गजब का पैशन है परफ्यूम

परफ्यूम की खूशबू हर किसी को आकर्षित करती है और नई ताजगी देती है. ऐसा कोई विरला ही होगा जिस का परफ्यूम के प्रति झुकाव न हो. जो खुशबू के कायल हैं, वे इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि परफ्यूम तैयार करने की प्रक्रिया से मशक्कत के अलावा कई तरह के रसायन और रासायनिक रहस्य जुड़े हैं. इस के कद्रदानों में अपने खास ब्रांड के परफ्यूम के लिए गजब का पैशन होता है. परफ्यूम पैशन को जन्म देता है, बल्कि कह सकते हैं कि परफ्यूम अपनेआप में एक अलग किस्म का पैशन है. वहीं परफ्यूम तैयार करने वालों में भी खास तरह का परफ्यूम तैयार करने का पैशन होता है.

कायाकल्प हुआ कई बार

आदिकाल से ले कर आज तक परफ्यूम का कई बार कायाकल्प हो चुका है और अब तो डिजाइनर परफ्यूम का जमाना है. इसीलिए तो यह अब पैशन बन गया है. जानकार बताते हैं, परफ्यूम का मुख्य उपादान खुशबूदार तेल होता है. इस के अलावा कुछ और उपादानों के मिश्रण के साथ 75 से ले कर 95% तक अलकोहल में द्रवीभूत हो कर परफ्यूम बनता है. परफ्यूम में खुशबूदार तेज का कंसंट्रेशन 22% तक होता है, जो ओडी परफ्यूम में 15 से 22%, ओडी टौयलेट में 8 से 15% और डाइल्यूट कोलन में 5% से भी कम होता है. किसी परफ्यूम की खुशबू का जादू इस औयल कंटेंट में छिपा होता है. त्वचा के संपर्क में आने पर यह औयल धीरेधीरे हवा में घूम कर खुशबू फैलाता है.

भारत ही एक ऐसा देश है जहां खुशबू को 21 श्रेणियों में बांटा गया है. इस का कारण यह है कि हमारे यहां खुशबू की एक अलग ही परंपरा रही है. उन के नाम प्रकृति के अनुरूप दिए गए हैं. 1989 को भारत सरकार ने सुंगध का साल घोषित किया था. इसी साल खुशबू विशेषज्ञों का एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन भी हुआ. सम्मेलन में भारत के 500 वर्ष के सुगंध के इतिहास पर चर्चा हुई. कह सकते हैं कि परफ्यूम के बिना शृंगार अधूरा है. यह आज की बात नहीं, सदियों पुरानी है. इसीलिए ब्यूटी वर्ल्ड में आज खुशबू का खासा बोलबाला है.

आजकल तो मोमबत्तियां भी परफ्यूम वाली आती हैं. बाथ सोप से ले कर टेलकम पाउडर तक डिओडरेंट वाले आते हैं. इस के अलावा देशीविदेशी परफ्यूम से खूबसूरती का पूरा बाजार महक रहा है. लेकिन बैठेठाले कभी न कभी यह सवाल दिमाग में कौंधता ही है कि खुशबू का सफर आखिर कब और कैसे शुरू हुआ होगा? इस का जवाब ठीकठीक शायद ही मिल पाए, लेकिन संभवतया खुशबू के इस सफर की शुरुआत तपती माटी में वर्षा की बूंदों से ही हुई होगी. माटी की सोंधी महक को पहचानने के साथ फूलों और कस्तूरी मृग से खुशबू का कारवां बढ़ता ही गया.

प्राचीन काल में खुशबू का चलन

दरअसल, सिंधु सभ्यता से ले कर गुप्तकाल, मौर्यकाल में विभिन्न मौकों पर खुशबू के प्रयोग का चलन रहा है. ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ और ‘मेघदूत’ में कालिदास ने नायिका के सुगंध उपयोग का विस्तृत वर्णन किया है. कालिदास की नायिका चंदन, कस्तूरी और जटामानसी से केश और वसन को सुगंधित किया करती थीं. 10वें दशक में खरोटी भाषा में लिखे गए शिलालेखों में बौद्धों के गंध कुटीर का उल्लेख मिलता है. कुषाण काल में भी रत्नखचित सुगंध पेटिका का जिक्र मिलता है.

यही नहीं, लंदन के एक म्यूजियम की ग्रीक गैलरी में एक रत्नजडि़त कुंडल का जोड़ा है. बताया जाता है कि इस में सुगंधित द्रव रखने का ऐसा इंतजाम है कि ग्रीवा के हिलने से उस से खुशबू निकल कर माहौल को सुगंधित कर देती है. वात्स्यायन ने ‘कामशास्त्र’ में भी भारतीय परंपरा की सुगंधि का उल्लेख किया है. उन का ‘कामशास्त्र’ कहता है कि पुरुष के शरीर से निकलने वाली गंध से नारी सम्मोहित होती है और यह सम्मोहन आकर्षण पैदा करता है. पुरुष की देह की इसी गंध को आज सैक्स अरोमा का नाम दिया गया है.

