शहर का हाजमा खराब करने का हक नहीं

पटरियों पर बिकने वाला खाना शहरों में अगर आधे लोगों को खिलाता हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है. अपने घर से दूर रहने वालों या कुछ अलग खाने वालों के लिए पटरियों पर मिलने वाला खाना ही सब से ज्यादा सुलभ, सस्ता व स्वादिष्ठ होता है. पर ये पटरी दुकानदार शहरों के लिए संकट बन गए हैं और संकरी होती सड़कों पर बोझ हैं, इसलिए हर सरकार इन्हें नियंत्रित करने का असफल प्रयास करती है यानी आखिर हार कर छोड़ देती है. पटरियों पर खाने की दुकानों को ले कर स्ट्रीट वैंडर्स एक्ट में दिल्ली सरकार ने प्रावधान किया है कि वैंडर पटरी पर खाना नहीं पकाएंगे, केवल दिन में दुकान लगाएंगे, बिजली, पानी नहीं लेंगे, आवाज लगा कर ग्राहकों को नहीं बुलाएंगे, ग्राहकों को दुकान के सामने गाड़ी खड़ी नहीं करने देंगे, बायोमीट्रिक रजिस्ट्रेशन कराएंगे, नगर निगम को किराया देंगे, कानून तोड़ने पर जुर्माना वगैरह भरेंगे.

ये सारे नियम ऐसे हैं कि जिन का पालन कराना हो तो कह दो कि पटरी पर दुकान न लगाओ. वैसे होना तो यही चाहिए कि अब पटरियों पर दुकाने लगाने का हक नहीं दिया जा सकता. जैसेजैसे पक्की दुकानों की कीमत बढ़ी है, पटरी भी नगरवासियों के लिए कीमती हो गई है. पटरी अब इसलिए ज्यादा जरूरी हो गई है, क्योंकि गाडि़यां घर या दफ्तर से कई मील दूर खड़ी करनी पड़ सकती हैं और पटरी का इस्तेमाल अनिवार्य हो गया है. यह भी समझ लें कि पटरी कानून बना कर किसी को पटरी पर व्यापार करने की थोड़ी छूट देना भी आम नागरिक का हक छीनना है. पटरी दुकानदार चाहे जितने गरीब हों और चाहे जितनी वे गरीबों की सेवा कर रहे हों, वे आम नागरिक के पटरी के अधिकार को कम नहीं कर सकते. पटरी पर न दुकान लग सकती है, न स्कूटर या साइकिल खड़ी हो सकती है और न ही मकान बनाने का सामान पटका जा सकता है.

पटरी की तो इस तरह की गरिमा हो कि उस पर केबल, सीवर डालना भी रातोंरात का काम हो. किसी को उस पर सोना हो तो सुबह उसे चलने वालों के लिए तैयार करे. पटरियों पर बिजली के खंभा भी नहीं लग सकते. कोई दुकानदार पटरी पर एक इंच जगह भी न घेरे यह लागू होना चाहिए. पटरी शहरी जीवन की शिरा है और उस पर कुछ भी करना कोलैस्ट्रोल बढ़ने के समान है. सरकार उसे कैसे कानून बना कर छीन सकती है? उस पर तहबाजारी कैसे ली जा सकती है? यह कानून ही गलत है. पहले कभी किसी कानून में इजाजत दी भी गई थी तो वह वापस ली जानी चाहिए. पटरी पर गोलगप्पे, चाट या पकौड़े चाहे जैसे मिलें, शहर का हाजमा खराब करने का हक किसी को नहीं मिल सकता.

राहुल की ऐक्स वाइफ ने की दूसरी शादी की तैयारी

औनस्क्रीन ‘स्वंयवर’ में शादी रचाने वाले राहुल महाजन की दुलहनिया डिंपी किसी दूसरे की होने जा रही हैं. शादी के कुछ समय बाद ही दोनों का तलाक हो गया था. डिंपी ‘बिगबौस’ के पिछले सीजन में कौंटैस्टैंट रह चुकी हैं और गालियों व विवादों से खूब चर्चा में रहीं. अब वे एक बिजनैसमैन रोहित रौय के साथ शादी करने जा रही हैं. अपनी इंगेजमैंट की खबर खुद डिंपी ने ट्विटर पर पोस्ट कर दी है. दोनों एकदूसरे को बचपन से जानते हैं और शादी नवंबर में कोलकाता में होगी.   

सैक्स प्लैजर है ?

‘‘और्गेज्म क्या होता है? क्या यह सैक्स से जुड़ा है? मैं ने तो कभी इस का अनुभव नहीं किया,’’ मेरी पढ़ीलिखी फ्रैंड ने जब मुझ से यह सवाल किया तो मैं हैरान रह गई.‘‘क्यों, क्या कभी तुम ने पूरी तरह से सैक्स को एंजौय नहीं किया?’’ मैं ने उस से पूछा तो वह शरमा कर बोली, ‘‘सैक्स मेरे एंजौयमैंट के लिए नहीं है, वह तो मेरे पति के लिए है. सब कुछ इतनी जल्दी हो जाता है कि मेरी संतुष्टि का तो प्रश्न ही नहीं उठता है, वैसे भी मेरी संतुष्टि को महत्त्व दिया जाना माने भी कहां रखता है.’’

यह एक कटु सत्य है कि आज भी भारतीय समाज में औरत की यौन संतुष्टि को गौण माना जाता है. सैक्स को बचपन से ही उस के लिए एक वर्जित विषय मानते हुए उस से इस बारे में बात नहीं की जाती है. उस से यही कहा जाता है कि केवल विवाह के बाद ही इस के बारे में जानना उस के लिए उचित होगा. ऐसा न होने पर भी अगर वह इसे प्लैजर के साथ जोड़ती है तो पति के मन में उस के चरित्र को ले कर अनेक सवाल पैदा होने लगते हैं. यहां तक कि सैक्स के लिए पहल करना भी पति को अजीब लगता है. इस की वजह वे सामाजिक स्थितियां भी हैं, जो लड़कियों की परवरिश के दौरान यह बताती हैं कि सैक्स उन के लिए नहीं वरन पुरुषों के एंजौय करने की चीज है.

यौन चर्चा है टैबू

भारत में युगलों के बीच यौन अनुभवों के बारे में चर्चा करना अभी भी एक टैबू माना जाता है, जिस की वजह से यह एक बड़ा चिंता का विषय बनता जा रहा है. दांपत्य जीवन में सैक्स संबंध जितने माने रखते हैं, उतनी ही ज्यादा उन की वर्जनाएं भी हैं. एक दुरावछिपाव व शर्म का एहसास आज भी उन से जुड़ा है. यही वजह है कि पतिपत्नी न तो आपस में इसे ले कर मुखर होते हैं और न ही इस से जुड़ी किसी समस्या के होने पर उस के बारे में सैक्स थेरैपिस्ट से डिस्कस ही करते हैं. पुरुष अपनी कमियों को छिपाते हैं. भारत में लगभग 72% स्त्रीपुरुष यौन असंतुष्टि के कारण अपने वैवाहिक जीवन से खुश नहीं हैं.

मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि जब भी महिलाएं अपनी किसी समस्या को ले कर उन के पास आती हैं और वजह जानने के लिए उन के सैक्स संबंधों के बारे में पूछा जाता है तो 5 में से 1 महिला इस बारे में बात करने से इनकार कर देती है. यहां तक कि अगली बार बुलाने पर भी नहीं आती. कानूनविद मानते हैं कि 20% डाइवोर्स सैक्सुअल लाइफ में संतुष्टि न होने की वजह से होते हैं. पुरुष अपने साथी को यौनवर्धक गोलियां लेने के बावजूद संतुष्ट न कर पाने के कारण तनाव में रहते हैं. पुरुष अपने सैक्सुअल डिस्फंक्शन को ले कर चुप्पी साध लेते हैं और औरतें अपनी शारीरिक इच्छा को प्रकट न कर पाने के कारण कुढ़ती रहती हैं. वैवाहिक रिश्तों में इस की वजह से ऐसी दरार चुपकेचुपके आने लगती है, जो एकदम तो नजर नहीं आती, लेकिन बरसों बाद उस का असर अवश्य दिखाई देने लगता है.

सैक्स से जुड़ा है स्वास्थ्य

एशिया पैसेफिक सैक्सुअल हैल्थ ऐंड ओवरआल वैलनैस द्वारा एशिया पैसेफिक क्षेत्र में 12 देशों में की गई एक रिसर्च के अनुसार एशिया पैसेफिक क्षेत्र में 57% पुरुष व 64% महिलाएं अपने यौन जीवन से संतुष्ट नहीं हैं. इस में आस्ट्रेलिया, चीन, हांगकांग, भारत, इंडोनेशिया, जापान, मलयेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, ताइवान आदि देशों को शामिल किया गया था. यह रिसर्च 25 से ले कर 74 वर्ष के यौन सक्रिय स्त्रीपुरुषों पर की गई थी. सब से प्रमुख बात, जो इस रिसर्च में सामने आई, वह यह थी कि पुरुषों में इरैक्टाइल हार्डनैस में कमी होने के कारण पतिपत्नी दोनों ही सैक्स संबंधों को ले कर खुश नहीं रहते हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि इरैक्टाइल हार्डनैस का संबंध सैक्स के साथसाथ प्यार, रोमांस, पारिवारिक जीवन व जीवनसाथी की भूमिका निभाने के साथ जुड़ा है. जीवन के प्रति देखने का उन का नजरिया भी काफी हद तक सैक्स संतुष्टि के साथ जुड़ा हुआ है.

