार विभिन्न संवेदों, जैसे गरम, ठंडा, दबाव, दर्द आदि के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त की जाए. इस के साथ ही यह बोनसस्वरूप हमें भावनाओं व विचारों को सोचनेसमझने की शक्ति भी देता है. हम जो चीज खाते हैं, उस का सीधा असर हमारे मस्तिष्क के कार्य पर पड़ता है. यह सिद्ध किया जा चुका है कि सही भोजन खाने से हमारा आई.क्यू. बेहतर होता है, मनोदशा (मूड) अच्छी रहती है, हम भावनात्मक रूप से ज्यादा मजबूत बनते हैं, स्मरणशक्ति तेज होती है व हमारा मस्तिष्क जवान रहता है. यही नहीं, यदि मस्तिष्क को सही पोषक तत्त्व दिए जाएं तो हमारी चिंतन करने की क्षमता बढ़ती है, एकाग्रता बेहतर होती है व हम ज्यादा संतुलित व व्यवस्थित व्यवहार करते हैं.

ऐजिंग का असर

ऐजिंग का हमारी सीखने की शक्ति व याददाश्त पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. कई शोधों से यह बात सामने आई है कि मुक्त मूलकों (फ्री रैडिकल्स) द्वारा होने वाले ‘औक्सीडेटिव डैमेज’ व ‘ब्रेन स्टारवेशन’ दिमागी कमजोरी के 2 मुख्य कारण हैं. लेकिन अन्य अंगों, जैसे हृदय, लीवर आदि की तरह हम अपने मस्तिष्क को भी स्वस्थ रख सकते हैं. ऐजिंग की प्रक्रिया को स्लो करने व मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए ब्रेन बूस्टिंग यानी दिमागी शक्ति को बढ़ाने वाला ऐसा आहार लें, जो विटामिंस, ऐंटीऔक्सीडेंट्स, ओमेगा-3 फैटी ऐसिड्स व डी.एच.ए. से भरपूर हो. यह आहार न सिर्फ ऐजिंग की प्राकृतिक प्रक्रिया को संतुलित करने में सहायक होगा, बल्कि डिप्रैशन से भी सुरक्षा प्रदान करने में मदद करेगा.

निम्न फलों और खाद्यपदार्थों पोषक तत्त्वों से भरपूर होने की वजह से बहुत लाभकारी हैं-

सेब: सेब में विटामिन सी के साथसाथ ‘कुएरसीटिन’ नामक पदार्थ भी पाया जाता है, जो एक ‘फ्लावोनोइड’ है (फ्लावोनोइड पौधों में पाए जाने वाले पिगमेंट होते हैं, जो पत्तियों को पीला, लाल, नीला या अन्य रंग देते हैं). विटामिन सी व ‘कुएरसीटिन’ दोनों ही ऐंटीऔक्सीडेंट की तरह कार्य करते हैं. ये मुक्त मूलकों के द्वारा किए जाने वाले नर्व डैमेज को रोकते हैं. पार्किंसंस व एल्जिमेर्स जैसी न्यूरोडीजनरेटिव डिजीज से सुरक्षा करते हैं. इस बात का ध्यान रखें कि सेब के छिलकों में कीटनाशक के अंश पाए जाते हैं. अत: और्गेनिक तरीके से उगाए गए सेब खरीदें अथवा सेब को अच्छी तरह धो कर प्रयोग में लाएं. छिलके न निकालें, क्योंकि इन में कई सारे पोषक तत्त्व पाए जाते हैं.

टिप: एप्पल शेक बनाएं व उस में 1/4 चम्मच दालचीनी का पाउडर डालें. इस से न सिर्फ स्वाद में वृद्धि होगी, बल्कि दालचीनी में प्रचुर मात्रा में ऐंटीऔक्सीडेंट तत्त्व होने की वजह से यह बच्चों के लिए लाभकारी भी होगा.

काले अंगूर: काले अंगूरों के बीज में ‘गामा लिनोलिक ऐसिड’ नामक फैटी ऐसिड पाया जाता है, जोकि एक ओमेगा-6 फैटी ऐसिड है. यह स्ट्रैस के दुष्प्रभाव से भी ब्रेन की रक्षा करता है. अन्य फलों की तरह इस में भी विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है.