यूरोप में खूशबू का चलन

सैक्स अरोमा की बात हो और प्राचीन इजिप्ट की महारानी क्लियोपेट्रा का जिक्र न हो हो तो बात कुछ अधूरी सी रह जाती है. क्लियोपेट्रा में खुशबू के लिए गजब का पैशन था. उन का जीवन विभिन्न किस्म की खुशबुओं से ओतप्रोत था. क्लियोपेट्रा न सिर्फ इजिप्ट की महारानी थीं, बल्कि उन्हें तो किंवदंतियों की महारानी भी कहा जाता है. सौंदर्य और सैक्स की महारानी क्लियोपेट्रा के जीवन में प्रेम और खुशबू का बड़ा महत्त्व रहा है. कहा जाता है कि नितनए प्रेमी की तरह क्लियोपेट्रा खुशबू भी बदला करती थीं.

वैसे क्लियोपेट्रा मूल रूप से मिस्र की थीं और मिस्र में खुशबू के इस्तेमाल की एक अलग परंपरा रही है. इसी परंपरा के तहत बालों में एक खास तरह की खुशबू लगाई जाती थी जिस की भीनीभीनी खुशबू आहिस्ताआहिस्ता हवा में तैर कर पूरे माहौल में ताजगी भर देती थी.

बताया जाता है कि मिस्र के पूर्वी अफ्रीका के देशोें से खुशबूदार राल यानी लोबान और भारत से अदरक ले जा कर परफ्यूम तैयार करता था. मिस्र के फराओ यानी राजा और उन का राजपरिवार हमेशा खुशबुओं से घिरा रहता था. यहां तक कि उन के ताबूत में भी परफ्यूम का इंतजाम किया जाता था. कहा जाता है कि

3 हजार साल बाद भी जब तूतन खामेन की समाधि से उन का ताबूत निकाला गया तो फिजां में खुशबू फैल गई थी. 7वें दशक में यूरोप में फ्रांस के ग्राफी प्रदेश में फूलों की खुशबू से सेंट बनाने की परंपरा रही है. बताया जाता है कि फ्रांस के राजा 15वें लुइस की प्रेयसी मादाम पांपिदू ने लाखों की मुद्रा खर्च कर के खुशबू का एक बैंक भी बनवाया था. शायद इसीलिए आज भी फ्रेंच खुशबू का मुकाबला शायद ही कोई कर सकता है.

बहरहाल, 1760 में इटली के एक परिवार ने जरमनी के कोलोन शहर में खुशबू बनाना शुरू किया. कोलोन शहर के नाम पर ही इस का नाम यूडी कोलोन पड़ा. आज भी परफ्यूम में कोलोन का अपना स्थान है. यूडी कोलोन यानी कोलोन नदी का पानी. आज यूडी कोलोन बनाने वाली बहुत सारी कंपनियां बाजार में हैं, पर इस के जनक थे गिवमानी फारिना.

शैनेल फाइव

विदेशी परफ्यूम की बात की जाए और शैनेल फाइव का जिक्र न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. लगभग 80 सालों से लगातार लोकप्रियता के सिंहासन पर बैठा है शैनेल फाइव. यह परफ्यूम वाकई लगाने की चीज नहीं, बल्कि ‘वेयर’ करने की चीज है, ऐसा ही कुछ कहना था मार्लिन मुनरो का. अकेले मुनरो ही नहीं, सोफिया लारेन से ले कर माइकल जैकसन तक का पसंदीदा परफ्यूम रहा है यह.

इस परफ्यूम का इतिहास भी बड़ा अनोखा है. इस के सृजनकर्ता का नाम है कोको शैनेल. बताया जाता है ये कोको एक फेरी वाले की अवैध संतान थे. 12 साल की उम्र में माता का साया सिर से उठ चुका था और तभी पिता ने भी मुंह फेर लिया. तब अनाथाश्रम में कोको को शरण लेनी पड़ी. कहते हैं, बचपन में प्यार, स्नेह की खुशबू भले ही कोको शैनेल को नहीं मिली, लेकिन खुशबू बनाने की प्रेरणा उन्हें इस कमी से मिली.

उन का मानना था कि किसी महिला के बदन की खुशबू के आगे फूलों की खुशबू भी म्लान है, कृत्रिम है. इसलिए उन्होंने फूलों की खुशबू को महिलाओं के बदन की स्वाभाविक खुशबू जैसी बनाने के काम में खुद को झोंक दिया. परफ्यूम की जन्मभूमि फ्रांस के ग्रासे में कोको की मुलाकात हुई एक परफ्यूमर आर्नेस्त व्यू से. आर्नेस्त के साथ उन के सहयोगी के रूप में कोको काम करने लगे. परफ्यूम लैबोरेटरी में काम करने के दौरान उन्हें एक उपादान का मिश्रण करने के लिए कहा गया.

कोको ने उस उपादान को 10 गुना अधिक मात्रा में दे डाला. इस बीच एक दिन आर्नेस्त ने 10 किस्म का परफ्यूम को परखा तो उन्हें 5वें नंबर वाला परफ्यूम पसंद आया. वह वही परफ्यूम था, जिस में कोको शैनेल ने एक खास उपादान एलडीहाइड 10 गुना ज्यादा मिला दिया था. तब से इस परफ्यूम का नाम पड़ गया शैनेल फाइव. इस परफ्यूम में ग्रासे के जेस्मिन, गुलाब और चंदन के साथ और भी उपादानों का मिश्रण है.