सिडनी सैंटर फौर सैक्सुअल ऐंड रिलेशनशिप थेरैपी, सिडनी, आस्ट्रेलिया की यौन स्वास्थ्य चिकित्सक डा. रोजी किंग के अनुसार, ‘‘एशिया पैसेफिक के इस सर्वेक्षण से ये तथ्य सामने आए हैं कि यौन जीवन संतुष्टिदायक होने पर ही व्यक्ति पूर्णरूप से स्वस्थ रह सकता है. आज की व्यस्त जीवनशैली में जबकि यौन संबंध कैरियर की तुलना में प्राथमिकता पर नहीं रहे, पुरुष व महिलाओं दोनों में ही यौन असंतुष्टि उच्च स्तर पर है. इस की मूल वजह अपनी सैक्स संबंधित समस्याओं के बारे में न तो आपस में और न ही डाक्टरों से बात करना है. चूंकि सैक्स संबंधों का प्रभाव जीवन के अन्य पहलुओं पर भी पड़ता है, इसलिए सैक्स के मुद्दे पर बोलने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.’’ जीवन के इस महत्त्वपूर्ण पक्ष को नजरअंदाज कर के युगल जहां एक तरफ तनाव का शिकार होते हैं, वहीं संतुष्टिदायक सैक्स संबंध न होने के कारण उन के जीवन के अन्य पहलू भी प्रभावित होते हैं. स्वास्थ्य के साथसाथ उन की सोच व जीवनशैली पर भी इस का गहरा असर पड़ता है. यौन संतुष्टि संपूर्ण सेहत के साथसाथ प्रेम व रोमांस से भी जुड़ी है.

कम होती एवरेज

कामसूत्र की भूमि भारत में, जहां की मूर्तियों तक पर सदियों पहले यौन क्रीडा से जुड़ी विभिन्न भंगिमाओें को उकेरा गया था, अभी भी अपने यौन अनुभव के बारे में बात करना एक संकोच का विषय है. भारतीय पुरुष के जीवन में सैक्स जीवन की प्राथमिकताओं में 17वें नंबर पर आता है और औरतों के 14वें नंबर पर. आज अगर हम शहरी युगलों पर नजर डालें तो पाएंगे कि वे दिन में 14 घंटे काम करते हैं, 2 घंटे आनेजाने में गुजार देते हैं और सप्ताहांत यह सोचते हुए बीत जाता है कि सफलता की सीढि़यां कैसे चढ़ें. इन सब के बीच सैक्स संबंध बनाना एक आवश्यकता न रह कर कभीकभी याद आ जाने वाली क्रिया मात्र बन कर रह जाता है. लीलावती अस्पताल, मुंबई के ऐंड्रोलोजिस्ट डा. रूपिन शाह का इस संदर्भ में कहना है, ‘‘प्रत्येक 2 में से 1 भारतीय शहरी पुरुष में पर्याप्त इरैक्टाइल हार्डनैस नहीं होती, फिर भी 40 से कम उम्र के पुरुष अपनी कमजोरी मानने को तैयार नहीं हैं. 40 से कम उम्र की औरतों की सैक्स की मांग अत्यधिक होने के कारण वे एक तरफ जहां अपनी सैक्स संतुष्टि को ले कर सजग रहती हैं, वहीं वे पार्टनर के सुख न दे पाने के कारण परेशान रहती हैं. नीमहकीमों के पास जाने के बजाय डाक्टर व काउंसलर की मदद से यौन संबंधों में व्याप्त तनाव को दूर किया जा सकता है.’’

ड्यूरैक्स सैक्सुअल वैलबीइंग ग्लोबल सर्वे के अनुसार भारतीय पुरुष व महिलाएं अपने सैक्स जीवन से संतुष्ट नहीं हैं. और्गेज्म तक पहुंचना प्रमुख लक्ष्य होता है और केवल 46% भारतीय मानते हैं कि उन्हें वास्तव में और्गेज्म प्राप्त हुआ है, जबकि ऐसी महिलाएं भी हैं, जो यह भी नहीं जानतीं कि और्गेज्म होता क्या है, क्योंकि एक महिला को इस तक पहुंचने में पुरुष से 10 गुना ज्यादा समय लगता है. पुरुष 3 मिनट में संतुष्ट हो जाता है, ऐसे में वह औरत को और्गेज्म प्राप्त होने का इंतजार कैसे कर सकता है. वैसे भी आज भी भारतीय पुरुष के लिए केवल अपनी संतुष्टि माने रखती है.

संवाद व सम्मान आवश्यक

असंतुष्टि की वजह कहीं न कहीं पतिपत्नी के बीच मानसिक जुड़ाव का न होना भी है. आपस में निकटता को न महसूस करना, सम्मान न करना भी उन की संतुष्टि की राह में बाधक बनता है. सैक्स के बारे में खुल कर बात न करना या किस तरह से उस का भरपूर आनंद उठाया जा सकता है, इस पर युगल का चर्चा न करना या असहमत होना भी यौन क्रिया को मात्र मशीनी बना देता है. अपने साथी से अपनी इच्छाओं को शेयर कर सैक्स जीवन को सुखद बनाया जा सकता है, क्योंकि यह न तो कोई काम है और न ही कोई मशीनी व्यवस्था, बल्कि यह वैवाहिक जीवन को कायम रखने वाली ऐसी मजबूत नींव है, जो प्लैजर के साथसाथ एकदूसरे को प्यार करने की भावना से भी भर देती है. 

सौंदर्य को नया रंग देते मोती

गहने चाहे सोने के हों या चांदी के, पीतल के हों या मोतियों के, सदा से ही महिलाओं की कमजोरी और पसंद रहे हैं. आज भी इन का क्रेज बरकरार है. आजकल जेवर पहनने का प्रचलन काफी तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि छोटेबड़े सभी आकारों के मोतियों के जेवर बड़ी आसानी से मिल जाते हैं. ये जेवर अधिक महंगे भी नहीं होते, साथ ही जितने अधिक पहने जाते हैं उतनी ही इन में चमक आती है. मोतियों के जेवर एक बार खरीद लेने पर थोड़ी सी देखभाल से काफी दिनों तक आप के सौंदर्य को नया लुक देते हैं. अत: इन की देखभाल में लापरवाही न बरतें.

ऐसे रखें ध्यान

मोतियों के जेवर अकसर प्लास्टिक या रेशमी वायर में पिरोए जाते हैं, जो काफी प्रयोग में आने के बाद कमजोर पड़ जाती है. प्रतिदिन पहनने वाले जेवरों को 4-6 महीने के बाद नए तार में पिरो लेना चाहिए ताकि मोती टूट कर बिखरें नहीं.

नाजुक बनावट वाले गहनों को सावधानी से पहनें.

सोते व स्नान करते समय इन्हें उतार दें.

मोतियों के जेवरों को डब्बे में रखते समय सावधानी बरतें. जल्दबाजी में कोई मोती डब्बे या ढक्कन के बीच में न आ जाए.

जेवरों को अलगअलग रखें. एकसाथ रखने पर वे उलझ जाते हैं और फिर छुड़ाने पर टूट जाते हैं.

मोतियों के जेवरों को परफ्यूम आदि से बचा कर रखें अन्यथा उन की चमक कम हो जाएगी.

मोतियों के जेवरों को सफेद पतंगी कागज में लपेट कर रखें.

जेवर गंदे होने पर किसी दुकान पर जाने से बेहतर है कि रीठे की झाग से घर पर ही साफ करें और हलके तौलिए से पोंछ कर मुलायम कपड़े पर रख कर इन पर औलिव आयल मलें. इस से इन की चमक बढ़ जाएगी.

बेहतर गिफ्ट है चौकलेट

फैस्टिवल सीजन के आते ही गिफ्ट लेने और देने वालों की संख्या बढ़ जाती है. ऐसे में सब से बड़ी परेशानी यह आती है कि गिफ्ट में क्या दिया जाए? मिठाई का रिवाज पुराना है. इस के चलते आज के समय में चौकलेट सब से बेहतर गिफ्ट बन गया है. इस के कई आइटम मिलने लगे हैं. बड़ी कंपनियों के चौकलेट एकजैसे होते हैं. ये महंगे भी होते हैं. ऐसे में चौकलेट मेकर का कारोबार तेजी से बढ़ने लगा है. दिल्ली की रहने वाली प्रीति चावला की शादी लखनऊ में नेत्ररोग विशेषज्ञ डा. शोभित चावला के साथ हुई. प्रीति को नईनई रेसिपी बनाने का शौक था. चौकलेट रेसिपी भी इस का एक हिस्सा थी. चौकलेट को ले कर बहुत सारे प्रयोग हो रहे हैं. चौकलेट की शैंपेन बोटल, चौकलेट रोजेज का बुके और चौकलेट की ज्वैलरी खूब चलन में है. चौकलेट के आइटम बना कर हाउसवाइफ बिजनैस वुमन भी बन सकती है. फैस्टिवल ही नहीं, बर्थडे और शादी पर भी चौकलेट देने का रिवाज बढ़ा है.

दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में कारपोरेट कल्चर बढ़ रहा है. इस के चलते चौकलेट का बिजनैस बढ़ गया है. 4 साल पहले प्रीति ने जब चौकलेट का बिजनैस शुरू किया था तो पहली बार 80 चौकलेट गिफ्ट हैंपर बनाए थे. इस के अगले साल प्रीति ने सीजन पर 400 गिफ्ट हैंपर बनाए. मंदी के सीजन में चौकलेट बिजनैस में कुछ प्रभाव पड़ा था. अब यह वापस अपनी जगह पर आ गया है.

