अस्थमा : कैसे हो उखड़ती सांसों पर नियंत्रण

विश्व में करीब 30 करोड़ लोग दमा या अस्थमा की समस्या से ग्रसित हैं. अस्थमा की बीमारी व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामुदायिक तीनों स्तरों पर लोगों को प्रभावित करती है. चौंकाने वाली बात तो यह है कि बच्चे भी इस बीमारी का तेजी से शिकार होे रहे हैं.

नियंत्रण मुमकिन

कुछ बातों पर विशेष ध्यान दिया जाए, तो निस्संदेह नियंत्रण संभव है. गोल्ड गाइडलाइन के सर्वे के अनुसार, इस बारे में मुंबई के लीलावती अस्पताल के रेस्पिरेटरी विभाग के प्रमुख डा. जलील डी. पारकर का कहना है कि अस्थमा बढ़ने की 3 वजहें प्रमुख हैं-

प्रदूषण

स्ट्रैस फैक्टर

जीवनशैली

दूषण भी कई तरह के हैं, जिस में गाडि़यों से निकला धुआं, उद्योगधंधे से निकला प्रदूषण, साफसफाई की कमी आदि प्रमुख हैं. बड़े शहरों में गांव की तुलना में अस्थमा के मरीज अधिक हैं. दूसरा सब से महत्त्वपूर्ण कारण है तनाव, जो आजकल व्यक्तियों में अधिक है. चाहे वयस्क हो या बच्चा, हर कोई इस दौर से गुजर रहा है. वयस्कों में काम का तनाव अधिक है, जबकि बच्चों में कामयाबी, शिक्षा आदि का दबाव अधिक है. आज का युवा स्कूल से ले कर घर, कंप्यूटर और एसी कमरे तक ही अपनेआप को सीमित कर लेता है.

मुख्य वजह

आज की जीवनशैली बहुत बदल चुकी है. खानेपीने की आदत बिगड़ चुकी है. लोग हैल्दी फूड से अधिक जंकफूड पर निर्भर करने लगे हैं. हालांकि अस्थमा की दवाएं उपलब्ध हैं, पर इस के साइडइफैक्ट भी बढ़ने लगे हैं. पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में यह बीमारी अधिक पाई जाती है. इस की मुख्य वजह बताते हुए डा. पारकर कहते हैं कि महिलाओं में हारमोनल बदलाव और शारीरिक संरचना ऐसी होती है कि वे जल्द ही इस की गिरफ्त में आ जाती हैं. दरअसल, उन की श्वास नलिकाएं पुरुषों की अपेक्षा पतली होती हैं, जो किसी भी प्रकार की एलर्जी से जल्द संकुचित हो जाती हैं.

सचेत रहना जरूरी

अस्थमा को 2 भागों में बांटा जाता है. पहला, चाइल्ड अस्थमा, जो 1 से 15 वर्ष की उम्र तक रहता है. इस में 33% बच्चे 15 वर्ष तक आतेआते ठीक हो जाते हैं. 33% को पूरी जिंदगी अस्थमा रहता है, जबकि 33% बच्चों की बीमारी 18 वर्ष के बाद अधिक बढ़ जाती है. आजकल अस्पतालों में लंग्स फंक्शनल टैस्ट किया जाता है, जिस से अस्थमा के स्तर का पता लगता है. वह माइल्ड, मौडरेट और सीवियर कैटिगरी के अंतर्गत होता है, इसलिए कभी भी इस का शक होने पर आप इस का टैस्ट करवा सकते हैं, जो अधिक खर्चीला नहीं है. दूसरी कैटिगरी वयस्कों की है, जो 18 साल के बाद की होती है. उन में अस्थमा वंशानुक्रम के साथसाथ परिस्थितियों से जन्म लेता है और अंत तक चलता है. अस्थमा काबू में रहे, इस के लिए सचेत रहना बेहद जरूरी है-

जानवरों के पंख, रोएं या बाल से बचें.

  1. सीलन या फफूंद से बचें.
  2. सिगरेट या किसी प्रकार के धुएं से बचें.
  3. पेंट या रसोई की तीखी गंध, वायु प्रदूषण व सुगंधित उत्पादों से बचें.
  4. तनाव या भावनात्मक मनोभाव से भी बचें.
  5. ऐस्पिरिन जैसी दवाओं से बचें.
  6. किसी भी तरह के नशे आदि से दूर रहें. कोई भी नशा अस्थमा से ग्रस्त व्यक्ति के लिए जानलेवा हो सकता है.

ध्यान रखें

बदलता मौसम अस्थमा के रोगियों को अपनी ओर जल्दी प्रभावित करता है, जिस की वजह से उन की समस्याएं और भी बढ़ जाती हैं. इसलिए अस्थमा के शिकार लोगों के लिए जरूरी है कि बदलते मौसम में अपने पहनावे के साथसाथ खानपान का भी खास ध्यान रखें, खासतौर पर सर्दियों के मौसम में. केवल वातावरण ही नहीं बल्कि गलत खानपान भी उन की परेशानियों को बढ़ा सकता है.पेश हैं, कुछ टिप्स जिन्हें अपनी जीवनशैली का हिस्सा बना कर बदलते मौसम में अस्थमा के असर को कम किया जा सकता है-

खाने में सिर्फ वही खाएं जो सुपाच्य हो. बाहर का खाना या अधिक तेलमसालों वाला तलाभुना खाना गैस विकार उत्पन्न करता है और पेट व सीने में जलन पैदा करता है, जो अस्थमा से प्रभावित लोगों के लिए नुकसानदायक हो सकता है.