बहरहाल, यह परफ्यूम हिट हो गया. आज भी दुनिया के 5 सब से बेहतरीन परफ्यूमों में शैनेल फाइव एक है. इस का जन्म हुआ था ग्रासे में. पर पहली बार यह पेरिस के बाजार में बिक्री के लिए पहुंचा.

भारतीय परंपरा में खुशबू

हमारे प्राचीन गं्रथों में सुगंध का जो उल्लेख मिलता है, उस के अनुसार राजा के दिन की शुरुआत सुगंध से ही होती थी. अग्नि पुराण में लगभग 150 से भी ज्यादा किस्म के सुगंधित पदार्थों से स्नान, ध्यान, पूजा, भोजन और शयन जैसी राजा की दिनचर्या संपन्न हुआ करती थी. सुगंध की सब से ज्यादा खपत राजा के अंत:पुर या हरम में होती थी और इसे तैयार करने के लिए महिलाओं और पुरुषों की एक बड़ी फौज लगी रहती थी. मगर इन में महिलाओं की ही संख्या ज्यादा हुआ करती थी, जिन्हें गंधकारिका या गंधहादिका कहा जाता था. ये सुगंध इत्र के रूप में ही जाने जाते थे. प्राचीन ग्रंथों में फूलों और चंदन से इत्र निर्माण का वर्णन मिलता है. सन 840 में माहुक के लिखे ग्रंथ ‘हरमेखला’ में इत्र के बारे में बहुत सारी जानकारी है. इस में वैज्ञानिक विधि से इत्र बनाने की विधियां भी बताई गई हैं. भारतीय इत्र का व्यापार मिस्र, अरब, ईरान, तुर्की, अफगानिस्तान में हुआ करता था. लेकिन जहां तक मिस्र का सवाल है, वहां तो इत्र वैदिक काल में ही पहुंच चुका था.

मुगल काल में इत्र

मुगलकाल में इत्र का शबाब खूब परवान चढ़ा. मल्लिका नूरजहां इत्र की शौकीन थीं. उन्होंने इत्रे हिना तैयार किया था. इस के बाद इत्रे गुलाब जिस में 30 किस्म के गुलाब के अर्क में 5 तरह के चंदन का तेल मिला कर 5 सेर इत्र तैयार होता था. यह 5 सेर इत्र नूरजहां के कुछ ही दिनों की खपत थी. मुगल बादशाह का पारिवारिक रिश्ता चूंकि राजस्थान से भी था, इसलिए बतौर तोहफा इत्र राजस्थान रजवाड़ों में पहुंचा और शौकीनों के घरघर तक पहुंच गया. धीरेधीरे यह धंधा राजस्थान में खूब फलाफूला. मुगल बादशाह ने गंधियों यानी खुशबू तैयार करने वालों को जमींदारियां सौंप कर उन्हें वहीं बसा लिया. आज भी राजस्थान के कुछ इलाकों में खासतौर पर मालवा की सीमा में गुलाबों की बड़े पैमाने पर खेती होती है. मुगल काल में राजस्थान से होता हुआ इत्र अवध पहुंचा.

इस के अलवा बंजर रेगिस्तानी मिट्टी, जो कि खिल कहलाती है, से भी खुशबू निकालने का असाध्य काम कर लिया गया. रेगिस्तानी मिट्टी में उपजी खस से इत्र बनाया गया. कहते हैं, भारत में खुशबू का जन्म हुआ, लेकिन यह फलाफूला विदेश की मिट्टी में.

एक घुमक्कड़ ईरानी व्यापारी को रेगिस्तान की बंजर भूमि से खुशबू तैयार करने की जानकारी मिलने पर उसे हैरानी हुई और इस विधि को वह अपने देश ले गया. इस प्रक्रिया में उस ने इत्रगिल तैयार किया जिसे ईरान के शाह ने बहुत पसंद किया. इस के बाद गंध पारखियों ने भारत में सुगंध की खोज शुरू की. भारतीय सुगंध शास्त्र खैरम दर्रे से होते हुए अफगानिस्तान और फिर बौद्ध भिक्षुओं के जरिए चीन जा पहुंचा. जब यह इत्र फ्रांस पहुंचा तो इसे चंदन के तेल के बजाय अलकोहल में तैयार किया जाने लगा. यही सेंट कहलाया.

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के इत्र का भी दुनिया भर में बोलबाला रहा है. मुगल जमाने में मुर्शिदाबाद के आजगढ़ के हुसैन के गुलाब इत्र का नाम ऐसा विख्यात हुआ कि आज मुसलिम विवाह गुलाब का इत्र के बिना पूरा नहीं माना जाता. यहां के इत्र की खासीयत यह रही है कि गुलाब के साथ कस्तूरी की खुशबू का मिश्रण कर के इसे तैयार किया जाता है. इस के अलावा कन्नौज और जौनपुर में भी इत्र तैयार किया जाता था. यहां चंदन से खुशबू के अर्क में विशेष प्रक्रिया से कस्तूरी और दूसरे कई तरह की सुगंधि के मिश्रण से इत्र तैयार किया जाता था. इत्र में अगर इत्र, बेला इत्र, गुलाब इत्र, चमेली इत्र के अलावा शमामा, दरबार, खस, सुहाग नाम इत्र का आज भी बोलबाला है.