चौकलेट बेल्ट

चौकलेट गिफ्ट देने का सीजन अक्तूबर से मार्च तक माना जाता है. इस सीजन में चौकलेट पिघलती नहीं है. समर में यह बिजनैस कम हो जाता है. अब वेडिंग सीजन में भी चौकलेट प्रयोग की जाने लगी है. चौकलेट को रिटर्न गिफ्ट के रूप में प्रयोग किया जाने लगा है. कुछ लोग शादी के निमंत्रणपत्र के साथ भी गिफ्ट देने लगे हैं. नया बच्चा होने पर उस के नामकरण के मौके पर भी चौकलेट दी जाने लगी हैं. हनीमून के समय भी चौकलेट का प्रयोग बढ़ रहा है. चौकलेट से बनी ज्वैलरी को हनीमून के दौरान पहना जा सकता है. अंतरंग पलों में पति चौकलेट ज्वैलरी का स्वाद भी ले सकता है. चौकलेट ज्वैलरी में नेकलेस और इयररिंग चलन में हैं. वैलेंटाइन डे पर विदेशों में चौकलेट बेल्ट भी खूब पहनी जाती है. प्रीति चावला चौकलेट बिजनैस को बढ़ाने के लिए विदेशों के दौरे भी करती हैं. जब वे बाहर जाती हैं तो वहां के चौकलेट स्टोर्स को जरूर देखती हैं. चौकलेट के नएनए टेस्ट का पता करती हैं, जिस से नई किस्म की चौकलेट बना सकें. चौकलेट बनाने के बाद सब से पहले वे अपने पति को ही टेस्ट कराती हैं. अगर वह चौकलेट अच्छी हो तो वे उस की तारीफ करते हैं. तब उसे दूसरों के लिए तैयार करती हैं.

प्रीति ने मैसेज चौकलेट भी बनाना शुरू कर दिया है, जिस में चौकलेट पर ‘हैप्पी बर्थडे’ लिखा होता है. इसे भी खूब पसंद किया जा रहा है. वे कहती हैं कि चौकलेट को ज्यादा दिनों तक रखा जा सकता है, इसलिए इसे बतौर गिफ्ट देने का प्रचलन बढ़ गया है.

आसान है बिजनैस

चौकलेट बिजनैस के बारे में प्रीति चावला का कहना है कि हाउसवाइफ के लिए यह बिजनैस बहुत आसान है. इसे शुरू करने के लिए एक रेफ्रिजरेटर, एक ओवन गैस और एक माइक्रोवेव ओवन की जरूरत होती है. चौकलेट ब्रिक के रूप में आती है. इसे पिघला कर अलगअलग डिजाइन के सांचे में डाला जाता है. ये सांचे लोकल बाजार में मिल जाते हैं. 1 दिन में 15 किलोग्राम चौकलेट बनाई जा सकती है. चौकलेट बनाने वाले सांचे की एक ट्रे में 9 खाने होते हैं. इस का 1 पीस 10 ग्राम का होता है. 1 किलोग्राम चौकलेट में करीब 70 पीस बनते हैं. इस की कीमत 700 रुपए के करीब होती है. इस बिजनैस की सब से खास बात यह होती है कि शुरुआत में सहायकों की कम जरूरत होती है. इस कारोबार को चलाने के लिए जो लागत लगाई जाती है, उस की कीमत 1 साल में वसूल हो जाती है. दूसरे किसी भी कारोबार में इस के लिए कम से कम 3 साल तक इंतजार करना होता है.

शुगरफ्री चौकलेट

वेडिंग सीजन में चौकलेट बिजनैस को बढ़ाने में चौकलेट फाउंडेशन की जरूरत होती है. चौकलेट के स्वाद को टेस्टी बनाने के लिए इस में मिंट, बादाम, काजू, किशमिश, औरेंज और चेरी के टुकड़े और फ्लेवर का प्रयोग किया जा सकता है. अब शुगरफ्री चौकलेट भी बनने लगी है. चौकलेट को पिघला कर सांचे में डाल कर जमने के लिए रेफ्रिजरेटर में रख दिया जाता है. इस के बाद पैकिंग की जाती है. पैकिंग खास होनी चाहिए. इस बिजनैस को शुरू करने से पहले यह देख लें कि इस की खपत कैसे होगी.

मांबेटी का रिश्ता : दोस्ती के साथसाथ गाइड भी

फिल्म ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने वाली आलिया भट्ट निर्देशक व निर्माता महेश भट्ट और ब्रिटिश बौर्न भारतीय अभिनेत्री सोनी राजदान की बेटी हैं. फिल्म ‘डैडी’ के दौरान महेश भट्ट और सोनी राजदान की मुलाकात हुई. महेश भट्ट सोनी राजदान की खूबसूरती से अधिक उन की प्रतिभा की तारीफ करते थे. सोनी राजदान से उन की दूसरी शादी हुई थी. इस के लिए उन्होंने इसलाम धर्म कबूल किया. महेश भट्ट फिलहाल मुसलिम हैं और उन का नाम अफजल खान है. हालांकि मीडिया में उन्हें महेश भट्ट के नाम से ही जाना जाता है. धर्म परिवर्तन की वजह उन की पहली पत्नी किरण भट्ट का मौजूद होना है, जिस से उन के 2 बच्चे पूजा भट्ट और राहुल भट्ट हैं. महेश भट्ट और सोनी राजदान की 2 बेटियां आलिया भट्ट और शाहीन भट्ट हैं. महेश भट्ट निर्देशक बनने के बाद से निजी जीवन की खूब चर्चा में रहे. 1970 में किरण से शादी, परवीन बौबी के साथ लव अफेयर होने से उन के रिश्तों में दरार का आना आदि. कहा जाता है कि ‘आशिकी’ फिल्म महेश भट्ट ने अपने और किरण के संबंधों को ले कर ही बनाई थी. खुली मानसिकता वाले महेश भट्ट बोल्ड फिल्में अधिक बनाते हैं. कुछ फिल्में तो उन के जीवन से जुड़ी होती हैं. लेकिन अपनी फिल्मों में उन्होंने अपनी बेटी को अब तक नहीं लिया. इस की वजह वे बताते हैं कि अभी तक ऐसी कहानी नहीं मिली, जिस में आलिया काम कर सके. सोनी राजदान और महेश भट्ट ने आलिया को बड़े लाड़प्यार से पाला है. जब आलिया स्कूल में पढ़ती थी तो वार्षिक उत्सव पर महेश भट्ट हमेशा अपनी मौजूदगी दर्ज इसलिए करते थे, क्योंकि वे सैलिब्रिटी पिता थे.

आलिया जब फिल्मों में आईं तो मातापिता दोनों ने उन्हें सलाह दी कि यह क्षेत्र व्यवसाय वाला है जहां मेहनत और लगन की आवश्यकता होती है. आलिया की बड़ी बहन शाहीन भट्ट फिल्म लेखक और निर्देशक हैं. फिल्म ‘जहर’, ‘जिस्म टू’ और ‘राज थ्री’ के कई सीन शाहीन ने लिखे हैं. लंदन में फिल्म मेकिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे अपने मातापिता के साथ काम करती हैं. वे कैमरे के आगे आना पसंद नहीं करतीं. आलिया के बारे में शाहीन का कहना है कि आलिया में स्टारों जैसे नखरे नहीं हैं. वह घर और बाहर यानी हर जगह एक जैसी रहती है. आलिया की सफलता भट्ट परिवार के लिए काफी गर्व की बात है. आलिया फिल्म करने या न करने का निर्णय खुद लेती हैं. आलिया अलग फ्लैट में अकेली रहती हैं. फ्लैट उन के मातापिता के घर से थोड़ी ही दूर पर है. अकेले रहने की वजह उन का और अधिक आत्मनिर्भर बनना है. लेकिन मांबेटी दोनों बेहद करीब हैं. पेश हैं, उन से हुई गुफ्तगू के कुछ अहम अंश:

आप दोनों एक ब्रैंड के साथ कैसे जुड़ीं?

आलिया: बड़ी वजह मां का मेरे साथ अभिनय करने का मौका है. मैं हमेशा से चाहती थी कि मां के साथ कुछ करूं.

सोनी राजदान: मुझे बेटी के साथ काम करने का मौका मिला, तो मुझे लगा कि थोड़ा और समय मैं उस के साथ बिता सकती हूं. आलिया हमेशा अपने काम में व्यस्त रहती है. यही समय होता है जब हम दोनों अभिनय के दौरान थोड़ी बातचीत कर लेती हैं. बचपन में आलिया के बाल थिक हुआ करते थे. वह अपने बालों से खेल कर गांठें बना लिया करती थी, जिन्हें खोलना मुश्किल होता था.

सोनी की नजरों में आलिया बचपन में कैसी थीं? क्या आप जानती थीं कि वह हीरोइन बनेंगी?