रात में व सुबह दही, साग, मशरूम व केले का सेवन न करें. इन से सीने में जकड़न बढ़ सकती है.

फ्रिज में रखे खानेपीने के सामान को तुरंत निकाल कर खाने की बजाय कुछ देर बाहर के तापमान में रख कर खाएं.

मसूर व मूंग की दालों का सेवन फायदेमंद है.

यदि घर के आसपास का वातावरण प्रदूषित न हो, तो ऐसे कमरे में सोएं जहां ताजा हवा का आवागमन हो.

कोहरे में निकलने से बचें. सुबह घर में हलकाफुलका व्यायाम अवश्य करें ताकि फेफड़ों को ताजा हवा के साथ औक्सीजन भी मिल सके.

डाक्टर के परामर्श से अपने पास एक पफ रखें जो आवश्यकता पड़ने पर आप के काम आ सके.

हो सकता है उपयोगी

यों तो अस्थमा की रोकथाम के लिए एलोपैथ, होम्योपैथ व आयुर्वेद में अलगअलग तरह के उपचार उपलब्ध हैं. लेकिन हाल ही में आयुर्वेद और यूनानी दवाओं के लिए प्रयोग में आने वाले वसाका पौधे को इस की रोकथाम के लिए उपयोगी पाया गया है. मैदानी इलाकों व हिमालय की तलहटी वाले क्षेत्रों में उगने वाली इस वनस्पति पर रिसर्च अभी जारी है. ऐसा माना जा रहा है कि इस पौधे की पत्तियों से निकलने वाला तेल और रसायन अस्थमा के नियंत्रण में उपयोगी सिद्ध होंगे. वसाका का और भी तरीकों से इस्तेमाल किया जाता है-

 इस की पत्तियों का जूस कफ और सांस लेने में होने वाली तकलीफों को दूर करने में सहायक है.

हाई ब्लडप्रैशर वालों के लिए भी इस की पत्तियां बेहद लाभदायक हैं.

पाइरिया और मसूड़ों से होने वाले रक्तस्राव को रोकती हैं.

मांसपेशियों में ऐंठन में भी राहत देती हैं.

मेरा खुद का स्टाइल है : दीपिका पादुकोण

फिल्म ‘ओम शांति ओम’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने वाली दीपिका पादुकोण ने मेहनत और लगन से बौलीवुड में अपनी अलग पहचान बनाई है. बैडमिंटन खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण की बेटी, अभिनेत्रियों में सब से ज्यादा आकर्षक और चर्चित दीपिका का पैशन अभिनय करना है. इसीलिए बैडमिंटन के खेल में अपना कैरियर न बना कर वे फिल्मों में आईं. खुद को शीर्ष अभिनेत्रियों में गिने जाने का श्रेय दीपिका अपनी मेहनत और अच्छे निर्देशकों के साथ को देती हैं, जिन्होंने उन्हें हर उस किरदार के काबिल समझा, जो उन्हें मिला. दीपिका पादुकोण खुद को स्टाइल आइकोन नहीं मानतीं, क्योंकि वे सिंपल रहना पसंद करती हैं. दीपिका पादुकोण से बात करना बेहद रोचक रहा. पेश हैं, उसी बातचीत के कुछ खास अंश:

आप अपने जीवन में किसे स्टाइल आइकोन मानती हैं?

अपनी मां को. मेरी जिंदगी पर उन का बहुत प्रभाव रहा. कहां क्या पहन कर जाना है, हमेशा मां ही बताती थीं. वे मुझे आज भी अपनी राय देती हैं.

कुछ लोग कहते हैं कि दीपिका स्टाइलिश हैं, तो कुछ कहते हैं फैशनेबल हैं. कुछ का कहना है कि दीपिका सिंपल हैं. आप खुद कैसे को डिफाइन करेंगी?

मैं स्टाइलिश नहीं हूं. मैं हमेशा साधारण ड्रैस पहनती हूं. मैं बेसिक से दूर नहीं भागती, जींस व टीशर्ट कुछ भी हो मेरा खुद का स्टाइल है. मुझे फैशन का अधिक ज्ञान नहीं है. बहुत सारे लोग स्टाइल में रुचि लेते हैं. फैशन के नएनए ट्रैंड के बारे में पढ़ते हैं. लेकिन मैं ऐसा कुछ नहीं करती. सब कुछ प्रोफैशनल्स ही करते हैं.

अगर शूटिंग के लिए जाती हूं तो भी कोई प्लान नहीं करती. जो भी पहनने की इच्छा होती है पहन लेती हूं यानी यह ज्यादातर मेरे मूड पर निर्भर करता है. कभी अचानक किसी रंग की ड्रैस पहनने की इच्छा होती है, तो उसे पहन लेती हूं.

आप के हिसाब से कौन सी ऐक्सैसरी व्यक्ति को स्टाइलिश बना सकती है. सनग्लासेज को किस श्रेणी में रखना चाहेंगी?