भारत में विदेशी परफ्यूम

भारत में विदेशी परफ्यूम की धूम है. 19वीं सदी के आखिर में भारतीय बाजार में विदेशी परफ्यूम याडले, लैवेंडर, वेनोलियार, वाइट रोज, टस्कर, यूडी कोलोन ने घुसपैठ की.   इस के बाद फ्रेंच परफ्यूम ओरिगा, लांबा, रिगो, गुयर लां, ओरपेज, ज्यां पाको, शैनल नंबर फाइव आदि का बोलबाला रहा. इस के अलावा ईवनिंग इन पेरिस, शालीमार, मित्सुको, मूगेमी, अमेरिकी कंपनी एवन का अनफौरगेटेबल, मून वींड, हीयर इज माई हार्ट, चैरिस्मा, औस्कर, स्वीट एनेस्टी, वाइल्ड कंट्री, ब्रोकेड फ्लावर, लिलि आफ दि वैली, हनी सर्कल भी पसंद किए जाते रहे हैं.

माना जाता है कि शैनेल फाइव की लोकप्रियता में चार चांद लगा मर्लिन मुनरो के कारण. क्रिस्तियां डी का पियाजें या पायजन, इव सां लरां, ओपियम, एसटी लाडर, रेवेलान का चार्ली, कैलविन क्लाइंन का इटर्निटी, पाको और इटली का जर्जियो अर्मिनो खूब लोकप्रिय ब्रांड हुआ करता था. इस के अलावा रिचि क्लब, नीना रिचि, लेज वाल्स दि रिची, ल्यार ड्यू टेंपस, बारबेरी, वीक एंड बरबेरीज, करिजिया, स्पाजिओ, फेंडी, फेंटेस्ला, एक्काडा, मोनोटाने भी लोकप्रिय थे. अब भी कुछ लोग इन्हें पसंद करते हैं.

क्वालिटी खुशबू की

आज भी अच्छी क्वालिटी का परफ्यूम वही है, जो ज्यादा से ज्यादा समय तक बरकरार रहता है और दूरदूर तक जिस की पहुंच होती है. इसीलिए क्वालिटी परफ्यूम तैयार करने में एसेंशियल औयल की बड़ी भूमिका होती है. एक खास किस्म की खुशबू तैयार करने में काफी मेहनतमशक्कत के बाद उस खुशबू का अर्क बहुत थोड़ा ही मिल पाता है.

मसलन, 880 पाउंड संतरे के फूलों से मात्र 1 पाउंड एसेंशियल औयल मिलता है. 4 हजार पाउंड गुलाब की पंखुडि़यों से केवल 1 पाउंड गुलाब का तेल मिलता है. इस की खुशबू लंबे समय तक बरकरार रखने के लिए इस में कुछ जैविक उपादान का मिश्रण करना पड़ता है. मसलन, मृग कस्तूरी, बीवर कस्तूरी.

आज कई तरहतरह के परफ्यूम बाजार में हैं-लिक्विड परफ्यूम, स्प्रे, क्रीम, कोलोन और तेल. आजकल स्प्रे कोलोन के रूप में परफ्यूम का चलन ज्यादा है. स्प्रे अधिक समय तक खुशबू बिखेरता है. क्रीम परफ्यूम डियोडरेंट स्टिक के रूप में उपलब्ध हैं. ये ऐंटीसेप्टिक भी होते है. वैसे डियोडरेंट ज्यादा समय तक स्थायी नहीं होते. इस की वजह यह है कि शरीर की गरमी से क्रीम पिघल कर खुशबू बिखेरती है, अगर गरमी नहीं मिली तो यह डियोडरेंट काम नहीं करता. कोलोन आमतौर पर नहाने के बाद ही इस्तेमाल किया जाता है. 1 मग पानी में 10-12 बूंदें कोलोन मिला कर पूरे शरीर में डाल लेने से काम चल जाता है.

खुशबू की थेरैपी

खुशबू यानी अरोमा. अरोमा माहौल को महकाने के साथसाथ इसे खुशगवार भी बनाता है. खुशबू का सुखद एहसास आदमी की स्फूर्ति में भी इजाफा करता है. शोध से पता चला है कि खुशबू स्नायविक दृढ़ता पैदा करने में सहायक है. खुशबूदार तेल से मलिश करने व खुशबू की कुछ बूंदें पानी में डाल कर नहाने से कई रोगों का इलाज संभव हुआ है. यही अरोमाथेरैपी कहलाई. इसीलिए खुशबू का इस्तेमाल मन और शरीर दोनों को चंगा बनाने में किया जाने लगा. अनिद्रा, तनाव, थकान के लिए नेचर थेरैपिस्ट अरोमा थेरैपी की सलाह देते हैं. आजकल यह बहुत चलन में है. लेकिन एक तरह से यह प्राचीन उपचार पद्धति है.