बचपन में आलिया फैशन के प्रति बहुत कम उत्साहित हुआ करती थी. मैं ही हमेशा उसे कुछ न कुछ घरेलू ब्यूटी ट्रीटमैंट करने के लिए कहा करती थी. उसे अपने अंदर की खूबसूरती का पता था. मैं उस के बालों में सप्ताह में 1 बार ही औयल लगा पाती थी और उसी दौरान उसे बहलाफुसला कर चोटी भी बना देती थी. वह बचपन से अपने लुक के प्रति बहुत ही पर्टिकुलर थी. खेलतीकूदती थी पर जो करना होता था खुद ही कर लेती थी. मैं हमेशा उसे अपने मन का खाने के लिए कहती थी मसलन, आइसक्रीम, चौकलेट आदि. मुझे पता था कि वह हीरोइन बनेगी. उस के हावभाव बचपन से ही ऐसे थे. पर किस तरह की हीरोइन बनेगी यह पता न था. वह डांस करती थी और हमेशा कहती थी कि मुझे हीरोइन बनना है.

आलिया अपनी मां की किस सीख को अपने जीवन में उतारती हैं?

अगर मैं अपने पूरे परिवार में किसी सब से अधिक समझदार व्यक्ति से मिली हूं, तो वे मेरी मां हैं. वे इतनी समझदार हैं कि कुछ कहने से पहले अपनेआप को उस स्थान पर रखती हैं. यह मुझे उन से बात करना आसान बनाता है. वे परिवार में सब की समस्याओं को समझती हैं. किसी को बुरा महसूस नहीं करवातीं. बहुत अनुशासित हैं. हर दिन शाम को टहलना, योगा करना, डाइट का खयाल रखना आदि सब कुछ करती हैं. खाने की सलाह भी देती हैं. वे बहुत ही संतुलित मां हैं.

सोनी आलिया में इतने सालों में क्या बदलाव पाती हैं?

आलिया को बचपन से पता था कि वह अभिनय के क्षेत्र में जाएगी और वह उसी क्षेत्र में गई. अच्छी बात यह भी है कि वह कामयाब हो रही है. वह शुरू से ही आत्मविश्वास से परिपूर्ण थी. आज भी वैसी ही है. हमेशा रिलैक्स रहती है. कभी तनाव नहीं लेती. पहले मैं उस की हेयर केयर, डाइट पर ध्यान देती थी, पर अब वह अपना ध्यान खुद रखती है. बदलाव इतना है कि वह अब मुझे भी सुझाव देती है, जो अच्छा लगता है.

सोनी आलिया को कितनी आजादी देती हैं. अकसर टीनएजर्स लड़कियां विद्रोह करती हैं. क्या आलिया ने कभी ऐसा किया? इस उम्र में मांबेटी का रिश्ता किस प्रकार का होना चाहिए?

आलिया को पूरी आजादी है, पर मैं हमेशा कहती थी कि जहां भी जाओ, मुझे बताना न भूलो, क्योंकि आप अगर किसी उलझन में फंसी हो तो मैं सहायता कर सकूं. रात को अगर घूमना है, तो आटो में न घूमो. मुझे बता दो मैं गाड़ी ले कर आ जाऊंगी, क्योंकि हमेशा सावधानी बरतनी चाहिए. कोई दोस्त है तो घर में ले आओ और फिर बैठ कर बातचीत करो. आजादी के साथ उत्तरदायित्व भी आते हैं, जिन का हर किसी को निभाना आवश्यक है. आलिया कभी विद्रोह नहीं करती, जो कहा जाता है सुनती है. मांबेटी का रिश्ता दोस्त की तरह होने के साथसाथ मां की तरह भी होना चाहिए, क्योंकि बच्चों को सीमा में रहने की जरूरत होती है. लड़का हो या लड़की सभी के लिए सीमारेखा होनी चाहिए, जिस का फैसला खुद मां को लेना पड़ता है. बच्चों के लिए मां को दोस्त के साथ गाइड भी बनना आवश्यक है.

आलिया अपने मातापिता को कितना समय दे पाती हैं? जबकि आप अपने मातापिता से अलग रह रही हैं?

मुझे जितना भी समय मिलता है पूरीपूरी कोशिश रहती है कि उसे मातापिता के साथ बिताऊं. मेरा घर मातापिता के घर के पास ही है. इसलिए समय मिलते ही उन के पास चली जाती हूं. इस के अलावा हर साल 1 हौलीडे प्लान करती हूं, जिस में मैं, मेरी मां और बहन शामिल होती हैं. पिता को समय मिलता है तो वे भी साथ जाते हैं. वहां हम खूब मौजमस्ती करते हैं. मेरे मातापिता लिबरल हैं.

जब आलिया को ले कर अफवाहें उड़ती हैं तो सोनी क्या करती हैं?

आलिया के पास अब समय कम होता है. अगर 5 मिनट भी समय मिलता है तो हम सब कुछ उसी दौरान डिसकस कर लेना चाहते हैं. तभी उस के पिता अखबार ले कर आ जाते हैं और उस के बारे में छपी बातों को सुनाते हैं. मैं उन्हें ये सब पढ़ने और सुनने से मना करती हूं. इस तरह कई बार बातों की फाइटिंग चलती है. मैं काम पर ध्यान देने की सलाह देती हूं. ग्लैमर वर्ल्ड में तो ये सब चलता रहता है.

आलिया क्या किसी फिल्म को चुनते समय अपने मातापिता से सलाह लेती हैं? और अपनी मां या पिता की फिल्म में कब आने वाली हैं?

मैं फिल्म खुद ही चुनती हूं. कई बार करण जौहर से पूछ लेती हूं. फिल्म में कहां क्या करना है, इस बारे में चर्चा मातापिता से अवश्य करती हूं. तनाव नहीं लेती. आता है तो खुद समाधान खोजती हूं. मैं मां की आने वाली फिल्म में काम करना चाहती थी पर उस में मैं फिट नहीं थी. पिता की फिल्म में काम करने का मौका मिले तो खुशी होगी.                             

फैमिनिटी, ब्यूटी व ताकत का अनूठा मेल: दीपिका चौधरी

अगर आप का यह मानना है कि सिर्फ पुरुष ही शक्तिप्रदर्शन कर सकते हैं, अपनी ताकत दिखा सकते हैं तो आप को अपनी यह सोच बदलनी होगी, क्योंकि हम आप की मुलाकात करवाने जा रहे हैं एक ऐसी महिला से जो पुरुषप्रधान देश में पुरुषों को चुनौती दे कर इस सोच को झूठा साबित कर रही हैं. जी हां, ये महिला कोई और नहीं देश की पहली इंटरनैशनल फिगर ऐथलीट विजेता दीपिका चौधरी हैं. दीपिका से हाल ही में दिल्ली के सर शंकर लाल हौल में आयोजित जेरई स्ट्रौंग मैन व जेरई क्लासिक प्रतियोगिता के दौरान मुलाकात हुई. जेरई फिटनैस प्राइवेट लिमिटेड व बौडी पावर इंडिया इस तरह की प्रतियोगिताएं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समयसमय पर कराते रहते हैं. भारत में यह पहला मौका था जब इतने बड़े स्तर पर इस तरह की प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जहां पुरुषों के साथसाथ महिलाओं ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया.

दीपिका चौधरी पुणे के नैशनल इंस्टिट्यूट औफ वायरोलौजी में बतौर टैक्निकल रिसर्च असिस्टैंट कार्य कर रही हैं. उन्होंने अप्रैल, 2015 में अमेरिका में आयोजित इंटरनैशनल फिगर ऐथलीट प्रतियोगिता में न केवल भारत का प्रतिनिधित्व किया था, बल्कि उस प्रतियोगिता में जीत भी हासिल की थी. विश्व स्तर पर आयोजित इस प्रतियोगिता को जीतने वाली दीपिका चौधरी भारत की पहली महिला हैं. वे इस से पहले 2013 में अमेरिका के फ्लोरिडा में आयोजित ऐथलीट कैंप में भी शामिल हो चुकी हैं. फिगर ऐथलीट 31 वर्षीय दीपिका अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभा रही हैं. जब उन से पूछा कि पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्र में आने की प्रेरणा कहां से मिली तो उन्होंने बताया, ‘‘2012 में जब मैं ने विश्वप्रसिद्ध फिटनैस कोच शेनोन डे द्वारा आयोजित सेमिनार अटैंड किया और वहां इंटरनैशनल फिगर ऐथलीट्स को स्टेज पर प्रदर्शन करते देखा तो मैं ने तय किया कि मुझे भी उन के जैसा बनना है. तब से आज तक मैं ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.’’

पुणे की रहने वाली दीपिका चौधरी ने बताया कि उन के मातापिता ने उन के भाई व उन में कभी कोई अंतर नहीं किया. उन्हें अपने व्यक्तिगत निर्णय लेने की पूरी आजादी थी. आज दीपिका विवाहित हैं और अपने बंगाली पति व सासससुर के साथ पुणे में रहती हैं. दीपिका कहती हैं कि शुरू में उन के इस प्रोफैशन को ले कर उन की ससुराल वालों द्वारा विरोध हुआ, लेकिन अब व तब की स्थिति में जमीनआसमान का फर्क है. उन के पति तनुजीत उन्हें पूरापूरा सहयोग देते हैं. शुरू में जब आप लीक से हट कर कुछ करने की कोशिश करते हैं तो समाज, परिवार को उसे स्वीकारने में थोड़ी कठिनाई होती ही है. मगर जहां कुछ लोग आप का विरोध करते हैं वहीं कुछ लोग समर्थन भी करते हैं.