ऐक्सैसरीज मैं नहीं पहनती. लेकिन इतना जरूर कहूंगी कि अच्छी हेयरक्लिप, अच्छा स्कार्फ, गौगल्स, हैंडबैग आदि किसी को भी स्टाइलिश बना सकते हैं. सनग्लासेज को फैशन कहा जाता है. लेकिन इस के कई फायदे हैं. फैशन के साथसाथ यह धूलमिट्टी प्रदूषण से भी आंखों को बचाता है. सूर्य की हानिकारक किरणों से भी आंखों की सुरक्षा करता है. मेरे वार्डरोब में सही लिंजरी, अच्छी एक जोड़ी जींस की, अच्छी साड़ी, बेसिक टीशर्ट आदि जरूर मिलेंगे. मुझे सफेद रंग बहुत पसंद है. मैं ने अपनी मां को क्रीम लगाते और सफेद रंग के परिधान पहनते अधिक देखा है. मैं ने उन्हें कभी ब्राइट कलर पहनते नहीं देखा. इसीलिए  वही मेरा भी स्टाइल बन गया.

सही पोशाक का चयन करना क्यों आवश्यक है?

मैं बहुत लंबी हूं. हमेशा आरामदायक कपड़े पहनना पसंद करती हूं. कोई भी पोशाक सही या गलत नहीं होती. यह आप के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है. रैड कारपेट पर जाते वक्त अभिनेत्रियां ज्यादातर गाउन पहनना पसंद करती हैं पर मैं साड़ी पहनना पसंद करती हूं. अगर पोशाक आरामदायक है तो आप का आत्मविश्वास भी बढ़ता है.

आजकल सभी तनाव में रहते हैं. सभी अपने तनाव पर बात भी करते हैं. आप अपने तनाव को कैसे दूर करती हैं?

यह सही है कि आजकल अधिकतर लोग तनाव में जीते हैं. फिर चाहे वह किसी भी तरह का हो. यह स्वास्थ्य से जुड़ा बड़ा मुद्दा है, जिस पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है. इस बीमारी से जूझ रहे लोगों की मदद के लिए मैं ने एक फाउंडेशन ‘द लाइव लव लाफ’ की स्थापना ट्विटर पर की है. इस में समस्या से ग्रस्त लोगों की हैल्प की जाएगी. मैं तनाव को अधिक समय तक अपने पास नहीं रहने देती. तनावग्रस्त होने पर परिवार के साथ समय बिताती हूं.

अगर आप को कुछ बदलने की पावर मिले तो क्या बदलना चाहेंगी?

बदलने की कोशिश में तो मैं हमेशा कुछ न कुछ करती रहती हूं. फिर चाहे वह फिल्मों के जरीए हो या अपनी स्टेटमैंट के द्वारा. लेकिन बहुत सारी पावर नहीं चाहती. लोगों की मानसिकता बदले, यही कोशिश करती हूं. मैं अपनी किसी चौइस को ले कर रिग्रेट नहीं करती.

फिल्म इंडस्ट्री जैसी दिखती है वैसी है नहीं : मधुरिमा तुली

फिल्म ‘बेबी’ में अक्षय कुमार की पत्नी की भूमिका निभा कर चर्चा में आईं अभिनेत्री मधुरिमा तुली करीब 6 साल से फिल्म इंडस्ट्री में हैं. ‘मिस उत्तरांचल’ से अभिनेत्री बनना उन के लिए आसान नहीं था. फिर भी विज्ञापन, हिंदी फिल्मों व टीवी धारावाहिकों में काम करने के अलावा उन्होंने दक्षिण की कई फिल्मों में भी काम किया. साधारण स्वभाव की मधुरिमा को फिल्मों में अभिनय का शौक तो था पर कोई गौडफादर न होने की वजह से अभिनय की दुनिया में आने से डरती थीं. लेकिन ‘मिस उत्तरांचल’ के खिताब ने उन्हें अभिनय के क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी. इस समय वे जी टीवी के रिऐलिटी शो ‘आई कैन डू दैट’ में एक प्रतिभागी हैं. उन से मिलना व बातचीत करना बेहद रोचक था. पेश हैं बातचीत के खास अंश:

आप अपने बारे में विस्तार से बताएं. इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा कहां से मिली?

मेरा जन्म झारखंड के धनबाद में हुआ है. मेरे पिता टाटा स्टील में काम करते थे. उन का हमेशा ट्रांसफर हुआ करता था. इस वजह से मैं जमशेदपुर, ओडिशा, देहरादून आदि कई स्थानों पर गई. देहरादून में पढ़ाई के दौरान मैं ने ‘मिस उत्तरांचल’ कौंटैस्ट में भाग लिया और 200 प्रतिभागी लड़कियों वाले इस इवेंट में मैं मिस उत्तरांचल बनी. मैं जीत गई तो मौडलिंग की तरफ मेरी रुचि बढ़ी, आत्मविश्वास बढ़ा और मुंबई आने की इच्छा हुई. लेकिन मां ने पढ़ाई पूरी करने की सलाह दी. मैं उस समय केवल 15 वर्ष की थी. पढ़ाई खत्म कर के मैं मुंबई आ कर किशोर नमित कपूर के यहां कोर्स किया और इस क्षेत्र में आ गई.