अरोमाथेरैपी में जिस एसेंशियल औयल का इस्तेमाल किया जाता है वह मानव सभ्यता के शुरुआती काल से अस्तित्व में है. इस का लगभग ईसा पूर्व 3,000 साल पुराना इतिहास है. इस एसेंशियल औयल का इस्तेमाल, खुशबू, सौंदर्य प्रसाधन के रूप में ही नहीं किया जाता था, बल्कि उस समय के गंध विशेषज्ञों ने इस एसेंशियल औयल में संरक्षण और उपचार के तत्त्व भी खोज निकाले थे और इसीलिए यह तेल उन की जिंदगी में शुमार हो गया. मिस्र की ममियों में शवों पर विभिन्न द्रव का लेप उन के संरक्षण के लिए किया जाता था. लेकिन इस पुरानी उपचार पद्धति को समय के साथ भुला दिया गया. पर आज फिर से अरोमाथेरैपी के रूप में चल पड़ा है.

परफ्यूम लगाने का शौक पालने वाले बहुत से लोग मिल जाएंगे. लेकिन परफ्यूम के इस्तेमाल करने का सही तरीका कम ही लोगों को आता है. परफ्यूम का चुनाव समय, काल और पात्र के अनुरूप होना चाहिए. परफ्यूम और माहौल का एक खास संबंध है. किसी ने ठीक ही कहा है कि राग बसंत सुनते समय गुलमोहर का लाल रंग, मेघ मल्हार के साथ कोयल की कुहुक, बािरश की रिमझिम और बिजली की चमक सुरूर जगाती है. उसी तरह खास मौके ही नहीं, खास मौसम में भी खुशबू का चुनाव माने रखता है. गरमी की दोपहरी में थोड़ा तेज परफ्यूम, वसंती मौसम में फूलों की भीनी खुशबू वाला और सर्दी के मौसम की शाम हो तो रोमांटिक खुशबू वाला परफ्यूम मादकता जगाता है.

परफ्यूम का इस्तेमाल उन के लिए निहायत जरूरी है, जिन के पसीने में बदबू होती है. शोध से पता चला है कि महिलाओं में पुरुषों के पसीने की गंध अलगअलग होती है. इसीलिए परफ्यूम भी महिलाओं और पुरुषों के लिए अलगअलग बनाए गए हैं. महिलाओं के लिए गुलाब, जूही, लिली के मीठी खुशबू और पुरुषों के लिए तंबाकू, मिर्ची, जंगली फूलों की खुशबू. पर आजकल परफ्यूम के मामले में भी तमाम भेद मिट गए हैं. महिलाएं भी आज पुरुषों के लिए बने परफ्यूम का इस्तेमाल कर रही हैं. इसीलिए यूनीसैक्स परफ्यूम का ज्यादा चलन है.

आफिस और ड्रैसकोड

कुछ नौकरियों में ड्रैसकोड अनिवार्य है. जैसे, एअरहोस्टेस, पुलिस कर्मचारी, होटलों के शैफ, रेलवे के टीटीई आदि को प्रतिदिन यूनिफार्म पहन कर ही जाना होता है. ऐसे में यूनिफार्म का ध्यान रखना जरूरी हो जाता है, विशेषकर लड़कियों को. उन्हें अपनी यूनिफार्म, चाहे वह साड़ी हो, सूट हो या फिर पैंटशर्ट का खास ध्यान रखना चाहिए.

मेरी बेटी सरकारी कार्यालय में कार्यरत है. उसे 26 जनवरी, 15 अगस्त जैसे विशेष आयोजनों के तहत या फिर किसी बड़े अधिकारी के आने पर ही यूनिफार्म पहन कर जाना होता है. ऐसे ही एक दिन मेरी बेटी के साथ काम करने वाली एक लड़की घर आई तो आते ही बोली, ‘‘जल्दी से एक हलकी सी डै्रस दे, इसे (पहनी गई पैंटशर्ट को दिखाते हुए) पहन कर तो दम घुट रहा है. बस में चढ़ कर जाना मुश्किल हो जाएगा.’’

उस की बेतरतीब डै्रस को देख कर मैं उस से पूछ बैठी, ‘‘बेटी, तुम्हारी यूनिफार्म तो बड़ी कसी लग रही है?’’

वह बोली, ‘‘आंटी, रोजाना यूनिफार्म में नहीं जाना होता. आज 3 महीने बाद पहनी है. लगता है, मैं थोड़ी मोटी हो गई हूं, इसलिए कमर में पैंट का बटन ही नहीं लग रहा है, बैल्ट के नीचे उसे खुला ही रखना पड़ा है.’’ उस की बातें सुन कर लगा, सच में शरीर तोे बढ़ताघटता रहता है. ऐसे में रखी हुई यूनिफार्म के बारे में कैसे सोचा जाए कि वह काफी दिनों बाद पहनने पर फिट रहेगी या नहीं.

जब पहनें यूनिफार्म

जिन नौकरियों में रोजाना ड्रैसकोड में नहीं जाना होता है उन के लिए यूनिफार्म बनवा तो ली जाती है, लेकिन उस की उचित देखभाल नहीं की जाती, क्योंकि मन में विश्वास रहता है कि वह बहुत कम पहनी जाती है, इसलिए अच्छी ही रहेगी. फिर जब पहनने की जरूरत पड़ती है तो वह निकाल कर पहन ली जाती है.