दीपिका कहती हैं, ‘‘आज स्थिति बिलकुल विपरीत है. आज लड़कियां मेरे घर मुझ से फिजिकल और साइकोलौजिकल ऐडवाइज लेने आती हैं. वजन अधिक होने के कारण जब पति या घर वाले उन्हें टोकते हैं तो वे वजन कम करने के अपने उद्देश्य पर टिक नहीं पातीं. मोटापा उन में हीनभावना भर देता है, जिस से वे मनचाहा परिणाम पाने में कामयाब नहीं हो पातीं. ऐसे में वजन कम करने में साइकोलौजिकल ऐडवाइज महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वह उन्हें मैंटली स्ट्रौंग बनाता है. इस से उन्हें यह एहसास हो जाता है कि कोई भी लक्ष्य तभी पाया जा सकता है जब आप की इच्छाशक्ति मजबूत हो.’’

फैमिनिटी पर असर

हमारे समाज की सोच है कि जो लड़कियां अथवा महिलाएं गेम्स खेलती हैं या फिर बौडी बिल्डिंग करती हैं उन की फिगर खराब हो जाती है, उन की खूबसूरती में कमी आ जाती है और उन की फैमिनिटी पर नकारात्मक असर पड़ता है. लेकिन दीपिका को देख कर यह सोच गलत साबित होती है. जब यह सवाल दीपिका से पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘जैसे प्रकृति के अनेक रंग हैं वैसे ही हर पुरुष में भी कुछ फैमिनिटी व हर महिला में कुछ मस्क्यूलैरिटी होती है. जो पुरुष फैशन व ब्यूटी इंडस्ट्री से जुड़े होते हैं उन में फैमिनिटी दिखाई देती है. मुझे समझ नहीं आता अगर कोई उस खास स्टाइल, उस बौडी टाइप में कंफर्टेबल है तो समाज को क्यों आपत्ति होती है? हमारे आसपास के लोगों में कोई गोरा, कोई सांवला, कोई लंबा, कोई छोटा, कोई मोटा तो कोई पतला होता है और लोग उन्हें उसी रूप में स्वीकाते हैं. वैसे भी हरेक की अपनी पसंद होती है. हरेक को अपनी पसंद के अनुसार जीने का अधिकार होना चाहिए.’’

अगर आप दीपिका के फेसबुक अकाउंट पर जाएंगे तो वहां उन के स्टाइल, उन के प्रोफैशन को ले कर शायद ही आप को 1 प्रतिशत भी नैगेटिविटी नजर आए. यह गलत सोच है कि बौडी बिल्डिंग सिर्फ पुरुषों के लिए है. दीपिका कहती हैं कि हमें समाज को बदलने की जरूरत नहीं है. जो अच्छा लगता है वही करना चाहिए. अगर कोई महिला या लड़की इस क्षेत्र में कैरियर बनाना चाहती है तो समाज को इस से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए.

फिगर ऐथलीट व फिजीक ऐथलीट में अंतर

हर उस महिला को, जिस के ऐब्स, मसल्स व बाइसेप्स होते हैं, बौडी बिल्डर नहीं कहा जाता. दीपिका बौडी बिल्डिंग की प्रतियोगिताओं में ऐथलीट फिगर श्रेणी में आती हैं. इंटरनैशनल फैडरेशन औफ बौडी बिल्डिंग के तहत खेलने वाली दीपिका की सभी प्रतियोगिताएं अमेरिका में होती हैं. वे इन प्रतियोगिताओं में 4 बार जीत हासिल कर चुकी हैं. वे कहती हैं कि जहां फिजीक ऐथलीट को मस्क्यूलर होने व ज्यादा थ्रेडेड रहने की जरूरत होती है वहीं फिगर ऐथलीट के लिए ऐसा होना जरूरी नहीं है. लेकिन उस की बौडी सिमिट्री व बालों, स्किन की क्वालिटी अच्छी होनी चाहिए. फैमिनिटी मैंटेन रहनी चाहिए. भारत में अभी तक सिर्फ फिजीक व फिटनैस डिविजन हैं, लेकिन बौडी पावर ऐक्सपो के कारण वे लड़कियां या महिलाएं जिन की बौडी टाइप बिकिनी फिगर में फिट बैठती है अब वे भी इन प्रतियोगिताओं में भाग ले सकती हैं. हमारे यहां बिकिनी फिगर या बिकिनी ऐथलीट की तुलना फिजिक ऐथलीट से की जाती है. यहां ड्रैस, पोजिंग का कोई स्टैंडर्ड फौर्मैट नहीं है. यहां सिर्फ क्राउडपुलिंग के लिए लड़कियों का प्रयोग होता है.

दीपिका बताती हैं कि फिगर ऐथलीट में कुल 4 पोज होते हैं. इन में आप को सामने देखते हुए अपने बौडी पार्ट्स को दिखाना होता है. फिर अपने ऐब्स को, टांगों की सभी मसल्स को और फिर पीठ की मसल्स को दिखाना होता है. साथ ही 130 किलोग्राम वजन भी उठाना पड़ता है. 102 दंडबैठक भी लगानी पड़ती हैं.

मातृत्व पर असर

लोगों का मानना है कि अगर महिलाएं बौडी बिल्डिंग करती हैं तो उस से उन के मां बनने के प्राकृतिक गुण पर प्रभाव पड़ता है. इस सवाल पर दीपिका का कहना है, ‘‘यह बिलकुल गलत है. इस का ताजा उदाहरण हैं बैंगलुरु की बौडी बिल्डर सोनाली स्वामी जो 2 बच्चों की मां हैं और प्रसिद्ध बौडी बिल्डर भी. फिटनैस या बौडी बिल्डिंग का मातृत्व से कोई लेनादेना नहीं है.’’ अपनी सुंदरता और सिक्स पैक को मैंटेन रखते हुए दीपिका अपने परिवार की जिम्मेदारियां भी बखूबी निभा रही हैं. वे कहती हैं कि उन्हें अपने फिगर ऐथलीट बनने के निर्णय पर गर्व होता है.

टिफिन सर्विस : मेहनत पर मुनाफा भी

टिफिन सर्विस आज छोटेबड़े शहरों की जरूरत है. इस के बिना कामकाजी और अपने घरों से दूर रह रहे युवाओं का काम चलना मुश्किल है. इस लिहाज से यह बिजनेस मार्केट की धीमी और तेज चाल के बुरे असर से बचा रहता है. यह बिजनेस भले ही एक झटके में बड़ी रकम कमाने का जरीया न हो, लेकिन इस के लिए बहुत बड़ी पूंजी की जरूरत भी नहीं होती. हालांकि कई लोगों को इस के बारे में यह गलतफहमी हो जाती है कि यह बिजनेस घर बैठ कर कमाने का जरीया है, जबकि असल में ऐसा है नहीं. टिफिन सर्विस शुरू करने से ले कर जेब में पैसा आने तक आप को किसी न किसी काम के लिए घर से बाहर निकलना ही पड़ेगा. हम आप को इस बिजनेस के लिए हतोत्साहित नहीं कर रहे हैं, बल्कि इस की सचाई बता रहे हैं ताकि आप इसे शुरू करना चाहें तो इस के संभावित नफेनुकसान और जरूरी भागदौड़ के बारे में पहले से जान सकें .

अपने बिजनेस का प्रचार करें 

पहले करना होगा प्रचार. लगभग हर शहर में आज टिफिन सर्विस उपलब्ध है. आप को अपनी सर्विस देने से पहले उस का प्रचार करना होगा कि वह कैसे किफायती और बेहतर है. इस के लिए आप को परचों, एसएमएस, इंटरनेट आदि का सहारा लेना होगा. पीजी या स्टूडैंट्स और औफिस जाने वालों के इलाकों में जा कर अपनी सर्विस की जानकारी देनी होगी और यह काम घर बैठे कतई नहीं हो सकता. डिलिवरी पौइंट के पास हो किचन: समझदारी इसी में है कि जिस ऐरिया में आप को सर्विस डिलिवरी करनी है, वहीं आप की किचन हो. इस से टिफिन पहुंचाने में लगने वाले समय और पैसे दोनों की बचत होगी. लेकिन इस के लिए भी आप को अपना घर छोड़ कर किचन और उस की व्यवस्था देखनी होगी. 

सामान लाने के लिए कसनी होगी कमर

दूरदर्शिता तो इस में है कि खाना बनाने में प्रयोग होने वाले सामान के लिए आप को थोक बाजार का रुख करना होगा. जैसे सब्जी खरीदने के लिए सब्जीमंडी का तो राशन खरीदने के लिए किसी सस्ते और बड़े स्टोर का. वहां आप को सारा सामान एकसाथ और कम दाम में मिल जाएगा. जाहिर सी बात है कि इस के लिए भी आप को घर का आराम छोड़ना होगा. पैसा कलैक्ट करने का काम: आप के लिहाज से यह सब से अहम काम है. तो जाहिर है कि इसे आप या आप का भरोसेमंद शख्स ही अंजाम दे सकता है. हिसाब में कोई गड़बड़ न हो या अपने ग्राहकों का फीडबैक जानने के लिए भी आप को समयसमय पर उन से मिलना होगा और इस के लिए यह सही वक्त है, क्योंकि जब ग्राहक किसी सेवा के पैसे देता है तो उस की कमियां भी बताता है, इसलिए समयसमय पर यह भी जरूरी है.