टिप: बीज सहित इस का रस निकालें व प्रयोग करें.

हरी पत्तेदार सब्जियां: रक्त में लौह की कमी को कमजोर स्मरणशक्ति से जोड़ा गया है.  रक्त में लौह की कमी होगी, तो रक्त कोशिकाएं कम मात्रा में बनेंगी, जिस का अर्थ है मस्तिष्क तक कम मात्रा में औक्सीजन का पहुंचना और अधिक ‘औक्सीडेटिव स्ट्रैस’ होना. ऐसा न हो, इस के लिए हरी पत्तेदार सब्जियों, जैसे पालक, सरसों, मेथी, शलगम के पत्तों, लेट्स, पत्तागोभी व अन्य मौसमी सब्जियों का प्रयोग करें. इन में प्रचुर मात्रा में ‘केरोटीनोइड्स’ भी पाए जाते हैं, जोकि ‘ऐंटीऔक्सीडेंट्स’ हैं. 

टिप: सलाद में अच्छी तरह से साफ व धुली हुई पत्तेदार सब्जियां उपयोग में लें, औलिव औयल में सिरका या नीबू का फ्रैश रस डाल कर प्रयोग करें.

ग्रीन टी: पानी के बाद ग्रीन टी को दुनिया का सब से बेहतरीन पेयपदार्थ माना जाता है. दिन भर में 2 कप ग्रीन टी न सिर्फ आप की स्मरणशक्ति को बढ़ाएगी, बल्कि आप की एकाग्रता को भी बेहतर करेगी. ग्रीन टी में ‘पौली फिनौल्स’ प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जो शक्तिशाली ‘ऐंटीऔक्सीडेंट्स’ हैं और ब्रेन की रक्षा करते हैं.

डार्क चौकलेट: डार्क चौकलेट में पाए जाने वाले ‘प्रोसायनेडीस’ व ‘एपीकेटचिन’ नामक फ्लावोनोइड्स मस्तिष्क की तरफ रक्त प्रवाह को बेहतर बनाते हैं. मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक पोषक तत्त्वों की आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं.

हैल्दी औयल: औलिव औयल, अलसी का तेल, सफेद सरसों का तेल, कच्ची घानी सरसों का तेल व सनफ्लावर औयल में ओमेगा- 3 फैटी ऐसिड पाया जाता है. यह एक प्रकार का आवश्यक ‘फैटी ऐसिड’ होता है, जो हमारे शरीर में नहीं बनता, इसलिए इसे डाइट के द्वारा लेना आवश्यक है. यह हमारी कोशिकाओं की टूटफूट की रिपेयर, उन के उचित रखरखाव, हमारे शरीर से हानिकारक पदार्थों को निकालने और उचित पोषण प्राप्त करने के लिए जरूरी है. चूंकि इन औयल्स का स्मोकिंग पौइंट कम होता है, इसलिए इन में पाया जाने वाला फैटी ऐसिड उच्च तापमान पर नष्ट हो जाता है. इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि इन्हें डीप फ्राइंग के लिए प्रयोग न करें. इन का प्रयोग सलाद ड्रैसिंग करने के लिए करें या फिर इन्हें कच्चा ही इस्तेमाल करें.

फिश: कई शोधों से पता चला है कि यदि आप डाइट में मछली का सेवन नियमित रूप से करते हैं तो आप के मस्तिष्क पर ऐजिंग का इतना प्रभाव नहीं पड़ता. सालमोन, सारडिंस, ट्यूना, हैलिबट, कोड, वाइट फिश आदि में प्रचुर मात्रा में डी.एच.ए. व ओमेगा-3-फैटी ऐसिड पाए जाते हैं. यह एक प्रकार की उत्तम वसा है. यह न सिर्फ हमारे मस्तिष्क को स्वस्थ रखती है, बल्कि हमारे हृदय के लिए भी अति फायदेमंद है.

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