उस यूनिफार्म को देखने का आप के पास टाइम ही नहीं होता. इस से आप यह देख ही नहीं पातीं कि ड्रैस में कहीं कोई दागधब्बा तो नहीं, उस का बटन या हुक टूटा हुआ तो नहीं, कहीं से सिलाई खुली हुई तो नहीं, बैल्ट का लूप निकल तो नहीं गया है या वह बदन में कस तो नहीं रही. बस, मजबूरीवश यूनिफार्म पहननी है तो पहन ली. यह नहीं देखा कि वह आप पर कैसी लग रही है या उसे पहन कर आप कितनी अनकम्फर्टेबल हैं.

जब आप को अपनी ड्रैस से आराम नहीं मिलेगा, तो आप का व्यक्तित्व आफिस में सब के बीच शिथिल नजर आएगा. फिर काम में होशियार होने के बाद भी आप सुस्त कर्मचारी मानी जाएंगी. अत: ध्यान रख कर यूनिफार्म पहनें, जिस से आप तरोताजा रहें. यह ताजगी ही आप को प्रफुल्लित रखेगी और आप चुस्त व स्मार्ट नजर आएंगी.

जब भी यूनिफार्म पहन कर निकलें शरमाएं नहीं. कुछ लड़कियां यूनिफार्म पहन कर घर से झेंपती हुई सी जाती हैं. आफिस में भी किसी परिचित को देख कर शरमा जाती हैं. ऐसा न करें, क्योंकि आप का ड्रैसकोड आप की क्षमताओं को दर्शाता है. आप उस पर गर्व महसूस करें और सब से खुले दिल से मिलें.   

आर्टिफिशियल ज्वैलरी न बन जाए खूबसूरती का दाग

लाल चकत्ते व ईचिंग

स्किन एलर्जी
 

एलिना अपनी दोस्त तनविका की शादी के लिए बनठन कर तैयार हुई. ड्रैस के साथ मैचिंग करती, चमचमाती ज्वैलरी उस की खूबसूरती में चार चांद लगा रही थी. सचमुच एलिना गजब ढा रही थी. शादी में वह सब के आकर्षण का केंद्र रही. शादी की पार्टी खत्म होने के बाद जब एलिना घर पहुंची तो उस ने अपने  गले व कान के पास पड़े लाल निशान देखे तो परेशान हो गई. खैर रात को स्किन औयनमैंट लगा कर वह सो गई, लेकिन कुछ दिन बाद फिर एक पार्टी में एलिना ने आर्टिफिशियल ज्वैलरी पहनी, जिस की वजह से उसे खुद को स्किन स्पैशलिस्ट को दिखाना पड़ा.

दरअसल, एलिना को लाल चकत्ते व ईचिंग उस की मनपसंद चमचमाती आर्टिफिशियल ज्वैलरी से एलर्जी के कारण हुई. एलिना जैसी कई युवतियां एलर्जी से होने वाली परेशानियों को सहते हुए भी इस आर्टिफिशियल ज्वैलरी को पहनना नहीं छोड़तीं और हालात एलिना की तरह ही हो जाते हैं. ऐसे में उन्हें डाक्टरी परामर्श लेने की नौबत आ जाती है.

आर्टिफिशियल ज्वैलरी पहनने का चसका युवतियों को छोटे परदे से लग रहा है. आएदिन दिखाए जाने वाले सीरियलों में युवतियों द्वारा पहनी जा रही आर्टिफिशियल ज्वैलरी ने इस की ज्यादा डिमांड बढ़ा दी है.

आइए, जानें आर्टिफिशियल ज्वैलरी से एलर्जी होने के क्या कारण हैं और यह कितनी नुकसानदायक साबित हो सकती है:

किस धातु से होती है एलर्जी

आभूषणों में निकल धातु से एलर्जी हो सकती है. सस्ती होने की वजह से निकल धातु आर्टिफिशियल ज्वैलरी में मिलाई जाती है और इस का नुकसान हमारी त्वचा को झेलना पड़ता है. त्वचा के साथ संपर्क में आने वाली धातु या आभूषणों के कारण ही इस तरह की एलर्जी होती है. सोने या चांदी के गहनों से कभी एलर्जी नहीं होती. अगर ज्वैलरी पहनने वाले हिस्से पर रैशेज पड़ गए हों या सूजन या फिर खुजली हो रही हो तो इस का मतलब है कि आप को ज्वैलरी से एलर्जी हो गई है.

अमेरिकन कौंटैक्ट डर्माटाइटिस सोसायटी की रिपोर्ट के मुताबिक लगभग हर 10 में से एक महिला को ज्वैलरी से एलर्जी होती है. पीला सोना यानी 14 कैरेट से ज्यादा के गोल्ड से किसी तरह की एलर्जी नहीं होती, क्योंकि इस में कौपर की मात्रा होती है जबकि व्हाइट गोल्ड से एलर्जी की आशंका बनी रहती है.