यह तो हुई तैयारी और काम शुरू करने के लिए कमर कसने की बात. असल चुनौतियां तो आप को इस धंधे में उतरने के बाद पता चलेंगी. आइए नजर डालते हैं, टिफिन सर्विस देने वालों के सामने आने वाली चुनौतियों पर: 

सब से सस्ता और बेहतर: अगर मार्केट में पहले से टिफिन सर्विस मौजूद है, तो आप उन के बीच कैसे जगह बनाएंगी या फिर ग्राहक आप की सेवा क्यों लेना चाहेंगे? जाहिर है वह तभी आप की सेवा लेंगे, जब उन्हें आप मार्केट से सस्ती और बेहतर सेवा दें. इसे आप इनवैस्टमैंट समझिए. एक बार आप का ग्राहक बन जाने पर वह आप को लंबे समय तक फायदा देंगे. 

मौसम अटकाएगा रोड़े: गर्मी और बरसात 2 ऐसे सीजन आप को झेलने होंगे, जिन में आपको अपना खाना खराब होने से बचाना होगा. इस के लिए न तो आप पुराना खाना इस्तेमाल कर सकती हैं और न ही उसे ज्यादा देर तक टिफिन में बंद रख सकती हैं. इस चुनौती से पार पा गए तो ग्राहक आप के पास बने रहेंगे.

स्वाद न हो जाए बेस्वाद: अपनी टिफिन सर्विस में इस बात का खास ध्यान रखें कि आप का खाना ग्राहकों को बेस्वाद न लगे. इस के लिए डिशेज के साथ ही मसाले और उन के इस्तेमाल के तरीके बदले जा सकते हैं. 

डूब सकती है कुछ रकम: इस काम की शुरुआत में आप को रिटर्न कम मिल सकता है. जैसे खाना बरबाद होना या कस्टमर से किसी महीने पेमैंट न मिलना आदि. लेकिन इस से निराश होने की जरूरत नहीं है. आप का खाना अगर टेस्टी होगा तो कस्टमर रहने की जगह बदलने के बावजूद आप की सर्विस लेते रहेंगे. 

कम लागत में अधिक बचत: अगर आप खुद कुक हैं तो डिलिवरी सर्विस और छोटेछोटे कामों जैसे पैकिंग, वाशिंग, डिलिवरी आदि के लिए 1-2 डिलिवरी बौय रख सकती हैं. लेकिन जैसेजैसे आप का काम बढ़ता जाएगा वैसेवैसे आप को अपना स्टाफ भी बढ़ाना होगा. टिफिन सर्विस का काम अच्छे बिजनेस और रैजिडैंशियल ऐरिया में ज्यादा सफल होता है. इस बिजनेस को 50 हजार से शुरू किया जा सकता है.

आभूषणों का उपहार बढ़ाए पतिपत्नी में प्यार

अपनी फीलिंग्स अपने चाहने वाले तक पहुंचाने का सब से बेहतर माध्यम उपहार होते हैं. वैसे तो इन का लेनदेन पूरा साल चलता रहता है, लेकिन जब बात साल के सब से बड़े त्योहार दीवाली की आती है तो चारों ओर रोशनी की जगमगाहट होती है. ऐसे में अपनी जीवनसंगिनी को खास उपहार तो देना बनता है, क्योंकि ऐसे अवसर पर उपहार का महत्त्व और माने और ज्यादा बढ़ जाते हैं. साल भर आप के घरपरिवार को अपनी देखभाल व प्यार से सींचने वाली पत्नी के प्रति आभार व्यक्त करने का दीवाली से बेहतरीन मौका भला और क्या हो सकता है. आइए, जानते हैं इस दीवाली आप अपनी बैटरहाफ को ज्वैलरी गिफ्ट कर के कैसे एक दीवा का रूप व स्टाइल दे सकते हैं. सच मानिए आप के द्वारा दिया गया गहनों का उपहार पहन कर वे दीवाली की पार्टी की न केवल सैंटर औफ अट्रैक्शन बन जाएंगी, बल्कि आप का दिया उपहार आप दोनों के बीच के रिश्ते को भी और मजबूत कर देगा.

ज्वैलरी से बैटर गिफ्ट और कुछ नहीं

यह तो सभी जानते हैं कि गहनों से महिलाओं का खास लगाव होता है. गहनों के साथ उन का एक भावनात्मक जुड़ाव होता है, क्योंकि गहने उन्हें खूबसूरत दिखाने के साथसाथ आर्थिक रूप से संपन्न होने का भी आभास कराते हैं. तो फिर गहनों से बेहतर दीवाली के लिए और कौन सा उपहार हो सकता है?

बैटरहाफ को ज्वैलरी गिफ्टिंग के औप्शन: अगर आप चाहते हैं कि दीवाली की पार्टी पर आप की पत्नी दीवा जैसी दिखे और हर किसी की नजर उस पर ही टिक जाए और उस की नजरें आप पर टिक जाएं तो इस दीवाली अपनी पत्नी को कीजिए कुछ ऐसी ज्वैलरी गिफ्ट जो आप दोनों की दीवाली को स्पैशल बना दे.

ट्राइबल ज्वैलरी: अगर आप अपनी पत्नी को गोल्ड और डायमंड ज्वैलरी से कुछ डिफरैंट ज्वैलरी गिफ्ट करना चाहते हैं तो ट्राइबल ज्वैलरी एक बैटर औप्शन हो सकता है. ज्वैलरी डिजाइनर कीर्ति का कहना है, ‘‘ट्राइबल ज्वैलरी ज्यादा ऐक्सपैंसिव नहीं होती, लेकिन स्टाइल के मामले में इस का कोई मुकाबला नहीं होता. यह हाई सोसायटी की महिलाओं के बीच भी खासी लोकप्रिय है. इसलिए यह दीवाली पर गिफ्टिंग का बैटर औप्शन है. गोल्ड और डायमंड ज्वैलरी को रोज कैरी करना आसान नहीं होता. ऐसे में ट्राइबल ज्वैलरी में सिल्वर, कौपर, लकड़ी, हाथी दांत व स्टोंस तथा कलरफुल शेड्स की स्मार्ट ज्वैलरी लुक को कंप्लीट करती है और स्मार्ट लुक देती है. सब से बड़ी बात यह कि ट्राइबल ज्वैलरी आजकल फैशन में हैं. सिल्वर कौइन्स की विक्टोरियल स्टाइल की ज्वैलरी गिफ्ट कर के इस दीवाली हस्बैंड्स अपनीअपनी पत्नी का दिल जीत सकते हैं. सूरज, चांदतारे, ज्योमैट्रिकल डिजाइंस व ऐनिमल मोटिफ वाली ज्वैलरी वैस्टर्न वियर के साथसाथ इंडियन वियर के साथ भी ट्रैंडी व कूल लुक देती है.’’

ऐंटीक ज्वैलरी: ऐंटीक ज्वैलरी सिल्वर में आती है और यह ट्रैडिशनल लुक देने के साथसाथ मौडर्न टच भी देती है. सिल्वर में बनी ऐंटीक ज्वैलरी की खासीयत यह होती है कि इस में ऐथनिक व पारंपरिक ऐलिमैंट होता है, जो इंडियन वियर को गौर्जियस लुक देता है तो वैस्टर्न वियर को फ्यूजन स्टेटमैंट. सिल्वर में बनी ऐंटीक ज्वैलरी में आप पत्नी को औक्सीडाइज्ड नेकलैस, रिंग, कफ्स और कलर्ड स्टोन जड़ी सिल्वर ज्वैलरी भी गिफ्ट कर सकते हैं. कीर्ति कहती हैं, ‘‘चूंकि डायमंड और गोल्ड महंगा होने के कारण हर बार नहीं खरीदा जा सकता, ऐसे में प्रेशियस सिल्वर ज्वैलरी ऐलर्जी फ्री होने के साथसाथ सस्ती भी होती है. ऐंटीक ज्वैलरी में हस्बैंड्स सिल्वर बेस्ड टर्किश ज्वैलरी भी गिफ्ट कर सकते हैं. सिल्वर बेस्ड इस ज्वैलरी का कलर गोल्डन होता है और यह स्टाइलिश लुक देती है.’’

स्टेटमैंट ज्वैलरी: स्टेटमैंट ज्वैलरी किसी भी महिला के व्यक्तित्व को दर्शाती है. आज स्टेटमैंट ज्वैलरी हर महिला की निजी व फैशनेबल पसंद है. अगर आप चाहते हैं कि आप की पत्नी भी आप के द्वारा लाई गई स्टेटमैंट ज्वैलरी पहन कर अलग व आत्मविश्वास से लबरेज दिखे तो आप उसे स्टेटमैंट ज्वैलरी भी गिफ्ट कर सकते हैं. स्टेटमैंट ज्वैलरी सिर्फ नैकपीस तक ही सीमित नहीं है. अंगूठियां और इयरिंग्स भी इस का अहम हिस्सा हैं. स्टेटमैंट ज्वैलरी का चुनाव करते समय चेहरे की बनावट का ध्यान रखना जरूरी है. अगर पहनने वाली का चेहरा गोल है तो उस के लिए ओवल, रैक्टैंगल व लटकन वाली शेप के इयरिंग्स खरीदें.

कौस्ट्यूम ज्वैलरी: अपनी खूबसूरती और टैक्सचर के कारण कौस्ट्यूम ज्वैलरी क्लासी ज्वैलरी के अंतर्गत आती है. इसे किसी भी आउटफिट के साथ कैरी किया जा सकता है. कम कीमत वाली व अनेक रंगों में मिलने वाली इस ज्वैलरी को मौडर्न व ट्रैडिशनल किसी भी ड्रैस के साथ पहना जा सकता है. ज्वैलरी वुड, बीड्स, आइवरी, रौल्स, जूट, टैराकोटा व अन्य मैटल्स में मिलती है. इंडोवैस्टर्न आउटफिट के साथ ऐथनिक ज्वैलरी में टैराकोटा ज्वैलरी का कोई जवाब नहीं. वहीं बोहेमियन लुक के लिए रंगीन बीडेड ज्वैलरी दी जा सकती है. बीड्स के कई मैटीरियल और रंगों में मिलने के कारण इसे हर ड्रैस के साथ पहना जा सकता है.