कितना संघर्ष रहा?

पहले हर स्टूडियो व प्रोडक्शन हाउस में जा कर अपना फोटो देती रही, तो कई औडिशन भी दिए. फिर धीरेधीरे विज्ञापनों में फिर कुछ धारावाहिकों में छोटी भूमिकाएं मिलने लगीं. लेकिन मुझे जो भी काम मिला मैं करती गई. मैं ने ‘झांसी की रानी’, ‘रंग बदलती ओढ़नी’, ‘परिचय’, ‘कुमकुम भाग्य’ आदि टीवी शोज में काम किया.

फिल्मों में काम कैसे मिला?

मेरा कोई गौडफादर तो था नहीं, जो मुझे आगे बढ़ने में मदद करता. मेरा फिल्म ‘बेबी’ के लिए औडिशन हुआ तो निर्देशक ने मुझे चुन लिया. रोल छोटा था पर अक्षय के अपोजिट था. इस तरह काम का सिलसिला चल पड़ा.

परिवार का सहयोग कैसा रहा?

मां और पिता का सहयोग था पर बूआ मना करती थीं. मैं ने परिवार से 1 साल का समय मांगा तो उन्होंने इजाजत तो दी ही आर्थिक सहायता भी की. जब आप किसी नए शहर में आते हैं, तो आर्थिक समस्या सब से अधिक रहती है. पिताजी उस समय हर महीने 7 हजार भेजते थे. मैं उसी में गुजारा करती थी और वे मेहनत से काम करने के लिए प्रेरित करते थे. संघर्ष के दिनों में ब्रैड और अचार खा कर भी गुजारा करना पड़ा. उन दिनों को जब मैं याद करती हूं तो लगता है कि वाकई मैं ने काफी संघर्ष किया है. लेकिन मातापिता का सहयोग हर पल रहा. वे हमेशा प्रोत्साहन देते थे.

‘कास्टिंग काउच’ शब्द से आप कितनी परिचित हैं? क्या आप को उस का सामना करना पड़ा और उस से आप कैसे बाहर निकलीं?

फिल्म इंडस्ट्री में खराब और अच्छे दोनों तरह के लोग हैं. लेकिन यहां शोषण करने वाले अधिक हैं. शुरू में लोग कहते थे कि आप पैसे लगा दो, फिल्म बना देंगे. कुछ ने कहा कि आप इतनी सुंदर हैं, आप किसी बड़े आदमी से क्यों नहीं मिलतीं? कुछ ने यह तक कहा कि हमें हीरोइन को अंदर से देखना है. ये बातें मैं किसी से शेयर नहीं कर पाती थी. बस खुद से लड़ती थी. मैं मातापिता को इसलिए नहीं बताती थी कि उन्हें चिंता होगी. फिर भी पिता कई बार परेशान होते थे. पर मेरी मां हमेशा सकारात्मक सोच रखती थीं. वे कहती थीं कि अपना ‘सैल्फ स्टीम’ बनाए रखो, कोई अच्छा अवश्य मिलेगा. हर क्षेत्र में कुछ बुरे लोग अवश्य मिलते हैं. मैं भी उसी बात पर कायम रही.अभी मेरे साथ मेरा पूरा परिवार मुंबई में रहता है. यहां कोई रातोंरात स्टार बनता है, तो कुछ को सालोंसाल मेहनत करनी पड़ती है. मैं ऐडवैंचरस भी हूं. मेरी मां और मैं ने पर्वतारोहण किया है, तो ‘आई कैन डू दैट’ में मैं ने कई खतरनाक स्टंट भी किए हैं. 

डेटिंग को ‘हां’ शादी को ‘ना’

इश्कजादे बौय अर्जुन कपूर का हाल भी कुछकुछ आलिया की ही तरह है. जिस के साथ वे काम करते हैं, उस के साथ उन के रोमांस के चर्चे जुड़ने लगते हैं. पहले परिणीति, उस के बाद आलिया और बाद में सोनाक्षी के साथ उन का नाम खूब उछाला गया. पिछले दिनों जैकलीन के साथ भी अर्जुन के रिश्ते की खबरें आई थीं. पर अर्जुन ने सभी को कोरी अफवाह बताया और कहा कि मैं अभी बिलकुल सिंगल हूं. मैं किसी से मिलता भी हूं तो सिर्फ डेटिंग के लिए शादी के लिए नहीं, क्योंकि शादीविवाह के लिए मैं अभी बहुत छोटा हूं.

सारी कायनात हिलाने आई हूं मैं

फिल्म ‘ग्रैंड मस्ती’ के बाद तो यही लगता था कि दिव्या भारती की यह छोटी बहन बौलीवुड में शायद कुछ ब्लास्ट करे. पर ‘ग्रैंड मस्ती’ के बाद आई फिल्मों  में तो वे केवल एक बदन दिखाऊ नायिका ही बन पाईं, जिस का ऐक्टिंग से दूरदूर तक का नाता न हो. जब कायनात ने यहां डैब्यू किया था, तो कहा था कि यहां मैं अपने नाम के अनुसार कायनात हिलाने आई हूं. पर वे यह भूल गईं कि यहां लंबे समय तक टिके रहने के लिए अच्छे अभिनय की भी जरूरत होती है. बदन दिखाने के दम पर आईं कई तारिकाएं एक बार झलक दिखा कर कहां गुम हो गई हैं, यह किसी को पता नहीं.