उम्र घटाती आर्टिफिशियल ज्वैलरी

भले ही आर्टिफिशियल ज्वैलरी आप की सुंदरता में चार चांद लगाती हो, लेकिन यह आप की जिंदगी को कम कर रही है. बाजार में बिकने वाली आर्टिफिशियल ज्वैलरी में 64.8% से ज्यादा में 90पीजीएम यानी पार्ट पर मिलियन से ज्यादा लेड (सीसा या रांगा) पाया जाता है. डाक्टर्स बताते हैं कि यह गर्भवती महिलाओं के लिए बेहद खतरनाक है. लेड का खून से संपर्क होने पर बच्चों और युवाओं में भी 10% से अधिक की स्मरणशक्ति क्षीण हो जाती है.

सब से ज्यादा लेड अंगूठी में पाया जाता है जबकि ब्रैसलेट में यह काफी कम होता है. बता दें कि पिंक कलर की आर्टिफिशियल ज्वैलरी में लेड की मात्रा अधिक होती है. लेड न केवल ज्वैलरी बल्कि रंगों व खिलौने आदि में भी मिलाया जाता है.

डाक्टरी सलाह

स्किन स्पैशलिस्ट डा. सुधांशु मोहन शर्मा का मानना है कि ज्वैलरी से एलर्जी एक आम समस्या है. खासतौर पर आर्टिफिशियल ज्वैलरी के कारण ही अधिकांश युवतियों को स्किन की परेशानियों से दोचार होना पड़ता है. ज्वैलरी में निकल या लेड की मिलावट के कारण ही एलर्जी की समस्या सिरदर्द बनी हुई है, लेकिन आप हर जगह सोने या डायमंड की ज्वैलरी पहन कर भी नहीं निकल सकतीं. ऐसे में आर्टिफिशियल ज्वैलरी में मौजूद निकल, कोबाल्ट और क्रोमियम जैसी धातुओं की मिलावट ज्यादा हो तो त्वचा पर प्रतिकूल प्र्रभाव पड़ता है. इसलिए ज्वैलरी के इस्तेमाल से पहले आश्वस्त हो लें कि उस में निकल तो नहीं है.

एलर्जी के लक्षण

डा. सुधांशु के मुताबिक, ‘‘जंक ज्वैलरी पहनने से पहले यह जांच लें कि आप को ये गहने सूट करते भी हैं या नहीं. कई बार आर्टिफिशियल ज्वैलरी पहनने से त्वचा पर लाल चकत्ते, खुजली व दाने उभर आते हैं. कई युवतियों को कान व नाक के गहने पहनने के एक घंटे के अंदर ही खुजली होने लगती है और कुछ ही देर में त्वचा पर घाव या फफोले हो जाते हैं. धातुओं से एलर्जी का प्रभाव ज्यादातर त्वचा की ऊपरी सतह पर ही होता है. कई बार इन घावों से बने दागों को ठीक होने में सालों लग जाते हैं, इसलिए ऐसी धातुओं के प्रयोग से बचें. देखा जाए तो एलर्जी सोने, चांदी, हीरे या किसी भी धातु से हो सकती है, लेकिन ज्यादातर एलर्जी आर्टिफिशियल ज्वैलरी से ही होती है.’’

कैसे बचें एलर्जी से

हर व्यक्ति की रोग प्रतिरोधी क्षमता अलगअलग होती है. इसलिए जिन गहनों से आप को एलर्जी हो, उस से दूसरे को भी हो यह जरूरी नहीं है. एलर्जी से बचने का सब से अच्छा तरीका है कि आप ऐसे आभूषण न पहनें. विशेषज्ञों का मानना है कि एलर्जी का कोई स्थायी इलाज नहीं है. अगर एलर्जी हो गई है तो उस पर तुरंत मौइश्चराइजर लगाएं. इस के अलावा आप ऐंटी एलर्जी दवा भी खा सकती हैं.

पाइनऐप्पल कप केक

सामग्री

11/2 छोटे चम्मच पाइनऐप्पल ऐसेंस आवश्यकतानुसार क्रीम

2-3 बूंदें पीला रंग

कलर्ड चौकलेट स्प्रिंकल्स

पाइनऐप्पल के टुकड़े आवश्यकतानुसार.

वैनिला स्पौंज का सामग्री

100 ग्राम मैदा

30 ग्राम मक्खन

3 अंडे

90 ग्राम कैस्टर शुगर

1 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर.

विधि

वैनिला स्पौंज मिश्रण बनाएं और इस में 1 छोटा चम्मच पाइनऐप्पल ऐसेंस अच्छी तरह मिलाएं. फिर 1 कप में इसे आधा कप डाल कर ओवन में 160 डिग्री सैल्सियस पर 10 मिनट बेक करें. इसे ठंडा होने दें. फिर पीला रंग, पाइनऐप्पल ऐसेंस और क्रीम अच्छी तरह से मिलाएं. अब प्रत्येक कप केक के ऊपर क्रीम मिश्रण सजाएं. इसे पाइनऐप्पल के टुकड़े और कलर्ड चौकलेट स्प्रिंकल्स से सजा कर परोसें.

वैनिला स्पौंज केक

सामग्री

100 ग्राम मैदा

30 ग्राम मक्खन

3 अंडे

90 ग्राम कैस्टर शुगर

1 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर

1-2 बूंद वैनिला ऐसेंस.