पिंक या रोज गोल्ड: इंटरनैशनल ट्रैंड में आजकल पिंक गोल्ड पर डायमंड का काम प्रचलित है. अगर आप बिना डायमंड वाली ज्वैलरी चाहते हैं तो गोल्ड पर सैल्फ डिजाइन या टैक्सचर्ड डिजाइन वाली ज्वैलरी ले सकते हैं और अगर डायमंड या प्रेशियस स्टोंस की डिजाइनिंग वाली ज्वैलरी लेना चाह रहे हैं तो इरेग्यूलर डिजाइन की बड़े स्टोन वाली ज्वैलरी लें, जिस में स्टोंस की शेप एकजैसी न हो कर अलगअलग आकार की हो. पिंक गोल्ड अब हौलीवुड स्टार्स से ले कर बौलीवुड स्टार्स तक में पौपुलर है. डायमंड और दूसरे प्रेशियस स्टोंस की कारीगरी पिंक गोल्ड को अटै्रक्टिव लुक देती है. इसलिए अगर आप भी अपनी बैटरहाफ को इन फैशनेबल दीवा जैसा देखना चाहते हैं तो इस दीवाली गिफ्ट कर सकते हैं पिंक गोल्ड ज्वैलरी. दीवाली पर अनेक कंपनियां गहनों पर विशेष छूट देती हैं तो आप भी इस मौके का फायदा उठा कर अपनी पत्नी की पसंद को ध्यान में रखते हुए आधुनिक डिजाइनों और परंपरागत गहनों का बेजोड़ तालमेल पेश कर सकते हैं.

ज्वैलरी खरीदते समय

  1. ज्वैलरी हमेशा विश्वसनीय दुकान से ही खरीदें.
  2. ज्वैलरी लेने से पूर्व उस के मेकिंग चार्जेस व अन्य टैक्स आदि के बारे में पता कर लें.
  3. ज्वैलरी की शुद्धता व रिप्लेसमैंट पर मिलने वाली कीमत जान लें.
  4. खरीदे गए गहनों का बिल लेना न भूलें.
  5. यह ठीक है कि इस तरह की सजावटी ज्वैलरी को बेचने से पैसे नहीं मिलते, पर यह चिंता का विषय नहीं क्योंकि आजकल इस तरह की नौबत कम आती है कि रोजमर्रा पहनने वाली ज्वैलरी बेची जाए. आप आकर्षक लगें, यह जरूरी है. निवेश के लिए सा दूसरी जगह लगाएं, ज्वैलरी में नहीं क्योंकि इस में जांच और डिजाइनिंग चार्ज में बहुत कुछ लगाना पड़ जाता है.
  6. ज्वैलरी चाहे आर्टीफिशियल ही हो, यह खयाल रखें कि उस में देवीदेवताओं के चित्र न हों, क्योंकि इस प्रकार की ज्वैलरी अंधविश्वासी बनाती है और इसे फेंकने में भी पाखंड की बातें आड़े आती हैं. अपने सजने में अपनी मौलिकता व सोच दर्शाएं, घिसीपिटी रिवाजगी नहीं.

बनें किचन क्वीन

दीवाली के नजदीक आते ही फिजाओं में अलगअलग पकवानों की सुगंध घुल जाती है. इस सुगंध को फिजाओं में घोलने में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है किचन क्वीन यानी घर की महिलाओं का. परिवार और मेहमानों को घर के बने पकवान का स्वाद चखाने के लिए महिलाएं त्योहार के हफ्ते भर पहले से ही रसोई में जुट जाती हैं और मेहनत व स्नेह से बनाए गए पकवानों की तारीफ सुनने के लिए बेताब रहती हैं, लेकिन ये क्या?

‘मां प्लीज, मैं इतना औयली, नमकीन नहीं खा सकता.’

‘भाभीजी, मिठाई खिला कर मारना चाहती हैं क्या? मुझे डायबिटीज है.’

‘अरे सुनती हो, तुम्हारे गुलाबजामुन खा कर मेरा पेट खराब हो गया है, अब मत बनाना.’

तारीफ की जगह आलोचनाएं मिलते ही इतनी जद्दोजेहद से बने पकवान पल भर में फीके हो जाते हैं और बनाने वाली के चेहरे पर मायूसी छा जाती है. लेकिन अगर त्योहार पर स्वाद और सेहत दोनों का खयाल रखा जाए तो कम मेहनत में भी लोगों के दिलों को जीता जा सकता है. यहां हम आप को बताने जा रहे हैं कुछ ऐसी रैसिपीज बनाने के तरीके जो न केवल ट्रैडिशनल मिठाइयों से जुदा हैं, बल्कि इन का स्वाद भी लाजवाब है. सेहत के लिए भी ये 100 फीसदी फायदेमंद हैं. इन रैसिपीज को ट्राई करें और बन जाएं इस दीवाली किचन क्वीन.

दीवाली पर गुलाबजामुन, काजूकतली, नारियल बरफी, बेसन के लड्डू तो आप ने खूब बनाए होंगे, लेकिन क्या आप ने कभी सोचा है कि ओटमील से भी लजीज डैजर्ट आइटम तैयार किया जा सकता है? शायद अब तक आप ने ओटमील का इस्तेमाल तबीयत के खराब होने पर किया होगा, लेकिन गुड़गांव स्थित होटल ड्यूसित देवराना के शैफ निशांत चौबे की मानें तो ओटमील से बहुत सारी रैसिपीज तैयार की जा सकती हैं और वे भी बेहद आसानी से. साथ ही ओटमील के लो कैलोरीज वाला होने और अधिक फाइबर मिलने का लाभ भी आप उठा सकते हैं. आइए जानते हैं ओटमील से बनी लजीज रैसिपी ओटमील मफिंस की विधि:

ओटमील मफिंस

सामग्री

1 कप ओटमील, 1 कप बटरमिल्क, 1 अंडा, 1/2 कप ब्राउन शुगर, 1/2 कप मक्खन बिना नमक का पिघला हुआ और ठंडा, 1 कप आटा, 1/2 छोटा चम्मच नमक, 1 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर, 1/2 छोटा चम्मच बेकिंग सोडा, 1/2 कप सूखी किशमिश.

विधि

एक बड़े बाउल में ओटमील और बटरमिल्क को मिला कर 1 घंटे के लिए रख दें. इस के बाद ओवन को 400 डिग्री तापमान पर गरम करें और 12 मफिन टिन्स में मक्खन की परत लगाएं. ओटमील के मिश्रण में अंडा, चीनी और मक्खन डालें और तब तक हिलाएं जब तक सामग्री अच्छे से मिल न जाए. अब एक दूसरा बड़ा बाउल लें. इस में आटा, नमक, बेकिंग पाउडर, बेकिंग सोडा व ओटमील मिश्रण डालें और अच्छे से मिलाएं. फिर इस मिश्रण में किशमिश डालें. अब इस मिश्रण को बराबर मात्रा में मफिन टिन्स में डालें और ओवन के मध्य में रख कर 20 मिनट तक बेक करें. बेक होने पर टेस्टर की सहायता से देखें कि क्या मफिंस अच्छी तरह बेक हो चुकी हैं, फिर सर्व करें.

महत्त्वपूर्ण टिप्स

यह भ्रम है कि स्वीट डिश का स्वाद बढ़ाने के लिए अधिक मात्रा में चीनी का प्रयोग हो. बल्कि चीनी सटीक मात्रा में होगी तभी डिश में स्वाद आएगा. चीनी अधिक होने पर स्वीट डिश में सिर्फ स्वीटनैस ही रह जाती है.

ओटमील मफिंस में चीनी के साथ नमक का भी प्रयोग किया गया है. नमक स्वीट डिश के फ्लेवर को इनहैंस करता है. सिर्फ ओटमील मफिंस ही नहीं, बल्कि किसी भी स्वीट डिश को बनाते वक्त उस में चुटकी भर नमक डालने से उस का स्वाद और भी लजीज हो जाता है.

ओटमील मफिंस में हलका सा नीबू रस डालने से इसे अधिक समय के लिए प्रिजर्व किया जा सकता है. साथ ही स्वीट डिश को आसानी से हजम करने में भी नीबू फायदेमंद है.

यदि आप रैसिपी बनाते वक्त नीबू से हिचक रही हैं, तो डिश को परोसते वक्त नीबू भी सर्व करें. ऊपर से नीबू रस का छिड़काव करने में डिश का स्वाद और भी बेहतरीन हो जाता है. पुडिंग तो सभी को बनानी आती है, लेकिन दीवाली जैसे त्योहार पर साधारण पुडिंग मेहमानों के आगे परोसना अपनी कमजोर पाककला को दिखाना है. लेकिन पुडिंग यदि चिया सीड्स से बनाई गई हो और एकदम अलहदा स्वाद से भरी हो तो मेहमाननवाजी करने में एक अलग सा आत्मविश्वास आता है. साथ ही यह अलग प्रकार की पुडिंग शरीर को ओमेगा 3 फैटी ऐसिड, फाइबर, ऐंटीऔक्सीडैंट्स और मिनरल्स भी प्रदान करती है. तो आइए जानिए चिया सीड पुडिंग बनाना:

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चिया सीड पुडिंग

सामग्री

1 कप बादाम का दूध बिना मिठास वाला, 1 कप प्लेन ग्रीक दही, 6 बड़े चम्मच शुद्ध मेपल सिरप, 1 छोटा चम्मच शुद्ध वैनिला ऐक्सट्रैक्ट, 1/4 कप चिया बीज, 1/4 कप बादाम कटा और रोस्टेड, 1 कप स्ट्राबैरी कटी हुई, 1 कप ब्लूबेरी, 1 कप जामुन, सीसाल्ट स्वादानुसार.