घर में छिपे भेड़ियों से निबटें कैसे

‘‘बलात्कार का अपराध मूलतया पीडि़ता के मानव अधिकारों पर आघात है. यह उस के व्यक्तित्व पर आघात है. यह उस के व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्र अस्तित्व पर स्थायी अंकुश लगा देता है. सभ्य समाज में हरेक को दूसरे व्यक्ति की अस्मिता का आदर करने का कर्तव्य है और किसी को भी दूसरे के शारीरिक क्षेत्र में अतिक्रमण का अधिकार नहीं है. ऐसा करना मात्र एक अपराध ही नहीं है, यह पीडि़ता के मस्तिष्क पर जख्म भी छोड़ जाता है. जो इस तरह के (बलात्कार के) अपराध करता है वह इंडियन पीनल कोड के अंतर्गत तो दंडनीय है ही, वह पीडि़ता के बराबरी के अधिकार और व्यक्तिगत पहचान के अधिकार पर भी चोट पहुंचाता है, जो पीडि़ता के कानूनी ही नहीं संवैधानिक अधिकार भी हैं.’’

ये शब्द हैं सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश दीपक मिश्रा के, जिन्होंने पंजाब के एक मामले में भानजी के साथ मामा व उस के सहयोगी द्वारा बलात्कार करने पर अपराधी मानने के फैसले व सजा कम करने की अपील को ठुकराते हुए कहे. आरोपी अदालत में यह कहते हुए नहीं आए कि बलात्कार रंजिश में हुआ. वे यह कह रहे थे कि 2000 के आसपास जब यह गुनाह रिपोर्ट किया गया था, तब पीडि़ता 16 साल से ऊपर की थी जबकि पीडि़ता के पिता का कहना था कि वह 14 साल से कम की थी.सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात को गंभीरता से लिया कि लड़की के प्यार व विश्वास का दुरुपयोग उस के मामा ने ही किया जिस पर लड़की बेझिझक विश्वास कर सकती थी. यह अकेला मामला नहीं है. घरेलू बलात्कारों की संख्या देश में कहीं ज्यादा है बजाय निर्भया या उबर जैसे कांडों के. असल में घर में बलात्कार करने के बाद बच निकलने की आदत ही मर्दों को शेर बना डालती है और वे हर किसी पर जोरआजमाइश करने लगते हैं.

बलात्कार का असल कारण है कि देश में चाहे अश्लील साहित्य न बिकता हो, अश्लील गालियों पर कोई प्रतिबंध नहीं है. इन का धड़ल्ले से इस्तेमाल करा जाता है और औरतों को ले कर अपना बदला लेने की आदिम युग की भावनाओं को आज भी जिंदा रखा जा रहा है. समाज में ‘हायहाय बलात्कार’ तो बहुत होता है पर ‘हायहाय मांबहन की गालियां’ बिलकुल नहीं होता. उलटे गालियां देना बड़प्पन माना जाता है. न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने घरेलू बलात्कार को जघन्य अपराध का दर्जा दे कर और सजा तक को कम करने की बात ठुकरा कर सही किया है. घर की चारदीवारी तो हर लड़की के लिए सुरक्षा का कवच होनी चाहिए. सख्त कानून मानसिकता नहीं बदलते पर वे दहशत जरूर पैदा करते हैं. अफसोस यही है कि मामला जो शायद 2000 आसपास हुआ 2015 तक अदालतों में चलता रहा. अपराधी को हर समय लगता रहा कि वह आज छूटेगा, कल छूटेगा. उसे अपने अपराध पर ग्लानि होने के बजाय छूटने की आस रही, जो अपनेआप में गलत है.

दिखें हर उत्सव में आकर्षक

अकसर हर महिला को यह कहते सुना जाता है कि आज उस के पास पहनने के लिए कुछ नहीं है. भले ही उस का वार्डरोब यानी अलमारी कपड़ों से भरी पड़ी हो. ईमानदारी से कहें तो आप को आए दिन नए कपड़ों की आवश्यकता नहीं होती. अगर आप अलग तरह से ऐक्सैसरीज का इस्तेमाल करें तो आप जींस और टीशर्ट के एक ही जोड़े का इस्तेमाल एक दिन अलग बैग ले कर कर सकती हैं, तो दूसरे दिन थोड़ी हैवी ज्वैलरी का इस्तेमाल कर. अपनी अलमारी में रखे कपड़ों के साथ अगर जंचने वाली ऐक्सैसरीज का इस्तेमाल किया जाए तो आप रोज अलग दिख सकती हैं.

ज्वैलरी

महज एक आभूषण के इस्तेमाल से भी अपने पहनावे को आकर्षक बनाया जा सकता है. अपनी पोशाक के लुक को संपूर्ण बनाने के लिए ज्वैलरी का प्रयोग किया जा सकता है. आप चाहें तो स्टड के जोड़े, इयर कफ और डैंगलर्स का इस्तेमाल कर सकती हैं. गले में पहनी जाने वाली ज्वैलरी, बे्रसलेट या उंगली में अच्छी डिजाइन वाली अंगूठी पहनने से साधारण कपड़ों में भी आप आकर्षक दिख सकती हैं. अच्छा होगा यदि आप छोटे आकार की ज्वैलरी का इस्तेमाल करें.