विधि

मैदे और बेकिंग पाउडर को मिलाएं. अंडे को फेंट कर मक्खन और कैस्टर शुगर में डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर सभी को मैदे के मिश्रण में मिलाएं. अब वैनिला ऐसेंस डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. मिश्रण को चिकनाई लगी बेकिंग डिश में डाल कर ओवन में 200 डिग्री सैल्सियस पर 15 मिनट बेक करें.

दूध पाक

सामग्री

1 लिटर दूध

2 चुटकी केसर दूध में भीगा

1/2 कप चावल

1 छोटा चम्मच घी

1/2 कप चीनी

1/2 छोटा चम्मच इलायची पाउडर

1 छोटा चम्मच बादाम और पिस्ता बारीक कटा.

विधि

चावल धोने के बाद निथार कर इस में घी मिला कर रख लें. दूध को धीमी आंच पर नौनस्टिक बरतन में 15 मिनट तक पकाएं. फिर इस में चावल मिलाएं और इसे 25 मिनट तक पकाएं. बीचबीच में चलाती रहें. अब चीनी, इलायची पाउडर और दूध में भीगा केसर डाल कर धीमी आंच में 15 मिनट तक पकाएं. बादाम और पिस्ते से गार्निश कर के परोसें.

पाइनऐप्पल हलवा

सामग्री

500 ग्राम पाइनऐप्पल

1/2 कप पाइनऐप्पल जूस

1 चुटकी केसर

1/2 छोटा चम्मच इलायची पाउडर

1 छोटा चम्मच पिस्ता बारीक कटा.

विधि

पाइनऐप्पल को पतले टुकड़ों में काटें और एक बरतन में घी डाल कर भून लें. भूनते वक्त ही इस में पाइनऐप्पल जूस और केसर मिलाएं. हलवा बन जाने पर पिस्ते से सजा कर परोसें.

चेतिनाड चिकन

सामग्री

500 ग्राम बोनलैस चिकन

8-10 करीपत्ता

1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

1 मध्यम आकार प्याज बारीक कटा

थोड़ी सी धनियापत्ती बारीक कटी

1 छोटा चम्मच नारियल पेस्ट

1-2 सूखी लालमिर्च

8-10 कालीमिर्च

1 छोटा चम्मच खसखस

1 छोटा चम्मच सौंफ

1 छोटा चम्मच जीरा

4-5 लौंग

1-2 टुकड़ा दालचीनी

1 बड़ा चम्मच कद्दूकस किया नारियल

विधि

कालीमिर्च, लालमिर्च, खसखस, सौंफ, जीरा, इलायची, लौंग, दालचीनी और कद्दूकस किए नारियल को ड्राई रोस्ट कर के ग्राइंड कर लें. अब प्याज, करीपत्ता, हरीमिर्च, अदरकलहसुन का पेस्ट और टमाटर धीमी आंच पर भूनें. फिर इस में ग्राइंड किया मसाला, चिकन और 1 कप पानी डाल कर अच्छी तरह पकाएं. धनियापत्ती और करीपत्ता से सजा कर चावल के साथ परोसें.

मटर का निमोना

सामग्री

1 कटोरी हरे मटर के दाने दरदरे पीसे हुए

2 आलू बारीक कटे

1 छोटा चम्मच तेल

1 टमाटर

4-5 हरी मिर्चें

1/2 छोटा चम्मच अदरक बारीक कटा

एक चुटकी हींग

1/2 छोटा चम्मच साबूत जीरा

1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

थोड़ी सी धनियापत्ती बारीक कटी

नमक स्वादानुसार.

विधि

टमाटर और हरी मिर्चों का पेस्ट तैयार कर लें. कड़ाही में तेल गरम कर उस में कटे हुए आलू सुनहरा होने तक फ्राई करें और अलग निकाल कर रख लें. बचे हुए तेल में हींग और जीरा डाल कर भूनें. अब इस में धनिया पाउडर, अदरक, टमाटरहरीमिर्च का पेस्ट डाल कर अच्छी तरह भूनें. फिर पिसा हुआ मटर डाल कर चलाते हुए भूनें. अब इस में फ्राइड आलू, लालमिर्च, नमक और जरूरतानुसार पानी डाल कर उबाल आने तक पकाएं. तैयार निमोने को गैस से उतार कर इस में गरममसाला बुरकें और गरमगरम सर्व करें.

चंद मिनटों में बनाएं करेले का भरता

सामग्री

-4-5 करेले

-1 बड़ा चम्मच रिफाइंड तेल

-1 प्याज कटा

-1 छोटा चम्मच अदरक बारीक कटा

-1 टमाटर बारीक कटा

-1 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

-1 छोटा चम्मच जीरा पाउडर

-थोड़ी सी धनियापत्ती बारीक कटी

-1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

-4-5 हरीमिर्चें कटी

-नमक स्वादानुसार.

विधि

करेलों के बीज निकाल कर व छिलका उतार कर मुलायम होने तक उबाल कर बारीक काट लें. अब कड़ाही में तेल गरम कर के प्याज, अदरक, हरीमिर्चें और करेले को तब तक भून लें जब तक उस का पानी सूख न जाए. अब हलदी पाउडर, टमाटर, जीरा पाउडर, धनिया पाउडर और नमक मिला कर पक जाने तक भूनें. धनियापत्ती से सजा कर परोसें.

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