विधि

एक मध्यम आकार के बाउल में बादाम का दूध, दही, 2 बड़े चम्मच मेपल सिरप, वैनिला ऐक्सट्रैक्ट और 1/8 चम्मच नमक डालें और अच्छी तरह ब्लैंड करें. अब इस मिश्रण को चिया सीड्स पर डालें और 30 मिनट के लिए अलग रख दें. सीड्स यदि एक जगह सैटल हो गए हों तो मिश्रण को थोड़ा सा हिला दें. अब इस मिश्रण को कवर करें और रात भर के लिए फ्रिज में रख दें. अब मिश्रित मुरब्बा बनाने के लिए स्ट्राबैरी, ब्लूबेरी व जामुन को चीनी की चाशनी में तब तक पकाएं जब तक वे अर्द्ध ठोस अवस्था में न पहुंच जाएं. अगले दिन एक मध्यम आकार के बाउल में बेरी के मुरब्बे में बचा हुआ मेपल सिरप डालें और अच्छे से मिलाएं. फिर इसी सामग्री में बादाम डाल कर मिलाएं. अब 4 गिलासों में पुडिंग को डालें और बेरी के मुरब्बे को गिलास में ऊपर की तरफ डाल कर सर्व करें.

महत्त्वपूर्ण टिप्स

चिया सीड्स पुडिंग बनाने के लिए चिया सीड्स को कुछ देर के लिए पानी में भिगो कर रखना होता है. लेकिन 1/2 घंटा से ज्यादा बीज को पानी में भिगो कर न रखें, क्योंकि इस से वे पानी में ही घुल जाएंगे.

बादाम के दूध का इस्तेमाल करने से पहले एक बार उसे उबाल लें. इस से दूध में मौजूद नुकसान पहुंचाने वाले सभी बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं. इस बात का भी ध्यान रखें कि दूध को ठंडा करने के बाद ही इस्तेमाल करें.

पुडिंग बनाने के बाद उसे कई हिस्सों में डिवाइड कर के फ्रिज में रखें ताकि जब भी आप को मेहमान के आगे डिश परोसनी हो तो आप 1 भाग उसे परोस सकें. इस से बाकी हिस्सा फ्रिज में ठंडा बना रहेगा.

आप चिया सीड्स पुडिंग को 3 से 4 दिनों तक प्रिजर्व कर के रख सकती हैं.

खिचड़ी का रिवाज तो कहीं नहीं देखा गया है, बल्कि जिस घर में त्योहार पर खिचड़ी परोसी जाए तो धर्म के नजरिए से इस से ज्यादा अशुभ कुछ और नहीं हो सकता. लेकिन अब इन खोखली बातों को नजरअंदाज कर खिचड़ी जैसी साधारण रैसिपी को एक नया फ्लेवर और कौंबिनेशन देने का वक्त आ गया है. शैफ निशांत चौबे कहते हैं कि जरूरी नहीं कि ट्रैडिशनल तरीके से बनी खिचड़ी को ही खिचड़ी कहा जाए. इस के साथ भी कई प्रयोग किए जा सकते हैं. खासतौर पर उस सामग्री के साथ, जिस से खिचड़ी तैयार की जाती है. जी खिचड़ी में अगर कुछ ऐसे इनग्रीडिएंट्स की जुगलबंदी कर दी जाए, जो खिचड़ी को अल्ट्रा मौडर्न बना दें, तो दीवाली क्या हर तीजत्योहार पर खिचड़ी को मेहमाननवाजी का हिस्सा बनाया जा सकता है. खासतौर पर यदि खिचड़ी वाइल्ड राइस विद टोफू ऐंड ऐस्पैरगस से तैयार की गई हो.

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वाइल्ड राइस खिचड़ी विद टोफू ऐंड ऐस्पैरगस

सामग्री

500 ग्राम वाइल्ड राइस, 200 ग्राम अरहर की दाल, 200 ग्राम मूंग दाल, 20 ग्राम अदरक, 20 ग्राम लहसुन, 1 हरीमिर्च, 20 ग्राम हलदी पाउडर, 20 ग्राम धनिया पाउडर, 20 ग्राम जीरा पाउडर, 10 ग्राम घी, 100 ग्राम टोफू, 30 ग्राम ऐस्पैरगस, 10 ग्राम साबूत जीरा, गार्निशिंग के लिए थोड़ी सी धनियापत्ती, समुद्री नमक.

विधि

ठंडे पानी में रात भर के लिए वाइल्ड राइस को भिगो दें. सुबह उसे 1/2 घंटा पानी में उबालें. दालें ठंडे पानी में 30 मिनट के लिए भिगो कर रख दें. फिर उन्हें हलदी डाल कर उबालें. उन के मुलायम पड़ने पर उन्हें मिक्सी में ब्लैंड करें. अदरक, लहसुन और हरीमिर्च को बारीक काटें. टोफूज को घी, जीरा पाउडर, धनिया पाउडर, हलदी और समुद्री नमक से मैरिनेट करें. फिर एक पैन लें और उस में घी, साबूत जीरा, अदरक, लहसुन और मिर्च डालें. 10 मिनट तक इस सामग्री को भूनें. फिर इस मिश्रण में हलदी पाउडर, धनिया पाउडर और जीरा पाउडर डालें. ऊपर से नमक भी डालें. अब एक अलग पैन लें और उस में मैरिनेट किए गए टोफूज को तब तक फ्राई करें जब तक वे क्रिस्पी न हो जाएं. ऊपर से ऐस्पैरगस डालें और धनियापत्ती से गार्निशिंग करें. डिश परोसने के लिए तैयार है.

महत्त्वपूर्ण टिप्स

जिस पानी में रात भर चावल को भिगोएं उसी पानी से चावल को उबालें. दरअसल, चावल वाले पानी में स्टार्च आ जाता है, जिस में पोषक तत्त्व होते हैं.

यह खिचड़ी घुली हुई नहीं होती, क्योंकि वाइल्ड राइस थोड़े हार्ड होते हैं. इन को हलका सा चबा कर खाना होता है और चबा कर खाया गया खाना बहुत फायदेमंद होता है.

वाइल्ड राइस के स्थान पर इस रैसिपी में रैड राइस, ब्लैक राइस और ब्राउन राइस का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. यदि आप इसे प्रिजर्व कर के खाना चाहती हैं तो दाल की प्यूरी को अलग और उबले हुए चावलों को अलग रखें. मेहमानों के आगे परोसने से पहले बस तड़का लगा दें.

आइसक्रीम खिलाना भी आम है, लेकिन मीठी ठंड से लिपटे इस त्योहार पर आइसक्रीम एक आइडियल पकवान में शामिल नहीं होती. फिर भी थोड़े प्रयोग से यही आइसक्रीम स्वाद और सेहत दोनों को बढ़ा देती है. इस के अलावा आइसक्रीम में मिठास की मौजूदगी भी आम है, लेकिन मिठास के साथ कड़वाहट भी घुल जाए तो स्वाद में यूनीकनैस अपनेआप ही आ जाती है. टरमरिक यानी हलदी जिस का स्वाद इतना डौमिनेटिंग होता है कि अलग से ही समझ में आता है. ऐसे में आइसक्रीम में इस का प्रयोग एक चुनौती ही है. लेकिन शैफ निशांत की मानें तो टरमरिक आइसक्रीम खाने वाले उस के स्वाद को कभी नहीं भूल पाएंगे. तो आइए जानते हैं, कैसे बनती है यह रैसिपी:

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टरमरिक आइसक्रीम

सामग्री

200 ग्राम ताजा हलदी, 100 मि.ली. लो फैट क्रीम, 100 मि.ली. स्किम्ड मिल्क, 40 ग्राम चीनी, 100 ग्राम ताजा हलदी की पत्ती, संतरे का छिलका थोड़ा सा, समुद्री नमक.

विधि

हलदी रूट्स को अच्छी तरह साफ कर के काटें. फिर एक पैन लें. उस में कटे हलदी रूट्स के साथ दूध, क्रीम और चीनी डालें और इस मिश्रण को 35 मिनट तक धीमी आंच पर उबलने दें. फिर इस में संतरे का छिलका डालें और ठंडा होने दें. ऊपर से समुद्री नमक छिड़कें. फिर इस मिश्रण को ब्लैंड करें और 24 घंटे तक फ्रिज में रखें. फिर इसे समुद्री नमक और संतरे के छिलके के साथ परोसें.

महत्त्वपूर्ण टिप्स

मूमन आइसक्रीम का स्वाद मीठा होता है, लेकिन टरमरिक आइसक्रीम का स्वाद मीठा होने के साथ हलकी सी कड़वाहट भी लिए होता है.

आइसक्रीम किसी भी प्रकार की बीमारी में खाई जा सकती है, बल्कि यह फायदा भी करती है.

इसे हफ्ते भर फ्रिज में प्रिजर्व कर के रखा जा सकता है. 

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