घड़ी

गौर करें कि कौन सी घड़ी आप पर फबती है. आप की घड़ी आप के अपने स्टाइल का आईना है. मैटल की पतली चेन वाली घड़ी अच्छी लगती है. वैसे बड़े डायल वाली रंगीन घड़ी भी आप के लुक को बेहतर बनाने में मदद करती है.

चश्मा

यह न सिर्फ आप के स्टाइल को बेहतर बनाता है, बल्कि आप की आंखों को सूर्य की हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से भी बचाता है. शानदार लुक के लिए आप कैट आईड मोनोक्रोम शेड का इस्तेमाल कर सकती हैं. बाइक पर आकर्षक दिखने के लिए सिंपल गोल्डन रिम्स ब्लैक ऐविएटर्स का इस्तेमाल किया जा सकता है.

बैल्ट

सुंदर बैल्ट के बगैर कोई भी वैस्टर्न पोशाक पूर्ण नहीं दिखती है. आप की अलमारी में अलगअलग चौड़ाई की कई बैल्टें होनी चाहिए, जो आप को पूरी तरह फिट आती हों. दुबली महिलाओं को अपनी ड्रैस पर चमकीले या मैटेलिक लुक वाली बैल्ट का इस्तेमाल करना चाहिए. औसत कदकाठी की महिलाओं को बड़ी और चौड़ी बैल्ट लगानी चाहिए. जींस व टीशर्ट के साथ मध्यम चौड़ाई वाली फन बकल बैल्ट का इस्तेमाल किया जा सकता है. अगर आप औफिस जाने के लिए बैल्ट लगाना चाहती हैं तो न्यूट्रल ब्राउन या ब्लैक लैदर बैल्ट सही रहेगी.

जूते और हैंडबैग

जब बात बैग की हो तो अपने शरीर के आकार और अवसर के हिसाब से बैग का चयन करें. चयन के लिए ढेरों विकल्प हैं- टोट्स, सैचेल्स, मैसेंजर बैग्स, क्रौस बौडी, स्लिंग्स, क्लचेज आदि. जब बात जूतों की आती है तो ऐसे जूतों का चयन करें, जो आरामदायक होने के साथसाथ आप के पहनावे के भी अनुकूल हों. आप जिस पार्टी या समारोह में जा रही हैं, उस के हिसाब से रंगों का चयन करें. उदाहरण के लिए न्यूट्रल कलर का बैग और मोनोक्रोम जूते पेशेवर लुक के लिए उपयुक्त हैं, जबकि पौप कलर्ड टाईअप स्टिलेटोज के साथ चमकीला बैग न सिर्फ आप की बोरिंग एलबीडी को नया रूप देगा, बल्कि आप के हौटनैस कुशैंट को भी कुछ हद तक प्रदर्शित करेगा. 

– भाव्या चावला

अस्थमा लाइलाज नहीं

स्वस्थ जीवन जीने के लिए निरोगी होना बहुत जरूरी है. पर आजकल बदलते वातावरण के कारण बढ़ते प्रदूषण और खानपान में मिलावट व शुद्धता की कमी के चलते अस्थमा की बीमारी लोगों को खूब हो रही है. यह बड़ों के साथसाथ बच्चों में भी तेजी से फैल रही है. अस्थमा रोग क्या है और इस की रोकथाम के क्या उपाय हैं इस बारे में बता रहे हैं साकेत सिटी हौस्पिटल के पल्मोनोलौजिस्ट डाक्टर प्रशांत सक्सेना:

अस्थमा के लक्षण

अस्थमा के लक्षण सभी में एक जैसे नहीं होते और कई लक्षण तो ऐसे हैं, जो अन्य श्वास संबंधी बीमारियों के भी लक्षण हैं. इन लक्षणों को अस्थमा के लक्षणों के रूप में पहचानना जरूरी है. सामान्य तौर पर अस्थमा के मरीजों में छाती में जकड़न, सांस छोड़ते समय एक विशेष प्रकार की ध्वनि का निकलना, रात में और सुबह कफ की शिकायत होना और श्वास नली में हवा का प्रवाह सही ढंग से न होना जैसे प्रारंभिक लक्षण दिखाई देते हैं.

जिम्मेदार कौन

अस्थमा रोग के लिए पर्यावरण प्रदूषण और आनुवांशिक कारण प्रमुख रूप से जिम्मेदार होते हैं. इसलिए जो मातापिता इस रोग से पीडि़त हैं उन के बच्चों में भी इस का खतरा बढ़ जाता है.

मौसम का असर

बरसात और शीत ऋतु में सामान्य व्यक्ति की श्वास नलिकाएं भी मामूली सी सिकुड़ जाती हैं इसलिए इस दौरान अस्थमा की चपेट में आने की आशंका बढ़ जाती है. इन दोनों मौसम में उन व्यक्तियों को विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए जिन्हें धुआं, धूल, पालतू जानवरों और किसी दवा से ऐलर्जी हो. सर्दी के मौसम में सर्द हवाओं से सर्दीजुकाम होने की आशंका ज्यादा होती है, जिस का समय रहते इलाज न कराया जाए तो अस्थमा के अटैक का खतरा बढ़ जाता है. इस मौसम में अस्थमा के मरीज अपने शरीर को पूरी तरह से ढक कर रखें और उन के कमरे में नमी तो बिलकुल भी न हो, क्योंकि इस से फंगल इन्फैक्शन का खतरा बढ़ जाता है.

अस्थमा होने का कारण

अप्रत्यक्ष रूप से मानसिक तनाव भी हो सकता है, क्योंकि लगातार मानसिक तनाव से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. इस के अलावा सर्दीजुकाम, धूल, परागकण, पालतू जानवरों के बाल, विषाणु और वायु प्रदूषण साथ ही भावनात्मक आवेश भी अस्थमा के आघात का कारण बनता है. जब एक व्यक्ति संक्रमण से ग्रस्त हो जाता है तब सूखे हुए वायुछिद्र विचलित हो उठते हैं, जिस से फेफड़ों की नलिकाएं अपना कार्य स्वाभाविक रूप से नहीं कर पातीं. इस से व्यक्ति को सामान्य तरीके से सांस लेने में दिक्कत होने लगती है.

बच्चों पर अस्थमा का प्रकोप

मैट्रो सिटीज में बदलती लाइफस्टाइल के कारण बच्चों में अस्थमा का रोग तेजी से फैल रहा है. इस का प्रमुख कारण बच्चों को स्तनपान न करा कर बोतल से दूध पिलाना और दूषित आबोहवा है. इस के अलावा एक खास कारण ऐंटीबायोटिक दवाओं का तेजी से बढ़ता चलन भी है. इस से बच्चों की रोगप्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिस से वे अस्थमा सहित कई दूसरी बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं.

बच्चों पर दें खास ध्यान

सर्दी और बरसात के मौसम में बच्चों के साथ सावधानी बरतें. उन्हें बाहरी आबोहवा से बचा कर रखें, खासकर भीड़भाड़ वाली जगह से. कोई भी तकलीफ होने पर खुद नहीं, बल्कि किसी डाक्टर को दिखा कर ही दवा दें. बच्चों को खाना ताजा व गरम ही दें. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 1970 के बाद से अस्थमा के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. पूरे विश्व में करीब 23 करोड़, 50 लाख लोग अस्थमा से पीडि़त हैं और भारत में तो 5 वर्ष और उस से अधिक आयु के करीब 30 लाख लोग और 35 से अधिक उम्र के 1 करोड़, 10 लाख लोग इस बीमारी से पीडि़त हैं. हमारे देश में हर वर्ष अस्थमा के रोगियों की संख्या 5% की दर से बढ़ रही है, जिस में करीब 6 लाख बच्चे हैं.

अस्थमा हो सकता है किसी भी उम्र में

अस्थमा का उम्र से कोई वास्ता नहीं होता. यह किसी भी उम्र में हो सकता है. यदि व्यक्ति की उम्र 30 से अधिक है, तो हवा में तैरते कणों के कारण भी अस्थमा हो सकता है और 30 से कम है, तो उस के अस्थमा के लिए ऐलर्जी जिम्मेदार होती है. बड़ेबुजुर्गों को सिगरेट के धुएं, ठंडी हवा और भावनात्मक तनाव से भी अस्थमा हो सकता है.

अस्थमा की जांच

स्पिरोमेटी: यह एक सामान्य प्रकार का टैस्ट है, जो किसी भी मैडिकल क्लीनिक में हो सकता है. इस टैस्ट में सांस लेने की दिक्कत या हृदयरोग को पहचाना जा सकता है और इस से आदमी की सांस लेने की गति का पता चलता है. अस्थमा को बेहतर तरीके से कंट्रोल करने के लिए यह जरूरी है कि आप अपनी सांसों को तेजी से बाहर निकालें. इस की टैस्ट मशीन में एक मार्कर होता है जो सांस निकालते समय स्लाइड को बाहर की तरफ धकेलता है. इस से सांस लेने की गति का पता चलता है.

चैस्टन ऐक्सरे: इस ऐक्सरे द्वारा अस्थमा को देखा नहीं जा सकता, लेकिन उस से संबंधित जानकारियां ली जा सकती हैं.

ऐलर्जी टैस्ट: कई बार डाक्टर ऐलर्जी टैस्ट की सलाह देते हैं. इस टैस्ट से यह पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति की टिगर्स की सही स्थिति क्या है और कौन सी परिस्थितियां उस को प्रभावित कर सकती हैं.

स्किनप्रिक टैस्ट: यह बहुत साधारण तरीके से होता है और ऐलर्जिक टिगर्स जानने का बहुत ही प्रभावी तरीका होता है. यह बहुत ही सस्ता व तुरंत रिजल्ट देने वाला सुरक्षित टैस्ट होता है.

ब्लड टैस्ट: ब्लड टैस्ट ऐलर्जी जानने के लिए बहुत ही कारगर है.

शारीरिक परीक्षण: अस्थमा की जांच के लिए डाक्टर आप का शारीरिक परीक्षण भी कर सकते हैं जैसे चैस्ट के घरघराहट की आवाज सुनना और उस की गंभीरता को पहचानना.

अस्थमा का इलाज

आज दुनिया भर में अस्थमा के उपचार का सब से सुरक्षित तरीका इनहेलेशन थेरैपी को माना जाता है, क्योंकि यह सीधे रोगी के फेफड़ों में पहुंच कर अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देती है. टैबलेट और सिरप पेट में जाने के बाद रक्त के माध्यम से फेफड़ों में पहुंचता है. इस से कई साइड इफैक्ट भी हो सकते हैं.

अस्थमा अटैक पर नियंत्रण

अस्थमा के अटैक को रोकना चाहते हैं, तो डाक्टर द्वारा दी गई दवा समय पर लें. जरूरत पड़े तो इनहेलर का प्रयोग करें. उन चीजों से बचें जिन से अस्थमा अटैक की आशंका बढ़ जाती है. खानपान पर नियंत्रण रखें. खाना खाने के आधे घंटे बाद पानी पीएं. चाय, कौफी, अचार, लालमिर्च, गरममसाला का प्रयोग सीमित मात्रा में करें या हो सके तो न ही करें.

अस्थमा रोगी का खानपान

जो लोग अस्थमा जैसी बीमारी से लड़ रहे हैं, उन के लिए सब से जरूरी खाने में ऐंटीऔक्सीडैंट का इस्तेमाल है. ऐंटीऔक्सीडैंट सीधा फेफड़ों में जा कर फेफड़ों और सांस की बीमारियों से लड़ता है और यह उन खाद्यपदार्थों, जिन में विटामिन सी और ई है, में पाया जाता है.

इस के अलावा ऐसे खाद्यपदार्थ खाएं जिन में विटामिनों की मात्रा खूब होती है. जैसे दाल और हरी सब्जियां. ये चीजें आप को अस्थमैटिक अटैक से बचाती हैं.

अस्थमा के रोगी को ठंडे खाद्य और पेयपदार्थों से बचना चाहिए.

हाल के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि फैटयुक्त पदार्थों जैसे दूध, बटर वगैरह के सेवन से अस्थमा की तीव्रता कम हो जाती है. वे बच्चे जो ज्यादा फैटयुक्त आहार लेते हैं, उन की तुलना में वे बच्चे जो फैटयुक्त आहार कम लेते हैं उन में अस्थमा की भावना अधिक होती है.

इस के अलावा

उरद की दाल से बने खाद्यपदार्थों का सेवन न करें.

दहीचावल का सेवन न करें.

अस्थमा आमतौर पर ऐलर्जी के कारण होता है. ऐलर्जी को रोकने के लिए दूध में हलदी डाल कर पीएं.

सेलेनियम सी फूड लें. यह चिकन और मीट में पाया जाता है.

फलसब्जियां गहरे रंग की चुनें, क्योंकि उन में अस्थमा के लिए फायदेमंद बीटा कैरोटिन की मात्रा अधिक होती है जैसे गाजर व पालक. इस के अलावा फल व सब्जियों का रंग जितना गहरा होता है, उन में ऐंटीऔक्सीडैंट की मात्रा भी उतनी ही अधिक ती है.

अस्थमा अटैक के समय कौफी बहुत फायदेमंद सिद्ध हो सकती है, क्योंकि कैफीन थियोफाइलिन से बहुत ही मिलताजुलता है, जिस का इस्तेमाल ऐसी कई दवाओं में होता है, जिन से सांस लेने में मदद मिलती है.

अम्लीय रस से बने खाने का सेवन न करें.

धुली मूली मूंग

 सामग्री

5 कप मूली पत्तों के साथ कटी व धुली हुई

1/2 कप धुली मूंग दाल 15 मिनट पानी में भिगोई हुई

1 छोटा चम्मच बारीक कटा अदरक व हरीमिर्च

1 छोटा चम्मच अजवायन

2 साबूत लालमिर्चें

1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

1 बड़ा चम्मच मस्टर्ड औयल

नमक स्वादानुसार.

विधि

एक कड़ाही में तेल गरम कर के अजवायन व लालमिर्चों का तड़का लगाएं और उस में मूली का साग व मूंग दाल डाल दें. फिर हलदी पाउडर, अदरक, हरीमिर्च और नमक डालें. ढक कर 7-8 मिनट या फिर मूली व दाल के गलने तक पकाएं और फिर सर्विंग बाउल में निकाल लें.

सरसों भुजिया विद कौर्न

सामग्री

250 ग्राम सरसों साग धुला व मोटा कटा

100 ग्राम फ्रोजन कौर्न

1 बड़ा चम्मच लहसुन लंबाई में कटा

2 साबूत लालमिर्चें

1 बड़ा चम्मच मस्टर्ड औयल

लालमिर्च व नमक स्वादानुसार.

विधि

एक कड़ाही में तेल गरम कर के लहसुन व साबूत लालमिर्च तोड़ कर भूनें. इस में सागऔर फ्रोजन कौर्न डाल दें. यदि फ्रोजन कौर्न नहीं है तो कौर्न को उबाल कर डालें. अब नमक डालें. 6-7 मिनट में भुजिया पक जाएगी. यह भुजिया मक्की या बाजरे की रोटियों अथवा परांठों के साथ बहुत अच्छी लगती है.

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